Sunday, January 8, 2012

raj sharma stories बूढो मे भी दम है --1



raj sharma stories

बूढो मे भी दम है --1
कुच्छ घटनाएँ ऐसी होती हैं जिसमे आदमी खूदबखुद खींचता चला जाता है. चाहे वो चाहे चाहे ना चाहे. आदमी कितना भी समझदार हो लेकिन कभी कभी उसकी समझदारी उसे ले डूबती है. ऐसी ही एक घटना मेरे साथ हुई थी. जिसे आज तक मेरे अलावा कोई नही जानता है. आज मैं यही बात आपसे शेर करती हूँ.

मैं रोज़ी रोड्रिक्स, वाइफ ऑफ जोसेफ रोड्रिक्स, एज 32 वॉरली मे रहती हूँ. मेरे हज़्बेंड एक एलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी मे काम करते हैं. मैं भी एक छ्होटी सी सॉफ्टवेर कंपनी मे काम करती हूँ. ये बात काफ़ी साल पहले की है तब हम शहर से दूर मलाड के पास एक फ्लॅट मे रहते थे. हमारी शादी उसी फ्लॅट मे हुई थी. मीया बीवी अकेले ही उस फ्लॅट मे रहते थे. उस फ्लॅट मे हमसे ऊपर एक फॅमिली रहता था. उस फॅमिली मे एक जवान कपल थे नाम था सपना और दीपांकर. उनके कोई बच्चा नही था. साथ मे उनके ससुर जी भी रहते थे. उनकी उम्र कोई 60 साल के आस पास थी उनका नाम राज शर्मा था मैं सपना से बहुत जल्दी काफ़ी घुल मिल गयी. अक्सर वो हमारे घर आती या मैं उसके घर चली जाती थी. मैं अक्सर घर मे स्कर्ट और टी शर्ट मे रहती थी. मैं स्कर्ट के नीच छ्होटी सी एक पॅंटी पहनती थी. मगर टी शर्ट के नीचे कुच्छ नही पहनती थी. इससे मेरे बड़े बड़े बूब्स हल्की हरकत से भी उच्छल उच्छल जाते थे. मेरे निपल्स टी शर्ट के बाहर से ही सॉफ सॉफ नज़र आते थे.



सपना के ससुर का नाम मैं जानती थी. उन्हे बस शर्मा अंकल कहती थी थी. मैने महसूस किया शर्मा अंकल मुझमे कुच्छ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट लेते थे. जब भी मैं उनके सामने होती उनकी नज़रें मेरे बदन पर फिरती रहती थी. मुझे उन पर बहुत गुस्सा आता था. मैं उनकी बहू की उम्र की थी मगर फिर भी वो मुझ पर गंदी नियत रखते थे. लेकिन उनका हँसमुख और लापरवाह स्वाभाव धीरे धीरे मुझ पर असर करने लगा. धीरे धीरे मैं उनकी नज़रों से वाकिफ़ होती गयी. अब उनका मेरे बदन को घूर्ना अच्च्छा लगने लगा. मैं उनकी नज़रों को अपनी चूचियो पर या अपने स्कर्ट के नीचे से झाँकती नग्न टाँगों पर पाकर मुस्कुरा देती थी

सपना थोड़ी आलसी मक़ीला थी इसलिए कहीं से कुच्छ भी मंगवाना हो तो अक्सर अपने ससुर जी को ही भेजती थी. मेरे घर भी अक्सर उसके ससुर जी ही आते थे. वो हमेशा मेरे संग ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त गुजारने की कोशिश मे रहते थे. उनकी नज़रे हमेशा मेरी टी शर्ट के गले से झाँकते बूब्स पर रहती थी. मैं पहनावे के मामले मे थोड़ा बेफ़िक्र ही रहती थी. अब जब जीसस ने इतना सेक्सी शरीर दिया है तो थोड़ा बहुत एक्सपोज़ करने मे क्या हर्ज़ है. वो मुझे अक्सर छुने की भी कोशिश करते थे लेकिन मैं उन्हे ज़्यादा लिफ्ट नही देती थी.

