Sunday, January 8, 2012

आग में जलती हसीना --1



हिंदी सेक्सी कहानियाँ
आग में जलती हसीना --1

गतांक से आगे......................
"... उसने उसे गोद में खिलाया था. पर आज उसके तन मन में जो आग लगी थी, उसका वो क्या करे? इसी कश्मोकश में उसने अपनी साड़ी ढीली की और पेट्टीकोट का नाडा खोल कर अपनी ऊँगली से अपनी चूत सहलाई.."

जबसे उसने सुना की महेश आ रहा है, वो बड़ी खुश थी. तरह तरह के पकवान बनाने में सबेरे से जुटी थी. शादी के बाद पति चंदर के साथ शहर आ गयी थी. शहर भी कह नहीं सकते थे उसे. मुंबई के पास एक नवी मुंबई शहर बन रहा था. नए शहर में काफी बिल्डिंगें बन रही थी. चंदर एक कोन्त्रक्टोर के यहाँ सूपरवाइज़र था. तनख्वाह ठीक ठाक थी. बेटी तारा के जन्म के बाद चंदर ने नसबंदी करा ली थी. वो ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था, परन्तु समझदार था. शादी के बाद जब तक की उसकी आमदनी नहीं बढ़ी उसने कोप्पर-टी का प्रयोग करवाया था. तारा शादी के चार साल बाद जन्मी थी.

तारा भी अब ५ साल की हो गयी थी, और स्कूल जाने लगी थी. दोपहर में घर काटने को दौड़ता था. पड़ोस की औरतों से वो घुल मिल नहीं पायी थी. पति और बच्ची ही उसका सारा संसार थे. उनके एक रिश्तेदार थे मुंबई में. लेकिन शहर की भाग-दौड में उनसे भी महीनों में कभी मिल पाते थे. चंदर ने उसे एक मोबाइल फोन दिया हुआ था जिससे की वो गांव में जब रहा नहीं जाता, कॉल कर लेती थी. लेकिन वो भी उसके अकेलेपन को काटने के लिए काफी नहीं था. ऐसे में कल शाम चंदर ने उसे बताया की महेश आ रहा है. उसे काफी खुशी हुई की चलो उसे भी बतियाने के लिए कोई मिल जायेगा, कुछ दिन तो मन लगा रहेगा!

महेश चंदर की सगी दीदी का लड़का यानी की उनका भांजा था. उसे याद था जब उनका विवाह हुआ था तो महेश ७ साल का गोल मटोल बच्चा था. बहुत गोरा, बिखरे बाल और मोती मोती आँखें. बहुत शर्मीला था. मोटा होने के कारण बिलकुल किसी गुड्डे की तरह दीखता था. वो शादी के लिए तैयार हो रही थी तो दीदी के साथ वो भी उसके कमरे में आया था. तब वो शर्माता हुआ दीदी के पीछे छुप रहा था. दीदी झल्लाते हुए बोली,
"अरे महेश क्या कर रहे हो, मामी हैं तुम्हारी. चलो नमस्ते कहो... जल्दी नमस्ते बोलो नहीं तो मामी को बुरा लगेगा."
"नहीं दीदी बुरा क्यों लगेगा. यह गोलू तो अपनी मामी को एक पप्पी देगा. देगा न गोलू?"
फिर उसने महेश के गाल खींच के उसे एक गाल में पप्पी दे दी. वो शर्मा के कमरे से भाग गया था!

उसके बाद भी कई दफा वो उससे मिली थी. हमेश उसे छेडा करती थी और गाल पे पप्पी देने के बाद उसे हलके से काट देती, जिससे वो रोने लगता. फिर उसे चोकलेट और टोफी का लालच दे दे के मनाती.

एक बार उसने बड़े ही भोलेपन से सबके सामने कहा था,
"चंदा मामी कितनी सुन्दर हैं. मैं बड़ा हो जाऊँगा तो सिर्फ चंदा मामी से शादी करूँगा."
हँसते हँसते सब के पेट में बल पड़ गए थे और सब के चेहरे लाल हो गए थे.

