गाओं की चंदा--1
कैसे हो आप सब?? दोस्तो हाजिर हू एक नई कहानी गाओं की चंदा के साथ दोस्तो
वैसे तो आपको मेरी सारी कहानिया पसंद आती हैं लेकिन ये कहानी बहुत मस्त
है आप अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर देना आपका दोस्त राज शर्मा
बात तब की है जब मैं 11थ पास कर चुका था और गर्मी की च्छुतटियाँ चल रही
थी… 1992 की बात है तब कंप्यूटर वागरह होते नही थे जो मैं कोई कंप्यूटर
कोर्स वागरह करने लगता.. तो फुल च्छुतटियाँ चल रही थी… रूपी भाभी भैया के
साथ लखनऊ शिफ्ट हो चुकी थी और मैं अपने लंड को सहलाता अकेला रह गया था…
रूपी भाभी की एक बात मैने गाँठ बाँध ली थी कि किसी माल को मेरा मतलब चूत
को कभी अपने हाथ से नही निकालूँगा..
कोई कोमल हाथ या चूत ही यूज़ करूँगा इसके लिए…
हा तो मैं खाली था और दिन भर वीडियो गेम्स मे लगा रहता था.. तभी डॅड ने
शायद चिड के ये हुकाँ सुना दिया कि मुझे 2 महीने के लिए गाओं जाना पड़ेगा
और वाहा अपने पुराने घर और खेती की देखभाल करनी होगी.. क्यूकी गाओं वाले
चाचा जी 2 महीने के लिए काम से मुंबई जा रहे थे.. वैसे खेती की देख भाल
करने के लिए वाहा आदमी थे पर घर की देख रेख करनी थी.. मुझे गाओं जाना कभी
भी पसंद नही था क्यूकी वाहा कोई चीज़ नही थी.. कच्चे मकान, कच्ची सड़के,
गंदा सा लेटरीन बाथरूम जिसमे मैं घुस भी नही पाता था और मजबूरन मुझे सुबह
खेतो मे जाना पड़ता था और नहाने के लिए कुएँ पे या गाओं के बाहर नदी पे
जाना पड़ता था…
मन तो बिल्कुल नही था पर बाप से पंगा कोन लेता.. पॉकेट्मोनी का सवाल था..
जो गाओं मे और ज़्यादा मिलने वाली थी.. सो मेरा समान पॅक कर दिया गया… और
दो दिन बाद ही मैं गाओं मे था… चाचा जी (पापा के) मुझे देख के बहुत खुश
हुए.. उन्हे 2-3 दिन मे मुंबई के लिए निकलना था क्यूकी उनके बच्चे वही
रहते थे और उनको पोता हुआ था.. इसलिए वो चाची जी के साथ 2 महीने के लिए
वाहा जा रहे थे ताकि अपनी बहू की देखभाल कर सके.. उसका बड़ा ऑपरेशन हुआ
था..
गाओं मे मेरा पहला ही दिन बड़ा बर्बाद सा रहा.. थकान के कारण मे 9 बजे तक
सोता रहा.. उठ के लेटरीन के लिए गया तो देखा कच्ची लेटरीन पूरी भरी पड़ी
थी और जमादार 11 बजे से पहले आने वाला नही था.. मेरी तो वाट लग गयी करू
तो क्या करू दिन के इस समय तो मैं खुले मे भी नही जा सकता था..
किसी तरह 11 बजे तक का वेट किया जमादार आ के गया तब मैं फ्रेश हो पाया.
अब नहाने की प्राब्लम थी.. मुझसे अंडरवेर वागरह पहन के नहाया नही जाता था
और अगर अंगोछा (लाइट टवल) पहन के नहाता तो मुझे मालूम था कि मेरा लंड
सबको दिख जाना था क्यूकी वाहा औरतें भी अक्सर कुएँ पे ही नहा लेती थी..
वाहा एक खास बात ज़रूर थी.. औरतें बडो का बहुत सम्मान करती थी.. सबके सिर
पर हर समय पल्लू रहता था गर्देन तक उसके बाद चाहे ब्लाउस के नीचे चोली
पहनी हो या नही कोई फ़र्क नही पड़ता.. मैं कुएँ पे गया पर वाहा दो औरतों
को देखा तो वापस आ गया.
