FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--14
गतांक से आगे ...........
तो कपडे तुमने ..." मैं गूंजा को देख रहा था और वो बस खीस निकाले....
" मुझे क्यों देख रहे हैं ...आप ने मुझे थोड़ी दिए थे कपडे...जिसे दिए थे उससे मांगिये..'. गुंजा हंसी.
मैंने गुड्डी को देखा पर वो दुष्ट ...गूंजा से बोली..'. दे दे ना देख बिचारे कैसे उघारे उघारे ... '
'अरे तो कौन इनका शील भंग कर देगा...' गुंजा बोली, और इत्ती दया आ रही है तो अपना ही कुछ दे दे न इस बिचारे को'
' क्यों शलवार सूट पहनियेगा ...' गुड्डी ने हंस के कहा.
मुझे भी मौका मी रहा था छेड़खानी करने का. मैंने गूंजा से कहा, ' हे तूने गायब किया है तुझी को देना पडेगा. और फिर मुड के मैं चन्दा भाभी से बोला,
' भाभी देखिये ना इन दोनों को इत्ता तंग कर रही हैं ... '
' देखो मैं तुम तीनों के बीच नहीं पड़ने वाली आपस में समझ लो ...' हंस के वो बोली.
' पर पर मुझे जाना है ...और शापिंग उसे बाद रेस्ट हाउस ..सामान सब वहां है फिर रात होने के पहले पहुंचना भी है यों गुड्डी तुम सुबह से कह रही हो शापिंग के लिए .... '
'अरे ये बनारस है तुम्हारा मायका नहीं यहाँ दुकाने रात ८-९ बजे तक बंद होती हैं...' भाभी बोली.
और क्या गुड्डी ने हामी भरी....शापिंग तो मैं आपसे करवाउंगी ही चाहे ऐसे ही चलना पड़े लेकिन उसकी जल्दी नहीं है आज कल होली का सीजन है दूकान खूब देर तक खुली रहती है...'
हलके से गुंजा गुड्डी की ओर मुंह करके बोली, (लेकिन हम सब लोगों को साफ़ साफ़ सुनाई पड़ा )
" हे ऐसे रात में लौटने की जल्दी क्या है कोई खास प्रोग्राम है क्या..."
गुड्डी का बस चलता तो वहीँ गुंजा को एक हाथ कस के जमाती, उसका चेहरा गुलाल हो गया.
चन्दा भाभी हलके हलके मुस्कराने लगीं...
तब तक चन्दा भाभी कमरे में आ गयीं.
हंसते हुए वो बोलीं ..' अच्छा, तो सुबह सुबह कुछ लोगों की गुड मार्निग हो गयी.'
वो कुनमुनाने लगी लेकिन मैंने नहीं छोड़ा. बल्कि चंदा भाभी को दिखाते हुए हाथ से उसके उभार हलके से दबा दिए.
चन्दा भाभी के जाने के बाद वो शिकायत के अंदाज में बोली...तुम ना...
" तुम ना क्या.. अरे गुड मार्निग ज़रा अच्छे से होने दो न..." और अबकी मैंने और कस के उसके मस्त किशोर उरोज दबा दिए.
उसकी निगाह मेरे नीचे..साडी कम लुंगी से थोडा खुले थोडा ढके.. ' उसपे.'
वो कुनमुनाने लगा था. और क्यों ना कुनमुनाए...जिसके लिए वो इत्ते दिनों से बेकरार था वो एक दम पास में बैठी थी. मेरा एक हाथ उस के उभार पे था.
" हे ज़रा उसको भी गुड मार्निग करा दो ना....बेचारा तड़प रहा है..." उसकी और इशारा करते हुए मैंने गुड्डी से कहा.
" तड़पने दो ...तुमको करा दिया ना तो फिर सबको..." वो इतरा के बोली. लेकिन निगाह उस की निगाह अभी भी वहीँ लगी थीं.
'वो' तब तक पूरा खड़ा हो गया था.
मैंने झटके से गुड्डी का सर एक बार में झुका दिया. और उस के होंठ कपडे से आधे ढके आधे खुले उस के ' सर' पे...
