Friday, January 31, 2014

FUN-MAZA-MASTI छोटे लंड से गुज़ारा

FUN-MAZA-MASTI
छोटे लंड से गुज़ारा 

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा आपके लिए एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो ये कहानी कुछ इस तरह है
यह कहानी उस समय की है जब मेरी नयी नयी शादी हुई थी. गाओं में पति पत्नी को मिलने के लिए मौका ढूँढना पड़ता है. रात में या तो पति चोरी से पत्नी की चारपाई पर आ जाता हे वारना कोई और जगह डूंड कर मिलन होता है. औरतों के लिए अलग वा मर्दों के लिए अलग सोने की जगह होती हे. इसी चोरी च्छूपे मिलने के कारण ही यह घटना घटी जो मेने अपनी आँखों से देखी कि कैसे छ्होटे भाई ने अपनी बड़ी बेहन को चोदा.मेरी बड़ी ननंद की शादी को चार साल हो चुके थे लेकिन उसका कोई बचा नहीं हुया था. हमारे गाओं के निकट एक मंदिर की बड़ी मान्यता थी के वॅन्हा जो भी मन्नत माँगता है पूरी होती है. मेरी ननंद भी इसीलिए हमारे यहाँ आई थी के वो भी मन्नत माँगे और मा बन सके. उस दिन मंदिर से हो कर लोटने के बाद वो और मैं एक कमरे मे बातें करते हुए सो गये थे लेकिन जिस चारपाई पर में सोती थी उस पर मेरी ननंद सो गयी और मैं उस के साथ वाली चारपाई पर सो गयी.रात को मेरा पति मेरे पास आया तो वो उस चारपाई पर जिस पर उसकी बेहन सोई थी चला गया, यह समझ कर के मैं उस पर सोई हूँ. मैं तो उस समय जाग रही थी लेकिन मेरी ननंद ( मेरे पति की बड़ी बेहन) सो चुकी थी. मैं चाहते हुए भी कुच्छ बोल ना पाई कि कही शोर मच जाए गा और यह बात खुल जाएगी के हम दोनो एक दिन भी मिले बिना नहीं रह सकते. मेरी चुप्पी से जो हो गया उस का मुझे अब भी पछतावा है लेकिन मेने यह बात अब तक ना तो अपने पति से कही है ना ही उस की बेहन से बताई है. भगवान की मर्ज़ी समझ कर चुप कर गयी और चुप ही हूँ और रहने की कोशिश कर रही हूँ.मैं चुप चाप देखती रही बड़ी बेहन को अपने छ्होटे भाई से चुदते हुए और कुच्छ ना कर सकी. मेरे पति ने भी मुझे समझ कर अपनी बड़ी बेहन को चोदा और उस की बड़ी बेहन ने अपना पति समझ कर अपने भाई से चूत मरवाई. जिस तरह हम पति पत्नी मज़ा लेते थे उसी तरह वो भाई बेहन चुदाई का मज़ा लेते रहे और में चुप चाप देखती रही.सुबह मेरी ननंद ने मुझे कहा' जानती है रात को सपने में तेरे नंदोई मेरे पास आए थे और आज रात को जितना मज़ा आया उतना पहले कभी नन्ही आया. आज तो उनका लंड भी काफ़ी लंबा और मोटा लग रहा था. लगता है यह सब बाबा ( मंदिर वाले) की कृपा है. मुझे लगता है के अब मेरे बच्चा ज़रूर हो जाएगा.'मेने कहा 'सब उपर वाले की कृपा है, मुझे भी लगता है के अब तेरे बच्चा जलदी ही हो जाए गा'वो बोली ' जलदी नही 9 महीने बाद'मैने कहा ' हाँ जल्दी से मेरा मतलब भी 9 महीने से ही है. यह तो में इसलिए कह रही हूँ के अब पक्का है के तू मा बन जाएगी'' मेरे बच्चा होने के बाद मैं मंदिर में प्रसाद चढ़ाने आउन्गि 'मैं सोच रही थी के प्रसाद तो तू चढ़ाने आए गी मंदिर में लेकिन बच्चा किस की कृपा से हुया है यह तो तू जानती ही नही और जब तक में बताउन्गि नहीं ना तुझे पता लगे गा ना तेरे पति को ना तेरे भाई को.अगले दिन वो अपने ससुराल चली गयी. रात को मेरा पति मेरे पास आया और मेरे से प्यार करने लगा लेकिन मेरा बार बार ध्यान उस की बेहन की ओर चला जाता था जो अंजाने में अपने छ्होटे भाई से चुद कर भी बहुत खुश थी.मेरे पति ने कहा 'क्या बात है आज तू कहाँ खोई है प्यार में मज़ा नही आ रहा क्या.'मेने जवाब दिया ' मज़ा तो बहुत आ रहा है लेकिन में सोच रहीं हूँ के यह चोरी चोरी प्यार कब तक करते रहेंगे . कोई ऐसा रास्ता निकालो के हमे चोरी चोरी ना मिलना पड़े.'' क्या बात है आज तुझे चोरी चोरी मिलने में मज़ा नहीं आ रहा जब के पिच्छाले 6 महीने से हम ऐसे ही मिल रहें हैं.'मैं चुप हो गयी और उसका लंड पकड़ कर देखने लगी के रात यह दूसरी चूत में गया था कुछ फरक पड़ा है या वैसा ही है. मेरे पति ने मुझे लंड को मुँह में लेने के लिए कहा तो मैं सोचने लगी के दूसरी चूत मे गया हुया लंड अपने मुँह में लूँ या नही. मेरा पति बोला क्या बात है आज तू कही और खोई हुई है कोई बात नही अगर तेरा दिल मुँह में लेने को नही करता तो कोई बात नही आज तेरी चूत में डाल कर ही इस की तसल्ली कर देता हूँ और उसने अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया और चुदाई का काम कर के अपने कमरे में चला गया और मैं बार बार सोचती जा रही थी के रात को जो हुया है इस में दोनो भाई बेहन जिन्हे पता भी नही उनका इस में क्या कसूर है. मुझे याद आने लगी अपनी एक सहेली की कहानी कैसे वो अपने छ्होटे भाई से चुदाई करवाती थी. लेकिन उसने तो जान कर अपने छ्होटे भाई का लंड लिया था के वो अभी बच्चा है और उस का पानी नहीं निकलता इसलिए बच्चा होने का डर नहीं था. यान्हा तो अंजाने में बड़ी बेहन अपने छ्होटे भाई से चुदति रही और यह सोचती रही के उसका पति उसे चोद रहा है.पूरे 9 महीने बाद मेरी ननंद को एक सुंदर सा लड़का हो गया. मैं अपने पति के साथ उसे मिलने गयी. बच्चा बिल्कुल मेरे पति की शकल का था. वो कहने लगी' देखा अपने मामा पर गया है. मैं सोचती थी के अपने बाप पर ना जाए'.मेने कहा' क्यो अपने बाप पर क्यो नहीं' वो बोली ' इस का बाप तो तुझे पता है इतना सुन्दर नही और हर मा अपने बच्चे को सुंदर देखना चाहती है. इसके अलावा तुझे एक राज़ की बात बताउ यह तो मंदिर वाले बाबा का आशीर्वाद है वारना मेरा पति तो शायद ज़िंदगी भर बच्चा पैदा नन्ही कर सकता'मेने पूछा ' क्यो'वो बोली ' उसका लंड बहुत छ्होटा है और उसका पानी भी बहुत जलदी छ्छूट जाता है. मुझे तो उस रात सपने में पहली बार मज़ा आया था, जिस के कारण मेरा बच्चा हुया है'मैं उसकी बात सुन कर सोचने लगी कही इसे इस बात का पता तो नही है के यह बच्चा उसके भाई का है और जानबूझकर कर मुझे बार बार यह कह रही है के भगवान का प्रसाद है.उसका लड़का 5 साल का हो गया था और मेरे भी दो बच्चे हो गये थे. उसका क्यो के दूसरा बचा नही हुया था इसलिए वो फिर बाबा का आशीर्वाद माँगने आई. मेने उसे कहा' बेहन भगवान ने तुझे एक बार आशीर्वाद दे दिया है उसी में तसल्ली कर. ज़यादा लालच करने से भगवान नाराज़ हो जातें हैं.'वो बोली ' भाबी भगवान से तो हम ज़िंदगी भर माँगते हैं भगवान कभी किसी से नाराज़ नहीं होता.'दूसरे दिन हम मंदिर गये और वापस आ कर फिर वो मेरे कमरे में ही सो गयी और कहने लगी ' भाबी तुझे पता है इसी कमरे में मुझे सपने में मेरे पति के चोदने से बच्चा हुया था इसलिए मैं इसी चारपाई पर सोउंगी.'मुझे अब शक और भी ज़यादा होने लगा के यह जानभूज कर मेरे से छुपा रही है लेकिन इसे सब पता है के इस का पति इसे बच्चा नही दे सकता और यह बच्चा इस के भाई का ही है. लेकिन क्यो के अब हमारी शादी को 5 साल हो गये थे और हमारे दो बच्चे भी हो गये थे इसलिए रात को मेरे पति का मेरे पास आना कम हो गया था उस पर मेने अपने पति को कह दिया के आज तुम रात को मत आना. कही तुम्हारी बेहन जाग गयी तो बड़े शरम की बात होगी. मेरे पति ने कहा ' इस में शरम की क्या बात है हम पति पत्नी हैं' फिर भी वो मेरा कहना मान कर रात को नही आया. सुबह मेने अपनी ननंद से पूछा ' रात को कैसा सपना आया तो'वो कहने लगी' लगता है तेरी बात सच है भगवान मुझे दूसरा बच्चा नहीं देना चाहते,. रात को सपना तो नही आया और आता भी कैसे मुझे रात भर नींद ही नही आई.मैने सोचा अच्छा हुया मेने अपने पति को आने से रोक दिया वारना भेद खुल जाता. वो अगले दिन अपनी ससुराल नही गयी तो मुझे फिर शक होने लगा के यह चाहती है के इस का भाई इसे चोदे और यह मा बने, लेकिन में उन्हें मौका नही देना चाहती थी. रात को वो बातें करते करते सो गयी लेकिन मुझे नींद नही आ रही थी. रात को देखा के मेरा पति चुप चाप आया और उसी चारपाई पर लेट गया जिस पर उसके बेहन लेटी थी. मैं जान बूझ कर चुप रह कर तमाशा देखना चाहती थी के वो जाग कर चुदाई करवाए गी या सोते हुए उसका भाई अंजाने में उस की चुदाई करता है. मैने देखा के मेरे पति ने उस का ब्लाउस खोला और उसके मम्मे पहले हाथ में लेकर दबाने लगा फिर मुँह में लेकर चूसने लगा. वो चुप चाप लेटी हुई थी अभी पता नही लग रहा था के वो सोई हुई है या उसे पता ही नही. थोड़ी देर बाद उसके भाई ने उस का लहंगा उपर किया और उसकी चूत पर हाथ फेरने लगा तो उसने अंगड़ाई ली. मुझे लगा के वो मज़ा ले रही है और जानबूझ कर चुप है. फिर भी आज मुझे सच्चाई को जानना था इसलिए बड़े ध्यान से देख रही थी के कैसे छ्होटे भाई से बड़ी बेहन चुदाई करवा रही है. जब उसने चूत हिलानी शुरू की तो मेरे पति उसके भाई ने अपना लंड उसकी चूत पर रख दिया. वो अपनी चूत को उपर उच्छालने लगी और उसके भाई ने अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया और फिर ज़ोर ज़ोर से झटके मार कर चुदाई करने लगा. अब यह भगवान जाने या वो दोनो के वो अंजाने में एक दूसरे से चुदाई करवा रहे थे या जानते हुए मज़े ले रहे थे. चुदाई के मज़े लेते हुए उन्होने मुँह से मुँह मिला कर एक दूसरी के होंठों का रस पीना शुरू किया तो मैं सोचने लगी के क्या इतना कुच्छ हो जाए और औरत को पता भी ना लगे ऐसा संभव है. लेकिन मुझे चाहे अपने पति का लंड दूसरी चूत में जाते अच्छा नहीं लग रहा था वो भी उसकी अपनी बेहन की चूत में लेकिन मेने सोच लिया था के मैं आज सच्चाई जान कर ही रहूंगी.अच्चानक मेने सुना के वो कह रही है ' भाई तेरी बेहन बहुत दिनो की प्यासी थी और तुझे कुच्छ कह भी नही सकती थी, लेकिन पिच्छली बार तुमने अपनी बीवी समझ कर जब मेरी चुदाई की तो मुझे पहली बार चुदाई का मज़ा आया था और उसके बाद बच्चा होने से तो मैं तेरे लंड की दीवानी हो गयी थी. तुझे आज बताउ के तेरे जीजा का लंड बिल्कुल छ्होटा है और मेरी क्या किसी भी औरत की तसल्ली नही कर सकता. कल तू नही आया तो मुझे नींद ही नही आई और मुझे एक दिन सिर्फ़ तेरा लंड लेने के लिए रुकना पड़ा.'' बोल मत मेरी पत्नी ने सुन लिया तो गड़बड़ हो जाएगी. यह तो ठीक है के पिच्छली बार मैं अपनी पत्नी के पास ही आया था और मुझे नहीं पता था के उसकी चारपाई पर तू सोई हुई है. लेकिन जब हो ही गया तो भगवान की मर्ज़ी समझ कर चुप करने में ही भलाई समझी'.'यह तो ठीक है होता है वोही जो मंज़ुरे खुदा होता है, लेकिन ऐसे कब तक चोरी चोरी मिलते रहेंगे और कब तक यह भेद बना रहेगा. पहले की बात दूसरी थी, जब तक तेरे लंड का स्वाद नही लिया था में तेरे जीजा के छ्होटे से लंड से ही गुज़ारा चला रही थी लेकिन अब तेरे लंड का स्वाद चखने के बाद इसके बिना रहा नहीं सकती.'' ऐसा कर कुच्छ दिन के लिए तू यही रह जा, फिर आगे की सोचेंगे.'सुबह मैने अपनी ननंद से पूछा ' रात को कोई सपना आया या नही'' रात बड़ा हसीन सपना आया, मज़ा आ गया, तेरी चारपाई में तो कोई जादू है. मेरे पति का लंड जो घर में छ्होटा लगता है यहाँ पर पता नही कैसे इतना बड़ा हो जाता है.'मैं सोचने लगी के इसे अभी यह बताउ के नहीं के मेने इनकी रात की बातें सुन ली है. फिर मैं यह सोच कर के अगर इन्हे यह कह दिया के मेने इनकी बातें सुन ली हैं तो इनका आगे का नाटक देखने का मज़ा नही मिलेगा. सच यह था के अब मुझे इनके झूठ की कहानी सुनने में मज़ा आने लगा था. अभी तो मेने अपने पति से इस बारे में ज़यादा बात ही नही की थी और मैं उस से बात करने की बजाए उसे रंगे हाथों पकड़ना चाहती थी. रात को मेरे बहुत कहने के बावज़ूद मेरी ननंद उसी चारपाई पर सोई और मैं रात भर भाई बेहन की चुदाई के मज़े लेती रही. एक बार दिल में आया के उठ कर उन्हें उस समय पकड़ लूँ जब भाई का लंड बेहन की चूत में होगा, लेकिन ना जाने क्यो मेने उनके मज़े में खलल डालना पसंद नही किया और चुप चाप भाई बेहन की चुदाई देखती रही. वो इस बार काफ़ी दिन रुकी और दोनो हर रात मेरे सामने ही खूब मज़े लेते रहे. अब कई साल हो गये हैं उसका एक और बच्चा भी हो गया है और वो ज़्यादा अब यहीं रहती है. मैने भी उन दोनो का राज ना तो कभी खोला खोलने की कोशिश की
तो दोस्तो कैसी लगी ये कहानी आपको ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा







