Wednesday, January 22, 2014

बदनाम रिश्ते-- हमारा छोटा सा परिवार--7

FUN-MAZA-MASTI

बदनाम रिश्ते--
 हमारा छोटा सा परिवार--7


 बड़े मामा और मैं हँसते, बाते करते हुए झील की तरफ चल दिए. एक बार जब हम जंगल के घने पेड़ों से घिर गए तो

मैंने अपनी बांह बड़े मामा की विशाल कमर के ऊपर डाल दी. हम दोनों झील के शांत विलक्षण वातावरण में एक दुसरे

की बाँहों में खुश, छोटी-छोटी बातें कर रहे थे.


"बड़े मामा हमें सुरेश अंकल और नम्रता आंटी के बारे में झूठ बोलना पडेगा?" मैंने अपना गाल बड़े मामा की चौड़ी

मांस-पेशियों से भरी भुजा पर रगड़ कर अपना डर में मामाजी को शामिल करना चाहा.

बड़े मामा ने अपना हाथ मेरे चूची के ऊपर रख कर मुझे आश्वासित किया, "नेहा बेटा हमें कोई झूठ नहीं बोलना

पडेगा. आप सब चिंता मुझ पर छोड़ दो."

मैंने मुस्कुरा कर अपना अधखुला मूंह ऊपर कर बड़े मामा को चुम्बन का निमंत्रण दिया. बड़े मामा ने मुझे अपनी गोद

में खींच लिया और शीघ्र हमारे खुले मुंह एक दुसरे के मूंह से चुपक गए. हमारी झीभ एक दुसरे के मुंह में अंदर-बाहर

जाने लगी. हमारी लार एक मुंह से दुसरे मुंह में जा रही थी. बड़े मामा का प्रचंड लंड मेरे गुदाज़ नितिम्बों को कुरेदने

लगा.

बड़े मामा ने मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोल कर मेरे संवेदनशील उरोज़ों को मुक्त कर दिया. मामाजी ने मेरे सख्त चूचुक

अपनी चुटकी में भर मसलने लगे.

बड़े मामा के मजबूत हाथों में मेरे दोनों स्तनों को मसलने और गून्दने लगे। मेरी सिस्कारियां बड़े मामा को और भी

उत्साहित कर रहीं थीं।


मैंने अपने नाज़ुक नन्हे हाथों से बड़े मामा के लंड को पहले पजामे के ऊपर से रगड़ा, पर मुझे मामाजी के विशाल लंड

की गर्मी अपने हाथों में महसूस करनी थी. मैंने बड़े मामा के पजामे का नाड़ा खोल कमरबंद ढीला कर दिया. मामाजी

का महाकाय प्रचंड लंड ने मेरे नन्हे हाथों को भर दिया.

मैंने हलके से अपने को बड़े मामा की बाँहों से मुक्त कर उनकी झांगों के बीच में झुक गयी। मैंने बड़े मामा का विशाल

सुपाड़े को अपना गर्म थूक से भरे मुंह को पूरा खोल कर अंदर ले लिया। बड़े मामा मेरे घुंघराले घने बालों को सहलाने

लगे। मैंने बड़ी मुश्किल से बड़े मामा के लंड को अपने मुंह में ले कर चूसने की कोशिश करने लगी। बड़े मामा की

हल्की सी सिसकारी ने मुझे और भी उत्साहित कर दिया। मैं दिल लगा कर उनके लंड को जितना अच्छे से हो सकता था

चूसने लगी।


बड़े मामा ने मेरे लहंगे के अंदर हाथ डाल कर मेरी गीली चूत को सहलाने लगे। यदि मेरा मुंह बड़े मामा के लंड

से नहीं भरा होता तो मेरी सिसकारी जंगल में गूँज जाती। मैं बड़े मामा के लंड को अपने मुंह से चूस कर लोहे की तरह

सख्त कर दिया। उनकी अनुभवी उँगलियों ने मेरी चूत को सहला कर मुझे झड़ने के बहुत निकट तक ले आये।


बड़े मामा ने वासना की उत्तेजना में गुर्रा कर कहा, "नेहा बेटा मेरे लंड को आपकी चूत चाहिए. क्या मैं आपकी

चूत मारूं?"

नेकी और पूछ-पूछ! बड़े मामा मुझे तरसा रहे थे. मैंने अपनी सिस्कारियों से उनकी इच्छा के सामने अपने

नाबालिग, किशोर शरीर का एक बार फिर से समर्पण कर दिया. मैंने अपने लहंगा अपने हांथों से ऊपर उठा लिया,

जैसे मामाजी ने मुझे अपनी बाँहों में भर कर खड़े हुए. मामाजी का खुला पजामा उनके टखनों के इर्दगिर्द गिर गया.

"बड़े मामा प्लीज़ गिर नहीं जाईयेगा," मुझे मामाजी की फ़िक्र लग रही थी.


मामाजी ने मेरी चिंता की उपेक्षा कर अपने प्रचंड लंड के सुपाड़े से मेरी चूत ढूँढने लगे. मैंने अपने नन्हे हाथ से

मामाजी के विशाल लंड को अपनी तंग किशोर कमसिन यौनी के द्वार की सीध पर रख दिया. मामाजी ने चार भयंकर

धक्कों में अपना महाकाय लंड मेरी चुस्त चूत में जड़ तक अंदर डाल दिया. झील के मीलों तक सुनसान किनारे पहले

मेरी चीखों और फिर मेरी ऊंची सिस्कारियों से गूँज उठे.


बड़े मामा के बड़े शक्तिशाली हाथ मेरे भारी गुदाज़ नितिम्बों को संभाल कर मुझे अपने लंड पर ऊपर नीचे करने लगे।

मेरी चूत उनके भीमकाय लंड के ऊपर अप्राकृतिक आकार में फ़ैल गयी थी। शीघ्र ही मेरी रति-रस से भरी चूत सपक-

सपक की आवाज़ कर बड़े मामा के लंड से चुद रही थी। मैंने बड़े मामा की सीने में अपना सिसकता मुंह छिपा लिया।

"आह .. बड़े मामा मुझे चोदिये। आपका लंड कितना बड़ा है। आह .. ओह ... ब .. ऊंह ... ड़े मा ... ऊन्न्ह्ह्ह ....

