Monday, December 7, 2015

FUN-MAZA-MASTI ओह माय फ़किंग गॉड--7

FUN-MAZA-MASTI

ओह माय फ़किंग गॉड--7



 ताजे वीर्य की महक, हल्की गर्मी और इस खंडहर की सोंधी-सोंधी गंध एक अजीब सी रोमांचक माहौल बना रखा था. साधारण तौर पर इस वक़्त मुझे डर लगना चाहिए, लेकिन मुझे मजा आ रहा था. जिंदगी में उन्ही चीजो को करने में ज्यादा मज़ा आता है जो या तो निषिद्ध है या जो आसानी से कोई कर नहीं सकता. बाहर किसी जानवर के भूकने की आवाज आ रही थी, शायद कुत्ते या सियार की. मैंने आँख खोली, सोमा को देखा. उसका बदन सांसो के साथ ऊपर-निचे हो रहा था, आंख बंद और चेहरे पर शांति थी जैसे की कोई बड़ी मुसीबत का हल हो गया हो. मेरा गला सुख चूका था. मैंने उठकर बैग से पानी की बोतल निकली एक ही घूंट में आधा पानी पि गया. सोमा के पास जाकर धीमे से पूछा – “रानी, प्यास लगी है?” वह बिना कुछ बोले मुँह खोल दी. मै बोतल से पानी पिलाया. वह पानी पीकर भी आँख बंद कर लेती रही. मैंने उसको परेशान करना सही नहीं समझा और बाहर के कमरे की खिड़की से बाहर का नज़ारा देखने लगा. बाहर घुप्प अँधेरा था, दूर से शहर की रौशनी दिख रही थी. तभी अन्दर से सोमलता की धीमी पुकार सुनाई दी – “ओ बाबु, कहाँ गए अपनी रानी को छोड़कर.... पास आओ ना....” उसकी पुकार मदहोश कर देने वाली थी. शायद झड़ने की वजह से नशे में थी. अन्दर कमरे में गया तो वहां का नज़ारा देख मेरा सर चकराने लगा. मेरी प्रेमिका चूत-चुसाई की वजह से मदहोश नहीं थी. वह अपने सारे कपड़े उतार दिवार से पीठ टिकाकर बैठी थी और उसके हाथ में एक बोतल थी. जी हाँ, वह साली दारू पी रही थी, वह भी देसी. शायद मेरे लंड को यह नज़ारा अच्छा लगा रहा था तभी तो वह अपना फन उठा रहा था. मैं जल्दी से उसके पास गया हाथ से बोतल छिना तो पाया की वह एक तिहाई दारू गटक चुकी थी. सोमा मेरे हाथ से बोतल छीन ली. मैंने हैरानी से पूछा – “तुम दारू पीती हो?” नशीली आँखों से मेरी ओर ताकते हुए बोली – “हाँ पीती हूँ कभी कभी. आज मेरी ज़िन्दगी का ख़ुशी का दिन है. तुम क्यों हैरान होते हो. तुम भी तो पीते हो.” फिर एक घूंट लगाकर मुझे अपने पास चिपका ली. बोतल को बगल में रखकर मेरी गर्दन को कसकर पकड़ ली और मेरी होंठो पर होंठ लगा दी. उसकी मुँह से दारू का तीखा गंध और कसैला स्वाद से दम उखड़ने लगा. मैं हट गया. सोमा को मेरा इस तरह से हटना बुरा लगा. वह फिर से मुझे खींचकर होंठो से चिपका ली. इस बार उसकी पकड़ इतनी मजबूत थी की मैं बेचारा तड़प कर रह गया. वह कोई आम घरेलु औरत तो थी नहीं, मजदूरी करनेवाली औरत की पकड़ मजबूत तो होगी ही. उसने मेरे होंठो को इस तरह से चूस रही थी की मेरा साँस लेना दूभर हो रहा था. लगभग 7-8 मिनट के बाद मैं जल बिना मछली