Yeh kahani us samay ki hey jab meri nayee nayee shadi huyee thi. Gaon mein pati patani ko milaney ke liye mauka dundana padta hey. Raat mein ya to pati chori se patani ki charpayi par aa jata hey varana koyi aur jagah doond kar milan hota hey. auraton ke liye alag va mardon ke liye alag sone ki jagah hoti hey. Isi chori chhupe milane ke kaaran hi yeh ghatana ghati jo meine apani aankhon se dekhi ke kaise chhote bhai ne apani badi behan ko choda.Meri badi nanand ki shadi ko char saal ho chuke thei lekin uska koyee bacha nahin huya tha. Hamarey gaon ke nikat eik mandir ki badi manayata thi ke vanhan jo bhi mannat maangata hey poori hoti hei. meri nanand bhi isiliye hamarey yahan aayee thi ke voh bhi mannat maange aur maa ban sakey. Us din mandir se ho kar lotaney ke baad voh aur mein eik kamarey mei baatein karatey huye so gaye thei lekin jis charpayi par mein soti thi us par meri nanand so gayee aur mein us ke saath wali charpayi par so gayee.Raat ko mera pati mere paas aya to voh us charpayi par jis par uski behan soyi thie chala gaya, yeh samajh kar ke mein us par soyi hun. mein to us samay jaag rahi thie lekin meri nanand ( mere pati kei badi behan) so chuki thie. mein chahte huye bhi kuchh bol na payee ke kanhin shor mach jaye ga aur yeh baat khul jayegi ke hum dono eik din bhi mile bina nahin rah sakatey. Meri chuppi se jo ho gaya us ka mujhe ab bhi pachhtawa hey lekin meine yeh baat ab tak na to apaney pati se kahi hey na hi us ki behan se batayee hey. Bhagwan ki marzi samajh kar chup kar gayee aur chup hi hun aur rahaney ki koshish kar rahi hun.Mein chup chap dekhati rahi badi behan ko apaney chhote bhai se chudate huye aur kuchh na kar saki. mere pati ne bhi mujhe samajh kar apani badi behan ko choda aur us ki badi behan ne apana pati samajh kar apaney bhai se choot marwayee. jis tarah hum pati patni maza lete thei usi tarah voh bhai behan chudai ka maza lete rahey aur mein chup chap dekhati rahi.Subha meri nanand ne mujhe kaha' janati hey raat ko sapaney mein tere nanandoyi mere paas aaye thei aur aaj raat ko jitana maza aaya utana pehale kabhi nanhi aaya. Aaj to unka lund bhi kafi lumba aur mota lag raha tha. Lagata hey yeh sab baba ( mandir wale) ki kirpa hei. Mujhe lagata hey ke ab mera bacha jaroor ho jayega.'Meine kaha 'sab upar wale ki kirpa hei, mujhe bhi lagata hei ke ab tera bacha jaladi hi ho jaye ga'Voh boli ' jaladi nanhin 9 maheene baad'mainey kaha ' han jaladi se mera matalab bhi 9 mahiney se hi hey. Yeh to mein isliye kah rahi hun ke ab pakka hei ke tu maa ban jayegi'' mere bacha honey ke baad mein mandir mein parshad chadhaney anyu gi'mein soach rahi thi ke parshad to tu chadhaney aaye gi mandir mein lekin bacha kis ki kirpa se huya hei yeh to tu janatai hi nanhi aur jab tak mein bataun gi nahin na tujhe pata lage ga na tere pati ko na tere bhai ko.Agale din voh apaney sasuraal chali gayee. raat ko mera pati mere paas aaya aur mere se payar karaney laga lekin mera baar baar dhayan us ki behan ki aur chala jata tha jo anjaaney mein apane chhote bhai se chud kar bhi bahut khush thie.Mere pati ne kaha 'kaya baat hei aaj tu kanhan khoyee khoyee hey payar mein maza nanhin aa raha kaya.'Meine jawab diya ' maza to bahut aa raha hey lekin mein soach rahin hun ke yeh chori chori payar kab tak karate rahei ge. Koyi aisa raasta nikalo ke humein chori chori na milana pade.'' Kaya baat hey aaj tujhe chori chori milane mein maza nahin aa raha jab ke pichhale 6 mahiney se hum aisey hi mil rahein hein.'Mein chup ho gayee aur uska lund pakad kar dekhaney lagi ke raat yeh doosari choot mein gaya tha kuch farak pada hei ya vaisa hi hei. mere pati ne mujhe lund ko munh mein lene ke liye kaha to mein sochaney lagi ke doosari choot me gaya huya lund apaney munh mein loon ya nanhin. Mera pati bola kaya baat hey aaj tu kanhin aur khoyee huyi hei koyee baat nanhin agar tera dil munh mein lene ko nanhin karata to koyee baat nanhi aaj teri choot mein daal kar hi is ki tasalli kar deta hun aur usne apana lund meri choot mein daal diya aur chudayee ka kaam kar ke apaney kamarey mein chala gaya aur mein baar baar sochati ja rahi thie ke raat ko jo huya hei is mein dono bhai behan jineh pata bhi nanhi unka is mein kaya kasoor hei. Mujhe yaad aaney lagi apani eik saheli ki kahani kaise voh apaney chhote bhai se chudayee karwati thi. lekin usne to jaan kar apane chhote bhai ka lund liya tha ke voh abhi bachha hei aur us ka paani nahin nikalata isliye bacha honey ka dar nahin tha. Yanha to anjaaney mein badi behan apaney chhote bhai se chudati rahi aur yeh sochati rahi ke uska pati use chod raha hei.Poore 9 mahiney baad meri nanand ko eik sunder sa ladaka ho gaya. mein apaney pati ke saath use milane gayee. Bacha bilkul mere pati ki shakal ka tha. voh kehane lagi' dekha apaney mama par gaya hei. mein soachti thi ke apane baap par na jaye'.meiney kaha' kanyon apaney baap par kanyon nahin' voh boli ' is ka baap to tujhe pata hei itana sunder nanhi aur har maa apane bache ko sunder dekhana chahati hey. iske alawa tujhe eik raaz ki baat bataun yeh to mandir wale baba ka aashirwad hei varana mera pati to shayad zindagi bhar bacha paida nanhi kar sakata'Meine poochha ' kanyon'voh boli ' uska lund bahut chhota hey aur uska paani bhi bahut jaladi chhoot jata hey. mujhe to us raat sapaney mein pahali baar maza aaya tha, jis ke kaaran mera bacha huya hey'mein uski baat sun kar soachaney lagi kanhin ise is baat ka pata to nanhin hei ke yeh bacha uske bhai ka hei aur janbhoojh kar mujhe baar baar yeh keh rahi hei ke bhagwan ka parshad hey.uska ladaka 5 saal ka ho gaya tha aur mere bhi do bache ho gaye thei. Uska kanyon ke doosara bacha nanhi huya tha isliye voh phir baba ka aashirwad manganey aayee. Meine use kaha' behan bhagwan ne tujhe eik baar aashirwad de diya hei usi mein tasalli kar. jayada lalach karaney se bhagwan naraz ho jatein hein.'voh boli ' bhabi bhagwan se to hum zindagi bhar mangate hein bhagwan kabhi kisi se naraz nahin hota.'Doosarey din hum mandir gayee aur vapas aa kar phir voh mere kamarey mein hi so gayee aur kahaney lagi ' bhabi tujhe pata hei isi kamare mein mujhe sapane mein mere pati ke chodane se bacha huya tha isliye mein isi charpayee par sonyu gi.'Mujhe ab shak aur bhi jayada hone laga ke yeh jaanbhooj kar mere se chhupa rahi hey lekin ise sab pata hey ke is ka pati ise bacha nanhi de sakata aur yeh bacha is ke bhai ka hi hei. Lekin kanyon ke ab humari shaadi ko 5 saal ho gaye thei aur humare do bache bhi ho gaye thei isliye raat ko mere pati ka mere paas aana kum ho gaya tha us par meine apane pati ko keh diya ke aaj tum raat ko mat aana. kanhi tumahri behan jaag gayee to bade sharam ki baat hogi. mere pati ne kaha ' is mein sharam ki kaya baat hei hum pati patani hein' Phir bhi voh mera kehana man kar raat ko nanhi aayaa. subhah meine apani nanand se poochha ' raat ko kaisa sapana aayaa'voh kehane lagi' lagata hei teri baat sach hei bhagwan mujhe doosara bacha nahin dena chahate,. raat ko sapana to nanhin aayaa aur aata bhi kaise mujhe raat bhar neend hi nanhi aayee.Maine soacha achha huya meine apaney pati ko aane se rok diya varana bhed khul jata. Voh agale din apani sasural nanhi gayee to mujhe phir shak hone laga ke yeh chahati hei ke is ka bhai ise chode aur yeh maa bane, lekin mein unhen mauka nanhin dena chahati thie. raat ko voh baatein karte karate so gayee lekin mujhe neend nanhin aa rahi thie. raat ko dekha ke mera pati chup chap aaya aur usi charpayee par leit gaya jis par uske behan leti thie. mein jaan boojh kar chup rah kar tamasha dekhana chahati thie ke voh jaad kar chudayee karwaye gi ya sote huye uska bhai anjaaney mein us ki chudayee karata hey. Maine dekha ke mere pati ne us ka blouse khola aur uske mamme pehale haath mein lekar dabane laga phir munh mein lekar choosaney laga. voh chup chap leti huyee thie abhi pata nanhi lag raha tha ke voh soyee huyee hei ya use pata hi nanhi. thodi der baad uske bhai ne us ka lahanga upar kiya aur uski choot par haat pherane laga to usne angdayee li. mujhe laga ke voh maza le rahi hei aur janboojh kar chup hey. phir bhi aaj mujhe sachayee ko janana tha isliye bade dhayan se dekh rahi thi ke kaise chhote bhai se badi behan chudwayee karwa rahi hey. Jab usne choot hilani shuru ki to mere pati uske bhai ne apana lund uski choot par rakh diya. voh apani choot ko upar uchhalaney lagi aur uske bhai ne apana lund uski choot mein daal diya aur phir jor jor se jhatake maar kar chudayee karaney laga. Ab yeh bhagwan jaane ya voh dono ke voh anjaney mein eik doosarey se chudayee karwa rahe thei ya jaanate huye maze le rahe thei. chudayee ke maze lete huye unhoney munh se munh mila kar eik doosary ke honthon ka ras peena shuru kiya to mein sochaney lagi ke kaya itana kuchh ho jaye aur aurat ko pata bhi na lage aisa sanbhav hei. lekin mujhe chahe apaney pati ka lund doosari choot mein jate achha nahin lag raha tha voh bhi uski apani behan ki choot mein lekin meine soach liya tha ke mein aaj sachayee jaan kar hi rahungi.Achhanak meine suna ke voh keh rahi hey ' bhai teri behan bahut dino ki payasi thie aur tujhe kuchh keh bhi nanhin sakati thie, lekin pichhali baar tumaney apani biwi samajh kar jab meri chudayee ki to mujhe pehali baar chudayee ka maza aaya tha aur uske baad bacha hone se to mein tere lund ki diwani ho gayee thi. tujhe aaj batyu ke tere jija ka lund bilkul chhota hey aur meri kaya kisi bhi aurat ki tasalli nanhi kar sakata. kal tu nanhin aaya to mujhe neend hi nanhi aayee aur mujhe eik din sirf tera lund lene ke liye rukana pada.'' bol mat meri patani ne sun liya to gadbad ho jayegi. Yeh to theek hey ke pichhali baar mein apani patani ke paas hi aaya tha aur mujhe nahin pata tha ke uski charpayee par tu soyee huyee hey. lekin jab ho hi gaya to bhagwan ki marzi samajh kar chup karane mein hi bhalayee samajhi'.'yeh to theek hey hota hei vohi jo manzure khuda hota hei, lekin aise kab tak chori chori milate rahenge aur kab tak yeh bhed bana rahega. Pehale ke baat doosari thie, jab tak tere lund ka sawad nanhin liya tha mein tere jija ke chhote se lund se hi guzara chala rahi thi lekin ab tere lund ka sawad chakhane ke baad is bina raha nahin sakati.'' aisa kar kuchh din ke liye tu yanhi rah ja, phir aage ki soachen ge.'Subhah maine apani nanand se poochha ' raat ko koyee sapana aaya ya nanhin'' raat bada haseen sapana aaya, maza aa gaya, teri charpayee mein to koyee jadu hei. Mere pati ka lund jo ghar mein chhota lagata hei yanhan par pata nanhin kaise itana bada ho jaata hey.'Mein soachaney lagi ke ise abhi yeh batayun ke nahin ke meine inki raat ki baatein sun li hein. Phir mein yeh soach kar ke agar inehe yeh kah diya ke meine inki baatein sun li hein to inka aage ka natak dekhane ka maza nanhin milega. sach yeh tha ke ab mujhe inke jooth ki kahani sunaney mein maza aaney laga tha. Abhi to meine apane pati se is baarey mein jayada baat hi nanhin ki thie aur mein us se baat karaney ki bajaye use range haathon pakadana chahati thie. raat ko mere bahut kahaney ke bawazood meri nanand usi charpayee par soyee aur mein raat bhar bhai behan ki chudayee ke maze leti rahi. eik baar dil mein aaya ke uth kar unhen us samay pakadoon jab bhai ka lund behan ki choot mein hoga, lekin na jane meine unke maze mein khalal dalana pasand na kiya aur chup chap bhai behan ki chudai dekhati rahi. voh is baar kafi din ruki aur har raat mere samaney hi khoob maze lete rahe. ab kanyee saal ho gaye hein uska eik aur bacha bhi ho gaya hei aur voh jayada ab yanhin rahati hei.




