Sunday, January 8, 2012

आग में जलती हसीना --2



हिंदी सेक्सी कहानियाँ

आग में जलती हसीना --2

गतांक से आगे......................
बिस्तर में लेटते लेटते लान्खो ख्याल उसके मन से गुज़र रहे थे. "मुझे चोदो ना गोलू, मेरे बेटे" "फाड दो मेरी चूत" "पागल मत बन, यह सब क्या सोच रही है?" इत्यादि, इत्यादि. उसने उसे गोद में खिलाया था. पर आज उसके तन मन में जो आग लगी थी, उसका वो क्या करे? इसी कश्मोकश में उसने अपनी साड़ी ढीली की और पेट्टीकोट का नाडा खोल कर अपनी ऊँगली से अपनी चूत सहलाई.

उसे इतना आनंद वर्षों में नहीं मिला था. डर और अनैतिक ख्यालों से उसकी चूत कुछ ज्यादा ही गीली हो गयी थी. उसने अपनी ऊँगली कि रफ़्तार तेज कर दी. जल्दी ही वो पस्त हो गयी. जब होश में आई तो उसे एहसास हुआ कि रमेश कि चड्ढी जो वो मुंह में दबाए हुए थी, उससे पेशाब कि बदबू आ रही थी. झट से उसने अपने कपडे ठीक किये और चड्ढी वापस बाथरूम में रख आई. वो समझ नहीं पा रही थी कि इस आग का वो क्या करे.

एक तरफ उसकी चूत न जाने क्यों उसके भांजे के लंड कि प्यासी थी तो दूसरी तरफ़ उसके संस्कार उसे उलाहना दे रहे थे उसके पापी विचारों पर.

चंदा दोपहर का खाना बना कर, चंदर और महेश कि राह देखने लगी. चंदर ने कहा था कि आज दोपहर में खाना खाने घर आएगा और फिर महेश को साथ लेकर वी. टी. जायेगा. वहीँ पर महेश को कुछ मर्चंट नेवी के लिए रेजिस्ट्रेशन कराना था.

महेश को घूमने गए हुए काफी देर हो चुकी थी. २ बजने में कुछ मिनट ही बचे थे. तारा के स्कूल से लौटने का वक्त हो रहा था. अच्छा है! पूरा परिवार साथ में भोजन करेगा!

थोड़ी देर में जब घर कि घंटी बजी तो दरवाज़ा खोलने पर उसने देखा कि तीनों साथ में खड़े थे. तारा को महेश ने गोद में उठा रखा था. तीनों तारा के बचपने पे हंस रहे थे. घर में घुसते ही तारा महेश कि गोद से उतर कर तारा के पास दौडी आई. चंदा सबके लिए खाना परोसने लगी. बाहर चंदर और महेश उसके मर्चंट नेवी के बारे में बातें कर रहे थे.

खाना खाकर मामा और भांजा निकलने लगे. चंदर ने तारा को साथ ले लिया. ज़माने के अनुसार तारा को भी ट्यूशन जाना पड़ता था. ट्यूशन के बाद, पास में ही वह कथक सीखने जाती थी. शाम को ७ बजे तारा या चंदर उसे ले आते.

उन सबके जाने के बाद, चंदा ने सोचा कि ७ बजे के पहले कोई आने वाला तो है नहीं, न ही उसे कहीं जाना था. गर्मी भी काफी थी, उसपर से उमस ने उसका हाल बुरा कर दिया था. घर के सारे परदे लगा कर चंदा ने अपने सारे कपडे निकाल दिए और पंखा तेज कर नंगी होकर टी.वी. देखने लगी.

ऐसा वह अकेले में अक्सर करती थी. टी.वी. देखते देखते किसी सिरिअल के किरदार को देखकर उसे अचानक महेश कि याद आई. फिर सुबह कि बातें भी याद आई. कुछ देर के लिए वह सब कुछ भूल चुकी थी. लेकिन फिर उसके अंदर एक अजीब सी उथल-पुथल फिर शुरू हो गयी. तभी दरवाज़े कि घंटी बजी. अचानक तन्द्रा से बाहर आकर वह सोच ही रही थी कि क्या करे कि घंटी फिर बजी. उसने झट से बिना ब्रा और पैंटी पहने झट से पेटीकोट बंधा, ब्लाउस पहना और फटाफट सदी लपेट कर पल्लू डाल कर ब्रा और पैंटी को बाथरूम में फ़ेंक कर दरवाज़ा देखने चली गयी.

