हिंदी सेक्सी कहानियाँ
मेरे ससुर, जब हमारे साथ रहने के लिए आए तब उनकी उम्र ४७ साल कि थी! वह हमसे अलग, गांव में रहते थे! मेरी सास कि मृत्यु डेढ़ साल पहेले हो गई थे और पिछले एक साल से वह ज़्यादातर वहीँ गांव वाले घर में अकेले ही रहते थे! पापाजी (यानी मेरे ससुर) आर्मी में मेजर रह चुके थे और रिटायर्ड होने के बाबजूद वह बहुत फुर्तीले थे! आर्मी के तौर तारीके और तहज़ीब वह अभी तक नहीं भूले थे! गांव में रहने और खेतीबाड़ी करने तथा गांव के शुद्ध वातावरण के कारण उन का शरीर बहुत गठीला था और इस आयु में भी वह एकदम २७-२८ साल के जवान लडको जैसे लगते थे! पहले जब भी कभी वह सासू माँ के साथ हमारे पास आ के रहते थे तो मेरी पड़ोसने उन्हें मेरे पति के बड़े भाई ही समझती थी! पति के जाने के बाद, पिछले सात माह से वह हमारे साथ ही रह रहे हैं! पढ़े लिखे होने के कारण उनका उठाना बैठना और पहनावा भी शहर वासियों जैसा है, इसलिए मेरे साथ घर में बहुत जल्दी एडजस्ट हो गए हैं! घर के काम में और बच्चे कि देखभाल में भी मेरा हाथ बटा देते हैं!
मुझे और मेरे पति को सेक्स बहुत पसंद है और शादी के बाद कोई दिन भी ऐसा नहीं था जब हम एक बार या उससे ज्यादा बार चुदाई ना करते हों! अब मेरे पति को अमरीका गए लगभग सात महा हो चुके है और इन सात माह में से पहले दो माह तो मुझे एक बार भी सेक्स करने को नहीं मिला था ! इसलिए मैं इतनी बेचैन रहती थी और सारा दिन सेक्स के लिए तडपती रहती थी! चूत मरवाने कि लालसा लिए किसी को ढूंढती रहती थी, पर कोई भरोसे का नज़र नहीं आता था! लेकिन पांच माह पहले मुझे अचानक ही एक ऐसा अवसर मिला जिस से मुझे जिंदगी का सब से अत्यंत खुशी मिली और वह अभी भी ज़ारी है!
यह उस दिन बात है जब मैं घर का सफाई करती हुई पापाजी जी के कमरे गई तो मैंने पाया कि वह कमरे में नहीं हैं! मुझे समझ में नहीं आया कि वह कहाँ गए होंगे, इसलिए मैं इधर उधर देखने लगी और तभी मुझे उनके बाथरूम कि लाइट जलती हुई नज़र आई, मैं जिज्ञासा वश उस तरफ चली गई! वहाँ मैंने देखा कि बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ है और अंदर से उहं उंह कि आवाज़ आ रही हा! मैं सुन कर घबरा गई और सोचा कि शायद पापाजी जी कि तबियत ठीक नहीं है या वह किसी तकलीफ में हैं! मैं घबराहट में जल्दी से बाथरूम का दरवाज़ा खोल कर अंदर झांक के देखने लगी! अंदर का नज़ारा देख के मेरे तो होश उड़ गए, पापाजी जी अपने नौ इंच लंबे और ढाई इंच मोटे लंड महाराज कि बड़ी तस्सली से मालिश कर (मुठ मार) रहे थे! इस से पहले मैं अपने आप को संभालती तभी मैंने देखा कि पापाजी जी ने आह्ह्ह कि आवाज़ निकाल कर अपने लंड महाराज से रस कि पिचकारी छोड़ी जो कि दो फुट दूर दिवार पर जा पड़ी! पापाजी जी का ढेर सारा गाढ़ा रस, इतना ज्यादा और इतनी जोर से, निकलते हुए देख कर मेरी जोर से एक लंबी साँस निकल गई जिसे सुन के पापाजी ने पलट कर देखा और मुझे देखते ही गुस्से में पूछा "तू यहाँ क्या कर रही है?" उनकी गुस्से से भरी आवाज़ सुन कर मैं डर गई और बिना जवाब दिए वहाँ से भाग गई!
इस घटना के दो घंटे बाद तक तो मैं उनके सामने भी नहीं गई! लेकिन दोपहर को खाना बनाने के समय बेटा तंग कर रहा था तो मुझे मजबूर हो कर उसे उनको देने के लिए जाना पड़ा, तब वह बिलकुल नार्मल तरीके से पेश आए! इससे मेरी जान में जान आई और मैं भी उनके सामने आने जाने लगी तथा नार्मल तरीके से व्यहवार करने लगी! लेकिन उस घटना के बाद अगले दिन भी मैं उस नज़ारे के बारे में ही सोचती रहती! मेरे पति का लंड तो केवल सात इंच लंबा और दो इंच मोटा है तथा अत्यंत आनंद देता है, लेकिन पापाजी का यह लंड महाराज कैसे मज़े देगा मैं इसके सपने लेने लगी थी तथा अपनी चूत उस को डलवांने कि योजना बनाती रही!
अगले दिन, रात को सोने के समय मेरा बेटा बहुत रोने लगा! जब वह चुप नहीं हुआ तो मैं उसे पापाजी के कमरे में ले गई और उन्हें दे कर उनसे उसे चुप कराने का आग्रह किया! पापाजी ने उसे गोद में लिया और मुझे तेल लाने को कहा! मैंने उन्हें तेल ला कर दिया तो उन्होंने वह मेरे बेटे के पेट पर मलना शुरू कर दिया! कुछ ही देर में बेटा चुप कर गया और उनकी गोद में खेलने लगा! पोते को दादा के पास छोड़ कर मैं अपने कपड़े बदलने चली गई! तभी मेरे दिमाग में योजना आई कि अगर मैं पापाजी को अपने यौवन कि झलक दिखाउँ तो शायद कुछ बात बन जाए और मेरी लंड महाराज से चुदने कि इच्छा भी पूरी हो जाए! मैंने झट से ब्रा और पेंटी सहित अपने सारे कपड़ें उतारे और अपना पिंक रंग का पारदर्शी सा नाईट गाउन पहना! मैंने गाउन के उपर के दो और नीचे के तीन बटन खुले छोड़ दिए और बेटे को लेने पापाजी के कमरे में गई! जब मैं चलती थी तो जांघों तक मेरी टाँगे नंगी हो रहीं थी और मेरी डोलती हुई चूचियों और उस पर खड़ी ब्रौउन रंग कि डोडिया गाउन में से झलक रहीं थी! पापाजी ने मुझे उन कपड़ो में देखा और एकटक देखते ही रहे! उनकी आँखों कि चमक बता रही थी के वह मेरे बिछाये जाल में फँस जायेंगे, मुझे सिर्फ कुछ इंतज़ार करना पड़ेगा! जब मैंने पापाजी से बेटे को लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो उनका ध्यान मेरी चुचियों कि तरफ गया और वह उन्हें देखते हुए एकदम स्थिर हो गए! मैंने कहा "पापाजी, यह सोगया है लाइए मैं इस इसके बिस्तर पर सुला दूं!" तब हडबडा कर उन्होंने कहा "यह अभी अभी सोया है और कच्ची नींद में है इस लिए इसे अभी यहीं सोने दे"!