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FUN-MAZA-MASTI सहेली क़ी खातिर पार्ट--5 लास्ट

FUN-MAZA-MASTI
सहेली क़ी खातिर पार्ट--5 लास्ट

  गतांक से आगे............. साड़ी कमर तक उठ गयी तो उसके हाथ अब मेरी टाँगों के जोड़ पर फिरने लगे। बाद में जब मेरी चूत पर हाथ फिरने लगा तो मैंने बहुत धीरे से अपनी टाँगें कुछ खोल दीं। उसकी एक अँगुली अंदर मेरी चूत पर फिरने लगी। मैं बुरी तरह गरम हो गयी थी। उसने अपना लंड मेरे बदन से सटा दिया और मेरे बदन पर अपना लंड रगड़ने लगा। मुझे लग रहा था की वो अपने लंड को मेरे अंदर कर दे मगर मैं शरम से चुप थी और वो भी शायद पकड़े जाने से डर रहा था। उसने मेरे बदन से अपना लंड रगड़ते हुए अपना वीर्य छोड़ दिया। फिर वो अलग हट कर सो गया मगर मेरी नींद उड़ गयी थी। मुझे पता नहीं चल पा रहा था कि क्या करूँ। मैंने अपनी ब्लाऊज़ के बटन खोल लिए। कुछ देर तक अपनी अँगुलियों से ही अपनी चूत को दबाती रही मगर गर्मी बर्दाश्त के बाहर हो गयी तो मैं अपने दूसरी तरफ सो रहे आदमी के रजाई में घुस गयी और उसके बदन से अपना बदन रगड़ने लगी। बगल में जो भी सो रहा था कुछ ज्यादा उम्र का था मगर बदन से गठीला था। मैं अपने बदन को उसके बदन पर रगड़ने लगी मगर वो शायद गहरी नींद में था इसलिए उसके शरीर में कोई हर्कत नहीं हुई। मैंने अपने होंठ उसके निप्पल पर रख दिए और जैसे कोई किसी लड़की के निप्पल चूसता है उसी तरह उसके निप्पलों को चूसने लगी। अपने होठों को अब मैं उसके घने बालों से भरे सीने पर फिराने लगी। मुझे वैसे ही बालों से भरा बदन अच्छा लगता है। मैंने अपना हाथ उसके बदन पर फिराते हुए धीरे से लंड के ऊपर रखा। उसने एक धोती पहन रखी थी। मैं उसकी धोती को एक तरफ करके अंदर से उसके लंड को निकाल कर सहलाने लगी। उसका लंड ढीला था। मैं उसे कुछ देर तक हाथ से सहलाती रही। सहलाने से उसके लंड में हल्की सी हर्कत हुई। मुझसे नहीं रहा जा रहा था। मैं किसी बात की परवाह किए बिन उठा कर बैठ गयी और उसके ढीले लंड को अपने मुँह में भर लिया। उसके लंड को जीभ से और होंठों से चाटने लगी। उसका लंड अब खड़ा होने लगा। मैं उत्तेजना में अपने चूंचियों को अपने हाथों से मसल रही थी। मेरी चूत से पानी रिस रहा था। जब मैंने देखा कि उसका लंड पूरी तरह तन गया है तो मैं ऊपर उठी और उसके कमर के दोनों ओर अपने पैरों को फैला कर बैठ गयी। मैंने अपने हाथों से उसके लंड को पकड़ कर अपनी गीली चूत पर सैट किया और दूसरे हाथ से अपनी चूत की फाँक को फैला कर लंड के सामने के सुपाड़े को अंदर किया। फिर अपने हाथों को वहाँ से हटा कर उसके सीने पर रखा और अपने बदन का बोझ उसके लंड पर डाल दिया। उसका लंड काफी मोटा था। वो मेरी चूत की दीवरों को रगड़ता हुआ पूरा अंदर चला गया। मैं उसके लंड पर बैठ गयी थी। मेरी इस हर्कत से उसकी नींद खुल गयी। मैं उसके शरीर में हर्कत देख कर झट उसके सीने पर झुक गयी और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए जिससे कि वो अचानक नींद से उठ कर कुछ बोल नहीं पड़े। मगर मैंने देखा कि वो चुप ही रहा। उसके हाथ मेरे बदन पर फिरने लगे और फिर उसके हाथों ने मेरी दोनों चूंचियों को थाम लिया। मैंने उसके सीने का सहार लेकर अपनी कमर ऊपर नीचे करने लगी। वो भी मेरे चूंचियों को मसलता हुआ हर धक्के के साथ अपनी कमर ऊपर उठा रहा था। मेरी चूंचियों को जोर जोर से चूसते हुए अपने दाँतों से काट रहा था। दाँतों से काटने की वजह से काफी दर्द हो रहा था मगर मैं अपने निचले होंठ को दाँतों में दबा कर मुँह से कोई भी आवाज निकलने से रोक रही थी। मेरे बाल मेरे चेहरे पर खुल कर बिखर गए थे। अँधेरे में पता ही नहीं चल रहा था कि मैं किस का लंड अपनी चूत के अंदर ले रखी हूँ। शायद उसे भी खबर नहीं होगी। कुछ देर तक इसी तरह उसे ऊपर से धक्के लगाने के बाद मेरी चूत ने पानी चोड़ दिया मगर मेरी चूत की प्यास अभी नहीं बुझी थी। उसने अब मुझे नीचे लिटा दिया और मेरे टाँगों को फैला कर दोनों हाथों से पकड़ लिया। अब वो अपना लंड मेरी चूत से सटा कर धक्का लगाने लगा। फिर से धक्के शुरू हुए। काफी देर तक इसी तरह करने के बाद मुझे उठाकर अपनी गोद में पैर फैला कर बिठा लिया और मैं उसकी गोद में बैठ कर कमर उचकाने लगी। उसने मेरे निप्पलों को मुँह में भर लिया और उन्हें चूसने लगा। मैंने अपने हाथों से उसके मुँह को अपने सीने पर दबा दिया। वो मेरी चूंचियों को मुँह में भर कर चूसने लगा। मेरे निप्पलों को दाँतों से दबा रहा था। कुछ देर तक इस तरह करने के बाद मुझे वापस बिस्तर पर लिटा कर मेरे टाँगों को अपने कँधे पर रख लिया और फिर जोर जोर से चोदने लगा। अब वो झड़ने के करीब था। मैं उसकी उत्तेजना को समझ रही थी। वो अब मेरे चूंची के साथ बहुत सख्ती से पेश आ रहा था। उसकी अँगुलियाँ मेरी नाज़ुक चूंचियों को बुरी तरह मसल रही थी। दर्द के कारण कईं बार मुँह से चीख निकलते निकलते रह गयी। मैंने अपने निचले होंठ को दाँतों में दबा लिया। उसने एक जोर का धक्का लगाया और उसके लंड से गरम गरम फ़ुहार मेरी चूत के अंदर पड़ने लगी। मैंने उसे खींच लिया और उसके होंठों और चेहरे पर कईं चुंबन दिए। उसी के साथ मैं भी तीसरी बार झड़ गयी। मैंने उत्तेजना में अपने लम्बे नाखून उसकी नंगी पीठ पर गड़ा दिए। वो थक कर मेरे ऊपर ही लेट गया। जब उसका लंड ढीला पड़ गया तो वो मेरे सीने से उतर कर मुझसे लिपट कर सो गया। मैं भी तीन बार स्खलित होके उसके होंठों से अपने होंठ लगाये हुए सो गयी। मैं सुबह पाँच बजे उठ जाती हूँ। आज जब उठी तो कमरे में अँधेरा था। मैं अपने बगल वाले से चिपकी हुई थी। दूसरी तरफ वाला भी अपनी एक टाँग मेरे ऊपर चढ़ा रखा था। मैंने अपने को उन दोनों से छुड़ाया और धीरे धीरे उनके नीचे से अपने कपड़ों को खींच और फिर अँधेरे में ही उन्हें पहन कर कमरे से बाहर निकलने लगी। तभी खयाल आया कि एक बार देखूँ तो सही कि कौन थे रात को मेरे साथ। मैंने लाईट जलायी तो उन्हें देखते ही चौंक गयी। वहाँ एक तरफ तो नैनीताल वाले फ़ुफ़ा-ससुर सोये हुए थे और मुझे रात भर चोदने वाला और कोई नहीं मेरे अपने ससुर जी थे यानी रिटा और राज के पिताजी। मैं तुरंत लाईट बँद करके वहाँ से भाग गयी। मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। मैं ये सोच कर अपने दिल कोतसल्ली दे रही थी कि शायद उन्हें पता नहीं चला है कि रात को उन्होंने किसके साथ चुदाई की है। मैंने एक सलवार कुर्ता पहन रखा था, जिसका गला काफी खुला हुआ था। मैं सुबह अपने ससुर को चाय देने के लिए जब झुकी तो मेरा गला और ज्यादा खुल गया। उठते हुए मेरी नज़र उनसे मिली वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहे थे। मैंने अपनी चूंचियों की तरफ देखा। खुले गले से लाल-लाल दाँतों से बने निशान उनकी आँखों के सामने रात की कहानी का ब्योरा दे रहे थे। मैं शर्मा कर अपनी नज़र झुका कर वहाँ से भाग गयी। उस दिन शाम को उन्होंने अकेले में मुझे पकड़ लिया। मैं तो एक दम घबड़ा गयी थी। उन्होंने मेरी चूंचियों को मसल कर कहा “अब रोज हमारे साथ ही सोया कर। तेरे नैनीताल वाले ससुर जी भी यही कह रहे थे।” “धत्त” कह कर मैं अपने आप को छुड़ा कर वहाँ से भाग गयी लेकिन हर दिन मैं वहीं सोयी। उन दोनों बुड्डों के बीच। दोनों के साथ खूब खेली कुछ दिनों तक। शादी वाले दिन बारात के साथ सुरेश आया था। मैं उसे देख कर शर्मा गयी। उससे नज़र बचा कर थोड़ा अलग हो गयी। मगर उसकी निगाहें तो मुझे ही ढूँढ रही थी। शादी घर से कुछ दूर हो रही थी। एक बार मैं किसी काम के लिए शादी के मंडप से घर आ रही थी। गाँव में जैसा होता है… रास्ते में अँधेरा था। अचानक भूत की तरह सुरेश सामने आया। “अनिता” उसने आवाज लगायी। मैं रुक गयी। “क्या बात है मुझे बहुत जल्दी भूल गयी लगता है” “कौन है तू… मेरा रास्ता छोड़ नहीं तो अभी आवाज लगाती हूँ… तेरी ऐसी हजामत होगी कि खुद को आईने में नहीं पहचान पायेगा” मैंने नासमझ बन कर कहा। “नो बेबी तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी…” उसने कड़कते हुए कहा, “मेरे पास तेरी सी.