मा ..आ ...ऒन्न्ह ऊन्न्नग्ग्ग," मै बड़े मामा के भयंकर धक्कों से बुरी तरह से हिल रही थी। मेरी चूचियां बड़े मामा के

हर भीषण धक्के से ऊपर नीचे मादक नाच कर रहीं थीं।


मैं कुछ ही देर में झड़ने के लिए तैयार थी। मैं एक जोर की चीख के साथ बड़े मामा के वृहत लंड के ऊपर झड़ गयी।

बड़े मामा ने मुझे ऊपर उठा कर मेरे थरकते हुए चूची को अपने मुंह में खींच कर चूसने लगे। मेरे कामोन्माद की चीख

में मेरे स्तन में बड़े मामा के चूसने के दर्द भी मिल गया।


बड़े मामा ने स्नानगृह के सामान मेरी चूत लम्बे प्रचंड धक्कों से मार कर मेरी हालत खराब कर दी. मेरी कामेच्छा

प्रज्जवलित हो मेरे शरीर में आग लगाने लगी. बड़े मामा ने मुझे उसी भयंकर तेज़ी से क़रीब एक घंटा मुझे चोदा.

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मैंने शैतानी से मुस्कराते हुए बड़े मामा का पजामा लपेट कर अपने लहंगे के कमर बंद में घुसा दिया। बड़े मामा ने

भी मुस्करा कर मेरा ब्लाउज रूमाल की तरह तह मार कर अपने कुर्ते की जेब में रख लिया।


मेरा एक हाथ बार बार बड़े मामा के लंड को सहला देता था। हम आधा घंटा धीरे धीरे घुमते हुए हम एक सुंदर घने

पेड़ों से घिरी एक जगह पे रुक गए। हरी-भरी मुलायम घास एक गुदगुदे गलीचे के सामान थी। मेरी वासना अब फिर से

बड़े मामा के लंड के लिए जागृत हो गयी। मै घास पर घुटने पर बैठ कर बड़े मामा के आधे खड़े मेरे चूत के रस से भीगे

लंड को चूसने लगी। बड़े माम का लंड कुछ क्षड़ों के चूसने से ही लोहे के डंडे की तरह खडा हो गया।


बड़े मामा ने मुझे ऊपर उठा कर अपनी बाँहों में भर लिया। उनका खुला मुंह मेरे मुंह के ऊपर चुपक गया। मेरी

भूखी जीभ उनके मुंह के अंदर हर जगह जा कर उनकी जीभ से भिड़ गयी। मैंने बड़े मामा के कुर्ते के बटन खोल दिए।

मैंने उनकी सीने की घने बालों में अपनी उँगलियों घुमाने लगी। बड़े मामा ने मुझे प्यार से घास के बिस्तर पर लिटा

दिया। उन्होंने मेरे लहंगे का नाड़ा खोल कर उसे मेरे शरीर से अलग कर पास में रख दिया। बड़े मामा का पजामा भी

मेरे लहंगे के साथ ही चला गया। बड़े मामा ने मेरी आँखों की प्रार्थना को समझ कर अपना कुर्ता भी उतार दिया।

बड़े मामा ने अपना विकराल लोहे से भी सख्त पर रेशम जैसा मुलायम लंड मेरी छूट के द्वार पर रगड़ने लगे। मेरी

सिसकारी उन्हें मेरे अविकसित स्त्री-गृह की नाज़ुक सुगन्धित सुरंग के अंदर आने के लिए उत्साहित कर रही थी।

बड़े मामा की झिलमिलाती हल्की भूरी आँखें मेरी वासना भरी आँखों से अटक गयीं।

उनके होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान थी। मैं समझ गयी कि बड़े मामा अपनी बेटी जैसी भांजी के होंठों से सम्भोग के

अश्लील शब्दों को सुनना चाहते थे।

मैं भी अब उन्हें बोलने से बहुत नहीं शर्माती थी।

"बड़े मामा अपनी बेटी जैसी भांजी की चूत में अपना पितातुल्य विशाल लंड डाल दीजिये। मामू अपने विकराल लंड से

अपनी बेटी की मासूम चूत को फाड़ दीजिये," मैं पहले धीरे फिर जोर से बोली।

बड़े मामा ने चार भयंकर धक्कों से अपना पूरा भीमकाय लंड मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया।

मेरी चीख मेरे हलक में ही अटक गयी क्योंकि बड़े मामा ने मुझे एक क्षण भी दिए बिना मेरी चूत को भीषण रफ़्तार से

चोदने लगे। उनका विकराल लंड मेरी चूत को रेल के इंजिन के पिस्टन की रफ़्तार और शक्ति से चोद रहा था।

मेरे गले से जब आवाज़ निकली तो पहले मैं बिलबिला कर चीखी पर कुछ ही क्षणों में मे मैं ऊंची सिस्कारियों से अपने

बड़े मामा की शक्तिशाली चुदाई के लिए आभार प्रकट करने लगी।

बड़े मामा के विशाल हाथों ने मेरी चूचियों का मर्दन निर्ममता से किया, पर मैं उन्हें और भी बेदर्दी से मसलवाना चाहती

थी।


"बड़े मामू ... ओओओण्ण्ण्ण्ण आँ ...आँ ....आँ .....आअह ...और ज़ोर से। मैं आने वाली हूँ। मामा जी ... ई .... ई

.... ई .......अंअंअंअंअंअं। मर गयी मैं तो ....आआआ ह्हूम।"

'चपक-चपक' की सुंदर ध्वनि मेरे चूत के मर्दन की घोषणा कर रहीं थी।

बड़े मामा ने मुझे चार बार झाड़ कर मेरी चूत अपने मर्दाने संतान-उत्पादक गरम वीर्य से भर दी. मैं बड़े मामा से

छोटी बच्ची की तरह लिपट गयी. हम दोनों कुछ देर उसी तरह लेटे रहे.

