Wednesday, January 22, 2014

बदनाम रिश्ते-- हमारा छोटा सा परिवार--12

FUN-MAZA-MASTI


बदनाम रिश्ते--
 हमारा छोटा सा परिवार--12

 सुरेश चाचा मुझे कस कर पकड़ कर अपनी पीठ पर लेट गये। मैं अब उनके ऊपर लेती हुई थी और उनका भारी मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड

मेरी चूत में अभी भी फंसा हुआ था। सुरेश चाचा के हाथ एक क्षण के लिए भी निष्चल नही हुए। चाचू ने मेरे चूतड़ों और कमर को सहला कर मेरे

शरीर को फिर से गरम कर दिया। उनका लंड अभी भी मेरी चूत में फंसा हुआ था। उनका लंड मुझे घंटे भर चोद कर भी बड़ी मुश्किल से

थोड़ा सा शिथिल हुआ था।


मैंने अपनी चूत को होले से उनके विशाल लंड के ऊपर से अलग किया। मेरी चूत में से भरभर कर चाचू का गाढ़ा बच्चे पैदा करने वाला वीर्य

ने उनके लंड और झांटों को भिगो दिया।


मैं धीरे धीरे चाचू के होंठो फिर ठोड़ी को चूम कर नीचे सरकने लगी। मैंने सुरेश चाचा की मर्दाने घने बालों भरी सीने को प्यार से चूम कर

उनके काले निप्पलों को ज़ोर से चूसा। उनके हल्की सी सिसकारी मेरा पुरूस्कार थी।

मेरे होंठ उनके सीने से मेरी लार से गीला रास्ता बनाते हुए उनकी तोंद पर पहुँच गए। मैं अपनी जीभ उनकी गहरी नाभि में दाल कर हिलाने

लगी। चाचू के मुंह से निकली गुर्राहट ने मेरी उत्तेजना को भी प्रज्ज्वलित कर दिया।


मैंने चाचू की बालों से भरी तोंद को सब तरफ चूमा और चाटा। आखिरकार मेरी मंज़िल मेरे भूखे मुंह के सामने थी। चाचू का लंड धीरे धीरे

फिर से पहले जैसे लोहे के खम्बे जैसी सख्ती की तरफ बड़ रहा था।

मैंने अपने नन्हे हाथों से चाचू की जांघों को मोड़ा। सुरेश चाचा मेरी इच्छा समझ कर खुद ही अपनी जांघों को मोड़ और फैला कर लेट गए।

मैंने पहले उनकी विशाल अंडकोष को चूमना शुरू किया। उनके घनी झांटे मेरे नाक में घुस कर गुलगुली कर रहीं थी। पर मुझे अपने चाचा के

मोटे लंड और विशाल विर्यकोशों पर बहुत प्यार आ रहा था। आखिरकार इसी मोटे लंड ने मेरी चूत की चुदाई कर इन्हीं अन्डकोशों से उपजे

वीर्य से मेरे गर्भाशय को सींचा था।


मैंने काफी कोशिश के बाद उनका एक फ़ोता अपने मुंह में लेने में सफल हो गयी। जैसे ही मैंने उसे चूसना शुरू किया चाचू सिस्कार उठे।

मैंने चाचू के दुसरे अंडकोष को भी अपने गरम मुंह में लेकर चूसा। मेरी नाक में सुरेश चाचा के भारी बालों से भरी चूतड़ों की दरार में से

उपजी एक विचित्र मर्दानी गंध भर गयी। मैंने उनकी गांड को खोलने की कोशिश की पर उनके चूतड़ मेरे लिए बहुत भारी थे।

सुरेश चाचा ने मेरी मदद करने के लिए एक मोटा तकिया अपने चूतड़ों के नीचे रख कर खुद ही अपने चूतड़ फैला दिए।


मैंने अपनी जीभ से उनकी बालों से ढंकी गांड की दरार को चाटने लगी। मेरे मुंह और नाक चाचू की गांड की गंध और स्वाद से भर गए।

उनके चूतड़ों के बीच में इकट्ठे हुए मर्दाने स्वाद और सुगंध ने मुझे वासना से अभिभूत कर दिया। मैं लालचीपन से उनकी कसी सिकुंड़ी हुई गांड