डी अभी भी है… बोल चला दूँ क्या तेरे ससुराल वालों के सामने… कहीं भी मुँह नहीं दिख पायेगी।” यह सुनते ही मैं सकपका गयी। “क्या चाहते हो तुम? देखो मैं वैसी लड़की नहीं हूँ… एक अच्छे घर की बहू हूँ… तुम मुझे जाने दो।” मैंने उससे कहा। “तो हम भी कौनस तुझे कुछ कहने वाले हैं। इतने दिनों बाद मिली हो.. बस एक बार हमारे ग्रुप का मन रख लो… फिर तुम अपने घर हम अपने घर।” उसने मुझे मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा। “देखो मैं अगर लेट हो गयी तो लोग मुझे ढूँढते हुए यहाँ आ जायेंगे… छोड़ो मुझे।” “ठीक है अभी तो छोड़ देते हैं लेकिन तुझे रात को आना पड़ेगा… नहीं तो उस फ़िल्म की कॉपियाँ तेरी ससुराल में सबको फ़्री में बँटवा दूँगा” कहकर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया। मैं छूटते ही भागी तो उसने पीछे से आवाज लगायी “हमें इशारा कर देना कि कहाँ चलना है… जगह ढूँढना तेरा काम है” मैं भाग गयी वहाँ से लेकिन एक टेंशन तो घुस ही गयी दिमाग में। समझ में नहीं आ रहा था कि मैं कैसे मकड़ी के जाल में उलझती जा रही हूँ। इसका कोई अँत ही नहीं दिख रहा था। लेकिन इतना तो मालूम था कि वो झूठ नहीं बोल रहा था। केशव के साथ होटल में हुई पहली मुलाकत में उसने मूवी कैमरे से सब कुछ खींचा था। अब अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वो मुझे बदनाम कर देगा। इसलिए मैंने उससे मिल ही लेने का विचार किया। सुबह ३ बजे फेरे थे, इसलिए मैंने सुरेश को इशारा किया। वो मेरे पीछे हो लिया। मैं अपनी सासू माँ को कुछ देर घर से हो कर आने को कह कर वहाँ से निकल गयी। रात के ग्यारह बज रहे थे और ज्यादा तर लोग सो चुके थे। जो मंडप में थे वो ही सिर्फ़ जागे हुए थे। इसलिए पकड़े जाने का कोई सवाल ही नहीं था। सुरेश के साथ तीन और आदमी थे। मैं उन्हें घर ले गयी। छत पर अँधेरा था और मैं उन्हें वहाँ ले गयी। “देखो जो करना है जल्दी करो… अभी शादी का माहौल है… कभी भी कोई आ सकता है” मैंने कहा। चारों ने मुझे पकड़ लिया और मेरे बदन से लिपट गये। मेरे कपड़ों पर हाथ लगते ही मैंने कहा, “इन्हें मत उतारो… मैं साड़ी उठा देती हूँ … तुम्हें जो करना है कर लो। मेक-अप बिगड़ गया तो कोई भी समझ जायेगा” “तू यहाँ चुदवाने आयी है या हम पर एहसान कर रही है… साली रंडी कितने ही मर्दों से चुदवा चुकी है… अब सती-सावित्री बन रही है। उतार साली अपने कपड़े” उसने दहाड़ कर कहा। मैंने भी देखा कि चारों मानने वाले हैं नहीं, इसलिए मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू किए। साड़ी उतार कर मैंने उनसे फिर मिन्नतें की “प्लीज़ ऐसे ही जो करना है करलो मेरे सारे कपड़े मत उतारो” मैंने सुरेश को कहा। “नहीं ब्लाऊज़ और पेटीकोट तो उतारना ही पड़ेगा” मैंने धीरे-धीरे अपना ब्लाऊज़ और पेटीकोट उतार दिया। अब मैं सिर्फ ब्रा- पैंटी और हाई हील सैंडल पहने ठंडी रात में छत पर उन चारों के सामने खड़ी थी। फिर उनकी तरफ देखते हुए अपनी ब्रा के स्ट्रैप कँधे सी नीचे सरका दी। मैंने हुक नहीं खोला लेकिन ब्रा से चूंचियों को आजाद कर दिया। अब चारों ने झपट कर मुझे पकड़ लिया और मेरे अँगों को सहलाने लगे। एक मेरे होंठों को चूस रहा था और मेरे होंठों से लिपस्टिक का स्वाद चख रहा था। दूसरा मेरी चूंचियों को मसल रहा था। एक मेरे पैरों के बीच बैठ कर मेरी पैंटी नीचे खिसका कर मेरे चूत के ऊपर अपनी जीभ फिरा रहा था। चौथे आदमी को जगह नहीं मिल रही थी इसलिए मैंने उसे भी शामिल करने के लिए हाथ बढ़ा कर उसके लंड को थाम लिया और हाथ से उसे प्यार करने लगी। चारों मुझे खींच कर मुँडेर पर ले गये और मुझे वहाँ मुँडेर की रेलिंग पकड़ कर आगे झुका कर सुरेश ने मेरे पीछे से अपना लंड अंदर डाल दिय औरतेजी से अंदर बाहर करने लगा। उन लोगों का उतावलापन देख कर मुझे मजा आ रहा था। “ठहरो थोड़ा रुको” मैंने कहा”इस तरह एक-एक को संतुष्ट करने में सारी रात लग जायेगी… समय नहीं है ज्यादा… चारों एक साथ आ जाओ।” मुझे इस तरह गरम बातें करते देख तीनों मस्त हो गये। मैंने एक को जमीन पर लेटने को कहा। अब मैंने किसी बात की परवाह किये बिना अपनी पैंटी अपनी टाँगों से निकाल दी और ब्रा का भी हुक खोल कर के उतार दी और अब मैं सिर्फ हाई हील सैंडल पहने बिल्कुल नंगी थी। चुदाई की गरमी के कारण मुझे मौसम की सर्दी का एहसास नहीं हो रहा था। वहाँ एक दरी का इंतज़ाम करके एक तो उस पर लेट गया। मैंने अपने पैर फैला कर उसके लंड को अपनी चूत में सटा कर उसे अपने अंदर ले लिया। मेरे मुँह से एक “हुम्म्म्फफ” की आवाज निकली और मैं उसके लंड पर बैठ गयी । मैंने अपने शरीर को दो चार बार ऊपर नीचे किया। चूत-रस से लंड गीला हो जाने के कारण कोई तकलीफ नहीं हुई। फिर मैं उसके ऊपर झुक गयी और मैंने अपने पैर फैला कर सुरेश को पीछे से आने को कहा। सुरेश ने मेरे चूत्तड़ों को खोल कर गाँड के मुहाने पर अपना लंड सटा कर एक जोर का झटका लगाया। “ऊऊऊऊऊऊईईईईईईईई मैं मरररर गयीईईईईई,” मैं चींख उठी, “अरे इसे कुछ गीला तो करो काफी दर्द हो रहा है।” “तेरी गाँड में आज तो सुखा ही डालूँगा” कह कर उसने एक और झटका दिया और उसके लंड के आगे का सुपाड़ा अंदर चला गया। मेरी आँखें दर्द से उबल रही थी। “नहींईंईंईंईं प्लीज़ज़ज़़ऐसे नहींईंईंईंईं,” मैं चींख रही थी, “प्लीज़ज़ ऊऊऊऊऊऊ मेरी माँ…आआआ” “चुप, चुप किसी ने सुन लिया तो गज़ब हो जायेगा,” सुरेश ने कहा तो मैंने अपने निचले होंठ को अपनी दाँतों से काट लिया और दर्द को झेलने की कोशिश करने लगी। मैंने अपने दोनों हाथों में बाकी दोनों के लंड पकड़ रखे थी। दर्द के मारे उनके लंड पर मेरी पकड़ काफी मजबूत हो गयी। सुरेश ने एक और झटका मारा अपनी कमर को और आधा लंड अंदर था। ऐसा लग रहा था मानो किसी ने अंदर गरम लोहे का रॉड डाल दिया हो। मेरे अलावा बाकी चारों को मजा आ रहा था। दर्द से मेरे आँसू आ रहे थे। एक और झटके में उसने सारा लंड अंदर डाल दिया और मैं कराह उठी। “अबे तू तो इसकी सूखी गाँड मार लेगा लेकिन ये हम दोनों के लंड को जड़ से ही उखाड़ देगी,”पास खड़े एक आदमी ने कहा। मैं अपने शरीर को ढीला छोड़ कर सारा दर्द सहने की कोशिश कर रही थी। कुछ देर बाद जब दर्द कम हुआ तो उसने अपने लंड को अंदर बाहर करना चालू कर दिया। मैं बाकी दोनों के लंड को बारी बारी चूस रही थी। छत पर चाँदनी में पाँच शरीर एक दूसरे से गुँथे हुए चमक रहे थे। एक ऊपर से झटके दे रहा था, दूसरा नीचे से अपनी कमर उचका रहा था। सबसे पहले सुरेश ने मेरी गाँड को अपने लंड की पिचकारी से भर दिया। फिर जो आदमी नीचे था, उसके भी लंड का पानी निकल गया। एक ने तो उत्तेजना में अपनी धार मेरे चेहरे पर छोड़ दी लेकिन चौथे का अभी तक नहीं निकला था। उसने मुझे उठा कर घोड़ी बना दिया और पीछे से मेरी चूत में लंड डाल कर चोदने लगा। पहले से उत्तेजित होने के कारण ज्यादा देर वो टिक नहीं सका और मेरी चूत में ढेर सारा वीर्य भर दिया। मैं उसी तरह झुकी हुई हाँफ रही थी। चारों चुपचाप रात के अँधेरे में नीचे जा कर गायब हो गये। मैं उठी और अपने कपड़ों को समेटते हुए नीचे झाँका। नीचे किसी की आवाज ना सुन कर मैं उसी हालत में नीचे आयी और आइने के सामने जा कर अपने बदन को निहारा। चूंचियों पर दाँतों के दाग लगे थे। चेहरे पर और दोनों चूंची के बीच झूलते मंगल सुत्र पर ढेर सारा वीर्य लगा था।, जो बूँद बूँद नीचे की ओर चु रहा था। कुछ वीर्य के कतरे मेरे चूंचियों पर भी थे। टाँगों के बीच से और पीछे से वीर्य मेरी जाँघों से बहता हुआ मेरे सैंडलों तक बह रहा था। मैंने बाथरूम में जा कर अपना बदन साफ़ किया और फिर वापस अपने मेक-अप को ठीक कर के लड़खड़ाते कदमों से शादी के मंडप में पहुँची। रिटा मुझे खा जाने वली निगाहों से देख रही थी। मुझे अपने पास बुला कर कान में धीरे से कहा “कहाँ थी अब तक” “वो… वो सुरेश और केशव के कुछ साथी मुझे जबरदस्ती ब्लैकमेल करके ले गये थे” मैंने भी उसके कानों में धीरे से कहा। वो समझ गयी… करती भी क्या… उसी ने तो आज मुझे इस जगह पहुँचा दिया था। उसी की खातिर… अपनी सहेली की खातिर ही तो मैं चुदाई के इस दलदल में फँस कर चुदक्कड़ बन गयी थी। ॥॥॥ समाप्त ॥॥॥





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FUN-MAZA-MASTI सहेली क़ी खातिर पार्ट--4

