Wednesday, January 22, 2014

बदनाम रिश्ते-- हमारा छोटा सा परिवार--11

FUN-MAZA-MASTI


बदनाम रिश्ते--
 हमारा छोटा सा परिवार--11

 थोड़ी देर बाद लम्बी चुदाई की थकान गायब हो गयी और सुधा अपने पांच पुरुषों को प्यार से अपनी हल्की भूरी आँखों से देख कर उन्हें चुदाई

का निमंत्रण देने लगी। सुधा के ससुर कालीन पर लेट गए और उन्होंने अपनी बहु को अपने खड़े मोटे लम्बे लंड के ऊपर खींच लिया। सुधा ने

जल्दी से अपनी गीली छूट को अपने ससुर के खम्बे जैसे लंड के ऊपर लगाकर अपनी गांड नीचे दबाने लगी। उसकी मीठी सिसकारी के साथ

उसकी मीठी सुगन्धित चूत इंच-इंच कर के ससुरजी के विशाल लंड को निगलने लगी।


जैसे ही उसकी चूत के मुलायम भगोष्ट अपने ससुर के वृहत लंड की जड़ पर पहुंचे सुधा ने उनके लंड को अपने संकरी चूत की मांसपेशियों से

जकड़ लिया। ससुर जी की हल्की सिसकारी ने सुधा के अत्यंत वासना से लिप्त सुंदर चेरे पर मुस्कान ला दी। सुधा को थोड़ा अहसास था कि

पीछे खड़े उसके परिवार के पुरुष क्या प्लान बना रहे थे।


जैसा सुधा ने सोचा था, उसके पति, उमेश, ने अपना मोटा लम्बा लंड अपनी पत्नी की छोटी सी गांड के छल्ले पर लगा कर अंडर डालने के

लिए दबाने लगे। सुधा की सिसकारी ने उसके गांड में उपजे दर्द की घोषणा कर दी। सुधा अभी अपने को अपने पति के जानदार धक्के के लिए

तैयार कर रहे थी कि उसका छोटा बेटा, अनिल, उसके मुंह के सामने आ गया। सुधा ने बिना देर लगाए अपने बेटे का खड़ा मोटा लंड अपने

मुंह में ले लिया।


उमेश ने पूरी ताकत से अपने पत्नी की कोमल गांड को फाड़ने के काबिल भयंकर धक्के से अपनी लंड उसकी गांड में बेदर्दी से घुसेड़ दिया।

अनिल के लंड ने अपनी माँ की चीख को दबा दिया अनिल ने भी अपनी माँ के चेहरे को कास कर पकड़ कर अपने लंड से सुधा के कोमल मुंह

को चोदना शुरू कर दिया।


सुधा के मुंह से सिर्फ 'गोंगों ' की आवाज़ें निकल पा रहीं थी।

सुधा के पति का लंड अपने पिता जैसे ही लम्बा और मोटा था। सुधा को दोनों भीमकाय लंड एक साथ लेते हुए शुरू की चुदाई में बहुत दर्द

होता था। पर जब उसकी गांड और चूत मोटे लंदों के इर्द-गिर्द फ़ैल जाती थी तो उसके आनंद की कोई सीमा नहीं थी।

थोड़ी देर बाद लम्बी चुदाई की थकान गायब हो गयी और सुधा अपने पांच पुरुषों को प्यार से देख कर उन्हें चुदाई का निमंत्रण अपनी हल्की

भूरी आँखों से देने लगी। सुधा के ससुर कालीन पर लेट गए और उन्होंने अपनी बहु को अपने खड़े मोटे लम्बे लंड के ऊपर खींच लिया। सुधा ने

जल्दी से अपनी गीली छूट को अपने ससुर के खम्बे जैसे लंड के ऊपर लगाकर अपनी गांड नीचे दबाने लगी। उसकी मीठी सिसकारी के साथ

उसकी मीठी सुगन्धित चूत इंच-इंच कर के ससुरजी के विशाल लंड को निगलने लगी।

जैसे ही उसकी चूत के मुलायम भगोष्ट अपने ससुर के वृहत लंड की जड़ पर पहुंचे सुधा ने उनके लंड को अपने संकरी चूत की मांसपेशियों से

जकड़ लिया। ससुर जी की हल्की सिसकारी ने सुधा के अत्यंत वासना से लिप्त सुंदर चेरे पर मुस्कान ला दी। सुधा को थोड़ा अहसास था कि

पीछे खड़े उसके परिवार के पुरुष क्या प्लान बना रहे थे।


जैसा सुधा ने सोचा था, उसके पति, उमेश, ने अपना मोटा लम्बा लंड अपनी पत्नी की छोटी सी गांड के छल्ले पर लगा कर अंडर डालने के

