मेरी हॉट कजिन--2
gataank se aage..........
अनु: उउउउsss....हुंssssss....अब कुछ भी नहीं . बाद में देखेंगे .अब देर मत करो.
अरे यह क्या कर रही हो नीचे नहीं जाना क्या? मैंने चौंकते हुए पूछा.
अनु: कर कुछ नहीं रही, ये लौन्जरी उतार के रख रही हूँ. केवल तुम्हे दिखाने के लिए पहनी थी अभी. "दिखाने के लिए या मुझे सताने के लिए", मैंने मन ही मन सोचा. फिर उसने अपनी वो छोटी सी पैंटी उतारनी शुरू की. जैसे ही उसने अपनी वो पैंटी चूत से थोडा नीचे सरकायी तो मुझे एक चांदी के रंग का पतला सा तार उसकी चूत से लेकर उसकी पैंटी तक खिंचता हुआ दिखाई दिया जो की उसकी चूत से निकलने वाला vaginal fluid या हिंदी में कहें तो उसका योनी रस था. वो गाढ़ा तार जो उसकी चूत और पैंटी को कनेक्ट कर रहा था बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे हलवाई चाशनी की भरी हुई कढ़ाई मैं उंगली डुबो कर ऊपर की ओर खींचते हुए तार बनाता है चाशनी की मोटाई चेक करने के लिए. फर्क सिर्फ इतना था कि यहाँ चाशनी कि कढ़ाई ऊपर थी यानि अनु की चूत और हलवाई की उंगली नीचे थी यानि उसकी पैंटी. मन तो कर रहा था की जीभ निकाल कर घुस जाऊं उसकी तराशी हुई जाँघों के बीच में और सारा रस समेट कर पी जाऊं. मुझे वहां गौर से देखते हुए वो बोली "गन्दी करवा दी मेरी पैंटी भी और किया भी कुछ नहीं.
साली कितनी बड़ी टीज़र है. इतना टीज़ करके मेरी तो हालत ख़राब कर दी. बताऊंगा इसे तो मौका मिल जाये एक बार फिर इसे दिखाता हूँ टीज़ कैसे करते हैं यह सोचते हुए मैंने मुश्किल से अपने लंड को अपने jockey में घुसेड़ा और शॉर्ट को ऊपर चढ़ा कर अपने कमरे की तरफ भागा जो की अनु के कमरे के बिलकुल बगल वाला था. पीछे से मुझे अनु की वही शरारत भरी खिलखिलाहट सुनाईदी.
मैंने अपने कमरे में घुस कर अपने बेड के साइड में रखी पानी की बोतल उठाई और गटागट आधा बोतल पानी पिया . पानी पीने और लंड में आए तनाव के कारण अब मुझे पेशाब का प्रेशर लगा तो मैंने बाथरूम में जाकर अपने प्रेशर को रिलीज़ किया और पेशाब करने के बाद मेरे लंड ने झुकना शुरू किया. अपने शॉर्ट को ऊपर चढ़ा कर मैं नीचे की तरफ भागा इससे पहले की मम्मी फिर से आवाज़ लगाती.
मैं कमरे से बाहर निकल कर सीढियों की तरफ बढ़ा तो एक नज़र अनु के कमरे की तरफ पड़ी,वो भी अब तैयार हो चुकी थी हलके नीले कलर की टी-शर्टऔर साथ में मैचिंग की स्कर्ट जो की घुटनों से थोडा ऊपर थी. क्यूट लग रही थी अनु उसमे और सेक्सी भी. मैंने नज़र मारी और रफ़्तार से सीढियां पार करके नीचे आ गया जहाँ मम्मी टेबल पर नाश्ता लगा रही थी.
मम्मी : क्या हो गया था, इतनी देर कैसे लगा दी ?
मैं : अंsssssअमsssss वोssss कुछ नहीं,वो अनु दीदी....
कुछ नहीं बुआ जी , पहले तो मेरा वो लगेज बैग खुल नहीं रहा था, फिर खुला तो बंद नहीं हो रहा था,हा हा हा हा ... यह आवाज़ थी अनु की जो अब सीढ़ियोंसे नीचे आ गयी थी. उसकी बात सुन कर मम्मी भी हंसने लगी. और फिर जब बैग खुल ही गया तो मैं जो कुछ सामान अपने साथ लेकर आई थी सोचा वो भी मनु को दिखा ही दूं. क्यूँ मनु, तुम्हे अच्छा लगा ना जो सामान मैं लेकर आई हूँ ? मेरी ओर देखते हुए उसने कहा.
मैं : आंssssहाँsssssss अनु दीदी सामान तो रियली बड़ा अच्छा है. आखिर यू एस का सामान है और ब्रांडेड भी है तो अच्छा कैसे नहीं होगा. मैंने अपनी सहमति जताई. मैं तो जानता था किस सामान की तरफ इशारा था अनु का , वो ही विक्टोरिया सेक्रेट लौन्जरी सेट - नाम मात्र की पैंटी जिसे पहन कर भी चूत अपने आप को नंगा महसूस करे और वो आधी ब्रा जिसमे कैद हो कर चूचे बाहर निकलने को तड़पें और जो भी उनकी तरफ देखे उससे आज़ाद होने की गुहार लगायें और अनु के मुताबिक तो अभी और भी सेट थे मैंने तो सिर्फ एक ही देखा था, पता नहीं बाकी कैसे होंगे .लेकिन कुछ भी हो सामान तो रियली अच्छा था , चूत मारने का मूड तो बस देखते ही बन जाए.
अनु लहराते हुए चलकर आई और मेरे अपोसिट वाली चेयर पर बैठ गयी. उसके बड़े बड़े बूब्स ऐसा लगा रहा था जैसे टेबल पर ही टिके हुए हों. बड़े अच्छे लग रहे थे वो दो बड़े बड़े खरबूजे टेबल पर टिके हुए और मैं लगातार उन्ही की तरफ देख रहा था और कल्पना कर रहा था टी-शर्ट के उस पार के नज़ारे की.
अनु : बुआ जी जल्दी कीजिए , सच में बड़ी भूख लगी है . कुछ हल्का फुल्का खाने को मिल जाए तो कुछ आराम पड़े.
मम्मी : हाँ हाँ क्यूँ नहीं अनु बेटा . चाय है, काफी है, मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद के गोभी के पकौड़े भी बनाये हैं. हलवा भी है. जो मन करे ले लो और अच्छी तरह से खा लो.
अनु : वाह बुआ जी क्या बात है . आपने तो मेरी पसंद की चीज़ें बनायीं हैं. ये तो मैं ज़रूर खाऊँगी और अभी तो और भी बहुत सी चीज़ें खाना बाकी हैं वो भी ज़रूर खाऊँगी केवल टेस्ट करने से थोड़े ही ना काम चलेगा.
" अरे हाँ हाँ खा लेना और खूब जी भर के खाना किसने कहा केवल टेस्ट करके रह जाने को . अब तो जितने भी दिन यहाँ हो खूब अच्छी तरह से पेट भर के और जी भर के खाना जो तुम्हारा मन करे. और कभी कुछ मंगाना हो तो मनु को बोल देना. इतने दिन बाद आई हो तो अपनी प्यारी बहन कि खातिरदारी नहीं करेगा क्या, क्यूँ मनु ?" मम्मी ने भी हंसकर उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा.
मैं : अंsssssहंssssहाँ मम्मी क्यूँ नहीं, श्योर मैं दीदी की पसंद का पूरा ख्याल रखूँगा और हाँ अनु दीदी जब भी कुछ चाहिए हो मुझे बता देना. आई एम ऑलवेज़ एट योर सर्विस मदाम . मैंने फ्रेंच स्टाइल में सर हल्का सा झुकाते हुए अनु से कहा.
" हम्म, दैट्स गुड,आइ लाइक इट . आइ लाइक द बोयज़ लाइक यू . सेवा करो क्या पता कब तुम पर राजकुमारी जी मेहरबान हो जायें " अनु ने एक हाथ हवा में लहराते हुए अपने उसी मलिक्का वाले अंदाज़ में कहा . यह देख कर मम्मी हंसने लगी -" तुम दोनों भी ना कभी नहीं सुधरोगे "
मम्मी तो इसे एक जनरल बातचीत समझ रही थी लेकिन मुझे पता था की इस अनु का इशारा किस तरफ था. अपनी उसी मनपसंद चीज़ की बात कर रही थी वो जिसका अभी थोड़ी देर पहले टेस्ट लेकर आई थी ऊपर से यानि मेरा लंड और उसको जी भर के खाने की ख्वाहिश भी जता दी थी उसने.