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सहेली क़ी खातिर पार्ट--4


 गतांक से आगे............. “नहीं प्लीज़… यहाँ नहीं।” मैं फुसफुसा कर बोली। “कुछ नहीं होगा”दिनेश ने कहा। “आआआआआप दोनों क्या कर रहे हो… मैं आपके छोटे भाई की बीवी हूँ,” मैंने कहा, “मैं बर्बाद हो जऊँगी… प्लीज़ छोड़ दो मुझे।” “ठीक है।” दीपक ने कहा और फिर ड्राइवर से बोला “गाड़ी सन-व्यू होटल की तरफ ले चलो” ड्राइवर ने कुछ देर में होटल के पोर्च में लेजा कर कार रोकी। मैं तब तक अपने कपड़े वापस पहन चुकी थी। उनकी बाँहों में समाये मैं लाऊँज में पहुँची। दीपक ने अलग हो कर काऊँटर पर जा कर कुछ बात की और फिर हमारे पास आकर बोला कि चलो रूम नम्बर १८० में। दोनों मुझे लेकर फर्स्ट फ्लोर पर बने १८० नम्बर कमरे में आ गए। दोनों अंदर घुसते ही मुझ पर टूट पड़े। कुछ ही पलों में मैं पूरी तरह नंगी थी। दोनों इतने उतावले थे कि मुझे अपने सैंडल भी नहीं उतारने दिए और मुझे फटाफट उठाकर बिस्तर पर लिता दिया और मेरी टाँगें फैला दीं। दोनों अभी तक पूरे कपड़ों में थे। दिनेश ने अपने होंठ मेरे निप्पल पर लगाए और उसे मुँह में लेकर चूसने लगा। दीपक मेरे गालों पर अपने होंठ फिराने लगा। एक जाड़ी होंठ टाँगों की तरफ से मेरी चूत की तरफ बड़ रहे थे तो दूसरी जोड़ी होंठ मेरे माथे से फिसलते हुए गालों पर, कानों के पीछे से दोनों बाँहों को चूमते हुए मेरे होंठों पर आकर रुके। पूरे बदन में सिरहन सी दौड़ रही थी। मुझे लग रहा था कि दोनों देर क्यों कर रहे हैं… मुझे पकड़ कर अब तो बस मसल दें। दीपक ने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और अपनी जीभ को सारे मुँह में फिराने लगा। दूसरे की जीभ मेरे नीचे वाले मुँह में घूम रही थी। मैंने उत्तेजना में दिनेश का सिर अपने हाथों से अपनी चूत पर दबा दिया और उसकी जीभ को अपनी चूत के और अंदर लेने के लिए मैं अपनी कमर उचकाने लगी। मेरी टाँगें उठकर उसकी पीठ पर आपस में जुड़ कर उसके सिर को दबा रही थी। उधर दीपक के होंठ मेरे होंठों को छोड़ कर धीरे-धीरे नीचे सरकते हुए पहले मेरे गले पर और फिर धीरे धीरे मेरी चूंचियों के ऊपर फिरने लगे। मेरी पूरी चूंची को होंठों से नापने के बाद मेरे निप्पलों पर धीरे धीरे फिरने लगे। मैं उत्तेजना में पागल होने लगी। मुँह से “आआआआआहहहहह नहींईईईई ऊऊऊऊहहहहह” जैसी आवाजें निकलने लगी। बिना किसी का लंड अपने अंदर लिए और दोनों ने कपड़े उतारे बिना मुझे जोर से स्खलित होने पर मजबूर कर दिया। मैं गर्मी से हाँफ रही थी। मेरी बड़ी बड़ी चूंचियाँ हर साँस के साथ उठा गिर रही थीं। दोनों मुझे इसी हाल में छोड़ कर अपने अपने कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगे हो गए। मैं वहाँ लेटी लेटी उनके नंगे बदन को निहार रही थी। दोनों के लंड काफी लम्बे और मोटे थे, केशव की तरह। दीपक बिस्तर पर चढ़ कर लेट गया और मुझे अपने ऊपर लिटा लिया। मैंने अपनी टाँगें खोल कर उसके लंड को अपनी चूत पर लगाया और एक झटके में ही दीपक का लंड अपनी चूत के अंदर ले लिया। थोड़ी सी तकलीफ हुई मगर चूत बुरी तरह गीली होने के कारण एक बार में ही लंड अंदर तक चला गया। अब मैं उसके लंड पर धीरे धीरे उठने बैठने लगी। अब दिनेश बिस्तर पर चढ़ा और उस पर खड़ा होकर अपने लंड को मेरे होंठों से छुवाया। फिर मेरे मुँह को पकड़ कर अपने लंड को मेरे होंठों पर फिराने लगा। मैंने होंठ खोल कर उसके लंड को ऊपर से नीचे तक जीभ फिरायी। उसकी गोटियों को मुँह में लेकर कुछ देर तक चूसीं और फिर उसके लंड के ऊपर के छेद पर अपनी जीभ फिराने लगी। पहले अपने होंठों को थोड़ा सा खोल कर सिर्फ उसके लंड के ऊपर के सुपाड़े को तरह तरह से चूसा और फिर अपने मुँह को पूरी तरह खोल कर जितना हो सकता था उसके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। साथ साथ उसके लंड पर अपनी जीभ भी फिरा रही थी। दीपक मेरी चूंचियों को अपने दोनों हाथों से मसल रहा था। मैं उसके लंड पर तेजी से उठा बैठ रही थी। पूरे लंड को एक दम बाहर तक निकालती और फिर तेजी से उसे पूरा अंदर तक ले लेती। उसने मेरे निप्पलों को मसल-मसल कर बड़े बड़े कर दिए थे। वो मुझे अपनी कमर उठा उठा कर चोद रहा था। कुछ देर बाद दिनेश ने अपना लंड मेरे मुँह से निकाला। उसका लंड मेरे थूक से लिसड़ा हुआ चमक रहा था। मैंने उसकी तरफ देखा कि वो क्या करना चाहता है। मगर उसका जवाब दिया दीपक ने जब उसने मेरे निप्पलों को बुरी तरह मसलते हुए अपनी तरफ खींचा। मैं उसके सीने पर लेट गयी। दिनेश ने पीछे से आकर मेरे दोनों चूत्तड़ों को अलग कर के अपना लंड मेरी गाँड के छेद पर लगा कर ठेला मगर उसका लंड काफी मोटा होने के कारण अंदर नहीं जा पाया। उसने दोबारा मेरी गाँड के छेद को जितना हो सकता था उतना फैला कर अंदर ठेला मगर इस बार भी अंदर नहीं जा पाया। फिर उसने अपनी दो अँगुलियाँ दीपक के लंड के साथ साथ मेरी चूत में डाल दीं। जब अँगुलियाँ बाहर निकालीं तो उनमें मेरी चूत का रस लगा हुआ था। उसे उसने अपने लंड पर लगाया और दोबारा चूत के अंदर अँगुली डाल कर रस बाहर निकाला और मेरी गाँड की छेद में अँगुली डाल कर उस जगह को गील किय। फिर उसने अपना लंड वहाँ लगा कर जोर से ठोका। उसका लंड किसी तरह थोड़ा अंदर घुसा। दर्द की एक तेज लहर मेरे बदन में फैल गयी और मैं “आआआआहहहह” कर उठी। अपने सुपाड़े को अंदर कर वो कुछ देर के लिए रुका तो थोड़ा दर्द कम हुआ। कुछ देर बाद एक झटके में ही उसने पूरा का पूरा लंड मेरी गाँड के अंदर कर दिया। फिर तो दोनों भाइयों में होड़ लग गयी मुझे चोदने की। एक ऊपर से ठोक रहा था तो दूसरा नीचे से कमर उठा रहा था। “हहहहम्म्म्म्म्*फफफफफ उउउउहहहहह फफफफ” जैसी आवाजें तीनों के मुँह से निकल रही थीं। तीनों पसीने से तरबतर हो गए। बहुत शक्ति थी दोनों में। करीब घंटे भर तक चलती रहा मेरी चूत और गाँड की चुदाई। फिर पहले दीपक के लंड ने अपनी पिचकारी छोड़ी और फिर दिनेश ने मेरी गाँड को अपने लंड के पानी से भर दिया। मैं तो पहले ही अपनी चूत का रस कईं बार छोड़ चुकी थी। हम तीनों एक दूसरे के ऊपर ही कुछ देर तक लेटे रहे। फिर दूसरे दौर के लिए तैयारी करने लगे। कईं घंटों तक यूँ ही चुदाई का दौर चलता रहा जब तक हम तीनों थक कर चूर न हो गए। शाम को तीनों उठ कर कपड़े पहन कर सन-सेट पाईंट देखने गए। मुझे उन्होंने पैंटी और ब्रा नहीं पहनने दीं। सीने पर सिर्फ साड़ी लपेट रखी थी क्योंकि ब्लाऊज़ भी उन्होंने पहनने से रोक दिया था। शॉल ओढ़ रखी थी इसलिए किसी को पता नहीं चल रहा था। मगर रास्ते में दोनों मेरे चूंचियाँ मसलते रहे। वो जगह बहुत ही रोमाँटिक लगी। घनी पहाड़ियों के बीच सूरज अस्त हो रहा था। बर्फ की चोटियाँ लाल रंग से नहायी हुई थीं और ऐसा लग रहा था मानो बर्फ में आग लग गयी हो। बहुत ही रोमाँटिक दृश्य था। हल्का हल्का अँधेरा होने लगा तो दोनों मुझे बारी बारी अपने सीने से लिपटा रहे थे। मैं भी उनसे लिपट कर किस कर रही थी। वहाँ से हम घर लौटे। घर में हम आपस में सामान्य बर्ताव करने लगे। राज की तबियत थोड़ी ठीक हुई थी मगर अभी भी एक दम स्वस्थ होने में समय लगने वाला था। दोनों ने डिनर के वक्त सबको सुनाते हुए कहा,”अनिता कल यहाँ से कोई ८० किलोमिटर दूर एक बहुत ही प्यारी जगह है… सुबह वहाँ के लिए निकलना है और लौटते हुए देर रात हो जायेगी” बुआ जी यह सुनते ही बोलीं, “नहीं कोई जरूरत नहीं रात को इन पहाड़ियों में ड्राइव करने की। दिनेश ये तो नई है लेकिन तू क्या पागल हो गया है। रात को वहीं रुक जाना। तेरा दोस्त है ना बाबू उसके घर रुक जाना।” मैंने पल भर के लिए दिनेश और दीपक की तरफ देखा