Wednesday, January 22, 2014

बदनाम रिश्ते-- हमारा छोटा सा परिवार--17

FUN-MAZA-MASTI

बदनाम रिश्ते--
 हमारा छोटा सा परिवार--17
 मैंने अपनी बाहें में कस कर मीनू को जकड लिया। हम दोनों के होंठ मानों गोंद से चिपक गए थे। मैं अब तड़प गयी थी। अब तक बड़े मामा, सुरेश चाचा और
गंगा बाबा मेरी चूत की धज्जियां उड़ा रहे होते। संजू किसी जालिम की तरह मेरी चूत को अपने चिकने मोटे लंड से धीरे धीरे मेरी चूत को मार रहा था।

मेरी चूत झड़ने के लिए तैयार थी पर उसे संजू के मोटे लंड की मदद की ज़रुरत थी।

मैं कामाग्नि से जल रही थी। मुझे पता भी नहीं चला कि कब किसी ने मीनू को बिस्तर के किनारे पर खींच लिया।

मैंने मीनू की ऊंची कर उसकी तरफ देखा। सुरेश चाचा ने अपनी कमसिन अविकसित बेटी की चूत में अपना दैत्याकार लंड एक बेदर्द धक्के से जड़ तक ठूंस

दिया था।

"डैडी, आअह आप कितने बेदर्द हैं। अपनी छोटी बेटी की कोमल चूत में अपना दानवीय लंड कैसी निर्ममता से ठूंस दिया है आपने। मिझे इतना दर्द करने में

आपको क्या आनंद आता है?" मीनू दर्द से बिलबिला उठी थी।

"मेरी नाजुक बिटिया इस लंड को तो तुम तीन सालों से लपक कर ले रही हो। अब क्यों इतने नखरे करने का प्रयास कर रही हो। मेरी बेटी की चूत तो वैसे भी

मेरी है। मैं जैसे चाहूँ वैसे ही तुम्हारी चूत मारूंगा," सुरेश चाचा ने तीन चार बार बेदर्दी से अपना लंड सुपाड़े तक निकल कर मीनू की तंग संकरी कमसिन

अविकसित चूत में वहशीपने से ठूंस दिया।

"डैडी, आप सही हैं। आपकी छोटी बेटी की चूत तो आपके ही है। आप जैसे चाहें उसे चोद सकते हैं," मीनू दर्द सी बिलबिला उठी थी अपर अपने पिताजी के प्यार

को व्यक्त करने की उसकी इच्छा उसके दर्द से भी तीव्र थी।

"संजू, भैया, देखो चाचू कैसे मीनू की चूत मार रहें हैं। प्लीज़ अब मुझे ज़ोर से चोदो," मैंने मौके का फायदा उठा कर संजू को उकसाया।

शीघ्र दो मोटे लम्बे लंड दो नाजुक संकरी चूतों का मर्दन निर्मम धक्कों से करने लगे। कमरे में मेरी और मीनू की सिस्कारियां गूंजने लगीं।

संजू मेरे दोनों उरोज़ों का मर्दन उतनी ही बेदर्दी से करने लगा जितनी निर्ममता से उसका लंड मेरी चूत-मर्दन में व्यस्त था। सुरेश चाचा और संजू के लंड के

मर्दाने आक्रमण से मीनू और मेरी चूत चरमरा उठीं। उनके मूसल जैसे लंड बिजली की तीव्रता से हमारी चूतों के अंदर बाहर रेल के पिस्टन की तरह अविरत चल रहे

थे। सपक-सपक की आवाज़ें कमरे में गूँज उठीं।

मेरी सिस्कारियां मेरे कानों में गूँज रहीं थीं। मीनू की सिस्कारियों में वासनामय दर्द की चीखें भी शामिल थीं। सुरेश चाचा का दानवीय लंड न जाने कैसे कैसे मीनू

सम्भाल पा रही थी? सुरेश चाचा का दानवीय लंड न जाने कैसे कैसे मीनू सम्भाल पा रही थी? चाचू के विशाल भरी-भरकम शरीर के नीचे हाथों में फांसी नन्ही

बेटी किसी चिड़िया जैसी थी.