के छल्ले को चाटने लगी। चाचू की सिसकारी ने मुझे और भी प्रोत्साहन दिया। मैंने अपनी जीभ की नोक से सुरेश चाचा की गांड के छिद्र को

सताना शुरू कर उनके दोनों अन्डकोशों को अपने नन्हे हाथ से सहलाने लगी।


सुरेश चाचा ने ज़ोर लगा कर अपनी गांड का छल्ला ढीला कर दिया और मेरी जीभ उसके अंदर समा गयी। मैंने सुरेश चाचा की गांड अपनी

जीभ से मारने लगी। उनकी तरह मेरे पास उनके जैसा विशाल लंड तो था नहीं जिससे मैं उनकी गांड मार पाती। मेरे पास सिर्फ मेरी जीभ और

उंगलियाँ थी।


मैंने चाचू की गांड को अपने थूक से भिगो दिया। मैं थोडा ऊपर हो कर उनके लंड को चूसने लगी। मैंने अपनी तरजनी को उनकी गांड पर

लगा कर दबाया। मेरी उंगली उनकी गांड के भीतर प्रविष्ट हो गयी। उनकी गांड बहुत ही गरम और मुलायम थी। चाचू की कसी गांड की दीवारों

ने मेरी उंगली को जकड़ लिया। अब मुझे समझ आया की बड़े मामा और चाचू के मोटे लंडों को मेरी तंग चूत और गांड क्यों इतनी भाती थी।

मैं चाचू के सुपाड़े को अपने मुंह में लेकर उसके बड़े पेशाब के छिद्र को अपनी जीभ की नोक से कुरेदने लगी। सुरेश चाचा ने अपने गांड ऊपर

उठा कर मेरे मुंह में अपना लंड धकेलने की कोशिश की।

मैं अब अपनी उंगली से उनकी गांड तेजी से मार कर उनका लंड चूस रही थी।


 सुरेश चाचा की सिस्कारियां मुझे बहुत ही लुभावनी लगीं। मैंने और भी मन लगा कर उनके लंड को अपने लार भरे मुंह के भीतर ले कर जोर से

चूसने लगी। मैंने अपने दूसरे हाथ से सुरेश चाचा के अब तनतनाये हुए लंड के विशाल खम्बे को सहलाने लगी। मेरा हाथ बड़ी मुश्किल से चाचू

के लंड की आधी मोटाई को पकड़ पा रहा था। सुरेश चाचा की सिसकारी ने मेरे प्रयासों की प्रशंसा सी करती प्रतीत होतीं थीं।


लगभग आधे घंटे के बाद सुरेश चाचा के सिस्कारियां और भी तेज और ऊंची हो गयीं। मेरी उंगली उनकी गांड को तेजी से चोद रही थी। मेरी

जीभ और मेरा मुंह उनके लंड के सुपाड़े को निखरती हुई कुशलता से सताने लगे। मेरा हाथ उनके मोटे लंड का हस्तमैथुन सा कर रहा था।

अचानक बिना किसी चेतावनी दिए सुरेश चाचा के लंड ने मेरा मुंह गरम मर्दाने बच्चे-उत्पादक वीर्य से भर दिया। मैंने जितनी भी जल्दी हो सकता

था उतनी जल्दी से उसे पीने लगी। चाचू के लंड ने पहली की तरह अनेको बार अपने वीर्य की तेज मोटी धार से मेरा मुंह भर दिया। मैंने कम से

कम दस बार अपने मुंह में भरे वीर्य को प्यार से सटक लिया होगा। फिर भी कुछ मीठा-नमकीन वीर्य मेरे मूंह से निकल सुरेश चाचा के लंड और

मेरे हाथ के ऊपर लिसड़ गया।


मैंने बिना कुछ व्यर्थ किये बाहर फैले वीर्य को चाट कर सटक लिया। मैंने चाचू की गांड में से अपनी उंगली निकाल ली। मेरी उंगली उनकी गांड

के भीतर की गंध से महक रही थी। मुझे अचानक ध्यान आया कि बड़े मामा को मेरी गांड का स्वाद बहुत अच्छा लगा था। मैंने भी चाचा की

गांड के रस से भीगी उंगली को अपने मुंह में डाल कर चूसने लगी। मुझे चाचू की गांड का कसैला तीखा स्वाद बिलकुल भी बुरा नहीं लगा।

