Wednesday, September 5, 2012

सेक्सी कहानियाँ एक अनूठा रिश्ता--1

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

एक अनूठा रिश्ता--1


नमस्ते, में सारिका सिंग अपनी दास्तान आपको सुना रही हूँ. ये मेरी पहली
ही सबमिशन होने के कारण काफ़ी ग़लतियाँ हो सकती है, पर उसे छोड़ कर
भावनाओ को समझो मेरी यही गुज़ारिश है आप सभी से.

फिलहाल मेरी उमर 34य्र्स है पर देखकर यकीन नही होगा आपको, क्यूंकी मैने
अपनी देखभाल बहुत अच्छी तरह से की है. इस उमर में भी मैं 25-28की ही लगती
हूँ, हां तोड़ा सा मोटापा ज़रूर आया है पर सही जगह पर चर्बी जमी है इसलिए
मुझे उसपर नाज़ है. मेरा फिगर अभी 38सी-28-40 है, है कि नही
लाजवाब???????

मेरी 6 साल पहले शादी हुई मिस्टर. पवन सिंग से और में इस घर मे आई. घर मे
पवन, उसके पापा मिस्टर.श्याम और मेरी सास म्र्स.कंचन इतने ही लोग थे.
मेरी सास बीमार थी, उन्हे परॅलिसिस हुआ था. हमारी शादी के 2 साल पहले
उनको ये बीमारी हुई तब से वो बिस्तार से हिल भी नही सकती यही बस यही एक
तकलीफ़ थी. पवन काफ़ी अच्छे थे दिखने में इस लिए मैने ये रिश्ता ठुकराया
नही (वैसे मैने 5-6 लड़को को ना करदी थी उनके पहेले).

हमारी शादी से मैं काफ़ी खुश थी, और यही लगता था कि पवानब भी मुझसे
संतुष्ट था. हमने अपनी सुहाग रात शिमला की हसीन वादियों में मनाई, और खुश
होकर घर लौटे. घर आने पर पवन काफ़ी चुप-चुप्से रहने लगे, थोड़े ही दिनो
में मैने उसे सुहाग रात की मेहनत रंग लाई और मैं मा बनने वाली हूँ ये खबर
उसे बताई. तब वो खुश हुआ और उसने मुझे एक हीरे का पेंडेंट तोहफे में
दिया. पर फाइयर्स उसकी खामोशी और सूना पन दिखाई देने लगा. पूछने पर वो
कुछ बताता नही था, घर में उसका बर्ताव भी कुछ ठीक नही था. ससुर जी
(मिस्टर.श्याम) और सासूजी से बात बात पर झगड़ा मोल लेता था वो.

बात यहा तक आ गयी थी कि बाप बेटे में बातचीत बंद हो गयी. दिन बीतते गये,
महीने गुज़रे अब मैं 4मैने पेट से थी तब अचानक पवन ने मुझसे कहा कि उसे
ऑफीस के काम से दुबई जाना पड़ेगा वहाँ का प्रॉजेक्ट उसके अंडर होने के
कारण वो उसे टाल नही सकता ऐसे बॉस की ऑर्डर है. मैं ने कहाँ ठीक है
सास-ससुर जी को कहकर जाते हैं हम दुबई, तब वो बोला कि मैं उसके साथ नही आ
सकती क्यूँ कि वहाँ औरतो के लिए सेफ नही. उपर से वो 6 महीने में लौट
आएगा, और उसके जाने के बारे में सासुमा और ससुर जी को ना बताया जाए. दस
दिन बाद की उसकी फ्लाइट थी, उसके जाने के दो दिन पहले मैने उसके
माता-पिता को ये खबर सुनाई. उन्होने उसे रोकने के लिए कहा पर खुद उससे
बात नही की. उनकी और मेरी बात थोड़े ही वो मानने वाला था, दो दिन बाद वो
चला गया.

जाने से पहले उसने मुझसे एक चेक़ और एक डॉक्युमेंट पर साइन ली थी, कहाँ
की दुबई में उसकी ज़रूरत है. वहाँ से उसने मुझे दो तीन बार फोन किया, अब
मैं 6 महीने पेट से थी. तब अचानक से मेरे पेट में दरद चालू हुआ और मुझे
डॉक्टर के पास ले जाना पड़ा, डॉक्टर ने कहा की अबॉर्षन करना पड़ेगा वरना
जान को ख़तरा है. इस लिए मेरा बच्चा गिराना पड़ा. ये दुख था ही और उसमे
मुझे एक खत मिला, वो भी दुबई से पवन का.

खत देख कर मैं खुश हुई थोड़ी सी, पर उसे खोलते ही मेरी जिंदगी तबाह हो
गयी. उसमे पवन ने लिखा था "मैं तुम में कोई रूचि नही रखता, मेरी तुम्हारे
साथ शादी मजबूरी थी. अब मुझे मेरा प्यार मिल गया है और मैं उसके साथ खुश
हूँ. तुम्हारा बच्चा गिरा ये सुनके दुख हुआ पर यही मंजूर था लगता है. तुम
चाहो तो दूसरी शादी करो या मत करो पर अबसे अपना रिश्ता ख़तम. साथ में
डाइवोर्स के पेपर भेज रहा हूँ जिस पर मैने तुम्हारे हस्ताक्षार पहले ही
लिए थे उस चेक़ के साथ जो ,मैने जाने की पहले साइन करवाया था."

