FUN-MAZA-MASTI
ओह माय फ़किंग गॉड--8
गोपाल को समझ में आ गया था कि मैं पूरी तरह से गरम हो गयी हूँ. उसने ऊँगली से पैंटी के रबड़ को खिंचा, मैंने भी मदद करने के लिए चूतड़ उठा दी ताकि कच्छी आराम से निकल सके. चूत की ढकने वाला हिस्सा भींग चूका था और मेरी रस के महक रहा था. देवरजी ने पैंटी को नाक से सटाकर सूंघने लगा और मेरी ओर कातिल नज़रों से देखना लगा. मैं शरमाकर सर को बगल घुमा ली. “भाभीजी, तुम्हारी चूत तो बड़ी मस्त महक रही है. लगता है उतनी मजेदार भी होगी.” यह कहकर उसने फिर से नाक से लगा लिया. मैं तो जैसे असमान में तैर रही थी. आगे जो हुआ, वह मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ था. उसने पैंटी को दूर फ़ेक मेरे दोनों जांघों के बीच अपने सर को ले आया. इससे पहले की मैं कुछ समझ पाती गोपाल ने मेरी चूत पर पूरा मुँह लगा दिया. जिंदगी में पहली बार किसी ने मेरी चूत पर मुँह रखा था. मेरा मरद थूक लगाकर ऊँगली से मेरी चूत मसलता था चुदाई से पहले. देवर की इस हरकत में मुझे हिलकर रख दिया. मैं एकदम से चिहुँक उठी और जोर से चिल्ला उठी. अगले ही पल मुझे अहसास हुआ की मेरी आवाज इस शांत रात में बहुत दूर जा सकती है. गोपाल भी अब कमर से उठकर मेरी छाती को मसलने लगा और मुझे लम्बी गहरी चुम्मी देने लगा. वह शायद मुझे शांत करना चाहता था. मैं अभी भी जोर-जोर से साँस ले रही थी और मेरी सीत्कार हमदोनो के मुँह में घुटकर रह जा रही थी. लगभग 5 मिनट तक मुझे चूमने के बार वह फिर से मेरी जांघो के बीच आ गया.
मारे शर्म के मेरी आखें बंद थी और सांसे धौकनी जैसी चल रही थी. मैं सर को एक तरफ घुमाकर बैचैनी से आनेवाले तूफान का इंतज़ार कर रही थी. लेकिन गोपाल भी शातिर खिलाडी था. वह खेल को लम्बा खींचने में माहिर था. इतने देर तक वह सिर्फ मेरी चूत को घूरे जा रहा था, कुछ कर नहीं रहा था. इधर मेरी बेसब्री बढ़ती जा रही थी. आखिर में मुझे ही चुप्पी तोड़नी पड़ी. “देवरजी, आज कुछ करोगे या घूरते ही रहोगे?” मेरी आँख अब भी बंद थी. मेरी आवाज में चुदास थी. मेरा गला सुख रहा था और चूत गीली हो रही थी. अगर मेरे बस में होता तो मैं अपनी चूत को खुद चाट लेती. गोपाल धीरे-से मेरे कान को चुमते हुए कहा – “भाभी, तुम्हारी चूत इतनी सुन्दर है की देखते रहना चाहता हूँ. गुलाबी बिल्कुल गुलाब के जैसे.” चूत की बढाई सुनकर तो हर लड़की शरमा जाती है. मेरी गाल भी शर्म से लाल हो गयी. गोपाल मेरी गर्दन चुमते हुए होंठो को चूसने लगा. लेकिन इसबार वह बड़ी बेदर्दी से चूमने लगा. कभी मेरी होंठो को चूमता-कटता, कभी जीभ को चूसता तो कभी मेरे मुँह में अपनी जीभ डालकर मेरी जीभ को लपेटता. मैं पागल हुए जा रही थी. मेरे हाथ उसकी पीठ को सहलाते-सहलाते कमर के निचे जा पहुंचा. उसकी गांड के दरार में काफी सारे बाल थे. एक हाथ उसके पेट के निचे जा पहुंचा जहाँ उसका फ़ौलाद तन कर अड़ा था. काफी अरसे के बाद मेरे हाथ को मर्द का लंड नसीब हुआ था. लेकिन उसका लंड लंड नहीं खम्भा था. इतना बड़ा और मोटा लंड मैंने आज तक किसी का नहीं देखा. हालाँकि मैं अभी तक सिर्फ अपने पति और अपने चाचा का लंड देखा था वह भी गलती से. मुझसे अब रहा नहीं गया. मैं उसके लंड को मसलने लगी. अब देवरजी की हल्की मीठी सिसकारी निकली – “ओह मेरी प्यारी भाभी! करते रहो, बड़ा मज़ा आ रहा है.” मैं भी जोश में आ गयी और गोपाल के लंड को जोर-२ से मसलने लगी. उसका बदन कांप रहा था और मुँह अजीब-अजीब आवाज निकाल रहा था. अचानक उसने मेरे हाथ से लंड को हटा लिया और मेरे ऊपर से हट गया. शायद उसको पता चल गया की और ज्यादा देर तक चलने से वह मेरे हाथों में ही झड जायेगा. मैं उसको ताकती रह गयी. उसने मेरे बदन को खींचते हुए बिस्तर के किनारे ले गया. मेरी टांगो को हवा में रखते हुए अपने कंधो पर डाल लिया और अपने आप को मेरी जांघों के बीच में टिका लिया. अब उसका लंड मेरी चूत के दरवाजे पर था. कमर से पकड़ कर उसने जैसे ही अपनी ओर खिंचा उसका लंड जोर से मेरी मुनिया से टकरा गया.
“ऊऊम्म्म्म्म्म्.........हाययय......”