तो दोनों कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे। मैं समझ गयी थी कि दोनों मुझे क्या क्या दिखाने वाले हैं रात भर। अगले दिन सुबह हम वहाँ के लिए निकल पड़े। दो घंटे में वहाँ पहुँच गए। वहाँ सारी जगह घूमने के बाद उनके दोस्त बाबू के घर गये। वहाँ उनका भरा पूरा परिवार था इसलिए एक होटल में ही कमरा बुक किया। शाम को बाबू भी आ गया था। तीनों की महफिल जमी। मैंने बदल कर एक पारदर्शी ब्लाऊज़ और पेटीकोट और साथ में बहुत ही हाई हील के सैंडल पहन लिये था। उन्होंने और कुछ पहनने ही नहीं दिया। मैंने तीनों के ग्लास में पैग बनाये। स्टीरियो पर एक डाँस नम्बर लगा दिया था। उनके कहने पर मैंने भी ज़िंदगी में पहली बार व्हिस्की पी। किसी तरह नाक सिकोड़ कर दो ग्लास खाली कर दिये। लेकिन इसी में ही मेरा सिर घूमने लगा। मेरे साथ तीनों बारी बारी थिरक रहे थे और डाँस करते करते कामुकता से मेरे बदन पर हाथ फिराते हुए मेरे होंठों को चूस रहे थे। मैं भी उनके साथ पूरे मूड में थी और मैं उनके सथ ही खूब अपने बदन को रगड़ रही थी। तभी डाँस करते करते मुझे दिनेश ने पीछे से पकड़ा और मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोलने लगा। बाबू मेरे पेटीकोट को ऊँचा कर के मेरी चूत के ऊपर से सहलाने लगा। दीपक मेरे पेटीकोट के ना़ड़े से उलझा हुआ था। उसमें गाँठ पड़ गयी तो उसने एक झटके में नाड़े को तोड़ दिया। तब तक दिनेश मेरे ब्लाऊज़ को बदन से अलग कर चुका था। अब मैं पूरी तरह नंगी हो गयी और सिर्फ हाई हील सैंडल पहने थिरकने लगी। फिर मैंने भी तीनों के कपड़े उतार कर उन्हें बिल्कुल नंगा कर दिया और हम एक दूसरे के बदन मसलने लगे। तीनों ने मुझे घुटनों पर बिठा दिया और तीन मोटे तगड़े लंड मेरे सामने झटके खा रहे थे। मैं बारी बारी से तीनों के लंड चूस रही थी। एक के लंड को कुछ देर तक मुँह में लेकर चूसती और फिर पूरे लंड पर जीभ फिराती और बीच बीच में अन्ड-कोशों पर भी अपनी जीभ फिराती। फिर उसे छोड़ कर यही सब दूसर;े लंड के साथ करती। तीनों बहुत ज्यादा उत्तेजित हो चुके थे। फिर उन्होंने मुझे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। दिनेश को मेरी चूत चाटने में बहुत मजा आता था इसलिए वो मेरी चूत पर अपना मुँह रख कर अपनी जीभ अंदर डाल कर मेरे रस को चाटने लगा। दीपक मेरी चूंचियों पर चढ़ बैठा। उसके लंड को दोनों चूंचियों के बीच में लेकर मैंने अपनी दोनों चूंचियों को अपने हाथों से जोड़ रखा था। वो मेरी चूंचियों के बीच अपना लंड आगे पीछे करने लगा। बाबू ने मेरी बगल में आकर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया। तीनों अब मेरे शरीर से खेलने लगे। मैं भी बहुत गरम हो गयी थी। इन सब के बीच मेरा एक बार पानी निकल गया। सबसे पहले दीपक ने मेरी चूंचियों और चेहरे के ऊपर अपने लंड का पानी गिरा दिया। फिर बाकी दोनों ने मुझे उठा कर घोड़ी की तरह बनाया और पीछे की तरफ से मेरी चूत में बाबू ने अपना लंड डाल दिया। दिनेश के लंड को अभी भी मैं चूस रही थी। मैंने अपनी चूत का पानी दूसरी बार बाबू के लंड पर छोड़ दिया। दोनों काफी देर तक मुझे इसी तरह चोदते रहे और फिर दोनों एक साथ झड़ गए। बाबू के पानी ने मेरी चूत को भर दिया और दिनेश ने मेरे मुँह को अपने वीर्य से भर दिया। कुछ देर मेरे मुँह में स्खलित होने के बाद दिनेश ने अपना लंड मेरे मुँह से खींच कर बाहर निकाल लिया और बाकी ढेर सारा वीर्य मेरे चेहरे पर और मेरे चूंचियों पर गिरा दिया। तीनों थक कर पसर गये। मैं खुद को साफ करने के लिए उठना चाहती थी मगर उन्होंने मुझे उठने नहीं दिया और मुझे वैसे ही वीर्य से सने हुए पड़े रहने को कहा। इसी तरह आसन बदल-बदल कर रात भर और कईं दौर चले। दीपक और दिनेश तो दो दिन से काफी मेहनत कर रहे थे इसलिए मुझ में दो बार स्खलित हो कर थक गये। मगर बाबू ने मुझे रात भर काफी चोदा। सुबह हम नहा धो कर तैयार होकर वापस आ गये। मैं थक कर चूर हो रही थी। बुआ ने मुझे पूछा, “क्यों रात को ढँग से सो नहीं पायी क्या?” मैंने सहमती में सिर हिलाया। दीपक मुझे देख कर मुस्कुरा दिया। अगले दिन तक राज ठीक हो गया था लेकिन तब तक मैंने काफी सैर कर ली थी। बहुत घुड़सवारी हो चुकी थी मेरी। उसके बाद भी मौका निकाल कर उन दोनों ने मुझे कईं बार चोदा। हफ्ते भर बाद हम वापस आ गए और उसके बाद उनसे मुलाकात ही नहीं हुई दोबारा। मैं अपनी ससुराल में काफी खुश थी। मुझे बहुत अच्छा ससुराल मिला था। राज शेखर की बहुत ही अच्छी नौकरी थी। वो एक कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर थे। काफी अच्छी सैलरी और पर्क्स थे। मुझे मेरी प्यारी सहेली एक ननद के रूप में मिली थी। हम दोनों में खूब घु थी। केशव कभी-कभी आता था मगर मैं उससे हमेशा बचती थी। अब उसका साथ भी अच्छा लगने लगा था। उसने रिटा के प्रेगनेंनसी की बात झूठी सुनायी थी, जिससे कि मैं विरोध छोड़ दूँ। लेकिन केशव ने मुझे ग्रूप सैक्स का जो चस्का लगाया था उसे दीपक और दिनेश ने जम कर हवा दे दी थी। अब हालत यह थी कि मुझे एक से चुदवाने में उतना मजा नहीं आता था, लगता था सारे छेद एक साथ बींध दे कोई। रिटा और केशव दोनों खूब चुदाई करते थे। राज कभी कभी कईं दिनों तक बाहर रहता था और तब मुझे सैक्स की भूख बहुत सताती थी। मैं केशव को ज्यादा लिफ्ट नहीं देना चाहती थी। केशव कीjoint familyथी। उसमे उसके अलावा दो बड़े भाई और दो बहनें थीं। दो भाई और एक बहन की शादी हो चुकी थी। अब केशव और सबसे छोटी बहन बची थी सिर्फ। रिटा की शादी एक साल बाद दिसंबर के महीने में तय हुई। उसकी शादी गाँव से हो रही थी। मैं पहली बार उसकी शादी के सिलसिले में गाँव पहुँची। वहाँ आबादी कुछ कम थी। पुराने तरह के मकान थे। राज के परिवार वालों का पुशतैनी मकान अच्छा था। उसके ताऊजी वहाँ रहते थे। मुझे खुली-खुली हवा में सोंधी-सोंधी मिट्टी की खुशबू बहुत अच्छी लगी। कमरे कम थे इसलिए एक ही कमरे में जमीन पर बिस्तर लगता था। शाम को जिसे जहाँ जगह मिलती सो जाता। एक रात को मैं काम निबटा कर सोने आयी तो देखा कि मेरे राज के पास कोई जगह ही नहीं बची। वहाँ कुछ बुजुर्ग सो रहे थे। बाकी सब सो चुके थे, सिर्फ मैं और माताजी यानि मेरी सास बची थी। वो भी कहीं जगह देख कर लुढ़क पड़ी। मैंने दो कमरे देखे मगर कोई जगह नहीं मिली। फिर एक कमरे में देखा कि बीच में कुछ जगह खाली है। सर्दी के कारण सब रजाई ओढ़े हुए थे और रोशनी कम होने के कारण पता नहीं चल रहा था कि मेरे दोनों और कौन कौन हैं। मैं काफी थकी हुई थी इसलिए लेटते ही नींद आ गयी। मैं चित्त होकर सो रही थी। बदन पर एक सूती साड़ी और ब्लाऊज़ था। सोते वक्त मैं हमेशा अपनी ब्रा और पैंटी उतार कर सोती थी। अभी सोये हुए कुछ ही देर हुई होगी कि मुझे लगा कि कोई हाथ मेरे बदन पर साँप की तरह रेंग रहा है। मैं चुपचाप पड़ी रही। वो हाथ मेरी चूंची पर आकर रुके। उसने धीरे से मेरी साड़ी हटा कर मेरे ब्लाऊज़ के अंदर हाथ डाला। वो मेरे निप्पलों को अपनी अँगुलियों से दबाने लगा। मैं गरम होने लगी उसकी हर्कतों से। मैंने कोशिश की जानने की कि मेरे बदन से खेलने वाला कौन है। मगर कुछ पता नहीं चला क्योंकि मैं हिल भी नहीं पा रही थी। वो काफी देर तक मेरे निप्पलों से खेलता रहा। उसकी हर्कतों से मेरे निप्पल सख्त हो गये और मेरी चूंची भी एक दम ठोस हो गयी। अब उसके हाथ मेरी नंगे पेट पर घूमते हुए नीचे बढ़े। उसने अपना हाथ मेरी साड़ी के अंदर डालना चाहा लेकिन नाड़ा कस कर बँधा होने के कारण वो अपना हाथ साड़ी के अंदर नहीं डाल पाया। उसने मेरी साड़ी उठानी शुरू कर दी। क्रमशः.............