लिए दबाने लगे। सुधा की सिसकारी ने उसके गांड में उपजे दर्द की घोषणा कर दी। सुधा अभी अपने को अपने पति के जानदार धक्के के लिए

तैयार कर रहे थी कि उसका छोटा बेटा, अनिल, उसके मुंह के सामने आ गया। सुधा ने बिना देर लगाए अपने बेटे का खड़ा मोटा लंड अपने

मुंह में ले लिया।

उमेश ने पूरी ताकत से अपने पत्नी की कोमल गांड को फाड़ने के काबिल भयंकर धक्के से अपनी लंड उसकी गांड में बेदर्दी से घुसेड़ दिया।

अनिल के लंड ने अपनी माँ की चीख को दबा दिया अनिल ने भी अपनी माँ के चेहरे को कास कर पकड़ कर अपने लंड से सुधा के कोमल मुंह

को चोदना शुरू कर दिया।


सुधा के मुंह से सिर्फ 'गोंगों ' की आवाज़ें निकल पा रहीं थी।

सुधा के पति का लंड अपने पिता जैसे ही लम्बा और मोटा था। सुधा को दोनों भीमकाय लंड एक साथ लेते हुए शुरू की चुदाई में बहुत दर्द

होता था। पर जब उसकी गांड और चूत मोटे लंदों के इर्द-गिर्द फ़ैल जाती थी तो उसके आनंद की कोई सीमा नहीं थी।

*************

पांच दस मिनट में सुधा की बेदर्दी से चुदती गांड और चूत का दर्द बिलकुल गायब सा हो गया और वो अपनी कमर और चूतड़ को हिला-हिला

कर दोनों लंदों की अपनी चूत और गांड मारने के लिए पूरी सहायता कर रही थी।

सुनील और सुधा के पिताजी अपने लोहे जैसे सख्त लंडो से सुधा के कोमल हाथों को भर दिया। सुधा अपने सारे परिवार के पाँचों पुरुषों के

लंडों को सुख देने लगी।


सुधा अगले दस मिनट में फिर से झड़ गयी। उमेश ने अपना लंड अपनी पत्नी की गांड में से निकाल लिया और अपनी जगह अपने ससुर को

दे दी।


अनिल ने अपना लंड अपनी माँ के मुंह से निकाल कर उसे अपने पितजी के माँ की गांड से निकले लंड के लिए खाली कर दिया।

सुधा ने अपने पति का उसकी गांड के रस से सुगन्धित लंड को अपने मुंह में भर कर चाटने और साफ़ करने लगी। अनिल ने अपने लंड अपनी

माँ के खाली हाथ में भर दिया।

सुधा के परिवार के पांच पुरुष सुधा की चूत और गांड को मिल कर चेन बना कर अपने विशाल लंडों से चोदने लगे।

सुधा की चूत बार बार झड़ रही थी। क्योंकि हर लंड को चूत और गांड के बाहर शांत होने का अवसर मिल रहा था इसकी वजह से पाँचों लंड

बिना झड़े

अगले दो घंटों तक सुधा की गांड और चूत को रगड़-रगड़ कर निर्ममता से चोदते रहे। सुधा का शरीर अनगिनत रति-विसर्जन से थकने लगा।

सुधा का मुंह भी अपनी मलाशय से निकले मोटे लंडों को चूस चूस कर थक गया था।

पांच मर्द अपने खड़े मोटे लंड को सहला कर और भी सख्त करनी का प्रयास कर रहे थे। सुनील ने सबको अपनी माँ की आगे की चुदाई के

लिए कोई बहुत ही अच्छा सुझाव दिया। सबने उसकी पीठ थपकी। सुधा की उन दस मिनटों में साँसे काबू में होने लगीं।

सुधा को पता था कि जब उसका सारा परिवार इकट्ठे हो कर चोदता था तो वो कई बार कामानंद से अभिभूत हो बेहोश हो जाते थी।


इस बार सुनील और अनिल दोनों कालीन पर विपरीत दिशा में लेट गए. सुनील ने अपनी जांघें अपने भाई की जांघों पर फैला दी. इस तरह

दोनों के लंड बिलकुल करीब थे. सुधा ने मुस्करा कर सिसकी भरी और अपनी चूत को अपने दोनों बेटों के लंड पर टिका कर उनके मोटे लंड

को इकट्ठे अपनी यौन-द्वार में फंसा लिया.


