Wednesday, January 22, 2014

बदनाम रिश्ते-- हमारा छोटा सा परिवार--4

FUN-MAZA-MASTI


बदनाम रिश्ते--
 हमारा छोटा सा परिवार--4

 सुबह मैंने जल्दी से नहाने के बाद अपने बालों को खुला छोड़ दिया. मैंने सफ़ेद कॉटन की ब्रा और जांघिया चुनकर हलके गुलाबी रंग का कुरता और सफ़ेद सलवार पहनी. उसके ऊपर मैंने सफ़ेद झीनी सी चुन्नी गले पर लपेट ली. दुपट्टे के नीचे मेरे बड़े उरोज़ और भी उभरे हुए प्रतीत होते थे. मैंने अपने गोरे छोटे-छोटे पैरों पर हलके भूरे मुलायम चमड़े की फ्लैट हील की रोमन सैंडल डाल ली.

नौकर ने मेरा बैग बड़े मामा की मर्सिडीज़ ४x४ में रख दिया. मुझे पता था की इस गाड़ी में भी हमारे परिवार की दसियों गाड़ियों की तरह काले शीशे का एकांत या प्राइवेसी विभाजन था.

बाहर सब लोग नरेश भैया और अंजू भाभी को विदा करने के लिए इकट्ठा थे. नरेश भैया ने मुझे दूर से देखकर तेज़ी से मेरी तरफ आये और अपने बाँहों में भर लिया. भैया ने मुझे दोनों गालों पर चूमा और मेरे कान में धीरे से फुसफुसाए, "नेहा, भाभी ने मुझे सब समझा दिया है. मैं तुम्हारे फोने का बेसब्री से इंतज़ार करूंगा." मैं शर्मा कर उनसे लिपट गयी.

अंजू भाभी भी नज़दीक आ कर मुझसे गले मिली और मेरे चुपके से मेरे नितिम्बों को दबा दिया.
भैया-भाभी के जाने के बाद बड़े मामा और मैं भी रवाना हो गए. पीछे हमारा परिवार एक दुसरे को गोल्फ में हराने की बातें में व्यस्त हो गया.

"नेहा बेटा, आप बहुत ही सुंदर लग रही हो," बड़े मामा की प्रशंसा ने मुझे शर्म से लाल कर दिया.
बड़े मामा ने खाकी पतलून, आसमानी रंग की कमीज़ और गहरे नीले रंग का [नेवी ब्लू]कोट पहना था. वृहत्काय बड़े मामा अत्यंत हैंडसम और सुन्दर लग रहे थे.

"बड़े मामा आप ने ड्राईवर को क्यों नहीं लिया? हमें रास्ते में भी आपके साथ समय मिल जाता." मैंने शर्मा कर बड़े मामा के साथ किसी पत्नी जैसे अंदाज़ शिकायत की.
बड़े मामा खूब ज़ोर से हंसें, "नेहा बेटा. आप भूल गए ड्राईवर होता तो वो भी बंगले में ही रहता. आप फ़िक्र नहीं करो, हम वहां पहुच कर आपकी सारी शिकायत मिटा देंगें."

मैंने शर्म से अपना सिर झुका लिया. मैं अपने अक्षत-यौन को नष्ट करने के लिए कितनी बेशर्मी से बड़े मामा के साथ समरक्त-रतिसंयोग के लए उत्सुक थी.
बड़े मामा ने प्यार से मेरे खुले बालों को सहलाया.

बड़े मामा ने मुझे सारे रास्ते अपने मज़ाकों से हंसा-हंसा के मेरे पेट में दर्द कर दिया. हमने रास्ते में एक ढाबे में रुक कर नाश्ता किया. बड़े मामा को पता था कि मुझे सड़क के साथ के ढाबों में खाना खाना बहुत पसंद था. मुझे आलू के परांठे, अचार, अंडे के भुजिया किसी पांच सितारा होटल के खाने से भी अच्छी लगे. बड़े मामा मुझे लालचपने से खाते हुए पिताव्रत प्यारभरी आँखों से देखते रहे.