यह देखकर मेरे पैरो तले ज़मीन खिसक गई. कोख उजाड़ जाने का गम और उसमे ये
डाइवोर्स. अब जाऊ तो कहाँ? क्यूँ कि मैके वाले भी कोई नही था, शादी के
पहेले मेरी मा गुजर गयी थी 2 साल पहले और शादी के बाद कुछ ही महीनो मैं
पिताजी का देहांत हो गया और उनकी मैं एकलौती बेटी थी. इस समय मुझे मेरे
सास --ससूरने काफ़ी आसरा दिया, सारी परेशानियों में उन्होने मुझे होसला
दिया.

मैं तो स्यूयिसाइड करने जा रही थी पर ससुर जी ने मेरी जान बचाई. अब घर मे
मैं उनका और वो दोनो मेरा ऐसा हम एक- दूसरे का ख़याल रखने लगे. मैं विधवा
की सफेद साडी पहनने लगी, मन्गल्सुत्र कब का उतार कर फेंक दिया और सूनी
माँग के साथ मैं घर मे रहती थी. बाबूजी की पेन्षन पर हमारा घर चल रहा था,
मैं जॉब करना चाहती थी पर उन दोंनो का इनकार था, इसलिए घर ही बैठी रहती
थी. घर बैठे-बैठे, खाना पीना, टीवी देखना और आराम करना यही मेरा और ससुर
जी का काम था. माजी तो अपने बिस्तार पर पड़ी रहती थी इसलिए वो ना के
बराबर ही थी.

पवन के साथ डाइवोर्स होने पर अब 2 साल गुजर गये, ये दिन कैसे गये कुछ पता
ही नही चला. इस दौरान मैं अपने ससुर के साथ काफ़ी खुल गयी, वो भी मुझसे
ज़्यादा खुलकर बाते करने लगे. हम साथ बैठ कर मूवीस देखते थे, कभी कॉमेडी,
तो कभी आक्षन, तो कभी थ्रिलर और कभी रोमॅंटिक. बहू-ससुर जैसा नाता नही अब
तो हम दोनो दोस्तों जैसा बर्ताव एक-दूसरे से करते. थ्रिलर मोविए देखकर
मैं डर जाती और उनसे लिपट जाती थी कभी कभी. बाद में हमे अपने रिश्ते का
अहसास होते और हम थोड़े दूर बैठते थे.

मैं उनके साथ हसी-मज़ाक करती ये सासू मा को अच्छा नही लगता था, वो मुझे
इनडाइरेक्ट्ली अपना गुस्सा जाहिर करती थी. पर ससुर जी को कहती थी, "ये
उनका और बहू का बर्ताव ठीक नही." इस पर ससुर जी उन्हे कहते कि "तुम
व्यर्थ ही शक़ करती हो, वो तो मेरी बेटी समान है."

जैसे जैसे समय बीतता गया, वैसे मैने कुछ चेंजस ससुर जी में नोटीस किए, एक
तो वो मुझसे ज़्यादा बाते करने लगे, बार बार मुझ से बात करने का मौका
ढूँढने लगे, मेरे सहवास में ज़्यादा रहने का मौका छोड़ते नही थे, ना जाने
क्यों मुझे लगता की वो मुझे चोरी चोरी देखने लगे (उन्हे लगता होगा की
मेरी उनपर नज़र नही पर ये मैने नोटीस किया). ख़ासकर वो मेरे स्तानो और
नितंबों पर ज़्यादा लक्ष्य केंद्रित करते थे ऐसा मुझे लगता था. पहले तो
उनके ये अंदाज़ मुझसे छुपाते हुआ चलता था पर धीरे धीरे उनकी ये
गतिविधियों को जैसे मैं पुष्टि दे रही हूँ ऐसा जब उन्हे लगने लगा तब वो
मुझे बींदास होकर देखने लगे.

मैं नहाने जाते वक़्त पहले अपने ब्रा और पॅंटी अंदर जा कर रखती थी और फिर
टवल लेजाकर बाथरूम में घुसती थी. पर वो जानबूझकर कुछ बहाना कर के खुद
बाथरूम हो आते मुझसे पहले, अंदर जाकर क्या पता कुछ ढूनडते और फिर मुझे
बाथरूम में घुसने देते. उनकी ये बाथरूम यात्रा मैने ब्रा-पॅंटी रखने के
बाद और टवल लाने के बीच ही होती थी. मुझे थोड़ा ऑड लगता था पर जैसे की
हमारे बीच दोती का रिश्ता संपन्न हुआ था इसलिए मैने ये बात अपने तक ही
सीमित रखी. अंदर जाकर मैं अपनी पीठ दरवाजे की ओर करके एक एक करके अपने
कपड़े उतार देती थी. अपने नंगे बदन को बाथरूम के फुल मिरर में देखकर अपने
बूब्स को मसल्ति थी, कमरको सहलाती थी, नंगी चूत में उंगली डालकर कुछ समय
सिसकारी निकालती थी और अपनी गांदपर एक फाटका मारते हुए शवर ऑन करती थी.
ये तो मेरा रेग्युलर रुटीन ही था समझो.