मैं "हाँ जी" कहती हुई अपने कमरे में चली गई! मुझे नींद नहीं आ रही थी इसलिए मैं बहुत देर तक ऐसे ही लेटी करवटें बदलती रही! तभी मुझे याद आया कि मैंने बच्चे को दूध तो पिलाया ही नहीं! मैं उठी और पापाजी के कमरे में गई तो पाया कि वह भी सो गए हैं! तब मेरे मन में आया कि मैं भी इसी कमरे में सो जाती हूँ और मैं उनके साथ वाले बेड पर लेट गई! बेटे को अपने पास खींचा और गाउन में से चुचियाँ निकाल कर उसे दूध पिलाने लगी! इतने में पापाजी ने नींद में ही करवट बदली और सीधे हो कर सोने लगे, तब मेरी नज़र उनकी लुंगी पर गई जो के खुल कर अलग हो गई थी और वह बिलकुल नग्न लेटे हुए थे! उनका लंड महाराज बड़े आराम से उनकी जांघों पर सोया हुआ था! मेरा ध्यान बच्चे को दूध पिलाने में कम और लंड महाराज कि ओर ज्यादा आकर्षित हो गया! मैं बहुत ध्यान से उसे और उसकी बनावट को देखती रही! पापाजी का लंड महाराज तो बहुत ही आकर्षक था! उसका साइज़ तो मैं ऊपर बता चुकी हूँ, पर उनके टट्टे भी तो कमाल के थें, लगभग तीन इंच साइज़ के गेंदों के बराबर होंगे! उनका लंड महाराज सोये होने के बाबजूद भी पांच इंच लंबा लग रहा था! ऊपर का सुपाड़ा तो ढका हुआ था लेकिन उसके आगे के आधा इंच भाग के उपर मांस नहीं था और उन का मूत्र और रस निकलने का छिद्र बिलकुल साफ नज़र आ रहा था!
मेरे बेटे का पेट भर चुका था इसलिए उसने चुचियों को छोड़ दिया था और सो गया था, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी! मैं बच्चे को अलग से सुला दिया और वहीँ बैठ कर पापाजी के उस हथियार को निहारती रही जो वहाँ लेटे लेटे मुझे चिढ़ा रहा था! मैंने महसूस किया कि मैं अपनी तृष्णा को अब और नहीं दबा सकती थी और उस लंड महाराज को चूसना और उसे अपनी चूत में ले कर जिंदगी का मज़ा लेना चाहती हूँ! मैं अपना अकेलापन दूर करना चाहती हूँ, अपनी सेक्स कि भूक मिटाना चाहती हूँ! इस के लिए अब मुझे मेरे पति कि गैर हाजरी में भरोसे का और पूरा संतुष्ट करने वाला पुरुष और उसका यह हथियार मिल गया था! अब मैं और इंतज़ार नहीं कर सकती थी और इसलिए मैंने अपनी सारी झिझक छोड़ी, अपना गाउन उतारा और सरक कर पापाजी कि जांघों के पास आ कर बैठ गई!
पापाजी जाग ना जाएँ इसलिए मैंने उनके लंड महाराज को हाथ से नहीं छुआ और अपने मुहँ को उसके पास लेजा कर उसे चूमने और जीब से उसे चाटने लगी! शायद यह लंड महाराज चूमने और चाटने से खुश होने वाले नहीं थे और उसे तो चुसाई चाहिए थी, इसलिए उसने हिलना शुरू कर दिया! उस कि इस हरकत से मैं थोड़ा घबराई, लकिन फिर हिम्मत बांध कर लंड महाराज को हाथ से पकड़ा, उपर का मांस पीछे सरका कर सुपाडे को बाहर निकला और उसे अपने मुहँ में डाल कर चूसना शुरू किया! कुछ ही क्षणों मैं लंड महाराज खुश हो कर तन गए! तभी पापाजी का हाथ मेरे सिर पर पड़ा और वह उसे नीचे दबाने लगा और देखते ही देखते लंड महाराज मेरे मुहँ से होते हुए मेरे गले तक पहुँच गया! मेरी हालत पतली हो गई थी, मरी साँस उखड रही थी! फिर भी मैंने हिम्मत नहीं छोड़ी और चुसाई चालु रखी! करीब एक मिनट के बाद पापाजी का हाथ मेरे सिर से हट कर नीचे आ गया और वह मेरी चुचियों को पकड़ कर उन्हें दबाने लगे! उनकी इस हरकत से मैं बहुत ही प्रसन हुई और मेरी चूत गीली होने लगी! फिर उन्होंने मेरी डोडिया को अपनी उँगलियों में दबा कर मसलने लगे, जिससे मैं गरम होने लगी और मैं एक हाथ से अपनी चूत में खुजली एवं ऊँगली करने लगी!
मुझे अभी मज़ा आना शुरू ही हुआ था कि पापाजी उठ के बैठ गए! उनकी चूची से निकले दूध के कारण उनके हाथ गीले होने लगे थे, जिस से उनकी नीदं खुल गई थी! उन्होंने मुझे झटके के साथ अपने लंड महाराज से अलग कर दिया! फिर उन्होंने ने उठ कर लाईट जलाई और भौचकें से मेरे नग्न शरीर को देखने लगे! तभी उन्हें अपने नंगे होने का अहसास हुआ और फुर्ती से अपनी लुंगी उठा के पहन ली एवम मेरा गाउन मुझे पकड़ा गिया और बोले "यह क्या कर रही थी? जाओ कपड़े पहनो"!
"पापाजी मैं तो वही कर रही थी जो आप चाहतें हैं!" मैंने जवाब दिया!
"मैंने ऐसा करने को कब कहा" पापाजी बोले!
"मैं तो बेटे को ले जाने के लिए आई थी, आपकी खुली हुई लुंगी देख कर उसे आप के उपर ओढ़ रही थी, तब आपने मेरे सिर को पकड़ लिया और उसे अपने महाराज पर दबा दिया! मैं समझी कि आप इसकी मालिश चाहते हैं" मैंने एक दम से झूट बोल दिया!
"तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था और साफ़ मना कर देना चाहिए था" पापाजी फिर बोले!
"मैंने आज तक आपका कोई भी आदेश या इशारा, कभी नहीं टाला तो यह कैसे न मानती" मैंने उतर दिया!
"अरे मैं तो नीद के सपने में था जिस में यह सब तुन्हारी सास कर रही थी, इसलिए मैंने ऐसा इशारा किया होगा" पापाजी ने कहा!
"पापाजी तो क्या हो गया अगर मैंने इशारे को आप का आदेश समझ कर आप कि यह सेवा भी कर दी! आप का सपना और मेरा कर्तव्य दोनों पूरे हो गए" मैंने कहा!
"अरी, तू मेरी बात क्यों नहीं समझ रही है! मैं तेरे साथ ऐसा कुछ नहीं कर सकता" वह बोले!
"अब तो हम दोनों एकसाथ यह कदम उठा चुके हैं, दोनों में से कोई एक भी कदम पीछे ले जाता है तो दुसरे को बुरा लगेगा! बताइयें, अब हम यहाँ से आगे बढ़ने के इलावा और क्या कर सकते हैं," मैं नादान बनते हुए बोली!
इससे पहले कि वह कुछ कहें और बात ज्यादा बिगड़े, मैं उठ कर खड़ी हो गई और अंगड़ाई लेते हुए, अपने जिस्म कि नुमाइश करती हुई उनके पास आ कर उनके हाथों को पकड़ा और अपनी चुचियों पर रख दिए! फिर उनके लंड महाराज को पकड़ कर हिलाती हुई बोली:-
"पापाजी, अब तो आप का यह महाराज भी गरम हैं और मेरी महारानी में भी आग लगी हुई है! इसलिए मैं आपके पाऊँ पढ़ती हूँ और विनति करती हूँ कि कृपया सब कुछ भूल जाएँ और जो खेल शुरू किया था उसे आगे खेलते रहते हैं! प्लीज़ इस महारानी कि जलन को बुझाने के लिए इसमें अपने महाराज से बौछार करा दीजिए"! उन्हें आगे कुछ बोलने का कोई मौका दिए बिना, मैं उनके पैरों को पकड़ कर नीचे बैठ गयी और उनका महाराज मुहँ में ले कर जोर जोर से चूसने लगी!