बड़े मामा ने मुझे कई बार प्यार से चूम कर अपने लंड से मुक्त कर दिया. हम धीरे-धीरे जंगल में घूमने लगे.

हम दोनों एक दुसरे के शरीर के आकर्षण से अपने को मुक्त नहीं कर सके। बड़े मामा के हाथ मेरे चूचियों, नितिम्बों से

एक पल भी नहीं हते। मेरा हाथ भी उनके शिथिल पर भरी विशाल लंड से अलग होने में अक्षम था। बड़े मामा का

अत्रिप्य मांसल लोह पुरुष लिंग तनतना कर फिर से उदंग हो गया।


बड़े मामा ने झील के किनारे एक लकड़ी की बेंच को देख कर मुझे बेसब्री से उसकी और खीचने लगे। बड़े मामा ने मुझे

उस खुरदुरी बेंच पर लिटा दिया। बड़े मामा ने मेरी भारी गुदाज़ झांगों को अपनी बाँहों में उठा कर मेरी चूत के मुहाने

पर अपना वृहत्काय लंड का सेब जैसा सुपाड़ा लगा कर एक हल्का सा धक्का दिया। उनका सुपाड़ा मेरी संकरी चूत में

प्रविष्ट हो गया। मेरी हल्की सी सिसकारी ने बड़े मामा के लंड का स्वागत किया।


बड़े मामा कुछ देर तक अपने सुपाड़े को धीरे धीरे मेरी चूत में हिलाते रहे। मेरी चूत बड़ी तेजी से रस से भर गयी। बड़े

मामा ने अपने सुपाड़े को गोल-गोल घुमा के मेरी चूत कर तंग छिद्र को चौड़ाने लगे। मेरी सिसकारी ने मेरी जलती

हुई कामवासना की स्तिथी की घोषणा कर दी।


मैंने अपने गांड को ऊपर उठा कर बड़े मामा का लंड अपनी चूत में लीलने की कोशिश की।

"नेहा, बेटा आप क्या कर रहे हैं?" बड़े मामा ने मुझे चिड़ाते हुए बच्चों जैसी मासूम मुस्कान से पूछा। मैं समझ गयी थी

कि एक बार फिर से बड़े मामा अपनी बेटी सामान भांजी के मुंह से अश्लील शब्दों को सुनना चाहते थे। मेरी चूत में जोर

से आग लगी थे औए उसे बुझाने का अस्त्र बड़े मामा के पास था।

"बड़े मामा मुझे क्यों तरसा रहें हैं? मुझे अपने घोड़े जैसे लंड से चोदिये। अपनी बेटी की चूत में अपना भीमकाय लंड

पूरा अंदर तक डाल दीजिये," मैं वासना के ज्वार से धधक रही थी, "बड़े मामा मेरी चूत अपने मोटे लम्बे लंड से

फाड़ दीजिये।"


बड़े मामा ने अपने दोनों हाथों को मेरे कमसिन पर बड़े मोटे स्तनों से भर लिया। बड़े मामा ने बेदर्दी से मेरे दोनों

चूचियों को मसल कर अपनी ताकतवर नितिम्बों की सयाहता से एक विध्वंसक धक्के से लगभग आधा लंड मेरी

अविकसित चूत के संकरी सुरंग में धकेल दिया।


मैं ज़ोरों से चीख पड़ी, " बड़े मामा, आह ... कितना दर्द ... ऊन्न्ह ... मेरी चूत फट गयी। ओह .. आह ... ऒन्न्ह्ह्ह

...ऊन्नग्ग्ग।"

मेरे बिलबिलाने को अनसुना कर बड़े मामा ने एक गहरी सांस भर कर एक दूसरा भयंकर धक्का लगाया। उनका तीन-

चौथाई विशालकाय लंड मेरी चूत में दनदना कर प्रविष्ट हो गया। मेरी छूट मानों जल रही थी। दर्द के मारे मेरी चीख

फिर से जंगल में गूँज उठी।


बड़े मामा ने अपने हाथों से मेरे दोनों उरोजों का लतमर्दन करते हुए तीसरे भीषण धक्के से अपना पूरा लंड जड़ तक

मेरी चूत में डाल दिया।

बड़े मामा ने मेरी चीख की एक बार फिर से उपेक्षा कर मुझे अपने घोड़े जैसे लम्बे मोटे लंड से चोदने लगे। दस बारह

धक्कों के बाद ही मेरा सारा दर्द गायब हो गया और मेरी चीखों की जगह अब मेरे मुंह से लगातार सिस्कारियां उबल

रही थीं।


बड़े मामा ने मेरी चूचियों को उतनी ही बेदर्दी से मसला और नोचा जितनी निर्ममता से वो मेरी कमसिन चूत मार रहे थे।

मामाजी के लम्बे जोरदार धक्कों से मैं पांच मिनट में ही झड गयी। बड़े मामा ने बिना धीरे हुए आधे घंटे से भी ऊपर

मुझे चोद कर तीन बार कामोन्माद के द्वार पर ला कर पटक दिया। जब मैं तीसरी बार सिसकारते हुए झड़ रही थी तब

बड़े मामा के भीमकाय लंड ने भी मेरी रस उगलती कमसिन चूत में मीठा गाड़ा जनक्षम वीर्य उलेढ़ दिया। बड़े मामा

अपना भारी-भरकम बदन मेरे ऊपर डाल कर निढाल हो गए। मैंने प्यार से उनको अपनी बाँहों में जकड़ लिया और

उनके मुंह को गीले चुम्बनों से भर दिया।


हम दोनों काफी देर तक एक दुसरे की बाँहों में पड़े मुस्करा कर एक दुसरे को चूमते रहे। आखिर कर हम दोनों उठे और