वो प्यारा शर्मीला मामी का चहेता गोलू उनके पास कुछ दिनों के लिए आ रहा था, कुछ काम था उसे. चंदर ने बताया तो था, लेकिन उसके आने की खबर की खुशी में उसने ध्यान नहीं दिया था. बस पुछा था कि कितने दिन रहेगा तो पता चला कि करीब पन्द्रह दिन रहेगा उनके पास. लाडले भांजे के स्वागत कि तैयारी में लग गयी.

महेश के आने का वक्त हो रहा था. चंदर लेने गए थे उसे. वो भी जाना चाहती थी लेकिन ट्रेन रात को देर से आने वाली थी. लौटते-लौटते १२ बज जाते. वो बोले कि तुम्हें साथ नहीं ले जा सकता. वो समझती थी. बरसात शुरू होने वाली थी और जिस बिल्डिंग का काम चंदर देख रहा था वो बीच में कुछ कारण से रुक गया था. अब जब काम फिर शुरू हुआ तो बिल्डर चाहता था कि बरसात से पहले बिल्डिंग कड़ी हो जाए क्योंकि फिर बरसात में ज्यादा काम नहीं हो पाता. इस कारण काम २४ घंटे चलता और चंदर कई बार रात-रात भर काम करते.

एक महीना भर था बरसात शुरू होने में.

खैर, दरवाज़े पे टकटकी लगाये बैठी थी. तारा खाना खा कर सो रही थी. नींद उसे भी आ रही थी, लेकिन भांजे को खिला-पिला के ही सोने वाली थी वो.

तभी दरवाज़े में चाभी घूमी और दरवाज़ा खुला, चंदर एक बड़ा सा बैग उठाए घर में घुसे. वो उठ के उनसे बैग लेने बढ़ी. बैग हाथ में लेते ही, चंदर के पीछे जह्न्कने लगी, वहाँ कोई नहीं था.
"बैग ले आये, भांजे को कहाँ छोड़ आये?"
"अरे आ रहा है, थोड़ी देर पहले बोलने लगा, 'मामा, पेशाब करके आता हूँ!'. मैंने कहा घर तो आ ही गया है, घर में कर लेना. पर बोलता है..." चंदर हसने लगे, "... बोलता है, एक सेकंड कि और देर हो गयी तो पैंट में हो जायेगी. मामी के सोचेंगी?"
सुन कर वो भी हसने लगी.
"तुम खाना परोसो, तब तक वो आ जायेगा, मैं भी हाथ पैर धो लेता हूँ."

बैग को एक कुर्सी के बगल में रख कर वो रसोई घर चली गयी और दोनों कि थालियाँ लगाने लगी.

"चंदर मामा!", उसने जब यह आवाज़ सुनी तो एक पल के लिए वो अटक गई. यह तो किसी वयस्क पुरुष कि आवाज़ थी. वो बाहर आई तो उसने देखा कि एक लंबा सा, पतला सा लड़का था. उसकी हलकी हलकी मूंछे थी. दाढ़ी अभी ठीक से नहीं आई थी. उसे देखते ही वो मुस्कुराया और उसके पैर छूने के लिए झुक गया.

"अरे मामी के पैर नहीं छूते बेटा. कितना बड़ा हो गया है तू तो. कितने साल का हो गया रे?"
"१६ साल का, मामी, हमेशा गोलू बच्चा थोड़ी न रहूँगा!" वो उठते हुए बोला.
"धत तेरी की! अब गाल किसके नोचुंगी?"
"मेरे तो नहीं नोच पाओगी!" वो हँसते हँसते बोला.

"हो गया मामी भांजे का मेल मिलाप तो खाना खा लें?" चंदर हाथ पैर धो चुके थे.
"मैं तो पहले नहाऊंगा मामा."
"अरे हाँथ-पैर धो के खाना खा लो, कल नहा लेना. थक गए होगे, जल्दी सो जाओ", चंदा बोली.
"भूख तो तेज लगी है लेकिन नहाये बिना नहीं रहा जायेगा. पांच मिनट में नहा के आता हूँ.", बोलते हुए महेश ने बैग खोला और उसमे से तौलिया और कुछ कपडे ले बाथरूम कि और चल दिया.

घर बहुत बड़ा नहीं था उनका. एक बिल्डिंग के तीसरी और आखरी मंजिल पर उनका घर था. एक बेडरूम, एक हॉल और एक किचन. पति पत्नी और बेटी तीनों एक ही कमरे में सोते थे. महेश के लिए उसने एक गद्दा निकल दिया था. उसी को हॉल में बिछा कर उसके सोने का इंतज़ाम होना था.