चाचा जी बोले खेत पे चले जाओ ट्यूबिवेल मे नहा लेना.. मैं ट्यूबिवेल पे
गया वाहा उस समय कोई नही था. मैने ट्यूबिवेल ऑन किया और सारे कपड़े उतार
के होदि मे कूद पड़ा.. पर ट्यूबिवेल क़ी आवाज़ सुनके कुछ लोग वाहा और चले
आए.. वैसे उन्होने कुछ कहा तो नही पर उनके सामने नंगा नहाते हुए मुझे
बहुत शरम आई.. मैने अंडरवेर मुंडेर पे से उठा के पानी की होद मे ही पहना
और घर चला आया फिर कभी वाहा ना नहाने का सोच के…
शाम को गाओं मे घूमते फिरते मेरी दोस्ती कई लड़के लड़कियो से हो गयी.. जो
सब वाहा ही रहते थे और गये-भेँसो को चराते या खेत पे काम करते थे..
ज़्यादातर लड़के खेतो पे काम करते और लड़कियाँ पशुओं को चराने ले जाया
करती थी… 2-4 बड़ी क्यूट सी लड़किया भी थी वहाँ जो मुझे शहरी होने की वजह
से घूर घूर के देख रही थी..
खेर इस दिन से सबक ले के मैं अगले दिन सुबह सवेरे ही डिब्बे मे पानी ले
के खेत की तरफ चल दिया… पर ये क्या जिधर भी मैं जाता वाहा पहले से ही कोई
ना कोई बैठा मिल जाता.. खेर एक जगह खाली और सॉफ देख के मैं पेंट उतार के
बैठ गया.. तभी वाहा 2 औरतें आ गयी.. "अरे ये तो वही बबुआ है जो शहर से
आया है.." कहते हुए वो मेरे करीब ही बैठ गयी अपने पेटीकोत उठा के.. पल्लू
उनके मूह पे था तो मेरे उनको पहचानने का सवाल ही नही था.. और हालत ऐसी थी
कि मैं वाहा से उठ के भी नही जा सकता था.. मेरी तो उपेर की उपेर और नीचे
की नीचे रह गयी थी.. जबकि वो मज़े से बातें भी करती जा रही थी और हागती
भी जा रही थी.. वो मेरे बराबर से बैठी थी तो मैं उनकी तरफ देख भी नही पा
रहा था.. हिम्मत करके मैने पुछा आपको शरम नही आती ऐसे लेटरीन करते हुए..
उनमे से एक बोली.." नही बबुआ, शरम कैसी ये काम तो सबको करना ही होता है
और गाओं मे सब सवेरे ही निकालते हैं तो रोज़ कोई ना कोई मिल ही जाता है.
इसमे शरमाना कैसा.. तुम्हे शरम आ रही है क्या??" मैं कुछ नही बोला..
उन्होने खुद को धोया और चली गयी… फिर मैं भी फ्रेश हो के घर आ गया…
अब बारी थी नहाने की.. मैने सोच लिया था कि मैं नदी पे जाया करूँगा..
वाहा ठीक रहेगा और मेरी स्विम्मिंग की प्रॅक्टीस भी होती रहा करेगी..
अपने नहाने का समय मैने 12 बजे दोपहर का रखा जिससे किसी के वाहा होने की
कोई पॉसिबिलिटी ना हो..
तो दोपहर मे मैं नदी पे पहुचा.. मेरी उम्मीद के मुताबिक वाहा कोई नही
था.. मैने सारे कपड़े उतार के एक बड़े पत्थर पे रख के छ्होटे पत्थर से
दबा दिए.. और नदी मे कूद पड़ा.. मुझे आदत है मैं पानी के नीचे 4-5
मिनिट्स तक आसानी से रह लेता हू.. मैं तैरता हुआ काफ़ी दूर तक चला गया और
फिर पानी के नीचे नीचे ही वाहा वापस आ गया.. पानी से मूह बाहर निकाल के
कपड़ो की तरफ देखा तो होश उड़ गये वाहा कुछ पशु और एक लड़की खड़ी थी..