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FUN-MAZA-MASTI सहेली क़ी खातिर पार्ट--3

FUN-MAZA-MASTI

सहेली क़ी खातिर पार्ट--3

 गतांक से आगे............... रिटा ने अपने वादे के मुताबिक मेरे रिश्ते की बात अपने मम्मी पापा से चलायी और वो मान भी गये। साथ ही साथ उसका रिश्ता भी केशव के साथ पक्का हो गया। छः महीने में ही हम दोनों की शादी पक्की हो गयी – एक साथ। इन छः महीनों के दौरान केशव ने मुझे कई बार अलग-अलग जगह पर बुला कर चोदा। उसके पास मेरी मूवी थी जिसे एक दिन उसने हम दोनों को दिखाया। मैं तो शर्म से पानी पानी हो गयी पर रिटा ने खूब चटखारे लिए। मैं अब केशव के चँगुल में पूरी तरह फँस चुकी थी। उसने मुझे अकेले में धमकी भी दे रखी थी की उसकी बात अगर मैंने नहीं मानी तो वोह ये फिल्म राज को दिखा देगा। खैर मैंने समझौता कर लिया। शादी से कुछ ही दिन पहले केशव के किसी रिश्तेदार की मृत्यु हो गयी। इसलिए उनकी शादी स्थगित हो गयी। मेरी और राज की शादी निश्चित दिन को ही होनी थी। हमारे घर में शादी की तैयारियाँ चल रही थी। रिटा केशव को भी हमारे घर ले आयी। दोनों की सगाई हो चुकी थी इसलिए किसी को किसी बात की चिंता नहीं थी। हल्दी की रस्म शुरू होनी थी और मेरे घर वाले उस में व्यस्त थे। मेरे कमरे में आकर रिटा मुझे लेकर बाथरूम में घुसी। “अपने ये कपड़े खोल कर ये सूती साड़ी लपेट ले”उसने कहा तो मैं अपने कपड़े खोलने लगी। तभी दरवाजे पर नॉक हुई। कौन है पूछने पर फुसफुसाती हुई केशव की आवाज आयी। रिटा ने हल्के से दरवाजा खोला और वो झट से बाथरूम में घुस गया। “मरवाओगे आप… इस तरह भरी महफ़िल में कोई देख लेगा तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी… जम कर जूते पड़ेंगे” रिटा ने कहा। मगर वो कहाँ इतनी जल्दी मान जाने वाला था। वैसे भी ये बाथरूम हमारे बेडरूम से अटेच्ड था। इसलिए किसी को यहाँ आने से पहले बेडरूम का दरवाजा खटखटाना पड़ता। केशव पहले से ही सारा इंतज़ाम करके आया था। उसने दरवाजा अंदर से बँद कर दिया था। आज तो अनिता बहुत ही सुंदर लग रही है,” केशव ने कहा, “आज तो इसे मैं तैयार करूँगा… तू हट।” रिटा मेरे पास से हट गयी और केशव उसकी जगह आ गया। उसने मेरे कुर्ते को ऊँचा करना चालू किया और मैंने भी हाथ ऊँचे कर दिए। अब तक मैं इतनी बार केशव की हम-बिस्तर हो चुकी थी की अब उसके सामने कोई शर्म बाकी नहीं बची थी। सिर्फ़ किसी के आ जाने का डर सता रहा था। उसने मेरे कुर्ते को बदन से अलग कर दिया। फिर मुझे पीछे घुमा कर मेरी ब्रा के हुक ढीले कर दिए। फिर दोनों स्ट्रैप पकड़ कर कँधे से नीचे उतार दिए और मेरी ब्रा खुलकर उसके हाथों में आ गयी। उसने उसे मेरे बदन से अलग करके अपने होँठों से चूमा और फिर रिटा को पकड़ा दी। फिर उसने मेरी सलवार के नाड़े को पकड़ कर उसे ढीला कर दिया। सलवार टाँगों से सरसराती हुई नीचे ढेर हो गयी। फिर उसने मेरी पैंटी के इलास्टिक को दो अँगुलियों से खींच कर चौड़ा किया और अपने हाथ को धीरे-धीरे नीचे ले गया। छोटी सी पैंटी बदन से केंचुली की तरह उतर गयी। मैं उसके सामने अब बिल्कुल नंगी हो गयी थी। उसने खींच कर मुझे शॉवर के नीचे कर दिया। फिर मेरे बदन को मसल मसल कर नहलाने लगा। रिटा ने रोकना चाहा कि अभी नहीं। लेकिन उसने कहा”तुम दोबारा नहला देना।” मुझे नहलाने के बाद उसने मेरे सारे बदन को पोंछ-पोंछ कर सुखाया। “लो अनिता को ये साड़ी पहनानी है। देर हो रही है उसे हल्दी लगवानी है।” रिटा ने एक साड़ी केशव की तरफ बढ़यी। “पहले मैं इसे अपने रस से नहला दूँ… फिर इसे कपड़े पहनाना।” कह कर केशव ने मुझे बाथरूम में ही झुकने को मजबूर कर दिया। पहले केशव की इन बदतमीजियों से मुझे सख्त नफ़रत थी मगर आजकल जब भी वो मुझे विवश करता था तो पता नहीं मुझे क्या हो जाता था। मैं चुपचाप उसके कहे अनुसार काम करने लगती थी… मानो उसने मुझे किसी मोहपाश में बाँध रखा हो। उसने पीछे से अपना लंड मेरी चूत में डाल दिया और मेरे बूब्स को मसलता हुआ धक्के मारने लगा। “जल्दी करो… लोगबाग खोजते हुए यहाँ आते होंगे” रिटा ने केशव से कहा। वो मुझे धक्के खाते हुए देख रही थी। “मेरी सहेली को क्या कोई रंडी समझ रखा है तूने… जब मूड आये टाँगें फैला कर ठोकने लगता है।” केशव काफी देर तक मुझे इस तरह चोदता रहा और फिर मेरी एक टाँग को ऊपर कर दिया। उस वक्त मैं दीवर का सहारा लिए हुए खड़ी थी और मेरा एक पैर जमीन पर था और दूसरे को केशव ने उठा कर अपने हाथों में थाम रखा था। वोह मेरी फैली हुई चूत में अपना लंड डाल कर फिर चोदने लगा। मगर इस स्थिति में वो ज्यादा देर नहीं चोद सका और मेरी टाँग को छोड़ दिया। फिर उसने मुझे रिटा का सहारा लेने को मजबूर कर दिया और फिर शुरू हो गया। मैंने उसकी इस हरकत से तड़पते हुए अपने चूत-रस की वर्षा कर दी। वो भी अब छूटने ही वाला था। उसने अचानक अपना लंड बाहर निकाल लिया और मुझ घुटनों के बल झुका कर मेरे बदन को अपने वीर्य से भिगो दिया। मेरे चेहरे पर, बूब्स पर, पेट, टाँगों और यहाँ तक कि बालों में भी वीर्य के कतरे लगे हुए थे। कुछ वीर्य उसने मेरी ब्रा के कप्स में डाल दिया। केशव ने फिर एक बार अपना लंड मसल कर मेरे बदन पर अपने वीर्य का लेप चढ़ा दिया। पूरा बदन चिपचिपा हो रहा था। फिर उसने मुझे उठा कर अपने वीर्य से भीगी हुए ब्रा मुझे पहना दी। उसने फिर मुझे बाकी सारे कपड़े पहना दिए और मैं बाथरूम से बाहर आ गयी। फिर रिटा ने आगे बढ़ कर दरवाजा खोल दिया और हम बाहर निकल गये। केशव दरवाजे के पीछे छिप गया था और हमारे जाने के कुछ देर बाद जब वहाँ कोई नहीं था तो चुपचाप निकल कर भाग गया। उसकी हरकतों से मेरा दिल तो काफी देर तक जोर-जोर से धड़कता रहा। रिटा के माथे पर भी पसीना चू रहा था। हल्दी की रस्म अच्छी तरह पूरी हो गयी और फिर कोई घटना नहीं हुई। मैं शाम को छः बजे ब्यूटी-पॉर्लर से मेक-अप करवा कर लौटी थी। ब्यूटीशियन ने बहुत मेहनत से साँवारा था। मैं वैसे भी बहुत खूबसूरत थी इसलिए थोड़ी मेहनत से ही एक दम अप्सराओं की तरह लगने लगी। सुनहरी रंग की लहँगा-चोली और सुनहरी रंग के ही हाई हील सैंडलों में एकदम राजकुमारी सी लग रही थी। रिटा हर वक्त साथ ही थी। काफी देर से केशव कहीं नहीं दिखा था। शादी के लिए एक मैरिज हाल बुक किया गया था। उसके फर्स्ट फ्लोर पर मेरे ठहरने का स्थान था। मैं अपनी सहेलियों से घिरी हुई बैठी थी। रात को लगभग नौ बजे बैंड वालों का शोर सुनकर पता चला कि बारात आ रही है। मेरी सहेलियाँ दौड़ कर खिड़की से झाँकने लगी। वहाँ अँधेरा होने से किसी की नजर ऊपर खिड़की पर नहीं पड़ती थी। अब मेरी सहेलियाँ वहाँ से एक-एक कर के खिसक गयीं। कुछ को तो बारात पर फूल वर्षा करनी थी और कुछ दुल्हा और बारात देखने के लिए भाग गयी। मैं कुछ देर के लिए बिल्कुल अकेली पड़ गयी। एक दरवाजा पास के कमरे में खुलता था। अचानक वो दरवाजा खुला और केशव अंदर आया। मैं इस वक्त उसे देख कर एक दम घबरा गयी। उसने आकर बाहर के दरवाजे को बँद कर दिया। “केशव अब कोई गलत हर्कत मत करना… किसी को पता चल गया तो मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो जायेगी… सब थूकेंगे मुझ पर और मैं किसी को मुँह दिखाने के भी काबिल नहीं रह जाऊँगी।” मैंने अपने हाथ जोड़ दिए और वो चुप रहा। “देखो शादी के बाद जो चाहे कर लेना… जहाँ चाहे बुला लेना मगर आज नहीं। आज मुझे छोड़ दो।” “अरे मैं कोई रेपिस्ट थोड़ी हूँ जो तेरा रेप करने चला हूँ। आज इतनी सुंदर लग रही हो कि तुमसे मिले बिना नहीं रह पाया। बस एक बार प्यार कर लेने दे।” वो आकर मुझसे लिपट गया। मैं उससे अपने को अलग नहीं कर पा रही थी। डर था सारा मेक-अप खराब नहीं हो जाये। मैंने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया। उसने मेरे बूब्स पर हल्के से हाथ फिराये। शायद उसे भी मेक- अप बिगड़ जाने का डर था। “आज तुझे इस वक्त एक बार प्यार करना चाहता हूँ” कहकर उसने मेरे लहँगे को पकड़ा। मैं उसका मतलब समझ कर उसे मना करने लगी मगर उसने सुना नहीं और मेरे लहँगे को कमर तक उठा दिया। फिर उसने मेरी पिंक रंग की पारदर्शी पैंटी को खींच कर निकाल दिया और उसे अपनी पैंट की जेब में भर लिया। फिर मुझे खुली हुई खिड़की पर झुका कर मेरे पीछे से सट गया। उसने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अपने खड़े लंड को मेरी चूत में ठेल दिया। मैं खिड़की की चौखट को पकड़ कर झुकी हुई थी और वो पीछे से मुझे चोद रहा था। सामने बारात आ रही थी और उसके स्वागत में भीड़ उमड़ी पड़ी थी। और मैं – दुल्हन – किसी और से चुद रही थी। अँधेरा और सामने एक पेड़ होने के कारण किसी की नज़र वहाँ नहीं पड़ रही थी वर्ना गज़ब ढा जाता। सामने नाच गाना चल रहा था। सब उसे देखने में व्यस्त थे और हम किसी और काम में। कुछ देर में उसने ढेर सार वीर्य मेरी चूत में झाड़ दिया। मेरा भी उसके साथ ही चूत-रस निकल गया। बारात अंदर आ चुकी थी। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। केशव झपट कर बगल वाले कमरे की और लपका। मैंने उसके हाथ को थाम लिया। “मेरी पैंटी तो देते जाओ।” मैंने कहा। “नहीं ये मेरे पास रहेगी।”कह कर वो भाग गया। दोबरा दरवाजा खटखटाया गया तो मैंने उठ कर दरवाजा खोल दिया। दो-तीन सहेलियाँ अंदर आयीं। “क्या हुआ?” उन्होंने पूछा “कुछ नहीं… आँख लग गयी थी… थकान के कारण।” मैंने बात को टाल दिया मगर रिटा समझ गयी कि दाल में काला है। मैंने उसे अपने को घूरते पाया और मैंने अपनी आँखें झुका लीं। “चलो चलो। बारात आ गयी है। आँटी अंकल जय माला के लिए बुला रहे हैं” सब ने मुझे उठाया और मेरे हाथों में माला थमा दी। मैं उनके साथ माला थामे लोगों के बीच से धीरे धीरे चलते हुए स्टेज पर पहुँची। केशव का वीर्य बहता हुआ मेरे घुटनों तक आ रहा था। पैंटी नहीं होने के कारण दोनों जाँघें चिपचिपी हो रही थी। मैंने उसी हालत में शादी की। पूरी शादी में जब भी केशव नज़र आया उसके हाथों के बीच मेरी पिंक पैंटी झाँकती हुई मिली। एक आदमी से शादी हो रही थी और दूसरे का वीर्य मेरी चूत से टपक रहा था। कैसी अजीब स्तिथि थी। खैर मेरी शादी राज से हो गयी। शादी के बाद हम हनीमून पर नैनीताल घूमने गये। वहाँ मेन चौंक में राज की बुआ रहती थी। उनके दो जवान लड़के थे जो वहीं पर बिज़नेस करते थे- दिनेश और दीपक। दोनों ही राज से बड़े थे। दिनेश की शादी हो चुकी थी और दीपक अभी कुँवारा था। हम हफ़्ते भर के लिए वहाँ पहुँचे। रास्ते में राज की तबियत बिगड़ गयी। जब हम वहाँ पहुँचे तो राज का बदन बुखार से तप रहा था। डॉक्टर से चेक-अप करवाया तो डॉक्टर ने बेड रेस्ट की सलाह दी। मेरा मन उदास हो गया। हफ़्ते भर के लिए तो आये थे घूमने वो भी अगर कमरे में ही बीत जाये तो कितना बुरा लगता है। राज ने मेरी परेशानी को समझ कर अपने भाइयों से मुझे घुमा लाने को कहा। मगर मैं शर्म के मारे नहीं गयी। दिनेश की बीवी अरुणा थी नहीं। वो मायके गयी हुई थी नहीं तो मैं चली जाती। दोनों भाई काफी हैंडसम थे। उनके साथ का सोच कर ही मेरे गालों में लाली दौड़ जाती थी। वो दोनों भी मुझे गहरी नज़रों से देखते थे। दोनों इनसे बड़े थे लेकिन बुआ ने साफ कह रखा था कि हमारे यहाँ किसी प्रकार का घूँघट नहीं चलेगा। जैसे अपने मायके में रहती हो वैसे ही यहाँ रहना। इसलिए अब लुकाव या ढकाव का कोई सवाल ही नहीं था। केशव ने मुझे ग्रूप सेक्स की ऐसी आदत डाल दी थी कि अब मैं एक से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाती थी। उस दिन मैं नहीं गयी मगर हल्के exposure से दोनों को excite करती रही। ठंड काफी थी। मैंने एक पारदर्शी गाऊन पहना था और उसके अंदर कुछ भी नहीं था। ऊपर से मोटी उनी शॉल कुछ इस तरह ले रखी थी कि उनके सामने वो बार-बार मेरे सीने से सरक जाती और उन्हें अपनी चूंचियों की झलक दिखला कर मैं वापस शॉल ओढ़ लेती थी। वो दोनों मुझ से काफी खुल गये और हमारे बीच हॉट चर्चा और सैक्सी चुटकुलों के आदान-प्रदान होने लगे थे। कई बार अंजाने में मेरे बदन से टकरा जाते थे या कभी किसी बात पर मुझे छूते तो मेरे सरे बदन में करंट जैसा बहने लगता। अगले दिन भी राज की तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ तो उसके बार बार कहने पर मैं दिनेश और दीपक भैया के साथ घूमने निकली। मैंने भरपूर मेक-अप किया। दोनों के पास कार थी मगर उसे नहीं लेकर दोनों ने एक wagon-ढ बुक की थी। इसका कारण तो मुझे बाद में पता चला कि दोनों असल में मेरे नज़दीक रहना चाहते थे। कोई भी ड्राईव नहीं करना चाहता था। पीछे की सीट पर मेरी दोनों तरफ में दोनों भाइ सट कर बैठे थे। अब दोनों की शायद ड्राईवर से पहले से ही कुछ बात हो चुकी होगी क्योंकि वो काफी तेज़ चला रहा था। पहाड़ों के घुमावदार रास्तों पर हर मोड़ पर मैं कभी दिनेश के ऊपर गिरती तो कभी दीपक के ऊपर। दोनों मुझे संभालने के बहाने मेरे बदन को इधर उधर से छू रहे थे। मैं भी उनके साथ खिलखिला रही थी। इससे उनकी भी हिम्मत बढ़ गयी। उन्होंने अपनी कुहनियों से मेरी एक एक चूंची को भी दबाना शुरू किया। हम इसी तरह मस्ती करते हुए कईं जगह घूमे और घूमते घूमते दोपहर हो गयी। अचानक बात करते-करते दिनेश ने अपना हाथ मेरी जाँघ पर रख कर दबाया। मैंने अपने हाथों से उसके हाथ को वहाँ से हटा दिया। मगर कुछ देर बाद जब वापस उसने अपना हाथ मेरी जाँघों पर रखा तो मैंने कुछ नहीं बोला। उसे देख कर दीपक ने भी अपना हाथ मेरी दूसरी जाँघ पर रख दिया और दोनों मेरी जाँघों पर हाथ फिराने लगे। “क्या कर रहे हो? ड्राइवर देख रहा होगा। मैं तुम्हारे भाई की बीवी हूँ।” मैंने उन्हें रोकते हुए कहा। “अपना ही आदमी है… कुछ नहीं सोचेगा और रही बात राज की तो वोह तो रोज ही तुम्हारे पास रहेगा… हम को तो कभी कभार मौके का फायदा उठा लेने दो।” कहकर दीपक ने एक कम्बल निकाल कर हम तीनों के ऊपर ओढ़ा दिया और अब तो दोनों को खुली छूट मिल गयी। हम तीनों ने अपने अपने बदन को कम्बल में छिपा लिय। दोनों मेरे बूब्स को अपने हाथों से मसलने लगे। मैं कसमसा रही थी। साड़ी छातियों पर से हट चुकी थी। मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोलने के लिए दोनों के हाथ आपस में लड़ने लगे और मेरे ब्लाऊज़ के सारे बटन खोल दिए। इसी काम के दौरान दो बटन तो टूट ही गए। मुझे आगे की और झुका कर उन्होंने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और मेरी चूंचियाँ फ़्री हो गयी। दोनों उन पर टूट पड़े और जोर-जोर से मसलने लगे। मैं कभी उनको देखती और कभी सामने ड्राइवर को देखती घबड़ा रही थी मगर ड्राइवर चलाने में मगन था। दीपक के हाथ मेरी साड़ी को ऊँचा करने में लगे थे। फिर दिनेश ने अपना हाथ मेरे पेटीकोट के अंदर डाल कर मेरी पैंटी पर फिराया। क्रमशः............