पापाजी कुछ नहीं बोले और चुपचाप खड़े रहे! मैं समझ गई के अब लोहा गरम हो रहा है और चोट मारने का समय आ गया है! मैंने झट से उनके हाथों को खीच कर अपनी चुचियों पर रख दिया! बस फिर तो ऐसा लगा कि जंग जीत ली, कियोंकि पापाजी ने मेरी चुचियों को मसलने लगे, पर उन में से दूध न निकलने लगे इसलिए उन्होंने डोडीयों को नहीं मसला! फिर वह बेड पर बैठ कर लंड महाराज चुसाने लगे और अपना हाथ मेरी चूत पर रख दिया! वह कभी उस के अंदर ऊँगली करने लगे और कभी छोले को रगड़ने लगे! बस मैं तो सातवें आसमान पर पहुँच गई, अब तो मूसल चंद से रगडाई के झटकों का इंतज़ार था! मेरी तेज तेज चुसाई से पापाजी के लंड महाराज का अत्यंत स्वादिष्ट प्रथम रस (प्री-कम) मेरे मुहँ में आना शुरू होगया था! यह महसूस कर के पापाजी बोले "कैसा लग रहा इस का स्वाद?"
मैं बोली "बहुत स्वादिष्ट है, कुछ मीठा और कुछ नमकीन"!
वह बोले "क्या मेरा सारा रस तुम फ्री में पी जाओगी और एवज मुझे कुछ नहीं दोगी! उठो और बेड के उपर आ कर लेटो ताकि मैं भी तुम्हरी महरानी का रस पी सकूँ"
"अच्छा पापाजी" मैंने कहा और झट से बेड पर आ कर लेट गई!
फिर तो पापाजी ६९ कि पोजीशन में लेट कर मेरी टाँगे चौड़ी कर के मेरी चूत रानी को चूसने लगे और मैं उनके लंड राजा को! पापाजी कभी चूत में अपनी जीभ डालते तो कभी उसकी साइडें चूसते लेकिन जब वह छोले पर जीभ चलाते तो मेरी चूत के अंदर अजीब सी गुदगदी होती और मुझे लगता कि मैं स्वर्ग में पहुँच गई हूँ! हम दोनों कि इस चुसाई से उततेजित हो कर हमारे दोनों के मुहँ से उंहह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्.... उंहह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्... और आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह... आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह... कि आवाजें निकलने लगी थीं! मेरा तो यह हाल था कि मेरी चूत का पानी भी निकलने लगा था, जिसे पापाजी बड़े मजे से पी रहे थे और डकार भी नहीं ले रहे थे! अचानक पापाजी ने मेरे छोले पर कस के जीभ मारी और मेरी चूत एकदम से सिकुड़ी और का रस फुआरा पापाजी के मुहँ पर छोड़ दिया! उनका हालत देखने का थी, उनका पूरा चेहरा मेरी चूत रानी कि इस शरारत से भीग गया था! वह एकदम उठ खड़े हुए और कहने लगे "लगता है इस शरारती रानी को कुछ तो सबक सिखाना ही पड़ेगा, कोई सजा देनी पड़ेगी"!
मैं इस से पहले उनका महाराज मुहँ से निकलती उन्होंने एक छोटी सी पिचकारी मेरे मुहँ में छोड़ दी! मैं इस के लिए तयार नहीं थी इसलिए कुछ रस तो मेरे गले से नीचे उतर गया लेकिन बाकि का सारा रस मेरे पूरे चेहरे तथा मेरी गर्दन पर फ़ैल गया! फिर वह अलग हट गये! मैंने उठ के अपने आप को और पापाजी को पोंछा और पापाजी कि ओर आँखे फाड़ कर देखने लगी! पापाजी हँसते हुए बोले "मिली गईं न तुझे शरारत कि सजा! चिंता मत कर अभी तो इस से भी बड़ी सजा इस रानी को देनी है"! मैंने अनजान बनते हुए पुछा "पापाजी और कैसी बड़ी सजा देंगे" तो उन्हों ने अपनी बलिष्ट बाजुओं से उठा कर मुझे मेरे कमरे में ले जा कर बेड पर पटक दिया और मेरे चूतडों के नीचे एक तकिया रख दिया! तब मैंने देखा कि रस छूटने के बाद भी पापाजी का लंड महाराज अभी भी लोहे कि छड कि तरह अकड़ा हुआ है और वह अगली चढाई के लिए तैयार है! फिर उन्होंने मेरी टंगे चौड़ी कर के चूत महारानी को देखने लगे और बोले "यह तो बहुत नाज़ुक सी लग रही है! क्या यह इस महाराज को झेल पायेगीं" मैं तुरंत बोल पड़ी "पापाजी आप ट्राई तो करिये! आगे जो होगा देखा जाएगा"!
तब वह मेरी टांगो के बीच में आ कर बैठ गए और अपने महाराज को मेरी महारानी के छोले पर रगड़ने लगे! इससे मेरी हालत बहुत खराब होने लगी! मैंने कहा "पापाजी, अब और मत चिढ़ाओ और इसे जो सजा देनी है वह जल्दी से दे दीजिए"! तब पापाजी बोले "चिंता मत कर ज़रा सजा के लिए इसे तैयार तो कर लूं"! इस के बाद उन्होंने अपना लण्ड महाराज, जो कि इस समय अपने पूरे उफान पर था और फुल साइज़ का हो चुका था, मेरी चूत के मुहँ के पास रख दिया और हलके से धक्के मार कर उसे चूत के अंदर घुसेड़ने लगे! मेरी चूत तो उस समय लंड कि इतनी भूखी थी के उसका मुहँ अपने आप खुलने लगा और देखते ही देखते उसने पापाजी के महाराज के सुपाडे को निगलना शुरू कर दिया! पापाजी महारानी कि यह हिमाकत देख कर बहुत हैरान हुए और जोश में आ कर एक जोर का धक्का दे मारा! फिर क्या था महरानी कि तो चूं बोल गई और मेरे मुहँ से एक जोर कि चीख "आईईईईईईईईईईईईए....." निकल गई!
पापाजी एकदन मेरे पर झुक गए और मेरे नॉर्मल होने तक वैसे ही रुके रहे! वह मेरी चुचियों को दबाते रहे तथा मुझे जोर से किस करते रहे! जब मैं कुछ नार्मल हुई तब मैंने उनसे पूछा "कितना गया" तो वह बोले "अभी तो आधी सजा मिली है! बाकी आधी सजा के लिए तैयार हो तो बताओ!" जब मैंने हामी भर दी तब उन्होंने कस कर एक और धक्का मारा और अपना पूरा महाराज मेरी महारानी के बाग में पहुंचा दिया! मैं एक बार दर्द के मारे फिर "आईईईईईईईईईईए.... आईईईईईईईईईईए...." कर के चिल्ला उठी! मुझे लगा कि मेरी चूत फट गई है और इसीलिए इतना दर्द हो रहा है! मेरी चूत कि सील टूटने पर और बेटे के होने पर भी इतनी दर्द नहीं हुई थी जितनी कि अब हो रही थी! पापाजी ने मेरी तकलीफ को समझते हुए रुक गए थे और अपना दाहिना हाथ मेरी चूत के उपर उगे हुए बालों के उपर रखा और थोड़ा दबाया और मेरे उपर लेट गए! बाएं हाथ से मेरी चूची को मसलते हुए पुछा "अब कैसा लग रहा है! अगर तुम कहती हो तो मैं निकल लेता हूँ नहीं तो जब कहोगी तभी आगे सजा दूंगा" और इस के बाद अपने होंटों को मेरे होंटों पर रख कर उन्हें चूसने एवं चूसाने लगे!
हम करीब पांच मिनट ऐसे ही पड़े रहे और मैं अपनी किस्मत को इतना लंबा मोटा और सख्त लंड से चुदाई के लिए सहराने लगी! मेरी चुदने की तम्मना कितनी अच्छी तरह पूरी हो रही है इससे मैं बहुत खुश थी! जब मुझे लगा कि मैं आगे के झटके सह लूंगी तब मैंने पापाजी से कहा "मैं आपकी देने वाली बाकी कि सजा अब काटने को तैयार हूँ! चलिए शुरू हो जाइये"! मेरा इतना कहना था कि पापाजी ने अपनी गाडी स्टार्ट करी और धक्के लगाने लगे! पहेले फर्स्ट गिए़र लगाया, फिर सेकंड गिए़र और इसके बाद थर्ड गिए़र में चलने लगे और मुझसे पूछने लगे "क्यों कोई तकलीफ तो नहीं हो रही" मैंने कहा "नहीं, मुझे तो अभी मज़े आने शुरू ही हुए है! आप अभी इसी स्पीड से मेरी चुदाई करते रहें! जब स्पीड बढ़ानी होगी मैं बता दूँगी"! अगले दस मिनट हम दोनों इसी तरह चुदाई करते रहे और जब मैंने महसूस किया कि स्पीड बढ़ाने का समय आ गया है, तब मैंने भी अपने जिस्म को पापाजी कि स्पीड के हिसाब से हिलाना शुरू कर दिया और बोली "पापाजी अब अपनी गाडी को चौथे गिए़र में डालिए"!