मैंने उनकी आँखों में भरे प्यार को अस्सानी से महसूस किया और उनका ध्यान बटाने के लिए बोली, "बड़े मामा, प्लीज़ थोडा खाइए ना. बेचारे ढाबे वाला समझेगा कि आपको उसका खाना अच्छा नहीं लगा."
बड़े मामा ने धीरे से कहा,"नेहा बेटा, काश तुम मेरी बेटी होतीं. तुम्हारे जैसी बेटी पाने के लिए मैं दुनिया का हर धन त्याग देता." जबसे मुझे याद है मेरे जन्म के बाद वो इस बात को कई बार कह चुके थे.

जब मनू भैया सिर्फ एक साल के थे तभी बड़ी मामी का देहांत हो गया था. उन्नीस साल तक मामा ने अपनी अर्धांग्नी की क्षति का दर्द सीने में छुपा कर अपने दोनों बेटों के लिए पूरा समय दे दिया.

मैंने अपना छोटा सा हाथ बड़े मामा के बड़े मज़बूत हाथ पर रखा, "बड़े मामा, आप मेरे पित-तुल्य हैं. मैं आपकी बेटी के तरह ही तो हूँ. इसका मतलब है कि आप मुझे अपनी बेटी नहीं समझते?"

बड़े मामा ने मेरा छोटा सा हाथ अपने बड़े हाथ में लेकर प्यार से अपने होंठों से चूम कर बोले, "आइ ऍम सॉरी,बेटा. मैं बुड़ापे में थोडा बुद्धू हो चला हूँ. तुम तो मेरी बेटी ही नहीं हमारे पूरे खानदान के अकेली अनमोल हीरा बेटी हो."

बड़े मामा सही कह रहे थे. मैं अपने पूरे परिवार में इकलौती बेटी थी. छोटे मामा और बुआ के कोई भी बच्चा नहीं था. बड़े मामा कभी दूसरी शादी का विचार भी मन में नहीं लाये थे. मेरे मम्मी पापा ने पता नहीं क्यों दूसरे बच्चे के लए प्रयास नहीं किया. मुझे हमेशा छोटे बहन-भाई ना होने का अहसास होता रहता था.

मैंने बड़े मामा का ध्यान इस दर्द भरी स्थिती से हटाने के लिए कृत्रिम रूप से इठला कर बोली, "बड़े मामा आप अभी बूढ़े नहीं हो सकते. अभी तो आपको अपनी बेटी जैसी भांजी का कौमर्यभंग करने के बाद ज़ोर से चुदाई करनी है."

बड़े मामा अपनी भारी आवाज़ में ज़ोर से हंस पड़े, "नेहा बेटा, बंगले में पहुच कर आपकी चूत और गांड की आज शामत आ जायेगी. मेरा लंड आपकी चूत और गांड बार बार चोद कर उनकी धज्जीयां उड़ा देगा." बड़े मामा ने अश्लील बातों से मुझे रोमांचित कर दिया.

बड़े मामा और मैं दो घंटे की यात्रा में कभी पिता-बेटी की तरह बात करते तो कभी अत्यंत अश्लील और वासनामयी वक्रोक्ती से एक दूसरे की कामंग्नी को और भी भड़का देते थे.

"मामाजी यदि किसी ने सुरेश अंकल या नम्रता आंटी से पूछ लिया तो क्या होगा?" मुझे बड़े मामा की इज्ज़त की बहुत फिक्र थी.
"नेहा बेटा, मैंने सुरेश को बताया कि मैं एक बहुत खूबसूरत, अत्यंत विशेष नवयुवक स्त्री को परिवार की परिधी से दूर मिलने के लए आ रहा हूँ. दोनों ने समझ लिया कि ये विशेष स्त्री हो सकता है कि एक बार के बाद मुझसे मिलना न चाहे. मुझे झूठ नहीं बोलना पड़ा पर पूरी बात भी नहीं बतानी पडी."

"ओहो, मुझे आपके ऊपर तरस आ रहा है बड़े मामा. कहाँ तो आपकी कहानी की विशेष नवयुवती और कहाँ आपकी लड़कों जैसी नटखट भांजी." मुझे बड़े मामा को चिड़ाने में मज़ा आ रहा था.