मेरा हाथ कस कस के उस के गदराये जोबन को दबा रहा था.
उस ने पहले तो एक हलकी सी फिर एक कस के चुम्मी ली वहां पे...और बड़ी अदा से आँख नचा के खड़ी हो गयी और जैसे ' उसी' से बात कर रही हो बोली,
' क्यों हो गयी ना गुड मार्निग ...नदीदे कहीं के..." और फिर मुड के मेरा हाथ खींचते हुए बोली,
" उठो ना इत्ती देर हो रही सब लोग नाश्ते के लिए इंतज़ार कर रहे हैं..."
" जानू इंतज़ार तो हम भी कर रहे हैं..." हलके से फुसफुसाते हुए मैं बोला.
जोर से मुस्करा के वो उसी तरह फुफुसाते हुए बोली....
" बेसबरे मालूम है मुझे..चल तो रही हूँ ना आज तुम्हारे साथ ...बस आज की रात...थोड़ा सा ठहरो..." और फिर जोर से बोली...
" उठो ना ...तुम भी...सीधे से उठते हो या..."
मैं उठा के खडा हो गया. लुंगी ठीक करने के बहाने मैंने उसको सुबह सुबह पूरा दर्शन करा दिया.
लेकिन खड़े होते ही मुझे कुछ याद आया...
" अरे यार मैंने मंजन तो किया नहीं ..."
" तो कर लो ना की मैं वो भी कराऊँ..." वो हंसी और हवा में चांदी की हजार घंटियाँ बज उठीं.
" और क्या अब सब कुछ तुम को करवाना पड़ेगा और मुझे करना पड़ेगा..." मुस्करा के मैं द्विअर्थी अंदाज में बोला.
" मारूंगी..." वो बनावटी गुस्से में बोली और एक हाथ जमा भी दिया.
" अरे तुम ना तुम्हे तो बस एक बात ही सूझती है..." मैंने मुंह बना के कहा. " तुम भूल गयी ...कल तुम्हारे कहने पे मैं रुक गया था ...तो मेरे पास ब्रश मंजन कुछ नहीं है...." फिर मैं बोला.
" अच्छा तो बड़ा अहसान जता रहे है...रुक गया मैं ..." मुझे चिढाते हुए बोली. " फायदा किसका हो रहा है...सुबह सुबह गुड मार्निग हो गयी...कल मेरे साथ घूमने को मिल गया..मंजन तो मिल जाएगा...हाँ ब्रश नहीं हैं तो उंगली से कर लो ना..."
" कर तो लूं पर..." मैंने कुछ सोचते हुए कहा..."तुम्ही ने कहा था ना....की मेरे रहते हुए अब तुम्हे अपने हाथ का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है...तो.."
" वो तो मैंने ..." फिर अपनी बात का असर सोच के खुद शरमा गयी. बात बना के बोली , " चल यार तू भी क्या याद करोगे...किसी बनारस वाली से पाला पड़ा था...मैं करा दूंगी तुम्हे अपनी उंगली से ..लेकिन काट मत खाना तुम्हारा भरोसा नहीं...'
वो जैसे ही बाहर को मुड़ी, उसके गोल गोल कसे नितम्ब देख के 'पप्पू' ९० डिग्री में आ गया. मैंने वहां एक हलकी सी चिकोटी काटी और झुक के उस के कान में बोला,
" काटूँगा तो जरूर लेकिन ..उंगली नहीं."
वो बाहर निकलते निकलते चौखट पे रुकी और मुड के के मेरी ओर देख के जीभ निकाल के चिढा दिया.
बाहर जा के उस ने किसी से कुछ बात की शायद गुंजा से...चंदा भाभी की लड़की..जो उससे शायद एकाध साल छोटी थी और उसी के स्कूल में पढ़ती थी.
दोनों ने कुछ बात की फिर हलकी आवाज में हंसी.
"आइडिया ठीक है ..बन्दर छाप दन्त मंजन.....के लिए दीदी." ये गुंजा लग रही थी.