“सोमा रानी........... तैयार रहो..........” गोपाल ने एक ही धक्के में अपना लोहा मेरे अन्दर डाल दिया. लगभग साल भर के उपवास से मेरी चूत पर जंग लग गया था. इसलिए जैसे ही लंड अन्दर गया, ऐसे लगा की किसी ने गर्म सरिया मेरी चूत में डाल दिया. हाय! वह रात किसी सुहागरात से कम नहीं थी. मैं तो जैसे कुंवारी से औरत बन गयी. 4-5 धक्के लगाने के बाद गोपाल रुक गया और मेरी मम्मो से खेलने लगा. फिर धीरे से कान में कहा – “सोमा भाभी, अच्छा लग रहा है?” उस वक़्त मैं सारे लाज-शर्म भूल गयी और जोश में बोली – “जोर से अपना लंड पेल तब तो अच्छा लगेगा. देवरजी आज मेरी चूत की प्यास बुझा दो. मुझे अपनी छिनाल बना लो.” मेरी बात ने उसको और गरम कर दिया और मेरी कमर पकड़ कर जोर-जोर से झटके मारने लगा. उसके झटको में इतना जोर था की पर खाट कचर-पचार कर रहा था जैसे की उखड ही जायेगा. उसके टट्टे मेरी चूतड़ से टकरा रहे थे. मेरी प्यासी चूत ज्यादा देर तक झेल नहीं पाई और जोर से फव्वारा मरते हुए खलास हो गयी. लेकिन गोपाल रुकने का नाम नहीं ले रहा था. मैं तो खलास होने के बाद शांत पड़ी रही लेकिन गोपाल लगा रहा. गीली चूत में उसका लंड मक्खन में छुरी की चल रहा था. 20-22 धक्को के बाद वह भी झड गया और मेरे ऊपर निढाल हो गिरा. हम वैसे ही लेते रहे. मैं तो करवट बदलने के लायक भी नहीं थी. आधे घन्टे के बाद गोपाल उठा, अपने कपड़े पहन बाहर जाने लगा. जाते वक़्त मुझे बोला की दरवाजा अन्दर से लगा लो. लेकिन मैं नशे में बेहोश थी. सुबह करीब 3 बजे मेरी नींद खुली और खुद को नंगी बिस्तर पर पाई तो मेरा माथा ठनका. अच्छा हुआ की कोई जागा नहीं न ही कोई मेरे कमरे में आया. मेरा बदन थक के चूर हो गया था. किसी तरह कपड़े पहन मैं फिर से लेट गयी. अगले 3 दिनों तक गोपाल हमारे घर में रुका और हमने छः बार चुदाई की. एक बार तो गन्ने के खेत में भी उससे चुदी.
सोमलता की कहानी ख़त्म हुई. रात भी लगभग गुजरने वाली थी. शायद भोर के 4 बज रहे थे. बाहर के पेड़ों से पक्षिओं के चहचहाने की आवाज आ रही थी. मैं दिवार पे टिककर लेटा हुआ था और सोमा मेरे बदन पर निढाल पड़ी थी. भोर की हल्की ठंडी से दो नंगे बदन थोड़ा अकड़-सा गया था. अब हमारे पास समय बिल्कुल नहीं था. गर्मी में सुबह बहुत जल्दी हो जाता है और यह जगह भी बिल्कुल सुरक्षित नहीं था. मै सोमा को पुकारा – “सोमा..... सोमा रानी... उठो हमें निकलना पड़ेगा”. लेकिन वह तो बेसुध सोई थी. सारी रात जागने के बाद शायद नींद आ गयी थी. मुझे भी आज शाम की गाड़ी से निकलना है. मैं सोच रहा था की यह जो सम्भोग की आग मुझमे लग गयी है, इससे कैसे बचूँगा. क्यों ना निकलने से पहले एक बार चुदाई कर ही लिया जाए? लेकिन सोमा तो थक के सो रही थी. क्या करू? अँधेरा छटने लगा था और थोड़ा उजाला खिडकियों के सहारे हमारे कमरे में आ रहा था. सोमा पेट के बल मेरे बदन से चिपक के लेटी थी. उसका बदन में चमक थी बिल्कुल चिकनाई वाली चमक. अचानक मुझे लिंग पर कुछ फिसलता हुआ महसूस हुआ. सुबह में तो वैसे ही लिंग कड़क और खड़ा रहता है. मैंने देखा सोमा एक हाथ से मेरे लंड को धीरे-धीरे सहला रही थी. मेरा लंड और कड़क हो गया और उपरी चमड़ी को फाड़ने को बेताब हो रहा था. मैं सोमा के चेहरे को देखा – “वह अब भी बिल्कुल बेसुध सोई थी. उसके चेहरे पर गिरी जुल्फे उसके चेहरे को और भी खुबसूरत बना रही थी. चेहरे पर इतनी मासूमियत के साथ वह मेरा लंड सहला रही थी, यह देख मेरा लंड और बेताब हो गया.” अब मेरे लिए इंतज़ार करना मुस्किल हो गया. उसकी चिकनी पीठ को सहलाते हुए धीरे से कान में पुकारा – “सोमा रानी..... चलो जाना पड़ेगा अब....” वह धीरे से आँख खोल मेरी ओर देख बोली – “हम्म्म्म... क्या हुआ बाबु?” “चलो... कोई आ जायेगा. निकलते है.” वह उसी इत्मिनान से जवाब दी – “इतनी जल्दी? आज तो तुम निकल रहे हो ना?” “हाँ......” मेरी आवाज में उदासी थी. “तो बाबु, जाने से पहले मेरी ऎसी चुदाई करो की तुम्हारे आने तक मेरी चूत शान्त रहे और तुम्हारे लोहे को याद करती रहे. सिर्फ चुदाई. कोई चुम्मा-चाटी नहीं कोई दाबा-दबाई नहीं. सीधे मुझे अपने नीचे पटको और दाल दो अपना फौलादी लोहा मेरी चूत में.” यह सब बात मेरे तने हुए लंड को उत्तेजित करने के लिए. वैसे भी कहा जाता है की सुबह की चुदाई रात की चुदाई से ज्यादा कामुक और दमदार होती है. सोमा की हाथ की पकड़ मेरे लंड पर ज़ोरदार हो गयी थी कि अब मुझे दर्द हो रहा था. आगे के 30-40 मिनट काफी तूफानी होने वाले थे.