मैने पहचाना.. ये तो चंदा थी.. उमर 15 या 16 साल के करीब.. अच्छा सॉफ
रंग.. थोड़े थोड़े फूले हुए गाल, नाज़ुक गुलाबी होंठ, पतली लंबी गर्देन
और सीने पे ब्लाउस के नीचे 2 मोटे मोटे पोर छ्होटे से फूल. मेरा दिल धक
रह गया..तब तक उसकी नज़र भी मुझ पे पड़ गयी..
"अच्छा वीनू.. तुम नहा रहे हो यहा, मैं भी कपड़े देख के सोच रही थी कि
किसके कपड़े हो सकते हैं.. ऐसी चड्डी बनियान तो गाओं मे कोई पहनता ही नही
है.. इलास्टिक वाली.. और ना ही यहा कोई आता है नहाने, सब कुएँ पे ही
नहाते हैं. चलो अब बाहर आओ, बहुत नहा चुके.. मुझे अपने जनवरो को नहलाना
है.."
"उफ्फ फस गया" मैने सोचा. फिर कहा मैं अभी कुछ देर और तैरुन्गा. तुझे
जानवर नहलाने हैं तो नहला ले.. मैं कोई पूरी नदी थोड़े ही घेरे खड़ा हू…
धात्ट, वो बोली… पूरी नदी पर यही एक जगह है जहाँ थोड़ी आड़ है.. बाकी सब
खुला हुआ है..
तो क्या तेरे जनवरो को खुले मे नहाते हुए शरम आती है??? मैने पूछा.
अरे घोचु.. जानवरो को नही पर मुझे तो आएगी.. वो बोली
तुझे??? तुझे क्यू आएगी शरम??
ओये घोचु इनको नहलाने मे मैं भी तो भिगुंगी और मेरे पास दूसरे कपड़े भी नही हैं..
ओह्ह.. अब मैं समझा.. मैं मुस्कुराया.. उसे ऐसे देखने लगा जैसे उसको बिना
कपड़ो के ही देख रहा हू.
क्या देख रहे हो?? अब समझ गये हो तो चलो बाहर निकलो और फूटो यहा से…
तू यहा रोज़ आती है क्या?? मैने पुच्छ लिया.
हां, आती तो रोज़ ही हू आज थोड़ी देर हो गयी.. ]
कितनी देर हो गयी ??
यही कोई आधा घंटा..!!
ओह्ह तो ये भी रोज़ 12 बजे ही आती है.. पटाना पड़ेगा इसे…मैने सोचा.
अब जाओ ना..क्या सोच रहे हो??? उसकी आवाज़ से मेरी सोच टूटी…
जाता हू चंदा रानी.. पर पहले तू जा और 2 मिनट के बाद वापस आ..
क्यू???? मेरे सामने शरम आती है क्या बाहर आते हुए?
मैं मुस्कुराया, "मुझे तो नही आती पर मैं बाहर आ गया तेरे सामने तो तुझे
शरम ज़रूर आएगी.." समझी??
अरे!! तो क्या अंगोछा भी नही बाँधा तुमने???
नही मैं अंगोछा नही पहनता.. अंडरवेर के उपेर पाजामा पहनता हू…
क्या?? क्या के उपेर पाजामा पहनते हो??
धात्ट तेरे की… उधर देख पत्थर पे.. क्या रखा है… उसने टीशर्ट उठाई ये तो
एंगलिस बनियान है.. पाजामा उठाया., ये पाजामा है फिर अंडरवेर उठाया.. ये
तो इंग्लीश चड्डी है..
इंग्लीश चड्डी नही अंडरवेर है.. अब रख दे और जा, मेरे पास इनके अलावा और
कोई कपड़ा नही है.. तोलिया भी नही लाया हू..
अब वो शरमाई और पत्थर के पीछे हो गयी.. मैने 1 मिनट तक देखा.. वो नज़र
नही आई तो मैं बाहर आ गया.. सूरज बिल्कुल सिर पे था पर नदी किनारे की हवा
शरीर को बहुत अच्छी लग रही थी..
मैने पत्थर के नीचे आके अपना अंडरवेर उठाना चाहा तभी मुझे उपेर से एक
परछाई दिखाई दी.. मैं चोका पर फिर समझ गया कि वो चंदा पत्थर के उपेर से
मुझे नंगा देखने के लिए झाँक रही है..