सुधा के मुंह से जोर की दर्द भरी सिसकारी निकल गयी. उसका सुंदर चेहरा दर्द से पीला पड़ गया था. सुधा के पति ने अपने बेटों के लंड को

पकड़ कर सुधा की चूत में फिट करने लगे. सुधा के ससुर और पिता ने उसकी दोनों बाहें संभाल कर उसके शरीर को नीचे दबाने लगे जिस से

उसके बेटों के लंड सुधा की चूत में समा जाएँ.


सुनील और अनिल अपने नितिम्बो को ऊपर उठा कर अपनी माँ की चूत में दो मोटे लंड को धकेलने में मदद कर रहे थे.

सुधा ने अपने होठों को दातों में दबा कर दर्द बर्दाश्त करने का प्रयास करते हुए अपने बेटों के आधे लंड इकट्ठे अपनी चूत में ले लिए. सुनील

और अनिल के लंड आधार की तरफ और भी मोटे थे. सुधा का माथा पसीने की बूंदों से भर गया.


सुधा के पिता ने सुधा की पीठ के पीछे खड़े हो कर अपनी बेटी की जांघों को अपने मज़बूत हाथों में भर कर उसके पैर कालीन से ऊपर उठा

लिए. अब सुधा का पूरा वज़न उसके पिता के हाथों में था. उसकी चूत अपने बेटों के लंड पर स्थिर थी. सुधा के पिता ने अपने समधी और

दामाद को संकेत दिया. सुधा के पति ने अपने बेटों के लंड को अपने हाथों से संभल लिया. सुधा के ससुर ने दोनों हाथ अपने बहू के कन्धों पर

रख दिए.

सुधा के पिता ने अचानक अपनी बेटी का पूरा वज़न अपने हाथों से मुक्त कर दिया, उसी समय सुधा के ससुर अपना पूरा वज़न अपनी बहू के

कन्धों पर डाल कर उसे नीचे धकेलने लगे. सुधा के हलक से निकली दर्द भरी चीख से कमरा गूँज उठा.


एक भयंकर धक्के में सुधा की चूत में उसके बेटों के लंड जड़ तक अंदर चले गए. सुधा सुबकते हुए अपने छोटे बेटे सुनील के ऊपर गिर पड़ी.

सुनील ने अपने माँ को अपनी बाँहों में भर कर उसके मुंह पर अपना मुंह लगा दिया.

सब मर्दों ने सुधा को कुछ मिनट दो मोटे लंड को अपनी चूत में समायोजित करने के लिए दिए.

सुधा के पति ने सुबकती पत्नी का मुंह अपने मूसल लंड से भर दिया. सुधा के ससुर ने अपना तना हुआ मोटा लंड अपने बहू की गांड में

बेदर्दी से जड़ तक अंदर डाल दिया.

अगले एक घंटे पांचो मर्दों ने सुधा की बेदर्दी से चुदाई की.

सुधा के पति, ससुर और पिता ने बारी बारी से सुधा की गांड की अविरत चुदाई की. सुधा के दोनों बेटे उसकी चूत में अपने मोटे लंड को तीन

चार इंच अंदर बहर कर रहे थे. सुधा की दर्द भरी चीखें शीघ्र वासना की सिस्कारियों में बदल गयीं. जब एक मर्द सुधा की गांड में स्खलित हो

जाता था तो उसकी जगह दूसरा मर्द ले लेता था. सुधा पहले मर्द का मल-लिप्त लंड चूस कर साफ़ और फिर से सख्त कर देती थी.

उसके दोनों बेटे तीन बार अपनी माँ की चूत में स्खलित हो गए थे. उनके लंड एक बार भी शिथिल नहीं हुए. सुधा अनगिनत बार चरमोत्कर्ष के

आनंद में डूब चुकी थी. लेकिन उसके लम्बे आनन्द की पराकाष्ठा और अनगिनत रति-विसर्जन ने उसे बिलकुल थका दिया. अंत में सुधा निढाल

हो कालीन पर पसर गयी. जैसे ही उसके बेटों के मोटे लंड उसकी चूत से बाहर निकले उसकी चीख निकल गयी.

उसके ऊपर जान छिड़कने को तैयार उसके पाँचों कौटुम्बिक अनाचारी प्रेमियों ने अपना आखिर बार का वीर्य स्खलन सुधा के सुंदर मुंह पर

किया. सुधा का पूरा मुंह वीर्य से ढक गया. उसके ससुर और बेटों ने अपने लंड के प्रचंड वीर्य के स्फुरण से सुधा के दोनों नथुनों को वीर्य से

भर दिया. सुधा थकी-मांदी सिर्फ कुनमुना ही सकी.