बड़े मामा ने जोरकर हंस कर मेरी ओर प्यार से देखा.

 हम दोनों के निरंतर वार्तालाप में बाकी यात्रा यूँ ही समाप्त हो गयी.
हम परिवार का झील वाला बंगला एक पहाड़ी पर था. सिर्फ एक सड़क ही थी और वो सड़क सिर्फ हमारी जायदात पर ही ख़त्म हो जाती थी.

बड़े मामा ने बंगले के सामने बड़े खुले पार्किंग दालान में कार रोक दी. बँगला लगबघ ५० एकड़ के बीच में था. परिघी के बाद सब तरफ वादी थी. ४-५ एकड़ की घास भरी ज़मीन के बाद सारी तरफ घने पेड़ों का जंगल था. उसके बीच में ६ एकड़ की झील थी.

बँगला टीक लकड़ी और और पहाड़ी पत्थरों से बना था. उसमे दस शयन-कक्ष, ४ बैठक, २ रसोई और दो परिवार के खेलने और सिनेमा देखने के कमरे थे.
बड़े मामा ने मुझे गाड़ी से निकलते ही अपनी बाँहों में उठा लिया, "नेहा बेटा, आज तो मुझे आपसे आपकी सुहागरात जैसे ही व्यवहार करना चाहिये."

मैंने अपनी बाहें मामाजी कि गर्दन के इर्दगिर्द डाल दीं.
बड़े मामा ने मुझे तीसरे बड़े शयन-कक्ष में ले गए. दरवाज़े के अंदर जाते ही मेरी आँखे खुली की खुली रह गयीं.

पूरा कमरा फूलों से सजा हुआ था.बिस्तर पर भी गुलाब की कोमल पंखुड़ियां बिखरी हुई थीं. सफ़ेद बिस्तर पर लाल और गुलाबी ग़ुलाब की पंखुड़ियां किसी भी स्त्री के दिल को प्यार से झंझोड़ देने के लिये पर्याप्त थीं.

मेरी आश्चर्य से चीख निकल गयी. मैंने बड़े मामा के मूंह को बार-बार चूम कर गीला कर दिया.
मामा ने मुझे धीरे से ज़मीन पर खडा कर दिया मानो मैं अत्यंत नाज़ुक थी. मेरी दृष्टी मुलायम तकियों के ऊपर एक बड़े से शलीन के बक्से पर पडी. मैंने बड़े मामा की तरफ देखा और उन्होंने मुस्करा कर सिर हिलाया.

मैंने सुंदर बक्सा खोला तो उसमे तीन विभाग थे. एक में हीरों का हार, दूसरे में वैसे ही हीरों का कंगन था और तीसरे में मिलती हुई हीरों की पैंजनी [एंकलेट] थी. मैं मामा से लिपट गयी. बड़े मामा ने मेरे साथ सहवास के लिये कितनी तय्यारियाँ की थीं. उनके उपहार कीमत से नहीं उनके दिल की चाहत की वज़ह से मेरे लिये बेशकीमती थे. मैंने होले से बक्सा बंद किया और बिस्तर के पास की मेज़ पर रख दिया.

फिर मैं शर्माती हुई अपने वृहत्काय बड़े मामा की बाँहों में समा गयी. बड़े मामा ने मुझे अपने बाँहों में भर कर कस के अपने भारी-भरकम शरीर से जकड़ लिया. बड़े मामा मुझसे एक फुट से भी ज़्यादा लम्बे थे. मैंने अपना शर्म से लाल चेहरा उनकी सीने में झुपा लिया. बड़े मामा ने मेरी थोड़ी को अपनी उंगली से ऊपर उठाया और नीचे सर झुका कर मेरे नर्म, कोमल होठों पर अपने होंठ रख दिए.