फिर से झील के अगले किनारे की तरफ चल दिए। बड़े मामा ने वापिस जाने के लिए दूसरा रास्ता चुना। हम दोनों

पहाड़ी के किनारे के बहुत पास थे। हरी वादी का घुला नज़ारा किसी को भी विस्मित कर सकता था। बड़े मामा ने मुझे

बाँहों में भर कर ज़ोर से भींच लिया। उनका लंड पूरा खड़ा था। पास में एक बड़ा पेड़ गिर पड़ा था। बड़े मामा ने मुझे

उस पेड़ के तने पर हाथ टिका कर झुका दिया।


हम दोनों के सामने खुली वादी का नज़ारा था। बड़े मामा ने मेरी चौड़ी खुली झांगों के पीछे जा कर अपना लंड एक

बार फिर से मेरी फड़कती हुई चूत के ऊपर टिका दिया। मैंने अपना निचला होंठ दांतों के बीच दबा लिया। जैसे मैंने

सोचा था उसी तरह बड़े मामा ने मेरे दोनों चूतड़ कस के पकड़ कर चार दर्द भरे धक्कों से अपने अमानवीय लंड को

मेरी चूत में जड़ तक डाल कर मेरी अस्थी-पंजर हिला देने वाली भीषण चुदाई शुरू कर दी। मेरी वासना भरी चीखों से

खुली वादी गूँज उठी।


मैं सिसक सिसक कर बड़े मामा की विध्वंसक चुदाई से कई बार झड़ गयी। बड़े मामा ने उस बार मुझे एक घंटे तक

बुरी तरह रगड़ कर चोदा। मेरे दोनों चूचियों की कोमल त्वचा पर बड़े मामा के निर्मम मर्दन से नीले निशान उभर

आये। जब बड़े मामा ने अपना लंड मेरी थकी मांदी चूत में खोल। तब तक मैं इतनी शिथिल हो गयी थी की मेरे दोनों

टांगें बड़ी मुश्किल से मेरा वज़न संभाल पा रहीं थीं।


हम जब शाम का अन्धेरा छाने लगा तो घर की तरफ चल दिए.


 गंगा बाबा हमारा इंतज़ार कर रहे थे. गंगा बाबा एक पहलवान के जिस्म के मालिक थे. उनका ६’१” ऊंचा शरीर अत्यंत चौड़ा

और विशाल था. उनकी घनी मूंछें उनके असम सुन्दर चेहरे को और भी निखार देतीं थीं. गंगा बाबा ४२ साल के विधुर थे और

अपनी अत्यंत सुंदर बेटी जानकी के साथ हमारे परिवार की विसायत के मैनेजर थे. दोनों हमारे परिवार की सारी*जागीर की

देखबाल करते थे. जानकी २१ साल के थोड़े भरे हुए शरीर की बेहद सुंदर स्त्री थी.

गंगा बाबा ने मुझे प्यार से गले लगा लिया.

रात का खाना और भी स्वादिष्ट था. बड़े मामा ने इटली की विंटेज लाल अंगूरी मदिरा, बरोलो, की बोतल खोली.

हम दोनों ने गंगा बाबा और जानकी दीदी के साथ खाना खाया. गंगा बाबा ने खाने के ठीक बाद सारे नौकरों को भगा दिया.

जानकी दीदी ने मुझे गले लगा कर शुभरात्री की इच्छा व्यक्त की,"वैसे यदि रवि चाचा जैसे मर्द का लंड पास हो तो कोई भी

रात शुभ ही होगी."

मेरी शर्म से आवाज़ बंद हो गयी,जानकी दीदी को कैसे पता* चला? "दीदी आपको कैसे पता चला? क्या गंगा बाबा को भी

पता है? "

"घबराओ नहीं, नेहा, पापा और रवि चाचू के बीच में कोई बात गुप्त नहीं रहती. पर घर की बात घर में ही रहेगी. रवि चाचू का

लंड मैंने भी झेला है.पहली बार की चुदाई करीब साल ६-७ साल पहले थी. फिर पापा और रवि चाचू ने मिल कर मुझे सारी रात

चोदा। अगले दिन मैं मुश्किल से खड़ी हो पाई चलना तो बहुत दूर रहा।" जानकी दीदी ने मुझे प्यार से चूम कर आश्वासन दिया.

बड़े मामा ने जानकी दीदी को भी चोदा था, इस विचार से ही मैं गरम हो गयी.

आखिर में नौ बजे तक घर में बड़े मामा और मैं फिर से अकेले थे. बड़े मामा ने स्कॉच के गिलास के साथ मुझे बाँहों में भर

कर सिनेमाघर वाले कमरे में सेक्स की अश्लील चलचित्र लगाया.

"नेहा बेटा, यह सारे चलचित्र यथार्थ हैं और वास्तविक परिवारों के निजी जीवन की कहानियां हैं." बड़े मामा ने मुझे बताया.


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पहली फिल्म एक सुंदर परिवार में कौटुम्बिक व्यभिचार के बारे में थी. घर में अत्यंत सुंदर माँ और दो किशोर लम्बे तंदरुस्त बेटे

थे. लड़कों की छुट्टी के दिन थे सो दोनों सुबह देर से उठे। माँ का नाम सुधा था। सुधा बड़े से रसोईघर एक सफ़ेद रंग की ढीली

सी मैक्सी जैसा गाउन पहने नाश्ता तैयार कर रही थी। उसका गाउन के नीचे उसकी गुदाज़ भरी गोरी-गोरी जांघें, पिंडलियाँ

और खूबसूरत छोटे-छोटे पैर किसी भी मर्द का संयम हिला सकते थे। सुधा अत्यंत सुंदर स्त्री थी। उसके दो ब्रा से मुक्त बड़े-बड़े

गोल स्तन उसकी हर क्रिया पर बहुत आकर्षक तरह से हिल रहे थे। सुधा ने कई बार मुड़ कर देखा। उसे शायद अपने बेटों का

देर से नीचे आना विचित्र लग रहा था।


कुछ ही देर में दो सुंदर लम्बे-तंदरुस्त किशोरावस्था के लड़के नीचे तेजी से धूम धड़का मचाते हुए रसोईघर में आये। सुधा के

सुंदर मुख पर प्रसन्नता की मुस्कान छा गयी। दोनों के सुंदर चेहरों पर तब किसी मूंछ और दाड़ी आने का प्रमाण नहीं था।

सुनील और अनिल की उम्र में सिर्फ एक साल का फर्क था। दोनों सिर्फ शॉर्ट्स में थे। सनिल ने पीछे से अपनी माँ को अपनी

बाँहों में भर लिया। सुधा मुस्करा के बोली, "बड़ी देर लगाई उठने में। क्या कल रात बहुत थक गए थे?"


