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सहेली क़ी खातिर पार्ट--4
गतांक से आगे............. “नहीं प्लीज़… यहाँ नहीं।” मैं फुसफुसा कर बोली। “कुछ नहीं होगा”दिनेश ने कहा। “आआआआआप दोनों क्या कर रहे हो… मैं आपके छोटे भाई की बीवी हूँ,” मैंने कहा, “मैं बर्बाद हो जऊँगी… प्लीज़ छोड़ दो मुझे।” “ठीक है।” दीपक ने कहा और फिर ड्राइवर से बोला “गाड़ी सन-व्यू होटल की तरफ ले चलो” ड्राइवर ने कुछ देर में होटल के पोर्च में लेजा कर कार रोकी। मैं तब तक अपने कपड़े वापस पहन चुकी थी। उनकी बाँहों में समाये मैं लाऊँज में पहुँची। दीपक ने अलग हो कर काऊँटर पर जा कर कुछ बात की और फिर हमारे पास आकर बोला कि चलो रूम नम्बर १८० में। दोनों मुझे लेकर फर्स्ट फ्लोर पर बने १८० नम्बर कमरे में आ गए। दोनों अंदर घुसते ही मुझ पर टूट पड़े। कुछ ही पलों में मैं पूरी तरह नंगी थी। दोनों इतने उतावले थे कि मुझे अपने सैंडल भी नहीं उतारने दिए और मुझे फटाफट उठाकर बिस्तर पर लिता दिया और मेरी टाँगें फैला दीं। दोनों अभी तक पूरे कपड़ों में थे। दिनेश ने अपने होंठ मेरे निप्पल पर लगाए और उसे मुँह में लेकर चूसने लगा। दीपक मेरे गालों पर अपने होंठ फिराने लगा। एक जाड़ी होंठ टाँगों की तरफ से मेरी चूत की तरफ बड़ रहे थे तो दूसरी जोड़ी होंठ मेरे माथे से फिसलते हुए गालों पर, कानों के पीछे से दोनों बाँहों को चूमते हुए मेरे होंठों पर आकर रुके। पूरे बदन में सिरहन सी दौड़ रही थी। मुझे लग रहा था कि दोनों देर क्यों कर रहे हैं… मुझे पकड़ कर अब तो बस मसल दें। दीपक ने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और अपनी जीभ को सारे मुँह में फिराने लगा। दूसरे की जीभ मेरे नीचे वाले मुँह में घूम रही थी। मैंने उत्तेजना में दिनेश का सिर अपने हाथों से अपनी चूत पर दबा दिया और उसकी जीभ को अपनी चूत के और अंदर लेने के लिए मैं अपनी कमर उचकाने लगी। मेरी टाँगें उठकर उसकी पीठ पर आपस में जुड़ कर उसके सिर को दबा रही थी। उधर दीपक के होंठ मेरे होंठों को छोड़ कर धीरे-धीरे नीचे सरकते हुए पहले मेरे गले पर और फिर धीरे धीरे मेरी चूंचियों के ऊपर फिरने लगे। मेरी पूरी चूंची को होंठों से नापने के बाद मेरे निप्पलों पर धीरे धीरे फिरने लगे। मैं उत्तेजना में पागल होने लगी। मुँह से “आआआआआहहहहह नहींईईईई ऊऊऊऊहहहहह” जैसी आवाजें निकलने लगी। बिना किसी का लंड अपने अंदर लिए और दोनों ने कपड़े उतारे बिना मुझे जोर से स्खलित होने पर मजबूर कर दिया। मैं गर्मी से हाँफ रही थी। मेरी बड़ी बड़ी चूंचियाँ हर साँस के साथ उठा गिर रही थीं। दोनों मुझे इसी हाल में छोड़ कर अपने अपने कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगे हो गए। मैं वहाँ लेटी लेटी उनके नंगे बदन को निहार रही थी। दोनों के लंड काफी लम्बे और मोटे थे, केशव की तरह। दीपक बिस्तर पर चढ़ कर लेट गया और मुझे अपने ऊपर लिटा लिया। मैंने अपनी टाँगें खोल कर उसके लंड को अपनी चूत पर लगाया और एक झटके में ही दीपक का लंड अपनी चूत के अंदर ले लिया। थोड़ी सी तकलीफ हुई मगर चूत बुरी तरह गीली होने के कारण एक बार में ही लंड अंदर तक चला गया। अब मैं उसके लंड पर धीरे धीरे उठने बैठने लगी। अब दिनेश बिस्तर पर चढ़ा और उस पर खड़ा होकर अपने लंड को मेरे होंठों से छुवाया। फिर मेरे मुँह को पकड़ कर अपने लंड को मेरे होंठों पर फिराने लगा। मैंने होंठ खोल कर उसके लंड को ऊपर से नीचे तक जीभ फिरायी। उसकी गोटियों को मुँह में लेकर कुछ देर तक चूसीं और फिर उसके लंड के ऊपर के छेद पर अपनी जीभ फिराने लगी। पहले अपने होंठों को थोड़ा सा खोल कर सिर्फ उसके लंड के ऊपर के सुपाड़े को तरह तरह से चूसा और फिर अपने मुँह को पूरी तरह खोल कर जितना हो सकता था