हिंदी सेक्सी कहानियाँ
संपादक : मारवाड़ी लड़का
सभी पाठकों को मेरा सप्रेम प्रणाम !
मुझसे तो आप सब अब भली भांति परिचित हो ही गए होंगे! मैं हूँ मस्त पंजाबन ! आप सबके प्यार ने ही मुझे अपने फूफाजी और मेरे बीच के रिश्ते को उजागर करने को मजबूर किया है !
तो पेश है आगे की कहानी..
मेरे चेहरे पर हवाइयां उड़ते देख कालू ने मुझे गले से लगते हुए कहा,"देख ! तेरे फूफा बहुत ही बड़े ठरकी हैं। इन्हें मैं बहुत पहले से जानता हूँ। तेरी चाची के साथ भी सम्बन्ध रहे हैं इसके ! तू बस घर जा कर संभाल इसको।
पाँव पकड़ते हुए लुंगी में मुँह घुसा देना, शांत हो जायेगा।"
मुझे गुस्सा आने लगा, मैंने कालू को डांटते हुए कहा,"क्या बक रहा है कमीने !"
कालू ने मुझे समझाया,"बक नहीं रहा हूँ गुड़िया रानी ! तुझे अपनी इज्जत बचने का तरीका बता रहा हूँ। तेरा क्या बिगड़ जायेगा? दो लेती थी एक और ले लेना !"
मैं वहाँ से जैसे तैसे भाग कर घर आ गई। फूफाजी अपने कमरे में लेट कर अखबार पढ़ रहे थे। मैं उनके पैरों की तरफ बैठ कर उनसे विनती करने लगी।
"मुझे माफ़ कर दो फूफाजी, आगे से ऐसी गलती नहीं करुँगी।" इतना कह कर मैं रोने लगी। मेरे आँखों से आंसू बह रहे थे।
उन्होंने मुझे घूरते हुए कहा,"शर्म-लाज कुछ है तुझमें?"
"घुटने पकड़ लिए हैं फूफाजी, मुझे माफ़ कर दो !" इतना कह कर मैं वहाँ से रोते हुए अपने कमरे में चली आई और अपने बिस्तर में गिर कर सुस्ताने लगी।
बुआ, चाची और माँ सब बाजार गए हुए थे और उन्हें शाम से पहले लौटना नहीं था। वैसे भी कालू ने मुझे हल्का कर दिया था और ऊपर से गर्मी के कारण मुझे बेचैनी सी होने लगी थी। यूँ तो चुदाई के बाद मुझे नींद बड़ी अच्छी आती है मगर आज मेरी आँखों से नीद गायब थी। मैं चाह रही थी कि फूफाजी के सामने जाकर सब कुछ बता दूँ, मगर हिम्मत नहीं हो रही थी।
कभी कभी ख्याल आ रहा था कि उनसे जा कर लिपट जाऊं, खुद को उनके हवाले कर दूँ, उन्हें अपने दूध पिला दूँ ..
वैसे भी उन्होंने मुझे आधी नंगी तो देख ही लिया है....क्या पता शायद वो बहुत देर से मेरी जवानी का मजा ले रहे हों.. पता नहीं ऐसे अनगिनत ख्याल मेरे मन में घर कर रहे थे। मुझे यह तो ज्ञात था के मेरी उभरी हुई जवानी देख कर उनके दिल में कुछ तो हुआ होगा, मगर उनके गुस्से से मैं वाकिफ थी। इस अजीब सी कशमकश में कब मेरी आँख लग गई मुझे पता ही नहीं चला।
कुछ देर बाद मुझे मेरे पास किसी के लेटे होने का एहसास हुआ। ऐसा लगा जैसे कोई मेरे चूतड़ों पर हाथ फेर रहा हो। मेरी आँख खुल गई मगर मैंने सोये होना का नाटक करना चालू रखा।
मैंने अपनी आँखें धीरे से खोल कर कनखियों से देखा तो वो और कोई नहीं मेरे फूफाजी ही थे !