नहाते वक़्त मुझे क्यों पता नही पर ऐसे लगता था कि कोई बाथरूम के बाहर
से, की होल में से मुझे देख रहा है. पर ठंडा पानी शरीर पर गिरने पर एक
अलग ही बिजली सी मेरे शरीर में दौड़ती थी जो मुझे बाहर कोई है कि नही इसे
भूलने को मजबूर करती थी. मेरा शक़ कि मुझे कोई देख रहा है, ये सच था.
क्योंकि बाहर से की होल से मेरे ससुर जी मेरी ये सारी हरकते देखते थे, और
मेरे नाम से शायद हिलाते भी होंगे?????? पर ये सब मुझे पता नही था. जैसे
ही मेरा स्नान पूरा होता (जिस्मी मुझे मिनिमम 30-45मिन्स लगते हैं), ससुर
जी हॉल में लौट जाते और टीवी देखने में मग्न है ऐसा दिखावा करते पर उनकी
नज़र मेरे गीले बदन को बाथरूम से निकलते देखने के लिए तरस जाती.

मैं भी अपने गीले बदन को लपेटे हुए टवल जिसके अंदर केवल ब्रा-पॅंटी से
ढका मेरा बदन लेकर अपने बालों को झाड़ते हुए बेडरूम की ओर शरम से भागती
थी. भागते समय मेरे बूब्स उछलते थे और गांद और यहाँ से वहाँ हिलते देख
उनकी हालत और भी खराब होती होगी इसका अंदाज़ा मैं लगा सकती थी. बेडरूम का
दरवाजा बंद कर के में टवल खोल देती थी और अपना पूरा शरीर सुखती थी. बाद
में केवल ब्रा-पॅंटी में रह कर आज क्या पहनु इसमे कुछ मिनट गुज़रते, तब
तक ससुर जी की के होल फीस्ट जारी रहती.

साड़ी तो मैं सफेद ही पेहेन्ति थी पर ब्लाउस अलग अलग फॅसन के मैने सिल्वा
लिए थे उसलिए वैसे मैने सफेद सादियों को रंग रखा था. ज़्यादा तर मेरी
साड़ियाँ ट्रॅन्स्परेंट रहती और ब्ल्काउसस डीप यू-नेक के रहते थे. उन्हे
पहेनकर मैं एक बार ही बाहर निकलती थी और मेरी नज़र ना जाने क्यों ससुर जी
क्या कर रहे हैं इस पर जाती, नज़रे मिलने पर वो एक स्माइल देते थे और मैं
शर्मा कर किचन में काम करने जाती. ये रोज होने लगा था. अब उनकी हिम्मत और
भी बढ़ने लगी, चान्स मिलने पर वो मुझे टच करने लगे. मौका ना मिले तो वो
मौका बना लेते पर टच ज़रूर करते थे, पूरे दिन में 5-6 बार तो उनका स्पर्श
मुझे होता ही था. मुझे भी उनका ये 'स्पर्श' अच्छा लगता था इस लिए मैने
कभी उन्हे मौका हाथ से जाने का चान्स नही दिया.

धीरे धीरे मौका मिलने पर वो किचन में मेरी मदद करने के बहाने आते थे और
मेरी गांद पर मज़ाक में एक चाँटा मारने लगे, मेरे पीछे खड़े रह कर वो
मुझे कहते कि मैं उन्हे खाना पकना सिखा दूं. ऐसे करके वो अपनी 'टूल' का
अंदाज़ा मुझे महसूस कराने लगे. मूड में रहने पर मैं भी अपनी गांद और पीछे
करती और पूरी करती अपनी और उनकी मनोकामना. पर हमे एक- दूसरे से अपनी
भावनाए जाहिर करना ना जाने क्यों जम रहा था. शायद तब हमे ये अहसास होता
होगा कि हम भले ही एक-दूजे को दोस्त मानते हो पर असल में वो मेरे ससुर और
मैं उनकी बहू हूँ.

ये 'खिचड़ी' पकने का सिलसिल्ला ऐसे ही 2-3 दिन चला, पर एक दिन नहा कर मैं
लौटी और साड़ी पहेन कर निकली वोही ससुर जी ने मेरी तारीफो के पूल बांधना
शुरू किए. मैने कहा "क्या बात आज कुछ सही नही लग रहा है, आपकी तबीयत तो
ठीक है ना?" इस पर उन्होने कहा, " क्या कहूँ, आज तुम हमेशा से कुछ
ज़्यादा ही सुंदर लग रही हो." मैं शरमाई और हमेशा की तरह किचन में चली
गयी. वो मेरे पीछे थोड़ी देर बाद आए, तब मैं आटा गूंद रही थी. उन्होने
मुझसे कहा," आज आता कैसे गूंदते है ये सिखाउन्गा".