की तरह छटपटाने लगा. किसी तरह उसकी पकड़ से छूटकर मैं भागा पानी के लिए. पानी पीने के बाद मेरे जान में जान आई. मैं जोर-जोर से साँस ले रहा था. मेरी यह हालत देखकर वह बच्चे की तरह जोर-जोर से हंसने लगी. मेरी तो गांड फट रही थी कोई सुन ले तो आफत आ जाये. मैं जल्दी से उसकी होंठो पर ऊँगली रखकर कहा – “जोर से मत हंसो, कोई सुन लिया तो आफत आ जाएगी.” उसका हँसना बंद हुआ लेकिन मुझे देख मुस्कुराते हुए बोली – “क्या बाबु, इतने में जान निकल गयी तेरी. तू सचमुच बहुत भोला है. आ मेरे पास आ मेरे बालम!” दोनों बाहें फैलाये मुझे अपने पास बुला रही थी. गाँव की औरतो के नखरे, प्यार सब कुछ अनोखा होता है. खासकर नीची जाति वालों की. मैं गौर किया की सोमलता मुझे ‘तुम’ की जगह ‘तू’ से बुला रही है. शायद यह शराब का आसार था जो उसको कुछ ज्यादा खोल दिया था. मुझे अपने सीने से चिपकाकर मेरे पीठ को सहलाते हुए पूछी – “अच्छा बाबु, शादी होने के बाद भी क्या तू मुझे प्यार करेगा ? मेरी चूत को चुसेगा? मुझसे मिलेगा?” मैं उसकी बायीं गाल को चुमते हुए – “बिल्कुल मेरी रानी. जब तुम बुढ़िया हो जाओगी तब भी मैं तेरी चूत तो चुसुंगा.” सोमा मेरी पीठ में चिकोटी काटते हुए बोली – “बहुत ज्यादा शैतान हो गया है तू.” मैं बोला – “अच्छा वोह सब हटा. यह बताओ की तुम्हारा काम कैसा चल रहा है पार्लर में?” वह लम्बी साँस लेते हुए बोली – “बहुत अच्छा काम है बाबु. कोई झमेला नहीं है. मजदूरी से बहुत अच्छी है. वहां साले सब मेरी बदन के पीछे पड़े रहते थे. यहाँ कोई डर नहीं है. और मैडम बहुत अच्छी है. मैं जिंदगी भर तुम्हारी उधारिन रहूंगी.” यह कहते हुए मेरी ओर देखी. उसकी आँखों के शुकून था. कुछ देर हमलोग ऐसे ही पड़े रहे. आज हमारे जिस्म ही नहीं दिल भी मिल रहे थे. पता नहीं इस रिश्ते का क्या अंजाम होगा? और मैं अंजाम के बारे में सोचना भी नहीं चाहता. मैं तो बात इस अजीब रिश्ते को जीना चाहता था जब तक जी सकूँ.

हमदोनो दिवार पर पीठ टिकाकर लेते हुए. रात का सन्नाटा अजीब-सी सुकून का एहसास करा रही थी जैसे की हमदोनो के लिए समय थम सा गया हो. सोमलता मेरे सीने पर सर रख लेते हुए थी. उसकी एक टांग मेरे कमर पर और उँगलियाँ मेरे सीने के बालों से खेल रही थी. मैं उसकी नितम्बो को सहलाते हुए पूछा – “रानी???” “हम्म्म्म” वह धीरे से जवाब दी. “अच्छा तुम्हारी शादी किस उम्र में हुई थी?” – मैंने पूछा. वह कुछ देर खामोश रही जैसे की बीती बातों को याद कर रही हो. 