एक अनूठा रिश्ता--2
गतान्क से आगे.......................
मुझे रातभर नींद नही आए, बार बार दुपहर मे हुई सारे द्रुश्य नज़रोंके
सामने आते और मुझे रुलाते थे. ससुर जी भी रात को ढंगसे सो नही पाए, उनके
मन मे भी इन्ही बातो चक्कर घूम रहा था. सुबहके 4-4:30 के पास मुझे नींद
लगी, ससुर जी कब सोए की नही भी सोए ये पता नही. उस दिन 9 बजे मेरी आँख
खुली, देर हुई इसलिए मैं जल्दी मैं ही उठकर ब्रश कर लिया और सासू मा के
ब्रेकफास्ट का इन्तेजाम में लग गयी. उनका नाश्ता लेकर मैं उनके रूममें
गयी, तब देखा कि ससुर जी अभीतक सोए थे. अपनी पत्नी के अलावा कोई और
रूममें आया है ये महसूस कर उनकी आँख खुली, पर उन्होने मेरी ओर देखा
नही.उठकर वो ब्रश करने के बहाने से रूमके बाहर गये. माजी का नाश्ता हुआ,
और मैं उनका ब्रेकफास्ट और चाय लाई. उन्होने सिर्फ़ चाय पीली और पेपर
पढ़ने लगे. हमेशा की तरह मैं बाथरूम नहाने के लिए जाने लगी, पर आज उनकी
नज़र मुझे देखने की जगह मुझे अवाय्ड करने की कोशिश मे जुड़ी थी. एक बार
भी उन्होने मुझे देखा नही, किचन में मेरे पीछे आए नही, मुझे छूने की
कोशिश की नही. मैंभी उनसे नज़रें चुराने लगी, उनकी हरकतों को इग्नोर करने
लगी.
अपनी ओर्से उनका खाना-पीना सही वक़्तपर हो रहा है नही, ससुमाको कोई
तकलीफ़ नही हो रही है, यही खबरदारी मैं ले रही थी. ऐसे करते करते 2-3दिन
निकलगए पर ना जाने क्यों मुझे ये सब कुछ ठीक नही लग रहा था, मुझे लग रहा
था कि मैने उन्हे दुखाया है, उन्हे ठेस पहुचाई है, उनकी भावनाओं का अनादर
किया. इसी कशमकश में मैं पूरी डूब गयी. मन में बार बार उस दोपहरकी
स्मृतियाँ आने लगी, उनका वो बालोंको सहलाना, चेरेको सराहना, बूब्स को
छूना और उनका मेरे राइट बूब को चूसना, सभी मैं महसूस करने लगी. तब मैने
एक 'अंतिम निर्णय' लेनेका सोचा. थोड़ी देर तक मैने अपनी आँखें बंद करली,
और फिर नाज़ाने क्यों मैं वाहँसे उठी और ससुर जीके सामने हॉल में जा
पोहॉंची, मैने उनसे कह, "मैने अंतिम निर्णय लिया है." बिना कुछ कहते हुए
उन्होने मेरी राई जानने की दरख़्वास्त जताई अपने आँखोंसे.
मैं बोली, "आप सही थे और मैं ग़लत, मुझे मेरी ग़लतिओंको सुधारने का मौका
मिलेगा क्या?" मेरा ये जवाब सुनकर, वे सोफपर्से उठ गये और उन्होने मुझे
अपनी बाहोंमें भर लिया, मैंभी उनकी बाहों में सिमटकर रोने लगी. मेरे आसू
पोछते पोछते वे बोले, "ग़लती नही, नासमझ दारी थी वो तुम्हारी पर अब
तुम्हारी अकल ठिकाने आई है. तुम इस ग़ल्तीकी सही मे कुसूरवार हो. तुम्हे
सज़ा मिलनी चाहिए." मैं बोली, "सज़ा काटने के लिए मैं तय्यार हूँ पर सज़ा
आप ही से लूँगी?" ये बोलकर उन्होने मुझे ठीक उस दिन की तारह एक बढ़ियासा
चुंबन दिया और साथ साथ मेरे दोनो बूबसको मसल्ने लगे. मैंभी उत्तेजित होकर
सिसकारियाँ लेने लगी, ठीक उसी तरह जैसे मैं नहाते समय लेती थी.
हमारी आवाज़ें तेज़ हो रही हैं ये जानते हुए, मैने उन्हे बेडरूम मे चलने
के लिए कहाँ. "आपका हुकुम सर आँखो पर" की तरह वो मेरे पीछ पीछ बेडरूम की
ओर चलने लगे. बीच बीच मे वे मेरी गांद को धक्का मारते अपने डंडे.