मैंने सोमा को कसकर पीठ से पकड़ा और एक झटके में घुमाकर मेरे नीचे ला डाला. उसकी आँखों में सेक्स की गुलाबी डोर तैर रही थी. उसकी चूचियां कसकर तन गयी थी और घुन्डियाँ नुकीली. एक हाथ से उसकी बांयी चूची को कसकर पकड़ा और दुसरे हाथ से चूत को मसाज करना शुरू किया. पहले धीरे-धीरे फिर पुरे जोश से. सोमलता की मुँह से निकलने वाली सिसकारी भी घुटकर रह जा रही थी, जैसे कि उनमे ज्यादा जान बाकी ना हो. अचानक उसने दोनों हाथ को रोक दिया और लगभग चिल्लाते हुए बोली – “यह क्या दबा-दबाई कर रहा है हरामी. जल्दी से अब मुझे चोद ना.” पहली बार उसकी मुँह से अपने लिए गाली सुनकर थोड़ा ख़राब लगा, लेकिन अगले पल समझ गया की ये सब वह मुझे उकसाने के लिए बोल रही है. मेरे मन में भी गुस्सा भर गया. गुस्से में मैंने लंड को चूत की फांको पे टिकाया और जोर से धक्का मारा. लेकिन मेरा निशाना चुक गया और मेरा तना हुआ लंड उसकी चिकनी पेट पर फिसल गया और मैं भी अचानक सोमा के बदन पर गिरते-गिरते बचा. सोमा बुरी तरह से हंस पड़ी, जोर-२ से हंसने लगी. मेरा चेहरा गुस्से में और तमतमा गया. सोमा ने मेरी हालत देख किसी तरह से अपने आप को हंसने से रोका और मेरे लंड को पकड़ अपनी चूत में लगा कर अन्दर ठेल दी. सुपारा अन्दर चला गया, लेकिन मैं अभी भी गुस्से में था और चुपचाप लंड का सुपारा डाले बैठा था. सोमा ने मेरी चूतड़ को दोनों हाथ से पकड़ खुद ही मुझे आगे-पीछे करने लगी और मैं भी उसकी ताल में ताल मिलाने लगा. मेरी नज़र उससे मिलते ही वह वह मुस्कुराके बोली – “बाबु, तुम बहुत भोले हो और गुस्से में बहुत ही अच्छे लगते हो. बिल्कुल बच्चे जैसे.” मेरा गुस्सा पिघल गया. मैं मुस्कुराया और उसकी कमर को पकड़ धक्का लगाने लगा. अब मेरा लंड उसकी चूत की पुरी गहराई माप रहा था, लेकिन धक्को का मार कम ही था. तब सोमा बोली – “चलो मेरे राजा बाबु, एब मर्द की तरह ज़ोरदार धक्का मारो. आज मेरी चूत का भोसड़ा बना दो. मारो जोर से. पेलो जोर से.” कोई मर्द जो अपना लंड किसी औरत की बुर में डाल रखा हो, उसके लिए ये बातें आग में पेट्रोल का काम करती है. अचानक मेरे अन्दर का जानवर जाग गया, और मैं पुरी ताकत से अपनी कमर को उसकी कमर पर पटकने लगा. उसने भी दोनों टांगो को चौड़ा कर दी ताकि मेरा लंड ज्यादा अन्दर तक जा सके. मैं बिना किसी की परवाह किये पुरी जोर से धक्के-पे-धक्के लगा रहा था. हर धक्के पर सोमा की सिसकारी गूंजती – “हैईईईइं...... हाय रेरेरेरेर..... अह्ह्ह्हह्ह.... जोरर्रर्रर से.....”जो मेरे मन और जोर भर रही थी. हमारे बदन की उठा-पटक से पूरा कमरा गूंजने लगा. मेरा पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो गया और चेहरे से पसीना टपकने लगा. अचानक मेरे लंड में उफान आने लगा, मैं जोर से सिसकारी ली – “सोमाआआआआ......” वह समझ गयी की मैं झड़ने वाला हूँ. वह जल्दी से मेरे अन्डो को पकड़ ली और बोली – “अभी नहीं बाबु. अभी मत झाड़ना. थोड़ी देर रुक जाओ.” मैं धड़ाम से उसके ऊपर गिर पड़ा. मेरी सांसे जोर-जोर से चल रही थी जैसे की मिलों भाग आया हूँ. सोमा मेरे टट्टे अभी भी पकडे हुए थी. चंद मिनटों में लंड में उफान थम गया और मैं भी फिर से पेलने के लिए तैयार हो गया. सोमा के बदन से अलग हुआ ही था की वह बोली – “अब बाबु तुम लेटो, मैं ऊपर आती हूँ.” मै लंड निकल के बगल मैं लेट गया. मेरा लंड घिसाई से लाल हो गया था और सुपारे का तो बुरा हाल था. दिवार पर टिकाकर मैं आधा लेट गय, सोमा दोनों टांगो को चीरते हुए मेरे कमर के ऊपर चूत को स्थिर की. लंड को पकड़ चूत में डाल थपक से बैठ गयी. उसकी होंठो पर शरारती मुस्कान थी. घुटने जमीन से टिकाकर वह तेजी से ऊपर निचे करने लगी. बीच-बीच में पुरे शरीर के वजन से नीचे आ जाती तो मेरा दम निकल जाता. अब पसीने में नहाने की बारी सोमलता की थी. हल्की०हल्कि पसीने की बूंदों में उसका बदन पत्थर की मूर्ति की तरह चमक रही थी. हर बार ऊपर-नीचे करने के क्रम में उसकी चूचियां उचकती, जो अनमोल नज़ारा था. मुझे सोमा के स्तन कभी भी बड़े नहीं लगे थे, लेकिन आज ये उछलती चूचियां किसी पोर्नस्टार की बड़ी-बड़ी चुचियों से भी मादक लग रही थी. मैं तो जैसे उसकी चुचियों की उछल-कूद में खो गया था. अचानक सोमा धम्म से बैठ गई. फिर बदन को जोर से मरोड़ते हुए सिसिकारी मारी – “आईई..... माईईईईईईईइ.... बाबुऊऊउह.....” मेरे लंड पर गरम पानी की बौछार हो गयी. लगभग 2 मिनट तक झड़ने के बाद सोमा मेरी छाती पर निढाल हो गयी. मैं समझ गया की अब मुझे ही ऊपर आना पड़ेगा. मैंने फिर से उसको अपने निचे लाकर मिशनरी स्थिति में चोदना शुरू किया. सोमा की जबान से अब धीमी-धीमी सीत्कार निकल रही थी. उसकी गीली योनी में लंड फचक-फ़चाक की आवाज के साथ पेलने लगा. 15-20 झटको के बाद सोमा का बदन अकड़ा और कांपने के बाद फिर से शांत हो गया. उसकी चूत ने फिर पानी छोड़ दिया और इस बार पानी चूत की दीवारों से बहते हुए फर्श पर बहने लगा. लेकिन मैं झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. सोमा की हालत से लग था की उसको तेज़ बुखार है. वह अजीब तरह से काँप रही थी और ना जाने क्या बडबडा रही थी. अब मेरा लंड भी ऐंठने लगा. सुपारे में सर फाड़ते हुए अपना लावा उगल दिया. मैं ऐसा झड़ा की लग रहा था जैसे पेट के नीचे का हिस्सा गायब ही हो गया है. मैं भी सोमा के बदन पर निढाल हो गया और सोमा की होंठो को अपने होंठो से लगा लिया लेकिन चूमने की ताकत न मुझमे थी न उसमे. हम दोनों अगले 10-15 मिनट तक वैसे ही पड़े रहे. अब बाहर काफी उजाला हो गया था, सूरज निकलने ही वाला था. हमदोनो धीरे-धीरे उठे, कपड़े पहने बैग में सारे सामानों को वापस डाला और अपने घरो की और निकल गए. मैं शाम हो निकलने से पहले पार्लर में सोमा को मिलने को कहकर घर रवाना हुआ. पूरा बदन टूट गया था जैसे की किसी जंग से लौट रहा हूँ.