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FUN-MAZA-MASTI सहेली क़ी खातिर पार्ट--2

FUN-MAZA-MASTI
सहेली क़ी खातिर पार्ट--2

 गतांक से आगे .............. थोड़ी देर बाद सुरेश उठा और मुझे हाथों पैरों के बल बिस्तर पर झुकाया और खुद बिस्तर के नीचे खड़े होकर मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया। वो जोर जोर से मुझे पीछे की और से ठोकने लगा। मेरे चेहरे को पकड़ कर केशव ने अपने ढीले पड़े लंड पर दबा दिया। मैं उसका मतलब समझ कर उसके ढीले लंड को अपनी जीभ निकाल कर चाटने लगी। मैं पूरे लंड को अपनी जीभ से चाट रही थी। सुरेश जोर जोर से मुझे पीछे से ठोक रहा था। कुछ ही देर में केशव का लंड धीरे धीरे वापस खड़ा होने लगा। अब वो मेरे बालों से मुझे पकड़ कर अपने लंड पर मेरा मुँह ऊपर नीचे चलाने लगा। काफी देर तक मुझे पीछे से चोदने के बाद सुरेश ने अपना वीर्य उसमें छोड़ दिया। केशव ने मुझे उठा कर जमीन पर पैर चौड़े कर के खड़ा किया और बिस्तर के किनारे बैठ कर मुझे अपनी गोद में दोनों तरफ पैर करके बिठा लिया। उसका लंड वापस मेरी चूत में घुस गया। मैं उसके घुटनों पर हाथ रख कर अपने शरीर को उसके लंड पर ऊपर नीचे चलाने लगी। कुछ देर तक इसी तरह चोदने के बाद वो वापस मेरे अंदर खलास हो गया। इस बार मैंने भी उसका साथ दिया। हम दोनों एक साथ झड़ गये। सुरेश ने खाना मँगा लिया था। हम उसी तरह नंगी हालत में डीनर करके वापस बिस्तर पर आ गये। मुझ से तो कुछ खाया ही नहीं गया। सारा बदन लिजलिजा हो रहा था। दोनों ने मुझे अबतक अपना बदन साफ भी नहीं करने दिया था और ना ही मुझे सैंडल उतारने की इजाज़त दी थी। खाना खाने के बाद मैं उनका सहारा लेकर उठी तो मैंने पाया कि पूरे बिस्तर पर खून के कुछ कुछ धब्बे लगे थे। मैं सुरेश के कँधे का सहारा लेकर बाथरूम में गयी। लेकिन वहाँ भी उन्होंने दरवाजा बँद नहीं करने दिया। उन दोनों की मौजूदगी में मैं शरम से पानी पानी हो गयी। वापस बिस्तर पर आकर कुछ देर तक दोनों मेरे एक एक अँग से खेलते रहे और मेरी उसी नंगी हालत में अलग अलग पोज़ में कईं फोटो खींचे। फिर मेरी चुदाई का दूसरा दौर चालू हुआ। यह दौर काफी देर तक चलता रहा। इस बार सुरेश ने मुझे अपने ऊपर बिठाया और अपना लंड अंदर डाल दिया। इस हालत में उसने मुझे खींच कर अपने सीने से सटा लिया। मेरे दोनों पैर घुटनों से मुड़े हुए थे और इसलिए मेरे चूत्तड़ ऊपर की और उठ गए। केशव ने मेरी चुदती हुई चूत में एक अँगुली डाल कर हमारे रस को बाहर निकाला औरे एक अँगुली से मेरी गाँड में अंदर तक इस रस को लगाने लगा। मैं उसका मतलब समझ कर उठना चाहती थी मगर दोनों ने मुझे हिलने भी नहीं दिया। केशव ने अपनी अँगुली निकाल कर गाँड पर अपना लंड सटा दिया। मैं छटपटा रही थी। उसने जोर से अपना लंड अंदर ढकेला। ऐसा लगा मानो कोई मेरी गाँड को डंडे से फाड़ रहा हो। मैं “आआआआआआईईईईईईईईई ऊऊऊऊऊऊउउउउम्म्म आआआआहहहहह मुझे छोड़ दो….” जैसा कह कर रोने लगी। मगर उसके लंड के आगे का मोटा हिस्सा अब अंदर जा चुका था। मैंने दर्द से अपने होंठ काट लिए मगर वो आगे बढ़ता ही जा रहा था। पूरा अंदर डालने के बाद ही वो रुका। फिर दोनों मेरे चिल्लाने की परवाह किए बिना ही धक्के मारने लगे। ऊपर से केशव धक्का मारता तो सुरेश का लंड मेरी चूत में घुस जाता। जब केशव अपना लंड बाहर खींचता तो मैं उसके लंड के साथ थोड़ा ऊपर उठती और सुरेश का लंड बाहर की और आ जाता। इसी तरह मुझे काफी देर तक दोनों ने चोदा फिर एक साथ दोनों ने मेरे दोनों छेदों में अपने अपने वीर्य डाल दिए। मैं भी उनके साथ ही झड़ गयी। रात भर कई दौर अलग-अलग पोज़ में हुए, मैं तो गिनती ही भूल गयी। लगभग चार बजे के करीब हम एक ही बिस्तर पर आपस में लिपट कर सो गए। सुबह सढ़े नौ बजे दरवाजे की घंटी बजने पर नींद खुली। मैंने पाया कि पूरा बदन दर्द कर रहा था। मैंने अपने शरीर का जायजा लिया। मैं बिस्तर पर आखिरी चुदाई के वक्त जैसे लेटी थी अभी तक उसी तरह ही लेटी हुई थी। सुरेश शायद सुबह उठकर जा चुका था। केशव ने उठ कर दरवाजा खोला तो तेजी से रिटा अंदर आयी। बिस्तर पे मुझ पर नज़र पड़ते ही चीख उठी, “निशी की क्या हालत बनायी है तुमने? तुम पूरे राक्षस हो। बेचारी के फूल से बदन को कैसी बुरी तरह कुचल डाला है।” वो बिस्तर पर बैठ कर मेरे चेहरे पर और बालों पर हाथ फेरने लगी। टेस्टी माल है” केशव ने होंठों पर जीभ फिराते हुए बेहुदगी से कहा। रिटा मुझे सहारा देकर बाथरूम में ले गयी। बाथरूम में मैं उससे लिपट कर रो पड़ी। उसने मेरे सैंडल उतार कर मुझे नहलाया। मैं नहा कर काफी ताज़ा महसूस कर रही थी। कपड़े बाहर बिस्तर पर ही पड़े थे। ब्रा और पैंटी के तो चीथड़े हो चुके थे। सलवार का भी उन्होंने नाड़ा तोड़ दिया था। मैंने बाथरूम में अपने सैंडल पहने और उसी हालत में मैं रिटा के साथ कमरे में आयी। अब इतना सब होने के बाद पूरी नग्न हालत में केशव के सामने आने में कोई शर्म महसूस नहीं हो रही थी। वो बिस्तर के सिरहाने पर बैठ कर मेरे बदन को बड़ी ही कामुक नज़रों से देख रहा था। जैसे ही मैंने अपने कपड़ों की तरफ हाथ बढ़ाया, उसने मेरे कपड़ों को खींच लिया। हम दोनों की नज़र उसकी तरफ उठा गयी। “नहीं… अभी नहीं,” उसने मुस्कुराते हुए कहा,”अभी जाने से पहले एक बार और” “नहींईंईंईं” मेरे मुँह से उसकी बात सुनते ही निकल गया। “अब क्या जान लोगे इसकी? रात भर तो तुमने इसे मसला है। अब तो छोड़ दो इसे।” रिटा ने भी उसे समझाने की कोशिश की। मगर उसके मुँह में तो मेरे खून का स्वाद चढ़ चुका था। “नहीं इतनी जल्दी भी क्या है। तू भी तो देख अपनी सहेली को चुदते हुए।” केशव एक भद्दी तरह से हँसा। पता नहीं रिटा कैसे उसके चक्कर में पड़ गयी थी। अपने ढीले पड़े लंड की और इशारा करके रिटा से कहा, “चल इसे मुँह में लेकर खड़ा कर।” रिटा ने उसे खा जाने वाली नज़रों से देखा लेकिन वो बेहुदी तरह से हँसता रहा। उसने रिटा को खींच कर पास पड़ी एक कुर्सी पर बिठा दिया और अपना लंड चूसने को बोला। रिटा उसके ढीले लंड को कुछ देर तक ऐसे ही हाथ से सहलाती रही और फिर उसे मुँह में ले लिया। केशव ने रिटा की कमीज़ और ब्रा उतार दी। ज़िंदगी में पहली बार हम दोनों सहेलियाँ एक दूसरे के सामने नंगी हुई थी। रिटा का बदन भी काफी खूबसूरत था। बड़े बड़े बूब्स और पतली कमर। किसी भी लड़के को दीवाना बनाने के लिए काफी था। केशव मेरे सामने ही उसके बूब्स को सहलाने लगा। केशव ने एक हाथ से रिटा का सिर पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उसके निप्पलों को मसल रहा था। चेहरे से लग रहा था कि रिटा गर्म होने लगी है। मैं बिस्तर पर बैठ कर उन दोनों की रास-लीला देख रही थी। और अपने को उसमें शामिल किए जाने का इंतज़ार कर रही थी। मैंने अपने बदन पर नज़र दौड़ायी। मेरे दोनों बूब्स पर अनेकों दाँतों के निशान थे। मेरी चूत सूजी हुई थी। जाँघों पर भी दाँतों के निशान थे। निप्पल भी सूजे हुए थे। रिटा ने कोई पेन-किलर खिलाया था बाथरूम में जिसके कारण दर्द कुछ कम हुआ था। मैं उन दोनों का खेल देख देख कर कुछ गर्म होने लगी थी। केशव लगातार रिटा के मुँह को चोद रहा था। केशव का लंड खड़ा होने लगा। उसे देख कर लगता ही नहीं था कि उसने रात भर मेरी चूत में वीर्य डाला है। मुझे तो पैरों को सिकोड़ कर बैठने में भी तकलीफ हो रही थी और वो था कि साँड की तरह मेरी दशा और भी बुरी करने के लिए तैयार था। पता नहीं कहाँ से इतनी गर्मी थी उसके अंदर। उसका लंड कुछ ही देर में एक दम तन कर खड़ा हो गया। अब उसने रिटा को खड़ा करके उसके बाकी के कपड़े भी उतार दिए। अब रिटा मेरी तरह ही सिर्फ अपने हाई हील सैंडल पहने हुए पूरी तरह नंगी थी। रिटा को वापस कुर्सी पर बिठा कर केशव ने उसकी चूत में अपनी अँगुली डाल दी। अँगुली जब बाहर निकली तो वो रिटा के रस से भीगी हुई थी। केशव ने उस अँगुली को मेरे होंठों से छूआ। “ले चख कर देख… कैसी मस्त चीज है तेरी सहेली।” मैं मुँह नहीं खोल रही थी मगर उसने जबरदस्ती मेरे मुँह में अपनी अँगुली घुसा दी। अजीब सा लगा रिटा के रस को चखना। “पूरी तरह मस्त हो गयी है तेरी सहेली” उसने मुझ से कहा और अपना लंड रिटा के मुँह से निकाल लिया। उसका काला लंड रिटा के थूक से चमक रहा था। फिर मुझे उठा कर उसने रिटा पर कुछ इस तरह झुका दिया कि मेरे दोनों हाथ रिटा के कँधों पर थे और मैं उसके कँधों का सहारा लिए झुकी हुई थी। मेरे बूब्स रिटा के चेहरे के सामने झूल रहे थे। केशव ने मेरी टाँगों को फैलाया और मेरी चूत में वापस अपना लंड डाल दिया। लंड जैसे-जैसे भीतर जा रहा था, ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरी चूत की दीवारों पर रेगमाल (सैंड-पेपर) घिस रहा हो। मैं दर्द से “आआआआहहहह्ह” कर उठी। पता नहीं कितनी देर और करेगा। अब तो मुझ से रहा नहीं जा रहा था। वो मुझे पीछे से धक्के लगाने लगा तो मेरे बूब्स रिटा के चेहरे से टकराने लगे। रिटा भी उत्तेजना में कसमसा रही थी। वो पहली बार मुझे इस हालत में देख रही थी। हम दोनों बहुत पक्की सहेलियाँ जरूर थीं मगर लेस्बियन नहीं थी। केशव ने मेरा एक निप्पल अपनी अँगुलियों में पकड़ कर खींचा तो मैंने दर्द से बचने के लिए अपने बदन को आगे की और झुका दिया। उसने मेरे निप्पल को रिटा के होंठों से छुवाया। “ले चूस चूस अपनी सहेली के मम्मों को।” रिटा ने अपने होंठ खोल कर मेरे निप्पल को अपने होंठों के बीच दबा लिया। केशव मेरे बूब्स को जोर जोर से कुछ इस तरह मसलने लगा कि मानो वो उन से दूध निकाल रहा हो। मेरी चूत में भी पानी रिसने लगा। मैं”आआआआहहहहह ऊऊऊऊहहहहह ऊऊऊऊईईईईईई माँआआआआआ उउउफ्फ्फ्फ” जैसी आवाजें निकाल रही थी। कमरे में चुसाई और चुदाई की “फच फच” की आवाज गूँज रही थी। वो बीच-बीच में रिटा के बूब्स को मसल देता था। केशव ने मेरे बाल अपनी मुठ्ठी में भर लिए और अपनी तरफ खींचने लगा जिसके कारण मेरा चेहरा छत की तरफ उठा गया। कोई पँद्रह मिनट तक मुझे इसी तरह चोदने के बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला और हमें खींच कर बिस्तर पर ले गया। बिस्तर पर घुटनों के बल हम दोनों को पास-पास चौपाया बना दिया। फिर वो कुछ देर रिटा को चोदता तो कुछ देर मुझे। काफी देर तक इसी तरह चुदाई चलती रही। मैं और रिटा दोनों ही झड़ चुके थे। उसके बाद भी वो हमें चोदता रहा। काफ़ी देर बाद जब उसके झड़ने का समय हुआ तो उसने हम दोनों को बिस्तर पर बिठा कर अपने- अपने मुँह खोल कर उसके वीर्य को मुँह में लेने को बाध्य कर दिया और ढेर सारा वीर्य मेरे और रिटा के मुँह में भर दिया। हम दोनों के मुँह खुले हुए थे और उनमें वीर्य भर हुआ था और मुँह से छलक कर हमारे बूब्स पर और बदन पर गिर रहा था। वो हमें इसी हालत में छोड़ कर अपने कपड़े पहन कर कमरे से निकल गया। कई घंटों तक रिटा मेरी तीमारदारी करती रही, जब तक मैं नॉरमल चल सकने लायक ना हो गयी। फिर हम किसी तरह घर लौट आये। मैं अपने घर तो शाम को पहुँची क्योंकि होटल से सीधे रिटा के घर गयी थी। भगवान का शुक्र है किसी को पता नहीं चला।







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