दरवाज़ा खोलने पर उसने महेश को पाया, चंदर साथ नहीं था.

"मामा अपना बटुआ भूल गए, इसलिए मुझे भेज दिया लेने."

थोड़ी चंदा कि हालत खराब थी और उसे पसीने छूट रहे थे. कपडे भी उसने जल्दबाजी में पहने थे. महेश जब घर में घुसा तो वह बेडरूम में चली गयी चंदर का बटुआ खोजने. इससे पहले कि वह अपने वस्त्र ठीक करती महेश भी उसके पीछे पीछे चला आया. अचानक उसे चंदर का बटुआ फर्श पर पड़ा हुआ दिखा. उसे उठाने के लिए वह झुकी तो उसका पल्लू गिर गया. सकपका कर वह पल्लू ठीक करते हुए उठी तो उसने देखा कि महेश सन्न सा खड़ा है और उसके चेहरे का रंग उड़ गया है. टकटकी लगाये वह उसके बूबों को निहार रहा था. उसने उसे बटुआ थमाया तो महेश को कुछ होश आया. जिज्ञासापूर्वक चंदा का ध्यान महेश कि पन्त कि ओर गया तो उसके लिंग में हुई हरकत उसे साफ़ साफ़ दिखने लगी.

महेश बटुआ लेकर जब चला गया तो दरवाज़ा अंदर से बंद करके वह आईने के सामने कड़ी हुई और पल्लू हटा कर झुक गयी. वह देखना चाहती थी कि आखिर महेश ने क्या देखा. जैसे ही वह झुकी, उसका बांया स्तन ब्लाउस से लगभग बाहर निकल आया था. उसका निप्प्ल लगभग बाहर झाँक रहा था. दायें कि गोलाई भी साफ नज़र आ रही थी.

यह देख कर उसका चेहरा लाल और गर्म हो गया. वह समझ गयी कि महेश के लिंग में फडकन तो होनी ही थी. वह समझ पा रही थी कि महेश का लिंग विशाल था. उसकी पन्त में उसके लिंग के उभर को वह दो बार देख चुकी थी. वह मन ही मन उस लिंग के रूप आकार को देखने लगी और यहाँ उसकी योनी गीली होने लगी. अब उसे साफ़ दिख रहा था कि महेश उसके स्तनों को जानवर कि तरह मसल रहा था, काट रहा था और चूस रहा था. उसका लंबा, मोटा और काला लिंग उसकी चूत को फाड रहा था. उसके नीचे पसीने से तार, वह उचक उचक कर उससे चुदवा रही थी. यह सोचते सोचते कब उसकी ऊँगली ने उसे पस्त कर दिया उसे पता ही नहीं चला. होश में आते ही वह फिर तड़प उठी. इस अंदरूनी कश्मोकश के चलते उसके दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था.

शाम को करीब ६ बजे चंदर का फोन आया कि वे दोनों ट्रेन में आधे रस्ते पहुंच चुके थे और तारा को लेते हुए आयेंगे. चंदा से महेश ने खाना जल्दी तैयार करने को कहा क्यूंकि दिन कि छुट्टी के बाद रात में उन्हें काम करना होगा और फिर दो दिनों कि उन्हें छुट्टी मिलेगी.

चंदर खाना साथ ले जाना चाहते थे. चंदा ने आधी नींद में बिना आँखे खोले फोन पर बात की और अंगडाई लेकर उठी. आपने चंदा के नीरस और सामान्य जीवन के बारे में जाना है. आप जानते हैं कि चंदा महेश की ओर काफी आकर्षित है. किन्तु महेश का क्या?

भाग २ से आपको याद होगा कि महेश एक १६ साल का लड़का था. उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में उसके माता पिता रहते थे. आठवीं तक वह गांव में ही पढ़ रहा था. नौवीं से उसके माता पिता ने उसे इलाहाबाद उसके नाना नानी के यहाँ भेज दिया. शहर में कुछ अच्छे स्कूल थे जो गांव में कभी नहीं हो सकते थे. उसके माता पिता चाहते थे कि चंदर मेहनत करे और पढ़ लिख कर बड़ा आदमी बने.

