FUN-MAZA-MASTI
सुरेश चाचा और बड़े मामा के लंड भयानक तेज़ी और ताकत से नम्रता चाची दोनों गलियारों को अपने भीमकाय लंदों से मर्दन करने लगे। नम्रता
चाची के सिस्कारियां और चीखें मिल कर काम-वासना का संगीत बन गयीं।
पांच दस मिनट के बाद ही नम्रता चाची घुटी घुटी चीख के साथ झड़ गयीं,"हाय, कितना दर्द ... मैं झड़ने वाली हूँ ... ओओओओः और जोर से आह
...आ ...आ ....आं ,...आँ ...हाय माँ।"
बड़े मामा ने मुझे अपनी चूत में उंगली करते हुए देख कर अपने मूंह की तरफ खींचा।
मैंने अपनी चूत बड़े मामा के मूंह पर टिका दी। उनके होंठो और जीभ ने बिना देर किये मुझे भी रति-निष्पति के द्वार पर ला पटका।
मैं भी सिस्कार मार कर झड़ गयी। नम्रता चाची ने मेरे फड़कते हुए चूचियों के ऊपर अपना बिलखता हुआ मूंह दबा दिया। उनके दांत और होंठों ने मेरी
चूचियों को चूसना और काटना शुरू कर दिया।
बड़े मामा के मूंह और जीभ ने मेरी चूत की तंग सुरंग और भग-शिश्न को तरसा तड़पा कर मेरी चूत को फिर से उत्तेजित कर दिया।
नम्रता चाची की चूत और गांड का मर्दन निर्ममता से चलता रहा। जैसे ही मैं और नम्रता चाची फिर से झड़ने वाले थीं, सुरेश चाचा और बड़े मामा ने
अपने लंड सुपाड़े तक निकाल कर एक ही धक्के से नम्रता चाची की चूत और गांड में मोटी जड़ तक ठूंस दिये।
नम्रता चाची दर्द और आनंद के अतिरेक से बिलबिला उठीं और उन्होंने मेरी चूचुक को अपने दातों से कस कर दबोच लिया। मेरी भी चीख उबल उठी।
हम दोनों कामानंद से अभिभूत कांपते हुए फिर से झड़ गयीं।
बड़े मामा और सुरेश चाचा ने अगले घंटे तक बिना धीमे हुए और रुके नम्रता चाची के दोनों गलियारों को बेदर्दी से कुचल दिया। नम्रता चाची की
आनंद से भरी सिस्कारियां और चीखें कमरे की दीवारों से टकरा कर हम सबकी काम -वासना को और भी उत्तेजित करने लगीं।
मैं भी न जाने कितनी बार झड़ चुकी थी। मेरा शरीर अनगिनत रति-निष्पति की थकन से शिथिल हो चला।
बड़े मामा ने मेरे क्लिटोरिस को अपने होंठो और दांतों से मसल कर फिर से मुझे झाड़ दिया।
नम्रता चाची भी मेरे साथ हाँफते हुए झड़ रहीं थीं। सुरेश चाचा ने एक खूंखार धक्के के साथ अपने लंड का गरम वीर्य के अनेकों फुव्वारों से नम्रता
चाची की गांड को नहला दिया।
बड़े मामा ने भी अपने जननक्षम वीर्य से नम्रता चाची के गर्भाशय को सराबोर कर दिया।
मैं शिथिल अवस्था में बिस्तर पर गिर कर गहरी नींद में डूब गयी।
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हम चारों फिर से थकी उनींदी अवस्था में बिस्तर पर लेट गये. नम्रता चाची सुरेश चाचा और बड़े मामा के लंदों को अभी भी अपनी गांड और चूत में
दबाये हुए उनकी बलशाली भुजाओं में समा कर होले होले अध्र-निंद्रा में भी मुस्कुरा रहीं थीं। मैंने उनके दैवत्य सुंदर वासना की त्रिप्ती से
उज्जवलित मुंह को देख कर अपने से वचन लिया कि मैं भी नम्रता चाची की तरह संसार और सम्भोग के हर कृत्य को खुली बाँहों से सत्कार करूंगी।
आखिर स्त्री के रूप में इतना निखार लाने वाले सम्भोग से अच्छा और क्या श्रृंगार हो सकता है।
मैंने अपना चेहरा बड़े मामा की बलिष्ठ चौड़ी कमर से चुपका कर अपनी आँखें बंद कर दीं। सुबह की मंद निर्मल शीतल वायु फूलों की सुगंध से भरी थी।
मैंने एक गहरी सांस से रजनीगंधा और चमेली की सुगंध को अपने अंदर भर कर बड़े मामा की पसीने से महक रही कमर की त्वचा को चूम कर सो
गयी।
जानकी दीदी की मधुर आवाज़ सुन कर मेरी आँख खुली। जानकी दीदी खिलखिला कर हंसी, "लगता है नम्रता भाभी का आखिर में सुरेश भैया और रवि
भैया के विकराल लंडों ने समर्पण करवा ही लिया।"
नम्रता चाची भी खिलखिला कर हंस दीं, "जानकी, दो मर्द जो इतना प्यार करतें हों और उनके विशाल भीमकाय लंड जब दोनों विवरों में घुसें हो तो
कोई भी भाग्यवान स्त्री*किसी भी भी समय समर्पण के लिए तैयार हो जायेगी।"
जानकी दीदी ने प्यार से नम्रता चाची का हँसता हुआ मुंह अपने गुलाबी होंठों से चूम लिया।
"जानकी, क्या तुम्हें अपने भाइयों का गाढ़ा वीर्य चाहिए? मेरे दोनों विवर उनके वीर्य से लबालब भरे हुए हैं।" नम्रता चाची ने जानकी दीदी को अमृत
समान द्रव्य का उपहार पेश कर दिया।
"नेकी और बूझ बूझ?" जानकी दीदी ने नम्रता चाची के विशाल थरकते हुए कलशों को सहला कर सुरेश चाचा और बड़े मामा को भी प्यार से चुम्बन
दिए।
दोनों पुरुषों ने अपने अभी भी आधे खड़े लंड नम्रता चाची की गांड और चूत से धीरे से बाहर निकाल लिये. जानकी दीदी ने प्यार से पहले सुरेश
चाचा के नम्रता चाची की मदभरी गांड और सुरेश चाचू के मर्दाने फलदायक वीर्य से लंड को चूम चाट के अपने थूक से चमका दिया।
फिर उन्होंने बड़े मामा के लंड को भी उतने ही प्यार से चाट चाट कर साफ़ कर दिया। नम्रता चाची ने पहले अपनी चूत के रस को जनके दीदी के
अधीर मुंह में एक लम्बी धार के रूप में टपका दिया. जानकी दीदी ने लोभ भरी उत्सुकता से उसे निगल लिया।
जानकी दीदी ने अपना खुला मुंह नम्रता चाची के भरे नितिम्बों के बीच में स्थिर कर दिया।
नम्रता चाची ने अपने हाथों से अपने वृहत गदराये मुलायम नितिम्बों को चौड़ा कर अपनी से चुदी गांड के नाज़ुक छोटे से छिद्र को जोर लगा कर
खोल दिया. शीघ्र ही उनकी निर्मम चुदाई से सूजी गांड खुल गयी और जानकी दीदी के मुंह में नम्रता चाची की गांड के रस से मिले सुरेश चाचू का
गाढ़ा जननक्षम वीर्य एक भारी लिसलिसी धार से बहने लगा। जानकी दीदी बेसब्री से नम्रता चाची की गांड से सारा मीठा रस अपने मुंह में टपकने का
इंतज़ार रहीं थीं। उन्होंने चटकारे ले कर सारा मीठा नमकीन रस सटक लिया।