मैं बोली "आईए फिर देर किस बात की?" मेरे बुलावे पर वो रोज की तरह मेरे
पीछे खड़े हुए अपना 'डंडा' मुझसे टिका कर और मेरी बाहों के उपर से हाथ
डालकर आटे में हाथ डाले. मैं दूसरे हाथ से उन्हे पानी का अंदाज़ा देने
लगी, तब उन्होने कहा, "पानी ज़्यादा हुआ तो?" मैने कहा," फिर आटा ज़्यादा
लेकर प्रमाण सुधारना पड़ेगा फिर." मेरा जवाब सुनकर वो हस पड़े और उन्होने
मुझे अंजाने में हल्का सा धक्का लगाया पीछे से. उनकी हसी और धक्के का
मतलब मैं समज़ह ना पाने के वजह से मैने कहा कि " आप हंस्र क्यूँ?"
उन्होने कहा कि "तुम बड़ी नादान हो अभी भी." ये कह कर उन्होने मुझे मेरे
गाल पर एक चुंबन दिया, उनकी ये मूव की वजह से मैं चौंक गयी.

मैं गबड़ा कर उन्हे देखने लगी, तब वो मेरे होतो की ओर अपने होंठ लाने
लगे. मैने कहा," ये सही नही, आप क्या कर रहे हैं? मैं आपकी बहू हूँ."
जवाब में उन्होने कहा, " मैं जानता हूँ तुम मेरी बहू हो. पर ये भी सही है
कि तुम उसके पहले एक नारी हो. जो प्यार की हकदार है. केवल सफेद साड़ी की
वजह से उसे इस प्यार का त्याग करना पड़ रहा है." ये कह कर उन्होने मेरी
साड़ी कंधे से हटाई, और दोनो हाथ मेरे कंधे पर रखे. अपने होंठ उन्होने
मेरे होंठो से लगाए और उन्होने मुझे किस किया. मैने ज़रा भी अपोज़ नही
किया उन्हे, क्यूँ कि मैं गड़बड़ा तो गयी थी ही पर मुझे इसी चुंबन का
शायद इंतेजार था? 2-5मिनिट तक उनके होंठ मुझ से जुड़े थे, बाद में
उन्होने मेरी आँखों में देखा. मैं शर्मा गयी और वहाँ से भाग कर सीधे अपने
बेडरूम गयी. वो वहाँ आ गये, उन्होने मुझसे पूछा," क्या हुआ? नाराज़ हो
क्या मुझसे?" मुंदी हिलाते हुए मैने नही कहा और उनका चेहरा खिला. मैने भी
शर्मा कर, अपना मूह बेडशीट मे छुपा लिया. वो बिस्तर पर चढ़े और उन्होने
मुझे बाहों में लिया. मैं भी सुकून से उनके साथ लिपट गयी उनकी बाहों में.

इस 'स्पर्श' को मैं खोना नही चाहती थी मैं, मैं उनके चौड़े सीने पर बाल
खोलकर अपना सिर रख कर लेती थी. वो भी मेरी बालों को एक हाथ से सहलाते
हुए, उनका दूसरा हाथ मेरे गाल्लों पर से घुमा रहे थे. अचानक से उन्होने
मुझसे पूछा, "अपनी आटा गूंदने की प्रॅक्टीस तो अधूरी ही रह गयी ना?" मैं
बोली, " उसे तो बाद में भी मैं आपको सिखा दूँगी". इस पर वो बोले, "अगर अब
प्रॅक्टीस करे तो?" मैने पूछा "तो फिर चलिए किचन में." वो एक नटखट सी
स्माइल देकर बोले, "किचन में क्यों? यहाँ करू तो?" "ठीक है, मैं आटा लाती
हूँ फिर." ये कह कर मैं उठने लगी, तब उन्होने मेरा हाथ थामा और मुझे अपनी
ओर खींचते हुए कहा, "आता नही तो नही, मैं इन्ही से काम चला लूँगा" कह कर
मेरे बूब्स उन्होने अपने हाथ में लेकर उन्हे दबाने लगे.

उनकी इस 'प्रॅक्टीस'से मैं काफ़ी खुश हुई और मैने उन्हे पूरा सहयोग देने
की ठान ली. दबाते दबाते उन्होने अपना मूह मेरे राइट बूब को लगाया और उसे
चूसने लगे. एक करेंट सा मेरे शरीर में दौड़ने लगा, ठीक वैसा ही जो मैं
नहाते समय महसूस करती थी. कुछ ही मिनितों में उन्होने मेरे ब्लाउस के बटन
खोल दिए और ब्रा के उपर से चूस्ते रहे. राइट वाला चूसने के बाद उन्होने
लेफ्ट वाले पर अपनी नज़र जमाई और उसे मसल्ने लगे.