उसके ससुर ने प्यार से अपनी बहू को अपनी बाँहों में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया.

पांचों मर्द, सुधा को कुछ देर आराम करने के लिए अकेला छोड़, आगे की चुदाई की योजना बनाते हुए नीचे मदिरापान के लिए चल पड़े.


 हम चारो बहुत गरम हो गये थे। बड़े मामा ने नम्रता चाची को अपनी शक्तिशाली बाँहों में उठा लिया और तेजी से शुभ्ररात्री बोल कर अपने शयनकक्ष की और चल

दिए। नम्रता चाची की खिलखिलाने की आवाज़ बहुत देर तक तक गूंजती रही।


मेरा तप्ता हुआ शरीर सुरेश चाचा से और भी बुरी तरह से लिपट गया। सुरेश चाचा ने मेरे थिरकते जलते हुए होंठों पर अपने गरम मर्दाने मोटे होंठ लगा

दिए। मेरी दोनों गुदाज़ बाहें स्वतः उनकी मोटी मज़बूत गर्दन के इर्द-गिर्द हों गयीं। मेरा मुंह अपने आप से खुल कर सुरेश चाचा की मीठी ज़ुबान का स्वागत करने

के लिए तैयार हो गया। सुरेश चाचा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा लिया और चुम्बन तोड़े बिना अपने कमरे की तरफ चल दिए।


कमरे तक पहुँचते-पहुँचते उनकी ज़ुबान ने मेरे मुंह की पूरी तलाशी ले ली थी। उनका मीठा थूक मेरे मुंह में इकठा हो गया। मैंने लालचीपने से सारा का

सारा गर्म मीठा थूक गटक लिया। कमरे में पहुँच कर चाचाजी ने मुझे पलंग पर खड़ा कर दिया और अपने कपड़े उतारने लगे। मैंने भी जल्दी से अपने को निवस्त्र

कर दिया। मैं भारी सासों से सुरेश चाचा को अपने कपड़े उतारते हुए एकटक देख रही थी। चाचाजी का भारीभरकम बदन घने बालों से भरा हुआ था। उनके सीने

के बालों में काफी बाल सफ़ेद होने लगे थे।

मेरी आँखें उनके नीचे गिरते हुए कच्छे पर टिकी हुई थी।

मेरी सांस मेरे गले में अटक गयी जब चाचाजी का अमानवीय मोटा लंड स्पात की तरह सख्त बाहर आया। मेरी डर के मारे हालत खराब हो गयी। सुरेश

चाचा का लंड बड़े मामा से भी मोटा था। हालांकी उनका लंड बड़े मामा से कुछ इंच छोटा था पर उसकी मोटाई ने मुझे डरा दिया। मैंने अपना दिल पक्का कर

लिया और अपने से वायदा किया की मैं जैसे भी होगा सुरेश चाचा को अपने साथ आनंद लेने से नहीं रोकूंगी। आखिर नम्रता चाची मेरे बड़े मामा को सारी रात

अपने शरीर से आनंद देंगी। मैं कैसे पीछे हट सकती थी।

सुरेश चाचा मेरे पास आये और अपना लंड मेरे हवाले कर दिया। मेरे दोनों नाज़ुक छोटे हाथ मुश्किल से उनके मोटे स्थूल लंड के इर्द-गिर्द भी नहीं जा

पाए।

मैंने तुरंत समझ लिया की चाचाजी का लंड बड़े मामा जितना ही मोटा था पर कुछ इंच छोटा होने की वजह से मुझे ज़्यादा ही मोटा लगा। फिर भी

चाचाजी का अमानवीय लंड किसी भी लड़की की चूत और गांड आसानी से फाड़ सकता था।

मैंने अपना पूरा खुला हुआ मुंह चाचाजी के सेब जितने बड़े सुपाड़े के ऊपर रख दिया। मेरी जीभ ने उनके सुपाड़े को सब तरफ से चाटना शुरू कर दिया।

मेरी झीभ की नोक उनके पेशाब के छेद को चिड़ाने लगी। चाचाजी की सिसकारी ने मुझे भी उत्तेजित कर दिया। मेरे कोमल नाज़ुक कमसिन हाथ बड़ी मुश्किल से

उनके दानवीय लंड को काबू में रख पा रहे थे। मेरा छोटा सा मुंह उनके लंड को अंदर लेने के लए पूरा चौड़ा हो कर खुल गया था। सुरेश चाचा की सिसकारी ने