उसके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। साथ साथ उसके लंड पर अपनी जीभ भी फिरा रही थी। दीपक मेरी चूंचियों को अपने दोनों हाथों से मसल रहा था। मैं उसके लंड पर तेजी से उठा बैठ रही थी। पूरे लंड को एक दम बाहर तक निकालती और फिर तेजी से उसे पूरा अंदर तक ले लेती। उसने मेरे निप्पलों को मसल-मसल कर बड़े बड़े कर दिए थे। वो मुझे अपनी कमर उठा उठा कर चोद रहा था। कुछ देर बाद दिनेश ने अपना लंड मेरे मुँह से निकाला। उसका लंड मेरे थूक से लिसड़ा हुआ चमक रहा था। मैंने उसकी तरफ देखा कि वो क्या करना चाहता है। मगर उसका जवाब दिया दीपक ने जब उसने मेरे निप्पलों को बुरी तरह मसलते हुए अपनी तरफ खींचा। मैं उसके सीने पर लेट गयी। दिनेश ने पीछे से आकर मेरे दोनों चूत्तड़ों को अलग कर के अपना लंड मेरी गाँड के छेद पर लगा कर ठेला मगर उसका लंड काफी मोटा होने के कारण अंदर नहीं जा पाया। उसने दोबारा मेरी गाँड के छेद को जितना हो सकता था उतना फैला कर अंदर ठेला मगर इस बार भी अंदर नहीं जा पाया। फिर उसने अपनी दो अँगुलियाँ दीपक के लंड के साथ साथ मेरी चूत में डाल दीं। जब अँगुलियाँ बाहर निकालीं तो उनमें मेरी चूत का रस लगा हुआ था। उसे उसने अपने लंड पर लगाया और दोबारा चूत के अंदर अँगुली डाल कर रस बाहर निकाला और मेरी गाँड की छेद में अँगुली डाल कर उस जगह को गील किय। फिर उसने अपना लंड वहाँ लगा कर जोर से ठोका। उसका लंड किसी तरह थोड़ा अंदर घुसा। दर्द की एक तेज लहर मेरे बदन में फैल गयी और मैं “आआआआहहहह” कर उठी। अपने सुपाड़े को अंदर कर वो कुछ देर के लिए रुका तो थोड़ा दर्द कम हुआ। कुछ देर बाद एक झटके में ही उसने पूरा का पूरा लंड मेरी गाँड के अंदर कर दिया। फिर तो दोनों भाइयों में होड़ लग गयी मुझे चोदने की। एक ऊपर से ठोक रहा था तो दूसरा नीचे से कमर उठा रहा था। “हहहहम्म्म्म्म्*फफफफफ उउउउहहहहह फफफफ” जैसी आवाजें तीनों के मुँह से निकल रही थीं। तीनों पसीने से तरबतर हो गए। बहुत शक्ति थी दोनों में। करीब घंटे भर तक चलती रहा मेरी चूत और गाँड की चुदाई। फिर पहले दीपक के लंड ने अपनी पिचकारी छोड़ी और फिर दिनेश ने मेरी गाँड को अपने लंड के पानी से भर दिया। मैं तो पहले ही अपनी चूत का रस कईं बार छोड़ चुकी थी। हम तीनों एक दूसरे के ऊपर ही कुछ देर तक लेटे रहे। फिर दूसरे दौर के लिए तैयारी करने लगे। कईं घंटों तक यूँ ही चुदाई का दौर चलता रहा जब तक हम तीनों थक कर चूर न हो गए। शाम को तीनों उठ कर कपड़े पहन कर सन-सेट पाईंट देखने गए। मुझे उन्होंने पैंटी और ब्रा नहीं पहनने दीं। सीने पर सिर्फ साड़ी लपेट रखी थी क्योंकि ब्लाऊज़ भी उन्होंने पहनने से रोक दिया था। शॉल ओढ़ रखी थी इसलिए किसी को पता नहीं चल रहा था। मगर रास्ते में दोनों मेरे चूंचियाँ मसलते रहे। वो जगह बहुत ही रोमाँटिक लगी। घनी पहाड़ियों के बीच सूरज अस्त हो रहा था। बर्फ की चोटियाँ लाल रंग से नहायी हुई थीं और ऐसा लग रहा था मानो बर्फ में आग लग गयी हो। बहुत ही रोमाँटिक दृश्य था। हल्का हल्का अँधेरा होने लगा तो दोनों मुझे बारी बारी अपने सीने से लिपटा रहे थे। मैं भी उनसे लिपट कर किस कर रही थी। वहाँ से हम घर लौटे। घर में हम आपस में सामान्य बर्ताव करने लगे। राज की तबियत थोड़ी ठीक हुई थी मगर अभी भी एक दम स्वस्थ होने में समय लगने वाला था। दोनों ने डिनर के वक्त सबको सुनाते हुए कहा,”अनिता कल यहाँ से कोई ८० किलोमिटर दूर एक बहुत ही प्यारी जगह है… सुबह वहाँ के लिए निकलना है और लौटते हुए देर रात हो जायेगी” बुआ जी यह सुनते ही बोलीं, “नहीं कोई जरूरत नहीं रात को इन पहाड़ियों में ड्राइव करने की। दिनेश ये तो नई है लेकिन तू क्या पागल हो गया है। रात को वहीं रुक जाना। तेरा दोस्त है ना बाबू उसके घर रुक जाना।” मैंने पल भर के लिए दिनेश और दीपक की