15-20 सेकंड के बाद गहरी साँस लेकर वह बोली – “अठारह साल की उम्र में मेरा लगन हो गया था. लेकिन मेरे बापू के मरने के कारण एक साल के बाद मेरी शादी हुई. शादी मेरी धूम-धाम से हुई, क्योंकि मेरा आदमी दिल्ली में कमाता था. बहुत खर्चा किया था शादी में. जानते हो पहली बार मेरे गाँव में अंग्रेजी बाजा आया था किसी की बरात में.” उसकी बातों में थोड़ी सी गुरूर थी और उदासी भी. मैंने आगे पूछा – “तुम्हारा पति कैसा था?” वह थोड़ा और उदास लहजे में बोली – “हाँ, पहले तो अच्छा था. 6 महीने की छुट्टी में घर आया था. शादी करने के वास्ते. मेरा काफी ख्याल रखता था. मुझसे प्यार भी करता था बहुत. 4-5 महीने तक सब ठीक था. फिर वापस दिल्ली चला गया. 6 महीने बाद आया होली में. तब से कुछ दूर रहने लगा हमसे. जैसे की हम कोई दूर के है. रात तो ना प्यार करता था ना चुदाई. मैं तड़प रही थी.” मैंने पूछा – “अचानक ऐसा क्यों करने लगा? तुम्हारा कोई झगडा हुआ था?” वह गहरी साँस लेकर बोली – “पता नहीं बाबु! पता नहीं किसकी नज़र लग गयी. कुछ पूछने पर बताता भी नहीं था. मुझसे दूर भाग जाता था.” मैंने और जानने के लिया पूछा – “अच्छा तुमलोगों का कोई बच्चा नहीं हुआ?” वह कुछ देर फिर खामोश रही. मुझे लगा की शायद रो रही हो. मै धीरे-धीरे उसकी नितम्बो को सहलाते हुए उसकी पीठ को सहलाने लगा. फिर वह धीरे से बोली – “हाँ बाबु. शादी के 3 महीनो के बाद मैं पेट से हुई. ससुराल में सब खुश थे. अचानक मैं जोर से बीमार पड़ी. अस्पताल में डाक्टर बाबु बोला की मेरा बच्चा पेट में ही मारा गया है. फिर कभी मैं माँ नहीं बन पाई.” उसकी आवाज भरी हो चली थी. मैं उसकी माथे को चुमते हुए कहा – “दिल छोटा मत करो रानी. ठीक तो है, नहीं तो मैं आज तुम्हारे साथ नंगा लेटा नहीं होता ना.” वह फीकी हंसी हँसते हुए बोली – “धत, तुम शैतान हो बाबु.” अब उसकी उँगलियाँ फिर से मेरे सीने के बालों से खेल रही थी. मैं अपने दायें हाथ को फिर से उसकी नितम्बो पर ले गया और पूछा – “अच्छा रानी, सच बताओ तुमने कभी अपने पति को छोड़कर किसी और मर्द से चुदी हो? मेरा मतलब मुझे छोड़कर.” वह मेरा निप्पल जोरसे मरोड़कर बोली – “तू बहुत शैतान हो गया है.” मैंने उसकी गांड को जोर से दबाया और उसकी माथे को चुमते हुए कहा – “रानी, बताओ ना. मुझसे आब क्या शर्मना?” वह थोड़ा इठलाते हुए बोली – “नहीं, मैं नहीं बताउंगी.” मैं फिर से उसकी गांड दबाई और दुसरे हाथ से उसकी गाल सहलाते हुए बोली – “बताओ ना, मैंने तो तुमको सब बताया है अपने बारे में.” वह बोलना शुरू की – “हाँ, एकबार चुदी हूँ. मेरे मरद के मौसेरे भाई से. शादी के एक साल के बाद वाली होली में.” फिर वह चुप हो गई. मैं जोर देकर कहा – “अच्छा, पुरी कहानी बताओ ना.” वह बोली – “अभी बोलूं?” मैं उसको दोनों बाँहों में कसते हुए कहा – “हाँ, रानी अभी बोलो. मज़ा आएगा.” वह मेरे बाँहों में सिमटते हुए बोली – “ठीक है, तब सुनो.”
अब आगे की कहानी मेरी सोमा रानी की जुबानी!!!