अब असल घटना पर आया जाय. अचानक खबर आई कि मम्मी की तबीयत खराब है. मैं अपने मैके ईन्दोर चली आई. उन दिनो मोबाइल नही था और टेलिफोन भी बहुत कम लोगों के पास होते थे. कुच्छ दिन रह कर मैं वापस मुंबई आ गयी. मैने जोसेफ को पहले से कोई सूचना नही दी थी क्योंकि हमारे घर मे टेलिफोन नही था. मैं शाम को अपने फ्लॅट मे पहुँची तो पाया की दरवाजे पर ताला लगा हुआ है. वहीं दरवाजे के बाहर समान रख कर जोसेफ का इंतेज़ार करने लगी. जोसेफ शाम 8.0 बजे तक घर आ जाता था. लेकिन जब 9.0 हो गये तो मुझे चिंता सताने लगी. फ्लॅट मे ज़्यादा किसी से जान पहचान नही थी. मैने सपना से पूच्छने का विचार किया. मैने उपर जा कर सपना के घर की कल्लबेल्ल बजाई. अंदर से टी.वी. चलने की आवाज़ आ रही थी. कुच्छ देर बाद दरवाजा खुला. मैने देखा सामने शर्मा जी खड़े हैं.

" नमस्ते….वो.. सपना है क्या?" मैने पूछा.

" सपना तो दीपांकर के साथ हफ्ते भर के लिए गोआ गयी है घूमने. वैसे तुम कब आई?"

" जी अभी कुच्छ देर पहले. घर पर ताला लगा है जोसेफ…?"

" जोसेफ तो गुजरात गया है अफीशियल काम से कल तक आएगा." उन्हों ने मुझे मुस्कुरा कर देखा " तुम्हे बताया नही"

" नही अंकल उनसे मेरी कोई बात ही नही हुई. वैसे मेरी प्लॅनिंग कुच्छ दिनो बाद आने की थी."

"तुम अंदर तो आओ" उन्हों ने कहा मैं असमंजस सी अपनी जगह पर खड़ी रही.

"सपना नही है तो क्या हुआ मैं तो हूँ. तुम अंदर तो आओ." कहकर उन्हों ने मेरा हाथ पकड़ कर अंदर खींचा. मैं कमरे मे आ गयी. उन्हों ने आगे बढ़ कर दरवाजे को बंद करके कुण्डी लगा दी. मैने झिझकते हुए ड्रॉयिंग रूम मे कदम रखा. जैसे ही सेंटर टेबल पर नज़र पड़ी मैं थम गयी. सेंटर टेबल पर बियर की बॉटल्स रखी हुई थी. आस पास स्नॅक्स बिखरे पड़े थे. एक सिंगल सोफे पर कामदार अंकल बैठे हुए थे. उनके एक हाथ मे बियर का ग्लास था. जिसमे से वो हल्की हल्की चुस्कियाँ ले रहे थे. मैं उस महॉल को देख कर चौंक गयी. शर्मा अंकल ने मेरी झिझक को समझा और मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा,

" अरे घबराने की क्या बात है. आज इंडिया- पाकिस्तान मॅच चल रहा है ना. सो हम दोनो दोस्त मॅच को एंजाय कर रहे थे." मैने सामने देखा टीवी पर इंडिया पाकिस्तान का मॅच चल रहा था. मेरी समझ मे नही आ रहा था कि मेरा क्या करना उचित होगा. यहाँ इनके बीच बैठना या किसी होटेल मे जाकर ठहरना. घर के दरवाजे पर इंटरलॉक था इसलिए तोडा भी नही जा सकता था. मैं वहीं सोफे पर बैठ गयी. मैने सोचा मेरे अलावा दोनो आदमी बुजुर्ग हैं इनसे डरने की क्या ज़रूरत है. लेकिन रात भर रुकने की बात जहाँ आती है तो एक बार सोचना ही पड़ता है. मैं इन्ही विचारों मे गुम्सुम बैठी थी लेकिन उन्हों ने मानो मेरे मन मे चल रहे उथल पुथल को भाँप लिया था.

"क्या सोच रही हो? कहीं और रुकने से अच्च्छा है रात को तुम यहीं रुक जाओ. तुम सपना और दीपांकर के बेड रूम मे रुक जाना मैं अपने कमरे मे सो जाउन्गा. भाई मैं तुम्हे काट नही लूँगा. अब तो बूढ़ा हो गया हूँ. हाहाहा.."

