Monday, January 27, 2014

बदनाम रिश्ते खानदानी चुदाई का सिलसिला--19

FUN-MAZA-MASTI

बदनाम रिश्ते
खानदानी चुदाई का सिलसिला--19


गतान्क से आगे..............
 दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी का उन्नीसवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ
सखी का मूह खुला का खुला रह गया. उसे यकीन नही हो रहा था. पर फिर उसे अपने और बाबूजी के संबंध समझ आए. सेक्स तो सेक्स है..उसमे रिश्ते नही आते ..ख़ास तौर से एक बार अगर खुला पन आ जाए तो. राखी के मन में कोई पाप तो था नही. सब कुच्छ अचानक हो गया. अब अगर उसकी मा की इच्छा जागृत हो गई है तो उसमे भी क्या ग़लत है. सखी कुच्छ बोली नही पर राखी की बाते चुप चाप सुनती रही. उसके मन में अलग अलग ख़याल थे. उसके चेहरे के भाव बार बार बदल रहे थे. तभी उसने सरला और मिन्नी को टाय्लेट से बाहर आते हुए देखा. साथ ही उसकी नज़र रास्ते में लगे एक टेबल पे बैठे हुए 4 - 5 कॉलेज स्टूडेंट्स पे पड़ी. सरला को देख के उनके मूह भी खुले के खुले रह गए थे और एक लड़के का हाथ अनायास ही अपनी पॅंट के उपर चलने लगा. एक सेकेंड के लए सखी को बहुत गुस्सा आया पर फिर जैसे ही उसने सरला को देखा उसका गुस्सा गायब हो गया. सरला के चेहरे पे एक खुशी और सुकून था जो काफ़ी समय से सखी ने नही देखा था. आज एक नई सरला उसके सामने थी. उसके टेबल पर पहुँचने से पहले सखी ने राखी को हामी भर दी.

''ठीक है भाभी मैं आपके साथ हूँ ..अब आगे देखते हैं उपर वाले को क्या मंज़ूर है..'' सखी ने अपने चेहरे पे स्माइल लाते हुए राखी को देखा. राखी ने उसके कंधे पे हाथ रखते हुए उसे आश्वासन दिया.

15 - 20 मिनट में सबने लाइट स्नॅक्स लिए और माल से बाहर जाने की तैयारी करने लगे. संजय ने बाबूजी को फोन लगाया और उनके बारे में पुछा. बाबूजी ने कहा कि उन्हे कुच्छ समय और लगेगा. जब संजय बाबूजी से बात कर रहा था तो सखी अपने पेट को सहलाते हुए बैठ गई और राखी टेबल पे सिर रख के सो गई. संजय ने वापिस आके बाते की बाबूजी को समय लगेगा. शाम के 5 बज चुके थे और संजय तो रास्ते में ट्रॅफिक जाम की चिंता हो रही थी. संजय ने सखी को पेट पे हाथ फेरते हुए देखा तो पुछा की बात क्या है. सखी ने कहा कि उसे उनेअसिनेस्स लग रही थी और वो लेटना चाहती थी. राखी को सोया देख के सुजीत ने उससे पुछा तो कहने लगी कि उसे भी थकान महसूस हो रही है. तब सखी ने संजय से घर चलने को कहा. संजय ने बाबूजी की बात कही तो सुजीत बोला कि वो बाबूजी को ले आएगा. थोड़ी बहस और डिस्कशन के बाद डिसाइड हुआ कि सुजीत बाबूजी की वेट करेगा और संजय सभी लॅडीस को लेके घर की तरफ रवाना होगा.

सभी पार्किंग लॉट में पहुँचे तो सखी पेट पकड़ के गाड़ी की पिच्छली सीट पे लेट गई. उसने करीब करीब पूरी जगह ले ली थी. संजय ने उसे उठ के बैठने को कहा तो उसने मना कर दिया. अब गाड़ी में संजय के अलावा सिर्फ़ 2 लोग और बैठ सकते थे. मिन्नी अगली सीट पे बैठी और राखी को सुजीत ने अपनी गाड़ी में बैठने को कहा. सरला सखी के साथ पिच्छली सीट पे बैठने ही लगी थी कि अचानक राखी ने पीठ दर्द की शिकायत की और सुजीत को उसकी पीठ की मसाज करने को कहा. शायद प्रेग्नेन्सी की वजह से कमर में दर्द उठ रहा था. ये सब देख के सभी परेशान हो गए. ऐसे में बड़पान्न और समझारी दिखाते हुए सरला बोली.

