Raj-Sharma-stories
चार को माँ बनाया 1
प्रेषक : प्रदीप
मेरा नाम प्रदीप है मेरी उम्र 24 साल है. आज में आपको अपनी में बताऊंगा की कैसे अपनी भाभियो की गोद भरी…..
कहानी कई साल पहले उन दिनों की है जब में अठारह साल का था और मेरे कजिन भय्या, राजीव
चौथी शादी करने की सोच रहे थे। हम सब पटना में रहते हे
…. मेरे राजीव भय्या और भाभी सविता ने मुझे पाल पॉस कर बड़ा किया. भय्या मेरे से 10साल बड़े हे. उनकी पहली शादी के वक्त में छोटा था। शादी के पाँच साल बाद भी सविता को संतान नहीं हुई. कितने डॉक्टर को दिखाया लेकिन सब बेकार गया। भय्या ने दूसरी शादी की, तुलसी भाभी के साथ. तब मेरी उम्र तेरह साल की थी. लेकिन तुलसी भाभी को भी संतान नहीं हुई. सविता और तुलसी की हालत बिगड़ गई, भय्या उनके साथ नौकरानियों जैसा व्यवहार करने लगे. मुझे लगता है की भय्या ने दोनो भाभियों को चोदना चालू ही रखा था. संतान की आस में।
दूसरी शादी के तीन साल बाद भय्या ने तीसरी शादी की. रेणु भाभी के साथ. उस वक्त में 18 साल का हो गया था और मेरे बदन में फ़र्क पड़ना शुरू हो गया था. सबसे पहले मेरे वृषण बड़े हो गये. बाद में लंड पर बाल उगे और आवाज़ गहरी हो गयी. मुँह पर मुछ निकल आई. लंड लंबा और मोटा हो गया. रात को स्वप्न-दोष होने लगा. में मूठ मारना सीख गया।
सविता और तुलसी भाभी को पहली बार देखा तब मेरे मन में चोदने का विचार तक आया नहीं था. में बच्चा जो था. रेणु भाभी की बात कुछ ओर थी. एक तो वो मुझ से चार साल ही बड़ी थी. दूसरे वो काफ़ी खूबसूरत थी या कहो की मुझे खूबसूरत नज़र आती थी. उसके आने के बाद में हर रात कल्पना किए जाता था की भय्या उसे कैसे चोदते होंगे और रोज उसके नाम मूठ मार लेता था. भय्या भी रात दिन उसके पीछे पड़े रहते थे. सविता भाभी और चंपा भाभी की कोई कीमत रही नहीं थी. में मानता हूँ की भय्या चेंज के वास्ते कभी कभी उन दोनो को भी चोदते थे।
बात ये है की भय्या में कुछ कमी हो सकती है ऐसा मानने को भय्या तैयार नहीं थे. लंबे लंड से चोदे और ढेर सारा वीर्य पत्नी की चूत में उड़ेल दे इतना काफ़ी है मर्द के वास्ते बाप बनाने के लिए ऐसा उन का विश्वास था. उन्होने अपने वीर्य की जाँच करवाई नहीं थी. उम्र का फासला कम होने से रेणु भाभी के साथ मेरी अच्छी बनती थी, हालाँकि वो मुझे बच्चा ही समझति थी. मेरी मौजूदगी में कभी कभी उसका पल्लू खिसक जाता तो वो शरमाँती नहीं थी। इसीलिए उसके गोरे गोरे स्तन देखने के कई मौके मिले मुझे।