चाचू मीनू को दनादन जान लेवा धक्कों से चोदते हुए उसके सूजे चूचुकों को बेदर्दी से मसल रहे थे। अभी मीनू के उरोज़ों का विकास नहीं हुआ था।

"डैडी,चोदिये अपनी लाड़ली बेटी को। फाड़ डालिये अपनी नन्ही बेटी की चूत अपने हाथी जैसे लंड से," मीनू कामवासना के अतिरेक से अनाप-शनाप बोलने

लगी।

मेरी चूत को संजू का मोहक चिकना लंड रेल के इंजन के पिस्टन की तरह बिजली के तेजी से चोद रहा था, 'आअह्ह संजू ऊ.…… ऊ........ ऊ.……

उउन्न्न ....... मैं आने वाली हूँ ,भैया प्लीज़ और ज़ोर से मेरी चूत चोदो |"

संजू ने मेरे दोनों चूचियों भी निर्मम शुरू कर दिया।मेरी साँसे भरी हो चली। मेरी सिस्कारियां और भी उत्तेजक हो उठीं और उनमे मीनू की आनंदमय दर्द से

उपजी घुटी घुटी चीखें मिल कर कमरे में सम्भोग का संगीत बजा थीं।

हम चारों विलासमय अगम्यगमनी समाज के नियमों के विपरीत कामवासना में लिप्त बेसब्री से रति-निष्पति की और प्रगतिशील हो रहे थे।

अचानक मेरे शरीर में बिजली कौंध गयी। मेरा गरम कामाग्नि से जलता बदन धनुषाकार होने लगा। पर संजू ने मुझे अपने नीचे परिपक्व पुरुष की तरह अच्छे

से दबा रखा था। उसका लंड सपक-सपक की आवाज़ें पैदा करता हुआ मेरी फड़कती चूत का अविरत मर्दन में सलग्न था।

कुछ हे देर में मीनू और मैं हल्की सी कर झड़ने लगीं। पर हमारे दोनों सम्भोगी अभी कौटुम्बिक व्यभिचार से संतुष्ट नहीं हुए थे।

मीनू और मैं दोनों हांफ रहे थे। सुरेश चाचा ने अपनी अपरिपक्व बेटी को बेसब्री से पीठ पे लिटा कर बिस्तर के किनारे पे खींच लिया और खुद फर्श पर खड़े हो गए।


 उन्होंने ने अपनी बेटी के रति रस से लबालब भरी गुलाबी अविकसित चूत में अपना अमानवीय विकराल लंड तीन अस्थी-पंजर हिला देने वाले
धक्कों से जड़ तक दाल दिया। और फिर पहली चुदाई की तरह मीनू को जानलेवा धक्कों से चोदने लगे।

संजू ने भी अपने पिता की तरह मुझे दुसरे आसान में चोदने के लिए उत्सुक था। उसने मुझे पलट कर पेट के बल लिटा दिया औए मेरी जांघें फैला

दीं। उसने अपना मूसल मेरी रस भरी चूट में जड़ तक दल कर फिर से मेरी चूट की दनादन धक्कों से चोदने लगा।

कमरे में एक बार फिर से सहवास की आग में जलती दो लड़कियों की सिस्कारियां और दो के मालिक पुरूषों की गुरगुराहटें गूँज उठीं।

संजू अपने पिता से मानो होड़ लगा रहा था। मेरे पट लेटने से और उसके पीछे से मेरी चूत के मर्दन से मेरी चूत और भी तंग और संकरी महसूस हो

रही थी। संजू का मोटा लंड अब मुझे और भी मोटा लगने लगा। संजू के गले से 'हूँ हूँ' की घुटी घुटी गुरगुराहट से उबलने लगीं।

संजू अब अपने धक्कों में और भी ज़ोर लगा रहा था। मेरी सिस्कारियों में हल्की से चीखें भी शामिल हो चलीं। मैंने मुलायम चादर को दाँतों के

बीच लिया। संजू के हर तक्कड़ मेरे सारे शरीर को हिला रहे थी। सुरेश चच ने भी मीनू की चुदाईकी रफ़्तार और आधिक्य को और भी परवान

चढ़ा दिया था।


मीनू मेरी तरह अब अनगिनत बार झड़ चुकी थी। उसका अपरिपक्व छोटा हल्का सा शरीर अपने विशाल पिता के नीचे दबा था पर फिर भी उनके

हर धक्के से बेचारी सर से पाँव तक हिल रही थी। पर अब मुझे पुरुषों की बेदर्दी से उपजे आनंद का अभ्यास हो गया था। मीनू हालांकि मुझसे तीन

साल छोटी थी पर उसका सम्भोग का अनुभव मुझसे तीन साल अधिक था।

"डैडी, आपका घोड़े जैसे लंड मेरी चूत फाड़ कर ही मानेगा। मुझे और भी ज़ोर से चोदिये, डैडी ई …………ई …………ई ………… मैं फिर से