''संजय तुम एक काम करो. इन 3नो को घर लेके जाओ. मिनी तू पिच्छली सीट पे आजा और सखी का सिर अपनी गोद में रख ले. राखी तू आगे बैठ. मैं सुजीत के साथ तुम्हारे बाबूजी का वेट करती हूँ. हम तीनो आ जाएँगे. वैसे भी तुम लोग स्लो जाओगे तो हम लोग भी पिछे पिछे तुम लोगों को मिल ही जाएँगे.'' सरला ने अब घर की बड़ी बुज़ुर्ग होने के नाते हुकुम सुनाया. इससे पहले कि कोई और बहस होती सरला ने संजय को बाजू से पकड़ के ड्राइवर सीट की तरफ इशारा किया और मिन्नी पिच्छली सीट पे शिफ्ट हो गई. सुजीत ने राखी को अगली सीट पे बिठाया और दरवाज़ा बंद किया.

सबने सुजीत और सरला को बाइ कही और संजय ने ड्राइविंग शुरू की. सुजीत ने बाबूजी को फोन लगाया और सरला सखी को बाइ करते हुए गाड़ी को जाते हुए देखती रही. जब वो ओझाल हो गए तो सरला सुजीत की तरफ मूडी. सुजीत की साइड सरला की तरफ थी और वो बाबूजी को सब बातें समझा रहा था और उनकी इन्स्ट्रक्षन्स को सुन रहा था. पॅंट की लेफ्ट साइड में बना हुआ हल्का उभार एक बार फिर सरला की निगाह को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था....आआआूओ...आआ जाआओ..मेरे पास मेरी आगोश में..................तुम्हे सुख दूँगा............
दोस्तो उधर मे क्या हो रहा है चलो देखते है.......................................................
''भैईयाज़ी ये इस समान का क्या करना है..?'' कम्मो बिस्तर के बगल में खड़ी थी. पैरों में एक पुराना सूटकेस पड़ा था. आज कम्मो ने अपना सबसे सस्ता और पुराना सूट पहना हुआ था. घर की सॉफ सफाई में वो भी गंदा हुआ पड़ा था. राजू सुबह से सिर दर्द से परेशान था. मिन्नी के जाते ही फिर सो गया. 12 बजे उठा तो देखा मुन्नी और कम्मो घर की सफाई में लगी हैं. कम्मो से कह के चाइ बनवाई और पी के फिर सो गया. अब दोपहर के 2 बजे थे. बिस्तर पे बनियान और लोअर में उल्टे लेटे हुए उसने आँखें खोली.

''कौन सा समान...क्या कह रही है ..??'' खीजते हुए उसने पुछा.

''ये बाबूजी का कोई पुराना सूटकेस है. इसमे क्या है पता नही. बताओ क्या करूँ. बस ये आख़िरी काम है फिर सब ख़तम.'' कम्मो ने जवाब दिया.

''सूटकेस खोल के दिखा फिर बताता हूँ.'' राजू की नज़र के ठीक सामने कम्मो का पेट था. आधी खुली आँखों से वो उसके पेट को देख रहा था. हेडएक कम हो गया था पर दिमाग़ ठीक से फोकस नही था.

कम्मो सूटकेस खोलने के लिए ज़मीन पे बैठी तो अब उसका सिर नज़र आने लगा. एक एक करके कम्मो ने सूटकेस से चीज़ें निकाली. कुच्छ पुराने कपड़े, 2- 3 किताबे और एक फोटो आल्बम थे उसमे.

''भैया जी इसे तो आप ही देखो..'' कम्मो बैठे बैठे बोली.

''अर्रे निकाल के दिखा दे क्या क्या है. '' राजू अब भी सुस्ती में था.

कम्मो कपड़ो को लेकर खड़ी हुई और एक एक करके राजू को दिखाने लगी. कपड़ो की हालत देख के लग रहा था जैसे 20 - 25 साल पुराने हो. एक सुहागन का जोड़ा था शायद. अच्छी कारीगरी किया हुआ ब्लाउस. एक घाघरा, एक चुननी. कम्मो सब कपड़ो को एक एक करके फैला के दिखा रही थी और ज़मीन पे फेंक रही थी. कपड़ो के साइज़ से लगा कि किसी पतली औरत के कपड़े थे. उनको देख के राजू की जिग्यासा जाग उठी. उसका दिमाग़ सोचने लगा कि किसके कपड़े हैं. इतने में कम्मो नीचे झुकी और अब राजू की नज़र के सामने सूट के टॉप से छलक्ति हुई उसकी मोटी मोटी चूचियाँ आ गई. कम्मो की ब्रा से बाहर आती हुई चूचियो ने राजू का ध्यान ऐसे खींचा कि वो सब भूल गया. कम्मो 4 - 5 सेकेंड झुकी रही और राजू उल्टे लेटे लेटे अपने लंड का कड़कपन महसूस करता रहा.