सुरेश चाचा और बड़े मामा ने जानकी दीदी को अपनी बाँहों में भर कर उनके भारी कोमल उरोज़ों को कस कर दबाते हुए उन्हें चुम्बनों से सराबोर
कर दिया।
जानकी दीदी खिलखिला कर हंस रहीं थीं, "भैया, प्लीज़, भैया! आप लोगों ने मुझे ज़रूरी बात तो भुलवा ही दी। नम्रता भाभी ऋतू का फोन आया था।
ऋतू, नानाजी, संजू, मीनू और राज भैया इकठ्ठे हैं पहाड़ वाले बंगले पे। ऋतू ने आपको उन्हें वापस फोन करने को कहा है।"
नम्रता चाची की प्रसन्नता ने उन्हें और भी सुंदर बना दिया।
सुरेश चाचा और बड़े मामा ने फिर से जानकी दीदी के यौवन का मर्दन शुरू कर दिया।
शीघ्र ही उनके ढीली कमीज़ के बटन खुल गए। उनकी गदराई हुई भारी धोरी से अपने ही वज़न से ढलकी अत्यंत सुंदर वक्ष बाहर आ कर सुरेश
चाचा और बड़े मामा के हाथों में मचलने लगे।
"भैया आप दोनों और नेहा को तैयार हो जाना चाहिए। पिताजी ने सारे नौकरों की छुट्टी कर दी है और रामू ने ताज़े कबाब बनाने की तैय्यारी
कर ली है। सिर्फ आप लोगों का इंतज़ार है।" जानकी दीदी सिसक उठीं। सुरेश चाचा और बड़े मामा ने उनके दोनों चूचुक को अपनी चुटकी में
निर्ममता से मसल कर जानकी दीदी के नाज़ुक लोलकी [इअर लोब्स] को काट लिया।
"जानकी हमारी तो इस कबाब में ज़्यादा रूचि है। यदि आपको बहुत जल्दी है तो आप ही हमें तैयार कर दीजिये, " बड़े मामा ने अपने विशाल
हाथों से जानकी दीदी के प्रचुर भरे नितिम्बों को कस कर मसल दिया।
"नेहा, अब तुम ही इन दोनों को समझाओ ना!" जानकी दीदी ने मेरी और दुहाई फेंकी।
"दीदी आपके इन्द्रप्रस्थ की देवी सामान सौन्दर्य के सामने सुरेश चाचू और बड़े मामा असहाय हैं। आप को ही इनकी विनती माननी पड़ेगी।" मैंने
मुस्कुरा कर जानकी दीदी के लहंगे का नाड़ा खोल दिया।
उनका लहंगा सरक कर फर्श पर ढल गया। उनके गोल भारी उचंड नितिम्ब और मांसल झांगें सुरेश चाचा और बड़े मामा के अधीर हाथों के लिए
नग्न हो गयीं।
"नेहा तुम भी दोनों भैय्या के साथ मिल गयी," जानकी दीदी ने मुझे प्यार से उल्हाना दिया।
"दीदी, मैं भी तो आपके रूप से अभिभूत हूँ।" मैंने अपने नन्हें हाथों से जानकी दीदी के सुंदर चेहरों को पकड़ कर उनके गुलाबी मुस्कराते होंठों
को कस कर चूम लिया।
बड़े मामा ने जानकी दीदी की कमीज़ तो उतार कर उन्हें बिलकुल नग्न कर उन्हें अपनी बाँहों में उठ लिया।
सुरेश चाचा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा कर स्नानगृह की और चल दिये।
सुरेश चाचा*और बड़े मामा बारी बारी से जानकी दीदी और मुझे अपनी बाँहों में भर कर हमारे शरीर को मसल रहे थे।जानकी दीदी और मेरी
सिस्कारियां सुरेश चाचा और बड़े मामा को और भी उत्तेजित कर रहीं थीं।
नम्रता चाची बहुत प्रसन्न लगती हुईं स्नानगृह में तेज़ी से प्रविष्ट हुईं।
"सुनिए जी, " उन्होंने अपने पति सुरेश चाचा को संबोधित किया, "डैडी, राज, ऋतू और बच्चे कल आने वाल हैं। हमें एक पिछले साल वाली
पार्टी का इंतज़ाम करना चाहिये।"
जानकी दीदी खुशी से उछल पडीं।
"नेहा, बेटा आप को और रवि भैया को तो रुकना ही पड़ेगा," नम्रता चाची की आवाज़ में एक विशेष प्रकार का आवेदन था।
बड़े मामा ने मेरी उत्सुक आँखों में झाँक कर अपना सर हिला दिया।
नम्रता चाची का सुंदर चेहरा खुशी से दमक उठा।
"मैं अब बहुत खुश हूँ। मुझे मीनू और संजू के साथ नेहा बेटी का साथ इकठ्ठे मिलने के विचार से ही मुझे सिहरन हो उठती है। मुझे अब आप सबके
मूत्र से स्नान करना है।" नम्रता चाची ने सुरेश चाचा और बड़े मामा के लंडों को प्यार से सहलाया।
नम्रता चाची स्नानगृह के फर्श पर बैठ गयीं। बड़े मामा और सुरेश चाचा ने अपने लंड को नम्त्रता चाची के मुंह पर लक्ष्य साध कर गरम सुनहरे मूत्र
की धार से उन्हें नहलाना शुरू कर दिया।
नम्रता चाची ने अपना मुंह खोल कर कई बार अपने पति और बड़े मामा के मूत्र से भर कर उसे नदीदे बेसब्री से गटक लिया। जानकी दीदी ने भी
अपनी कोमल घुंघराली झांटों को फैला कर अपनी चूत की गुलाबी पाटों को खोल कर जोर से अपनी सुनहरे मूत्र की धार को सीधे नम्रता चाची के
मुंह पे सरसराहट की ध्वनी से खोल दी।
नम्रता चाची का सारा शरीर गरम मूत्र से नहा गया। उन्होंने ना जाने कितनी बार अपना मुंह गरम मूत्र से भर कर उसे बेसब्री से निगल लिया।
आखिर में मेरी बारी थी। नम्रता चाची ने मुझे प्यार से अपनने और खींच लिया और मेरी चिकनी छूट पर अपना मुंह लगा दिया। मैंने झिझकते हुए
अपने मूत्र की धार को नम्रता चाची के मुंह में खोल दिया।
नम्रता चाची ने नादीदेपन से मेरे मूत को पीने लगीं। मेरे गरम मूत की तेज़ धार ने, उनके जल्दी जल्दी के बावज़ूद उनके मुंह और सीने को भी
नहला दिया।
हम सब एक दुसरे को प्यार से सुगन्धित साबुन लगा कर नहलाने लगे। छेड़-छाड़ और चुहलबाज़ी की वजह से स्नान काफी लंबा हो गया।
हम सब हलके वस्त्रों में तैयार हो कर दोपहर के खाने के लिए निकल पड़े।
हम सब को लम्बे सम्भोग के मेराथन के श्रम की वजह से बहुत भूख लगी थी।
गंगा बाबा ने स्त्रियों के लिए सफ़ेद मदिरा और पुरुषों के लिए बियर का प्रयोजन किया था।
मुझे भी मदिरा के दो गिलास मिल गए। स्वादिष्ट भोजन और मदिरा के प्रभाव से शीघ्र ही मेरा अल्पव्यस्क मस्तिष्क चकराने लगा।
नम्रता चाची ने हंस कर कहा, "चलिए आप सबने ने मेरी नन्ही नेहा को शराब पिला कर नशे में धुत कर दिया। इस अवस्था में तो बेचारी किसी को
भी चोदने से मना नहींकर पायेगी।"
मैं थोड़ा सा शर्मायी पर शराब के आगोश में मैंने थोड़ी सी नम्रता चाची जैसी शरारत भरी हिम्मत पा ली थी, " चाची मुझे शराब का सहारा नहीं