" मारूंगी..." गुड्डी बोली लेकिन बात तुम्हारी सही है. फिर दोनों की हंसी. मैं दरवाजे से चिपका था.
" आप तो बुरा मान गयी दीदी...आखिर मेरी दीदी हैं तो मेरा तो मजाक का हक़ बनता है...वो भी फागुन में..." गूंजा ने छेडा. लेकिन गुड्डी भी कम नहीं थी.
" मजाक का क्यों तू जो चाहे सब ....मैं बुरा नहीं मानूंगी..." वो बोली.
थोड़ी देर में गुड्डी अन्दर आई. सच में उसके हाथ में बन्दर छाप दन्त मंजन था.
" कटखने लोगों के लिए स्पेशल मंजन..." हंस के वो बोली.
"पर उपर से नीचे तक हर जगह काटूँगा" मैं भी उसी के अंदाज में बोला.
" काट लेना...जैसे मेरे कहने से छोड़ ही दोगे मुझे मालूम है तुम कितने शरीफ हो...अब उठो भी बाथ रूम में तो चलो." मुझे हाथ पकड़ के बाथ रूम में वो घसीट के ले गयी.
मैंने मंजन लेने के लिए हाथ फैला दिया बदले में जबरदस्त फटकार मिली.
" तुम ना मंगते हो...जहां देखा हाथ फैला दिया...क्या करोगे तुम्हारे मायकेवालियों का असर लगता है आ गया है तुम्हारे उपर. जैसे वो सब फैलाती रहती हैं ना सबके सामने ." ये कहते हुए गुड्डी ने अपने हाथ पे ढेर सारा लाल दन्त मंजन गिरा लिया था. वो अब जूनियर चन्दा भाभी बनती लग रही थी.
" मुंह खोलो..." वो बोली. और मैंने पूरी बत्तीसी खोल दी. उसने अपनी उंगली पे ढेर सारा मंजन लगा के सीधे मेरे दांतों पे और गिन के बत्तीस बार..और फिर दुबारा और मंजन लगा के और फिर तिबारा...स्वाद कुछ अलग लग रहा था फिर मैंने सोचा की शायद बनारस का कोई ख़ास मंजन हो...पूरा मुंह मंजन से भरा हुआ था. मैं वश बेसिन की और मुडा, तो वो बोली,
" रुको...आँखे बंद कर लो...मंजन मैंने करवाया तो मुंह भी मैं ही धुलवा देती हूँ."
अच्छे बच्चे की तरह मैंने आँखे बंद रखी और उसने मुंह धुलवा दिया.
जब मैं बाहर निकला तो अचानक मुझे कुछ याद आया और मैं बोला..." हे मेरे कपडे...."
" दे देंगे देंगे...तुम्हारी वो घटिया शर्ट पैंट मैं तो पहनने से रही और आखिर किससे शरमा रहे हो मैंने तो तुम्हे ऐसे देख ही लिया है...चंदा भाभी ने देख ही लिया है और रहा गुंजा तो वो तो अभी बच्ची है. " ये कहते हुए मुझे पकड़ के नाश्ते की टेबल पे वो खिंच ले गयी.
एक दम बच्ची नहीं लग रही थी वो. सफेद ब्लाउज और नीली स्कर्ट ..स्कूल यूनीफार्म में..
मेरी आँखे बस टंगी रह गयीं. चेहरा एकदम भोला भाला..रंग गोरा लेकिन बहोत गोरा नहीं ...लेकिन आंखे उसकी चुगली कर रही थीं..खूब बड़ी बड़ी...चुहुल और शरारत से भरी ...कजरारी...गाल भरे भरे ..एकदम चन्दा भाभी की तरह और होंठ भी, हलके गुलाबी रसीले भरे भरे उन्ही की तरह...जैसे कह रहे हों किस मी...किस मी नाट ....मुझे कल रात की बात याद आई जब गुड्डी ने उसका जिक्र किया था तो हंस के मैंने पूछा था क्यों बी एच एम् बी ...( बड़ा होके माल बनेगी ) है क्या...तो पलटी के आँख नचा के उस शैतान ने कहा था...जी नहीं ...बी एच काट दो ..और वैसे भी मिला दूंगी
मेरी आँखे जब थोड़ी और नीचे उतरी तो एकदम ठहर गयी.