" तो और बताइए भाई साहब कैसा चल रहा है सब कुछ अमेरिका में . काम वगैरा सब ठीक ठाक " ये पापा की आवाज़ थी जो मामाजी के साथ बात करते हुए नाश्ते की टेबल की तरफ आ रहे थे.
मामाजी : बस अशोक जी भगवान् की दया से काम धंधा सबठीक चल रहा है. अब इस की शादी की फिक्र है. लड़के की तलाश में हूँ , कोई अच्छा सा लड़का मिल जाये तो इसके हाथ पीले कर दूँ और अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पा जाऊं. मामाजी का इशारा अनु की तरफ था और ये सब बातचीत अनु के कानो में भी पड़ रही थी. मामाजी और पापा ने टेबल पर आकर अपनी अपनी जगह ले ली.
" पापा मैंने आपसे कितनी बार कहा है ना, मुझे नहीं करनी अभी शादी वादी . मैं क्या बोझ हूँ आप के ऊपर ? पहले मुझे अपनी स्टडीज़ पूरी कर के अपना एक मुकाम बनाना है. और फिर यूनिवर्सिटी से ठीक ठाक stipend मिल रहा है मुझे . अपना खर्चा तो निकल ही जाता है मेरा " अनु ने बिगड़ कर मामाजी से कहा और मामाजी बेचारे बेबस से कभी मम्मी को देखते और कभी पापा को.मामाजी की बेबसी देखकर मम्मी को बाप बेटी के बीच में कूदना ही पड़ा.
मम्मी : बेटा अनु, कोई भी बेटी बाप पे बोझ नहीं होती . और अगर तुम्हारे पापा तुम्हारी शादी की बात कर रहे हैं तो इसका मतलब ये तो नहीं की वो अब तुम्हारा खर्चा नहीं उठा सकते. बेटा ये हर माँ बाप की ज़िम्मेदारी होती है की वो अपनी बेटी की शादी किसी अच्छे घर में करें और उसके लिए एक अच्छा जीवनसाथी ढूँढें . बेटा हमारा समाज ही कुछ ऐसा है.
अनु : बुआ जी , मैं कोई शादी से मना थोड़े ही कर रही हूँ . मैं तो बस ये चाहती हूँ के पहले अपनी स्टडीज़ पूरी कर लूं फिर शादी भी कर लेंगे और जहाँ तक समाज की बात है बुआ जी तो अमेरिकेन सोसायटी इंडियन सोसायटी से बहुत अलग है. अब बुआ जी जब मैं पली बढ़ी वही हूँ तो सीधी सी बात है कि मैं अपनी ज़िन्दगी यहाँ तो बिता नहीं सकती तो फिर मुझे इंडियन समाज के बारे में क्यूँ सोचना ?
अपने तर्कों से अनु ने मम्मी को भी निरुत्तर कर दिया था सो मम्मी ने भी उसका समर्थन करते हुए मामाजी से कहा - " वैसे अनु ठीक ही कह रही है भैय्या , जब ये अपनी पढाई पूरी करना चाहती है तो करने दो फिर शादी भी कर देना . आजकल के बच्चे वैसे भी शादी की इतनी जल्दबाजी नहीं करते इन लोगों के लिए पहले करियर ज़रूरी है . आप टेंशन मत लो और नाश्ता करो ." यह कहते हुए मम्मी ने सभी को नाश्ता करने का ध्यान दिलाया जो कि सभी कि प्लेटों में डाला जा चुका था और ये अनु की शादी वाला चैप्टर यहीं क्लोज़ हो गया .
हम सब बातचीत के बीच में नाश्ता करने लगे कि अचानक मेरे हाथ से फिसल कर मेरा चम्मच मेज़ के नीचे गिर पड़ा और मैं उसे उठाने के लिए नीचे झुका . मैं अपना चम्मच उठाने ही वाला था कि मेरी नज़रें पड़ी सामने बैठी अनु कि चिकनी टांगों पर . वो अपनी टांगों को बिलकुल एक दुसरे से चिपका कर बैठी थी उसकी घुटनों से नीचे की टांगें चमक रही थी और जाँघों के ऊपर रखी थी वो हल्के नीले कलर की स्कर्ट . मैं देख ही रहा था कि अनु को शरारत सूझी और उसने झटके से अपनी दोनों टांगें खोल दीं ठीक मेरी आँखों के सामने. अब मेरी आँखों के सामने थीं उसकी गोरी गोरी चिकनी जांघें और उनके बीच में बनती एक गहरी सी घाटी जो कि अँधेरे में ढकी हुई थी. बिलकुल ऐसा दृश्य था जैसे दो पहाड़ियों के बीच में दूर से देखा जाए तो एक सुरमई से अँधेरे से ढकी उनके बीच की घाटी दिखाई देती है बिलकुल वो नेचुरल सीन जिसे चित्रकार अपनी प्राक्रतिक सीनरियों की पेंटिंग्स में कनवास पर उकेरते हैं. दरअसल वो अँधेरा था अनु कि चूत के ऊपर आई हुई काली झांटों का , असल में टांगें खोल देने के बाद मैं अनु कि चिकनी जांघें तो देख पा रहा था लेकिन उसकी चूत के दर्शन मुझे नहीं हुए थे ,उसकी चूत तो दबी हुई थी कुर्सी पर और जो मुझे दिखाई दे रहा था वो था उसके पेट का वो निचला हिस्सा जहाँ से चूत की लकीर की शुरुआत होती है और वो झांटों से ढका हुआ था.
मैं यह पहाड़ियों और उनके बीच की सुरमई घाटी वाला नज़ारा अपनी आँखों में लिए अपना चम्मच उठा कर सीधा हो गया और एक नज़र अनु की तरफ डाली. वो सर झुकाए हलवा खा रही थी और खाते खाते उसने अपना सर हल्का सा उठाया, मेरी तरफ एक हलकी सी मुस्कान फेंकी और अपनी दोनों भौहों को उछालते हुए मेरी तरफ देखा जैसे पूछ रही हो - " क्यूँ कैसा लगा ?मज़ा आया शो में ?" मैं भी उसका सवाल समझ गया और मैंने भी इशारे से ही जवाब दिया और अपने होंठ भीचते हुए मुंह बना कर ना के इशारे में हलकी सी गर्दन हिलाई - "कुछ भी तो नहीं दिखाई दिया , मज़ा क्या आता ?" अनु कहाँ बात खत्म करने वाली थी , उसने भी जवाब में इशारा किया - "एक बार फिर से ट्राई करो, अब दिखाती हूँ" . मैंने भी जवाब दिया इशारे में - "ठीक है देखतेहैं" और हमने यहीं अपनी इशारों की बातचीत पर विराम लगाया. मैं फिर से वो नजारा लेना तो चाहता था लेकिन प्रोब्लम ये थी कि फिर से मेज़ के नीचे जाऊं कैसे ? अब अगर मैं जानबूझ कर अपना चम्मच गिराता हूँ तो बड़ा अजीब लगेगा और ना भी लगे लेकिन जब मन में चोर होता है ना तो ऐसा ही होता है. हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन मन बहुत कर रहा था. पता नहीं क्यूँ ऐसे काम करने में बड़ा मज़ा आता है जब पकडे जाने का डर हो या फिर जो काम छुप छुप कर करना हो. वैसे ही यहाँ खाने की मेज़ पर सबके बीच में बैठ कर अनु कि चूत के दर्शन करना एक तरह की चोरी ही तो थी, रिस्की काम था लेकिन था मज़े से भरपूर. मैं ये सोच ही रहा था और सोचते सोचते मैंने अपना चम्मच साइड में रखा और गोभी के पकोड़े खाने लगा.