सुरेश चाचा मुझे एकटक प्यार से घूर रहे थे।

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मैंने चाचा के लंड और अपने हाथों से उनके लंड से उबले गाड़े मीठे नमकीन गरम शहद को चाट कर साफ़ कर दिया। मैंने देखा कि सुरेश

चाचा का विशाल स्थूल लंड मेरे चूस कर झड़ने के बाद भी बस थोड़ा सा ही शिथिल हुआ था। मेरी आँखे सुरेश चाचा की लाल वासना भरी आँखों

से उलझ गयीं। उनकी आँखों में तैरते वासना के मोटे मोटे डोरे मुझे और भी उत्साहित करने लगे।

मैंने अपना छोटा सा मूंह पूरा खोल कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को अपने लार से भरे मूंह में ले लिया। चाचू ने तुरंत अपने भारी भरकम

चूतड़ों को ऊपर उठा कर अपना लंड मेरे मूंह के भीतर घुसेड़ने का प्रयास करने लगे।


मैंने अपने दोनों मुलायम हाथों को एक दुसरे के ऊपर रख केर चाचू के स्थूल लंड को सहलाने लगी। सुरेश चाचा के धीमी सिसकारी ने मुझे

और भी प्रोत्साहित कर दिया।


 मैंने चाचा के लंड और अपने हाथों से उनके लंड से उबले गाड़े मीठे नमकीन गरम शहद को चाट कर साफ़ कर दिया। मैंने देखा कि सुरेश चाचा का

विशाल स्थूल लंड मेरे चूस कर झड़ने के बाद भी बस थोड़ा सा ही शिथिल हुआ था। मेरी आँखे सुरेश चाचा की लाल वासना भरी आँखों से उलझ गयीं।

उनकी आँखों में तैरते वासना के मोटे मोटे डोरे मुझे और भी उत्साहित करने लगे।


मैंने अपना छोटा सा मूंह पूरा खोल कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को अपने लार से भरे मूंह में ले लिया। चाचू ने तुरंत अपने भारी भरकम चूतड़ों को ऊपर

उठा कर अपना लंड मेरे मूंह के भीतर घुसेड़ने का प्रयास करने लगे।

मैंने अपने दोनों मुलायम हाथों को एक दुसरे के ऊपर रख केर चाचू के स्थूल लंड को सहलाने लगी। सुरेश चाचा के धीमी सिसकारी ने मुझे और भी

प्रोत्साहित कर दिया।


मेरे कमउम्र कमसिन मनोवृत्ती ने अब तक मुझे इतना तो सिखा दिया था कि बड़े मामा की तरह एक अल्पव्यस्क लड़की के कोमल हाथों से स्पर्श मात्र से ही

उनका लंड उत्तेजित हो सकता था। इस लिए मेरे मूंह से उनके सुपाड़े की मीठी यातना तो और भी कामयाबी लायेगी।

मैं चाचू के लंड को एक बार फिर से लोहे के खम्बे जैसे सख्त करने के लिए उत्सुक हो उठी थी।

सुरेश चाचा का विशाल स्थूल लंड अब पूरा अपने पहले वाले धड़कते हुए भीमकाय आकार का हो चुका था। मेरे मूंह के कोने उनके विशाल सुपाड़े को मूंह

में रखने के लिए पूरे फैले हुए थे और मुझे अब थोडा दर्द होने लगा था।

मैंने जैसे ही अपना मूंह उनके लंड से ऊपर उठाया मेरे मूंह में लार ने उनके लंड को स्नान करवा दिया।

"नेहा, क्या आपकी चूत चुदवाने के लिए तैयार है?" मुझे पता था कि सुरेश चाचा मुझे छेड़ रहे थे। अब तक वो चाहते तो मुझे धकेल कर मेरी चूत की

धज्जियां उड़ा रहे होते। चाचू मेरे मूंह से चुदाई की प्रार्थना सुनना चाहते थे।

"चाचू, मेरी चूत तो अब बहुत गीली है। मुझे आपके लंड से अपनी चूत चुदाई का बहुत मन कर रहा है," मैंने थोड़ा इठला कर कहा।

चाचू ने अपने हिमालय की चोटी के सामान आकाश की तरफ उठे भीमकाय लिंग की तरफ इशारा कर के कहा, "नेहा बेटी, यदि आपको चुदना है तो