उनके इस तरह बोलने से महॉल थोड़ा हल्का हुआ. मैने भी सोचा कि मैं बेवजह एक बुजुर्ग आदमी पर शक कर रही हूँ. मैं उनके साथ बैठ कर मॅच देखने लगी. पाकिस्तान बॅटिंग कर रही थी. खेल काफ़ी काँटे का था इसलिए रोमांच पूरा था. मैने देखा दोनो बीच बीच मे कनखियों से स्कर्ट से बाहर झाँकति मेरी गोरी टाँगों को और टी शर्ट से उभरे हुए मेरे बूब्स पर नज़र डाल रहे थे. पहले पहले मुझे कुच्छ शर्म आई लेकिन फिर मैने इस ओर गौर करना छ्चोड़ दिया. मैं सामने टीवी पर चल रहे खेल का मज़ा ले रही थी. जैसे ही कोई आउत होता हम सब खुशी से उच्छल पड़ते और हर शॉट पर गलियाँ देने लगते. ये सब इंडिया पाकिस्तान मॅच का एक कामन सीन रहता है. हर बॉल के साथ लगता है सारे हिन्दुस्तानी खेल रहे हों.



कुच्छ देर बाद शर्मा अंकल ने पूचछा, "रोज़ी तुम कुच्छ लोगि? बियर या जिन…?"

मैने ना मे सिर हिलाया लेकिन बार बार रिक्वेस्ट करने पर मैने कहा, "बियर चल जाएगी लागर"

उन्हों ने एक बॉटल ओपन कर के मेरे लिए भी एक ग्लास भरा फिर हम "चियर्स" बोल कर अपने अपने ग्लास से सीप करने लगे.

शर्मा अंकल ने दीवार पर लगी घड़ी पर निगाह डालते हुए कहा" अब कुछ खाने पीने का इंतेज़ाम किया जाय"उन्होने मेरे चेहरे पर निगाह गढ़ाते हुए कहा " तुमने शाम को कुच्छ खाया या नही?"

मैं उनके इस प्रश्न पर हड़बड़ा गयी, " हां मैने खा लिया था."

" तुम जब झूठ बोलती हो तो बहुत अच्छि लगती हो. कंदर पास के रिट्ज़ होटेल से तीन खाने का ऑर्डर देदे और बोल कि जल्दी भेज देगा" कंदर अंकल ने फोन करके. खाना मंगवा लिया.

एक ग्लास के बाद दूसरा ग्लास भरते गये और मैं उन्हे सीप कर कर के ख़तम करती गयी. धीरे धीरे बियर का नशा नज़र आने लगा. मैं भी उन लोगों के साथ ही चीख चिल्ला रही थी, तालियाँ बजा रही थी.

कुच्छ देर बाद खाना आ गया . हमने उठकर खाना खाया फिर वापस आकर सोफे पर बैठ गये. शर्मा अंकल और कामदार अंकल अब बड़े वाले सोफे पर बैठे. वो सोफा टीवी के ठीक सामने रखा हुआ था. मैं दूसरे सोफे पर बैठने लगी तो शर्मा अंकल ने मुझे रोक दिया

"अरे वहाँ क्यों बैठ रही हो. यहीं पर आजा यहाँ से अच्च्छा दिखेगा. दोनो सोफे के दोनो किनारों पर सरक कर मेरे लिए बीच मे जगह बना दिए. मैं दोनो के बीच आकर बैठ गयी. फिर हम मॅच देखने लगे. वो दोनो वापस बियर लेने लगे. मैं बस उनका साथ दे रही थी. बातों बातों मे आज मैने ज़्यादा ले लिया था इसलिए अब मैं कंट्रोल कर रही थी जिससे कहीं बहक ना जाउ. आप सब तो जानते ही होंगे कि इंडिया-पाकिस्तान के बीच मॅच हो तो कैसा महॉल रहता है. शारजाह के मैदान मे मॅच हो रहा था. इंडियन कॅप्टन था अज़हरुद्दीन.