सुनील ने अपने दोनों हाथ अपने माँ के गाउन के अंडर डाल कर उसके उभरे गोल पेट को सहलाना शूरू कर दिया,

"मम्मी, हम आपसे प्यार कर के क्या कभी भी थके हैं?"

सुधा के मुंह से, अपने बेटे के हाथों से स्पर्श से एक मीठी सी सिसकारी निकल गयी। सुधा मुड़ कर अपने बेटे की बाँहों में समा

गयी। सुनील छोटी उम्र में भी अपनी माँ से काफी लम्बा था। उसने अपना खुला मुंह अपनी माँ के मुस्कराते हुए मुंह पर रख

दिया। सुधा की दोनों गुदाज़ भरी-भरी बाहें अपने बेटे की गर्दन के चरों तरफ कस गयी। सुनील ने अपनी जीभ अपनी माँ के

मीठे मुंह में भर दी। सुधा ने भी अपनी जीभ से अपने बेटे की स्वादिष्ट जीभ भिड़ा दी। सुधा का मुंह शीघ्र अपने बेटे की मीथी

लार से भर गया। सुधा ने जल्दी से उसे अमृत की तरह सटक लिया। सुनील के दोनों हाथ अपनी माँ के बड़े गुदाज़ स्थूल

नितिम्बों को मसल रहे थे।


पीछे से अनिल की शिकायत आयी, "मम्मी आपका छोटा बेटा भी तो अपनी माँ को गुड-मोर्निंग कहना चाहता है।" सुनील ने

नाटकीय अंदाज़ में मुंह बना कर अपने माँ को मुक्त कर दिया। सुधा तुरंत अपने छोटे बेटे की बाँहों में समां गयी। अनिल

अपना मुंह बेसब्री से अपनी माँ के मुंह पर रख उसके मीथे होंठों को चूसने लगा। उसके हाथ उतनी हे बेसब्री से सुधा के चूतड़ों

को रगड़ रहे थे।


सुनील ने सिसकारी भरती हुई अपनी माँ के पीछे जा कर उसका गाउन खोल दिया। सुनील ने अपने हाथ अपने भाई ओर माँ

के शरीर के बीच में डाल कर अपनी माँ के दोनों उरोज़ों को अपने हाथों में भर लिया। माँ की एक और सिसकारी ने उसे और

भी उत्साहित कर दिया। सुनील ने अपनी माँ की चूचियां मसलनी शुरू कर दीं। सुधा अपने छोटे बेटे की बाँहों में मचलने लगी।

उसका मुंह अभी भी अपने बेटे के मुंह से चिपका हुआ था। अनिल ने सुधा का गाउन उसके कन्धों से गिर दिया। सुनील ने

जल्दी से उसे अलग कर फर्श पर फेंक दिया और फिर से अपनी सिसकती माँ के उरोज़ों का मर्दन करने लगा।


सुधा को अपने दोनों बेटों के सख्त लंड आगे-पीछे चुभ रहे थे। वैसे तो दोनों अभी किशोर थे पर उनका शारीरिक विकास

अपेक्षा से बहुत पहले ही बढ चला था।

"बेटा, चलो पहले नाश्ता कर लो," सुधा का शरीर अब अन्तरंग रूप से परिचित अग्नि में जल रहा था। पर माँ की ज़िम्मेदारी

उसे स्त्री की वासना को दबाने के लिए बुला रही थी।

दोनों बेटों ने कुनमुना कर कहा, "मम्मी, पहले हम दोनों पहले आपका नाश्ता करेंगें, फिर ही कुछ और खायेंगें।"

सुधा जानती थी की जब उसके बेटों को माँ के शरीर की भूख लग जाती है तो कुछ भी उन्हें अपने माँ को भोगने से नहीं रोक

सकता था। सुधा ने अपना शरीर अपने बेटों के बाँहों में ढीला छोड़ दिया। सुनील ने अपनी माँ की चूचियों को ज़ोरों से मसलना

और गूंदना शुरू कर दिया। सुधा के मुंह से दर्द और वासनामयी सीत्कारी उबल कर रसोई में गूँज रहीं थीं।

अब तक सुधा भी कामोन्माद में डूब गयी थी। उसके दोनों बेटे बहुत आसानी से अपनी माँ की वासना की अग्नि प्रज्ज्वलित कर

सकते थे। और उस सुबह भी वही हुआ। सुधा ने बेसब्री से अनिल के शॉर्ट्स को नीचे करना शुरू कर दिया। उसका मुंह अभी भी

अपने बेटे के मीठे मुंह से चिपका हुआ था। अनिल ने एक हाथ से अपनी माँ की मदद कर अपने शॉर्ट्स तो नीचे कर अपनी

टांगों से दूर फ़ेंक दिया। सुधा का कोमल छोटा मुलायम हाथ अपने बेटे के स्पात जैसे सख्त, रेशम जैसे चिकने लंड से भर

गया। सुधा के दोनों बेटों की तब तक झांटे नहीं उगी थी। उनके विशाल लंड और मोटे बड़े विर्यकोश से भरे अंडकोष भी