उभार उसके ...उसके स्कूल की युनिफोर्म ...सफेद शर्ट को जैसे फाड़ रहे हों..और स्कूल टाई ठीक उनके बीच में ...किसी का ध्यान ना जाना हो तो भी चला जाए...परफेक्ट किशोर उरोज..पता नहीं वो इत्ते बड़े थे या जान बुझ के उसने शर्ट को इत्ती कस के स्कर्ट में टाईट कर के बेल्ट बाँधी थी...
पता नहीं मैं कित्ती देर और बेशर्मों की तरह देखता रहता अगर गुड्डी ने ना टोका होता...
" हे क्या देख रहे हो...गुंजा नमस्ते कर रही है."
मैंने ध्यान हटा के झट से उसके नमस्ते का ज़वाब दिया और टेबल पे बैठ गया.
वो दोनों सामने बैठी थीं. मुझे देख के मुस्करा रही थीं और फिर आपस में फुस्फुस्सा के कुछ बाते कर, टीनेजर्स की तरह खिलखिला रही थीं.
मेरे बगल की चेयर खाली थी.
हे चंदा भाभी कहाँ हैं. मैंने पुछा.
" अपने देवर के लिए गरमागरम ब्रेड रोल बना रही हैं...किचेन में." आँख नचा के गुंजा बोली.
" हम लोगों के उठने से पहले से ही वो...किचेन में लगी हैं." गुड्डी ने बात में बात जोड़ी.
मैंने चैन की सांस ली. तो इसका मतलब हम लोगों का रात का धमाल...इन दोनों को को..पता नहीं. .तब तक गुड्डी बोली.
' हे नाश्ता शुरू करिए ना...पेट में चूहे दौड़ रहे हैं हम लोगों के...और वैसे भी इसे स्कूल जाना है. आज लास्ट डे है होली की छुट्टी के पहले ...लेट हो गयी तो मुरगा बनना पडेगा. "
" मुरगा की मुरगी...हंसते हुए मैंने गुंजा को देख के बोला. मेरा मन उस से बात करने को कर रहा था लेकिन गुड्डी से बात करने के बहाने मैंने पुछा..
" लेकिन होली की छुट्टी के पहले वाले दिन तो स्कूल में खाली धमा चौकड़ी, रंग..ऐसी वैसी टाइटिलें..." मेरी बात काट के गुड्डी बोली...
" अरे तो इसी लिए तो जा रही है ये ...आज टाइटिलें..."
उसकी बात काट के गुंजा बीच में बोली, " अच्छा दीदी, बताऊँ आपको क्या टाइटिल मिली थी."
" मारूंगी...आप नाश्ता करिए न कहाँ इस की बात में फँस गए..अगर इस के चक्कर में पड़ गए तो..."
लेकिन मुझे तो जानना था. उसकी बात काट के मैंने गुंजा से पूछा..." हे तुम इससे मत डरो मैं हूँ ना..बताओ गुड्डी को क्या टाइटिल मिली थी. "
हंसते हुए गूंजा बोली...बिग बी ..
पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया बिग बी मतलब लेकिन जब मैंने गुड्डी की ओर देखा तो लाज से उसके गाल टेसू हो रहे थे. और मेरी निगाह जैसे ही उसके उभारों पे पड़ी एक मिनट में बात समझ में आ गयी...बिग बी...बिग बूब्स ...वास्तव में उसके अपने उम्र वालियों से २० ही थे. गुड्डी ने बात बदलते हुए मुझसे कहा, " हे खाना शुरू करों ना..ये ब्रेड रोल ना गूंजा ने स्पेसली आपके लिए बनाए हैं."