चाहिए अपनी चुदाई के निमंत्रण के लिये। मैं तो अब चुदने के लिए पूरी तैयार हूँ।"
मेरे गाल अपनी बेशर्मी भरी बातों से सुर्ख लाल हो गये।
नम्रता चाची ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी मुझे अपनी गोद में खींच लिया, "देखा आप सबने। मेरी छोटी सी बिटिया कितनी निखर गयी है।"
नम्रता चाची ने मेरे सूजे हुए होंठो को प्यार से चूम कर मेरे दोनों उरोजों को हलके झीने सूती लगभग पारदर्शी कुर्ते के ऊपर से मसल दिया, "नेहा
बेटी, यहाँ तीन विकराल लंड चूत और गांड की गहरायी नापने के लिये बहुत उत्सुक हैं। थोड़ा सावधानी से बोलो कहीं लेने के देने ना
पड़ जाएँ।"
मैं अब थोड़ा शराब और बड़े मामा और सुरेश चाचा के भीषण*सम्भोग के प्रभाव से शायद बेशर्म हो चली थी, "नम्रता चाची, मैं तो अब किसी भी
विकराल लंड के लिये तैयार हूँ पर मुझे आप और जानकी दीदी का भी तो ध्यान रखना है। आखिर में कम से कम एक लंड तो आप दोनों के
लिए भी छोड़ना पड़ेगा।"
नम्रता चाची ने तब तक मेरे कुर्ते के सारे बटन खोल दिए थे। उनके कोमल हाथों ने मेरे दोनों अविकसित पर भारी उरोजों को सहलाने लगे, "नेहा
बेटी अभी आपने सारे लंड कहाँ लिए हैं?,"
नम्रता चाची ने प्यार से मेरी नाक की नोक को हलके से काट कर मुस्करा कर कहा, "गंगा भैया के लंड से तो अभी तक आपका परिचय नहीं
हुआ।"
मैं थोडा सा शर्मा कर बोली, "मैं तो तैयार हूँ। गंगा बाबा ने अब तक पूछा ही नहीं। मैं शायद जानकी दीदी जैसी सुंदर नहीं हूँ।"
सब मेरी बचकानी मासूम बातों से हंस दिये।
"नेहा बिटिया। हमारी नज़र में तो हमारी सारी बेटियों से सुंदर कोई कहीं भी नहीं है", गंगा बाबा ने भी हंस कर मुझे और शर्म से लाल कर दिया।
मै शर्मा कर नम्रता चाची की गोद से उठ कर गंगा बाबा की भारी भरकम गोद में समा गयी। उनके भरी शक्तिशाली बाँहों ने मुझे कस कर जकड
लिया।
"जानकी चलो, हमारी नेहा ने तो अपनी चूत की मरम्मत का इंतज़ाम कर लिया हमें भी तो एक लंड का इंतजाम कर लेना चाहिये।" नम्रता चाची
ने खिलखिला कर कहा।
सुरेश चाचा ने अपनी खाली गोद को दिखा कर हँसते हुए कहा, "भाई हमारी गोद तो तैयार है। कोई बैठने वाली चाहिये।"
जानकी इठला कर झट से सुरेश चाचा की गोद में बैठ गयीं। नम्रता चाची भी अधीरता दिखाते हुए बड़े मामा की गोद में बैठ गयीं, "मुझे तो अपने
रवि भैया की गोद और उसमे बसे दानव मिल जाये तो मैं तो बहुत खुश हूँ ."
हम सब पेट की क्षुदा शांत होने के बाद कामवासना की क्षुदा से विचलित हो चले थे।
मेरी *दोनों बाहें गंगा बाबा की मोटी बलवान गर्दन के इर्द गिर्द जकड़ गयीं।
शीघ्र ही उनके मोटे होंठ मेरे नाज़ुक होंठो से चिपक गए। हमारी जीभ एक दुसरे की जीभ से लड़ने लगी। गंगा बाबा की जिव्हा के ऊपर से फिसलते
हुए उनकी लार से मेरा मुंह भर गया।
मैंने गंगा बाबा के गरम थूक को निगल कर और भी कामुकता से उनके होंठो को चूसने लगी। गंगा बाबा के बड़े भारी खुरदुरे हाथों ने मेरे फड़कते
उरोज़ों का मर्दन करना शुरू कर दिया था। मेरी सिस्कारियां गंगा बाबा के मुंह में समा गयीं।
मैं गंगा बाबा के मर्दाने चुम्बन और स्तनमर्दन से काम वासना से जल उठी थी। गंगा बाबा का लिंग मेरे नितिम्बों के नीचे धीरे धीरे सख्त हो चला
था। हम दोनों नम्रता चाची की सिसकती आवाज़ से वापस धरती पर आ गए, "हम लोगों को वापस हाल में अंदर चलना चाहिये।"
मैंने देखा कि नम्रता चाची के दोनों विशाल स्तन बड़े मामा की बेदर्द रगड़ाई से लाल हो गए थे।
सुरेश चाचा ने भी जानकी दीदी के सुंदर बड़े भारी उरोज़ों को मसल मसल कर उन्हें सख्त और लाल कर दिया था।
तीनों मर्दों ने अपनी गोद में बैठी वासना से जलती सम्भोग की साझीधार को अपनी बाँहों में उठा लिया और भीतर हाल की ओर त्वरित कदमों से
चल पड़े।
गंगा बाबा ने मुझे दीवान के ऊपर लिटा दिया और मेरा कुरता शीघ्र फर्श पर था। मेरा जांघिया मेरे रतिरस से गीला हो गया था। गंगा बाबा ने उसे
अपने मुंह से लगा कर ज़ोर से सूंघा और फिर उसे चाटने लगे।
गंगा बाबा के व्यवहार से मैं और भी कामुकता से जल उठी।
मैंने उठ कर बाबा के कुर्ते के बटन खोल कर उसे उतारने की अधीरता से मचलने लगी।
गंगा बाबा ने हंस कर अपना कुरता उतार दिय. तब तक मेरे अधीर हांथों ने उनके पजामे के नाड़े को खोल कर उसे उनकी जांघो से नीचे गिरा
दिया।
अब गंगा*बाबा का विशाल लंड मेरे मुंह के ठीक सामने था।
मैंने अपने छोटे छोटे हाथों से उनके विकराल लंड को उठा कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को बाद मुश्किल से अपने मूंह में भर लिया।
गंगा बाबा का लंड पहले से ही तन्ना रहा था। मेरे मुंह की गर्मी से कुछ ही क्षणों में उनका भीमकाय लंड लोहे की तरह सख्त हो गया और एक
सपाट के खम्बें की तरह छत की तरफ उन्नत हो गया।
मैं अब बड़ी मुश्किल से उसे चूसने के लिये नीचे कर पा रही थी।
गंगा बाबा ने मुझे अपने लंड से अलग कर दीवान पर लिटा दिया। कमरे में अलग दीवानों पर अब नम्रता चाची और जानकी दीदी पूरी नग्न लेटी
हुईं थी।
सुरेश चाचा जानकी दीदी की मांसल झांघों में अपना मुंह दबा कर उनके मीठी रतिरस को चाट रहे थे। उनकी कुशल जीभ अविरत जानकी
दीदी की सिस्कारियां उत्पन्न कर रही थी।
बड़े मामा नम्रता चाची के विशाल गद्देदार स्तनों पर अपना पूरा वज़न डाल कर बैठे हुए थे। उन्होंने अपने हाथों से नम्रता चाची के सर तो ऊपर
उठाया हुआ था जिस से वो उनके मूसल दानवीय लंड को चूस सकें।
मेरा ध्यान शीघ्र ही अपनी कसमसाती चूत पे वापस आ गया। गंगा बाबा ने अपने मूंह में मेरी चूत को भर का निर्ममता से उसे चूसने लगे। मेरी
सिसकारी कामवासना और थोड़े दर्द से भरी हुई थी।