झांटों के बिना बिलकुल मुंह में पानी लाने जैसे साफ़ और चिकने थे। उस छोटी उम्र में भी सुधा के दोनों बेटों के लंड

अमानवीय रूप से बहुत लम्बे और मोटे थे। सुधा कुछ सालों से अपने बेटों से चुदवा रही थी पर अब भी हर साल उनका लंड

और भी बड़ा और मोटा हो जाता था। दोनों बेटों की राय थी की वोह सब माँ को प्यार करना और रोज़ चोदने का पुरूस्कार

था।

सुधा यह सब सोच आकर अनिल के मुंह में मुस्करा दी। उसके दोनों बेटे बहुत ही आज्ञाकारी, पढाई में अच्छे और भद्र लड़के

थे।

सुधा ने अपने को अनिल से मुक्त कर फर्श पर घुटनों पर बैठ गयी। तब तक सुनील भी नग्न हो गया था। सुधा ने अनिल के

मोटे लंड को अपने हाथों में ले आर उसके सेज जैसे सुपाड़े को अपने मुंह में ले लय। अपनी माँ के गर्म मुंह में अपना लंड जाते

ही अनिल के मुंह से सिसकारी फूट पडी, "आह मम्मी ..."

सुधा के हाथ अपने बेटे के लंड की पूरी मोटाई को पकड़ने के लिया काफी छोटे थे। कुछ देर अनिल का लंड चूस कर सुधा ने

अपने बड़े बेटे का लंड अपने मुंह में ले लिया सुनील का लंड अनिल से थोडा सा बड़ा था। उसके मुलायम हाथ बारी बारी से

अपने दोनों बेटों के अंडकोष को सहला रहे थे।

सुनील ने थोड़ी देर में कहा, "मम्मी, मुझे अब आपकी चूत मारनी है।"

अनिल ने कुनमुना कर पर भलेपन और प्यार से शिकायत की, 'मम्मी सुनील को ही क्यों पहले आपकी चूत मिलेगी। मैं भी तो

आपकी चूत मार सकता हूँ?"

सुधा को पता था की दोनों भाइयों के एक-दूसरे के लिए प्यार की कोई सीमा नहीं थी पर वो दोनों मीठी लड़ाई करने से

नहीं रुकते थे।

सुधा ने उठ कर अनिल को प्यार से चूमा और अपने माँ होने का एहसास कराया, "बड़े भाई का माँ पे पहला हक होता है।

अनिल बेटा ये तो तुम्हे अच्छे से पता है।"

अनिल ने अपनी माँ के सुंदर नाक की नोक को प्यार से काट कर धीरे से 'सौरी' बोल दिया।

अनिल जल्दी से डाइनिंग टेबल पर जांघें फैला कर बैठ गया। उसका माहकाय लंड तनतना कर अपनी माँ को आकर्षित कर

रहा था।

सुधा ने अपने दोनों हाथ अनिल के जांघों के दोनों तरफ डाइनिंग टेबल पर रख, झुक कर घोड़ी की तरह बन गयी।

सुनील ने अपनी माँ के गोरे विशाल रेशम से मुलायम कूल्हों को प्यार से सहलाया और फिर अपनी माँ की जांघों को चौड़ा कर

फैला दिया।

सुधा ने अनिल के लंड को अपने नाजुक हाथों से सहला कर उसके सुपाड़े को चुम्बन देना शुरू कर दिया।

सुनील अपनी माँ के गुदाज़ गांड को चूमने के बाद उसके गीली घुंगराले झांटों से ढकी चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा।

सुधा की सिसकारी की ऊँची आवाज़ उसके बेटों के लिए जलतरंग का संगीत था। अपनी माँ की चूत रस से भरी पा कर सुनील ने

अपना विशाल वृहत लंड अपनी माँ के फड़कती हुई चूत के द्वार पे लगा दिया। इसी तंग संकरी मखमली सुरंग से दोनों भाई इस

दुनिया में अवतरित हुए थे। अब सुनील फिर से अपने जन्मस्थान में प्रवेश होने वाला था।

माँ और बेटे के संसर्ग से बड़ा शायद कोइ और कामुक और वर्जित संसर्ग नहीं होता।

सुनील ने अपने मोटे सुपाड़े को जोर से अपनी माँ की चूत की तंग योनि में धकेल दिया। सुधा अपने छोटे बेटे के लंड के पेशाब

के छिद्र को अपनी जीभ की नोक से सता रही थी। उसकी चूत इतने सालों के बाद भी बेटों के लम्बे मोटे लंड लेते हुए तड़प

जाती थी।

सुधा की सिसकारी ने दोनों बेटों के लंड को और भी सख्त कर दिया।

सुनील ने अपने मजबूत हाथों से अपनी माँ के कूल्हों को कस के पकड़ कर एक बेदर्द भीषण धक्का लगाया। उसका मोटा मूसल

जैसा लंड एक ही धक्के में लगभग चार इंच उसकी माँ की चूत में दाखिल हो गया। सुधा दर्द से बिखल उठी, "सूनी .......ई

...ई .... आहह मर गयी बेटा।

अनिल ने अपनी सुंदर माँ का खुला मुंह अपने लंड से भर दिया। सुनील ने अपनी माँ के बिलखने की परवाह किये बिना तीन

और चार भयंकर धक्कों से अपना पूरा लंड माँ की चूत में डाल दिया।

सुनील ने अपने लंड को आधा भार खींच कर बिना रुके हचक कर फिर से अपनी माँ के जननी-सुरंग में धकेल दिया। अनिल

अपनी माँ के घुंघराले घने लटों को मुठी में भर कर उसका मुंह अपने मोटे गोरे चिकने लंड के उपर नीचे करने लगा। सुधा के

मुंह से 'गों ..गों 'की आवाज़ निकलने लगी। अनिल बेरहमी से अपनी माँ के मुंह में ज़्यादा से ज़्यादा लंड डालने की कोशिश कर