फिर क्या था पापाजी ने थोड़ी स्पीड और बढ़ा दी और हमारी चुदाई के आनंद को चार गुना कर दिया! मैं अब उछल उछल के चुद रही थी और पापाजी झटके पर झटके मार कर चुदाई करे जा रहे थे! हम दोनों के मुहँ से उंहह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्.... उंहह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्... और आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह... आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह... की तेज तेज आवाजें निकलने लगी थीं! इस डर से कि आवाजें बाहर न सुनाई दे हू दोनों ने अपने होंट अपने दातों के नीचे दबा रखे थे! अब मेरी चूत में हल्बली होने लगी थी और वह टाईट हो कर पापाजी के लंड को जकड़ने लगी थी! इतने में चूत के अंदर खिचाव होना शुरू होगया और उसकी चूत में से पानी भी लीक करना शुरू होगया! मैं दो बार तो छुट भी गई थी और अब तीसरा खिचाव आने वाला था! अब मुझ से और नहीं सहा जा रहा था इसलिए मैंने पापाजी से कहा "अब जल्दी से टॉप गिए़र लगा दीजिए"!
मेरे कहने पर उन्होंने फुल स्पीड कर दी और मेरी चूत में वह इस जिंदगी के सब से तेज झटके लगाने लगे! उनका लंड महाराज मेरे चूत कि गहराइयों को पार कर मेरी बच्चेदानी के अंदर घुस गया था! अब मेरे से नहीं रहा गया और मैं चिल्ला उठी "पापाजी, और तेज, और तेज, आह.. आह.. मैं गईईईईए.. गईईईईए.. गईईईईईईईए.. गईईईईईईईईईईईईईईई.."! मेरा जिस्म अकड़ गया और चूत लंड से चिपक गई! इसी समय पापाजी की भी हुनकार सुनाई पड़ी और उनका लंड मेरी चूत में फडफडाया! एक ज़बरदस्त पिचकारी छूटी और मैं तो उस समय के आनंद में पापाजी के रस कि नदी में बह गई! इसके बाद पापाजी मेरे ही ऊपर लेट गए और हम दोनों को मालूम ही नहीं रहा के हम इस तरह कितनी देर ऐसे ही पड़े रहे!
फिर हम उठे और अपने आप को एक दुसरे से अलग किया और हम दोनों के रसों का चूतशेक निकल के मेरी जांघों से नीचे कि ओर बहने लगा! मैं बाथरूम कि ओर भागी और पापाजी मेरे पीछे वहीँ आ गए! मेरी जांघों पर बहते हुए चूतशेक को देख कर मुस्करा रहे थे! तभी मेरी नज़र पापाजी के लंड पर पड़ी और मैंने देखा की उनका लंड बाथरूम कि लाईट में ऐसे चमक रहा था जैसे उस पर चांदी का वर्क चढा दिया था! असल में चूत से निकालने पर उसके उपर चूतशेक का लेप हो गया था और वह चमक रहा था! मेरे से रहा नहीं गया और मैंने उस अपने मुंह में लिया और चूसने लगी! मैंने जब लंड को चाट के साफ कर दिया तो पापाजी ने पुछा "टेस्ट कैसा है" मैंने जवाब दिया "मलाई जैसा है"! तब पापाजी ने अपनी दो उँगलियों मेरी चूत में डाल कर बाहर निकालीं और उसमें लगे चूतशेक को चाटने लगे! फिर बोले "हाँ तुम ठीक कह रही हो, यह तो मलाई ही है, मेरी और तुम्हारी! आज तो यह बह गई पर अगली बार इसे इकठा कर के खाएँगे"! फिर हम दोनों ने एक दुसरे को धोने और साफ़ करने लगे!
जब हम एक दुसरे का लंड/चूत पोंछ रहे थे, तभी बेटे के रोने कि आवाज़ आई! मैं भाग कर उसके पास लेट गई और उसके मुहँ में चूची कि डोडी दे दी, वह चुपचाप दूध पीने लगा! पापाजी भी मेरे पास आ कर लेट गए और मैंने बेटे को दूध पिलाने के साथ साथ एक हाथ से पापाजी के लंड को भी पकड़ लिया! जब बेटे ने दूध पीना बंद कर दिया तो मैंने उसे बेड पर लिटा कर पापाजी के पास उनके साथ चिपक कर उन्ही के बेड पर लेट गई! मेरी चुदाई कि इच्छा पूरी हुई थी इसलिए मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं आगे क्या करूँ! तभी पापाजी ने कहा "खुशी मैं थक गया हूँ और मुझे भूक भी लग आई है इसलिए थोड़ा गरम दूध ला दो! तुम भी थोड़ा पी लो, बच्चे को भी तो पिलाती हो!" मैंने झट से कहा "नहीं पापाजी मुझे तो बिलकुल भूक नहीं है, मेरा पेट तो आप की मलाई और सजा के आनंद से भर गया है!"
फिर मैंने कहा "पापाजी मेरी चुचियों में बहुत दूध है आप उसे पी कर अपनी भूक मिटा लीजिए" वह बोले "यह कैसे हो सकता है, बच्चे के लिए कम हो जाएगा"! मैंने कहा "अभी तो यह अपना पेट भर के सो गया है और अब सुबह सात बजे ही उठेगा! तब तो इसे गाएँ का दूध देना है, मेरी चुचियो के दूध कि बारी तो करीब सुबह दस बजे के बाद आयगी! तब तक तो यह चुचियाँ पूरी भर जाएँगी और कोई कमी नहीं रहेगी!" यह सुन कर पापाजी मान गए, वह मेरी डोडीयां बारी बारी से चूसने लगे और मेरा दूध पीने लगे! जब दोनों तरफ कि थैलियाँ खाली कर दी तब ही वह अलग हुए और अपने खड़े लंड को पकड़ कर मुझे दिखाने लगे! मैं ने कहा "हाँ मैं जानती हूँ कि आपके महाराज को आराम के लिए गद्देदार और गरम जगह चाहिए, इस का इंतजाम मैं अभी कर देती हूँ! अब इस के साथ साथ हमें भी आराम करना चाहिए, नहीं तो आपकी कमर कि दर्द आपको परेशान कर देगी! अब यह मज़े तो हम आगे जिंदगी भर लेते रहेंगें"!
इसके बाद मैं उठ के पापाजी के ऊपर आगई और उनके खड़े लंड पर जा कर बैठ गई, और उनका लंड मेरी चूत कि गहराइयों कि नरम और मुलायम जगह आराम करने पहुंच गया था! फिर मैं पापाजी के ऊपर ही उनकी खूंटी में अटकी हुई लेट गई! हम दोनों को कब नींद आ गई हमें पता ही नहीं चला!