महेश को इलाहाबाद में किसी ने बताया कि मर्चंट नवी में भविष्य अच्छा है. मुंबई जाकर ट्रेनिंग ले लो. बारहवीं कि परीक्षा देकर मुंबई में जानकारी लेने आया था. मुंबई देखने कि लालसा भी थी. महेश पढाई में बहुत होशियार नहीं था, लेकिन पास हमेशा हो जाता था. इस कारण वो आस पास के फ़ैल होने वाले मिड्डल स्कूल के बच्चों को पढ़ा दिया करता था. जिससे उसका जेब-खर्च भी निकल जाता और काफी पैसे बच भी जाते. जब उसने अपने माता पिता को बताया कि वह मुम्बई जाना चाहता है, क्यों जाना चाहता है और यह कि उसने किस तरह तुतिओं से कुछ हज़ार रुपये बचा लियें है जिससे वह अपनी यात्रा का खर्च उठा सकता है, तो उसके माता पिता गर्व से फूल उठे. उन्हें उसे अकेले भेजते हुए डर तो लग रहा था, किन्तु महेश की ज़िम्मेदारी देखकर वह उसे जाने से रोक ना सके. चंदर मामा और मामी मुंबई में थे, वह जानता था. काफी सालों से उसकी उनसे बात चीत भी नहीं हुई थी. लेकिन उसके माता पिता भी जानते थे कि वे उनके अपने थे. निस्संकोच उन्होंने चंदर को फोन करके महेश के आने के बारे में बताया था.

चंदर और चंदा, जैसा कि आप जानते हैं, उसके आने से बहुत प्रसन्न थे. बल्कि चंदा महेश को लेकर ऐसी दुविधा में फासी थी कि अंदर ही अंदर जले जा रही थी.

यूँ तो महेश को अपने पुरुषत्व का एहसास १२ साल कि उम्र से होने लगा था. लड़कियों के वक्ष और नितंब उसे उत्तेजित करते. बूबे और गांड, यह शब्द रात को उसे बहुत परेशान करते. उसके स्कूल कि लडकियां उसके सपनों में अक्सर नंगी होकर उसकी बाहों में आ जाती थी. मित्रों ने उसे मुठ मरने का ज्ञान दे दिया था. लड़कियों के बूबे और गांड निहारना और उनकी प्रशंसा करना उनका पसंदीदा टाइमपास था!

कई बार उसके दोस्तों ने उसे किसी लड़की पर धकेल दिया था जिससे उनके बूबे दबाने का सुखद अनुभव भी उसे मिल चूका था. लेकिन उससे ज्यादा उसे कुछ नहीं मिल पाया था. एक तो वह बहुत शर्मीला था ऊपर से लडकियां भी बहुत शरीफ थी. कोई भी बात होने पर प्रिंसिपल साहब या घर पर बात पहुँचने का डर उसे रोक कर रखता था कोई भी ऐसी वैसी हरकत करने से.

परन्तु सेक्स मैं उसकी इतनी रूचि थी कि वह कभी कभी दिन में ८-१० बार भी हिला लिया करता था.

उसने सुना था कि मुंबई में लड़कियां काफी फॉरवर्ड और चुद्दक्कड़ टाइप कि होती हैं. वहाँ लडकियां इतने कम कपडे पहनती हैं कि सपने देखने कि भी ज़रूरत नहीं. इसलिए जब मुंबई जाने का निर्णय उसने लिया तो अपने एक दोस्त से जो मुंबई में ही रहता था, उसने इस बारे में पुछा. तब वह काफी निराश हो गया. दोस्त ने उसे बताया कि यह सब कहने सुनने कि बातें हैं. सब जगह लडकियां एक जैसी ही होती हैं. यह सोच लेना कि मुंबई कि सारी लडकियां रंडियाँ है, बेवकूफी होगी!

लेकिन जैसे ही वह मुंबई पहुंचा, सचमुच तंग कपड़ों में, आधे बूबे दिखाती, गांड मटकाती एक से एक सेक्सी लड़कियों को स्टेशन से मामा के घर तक देखते हुए आया. रात को जब वह पहुंचा तो सोने से पहले उनमे से दो तीन लड़कियों को छोड़ने के ख्वाब देखते देखते मुठ मारते के बाद ही वह सोया.

सुबह जब उसकी नींद खुली तो उसे बहुत जोर से पेशाब लगी थी. बाथरूम बंद था, शायद मामी उसमे नहा रही थी. वह चुप चाप उनके निकलने का बेसब्री से इन्तेज़ार करने लगा. जब मामी निकली तो वो केवल ब्लाउस और पेटीकोट में थी. उसके बूबे थोड़े थोड़े दिख रहें थे. ठीक से देख नहीं पाया क्यूंकि मूतने कि उसे जल्दी थी.