उन्होंने धीरे धीरे मेरी कमीज को ऊपर सरकाया और मेरे चिकने सपाट पेट पर हाथ फेरने लगे।
फिर धीरे से उन्होंने मेरा नाड़ा भी खोल कर मेरी सलवार को खिसकाते हुए मेरी पेंटी के ऊपर से ही मेरी चूत पर हाथ फेरने लगे।
वो बड़े आराम से मेरी नाभि पर हाथ फेरते हुए और मजे लेते हुए बोले,"गुड़िया ! अब मूड में आ भी जाओ ! कब तक सोते रहने का नाटक करोगी?"
फिर भी जब मैंने अपनी आँखें नहीं खोली तो उन्होंने मेरी पैंटी में हाथ डाल कर मेरे दाने को मसल दिया।
मैं उनकी तरफ मुड़ी और उनसे लिपट गई और बोली,"आप किसी से कहेंगे तो नहीं ?"
उन्होंने बड़े ही प्यार से मेरे होंठों को चूमते हुए कहा,"नहीं कहूँगा मेरी रानी ! चल उठ कर नंगी हो जा।"
मैंने कहा,"नहीं फूफा जी, माना कि मैं चुदाई करवाती हूँ और आपने मुझे देखा भी है पर आपके सामने यूँ नंगी होने में मुझे शर्म आ रही है। मैं आंखें बंद कर रही हूँ, आपको जो उतारना है, उतार लेना ।"
मैं खड़ी हो गई मगर मुझे यह ध्यान नहीं था कि फूफाजी ने मेरा नाड़ा खोल दिया है। जैसे ही मैं खड़ी हुई मेरी सलवार नीचे सरक कर पैरों में गिर गई। मैं शर्म से लाल हो रही थी और अपनी जाँघों को समेट रही थी।
"क्या मस्त जांघें हैं तेरी ! गुड़िया रानी इतनी चिकनी जांघें तो मैंने कभी देखी ही नहीं। दूर से देखा था तब पप्पू मेरा हिलने लगा था और अब पास से देख रहा हूँ तो मेरा पप्पू अकड़ने लगा है।" उन्होंने लगभग घूरते हुए अपनी आखों से मुझे चोदते हुए कहा।
"क्यों ? बुआ जी की चिकनी नहीं है क्या?" मैंने चुटकी ली।
"अब कहाँ वो बात !" उन्होंने एक लम्बी सांस लेते हुए कहा और मेरी कमीज उतार कर मेरी काले रंग की ब्रा में कैद मेरे कबूतरों को आजाद कर दिया।
मेरे फडफाड़ते हुए कबूतरों को देख कर वो बोले,"क्या मस्त माल है तेरे पास !"
और इतना कह कर वो मेरे अनारों को मसलने लगे।
कुछ देर मसलने के बाद उन्होंने मेरे चुचूक को अपने मुँह में भर लिया और चूस चूस कर मेरे चुचूक खड़े कर दिए।
"हाय फूफा जी ! मारोगे क्या ! बड़ा मस्त चूसते हो आप !"
"चल अब मेरा लौड़ा हिला और चूस इसको !"
"खुद पास आकर चुसवा लो न !"
उन्होंने खुद अपना लौड़ा पकड़ कर मेरे मुँह में डाल दिया और मैं चूमने लगी उनके मस्त लौड़े को।
"हाय रे गुड़िया रानी, क्या चूसती हो !"
कुछ देर चूसवाने के बाद बोले,"साली मुँह में झड़वा देगी क्या ?"
इतना कहते हुए उन्होंने मेरी टाँगें फैला दी। मैंने भी ज्यादा नाटक ना करते हुए रास्ता साफ़ कर दिया।
उन्होंने अपने लौड़े को पकड़ कर निशाने पर टिका कर एक करार झटका लगा दिया।
उनका लौड़ा मस्ती में मेरी चूत में झूलने लगा था।
"मजा आया रानी ?" उन्होंने अपने धक्कों को संयमित करते हुए पूछा।
"हाँ फूफाजी ! और तेज रगड़ा लगाओ ना !