2 सेकेंड के लिए राजू ने आँखें बंद की ..जैसे कि इस नज़ारे को अपनी आँखों में क़ैद करना चाहता हो. ''भैया जी इन किताबों का क्या करूँ.'' कम्मो अपनी बाहों में 4 - 5 मोटी मोटी किताबें संभाले हुए खड़ी थी.

''इन्हे यही बिस्तर पे रख दे.'' राजू ने चाल चली.

कम्मो ने अपनी लेफ्ट बाजू से किताबों को संभालते हुए एक एक करके उन्हे रखना शुरू किया. बिस्तर के नज़दीक खड़े किताबें रखने को झुकते हुए उसके राइट चूचे का उभार फिर से नज़र आने लगा. अपनी गर्दन बिना हिलाए राजू आँखें बड़ी बड़ी करके उन्हे देख रहा था. उसका पूरा फोकस चूचे निहारने में था और उसने कम्मो की नज़रों पे गौर नही किया. कम्मो किताबे एक एक करके रखते हुए राजू को देखने लगी. उससे एहसास हो गया कि राजू की ललचाई हुई नज़रे उसके मोटे चूचों का नज़ारा ले रही है. कम्मो की चूत में अचानक से खलबली हो उठी. राजू का लंड बड़ा है ये तो उसने मिन्नी के मूह से सुना हुआ था और आज शायद मौका आ गया था जानने का कि वो कितना बड़ा है. बाबूजी से चुदे हुए उसे 1 हफ्ते से उपर हो गया था. पति के साथ तो बस पत्नी धरम निभा रही थी. रमेश अपनी शादी के बाद से होनेमून से लौटा नही था. अक्सर चूत में चीटियाँ सी रेंगती थी और अब भी वही हाल हो रहा था. कम्मो का मन डोल गया और उसने ठान लिया कि अब तो राजू को पटा के ही छोड़ेगी.

''क्या हुआ भैया जी कहाँ खो गए...'' कम्मो ने आख़िरी किताब को बेड पे रखते हुए अपने बदन को मोड़ा और राजू के चेहरे के ठीक सामने अपनी छातियो को रखते हुए बेड पे दोनो हाथ रखे और आधी झुकी हुई अवस्था में खड़ी हो गई. अचानक हुए सवाल और कम्मो के मुड़ने से राजू थोड़े चौंक गया. 1 सेकेंड के लिए उसने कम्मो का चेहरा देखा और उसे लगा जैसे कि कम्मो उसे एक मादक मुस्कान से लुभा रही है. शायद ये उसका भ्रम था पर शायद नही...कन्फ्यूज़्ड अवस्था में राजू थोड़े पिछे हुआ और करवट ली.  कछे में क़ैद लंड का उभार देखते ही बनता था. बरबस कम्मो की नज़रें उसकी तरफ चली गई और उभार का साइज़ समझते ही उसकी आँखों में नशा उतर आया और नीचे का होंठ दाँतों के बीच काटते हुए उसके मूह से एक बहुत ही हल्की और दबी हुई सिसकी निकल गई.

सिसकी की आवाज़ राजू के कानो से बची नही और उसने एक बार कम्मो को देखा और फिर उसकी नज़रों का पिच्छा करते हुए अपनी कॅप्री के उभार को. कम्मो की नज़रें वहाँ गढ़ी हुई थी और उसके चेहरे के भाव बदल चुके थे. झुके झुके उसकी साँसे थोड़ी तेज़ हो गई और उरोज थोड़ी स्पीड से उठने लगे. सूट का कपड़ा हल्का था सो ब्रा में बनती हुई निपल्स की शेप भी दिखने लगी थी.