टन्नsssन्नsss नs नs sssss अचानक इस आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा और देखा तो ये आवाज़ थी चम्मच के गिरने की और किस्मत से एक बार फिर मेरा चम्मच गिर के मेज़ के नीचे पहुँच चुका था. मेरे तो मज़े ही आ गए लगा जैसे चूत की देवी प्रसन्न थी आज मेरी किस्मत पे और मुझे क्या मतलब कि ये चम्मच फिर से नीचे गिरा कैसे मैं तो ये चाह ही रहा था लेकिन चम्मच गिरा था मामाजी का हाथ लगने से जो की मेरे बगल वाली कुर्सी पर ही बैठे थे.
मामाजी : सौरी मनु बेटा, हाथ लग गया, मैं उठा देता हूँ .
मैं : अरे नहीं मामाजी , कोई बात नहीं , मैं अपने आप उठा लूँगा, आप परेशान ना हों. और यह कहते हुए मैंने मामाजी को रोका. एक मौका मिला था ऐसे कैसे जाने देता और इस बार तो क्लीयर दर्शन की गारंटी थी जो कि मिली भी चूत की मालकिन से थी.
मामाजी को रोक कर मैं फिर से नीचे झुका और चम्मच से पहले मेरी नज़र फिर से अपने टारगेट की ओर चलीं यानि अनु कि टांगों की ओर और बिंगो अनु ने जो कहा वो कर दिया. उसने अपने चूतड़ों को हल्का सा उठा कर अपने आपको कुर्सी पे अडजस्ट किया, अपने चूत वाले हिस्से को थोडा सा आगे खिसकाया और अपनी जांघें फैला दीं बिलकुल 180° के एंगल पर. अपनी जांघें फ़ैलाने और चूत दिखने के क्रम में उसने अपनी टांगों से बिलकुल ऐसा पोज़ बनाया जैसा भरतनाट्यम के कलाकार बनाते हैं यानि ऊपर से जांघें बिलकुल फैली हुईं एक दूसरे से बिलकुल 180° के एंगल पर और नीचे एडियाँ एक दूसरे को चूमती हुईं . खैर अनु ने जो पोज़ बनाया था वो बिलकुल सूटेबल था चूत दर्शन कराने के लिए और मेरी नज़रों से देखा जाए तो करने के लिए भी, किसी कुर्सी पे बैठी हुई लड़की की चूत देखनी हो तो इससे अच्छा पोज़ कोई हो ही नहीं सकता. इस बार अनु ने जो दिखाया वो सचमुच रोमांचित कर देने वाला था. उसकी चूत के बाहरी होंठ चमक रहे थे और हलके से खुले हुए थे क्या मोटे मोटे और रसीले और बिलकुल चिकने होंठ और कमाल तो ये कि चूत के होठों पे एक बाल का निशान तक नहीं. उसकी चूत के वो मोटे मोटे रसीले होंठ ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने संतरे की दो मोटी मोटी फांकें एक साथ खड़ी कर के रख दी हों और अगर छुआ तो उनमे से रस टपक पड़ेगा. यह दो मोटे मोटे बाहरी होंठ एक दूसरे को चूम रहे थे और हलके से खुले होने के कारण बीच में एक पतली सी दरार बना रहे थे. और उस दरार में से झाँक रहे थे अनु की चूत के अंदरूनी होंठ जिन्हें देख कर ही अंदाज़ा लगाया जा सकता था की वो कितने मुलायम होंगे. वो दो गुलाबी और मुलायम अंदरूनी होंठ एक दूसरे से ऐसे लिपटे हुए थे जैसे गुलाब के फूल की अंदरूनी पत्तियाँ एक दूसरे में गुंथी होती है और देखने से ही इतने प्यारे लग रहे थे की बस मुंह में लेकर चूसने का मन कर जाए. चूत के ठीक ऊपर वाले हिस्से पे उसने झांटें रखी हुई थीं हल्की ट्रिम की हुई और एक उलटे ट्राईएंगल की शेप में जिसका एक कोना ठीक उसकी चूत की शुरुआत से मिला हुआ था जिससे ऐसा लग रहा था जैसे उस चूत में से ही वो ट्राईएंगल निकल कर ऊपर की ओर फ़ैल रहा हो और यही वो झांटों का ट्राईएंगल था जो पहली बार नीचे झुकने पर मेरी नज़रों में आया था. पर इस बार तो पूरा ही नज़ारा हो गया नन्ही परी का झांटों के ताज के साथ. "म्म्मsssss wow झांटें भी क्या स्टाइलिश रखी हैं,मज़ा आ गया " मेरे अन्दर से आवाज़ आई.
मैंने अपनी आँखों से कुदरत की बनाई उस अति सुन्दर और अति कोमल चूत नाम की कलाकृति का रसपान किया और अपने मन की प्यास को मन में समेटे इस ख्याल के साथ ऊपर आ गया की अब तो अनु की चूत ढाई साल और बड़ी हो गयी है, और भी ज्यादा मज़े देगी और पता नहीं अब उसका स्वाद कैसा होगा, पहले जैसा या पहले से और ज्यादा मजेदार और नशीला.
अनु ने जो दिखाया वो तो रोमांचकारी था ही लेकिन उससे भी ज्यादा रोमांचकारी था कि मैं उसके बाप यानि अपने मामाजी के ठीक बगल वाली कुर्सी पे बैठ कर उनकी बेटी की चूत का नयनचोदन कर रहा था भले ही चोरी से मेज़ के नीचे और उसी मेज़ पर मेरे भी पेरेंट्स बैठे हुए थे लेकिन हिम्मत तो अनु की थी इतनी ठरक कि अपने बाप के सामने बैठे हुए भी वो अपने कजिन को अपनी चूत के दीदार करा रही थी.
मैं ये प्लेजर टूर करके ऊपर आया तो एक बार फिर अनु पे नज़र पड़ी और इस बार तो वो पहले से ही मेरी तरफ देख रही थी. और नज़रें मिलते ही फिर शुरू हुई हमारे बीच आँखों की बातचीत.........
पहला इशारा अनु का था. " क्यूँ इस बार दिखा कुछ, कैसा लगा ?"
मैंने भी अपने होटों पे ऐसे जीभ फिराई जैसे होटों पे लीची का रस लगा हो और इशारे में जवाब दिया "अरे सब कुछ दिख गया, क्या मस्त है तुम्हारी नन्ही, इतनी सुन्दर बिलकुल किसी राजकुमारी जैसी लग रही है, बड़ा सजा संवार के रखा है और बिलकुल रसीली है". मुझे ऐसा लगा जैसे अनु मेरे इशारे का एक एक शब्द समझ गयी हो क्यूंकि मेरे इस इशारे को देखने के बाद उसके चेहरे पे ऐसे गर्व के भाव आए जैसे उसने मिस ब्यूटीफुल चूत का खिताब जीत लिया हो.
हम सब अब नाश्ता लगभग खत्म कर चुके थे. अनु अब अपनी कुर्सी से उठी और पीछे खिसकते हुए आँखें नाचती हुई बड़े चुलबुले अंदाज़ में बोली.
अनु : क्यूँ मिस्टर मनु जी नाश्ता हो गया हो तो चलें अब, आप से तो बड़ी सारी बातें करनी हैं मुझे.
मैं : हंsssssहाँ दीदी क्यूँ नहीं, नाश्ता तो हो गया है, आप चलो मैं आता हूँ. और आपके रूम में बैठेंगे या मेरे रूम में ?