गंगा बाबा ने अपनी खुरदुरी जीभ से मेरे भगशिश्न को तरसाने लगे।मेरे नितिम्ब स्वतः दीवान से उठ कर मेरी चूत को गंगा बाबा के मुंह में
दबाने लगे।
"गंगा बाबा अब मुझे चोदिये, प्लीज़," मैं कामवासना से छटपटा रही थी।
गंगा बाबा ने मेरे सुडौल टखनों को पकड़ मेरी मांसल झांघों को पूरा फैला कर मेरे अविकसित योनी द्वार को अपने वृहत लंड के आक्रमण के लिए
खोल दिया।
गंगा बाबा का लंड बड़े मामा के लंड की तरह विशाल, लंबा और मोटा था।
गंगा बाबा ने मेरे पैर दीवान पर रख कर मेरी खुली मांसल झांगों के बीच अपने घुटनों पर बैठ गए।
गंगा बाबा ने अपने भीमकाय लिंग के सुपाड़े को मेरी गीली फड़कती हुई चूत के तंग रेशम जैसे नर्म मुहाने पे पांच छे बार रगड़ कर उसे स्थिर
कर धीरे से मेरी चूत के अंदर दबाने लगे। मैं धीरे से सिसक उठी। मेरी कमसिन अविकसित चूत गंगा बाबा के सेब जैसे सुपाड़े के दवाब से
चौड़ी होने लगी।
मैंने कस कर अपना निचला होंठ अपने दांतों के बीच दबा लिया। अचानक एक झटके से गंगा बाबा का पूरा सुपाड़ा मेरी नन्ही चूत के अंदर
समा गया। मेरी चूत एक बार फिर से मोटे लंड के ऊपर अमानवीय आकार में फ़ैल गयी।
गंगा बाबा अपने लंड के सुपाड़े को मेरी चूत में फंसा कर मेरे ऊपर लेट गए। मैंने अपनी दोनों बाँहों से उनकी गर्दन को कस कर
जकड़ लिया।
गंगा बाबा ने अपने खुले मूंह को मेरे सिसकते मूंह से कस कर चुपका दिया। उन्होंने अपने लंड के सुपाड़े को धीरे धीरे गोल गोल घुमा कर
मेरी तंग योनि के द्वार को ढीला करने लगे।
मेरी सिस्कारियां मेरी तड़पती चूत की हालत बयान कर रहीं थीं।
मेरे कानों में पहले एक फिर दूसरी चीख भर गयीं। पहली चीख जानकी दीदी की थी और दूसरी नम्रता चाची की। स्पष्टः यह सुरेश चाचा और बड़े
मामा के विशाल लंड का उनकी कोमल चूत पर बेदर्दी से आक्रमण का परिणाम था।
अगले दो तीन मिनटों तक जानकी दीदी और नम्रता चाची की दर्द और वासना भरी चीखें हाल में गूँज रहीं थीं। पर शीघ्र ही उनकी चूत
विकराल लंडों के ऊपर फ़ैल गयीं।
अब हाल में उनकी सिस्कारियां गूंजने लगीं।
मैं अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकती थी। मेरा धैर्य निरस्त हो चुका था, "गंगा बाबा मुझे चोदिये। अपना पूरा लंड मेरी चूत में डाल दीजिये।"
जैसे गंगा बाबा मेरी प्रार्थना का इंतज़ार कर रहे थे। उनके विशाल शक्तिशाली कुल्हे पहले एक बार सुकड़े फिर उनकी मज़बूत कमर के मिलेजुले
प्रयास से उन्होंने अपना विकराल भीमकाय लंड निर्ममता से मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया। मेरी चीख जानकी दीदी और नम्रता चाची से भी
ऊंची थी।
"गंगा ......... बा आआआअ बा आआआआआ। आआआआह धीरे ऎऎऎऎए ........ ऊं*ऊं*ऊं ऊं ऊं ऊं ............ बहुत दर्द आआआह
............. ," मैं दर्द से तड़प उठी।
पर गंगा बाबा ने सुरेश चाचा और बाद मामा की तरह जितनी निर्ममता से अपना लंड मेरी कमसिन चूत में ठूंसा था उन्होंने उसे बाहर खींच कर
एक बार फिर*उतनी बेदर्दी से से उसे मेरी योनि में जड़ तक डाल दिया।
गंगा बाबा ने मेरी चूत मर्दन जानलेवा भयंकर धक्कों से करना शुरू कर दिया।
मेरी चूत मुझे लगा की मानों फट जायेगी। पर अब मुझे ज्ञान हो चला था कि मेरी चूत पहले जितना भी दर्द करे पर थोड़ी देर में गंगा
बाबा मोटे लम्बे लंड के आनंद से अभिभूत हो जायेगी।
गंगा बाबा ने मेरे होंठो को चूस कर उन्हें सुजा दिया।
मैं अब सिसक सिसक कर गंगा बाबा के लंड का स्वागत कर रही थी। उनका लंड मेरी रस से भरी चूत में सपक सपक की आवाज़े पैदा करते हुए
रेल इंजन के पिस्टन की तरह अविश्वसनीय रफ़्तार से मेरी चूत में अंदर बाहर आ जा रहा था।
मैं गंगा बाबा से कस कर लिपट गए और मेरी जाँघों ने उनकी कमर को अपनी गिरफ्त में लेने का असफल प्रयास किया।
गंगा बाबा के वृहत भीमकाय मूसल ने पांच मिनटों में मुझे कामोन्माद के द्वार पर ला पटका।
"आआआआह ......... गंगा बाबा .......... आआआआअ मैं आने वाली हूँ," मैं वासना के ज्वार से सुलगते हुए बुदबुदाई।
गंगा बाबा ने मेरे सुबकते मुंह को अपने मर्दाने मुंह से दबोच लिया और उनका लंड अब दनादन मेरी चूत को बेरहम धक्कों से छोड़ रहा था।
शीघ्र ही मैं झड़ने लगी। मेरी सिसकारी हल्की सी चीख में बदल गयी।
गंगा बाबा ने बिना धीरे हुए मेरी चूत का मर्दन निरंतर अविरत भीषण धक्कों से करते हुए मेरे दुसरे रतिविसर्जन को तैयार कर दिया।
मैं अब वासना की आग से पागल सी हो उठी। मैं सुबक सिअक कर अपनी चुदाई के आनंद के अधिक्य से बिलबिला रही थी।
मेरे कान अब जानकी दीदी और नम्रता चाची की सिस्कारियों की तरफ बहरे हो गए थे। अब मेरा पूरा ब्रह्म्बांड मेरी चूत में पिस्टन की
तरह चलते गंगा बाबा के विकराल लंड के ऊपर सिमट चुका था।
गंगा बाबा ने अपने धक्कों में और भी ज़ोर लगाना शुरू कर दिया। मेरा पूरा शरीर उनके भारी विशाल शरीर के नीचे दबे होने के बावज़ूद
उनके हर भीषण धक्कों से सर से पैर तक हिल रहा था।
मैं अब तक ना जाने कितने बार झड़ चुकी थी। मैं अब कामानंद के अविरत आक्रमण से हवा में डोलते पत्ते की तरह कांप रहे थी।
गंगा बाबा का लंड मेरी चूत में अभी भी एक बेदर्द धक्के के बाद दूसरा धक्का लगा रहा था।
मैं थोड़ी देर में नए रतिविसर्जन के आनंद से डोल उठी। मेरा मस्तिष्क उत्तेजना और कामानंद के प्रभाव से शिथिल हो जा रहा था।
मेरा आखिरी कामोन्माद इतना तीव्र गहन और प्रचंड था कि मैं एक चीख मार कर दीवान पर शिथिल हो कर निसहाय लेट गयी। मैंने अपने
आप को गंगा बाबा और उनके भीमकाय लंड के ऊपर न्यौछावर कर उनके रहम और उनकी करुणा के ऊपर छोड़ दिया।