हम बेडरूम पहुचे नही कि उन्होने मुझे अपनी गोद मे उठा लिया और बिस्तर पर
फेंका. बादमें एक भूके भेड़िए की तरह वे मेरी ओर बढ़ने लगे, मैंभी नटखट
सी हरकतें करते हुए उनसे दूर भाग रही थी. अचानक से उठकर उन्होने बेडरूमका
दरवाजा बंद किया और भेड़िए की तरह मेरी ओर बढ़े. उनसे बचाव करने का नाटक
करते मैं बिस्तर के एक छोर से दूसरे छोर की ओर घूमने लगी बिस्तर पर. एक
मोडपर उन्होने मेरी पैरों की कलाईयो को पकड़ा और मुझे अपनी ओर खिचा. उनका
ये खीचाव इतनी तगड़ा था कि मेरी गांद सीधी उनके लौडेकी चट्टान को टकराने
की वजह से बिस्तर पर रुक पाई. इस मजबूत लौदे का अंदाज़ा तो लग ही गया पर
महस्सोस करना बाकी था. लौदे को टकराते हुए उन्होने कहा, "सही जगह आ रुकी
है तुम्हारी ये नटखट गांद. लगता है काफ़ी बेकरार है ये?" मैं शारमाई, और
लाजसे चूर चूर होगयि. उन्होने मुझे काफ़ी देर तक चूमा, बादमें उन्होने
मेरे ब्लाउज के हुक्स निकाले और ब्रा मे छुपे बूब्स को मलने लगे, ब्रा
बदन पर रखकरही वे मुझे मेरे बूब्स को चूमने लगे.
फिर उनका चुंबन नीचे नीचे सरकने लगा, मेरी छाती, मेरा पेट, मेरी नाभि को
वे चूमने लगे. जैसे जैसे वो नीच बढ़ रहे थे वैसेही मेरे शरीर मे करेंट
दौड़ रहा था, जो और स्ट्रॉंग होता जा रहा था. आख़िरकार उनके होंठ मेरे
पेटिकोट के नाडे तक आ पहुचे, अपने दातोंसे उन्होने उसे खोल दिया और धीर
धीरे मेरी कमर के चारों ओर हाथ घुमाने लगे. फिर मेरी कमरको उन्होने पकड़ा
और धीर धीरे से मेरे पेटिकोट को नीचे सरकाने लगे, तब उन्होने अपनी आँखे
बंद की पर हाथ मेरा पेटिकोट उतारने में लगे थे. मैने पूछा, "क्या हुआ,
आँखें बंद क्यूँ की आपने?" उन्होने इशारे से मुझे चुप रहेने के लिए कहा
और वे बोले, "मैं इस स्वर्गके द्वारको खुलते देख नही सकता एक दम से." मैं
बोली, "वाह क्या आप पहली बार देख रहे हैं इस स्वर्ग के द्वारको? माजीका
'गेट' बिगैर देखे ही पवन का आगमन हुआ था क्या? कि कोई औरही था उसका बाप?"
वो हासकर बोले, "नही संतान तो मेरही था वो साला, पर कायर था इसलिए भाग
गया तुम्हे मेरे हवाले छोड़कर.रही बात तुम्हारी सासके 'गेट'की वोभी क्या
चूत थी???? उसे चोदना मेरी मजबूरी थी, क्योंकि मैं तो केवल अपने वंश को
बढ़ाना चाहता था. पर इस कायरको पैदा कर मैने अपन पानी वेस्ट किया उसकी मा
की चूत मे. चलो पर इसी वजह से आज मुझे तुम मिली हो." मैं बोली, "छोड़िएजी
उन पुरानी बातो को. उन्हे भूलकर नये लम्हो को यादगार बनाते है." तबतक
उन्होने मेरा पेटिकोट पूरितरह उतार दिया था.
उन्होने अपनी आँखे खोली और गौर्से मेरी पॅंटीको देखने लगे. उत्तेजना की
वजह से मेरी पॅंटी गीली हुई थी और मेरे चुतसे चिपक गयी थी. इस वजह से
उन्हे मेरी चूत का अनुमान लगाना आसान था. उन्होने मुझसे पूछा "क्या तुमने
अपनी चूत के बाल शेव किए हैं?" मैने शर्मा कर केवल मंडी हिलाई. तब वे
बोले, "नंगी चूत वो भी तुम्हारी, मेरी जान गजब रहेगी.",ये कहकर उन्होने
मुझे नीचे चूमा. मैंभी उछलकर उन्हे कहने लगी, "अब बासभी कीजिए तारीफ
करना." "क्या कारू, एक ही चीज़ तारीफ के काबिल होती तुम्हारी तो कबका चुप
हो जाता मैं, पर तुम तो उपर से नीचेतक बेमिसाल हो. काश तुम मेरी ज़िंदगी
मे पहले आती???????" ये कहते हुए वे मुझे नीच चूत पर चूमते रहे और मैं
उन्हे रोकने की कोशिस मे लगी रही.
उस रात उन्होने मुझे जमके चोदा और मैने भी उन्हे पूरा सहयोग दिया. बहुत
मज़ा आया. पूरी रात हम सेक्स का मज़ा ले रहे थे, दोनो पूरी तारह जैसे
जन्मो जन्मोसे भूके थे.(वैसे सेक्स की भूक थी इसीलये हमने ये कदम उठाए
थे.) मेरे कहने के अनुसार उन्होने एक भी बार मेरी चूत मे स्पर्म्ज़ शूट
नही किया केवल मेरे बूब्स पर और नाभिपर उसका वर्षाव होता रहा रातभर. पर
इससे मैं काफ़ी संतुष्ट थी. आख़िरकार हम सुबेहके 6:30 के आस पास सो गये.
ससुर जीने अपने कपड़े पहने और चोरी छुपे अपने बेडरूम मे प्रवेश किया
(सासुमा को बिना खबर लगते) और चुप चाप सो गये. मैं तो पूरी तरहसे थक गयी
थी, इसलिए मैं नंगी ही सो गयी, सिर्फ़ बदन एक वाइट बेडशीतसे ढका था कहने
के लिए.