झड़ने वाले हूँ। आह आआन्न चो ……… ओ …………ओ …………दिये मर गयी मैं तो ………… हाय मम्मी………… ई …………ई …………ई,"

अगम्यगमनात्मक आग में जलती मीनू ने अपने नविन चरम-आनंद की घोषणा कर दी।

मैं भी एक बार से कामोन्माद के पराकाष्ठा पे पहुँच कर कौटुम्बिक व्यभिचार की आनद की घाटी में लुड़क गयी।

संजू और चाचू ने मीनू और मुझे आधा घंटा और चोदा। तब तक हम दोनों रति-निष्पति के उन्माद के अतिरेक से अभिभूत हो कर शिथिल हो गयीं

थीं। हम दोनों की सिस्कारियां बहुत मंद हो चलीं थीं।

कुछ क्षणों में संजू ने गुर्रा कर ज़ोर से अपना लंड मेरी चूत में ढूंस कर मेरे बिखरे रेशमी केशों में अपना हांफता हुआ सुंदर मुखड़ा छुपा लिया।

उसके लंड ने मेरी योनि के भीतर जननक्षम वीर्य की बौछार कर दी। मैं, अपने गर्भाशय के ऊपर संजू के उबलते वीर्य की हर पिचकारी के संवेदन

से सुबक गयी। मैं निरंतर रति-निष्पति से थक कर निश्चेत हो गयी। उसके पिता ने उसकी अविकसित चूत और गर्भाशय को अपने उर्वर फलदायक

गरम वीर्य से नहला दिया। मीनू एक बार फिर से अपने डैडी के लिंग स्खलन के प्रभाव से चीखे बिना न रह सकी। 


 मैंने संजू को अपनी बाँहों में भरकर उसके गुलाबी मीठे होंठो को चूस चूम कर सुजा दिया। संजू के उसके लार से लिसी जीभ
गुलबजामुम से भी मीठी थी।

सुरेश चाचे भी अपनी बेटी को गोद में भर कर कामवासना के के अनुराग और वात्सल्य से भरे चुम्बनों से उसे पिता के अनुराग से

आन्दित कर रहे थे।

तभी नम्रता चाची और दीदी भरभरा कर कमरे में दाखिल हुईं।

"अरे, ये आप यहाँ व्यस्त हो गए। आप को तो पता है कि आज का क्या कार्यक्रम है?" नम्रता चाची ने प्यार भरा अपने पति को

उलहाना दिया।

"सॉरी मम्मी डैडी मेरी चूत मारने में व्यस्त हो गए थे," मीनू ने अपने पिता की तरफदारी में कोइ देर नहीं लगाई।

"मुझे पता है बिटिया रानी। तेरी चूत देख कर तेरे डैडी का लंड काबू में नहीं रहता। मैं शिकायत कहाँ ही कर रहीं हूँ ?" चाची ने अपनी

भीषण चुदाई से थकी-मांदी बेटी को प्यार से चूमा।

"बेगम, मीनू के हवा में उठी गांड और उसकी गुलाबी चूत को देख कर तो भगवान् भी बेकाबू हो जायेंगें," सुरेश चाचा ने भी प्यार से

अपनी बेटी तो चूमा।

मीनू शर्मा कर लाल हो गयी।

"संजू बेटा आखिर में अपनी नेहा दीदी को चोद ही लिया तूने। अब तो खुश है ? अपने माँ के लिए भी कुछ बचा रखा है कि नहीं? "

नम्रता चाची ने कमसिन संजू को भी उलहाना देने में कोई देर नहीं की।

"मम्मी क्या कोई बेटा अपने माँ की चूत के लिए दुनिया की दूसरी तरफ तक नहीं दौड़ जायेगा। मैं तो आप के लिए हमेशा तैयार

रहता हूँ ," संजू ने अपने प्यार का आश्वासन अपने मम्मे को जल्दी से दे दिया।

"मैं तो मज़ाक कर रहीं हूँ, मेरे लाल ,तू तो हीरा है. तेरे लंड के ऊपर तो मैं स्वर्ग भी न्यौछावर दूंगी," चाची ने संजू के मेरे थूक से

लिसे गुलाबी होंठो को कस कर चूम लिया, "पर अब आप लोगों को हम लड़कियों से अलग हो जाना है। चलिए बाहर के कुछ काम

वाम भी तो करने हैं।"