" आज इंडियन्स जीतना ही नही चाहते हैं." शर्मा जी ने कहा

" ये ऐसे खेल रहे हैं जैसे पहले से सट्टेबाज़ी कर रखी हो." कंदर अंकल ने कहा.

"आप लोग इस तरह क्यों बोल रहे हैं? देखना इंडिया जीतेगी." मैने कहा

" हो ही नही सकता. शर्त लगा लो इंडिया हार कर रहेगी" शर्मा अंकल ने कहा.

तभी एक और छक्का लगा. " देखा…देखा….. " शर्मा अंकल ने मेरी पीठ पर एक हल्के से धौल जमाया " मेरी बात मानो ये सब मिले हुए हैं."

खेल आगे बढ़ने लगा. तभी एक विकेट गिरा तो हम तीनो उच्छल पड़े. मैं खुशी से शर्मा अंकल की जाँघ पर एक ज़ोर की थपकी दे कर बोली "देखा अंकल? आज इनको कोई नही बचा सकता. इनसे ये स्कोर बन ही नही सकता." मैं इसके बाद वापस खेल देखने मे बिज़ी हो गयी. मैं भूल गयी थी कि मेरा हाथ अभी भी शर्मा अंकल की जांघों पर ही पड़ा हुआ है. शर्मा अंकल की निगाहें बार बार मेरी हथेली पर पड़ रही थी. उन्हों ने सोचा शायद मैं जान बूझ कर ऐसा कर रही हूँ. उन्हों ने भी बात करते करते अपना एक हाथ मेरा स्कर्ट जहाँ ख़त्म हो रहा था वहाँ पर मेरी नग्न टांग पर रख दिया. मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ और मैने जल्दी से अपना हाथ उनकी जांघों पर से हटा दिया. उनका हाथ मेरी टाँगों पर रखा हुआ था. कंदार अंकल ने मेरे कंधे पर अपनी बाँह रख दी. मुझे भी कुच्छ कुच्छ मज़ा आने लगा.

अब लास्ट तीन ओवर बचे हुए थे. खेल काफ़ी टक्कर का हो गया था. एक तरफ जावेद मियाँदाद खेल रहा था. लेकिन उसे भी जैसे इंडियन बौलर्स ने बाँध कर रख दिया. खेल के हर बॉल के साथ हम उच्छल पड़ते. या तो खुशियाँ मानते या बेबसी मे साँसें छ्चोड़ते हुए. उच्छल कूद मे कई बार उनकी कोहनियाँ मेरे बूब्स से टकराई. पहले तो मैने सोचा शायद ग़लती से उनकी कोहनी मेरे बूब्स को च्छू गयी होगी लेकिन जब ये ग़लती बार बार होने लगी तो उनके ग़लत इरादे की भनक लगी.

आख़िरी ओवर आ गया अज़हर ने बॉल चेतन शर्मा को पकड़ाई.

" इसको लास्ट ओवर काफ़ी सोच समझ कर करना होगा सामने मियाँदाद खेल रहा है."

" अरे अंकल देखना ये मियाँदाद की हालत कैसे खराब करता है." मैने कहा

"नही जीत सकती इंडिया की टीम नही जीत सकती लिख के लेलो मुझसे. आज पाकिस्तान के जीतने पर मैं शर्त लगा सकता हूँ." शर्मा अंकल ने कहा.

" और मैं भी शर्त लगा सकती हूँ की इंडिया ही जीतेगी" मैने कहा. आख़िरी दो बॉल बचने थे खेल पूरी तरह इंडिया के फेवर मे चला गया था.

"मियाँदाद कुच्छ भी कर सकता है. कुच्छ भी. इसे आउट नही कर सके तो कुच्छ भी हो सकता है." शर्मा अंकल ने फिर जोश मे कहा.
क्रमशः.........



Buddhon me bhi  dam hai --1
Kuchh ghatnayen aisi hoti hain jisme admi khudbakhud khinchta chala jata hai. Chahe wo chahe chahe na chahe. Admi kitna bhi samajhdaar ho lekin kabhi kabhi uski samajhdari use le doobti hai. Aisi hi ek ghatna mere saath hui thi. Jise aj tak mere alawa koi nahi janta hai. Aaj mai yahi baat apse share karti hoon.