अनु : हम्मsssss.......लेट मी थिंक..... ऐसा करते हैं मेरे रूम में ही बैठते हैं. क्यूंकि अगर मुझे तुम्हारी बोर बातों से नींद आने लगी तो मैं वहीँ सो जाऊंगी और उठने कि कोई टेंशन नहीं रहेगी. हा हा हा... क्यूँ ठीक है ना
"नींद तो तुम्हे आएगी नहीं अनु बेबी इस बात की तो मैं गारंटी लेता हूँ और तुम्हे जगाए रखने का काम तो तुम मेरे लंड पर छोड़ दो, वो अकेला ही काफी है तुम्हारी आँखों से नींद को दूर भगाने के लिए" मैंने अपने मन में सोचा
कह कर वो तो हँसते हुए अपनी कामुक गांड को मटकाते हुए सीढ़ियों पर चढ़ने लगी लेकिन अब उसे कौन समझाए की मेरा मेज़ पर से उठना तो उसने ही मुश्किल कर दिया था. पहले अपनी चूत का लाइव शो दिखा कर वो भी इतने रिस्क के साथ और अब जिस तरह से वो गांड मटकाते हुए सीढियां चढ़ रही थी उसके भरे हुए गोल चूतडों के अप- डाउन मोशन की पिक्चर मेरे दिमाग में चल रही थी. यह सब देख कर मेरी तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गई थी लेकिन मेरा लंड अब सीटी बजा रहा था. मेरे लंड ने शॉर्ट के अन्दर ऐसा टैंट बना रखा था कि अगर मैं उसी हालत में मेज़ से उठ जाऊं तो सबकी नज़र उस टैंट पर ही जाएगी. मैं सकुचाते हुए बैठा था और इंतज़ार कर रहा था कि मेरा लंड ज़रा ढीला पड़े तो मैं उठूं लेकिन मेरे लंड ने भी शायद कसम खा ली थी कि जब तक झड़ नहीं जाऊँगा बैठूँगा नहीं. मैंने मेज़ के नीचे हाथ कर के अपने शॉर्ट के अन्दर हाथ डाला और लंड को पकड कर किसी तरह jockey की साइड में ऐसे फंसाया कि उसका उभार किसी की नज़रों में ना आये और झट से उठ कर सीढ़ियों की तरफ लपका और इतने तेज़ सीढ़ियों कि तरफ भागा कि पीछे से मम्मी की आवाज़ आई "अरे मनु बेटा संभल कर,पैर फिसल गया तो चोट लग जाएगी." "ऑल राइट माँ, मैं संभल कर ही चलूँगा" और ये कह कर मैं जल्दी से सीढियां पार करते हुए ऊपर पहुँच गया. नीचे मामाजी, मम्मी और पापा टेबल पर ही बैठे हुए बात कर रहे थे.
मम्मी (हँसते हुए) : कितने पागल हैं दोनों एक दूसरे के साथ बात करने के लिए. चाहे चोट लग जाए,कोई परवाह नहीं....
मामाजी : अरे रंजना, अब दोनों एक ही एज ग्रुप के हैं, दो साल का ही तो फर्क है. और दोनों के इंटरेस्ट भी काफी मिलते जुलते हैं. अपनी अपनी बातें शेयर करेंगे और तुम्हे तो पता ही है ये आज कल के बच्चे हर चीज़ को तेज़ी से करने में विश्वास रखते हैं, कोई ढील ढाल नहीं.
मम्मी : हाँ भैय्या, ये बात तो है. और आप बताओ क्या चल रहा है. कैसे हाल चाल हैं अमेरिका के...
मम्मी और मामाजी कि बातें सुन कर मैं मन ही मन हंसा "हाँ सही बात है, इंटरेस्ट तो मिलते हैं लेकिन जो सबसे कॉमन और फेवरेट इंटरेस्ट है उसके बारे में तो आप लोगों ने सोचा भी नहीं होगा... सेक्स....और ये इंटरेस्ट तो मेरा फेवरेट बना भी अनु कि वजह से ही है. उसी कि वजह से तो मेरा इंटरेस्ट जागा था इस इंटरेस्ट में जब पिछली बार यहाँ आए थे आप लोग और तभी से ये मेरा उसके साथ कॉमन इंटरेस्ट भी हो गया." मन ही मन यह सोचते हुए और हँसते हुए मैं अनु के रूम में दाखिल हो गया. मेरे लंड ने भी फंसे फंसे दर्द करना शुरू कर दिया था.
मैं अनु के कमरे में दाखिल हुआ तो देखा कि वो बेड पर पेट के बल लेटी हुई थी और शायद कोई किताब पढ़ रही थी. पता नहीं उसे मेरे कमरे में आने का आभास हुआ था या नहीं लेकिन मैं बिना कुछ बोले उसके शरीर का पीछे से मुआयना करने लगा.
उसके काले लम्बे रेशमी बाल उसकी गर्दन को ढकते हुए उसके दायें कंधे से नीचे की तरफ लहराते हुए जा रहे थे और उसे दायें गाल को सहला रहे थे. वो हलकी नीली टी शर्ट जो कि उसके बदन पे टाईट चिपकी हुई थी उसकी ब्रा के स्ट्रैप्स को छुपा नहीं पा रही थी और उसकी कमर पे उसकी ब्रा के कसे हुए स्ट्रैप्स साफ पता चल रहे थे. पतली नाज़ुक कमर उस कमर से नीचे मोटे मोटे उभरे हुए और गुदाज़ चूतड जो कि दोनों तरफ से कमर से थोडा थोडा बाहर निकले हुए थे. अनु लेटी हुई थी लेकिन ऐसे में भी पीछे से भी उसकी फिगर मजेदार और काबिले तारीफ लग रही थी. ये दोनों मुलायम चूतड तो उसकी छोटी सी स्कर्ट से ढके हुए थे लेकिन नंगी थीं उसकी गोरी दूधिया जांघें और सुती हुई पिंडलियाँ बिलकुल शेप में.
मैंने आगे बढ़ कर अनु के दायें चूतड पर प्यार से एक तमाचा रसीद किया. वाsss ह और क्या फीलिंग थी. ऐसा लगा जैसे वाटर बेड पर हाथ मार दिया हो. बिलकुल मुलायम और गद्देदार.
हाथ लगते ही अनु ने अपना ध्यान किताब से हटाया और अपने गाल पर से वो बालों की घटा को हटाते हुए मेरी तरफ देखा.
अनु : आ गए जनाब, मैंने तो सोचा की आओगे ही नहीं आखिर अपने मामाजी से इतने लम्बे टाइम के बाद मिले हो तो उनके साथ बिजी हो गए होंगे इसलिए ये किताब उठा ली टाइम पास के लिए.
मैं : अरे जानेमन, मामाजी से तो फिर बात हो जाएँगी, हमारे लिए तो आप स्पेशल हैं. और फिर टीचर किसी से भी ज्यादा इम्पोर्टेंट होता है, हमारी तो टीचर ही आप हैं. और ये जो आने में देर हुई है ये सब आपके कारण ही है. यह देखो और ये कह कर कर मैंने उसका दायाँ हाथ पकड़ कर शॉर्ट के ऊपर से अपने लंड के ऊपर रख दिया जहाँ मैंने उसे jockey में दबाया हुआ था.
अनु : ओह माई गॉड...... ये तो बड़ा हार्ड हो रहा है.
मैं : और नहीं तो क्या. सब तुम्हारी वजह से है. पहले तो इसे तुमने अपने मुहं में लेकर तड़पता हुआ छोड़ा फिर वहां नीचे इतना गरम शो दिखा दिया तो और क्या होता. बड़ी मुश्किल से संभाल कर आया हूँ. अब तुम्ही को कुछ करना होगा.
अनु : ओssss मतलब यू लाइक द शो. डोंट वरी हम पूरा ख्याल रखेंगे इसका भी अगर तुम हमारा ख्याल रखोगे. वो मेरे लंड पर ऊपर से ही हाथ फिराते हुए बड़ी सेक्सी आवाज़ में बोली और मेरे शरीर में सिरहन सी दौड़ गई. अनु अब बेड पर उठ कर बैठ गई और उसका चेहरा ठीक मेरे लंड के सामने था.
मैं : आइ नॉट ओनली लाइक द शो, आइ लव्ड द शो. वैसे इतने कातिल शो के बाद अब क्या इरादा है और ये क्या पढ़ रही थी तुम ?
"कुछ फिक्स नहीं , जो होता जायेगा करते जायेंगे", अनु ने अपने उसी चुलबुले और सेक्सी अंदाज़ में मेरी तरफ आँख मारते हुए जवाब दिया. इसी बीच मैंने वो किताब उठाई और उसका टाइटल देखा तो मन और भी उछलने लगा, किताब का टाइटल था "100 Sex Games For Couples" . ओह तो इसका मतलब इस बार सेक्स गेम्स खेलने का भी प्लान है मैडम का. मैं तो आगे आने वाले टाइम के बारे में ही सोच कर रोमांचित होने लगा.
kramashah..........
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gataank se aage..........