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पापाजी कि खूंटी
हाई! दोस्तों, मेरा नाम खुशी है और अब मेरी उम्र २२ साल है! मैं एक बहुत सुंदर और जवान स्त्री हूँ, मेरा कद ५ फुट ६ इंच है! और मेरा रंग बहुत साफ़ है! मेरा जिस्म बिलकुल किसी कारीगर कि तराशी हुई संगमरमर की मूर्ति कि तरह है, लोग मुझे इस डर से नहीं छूते कि मेरे शरीर पर कोई दाग ना लग जाए! मेरा फिगर ३६-२४-३६ है, और मेरी चूचियां मस्त गोल है! वह अभी भी सूडोल और सख्त हैं, उन में अभी तक कोई ढलकान नहीं आई है! गोरे रंग कि चूचियों पर गहरे ब्रौउन रंग कि डोडिया (निप्पल) बहुत सुंदर लगती हैं! मेरी शादी हुए २ साल हो गए हैं और मेरा एक बेटा है, जो कि मेरी शादी के एक साल तीन माह बाद हुआ था और अब नौ माह का है! जब वह चार माह का था तब मेरे मेरे पति का तबादला अमरीका हो गया था! कियोंकि उनका कार्य स्थल न्युक्लियेर एरिये में था इसलिए वह परिवार को अपने साथ नहीं ले जा सकते थे! उन्हें हर ग्यारह माह के बाद एक माह के लिए अपने परिवार के पास इंडिया आने कि इज़ाज़त थी! विदेश जाना उनकी एक मफ्बूरी थी, इसलिए मुझे और मेरे चार माह के बेटे को अकेला छोड़ के गऐ! हम अकेले ना रहें पड़े इसके लिए मेरे पति ने मेरे ससुर (यानि पापाजी) को हमारे साथ रहने के लिए गांव से शहर बुला दिया था!मेरे ससुर, जब हमारे साथ रहने के लिए आए तब उनकी उम्र ४७ साल कि थी! वह हमसे अलग, गांव में रहते थे! मेरी सास कि मृत्यु डेढ़ साल पहेले हो गई थे और पिछले एक साल से वह ज़्यादातर वहीँ गांव वाले घर में अकेले ही रहते थे! पापाजी (यानी मेरे ससुर) आर्मी में मेजर रह चुके थे और रिटायर्ड होने के बाबजूद वह बहुत फुर्तीले थे! आर्मी के तौर तारीके और तहज़ीब वह अभी तक नहीं भूले थे! गांव में रहने और खेतीबाड़ी करने तथा गांव के शुद्ध वातावरण के कारण उन का शरीर बहुत गठीला था और इस आयु में भी वह एकदम २७-२८ साल के जवान लडको जैसे लगते थे! पहले जब भी कभी वह सासू माँ के साथ हमारे पास आ के रहते थे तो मेरी पड़ोसने उन्हें मेरे पति के बड़े भाई ही समझती थी! पति के जाने के बाद, पिछले सात माह से वह हमारे साथ ही रह रहे हैं! पढ़े लिखे होने के कारण उनका उठाना बैठना और पहनावा भी शहर वासियों जैसा है, इसलिए मेरे साथ घर में बहुत जल्दी एडजस्ट हो गए हैं! घर के काम में और बच्चे कि देखभाल में भी मेरा हाथ बटा देते हैं!
मुझे और मेरे पति को सेक्स बहुत पसंद है और शादी के बाद कोई दिन भी ऐसा नहीं था जब हम एक बार या उससे ज्यादा बार चुदाई ना करते हों! अब मेरे पति को अमरीका गए लगभग सात महा हो चुके है और इन सात माह में से पहले दो माह तो मुझे एक बार भी सेक्स करने को नहीं मिला था ! इसलिए मैं इतनी बेचैन रहती थी और सारा दिन सेक्स के लिए तडपती रहती थी! चूत मरवाने कि लालसा लिए किसी को ढूंढती रहती थी, पर कोई भरोसे का नज़र नहीं आता था! लेकिन पांच माह पहले मुझे अचानक ही एक ऐसा अवसर मिला जिस से मुझे जिंदगी का सब से अत्यंत खुशी मिली और वह अभी भी ज़ारी है!
यह उस दिन बात है जब मैं घर का सफाई करती हुई पापाजी जी के कमरे गई तो मैंने पाया कि वह कमरे में नहीं हैं! मुझे समझ में नहीं आया कि वह कहाँ गए होंगे, इसलिए मैं इधर उधर देखने लगी और तभी मुझे उनके बाथरूम कि लाइट जलती हुई नज़र आई, मैं जिज्ञासा वश उस तरफ चली गई! वहाँ मैंने देखा कि बाथरूम का दरवाज़ा थोड़ा सा खुला हुआ है और अंदर से उहं उंह कि आवाज़ आ रही हा! मैं सुन कर घबरा गई और सोचा कि शायद पापाजी जी कि तबियत ठीक नहीं है या वह किसी तकलीफ में हैं! मैं घबराहट में जल्दी से बाथरूम का दरवाज़ा खोल कर अंदर झांक के देखने लगी! अंदर का नज़ारा देख के मेरे तो होश उड़ गए, पापाजी जी अपने नौ इंच लंबे और ढाई इंच मोटे लंड महाराज कि बड़ी तस्सली से मालिश कर (मुठ मार) रहे थे! इस से पहले मैं अपने आप को संभालती तभी मैंने देखा कि पापाजी जी ने आह्ह्ह कि आवाज़ निकाल कर अपने लंड महाराज से रस कि पिचकारी छोड़ी जो कि दो फुट दूर दिवार पर जा पड़ी! पापाजी जी का ढेर सारा गाढ़ा रस, इतना ज्यादा और इतनी जोर से, निकलते हुए देख कर मेरी जोर से एक लंबी साँस निकल गई जिसे सुन के पापाजी ने पलट कर देखा और मुझे देखते ही गुस्से में पूछा "तू यहाँ क्या कर रही है?" उनकी गुस्से से भरी आवाज़ सुन कर मैं डर गई और बिना जवाब दिए वहाँ से भाग गई!
इस घटना के दो घंटे बाद तक तो मैं उनके सामने भी नहीं गई! लेकिन दोपहर को खाना बनाने के समय बेटा तंग कर रहा था तो मुझे मजबूर हो कर उसे उनको देने के लिए जाना पड़ा, तब वह बिलकुल नार्मल तरीके से पेश आए! इससे मेरी जान में जान आई और मैं भी उनके सामने आने जाने लगी तथा नार्मल तरीके से व्यहवार करने लगी! लेकिन उस घटना के बाद अगले दिन भी मैं उस नज़ारे के बारे में ही सोचती रहती! मेरे पति का लंड तो केवल सात इंच लंबा और दो इंच मोटा है तथा अत्यंत आनंद देता है, लेकिन पापाजी का यह लंड महाराज कैसे मज़े देगा मैं इसके सपने लेने लगी थी तथा अपनी चूत उस को डलवांने कि योजना बनाती रही!
अगले दिन, रात को सोने के समय मेरा बेटा बहुत रोने लगा! जब वह चुप नहीं हुआ तो मैं उसे पापाजी के कमरे में ले गई और उन्हें दे कर उनसे उसे चुप कराने का आग्रह किया! पापाजी ने उसे गोद में लिया और मुझे तेल लाने को कहा! मैंने उन्हें तेल ला कर दिया तो उन्होंने वह मेरे बेटे के पेट पर मलना शुरू कर दिया! कुछ ही देर में बेटा चुप कर गया और उनकी गोद में खेलने लगा! पोते को दादा के पास छोड़ कर मैं अपने कपड़े बदलने चली गई! तभी मेरे दिमाग में योजना आई कि अगर मैं पापाजी को अपने यौवन कि झलक दिखाउँ तो शायद कुछ बात बन जाए और मेरी लंड महाराज से चुदने कि इच्छा भी पूरी हो जाए! मैंने झट से ब्रा और पेंटी सहित अपने सारे कपड़ें उतारे और अपना पिंक रंग का पारदर्शी सा नाईट गाउन पहना! मैंने गाउन के उपर के दो और नीचे के तीन बटन खुले छोड़ दिए और बेटे को लेने पापाजी के कमरे में गई! जब मैं चलती थी तो जांघों तक मेरी टाँगे नंगी हो रहीं थी और मेरी डोलती हुई चूचियों और उस पर खड़ी ब्रौउन रंग कि डोडिया गाउन में से झलक रहीं थी! पापाजी ने मुझे उन कपड़ो में देखा और एकटक देखते ही रहे! उनकी आँखों कि चमक बता रही थी के वह मेरे बिछाये जाल में फँस जायेंगे, मुझे सिर्फ कुछ इंतज़ार करना पड़ेगा! जब मैंने पापाजी से बेटे को लेने के लिए हाथ बढ़ाया तो उनका ध्यान मेरी चुचियों कि तरफ गया और वह उन्हें देखते हुए एकदम स्थिर हो गए! मैंने कहा "पापाजी, यह सोगया है लाइए मैं इस इसके बिस्तर पर सुला दूं!" तब हडबडा कर उन्होंने कहा "यह अभी अभी सोया है और कच्ची नींद में है इस लिए इसे अभी यहीं सोने दे"!