Mai Rosy Rodriks, wife of Joseph Rodriks, age 32 Worli me rahti hoon. Mere husband ek Electronics company me kaam karte hain. Mai bhi ek chhoti si software company me kaam karti hoon. Ye baat kafi saal pahle ki hai tub hum shahar se door Malad ke paas ek flat me rahte the. Humari shaadi usi flat me hui thi. Mia biwi akele hi us flat me rahte the. Us flat me humse oopar ek family rahta tha. Us family me ek jawan couple the naam tha Sapna aur Dipankar. unke koi bachcha nahi tha. sath me unke sasur ji bhi rahte the. unki umr koi 60 saal ke aas paas thi. mai Sapna se bahut jaldi kafi ghul mil gayee. aksar wo hamare ghar ati ya mai uske ghar chalei jati thi. mai aksar ghar me skirt aur T shirt me rahti thi. mai skirt ke neech chhoti si ek panti pahanti thi. magar T shirt ke neeche kuchh nahi pahanti thi. isse mere bade bade boobs halki harkat se bhi uchhal uchhal jate the. mere nipples T shirt ke bahar se hi saaf saaf najar ate the.



Sapna ka sasur ka naam mai janti nahi thi. unhe bus Sharma uncle ke naam se hi janti thi. Maine mahsoos kiya Sharma uncle mujhme kuchh jyada hi interest lete the. jab bhi mai unke samne hoti unki najren mere badan par firti rahti thi. mujhe un par bahut gussa ata tha. mai unke bahu ki umr ki thi magar fir bhi wo mujh par gandi niyat rakhte the. Lekin unka hansmukh aur laparwah swabhaw dheere dheere mujh par asar karne laga. dheere dheere mai unki najron ke wakif hoti gayee. ab unka mere badan ko ghoorna achchha lagne laga. mai unki najron ko apni chhatiyon par ya apne skirt ke neeche se jhankti nagn tangon par pakar muskura deti thi

Sapna thodi aalsi maqhila thi isliye kahin se kuchh bhi mangwana ho to aksar apne sasur ji ko hi bhejti thi. Mere ghar bhi aksar uske sasur ji hi ate the. Wo hamesha mere sang jyada se jyada waqt gujarne ki koshish me rahte the. Unki najre hamesha mere T shirt ke gale se jhankte boobs par rahti thi. Mai pahnawe ke mamle me thoda befikr hi rahti thi. Ab jab Jesus ne itna sexy sharer diya hai to thoda bahut expose karne me kya harz hai. Wo mujhe aksar chhune ki bhi koshish karta tha lekin mai unhe jyada lift nahi deti thi.

Ab asal ghatna par aya jay. Achanak khabar ayee ki mummy ki tabiyat kharab hai. Mai apne maike Indore chali ayee. Un dino mobile nahi tha aur telephone bhi bahut kam logon ke paas hote the. Kuchh din rah kar mai wapas Mumbai a gayee. maine Joseph ko pahle se koi suchna nahi di thi kyonki humare ghar me telephone nahi tha. Mai Sham ko apne flat me pahunchi to paya ki darwaje par tala laga hua hai. Wahin darwaje ke bahar saman rakh kar Joseph ka intezar karne lagi. Joseph sham 8.0 pm tak ghar a jata tha. Lekin jab 9.0 pm ho gaye to mujhe chinta satane lagi. flat me jyada kisi se jaan pahchan nahi thi. Maine Sapna se poochhne ka vichar kiya. Maine upar ja kar Sapna ke ghar ki callbell bajai. Andar se T.V. chalne ki awaj a rahi thi. Kuchh der baad darwaja khula. Maine dekha samne Sharma ji khade hain.

" Namaste….wo.. Sapna hai kya?" maine poochha.

" Sapna to Dipankar ke saath hafte bhar ke liye Goa gayee hai ghoomne. Waise tum kab ayee?"

" ji abhi kuchh der pahle. Ghar par tala laga hai Joseph…?"

" Joseph to Gujarat gaya hai official kaam se kal tak ayega." Unhon ne mujhe muskura kar dekha " tumhe bataya nahi"

" nahi uncle unse meri koi bat hi nahi hui. Waise meri planning kuchh dino bad ane kit hi."