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बदनाम रिश्ते--
हमारा छोटा सा परिवार--15सुरेश चाचा और बड़े मामा के लंड भयानक तेज़ी और ताकत से नम्रता चाची दोनों गलियारों को अपने भीमकाय लंदों से मर्दन करने लगे। नम्रता
चाची के सिस्कारियां और चीखें मिल कर काम-वासना का संगीत बन गयीं।
पांच दस मिनट के बाद ही नम्रता चाची घुटी घुटी चीख के साथ झड़ गयीं,"हाय, कितना दर्द ... मैं झड़ने वाली हूँ ... ओओओओः और जोर से आह
...आ ...आ ....आं ,...आँ ...हाय माँ।"
बड़े मामा ने मुझे अपनी चूत में उंगली करते हुए देख कर अपने मूंह की तरफ खींचा।
मैंने अपनी चूत बड़े मामा के मूंह पर टिका दी। उनके होंठो और जीभ ने बिना देर किये मुझे भी रति-निष्पति के द्वार पर ला पटका।
मैं भी सिस्कार मार कर झड़ गयी। नम्रता चाची ने मेरे फड़कते हुए चूचियों के ऊपर अपना बिलखता हुआ मूंह दबा दिया। उनके दांत और होंठों ने मेरी
चूचियों को चूसना और काटना शुरू कर दिया।
बड़े मामा के मूंह और जीभ ने मेरी चूत की तंग सुरंग और भग-शिश्न को तरसा तड़पा कर मेरी चूत को फिर से उत्तेजित कर दिया।
नम्रता चाची की चूत और गांड का मर्दन निर्ममता से चलता रहा। जैसे ही मैं और नम्रता चाची फिर से झड़ने वाले थीं, सुरेश चाचा और बड़े मामा ने
अपने लंड सुपाड़े तक निकाल कर एक ही धक्के से नम्रता चाची की चूत और गांड में मोटी जड़ तक ठूंस दिये।
नम्रता चाची दर्द और आनंद के अतिरेक से बिलबिला उठीं और उन्होंने मेरी चूचुक को अपने दातों से कस कर दबोच लिया। मेरी भी चीख उबल उठी।
हम दोनों कामानंद से अभिभूत कांपते हुए फिर से झड़ गयीं।
बड़े मामा और सुरेश चाचा ने अगले घंटे तक बिना धीमे हुए और रुके नम्रता चाची के दोनों गलियारों को बेदर्दी से कुचल दिया। नम्रता चाची की
आनंद से भरी सिस्कारियां और चीखें कमरे की दीवारों से टकरा कर हम सबकी काम -वासना को और भी उत्तेजित करने लगीं।
मैं भी न जाने कितनी बार झड़ चुकी थी। मेरा शरीर अनगिनत रति-निष्पति की थकन से शिथिल हो चला।
बड़े मामा ने मेरे क्लिटोरिस को अपने होंठो और दांतों से मसल कर फिर से मुझे झाड़ दिया।
नम्रता चाची भी मेरे साथ हाँफते हुए झड़ रहीं थीं। सुरेश चाचा ने एक खूंखार धक्के के साथ अपने लंड का गरम वीर्य के अनेकों फुव्वारों से नम्रता
चाची की गांड को नहला दिया।
बड़े मामा ने भी अपने जननक्षम वीर्य से नम्रता चाची के गर्भाशय को सराबोर कर दिया।
मैं शिथिल अवस्था में बिस्तर पर गिर कर गहरी नींद में डूब गयी।
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हम चारों फिर से थकी उनींदी अवस्था में बिस्तर पर लेट गये. नम्रता चाची सुरेश चाचा और बड़े मामा के लंदों को अभी भी अपनी गांड और चूत में
दबाये हुए उनकी बलशाली भुजाओं में समा कर होले होले अध्र-निंद्रा में भी मुस्कुरा रहीं थीं। मैंने उनके दैवत्य सुंदर वासना की त्रिप्ती से
उज्जवलित मुंह को देख कर अपने से वचन लिया कि मैं भी नम्रता चाची की तरह संसार और सम्भोग के हर कृत्य को खुली बाँहों से सत्कार करूंगी।
आखिर स्त्री के रूप में इतना निखार लाने वाले सम्भोग से अच्छा और क्या श्रृंगार हो सकता है।
मैंने अपना चेहरा बड़े मामा की बलिष्ठ चौड़ी कमर से चुपका कर अपनी आँखें बंद कर दीं। सुबह की मंद निर्मल शीतल वायु फूलों की सुगंध से भरी थी।
मैंने एक गहरी सांस से रजनीगंधा और चमेली की सुगंध को अपने अंदर भर कर बड़े मामा की पसीने से महक रही कमर की त्वचा को चूम कर सो
गयी।
जानकी दीदी की मधुर आवाज़ सुन कर मेरी आँख खुली। जानकी दीदी खिलखिला कर हंसी, "लगता है नम्रता भाभी का आखिर में सुरेश भैया और रवि
भैया के विकराल लंडों ने समर्पण करवा ही लिया।"
नम्रता चाची भी खिलखिला कर हंस दीं, "जानकी, दो मर्द जो इतना प्यार करतें हों और उनके विशाल भीमकाय लंड जब दोनों विवरों में घुसें हो तो
कोई भी भाग्यवान स्त्री*किसी भी भी समय समर्पण के लिए तैयार हो जायेगी।"
जानकी दीदी ने प्यार से नम्रता चाची का हँसता हुआ मुंह अपने गुलाबी होंठों से चूम लिया।
"जानकी, क्या तुम्हें अपने भाइयों का गाढ़ा वीर्य चाहिए? मेरे दोनों विवर उनके वीर्य से लबालब भरे हुए हैं।" नम्रता चाची ने जानकी दीदी को अमृत
समान द्रव्य का उपहार पेश कर दिया।
"नेकी और बूझ बूझ?" जानकी दीदी ने नम्रता चाची के विशाल थरकते हुए कलशों को सहला कर सुरेश चाचा और बड़े मामा को भी प्यार से चुम्बन
दिए।
दोनों पुरुषों ने अपने अभी भी आधे खड़े लंड नम्रता चाची की गांड और चूत से धीरे से बाहर निकाल लिये. जानकी दीदी ने प्यार से पहले सुरेश
चाचा के नम्रता चाची की मदभरी गांड और सुरेश चाचू के मर्दाने फलदायक वीर्य से लंड को चूम चाट के अपने थूक से चमका दिया।
फिर उन्होंने बड़े मामा के लंड को भी उतने ही प्यार से चाट चाट कर साफ़ कर दिया। नम्रता चाची ने पहले अपनी चूत के रस को जनके दीदी के
अधीर मुंह में एक लम्बी धार के रूप में टपका दिया. जानकी दीदी ने लोभ भरी उत्सुकता से उसे निगल लिया।
जानकी दीदी ने अपना खुला मुंह नम्रता चाची के भरे नितिम्बों के बीच में स्थिर कर दिया।
नम्रता चाची ने अपने हाथों से अपने वृहत गदराये मुलायम नितिम्बों को चौड़ा कर अपनी से चुदी गांड के नाज़ुक छोटे से छिद्र को जोर लगा कर
खोल दिया. शीघ्र ही उनकी निर्मम चुदाई से सूजी गांड खुल गयी और जानकी दीदी के मुंह में नम्रता चाची की गांड के रस से मिले सुरेश चाचू का
गाढ़ा जननक्षम वीर्य एक भारी लिसलिसी धार से बहने लगा। जानकी दीदी बेसब्री से नम्रता चाची की गांड से सारा मीठा रस अपने मुंह में टपकने का