सुबह जब आँख खुली (9:30 के आस पास, वो भी सासुमा ने आवाज़ लगाई थी) इसलिए
मैं गड़बड़ा कर उठी. अपने आपको निवस्त्र देख मैं शरम चूर हुई और जल्दी
जल्दी कपड़े पेहेन्ते मैने सासू माको "आ रही हूँ माजी" कहकर उनके
बेडरूमकी ओर भागी. माजी को भूक लगी थी इसलिए मैने जल्दी जल्दी नाश्ता
बनाया और उसे लेकर उनके बेडरूम में पोहॉंच गयी. उनको खिलाते वक़्त ससुर
जी सोए हुए थे, मैं उन्हे पीठ कर (सही माइने कहने को गांद उनकी ओर कर
बेडपर बैठी थी) और माजी को खिला रही थी. तब मुझे अचानक से कोई मेरी गांद
सहला रहा है ऐसा लगा, तब समझी कि ससुर जी जाग गये थे और वे मेरी गांदके
उपारसे हाथ घूमा रहे थे. माज़ीको ये सब नही दिख रहा था उसीका ससुर जी
पूरा फयडा उठा रहे थे और मुझे तंग कर रहे थे. जल्दी जल्दिसे माज़ीको
खिलाकर मैने वाहँसे बाहर निकली, मेरे पीछे पीछे ही ससुर जी आए और मुझे
किचन मे प्रवेश करने के पहले मुझे पकड़ा.
मैं उनके चंगुलसे छूटने की कोशिश कर रही थी तब उन्होने अपनी ग्रिप और
मजबूत करली और मेरे गांदमें अपना डंडा घुसेड़ते हुए कहा "अब कहाँ जाओगी
मेरी जान? गांद जो फसि है इस लंड के शिकंजे मैं." मैं हंस पड़ी. तब उनका
हाथ मेरी कमर पर घूमने लगा और धीरे धीरे बूब्स को दबाने मे वे जूट गये.
मैं बोली, " क्यूंजी थोडा सबर तो कीजिए. कम से कम ब्रश तो कर लीजिए.तब तक
मैं आपका नाश्ता लगाती हूँ." तब मुझे उन्होने एक किस दी मेरे होंठो और
मुझे छोड़दिया. ब्रश करने के बाद मैं उनका नाश्ता टेबल पर ले गयी. उसे
देख वे बोले, "मुझे ये नही चाहिए नाश्ते मैं." मैने पूछा,"फिर क्या लोगे
आप नाश्ते मे?" मेरा सवाल पूरा होताही नही कि उन्होने मुझे अपनी ओर खींचा
और कहा, "आज मुझे तुम्हे ही खाना है, नाश्ते मे, लंच मे और डिन्नर मे भी.
प्यास लगी तो तुम्हारे बूब्स काम आएँगे." मैं बोली,"मस्ती सब बादमें करना
माजी सुन लेंगी." ये कहकर मैं उनसे दूर हुई.
नाश्ता करनेके बाद उन्होने फिर मौका ढूँढा और मुझे बाहोंमें भर लिया. अब
वो सेफ जगह थे, हमारी किचन मे जहाँ से ना कुछ दिखता है नही कुछ सुनाई
देता है उनके बेडरूमसे. किचन मे भी उन्होने मुझे पीछेसे पकड़ लिया, उनका
लंड मेरी गांदमें सही जगह बनाकर तैनात खड़ा था. गांदके इस 'द्वार प्रवेश'
की वजह से मैंभी अपने होश खो बैठी थी.मेरी ना सुनते हुए वो मेरी साड़ी को
पीछेसे उठाने लगे. मैने अंदर कुछभी पहना नही था, इस लिए मेरी गांद का
दर्शन उन्हे हुआ. उसे उन्होने एक चाँटा मारा और कहा, "बहुत भागती है
तुम्हारी ये गांद. आज इसिको सज़ा दूँगा." मैं घबरा गयी और तुरंत अपनी
गांद को उनसे घूमाते हुए उनसे कहा, "प्लीज़ इसे सज़ा मत दीजिए. मेरी गांद
आपके मोटे लंड को नही समा सकेगी." ये कहते वक़्त मेरे आँखोसे आसू बहने
लगे. मेरी रोती सूरत देख वे बोले, "मेरी जान डरो नही तुम जैसा कहोगी वैसे
ही होगा. पूरा मज़ा लेंगे वो भी हम दोनो."
उनकी यही समझ दारी मुझे ज़्यादा भाती और मैं उन्हे अपना संपूर्ण बदन
समर्पित कर देती. तेज़ीसे वे मेरी चूत को चाटने लगे और मैं बेकाबू होते
गयी. आख़िर में मैने उनसे कहा, "चोदिये मुझे, ना चोदिये इस रांडी को आपके
तड़पाते हुए." वे बोले, "रांडी मत कहो मेरी जान अपने आपको. तुम तो मेरी
सही माइने मैं मेरी अर्धांगिनी हो."ये कहकर उन्होने मुझे जमके चोदा और
वीर्यपतन पहली बार मेरे मूह मे किया. बहुत आनंद दाई क्षण था वो. मुझे
उन्होने 'अर्धांगिनी'का दर्जा तो ज़रूर दिया था पर समाज में और सासुमा के
सामने मेरा क्या होगा इस रिश्ते का खुलासा होने पर? इसी परेशानी से मैं
आज-कल बेचैन रहती थी. पर ससुर जी के साथ सेक्स करने पर मेरी सारी
परेशानियाँ दूर होती क्योंकि मैं शारीरिक रूपसे अब संतुष्ट रहने लगी थी.