''वो क्या है ना मुझे अचानक से बहुत भूख लगी है और कुच्छ रसभरी चीज़ खाने का मन कर रहा है ..जैसे की आम या खरबूजे...मीठा हो और बढ़िया रसीला. देखो तुम कुच्छ अरेंज्मेंट कर सकती हो तो..वैसे खरबूजों के साथ अगर कुच्छ नमकीन रस या जूस मिल जाए तो और भी अच्छा हो जाएगा... वैसे तुम किन ख़यालों में खो गई कम्मो ? '' राजू अब थरक चुका था. कम्मो की नज़रें उसे उत्तेजित कर रही थी. लंड में गर्मी का एहसास बढ़ गया था.

''भैया जी वैसे भूख तो मुझे भी बड़ी लगी है..केला खाए बहुत दिन हो गए और कहीं केले का शेक मिल जाए तो और भी अच्छा होगा..मैने सुना है केले के साथ अंडे खाने चाहिए ...उनसे औरतों को ताक़त मिलती है. खरबूजों की खावहिश कैसे पूरी होगी...दरअसल जहाँ से खरबूजे मिलेंगे वहाँ कोई दिक्कत नही पर एक संतरे की दुकान भी है बगल में वो कहीं ना दिक्कत करे.'' अब कम्मो ने राजू की आँखों में आँखें डालते हुए अपनी तेज़ साँसों से उभरती गिरती चूचियों को खुल के दिखाते हुए कहा. उसका इशारा साफ था कि वो तैयार है पर मुन्नी भी घर में है और उसकी वजह से दिक्कत हो सकती है.

राजू समझ गया. उसका दिमाग़ तेज़ी से दौड़ने लगा. ''कम्मो अगर तुम्हे ठीक लगे तो क्यों ना खरबूजों के साथ संतरे भी खाए जाएँ. वैसे मुझे लगता है कि संतरे वाले को केले का शौक होगा और फिर केला बड़ा है तो एक साथ 2 लोगों की भूख मिट जाएगी...क्या कहती हो ????'' राजू का दिमाग़ अब कम्मो और मुन्नी दोनो को एक साथ चोद्ने का था.

''भैया जी मुझे कोई ऐतराज नही अगर आप खरबूजे और संतरे एक साथ खाओ. बस मुझे एक बात का डर है कि संतरे वाले ने कहीं केला खाने से मना कर दिया. वैसे भी बड़े केले से शायद वो डर जाए. मेरा क्या है मैं तो बड़े केले खा चुकी हूँ. '' अब कम्मो बिस्तर की किनारे पे बैठ गई थी. अभी भी वो आधी झुकी हुई थी.

''कम्मो तो एक काम करो. मैं संतरे वाले को केला दिखा के आता हूँ तब तक तुम तरबूज तैयार करो. जिसको खाना है वो अपने आप देखे और डिसाइड करे कि केला उसको चाहिए या नही. बाकी अगर मना किया तो कोई बात नही तब की तब देखी जाएगी.'' राजू अब ठीक से सोच नही पा रहा था. उसका ये प्लान फैल होने का पूरा पूरा चान्स था. कम्मो को पता था की मुन्नी कामुक है पर इतनी छिनाल भी नही की एक बार देखते ही मान जाए. वो भी अगर उसको इतने सीधे तरीके से दिखाया जाए तो. बाबूजी ने बहुत मस्त अंदाज़ में और अपनी पोज़िशन का इस्तेमाल करते हुए उसको सिड्यूस किया था. पर वो राजू के साथ ऐसे ही मानेगी वो पक्का नही था. और उसके चक्कर में कम्मो को भी कुच्छ नही मिलेगा.

''भैया जी आप रहने दो...मैं देखती हूँ क्या करना है. आप बस बिस्तर पे आँखें बंद करके पड़े रहिए और केले के दर्शन करवाने का इंतज़ाम कीजिए. '' ये कह के कम्मो शरमाते हुए हँसती हुई कमरे से बाहर चली गई. उसकी मटकती हुई गांद को देखते हुए राजू ने अपने लंड को मसल दिया. एक दम से वो बिस्तर से उठा और बाथरूम में फ्रेश होने चला गया. उसे समझ नही आ रहा था कि कम्मो क्या करेगी पर उसे इतना ज़रूर समझ आया कि उसे नंगा होके बिस्तर पे सोने का नाटक करना है. 5 मिनट में फ्रेश होके वो अपनी लोअर और कच्छा उतार के बिस्तर में चादर ओढ़ के साइड लेके सो गया. उसने अपने सोने का पोज़ ऐसा बनाया कि उसके लंड का टोपा उसकी चादर में ऐसी जगह उभार बनाए जिससे उसकी लंबाई का पूरा पूरा अंदाज़ा हो.