मेरी शादी के साल भर से भी ज्यादा हो गया था. मेरा मरद दिल्ली में था. लगभग 7 महीने पहले गया था. बीच-बीच में गाँव के लाला के दुकान में टेलीफोन करता था लेकिन हमसे बात नहीं होता था. हमको बोला था की अगली बार दिल्ली लेकर जायेगा और वहीँ रखेगा. इसी बीच होली भी आ रही थी लेकिन वह होली में घर नहीं आएगा येही बोला था. मैं बहुत उदास थी. किसी काम में मेरा मन नहीं लग रहा था. एक तो नयी-नयी शादी हुई थी और उफनती जवानी मेरे बदन पर सवार थी. मैं क्या करती? कितने महीनो से मरद के प्यार के लिए तरस रही थी. रोज़ मेरी चूत में खुजली होती और रोज़ रात को अकेले में ऊँगली से पानी निकाल कर खलास होती. इस वजह से मेरा मन काफी चिडचिडा हो गया था. हमारा मन ना किसी काम में लगता ना किसी से बात करने में. अकेले खोई-खोई सी रहती थी. जैसे तैसे दिन कटते-कटते होली का त्यौहार आ गया. हमारे ससुराल की होली बहुत दमदार मनाया जाता है. सबके घर में कोई ना कोई मेहमान आता है सब मिलके मस्ती करते है. मेरे भी ससुराल में मेरी दो ननदे जिनकी शादी हो चुकी थी आई थी. और मेरा आदमी का मौसेरा भाई भी आया था. उसका नाम गोपाल था, 22 साल का बांका जवान था जो शहर में आईटीआई की पढाई करता था. देखने में अच्छा था और रंग भी साफ़ था. घर में सब उसको गोपी बुलाते थे. होली से 2 दिन पहले हमारे ससुराल पहुंचा. मेरे ससुराल में मेरी सास के अलावा मेरे मरद की बड़ी बहन ही रहती थी. मेरी सास ने मुझे बताया की यह गोपी है, शहर में रहता है और मेरा छोटा देवर है. गोपी मेरे पास आकर ऊपर से निचे देखा और कहा – “कमाल की बहु खोजी हो मौसी. भैया तो बहुत किस्मतवाले है. जरा अच्छा से देखूं भाभी का चेहरा.” यह कहते हुए गोपी ने मेरी ठुड्डी से चेहरा ऊपर करते हुए बोला – “वाह, भाभी. तुम कमाल हो. मौसी, मेरे लिए भी ऐसी ही लड़की खोजना.” मेरी सास हँसते हुए बोली – “हाँ, हाँ. ठीक है. आज जाओ. हाथ-मुँह धोकर नाश्ता कर लो.” ठुड्डी से हाथ हटाते समय गोपी ने हलके से मेरी एक मम्मे को छू लिया. मैं तो शर्म से पानी-पानी हो गयी. पता नहीं देवरजी ने यह जान-बुझकर किया था या अनजाने में हो गया. महीनों की उपवास के बाद किसी मरद की छुवन ने मुझे चुदासी बना दिया. 


 उस दिन की रात बिना किसी हंगामे के कट गया. गोपी मेरी सास और ननदों से गप्प करने में ही खोया रहा. हमसे भी कुछ बातचीत हुई लेकिन देवर-भाभी के रिश्ते के कारण ज्यादा खुल नहीं पाई. असली कहानी होली के दिन से शुरू होती है. होली के दिन सुबह से ही हम औरतें रसोई में पकवान बनाने में लगी हु थी. सारे मरद या तो किसी की दालान पर गप्प लड़ा रहे थे या होली खेलने की तैयारी में लगे थे. कुछ देर के बाद ही मोहल्ले में होली का शोर-गुल होने लगा. सारे जवान लौंडे एक-दुसरे पर रंग डाल रहे थे. रसोई का काम ख़तम होने के बाद मेरी सास-ननदें नहाने नदी चली गई. मैं घर में अकेली थी. मैं अकेले बैठे-बैठे पिछले साल की होली के बारे में सोच रही थी की अचानक जोर से दरवाजा खुलने की आवाज हुई. बाहर निकली तो देखा की गोपी पुरे रंग में रंगा भूत लग रहा है और दांत निकलते हुए हाथ में