संजू और चाचू नाटकीय उदास मुंह बना कर बाहर चले गए।

"नेहा बेटी आज आपके कौमार्यभंग की पार्टी है," चाची का उत्साह उनसे समाये नहीं बन रहा था। मेरे चेहरे पे अज्ञानता के भाव को

देख कर दोनों चाची और जमुना दीदी खिलखिला कर हंस दी।

मैं और मीनू जल्दी से स्नानगृह की और चल दिए।

मैं मीनू के नाजुक छरहरे शरीर से मंत्रमुग्ध और उसकी छोटी जैसे सुंदर चेहरे से अभिभूत हो गयी थी।

"दीदी मुझे बहुत ज़ोर से मूत आया है," मीनू ने मचल कर कहा।

ना जाने कहाँ से मेरे शब्द मेरे मुंह से उबाल पड़े , " मीनू क्या तू मुझे अपना मीठा पेशाब पिलाएगी ?"

मीनू चहक कर बोली, "नेहा दीदी क्या आप अपनी छोटी बहिन को भी अपना सुनहरी प्रसाद दोगी? जब संजू को पता चलेगा कि मैंने

आप का मूत्र उससे पहले पी लिया है तो वो बहुत जलेगा। "

मैं मीनू को खींच कर विशाल खुले स्नानघर के फौवारे के नीचे गयी। मैंने उसकी एक टांग अपने कंधे पर रख अपना खुला मुंह उसकी

छोटी तंग गुलाबी झांटरहित चूत के निकट कर दिया। मीनू का मूत्राशय वाकई भरा हुआ था। उसकी सुनहरी गरम धार झरने की

आवाज़ करते हुए मेरे मुंह पर वर्षा की बौछार के तरह गिरने लगी। पहली मूत्र-वर्षा में सुरेश चाचा का सफ़ेद गाड़ा वीर्य मिला हुआ था

जिसे मैं प्यार से सतक गयी।

मैंने नदीदेपन से मीनू का तीखा पर फिर भी मीठा मूत जितना भी हो सकता था पीने लगी। मीनू के पेशाब की वर्षा बड़ी देर तक चली।

मैं तो उसके सुनहरे मीठे मूत से बिलकुल नहा गयी। फिर भी मैंने न जाने कितनई बार अपना मुंह उसके पेशाब से पूरा भर कर बेसब्री

से निगल लिया और फिर से मुंह खोल कर तैयार हो गयी।

आखिर में मीनू की वस्ति खाली हो गयी।

मैंने अपनी जीभ से उसके गुलाबी भगोष्ठों के ऊपर सुबह की ओस जैसे चमकती बूंदे चाट ली।

अब मीनू की बारी थी।

मैंने अपनी चूत के भगोष्ठों को फैला कर अपने मूत्राशय की संकोचक पेशी तो ढीला कर दिया और मेरे गरम मूत्र की बौछार मीनू के

सुंदर चेहरे पर गिर पड़ी।

मीनू ने लपक कर अपना मुंह भर लिया और जल्दी से मेरा सुनहरी द्रव्य सतक कर फिर से अपने मुंह को मेरी मूत्र-वर्षा के नीचे लगा

दिया।

मीनू ने भी अनेक बार अपना मुंह भरने में सफल हो गयी।

"नेहा दीदी, आपका मूत बहुत ही प्यारा और मीठा है। संजू को भी प्लीज़ पिलाना ,"मीनू ने मुझे प्यार से चूमा।

"मीनू मेरा तेरे पेशाब जितना मीठा नहीं हो सकता। यदि संजू को मेरा मूत अच्छा लगेगा तो मुझे बहुत खुशी होगी। क्या तुम दोद्नो

भी एक दुसरे का मूत्र-पान करते हो?" मैंने मीनू के मुस्कराते होंठो को चूसा और अपने पेशाब के स्वाद तो चखा।

मीनू खिलखिला कर हंसी , "बहुत बार दीदी न जाने कितनी बार। "


मैंने मीनू को छोटी बालिका की तरह नहलाया और खुद भी नहा कर पहले उसे फिर अपने को सुखाने लगी।

 जब हम कमरे में आये तो कुछ क्षणों में ही बाद नम्रता चाची, जमुना दीदी और ऋतू मौसी हंसती हुई दाखिल हो गयीं।
उस समय ऋतू मौसी बाइस साल की थीं। मनोहर नानाजी के आखिरी बेटी, ऋतू , और उनसे तीन साल बड़े भाई ,राज , नम्रता