रहा था।

सुनील ने अपनी माँ की चूत को लम्बे ताकतवर धक्कों से चोदने लगा। रसोई में सुधा की घुटी-घुटी सिस्कारियां गूँज उठी।

उसमे दो बेटों की घुरघुराहट की आवाज़े भी शामिल थीं। सुनील और अनिल जानते थे की उनकी माँ को उनका उसे बेदर्दी से

चोदना अच्छा लगता था। सुधा की चूत अपने बेटे के लंड को व्याकुल हो कर ले रही थी। उसकी फूली विपुल गांड अपने बेटे के

हर धक्के से थरथरा जाती थी। सुनील को अपनी माँ के चूतड़ों का फिरकना बहुत उत्तेजित कर देता था। वोह और भी ताकत

लगा कर अपनी माँ की चूत में धक्के लगाने लगा।

सुधा अपने छोटे बेटे के लंड को जितना हो सकता था उतने कौशल से चूस रही थी। उसकी लार मुंह से निकल अनिल के लंड

को नेहला रही थी।

पांच दस मिनट के बाद सुधा का सार बदन अकड़ गया। दोनों बेटे समझ गए की उनकी माँ झड़ रही थी।

सुनील और अनिल अब अपनी माँ की लम्बी चुदाई के लए तैयार थे।

सुनील ने आगे झुक कर अपनी माँ के लटके हुए विशाल उरोज़ों को मसलना शुरू कर दिया। उसके लंड की हर टक्कर उसकी

माँ के सारे शरीर को हिला देती थी।

सुधा के दोनों बेटे उसका मुंह और चूत प्यार भरी निर्ममता से चोद रहे थे। सुधा तीन बार झड़ चुकी थी। उसे पता था की उसके

दोनों बेटे रति-संसर्ग में निपुड़ थे। जैसे ही उन्हें लगा की वो झड़ने वाले थे उन्होंने अपनी जगह बदल ली। अब अनिल अपनी माँ

की चूत को अपने साड़े-सात इंच के लंड से चोद रहा था और अनिल का आठ इंच का लंड उनकी माँ के मुंह में समाया हुआ

था।


दोनों बेटों ने तीन बार अदला बदली कर एक घंटे तक अपनी माँ को चोद कई बार झाड दिया था। आखिर में स्त्री ही जीतती

है। दोनों बेटों के लंड माँ के मुंह और चूत में फट पड़े। सुधा का मुंह अपने बड़े बेटे के गर्म गाढ़े वीर्य से भर गया। अनिल ने भी

अपनी माँ की चूत को अपने जनक्षम पानी से भर दिया। उसका लंड सुधा के गर्भाशय से लग कर अपने वीर्य से नहला रहा था।

तीनो धीरे-धीरे अलग हुए और सुधा ने दोनों बेटों को नाश्ता परोसा सुनील ने अपनी माँ को अपनी गोद में खींच कर बिठा

लिया और प्यार से उसे भी नाश्ता खिलाने लगा।

सुधा बार बार नाश्ते को अपने मुंह से चबा कर अपने बेटों के मुंह में डाल देती थी। सुनील और अनिल भी अपनी माँ के मुंह

में कुचला चब्या हुआ खाना प्यार से डाल कर अपनी माँ को आधे चबाये हुए खाने को निगलते हुए देख कर प्रसन्न हो रहे थे।

तीनो की हंसी और खिलखिलाते हुए वार्तालाप से रसोई गूँज रही थी।

नाश्ते के बाद भी बेटों की कामाग्नी शांत नहीं हुई थी।

दोनों बेटे सुधा के स्तनों को मसल कर उसे बारी-बारी से चुम्बन देने लगे। अनिल की उंगलिया माँ की गीली चूत में दाखिल हो

गयी। अनिले अपने अगुंठे से अपनी माँ के भग-शिश्न [ क्लिटोरिस ] को रगड़ और मसल रहा था। सुधा का शरीर फिर से

अपने बेटों के लंड की भूख से जगमगा उठा। अनिल इस बार भोजन मेज पर चित लेट गया।

उसकी टांगें मेज के किनारे पर लटकी हुईं थी। सुधा सुनील की मदद से मेज पर चढ़ गयी और अपनी दोनों विपुल जांघों को

अनिल की जांघों के दोनों तरफ रख कर उसके लोहे के समान सख्त लंड को मुश्किल से सीधा कर अपनी चूत के दहाने से

लगा लिया। उसकी आँखे स्वतः अत्यंत आनंद के प्रभाव से आधी बंद हो गयीं। उसका मुंह वासना के ज्वार से थोडा सा खुला

हुआ था और उसके सुंदर नथुने गहरी साँसों से फड़क रहे थे।

सुधा ने अपने भारी आकर्षक गांड को अपने बेटे के मोटे लंड के के सुपाड़े को अपनी चूत में फसा कर नीचे दबाने लगी।

अनिल का मोटा लंबा लंड इंच-इंच कर उसकी माँ की गीली रसभरी चूत के अंदर गायब हो गया। सुधा ने अपने छोटे बेटे का

पूरा लंड अपनी चूत में छुपा लिया। उसका सुंदर मुंह वासना भरे दर्द और आनंद के मिश्रण के प्रभाव से आधा खुला हुआ था।

सुनील के ऊंचाई अपनी माँ की गांड मारने के लियी बिलकुल ठीक थी। सुनील नीचे झुक कर माँ के गांड को चुम्बन कर

अपनी जीभ से कुरेदने लगा। सुधा की आँखे कामवासना से बंद होने लगीं। उसके एक बेटे का मोटा लम्बा लंड अपने माँ की

चूत में धंसा हुआ था और उसका दूसरा बेटा अपनी जीभ से अपनी माँ के गुदा-छिद्र को प्यार से कुरेद कर उसे अपने विशाल

लंड के लिए तैयार कर रहा था। एक चुदासी माँ की उत्तेजना को भड़काने के लिए इससे ज़्यादा और क्या चाहिए।