रंग लेकर मेरी और आ रहा है. मैं तो समझ गई की मेरी खैर नहीं. मैं डरते हुए कहा – “नहीं देवरजी, मेरे कपड़े ख़राब हो जायेंगे. अभी नहीं.” लेकिन वह मुस्कुराते हुए हाथ में गीला रंग लेकर मेरे पास आया और बोला – “क्या भाभी, मेरी पहली होली है आपके साथ और आप नहीं बोल रही हो. रंग तो आपको लगाना ही पड़ेगा. आज तो मैं अपनी सुन्दर भाभी को जमकर रंग लगाऊंगा.” वह जैसे ही मेरी तरह बढ़ा, मैं दौड़ कर अन्दर भागी. वह भी मेरे पीछे-पीछे दौड़ा. आखिर अन्दर के छोटे कमरे मैं जाकर मैं फंस गयी. मैं शरमाते हुए दिवार की और मुँह कर खड़ी हो गयी. जानती थी कि अब मैं बच नहीं सकती. वह धीरे-धीरे मेरे पीछे आया और मेरे कान पे फुसफुसाते हुए बोला – “भाभी, बुरा मत मानो. होली है!” अब मेरी हालत हलाल होने वाले बकरे के जैसे हो गयी. गोपी बिल्कुल मेरे पीछे था. मैं उसकी गर्म सांसो को महसूस कर सकती थी. गोपी ने दोनों हथेलियों से मेरे गालो को पकड़ा और जोर से रंग मलने लगा. मैं बचने के भागने लगी तो उसने एक हाथ से मुझे कमर से कसकर पकड़ लिया. मैं उसकी पकड़ में छटपटाने लगी तो वह और कसके पकड़ लिया. आज महीनो के बाद मुझे एक मर्द के बदन का स्पर्श मिला रहा था. अच्छा लग रहा था लेकिन साथ में डर भी रही थी. अब गोपी की हथेली गाल से मेरी गर्दन को मल रही थी. मैं अन्दर ही अन्दर सिसकारी ले रही थी. पता नहीं आगे क्या करेगा यह सोचकर मेरी धड़कन बढ़ रही थी. मैं आँख बंदकर उसकी मर्दानी पकड़ का मज़ा ले रही थी. धीरे-धीरे उसका हाथ गर्दन से मेरी छाती पर आ गया. मेरा दिल धक् से रह गया. घर में कभी मैं ब्लाउज के अन्दर ब्रा नहीं पहनती थी. गाँव में ब्रा तो क्या कच्छी तक नहीं पहनती है औरतें. उसके रंग लगे हाथ मेरी मम्मों के उपरी हिस्सों को सहला रहे थे. मेरे लिए सिसकारी को अब दबा रखना मुश्किल था. “उम्म्मम्म....... सिस्स्स्स......... उम्म्मम्म..........” मैं आंख बंद कर हल्की सिसकारी ले रही थी. गोपी की हिम्मत बढ़ गयी थी. अब उसका हाथ ब्लाउज के और अन्दर जाकर मेरे मम्मो को जोर से दबा रहे थे. मेरी प्यासी चूत में खुजली होने लगी. ऐसा लगता था की मेरे पैर जमीन से उखड जायेंगे और मैं गिर जाउंगी. तभी घर के बाहर किसी की आवाज आई. सायद मेरी सास और ननद नहा कर वापस आ गयी थी. मैं झटके देकर अपने आप को गोपी से अलग किया. मारे शर्म के मैं उससे नज़र भी नहीं मिला पा रही थी. नज़र उठाकर देखी तो वह मुस्कुरा रहा था. धीरे से पूछा – “भाभी, रंग गहरा है. इतनी जल्दी नहीं जायेगा.” मैं दौड़कर कमरे से बाहर निकल गयी. बाहर गयी तो मेरी सास और ननद मुझे सवालिया नजरो से घुर रही थी. मैंने झेंपते हुए कहा – “माँ जी, देखो ना पड़ोस की कमला रंग से मेरे कपड़े ख़राब कर गयी.” सास हँसते हुए बोली – “अरे बहु, होली है. यहाँ तो ऐसे ही होली खेलते है. गोपी कहाँ है?” मैंने कहा – “पता नहीं. घर नहीं आया. शायद बाहर खेल रहा है होली.” दिल में डर था कहीं सास देख न ले. लेकिन सास जब अन्दर गयी तो पता नहीं किस रास्ते से गोपी घर से बाहर निकल चूका था.







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