" जिसने बनाया है वो दे...." हंस के गुंजा को घूरते हुए मैंने कहा. मेरा द्विअर्थी डायलाग गुड्डी तुरंत समझ गयी. और उसी तरह बोली,
" देगी जरुर देगी...लेने की हिम्मत होनी चाहिए क्यों गुंजा..."
" एकदम ..." वो भी मुस्करा रही थी. मैं समझ गया था की सिर्फ शरीर से ही नहीं वो मन से भी बड़ी हो रही है.
गुड्डी ने फिर उसे चढ़ाया...
क्रमशः.....................
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तो कपडे तुमने ..." मैं गूंजा को देख रहा था और वो बस खीस निकाले....
" मुझे क्यों देख रहे हैं ...आप ने मुझे थोड़ी दिए थे कपडे...जिसे दिए थे उससे मांगिये..'. गुंजा हंसी.
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' क्यों शलवार सूट पहनियेगा ...' गुड्डी ने हंस के कहा.
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' भाभी देखिये ना इन दोनों को इत्ता तंग कर रही हैं ... '
' देखो मैं तुम तीनों के बीच नहीं पड़ने वाली आपस में समझ लो ...' हंस के वो बोली.
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'अरे ये बनारस है तुम्हारा मायका नहीं यहाँ दुकाने रात ८-९ बजे तक बंद होती हैं...' भाभी बोली.
और क्या गुड्डी ने हामी भरी....शापिंग तो मैं आपसे करवाउंगी ही चाहे ऐसे ही चलना पड़े लेकिन उसकी जल्दी नहीं है आज कल होली का सीजन है दूकान खूब देर तक खुली रहती है...'
हलके से गुंजा गुड्डी की ओर मुंह करके बोली, (लेकिन हम सब लोगों को साफ़ साफ़ सुनाई पड़ा )
" हे ऐसे रात में लौटने की जल्दी क्या है कोई खास प्रोग्राम है क्या..."
गुड्डी का बस चलता तो वहीँ गुंजा को एक हाथ कस के जमाती, उसका चेहरा गुलाल हो गया.
चन्दा भाभी हलके हलके मुस्कराने लगीं...
तब तक चन्दा भाभी कमरे में आ गयीं.
हंसते हुए वो बोलीं ..' अच्छा, तो सुबह सुबह कुछ लोगों की गुड मार्निग हो गयी.'
वो कुनमुनाने लगी लेकिन मैंने नहीं छोड़ा. बल्कि चंदा भाभी को दिखाते हुए हाथ से उसके उभार हलके से दबा दिए.
चन्दा भाभी के जाने के बाद वो शिकायत के अंदाज में बोली...तुम ना...
" तुम ना क्या.. अरे गुड मार्निग ज़रा अच्छे से होने दो न..." और अबकी मैंने और कस के उसके मस्त किशोर उरोज दबा दिए.
उसकी निगाह मेरे नीचे..साडी कम लुंगी से थोडा खुले थोडा ढके.. ' उसपे.'
वो कुनमुनाने लगा था. और क्यों ना कुनमुनाए...जिसके लिए वो इत्ते दिनों से बेकरार था वो एक दम पास में बैठी थी. मेरा एक हाथ उस के उभार पे था.
" हे ज़रा उसको भी गुड मार्निग करा दो ना....बेचारा तड़प रहा है..." उसकी और इशारा करते हुए मैंने गुड्डी से कहा.
" तड़पने दो ...तुमको करा दिया ना तो फिर सबको..." वो इतरा के बोली. लेकिन निगाह उस की निगाह अभी भी वहीँ लगी थीं.
'वो' तब तक पूरा खड़ा हो गया था.
मैंने झटके से गुड्डी का सर एक बार में झुका दिया. और उस के होंठ कपडे से आधे ढके आधे खुले उस के ' सर' पे...
मेरा हाथ कस कस के उस के गदराये जोबन को दबा रहा था.
उस ने पहले तो एक हलकी सी फिर एक कस के चुम्मी ली वहां पे...और बड़ी अदा से आँख नचा के खड़ी हो गयी और जैसे ' उसी' से बात कर रही हो बोली,
' क्यों हो गयी ना गुड मार्निग ...नदीदे कहीं के..." और फिर मुड के मेरा हाथ खींचते हुए बोली,
" उठो ना इत्ती देर हो रही सब लोग नाश्ते के लिए इंतज़ार कर रहे हैं..."