मेरी साँस तेज़ हो गयी. मेरा मुंह सांस की तेज़ी के कारण अपने आप ही खुल गया. मामाजी की मोटी जीभ मेरे मुंह में समा गयी. बड़े मामा ने मेरे पूरे मुंह के अंदर अपनी जीभ को सब तरफ अच्छे से फिराया.मेरे मुंह में उनकी जीभ ने मुझे पागल कर दिया. मेरी जीभ स्वतः ही मामाजी की जीभ से खेलने लगी.

बड़े मामा ने अपने खुले मुंह से मेरे मुंह में अपनी लार टपकाने लगे. मेरा मुंह उनके मीठे थूक से भर गया. मैंने जल्दी से उसको निगल कर बड़े मामा के साथ खुले मुंह के चुम्बन में पूरी तरह से शामिल हो गयी. बड़े मामा ने अपने हाथ मेरे पीठ पर फिरा कर मेरे दोनों गुदाज़ नितिम्बों पर रख दिए.

मामाजी ने अपने होंठों को जोर से मेरे मुंह पर दबा कर मेरे दोनों चूतड़ों को मसल दिया. मैं कामुकता की मदहोशी के प्रभाव से झूम उठी. मैंने अपने पैर की उंगलियों पर खड़ी हो कर थोड़ा ऊंची हो गयी जिस से मामा जी को मुझे चूमने के लिए कम झुकना पड़े. बड़े मामा ने मुझे अपने दोनों हाथों को मेरे नितिम्बों के नीचे रख कर ऊपर उठा लिया और बिस्तर की तरफ ले गए.

 बड़े मामा बिस्तर के कगार पर बैठ गए. मैं उनकी फ़ैली हुई जांघों के बीच मे खड़ी थी. मामाजी ने मुझे खींच कर अपनी बाँहों मे भर कर मेरे मुंह से अपना

मुंह लगा कर मेरी साँसों को रोकने वाला चुम्बन लेने लगे. उनके दोनों हाथ मेरे गुदाज़ चूतड़ों को प्यार से सहला रहे थे, जब मामाजी मेरे नितिम्बों को ज़ोर से

मसल देते तो मेरी सिसकारी निकल जाती और मैं अपना मुंह और भी ज़ोर से मामाजी के खुले मुंह से चिपका देती.

मामाजी ने धीरे-धीरे मेरा कुरता ऊपर उठा दिया. उनके हाथ जैसे मेरी नंगी कमर को सहलाने लगे तो मेरी मानो जान ही निकल गयी. मुझे अब आगे के

सहवास के बारे में आशंका होने लगी. मेरी कमसिन किशोर अवस्था ने मुझे मामाजी के अनुभवी आत्मविश्वास के सामने अपने अनुभव शून्यता और अनाड़ीपन का

अहसास करा दिया. मुझे फ़िक्र होने लगी की मैं कहीं बड़े मामा को सहवास में खुश न कर पाई तो उन्हें कितनी निराशा होगी. बड़े मामा ने मेरे साथ चुदाई के लिए

कितने दिनों से मन लगाया हुआ था. मैं कुछ कहने ही वाली थी पर बड़े मामा के हाथों के जादू ने मुझे सब-कुछ भुला दिया.


बड़े मामा ने मेरी सलवार का नाड़ा खोल दिया और मेरी सलवार नीचे सरक कर पैरों पर इकट्ठी हो गयी. मामाजी ने मेरे छोटे से सफ़ेद झांगिये के अंदर

अपने दोनों हाथ डाल दिए और मेरे नग्न चूतड़ों को सहलाने लगे. मेरी सांस अब रुक-रुक कर आ रही थी.मेरे मस्तिष्क में अब कोइ भी विचार नहीं रह गया था.

मेरा सारा दिमाग सिर्फ मेरे शरीर की भड़की आग पर लगा था. उस आग को बड़े मामा ने अपने अनुभवी हाथों से और भी उकसा दिया.


मेरे मूंह से सिसकारी निकल गयी, "मामाजी, हाय मुझे ..अह," मैंने अपने दोनों बाँहों को मामाजी की गर्दन के चारों और ज़ोर से डाल कर उनसे लिपट

गयी. बड़े मामा ने ने बड़ी सहूलियत और चुपचाप से मेरी जांघिया नीचे कर दी. बड़े मामा ने मेरा कुर्ता और भी ऊपर कर मेरे ब्रा में से फट कर बाहर आने को

तड़प रहे उरोज़ों को अपने हाथों से ढक कर धीरे से दबाया. मेरी मूंह से दूसरी सिसकारी निकल गयी.