थोड़ी महनत भी करनी होगी। इस बार आप खुद अपनी चूत मेरे लंड से मारिये।"

सुरेश चाचा मेरे सम्भोग ज्ञान को बड़ाने का भी प्रयास कर रहे थे।

"चाचू, यदि आपको मेरा ऊपर से आपका लंड लेना अच्छा नहीं लगे तो आप मुझे सिखायेंगे?" मैंने अपनी दोनों मादक गुदाज़ भरी भरी जांघें सुरेश चाचा

के कूल्हों के दोनों तरफ रख कर खड़ी हो गयी।

"नेहा बेटी, जब आपकी चूत झड़ना चाहेगी तो उसे अपने आप समझ आ जाएगा कि उसे मेरे लंड के साथ साथ क्या करना चाहिए," सुरेश चाचा हलके से

मुस्कराए।

सुरेश चाचा ने मेरी कोई भी मदद करने की कोशिश नहीं की। मैंने उनके भारी हथोड़े जैसे लंड को स्थिर कर अपनी नाज़ुक, रतिरस से भरी चूत

की मखमली दरार को उनके अविश्वसनीय मोटे सुपाड़े के ऊपर लगा कर अपने चूतड़ों को नीचे दबाने लगी।

जैसे ही चाचू का विशाल सुपाड़ा मेरे चूत के द्वार को फैला कर चीरता हुआ अंदर प्रविष्ट हुआ तो मेरी ना चाहते हुए भी दर्द से भरी चीत्कार मेरे मूंह से उबल

पड़ी। मेरी चूत सुरेश चाचा के मोटे लंड के ऊपर बुरी तरह से फँस कर मानो अटक गयी थी।


मैंने थोड़ी देर रुक कर अपनी साँसों को काबू में करने की कोशिश की। सुरेश चाचा ने मेरी हिलती फड़कती चूचियों को अपने हाथों में भर कर धीरे धीरे

सहलाना शुरू कर दिया। मैंने एक बड़ी सांस भर कर नीच की तरफ जोर लगाया और धीरे धीरे मेरी चूत की कोमल दीवारें फैलने लगीं और चाचू का मोटा

विशाल लंड मेरी चूत में इंच इंच करके अंदर घुसने लगा।


मैं अब हांफ रही थी। मेरी संकरी कमसिन चूत चाचू के मोटे लंड के ऊपर फंसी बिलबिला रही थी। मेरे दांत मेरे होंठ पर कसे हुए थे।

सुरेश चाचा मेरी बिगड़ती हालत को देख कर हलके हलके मुस्करा रहे थे। मैंने अपने चूतड़ चाचू के लंड के ऊपर घुमाने लगी। मैंने सोचा इससे शायद मेरी

चूत थोड़ी ढीली हो जाए। मैंने नीचे सर झुका कर देखा कि अभी तो सुरेश चाचा की सिर्फ तीन चार इन्चें ही मेरी चूत के अंदर थीं।


सुरेश चाचा की हल्की सिसकारी ने मुझे अपनी तरकीब की सफलता से प्रभावित कर दिया। मैंने फिर से नीचे जोर लगाया और मेरी गीली चूत अचानक

उनके चिकने लंड पर फिसल गयी। उनके विशाल लंड की कुछ इंचे मेरी चूत को चुद कर फैलाती हुई उसके अंदर दाखिल हो गयीं। मेरी दर्द भरी सिसकारी

को चाचू ने बिलकुल नज़रंदाज़ कर दिया।


मैं अब ज़ोर ज़ोर से सांस ले रही थी। मेरे होंठों के ऊपर पसीने की बूंदे इकट्ठा हो गयीं थीं।

सुरेश चाचा ज़ोर ज़ोर से मेरे उरोज़ों को मसल रहे थे। मैंने बिना अपनी चूत की परवाह किये दिल मज़बूत कर के निश्चय कर लिया। मैंने अपने दोनों हाथ

सुरेश चाचा की भरी बालों से भरी तोंद बार जमा कर अपने घुटने बिस्तर से ऊपर उठा लिए। मेरा पूरा वज़न अब चाचू के लंड पर टिका हुआ था। मेरी चूत