अनु: उउउउsss....हुंssssss....अब कुछ भी नहीं . बाद में देखेंगे .अब देर मत करो.
अरे यह क्या कर रही हो नीचे नहीं जाना क्या? मैंने चौंकते हुए पूछा.
अनु: कर कुछ नहीं रही, ये लौन्जरी उतार के रख रही हूँ. केवल तुम्हे दिखाने के लिए पहनी थी अभी. "दिखाने के लिए या मुझे सताने के लिए", मैंने मन ही मन सोचा. फिर उसने अपनी वो छोटी सी पैंटी उतारनी शुरू की. जैसे ही उसने अपनी वो पैंटी चूत से थोडा नीचे सरकायी तो मुझे एक चांदी के रंग का पतला सा तार उसकी चूत से लेकर उसकी पैंटी तक खिंचता हुआ दिखाई दिया जो की उसकी चूत से निकलने वाला vaginal fluid या हिंदी में कहें तो उसका योनी रस था. वो गाढ़ा तार जो उसकी चूत और पैंटी को कनेक्ट कर रहा था बिलकुल ऐसा लग रहा था जैसे हलवाई चाशनी की भरी हुई कढ़ाई मैं उंगली डुबो कर ऊपर की ओर खींचते हुए तार बनाता है चाशनी की मोटाई चेक करने के लिए. फर्क सिर्फ इतना था कि यहाँ चाशनी कि कढ़ाई ऊपर थी यानि अनु की चूत और हलवाई की उंगली नीचे थी यानि उसकी पैंटी. मन तो कर रहा था की जीभ निकाल कर घुस जाऊं उसकी तराशी हुई जाँघों के बीच में और सारा रस समेट कर पी जाऊं. मुझे वहां गौर से देखते हुए वो बोली "गन्दी करवा दी मेरी पैंटी भी और किया भी कुछ नहीं.
साली कितनी बड़ी टीज़र है. इतना टीज़ करके मेरी तो हालत ख़राब कर दी. बताऊंगा इसे तो मौका मिल जाये एक बार फिर इसे दिखाता हूँ टीज़ कैसे करते हैं यह सोचते हुए मैंने मुश्किल से अपने लंड को अपने jockey में घुसेड़ा और शॉर्ट को ऊपर चढ़ा कर अपने कमरे की तरफ भागा जो की अनु के कमरे के बिलकुल बगल वाला था. पीछे से मुझे अनु की वही शरारत भरी खिलखिलाहट सुनाईदी.
मैंने अपने कमरे में घुस कर अपने बेड के साइड में रखी पानी की बोतल उठाई और गटागट आधा बोतल पानी पिया . पानी पीने और लंड में आए तनाव के कारण अब मुझे पेशाब का प्रेशर लगा तो मैंने बाथरूम में जाकर अपने प्रेशर को रिलीज़ किया और पेशाब करने के बाद मेरे लंड ने झुकना शुरू किया. अपने शॉर्ट को ऊपर चढ़ा कर मैं नीचे की तरफ भागा इससे पहले की मम्मी फिर से आवाज़ लगाती.
मैं कमरे से बाहर निकल कर सीढियों की तरफ बढ़ा तो एक नज़र अनु के कमरे की तरफ पड़ी,वो भी अब तैयार हो चुकी थी हलके नीले कलर की टी-शर्टऔर साथ में मैचिंग की स्कर्ट जो की घुटनों से थोडा ऊपर थी. क्यूट लग रही थी अनु उसमे और सेक्सी भी. मैंने नज़र मारी और रफ़्तार से सीढियां पार करके नीचे आ गया जहाँ मम्मी टेबल पर नाश्ता लगा रही थी.
मम्मी : क्या हो गया था, इतनी देर कैसे लगा दी ?
मैं : अंsssssअमsssss वोssss कुछ नहीं,वो अनु दीदी....
कुछ नहीं बुआ जी , पहले तो मेरा वो लगेज बैग खुल नहीं रहा था, फिर खुला तो बंद नहीं हो रहा था,हा हा हा हा ... यह आवाज़ थी अनु की जो अब सीढ़ियोंसे नीचे आ गयी थी. उसकी बात सुन कर मम्मी भी हंसने लगी. और फिर जब बैग खुल ही गया तो मैं जो कुछ सामान अपने साथ लेकर आई थी सोचा वो भी मनु को दिखा ही दूं. क्यूँ मनु, तुम्हे अच्छा लगा ना जो सामान मैं लेकर आई हूँ ? मेरी ओर देखते हुए उसने कहा.
मैं : आंssssहाँsssssss अनु दीदी सामान तो रियली बड़ा अच्छा है. आखिर यू एस का सामान है और ब्रांडेड भी है तो अच्छा कैसे नहीं होगा. मैंने अपनी सहमति जताई. मैं तो जानता था किस सामान की तरफ इशारा था अनु का , वो ही विक्टोरिया सेक्रेट लौन्जरी सेट - नाम मात्र की पैंटी जिसे पहन कर भी चूत अपने आप को नंगा महसूस करे और वो आधी ब्रा जिसमे कैद हो कर चूचे बाहर निकलने को तड़पें और जो भी उनकी तरफ देखे उससे आज़ाद होने की गुहार लगायें और अनु के मुताबिक तो अभी और भी सेट थे मैंने तो सिर्फ एक ही देखा था, पता नहीं बाकी कैसे होंगे .लेकिन कुछ भी हो सामान तो रियली अच्छा था , चूत मारने का मूड तो बस देखते ही बन जाए.
अनु लहराते हुए चलकर आई और मेरे अपोसिट वाली चेयर पर बैठ गयी. उसके बड़े बड़े बूब्स ऐसा लगा रहा था जैसे टेबल पर ही टिके हुए हों. बड़े अच्छे लग रहे थे वो दो बड़े बड़े खरबूजे टेबल पर टिके हुए और मैं लगातार उन्ही की तरफ देख रहा था और कल्पना कर रहा था टी-शर्ट के उस पार के नज़ारे की.
अनु : बुआ जी जल्दी कीजिए , सच में बड़ी भूख लगी है . कुछ हल्का फुल्का खाने को मिल जाए तो कुछ आराम पड़े.
मम्मी : हाँ हाँ क्यूँ नहीं अनु बेटा . चाय है, काफी है, मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद के गोभी के पकौड़े भी बनाये हैं. हलवा भी है. जो मन करे ले लो और अच्छी तरह से खा लो.
अनु : वाह बुआ जी क्या बात है . आपने तो मेरी पसंद की चीज़ें बनायीं हैं. ये तो मैं ज़रूर खाऊँगी और अभी तो और भी बहुत सी चीज़ें खाना बाकी हैं वो भी ज़रूर खाऊँगी केवल टेस्ट करने से थोड़े ही ना काम चलेगा.
" अरे हाँ हाँ खा लेना और खूब जी भर के खाना किसने कहा केवल टेस्ट करके रह जाने को . अब तो जितने भी दिन यहाँ हो खूब अच्छी तरह से पेट भर के और जी भर के खाना जो तुम्हारा मन करे. और कभी कुछ मंगाना हो तो मनु को बोल देना. इतने दिन बाद आई हो तो अपनी प्यारी बहन कि खातिरदारी नहीं करेगा क्या, क्यूँ मनु ?" मम्मी ने भी हंसकर उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा.
मैं : अंsssssहंssssहाँ मम्मी क्यूँ नहीं, श्योर मैं दीदी की पसंद का पूरा ख्याल रखूँगा और हाँ अनु दीदी जब भी कुछ चाहिए हो मुझे बता देना. आई एम ऑलवेज़ एट योर सर्विस मदाम . मैंने फ्रेंच स्टाइल में सर हल्का सा झुकाते हुए अनु से कहा.
" हम्म, दैट्स गुड,आइ लाइक इट . आइ लाइक द बोयज़ लाइक यू . सेवा करो क्या पता कब तुम पर राजकुमारी जी मेहरबान हो जायें " अनु ने एक हाथ हवा में लहराते हुए अपने उसी मलिक्का वाले अंदाज़ में कहा . यह देख कर मम्मी हंसने लगी -" तुम दोनों भी ना कभी नहीं सुधरोगे "
मम्मी तो इसे एक जनरल बातचीत समझ रही थी लेकिन मुझे पता था की इस अनु का इशारा किस तरफ था. अपनी उसी मनपसंद चीज़ की बात कर रही थी वो जिसका अभी थोड़ी देर पहले टेस्ट लेकर आई थी ऊपर से यानि मेरा लंड और उसको जी भर के खाने की ख्वाहिश भी जता दी थी उसने.