मेरी सिस्कारियों से बड़े मामा को अपनी बेटी-समान भांजी के भीतर जलती प्रचंड वासना की अग्नि का अहसास दिला दिया.

मामा जी ने मेरे मुंह को चुम्बन से मुक्त कर मेरे कुरते को उतार दिया.मैं अब सिर्फ ब्रा के अलावा लगभग वस्त्रहीन थी. एक तरफ मुझे लज्जा से मामाजी से आँखे

मिलाने में हिचक हो रही थी और दूसरी तरफ मामा जी के हाथ, जो मेरे गुदाज़ बदन पर हौले-हौले फिर रहे थे, मेरी कौमार्य-भंग की मनोकामना को उत्साहित कर

रहे थे. बड़े मामा ने मेरी ब्रा के हुक खोल कर मेरे उरोज़ों को नग्न कर दिया. मेरे स्तन मेरी किशोर उम्र के लिहाज़ से काफी बड़े थे. बड़े मामा ने पहली बार मेरी

नग्न चूचियों को अपने हाथों में भर किया. उनके हाथों ने दोनों उरोज़ों को हलके से सहालाया और धीरे-धीरे मसलना शुरू कर दिया. मेरी मुंह कामंगना और शर्म से

दमक रहा था. मेरे मामा ने मेरा चेहरा अपने हाथों में ले कर बड़े प्यार से चूम कर कहा, "नेहा बेटा, तुम जैसी अप्सरा के समान सुंदर मैंने अपनी ज़िंदगी सिर्फ एक

और लड़की को ही जानता हूँ."


बड़े मामा की प्रशंसा से मेरा दिल चहक उठा और मुझे सांत्वना मिली की मामाजी मुझे अपनी भांजी के अलावा स्त्री की तरह भी चाहते हैं.

बड़े मामा ने आहिस्ता से गोद में उठाकर कर मुझे बिस्तर पर सीधे लिटा दिया. मैंने शर्मा कर अपना एक हाथ से अपने बड़े उरोज़ों और दूसरा हाथ अपनी जांघों के

बीच, गुप्तांग को ढक लिया.



बड़े मामा मुझे शर्माते देख कर मुस्कराए और अपने कपडे उतारने लगे. उन्होंने पहले अपने जूते और मोज़े उतार कर पतलून निकाल दी. बड़े मामा की जांघें

किसी मोटे पेड़ के तने की तरह विशाल और घने बालों से भरी हुईं थीं. बड़े मामा ने बौक्सर-जांघिया पहना हुआ था.बड़े मामा ने अपने कमीज़ खोल कर अपने

बदन से दूर कर ज़मीन पर फ़ेंक दी. बड़े मामा का भीमकाय शरीर ने मुझे ने मेरी वासना को और भी उत्तेजित कर दिया. बड़े मामा का सीना घने घुंगराले बालों से

आवृत था. उनका पेट अब कुछ सालों से बाहर निकल आया था. पर फिर भी उसे अभी तोंद नहीं कह सकते थे. उनके सीने के बाल पेट पर भी पूरी तरह फ़ैल गए

थे.


मैंने सांस रोक कर बड़े मामा को अपना जांघिया उतारते गौर से देख रही थी. बड़े मामा जब जांघिये को अलग कर खड़े हुए तो उनका गुप्तांग मेरी आँखों

के सामने था. बड़े मामा का लंड अभी बिकुल भी खड़ा नहीं था फिर भी वो मेरी भुजा के जितना लंबा था. बड़े मामा के लंड का मोटाई मेरी बाजू से भी ज़्यादा

थी. मेरी सांस मानों बंद हो गयी. मुझे बड़े मामा के लंड को देख कर अंदर ही अंदर बहुत डर सा लगा.