तरफ देखा तो दोनों कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे। मैं समझ गयी थी कि दोनों मुझे क्या क्या दिखाने वाले हैं रात भर। अगले दिन सुबह हम वहाँ के लिए निकल पड़े। दो घंटे में वहाँ पहुँच गए। वहाँ सारी जगह घूमने के बाद उनके दोस्त बाबू के घर गये। वहाँ उनका भरा पूरा परिवार था इसलिए एक होटल में ही कमरा बुक किया। शाम को बाबू भी आ गया था। तीनों की महफिल जमी। मैंने बदल कर एक पारदर्शी ब्लाऊज़ और पेटीकोट और साथ में बहुत ही हाई हील के सैंडल पहन लिये था। उन्होंने और कुछ पहनने ही नहीं दिया। मैंने तीनों के ग्लास में पैग बनाये। स्टीरियो पर एक डाँस नम्बर लगा दिया था। उनके कहने पर मैंने भी ज़िंदगी में पहली बार व्हिस्की पी। किसी तरह नाक सिकोड़ कर दो ग्लास खाली कर दिये। लेकिन इसी में ही मेरा सिर घूमने लगा। मेरे साथ तीनों बारी बारी थिरक रहे थे और डाँस करते करते कामुकता से मेरे बदन पर हाथ फिराते हुए मेरे होंठों को चूस रहे थे। मैं भी उनके साथ पूरे मूड में थी और मैं उनके सथ ही खूब अपने बदन को रगड़ रही थी। तभी डाँस करते करते मुझे दिनेश ने पीछे से पकड़ा और मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोलने लगा। बाबू मेरे पेटीकोट को ऊँचा कर के मेरी चूत के ऊपर से सहलाने लगा। दीपक मेरे पेटीकोट के ना़ड़े से उलझा हुआ था। उसमें गाँठ पड़ गयी तो उसने एक झटके में नाड़े को तोड़ दिया। तब तक दिनेश मेरे ब्लाऊज़ को बदन से अलग कर चुका था। अब मैं पूरी तरह नंगी हो गयी और सिर्फ हाई हील सैंडल पहने थिरकने लगी। फिर मैंने भी तीनों के कपड़े उतार कर उन्हें बिल्कुल नंगा कर दिया और हम एक दूसरे के बदन मसलने लगे। तीनों ने मुझे घुटनों पर बिठा दिया और तीन मोटे तगड़े लंड मेरे सामने झटके खा रहे थे। मैं बारी बारी से तीनों के लंड चूस रही थी। एक के लंड को कुछ देर तक मुँह में लेकर चूसती और फिर पूरे लंड पर जीभ फिराती और बीच बीच में अन्ड-कोशों पर भी अपनी जीभ फिराती। फिर उसे छोड़ कर यही सब दूसर;े लंड के साथ करती। तीनों बहुत ज्यादा उत्तेजित हो चुके थे। फिर उन्होंने मुझे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। दिनेश को मेरी चूत चाटने में बहुत मजा आता था इसलिए वो मेरी चूत पर अपना मुँह रख कर अपनी जीभ अंदर डाल कर मेरे रस को चाटने लगा। दीपक मेरी चूंचियों पर चढ़ बैठा। उसके लंड को दोनों चूंचियों के बीच में लेकर मैंने अपनी दोनों चूंचियों को अपने हाथों से जोड़ रखा था। वो मेरी चूंचियों के बीच अपना लंड आगे पीछे करने लगा। बाबू ने मेरी बगल में आकर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया। तीनों अब मेरे शरीर से खेलने लगे। मैं भी बहुत गरम हो गयी थी। इन सब के बीच मेरा एक बार पानी निकल गया। सबसे पहले दीपक ने मेरी चूंचियों और चेहरे के ऊपर अपने लंड का पानी गिरा दिया। फिर बाकी दोनों ने मुझे उठा कर घोड़ी की तरह बनाया और पीछे की तरफ से मेरी चूत में बाबू ने अपना लंड डाल दिया। दिनेश के लंड को अभी भी मैं चूस रही थी। मैंने अपनी चूत का पानी दूसरी बार बाबू के लंड पर छोड़ दिया। दोनों काफी देर तक मुझे इसी तरह चोदते रहे और फिर दोनों एक साथ झड़ गए। बाबू के पानी ने मेरी चूत को भर दिया और दिनेश ने मेरे मुँह को अपने वीर्य से भर दिया। कुछ देर मेरे मुँह में स्खलित होने के बाद दिनेश ने अपना लंड मेरे मुँह से खींच कर बाहर निकाल लिया और बाकी ढेर सारा वीर्य मेरे चेहरे पर और मेरे चूंचियों पर गिरा दिया। तीनों थक कर पसर गये। मैं खुद को साफ करने के लिए उठना चाहती थी मगर उन्होंने मुझे उठने नहीं दिया और मुझे वैसे ही वीर्य से सने हुए पड़े रहने को कहा। इसी तरह आसन बदल-बदल कर रात भर और कईं दौर चले। दीपक और दिनेश तो दो दिन से काफी मेहनत कर रहे