" जानू इंतज़ार तो हम भी कर रहे हैं..." हलके से फुसफुसाते हुए मैं बोला.
जोर से मुस्करा के वो उसी तरह फुफुसाते हुए बोली....
" बेसबरे मालूम है मुझे..चल तो रही हूँ ना आज तुम्हारे साथ ...बस आज की रात...थोड़ा सा ठहरो..." और फिर जोर से बोली...
" उठो ना ...तुम भी...सीधे से उठते हो या..."
मैं उठा के खडा हो गया. लुंगी ठीक करने के बहाने मैंने उसको सुबह सुबह पूरा दर्शन करा दिया.
लेकिन खड़े होते ही मुझे कुछ याद आया...
" अरे यार मैंने मंजन तो किया नहीं ..."
" तो कर लो ना की मैं वो भी कराऊँ..." वो हंसी और हवा में चांदी की हजार घंटियाँ बज उठीं.
" और क्या अब सब कुछ तुम को करवाना पड़ेगा और मुझे करना पड़ेगा..." मुस्करा के मैं द्विअर्थी अंदाज में बोला.
" मारूंगी..." वो बनावटी गुस्से में बोली और एक हाथ जमा भी दिया.
" अरे तुम ना तुम्हे तो बस एक बात ही सूझती है..." मैंने मुंह बना के कहा. " तुम भूल गयी ...कल तुम्हारे कहने पे मैं रुक गया था ...तो मेरे पास ब्रश मंजन कुछ नहीं है...." फिर मैं बोला.
" अच्छा तो बड़ा अहसान जता रहे है...रुक गया मैं ..." मुझे चिढाते हुए बोली. " फायदा किसका हो रहा है...सुबह सुबह गुड मार्निग हो गयी...कल मेरे साथ घूमने को मिल गया..मंजन तो मिल जाएगा...हाँ ब्रश नहीं हैं तो उंगली से कर लो ना..."
" कर तो लूं पर..." मैंने कुछ सोचते हुए कहा..."तुम्ही ने कहा था ना....की मेरे रहते हुए अब तुम्हे अपने हाथ का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है...तो.."
" वो तो मैंने ..." फिर अपनी बात का असर सोच के खुद शरमा गयी. बात बना के बोली , " चल यार तू भी क्या याद करोगे...किसी बनारस वाली से पाला पड़ा था...मैं करा दूंगी तुम्हे अपनी उंगली से ..लेकिन काट मत खाना तुम्हारा भरोसा नहीं...'
वो जैसे ही बाहर को मुड़ी, उसके गोल गोल कसे नितम्ब देख के 'पप्पू' ९० डिग्री में आ गया. मैंने वहां एक हलकी सी चिकोटी काटी और झुक के उस के कान में बोला,
" काटूँगा तो जरूर लेकिन ..उंगली नहीं."
वो बाहर निकलते निकलते चौखट पे रुकी और मुड के के मेरी ओर देख के जीभ निकाल के चिढा दिया.
बाहर जा के उस ने किसी से कुछ बात की शायद गुंजा से...चंदा भाभी की लड़की..जो उससे शायद एकाध साल छोटी थी और उसी के स्कूल में पढ़ती थी.
दोनों ने कुछ बात की फिर हलकी आवाज में हंसी.
"आइडिया ठीक है ..बन्दर छाप दन्त मंजन.....के लिए दीदी." ये गुंजा लग रही थी.
" मारूंगी..." गुड्डी बोली लेकिन बात तुम्हारी सही है. फिर दोनों की हंसी. मैं दरवाजे से चिपका था.
" आप तो बुरा मान गयी दीदी...आखिर मेरी दीदी हैं तो मेरा तो मजाक का हक़ बनता है...वो भी फागुन में..." गूंजा ने छेडा. लेकिन गुड्डी भी कम नहीं थी.