नहा के जब वह लौटा तो उसे लगा कि मामी उसके लिंग को घूर रही थी. या फिर उसके जवान मन का वेहम था. उसे बुरा भी लग रह था. ये तो उसकी माम्मी थी. मामी के बारे में ऐसे गंदे ख्याल?

नाश्ता करते करते जब वे बात कर रहें थे तो अचानक उसे एहसास हुआ कि मामी के ब्लाउस में बूबों के बीच कि गली काफी साफ़ दिख रही थी. इतने पास से उसने कभी गली को नहीं देखा था, इसलिए वो उसमे कुछ देर के लिए अटक गया. शायद मामी ने उसे पकड़ लिया था!

बाद में जब चंदर माम अपना बटुआ भूल गए थे और उसे लेने वोह घर लौटा था तब मामी बटुआ उठाने के लिए जब झुकी, तो उनके बबले ब्लाउस के बाहर लगभग निकल ही गए, उनके बाएं बूबे का गहरा गुलाबी निप्प्ल भी उसे दिख गया था. पहली बार उसने ऐसा नज़ारा देखा था. उसके दिमाग से सारा खून दौड के उसके लिंग में पहुँच गया और अचानक उसका लिंग हरकत में आ गया. महेश डर गया. कहीं मामी को समझ में आ गया कि उसके मन में उनके लिए ऐसे गंदे विचार हैं तो न जाने वो क्या करेंगी.

यह सोच के उसकी थोड़ी फट गयी थी लेकिन मन उसका मान नहीं रहा था. रस्ते भर उसे मामी का फिगर, उनके बूबे और अब उनकी गांड भी परेशां कर रहें थे.

मामा ने जब देखा कि महेश के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही हैं तो पूछ ही लिया,"क्या बात है बेटा, कुछ परेशानी है क्या?"

महेश डर गया कि कहीं मामा समझ तो नहीं गए कि उसके मन में क्या पाप पनप रहा है. चंदर मामा ने ही उसे इस दुविधा से बचा लिया,
"लगता है गर्मी ने तुम्हारी हालत खराब कर दी है. स्टशन पहुँच के एक ठंडा पी लेना, ठीक?"

महेश ने हाँ में सर हिलाते हुए चैन कि सांस ली. लेकिन दिन भर बार बार चंदा मामी को लेकर अजीब अजीब ख़याल उसके मन में आते रहें. शाम तक सारे काम करते करते, उसका मन इन बातों से थोडा भटका तो वह फिर सामान्य हो गया.

शाम को तारा को स्कूल से लेने के बाद उसे गोद में खिलते खिलते मामा के साथ घर लौटते लौटे, वह सुबह कि घटनाओं को भूल गया.

चंदा खाना तैयार कर सबका इन्तेज़ार करने लगी. करीब ८ बजे तीनों घर पहुंचे. तारा और महेश को पास के एक गार्डन में चंदर घुमाने ले गए थे. सबने खाना खाया और फिर चंदर अंदर कुछ देर आराम करने चले गए. करीब १० बजे वे निकलने वाले थे.

फिर तारा और महेश साथ में टीवी देखने लगे. चंदा भी देख रही थी. चोर निगाहों से वो बार बार महेश को देख रही थी. लेकिन महेश तारा के साथ खेलने में व्यस्त था.

तैयार होकर चंदर साईट के लिए चल पड़े. उन्हें अलविदा कर वोह तारा को लेकर अंदर चली गयी. महेश बाहर टीवी देखता रहा. थोदी देर बाद तारा सो गयी. चंदा दिन में सो चुकी थी. उसे अभी नींद नहीं आ रही थी. उसने सोचा बाहर जा कर टीवी देख ले. साथ ही महेश से कुछ देर गप शप हो जायेगी.

बाहर गयी तो देखा महेश वहीँ गद्दे पर सो गया था और पसीने से भीगा पड़ा था. टीवी अब भी चल रहा था. वह समझ गयी कि दिनभर कि थकान के कारण वह टीवी देखते दखते सो गया. अचानक उसे ध्यान आया कि पंखा तो बंद था. महेश पसीने में लथपथ था.