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उस
दिन मैं पता नहीं किस नशे में दिनभर मदहोश रही. दोपहर के बाद गुलाल-अबीर
और खाने-पीने का दौर शुरू हुआ. हम औरतें मिलकर गुलाल खेल रही थी और मर्द
भंग आपस में भंग बाँट रहे थे.
शाम को गाँव के सारे औरतें और मर्द मिलकर अबीर-गुलाल खेल रहे थे. मैं भी गाँव की भाभियों और ननदों के साथ थी. सच में त्योहारों में कोई चाहे कितना भी अकेला क्यों ना हो, कुछ देर के लिए सब कुछ भूल जाता है. मैं भी सब के साथ हँस-बोल रही थी. कुछ औरतें तो गन्दी मजाक कर रही थी. देर रात तक महफ़िल जमी रही फिर सब अपने अपने घर चले गए खाने. रात ग्यारह बजे खाना-पीना ख़तम हुआ. पोछना-धोना करने के बाद मैं जैसे ही अपने कमरे में सोने गयी, मुझे लगा की वहां पहले से कोई बिस्तर पर बैठा है. मैं डरते-डरते अन्दर गयी तो मुझे शराब की तेज़ बू आई. थोड़ी पास जाने पर उसने मुझे अपनी ओर खींच लिया. मेरे हलक से चीख निकलते निकलते रह गयी. अन्दर गोपाल था जो मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा – “मेरी प्यारी भाभी, बहुत तरसा हूँ आज तेरे लिए.” अपना मुँह मेरे पास लाया, मैंने शराब के महक के चलते मुँह हटा लिया और धीरे से बोली – “शराब पीकर आये हो देवरजी?” वह मुझे बाँहों में कसकर जकड़ते हुए बोला – “अरे भाभी होली का अवसर है, दोस्तों-भाई ने पिला दिया. तो क्या मना करता. चलो एक चुम्मा दो.” फिर से वह अपना मुँह लाया. मैं डरते हुए बोली – “कोई आ जाएगा देवरजी. देख लिया तो गजब हो जायेगा.” गोपाल मेरी पीठ को सहलाते हुए बोला – “फ़िक्र मत करो भाभी. आज सब थककर सो रहे है. कोई नहीं आयेगा. रुको मैं दरवाजा लगा कर आता हूँ.” गोपाल दरवाजा लगाने गया. हालाँकि कमरे में ज्यादा उजाला नहीं था लेकिन हमे साफ़ नज़र आ रहा था. वह मुस्कुराते हुए वापस आ रहा था और मेरी धड़कन बढ़ रही थी. मैं बिस्तर में एकदम सिमट के बैठी थी. वह धीरे से मेरे पास बैठा और दोनों हाथो से मेरी गर्दन को पकड़ मेरे होंठो पर होंठ रख दिया. मेरा दिल धक् से रह गया. कुछ देर तक वह अकेला ही मेरी होंठो का रस चूसता रहा, फिर मेरा बदन भी गरमा गया. मैंने भी होंठ खोल दिए और फिर तो जबरदस्त चुम्मा शुरू हो गया दोनों तरफ से. हम दोनों एक दुसरे के पीठ को नापने में लगे थे. गोपाल का हाथ धीरे धीरे मेरे मम्मो पर आ गया. मेरे मम्मे उस वक़्त काफी बड़े और कसे हुए थे. मैं कभी भी घर में ब्रा नहीं पहनती थी. मारी चुदास के मेरे मम्मो की बोटी कड़े हो गए थे. मेरी चूत बुरी तरह से पनिया गयी थी. मै तो चाहती थी की जल्दी से जल्दी गोपाल अपना लंड मेरी चूत में डाल दे, लेकिन शर्म में कारण कुछ भी नहीं बोला पा रही थी. उधर गोपाल मेरी मम्मो से खेल रहा था. धीरे-धीरे मैंने अपना हाथ उसके लुंगी के ऊपर गया और उसका डंडा महसूस हुआ. अचानक गोपाल रुक गया और बोला – “भाभी सब्र नहीं हो रहा है क्या?” मैं बोल पड़ी – “देवरजी, अब जल्दी से डाल दो. देर मत करो.” “ठीक है भाभी!” बोलकर उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया, मेरी साड़ी अलग की लेकिन मेरी ब्लाउज की नहीं निकाला. सिर्फ मेरी पेटीकोट को उतारा. मैं ब्रा नहीं पहनती थी लेकिन मासिक के कारण पैंटी पहनती थी. पैंटी तो पहले ही भींग चुकी थी. गोपाल मेरी चूत को पैंटी के ऊपर से ही मसलना शुरू कर दिया. मेरी सिसकारी अब और तेज़ होने लगी. मेरे माथे पर पसीने आने लगे. देवरजी लुंगी गिरा दिया. उसका कच्छा तम्बू बना हुआ था. मैं एकटक उसके कच्छा को देख रही थी. वह यह देखकर मुस्कुराया.
गोपाल को समझ में आ गया था कि मैं पूरी तरह से गरम हो गयी हूँ. उसने ऊँगली से पैंटी के रबड़ को खिंचा, मैंने भी मदद करने के लिए चूतड़ उठा दी ताकि कच्छी आराम से निकल सके. चूत की ढकने वाला हिस्सा भींग चूका था और मेरी रस के महक रहा था. देवरजी ने पैंटी को नाक से सटाकर सूंघने लगा और मेरी ओर कातिल नज़रों से देखना लगा. मैं शरमाकर सर को बगल घुमा ली. “भाभीजी, तुम्हारी चूत तो बड़ी मस्त महक रही है. लगता है उतनी मजेदार भी होगी.” यह कहकर उसने फिर से नाक से लगा लिया. मैं तो जैसे असमान में तैर रही थी. आगे जो हुआ, वह मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ था. उसने पैंटी को दूर फ़ेक मेरे दोनों जांघों के बीच अपने सर को ले आया. इससे पहले की मैं कुछ समझ पाती गोपाल ने मेरी चूत पर पूरा मुँह लगा दिया.