तब ना जाने क्यों, मैने उन्हे रोका और उन्हे धकेलते हुए कहा, "ये ग़लत
है, मैं अपने आपको धोखा दे रही हूँ, सासू मा का विश्वास तोड़ रही हूँ. ये
रिश्ता ग़लत है, पाप है. दुनिया इसे नही स्वीकरेगी." ससुर जी कहने लगे,"
क्या ग़लत है? दुनिया के बारे में क्यूँ सोचो? सासू मा क्या तुम्हे घर से
निकाल देगी? अरे वो तो बिस्तर से उठकर बैठ भी नही पाती तो उसे क्या
समझेगा अपने बीच क्या चल रहा है?" मैने कहा, " यही तो ग़लत है, कि हम खास
करके मैं उनको अंधेरे में रख कर, उन्ही के पति और मेरे ससुर से रिश्ता रख
रही हूँ. अपनी वासनाओं को, अपनी प्यास को बुझा रही हूँ." "इस में कुछ
ग़लत नही है. तुम्हारे हाथ से कुछ ग़लत नही हो रहा. तुम तो केवल अपने
नारी होने का एहसास खुद को दिला रही हो, और ये तुम्हारी मजबूरी नही
ज़रूरत है." "शायद आप सही होंगे पर मेरी सिद्धांतों में ये बाते नही बैठ
रही हैं. मुझे ये सब कुछ मंजूर नही. मुझे ये सब ग़लत लग रहा है. प्लीज़
मुझे समझने की कोशिश कीजिए."ऐसा मैने उनसे कहा.

इसपर वे कुछ नही बोले, थोड़ी देर तक वो खामोश रहे फिर उन्होने कहा," जैसे
तुम्हारी मर्ज़ी. मैं तुम्हारे पर ज़बरदस्ती नही करूँगा, क्योंकि मैं
तुम्हे सही मे चाहने लगा हूँ, तुम्हारी कदर करता हूँ. पर जब कभी तुम्हे
लगता है कि तुम ग़लत नही हो. और खुद होकर तुम्हारी रज़ामंदी हो, तो मैं
तुम्हे ठुकरऊंगा नही. तुम्हे मेरे बेटे की तरह धोका नही दूँगा. आगे
तुम्हारी मर्ज़ी, पर सोच-विचार करना और अंतिम निर्णय लेना." ये कहकर
उन्होने मेरा बेडरूम छोड़ा.

उनके जाने के बाद, मैं बहुत देर तक फूट फूट कर रोई. रो-रोकर मेरी आँखे
लाल हो गयी. नींद कब लगी इस दौरान पता नही चला. रात का खाना भी मेरे गले
से उतरा नही. ससुर जी भी उस दिन बिगैर खाए ही सोने गये.
क्रमशः..............


ek anutha rishta--1


Namaste, mein Sarika Singh apni dastaan apko suna rahi hoon. Ye meri
pahli hi submission hone ke karan kafi galtiyan ho sakti hai, par use
chod kar bhavnaao ko samjho meri yehi gujarish hai aap sabhi se.

Filhal meri umar 34yrs hai par dekhkar yakeen nahi hoga apko, kyunki
maine apni dekhbhal bahut achchi tarah se ki hai. Is umar mein bhi
main 25-28ki hi lagti hoon, haan thoda sa motapa jarur aaya hai par
sahi jagah par charbee jamee hai isliye mujhe uspar naaz hai. Mera
figure abhi 38c-28-40 hai, hai ki nahi lajavaab???????

Meri 6 saal pahale shaadi hui Mr. Pawan Singh se aur mein is ghar me
ayee. Ghar me Pawan, uske papa Mr.Shyaam aur meri saas Mrs.Kanchan
itne hi log the. Meri saas bimaar thi, unhe paralysis hua tha. Humari
shaadi ke 2 saal pahale unko ye bimaari hui tab se wo bistaar se hil
bhi nahi sakti yahi bas yehi ek takleef thi. Pawan kafi achche the
dikhne mein is liye maine ye rishta thukraya nahi (waise maine 5-6
ladko ko na kardi thi unke pahele).

Hamari shaadi se me kafee khush thi, aur yahi lagta tha ki Pawanbhi
mujhse santusht tha. Humne apni suhaag raat Shimla ki haseen vadiyon
mein manayee, aur khush hokar ghar laute. Ghar aane par Pawan kafi
chup-chupse rahne lage, thode hi dino mein maine use suhaag raat ki
mehnat rang layee aur main maa banne wali hoon hoon ye khabar usse
batayee. Tab wo khush hua aur usne mujhe ek heere ka pendant tohfe
mein diya. Par fires uski khamoshi aur suna pan dikhayee dene laga.
Poochne par wo kuch batata nahi tha, ghar mein uska bartaav bhi kuch
theekh nahi tha. Sasur ji (Mr.Shyaamse) aur saasuji se baat baat par
jhagda mol leta tha wo.

Baat yaha taka aa gayee thi ki baap bete mein batcheet bandh ho gayee.
Din beette gaye, mahine gujre ab main 4maine petse thi tab achanak
Pawan ne mujhse kaha ki use office ke kaamse Dubai jaana padega wahan
ka project uske under hone ke karan wo use taal nahi sakta aise boss
ki order hai. Main ne kahan theekh hai saas-sasur ji ko kehkar jaate
hain hum Dubai, tab wo bola ki main uske saath nahi aa sakti kyun ki
wahan aurto ke liye safe nahi. Upar se wo 6 mahine mein laut ayega,
aur uske jaane ke bare mein saasuma aur sasur ji ko na bataya jaye.
Dus din baad ki uski flight thi, uske jaane ke do din pahale maine
uske mata-pita ko ye khabar sunayee. Unhone use rokne ke liye kaha par
khud usse baat nahi ki. Unki aur meri baat thode hi wo manne wala tha,
do din baad wo chala gaya.