अब मैं घर्से बाहर निकलती तो मेरे तेवर कुछ और ही होने लगे. मैं बाज़ार
मे जाती तो शान से, गली के टपोरी मुझे देख सीटी मारते तो मुझे गुस्सा आता
और एक बार मैने तो एक बदमाश को एक रखकर दी और उससे पूछा, "घर मे मा-बहेन
नही है क्या?" मेरा ऐसा बर्ताव पहले नही था, मैं इन्ही लड़कोसे पहले डरती
थी. पर अब मैं अपने ससुर की ग़ैरक़ानूनीही सही प्रॉपर्टी होने के कारण
मैं किसी को भी मेरी मजबूरी का फयडा उठाने देती नही थी. पर इन बातो के
बारें में मैने ससुर जी को कभी भी नही कहा वरना उन्हे तो वे पोलीस स्टेशन
की हवा खिलाते थे. मेरी इस चेंज्ड आटिट्यूड के वजह से वे बदमाश मेरे से
दूरही रहने लगे.
एक दिन मैं ना जाने क्यों अपसेट थी, ससुर जी ने मेरा मूड जान लिया और
मेरे करीब आकर उन्होने मुझसे पूछा, " मेरी जान चूत को लगता है जोरोंसे
प्यास लगी हैं. अभी लॉडा चाहिए क्या????????" मैं बोली "नही. रखिए
संभालकर अपने ही पास." मेरी नाराज़गी देख वे बोले, "क्या हुआ? बताओ तो
सही." मैं बोली, "हमारा ये लुपचुपी भरा रिश्ता कब तक चलता रहेगा? इसका
भविष्य आगे जाके क्या है? आप मुझे भले ही अर्धांगिनी कहते हो पर समाज के
लिए मैं केवल एक ..." ये कहकर मैं रोने लगी. वे मेरे करीब आए और मेरे आसू
पोंछते पोंछते बोले," डरो मत मेरी जान, जल्दी मैं तुम्हे समाज मे पत्नी
का दर्जा दूँगा." मैने पूछा "कैसे? सासुमा क्या इसे स्वीकारेंगी? क्या
समाज इसे पति-पत्नी का दर्जा देगा?" उस पर वे बोले, "डरो मत ये सब मेरी
ज़िम्मेदारी है. तुम केवल सदा हस्ती रहो, मैं तुम्हे कदापि दुखी नही देख
सकता."
कुछ दिनो तक मैने उन्हे करीब आने भी नही दिया, मैं उनसे कहती,"पहली मेरी
इस घर मे पोज़िशन बनाओ फिर मुझे पाओ." वे भी हताश थे पर क्या करते मुझसे
दूर रहेंगे तो कितना? उस रात से हमारे 'सेक्स सेशन नही हुए, पर रात को
मुझे अच्छी नींद आती और मैं ठीक से सो पाती ये भी एक अजूबा था. क्योंकि
आदत सी हुई थी, बिगैर सेक्स किए हम दोनो को नींद नही आती थी. इसलिए ससुर
जी चोरी-छुपे बेडरूम मे घुसते जम मुझे दो बार तो चोद्ते और अपने बेडरूम
लौटते थे. दो दिनो बाद क्या हुआ पता नही पर उस रात ना जाने क्या पर
उन्होने सोते समय सासू मा से क्या बात की, पर दूसरे दिन सासुमा ने मुझे
आवाज़ लगाई, "बहू, ओ बहू ज़रा यहाँ तो आना." मैं बोली, "जी माजी, आई."
वहाँ पहुचने पर उन्होने मुझसे गंभीर स्वर मे कहा, "मैने तुम्हारी दूसरी
शादी करवाने ठान ली है." उनकी ये बात सुनके मैं हड़बड़ा गयी मैं शादी तो
करना चाहती थी पर किसी औरसे नही अपने ससुरको ही अपना पति अब मैं मानने
लगी थी, वे ही मेरे मालिक थे.
पर मैने कुछ नही कहा, मैं चुप रही. सासुमा ने इस पर मुझसे पूछा,"क्या
तुम्हे दूसरी शादी नही करनी? ज़िंदगीभर ऐसे ही विधवा की ज़िंदगी बिताना
चाहोगी?" मेरी खामोशी देख वे बोली, "तुम्हे शायद ये रिश्ता ठीक ना लगे पर
मैने तुम्हारी शादी किसी औरसे नही मेरे अपने पति से करवाने की सोची है.
मैं जानती हूँ, और समझ सकती हूँ कि तुम जैसी लड़की को विधवाकी ज़िंदगी
बिताते देख कई बदमाशोंकी तुम पर बूरी नज़र होंगी पर एक बार तुम्हारी इनसे
शादी हो जाए फिर कोई तुम्हे छेड़नेकी जुर्रत नही करेगा. रही बात मेरी,
मैं अब काफ़ी कमज़ोर हूँ इस लिए तुम्हारा किसी दूसरे घर में ब्याह करवाकर
मैं अकेली अपना सभी कुछ नही संभाल सकती. तुम्हे मेरा ख़याल रखना आता है,
तुम इनकी भी अच्छी देखभाल करती हो."