चाची के बीस साल बाद पैदा हुए थे।

ऋतू मौसी की सुंदर काया को देख कर कोइ भी मनुष्य मंत्रमुग्ध हो जाये। ऋतू मौसी पांच फुट लम्बी और गदराये शरीर की मलिका

हैं। उनके देवी सामान सुंदर चेहरे को देख कर सब लोग भगवान् में विश्वास करने लग जाए। उनकी भरे उन्नत भारी स्तन ढीले

कफ्तान में भी छुप नहीं पा रहे थे। उनके गोल सुडौल थोड़ी उभरी कमर उनके भरे-भरे गोल नितम्ब इतने गदराये हुए थे कि उन्हें

हिलते हुए देख कर देवताओं का भी मन बेहक जाए। ऋतू मौसी के देवी समान सौंदर्य उनकी प्रशांत सागर की तरह स्थिर शांत व्यवहार

से और भी उभर कर उन्हें अकिर्षक बना देता है। ऋतू मौसी के सौंदर्य को व्यक्त करने के लिए पर्याप्त शब्द नहीं बने। यथेष्ट कि उनके

सौंदर्य के लिए देवता इंद्रप्रस्थ छोड़ने के लिए तैयार हो जायेंगें।

मैं एकटक ऋतू मौसी के हलके मुस्कान से भरे सुंदर चेहरे को निहारने लगी। उनकी अत्यंत सुंदर नासिका उनके चेहरे की चरमोत्कर्ष

है। जब वो मुस्कुरातीं है तो मानों उनके होंठो की मुस्कान उनके नथुनों को भी शामिल कर लेती है।


ऋतू मौसी ने मुझे ऊपर से नीचे तक निहारा ,"दीदी देखो तो हमारी नन्ही नेहा कितनी सुंदर और बड़ी हो गयी है। "मीनू और मैं अभी

भी निवस्त्र थे।

मैं शर्मा गयी। जमुना दीदी ने कार्यक्रम बताया ,"पहले आप दोनों की शादी होगी।फिर आपके दुल्हे राजा सब परिवार के सामने

अधिकारिक रूप से आप दोनों के कौमार्यभंग फिर से करेंगें। उसके बाद हम सब देर से लंच खाएंगें। "

ऋतू मौसे बीच में कूद पड़ीं , "और फिर होगा रंडी-समारोह। "

मीनू और मैं भौंचक्के भाव से उन्हें घूर रहीं थीं।

"अरे नादान नन्ही बलिकायों हम सब मिल कर निस्चय करते हैं कि हम मैं से कौन रात भर को लिए रंडी बनने का सौभाग्य पायेगी।

उसका मतलब है कि सारे पुरुष उस भाग्यशाली स्त्री को मन भर कर चोदेंगे और उस स्त्री को उन सब पुरुषो के सारे वीर्य पर हक़

होगा ," नम्रता चाची ने मीनू और मुझे समझाया।


"दीदी आप देखो पहले की तरह गड़बड़ कर रही हो। आखिर बार हम सबने निश्चय किया था कि जो सौभागयशाली रंडी बनने का हक़

जीतेगी उसे सब पुरुषो के शरी के हर द्रव्य पर पहला हक़ होगा। याद है न डीड? यदि नहीं तो जमुना दीदी से पूछ लो ?" ऋतू मौसी ने

नम्रता चाची की अपनी गहरी सुंदर आँखें मटका कर चिढ़ाया।

नम्रता चाची ने गहरी सांस भर कर नाटकीय अंदाज़ में कहा , "मेरी बेटी जैसी मेरी छोटी बहन देखो कैसी रंडियों जैसी बोल रही है। "

चाची के निरर्थक मज़ाक पर हम सारे हंस दिये।

"और तू तो ऐसे कह रही है कि जैसे तू ही वो सौभाग्यशाली रंडी होगी ," नम्रता चाची के शिकायती शब्दों में और उनके सुंदर चेहरे पर

फ़ैली मुस्कान में उनकी बेटी समान छोटी बहन के लिए अपर प्यार भरा था। नम्रता चाची के लिए राज मामा और ऋतू मौसी भाई-

बहन कम और बेटा-बेटी ज़यादा थे। आखिर में उन्होंने ही तो नानी के निधन के बाद माँ की तरह दोनों का पालन-पोषण किया था।


आखिर में तीनों ने हंस कर ताश की गड्डी निकाली और नम्रता चाची ने तीन ताश बाटें । तीनों सुंदर स्त्रियां बड़ी देर तक एक दुसरे की

तरफ देख कर अपने ताशों के ऊपर कर हाथ रख कर एक दुसरे को घूरने लगीं।

आखिरकार नम्रता चाची ने अपना ताश सीधा कर दिया। उनके पास ग़ुलाम था। जमुना दीदी ने अपना ताश खोला और उदास चेहरे

बना कर अपना लिया , "धत तेरे की। "

जमुना दीदी का ताश सिर्फ दहला था।

ऋतू मौसी ने आँखे मटका कर ज़ोरों से मुस्कुरायीं , "न जाने क्यों मुझे शुरू से ही विजय का आभास हो रहा था ?"