मैने भी मज़ा लेने का सोचा.. मेरा लंड उठान पे था… मैने सीधा खड़ा हो के
हल्के से उसे सहलाया.. वो और तन्तनाने लगा…मैने पूरे शरीर पे इस तरह हाथ
फेरा जैसे पानी सूखा रहा हू… फिर हाथो से ही बाल झाडे…अपने लंड को पकड़
के 2-3 झटके दिए जैसे पानी हटा रहा हू और फिर अंडरवेर उठा के पहनने लगा.
फिर टी-शर्ट और पाजामा पहन के जैसे ही मैने आवज़ दी. चंदा.. आ जा मैं जा
रहा हू. वो फॉरन सामने आ गयी.. उसकी छातियाँ बड़ी तेज़ी से उपेर नीचे हो
रही थी और आखें लाल हो रही थी..
मैने मज़ाक किया, कही से दौड़ की आ रही है क्या??? वो कुछ नही बोली और
मुझे घूरती रही…
दोस्तो कहानी अभी बाकी है इंतजार कीजिए अगले पार्ट का आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः.
Gaon ki Chanda--1
Kaise ho tum sab?? Bahut saal beet gaye. Jab maine apni aur Roopi
Bhabhi ki story Mera First Anubhav likhi thi… Sorry aaj tak use
complete nahi kar paya. Aaj itne saalo ke baad likhne betha hu to
sochta hu ki vahi se start karu ya fir ek nayi aur mazedar story
sunau???
Tay kar liya maine.. nayi story.. Roopi bhabhi ko fir poora karonga vo
bahut lambi daastan hai..
To start karta hu…
Baat tab ki hai jab mai 11th pass kar chuka tha aur garmi ki
chhuttiyan chal rahi thi… 1992 ki baat hai tab computer vagarah hote
nahi the jo mai koi computer course vagarah karne lagta.. to full
chhuttiyan chal rahi thi… Roopi Bhabhi bhaisahab ke sath Lucknow shift
ho chuki thi aur mai apne land ko sehlata akela reh gaya tha… Roopi
Bhabhi k eek baat maine ganth bandh lit hi ki se maal kabhi apne hath
se nahi nikalunga..
Koi komal hath ya choot hi use karunga iske liye…
Haa to mai khali tha aur din bhar video games me laga rehta tha..
Tabhi dad ne shayad chhid ke ye hokum suna diya ki mujhe 2 mahine ke
liye gaon jana padega aur vaha apne purane ghar aur kheti ki dekhbhal
karni hogi.. kyuki gaon vale chacha ji 2 mahine ke liye kaam se Mumbai
jaa rahe the.. vaise kheti ki dekh bhal karne ke liye vaha aadmi the
par gha ki dekh rekh karni thi.. Mujhe gaon jana kabhi bhi pasand nahi
tha kyuki vaha koi chiz nahi thi.. kachche makan, kachchi sadke, ganda
sa letrin bathroom jisme mai ghus bhi nahi pata tha aur majbooran
mujhe subah kheto me jana padta tha aur nahane ke liye kuen pe ya gaon
ke bahar nadi pe jana padta tha…
Man to bilkul nahi tha par baap se panga koan leta.. pocketmoney ka
sawal tha.. jo gaon me aur jyada milne wali thi.. So mera saman pack
kar diya gaya… Aur do din baad hi mai gaon me tha… Chacha ji (papa ke)
mujhe dekh ke bahut khush hue.. unhe 2-3 din me Mumbai ke liye nikalna
tha kyuki unke bachche vahi rehte the aur unko pota hua tha.. isliye
vo chachi ji ke sath 2 mahine ke liye vaha ja rahe the taki apni bahu
ki dekhbhal kar sake.. uska bada operation hua tha..
Gaon me mera pehla hi din bada barbad sa raha.. Thakan ke karan me 9
baje tak sota raha.. Uth ke letrin ke liye gaya to dekha kachchi
letrin poori bhari padi thi aur jamadar 11 baje se pehle aane wala
nahi tha.. Meri to waat lag gayi karu to kya karu din ke is samay to
mai khule me bhi nahi ja sakta tha..