" मजाक का क्यों तू जो चाहे सब ....मैं बुरा नहीं मानूंगी..." वो बोली.
थोड़ी देर में गुड्डी अन्दर आई. सच में उसके हाथ में बन्दर छाप दन्त मंजन था.
" कटखने लोगों के लिए स्पेशल मंजन..." हंस के वो बोली.
"पर उपर से नीचे तक हर जगह काटूँगा" मैं भी उसी के अंदाज में बोला.
" काट लेना...जैसे मेरे कहने से छोड़ ही दोगे मुझे मालूम है तुम कितने शरीफ हो...अब उठो भी बाथ रूम में तो चलो." मुझे हाथ पकड़ के बाथ रूम में वो घसीट के ले गयी.
मैंने मंजन लेने के लिए हाथ फैला दिया बदले में जबरदस्त फटकार मिली.
" तुम ना मंगते हो...जहां देखा हाथ फैला दिया...क्या करोगे तुम्हारे मायकेवालियों का असर लगता है आ गया है तुम्हारे उपर. जैसे वो सब फैलाती रहती हैं ना सबके सामने ." ये कहते हुए गुड्डी ने अपने हाथ पे ढेर सारा लाल दन्त मंजन गिरा लिया था. वो अब जूनियर चन्दा भाभी बनती लग रही थी.
" मुंह खोलो..." वो बोली. और मैंने पूरी बत्तीसी खोल दी. उसने अपनी उंगली पे ढेर सारा मंजन लगा के सीधे मेरे दांतों पे और गिन के बत्तीस बार..और फिर दुबारा और मंजन लगा के और फिर तिबारा...स्वाद कुछ अलग लग रहा था फिर मैंने सोचा की शायद बनारस का कोई ख़ास मंजन हो...पूरा मुंह मंजन से भरा हुआ था. मैं वश बेसिन की और मुडा, तो वो बोली,
" रुको...आँखे बंद कर लो...मंजन मैंने करवाया तो मुंह भी मैं ही धुलवा देती हूँ."
अच्छे बच्चे की तरह मैंने आँखे बंद रखी और उसने मुंह धुलवा दिया.
जब मैं बाहर निकला तो अचानक मुझे कुछ याद आया और मैं बोला..." हे मेरे कपडे...."
" दे देंगे देंगे...तुम्हारी वो घटिया शर्ट पैंट मैं तो पहनने से रही और आखिर किससे शरमा रहे हो मैंने तो तुम्हे ऐसे देख ही लिया है...चंदा भाभी ने देख ही लिया है और रहा गुंजा तो वो तो अभी बच्ची है. " ये कहते हुए मुझे पकड़ के नाश्ते की टेबल पे वो खिंच ले गयी.
एक दम बच्ची नहीं लग रही थी वो. सफेद ब्लाउज और नीली स्कर्ट ..स्कूल यूनीफार्म में..
मेरी आँखे बस टंगी रह गयीं. चेहरा एकदम भोला भाला..रंग गोरा लेकिन बहोत गोरा नहीं ...लेकिन आंखे उसकी चुगली कर रही थीं..खूब बड़ी बड़ी...चुहुल और शरारत से भरी ...कजरारी...गाल भरे भरे ..एकदम चन्दा भाभी की तरह और होंठ भी, हलके गुलाबी रसीले भरे भरे उन्ही की तरह...जैसे कह रहे हों किस मी...किस मी नाट ....मुझे कल रात की बात याद आई जब गुड्डी ने उसका जिक्र किया था तो हंस के मैंने पूछा था क्यों बी एच एम् बी ...( बड़ा होके माल बनेगी ) है क्या...तो पलटी के आँख नचा के उस शैतान ने कहा था...जी नहीं ...बी एच काट दो ..और वैसे भी मिला दूंगी
मेरी आँखे जब थोड़ी और नीचे उतरी तो एकदम ठहर गयी.