थे इसलिए मुझ में दो बार स्खलित हो कर थक गये। मगर बाबू ने मुझे रात भर काफी चोदा। सुबह हम नहा धो कर तैयार होकर वापस आ गये। मैं थक कर चूर हो रही थी। बुआ ने मुझे पूछा, “क्यों रात को ढँग से सो नहीं पायी क्या?” मैंने सहमती में सिर हिलाया। दीपक मुझे देख कर मुस्कुरा दिया। अगले दिन तक राज ठीक हो गया था लेकिन तब तक मैंने काफी सैर कर ली थी। बहुत घुड़सवारी हो चुकी थी मेरी। उसके बाद भी मौका निकाल कर उन दोनों ने मुझे कईं बार चोदा। हफ्ते भर बाद हम वापस आ गए और उसके बाद उनसे मुलाकात ही नहीं हुई दोबारा। मैं अपनी ससुराल में काफी खुश थी। मुझे बहुत अच्छा ससुराल मिला था। राज शेखर की बहुत ही अच्छी नौकरी थी। वो एक कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर थे। काफी अच्छी सैलरी और पर्क्स थे। मुझे मेरी प्यारी सहेली एक ननद के रूप में मिली थी। हम दोनों में खूब घु थी। केशव कभी-कभी आता था मगर मैं उससे हमेशा बचती थी। अब उसका साथ भी अच्छा लगने लगा था। उसने रिटा के प्रेगनेंनसी की बात झूठी सुनायी थी, जिससे कि मैं विरोध छोड़ दूँ। लेकिन केशव ने मुझे ग्रूप सैक्स का जो चस्का लगाया था उसे दीपक और दिनेश ने जम कर हवा दे दी थी। अब हालत यह थी कि मुझे एक से चुदवाने में उतना मजा नहीं आता था, लगता था सारे छेद एक साथ बींध दे कोई। रिटा और केशव दोनों खूब चुदाई करते थे। राज कभी कभी कईं दिनों तक बाहर रहता था और तब मुझे सैक्स की भूख बहुत सताती थी। मैं केशव को ज्यादा लिफ्ट नहीं देना चाहती थी। केशव कीjoint familyथी। उसमे उसके अलावा दो बड़े भाई और दो बहनें थीं। दो भाई और एक बहन की शादी हो चुकी थी। अब केशव और सबसे छोटी बहन बची थी सिर्फ। रिटा की शादी एक साल बाद दिसंबर के महीने में तय हुई। उसकी शादी गाँव से हो रही थी। मैं पहली बार उसकी शादी के सिलसिले में गाँव पहुँची। वहाँ आबादी कुछ कम थी। पुराने तरह के मकान थे। राज के परिवार वालों का पुशतैनी मकान अच्छा था। उसके ताऊजी वहाँ रहते थे। मुझे खुली-खुली हवा में सोंधी-सोंधी मिट्टी की खुशबू बहुत अच्छी लगी। कमरे कम थे इसलिए एक ही कमरे में जमीन पर बिस्तर लगता था। शाम को जिसे जहाँ जगह मिलती सो जाता। एक रात को मैं काम निबटा कर सोने आयी तो देखा कि मेरे राज के पास कोई जगह ही नहीं बची। वहाँ कुछ बुजुर्ग सो रहे थे। बाकी सब सो चुके थे, सिर्फ मैं और माताजी यानि मेरी सास बची थी। वो भी कहीं जगह देख कर लुढ़क पड़ी। मैंने दो कमरे देखे मगर कोई जगह नहीं मिली। फिर एक कमरे में देखा कि बीच में कुछ जगह खाली है। सर्दी के कारण सब रजाई ओढ़े हुए थे और रोशनी कम होने के कारण पता नहीं चल रहा था कि मेरे दोनों और कौन कौन हैं। मैं काफी थकी हुई थी इसलिए लेटते ही नींद आ गयी। मैं चित्त होकर सो रही थी। बदन पर एक सूती साड़ी और ब्लाऊज़ था। सोते वक्त मैं हमेशा अपनी ब्रा और पैंटी उतार कर सोती थी। अभी सोये हुए कुछ ही देर हुई होगी कि मुझे लगा कि कोई हाथ मेरे बदन पर साँप की तरह रेंग रहा है। मैं चुपचाप पड़ी रही। वो हाथ मेरी चूंची पर आकर रुके। उसने धीरे से मेरी साड़ी हटा कर मेरे ब्लाऊज़ के अंदर हाथ डाला। वो मेरे निप्पलों को अपनी अँगुलियों से दबाने लगा। मैं गरम होने लगी उसकी हर्कतों से। मैंने कोशिश की जानने की कि मेरे बदन से खेलने वाला कौन है। मगर कुछ पता नहीं चला क्योंकि मैं हिल भी नहीं पा रही थी। वो काफी देर तक मेरे निप्पलों से खेलता रहा। उसकी हर्कतों से मेरे निप्पल सख्त हो गये और मेरी चूंची भी एक दम ठोस हो गयी। अब उसके हाथ मेरी नंगे पेट पर घूमते हुए नीचे बढ़े। उसने अपना हाथ मेरी साड़ी के अंदर डालना चाहा लेकिन नाड़ा कस कर बँधा होने के कारण वो अपना हाथ साड़ी के अंदर नहीं डाल पाया। उसने मेरी साड़ी उठानी शुरू कर दी। क्रमशः.............