इंतज़ार रहीं थीं। उन्होंने चटकारे ले कर सारा मीठा नमकीन रस सटक लिया।
सुरेश चाचा और बड़े मामा ने जानकी दीदी को अपनी बाँहों में भर कर उनके भारी कोमल उरोज़ों को कस कर दबाते हुए उन्हें चुम्बनों से सराबोर
कर दिया।
जानकी दीदी खिलखिला कर हंस रहीं थीं, "भैया, प्लीज़, भैया! आप लोगों ने मुझे ज़रूरी बात तो भुलवा ही दी। नम्रता भाभी ऋतू का फोन आया था।
ऋतू, नानाजी, संजू, मीनू और राज भैया इकठ्ठे हैं पहाड़ वाले बंगले पे। ऋतू ने आपको उन्हें वापस फोन करने को कहा है।"
नम्रता चाची की प्रसन्नता ने उन्हें और भी सुंदर बना दिया।
सुरेश चाचा और बड़े मामा ने फिर से जानकी दीदी के यौवन का मर्दन शुरू कर दिया।
शीघ्र ही उनके ढीली कमीज़ के बटन खुल गए। उनकी गदराई हुई भारी धोरी से अपने ही वज़न से ढलकी अत्यंत सुंदर वक्ष बाहर आ कर सुरेश
चाचा और बड़े मामा के हाथों में मचलने लगे।
"भैया आप दोनों और नेहा को तैयार हो जाना चाहिए। पिताजी ने सारे नौकरों की छुट्टी कर दी है और रामू ने ताज़े कबाब बनाने की तैय्यारी
कर ली है। सिर्फ आप लोगों का इंतज़ार है।" जानकी दीदी सिसक उठीं। सुरेश चाचा और बड़े मामा ने उनके दोनों चूचुक को अपनी चुटकी में
निर्ममता से मसल कर जानकी दीदी के नाज़ुक लोलकी [इअर लोब्स] को काट लिया।
"जानकी हमारी तो इस कबाब में ज़्यादा रूचि है। यदि आपको बहुत जल्दी है तो आप ही हमें तैयार कर दीजिये, " बड़े मामा ने अपने विशाल
हाथों से जानकी दीदी के प्रचुर भरे नितिम्बों को कस कर मसल दिया।
"नेहा, अब तुम ही इन दोनों को समझाओ ना!" जानकी दीदी ने मेरी और दुहाई फेंकी।
"दीदी आपके इन्द्रप्रस्थ की देवी सामान सौन्दर्य के सामने सुरेश चाचू और बड़े मामा असहाय हैं। आप को ही इनकी विनती माननी पड़ेगी।" मैंने
मुस्कुरा कर जानकी दीदी के लहंगे का नाड़ा खोल दिया।
उनका लहंगा सरक कर फर्श पर ढल गया। उनके गोल भारी उचंड नितिम्ब और मांसल झांगें सुरेश चाचा और बड़े मामा के अधीर हाथों के लिए
नग्न हो गयीं।
"नेहा तुम भी दोनों भैय्या के साथ मिल गयी," जानकी दीदी ने मुझे प्यार से उल्हाना दिया।
"दीदी, मैं भी तो आपके रूप से अभिभूत हूँ।" मैंने अपने नन्हें हाथों से जानकी दीदी के सुंदर चेहरों को पकड़ कर उनके गुलाबी मुस्कराते होंठों
को कस कर चूम लिया।
बड़े मामा ने जानकी दीदी की कमीज़ तो उतार कर उन्हें बिलकुल नग्न कर उन्हें अपनी बाँहों में उठ लिया।
सुरेश चाचा ने मुझे अपनी बाँहों में उठा कर स्नानगृह की और चल दिये।
सुरेश चाचा*और बड़े मामा बारी बारी से जानकी दीदी और मुझे अपनी बाँहों में भर कर हमारे शरीर को मसल रहे थे।जानकी दीदी और मेरी
सिस्कारियां सुरेश चाचा और बड़े मामा को और भी उत्तेजित कर रहीं थीं।
नम्रता चाची बहुत प्रसन्न लगती हुईं स्नानगृह में तेज़ी से प्रविष्ट हुईं।
"सुनिए जी, " उन्होंने अपने पति सुरेश चाचा को संबोधित किया, "डैडी, राज, ऋतू और बच्चे कल आने वाल हैं। हमें एक पिछले साल वाली
पार्टी का इंतज़ाम करना चाहिये।"
जानकी दीदी खुशी से उछल पडीं।
"नेहा, बेटा आप को और रवि भैया को तो रुकना ही पड़ेगा," नम्रता चाची की आवाज़ में एक विशेष प्रकार का आवेदन था।
बड़े मामा ने मेरी उत्सुक आँखों में झाँक कर अपना सर हिला दिया।
नम्रता चाची का सुंदर चेहरा खुशी से दमक उठा।
"मैं अब बहुत खुश हूँ। मुझे मीनू और संजू के साथ नेहा बेटी का साथ इकठ्ठे मिलने के विचार से ही मुझे सिहरन हो उठती है। मुझे अब आप सबके
मूत्र से स्नान करना है।" नम्रता चाची ने सुरेश चाचा और बड़े मामा के लंडों को प्यार से सहलाया।
नम्रता चाची स्नानगृह के फर्श पर बैठ गयीं। बड़े मामा और सुरेश चाचा ने अपने लंड को नम्त्रता चाची के मुंह पर लक्ष्य साध कर गरम सुनहरे मूत्र
की धार से उन्हें नहलाना शुरू कर दिया।
नम्रता चाची ने अपना मुंह खोल कर कई बार अपने पति और बड़े मामा के मूत्र से भर कर उसे नदीदे बेसब्री से गटक लिया। जानकी दीदी ने भी
अपनी कोमल घुंघराली झांटों को फैला कर अपनी चूत की गुलाबी पाटों को खोल कर जोर से अपनी सुनहरे मूत्र की धार को सीधे नम्रता चाची के
मुंह पे सरसराहट की ध्वनी से खोल दी।
नम्रता चाची का सारा शरीर गरम मूत्र से नहा गया। उन्होंने ना जाने कितनी बार अपना मुंह गरम मूत्र से भर कर उसे बेसब्री से निगल लिया।
आखिर में मेरी बारी थी। नम्रता चाची ने मुझे प्यार से अपनने और खींच लिया और मेरी चिकनी छूट पर अपना मुंह लगा दिया। मैंने झिझकते हुए
अपने मूत्र की धार को नम्रता चाची के मुंह में खोल दिया।
नम्रता चाची ने नादीदेपन से मेरे मूत को पीने लगीं। मेरे गरम मूत की तेज़ धार ने, उनके जल्दी जल्दी के बावज़ूद उनके मुंह और सीने को भी
नहला दिया।
हम सब एक दुसरे को प्यार से सुगन्धित साबुन लगा कर नहलाने लगे। छेड़-छाड़ और चुहलबाज़ी की वजह से स्नान काफी लंबा हो गया।
हम सब हलके वस्त्रों में तैयार हो कर दोपहर के खाने के लिए निकल पड़े।
हम सब को लम्बे सम्भोग के मेराथन के श्रम की वजह से बहुत भूख लगी थी।
गंगा बाबा ने स्त्रियों के लिए सफ़ेद मदिरा और पुरुषों के लिए बियर का प्रयोजन किया था।
मुझे भी मदिरा के दो गिलास मिल गए। स्वादिष्ट भोजन और मदिरा के प्रभाव से शीघ्र ही मेरा अल्पव्यस्क मस्तिष्क चकराने लगा।
नम्रता चाची ने हंस कर कहा, "चलिए आप सबने ने मेरी नन्ही नेहा को शराब पिला कर नशे में धुत कर दिया। इस अवस्था में तो बेचारी किसी को
भी चोदने से मना नहींकर पायेगी।"
मैं थोड़ा सा शर्मायी पर शराब के आगोश में मैंने थोड़ी सी नम्रता चाची जैसी शरारत भरी हिम्मत पा ली थी, " चाची मुझे शराब का सहारा नहीं