कम्मो फटाफट मुन्नी के पास गई. मुन्नी सब काम ख़तम करके आँगन में बैठी बीड़ी पी रही थी. उसे बीड़ी पीने की आदत नही थी पर कभी कभी थकान में पी लेती थी. कम्मो ने उसके पास जाते ही गहरी गहरी साँसे लेनी शुरू की और बगल में बैठ गई. फिर उसने भी एक बीड़ी खींची और सुलगाई. सुलगाते हुए उसके हाथ जानभूज के काँप रहे थे. फिर एक लंबा कश खींच के उसने धुआँ बाहर छोड़ा और अपनी फूली साँस को संभालने लगी. आँगन तक आते आते उसने अपने निपल्स को रगड़ के अच्छे से खड़ा कर दिया था और अब उनका उभार सॉफ दिख रहा था.

''क्या हुआ री...तू इतनी गरमाई हुई क्यों है साली....क्या कर के आई है जो चूत मे इतनी खुजली हुई पड़ी है...साली देख तो तेरी चूची कैसी खड़ी है...'' मुन्नी ने आगे बढ़ के उसकी एक चूची को दबाया और निपल को खींच लिया. कम्मो ने बीड़ी का कश लेते हुए एक सिसकी ली और उसका हाथ झटक दिया.

''जो मैने देखा अगर तू देख लेती तो तेरी भी यही हालत होती. कमीने का लंड नही है मूसल है मूसल. हाए मेरी तो मुनिया फॅड्क गई...मन कर रहा है अभी चढ़ जाउ हरामी पे..उफफफ्फ़...कुच्छ कर मुन्नी ..आग लगी हुई है जान...तू ही भुझा दे...'' कम्मो ने मुन्नी का हाथ पकड़ के अपने सूट के उपर रखवाया और सहलवाया.

कम्मो की इस हरकत से मुन्नी हैरान हो गई. उनके बीच में अक्सर ऐसी हरकतें होती थी पर आज जो हाल उसका था वो पहले कभी नही हुआ था. बाबूजी के साथ रंग रलियाँ मनाते हुए मुन्नी ने कम्मो का एक एक अंग देखा था. पर उसके बाद से उनके बीच कुच्छ नही हुआ. आज कम्मो का अंदाज़ भी अलग था और उसकी कामुकता भी चरम सीमा पे थी.

''अररी छिनाल किसका लोडा देख आई..?? हराम की जनि मुझे भी बता..मुझे भी दिखा..वैसे ही 5 दिन से चूत में कुच्छ लिया नही है...अररी बोल ना बस बीड़ी पिए जाएगी क्या...किसका देखा..??'' मुन्नी हाथ से कम्मो की चूत दबाने में लगी हुई थी.

''उस्स हरामी राजू का... इंसान नही है ..घोड़ा है घोड़ा..अगर तू नही होती तो अब तक तो मैं घोड़े की सवारी कर रही होती..सोते हुए ही उसको चोद देती...जालिम क्या चीज़ है...उफफफ्फ़..और कर्र मुन्नी ...जल्दी हाथ चला..वो तो मिलने से रहा तू ही झाड़वा दे..'' कम्मो अब अपने हाथ पिछे किए बैठी थी. टांगे पूरी खोल दी थी और ज़ोर ज़ोर से सिसकियाँ ले रही थी.

''साली मैं नही होती तो चढ़ जाती...कमीनी मेरे साथ बाबूजी के मज़े लिए और अब तुझे शरम आ रही है..या तेरी इस चूड्डकड़ चूत को अकेले ही लंड लेना है...मेरी पीठ पिछे इस घर के मर्दों से चुद्वायेगि और मैं ठेंगा हिलाती रहूं..कुतिया कहीं की ..मैं भी लूँगी हरामजादि उस घोड़े का लंड ..चल मेरे साथ अभी उसकी जवानी लूट लेते हैं....'' मुन्नी ने अपनी चूची को दबाते हुए कहा.

''अररी रहने दे ..तेरे बस की नही है उसका लेना...तेरे जैसी दुबली पतली तो मर ही जाएगी उसके नीचे...उसके नीचे तो मेरे और मिन्नी दीदी जैसी कोई चाहिए...जा तू तेरे बस की ना है..'' कम्मो ने अब आख़िरी तीर चलाया.