"tum andar to aao" unhon ne kaha mai asmanjas si apni jagah par khadi rahi.

"Sapna nahi hai to kya hua mai to hoon. Tum andar to ao." Kahkar unhon ne mera hath pakad kar andar kheencha. Mai kamre me a gayee. unhon ne age badh kar darwaje ko band karke kundi laga di. Mane jhijhakte huye drawing room me kadam rakha. Jaise hi center table par najar padi mai tham gayee. Centre table par Beer ki bottles rakhi hui thi. Aas paas snacks bikhre pade the. Ek single sofe par Kamdar uncle baithe huye the. Unke ek hath me beer ka glass tha. Jisme se wo halki halki chuskiyan le rahe the. Mai us mahol ko dekh kar chaunk gayee. Sharma uncle ne meri jhijhak ko samjha aur mere kandhe par hath rakhte huye kaha,

" are ghabrane ki kya baat hai. Aaj India- Pakistan match chal raha hai na. so hum dono dost match ko enjoy kar rahe the." Maine samne dekha TV par India Pakistan ka match chal raha tha. Meri samajh me nahi a raha tha ki mera kya karma uchit hoga. Yahan inke beech baithna ya kisi hotel me jakar thaharna. Ghar ke darwaje par interlock tha isliye toda bhi nahi ja sakta tha. Mai waheen sofe par baith gayee. maine socha mere alawa dono admi bujurg hain inse darne ki kya jaroorat hai. Lekin raat bhar rukne ki baat jahan ati hai to ek baar sochna hi padta hai. Mai inhi vicharon me gumsum baithi thi lekin unhon ne mano mere man me chal rahe uthal puthal ko bhaanp liya tha.

"kya soch rahi ho? Kahin aur rukne se achchha hai rat ko tum yaheen ruk jao. Tum Sapna aur Dipankar ke bed room me ruk jana mai apne kamre me so jaunga. Bhai mai tumhe kat nahi loonga. Ab to boodha ho gaya hoon. Hahaha.."

unke is tarah bolne se mahol thoda halka hua. Maine bhi socha ki mai bewajah ek bujurg admi par shak kar rahi hoon. Mai unke saath baith kar match dekhne lagi. Pakistan batting kar rahi thi. Khel kafi kante ka tha isliye romanch poora tha. Maine dekha dono beech beech me kankhiyon se skirt se bahar jhankti meri gori tangon ko aur T shirt se ubhre huye mere boobs par najar daal rahe the. Pahle pahle mujhe Kuchh Sharm ayee lekin fir maine is or gaur karma chhod diya. Mai samne TV par chal rahe khel ka maja le rahi thi. Jaise hi koi aut hota hum sub khushi se uchhal padte aur har shot par galiyan dene lagte. Ye sab India Pakistan match ka ek common scene rahta hai. Har ball ke sath lagta hai sare Hindustani khel rahe hon.



Kuchh der baad Sharma uncle ne poochha, "Rosy tum kuchh logi? Beer ya Gin…?"

Maine na me sir hilaya lekin bar bar request karne par maine kaha, "beer chal jayegi lager"

Unhon ne ek bottle open kar ke mere liye bhi ek glass bhara fir hum "cheers" bol kar apne apne glass se sip karne lage.

Sharma uncle ne deewar par lagi ghadi par nigah dalte huye kaha" Ab kutchh khane peene ka intezam kiya jay"unhone mere chehre par nigah gadate huye kaha " tumne shaam ko kuchh khaya ya nahi?"

Mai unke is prashn par hadbada gayee, " haan maine kha liya tha."

" tum jab jhuth bolti ho to bahut achchhi lagti ho. Kamdar paas ke Ritz Hotel se teen Khane ka order dede aur bol ki jaldi bhej dega" Kamdar uncle ne phone karke. Khana mangwa liya.

Ek glass ke baad doosra glass bharte gaye aur mai unhe sip kar kar ke khatam kartu gayee. Dheere dheere beer ka nasha najar ane laga. Mai bhi un logon ke saath hi cheekh chilla rahi thi, taliyan baja rahi thi.