जाकर जब वह पंखा चालू करने गयी तो देखा कि स्विच तो चालू था. उसने स्विच को कई बार चालु बंद किया और रेगुलेटर को भी खूब घुमाया लेकिन पंखा चलने का नाम नहीं ले रहा था. गर्मी भी बहुत थी. महेश पर उसे दया आने लगी. पहले उसने टीवी बंद किया.

टीवी बंद होते ही अचानक एकदम शांति हो गयी और महेश जग गया. उठ कर उसने देखा कि मामी ने टीवी बंद कर दिया है. फिर उसका ध्यान अपने हाल पर आया. हाथ से उसने अपना चेहरा पोछा और पंखे कि ओर देखा. फिर चंदा कि ओर देखा.

"पंखा शायद खराब हो गया है गोलू.", चंदा बोली. महेश थोडा खीज गया. इतनी गर्मी में बिन पंखे के दुबारा सो पाना मुश्किल था. तभी चंदा बोली,"अंदर चले चलो, पंखा चल रहा है. तारा भी सो गयी है. तुम भी आ जाओ. यहाँ तो सो नहीं पाओगे." बोलते बोलते ही चंदा के मन में अनेक संभावनाओं के ख्याल उठे. कान के पास एक हलकी सी सिहरन महसूस हुई.

महेश सचमुच थका हुआ था और उसे काफी नींद आ रही थी. वह कुछ नहीं बोला और उठ कर सर खुजाते हुए अंदर जागर बिस्तर कि बायीं ओर पेट के बल लेट गया. तारा बिस्तर के बीच में सो रही थी.

चंदा ने हॉल कि लाइट बुझा दी और खुद भी बेडरूम में चल पड़ी. अभी भी वह साड़ी पहने हुए थी. ज़्यादातर गर्मी में वह केवल एक मैक्सी (बड़ी ढीली ढाली और लंबी नाइटी) पहना करती थी. अंदर कुछ नहीं. अभी तक कपडे बदलने का मौका उसे नहीं मिला था. उसके मन में थोडा संकोच भी था. मन का पाप भी उसे परेशान कर रहा था. उसे लगा कि अगर उसने मैक्सी पहन ली तो रात में कही कुछ अनैतिक न हो जाए. इसलिए साड़ी पहने हुए ही सोना उसने उचित समझा.

जाकर तारा कि बगल में लेट गयी.

हालांकि रात का वक्त था और अँधेरा बहुत था, उसे महेश काफी हद तक साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था. कोहनी के बल वो बिस्तर से थोडा उठ कर महेश को देखने लगी. हालांकि वो अभी भी दुनिया कि नज़र में बच्चा ही था, चंदा उसके मांसल शरीर को देखकर रोमांचित हो रही थी. महेश ज़्यादातर लड़कों कि तरह हाफ पैंट पहने हुए था. काफी हृष्ट पुष्ट था. चंदा कि नज़र खास तौर से उसके पैरों के बीच घूर रही थी. उसे याद था कि उसने महेश के लिंग कि उभारन को देखा था जिससे वो समझ गयी थी कि महेश एक विशाल लंड का मालिक है.

गर्मी तो थी ही, साथ में चंदा के तन में धीरे धीरे जो आग सुलग रही थी उसने उसकी नींद हराम कर रखी थी. आग में जलती वो कुछ समझ नहीं पा रही थी कि वो क्या करे. सही-गलत का खेल अब भी उसके मन में जारी था. वहाँ महेश के मोटे लंड का आकर्षण उसे पगला रहा था और यहाँ उसकि चूत में जो आग लगी थी, उसे ठंडा भी करना था. बहुत देर तक इसी उधेड़ बुन में जलते जलते आखिर तन कि आग ने मन के द्वंद्व का निर्णय घोषित कर दिया.

अब जो भी चंदा के मन में चल रहा था उसका नाता न तो इस बात से था कि वो महेश कि मामी है, उसके माँ समान, न तो इस बात से कि महेश उससे काफी छोटा था, न इस बात से कि उसकी बेटी तारा भी उसी बिस्तर पर थी और न इस बात से कि उसका पति उसीके लिए इतनी रात में मेहनत कर रहा था.

इस समय वो एक नारी नहीं एक मादा थी जिसे एक नर चाहिए था. उसकी चेष्टा केवल अपनी चूत में एक लंड डलवाने कि थी. उसके तन बदन में आग लगी थी और आग में जलती वो इस आग को बुझाना चाहती थी. उसे बुझाने का एक ही तरीका उसे सुझा.