मुझे और भी उत्साहित कर दिया।

सुरेश चाचा मेरे सर के उपर हाथ रख कर मेरे मुंह को अपने लंड पर दबाने लगे। मेरे दोनों हाथ बड़ी मुश्किल से चाचाजी के लंड के तने को पूरी तरह

से पकड़ पा रहे थे फिर भी मैंने उनके लंड को सड़का मारने के अंदाज़ में अपने हाथ उपर नीचे करना शुरू कर दिया। मेरे गर्म मुंह उनके सुपाड़े को मेरी

अवयस्क अप्रवीणता के बावजूद उनको काफी मज़ा दे रहा था। सुरेश चाचा ने थोड़ी ही देर में मुझे अपने लंड से उठा कर पलंग पर फ़ेंक दिया। सुरेश चाचा बिजली

की तेजी से मेरी पूरी फैली गुदाज़ झांघों के बीच में कूद पड़े। उनका लालची मुंह शीघ्र ही मेरी गीले थरकती हुई चूत के उपर चिपक गया।


मेरे मुंह से जोर की सिसकारी निकल गयी, "आआह चाचाजी ऊउन्न्न्न्न मेरी चूत, चाचाजी…..ई……ई…..ई….।” सुरेश चाचा ने अपने मज़बूत बड़े हाथ मेरे

भरे-पूरे गोल गुदाज़ नितिम्बों के नीचे रख कर मेरी चूत को अपने मुंह के करीब ले आये।

सुरेश चाचा अपने पूरे खुले मुंह को मेरी चूत से भर कर जोर से चूम रहे थे। मेरे गले से जोर की सिसकारी निकल पड़ी। चाचाजी के बड़े मज़बूत हाथ मेरे

दोनों चूतडों को मसलने लगे। मैंने अपनी चूत को अपने नितिन्ब उठा कर चाचाजी के मुंह मे दबोचने लगी। चाचाजी ने अपने लम्बे मर्दाने हाथ मेरी भारी झांगों के

बाहर कर मेरे दोनों उबलते हुए उरोजों के उपर रख दिए। उनके स्पर्श मात्र से मेरी सिसकारी निकल गयी। चाचाजी ने मेरे दोनों चूचियों को अपने मज़बूत मुट्ठी में

जकड़ लिया।

चाचाजी ने बेदर्दी से मेरी चूचियों का मर्दन करना शुरू कर दिया, "ऊउम्म्म चाआआ चाआआ जीईईईइ ............धीरे धीरे पप्लीईईईईईईइ


.........ज़ज़ज़ज़ज़ज़। आअह मेरी चूत .......ऊउम्म्म।" चाचाजी ने मेरे कच्चे किशोर बदन का वासनामय मर्दन कर के कमरे को मेरी सिस्कारियों से भर

दिया।

चाचाजी अब अपने मुंह में मेरी चूत ले कर उसे ज़ोरों से चूस रहे थे। मेरी चूत में एक अजीब सा दर्द और आनंद की लहर दौड़ रही थी। मेरे हाथ चाचाजी के

घने बालों को सहलाने लगे। उन्होंने अपनी जीभ से मेरी चूत के तंग कोमल द्वार को चाटना शुरू कर दिया। मेरी आँखें वासनामय आनंद से आधी बंद हो गयीं।

चाचाजी ने मेरी चूत के बाहरी छेद को चाटने के बाद अपनी जीभ से मेरी चूत मारने लगे। उन्होंने अपनी जीभ को मोड़ कर लंड की शक्ल में कर लिया था।

सुरेश चाचा ने अपनी गोल लंड की शक्ल में उमेठी जीभ से मेरी चूत की दरार को खोल कर उसे मेरी तंग, कमसिन, मखमली चूत की सुरंग में घुसेड़

दिया। मेरी सांस अब अटक-अटक कर आ रही थी। मेरे दोनों हाथों ने चाचाजी के घने बालों को अपनी मुट्ठी में जकड़ कर जोर से उनका सर अपनी चूत के ऊपर

दबाना शुरू कर दिया।


चाचाजी मेरी गीली चूत को अपनी मोटी गरम जीभ से चोदने लगे। मेरी सिस्कारियां कमरे में गूँज उठीं।

"आह चाचजी ई ..... ई ......ई ...... ई .....अम्म्म ....ऒऒन्न्न्न्ह्ह्ह," मेरे मुंह से अनर्गल आवाजें निकलने लगीं।


चाचजी के दोनों हाथ मेरी चूचियों को बेदर्दी से मसल रहे थे। चाचाजी बीच-बीच में मेरे निप्पल को बेरहमी से उमेठ देते थे। मेरे नाजुक उरोजों और निप्पल