Kisi tarah 11 baje tak ka wait kiya jamadar aa ke gaya tab mai fresh
ho paya. Ab nahane ki problem thi.. mujhse underwear vagarah pehan ke
naha nahi milta aur agar angocha (light Towel) pehan ke nahata to
mujhe maloom tha ki mera land sabko dikh jana tha kyuki vaha aurtein
bhi aksar kuen pe hi naha leti thi.. Vaha ek khas baat jarur thi..
Aurtein bado ka bahut samman karti thi.. sabke sir ppe har samay pallu
rehta tha garden tak uske baad chahe blouse ke niche choli pehni ho ya
nahi koi fark nahi padta.. mai kuen pe gaya par vaha do aurton ko
dekha to vapas aa gaya.
Chacha ji bole khet pe chale jao Tubewell me naha lena.. mai tubewell
pe gaya vaha us samay koi nahi tha. Maine tubewell on kiya aur sare
kapde utar ke hodi me kood pada.. par tubewell ki aawaz sunke kuch log
vaha aur chale aaye.. vaise unhonme kuch kaha to nahi par unke samne
nanga nahate hue mujhe bahut sharam aayi.. maine underwear munder pe
se utha ke pani ki hod me hi pehna aur ghar chala aaya fir kabhi vaha
na nahane ka soch ke…
Sham ko gaon me ghumte firte meri dosti kai ladke ladkiyo se ho gayi..
jo sab vaha hi rehte the aur gaye-bhenso ko charate ka ya khet pe kaam
karte the.. Jyadatar ladke kheto pe kaam karte aur ladkiye pashuon ko
charane le jaya karti thi… 2-4 badi cute si ladkiya bhi thi vahan jo
mujhe shehri hone ki vajah se ghoor ghoor ke dekh rahi thi..
Kher is din se sabak le ke mai agle din subah savere hi dibbe me pani
le ke khet ki taraf chal diya… Par ye kya jidhar bhi mai jata vaha
pehle se hi koi na koi betha mil jata.. kher ek jagah khali aur saaf
dekh ke mai pent utar ke beth gaya.. Tabhi vaha 2 aurten aa gayi..
"Are ye to vahi babua hai jo shahar se aaya hai.." kehte hue vo mere
karib hi beth gayi apne petikot utha ke.. pallu unke muh pet ha to
mere unko pehchanne ka sawal hi nahi tha.. aur halat aisi thi ki mai
vaha se uth ke bhi nahi ja sakta tha.. meri to uper ki uper aur niche
ki niche reh gayi thi.. jabki vo maje se batein bhi karti ja rahi thi
aur hagti bhi ja rahi thi.. vo mere barabar se bethi thi to mai unki
taraf dekh bhi nahi paa raha tha.. himmat karke maine puchha aapko
sharam nahi aati aise letrin karte hue.. unme se ek boli.." nahi
babua, sharam kaisi ye kaam to sabko karma hi hota hai aur gaon me sab
savere hi nikalte hain to roz koi na koi mil hi jata hai. Isme
sharmana kaisa.. Tumhe sharam aa rahi hai kya??" mai kuch nahi bola..
unhone khud ko dhoya aur chali gayi… fir mai bhi fresh ho ke ghar aa
gaya…
Ab bari thi nahane ki.. maine soch liya tha ki mai nadi pe jaya
karunga.. vaha thik rahega aur meri swimming ki practice bhi hoti raha
karegi.. Apne nahane ka samay maine 12 baje dopher ka rakha jisse kisi
ke vaha hone ki koi possibility na ho..
To dopher me mai nadi pe pahucha.. meri ummid ke mutabik vaha koi nahi
tha.. maine sare kapde utar ke ek bade patthar pe rakh ke chhote
patthar se daba diye.. aur nadi me kood pada.. mujhe aadat hai mai
pani ke niche 4-5 minutes tak aasani se reh leta hu.. mai tairta hua
kafi door tak chala gaya aur fir pani ke niche niche hi vaha vapas aa
gaya.. pani se muh bahar nikal ke kapdo ki taraf dekha to hosh udd
gaye vaha kuch pashu aur ek ladki khadi thi.. maine pehchana.. ye to
Chanda thi.. umar 15 ya 16 saal ke karib.. achha saaf rang.. thode
thode foole hue gaal, nazuk gulabi honth, patli lambi garden aur seene
pe blouse ke niche 2 mote mote por chhote se phool. Mera dil dhak reh
gaya..tab tak uski nazar bhi mujh pe pad gayi..