सुधा की सिसकारी उसके आनंद को घोषित कर रही थी। सुनील ने अपना दानवीय लंड अपनी माँ की गुदा के छोटे से छिद्र पर

लगा कर जोर से अंदर डालने की उत्सुकता से दबाने लगा। सुधा ने आने वाले दर्द के पूर्वानुमान से अपने होंठ दांतों से दबा

लिए।


सुनील ने अपनी माँ के विपुल, गोल भरी कमर को कस कर पकड़ एक भीषण धक्के से अपने लंड का सुपाडा अपनी माँ के

गुदा-द्वार के अंदर घुस दिया। सुधा के मुंह से न चाहते हुए भी चीख निकल पड़ी , "सुनील आह ... धीरे ... ऊउन्न्न्न्न कितना

मोटा है बेटा तुम्हारा लंड। सुनील ने अपनी माँ की गोर सुकोमल कमर को चुम्बन दे कर अपने विशाल लंड को भयंकर

धक्कों से अपनी माँ की गांड में अपना पूरा आठ इंच का मोटा लंड जड़ तक डाल दिया।

सुधा के चीखों ने रसोई को गूंजित कर दिया। अनिल अपनी माँ के लटके हुए कोमल विशाल चूचियों को मसल कर उसके दर्द

को कम करने का प्रयास करने लगा। अनिल ने माँ के तने हुए चूचुक को मसल कर खीचने लगा। सुधा की चींखे सित्कारियों

में बदल गयीं। उसके दोनों बेटे अपनी माँ को काम वासना का आनंद देने में बहुत परिपक्व हो गए थे।

सुनील और अनिल ने अपने माँ की चूत और गांड मारना प्रारंभ कर दिया।

उनके मोटे लम्बे लंड उनकी माँ की दोनों सुरंगों का प्यारभरी बेदर्दी से मर्दन कर रहे थे। सुधा ने अपने शरीर को अपने बेटों के

शक्तिशाली हाथों में छोड़ दिया। अनिल अपनी मजबूत कमर को उठा अपना लंड अपनी माँ की चूत में जोर से धक्का दे कर

धकेल रहा था। उसका बड़ा भाई उतनी ही ताकत से अपनी माँ की गांड मार रहा था।

सुनील का लंड शीघ्र ही अपनी माँ के मलाशय के रस से सराबोर हो कर और भी आसानी से सुधा की गांड में अंदर-बाहर हो

रहा था। रसोई में सुधा की गांड की सुगंध फ़ैल गयी। उस सुगंध ने हमेशा की तरह उसके बेटों की कामोत्तेजना को और भी

बढ़ा दिया। सुधा के दोनों बेटे जोर से धक्के लगा कर सिस्कारती हुई माँ को चोदने लगे।

सुधा जल्दी ही चरमावस्था के सन्निकट पहुँच गयी। अनिल ने अपनी माँ के झड़ने के स्तिथी भांप कर जोर से उसके निप्पल को

मसलने लगा। सुनील ने अपना हाथ माँ के नीचे डाल कर उसका क्लिट कस कर मसला और फिर उसे अंगूठे और उंगली के बीच

दबा कर निर्ममता से मरोड़ने लगा। सुधा जोर से चीख मार कर झड़ गयी।

उसके दोनों बेटे बिना थके और धीरे हुए अपनी माँ की चूत और गांड को भीषण धक्कों से चोदने लगे। सुधा अपने बेटों के

विशाल लंड पर अटकी सिस्कारती हुई बार-बार झड़ कर फिर से कामोन्माद के पर्वत पर चढ़ जाती थी।

सुधा जानती थी की दोनों उसे इस तरह बड़ी देर तक चोद सकते थे। आधे घंटे के बाद सुधा जब चौथी बार झड़ रही थी तो

भाईयों ने माँ के छेद बदलने का इशारा किया। सुधा के मुंह के सामने उसके बड़े बेटे का लंड था जो उसकी गांड के रस से

लिपा हुआ था। सुधा ने सुनील की मनोकामना समझ के उसका लंड चूस और चाट कर साफ़ कर दिया। अनिल ने बेसब्री से

अपना खूंटे जैसा सख्त लंड अपनी माँ के अब गांड के ढीले और खुले छेद में दाल कर तीन जानदार धक्कों से पूरा लंड अंदर

डाल दिया।


सुधा की सिसकारी अनिल के प्रयासों का इनाम थी। सुनील ने अपनी माँ के शरीर के नीचे सरक कर अपना लंड उसकी चूत के

मुहाने पर लगा दिया। अनिल ने थोड़ा रुक कर अपने भाई को माँ की चूत भरने का अवसर दिया।

कुछ देर बाद दोनों बेटे एक बार फिर से अपनी माँ को दोनों छेदों को जोर से चोदने लगे। सुधा के सिस्कारियां और घुटी-घुटी

चीखें उसके परमानद की घोषणा कर रहीं थीं। दोनों बेटों में अपनी माँ की प्रबल चुदाई से बिलकुल क्षीण कर दिया। सुधा इतनी

बार झड़ चुकी थी की उसने गिनना ही छोड़ दिया। सुधा का आखरी रति-निष्पति इतनी तीव्र थी की उसकी चीख रसोई में गूँज

उठी, "अह अह ह ह ...अब मेरी गांड और चूत में आ जाओ। अपने लंड अपनी माँ की चूत और गांड में खोल दो बेटा।"

उसके आज्ञाकारी बेटों ने सुधा की चूचियों को मसल कर अपने लंड पूरी ताकत से उसके शरीर में धक्के से अदर तक डाल कर

स्खलित हो गए।

तीनो बड़ी देर तक शिथिल लिपटे हुए पड़े रहे। सुनील ने अपना लंड अपनी माँ की नर्म दहकती हुई गांड से बाहर निकाल

लिया।उसने माँ का हाथ पकड़ उसे अनिल के लंड से उठ कर उतरने में मदद की।






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