के मर्दन से मेरी सिसकारी कभी-कभी छोटी सी चीख में बदल जाती थी। मेरी चूत अब चूतरस से लबालब भर गयी थी। सुरेश चाचा अब मेरे घुण्डी को चूस रहे थे।

जितनी बेदर्दी से चाचाजी मेरी चूचियां मसल रहे थे उन्होंने उतनी ही निर्ममता से मेरी घुंडी को चूसना और काटना शुरू कर दिया।


मैं कमसिन उम्र में बड़े मामा की*एक दिन की चुदाई में ही में सीख गयी थी की सुरेश चाचा मेरी बेदर्दी से चुदाई करेंगे। मेरे रोम-रोम में बिजली सी दौड़ गयी।

मेरे दोनों स्तनों में एक मीठा-मीठा दर्द होना शुरू हो गया। मेरे मुंह से जोर की सीत्कार निकल पड़ी। चाचाजी ने मेरे भग-शिश्न को अपने दातों में दबा कर

झंझोड़ दिया।


मेरे गले से घुटी-घुटी चीख उबल कर कमरे में गूँज उठी। मेरे चूचियों का दर्द अब मेरे निचले पेट में उतर गया। चाचजी ने मेरी सिसकारी और चीखों से समझ

लिया की मेरा रति-स्खलन होने वाला था। सुरेश चाचा मेरे दोनों उरोजों को और भी निर्ममता से मसलने लगे। उन्होंने ने मेरे क्लीटोरिस को अपने होंठों के बीच में

ले कर मेरी चूत से दूर खींच लिया। मेरी घुटी-घुटी चीख और वासना में डूबी कराहट ने उन्हें और भी उत्तेजित कर दिया था।


मेरा मीठा दर्द अब मेरी चूत के बहुत भीतर जा कर बस गया। मैं उस दर्द को बाहर निकालने के लिए बैचैन थी।

"चाचजी, मुझे झाड़ दीजिये। मेरी चूत को जोर से चूसिये। आम्म्म .... आअन्न्न्न ....मैं अब आने वाली हूँ।

सुरेश चाचा ने सही मौके पर मेरे भग-शिश्न को अपने दातों में ले कर हलके से काट लिया।

मेरे शरीर में मानों कोई सैलाब आ गया। मैंने जोर से चाचाजी के बालों को पकड़ के उनका मुंह अपनी धड़कती हुई चूत में दबाने की कोशिश करने लगी। मेरे

सारे बदन में एक विध्वंस आग लगी थी। उसे बुझाने का उपाय चाचाजी के पास था। मेरी चूत का दर्द अचानक एक बम की तरह फट गया।

मेरी चूत से गर्म मीठा पानी बहने लगा। चाचाजी मेरी चूत से बहते रस को लपालप पीने लगे।

"आआन्न्न ...... आम्म्म्म्म .......ऑ ...ऑ ....ऑ ....." मेरे मुंह से मीठी सिस्कारियों के अलावा कोई और आवाज़ नहीं निकल पाई।

मेरा सारा शरीर मेरे झड़ने के तूफ़ान से अकड़ कर मड़ोड़े लेने लगा। सुरेश चाचा ने मौका देख कर मेरी गोल गोल भरी जांघों को अपने बाज़ुओं में उठा कर

फैला दिया। उनका मोटे खम्बे की तरह धमकता हुआ लंड मेरे चूत को फाड़ने के लिए बेचैन हो रहा था।

चाचू ने अपने लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े को मेरी अविकसित कमसिन चूत की संकरी दरार पर कई बार रगड़ा। मेरी सिस्कारियों ने उन्हें और भी उत्तेजित कर

दिया।

सुरेश चाचा को अपने लंड को मेरी कोमल तंग चूत में डालने की कोई जल्दी नहीं लगती थी। मेरी साँसे अटक अटक कर आ रहीं थीं। मेरी चूत चाचू के दानवीय

लंड के आकार से डरने के बावज़ूद उनके लंड के लिए तड़प रही थी।

"चाचू, प्लीज़ अब अंदर डाल दीजिये," मैं वासना के ज्वार से ग्रस्त हांफती हुई गिड़गिड़ाई।

"नेहा बेटा, जब तक आप साफ़-साफ़ नहीं बोलेंगे की आपको क्या चाहिए हमें कैसे पता चलेगा की हम क्या करें?" चाचू ने कठोर हृदय से मुझे चिढ़ाते कहा।

मेरा धैर्य कामवासना से ध्वस्त हो गया। मैं ने चीख सी मार कर घुटी घुटी आवाज़ में सुरेश चाचा से विनती की, "चाचू मेरी चूत मारिये। अपने मोटे लंड से मेरी चूत मारिये।"