सरसरा कर एक दर्दनाक धक्के में सुरेश चाचा के भीमकाय लंड की जड़ पर जा कर ही रुकी।

मेरी दर्द से भरी चीख कमरे में गूँज उठी।


सुरेश चाचा ने तरस खा कर मुझे बाँहों में भर कर बिस्तर पर बैठ गए। उन्होंने धीरे धीरे मुझे अपने लंड को मेरी चूत में हिलाना शुरू कर दिया। उनके होंठ

मेरे सख्त संवेदनशील निप्पलों को चूसने लगे।

मैंने अपने हाथ उनके सर के पीछे कस कर जकड़ लिए।

मेरी चूत सुरेश चाचा की मदद से उनके मोटे लंड के ऊपर अब थोड़ी आसानी से आगे पीछे हिलने लगी।

सुरेश चाचा एक बार फिर से लेट गए। अब मैं अपने घुटनों पर वज़न दाल कर अपनी चूत को ऊपर नीचे कर सुरेश चाचा के वृहत्काय लंड से अपनी

चूत मरवाने लगी।


सुरेश चाचा मेरी चूचियों को अब बेदर्दी से मसल रहे थे। मैने ज़ोर की सिसकारी लेते हुए अपने चूतड़ को हिला हिला कर चाचू के लंड की कम से कम

चार पांच इंचों से अपनी चूत का मर्दन खुद ही करने लगी।

उनका मोटे लंड की जड़ हर बार मेरे अतिपुरित भग-शिश्न को कस कर दबा रही थी। मुझे पता ही नहीं चला पर मैं अब अपनी गांड पूरे दम लगा कर

अपनी चूत चाचू के लंड पर मार रही थी।

मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज उठी। मेरे शरीर में एक बार फिर से मीठे दर्द भरी एंथन जाग उठी। मैंने सुरेश चाचा के लंड और भी ज़ोर और तेज़ी से अपनी

चूत के अंदर डाल रही थी।


मुझे अब तक समझ आ गयी थी कि मैं अब झड़ने वाले हूँ।

सुरेश चाचा ने मेरे दोनों चूचियों को और भी कस के दबाना और मसलना शुरू कर दिया।

"चाचू, आः ... ऊउन्न्न्न ... आअह्ह्ह्ह्ह ..... आअर्र्र्र्र्ग्ग्ग्ग्ग्ग मैं झड़ने वाली .. आआह्ह्ह ....चा .......चू ...ऒऒओ।" मैं सुरेश चाचा के लंड

के ऊपर नीचे होते हुए चीखी।

सुरेश चाचे ने बिजली की तेज़ी से उठ कर मुझे अपनी बाँहों में भर कर चोदने से रोक लिया। मैं बिलकुल व्याकुल हो उठी और फुसफुसाई, "चाचू, प्लीज़ मैं

आने वाले थी।"

सुरेश चाचा ने मेरे विनती करते होंठों पर अपने मर्दाने मोटे होंठों को लगा कर उन्हें चूसने लगे।


मेरा रति-स्खलन जो कुछ ही क्षण दूर था वो अब तक शांत हो गया। सुरेश चाचा ने प्यार भरी कुटिलता से कहा, "नेहा बेटा, यदि मैं आपको झड़ने देता

तो आप ऊपर से पूरा दिल लगा कर चुदाई थोड़े ही कर पातीं। अभी तो मेरे लंड को आपकी चूत से और भी मेहनत करवानी है। आखिर उसे आज रात

आपकी कसी हुई गांड का सेवन भी तो करना है।"


मेरा सीने की धड़कन अपनी गांड मरवाने के दर्द भरे ख्याल से डर कर और भी तेज़ हो गयी। पर मेरी जलती धधकती चूत अब मेरे डर के ऊपर हावी हो

गयी। मैंने एक बार फिर से अपनी चूत से चाचू के लंड को मारने लगी। दस मिनटों में मैं एक बार फिर से झड़ने के लिए तैयार थी लेकिन चाचू ने फिर से

मुझे कगार के पास से वापस पीछे खींच लिया। मेरी वासना की सिस्कारियां उनके लंड को और भी बलवान बना रही थी।


मैं अब कामाग्नि में जल कर सुबक रही थी, "चाचू, मुझे झाड़ दीजिये। प्लीज़ मेरी चूत को चोद कर झाड़ दीजिये।"