शाम को गाँव के सारे औरतें और मर्द मिलकर अबीर-गुलाल खेल रहे थे. मैं भी गाँव की भाभियों और ननदों के साथ थी. सच में त्योहारों में कोई चाहे कितना भी अकेला क्यों ना हो, कुछ देर के लिए सब कुछ भूल जाता है. मैं भी सब के साथ हँस-बोल रही थी. कुछ औरतें तो गन्दी मजाक कर रही थी. देर रात तक महफ़िल जमी रही फिर सब अपने अपने घर चले गए खाने. रात ग्यारह बजे खाना-पीना ख़तम हुआ. पोछना-धोना करने के बाद मैं जैसे ही अपने कमरे में सोने गयी, मुझे लगा की वहां पहले से कोई बिस्तर पर बैठा है. मैं डरते-डरते अन्दर गयी तो मुझे शराब की तेज़ बू आई. थोड़ी पास जाने पर उसने मुझे अपनी ओर खींच लिया. मेरे हलक से चीख निकलते निकलते रह गयी. अन्दर गोपाल था जो मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा – “मेरी प्यारी भाभी, बहुत तरसा हूँ आज तेरे लिए.” अपना मुँह मेरे पास लाया, मैंने शराब के महक के चलते मुँह हटा लिया और धीरे से बोली – “शराब पीकर आये हो देवरजी?” वह मुझे बाँहों में कसकर जकड़ते हुए बोला – “अरे भाभी होली का अवसर है, दोस्तों-भाई ने पिला दिया. तो क्या मना करता. चलो एक चुम्मा दो.” फिर से वह अपना मुँह लाया. मैं डरते हुए बोली – “कोई आ जाएगा देवरजी. देख लिया तो गजब हो जायेगा.” गोपाल मेरी पीठ को सहलाते हुए बोला – “फ़िक्र मत करो भाभी. आज सब थककर सो रहे है. कोई नहीं आयेगा. रुको मैं दरवाजा लगा कर आता हूँ.” गोपाल दरवाजा लगाने गया. हालाँकि कमरे में ज्यादा उजाला नहीं था लेकिन हमे साफ़ नज़र आ रहा था. वह मुस्कुराते हुए वापस आ रहा था और मेरी धड़कन बढ़ रही थी. मैं बिस्तर में एकदम सिमट के बैठी थी. वह धीरे से मेरे पास बैठा और दोनों हाथो से मेरी गर्दन को पकड़ मेरे होंठो पर होंठ रख दिया. मेरा दिल धक् से रह गया. कुछ देर तक वह अकेला ही मेरी होंठो का रस चूसता रहा, फिर मेरा बदन भी गरमा गया. मैंने भी होंठ खोल दिए और फिर तो जबरदस्त चुम्मा शुरू हो गया दोनों तरफ से. हम दोनों एक दुसरे के पीठ को नापने में लगे थे. गोपाल का हाथ धीरे धीरे मेरे मम्मो पर आ गया. मेरे मम्मे उस वक़्त काफी बड़े और कसे हुए थे. मैं कभी भी घर में ब्रा नहीं पहनती थी. मारी चुदास के मेरे मम्मो की बोटी कड़े हो गए थे. मेरी चूत बुरी तरह से पनिया गयी थी. मै तो चाहती थी की जल्दी से जल्दी गोपाल अपना लंड मेरी चूत में डाल दे, लेकिन शर्म में कारण कुछ भी नहीं बोला पा रही थी. उधर गोपाल मेरी मम्मो से खेल रहा था. धीरे-धीरे मैंने अपना हाथ उसके लुंगी के ऊपर गया और उसका डंडा महसूस हुआ. अचानक गोपाल रुक गया और बोला – “भाभी सब्र नहीं हो रहा है क्या?” मैं बोल पड़ी – “देवरजी, अब जल्दी से डाल दो. देर मत करो.” “ठीक है भाभी!” बोलकर उसने मुझे बिस्तर पर लिटाया, मेरी साड़ी अलग की लेकिन मेरी ब्लाउज की नहीं निकाला. सिर्फ मेरी पेटीकोट को उतारा. मैं ब्रा नहीं पहनती थी लेकिन मासिक के कारण पैंटी पहनती थी. पैंटी तो पहले ही भींग चुकी थी. गोपाल मेरी चूत को पैंटी के ऊपर से ही मसलना शुरू कर दिया. मेरी सिसकारी अब और तेज़ होने लगी. मेरे माथे पर पसीने आने लगे. देवरजी लुंगी गिरा दिया. उसका कच्छा तम्बू बना हुआ था. मैं एकटक उसके कच्छा को देख रही थी. वह यह देखकर मुस्कुराया.
गोपाल को समझ में आ गया था कि मैं पूरी तरह से गरम हो गयी हूँ. उसने ऊँगली से पैंटी के रबड़ को खिंचा, मैंने भी मदद करने के लिए चूतड़ उठा दी ताकि कच्छी आराम से निकल सके. चूत की ढकने वाला हिस्सा भींग चूका था और मेरी रस के महक रहा था. देवरजी ने पैंटी को नाक से सटाकर सूंघने लगा और मेरी ओर कातिल नज़रों से देखना लगा. मैं शरमाकर सर को बगल घुमा ली. “भाभीजी, तुम्हारी चूत तो बड़ी मस्त महक रही है. लगता है उतनी मजेदार भी होगी.” यह कहकर उसने फिर से नाक से लगा लिया. मैं तो जैसे असमान में तैर रही थी. आगे जो हुआ, वह मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ था. उसने पैंटी को दूर फ़ेक मेरे दोनों जांघों के बीच अपने सर को ले आया. इससे पहले की मैं कुछ समझ पाती गोपाल ने मेरी चूत पर पूरा मुँह लगा दिया.