मेरी दूसरी शादी और वो भी ससुर जी से? वो भी सासुमा खुद ये प्रस्ताव मेरे
सामने रख रही है ये सुनकर मैं चौंक गयी पर उतनी खुश भी थी. दूसरेही दिन
हम ने कोर्ट मॅरेज के लिए रिजिस्टर किया और पासवाले मंदिर मे शादी करली.
शादी करने के बाद मैने सासुमा से आशीर्वाद लिया ठीक उसी तरह जैसे मैने
पवन से शादी करने के बाद लिए थे. मुझे उठाते हुए उन्होने मुझसे कहा, अब
तुम मेरी बहू नही सौत हो पर साथ मे इनकी बीवी हो. आजसे तुम मुझे सासुमा
और इन्हे ससुर जी नही, दीदी और अजी करके पुकारना." मैं बोली, "जी दीदी".
(मैं तो इसी मौके के तलाश में थी असल में.)
उस दिन मेरी ससुर जी के साथ अफीशियल 'सुहाग रात' थी, उसे हम ने मेमोरबल
बनाया. उस रात हम ने 5 बार सेक्स किया, जब हमारा पहला 'सेक्स सेशन' चालू
था, तब उन्होने मुझसे पूछा," अब कहा टपकाऊं?अंदर या बाहर." मैं बोली,
"खबरदार अगर एकभि बूँद बाहर गिरा तो अब ये चूत आप ही की है. जामके बरसाईए
इसी मे. जल्दी मा बनाइए मुझे. मेरी कोख सूनी है आप ही के बच्चे को जन्म
देना चाहती है ये." मेरे ये ऑर्डर मिलने पर उन्होने मेरी चूत मे स्पर्म
शूट किया और मैं हर गोलाबारी मे घायल होती रही.
अब मैं प्रेग्नेंट हूँ, और फिलहाल हमारा 'सेक्स मिशन' इन्दिनो रुक गया
है.वे मेरा पूरा ख्याल रखते हैं पर मुझे बोर यही लगता है कि मैं उनकी
'सेक्स की भूख' प्रेग्नेन्सी के वजह से मिटा नही सकती. पर चलो एक बार मैं
डिलीवेर हो जाने दो, उनकी भूक- प्यास सभी मिटाते रहूंगी ज़िंदगी भर.
तो दोस्तो आपको ये कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त
ek anutha rishta--2
gataank se aage.......................
Mujhe raatbhar neend nahi aye, baar baar dupaharmein hui sare drushya
nazaronke saamne aate aur mujhe rulate the. Sasur jibhi raatko dhangse
so nahi paye, unke manmein bhi inhi baatonka chakkar ghum raha tha.
Subahke 4-4:30 ke paas mujhe neend lagi, sasur ji kab soye ki nahibhi
soye ye pata nahi. Us din 9 baje meri aankh khuli, der hui isliye main
jaldi main hi uthkar brush kar liya aur sasumaa ke breakfast ka
intezaam mein lag gayi. Unka nashta lekar main unke roommein gayi, tab
dekha ki sasur ji abhitak soye the. Apni patni ke alava koi aur
roommein aya hai ye mehsoos kar unki aankh khuli, par unhone meri or
dekha nahi.uthkar wo brushkarneke bahanese roomke bahar gaye. Maaji ka
nashta hua, aur maine unka breakfast aur chaay layi. Unhone sirf chaay
peeli aur paper padhne lage. Humesha ki tarah main bathroom nahne ke
liye jaane lagi, par aaj unki nazar mujhe dekhne ki jagah mujhe avoid
karne ki koshish main judi thi. Ek baar bhi unhone mujhe dekha nahi,
kitchen mein mere peeche aye nahi, mujhe choone ki koshish ki nahi.
Mainbhi unse nazrein churane lagi, unki harkaton ko ignore karne lagi.
Apni orse unka khana-peena sahi waqtpar ho raha hai nahi, sasumaako
koi takleef nahi ho rahi hai, yahi khabardaari main le rahi thi. Aise
karte karte 2-3din nikalgaye par na jaane kyon mujhe ye sabkuchbhi
theekh nahi lag rahatha, mujhe lag raha tha ki maine unhe dukhaya hai,
unhe thench pohchayi hai, unki bhavnaon ka anadar kiya. Issi kashmakah
mein main poori doob gayi. Man mein baar baar us dopaharki smrutiyan
ane lagi, unka wo balonko sehlana, chereko sarahana, boobs ko choona
aur unka mere right boob ko choosna, sabhi main mehsoos karne lagi.
Tab maine ek 'antim nirnay' leneka socha. Thodi der tak maine apni
aankhein band karli, aur phir naajane kyon main wahanse uthe aur sasur
jike saamne hall mein jaa pohonchi, maine unse kah, "maine antin
nirnanay liya hai." Bina kuch kahte hue unhone meri rai janne ki
darkhwast jatayi apne aankhonse.
Main boli, "aap sahi the aur main galat, mujhe meri galationko
sudharne ka mauka milega kya?" mera ye javab sunkar, ve sofaparse uth
gaye aur unhone mujhe apni bahonmein bhar liya, mainbhi unki bahon
mein simatkar rone lagi. Mere aasoon pochte pochte ve bole, "galti
nahi, nasamazhdari thi wo tumhari par ab tumhari akkal thikane aye
hai. Tum is galtiki sahimain kusurvaar ho. Tumhe saja milni chahiye."