बड़े मामा बिस्तर पर मेरी तरफ को करवट लेकर मेरे साथ लेट गए. बड़े मामा ने मेरे होंठो पर अपने होंठ रख कर धीरे से मेरे होंठों को अलग कर

दिया. उनकी जीभ मेरे मूंह में समा गयी. मेरे दोनों बाँहों ने स्वतः मामाजी के गर्दन को जकड़ लिया. बड़े मामा ने मेरे उरोज़ों को सहलाना शुरू कर दिया. मैं अब

मामाजी के मुंह से अपना मुंह ज़ोर से लगा रही थी. हम दोनों के विलास भरे चुम्बन ने और मामा जी के मेरी चूचियों के मंथन मेरी चूत को गरम कर दिया, मेरी

चूत में से पानी बहने लगा.

बड़े मामा ने अपना मुंह मेरे से अलग कर मेरे दायीं चूची के ऊपर रख दिया. मेरे दोनों उरोज़ों में एक अजीब सा दर्द हो रहा था. बड़े मामा एक हाथ से

मेरी दूसरी चूची को हलके हलके मसल रहे थे. मेरी सांस बड़ी तेज़ी से अंदर बाहर हो रही थी. मेरे दोनों हाथ अपने आप बड़े मामा के सर के ऊपर पहुँच गए. मैं

मामाजी का मुंह अपने चूची के ऊपर दबाने लगी. मामा मेरी चूची की घुंडी को अंगूठे और उंगली के बीच में पकड़ कर मसलने लगे और होंठों के बीच में मेरा दूसरा

चूचुक ले कर उसको ज़ोर से चूसना शुरू कर दिया.

मेरे सारे शरीर में अजीब सी एंठन फ़ैल गयी. बड़े मामा के हाथों ने मेरे दोनों संवेदनशील उरोज़ों से खेल कर मेरे चूत में तूफ़ान उठा दिया. मेरी चूत में

जलन जैसी खुजली हो रही थी. बड़े मामा का दूसरा हाथ मेरी चूत के ऊपर जा लगा. मामाजी अपने बड़े हाथ से मेरी पूरी चूत ढक कर सहलाने लगे. मैं अब ज़ोरों

से सिस्कारियां भर रही थी. मामा ने मेरे उरोज़ों का उत्तेजन और भी तेज़ कर दिया और दुसरे हाथ की हथेली से उन्होंने मेरी पूरी चूत को दृढ़ता से मसलने लगे.


"आह, अह..अह..मामाजी, मुझे अजीब सा लग रहा है, ऊं.. ऊं अम्म..बड़े मामा ...आ ..आ ... उफ़, " मैं सीत्कारिया मार कर अपनी शरीर में

दोड़ती विद्युत धारा से विचलित हो चली थी. मेरे कुल्हे अपने आप बिस्तर से ऊपर उठ-उठ कर बड़े मामा के हाथ को और भी ज़ोर से सहलाने को उत्साहित करने

लगे.

बड़े मामा ने मेरी एक चूचुक को अपने दातों के बीच में दबा कर नरमी से काटा, दुसरे चूचुक को अंगूठे और उंगली में हलके भींच कर अहिस्ता से मेरे

चूची से अलग खींचने का प्रयास के साथ-साथ अपने चूत के ऊपर वाले हाथ के अंगूठे को मेरे भागंकुर के ऊपर रख उसे मसलने लगे.

बड़े मामा ने मेरे वासना से लिप्त अल्पव्यस्क नाबालिग किशोर शरीर के ऊपर तीन तरह के आक्रमण से मेरी कामुकता की आग को प्रज्जवलित कर दिया.



मेरे पेट में अजीब सा दर्द होने लगा, वैसा दर्द मेरी दोनों चूचियों में भी समा गया. कुछ ही क्षणों में वह दर्द मेरी चूत के बहुत अंदर से मुझे तड़पाने लगा.

मेरे सारे शरीर की मांसपेशियां संकुचित हो गयीं.