चाहिए अपनी चुदाई के निमंत्रण के लिये। मैं तो अब चुदने के लिए पूरी तैयार हूँ।"
मेरे गाल अपनी बेशर्मी भरी बातों से सुर्ख लाल हो गये।
नम्रता चाची ने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी मुझे अपनी गोद में खींच लिया, "देखा आप सबने। मेरी छोटी सी बिटिया कितनी निखर गयी है।"
नम्रता चाची ने मेरे सूजे हुए होंठो को प्यार से चूम कर मेरे दोनों उरोजों को हलके झीने सूती लगभग पारदर्शी कुर्ते के ऊपर से मसल दिया, "नेहा
बेटी, यहाँ तीन विकराल लंड चूत और गांड की गहरायी नापने के लिये बहुत उत्सुक हैं। थोड़ा सावधानी से बोलो कहीं लेने के देने ना
पड़ जाएँ।"
मैं अब थोड़ा शराब और बड़े मामा और सुरेश चाचा के भीषण*सम्भोग के प्रभाव से शायद बेशर्म हो चली थी, "नम्रता चाची, मैं तो अब किसी भी
विकराल लंड के लिये तैयार हूँ पर मुझे आप और जानकी दीदी का भी तो ध्यान रखना है। आखिर में कम से कम एक लंड तो आप दोनों के
लिए भी छोड़ना पड़ेगा।"
नम्रता चाची ने तब तक मेरे कुर्ते के सारे बटन खोल दिए थे। उनके कोमल हाथों ने मेरे दोनों अविकसित पर भारी उरोजों को सहलाने लगे, "नेहा
बेटी अभी आपने सारे लंड कहाँ लिए हैं?,"
नम्रता चाची ने प्यार से मेरी नाक की नोक को हलके से काट कर मुस्करा कर कहा, "गंगा भैया के लंड से तो अभी तक आपका परिचय नहीं
हुआ।"
मैं थोडा सा शर्मा कर बोली, "मैं तो तैयार हूँ। गंगा बाबा ने अब तक पूछा ही नहीं। मैं शायद जानकी दीदी जैसी सुंदर नहीं हूँ।"
सब मेरी बचकानी मासूम बातों से हंस दिये।
"नेहा बिटिया। हमारी नज़र में तो हमारी सारी बेटियों से सुंदर कोई कहीं भी नहीं है", गंगा बाबा ने भी हंस कर मुझे और शर्म से लाल कर दिया।
मै शर्मा कर नम्रता चाची की गोद से उठ कर गंगा बाबा की भारी भरकम गोद में समा गयी। उनके भरी शक्तिशाली बाँहों ने मुझे कस कर जकड
लिया।
"जानकी चलो, हमारी नेहा ने तो अपनी चूत की मरम्मत का इंतज़ाम कर लिया हमें भी तो एक लंड का इंतजाम कर लेना चाहिये।" नम्रता चाची
ने खिलखिला कर कहा।
सुरेश चाचा ने अपनी खाली गोद को दिखा कर हँसते हुए कहा, "भाई हमारी गोद तो तैयार है। कोई बैठने वाली चाहिये।"
जानकी इठला कर झट से सुरेश चाचा की गोद में बैठ गयीं। नम्रता चाची भी अधीरता दिखाते हुए बड़े मामा की गोद में बैठ गयीं, "मुझे तो अपने
रवि भैया की गोद और उसमे बसे दानव मिल जाये तो मैं तो बहुत खुश हूँ ."
हम सब पेट की क्षुदा शांत होने के बाद कामवासना की क्षुदा से विचलित हो चले थे।
मेरी *दोनों बाहें गंगा बाबा की मोटी बलवान गर्दन के इर्द गिर्द जकड़ गयीं।
शीघ्र ही उनके मोटे होंठ मेरे नाज़ुक होंठो से चिपक गए। हमारी जीभ एक दुसरे की जीभ से लड़ने लगी। गंगा बाबा की जिव्हा के ऊपर से फिसलते
हुए उनकी लार से मेरा मुंह भर गया।
मैंने गंगा बाबा के गरम थूक को निगल कर और भी कामुकता से उनके होंठो को चूसने लगी। गंगा बाबा के बड़े भारी खुरदुरे हाथों ने मेरे फड़कते
उरोज़ों का मर्दन करना शुरू कर दिया था। मेरी सिस्कारियां गंगा बाबा के मुंह में समा गयीं।
मैं गंगा बाबा के मर्दाने चुम्बन और स्तनमर्दन से काम वासना से जल उठी थी। गंगा बाबा का लिंग मेरे नितिम्बों के नीचे धीरे धीरे सख्त हो चला
था। हम दोनों नम्रता चाची की सिसकती आवाज़ से वापस धरती पर आ गए, "हम लोगों को वापस हाल में अंदर चलना चाहिये।"
मैंने देखा कि नम्रता चाची के दोनों विशाल स्तन बड़े मामा की बेदर्द रगड़ाई से लाल हो गए थे।
सुरेश चाचा ने भी जानकी दीदी के सुंदर बड़े भारी उरोज़ों को मसल मसल कर उन्हें सख्त और लाल कर दिया था।
तीनों मर्दों ने अपनी गोद में बैठी वासना से जलती सम्भोग की साझीधार को अपनी बाँहों में उठा लिया और भीतर हाल की ओर त्वरित कदमों से
चल पड़े।
गंगा बाबा ने मुझे दीवान के ऊपर लिटा दिया और मेरा कुरता शीघ्र फर्श पर था। मेरा जांघिया मेरे रतिरस से गीला हो गया था। गंगा बाबा ने उसे
अपने मुंह से लगा कर ज़ोर से सूंघा और फिर उसे चाटने लगे।
गंगा बाबा के व्यवहार से मैं और भी कामुकता से जल उठी।
मैंने उठ कर बाबा के कुर्ते के बटन खोल कर उसे उतारने की अधीरता से मचलने लगी।
गंगा बाबा ने हंस कर अपना कुरता उतार दिय. तब तक मेरे अधीर हांथों ने उनके पजामे के नाड़े को खोल कर उसे उनकी जांघो से नीचे गिरा
दिया।
अब गंगा*बाबा का विशाल लंड मेरे मुंह के ठीक सामने था।
मैंने अपने छोटे छोटे हाथों से उनके विकराल लंड को उठा कर उनके सेब जैसे सुपाड़े को बाद मुश्किल से अपने मूंह में भर लिया।
गंगा बाबा का लंड पहले से ही तन्ना रहा था। मेरे मुंह की गर्मी से कुछ ही क्षणों में उनका भीमकाय लंड लोहे की तरह सख्त हो गया और एक
सपाट के खम्बें की तरह छत की तरफ उन्नत हो गया।
मैं अब बड़ी मुश्किल से उसे चूसने के लिये नीचे कर पा रही थी।
गंगा बाबा ने मुझे अपने लंड से अलग कर दीवान पर लिटा दिया। कमरे में अलग दीवानों पर अब नम्रता चाची और जानकी दीदी पूरी नग्न लेटी
हुईं थी।
सुरेश चाचा जानकी दीदी की मांसल झांघों में अपना मुंह दबा कर उनके मीठी रतिरस को चाट रहे थे। उनकी कुशल जीभ अविरत जानकी
दीदी की सिस्कारियां उत्पन्न कर रही थी।
बड़े मामा नम्रता चाची के विशाल गद्देदार स्तनों पर अपना पूरा वज़न डाल कर बैठे हुए थे। उन्होंने अपने हाथों से नम्रता चाची के सर तो ऊपर
उठाया हुआ था जिस से वो उनके मूसल दानवीय लंड को चूस सकें।
मेरा ध्यान शीघ्र ही अपनी कसमसाती चूत पे वापस आ गया। गंगा बाबा ने अपने मूंह में मेरी चूत को भर का निर्ममता से उसे चूसने लगे। मेरी
सिसकारी कामवासना और थोड़े दर्द से भरी हुई थी।