Main boli, "saja kaatne ke liye main tayyar hoon par saja aaphise
loongi?" ye bolkar unhone mujhe theek us din ki tarh ek badhiyasa
chumban diya aur saath saath mere dono boobsko masalne lage. Mainbhi
uttejit hokar siskariyan lene lagi, theek usi tarah jaise main
nahtesamay leti thi.
Humari aawajein tez ho rahi hain ye jaante hue, main unhe bedroom main
chalne ke liye kahan. "Aapka hokum sarakhonpar" ki tarah wo mere peech
peech bedroom ki or chalne lage. Beech beech main ve meri gaand ko
dhakka marte apne dandese.
Hum bedroom pohonchehi nahi ki unhone mujhe apni godmain utha liya aur
bistaarpar phenka. Baadmein ek bhooke bhediyeki tarah ve meri or
badhne lage, mainbhi natkhatsi harkatein karte hue unse door bhag rahi
thi. Achanakse uthkar unhone bedroomka darvaja band kiya aur bhediyeki
tarah meri or badhe. Unse bachaav karne ka natak karte main bistaar ki
ek chorsse duri chor ki or ghumne lagi bistaaarpar. Ek modpar unhone
meri pairon ki kalayion ko pakada aur mujhe apni or keencha. Unka ye
kheechav itni tagda tha ki meri gaand seedhi unke laudeki chattan ko
takrane ki wajahse bistaar par rukpayee. Is majboot laude ka andaza to
laghi gaya par mehssos karma baki tha. Laude ko takrate hue unhone
kahan, "sahi jagah aa ruki hai tumhari ye natkhat gaand. Lagta hai
kafi bekarar hai ye?" main shaarmaayi, aur laajse choor choor hogayi.
Unhone mujhe kafi der tak chuma, baadmein unhone mere blouseki hooks
nikali aur bramain chupe boobs ko malne lage, bra badanpar rakhkarhi
ve mujhe mere boobs ko chumne lage.
Phir unka chumban neeche neeche sarakne laga, meri chaathi, mera pet,
meri naabhi ko ve choomne lage. Jaise jaise wo neech baadh rahe the
waisehi mere sharirmein current daud raha tha, jo aur aur strong hota
jaa raha tha. Akhirkar unke hoonth mere petticoat ke naadetak aa
ponchi, apne daatonse unhone use khol diya aur dheer dheere meri
kamarki charon or haath ghumane lage. Phir meri kamarko unhone pakda
aur dheer dheerese mere petticoat ko neeche sarakne lage, tab unhone
apni aankein band ki par haath mera petticoat utarne mein lage the.
Maine poochaa, "Kya hua, aankhein band kyun ki aapne?" unhone isharese
mujhe chup rahene ke liye kaha aur ve bole, "main is swargke dwaarko
khulte dekh nahi sakta ekdumse." Main boli, "waah kya aap pahli baar
dekh rahe hain is swarg ke dwaarko? Maajika 'gate' bigair dekhe hi
Pawanka agman hua tha kya? Ki koi aurhi tha uska baap?" wo haskar
bole, "nahi santaan to merahi tha wo saala, par kayar tha isliye bhaag
gaya tumhe mere havale chodkar.rahi baat tumhare saaske 'gate'ki wobhi
kya chut thi???? Use chodna meri majburi thi, kyonki main to kewal
apne vanshko badhana chahta tha. Par is kayarko paidakar maine apne
paani waste kiya uski maa ki chutmein. Chalo par issi wajahse aaj
mujhe tum mili ho." Main boli, "chodiyeji un purani batoonko. Unhe
bhoolakar naye lamhokho yaadgaar banate hai." Tabtak unhone mera
petticoat pooritarah utaar chuke the.
Unhone apni aankhien kholi aur gaurse meri pantyko dekhne lage.
Uttejanaki wajahse meri panty geeli hui thi aur mere chutse chipak
gayi thi. Is wajahse unhe meri chutka anumaan lagana aasaan tha.
Unhone mujhse poocha "kya tumne apni chutke baal shave kiye hain?"
main sharmakar kewal mundi hilayi. Tab ve bole, "nangi chut vo bhi
tumhari, meri jaan gajab rahegi.",ye kehkar unhone mujhe neeche
chooma. Mainbhi uchalkar unhe kehne lagi, "ab baasbhi kijiye tareef
karna." "kya karoo, ek hi cheez tareefekabil hoti tumhari to kabka
chup ho jaata main, par tumto uparse neechetak bemisaal ho. Kaash tum
meri zindagi main pahale aati???????" ye kahte hue ve mujhe neech
chutpar choomte rahe aur main unhe rokne ki koishish main lagi rahi.
Us raat unhone mujhe jamke choda aur mainbhi unhe poora sahyog diya.
Bahut maza aya. Poori raat hum sex ki maza le rahe the, dono poori
tarh jaise janmo janmose bhooke the.(waise sex ki bhook thi isilye
humne ye kadam uthaye the.) mere kehne ke anusaar unhone ek bhi baar
meri chut main sperms shoot nahi kiya kewal mere boobs par aur
nabhipar uska varshaav hota raha raatbhar. Par isse main kafi santusht
thi. Akhirkar hum subehke 6:30 ke aas paas so gaye. Sasur jine apne
kapde pehne aur chori chuppe apne bedroom main pravesh kiya (saasumaa
ko bina khabar lagte) aur chup chap so gaye. Main to poori tarahse
thak gayi thi, isliye main nangihi so gayi, sirf badan ek white
bedsheetse dhaka tha kehne ke liye.
Subah jab aankh khuli (9:30 ke aas paas, wo bhi saasumaa ne awaz
lagayithi) isliye main gadbada kar uthi. Apne aapko nivastra dekh main
shramse choor hui aur jaldi jaldi kapde pehente maine saasu maako "aa
rahi hoon maaji" kehkar unke bedroomki or bhagi. Maaji ko bhook lagi
thi isliye maine jaldi jaldi nashta banaya aur use lekar unke bedroom
mein pohonch gayi. Unko khilate waqt sasur ji soye hue the, main unhe
peeth kar (sahi mayine kehne ko gaand unki or kar bedpar baithi thi)
aur maaji ko khila rahi thi. Tab mujhe achanakse koi meri gaand sehlaa
raha hai aisa laga, tab samzha ki sasur ji jag gaye the aur ve meri
gaandke uparse haath ghooma rahe the. Maajiko ye sab nahi dikh raha
tha usika sasur ji poora fayda utha rahe the aur mujhe tangkar rahe
the. Jaldi jaldise maajiko khilakar maine wahanse bahar nikli, mere
peeche peeche hi sasur ji aye aur mujhe kitchen main pravesh karne ke
pahale mujhe pakda.
Main unke changulse chutne ki koshish kar rahi thi lagi tab unhone
apni grip aur majboot karli aur mere gaandmein apna danda ghusedte hue
kaha "ab kahan jaogi meri jaan? Gaand jo fasi hai is lundke shikanje
main." Main has padi. Tab unka haath mere kamarparse ghoomne laga aur
dheere dheere boobs ko dabanemein ve joot gaye. Main boli, " kyunji
thoda sabarto kijiye. Kamsekam brush to kar lijiye.tab tak main apka
nashta lagati hoon." Tab mujhe unhone ek kiss di mere hoothonpar aur
mujhe choddiya. Brush karne ke baad main unka nashta lekar dinin table
par le gayi. Use dekh ve bole, "mujhe ye nahi chahiye nashte main."
Maine poocha,"phir kya loge aap nashtemein?" mera sawal poora hotahi
nahi ki unhone mujhe apni or kheencha aur kaha, "aaj mujhe tumhe hi
khana hai, nashtemein, lunchmein aur dinnermeinbhi. Pyaas lagi to
tumhare boobs kaam ayenge." Main boli,"masti sab baadmein karma maaji
sun lengi." Ye kehkar mai unse door hui.
Nashta karneke baad unhone phir mauka dhoonda aur mujhe bahonmein bhar
liya. Ab vo safe jagahmain the, humari kitchenmain jahanse na kuch
dikhta hai nahi kuch sunayi deta hai unke bedroomse. Kitchenmein bhi
unhone mujhe peechese pakad liya, unka lund meri gaandmein sahi jagah
banakar tainat kahda tha. Gaandke is 'dvarpravesh' ki wajahse mainbhi
apne hosh kho baithi thi.meri naa sunte hue unhone meri saadiko
peechese uthene lage. Maine andar kuchbhi pehna nahi tha, is liye meri
gaand ka darshan unhe hua. Use unhone ek chata mara aur kaha, "bahut
bhagti hai tumhari ye gaand. Aaj isiko saja doonga." Main ghabra gayi
aur turant apni gaand ko unse ghumate hue unse kaha, "please ise saja
mat dijiye. Meri gaand apke mote lundko nahi sama sakegi." Ye kahte
waqt mere aankhose aasoon behne lage. Meri roti surat dekh ve bole,
"meri jaan daro nahi tum jaisa kahogi waise hi hoga. Poora maza lenge
vo bhi hum dono."
Unki yehi samazdarihi mujhe jyaada bhati aur main unhe apna sampoorn
badan samarpit kar deti. Tezise ve meri chutko chaathne lage aur main
bekaboo hote gayi. Akhir mein maine unse kaha, "chodiya mujhe, naa
chodiye iss raandi ko aapke tadapte hue." Ve bole, "raandi mat kaho
meri jaan apne aapko. Tum to meri sahi mayine main meri ardhangini
ho."ye kehkar unhone mujhe jamke choda uar veeryapatan pahli baarmere
moohmain kiya. Bahut ananddayi kshan tha vo. Mujhe unhone
'ardhangini'ka darja to jaroor diya tha par samaj mein aur saasumaa ke
samne mera kya hoga is rishte ka khulasa hone par? Issi pareshanise
main aaj-kal bechain rahti thi. Par saurji ke saath sex karne par meri
saari pareshaniyaan door hoti kyonki main sharirik roopse ab santusht
rehne lagi thi.
Ab main gharse bahar nikalti to mere tevar kuch aur hi hone lage. Main
bazaarmein jaati to shaanse, galike tapori mujhe dekh seeti marte to
mujhe gussa aata aur ek baar maine to ek badmash ko ek rakhkar dee aur
usse pooncha, "gharmain maa-behen nahi hai kya?" mera aisa bartaav
pahale nahi tha, main inhi ladkose pahale darti thi. Par abb main apne
sasurki gairkanoonihi sahi property hone ke karan main kisebhi meri
majboori ka fayda uthane deti nahi thi. Par in bataon ke barein mein
maine saurjise kabhibhi nahi kaha warna unhe to ve police stationki
hava khilate the. Meri iss changed attitude ke wajahse ve badmash mere
se doorhi rehne lage.