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सहेली क़ी खातिर पार्ट--4
गतांक से आगे............. “नहीं प्लीज़… यहाँ नहीं।” मैं फुसफुसा कर बोली। “कुछ नहीं होगा”दिनेश ने कहा। “आआआआआप दोनों क्या कर रहे हो… मैं आपके छोटे भाई की बीवी हूँ,” मैंने कहा, “मैं बर्बाद हो जऊँगी… प्लीज़ छोड़ दो मुझे।” “ठीक है।” दीपक ने कहा और फिर ड्राइवर से बोला “गाड़ी सन-व्यू होटल की तरफ ले चलो” ड्राइवर ने कुछ देर में होटल के पोर्च में लेजा कर कार रोकी। मैं तब तक अपने कपड़े वापस पहन चुकी थी। उनकी बाँहों में समाये मैं लाऊँज में पहुँची। दीपक ने अलग हो कर काऊँटर पर जा कर कुछ बात की और फिर हमारे पास आकर बोला कि चलो रूम नम्बर १८० में। दोनों मुझे लेकर फर्स्ट फ्लोर पर बने १८० नम्बर कमरे में आ गए। दोनों अंदर घुसते ही मुझ पर टूट पड़े। कुछ ही पलों में मैं पूरी तरह नंगी थी। दोनों इतने उतावले थे कि मुझे अपने सैंडल भी नहीं उतारने दिए और मुझे फटाफट उठाकर बिस्तर पर लिता दिया और मेरी टाँगें फैला दीं। दोनों अभी तक पूरे कपड़ों में थे। दिनेश ने अपने होंठ मेरे निप्पल पर लगाए और उसे मुँह में लेकर चूसने लगा। दीपक मेरे गालों पर अपने होंठ फिराने लगा। एक जाड़ी होंठ टाँगों की तरफ से मेरी चूत की तरफ बड़ रहे थे तो दूसरी जोड़ी होंठ मेरे माथे से फिसलते हुए गालों पर, कानों के पीछे से दोनों बाँहों को चूमते हुए मेरे होंठों पर आकर रुके। पूरे बदन में सिरहन सी दौड़ रही थी। मुझे लग रहा था कि दोनों देर क्यों कर रहे हैं… मुझे पकड़ कर अब तो बस मसल दें। दीपक ने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और अपनी जीभ को सारे मुँह में फिराने लगा। दूसरे की जीभ मेरे नीचे वाले मुँह में घूम रही थी। मैंने उत्तेजना में दिनेश का सिर अपने हाथों से अपनी चूत पर दबा दिया और उसकी जीभ को अपनी चूत के और अंदर लेने के लिए मैं अपनी कमर उचकाने लगी। मेरी टाँगें उठकर उसकी पीठ पर आपस में जुड़ कर उसके सिर को दबा रही थी। उधर दीपक के होंठ मेरे होंठों को छोड़ कर धीरे-धीरे नीचे सरकते हुए पहले मेरे गले पर और फिर धीरे धीरे मेरी चूंचियों के ऊपर फिरने लगे। मेरी पूरी चूंची को होंठों से नापने के बाद मेरे निप्पलों पर धीरे धीरे फिरने लगे। मैं उत्तेजना में पागल होने लगी। मुँह से “आआआआआहहहहह नहींईईईई ऊऊऊऊहहहहह” जैसी आवाजें निकलने लगी। बिना किसी का लंड अपने अंदर लिए और दोनों ने कपड़े उतारे बिना मुझे जोर से स्खलित होने पर मजबूर कर दिया। मैं गर्मी से हाँफ रही थी। मेरी बड़ी बड़ी चूंचियाँ हर साँस के साथ उठा गिर रही थीं। दोनों मुझे इसी हाल में छोड़ कर अपने अपने कपड़े उतार कर बिल्कुल नंगे हो गए। मैं वहाँ लेटी लेटी उनके नंगे बदन को निहार रही थी। दोनों के लंड काफी लम्बे और मोटे थे, केशव की तरह। दीपक बिस्तर पर चढ़ कर लेट गया और मुझे अपने ऊपर लिटा लिया। मैंने अपनी टाँगें खोल कर उसके लंड को अपनी चूत पर लगाया और एक झटके में ही दीपक का लंड अपनी चूत के अंदर ले लिया। थोड़ी सी तकलीफ हुई मगर चूत बुरी तरह गीली होने के कारण एक बार में ही लंड अंदर तक चला गया। अब मैं उसके लंड पर धीरे धीरे उठने बैठने लगी। अब दिनेश बिस्तर पर चढ़ा और उस पर खड़ा होकर अपने लंड को मेरे होंठों से छुवाया। फिर मेरे मुँह को पकड़ कर अपने लंड को मेरे होंठों पर फिराने लगा। मैंने होंठ खोल कर उसके लंड को ऊपर से नीचे तक जीभ फिरायी। उसकी गोटियों को मुँह में लेकर कुछ देर तक चूसीं और फिर उसके लंड के ऊपर के छेद पर अपनी जीभ फिराने लगी। पहले अपने होंठों को थोड़ा सा खोल कर सिर्फ उसके लंड के ऊपर के सुपाड़े को तरह तरह से चूसा और फिर अपने मुँह को पूरी तरह खोल कर जितना हो सकता था उसके लंड को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। साथ साथ उसके लंड पर अपनी जीभ भी फिरा रही थी। दीपक मेरी चूंचियों को अपने दोनों हाथों से मसल रहा था। मैं उसके लंड पर तेजी से उठा बैठ रही थी। पूरे लंड को एक दम बाहर तक निकालती और फिर तेजी से उसे पूरा अंदर तक ले लेती। उसने मेरे निप्पलों को मसल-मसल कर बड़े बड़े कर दिए थे। वो मुझे अपनी कमर उठा उठा कर चोद रहा था। कुछ देर बाद दिनेश ने अपना लंड मेरे मुँह से निकाला। उसका लंड मेरे थूक से लिसड़ा हुआ चमक रहा था। मैंने उसकी तरफ देखा कि वो क्या करना चाहता है। मगर उसका जवाब दिया दीपक ने जब उसने मेरे निप्पलों को बुरी तरह मसलते हुए अपनी तरफ खींचा। मैं उसके सीने पर लेट गयी। दिनेश ने पीछे से आकर मेरे दोनों चूत्तड़ों को अलग कर के अपना लंड मेरी गाँड के छेद पर लगा कर ठेला मगर उसका लंड काफी मोटा होने के कारण अंदर नहीं जा पाया। उसने दोबारा मेरी गाँड के छेद को जितना हो सकता था उतना फैला कर अंदर ठेला मगर इस बार भी अंदर नहीं जा पाया। फिर उसने अपनी दो अँगुलियाँ दीपक के लंड के साथ साथ मेरी चूत में डाल दीं। जब अँगुलियाँ बाहर निकालीं तो उनमें मेरी चूत का रस लगा हुआ था। उसे उसने अपने लंड पर लगाया और दोबारा चूत के अंदर अँगुली डाल कर रस बाहर निकाला और मेरी गाँड की छेद में अँगुली डाल कर उस जगह को गील किय। फिर उसने अपना लंड वहाँ लगा कर जोर से ठोका। उसका लंड किसी तरह थोड़ा अंदर घुसा। दर्द की एक तेज लहर मेरे बदन में फैल गयी और मैं “आआआआहहहह” कर उठी। अपने सुपाड़े को अंदर कर वो कुछ देर के लिए रुका तो थोड़ा दर्द कम हुआ। कुछ देर बाद एक झटके में ही उसने पूरा का पूरा लंड मेरी गाँड के अंदर कर दिया। फिर तो दोनों भाइयों में होड़ लग गयी मुझे चोदने की। एक ऊपर से ठोक रहा था तो दूसरा नीचे से कमर उठा रहा था। “हहहहम्म्म्म्म्*फफफफफ उउउउहहहहह फफफफ” जैसी आवाजें तीनों के मुँह से निकल रही थीं। तीनों पसीने से तरबतर हो गए। बहुत शक्ति थी दोनों में। करीब घंटे भर तक चलती रहा मेरी चूत और गाँड की चुदाई। फिर पहले दीपक के लंड ने अपनी पिचकारी छोड़ी और फिर दिनेश ने मेरी गाँड को अपने लंड के पानी से भर दिया। मैं तो पहले ही अपनी चूत का रस कईं बार छोड़ चुकी थी। हम तीनों एक दूसरे के ऊपर ही कुछ देर तक लेटे रहे। फिर दूसरे दौर के लिए तैयारी करने लगे। कईं घंटों तक यूँ ही चुदाई का दौर चलता रहा जब तक हम तीनों थक कर चूर न हो गए। शाम को तीनों उठ कर कपड़े पहन कर सन-सेट पाईंट देखने गए। मुझे उन्होंने पैंटी और ब्रा नहीं पहनने दीं। सीने पर सिर्फ साड़ी लपेट रखी थी क्योंकि ब्लाऊज़ भी उन्होंने पहनने से रोक दिया था। शॉल ओढ़ रखी थी इसलिए किसी को पता नहीं चल रहा था। मगर रास्ते में दोनों मेरे चूंचियाँ मसलते रहे। वो जगह बहुत ही रोमाँटिक लगी। घनी पहाड़ियों के बीच सूरज अस्त हो रहा था। बर्फ की चोटियाँ लाल रंग से नहायी हुई थीं और ऐसा लग रहा था मानो बर्फ में आग लग गयी हो। बहुत ही रोमाँटिक दृश्य था। हल्का हल्का अँधेरा होने लगा तो दोनों मुझे बारी बारी अपने सीने से लिपटा रहे थे। मैं भी उनसे लिपट कर किस कर रही थी। वहाँ से हम घर लौटे। घर में हम आपस में सामान्य बर्ताव करने लगे। राज की तबियत थोड़ी ठीक हुई थी मगर अभी भी एक दम स्वस्थ होने में समय लगने वाला था। दोनों ने डिनर के वक्त सबको सुनाते हुए कहा,”अनिता कल यहाँ से कोई ८० किलोमिटर दूर एक बहुत ही प्यारी जगह है… सुबह वहाँ के लिए निकलना है और लौटते हुए देर रात हो जायेगी” बुआ जी यह सुनते ही बोलीं, “नहीं कोई जरूरत नहीं रात को इन पहाड़ियों में ड्राइव करने की। दिनेश ये तो नई है लेकिन तू क्या पागल हो गया है। रात को वहीं रुक जाना। तेरा दोस्त है ना बाबू उसके घर रुक जाना।” मैंने पल भर के लिए दिनेश और दीपक की तरफ देखा तो