"कुतिया क्या हाल है तेरा ! साली सुहाग रात पर पकड़ी जायेगी ! कुछ छोड़ दे उसके लिए भी ! तेरी उम्र में तो तेरी बुआ मेरा लौड़ा अपनी चूत में ले कर कराहने लगती थी, मगर तू तो बड़ी कमीनी है रे ! और जोर से धक्के लगाने को कह रही है !"
"हाय फूफाजी ! रगड़ दो ....रगड़ दो मुझे ...और....और तेज...तेज...चोदो मुझे !" मेरे मुँह से आवाजें निकल रही थी और फूफाजी मुझे तेजी से चोदने लगे थे।
करीब आधे घंटे के कोहराम के बाद हम दोनों फारिग हुए और एक दूसरे के जिस्म को जकड़ कर एक ओर लुढ़क गए।
फूफाजी बोले,"साली मैंने तो सोचा था कि तू मोटर घर में कालू से चुद कर ठंडी हो गई होगी। मगर तू तो पक्की हरामन है रे !"
"भतीजी किसकी हूँ ! सच बताना मैं अपनी चाची से भी ज्यादा मस्त हूँ न !",मैंने उन्हें छेड़ा।
"क्या मतलब है तेरा?" वो गुर्राए।
"वही जो पूछा है !"
"किसने कहा तुझसे यह सब?"
"बस बताने वाले ने बता दिया फूफाजी !"
"बहुत तेज है रे तू छोरी ! चल एक और दौर हो जाए !"इतना कह कर वो मेरी गाण्ड पर हाथ फेरने लगे।
"तेरी चूत मारते वक़्त देखा था, तेरी गांड बड़ी चिकनी है ! बोल मरवाएगी?" यह कह कर वो अपने हाथ से मेरी गोलाइयों का जायजा लेते हुए मेरी गाण्ड सहलाने लगे।
मैंने उन्हें समझाया," फूफाजी ! अभी सब आने वाले हैं। सो खुद की गाण्ड मत फड़वा लेना बुआ से !"
मगर वो कहाँ मानने वालों में से थे! उन्होंने जबरदस्ती अपना मुरझाया हुआ लंड मेरे गांड पर सटा दिया और अन्दर डालने की कोशिश करने लगे। लेकिन उनका इतनी जल्दी खड़ा नहीं हो पा रहा था।
आखिर हार मान कर वो मुझे अपने कपड़े पहनने को बोल कर अपने कपड़े ठीक करने लगे।
"अब तो तू मेरी ही है गुड़िया ! आज नहीं तो फिर कभी सही। अब मैं तुझे नहीं छोड़ने वाला !"
थोड़ी देर में कालू घर पर चाय लेने आया। उसने मुझसे सुबह वाले किस्से के बारे में पूछा,"कर लिया अपने फूफा को अपने गुनाहों में शामिल?"
मैं शरमा गई और शरमा कर उससे बोली, "चल हट ! कुत्ता ! जा चाय लेकर ! मैं आती हूँ खेतों पर !"
"क्यों अभी भी चूत की आग शांत नहीं हुई क्या जो दोबारा वहाँ आएगी?" उसने मुझे छेड़ा," फाड़ डालेंगे तेरी चूत को ! आज तो शंकर के अलावा कामा भी है वहाँ !"
मैं थक चुकी थी और ३ लौड़ों को एक साथ सँभालने की ताकत अभी नहीं थी मेरी। इसलिए मैंने चाय बना कर उसे पकड़ा कर उसे रुखसत किया।
इस किस्से के बाद तो मैंने हर किसी से चुदवाने लगी और खुले में गफ्फे लगाने लगी।
और इस तरह मैं गुड़िया से चुदक्कड़ मुनिया बन गई !
इसके बाद तो बस मैं हर तरह से सेक्स का मजा लेने लगी और जब मैं शहर आई तो मैंने हद पार कर दी थी।
खैर वो सब अगले कहानी में।
तो दोस्तों इस तरह से मैं एक चुदक्कड़ मुनिया बन गई !
आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी मुझे जरूर बताइयेगा। gudiamunnia4u@yahoo.com
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गुड़िया से बन गई चुदक्कड़ मुनिया-5
प्रेषिका : गुड़ियासंपादक : मारवाड़ी लड़का
सभी पाठकों को मेरा सप्रेम प्रणाम !
मुझसे तो आप सब अब भली भांति परिचित हो ही गए होंगे! मैं हूँ मस्त पंजाबन ! आप सबके प्यार ने ही मुझे अपने फूफाजी और मेरे बीच के रिश्ते को उजागर करने को मजबूर किया है !
तो पेश है आगे की कहानी..
मेरे चेहरे पर हवाइयां उड़ते देख कालू ने मुझे गले से लगते हुए कहा,"देख ! तेरे फूफा बहुत ही बड़े ठरकी हैं। इन्हें मैं बहुत पहले से जानता हूँ। तेरी चाची के साथ भी सम्बन्ध रहे हैं इसके ! तू बस घर जा कर संभाल इसको।
पाँव पकड़ते हुए लुंगी में मुँह घुसा देना, शांत हो जायेगा।"
मुझे गुस्सा आने लगा, मैंने कालू को डांटते हुए कहा,"क्या बक रहा है कमीने !"
कालू ने मुझे समझाया,"बक नहीं रहा हूँ गुड़िया रानी ! तुझे अपनी इज्जत बचने का तरीका बता रहा हूँ। तेरा क्या बिगड़ जायेगा? दो लेती थी एक और ले लेना !"
मैं वहाँ से जैसे तैसे भाग कर घर आ गई। फूफाजी अपने कमरे में लेट कर अखबार पढ़ रहे थे। मैं उनके पैरों की तरफ बैठ कर उनसे विनती करने लगी।
"मुझे माफ़ कर दो फूफाजी, आगे से ऐसी गलती नहीं करुँगी।" इतना कह कर मैं रोने लगी। मेरे आँखों से आंसू बह रहे थे।
उन्होंने मुझे घूरते हुए कहा,"शर्म-लाज कुछ है तुझमें?"
"घुटने पकड़ लिए हैं फूफाजी, मुझे माफ़ कर दो !" इतना कह कर मैं वहाँ से रोते हुए अपने कमरे में चली आई और अपने बिस्तर में गिर कर सुस्ताने लगी।
बुआ, चाची और माँ सब बाजार गए हुए थे और उन्हें शाम से पहले लौटना नहीं था। वैसे भी कालू ने मुझे हल्का कर दिया था और ऊपर से गर्मी के कारण मुझे बेचैनी सी होने लगी थी। यूँ तो चुदाई के बाद मुझे नींद बड़ी अच्छी आती है मगर आज मेरी आँखों से नीद गायब थी। मैं चाह रही थी कि फूफाजी के सामने जाकर सब कुछ बता दूँ, मगर हिम्मत नहीं हो रही थी।
कभी कभी ख्याल आ रहा था कि उनसे जा कर लिपट जाऊं, खुद को उनके हवाले कर दूँ, उन्हें अपने दूध पिला दूँ ..
वैसे भी उन्होंने मुझे आधी नंगी तो देख ही लिया है....क्या पता शायद वो बहुत देर से मेरी जवानी का मजा ले रहे हों.. पता नहीं ऐसे अनगिनत ख्याल मेरे मन में घर कर रहे थे। मुझे यह तो ज्ञात था के मेरी उभरी हुई जवानी देख कर उनके दिल में कुछ तो हुआ होगा, मगर उनके गुस्से से मैं वाकिफ थी। इस अजीब सी कशमकश में कब मेरी आँख लग गई मुझे पता ही नहीं चला।
कुछ देर बाद मुझे मेरे पास किसी के लेटे होने का एहसास हुआ। ऐसा लगा जैसे कोई मेरे चूतड़ों पर हाथ फेर रहा हो। मेरी आँख खुल गई मगर मैंने सोये होना का नाटक करना चालू रखा।
मैंने अपनी आँखें धीरे से खोल कर कनखियों से देखा तो वो और कोई नहीं मेरे फूफाजी ही थे !