"Achha Vinu.. tum naha rahe ho yaha, mai bhi kapde dekh ke soch rahi
thi ki kiske kapde ho sakte hain.. aisi chaddi bniyan to gaon me koi
pehanta hi nahi hai.. ilastic wali.. aur na hi yaha koi aata hai
nahane, sab kuen pe hi nahate hain. Chalo ab bahar aao, bahut naha
chuke.. mujhe apne janwaro ko nehlana hai.."
"Uff fas gaya" maine socha. Fir kaha mai abhi kuch der aur tairunga.
Tujhe janwar nehlane hain to nehla le.. mai koi puri nadi thode hi
ghere khada hu…
Dhatt, Vo boli… Poori nadi par yahi ek jagah hai jahan thodi aad hai..
baki sab khula hua hai..
To kya tere janwaro ko khule me nahate hue sharam aati hai??? Maine poocha.
Are ghochu.. janwaro ko nahi par mujhe to aayegi.. Vo boli
Tujhe??? Tujhe kyu aayegi sharam??
Oye ghochu inko nehlane me mai bhi to bhigungi aur mere pass dusre
kapde bhi nahi hain..
Ohh.. ab mai samjha.. mai muskuraya.. use aise dekhne laga jaise usko
bina kapdo ke hi dekh raha hou.
Kya dekh rahe ho?? Ab samajh gaye ho to chalo bahar niklo aur photo yaha se…
Tu yaha roz aatio hai kya?? Maine puchh liya.
Haan, aati to roz hi hu aaj thode der ho gayi.. ]
kitni der ho gayi ??
yahi koi aadha ghanta..!!
Ohh to ye bhi roz 12 baje hi aati hai.. patana padega ise…maine socha.
Ab jao naa..kya soch rahe ho??? Uski aawaz se meri soch tooti…
Jata hu Chanda rani.. par pehle tu jaa aur 2 min ke baad vapas aa..
Kyu???? Mere samne sharam aati hai kya bahar aate hue?
Mai muskuraya, "Mujhe to nahi aati par mai baha aa gaye tere samne to
tujhe sharam jarur aayegi.." samjhi??
Are!! To kya angocha bhi nahi bandha tumne???
Nahi mai angocha nahi pehanta.. underwear ke uper pajama pehanta hu…
Kya?? Kya ke uper pajama pehante ho??
Dhatt tere ki… Udhar dekh patthar pe.. kya rakha hai… usne tshirt
uthai ye to englis baniyan hai.. Pajama uthaya., ye pajama hai fir
underwear uthaya.. ye to English chaddi hai..
English chaddi nahi underwear hai.. ab rakh de aur ja, mere pas inke
alawa aur koi kapda nahi hai.. toliya bhi nahi laya hu..
Ab vo sharmai aur patthar ke piche ho gayi.. maine 1 min tak dekha..
vo nazar nahi aayi to mai baha aa gaya.. suraj bilkul sir pe tha par
nadi kinare ki haw sharir ko bahut achhi lag rahi thi..
Maine patthar ke niche aake apna underwear uthana chaha tabhi mujhe
uper se ek parchai dikhai di.. mai choka par fir samajh gaya ki vo
Chanda patthar ke uper se mujhe nanga dekhne ke liye jhank rahi hai..
Maine bhi maza lene ka socha.. Mera land uthan pet ha… maine sidha
khada ho ke halke se use sehlaya.. vo aur tantanane laga…Maine poore
sharir pe is tarah hath fera jaise pani sukha raha hou… fir hatho se
hi baal jhade…Apne land ko pakad ke 2-3 jhatke diye jaise pani hata
raha hou aur fir underwear utha ke pehanne laga. Fir T-shirt aur
pajama pehan ke jaise hi maine aawz di. Chanda.. aa ja mai ja raha hu.
Vo foran samne aa gayi.. uski chhatiyan badi tezi se uper niche ho
rahi thi aur aakhein lal ho rahi thi..
Maine mazak kiya, Kahi se doud kea a rahi hai kya??? Vo kuch nahi boli
aur mujhe ghoorti rahi…
kramashah.
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