वो बिस्तर से उठ खड़ी हुई और जल्दी से अपनी साड़ी उतार फेंकी. फिर तारा को धीरे से बिस्तर के किनारे खिसका के उसके और महेश के बीच लेट गयी. उसकी साँसे तेज चल रही थी. डर भी उसे खूब लग रहा था, लेकिन जिस रास्ते वो निकल चुकी थी, वहाँ से वापसी के बारे में सोचने लायक उसकी हवस ने उसे नहीं छोड़ा था.

महेश के बिलकुल पास जा कर उसने अपने ब्लाउस के ऊपर के दो बटन खोल दिए. अब उसके बूबे आधे बाहर झलक रहें थे. अब उसने पेटीकोट को खींच कर अपनी चड्ढी तक कर लिया. उसकी गद्रे गोरी टाँगे और मस्त दुधिया जांघे रात के अँधेरे में भी चमक रही थी. फिर वो महेश कि तरफ पलटी और ब्लाउस का एक और बटन खोल दिया. फिर बायें निप्प्ल को हल्का सा ब्रा के बाहर खींच लिया. अब उसने आँखे बंद कि और अपनी जांघ को महेश कि जांघ पर ऐसे रख दिया कि उसका लंड उसकी जांघ पर महसूस होने लगा. उसकी साँसे तेज चल रही थी और दिल मानो धड़कते धड़कते फट जाने वाला था. अब वो सिर्फ इन्तेज़ार कर सकती थी. गर्म साँसों के साथ वो महेश के कुछ करने का इंतज़ार करने लगी.

हाँ, उसे डर लगा था कि कहीं महेश ने उसे दुत्कार दिया और चंदर से कह दिया तो क्या होगा? लेकिन तन कि ज्वाला दिमाग को ठीक से सोचने भी नहीं दे रही थी.

थोड़ी देर बाद उसे अपनी जांघ पर महेश के लंड के बढ़ने का एहसास हुआ. एक बार तो उसका दिल धक् रह गया. क्या इस सोलह साल के लड़के का लंड उसके पति के लंड से दुगना बड़ा है? उसने हलके से आँखे खोली तो देखा कि महेश उठ चूका है और आँखे फाड फाड के उसे देख रहा है. कभी उसके अधनंगे बब्लों को तो कभी उसकी गोरी जांघों को. लेकिन वो डरा भी हुआ था. समझ नहीं पा रहा था क्या करे. बस यही मौका था. चंदा ने नींद में पलटने का बहाना करते हुए पीठ के बल लेट गयी. टाँगे मोड कर उठा ली जिससे उसकी पूरी टांगें नन्गी हो गयी. और नींद के ही बहाने उसने अपने ब्लाउस में हाथ डाल अपने बांये बूबे को नंगा कर दिया और महेश का इन्तेज़ार करने लगी.

यहाँ महेश कि हालत खराब थी. उसकी चंदा मामी के कपडे नींद में उथल पुथल हो गए थे जिसके कारण उनका ब्लाउस आधा खुला हुआ था और उनका एक बुबे का निपल बाहर झाँक रहा था. उफ़ उनके गोरे गोरे बादल जैसे बूबे. उनकी टाँगे नंगी थी उनकी गदराई जांघों को देख महेश का लिंग तन गया था. इससे पहले मामी के पैर उसके ऊपर थे. उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था और साँसें तेज हो चली थी. इस अर्धनग्न अवस्था में उसने कभी किसी औरत को इतने करीब से नहीं देखा था. उसका लिंग फूल के खूब मोटा और खूब कड़ा हो चूका था. उसके लंड कि ऐसी हालत कभी नहीं हुई थी.

मामी के सांस लेने के साथ उनकी छाती भी ऊपर नीचे हो रही थी. मामी के होंठ अधखुले थे. और उनकी जांघे... महेश होश खोकर मदहोश होने लगा था. उसे हल्का हल्का शक था कि चंदा ये जानबूझ के कर रही थी, लेकिन अगर शक गलत निकला तो?

इधर चंदा भी बेचैन हो रही थी. वो जानती थी कि महेश पर मनचाहा असर हो चूका है. फिर भी वो कुछ कर नहीं रहा था. शायद डर गया था. उसने सोचा कि वही कुछ शुरुवात करदे तो? लेकिन अगर महेश बुरा मान गया या ज़रूरत से ज़्यादा डर गया तो?
क्रमशः.............................



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