नम्रता चाची ने बनावटी चिढ़ते हुए कहा ,"मेरी बेटी जैसी बहना अभी तो मेरा ताश ही सबसे बड़ा है। आज लगता है कि घर के छै

लंड मेरे होंगे। "

ऋतू मौसी ने मज़ाकिया चिड़ाने के लिए अपनी माँ जैसी बड़ी बहन को चूम कर कहा , " मेरी माँ सामान पूजनीय दीदी, आपका मन

क्या कह रहा है? वैसे तो मुझे पता है कि आप मेरा और जमुना दीदी का दिल रखने के लिए जीत कर भी हार मान लेंगीं।

"अच्छा चल औए बात नहीं बना औए अपना ताश दिखा दे , " नम्रता चाची बनावटी गुस्से से बोलीं पर उन्होंने प्यार से ऋतू मौसी

के सुंदर चेहरे को दुलारा।

ऋतू मौसी ने एक झटके से अपना ताश सीधा कर दिया और विजय की घोषणा करते हुए मज़ाकिया नृत्य करने लगीं। उनके पास

इक्का था।


इस हंसी मज़ाक के बाद तीनो का ध्यान मीनू और मेरी तरफ मुड़ गया। 


 जमुना दीदी ने अपने पिछले सालों के कपडे निकाले थे। मीनू को उनके छोटे ब्लाउज भी ढीला पड़ा। आखिर में मीनू के पास उस समय चूचियाँ ही नहीं थी
और जमुना दीदी के स्तन बहुत कम उम्र में विकसित हो गए थे। पर लहंगा तो ढीला हे होता है सो उसमे मीनू चमक उठी। दोनों वस्त्र बहुत ही महीन कोमल

रेशम से बने थे और उनपर अत्यंत जटिल और बारीक पेचीदा सोने के धागों से सजावट थी। मीनू उन बड़े माप के वस्त्रों में और भी अविकसित औरनन्ही पर

बाला की सुंदर लग रही थी।

मेरा ब्लाऊज़ भी उतना ही सुंदर और आकर्षक था। मेरे भरे भरी चूचियों ने उसे पूरा भर दिया। लहंगा भी उतना ही सुंदर और आकर्षक था।

मीनू और मुझे ब्रा और पैंटीज नहीं पहनने की आज्ञा दी गयी थी।

"अरे बुद्धू कुंवारी कन्याओं। क्या तुम अपने दूल्हों को ब्रा और पैंटीज उतरने में उलझना पसंद करोगी ?"

हमें हलके श्रृंगार से और भी सुंदर बनाया गया। नम्रता चाची ने सोने की नथनी हम दोनों को पहनायी।

"चलो दुल्हनें तो तैयार हो गयीं अब दूल्हों और बारात को तैयार करतें हैं। " नम्रता चाची ने प्यार से मीनू और मुझे चूमा। अचानक उनकी आँखों में आंसू भर

गये, "हाय, कितनी सुंदर लग रहीं हैं मेरी बेटियां ? कहीं इन्हें मेरी ही नज़र न लग जाये ?"

"आज तो ठीक है पर मैं वास्तव में तो इनका कन्यादान कभी भी नहीं कर पाऊॅंगी। इन्हें तो सारा जीवन अपने घर में हीं रखूँगी किसी को भी इन्हें अपने घर

से नहीं ले जाने दूंगी।" नम्रता चाची की आवाज़ में रोनापन आने लगा।

ऋतू मौसी और जमुना दीदी के नेत्र भी गरम आंसुओं से भर गए।

"दीदी, इनके दुल्हे तो हमारे घर के ही हैं। यह दोनों कहीं भी नहीं जा रहीं। " जमुना दीदी ने मज़ाक से बात सम्भाली।

तीनों अपनी आँखें पौंछते हुए कमरे कमरे से रवाना हो गयीं।



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