उन्होंने धीरे धीरे मेरी कमीज को ऊपर सरकाया और मेरे चिकने सपाट पेट पर हाथ फेरने लगे।
फिर धीरे से उन्होंने मेरा नाड़ा भी खोल कर मेरी सलवार को खिसकाते हुए मेरी पेंटी के ऊपर से ही मेरी चूत पर हाथ फेरने लगे।
वो बड़े आराम से मेरी नाभि पर हाथ फेरते हुए और मजे लेते हुए बोले,"गुड़िया ! अब मूड में आ भी जाओ ! कब तक सोते रहने का नाटक करोगी?"
फिर भी जब मैंने अपनी आँखें नहीं खोली तो उन्होंने मेरी पैंटी में हाथ डाल कर मेरे दाने को मसल दिया।
मैं उनकी तरफ मुड़ी और उनसे लिपट गई और बोली,"आप किसी से कहेंगे तो नहीं ?"
उन्होंने बड़े ही प्यार से मेरे होंठों को चूमते हुए कहा,"नहीं कहूँगा मेरी रानी ! चल उठ कर नंगी हो जा।"
मैंने कहा,"नहीं फूफा जी, माना कि मैं चुदाई करवाती हूँ और आपने मुझे देखा भी है पर आपके सामने यूँ नंगी होने में मुझे शर्म आ रही है। मैं आंखें बंद कर रही हूँ, आपको जो उतारना है, उतार लेना ।"
मैं खड़ी हो गई मगर मुझे यह ध्यान नहीं था कि फूफाजी ने मेरा नाड़ा खोल दिया है। जैसे ही मैं खड़ी हुई मेरी सलवार नीचे सरक कर पैरों में गिर गई। मैं शर्म से लाल हो रही थी और अपनी जाँघों को समेट रही थी।
"क्या मस्त जांघें हैं तेरी ! गुड़िया रानी इतनी चिकनी जांघें तो मैंने कभी देखी ही नहीं। दूर से देखा था तब पप्पू मेरा हिलने लगा था और अब पास से देख रहा हूँ तो मेरा पप्पू अकड़ने लगा है।" उन्होंने लगभग घूरते हुए अपनी आखों से मुझे चोदते हुए कहा।
"क्यों ? बुआ जी की चिकनी नहीं है क्या?" मैंने चुटकी ली।
"अब कहाँ वो बात !" उन्होंने एक लम्बी सांस लेते हुए कहा और मेरी कमीज उतार कर मेरी काले रंग की ब्रा में कैद मेरे कबूतरों को आजाद कर दिया।
मेरे फडफाड़ते हुए कबूतरों को देख कर वो बोले,"क्या मस्त माल है तेरे पास !"
और इतना कह कर वो मेरे अनारों को मसलने लगे।
कुछ देर मसलने के बाद उन्होंने मेरे चुचूक को अपने मुँह में भर लिया और चूस चूस कर मेरे चुचूक खड़े कर दिए।
"हाय फूफा जी ! मारोगे क्या ! बड़ा मस्त चूसते हो आप !"
"चल अब मेरा लौड़ा हिला और चूस इसको !"
"खुद पास आकर चुसवा लो न !"
उन्होंने खुद अपना लौड़ा पकड़ कर मेरे मुँह में डाल दिया और मैं चूमने लगी उनके मस्त लौड़े को।
"हाय रे गुड़िया रानी, क्या चूसती हो !"
कुछ देर चूसवाने के बाद बोले,"साली मुँह में झड़वा देगी क्या ?"
इतना कहते हुए उन्होंने मेरी टाँगें फैला दी। मैंने भी ज्यादा नाटक ना करते हुए रास्ता साफ़ कर दिया।
उन्होंने अपने लौड़े को पकड़ कर निशाने पर टिका कर एक करार झटका लगा दिया।
उनका लौड़ा मस्ती में मेरी चूत में झूलने लगा था।
"मजा आया रानी ?" उन्होंने अपने धक्कों को संयमित करते हुए पूछा।
"हाँ फूफाजी ! और तेज रगड़ा लगाओ ना !