उभार उसके ...उसके स्कूल की युनिफोर्म ...सफेद शर्ट को जैसे फाड़ रहे हों..और स्कूल टाई ठीक उनके बीच में ...किसी का ध्यान ना जाना हो तो भी चला जाए...परफेक्ट किशोर उरोज..पता नहीं वो इत्ते बड़े थे या जान बुझ के उसने शर्ट को इत्ती कस के स्कर्ट में टाईट कर के बेल्ट बाँधी थी...
पता नहीं मैं कित्ती देर और बेशर्मों की तरह देखता रहता अगर गुड्डी ने ना टोका होता...
" हे क्या देख रहे हो...गुंजा नमस्ते कर रही है."
मैंने ध्यान हटा के झट से उसके नमस्ते का ज़वाब दिया और टेबल पे बैठ गया.
वो दोनों सामने बैठी थीं. मुझे देख के मुस्करा रही थीं और फिर आपस में फुस्फुस्सा के कुछ बाते कर, टीनेजर्स की तरह खिलखिला रही थीं.
मेरे बगल की चेयर खाली थी.
हे चंदा भाभी कहाँ हैं. मैंने पुछा.
" अपने देवर के लिए गरमागरम ब्रेड रोल बना रही हैं...किचेन में." आँख नचा के गुंजा बोली.
" हम लोगों के उठने से पहले से ही वो...किचेन में लगी हैं." गुड्डी ने बात में बात जोड़ी.
मैंने चैन की सांस ली. तो इसका मतलब हम लोगों का रात का धमाल...इन दोनों को को..पता नहीं. .तब तक गुड्डी बोली.
' हे नाश्ता शुरू करिए ना...पेट में चूहे दौड़ रहे हैं हम लोगों के...और वैसे भी इसे स्कूल जाना है. आज लास्ट डे है होली की छुट्टी के पहले ...लेट हो गयी तो मुरगा बनना पडेगा. "
" मुरगा की मुरगी...हंसते हुए मैंने गुंजा को देख के बोला. मेरा मन उस से बात करने को कर रहा था लेकिन गुड्डी से बात करने के बहाने मैंने पुछा..
" लेकिन होली की छुट्टी के पहले वाले दिन तो स्कूल में खाली धमा चौकड़ी, रंग..ऐसी वैसी टाइटिलें..." मेरी बात काट के गुड्डी बोली...
" अरे तो इसी लिए तो जा रही है ये ...आज टाइटिलें..."
उसकी बात काट के गुंजा बीच में बोली, " अच्छा दीदी, बताऊँ आपको क्या टाइटिल मिली थी."
" मारूंगी...आप नाश्ता करिए न कहाँ इस की बात में फँस गए..अगर इस के चक्कर में पड़ गए तो..."
लेकिन मुझे तो जानना था. उसकी बात काट के मैंने गुंजा से पूछा..." हे तुम इससे मत डरो मैं हूँ ना..बताओ गुड्डी को क्या टाइटिल मिली थी. "
हंसते हुए गूंजा बोली...बिग बी ..
पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया बिग बी मतलब लेकिन जब मैंने गुड्डी की ओर देखा तो लाज से उसके गाल टेसू हो रहे थे. और मेरी निगाह जैसे ही उसके उभारों पे पड़ी एक मिनट में बात समझ में आ गयी...बिग बी...बिग बूब्स ...वास्तव में उसके अपने उम्र वालियों से २० ही थे. गुड्डी ने बात बदलते हुए मुझसे कहा, " हे खाना शुरू करों ना..ये ब्रेड रोल ना गूंजा ने स्पेसली आपके लिए बनाए हैं."
" जिसने बनाया है वो दे...." हंस के गुंजा को घूरते हुए मैंने कहा. मेरा द्विअर्थी डायलाग गुड्डी तुरंत समझ गयी. और उसी तरह बोली,
" देगी जरुर देगी...लेने की हिम्मत होनी चाहिए क्यों गुंजा..."
" एकदम ..." वो भी मुस्करा रही थी. मैं समझ गया था की सिर्फ शरीर से ही नहीं वो मन से भी बड़ी हो रही है.
गुड्डी ने फिर उसे चढ़ाया...
क्रमशः.....................
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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