एक बार स्नान के बाद वो कपड़े बदल रही थी और में जा पहुँचा. उस का आधा नंगा बदन देख में शरमाँ गया लेकिन वो बिना हिचकिचाते बोली, “दरवाजा खट खटा के आया करो.” दो साल यूँ गुजर गये. में 20 साल का हो गया था. बात ये हुई की मेरी उम्र की एक नोकरानी चमेली, हमारे घर कम पर आया करती थी. वैसे मेने उसे बचपन से बड़ी होते देखा था. चमेली इतनी सुंदर तो नहीं थी लेकिन चौदह साल की दूसरी लड़कियों के अलावा उसके स्तन काफ़ी बड़े बड़े लुभावने थे. पतले कपड़े की चोली के आर पार उस की छोटी छोटी निपल्स साफ़ दिखाई देती थी। में अपने आपको रोक नहीं सका।
एक दिन मौका देख मेने उसके स्तन थाम लिया. उसने गुस्से से मेरा हाथ ज़टक डाला और बोली, “आइन्दा ऐसी हरकत करोगे तो बड़े सेठ को बता दूँगी” भय्या के डर से मेने फिर कभी चमेली का नाम ना लिया. एक साल पहले सत्रह साल की चमेली को ब्याह दिया गया था. एक साल ससुराल में रह कर अब वो दो महीनो के लिय यहाँ आई थी. शादी के बाद उसका बदन भर गया था और मुझे उसको चोदने का दिल हो गया था लेकिन कुछ कर नहीं पाता था. वो मुझसे कतराती रहती थी और में डर के मारे उसे दूर से ही देख लार टपका रहा था।
अचानक क्या हुआ क्या मालूम, लेकिन एक दिन माहोल बदल गया. दो चार बार चमेली मेरे सामने देख मुस्कराई. काम करते करते मुझे गौर से देखने लगी. मुझे अच्छा लगता था और दिल भी हो जाता था उसके बड़े बड़े स्तनों को मसल डालने को. लेकिन डर भी लगता था. इसी लिए मेने कोई भाव नहीं दिया. वो नखरें दिखाती रही. एक दिन दोपहर को में अपने स्टडी रूम में पढ़ रहा था. मेरा स्टडी रूम अलग मकान में था, में वहीं सोया करता था. उस वक्त चमेली चली आई और रोता सूरत बना कर कहने लगी, “इतने नाराज़ क्यूँ हो मुझसे,प्रदीप ?” मेने कहा “नाराज़ ? में कहाँ नाराज़ हूँ ? में क्यूँ हौंउ नाराज़?” उस की आँखों में आँसू आ गये।
वो बोली, “मुझे मालूम है. उस दिन मेने तुम्हारा हाथ जो ज़टक दिया था ना ? लेकिन में क्या करती? एक ओर डर लगता था और दूसरे दबाने से दर्द होता था. माँफ़ कर दो प्रदीप मुझे.” इतने में उसकी ओढनी का पल्लू खिसक गया, पता नहीं की अपने आप खिसका या उसने जानबूझ के खिसकाया. नतीजा एक ही हुआ, लो कट वाली चोली में से उस के गोरे गोरे स्तनों का उपरी हिस्सा दिखाई दिया।
मेरे लंड ने बग़ावत की नौबत लगाई. “उन्न..उम्म…उसमें, उसमें माँफ़ करने जैसी कोई बात नहीं है. में.. नाराज़ नहीं हूँ... म…म…माँफी तो मुझे माँगनी चाहिए.” मेरी हिचकिचाहट देख वो मुस्करा गयी और हंस के मुझ से लिपट गयी और बोली, “सच्ची ? ओह, प्रदीप, में इतनी खुश हूँ अब... मुझे डर था की तुम मुझसे रूठ गये हो... लेकिन में तुम्हे माँफ़ नहीं करूँगी जब तक तुम वो…वो..वैसे मेरी चुचियों को फिर नहीं छुओगे...” शरर्म से वो नीचे देखने लगी. मेने उसे अलग किया तो उसने मेरी कलाई पकड़ कर मेरा हाथ अपने स्तन पर रख दिया और दबाए रखा. “छोड़, छोड़.. पगली, कोई देख लेगा तो मुसीबत खड़ी हो जाएगी...” “तो होने दो... प्रदीप, पसंद आई मेरी चूची ?