मैं "हाँ जी" कहती हुई अपने कमरे में चली गई! मुझे नींद नहीं आ रही थी इसलिए मैं बहुत देर तक ऐसे ही लेटी करवटें बदलती रही! तभी मुझे याद आया कि मैंने बच्चे को दूध तो पिलाया ही नहीं! मैं उठी और पापाजी के कमरे में गई तो पाया कि वह भी सो गए हैं! तब मेरे मन में आया कि मैं भी इसी कमरे में सो जाती हूँ और मैं उनके साथ वाले बेड पर लेट गई! बेटे को अपने पास खींचा और गाउन में से चुचियाँ निकाल कर उसे दूध पिलाने लगी! इतने में पापाजी ने नींद में ही करवट बदली और सीधे हो कर सोने लगे, तब मेरी नज़र उनकी लुंगी पर गई जो के खुल कर अलग हो गई थी और वह बिलकुल नग्न लेटे हुए थे! उनका लंड महाराज बड़े आराम से उनकी जांघों पर सोया हुआ था! मेरा ध्यान बच्चे को दूध पिलाने में कम और लंड महाराज कि ओर ज्यादा आकर्षित हो गया! मैं बहुत ध्यान से उसे और उसकी बनावट को देखती रही! पापाजी का लंड महाराज तो बहुत ही आकर्षक था! उसका साइज़ तो मैं ऊपर बता चुकी हूँ, पर उनके टट्टे भी तो कमाल के थें, लगभग तीन इंच साइज़ के गेंदों के बराबर होंगे! उनका लंड महाराज सोये होने के बाबजूद भी पांच इंच लंबा लग रहा था! ऊपर का सुपाड़ा तो ढका हुआ था लेकिन उसके आगे के आधा इंच भाग के उपर मांस नहीं था और उन का मूत्र और रस निकलने का छिद्र बिलकुल साफ नज़र आ रहा था!
मेरे बेटे का पेट भर चुका था इसलिए उसने चुचियों को छोड़ दिया था और सो गया था, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी! मैं बच्चे को अलग से सुला दिया और वहीँ बैठ कर पापाजी के उस हथियार को निहारती रही जो वहाँ लेटे लेटे मुझे चिढ़ा रहा था! मैंने महसूस किया कि मैं अपनी तृष्णा को अब और नहीं दबा सकती थी और उस लंड महाराज को चूसना और उसे अपनी चूत में ले कर जिंदगी का मज़ा लेना चाहती हूँ! मैं अपना अकेलापन दूर करना चाहती हूँ, अपनी सेक्स कि भूक मिटाना चाहती हूँ! इस के लिए अब मुझे मेरे पति कि गैर हाजरी में भरोसे का और पूरा संतुष्ट करने वाला पुरुष और उसका यह हथियार मिल गया था! अब मैं और इंतज़ार नहीं कर सकती थी और इसलिए मैंने अपनी सारी झिझक छोड़ी, अपना गाउन उतारा और सरक कर पापाजी कि जांघों के पास आ कर बैठ गई!
पापाजी जाग ना जाएँ इसलिए मैंने उनके लंड महाराज को हाथ से नहीं छुआ और अपने मुहँ को उसके पास लेजा कर उसे चूमने और जीब से उसे चाटने लगी! शायद यह लंड महाराज चूमने और चाटने से खुश होने वाले नहीं थे और उसे तो चुसाई चाहिए थी, इसलिए उसने हिलना शुरू कर दिया! उस कि इस हरकत से मैं थोड़ा घबराई, लकिन फिर हिम्मत बांध कर लंड महाराज को हाथ से पकड़ा, उपर का मांस पीछे सरका कर सुपाडे को बाहर निकला और उसे अपने मुहँ में डाल कर चूसना शुरू किया! कुछ ही क्षणों मैं लंड महाराज खुश हो कर तन गए! तभी पापाजी का हाथ मेरे सिर पर पड़ा और वह उसे नीचे दबाने लगा और देखते ही देखते लंड महाराज मेरे मुहँ से होते हुए मेरे गले तक पहुँच गया! मेरी हालत पतली हो गई थी, मरी साँस उखड रही थी! फिर भी मैंने हिम्मत नहीं छोड़ी और चुसाई चालु रखी! करीब एक मिनट के बाद पापाजी का हाथ मेरे सिर से हट कर नीचे आ गया और वह मेरी चुचियों को पकड़ कर उन्हें दबाने लगे! उनकी इस हरकत से मैं बहुत ही प्रसन हुई और मेरी चूत गीली होने लगी! फिर उन्होंने मेरी डोडिया को अपनी उँगलियों में दबा कर मसलने लगे, जिससे मैं गरम होने लगी और मैं एक हाथ से अपनी चूत में खुजली एवं ऊँगली करने लगी!
मुझे अभी मज़ा आना शुरू ही हुआ था कि पापाजी उठ के बैठ गए! उनकी चूची से निकले दूध के कारण उनके हाथ गीले होने लगे थे, जिस से उनकी नीदं खुल गई थी! उन्होंने मुझे झटके के साथ अपने लंड महाराज से अलग कर दिया! फिर उन्होंने ने उठ कर लाईट जलाई और भौचकें से मेरे नग्न शरीर को देखने लगे! तभी उन्हें अपने नंगे होने का अहसास हुआ और फुर्ती से अपनी लुंगी उठा के पहन ली एवम मेरा गाउन मुझे पकड़ा गिया और बोले "यह क्या कर रही थी? जाओ कपड़े पहनो"!
"पापाजी मैं तो वही कर रही थी जो आप चाहतें हैं!" मैंने जवाब दिया!
"मैंने ऐसा करने को कब कहा" पापाजी बोले!
"मैं तो बेटे को ले जाने के लिए आई थी, आपकी खुली हुई लुंगी देख कर उसे आप के उपर ओढ़ रही थी, तब आपने मेरे सिर को पकड़ लिया और उसे अपने महाराज पर दबा दिया! मैं समझी कि आप इसकी मालिश चाहते हैं" मैंने एक दम से झूट बोल दिया!
"तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था और साफ़ मना कर देना चाहिए था" पापाजी फिर बोले!
"मैंने आज तक आपका कोई भी आदेश या इशारा, कभी नहीं टाला तो यह कैसे न मानती" मैंने उतर दिया!
"अरे मैं तो नीद के सपने में था जिस में यह सब तुन्हारी सास कर रही थी, इसलिए मैंने ऐसा इशारा किया होगा" पापाजी ने कहा!
"पापाजी तो क्या हो गया अगर मैंने इशारे को आप का आदेश समझ कर आप कि यह सेवा भी कर दी! आप का सपना और मेरा कर्तव्य दोनों पूरे हो गए" मैंने कहा!
"अरी, तू मेरी बात क्यों नहीं समझ रही है! मैं तेरे साथ ऐसा कुछ नहीं कर सकता" वह बोले!
"अब तो हम दोनों एकसाथ यह कदम उठा चुके हैं, दोनों में से कोई एक भी कदम पीछे ले जाता है तो दुसरे को बुरा लगेगा! बताइयें, अब हम यहाँ से आगे बढ़ने के इलावा और क्या कर सकते हैं," मैं नादान बनते हुए बोली!
इससे पहले कि वह कुछ कहें और बात ज्यादा बिगड़े, मैं उठ कर खड़ी हो गई और अंगड़ाई लेते हुए, अपने जिस्म कि नुमाइश करती हुई उनके पास आ कर उनके हाथों को पकड़ा और अपनी चुचियों पर रख दिए! फिर उनके लंड महाराज को पकड़ कर हिलाती हुई बोली:-
"पापाजी, अब तो आप का यह महाराज भी गरम हैं और मेरी महारानी में भी आग लगी हुई है! इसलिए मैं आपके पाऊँ पढ़ती हूँ और विनति करती हूँ कि कृपया सब कुछ भूल जाएँ और जो खेल शुरू किया था उसे आगे खेलते रहते हैं! प्लीज़ इस महारानी कि जलन को बुझाने के लिए इसमें अपने महाराज से बौछार करा दीजिए"! उन्हें आगे कुछ बोलने का कोई मौका दिए बिना, मैं उनके पैरों को पकड़ कर नीचे बैठ गयी और उनका महाराज मुहँ में ले कर जोर जोर से चूसने लगी!