दोनों कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे। मैं समझ गयी थी कि दोनों मुझे क्या क्या दिखाने वाले हैं रात भर। अगले दिन सुबह हम वहाँ के लिए निकल पड़े। दो घंटे में वहाँ पहुँच गए। वहाँ सारी जगह घूमने के बाद उनके दोस्त बाबू के घर गये। वहाँ उनका भरा पूरा परिवार था इसलिए एक होटल में ही कमरा बुक किया। शाम को बाबू भी आ गया था। तीनों की महफिल जमी। मैंने बदल कर एक पारदर्शी ब्लाऊज़ और पेटीकोट और साथ में बहुत ही हाई हील के सैंडल पहन लिये था। उन्होंने और कुछ पहनने ही नहीं दिया। मैंने तीनों के ग्लास में पैग बनाये। स्टीरियो पर एक डाँस नम्बर लगा दिया था। उनके कहने पर मैंने भी ज़िंदगी में पहली बार व्हिस्की पी। किसी तरह नाक सिकोड़ कर दो ग्लास खाली कर दिये। लेकिन इसी में ही मेरा सिर घूमने लगा। मेरे साथ तीनों बारी बारी थिरक रहे थे और डाँस करते करते कामुकता से मेरे बदन पर हाथ फिराते हुए मेरे होंठों को चूस रहे थे। मैं भी उनके साथ पूरे मूड में थी और मैं उनके सथ ही खूब अपने बदन को रगड़ रही थी। तभी डाँस करते करते मुझे दिनेश ने पीछे से पकड़ा और मेरे ब्लाऊज़ के बटन खोलने लगा। बाबू मेरे पेटीकोट को ऊँचा कर के मेरी चूत के ऊपर से सहलाने लगा। दीपक मेरे पेटीकोट के ना़ड़े से उलझा हुआ था। उसमें गाँठ पड़ गयी तो उसने एक झटके में नाड़े को तोड़ दिया। तब तक दिनेश मेरे ब्लाऊज़ को बदन से अलग कर चुका था। अब मैं पूरी तरह नंगी हो गयी और सिर्फ हाई हील सैंडल पहने थिरकने लगी। फिर मैंने भी तीनों के कपड़े उतार कर उन्हें बिल्कुल नंगा कर दिया और हम एक दूसरे के बदन मसलने लगे। तीनों ने मुझे घुटनों पर बिठा दिया और तीन मोटे तगड़े लंड मेरे सामने झटके खा रहे थे। मैं बारी बारी से तीनों के लंड चूस रही थी। एक के लंड को कुछ देर तक मुँह में लेकर चूसती और फिर पूरे लंड पर जीभ फिराती और बीच बीच में अन्ड-कोशों पर भी अपनी जीभ फिराती। फिर उसे छोड़ कर यही सब दूसर;े लंड के साथ करती। तीनों बहुत ज्यादा उत्तेजित हो चुके थे। फिर उन्होंने मुझे उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया। दिनेश को मेरी चूत चाटने में बहुत मजा आता था इसलिए वो मेरी चूत पर अपना मुँह रख कर अपनी जीभ अंदर डाल कर मेरे रस को चाटने लगा। दीपक मेरी चूंचियों पर चढ़ बैठा। उसके लंड को दोनों चूंचियों के बीच में लेकर मैंने अपनी दोनों चूंचियों को अपने हाथों से जोड़ रखा था। वो मेरी चूंचियों के बीच अपना लंड आगे पीछे करने लगा। बाबू ने मेरी बगल में आकर अपना लंड मेरे मुँह में घुसेड़ दिया। तीनों अब मेरे शरीर से खेलने लगे। मैं भी बहुत गरम हो गयी थी। इन सब के बीच मेरा एक बार पानी निकल गया। सबसे पहले दीपक ने मेरी चूंचियों और चेहरे के ऊपर अपने लंड का पानी गिरा दिया। फिर बाकी दोनों ने मुझे उठा कर घोड़ी की तरह बनाया और पीछे की तरफ से मेरी चूत में बाबू ने अपना लंड डाल दिया। दिनेश के लंड को अभी भी मैं चूस रही थी। मैंने अपनी चूत का पानी दूसरी बार बाबू के लंड पर छोड़ दिया। दोनों काफी देर तक मुझे इसी तरह चोदते रहे और फिर दोनों एक साथ झड़ गए। बाबू के पानी ने मेरी चूत को भर दिया और दिनेश ने मेरे मुँह को अपने वीर्य से भर दिया। कुछ देर मेरे मुँह में स्खलित होने के बाद दिनेश ने अपना लंड मेरे मुँह से खींच कर बाहर निकाल लिया और बाकी ढेर सारा वीर्य मेरे चेहरे पर और मेरे चूंचियों पर गिरा दिया। तीनों थक कर पसर गये। मैं खुद को साफ करने के लिए उठना चाहती थी मगर उन्होंने मुझे उठने नहीं दिया और मुझे वैसे ही वीर्य से सने हुए पड़े रहने को कहा। इसी तरह आसन बदल-बदल कर रात भर और कईं दौर चले। दीपक और दिनेश तो दो दिन से काफी मेहनत कर रहे थे इसलिए मुझ में दो बार स्खलित हो कर थक गये। मगर बाबू ने मुझे