बिस्तर पे लेटी-लेटी वो सोच रही थी. महेश कितना बदल गया है. कितना बड़ा हो गया है. कितना हंसमुख भी है. खाना खाते-खाते हंसा हंसा के मामा मामी कि हालत बिगड गयी थी! उसने देखा कि चंदर सो गए थे. वो धीरे से उठी और हॉल में चली गयी. खिडकी से बाहर सडक कि लाइट से रौशनी अंदर आ रही थी. उस रौशनी में महेश उसे साफ़ साफ़ दिख रहा था. काफी लंबा था वो. करीब ६ फीट. चंदा का कद करीब ५ फूट था और चंदर का करीब साढ़े ५ फूट. चेहरे पे एक युवक दस्तक दे रहा था. काफी हैण्डसम युवक. 'हैण्डसम' शब्द उसने किसी फिल्म में सुना था.

अचानक उसे ख्याल आया कि वो यह क्या कर रही थी? रात को चोरी चोरी अपने भांजे को निहार रही थी? जब से वो आया ठाट, वो उससे आँखे चुरा रही थी और शर्मा भी रही थी. ऐसा क्यों? एक अजीब सा दर उसके सर से पैर तक रेंग गया. वो संभली और अंदर जा कर फिर लेट गयी. इस बार थोड़ी बेचैन और अशांत थी. काफी देर तक तरह के ख्याल उसे पारेषण करते रहे. बार बार उसे महेश का मुस्कुराता चेहरा दीखता और वो सहम जाती. किसी तरह से करवट बदलते-बदलते आखिर में सो गयी.

रात में उसे अजीब अजीब सपने परेशां करते रहे. कभी चंदर उससे दूर कहीं जा रहे थे और उसका रो रो के बुरा हाल था. कभी तारा चीख चीख के रोती दिखाई दी. कभी उसे लगा कि वो एक ऊँचे पहाड़ से गिर रही है. कहते हैं सपने अंतर्मन का दर्पण होते हैं. आपके अंतर्मन में जो भी चलता रहता है, आपके सपने उसे दर्शाते हैं. चंदा के इन अजीब सपनों को समझने के लिए किसी मनोवैज्ञानिक कि ज़रूरत नहीं.

यह बात अभी उसे समझ नहीं आ रही थी, या वो समझना नहीं चाहती थी. सच यह था कि इस बार महेश को देख कर, ममता के अलावा उसके अंदर कई भावनाएं ऐसी जागी थी जो उसके संसार को हिला के रख सकती थी.

चंदा कि उम्र करीब २७ साल थी. उसकी शादी १८ साल कि होते ही माँ-बाप ने चंदर से करा दी थी. चंदा का पढाई में मन कभी नहीं लगा था. किसी तरह से वो १०वीं में पहूँची. जब दो बार फेल हो गयी तो उसके माँ-बाप समझ गए कि पढाई अब उसके बस कि बात नहीं थी. माँ ने उसे घर के काम काज में लगा दिया, जिससे कि शादी के लिए वो तैयार हो. चंदर बहुत ही अच्छा रिश्ता था. आज भी उसके मात-पिता को अपने दामाद पे गर्व था.

शादी कि पहली रात उसने काम-रस पहली बार चखा था. शादी से प[एहले ना तो कभी उसे इसका ख्याल और ना ही कोई रूचि थी. सीधी सादी लड़की थी चंदा. सहेलियों ने उसे खूब डराया था. लेकिन चंदर ने उसे बड़े प्यार से बिना जोर ज़बरदस्ती किये समझा कर, खूब देर तक छू कर, सहला कर उत्तेजित किया था. उसे थोडा दर्द हुआ था और खून देख कर वो थोडा दरी थी किन्तु चंदर उसे समझा चुके थे. उसे बहुत मज़ा भी आया था. उन दिनों चंदर निरोध का इस्तेमाल करते थे. जब उसने कोप्पर-टी लगवाई तब जाकर चंदर ने बिना निरोध के उसके साथ सम्भोग किया था. तब जा कर उसे सहवास के असली सुख का आनंद आने लग गया था. अब भी दर्द होता था किन्तु उस दर्द में अब उसे मज़ा आने लगा था.