पापाजी कुछ नहीं बोले और चुपचाप खड़े रहे! मैं समझ गई के अब लोहा गरम हो रहा है और चोट मारने का समय आ गया है! मैंने झट से उनके हाथों को खीच कर अपनी चुचियों पर रख दिया! बस फिर तो ऐसा लगा कि जंग जीत ली, कियोंकि पापाजी ने मेरी चुचियों को मसलने लगे, पर उन में से दूध न निकलने लगे इसलिए उन्होंने डोडीयों को नहीं मसला! फिर वह बेड पर बैठ कर लंड महाराज चुसाने लगे और अपना हाथ मेरी चूत पर रख दिया! वह कभी उस के अंदर ऊँगली करने लगे और कभी छोले को रगड़ने लगे! बस मैं तो सातवें आसमान पर पहुँच गई, अब तो मूसल चंद से रगडाई के झटकों का इंतज़ार था! मेरी तेज तेज चुसाई से पापाजी के लंड महाराज का अत्यंत स्वादिष्ट प्रथम रस (प्री-कम) मेरे मुहँ में आना शुरू होगया था! यह महसूस कर के पापाजी बोले "कैसा लग रहा इस का स्वाद?"
मैं बोली "बहुत स्वादिष्ट है, कुछ मीठा और कुछ नमकीन"!
वह बोले "क्या मेरा सारा रस तुम फ्री में पी जाओगी और एवज मुझे कुछ नहीं दोगी! उठो और बेड के उपर आ कर लेटो ताकि मैं भी तुम्हरी महरानी का रस पी सकूँ"
"अच्छा पापाजी" मैंने कहा और झट से बेड पर आ कर लेट गई!
फिर तो पापाजी ६९ कि पोजीशन में लेट कर मेरी टाँगे चौड़ी कर के मेरी चूत रानी को चूसने लगे और मैं उनके लंड राजा को! पापाजी कभी चूत में अपनी जीभ डालते तो कभी उसकी साइडें चूसते लेकिन जब वह छोले पर जीभ चलाते तो मेरी चूत के अंदर अजीब सी गुदगदी होती और मुझे लगता कि मैं स्वर्ग में पहुँच गई हूँ! हम दोनों कि इस चुसाई से उततेजित हो कर हमारे दोनों के मुहँ से उंहह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्.... उंहह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्... और आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह... आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह... कि आवाजें निकलने लगी थीं! मेरा तो यह हाल था कि मेरी चूत का पानी भी निकलने लगा था, जिसे पापाजी बड़े मजे से पी रहे थे और डकार भी नहीं ले रहे थे! अचानक पापाजी ने मेरे छोले पर कस के जीभ मारी और मेरी चूत एकदम से सिकुड़ी और का रस फुआरा पापाजी के मुहँ पर छोड़ दिया! उनका हालत देखने का थी, उनका पूरा चेहरा मेरी चूत रानी कि इस शरारत से भीग गया था! वह एकदम उठ खड़े हुए और कहने लगे "लगता है इस शरारती रानी को कुछ तो सबक सिखाना ही पड़ेगा, कोई सजा देनी पड़ेगी"!
मैं इस से पहले उनका महाराज मुहँ से निकलती उन्होंने एक छोटी सी पिचकारी मेरे मुहँ में छोड़ दी! मैं इस के लिए तयार नहीं थी इसलिए कुछ रस तो मेरे गले से नीचे उतर गया लेकिन बाकि का सारा रस मेरे पूरे चेहरे तथा मेरी गर्दन पर फ़ैल गया! फिर वह अलग हट गये! मैंने उठ के अपने आप को और पापाजी को पोंछा और पापाजी कि ओर आँखे फाड़ कर देखने लगी! पापाजी हँसते हुए बोले "मिली गईं न तुझे शरारत कि सजा! चिंता मत कर अभी तो इस से भी बड़ी सजा इस रानी को देनी है"! मैंने अनजान बनते हुए पुछा "पापाजी और कैसी बड़ी सजा देंगे" तो उन्हों ने अपनी बलिष्ट बाजुओं से उठा कर मुझे मेरे कमरे में ले जा कर बेड पर पटक दिया और मेरे चूतडों के नीचे एक तकिया रख दिया! तब मैंने देखा कि रस छूटने के बाद भी पापाजी का लंड महाराज अभी भी लोहे कि छड कि तरह अकड़ा हुआ है और वह अगली चढाई के लिए तैयार है! फिर उन्होंने मेरी टंगे चौड़ी कर के चूत महारानी को देखने लगे और बोले "यह तो बहुत नाज़ुक सी लग रही है! क्या यह इस महाराज को झेल पायेगीं" मैं तुरंत बोल पड़ी "पापाजी आप ट्राई तो करिये! आगे जो होगा देखा जाएगा"!
तब वह मेरी टांगो के बीच में आ कर बैठ गए और अपने महाराज को मेरी महारानी के छोले पर रगड़ने लगे! इससे मेरी हालत बहुत खराब होने लगी! मैंने कहा "पापाजी, अब और मत चिढ़ाओ और इसे जो सजा देनी है वह जल्दी से दे दीजिए"! तब पापाजी बोले "चिंता मत कर ज़रा सजा के लिए इसे तैयार तो कर लूं"! इस के बाद उन्होंने अपना लण्ड महाराज, जो कि इस समय अपने पूरे उफान पर था और फुल साइज़ का हो चुका था, मेरी चूत के मुहँ के पास रख दिया और हलके से धक्के मार कर उसे चूत के अंदर घुसेड़ने लगे! मेरी चूत तो उस समय लंड कि इतनी भूखी थी के उसका मुहँ अपने आप खुलने लगा और देखते ही देखते उसने पापाजी के महाराज के सुपाडे को निगलना शुरू कर दिया! पापाजी महारानी कि यह हिमाकत देख कर बहुत हैरान हुए और जोश में आ कर एक जोर का धक्का दे मारा! फिर क्या था महरानी कि तो चूं बोल गई और मेरे मुहँ से एक जोर कि चीख "आईईईईईईईईईईईईए....." निकल गई!
पापाजी एकदन मेरे पर झुक गए और मेरे नॉर्मल होने तक वैसे ही रुके रहे! वह मेरी चुचियों को दबाते रहे तथा मुझे जोर से किस करते रहे! जब मैं कुछ नार्मल हुई तब मैंने उनसे पूछा "कितना गया" तो वह बोले "अभी तो आधी सजा मिली है! बाकी आधी सजा के लिए तैयार हो तो बताओ!" जब मैंने हामी भर दी तब उन्होंने कस कर एक और धक्का मारा और अपना पूरा महाराज मेरी महारानी के बाग में पहुंचा दिया! मैं एक बार दर्द के मारे फिर "आईईईईईईईईईईए.... आईईईईईईईईईईए...." कर के चिल्ला उठी! मुझे लगा कि मेरी चूत फट गई है और इसीलिए इतना दर्द हो रहा है! मेरी चूत कि सील टूटने पर और बेटे के होने पर भी इतनी दर्द नहीं हुई थी जितनी कि अब हो रही थी! पापाजी ने मेरी तकलीफ को समझते हुए रुक गए थे और अपना दाहिना हाथ मेरी चूत के उपर उगे हुए बालों के उपर रखा और थोड़ा दबाया और मेरे उपर लेट गए! बाएं हाथ से मेरी चूची को मसलते हुए पुछा "अब कैसा लग रहा है! अगर तुम कहती हो तो मैं निकल लेता हूँ नहीं तो जब कहोगी तभी आगे सजा दूंगा" और इस के बाद अपने होंटों को मेरे होंटों पर रख कर उन्हें चूसने एवं चूसाने लगे!