उस दिन तो ये कच्ची थी, छुने पर भी दर्द होता था. आज मसल भी डालो, मजा आता है...” मेने हाथ छुड़ा लिया और कहा, “चली जा, कोई आ जाएगा...” वो बोली, “जाती हूँ लेकिन रात को आउंगी... ना ?” उसका रात को आने का ख्याल से मेरा लंड तन गया. मेने पूछा, “ज़रूर आओगी?” और हिम्मत जुटा कर स्तन को छुआ. विरोध किए बिना वो बोली, “ज़रूर आउंगी... तुम उपर वाले कमरे में सोना... और एक बात बताओ, तुमने किस लड़की को चोदा है ?” उसने मेरा हाथ पकड़ लिया मगर हटाया नहीं. “नहीं तो..” कह के मेने स्तन दबाया. ओह, क्या चीज़ था वो स्तन. उसने पूछा, “मुझे चोदना है ?” सुनते ही में चोंक पड़ा. “..हाँ, लेकिन…” “लेकिन वेकीन कुछ नहीं... रात को बात करेंगे...” धीरे से उसने मेरा हाथ हटाया और मुस्कुराती चली गयी। मुझे क्या पता की इस के पीछे रेणु भाभी का हाथ था? रात का इन्तजार करते हुए मेरा लंड खड़ा का खड़ा ही रहा, दो बार मूठ मारने के बाद भी. दस बजे वो आई. “माफ़ करना रात हमारी है.. में यहाँ ही सोने वाली हूँ..” उसने कहा और मुझसे लिपट गयी. उसके कठोर स्तन मेरे सीने से दब गये. वो रेशम की चोली, घाघरी और ओढनी पहने आई थी. उसके बदन से मादक सुगंद आ रही थ।
मेने ऐसे ही उसको मेरे बाहों में जकड़ लिया “हाय दैया, इतना ज़ोर से नहीं, मेरी हड्डियाँ टूट जाएगी.” वो बोली. मेरे हाथ उसकी पीठ सहलाने लगे तो उसने मेरे बालों में उंगलियाँ फेरनी शुरू कर दी. मेरा सर पकड़ कर नीचा किया और मेरे मुँह से अपना मुँह टिका दिया।
उस के नाज़ुक होंठ मेरे होंठ से छुते ही मेरे बदन में कामुकता फैल गयी और लंड खड़ा होने लगा. ये मेरा पहला चुंबन था, मुझे पता नहीं था की क्या किया जाता है. अपने आप मेरे हाथ उसकी पीठ से नीचे उतर कर चूतड़ पर रेंगने लगे. पतले कपड़े से बनी घाघरी मानो थी ही नहीं. उसके भारी गोल गोल नितंब मेने सहलाए और दबोचे. उसने नितंब ऐसे हिलाया की मेरा लंड उस के पेट के साथ दब गया. थोड़ी देर तक मूह से मुँह लगाए वो खड़ी रही. अब उसने अपना मुँह खोला और ज़बान से मेरे होंठ चाटे. ऐसा ही करने के वास्ते मेने मेरा मुँह खोला तो उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी. मुझे बहुत अच्छा लगा।
मेरी जीभ से उसकी जीभ खोली और वापस चली गयी. अब मेने मेरी जीभ उसके मुँह में डाली. उसने होंठ सिकुड कर मेरी जीभ को पकड़ा और चूसा. मेरा लंड फटा जा रहा था. उसने एक हाथ से लंड टटोला. मेरे लंड को उसने हाथ में लिया तो उत्तेजना से उसका बदन नर्म पढ़ गया. उस से खड़ा नहीं रहा गया. मेने उसे सहारा दे कर पलंग पर लेटाया. चुंबन छोड़ कर वो बोली, “हाय, प्रदीप, आज में पंद्रह दिन से भूकी हूँ... पिछले एक साल से मेरे पति मुझे हर रोज एक बार चोदते है, लेकिन यहाँ आने के बाद….प्रदीप, मुझे जल्दी से चोदो.., में मरी जा रही हूँ...” मुसीबत ये थी की में नहीं जानता था की चोदने में लंड कैसे और कहाँ जाता है. फिर भी मेने हिम्मत कर के उसकी ओढनी उतार फेंकी और मेरा पाजामा निकाल कर उसकी बगल में लेट गया. वो इतनी उतावली हो गई थी की चोली घाघरी निकली नहीं. फटाफट घाघरी उपर उठाई और जांघें चौड़ी कर मुझे उपर खींच लिया. यूँ ही मेरे हिप्स हिल पड़े थे और मेरा 7इंच लंबा और ढाई इंच मोटा लंड अंधे की लकड़ी की तरह इधर उधर सर टकरा रहा था. कहीं जा नहीं पा रहा था।
उसने हमारे बदन के बीच हाथ डाला और लंड को पकड़ कर अपनी चूत में डाला. मेरे हिप्स हिलते थे और लंड चूत का मुँह खोजता था. मेरे आठ दस धक्के खाली गये. हर वक्त लंड का माथा फिसल जाता था. उसे चूत का मुँह मिला नहीं. मुझे लगा की में चोदे बिना ही झड़ जाने वाला हूँ. लंड का माथा और चमेली की चूत दोनो काम रस से तर बतर हो गये थे।