गोपाल को समझ में आ गया था कि मैं पूरी तरह से गरम हो गयी हूँ. उसने ऊँगली से पैंटी के रबड़ को खिंचा, मैंने भी मदद करने के लिए चूतड़ उठा दी ताकि कच्छी आराम से निकल सके. चूत की ढकने वाला हिस्सा भींग चूका था और मेरी रस के महक रहा था. देवरजी ने पैंटी को नाक से सटाकर सूंघने लगा और मेरी ओर कातिल नज़रों से देखना लगा. मैं शरमाकर सर को बगल घुमा ली. “भाभीजी, तुम्हारी चूत तो बड़ी मस्त महक रही है. लगता है उतनी मजेदार भी होगी.” यह कहकर उसने फिर से नाक से लगा लिया. मैं तो जैसे असमान में तैर रही थी. आगे जो हुआ, वह मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ था. उसने पैंटी को दूर फ़ेक मेरे दोनों जांघों के बीच अपने सर को ले आया. इससे पहले की मैं कुछ समझ पाती गोपाल ने मेरी चूत पर पूरा मुँह लगा दिया. जिंदगी में पहली बार किसी ने मेरी चूत पर मुँह रखा था. मेरा मरद थूक लगाकर ऊँगली से मेरी चूत मसलता था चुदाई से पहले. देवर की इस हरकत में मुझे हिलकर रख दिया. मैं एकदम से चिहुँक उठी और जोर से चिल्ला उठी. अगले ही पल मुझे अहसास हुआ की मेरी आवाज इस शांत रात में बहुत दूर जा सकती है. गोपाल भी अब कमर से उठकर मेरी छाती को मसलने लगा और मुझे लम्बी गहरी चुम्मी देने लगा. वह शायद मुझे शांत करना चाहता था. मैं अभी भी जोर-जोर से साँस ले रही थी और मेरी सीत्कार हमदोनो के मुँह में घुटकर रह जा रही थी. लगभग 5 मिनट तक मुझे चूमने के बार वह फिर से मेरी जांघो के बीच आ गया.
मारे शर्म के मेरी आखें बंद थी और सांसे धौकनी जैसी चल रही थी. मैं सर को एक तरफ घुमाकर बैचैनी से आनेवाले तूफान का इंतज़ार कर रही थी. लेकिन गोपाल भी शातिर खिलाडी था. वह खेल को लम्बा खींचने में माहिर था. इतने देर तक वह सिर्फ मेरी चूत को घूरे जा रहा था, कुछ कर नहीं रहा था. इधर मेरी बेसब्री बढ़ती जा रही थी. आखिर में मुझे ही चुप्पी तोड़नी पड़ी. “देवरजी, आज कुछ करोगे या घूरते ही रहोगे?” मेरी आँख अब भी बंद थी. मेरी आवाज में चुदास थी. मेरा गला सुख रहा था और चूत गीली हो रही थी. अगर मेरे बस में होता तो मैं अपनी चूत को खुद चाट लेती. गोपाल धीरे-से मेरे कान को चुमते हुए कहा – “भाभी, तुम्हारी चूत इतनी सुन्दर है की देखते रहना चाहता हूँ. गुलाबी बिल्कुल गुलाब के जैसे.” चूत की बढाई सुनकर तो हर लड़की शरमा जाती है. मेरी गाल भी शर्म से लाल हो गयी. गोपाल मेरी गर्दन चुमते हुए होंठो को चूसने लगा. लेकिन इसबार वह बड़ी बेदर्दी से चूमने लगा. कभी मेरी होंठो को चूमता-कटता, कभी जीभ को चूसता तो कभी मेरे मुँह में अपनी जीभ डालकर मेरी जीभ को लपेटता. मैं पागल हुए जा रही थी. मेरे हाथ उसकी पीठ को सहलाते-सहलाते कमर के निचे जा पहुंचा. उसकी गांड के दरार में काफी सारे बाल थे. एक हाथ उसके पेट के निचे जा पहुंचा जहाँ उसका फ़ौलाद तन कर अड़ा था. काफी अरसे के बाद मेरे हाथ को मर्द का लंड नसीब हुआ था. लेकिन उसका लंड लंड नहीं खम्भा था. इतना बड़ा और मोटा लंड मैंने आज तक किसी का नहीं देखा. हालाँकि मैं अभी तक सिर्फ अपने पति और अपने चाचा का लंड देखा था वह भी गलती से. मुझसे अब रहा नहीं गया. मैं उसके लंड को मसलने लगी. अब देवरजी की हल्की मीठी सिसकारी निकली – “ओह मेरी प्यारी भाभी! करते रहो, बड़ा मज़ा आ रहा है.” मैं भी जोश में आ गयी और गोपाल के लंड को जोर-२ से मसलने लगी. उसका बदन कांप रहा था और मुँह अजीब-अजीब आवाज निकाल रहा था. अचानक उसने मेरे हाथ से लंड को हटा लिया और मेरे ऊपर से हट गया. शायद उसको पता चल गया की और ज्यादा देर तक चलने से वह मेरे हाथों में ही झड जायेगा. मैं उसको ताकती रह गयी. उसने मेरे बदन को खींचते हुए बिस्तर के किनारे ले गया. मेरी टांगो को हवा में रखते हुए अपने कंधो पर डाल लिया और अपने आप को मेरी जांघों के बीच में टिका लिया. अब उसका लंड मेरी चूत के दरवाजे पर था. कमर से पकड़ कर उसने जैसे ही अपनी ओर खिंचा उसका लंड जोर से मेरी मुनिया से टकरा गया.
“ऊऊम्म्म्म्म्म्.........हाययय......”
“सोमा रानी........... तैयार रहो..........” गोपाल ने एक ही धक्के में अपना लोहा मेरे अन्दर डाल दिया. लगभग साल भर के उपवास से मेरी चूत पर जंग लग गया था. इसलिए जैसे ही लंड अन्दर गया, ऐसे लगा की किसी ने गर्म सरिया मेरी चूत में डाल दिया. हाय! वह रात किसी सुहागरात से कम नहीं थी. मैं तो जैसे कुंवारी से औरत बन गयी. 4-5 धक्के लगाने के बाद गोपाल रुक गया और मेरी मम्मो से खेलने लगा. फिर धीरे से कान में कहा – “सोमा भाभी, अच्छा लग रहा है?” उस वक़्त मैं सारे लाज-शर्म भूल गयी और जोश में बोली – “जोर से अपना लंड पेल तब तो अच्छा लगेगा. देवरजी आज मेरी चूत की प्यास बुझा दो. मुझे अपनी छिनाल बना लो.” मेरी बात ने उसको और गरम कर दिया और मेरी कमर पकड़ कर जोर-जोर से झटके मारने लगा. उसके झटको में इतना जोर था की पर खाट कचर-पचार कर रहा था जैसे की उखड ही जायेगा. उसके टट्टे मेरी चूतड़ से टकरा रहे थे. मेरी प्यासी चूत ज्यादा देर तक झेल नहीं पाई और जोर से फव्वारा मरते हुए खलास हो गयी. लेकिन गोपाल रुकने का नाम नहीं ले रहा था. मैं तो खलास होने के बाद शांत पड़ी रही लेकिन गोपाल लगा रहा. गीली चूत में उसका लंड मक्खन में छुरी की चल रहा था. 20-22 धक्को के बाद वह भी झड गया और मेरे ऊपर निढाल हो गिरा. हम वैसे ही लेते रहे. मैं तो करवट बदलने के लायक भी नहीं थी. आधे घन्टे के बाद गोपाल उठा, अपने कपड़े पहन बाहर जाने लगा. जाते वक़्त मुझे बोला की दरवाजा अन्दर से लगा लो. लेकिन मैं नशे में बेहोश थी. सुबह करीब 3 बजे मेरी नींद खुली और खुद को नंगी बिस्तर पर पाई तो मेरा माथा ठनका. अच्छा हुआ की कोई जागा नहीं न ही कोई मेरे कमरे में आया. मेरा बदन थक के चूर हो गया था. किसी तरह कपड़े पहन मैं फिर से लेट गयी. अगले 3 दिनों तक गोपाल हमारे घर में रुका और हमने छः बार चुदाई की. एक बार तो गन्ने के खेत में भी उससे चुदी.