" तो और बताइए भाई साहब कैसा चल रहा है सब कुछ अमेरिका में . काम वगैरा सब ठीक ठाक " ये पापा की आवाज़ थी जो मामाजी के साथ बात करते हुए नाश्ते की टेबल की तरफ आ रहे थे.
मामाजी : बस अशोक जी भगवान् की दया से काम धंधा सबठीक चल रहा है. अब इस की शादी की फिक्र है. लड़के की तलाश में हूँ , कोई अच्छा सा लड़का मिल जाये तो इसके हाथ पीले कर दूँ और अपनी जिम्मेदारियों से छुटकारा पा जाऊं. मामाजी का इशारा अनु की तरफ था और ये सब बातचीत अनु के कानो में भी पड़ रही थी. मामाजी और पापा ने टेबल पर आकर अपनी अपनी जगह ले ली.
" पापा मैंने आपसे कितनी बार कहा है ना, मुझे नहीं करनी अभी शादी वादी . मैं क्या बोझ हूँ आप के ऊपर ? पहले मुझे अपनी स्टडीज़ पूरी कर के अपना एक मुकाम बनाना है. और फिर यूनिवर्सिटी से ठीक ठाक stipend मिल रहा है मुझे . अपना खर्चा तो निकल ही जाता है मेरा " अनु ने बिगड़ कर मामाजी से कहा और मामाजी बेचारे बेबस से कभी मम्मी को देखते और कभी पापा को.मामाजी की बेबसी देखकर मम्मी को बाप बेटी के बीच में कूदना ही पड़ा.
मम्मी : बेटा अनु, कोई भी बेटी बाप पे बोझ नहीं होती . और अगर तुम्हारे पापा तुम्हारी शादी की बात कर रहे हैं तो इसका मतलब ये तो नहीं की वो अब तुम्हारा खर्चा नहीं उठा सकते. बेटा ये हर माँ बाप की ज़िम्मेदारी होती है की वो अपनी बेटी की शादी किसी अच्छे घर में करें और उसके लिए एक अच्छा जीवनसाथी ढूँढें . बेटा हमारा समाज ही कुछ ऐसा है.
अनु : बुआ जी , मैं कोई शादी से मना थोड़े ही कर रही हूँ . मैं तो बस ये चाहती हूँ के पहले अपनी स्टडीज़ पूरी कर लूं फिर शादी भी कर लेंगे और जहाँ तक समाज की बात है बुआ जी तो अमेरिकेन सोसायटी इंडियन सोसायटी से बहुत अलग है. अब बुआ जी जब मैं पली बढ़ी वही हूँ तो सीधी सी बात है कि मैं अपनी ज़िन्दगी यहाँ तो बिता नहीं सकती तो फिर मुझे इंडियन समाज के बारे में क्यूँ सोचना ?
अपने तर्कों से अनु ने मम्मी को भी निरुत्तर कर दिया था सो मम्मी ने भी उसका समर्थन करते हुए मामाजी से कहा - " वैसे अनु ठीक ही कह रही है भैय्या , जब ये अपनी पढाई पूरी करना चाहती है तो करने दो फिर शादी भी कर देना . आजकल के बच्चे वैसे भी शादी की इतनी जल्दबाजी नहीं करते इन लोगों के लिए पहले करियर ज़रूरी है . आप टेंशन मत लो और नाश्ता करो ." यह कहते हुए मम्मी ने सभी को नाश्ता करने का ध्यान दिलाया जो कि सभी कि प्लेटों में डाला जा चुका था और ये अनु की शादी वाला चैप्टर यहीं क्लोज़ हो गया .
हम सब बातचीत के बीच में नाश्ता करने लगे कि अचानक मेरे हाथ से फिसल कर मेरा चम्मच मेज़ के नीचे गिर पड़ा और मैं उसे उठाने के लिए नीचे झुका . मैं अपना चम्मच उठाने ही वाला था कि मेरी नज़रें पड़ी सामने बैठी अनु कि चिकनी टांगों पर . वो अपनी टांगों को बिलकुल एक दुसरे से चिपका कर बैठी थी उसकी घुटनों से नीचे की टांगें चमक रही थी और जाँघों के ऊपर रखी थी वो हल्के नीले कलर की स्कर्ट . मैं देख ही रहा था कि अनु को शरारत सूझी और उसने झटके से अपनी दोनों टांगें खोल दीं ठीक मेरी आँखों के सामने. अब मेरी आँखों के सामने थीं उसकी गोरी गोरी चिकनी जांघें और उनके बीच में बनती एक गहरी सी घाटी जो कि अँधेरे में ढकी हुई थी. बिलकुल ऐसा दृश्य था जैसे दो पहाड़ियों के बीच में दूर से देखा जाए तो एक सुरमई से अँधेरे से ढकी उनके बीच की घाटी दिखाई देती है बिलकुल वो नेचुरल सीन जिसे चित्रकार अपनी प्राक्रतिक सीनरियों की पेंटिंग्स में कनवास पर उकेरते हैं. दरअसल वो अँधेरा था अनु कि चूत के ऊपर आई हुई काली झांटों का , असल में टांगें खोल देने के बाद मैं अनु कि चिकनी जांघें तो देख पा रहा था लेकिन उसकी चूत के दर्शन मुझे नहीं हुए थे ,उसकी चूत तो दबी हुई थी कुर्सी पर और जो मुझे दिखाई दे रहा था वो था उसके पेट का वो निचला हिस्सा जहाँ से चूत की लकीर की शुरुआत होती है और वो झांटों से ढका हुआ था.
मैं यह पहाड़ियों और उनके बीच की सुरमई घाटी वाला नज़ारा अपनी आँखों में लिए अपना चम्मच उठा कर सीधा हो गया और एक नज़र अनु की तरफ डाली. वो सर झुकाए हलवा खा रही थी और खाते खाते उसने अपना सर हल्का सा उठाया, मेरी तरफ एक हलकी सी मुस्कान फेंकी और अपनी दोनों भौहों को उछालते हुए मेरी तरफ देखा जैसे पूछ रही हो - " क्यूँ कैसा लगा ?मज़ा आया शो में ?" मैं भी उसका सवाल समझ गया और मैंने भी इशारे से ही जवाब दिया और अपने होंठ भीचते हुए मुंह बना कर ना के इशारे में हलकी सी गर्दन हिलाई - "कुछ भी तो नहीं दिखाई दिया , मज़ा क्या आता ?" अनु कहाँ बात खत्म करने वाली थी , उसने भी जवाब में इशारा किया - "एक बार फिर से ट्राई करो, अब दिखाती हूँ" . मैंने भी जवाब दिया इशारे में - "ठीक है देखतेहैं" और हमने यहीं अपनी इशारों की बातचीत पर विराम लगाया. मैं फिर से वो नजारा लेना तो चाहता था लेकिन प्रोब्लम ये थी कि फिर से मेज़ के नीचे जाऊं कैसे ? अब अगर मैं जानबूझ कर अपना चम्मच गिराता हूँ तो बड़ा अजीब लगेगा और ना भी लगे लेकिन जब मन में चोर होता है ना तो ऐसा ही होता है. हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन मन बहुत कर रहा था. पता नहीं क्यूँ ऐसे काम करने में बड़ा मज़ा आता है जब पकडे जाने का डर हो या फिर जो काम छुप छुप कर करना हो. वैसे ही यहाँ खाने की मेज़ पर सबके बीच में बैठ कर अनु कि चूत के दर्शन करना एक तरह की चोरी ही तो थी, रिस्की काम था लेकिन था मज़े से भरपूर. मैं ये सोच ही रहा था और सोचते सोचते मैंने अपना चम्मच साइड में रखा और गोभी के पकोड़े खाने लगा.