गंगा बाबा ने अपनी खुरदुरी जीभ से मेरे भगशिश्न को तरसाने लगे।मेरे नितिम्ब स्वतः दीवान से उठ कर मेरी चूत को गंगा बाबा के मुंह में
दबाने लगे।
"गंगा बाबा अब मुझे चोदिये, प्लीज़," मैं कामवासना से छटपटा रही थी।
गंगा बाबा ने मेरे सुडौल टखनों को पकड़ मेरी मांसल झांघों को पूरा फैला कर मेरे अविकसित योनी द्वार को अपने वृहत लंड के आक्रमण के लिए
खोल दिया।
गंगा बाबा का लंड बड़े मामा के लंड की तरह विशाल, लंबा और मोटा था।
गंगा बाबा ने मेरे पैर दीवान पर रख कर मेरी खुली मांसल झांगों के बीच अपने घुटनों पर बैठ गए।
गंगा बाबा ने अपने भीमकाय लिंग के सुपाड़े को मेरी गीली फड़कती हुई चूत के तंग रेशम जैसे नर्म मुहाने पे पांच छे बार रगड़ कर उसे स्थिर
कर धीरे से मेरी चूत के अंदर दबाने लगे। मैं धीरे से सिसक उठी। मेरी कमसिन अविकसित चूत गंगा बाबा के सेब जैसे सुपाड़े के दवाब से
चौड़ी होने लगी।
मैंने कस कर अपना निचला होंठ अपने दांतों के बीच दबा लिया। अचानक एक झटके से गंगा बाबा का पूरा सुपाड़ा मेरी नन्ही चूत के अंदर
समा गया। मेरी चूत एक बार फिर से मोटे लंड के ऊपर अमानवीय आकार में फ़ैल गयी।
गंगा बाबा अपने लंड के सुपाड़े को मेरी चूत में फंसा कर मेरे ऊपर लेट गए। मैंने अपनी दोनों बाँहों से उनकी गर्दन को कस कर
जकड़ लिया।
गंगा बाबा ने अपने खुले मूंह को मेरे सिसकते मूंह से कस कर चुपका दिया। उन्होंने अपने लंड के सुपाड़े को धीरे धीरे गोल गोल घुमा कर
मेरी तंग योनि के द्वार को ढीला करने लगे।
मेरी सिस्कारियां मेरी तड़पती चूत की हालत बयान कर रहीं थीं।
मेरे कानों में पहले एक फिर दूसरी चीख भर गयीं। पहली चीख जानकी दीदी की थी और दूसरी नम्रता चाची की। स्पष्टः यह सुरेश चाचा और बड़े
मामा के विशाल लंड का उनकी कोमल चूत पर बेदर्दी से आक्रमण का परिणाम था।
अगले दो तीन मिनटों तक जानकी दीदी और नम्रता चाची की दर्द और वासना भरी चीखें हाल में गूँज रहीं थीं। पर शीघ्र ही उनकी चूत
विकराल लंडों के ऊपर फ़ैल गयीं।
अब हाल में उनकी सिस्कारियां गूंजने लगीं।
मैं अब और प्रतीक्षा नहीं कर सकती थी। मेरा धैर्य निरस्त हो चुका था, "गंगा बाबा मुझे चोदिये। अपना पूरा लंड मेरी चूत में डाल दीजिये।"
जैसे गंगा बाबा मेरी प्रार्थना का इंतज़ार कर रहे थे। उनके विशाल शक्तिशाली कुल्हे पहले एक बार सुकड़े फिर उनकी मज़बूत कमर के मिलेजुले
प्रयास से उन्होंने अपना विकराल भीमकाय लंड निर्ममता से मेरी चूत में जड़ तक ठूंस दिया। मेरी चीख जानकी दीदी और नम्रता चाची से भी
ऊंची थी।
"गंगा ......... बा आआआअ बा आआआआआ। आआआआह धीरे ऎऎऎऎए ........ ऊं*ऊं*ऊं ऊं ऊं ऊं ............ बहुत दर्द आआआह
............. ," मैं दर्द से तड़प उठी।
पर गंगा बाबा ने सुरेश चाचा और बाद मामा की तरह जितनी निर्ममता से अपना लंड मेरी कमसिन चूत में ठूंसा था उन्होंने उसे बाहर खींच कर
एक बार फिर*उतनी बेदर्दी से से उसे मेरी योनि में जड़ तक डाल दिया।
गंगा बाबा ने मेरी चूत मर्दन जानलेवा भयंकर धक्कों से करना शुरू कर दिया।
मेरी चूत मुझे लगा की मानों फट जायेगी। पर अब मुझे ज्ञान हो चला था कि मेरी चूत पहले जितना भी दर्द करे पर थोड़ी देर में गंगा
बाबा मोटे लम्बे लंड के आनंद से अभिभूत हो जायेगी।
गंगा बाबा ने मेरे होंठो को चूस कर उन्हें सुजा दिया।
मैं अब सिसक सिसक कर गंगा बाबा के लंड का स्वागत कर रही थी। उनका लंड मेरी रस से भरी चूत में सपक सपक की आवाज़े पैदा करते हुए
रेल इंजन के पिस्टन की तरह अविश्वसनीय रफ़्तार से मेरी चूत में अंदर बाहर आ जा रहा था।
मैं गंगा बाबा से कस कर लिपट गए और मेरी जाँघों ने उनकी कमर को अपनी गिरफ्त में लेने का असफल प्रयास किया।
गंगा बाबा के वृहत भीमकाय मूसल ने पांच मिनटों में मुझे कामोन्माद के द्वार पर ला पटका।
"आआआआह ......... गंगा बाबा .......... आआआआअ मैं आने वाली हूँ," मैं वासना के ज्वार से सुलगते हुए बुदबुदाई।
गंगा बाबा ने मेरे सुबकते मुंह को अपने मर्दाने मुंह से दबोच लिया और उनका लंड अब दनादन मेरी चूत को बेरहम धक्कों से छोड़ रहा था।
शीघ्र ही मैं झड़ने लगी। मेरी सिसकारी हल्की सी चीख में बदल गयी।
गंगा बाबा ने बिना धीरे हुए मेरी चूत का मर्दन निरंतर अविरत भीषण धक्कों से करते हुए मेरे दुसरे रतिविसर्जन को तैयार कर दिया।
मैं अब वासना की आग से पागल सी हो उठी। मैं सुबक सिअक कर अपनी चुदाई के आनंद के अधिक्य से बिलबिला रही थी।
मेरे कान अब जानकी दीदी और नम्रता चाची की सिस्कारियों की तरफ बहरे हो गए थे। अब मेरा पूरा ब्रह्म्बांड मेरी चूत में पिस्टन की
तरह चलते गंगा बाबा के विकराल लंड के ऊपर सिमट चुका था।
गंगा बाबा ने अपने धक्कों में और भी ज़ोर लगाना शुरू कर दिया। मेरा पूरा शरीर उनके भारी विशाल शरीर के नीचे दबे होने के बावज़ूद
उनके हर भीषण धक्कों से सर से पैर तक हिल रहा था।
मैं अब तक ना जाने कितने बार झड़ चुकी थी। मैं अब कामानंद के अविरत आक्रमण से हवा में डोलते पत्ते की तरह कांप रहे थी।
गंगा बाबा का लंड मेरी चूत में अभी भी एक बेदर्द धक्के के बाद दूसरा धक्का लगा रहा था।
मैं थोड़ी देर में नए रतिविसर्जन के आनंद से डोल उठी। मेरा मस्तिष्क उत्तेजना और कामानंद के प्रभाव से शिथिल हो जा रहा था।
मेरा आखिरी कामोन्माद इतना तीव्र गहन और प्रचंड था कि मैं एक चीख मार कर दीवान पर शिथिल हो कर निसहाय लेट गयी। मैंने अपने
आप को गंगा बाबा और उनके भीमकाय लंड के ऊपर न्यौछावर कर उनके रहम और उनकी करुणा के ऊपर छोड़ दिया।
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