मेरी नाकामयाबी पर चमेली हंस पड़ी. उसने फिर से लंड पकड़ा और चूत के मुँह पर रख के अपने चूतड़ ऐसे उठाए की आधा लंड वैसे ही चूत में घुस गया. तुरंत ही मेने एक धक्का जो मारा तो सारा का सारा लंड उसकी योनि में समाँ गया. लंड की टोपी खिंच गयी और चिकना सुपाडा चूत की दीवारों ने कस के पकड़ लिया. मुझे इतना मजा आ रहा था की में रुक नहीं सका. अपने आप मेरे हिप्स धक्का देने लगे और मेरा लंड अंदर बाहर होते हुए चमेली की चूत को चोदने लगा. चमेली भी चूतड़ हिला हिला कर लंड लेने लगी और बोली, “ज़रा धीरे…धीरे…आ.आ ऊव…ज़रा धीरे चोद.., वरना जा…जा….उई माँ…..वरना जल्दी झड़ जाएगा...” मेने कहा, “में नहीं चोदता, मेरा लंड चोदता है और इस वक्त मेरी सुनता नहीं है...” “मार डालोगे आज मुझे,” कहते हुए उसने चूतड़ घुमाँए और चूत से लंड दबोचा।
दोनो स्तनो को पकड़ कर मुँह से मुँह चिपका कर में चमेली को चोदते चला. धक्के की रफ़्तार में रोक नहीं पाया. कुछ बीस पच्चीस धक्के बाद अचानक मेरे बदन में आनंद का दरिया उमड़ पड़ा. मेरी आँखें ज़ोर से मूंद गयी, मुँह से लार निकल पड़ी, हाथ पाँव अकड़ गये और सारे बदन पर रोएँ खड़े हो गये. लंड चूत की गहराई में ऐसा घुसा की बाहर निकलने का नाम लेता न था. लंड में से गर्मागरम वीर्य की ना जाने कितनी पिचकारियाँ छूटी, हर पिचकारी के साथ बदन में झुरझुरी फैल गयी. थोड़ी देर में होश खो बेठा. जब होश आया तब मेने देखा की चमेली की टाँगें मेरी कमर आस पास और बाहें गर्दन के आसपास जमी हुई थी. मेरा लंड अभी भी तना हुआ था और उसकी चूत फटके मार रही थी. आगे क्या करना है वो में जानता नहीं था लेकिन लंड में अभी गुदगुदी होती रही थी. चमेली ने मुझे रिहा किया तो में लंड निकाल कर उतरा. “बाप रे,” वो बोली, “ इतनी अच्छी चुदाई आज कई दीनो के बाद की.” “मेने तुझे ठीक से चोदा ?” “बहुत अच्छी तरह से..”
हम अभी पलंग पर लेटे थे. मेने उसके स्तन पर हाथ रखा और दबाया. पतले रेशमी कपड़े की चोली आर पार उसकी निप्पल मेने मसली. उसने मेरा लंड टटोला और खड़ा पाकर बोली, “अरे वाह, ये तो अभी भी तना है... कितना लंबा और मोटा है... प्रदीप, जा.. तू उसे धो कर आ...” में बाथरूम में गया, पिशाब किया और लंड धोया. वापस आ कर मेने कहा, “चमेली, मुझे तेरे स्तन और चूत दिखा. मेने अब तक किसी की देखी नहीं है...” उसने चोली घाघरी निकाल दी. मेने पहले बताया था की चमेली कोई इतनी खूबसूरत नहीं थी।
पाँच फीट दो इंच की उँचाई के साथ पचास किलो वजन होगा. रंग सांवला, चेहरा गोल, आँखें और बाल काले. नितंब भारी. सब से अच्छे थे उसके स्तन. बड़े बड़े गोल गोल स्तन सिने पर उपरी भाग पर लगे हुए थे. मेरी हथेलियो में समाते नहीं थे. दो इंच की छोटी सी निप्पल काले रंग के थे. चोली निकालते ही मेने दोनो स्तन को पकड़ लिया. सहलाया, दबोचा और मसला. बड़े होंठ, योनि सब दिखाया. मेरी दो उंगलियाँ चूत में डलवा के चूत की गहराई भी दिखाई. वो बोली, “यह जो मूत्र स्थान है वो मर्द के लंड बराबर होता है, चोदते वक्त ये भी लंड की माफिक खड़ी हो जाती है... दूसरे, तूने चूत की दीवारे देखी ? कैसी करकरी है ? लंड जब चोदता है तब ये करकरी दीवारों के साथ घिस पड़ता है और बहुत मज़ा आता है.. हाय, लेकिन बच्चे के जन्म के बाद ये दीवारे चिकनी हो जाती है, चूत चौड़ी हो जाती है और चूत की पकड़ कम हो जाती है...”