टन्नsssन्नsss नs नs sssss अचानक इस आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा और देखा तो ये आवाज़ थी चम्मच के गिरने की और किस्मत से एक बार फिर मेरा चम्मच गिर के मेज़ के नीचे पहुँच चुका था. मेरे तो मज़े ही आ गए लगा जैसे चूत की देवी प्रसन्न थी आज मेरी किस्मत पे और मुझे क्या मतलब कि ये चम्मच फिर से नीचे गिरा कैसे मैं तो ये चाह ही रहा था लेकिन चम्मच गिरा था मामाजी का हाथ लगने से जो की मेरे बगल वाली कुर्सी पर ही बैठे थे.
मामाजी : सौरी मनु बेटा, हाथ लग गया, मैं उठा देता हूँ .
मैं : अरे नहीं मामाजी , कोई बात नहीं , मैं अपने आप उठा लूँगा, आप परेशान ना हों. और यह कहते हुए मैंने मामाजी को रोका. एक मौका मिला था ऐसे कैसे जाने देता और इस बार तो क्लीयर दर्शन की गारंटी थी जो कि मिली भी चूत की मालकिन से थी.
मामाजी को रोक कर मैं फिर से नीचे झुका और चम्मच से पहले मेरी नज़र फिर से अपने टारगेट की ओर चलीं यानि अनु कि टांगों की ओर और बिंगो अनु ने जो कहा वो कर दिया. उसने अपने चूतड़ों को हल्का सा उठा कर अपने आपको कुर्सी पे अडजस्ट किया, अपने चूत वाले हिस्से को थोडा सा आगे खिसकाया और अपनी जांघें फैला दीं बिलकुल 180° के एंगल पर. अपनी जांघें फ़ैलाने और चूत दिखने के क्रम में उसने अपनी टांगों से बिलकुल ऐसा पोज़ बनाया जैसा भरतनाट्यम के कलाकार बनाते हैं यानि ऊपर से जांघें बिलकुल फैली हुईं एक दूसरे से बिलकुल 180° के एंगल पर और नीचे एडियाँ एक दूसरे को चूमती हुईं . खैर अनु ने जो पोज़ बनाया था वो बिलकुल सूटेबल था चूत दर्शन कराने के लिए और मेरी नज़रों से देखा जाए तो करने के लिए भी, किसी कुर्सी पे बैठी हुई लड़की की चूत देखनी हो तो इससे अच्छा पोज़ कोई हो ही नहीं सकता. इस बार अनु ने जो दिखाया वो सचमुच रोमांचित कर देने वाला था. उसकी चूत के बाहरी होंठ चमक रहे थे और हलके से खुले हुए थे क्या मोटे मोटे और रसीले और बिलकुल चिकने होंठ और कमाल तो ये कि चूत के होठों पे एक बाल का निशान तक नहीं. उसकी चूत के वो मोटे मोटे रसीले होंठ ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने संतरे की दो मोटी मोटी फांकें एक साथ खड़ी कर के रख दी हों और अगर छुआ तो उनमे से रस टपक पड़ेगा. यह दो मोटे मोटे बाहरी होंठ एक दूसरे को चूम रहे थे और हलके से खुले होने के कारण बीच में एक पतली सी दरार बना रहे थे. और उस दरार में से झाँक रहे थे अनु की चूत के अंदरूनी होंठ जिन्हें देख कर ही अंदाज़ा लगाया जा सकता था की वो कितने मुलायम होंगे. वो दो गुलाबी और मुलायम अंदरूनी होंठ एक दूसरे से ऐसे लिपटे हुए थे जैसे गुलाब के फूल की अंदरूनी पत्तियाँ एक दूसरे में गुंथी होती है और देखने से ही इतने प्यारे लग रहे थे की बस मुंह में लेकर चूसने का मन कर जाए. चूत के ठीक ऊपर वाले हिस्से पे उसने झांटें रखी हुई थीं हल्की ट्रिम की हुई और एक उलटे ट्राईएंगल की शेप में जिसका एक कोना ठीक उसकी चूत की शुरुआत से मिला हुआ था जिससे ऐसा लग रहा था जैसे उस चूत में से ही वो ट्राईएंगल निकल कर ऊपर की ओर फ़ैल रहा हो और यही वो झांटों का ट्राईएंगल था जो पहली बार नीचे झुकने पर मेरी नज़रों में आया था. पर इस बार तो पूरा ही नज़ारा हो गया नन्ही परी का झांटों के ताज के साथ. "म्म्मsssss wow झांटें भी क्या स्टाइलिश रखी हैं,मज़ा आ गया " मेरे अन्दर से आवाज़ आई.
मैंने अपनी आँखों से कुदरत की बनाई उस अति सुन्दर और अति कोमल चूत नाम की कलाकृति का रसपान किया और अपने मन की प्यास को मन में समेटे इस ख्याल के साथ ऊपर आ गया की अब तो अनु की चूत ढाई साल और बड़ी हो गयी है, और भी ज्यादा मज़े देगी और पता नहीं अब उसका स्वाद कैसा होगा, पहले जैसा या पहले से और ज्यादा मजेदार और नशीला.
अनु ने जो दिखाया वो तो रोमांचकारी था ही लेकिन उससे भी ज्यादा रोमांचकारी था कि मैं उसके बाप यानि अपने मामाजी के ठीक बगल वाली कुर्सी पे बैठ कर उनकी बेटी की चूत का नयनचोदन कर रहा था भले ही चोरी से मेज़ के नीचे और उसी मेज़ पर मेरे भी पेरेंट्स बैठे हुए थे लेकिन हिम्मत तो अनु की थी इतनी ठरक कि अपने बाप के सामने बैठे हुए भी वो अपने कजिन को अपनी चूत के दीदार करा रही थी.
मैं ये प्लेजर टूर करके ऊपर आया तो एक बार फिर अनु पे नज़र पड़ी और इस बार तो वो पहले से ही मेरी तरफ देख रही थी. और नज़रें मिलते ही फिर शुरू हुई हमारे बीच आँखों की बातचीत.........
पहला इशारा अनु का था. " क्यूँ इस बार दिखा कुछ, कैसा लगा ?"
मैंने भी अपने होटों पे ऐसे जीभ फिराई जैसे होटों पे लीची का रस लगा हो और इशारे में जवाब दिया "अरे सब कुछ दिख गया, क्या मस्त है तुम्हारी नन्ही, इतनी सुन्दर बिलकुल किसी राजकुमारी जैसी लग रही है, बड़ा सजा संवार के रखा है और बिलकुल रसीली है". मुझे ऐसा लगा जैसे अनु मेरे इशारे का एक एक शब्द समझ गयी हो क्यूंकि मेरे इस इशारे को देखने के बाद उसके चेहरे पे ऐसे गर्व के भाव आए जैसे उसने मिस ब्यूटीफुल चूत का खिताब जीत लिया हो.
हम सब अब नाश्ता लगभग खत्म कर चुके थे. अनु अब अपनी कुर्सी से उठी और पीछे खिसकते हुए आँखें नाचती हुई बड़े चुलबुले अंदाज़ में बोली.
अनु : क्यूँ मिस्टर मनु जी नाश्ता हो गया हो तो चलें अब, आप से तो बड़ी सारी बातें करनी हैं मुझे.
मैं : हंsssssहाँ दीदी क्यूँ नहीं, नाश्ता तो हो गया है, आप चलो मैं आता हूँ. और आपके रूम में बैठेंगे या मेरे रूम में ?