"बड़े मामा .. आ.. आ.. मेरी चूत जल रही है. बड़े मामा आह आह अँ ..अँ अँ अँ ऊओह ऊह ," मेरे मूंह से चीख सी निकल पडी. बड़े मामा ने यदि मेरी

पुकार सुनी भी हो तो उसकी उपेक्षा कर दी और मेरी चूचियों की घुंडियों को अपने मुंह और हाथ से तड़पाने लगे. मेरी चूत और भगशिश्निका को बड़े मामा और

भी तेज़ी से मसलने लगे.

"बड़े मामा मैं झड़ने वाले हूँ. मेरी चूत झाड़ दीजिये माम जी ..ई. ई...आह." मेरा शरीर निकट आ रहे यौन-चमोत्कर्ष के प्रभाव से असंतुलित हो गया.

मैं यदि बड़े मामा के ताकतवर बदन से नहीं दबी होती तो बिस्तर से कुछ फुट ऊपर उठ जाती. मेरे गले से एक लम्बी घुटी-घुटी सी चीख के साथ मेरा

यौन-स्खलन हो गया. मेरे कामोन्माद के तीव्र प्रहार से मेरा तना हुआ बदन ढीला ढाला हो कर बिस्तर पर लस्त रूप से पसर गया. बड़े मामा ने मेरी तीनो,

कामुकता को पैदा करने वाले, अंगों को थोड़ी देर और उत्तेजित कर मेरे निढाल बदन को अपनी वासनामयी यंत्रणा से मुक्त कर दिया.

 बड़े मामा मुझे अपनी बाँहों में भर कर प्यार से चूमने लगे. मैं थके हुए अंदाज़ में मुस्करा दी. मेरी अल्पव्यस्क किशोर शरीर को प्रचण्ड यौन-स्खलन के बाद की थकावन

से अरक्षित देख बड़े मामा का वात्सल्य उनके चुम्बनों में व्यक्त हो रहा था.

"बड़े मामा, मैं तो ऐसे कभी भी नहीं झड़ी," मैंने भी प्यार से मामाजी को वापस चूमा.

"नेहा बेटा, अभी तो यह शुरूवात है," बड़े मामा ने मेरी नाक को प्यार से चूमा. उनका एक हाथ मेरे उरोज़ों को हलके-हलके सहला रहा था.

बड़े मामा और मैं अगले कई क्षण वात्सल्यपूर्ण भावना से एक दुसरे को चूमते रहे. बड़े मामा ने कुछ देर बाद उठ कर मेरी टागों के बीच में लेट गए.



बड़े मामा ने मेरी दोनों घुटनों को मोड़ कर मेरी जांघे फैला दीं. उनका मूंह मेरी बहुत गीली चूत के ऊपर था.

मेरी सांस बड़े मामा के अगले मंतव्य से मेरे गले में फँस गयी. बड़े मामा ने मेरे भीगी झांटों को अपने जीभ से चाटने के बाद मेरे चूत के दोनों भगोष्ठों को अलग कर मेरी गुलाबी

कोमल कुंवारी चूत के प्रविष्ट -छिद्र को अपनी जीभ से चाटने लगे. मेरी वासना फिर पूर्ण रूप से तीव्र हो गयी.


बड़े मामा ने अपने हाथों को मेरी टांगों के बाहर से लाकर मेरे दोनों फड़कते उरोज़ों को अपने काबू में ले लिया. बड़े मामा ने मेरी चूत अपने मोटी खुरदुरी जीभ से चाटना

शुरू कर दिया. मामा ने दोनों चूचियों का मंथन के साथ साथ मेरे भागान्कुन का मंथन भी अपने दातों से कर रहे थे.

मामाजी के भग-चूषण ने मेरी सिस्कारियों का सिलसिला फिर से शुरू कर दिया.


बड़े मामा ने अपना मूंह मेरी चूत से अचानक हटा लिया. मैं बड़ी ज़ोर से आपत्ती करने के लिए कुनमुनाई, तभी मामा ने अपनी जीभ से मेरी गांड के छोटे से छेद को चाटने लगे.