 सुरेश चाचा ने एक ज़बरदस्त धक्के से अपना मोटा सुपाड़ा मेरी चूत की संकरी सुरंग के अंदर घुसा दिया। मैं दर्द से बिलबिला उठी। मेरे दर्द से मचलते कूल्हों को दबा कर चाचू ने

एक और दर्द भरे धक्के से अपने वृहत लंड की दो मोटी इन्चें मेरी कमसिन अविकसित चूत में बेदर्दी से धकेल दीं।

मेरी दर्द भरी चीख से कमरा गूँज उठा, "चाचू .. ऊ ... ऊ .... मेरी चू ... ऊ ... त ... आः ......आह ......... आन्न्ह्ह ........ धीरे ........ आः ...... मर जाऊंगी मैं तो

चाचू आन्न्न्ह्ह ...."

सुरेश चाचा का महाकाय लंड अब मेरी चूत में फँस चूका था। उन्हें पता था कि मैं कितना भी चीखूं चिल्लाऊं उनका मोटा खम्बे जैसा लम्बा लंड मेरी चूत में पूरा का पूरा अंदर तक

जा कर ही दम लेगा।


सुरेश चाचा ने ने मेरे तड़पते शरीर को अपने भारी बदन के नीचे दबा कर भयंकर धक्कों से अपने लंड को मेरी कोमल चूत में इंच-इंच कर अंदर धकेलने लगे।

उनका हर विध्वंसक धक्का मेरी चीख निकाल देता था। मेरी आँखों में आंसू भर गए। पर मेरी बाहें सुरेश चाचा की गर्दन पर कस गयीं। चाचू चुदाई में परिपक्व थे और मेरी बाहों ने

उन्हें बता दिया था की मैं चाहे जितना भी दर्द हो उनके लंड के लिये व्याकुल थी।

चाचू के लंड की आख़िरी दो तीन इंच बहुत ही मोटी थीं। जब वो मेरी तंग चूत के द्वार में फांस गयीं तो चाचू ने अपने लंड को थोड़ा बहर खींच कर एक गहरी सांस ले कर अपने

भारी-भरकम शरीर की पूरी ताकत से एक ज़ोर के धक्के से मेरी बिलखती चूत में अपना पूरा वृहत्काय लंड जड़ तक डाल दिया। मेरी चीखें उन्हें बिलकुल भी परेशान नहीं कर रहीं

थीं।


सुरेश चाचा ने मेरी बिलखते मुंह को अपने मुंह से कस कर चूसते हुए अपना भीमकाय लंड धीरे धीरे मेरी चूत से बाहर निकालने लगे। मेरी चूत अब फटने के डर की बज़ाय खाली

खाली महसूस करने लगी। मेरे चूत जो पहले चाचू के मोटे लंड को लेने में दर्द से बिलबिला रही थी वो अब उनके लंड को फिर से अपने अंदर लेने के लिए व्याकुल हो रही थी। मैं

अपनी चूत की विसंगती से आश्चर्यचकित हो गयी।


सुरेश चाचा ने अपनी ताकतवर कमर और नितिन्म्बों की मदद से एक ही धक्के में अपना लंड मेरी फड़कती हुई चूत में जड़ तक घुसेड़ दिया। मेरी चीख में दर्द, वासना का विचित्र

सा मिश्रण था। चाचू अपने विशाल लंड की करीब आठ इंचों से मुझे विध्वंसक धक्कों से चोदने लगे। मेरी दर्द भरी चीखें कमरे में गूँज कर उनकी उत्तेजना को और भी बड़ावा दे

रहीं थीं।

मेरी चींखें पांच दस मिनटों में कराहट में बदल गयीं। चाचू का मोटा लंड अब मेरी गीली चूत में तेजी से अंदर-बाहर जा रहा था।

चाचू ने एक हल्की सी घुर्राहत से ज़ोर का धक्का लगाया और घुटी से आवाज़ में कहा, " नेहा बेटा, आपकी चूत तो बहुत ही कसी हुई है। मेरा लंड ऐसा लगता है कि किसी

मखमली शिकंजे में फँस गया है। आज मैं आपकी चूत को फाड़ कर बिलकुल ढीला कर दूंगा।"

मेरा हृदय चाचू की मेरी चूत की प्रशंसा से नाच उठा पर मेरी चूत अभी अभी भी दर्द से चरमरा रही थी और मेरी आवाज़ मेरे गले में अटक गयी थी।