Jaane se pahale usne mujhse ek cheq aur ek document par sign lee thi,
kahan ki Dubai mein uski jarurat hai. Wahan se usne mujhe do teen baar
phone kiya, ab main 6 mahine pet se thi. Tab achanak se mere pet mein
darad chalu hua aur mujhe doctor ke pas le jana pada, doctor ne kaha
ki abortion karna padega warna jaan ko khatra hai. Is liye mera
bachcha girana pada. Ye dukh tha hi aur usme mujhe ek khat mila, wo
bhi Dubai se Pawan ka.

Khat dekh kar main khush hui thodi see, par use kholte hi meri jindagi
tabah ho gayee. Usme Pawan ne likha tha "Main tum mein koi ruchi nahi
rakhta, meri tumhare saath shaadi majburi thi. Ab mujhe mera pyaar mil
gaya hai aur main uske saath khush hoon. Tumhara bachcha gira ye sunke
dukh hua par yehi manjoor tha lagta hai. Tum chaho to dusree shaadi
karo ya mat karo par abse apna rishta khatam. Saath mein divorce ke
paper bhej raha hoon jis par maine tumhare hastakshaar pahale hi liye
the us cheque ke saath jo ,maine jaane ki pahale sign karvaya tha."

Yeh dekhkar mere pairo tale jameen khisak gaee. Kokh ujad jane ka gam
aur usme ye divorce. Ab jaoo to kahan? kyun ki maikewale bhi koi nahi
tha, shaadi ke pehele meri maa gujar gayee thi 2 saal pahale aur
shaadi ke baad kuchhi mahino main pitaji ka dehaant ho gaya aur unki
main eklauti beti thi. Is samay mujhe mere saas --sasurne kafee asra
diya, sari pareshaniyon mein unhone mujhe hosla diya.

Main to suicide karne jaa rahi thi par sasur ji ne meri jaan bachayee.
Ab ghar me main unka aur wo dono mera aisa hum ek- dusre ka khayaal
rakhne lage. Main widhwa ki safed sadi pahanane lagee, mangalsutra kab
ka utaar kar phenk diya aur sooni maang ke saath main ghar main rahti
thi. Babuji ki pension par hamara ghar chal raha tha, main job karna
chahti thi par un donno ka inkar tha, isliye ghar hi baithee rahtee
thi. Ghar baithe-baithe, khana peena, tv dekhna aur aaram karna yehi
meri aur sasur ji ka kaam tha. Maaji to apne bistaar par padi rahti
thi isliye wo naa ke barabar hi thi.

Pawan ke saath divorce hone par ab 2 saal gujar gaye, ye din kaise
gaye kuch pata hi nahi chala. Is dauraan main apne sasur ke saath kafi
khul gayi, wo bhi mujhse jyaada khulkar baate karne lage. Hum saath
baith kar movies dekhte the, kabhi comedy, to kabhi action, to kabhi
thriller aur kabhi romantic. Bahu-sasur jaisa nata nahi ab to humdono
doston jaisa bartaav ek-dusre se karte. Thriller movie dekhkar main
daar jatee aur unse lipaat jati thi kabhi kabhi. Baad mein hame apne
rishte ka ahsaas hote aur hum thode door baithte the.

Main unke saath hasi-mazak karti ye sasumaa ko achcha nahi lagta tha,
who mujhe indirectly apna gussa jahir karti thi. Par sasur ji ko
kahati thi, "ye unka aur bahu ka bartaav theek nahi." Is par sasur ji
unhe kahte ki "tum wyarth hi shaq karti ho, wo to meri beti samaan
hai."

Jaise jaise samay beetata gaya, waise maine kuch changes sasur ji mein
notice kiye, ek to wo mujhse jyaada baate karne lage, baar baar mujh
se baat karne ka mauka dhoondhne lage, mere sahvaas mein jyaada rehne
ka mauka chodte nahi the, na jane kyon mujhe lagta ki vo mujhe chori
chori dekhne lage (unhe lagta hoga ki meri unpar nazar nahi par ye
maine notice kiya). Khaskar vo meri staanoki or aur nitambon par
jyaada lakshya kendrit karte the aisa mujhe lagta tha. Pahale to unke
ye andaaz mujhse chupate hua chalta tha par Dheere dheere unki ye
gatividhiyon ko jaise main pushti de rahi hoon aisa jab unhe lagne
laga tab wo mujhe bindhast hokar dekhne lage.

Main nahane jate waqt pahale apne bra aur panty andar jaa kar rakhti
thi aur phir towel lejaakar bathroom mein ghusti thi. Par wo
jaanbujhkar kuch bahana kar ke khud bathroom ho aate mujhse pahale,
andar jaakar kya pata kuch dhoondte aur phir mujhe bathroom mein
ghusne dete. Unki ye bathroom yatra maine bra-panty rakhne ke baad aur
towel lane ke beech hi hoti thi. Mujhe thoda odd lagta tha par jaise
ki humare beech doti ka rishta sampanna hua tha isliye maine ye baat
apne tak hi seemit rakhi. Andar jaakar main apni peeth darvaje ki or
karke ek ek karke apne kapde utaar deti thi. Apne nange badan ko
bathroom ke full mirror mein dekhkar apne boobsko masalti thi, kamarko
sehlati thi, nangi chut mein ungli dalkar kuch samay siskari nikalti
thi aur apnee gaandpar ek fatka marte hua shower on kati thi. Ye to
mera regular routine hi tha samjho.