हम करीब पांच मिनट ऐसे ही पड़े रहे और मैं अपनी किस्मत को इतना लंबा मोटा और सख्त लंड से चुदाई के लिए सहराने लगी! मेरी चुदने की तम्मना कितनी अच्छी तरह पूरी हो रही है इससे मैं बहुत खुश थी! जब मुझे लगा कि मैं आगे के झटके सह लूंगी तब मैंने पापाजी से कहा "मैं आपकी देने वाली बाकी कि सजा अब काटने को तैयार हूँ! चलिए शुरू हो जाइये"! मेरा इतना कहना था कि पापाजी ने अपनी गाडी स्टार्ट करी और धक्के लगाने लगे! पहेले फर्स्ट गिए़र लगाया, फिर सेकंड गिए़र और इसके बाद थर्ड गिए़र में चलने लगे और मुझसे पूछने लगे "क्यों कोई तकलीफ तो नहीं हो रही" मैंने कहा "नहीं, मुझे तो अभी मज़े आने शुरू ही हुए है! आप अभी इसी स्पीड से मेरी चुदाई करते रहें! जब स्पीड बढ़ानी होगी मैं बता दूँगी"! अगले दस मिनट हम दोनों इसी तरह चुदाई करते रहे और जब मैंने महसूस किया कि स्पीड बढ़ाने का समय आ गया है, तब मैंने भी अपने जिस्म को पापाजी कि स्पीड के हिसाब से हिलाना शुरू कर दिया और बोली "पापाजी अब अपनी गाडी को चौथे गिए़र में डालिए"!
फिर क्या था पापाजी ने थोड़ी स्पीड और बढ़ा दी और हमारी चुदाई के आनंद को चार गुना कर दिया! मैं अब उछल उछल के चुद रही थी और पापाजी झटके पर झटके मार कर चुदाई करे जा रहे थे! हम दोनों के मुहँ से उंहह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्.... उंहह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्... और आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह... आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह... की तेज तेज आवाजें निकलने लगी थीं! इस डर से कि आवाजें बाहर न सुनाई दे हू दोनों ने अपने होंट अपने दातों के नीचे दबा रखे थे! अब मेरी चूत में हल्बली होने लगी थी और वह टाईट हो कर पापाजी के लंड को जकड़ने लगी थी! इतने में चूत के अंदर खिचाव होना शुरू होगया और उसकी चूत में से पानी भी लीक करना शुरू होगया! मैं दो बार तो छुट भी गई थी और अब तीसरा खिचाव आने वाला था! अब मुझ से और नहीं सहा जा रहा था इसलिए मैंने पापाजी से कहा "अब जल्दी से टॉप गिए़र लगा दीजिए"!
मेरे कहने पर उन्होंने फुल स्पीड कर दी और मेरी चूत में वह इस जिंदगी के सब से तेज झटके लगाने लगे! उनका लंड महाराज मेरे चूत कि गहराइयों को पार कर मेरी बच्चेदानी के अंदर घुस गया था! अब मेरे से नहीं रहा गया और मैं चिल्ला उठी "पापाजी, और तेज, और तेज, आह.. आह.. मैं गईईईईए.. गईईईईए.. गईईईईईईईए.. गईईईईईईईईईईईईईईई.."! मेरा जिस्म अकड़ गया और चूत लंड से चिपक गई! इसी समय पापाजी की भी हुनकार सुनाई पड़ी और उनका लंड मेरी चूत में फडफडाया! एक ज़बरदस्त पिचकारी छूटी और मैं तो उस समय के आनंद में पापाजी के रस कि नदी में बह गई! इसके बाद पापाजी मेरे ही ऊपर लेट गए और हम दोनों को मालूम ही नहीं रहा के हम इस तरह कितनी देर ऐसे ही पड़े रहे!
फिर हम उठे और अपने आप को एक दुसरे से अलग किया और हम दोनों के रसों का चूतशेक निकल के मेरी जांघों से नीचे कि ओर बहने लगा! मैं बाथरूम कि ओर भागी और पापाजी मेरे पीछे वहीँ आ गए! मेरी जांघों पर बहते हुए चूतशेक को देख कर मुस्करा रहे थे! तभी मेरी नज़र पापाजी के लंड पर पड़ी और मैंने देखा की उनका लंड बाथरूम कि लाईट में ऐसे चमक रहा था जैसे उस पर चांदी का वर्क चढा दिया था! असल में चूत से निकालने पर उसके उपर चूतशेक का लेप हो गया था और वह चमक रहा था! मेरे से रहा नहीं गया और मैंने उस अपने मुंह में लिया और चूसने लगी! मैंने जब लंड को चाट के साफ कर दिया तो पापाजी ने पुछा "टेस्ट कैसा है" मैंने जवाब दिया "मलाई जैसा है"! तब पापाजी ने अपनी दो उँगलियों मेरी चूत में डाल कर बाहर निकालीं और उसमें लगे चूतशेक को चाटने लगे! फिर बोले "हाँ तुम ठीक कह रही हो, यह तो मलाई ही है, मेरी और तुम्हारी! आज तो यह बह गई पर अगली बार इसे इकठा कर के खाएँगे"! फिर हम दोनों ने एक दुसरे को धोने और साफ़ करने लगे!
जब हम एक दुसरे का लंड/चूत पोंछ रहे थे, तभी बेटे के रोने कि आवाज़ आई! मैं भाग कर उसके पास लेट गई और उसके मुहँ में चूची कि डोडी दे दी, वह चुपचाप दूध पीने लगा! पापाजी भी मेरे पास आ कर लेट गए और मैंने बेटे को दूध पिलाने के साथ साथ एक हाथ से पापाजी के लंड को भी पकड़ लिया! जब बेटे ने दूध पीना बंद कर दिया तो मैंने उसे बेड पर लिटा कर पापाजी के पास उनके साथ चिपक कर उन्ही के बेड पर लेट गई! मेरी चुदाई कि इच्छा पूरी हुई थी इसलिए मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं आगे क्या करूँ! तभी पापाजी ने कहा "खुशी मैं थक गया हूँ और मुझे भूक भी लग आई है इसलिए थोड़ा गरम दूध ला दो! तुम भी थोड़ा पी लो, बच्चे को भी तो पिलाती हो!" मैंने झट से कहा "नहीं पापाजी मुझे तो बिलकुल भूक नहीं है, मेरा पेट तो आप की मलाई और सजा के आनंद से भर गया है!"
फिर मैंने कहा "पापाजी मेरी चुचियों में बहुत दूध है आप उसे पी कर अपनी भूक मिटा लीजिए" वह बोले "यह कैसे हो सकता है, बच्चे के लिए कम हो जाएगा"! मैंने कहा "अभी तो यह अपना पेट भर के सो गया है और अब सुबह सात बजे ही उठेगा! तब तो इसे गाएँ का दूध देना है, मेरी चुचियो के दूध कि बारी तो करीब सुबह दस बजे के बाद आयगी! तब तक तो यह चुचियाँ पूरी भर जाएँगी और कोई कमी नहीं रहेगी!" यह सुन कर पापाजी मान गए, वह मेरी डोडीयां बारी बारी से चूसने लगे और मेरा दूध पीने लगे! जब दोनों तरफ कि थैलियाँ खाली कर दी तब ही वह अलग हुए और अपने खड़े लंड को पकड़ कर मुझे दिखाने लगे! मैं ने कहा "हाँ मैं जानती हूँ कि आपके महाराज को आराम के लिए गद्देदार और गरम जगह चाहिए, इस का इंतजाम मैं अभी कर देती हूँ! अब इस के साथ साथ हमें भी आराम करना चाहिए, नहीं तो आपकी कमर कि दर्द आपको परेशान कर देगी! अब यह मज़े तो हम आगे जिंदगी भर लेते रहेंगें"!
इसके बाद मैं उठ के पापाजी के ऊपर आगई और उनके खड़े लंड पर जा कर बैठ गई, और उनका लंड मेरी चूत कि गहराइयों कि नरम और मुलायम जगह आराम करने पहुंच गया था! फिर मैं पापाजी के ऊपर ही उनकी खूंटी में अटकी हुई लेट गई! हम दोनों को कब नींद आ गई हमें पता ही नहीं चला!
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