चाचू मेरी कराहों को नज़रंदाज़ कर मुझे अत्यंत भीषण धक्कों से चोदते रहे।

कुछ ही देर में कमरे में मेरे कराहने की बजाय मेरी सिस्कारियां गूजने लगीं।

"आह .. चा .... चू .... आह्ह्ह ... अब बहू ... ओऊ .... ऊत अच्छा लग रहा है। मुझे ज़ोर से चोदिये। आन्न्ह ... ऒओन्न्न्ह .... ऊन्न्नग्ग्ग।" मैं कामाग्नि में जलते हुए

कसमसा रही थी।


मेरी चूत में मेरे रस की बाड़ आ गयी थी। सुरेश चाचा का मोटा घोड़े जैसा लंड अब 'सपक-सपक' की आवाज़ों के साथ रेल के इंजन के पिस्टन की रफ़्तार से मेरी चूत मार रहा

था। उनका हर धक्का मेरे पूरे शरीर को हिला देता था। सुरेश चाचा ने अपने बड़े मजबूत हाथों में मेरे दोनों चूचियों को भर कर मसलना शुरू कर दिया। मैं एक ऊंची सिसकारी

मार कर झड़ने लगी।

चाचू मेरे झड़ने की उपेक्षा कर मेरी चूत का लतमर्दन बिना धीमे हुए ताकतवर धक्कों से करते रहे। मेरी अविरत सिस्कारियां मेरे कामानंद की पराकाष्ठा का विवरण कर रहीं थीं।

"चाचू आह मुझे फिर से झाड़ दीजिये। मेरी चूत को फाड़ कर उसे झाड़ दीजिये, चाचू ...ऊ ...ऒन्न्न्न्ह्ह .. ऒऒन्न्न्ह्ह आआह।" मैं भयंकर चुदाई से अभिभूत हो कर बिलबिलाई।

“ नेहा बेटी आपकी चूत को आज हम सारी रात मारेंगें आपकी चूत को ही नहीं आज रात हम आपकी गांड को भी फाड़ देंगे।" सुरेश चाचा ने गुर्रा कर और भी ज़ोर से अपना मोटा

लंड मेरी चूत में धसक दिया। उनके अंगूठे और तर्जनी ने मेरे दोनों नाज़ुक निप्पलों को कस कर भींच कर निर्ममता से मड़ोड़ दिया। मेरे चूचुक में उपजे दर्द और मेरी फड़कती चूत में

चाचू के हल्लवी लंड से उपजे आनंद के मिश्रण के प्रभाव से मैं फिर से झड़ गयी।

सुरेश चाचा मेरे दोनों चूचियों का और मेरी चूत का मर्दन बिना धीमे हुए और रुके करते रहे। उनके जान लेने वाले धक्के इतने बलवान थे की मैं उनके भारी बदन के नीचे दबी

होने के बावज़ूद भी सर से पैर तक हिल जाती थी।

सुरेश चाचा गुर्रा कर मेरे मुंह में फुसफुसाए, "नेहा बेटा, मैं आब आपकी चूत में आने वाला हूँ।"

मैं सुरेश चाचा के होंठों को और भी जोर से चूसने लगी, "चाचू अपना लंड मेरी चूत में खोल दीजिये। मेरी चूत में अपने लंड का वीर्य भर दीजिये।"

मेरे मुंह से बिना किसी शर्म के अश्लील शब्द स्वतः ही निकलने लगे।

चाचू के थरथराते लंड के सुपाड़े ने मेरे गर्भाशय के ऊपर जोर से ठोकड़ मार कर अचानक मेरी चूत को गरम, जननक्षम गाढ़े वीर्य से भरना शुरू कर दिया।

मेरी चूत चाचू के विशाल लंड के गरम शहद की बौछारों के प्रभाव से एक बार फिर से झड़ने लगी। मैं कसमसा कर चाचू से लिपट गयी। मैंने अपने दाँतों से चाचू के होंठ को कस

कर दबोच लिया सुरेश चाचा के शक्तिशाली लंड ने न जाने कितनी बार फड़क कर गरम वीर्य की फुहार मेरे अविकसित गर्भाशय के ऊपर मारीं।

मैं चाचू की जानलेवा चुदाई से इतनी बार झड़ गयी थी कि मेरा शरीर शिथिल हो गया।

सुरेश चाचा भी भरी भारी सांस लेते हुए मेरे ऊपर पसर गए। उन्होंने भी मेरे मुंह और होंठो को कस कर चूसा।

सुरेश चाचा और मैं एक दुसरे से लिपटे मेरी भयंकर चुदाई की थकन को दूर होने का इंतज़ार करने लगे।


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