Nahate waqt mujhe kyon pata nahi par aise lagta tha ki koi bathroom ke
bahar se, key hole mein se mujhe dekh raha hai. Par thanda paani
sharer par girne par ek alag hi bijli si mere sharer mein daudati thi
jo mujhe bahar koi hai ki nahi ise bhulane ko majboor karti thi. Mera
shaq ki mujhe koi dekh raha hai, ye sach tha. Kyonki bahar se key hole
se mere sasur ji meri ye saari harkate dekhte the, aur mere naam se
shayad hilate bhi honge?????? Par ye sab mujhe pata nahi tha. Jaise hi
mera snaan poora hota (jismee mujhe minimum 30-45mins lagte hain),
sasur ji hall mein laut jate aur tv dekhne mein magn hai aisa dikhava
karte par unki nazar mere geele badan ko bathroom se nikalte dekhne ke
liye taras jaati.

Main bhi apne geele badan ko lapte hue towel jiske andar kewal
bra-panty se dhaka mera badan lekar apne balon ko jhadte hue bedroom
ki or sharam se bhaagti thi. Bhaagte samay mere boobs uchalte the aur
gaand aur yahan se vahan hilte dekh unki halat aur bhi kharab hoti
hogi iska andaaza main laga sakti thi. bedroom ka darvaja band kar ke
mein towel khol deti thi aur apna poora sharir sukhatee thi. Baad mein
kewal bra-panty mein rah kar aaj kya pehnu isme kuch minat gujarte,
tab tak sasur ji ki key hole feast jari rahti.

Saadi to main safed hi pehenti thi par blouses alag alag fasion ke
maine silva liye the usliye waise maine safed saadiyon ko rang rakha
tha. Jyaada tar meri saadiyan transparent rahti aur blouses deep
U-neck ke rahte the. Unhe pehenkar main ek baar hi bahar nikalati thi
aur meri nazar na jaane kyon sasur ji kya kar rahe hain is par jaati,
najre milne par wo ek smile dete the aur main sharma kar kitchen mein
kaam karne jaati. Ye roj hone laga tha. Ab unki himmat aur bhi badhne
lagi, chance milne par wo mujhe touch karne lage. Mauka naa mile to wo
mauka bana lete par touch jarur karte the, poore din mein 5-6 baar to
unka sparsh mujhe hota hi tha. Mujhe bhi unka ye 'sparsh' achcha lagta
tha is liye maine kabhi unhe mauka haath se jaane ka chance nahi diya.

Dheere dhire mauka milne par wo kitchen mein meri madad karne ke
bahane aate the aur meri gaand par mazak mein ek chaanta marne lage,
mere peeche khade rah kar wo mujhe kahte ki main unhe khana pakana
sikha doon. Aise karke wo apni 'tool' ka andaza mujhe mehsoos karaane
lage. Mood mein rehne par main bhi apni gaand aur peeche karti aur
poori karti apni aur unki manokaamna. Par hame ek- dusre se apni
bhavnaaye jahir karna na jaane kyon jam raha tha. Shayad tab hame ye
ahsaas hota hoga ki hum bhale hi ek-duje ko dost mante ho par asal
mein wo mere sasur aur main unki bahu hoon.

Ye 'khichdee' pakane ka silsilla aise hi 2-3 din chala, par ek din
naha kar main lauti aur saadi pehen kar nikli wohi sasur ji ne meri
tareefo ke pool bandhna shuru kiye. Maine kaha "kya baat aaj kuch sahi
nahi lag raha hai, apki tabiyat to theek hai na?" is par unhone kaha,
" kya kahoon, aaj tum humesha se kuch jyaada hi sundar lag rahi ho."
Main sharmayee aur hamesha ki tarah kitchen mein chali gayi. Wo mere
peeche thodi der baad aye, tab main aata goond rahi thi. Unhone mujhse
kaha," aaj aata kaise goondte hai ye sikhaaunga".

Main boli "aayeeye phir der kis baat ki?" mere bulave par wo roj ki
tarah mere peeche khade hue apna 'danda' mujhse tika kar aur meri
bahon ke uapar se haath dalkar aate mein haath dale. Main dusre haath
se unhe paani ka andaza dene lagi, tab unhone kaha, "paani jyada hua
to?" Maine kaha," phir aata jyaada lekar pramaan sudharna padega
phir." Mera javab sunkar wo has pade aur unhone mujhe anjaane mein
halka sa dhakka lagaya peeche se. Unki hasi aur dhakke ka matlab main
samazh na pane ke wajah se maine kaha ki " aap hase kyun?" unhone kaha
ki "tum badi nadan ho abhi bhi." Ye keh kar unhone mujhe mere gal par
ek chumban diya, unki ye move ki wajah se main chaunk gayee.