सोमलता की कहानी ख़त्म हुई. रात भी लगभग गुजरने वाली थी. शायद भोर के 4 बज रहे थे. बाहर के पेड़ों से पक्षिओं के चहचहाने की आवाज आ रही थी. मैं दिवार पे टिककर लेटा हुआ था और सोमा मेरे बदन पर निढाल पड़ी थी. भोर की हल्की ठंडी से दो नंगे बदन थोड़ा अकड़-सा गया था. अब हमारे पास समय बिल्कुल नहीं था. गर्मी में सुबह बहुत जल्दी हो जाता है और यह जगह भी बिल्कुल सुरक्षित नहीं था. मै सोमा को पुकारा – “सोमा..... सोमा रानी... उठो हमें निकलना पड़ेगा”. लेकिन वह तो बेसुध सोई थी. सारी रात जागने के बाद शायद नींद आ गयी थी. मुझे भी आज शाम की गाड़ी से निकलना है. मैं सोच रहा था की यह जो सम्भोग की आग मुझमे लग गयी है, इससे कैसे बचूँगा. क्यों ना निकलने से पहले एक बार चुदाई कर ही लिया जाए? लेकिन सोमा तो थक के सो रही थी. क्या करू? अँधेरा छटने लगा था और थोड़ा उजाला खिडकियों के सहारे हमारे कमरे में आ रहा था. सोमा पेट के बल मेरे बदन से चिपक के लेटी थी. उसका बदन में चमक थी बिल्कुल चिकनाई वाली चमक. अचानक मुझे लिंग पर कुछ फिसलता हुआ महसूस हुआ. सुबह में तो वैसे ही लिंग कड़क और खड़ा रहता है. मैंने देखा सोमा एक हाथ से मेरे लंड को धीरे-धीरे सहला रही थी. मेरा लंड और कड़क हो गया और उपरी चमड़ी को फाड़ने को बेताब हो रहा था. मैं सोमा के चेहरे को देखा – “वह अब भी बिल्कुल बेसुध सोई थी. उसके चेहरे पर गिरी जुल्फे उसके चेहरे को और भी खुबसूरत बना रही थी. चेहरे पर इतनी मासूमियत के साथ वह मेरा लंड सहला रही थी, यह देख मेरा लंड और बेताब हो गया.” अब मेरे लिए इंतज़ार करना मुस्किल हो गया. उसकी चिकनी पीठ को सहलाते हुए धीरे से कान में पुकारा – “सोमा रानी..... चलो जाना पड़ेगा अब....” वह धीरे से आँख खोल मेरी ओर देख बोली – “हम्म्म्म... क्या हुआ बाबु?” “चलो... कोई आ जायेगा. निकलते है.” वह उसी इत्मिनान से जवाब दी – “इतनी जल्दी? आज तो तुम निकल रहे हो ना?” “हाँ......” मेरी आवाज में उदासी थी. “तो बाबु, जाने से पहले मेरी ऎसी चुदाई करो की तुम्हारे आने तक मेरी चूत शान्त रहे और तुम्हारे लोहे को याद करती रहे. सिर्फ चुदाई. कोई चुम्मा-चाटी नहीं कोई दाबा-दबाई नहीं. सीधे मुझे अपने नीचे पटको और दाल दो अपना फौलादी लोहा मेरी चूत में.” यह सब बात मेरे तने हुए लंड को उत्तेजित करने के लिए. वैसे भी कहा जाता है की सुबह की चुदाई रात की चुदाई से ज्यादा कामुक और दमदार होती है. सोमा की हाथ की पकड़ मेरे लंड पर ज़ोरदार हो गयी थी कि अब मुझे दर्द हो रहा था. आगे के 30-40 मिनट काफी तूफानी होने वाले थे.