मैंने पागलों की तरह अपने चूतड़ चाचू के लंड के ऊपर घुमाने की कोशिश करने लगी। सुरेश चाचा बड़ी निर्ममता से अपनी कमसिन भतीजी को तरसा और

तड़पा कर खुद अपनी वासना को भड़का रहे थे।


आखिर कर मेरी सुबकते हुए कामानंद को तलाशते लाल चेहरे को देख कर चाचू ने तरस खाया उन्होंने एक झटके से पलती मार कर मुझे अपने विशाल

भारे भरकम शरीर के नीचे दबा कर मेरे सुबकते होंठों पर अपने होंठ चिपका दिए। उन्होंने मेरे दोनों होंठों को अपने मूंह में भर कर चूसना शुरू कर दिया।

चाचू ने अपना भीमकाय लंड पूरा बाहर निकाल कर एक विध्वंसक धक्के से जड़ तक मेरी चूत में ठूँस दिया। मेरी घुटी घुटी चीख उनके मूंह में समा गयी।

सुरेश चाचा ने पांच बार अपना विशाल लंड सुपाड़े तक मेरी चूत से निकाल कर निर्मम अमानवीय प्रहार से मेरी चूत में जड़ तक ठूंसा। मेरी हर भयंकर

धक्के से दर्द चीखी पर अखिरीर बार मेरी चीख बिना रुके ऊंची हो गयी।


मैं अचानक झड़ने लगी। मैं दर्द और वासना के अनोखे मिश्रण से घबरा कर बिलबिला उठी और चाचा से कस कर चिपक गयी। सुरेश चाचा ने मुझे बिस्तर

पर पटक कर मेरी भारी मादक जांघें अपने शक्तिशाली बाँहों में उठा कर मेरी चूत को लम्बे धक्कों से चोदने लगे।

मेरा पहला चरम आनंद अभी पूरे चड़ाव पर था कि सुरेश चाचा की अस्थी-पंजर हिला देने वाले धक्कों भरी चुदाई ने मेरी तड़पती हुई चूत को फिर से

झाड़ दिया।


मैं अब अनर्गल बकने लगी, " चाचू चोदिये .... और ज़ोर ....से ....आह और दर्द कीजिय ... मैं फिर ... आअन्न्न्नग ...मेरी चू .... आआह।"

सुरेश चाचा ने बिना धीमे हुए हचक हचक कर जानलेवा धक्कों से मेरी चूत को चोद कर मुझे पागल कर दिया।

मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज रहीं थीं।


सुरेश चाचा के भारी भरकम बालों से भरे चूतड़ बिजली की रफ़्तार से ऊपर नीचे हो रहे थे। उनकी जांघें मेरे चूतडों से इतने ज़ोर से टकरा रहीं थी की हर

तक्कड़ कमरे में झापड़ जैसी आवाज़ पैदा कर रही थी।


सुरेश चाचा ने मेरे दोनों हिलते फुदकते उरोज़ों को अपनी मुट्ठियों में जकड़ कर मसलने लगे। मेरे शरीर में ना जाने कितने तूफ़ान उठे हुए थे। मेरा दीमाग

कभी चाचू की निर्मम चुदाई के दर्द से बिलखता था तो कभी उसी दर्दीली चुदाई के असीम काम-आनंद की बाड़ में डूबने लगता।


सुरेश चाचा ने मुझे और भी ज़ोरों से चोदना शुरू कर दिया। उनके गले से गुर्घुराहत की आवाजों ने मुझे उनके स्खलन की चेतावनी दे दी।

सुरेश चाचा ने हुंकार भर कर अपना मूसल लंड मेरी चूत में पूरा दबा आकर मेरे ऊपर गिर पड़े। उन्होंने अपना खुला मूंह मेरे हाँफते हुए मूंह पर चिपका

दिया।


सुरेश सुरेश चाचा चाचा का का लंड मेरी मेरी चूत के के बिलकुल बिलकुल अंदर तक तक घुसा था और उनके लंड के पेशाब के छेद से उबलती गाड़े

गरम बच्चे पैदा करने की क्षमता भरे शहद की फुहारें मेरे अविकसित गर्भाशय को नहलाने लगीं।


मैं तो चाचा की भयंकर चुदाई से इतनी थक गयी थी कि पहले की तरह शिथिल हो कर आँखें बंद कर करीब बेहोशी के आलम से निढाल हो गयी।

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