मुझे लेटा कर वो बगल में बेठ गयी. मेरा लंड तोड़ा सा नर्म होने चला था, उसको मुट्ठी में लिया. टोपी खींच कर माथा खोला और जीभ से चाटा. तुरंत लंड ने ठुमका लगाया और खड़ा हो गया. में देखता रहा और उसने लंड मुँह में ले लिया और चूसने लगी. मुँह में जो हिस्सा था उस पर वो जीभ फेरती थी, जो बाहर था उसे मुट्ठी में लिए मूठ मारती थी. दूसरे हाथ से मेरे वृषण टटोलती थी. मेरे हाथ उस की पीठ सहला रहे थे. मेने हस्त मैथुन का मज़ा लिया था. आज एक बार चूत चोदने का मज़ा भी लिया. इन दोनो से अलग किस्म का मज़ा आ रहा था लंड चुसवाने में. वो भी जल्दी से उत्तेजित होती चली थी।
लंड को मुँह से निकाल कर वो मेरी जांघ पर बेठ गयी. अपनी जांघें चौड़ी करके चूत को लंड पर टिकाया. लंड का माथा योनि के मुख में फसा की नितंब नीचा करके पूरा लंड योनि में ले लिया. “उू...उऊहह, मज़ा आ गया... प्रदीप, जवाब नहीं तेरे लंड का... जितना मीठा मुँह में लगता है.. इतना ही चूत में भी मीठा लगता है...” कहते हुए उसने नितंब गोल घुमाँए और उपर नीचे करके लंड को अंदर बाहर करने लगी. आठ दस धक्के मारते ही वो थक गयी और मेरे उपर पड़ी. मेने उसे बाहों में लिया और घूम के उपर आ गया. उसने टाँगें पसारी और पाँव उपर किया. पोज़िशन बदलते मेरा लंड पूरा योनि की गहराई में उतर गया. उसकी योनि फट फट करने लगी. सिखाए बिना मेने आधा लंड बाहर खींचा, ज़रा रुका और एक जोरदार धक्के के साथ चूत में घुसेड दिया. पूरा लंड योनि में उतर गया. ऐसे पाँच सात धक्के मारे. चमेली का बदन हिल पड़ा।
वो बोली, “ऐसे, ऐसे, प्रदीप, ऐसे ही चोदो मुझे. मारो मेरी चूत को और फाड़ दो मेरी चूत को...”भगवान ने लंड क्या बनाया है चूत मारने के लिए, कठोर और चिकना. चूत क्या बनाई है मार खाने के लिए, और गद्दी जैसे बड़े होंठ के साथ... जवाब नहीं उनका... मैने चमेली का कहना माना. फ्री स्टाइल से थपा थप में उसको चोदने लगा. दस पंद्रह धक्के में वो झड़ पड़ी. मेने चालू रखा. उसने अपनी उंगली से चूत को मसला और दूसरी बार झड़ी. उसकी योनि में इतने ज़ोर से संकोचन हुए की मेरा लंड दब गया. आते जाते लंड की टोपी उपर नीचे होती चली और माथा ओर तन कर फूल गया. मेरे से अब ज़्यादा बर्दास्त नहीं हो सका।
चूत की गहराई में लंड दबाए हुए में ज़ोर से झडा. वीर्य की चार पाँच पिचकारियाँ छूटी और मेरे सारे बदन में झुरझुरी फैल गयी. में निढाल हो पड़ा. आगे क्या बताउं ? उस रात के बाद रोज चमेली चली आती थी. हमें आधा एक घंटा समय मिलता था जब हम जम कर चुदाई करते थे. उसने मुझे कई टेक्निक सिखाई और पोज़िशन दिखाई. मेने सोचा था की कम से कम एक महीने तक चमेली को चोदने का लुफ्त मिलेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
एक हप्ते में ही वो ससुराल वापस चली गयी. असली खेल अब शुरू हुआ. चमेली के जाने के बाद तीन दिन तक कुछ नहीं हुआ. में हर रोज उसकी चूत याद करके मूठ मारता रहा. चौथे दिन में मेरे कमरे में पढ़ने का प्रयत्न कर रहा था. एक हाथ में लंड पकड़े हुए, और रेणु भाभी आ पहुची. झट से मेने लंड छोड़ कपड़े ठीक किये और सीधा बेठ गया।
वो सब कुछ समझती थी इसलिए मुस्कुराती हुई बोली, “कैसी चल रही है पढ़ाई, देवरजी ? में कुछ मदद कर सकती हूँ ?” “न…ना.. भाभी, सब ठीक है,” मेने कहा. कुछ महीनो बाद पता चला की चमेली माँ बनने वाली है….
दोस्तों आगे की कहानी अगले भाग में।
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