मैंने सोमा को कसकर पीठ से पकड़ा और एक झटके में घुमाकर मेरे नीचे ला डाला. उसकी आँखों में सेक्स की गुलाबी डोर तैर रही थी. उसकी चूचियां कसकर तन गयी थी और घुन्डियाँ नुकीली. एक हाथ से उसकी बांयी चूची को कसकर पकड़ा और दुसरे हाथ से चूत को मसाज करना शुरू किया. पहले धीरे-धीरे फिर पुरे जोश से. सोमलता की मुँह से निकलने वाली सिसकारी भी घुटकर रह जा रही थी, जैसे कि उनमे ज्यादा जान बाकी ना हो. अचानक उसने दोनों हाथ को रोक दिया और लगभग चिल्लाते हुए बोली – “यह क्या दबा-दबाई कर रहा है हरामी. जल्दी से अब मुझे चोद ना.” पहली बार उसकी मुँह से अपने लिए गाली सुनकर थोड़ा ख़राब लगा, लेकिन अगले पल समझ गया की ये सब वह मुझे उकसाने के लिए बोल रही है. मेरे मन में भी गुस्सा भर गया. गुस्से में मैंने लंड को चूत की फांको पे टिकाया और जोर से धक्का मारा. लेकिन मेरा निशाना चुक गया और मेरा तना हुआ लंड उसकी चिकनी पेट पर फिसल गया और मैं भी अचानक सोमा के बदन पर गिरते-गिरते बचा. सोमा बुरी तरह से हंस पड़ी, जोर-२ से हंसने लगी. मेरा चेहरा गुस्से में और तमतमा गया. सोमा ने मेरी हालत देख किसी तरह से अपने आप को हंसने से रोका और मेरे लंड को पकड़ अपनी चूत में लगा कर अन्दर ठेल दी. सुपारा अन्दर चला गया, लेकिन मैं अभी भी गुस्से में था और चुपचाप लंड का सुपारा डाले बैठा था. सोमा ने मेरी चूतड़ को दोनों हाथ से पकड़ खुद ही मुझे आगे-पीछे करने लगी और मैं भी उसकी ताल में ताल मिलाने लगा. मेरी नज़र उससे मिलते ही वह वह मुस्कुराके बोली – “बाबु, तुम बहुत भोले हो और गुस्से में बहुत ही अच्छे लगते हो. बिल्कुल बच्चे जैसे.” मेरा गुस्सा पिघल गया. मैं मुस्कुराया और उसकी कमर को पकड़ धक्का लगाने लगा. अब मेरा लंड उसकी चूत की पुरी गहराई माप रहा था, लेकिन धक्को का मार कम ही था. तब सोमा बोली – “चलो मेरे राजा बाबु, एब मर्द की तरह ज़ोरदार धक्का मारो. आज मेरी चूत का भोसड़ा बना दो. मारो जोर से. पेलो जोर से.” कोई मर्द जो अपना लंड किसी औरत की बुर में डाल रखा हो, उसके लिए ये बातें आग में पेट्रोल का काम करती है. अचानक मेरे अन्दर का जानवर जाग गया, और मैं पुरी ताकत से अपनी कमर को उसकी कमर पर पटकने लगा. उसने भी दोनों टांगो को चौड़ा कर दी ताकि मेरा लंड ज्यादा अन्दर तक जा सके. मैं बिना किसी की परवाह किये पुरी जोर से धक्के-पे-धक्के लगा रहा था. हर धक्के पर सोमा की सिसकारी गूंजती – “हैईईईइं...... हाय रेरेरेरेर..... अह्ह्ह्हह्ह.... जोरर्रर्रर से.....”जो मेरे मन और जोर भर रही थी. हमारे बदन की उठा-पटक से पूरा कमरा गूंजने लगा. मेरा पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो गया और चेहरे से पसीना टपकने लगा. अचानक मेरे लंड में उफान आने लगा, मैं जोर से सिसकारी ली – “सोमाआआआआ......” वह समझ गयी की मैं झड़ने वाला हूँ. वह जल्दी से मेरे अन्डो को पकड़ ली और बोली – “अभी नहीं बाबु. अभी मत झाड़ना. थोड़ी देर रुक जाओ.” मैं धड़ाम से उसके ऊपर गिर पड़ा. मेरी सांसे जोर-जोर से चल रही थी जैसे की मिलों भाग आया हूँ. सोमा मेरे टट्टे अभी भी पकडे हुए थी. चंद मिनटों में लंड में उफान थम गया और मैं भी फिर से पेलने के लिए तैयार हो गया. सोमा के बदन से अलग हुआ ही था की वह बोली – “अब बाबु तुम लेटो, मैं ऊपर आती हूँ.” मै लंड निकल के बगल मैं लेट गया. मेरा लंड घिसाई से लाल हो गया था और सुपारे का तो बुरा हाल था. दिवार पर टिकाकर मैं आधा लेट गय, सोमा दोनों टांगो को चीरते हुए मेरे कमर के ऊपर चूत को स्थिर की. लंड को पकड़ चूत में डाल थपक से बैठ गयी. उसकी होंठो पर शरारती मुस्कान थी. घुटने जमीन से टिकाकर वह तेजी से ऊपर निचे करने लगी. बीच-बीच में पुरे शरीर के वजन से नीचे आ जाती तो मेरा दम निकल जाता. अब पसीने में नहाने की बारी सोमलता की थी. हल्की०हल्कि पसीने की बूंदों में उसका बदन पत्थर की मूर्ति की तरह चमक रही थी. हर बार ऊपर-नीचे करने के क्रम में उसकी चूचियां उचकती, जो अनमोल नज़ारा था. मुझे सोमा के स्तन कभी भी बड़े नहीं लगे थे, लेकिन आज ये उछलती चूचियां किसी पोर्नस्टार की बड़ी-बड़ी चुचियों से भी मादक लग रही थी. मैं तो जैसे उसकी चुचियों की उछल-कूद में खो गया था. अचानक सोमा धम्म से बैठ गई. फिर बदन को जोर से मरोड़ते हुए सिसिकारी मारी – “आईई..... माईईईईईईईइ.... बाबुऊऊउह.....” मेरे लंड पर गरम पानी की बौछार हो गयी. लगभग 2 मिनट तक झड़ने के बाद सोमा मेरी छाती पर निढाल हो गयी. मैं समझ गया की अब मुझे ही ऊपर आना पड़ेगा. मैंने फिर से उसको अपने निचे लाकर मिशनरी स्थिति में चोदना शुरू किया. सोमा की जबान से अब धीमी-धीमी सीत्कार निकल रही थी. उसकी गीली योनी में लंड फचक-फ़चाक की आवाज के साथ पेलने लगा. 15-20 झटको के बाद सोमा का बदन अकड़ा और कांपने के बाद फिर से शांत हो गया. उसकी चूत ने फिर पानी छोड़ दिया और इस बार पानी चूत की दीवारों से बहते हुए फर्श पर बहने लगा. लेकिन मैं झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. सोमा की हालत से लग था की उसको तेज़ बुखार है. वह अजीब तरह से काँप रही थी और ना जाने क्या बडबडा रही थी. अब मेरा लंड भी ऐंठने लगा. सुपारे में सर फाड़ते हुए अपना लावा उगल दिया. मैं ऐसा झड़ा की लग रहा था जैसे पेट के नीचे का हिस्सा गायब ही हो गया है. मैं भी सोमा के बदन पर निढाल हो गया और सोमा की होंठो को अपने होंठो से लगा लिया लेकिन चूमने की ताकत न मुझमे थी न उसमे. हम दोनों अगले 10-15 मिनट तक वैसे ही पड़े रहे. अब बाहर काफी उजाला हो गया था, सूरज निकलने ही वाला था. हमदोनो धीरे-धीरे उठे, कपड़े पहने बैग में सारे सामानों को वापस डाला और अपने घरो की और निकल गए. मैं शाम हो निकलने से पहले पार्लर में सोमा को मिलने को कहकर घर रवाना हुआ. पूरा बदन टूट गया था जैसे की किसी जंग से लौट रहा हूँ.
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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