Ek din main na jaanu kyon upset thi, saurjine mera mood jaan liya aur
mere kareeb aakar unhone mujhse pooncha, " meri jaan chutko lagta hai
joronse pyaas lagi hain. Abhi lauda chahiye kya????????" main boli
"nahi. Rakhiye sambhalkar apne hi paas." Meri naraazi dekh ve bole,
"kya hua? Bataoto sahi." Main boli, "humara ye lupachupi bhara rishta
kab tak chalet rahega? Iska bhavish aage jaake kya hai? Aap mujhe
bhalehi ardhangini kahte ho parsamaaj ke liye main kewal ek ..." ye
kehkar main rone lagi. Ve mere kareeb aye aur mere aasoon ponchte
ponchte bole," daro mat meri jaan, jaldi main tumhe samaaj main patni
ka darja doonga." Maine pooncha "kaise? Saasumaa kya isse sveekarengi?
Kya samaaj isse pati-patni ka darja dega?" Usspar ve bole, "daro mat
ye saab meri zimmedari hai. Tum kewal sada hasti raho, main tumhe
kadapi dukhi nahi dekh sakta."
Kuch dino tak maine unhe karee bane bhi nahi diya, main unse
kahati,"pahli meri is ghar main position baniye phir mujhe payiye." Ve
bhi hatash the par kya karte mujhse door rahenge to kitna? Uss raatse
humare 'sex session nahi hue, par raat ko mujhe achchi neend aati aur
main theekhse so pati ye bhi ek ajuba tha. Kyonki aadatsi hui thi,
bigair sex kiye humdono ko neend nahi aati thi. Isliye sasur ji
chori-chupe bedroommein ghuste jaamke mujhe do baar to chodte aur apne
bedroom lautte the. Do dino baad kya hua pata nahi par uss raat naa
jane kya par unhone sote samay saasumaa se kya baat ki, par doosre din
saasumaa ne mujhe awaz lagayi, "bahu, o bahu zara yahan to aana." Main
boli, "ji maaji, aye." Wahan pohonchne par unhone mujhse gambhir
swarmein kahan, "maine tumhari doosri shaadi karwaneki thaan li hai."
Unki ye baat sunke main hadbada gayi main shaadi to karna chahti thi
par kisis aurse nahi apne sasurko hi apna pati aab main manne lagi
thi, ve hi mere malik the.
Par maine kuch nahi kaha, main chup rahi. Saasumaa ne isspar mujhse
pooncha,"kya tumhe doosri shaadi nahi karni? Zindagibhar asiehi widhva
ki zindagi bitana chahogi?" meri khamoshi dekh ve boli, "tumhe shayad
ye rishta theek na lage par maine tumhari shaadi kisi aurse nahi mere
apne patise karvane ki sochi hai. Main jaanti hoon, aur samazbhi sakti
hoon kit um jaise ladki ko widhvaki zindagi bitate dekh kai
badmaashonki tum par boori nazar hongi par ek bar tumhari inse shaadi
ho jaye phir koi tumhe chedneki jurrat nahi karega. Rahi baat meri,
main abb kafi kamzor hoon issliye tumhara kisi doosre ghar mein byaah
karvakar main akeli apna sabhi kuch nahi sambhal sakti. Tumhe mera
khayal rakhne aata hai, tum inkabhi achcha dekhbhal karti ho."
Mere doosri shaadi aur vo bhi sasur jise? Vo bhi saasumaa khud ye
prastaav mere saamne rakh rahi hai ye sunkar main chaunk gayi par utni
khush bhi thi. Doosrehi din humne court marriage ke liye register kiya
aur paaswale mandir main shaadi karli. Shaadi karne ke baad maine
saasumaa se ashirwad liye theekh usi tarah jaise maine pawanse shaadi
karne ke baad liye the. Mujhe uthate hue unhone mujhse kaha, abb tum
meri bahu nahi saut ho par saathmein inki biwi ho. Aajse tum mujhe
saasumaa aur inhe sasur ji nahi, did aur aji karke pokaarna." Main
boli, "ji didi". (main to issi mauke ke talash mein thi asal mein.)
Uss din meri sasur ji ke saath official 'suhaag raat' thi, use humne
memorable banaya. Uss raat humne 5 baaar sex kiya, jab humhara pehla
'sex session' chalu tha, tab unhone mujhse poocha," abb kaha
tapkaoon?andar ya bahar." Main boli, "khabardaar agar ekbhi boond
bahar gira to abb ye choot aaphiki hai. Jaamke barsayiye issimain.
Jaldi maa banayiye mujhe. Meri kokh sooni hai aaphi ka bachhe ko janm
dena chahti hai ye." Mere ye order milne par unhone mujhemain sperm
shoot kiya aur main har golabaari main ghayal hoti rahi.
Abb main pregnant hoon, aur filhaal humhara 'sex mission' indino ruk
gaya hai.ve mera poora kahyal rakhte hain par mujhe bora yahi lagta
hai ki main unki 'sex ki bhookh' pregnancy ke wajahse mita nahi sakti.
Par chalo ek baar main diliver ho jaane do, unki bhook- pyaas sabhi
mitate rahoongi zindagi bhar.
samaapt
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