मेरे होशोअवास उड़ गए. मेरी छोटी सी ज़िंदगी में इतना वासना का जूनून कभी भी महसूस नहीं किया था. मामाजी ने अपना थूक मेरी गांड पर लगा दिया. मेरी गांड का छल्ला

फड़कने लगा. बड़े मामा की बदस्तूर कोशिश से उनकी जीभ की नोक मेरी गांड के छिद्र में प्रविष्ट हो गयी. मेरे मूंह से बड़ी ज़ोर से सिसकारी निकल गयी. बड़े मामा ने अपने एक

हाथ से मेरे उरोंज़ को मुक्त कर मेरी चूत की घुंडी का मंथन करने लगे. मैं हलक फाड़ कर चीखी,"बड़े मामा, मैं झड़ने वाली हूँ. मेरी चूत झाड़ दीजिये...आह ..आह."


बड़े मामा ने आपनी जीभ मेरी गांड से निकाल कर मेरी भागान्ग्कुर को अपने दातों में नरमी से ले कर अहिस्ता से उसे झझोंड़ने लगे, जैसे कोई वहशी जानवर अपने शिकार

के मांस को चीड़ फाड़ता है. मेरी चूत की जलन मेरी बर्दाश्त की ताकत से बाहर थी. मैंने अपने दोनों हाथों से मामाजी का सर पीछे पकड़ कर अपनी चूत में दबा लिया. मामा जी ने

अपने खाली हाथ की अनामिका मेरी गांड में उंगली के जोड़ तक दाल दी.


मेरे चूतड़ मेरी अविश्वसनीय यौन-चरमोत्कर्ष के मीठे दर्द के प्रभाव में बिस्तर से उठ कर मामा के मूंह के और भी क़रीब जाने के लिए बेताब होने लगे. मामा ने मेरे थरथराते

शरीर को अपने मज़बूत हाथ से नीचे बिस्तर पर दबा कर मेरी रति रस से भरी हुई चूत का रसास्वादन तब तक करते रहे जब तक मेरे आनंद की पराकाष्ठा शांत नहीं होने लगी.


मेरी चूत अब नहुत संवेदनशील थी और बड़े मामा के चुम्बन करीब-करीब दर्दभरे से लगने लगे. मैं कुनमुना कर मामा का सर अपनी चूत से हटाने के लिए संकेत दिया. बड़े

मामा उठ कर मेरी खुली पसरी गुदाज़ जांघों के बीच बैठे तो उनके मूंह पर मेरी चूत का सहवास-रस लगा हुआ था. बड़े मामा ने खूब स्वाद से मेरी चूत और गांड में डाली

उँगलियों को प्यार चूसा. मेरी वासना उनकी इस हरकत से बड़ी प्रभावित हुई पर मैंने उन्हें झूठी डांट पिला दी, "बड़े मामा आप ने मेरी गांड की गंदी उंगली को मूंह में ले लिया,

उफ,कैसे हैं आप...छी-छी." पर मेरा दिल अंदर से बहुत प्रसन्न हुआ.


मैंने बड़े मामा के हाथ को अपने तरफ खींचा. बड़े मामा अपने भीमकाय शरीर के पूरे भार से मेरे कमसिन, किशोर गुदाज़ शरीर को दबा कर मेरे ऊपर लेट गए. मैंने अपने

दोनों नाज़ुक, छोटे-छोटे हाथों से मामाजी का बड़ा चेहरा पकड़ कर उनका मूंह अपने जीभ से चाट-चाट कर साफ़ कर दिया. मैंने शैतानी में उनकी मर्दान्ग्नी के मुनासिब खूबसूरत नाक

को अपनी जीभ की नोक से सब तरफ से चाटा. जब मामाजी का मूंह, नाक मैंने अपने चूत के पानी को चाट कर साफ़ कर दिया तो उनकी नाक की नोक पर प्यार से चुम्बन रख

दिया. उन्होंने मेरे नाबालिग, कमसिन, किशोर लड़की के अंदर की औरत को जगा दिया. मुझे बड़े मामा के ऊपर वात्सल्य प्रेम आ रहा था. उन्होंने मेरी वासना की आग दो बार

अविस्वस्नीय प्रकार से बुझा दी थी. आगे पता नहीं और क्या-क्या उनके दिमाग में था.



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