Main gabada kar unhe dekhne lagi, tab vo mere hoothon ki or apne honth
lane lage. Maine kaha," ye sahi nai, aap kya kar rahe hain? main aapki
bahu hoon." Javab mein unhone kaha, " main janta hoon tum meri bahu
ho. Par ye bhi sahi hai ki tum uske pahale ek nari ho. jo pyaar ki
hakdaar hai. Kewal safed saadi ki wajah se use is pyaar ka tyaag karna
pad raha hai." Ye keh kar unhone meri saadi kandhe se hataayi, aur
dono haath mere kandhe par rakhe. Apne hoonth unhone mere hoontho se
lagaaye aur unhone mujhe kiss kiya. Maine jara bhi oppose nahi kiya
unhe, kyun ki main gadbada to gayi thi hi par mujhe isi chumban ka
shayad intejar tha? 2-5minute tak unke honth mujh se jude the, baad
mein unhone meri aankhon mein dekha. Main sharma gayee aur wahan se
bhaag kar seedhe apne bedroom gayi. Wo wahan aa gaye, unhone mujhse
poocha," kya hua? Naraz ho kya mujhse?" mundi hilate hue maine nahi
kaha aur unka chehra khila. Maine bhi sharma kar, apna mooh bedsheet
main chupa liya. Wo bistaar par chadhe aur unhone mujhe bahon mein
liya. Main bhi sukoon se unke saath lipat gayi unkee bahon mein.

Is 'sparsh' ko main khona nahi chahti thi main, main unke chaude seene
par baal kholkar apna sir rakh kar leti thi. Wo bhi meri balon ko ek
haath se sehlaate hue, unka dusra haath mere gallon par se ghuma rahe
the. Achanak se unhone mujhse pooncha, "apni aata goondne ki practice
to adhuri hi rah gayi na?" main boli, " use to baad mein bhi main
aapko sikha doongi". Is par wo bole, "agar ab practice kare to?" maine
poocha "to phir chaliye kitchen mein." Wo ek natkhat si smile dekar
bole, "kitchen mein kyon? yahan karoo to?" "theek hai, main aata lati
hoon phir." Ye keh kar main uthne lagi, tab unhone mera haath thama
aur mujhe apni or kheenchte hue kaha, "aata nahi to nahi, main inhi se
kaam chala loonga" keh kar mere boobs unhone apne haath mein lekar
unhe dabane lage.

Unki is 'practice'se main kafi khush hui aur maine unhe poora sahyog
dene ki thaan li. Dabaate dabaate unhone apna mooh mere right boob ko
lagaya aur use choosne lage. Ek current sa mere shareer mein daudne
laga, theek waisa hi jo main nahate samay mehsoos karti thi. Kuch hi
miniton mein unhone mere blouse ke button khol diye aur bra ke upar se
chooste rahe. Right wala choosene ke baad unhone left wale par apni
nazar jamayi aur use masalne lage.

Tab na jaane kyon, maine unhe rokaa aur unhe dhakelte hue kaha, "ye
galat hai, main apne aapko dhokha de rahi hoon, sasu maa ka vishwas
tod rahi hoon. Ye rishta galat hai, paap hai. Duniya ise nahi
svikaregi." Sasur ji kehne lage," kya galat hai? duniya ke bare mein
kyun socho? Saasu maa kya tumhe ghar se nikal degi? Are wo to bistar
se uthkar baith bhi nahi paati to use kya samzhega apne beech kya chal
raha hai?" maine kaha, " yahi to galat hai, ki hum khas karke main
unko andhere mein rakh kar, unhi ke pati aur mere sasur se rishta rakh
rahi hoon. Apni vasnaaon ko, apni pyaas ko buzha rahi hoon." "Is mein
kuch galat nahi hai. Tumhare haath se kuch galat nahi ho raha. Tum to
kewal apne naree hone ka ehsaas khud ko dila rahi ho, aur ye tumhari
majburi nahi jarurat hai." "Shayad aap sahi honge par meri siddhanton
mein ye baate nahi baith rahi hain. Mujhe ye sab kuch manjoor nahi.
Mujhe ye sab galat lag raha hai. Please mujhe samazhne ki koshish
kijiye."aisa maine unse kaha.

Ispar ve kuch nahi bole, thodi der tak wo khamosh rahe phir unhone
kaha," jaise tumhari marji. Main tumhare par jabardasti nahi karoonga,
kyonki main tumhe sahimein chahne laga hoon, tumhari kadar karta hoon.
Par jab kabhi tumhe lagta hai ki tum galat nahi ho. Aur khud hokar
tumhari rajamandi ho, to main tumhe thukraoonga nahi. Tumhe mere bete
ki tarah dhoka nahi doonga. Aage tumhari marji, par soch-vichar karna
aur antim nirnay lena." Ye kehkar unhone mera bedroom choda.

Unke jaane ke baad, main bahut der tak phooth phooth kar royee.
Ro-rokar meri aankein laal ho gayi. Neend kab lagi is dauraan pata
nahi chala. Raatka khana bhi mere galese utra nahi. Sasur jibhi us din
bigair khayehi sone gaye.
kramashah..............


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