करीब तीन साल तक उन्होंने खूब सम्भोग किया. फिर जब कोप्पर-टी निकल कर तारा उसके गर्भ में आई तो ८-९ महीने उन्होंने कोई सहवास नहीं किया. जबकि चंदा कई बार इतना तड़प उठती कि चंदर अपने हाथों से उसे सुख देने कि कोशिश करते.

जब घर में अकेली होती और अंदर से काम देवता जागते तो स्वयंसेवा कर लेती. स्वयंसेवा तो वो अब भी करती थी. अपने शरीर को वो चंदर से बेहतर जानती थी. ऐसा नहीं था कि चंदर उसे सुखी नहीं रखते थे. उनका लिंग करीब ६ इंच का परन्तु काफी मोटा था. तारा के जन्म के बाद, शादी के ९ वर्षों के बाद, आज भी जब चंदर उसके अंदर प्रवेश करते तो कुछ पलों के लिए उसे लगता कि उसकी योनी फट जायेगी. उसकी सांस रुक जाती. चंदर काफी देर तक उसपर लगे रहते. जब तक चंदर झडते, वो तीन चार बार झड चुकी होती.

अब जैसे जैसे तारा बड़ी हो रही थी और चंदर का काम बढ़ता जा रहा था, उनके सम्भोग के अवसर घटते जा रहे थे. रात में तारा को बेडरूम में बंद करके, हॉल में आवाज़ धीमी रख के वे सम्भोग करते थे. बेटी के बगल के कमरे में होने के कारण वे ठीक से मज़ा नहीं ले पाते और ऊपर से ग्लानी का भाव मन में हमेशा रहता था.

नहा कर जब चंदा बाथरूम से निकली तो दरवाज़ा खोलते ही महेश दिखा. दोनों टांगो के बीच हाथ भींच के खड़ा था. उसे देखते ही वो शर्माया और झट से बाथरूम में घुस गया. चंदा को अचानक ख्याल आया कि वोह केवल ब्लाउज़ और पेट्टीकोट में बाथरूम से निकल आई थी. वो भूल गयी थी पति और बेटी के अलावा अब घर में एक जवान लड़का भी था. झेम्पती हुई वोह बेडरूम चली गयी और दरवाज़ा बंद कर लिया.

अंदर जाकर लोहे के कपाट पर लगे आईने में देखने लगी कि कहीं कुछ अप्पतिजनक तो नहीं था?

अपने आपको निहारते निहारते वो खो गयी. पलट पलट के, घूम घूम कर अपने आपको देखने लगी. २७ कोई ज्यादा उम्र नहीं है. बॉलीवुड कि कई हेरोइनें उससे बूढी थी. चंदा कोई हेरोइने या मॉडल तो नहीं लगती थी लेकिन थी बहुत 'सेक्सी'. चंदर उसे अक्सर सेक्सी डार्लिंग कहते थे. चेहरा उसका लंबा था, नाक नुकीली, आँखे भूरी. कद ज्यादा नहीं था. हल्का सा पेट निकला था, परन्तु कमर अभी भी उसकी ३० ही थी. छाती काफी उभरी थी. 34c उसके ब्रा का साइज़ था. स्तन उसके काफी बड़े थे. चंदर उन्हें ख्होब दबाते और चूसते थे. जब तारा पैदा हुई थी, तो अक्सर चंदर उसका दूध पी लेते थे. लेकिन उसके शरीर में कोई देखने लायक अंग अगर था, तो वो थे उसके नितंब, कूल्हे यानि कि 'गांड'. ३६ कि गदराई गोलाइयों को चंदर खूब मसलते थे. उसकी जांघें गदराई हुई थी. यह सब देखते देखते और चंदर के साथ बिताए पलों के बारे में सोचते सोचते उसे अचानक याद आया कि उसे साड़ी पहन लेनी चाहिए.

सबेरे उठ के चंदर और तारा को तैयार करके, उनका दोपहर का खाना बांध कर उसने उन्हें विदा कर दिया था. महेश तब भी सो रहा था. किचन के अन्य काम निबटा के जब वो नहाने चली थी तब भी महेश सो रहा था. साड़ी पहन के जब वो बाहर आई तो देखा महेश नहाने गया है. उसके लिए चाय चढा कर नाश्ता निकलने लगी.