Kuchh der baad khana a gaya . Hum uthkar kahana khaye fir wapas akar sofe par baith gaye. Sharma uncle aur Kamdar uncle ab bade wale sofe par baithe. Wo sofa TV ke theek samne rakha hua tha. Mai doosre sofe par baithne lagi to Sharma uncle ne mujhe rok diya

"are wahan kyon baith rahi ho. yahin par aja yahan se achchha dikhega. Dono sofe ke dono kinaron par sarak kar mere liye beech me jagah bana diye. Mai dono ke beech akar baith gayee. fir hum match dekhne lage. Wo dono wapas beer lene lage. Mai bus unka saath de rahi thi. Baton baton me aaj maine jyada le liya tha isliye ab mai control kar rahi thi jisse kahin bahak na jaun. Aap sab to jante hi honge ki India-Pakistan ke beech match ho to kaisa mahol rahta hai. Sharjah ke maidan me match ho raha tha. Indian captain tha Azharuddin.

" Aaj Indians jeetna hi nahi chahte hain." Sharma ji ne kaha

" ye aise khel rahe hain jaise pahle se sattebaji kar rakhi ho." Kamdar uncle ne kaha.

"aap log is tarah kyon bol rahe hain? Dekhna India jeetegi." Maine kaha

" Ho hi nahi sakta. Shart lagalo India har kar rahegi" Sharma uncle ne kaha.

Tabhi ek aur chhakka laga. " dekha…dekha….. " Sharma uncle ne meri peeth par ek halke se dhaul jamaya " meri baat mano ye sab mile huye hain."

Khel age badhne laga. Tabhi ek wicket gira to hum teeno uchhal pade. Mai khushi se Sharma uncle ki jangh par ek jor ki thapki de kar boli "dekha uncle? Aaj inko koi nahi bacha sakta. Inse ye score ban hi nahi sakta." Mai iske baad wapas khel dekhne me busy ho gayi. Mai bhul gayee thi ki mera hath abhi bhi Sharma uncle ki janghon par hi pada hua hai. Sharma uncle ki nigahen bar bar meri hatheli par pad rahi thi. Unhon ne socha shayad mai jaan boojh kar aisa kar rahi hoon. Unhon neb hi baat karte karte apna ek hath mera skirt jahan khatm ho raha tha wahan par meri nagn tang par rakh diya. Mujhe apni galti ka ahsaas hua aur maine jaldi se apna hath unki janghon par se hata diya. Unka hath meri tangon par rakha hua tha. Kamdaar uncle ne mere kandhe par apni banh rakh di. Mujhe bhi kuchh kuchh maja ane laga.

Ab last teen over bache huye the. Khel kafi takkar ka ho gaya tha. Ek taraf Javed Miyandad khel raha tha. Lekin use bhi jaise Indian Bowlers ne bandh kar rakh diya. Khel ke har ball ke sath hum uchhal padte. Ya to khushiyan manate ya bebasi me sansen chhodte huye. Uchhal kood me kai baar unki kohniyan mere boobs se takrai. Pahle to maine socha shayad galti se unki kohni mere boobs ko chhu gayi hogi lekin jab ye galt bar bar hone lagi to unke galat iraade ki bhanak lagi.

Akhiri over a gaya Azhar ne ball Chetan Sharma ko pakdai.

" Isko last over kafi soch samajh kar karma hoga samne Miandad khel raha hai."

" Are uncle dekhna ye miandad ki halat kaise kharab karta hai." Maine kaha

"nahi jeet sakti India ki team nahi jeet sakti likh ke lelo mujhse. Aaj Pakistan ke jeetne par mai shart laga sakta hoon." Sharma uncle ne kaha.

" aur mai bhi shart laga sakti hoon ki India hi jeetegi" maine kaha. Akhiri do ball bachne the khel poori tarah India ke favour me chala gaya tha.

"Miandad kuchh bhi kar sakta hai. Kuchh bhi. Ise out nahi kar sake to kuchh bhi ho sakta hai." Sharma uncle ne fir josh me kaha.
kramashah.........





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Posted By .....raj..... to राज शर्मा की कामुक कहानिया at 8/12/2011 01:31:00 AM




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