रात भर काफी चोदा। सुबह हम नहा धो कर तैयार होकर वापस आ गये। मैं थक कर चूर हो रही थी। बुआ ने मुझे पूछा, “क्यों रात को ढँग से सो नहीं पायी क्या?” मैंने सहमती में सिर हिलाया। दीपक मुझे देख कर मुस्कुरा दिया। अगले दिन तक राज ठीक हो गया था लेकिन तब तक मैंने काफी सैर कर ली थी। बहुत घुड़सवारी हो चुकी थी मेरी। उसके बाद भी मौका निकाल कर उन दोनों ने मुझे कईं बार चोदा। हफ्ते भर बाद हम वापस आ गए और उसके बाद उनसे मुलाकात ही नहीं हुई दोबारा। मैं अपनी ससुराल में काफी खुश थी। मुझे बहुत अच्छा ससुराल मिला था। राज शेखर की बहुत ही अच्छी नौकरी थी। वो एक कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर थे। काफी अच्छी सैलरी और पर्क्स थे। मुझे मेरी प्यारी सहेली एक ननद के रूप में मिली थी। हम दोनों में खूब घु थी। केशव कभी-कभी आता था मगर मैं उससे हमेशा बचती थी। अब उसका साथ भी अच्छा लगने लगा था। उसने रिटा के प्रेगनेंनसी की बात झूठी सुनायी थी, जिससे कि मैं विरोध छोड़ दूँ। लेकिन केशव ने मुझे ग्रूप सैक्स का जो चस्का लगाया था उसे दीपक और दिनेश ने जम कर हवा दे दी थी। अब हालत यह थी कि मुझे एक से चुदवाने में उतना मजा नहीं आता था, लगता था सारे छेद एक साथ बींध दे कोई। रिटा और केशव दोनों खूब चुदाई करते थे। राज कभी कभी कईं दिनों तक बाहर रहता था और तब मुझे सैक्स की भूख बहुत सताती थी। मैं केशव को ज्यादा लिफ्ट नहीं देना चाहती थी। केशव कीjoint familyथी। उसमे उसके अलावा दो बड़े भाई और दो बहनें थीं। दो भाई और एक बहन की शादी हो चुकी थी। अब केशव और सबसे छोटी बहन बची थी सिर्फ। रिटा की शादी एक साल बाद दिसंबर के महीने में तय हुई। उसकी शादी गाँव से हो रही थी। मैं पहली बार उसकी शादी के सिलसिले में गाँव पहुँची। वहाँ आबादी कुछ कम थी। पुराने तरह के मकान थे। राज के परिवार वालों का पुशतैनी मकान अच्छा था। उसके ताऊजी वहाँ रहते थे। मुझे खुली-खुली हवा में सोंधी-सोंधी मिट्टी की खुशबू बहुत अच्छी लगी। कमरे कम थे इसलिए एक ही कमरे में जमीन पर बिस्तर लगता था। शाम को जिसे जहाँ जगह मिलती सो जाता। एक रात को मैं काम निबटा कर सोने आयी तो देखा कि मेरे राज के पास कोई जगह ही नहीं बची। वहाँ कुछ बुजुर्ग सो रहे थे। बाकी सब सो चुके थे, सिर्फ मैं और माताजी यानि मेरी सास बची थी। वो भी कहीं जगह देख कर लुढ़क पड़ी। मैंने दो कमरे देखे मगर कोई जगह नहीं मिली। फिर एक कमरे में देखा कि बीच में कुछ जगह खाली है। सर्दी के कारण सब रजाई ओढ़े हुए थे और रोशनी कम होने के कारण पता नहीं चल रहा था कि मेरे दोनों और कौन कौन हैं। मैं काफी थकी हुई थी इसलिए लेटते ही नींद आ गयी। मैं चित्त होकर सो रही थी। बदन पर एक सूती साड़ी और ब्लाऊज़ था। सोते वक्त मैं हमेशा अपनी ब्रा और पैंटी उतार कर सोती थी। अभी सोये हुए कुछ ही देर हुई होगी कि मुझे लगा कि कोई हाथ मेरे बदन पर साँप की तरह रेंग रहा है। मैं चुपचाप पड़ी रही। वो हाथ मेरी चूंची पर आकर रुके। उसने धीरे से मेरी साड़ी हटा कर मेरे ब्लाऊज़ के अंदर हाथ डाला। वो मेरे निप्पलों को अपनी अँगुलियों से दबाने लगा। मैं गरम होने लगी उसकी हर्कतों से। मैंने कोशिश की जानने की कि मेरे बदन से खेलने वाला कौन है। मगर कुछ पता नहीं चला क्योंकि मैं हिल भी नहीं पा रही थी। वो काफी देर तक मेरे निप्पलों से खेलता रहा। उसकी हर्कतों से मेरे निप्पल सख्त हो गये और मेरी चूंची भी एक दम ठोस हो गयी। अब उसके हाथ मेरी नंगे पेट पर घूमते हुए नीचे बढ़े। उसने अपना हाथ मेरी साड़ी के अंदर डालना चाहा लेकिन नाड़ा कस कर बँधा होने के कारण वो अपना हाथ साड़ी के अंदर नहीं डाल पाया। उसने मेरी साड़ी उठानी शुरू कर दी। क्रमशः.............
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