अनु : हम्मsssss.......लेट मी थिंक..... ऐसा करते हैं मेरे रूम में ही बैठते हैं. क्यूंकि अगर मुझे तुम्हारी बोर बातों से नींद आने लगी तो मैं वहीँ सो जाऊंगी और उठने कि कोई टेंशन नहीं रहेगी. हा हा हा... क्यूँ ठीक है ना
"नींद तो तुम्हे आएगी नहीं अनु बेबी इस बात की तो मैं गारंटी लेता हूँ और तुम्हे जगाए रखने का काम तो तुम मेरे लंड पर छोड़ दो, वो अकेला ही काफी है तुम्हारी आँखों से नींद को दूर भगाने के लिए" मैंने अपने मन में सोचा
कह कर वो तो हँसते हुए अपनी कामुक गांड को मटकाते हुए सीढ़ियों पर चढ़ने लगी लेकिन अब उसे कौन समझाए की मेरा मेज़ पर से उठना तो उसने ही मुश्किल कर दिया था. पहले अपनी चूत का लाइव शो दिखा कर वो भी इतने रिस्क के साथ और अब जिस तरह से वो गांड मटकाते हुए सीढियां चढ़ रही थी उसके भरे हुए गोल चूतडों के अप- डाउन मोशन की पिक्चर मेरे दिमाग में चल रही थी. यह सब देख कर मेरी तो सिट्टी पिट्टी गुम हो गई थी लेकिन मेरा लंड अब सीटी बजा रहा था. मेरे लंड ने शॉर्ट के अन्दर ऐसा टैंट बना रखा था कि अगर मैं उसी हालत में मेज़ से उठ जाऊं तो सबकी नज़र उस टैंट पर ही जाएगी. मैं सकुचाते हुए बैठा था और इंतज़ार कर रहा था कि मेरा लंड ज़रा ढीला पड़े तो मैं उठूं लेकिन मेरे लंड ने भी शायद कसम खा ली थी कि जब तक झड़ नहीं जाऊँगा बैठूँगा नहीं. मैंने मेज़ के नीचे हाथ कर के अपने शॉर्ट के अन्दर हाथ डाला और लंड को पकड कर किसी तरह jockey की साइड में ऐसे फंसाया कि उसका उभार किसी की नज़रों में ना आये और झट से उठ कर सीढ़ियों की तरफ लपका और इतने तेज़ सीढ़ियों कि तरफ भागा कि पीछे से मम्मी की आवाज़ आई "अरे मनु बेटा संभल कर,पैर फिसल गया तो चोट लग जाएगी." "ऑल राइट माँ, मैं संभल कर ही चलूँगा" और ये कह कर मैं जल्दी से सीढियां पार करते हुए ऊपर पहुँच गया. नीचे मामाजी, मम्मी और पापा टेबल पर ही बैठे हुए बात कर रहे थे.
मम्मी (हँसते हुए) : कितने पागल हैं दोनों एक दूसरे के साथ बात करने के लिए. चाहे चोट लग जाए,कोई परवाह नहीं....
मामाजी : अरे रंजना, अब दोनों एक ही एज ग्रुप के हैं, दो साल का ही तो फर्क है. और दोनों के इंटरेस्ट भी काफी मिलते जुलते हैं. अपनी अपनी बातें शेयर करेंगे और तुम्हे तो पता ही है ये आज कल के बच्चे हर चीज़ को तेज़ी से करने में विश्वास रखते हैं, कोई ढील ढाल नहीं.
मम्मी : हाँ भैय्या, ये बात तो है. और आप बताओ क्या चल रहा है. कैसे हाल चाल हैं अमेरिका के...
मम्मी और मामाजी कि बातें सुन कर मैं मन ही मन हंसा "हाँ सही बात है, इंटरेस्ट तो मिलते हैं लेकिन जो सबसे कॉमन और फेवरेट इंटरेस्ट है उसके बारे में तो आप लोगों ने सोचा भी नहीं होगा... सेक्स....और ये इंटरेस्ट तो मेरा फेवरेट बना भी अनु कि वजह से ही है. उसी कि वजह से तो मेरा इंटरेस्ट जागा था इस इंटरेस्ट में जब पिछली बार यहाँ आए थे आप लोग और तभी से ये मेरा उसके साथ कॉमन इंटरेस्ट भी हो गया." मन ही मन यह सोचते हुए और हँसते हुए मैं अनु के रूम में दाखिल हो गया. मेरे लंड ने भी फंसे फंसे दर्द करना शुरू कर दिया था.
मैं अनु के कमरे में दाखिल हुआ तो देखा कि वो बेड पर पेट के बल लेटी हुई थी और शायद कोई किताब पढ़ रही थी. पता नहीं उसे मेरे कमरे में आने का आभास हुआ था या नहीं लेकिन मैं बिना कुछ बोले उसके शरीर का पीछे से मुआयना करने लगा.
उसके काले लम्बे रेशमी बाल उसकी गर्दन को ढकते हुए उसके दायें कंधे से नीचे की तरफ लहराते हुए जा रहे थे और उसे दायें गाल को सहला रहे थे. वो हलकी नीली टी शर्ट जो कि उसके बदन पे टाईट चिपकी हुई थी उसकी ब्रा के स्ट्रैप्स को छुपा नहीं पा रही थी और उसकी कमर पे उसकी ब्रा के कसे हुए स्ट्रैप्स साफ पता चल रहे थे. पतली नाज़ुक कमर उस कमर से नीचे मोटे मोटे उभरे हुए और गुदाज़ चूतड जो कि दोनों तरफ से कमर से थोडा थोडा बाहर निकले हुए थे. अनु लेटी हुई थी लेकिन ऐसे में भी पीछे से भी उसकी फिगर मजेदार और काबिले तारीफ लग रही थी. ये दोनों मुलायम चूतड तो उसकी छोटी सी स्कर्ट से ढके हुए थे लेकिन नंगी थीं उसकी गोरी दूधिया जांघें और सुती हुई पिंडलियाँ बिलकुल शेप में.
मैंने आगे बढ़ कर अनु के दायें चूतड पर प्यार से एक तमाचा रसीद किया. वाsss ह और क्या फीलिंग थी. ऐसा लगा जैसे वाटर बेड पर हाथ मार दिया हो. बिलकुल मुलायम और गद्देदार.
हाथ लगते ही अनु ने अपना ध्यान किताब से हटाया और अपने गाल पर से वो बालों की घटा को हटाते हुए मेरी तरफ देखा.
अनु : आ गए जनाब, मैंने तो सोचा की आओगे ही नहीं आखिर अपने मामाजी से इतने लम्बे टाइम के बाद मिले हो तो उनके साथ बिजी हो गए होंगे इसलिए ये किताब उठा ली टाइम पास के लिए.
मैं : अरे जानेमन, मामाजी से तो फिर बात हो जाएँगी, हमारे लिए तो आप स्पेशल हैं. और फिर टीचर किसी से भी ज्यादा इम्पोर्टेंट होता है, हमारी तो टीचर ही आप हैं. और ये जो आने में देर हुई है ये सब आपके कारण ही है. यह देखो और ये कह कर कर मैंने उसका दायाँ हाथ पकड़ कर शॉर्ट के ऊपर से अपने लंड के ऊपर रख दिया जहाँ मैंने उसे jockey में दबाया हुआ था.
अनु : ओह माई गॉड...... ये तो बड़ा हार्ड हो रहा है.
मैं : और नहीं तो क्या. सब तुम्हारी वजह से है. पहले तो इसे तुमने अपने मुहं में लेकर तड़पता हुआ छोड़ा फिर वहां नीचे इतना गरम शो दिखा दिया तो और क्या होता. बड़ी मुश्किल से संभाल कर आया हूँ. अब तुम्ही को कुछ करना होगा.
अनु : ओssss मतलब यू लाइक द शो. डोंट वरी हम पूरा ख्याल रखेंगे इसका भी अगर तुम हमारा ख्याल रखोगे. वो मेरे लंड पर ऊपर से ही हाथ फिराते हुए बड़ी सेक्सी आवाज़ में बोली और मेरे शरीर में सिरहन सी दौड़ गई. अनु अब बेड पर उठ कर बैठ गई और उसका चेहरा ठीक मेरे लंड के सामने था.
मैं : आइ नॉट ओनली लाइक द शो, आइ लव्ड द शो. वैसे इतने कातिल शो के बाद अब क्या इरादा है और ये क्या पढ़ रही थी तुम ?
"कुछ फिक्स नहीं , जो होता जायेगा करते जायेंगे", अनु ने अपने उसी चुलबुले और सेक्सी अंदाज़ में मेरी तरफ आँख मारते हुए जवाब दिया. इसी बीच मैंने वो किताब उठाई और उसका टाइटल देखा तो मन और भी उछलने लगा, किताब का टाइटल था "100 Sex Games For Couples" . ओह तो इसका मतलब इस बार सेक्स गेम्स खेलने का भी प्लान है मैडम का. मैं तो आगे आने वाले टाइम के बारे में ही सोच कर रोमांचित होने लगा.
kramashah..........
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