"कुतिया क्या हाल है तेरा ! साली सुहाग रात पर पकड़ी जायेगी ! कुछ छोड़ दे उसके लिए भी ! तेरी उम्र में तो तेरी बुआ मेरा लौड़ा अपनी चूत में ले कर कराहने लगती थी, मगर तू तो बड़ी कमीनी है रे ! और जोर से धक्के लगाने को कह रही है !"
"हाय फूफाजी ! रगड़ दो ....रगड़ दो मुझे ...और....और तेज...तेज...चोदो मुझे !" मेरे मुँह से आवाजें निकल रही थी और फूफाजी मुझे तेजी से चोदने लगे थे।
करीब आधे घंटे के कोहराम के बाद हम दोनों फारिग हुए और एक दूसरे के जिस्म को जकड़ कर एक ओर लुढ़क गए।
फूफाजी बोले,"साली मैंने तो सोचा था कि तू मोटर घर में कालू से चुद कर ठंडी हो गई होगी। मगर तू तो पक्की हरामन है रे !"
"भतीजी किसकी हूँ ! सच बताना मैं अपनी चाची से भी ज्यादा मस्त हूँ न !",मैंने उन्हें छेड़ा।
"क्या मतलब है तेरा?" वो गुर्राए।
"वही जो पूछा है !"
"किसने कहा तुझसे यह सब?"
"बस बताने वाले ने बता दिया फूफाजी !"
"बहुत तेज है रे तू छोरी ! चल एक और दौर हो जाए !"इतना कह कर वो मेरी गाण्ड पर हाथ फेरने लगे।
"तेरी चूत मारते वक़्त देखा था, तेरी गांड बड़ी चिकनी है ! बोल मरवाएगी?" यह कह कर वो अपने हाथ से मेरी गोलाइयों का जायजा लेते हुए मेरी गाण्ड सहलाने लगे।
मैंने उन्हें समझाया," फूफाजी ! अभी सब आने वाले हैं। सो खुद की गाण्ड मत फड़वा लेना बुआ से !"
मगर वो कहाँ मानने वालों में से थे! उन्होंने जबरदस्ती अपना मुरझाया हुआ लंड मेरे गांड पर सटा दिया और अन्दर डालने की कोशिश करने लगे। लेकिन उनका इतनी जल्दी खड़ा नहीं हो पा रहा था।
आखिर हार मान कर वो मुझे अपने कपड़े पहनने को बोल कर अपने कपड़े ठीक करने लगे।
"अब तो तू मेरी ही है गुड़िया ! आज नहीं तो फिर कभी सही। अब मैं तुझे नहीं छोड़ने वाला !"
थोड़ी देर में कालू घर पर चाय लेने आया। उसने मुझसे सुबह वाले किस्से के बारे में पूछा,"कर लिया अपने फूफा को अपने गुनाहों में शामिल?"
मैं शरमा गई और शरमा कर उससे बोली, "चल हट ! कुत्ता ! जा चाय लेकर ! मैं आती हूँ खेतों पर !"
"क्यों अभी भी चूत की आग शांत नहीं हुई क्या जो दोबारा वहाँ आएगी?" उसने मुझे छेड़ा," फाड़ डालेंगे तेरी चूत को ! आज तो शंकर के अलावा कामा भी है वहाँ !"
मैं थक चुकी थी और ३ लौड़ों को एक साथ सँभालने की ताकत अभी नहीं थी मेरी। इसलिए मैंने चाय बना कर उसे पकड़ा कर उसे रुखसत किया।
इस किस्से के बाद तो मैंने हर किसी से चुदवाने लगी और खुले में गफ्फे लगाने लगी।
और इस तरह मैं गुड़िया से चुदक्कड़ मुनिया बन गई !
इसके बाद तो बस मैं हर तरह से सेक्स का मजा लेने लगी और जब मैं शहर आई तो मैंने हद पार कर दी थी।
खैर वो सब अगले कहानी में।
तो दोस्तों इस तरह से मैं एक चुदक्कड़ मुनिया बन गई !
आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी मुझे जरूर बताइयेगा। gudiamunnia4u@yahoo.com
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