किचन में चाय छानते हुए उसे महेश के बाथरूम से निकलने की आवाज़ सुनाई दी. उसने हलवा एक पलते में निकाला और चाय का कप साथ ले कर बाहर निकल आई. देखा तो महेश केवल तौलिए में लिपटा पंखे के नीचे बदन सुखा रहा था.

वो थोड़ी सी झेंप गयी, फिर बोली, "बेटा, चाय नाश्ता ले लो!"

महेश पलटा और हल्का सा झेंप गया. "और तुम्हारा नाश्ता मामी?"

"ला रही हूँ. साथ में करेंगे."

अपना नाश्ता और चाय ले कर वो लौटी. साथ में बैठकर दोनों नाश्ता खाने लगे. वो इस उधेड़बुन में थी कि बात क्या करे. उसे बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं था कि गोलू जवान हो गया होगा.

"मामी, मुंबई कैसी है?" महेश ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा.

"ठीक ही है." वो बोली. उसे पता नहीं क्यूँ ऐसा लगा कि महेश उसके ब्लाउस कि गली में झाँक रहा है. पैरों के बीच एक हलकी सी तीस उठी. उसका चेहरा लाल हो गया.

"क्या हुआ मामी?" महेश के पूछने पर वो बोली, "कुछ नहीं, गर्मी कुछ ज़्यादा है, है ना?"

"है तो! मामी मैं कपडे बदल लूं अंदर जा कर?" उसने देखा कि महेश नाश्ता और चाय, दोनों खत्म कर चूका है. "अरे, पूछता क्या है. तेरा ही घर है."

महेश अंदर गया तो चंदा गहरी सोच में पड़ गयी. यह सब क्या हो रहा था. उसे ज्ञात था कि यह शायद कुछ गलत था, परन्तु उसे रोक पाने में वो खुद को बहुत लाचार महसूस कर रही थी.

महेश लौटा तो एक सफ़ेद रंग कि हाफ पैंट पहने था. तौलिए से पोछने के बावजूद शरीर पर लगे पानी को सोख कर उसके पैंट उसके लिंग से सैट कर उसके आकार और प्रकार का प्रदर्शन कर रहा था. ऊपर उसने कुछ नहीं पहना था.

चंदा उसे टकटकी लगा कर देखती रही. उसकी नज़र को अपने लंड पर देख महेश उत्तेजित हो उठा. पुछा, "क्या बात है मामी?"

"कुछ नहीं." वो बोली और सारे प्लेट गिलास इत्यादि उठा कर किचन कि ओर चल पड़ी. उसकी साँसे तेज हो चली थी.

"मामी मैं ज़रा बाहर घूम के आता हूँ"
"हाँ ठीक है"

जब उसने महेश के निकलने के बाद दरवाज़े के बंद होने कि आवाज़ सुनी तो उसके कदम न जाने क्यों बाथरूम कि ओर बढ़ चले. बाथरूम के फर्श पे उसने वीर्य पड़ा हुआ देखा. वो समझ गई कि ज़रूर महेश ने मूठ मारी थी. न जाने उसे क्या हुआ कि उसने उस वीर्य को अपनी ऊँगली से छुआ. अब भी गर्मी थी उसमे. उसका अन्र्डर्वेअर वहीँ रखा था. मदहोश सी चंदा ने महेश कि चड्ढी उठाई और उसे सूंघने लगी. सूंघते सूंघते उसकी आँखों के सामने महेश कि हाफ पैंट से उभरे हूए लंड का चित्र उसकी आँखों के सामने घूमने लगा.

उसे जैसे कोई नशा हो गया था. महेश कि चड्ढी पकडे जब वो बेडरूम में पहुंची तो उसके पैर शिथिल पड़ गए थे. उसका शरीर गर्म हो गया था और उसकी छोट गीली हो गयी थी. उसके मन में महेश का लंड उसकी चूत को चीरने के लिए तैयार था. हाफ पैंट में से वो समझ गयी थी कि महेश का लंड राक्षशी था. करीब ८- साढ़े ८ इंच लंबा और खूब मोटा.
क्रमशः.............................




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