''अच्छा ऐसा है क्या ..तो फिर तू देख मैं क्या करती हूँ..तू बस यही पड़ी रह ..अपनी चूत को संभाल के रख मैं चली लंड खाने...घोड़ा हो या घड़ा अब तो सवारी करके ही रहूंगी...'' मुन्नी ने बीड़ी एक तरफ फेंकी और जोश में उठ के राजू के कमरे की तरफ चल पड़ी. उधर राजू काफ़ी देर इंतेज़ार करने के बाद नंगा ही अपने लंड को मुठिया रहा था. लंड मुठियाते हुए उसकी आँखें बंद हो गई थी और चादर भी अस्त व्यस्त हो गई थी. जो हिस्सा दरवाज़े के नज़दीक था वहाँ से चादर हट चुकी थी. उपर का बदन भी नंगा था. लंड के टोपे और उपर के हिस्से को राजू अपनी मस्ती में गोल गोल मुठिया रहा था. बचपन से ही उसे अपनी हथेली को लंड के टोपे पे गोल गोल घुमाने में मज़ा आता था. उसकी वजह से वो जल्दी झरता था. पर आज उसे झरना नही था बस मज़ा लेना था. इसलिए वो बीच बीच में लंड को सेंटर से पकड़ के ज़ोर से दबाता जिससे की सारा खून लंड के टोपे पे चला जाता और उसकी थरक थोड़ी शांत हो जाती. इसी तरीके से वो लंड को बीच में से दबोच के चादर के नीचे हिला रहा था कि अचानक से मुन्नी ने कमरे में दाखिला लिया.

''ह्हेयाआयीयियीयेययी भैयाअ...जी ये किययाया...है......हाथी का लंड लेके पैदा हुए थे क्या....ऊओ माआ....कम्मो ने सच ही कहा था......ऊवू दैयाअ...इसे कैसे लूँगी मैं....??'' ठर्कि मुन्नी राजू के कद्दावर लंड को चादर के नीचे देखते ही अचंभित रह गई और उसके मूह से अश्चर्य और खुशी की चीख निकल गई. आँगन से कमरे तक आते आते उसने भी अंजाने में अपने उरोजे मसले थे और वो भी कड़क हुए पड़े थे.

''तू .तू यहाँ क्या कर रही है...कमरे में आने से पहले दवज़ा तो खटखटाती..तुम्हे तमीज़ नही है...?'' राजू ने झट से चादर को सेट किया और वैसे ही पड़े पड़े अपना हाथ खींच लिया. पीठ के बल लेटे लेटे उसके लंड ने चादर में एक विशाल तंबू बनाया हुआ था. अंदर ही अंदर वो मुस्कुरा रहा था. फिर जब राजू को यकीन हो गया कि मुन्नी ने उसका साइज़ अच्छे से समझ लिया है तो वो बिस्तर के किनारे पे टांगे नीचे लटका के बैठ गया. चादर उसके लंड को ढके हुए थी पर उसकी बालों से भरी चौड़ी चेस्ट, पेट एक तरफ का चूतड़ और आधी नंगी टांगे सॉफ दिख रहे थे.

''भैया जी ...वो मैं ..मैं ना... '' मुन्नी को अचानक से होश आया कि उससे क्या ग़लती हो गई है..फिर उसकी नज़र एक बार और चादर में लिपटे हुए लंड पे पड़ी और जैसे उसकी चूत पिघलने लगी. ''भैया जी मुझे आपका हथियार चाहिए ..अभी के अभी...यहाँ ...डाल दो और चोदो मुझे भैया जी ...अब नाही रहा जाता.....'' मुन्नी अब पागल हो गई थी और उसने अपनी सलवार का नाडा खोल दिया और सूट का टॉप भी उतार फेंका. कछि तो उसने पहनी नही थी सो नंगी चूत पे हाथ फेरते हुए उसने चूत की फांके खोल दी. बाबूजी से चुद्ने के बाद उसने अपनी झाटें सॉफ की थी और तब से लेके अब तक उसकी चूत पे हल्के हल्के बॉल आ गए थे. उन बालों में एक उंगली फिराते हुए वो एक शेरनी की तरह राजू पे झपटी और उसकी गोद में जाके बैठ गई. एक ही सेकेंड में उसका मूह राजू के मूह से सटा हुआ था और उसका एक हाथ राजू की गर्दन के पिछे और दूसरा हाथ चादर को हटाने में लगा हुआ था. तो दोस्तो आपने देखा कि मुन्नी तो गई काम से फिर मिलेंगे अगले पार्ट मे फिर देखेंगे क्या मिन्नी राजू का हथियार झेल पाई या नही आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः...............................................



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