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फागुन के दिन चार--1
फागुन के दिन चार
मेरे देवर कम नंदोई,
सदा सुहागन रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो,
तुमने बोला था की इस बार होली पे जरुर आओगे और हफ्ते भर रहोगे तो क्या हुआ. देवर भाभी की होली तो पूरे फागुन भर चलती है और इस बार तो मैंने अपने लिए एक देवरानी का भी इंतजाम कर लिया है वही तुम्हारा पुराना माल...न सतरह से ज्यादा न सोला से कम ...क्या उभार हो रहे हैं उसके ...मैंने बोला था उससे की अरे हाई स्कुल कर लिया इंटर में जा रही तो अब तो इंटर कोर्स करवाना ही होगा तो फिस्स से हंस के बोली...अरे भाभी आप ही कोई इंतजाम नहीं करवाती अपने तो सैयां , देवर, ननदोइयों के साथ दिन रात और ...तो उसकी बात काट के मैं बोली अच्छा चल आरहा है होली पे एक .और कौन तेरा पुराना यार , लम्बी मोटी पिचकारी है उसकी और सिर्फ सफेद रंग डालेगा एकदम गाढा बहोत दिन तक असर रहता है. तो वो हँस के बोली अरे भाभी आजकल उसका भी इलाज आगया है चाहे पहले खा लो चाहे अगले दिन ...वो बाद के असर का खतरा नहीं रहता. और हां तुम मेरे लिए होली की साडी के साथ चड्ढी बनयान तो लेही आओगे उसके लिए भी ले आना और अपने हाथ से पहना देना. मेरी साइज़ तो तुम्हे याद ही होगी मेरी तुम्हारी तो एक ही है...३४ सी और मालुम तो तुम्हे उसकी भी होगी...लेकिन चल मैं बता देती हूँ ...३० बी. हां होली के बाद जरूर ३२ हो जायेगी."
मैं समझ गया भाभी चिट्ठी मैं किसका जीकर कर रही थीं ...मेरी कजिन ... हाईस्कूल का इम्तहान दिया था उसने. जबसे भाभी की शादी हुयी थी तभी से उसका नाम लेके छेडती थीं आखिर उनकी इकलौती ननद जो थी . शादी में सारी गालियां उसी का बाकायदा नाम ले के और भाभी तो बाद में भी प्योर नान वेज गालियां पहले तो वो थोड़ा चिढ़ती लेकिन बाद में वो भी ...कम चुलबुली नहीं थी . कई बार तो उसके सामने ही भाभी मुझसे बोलतीं, हे हो गयी है ना लेने लायक ...कब तक तडपाओगे बिचारी को कर दो एक दिन..आखिर तुम भी ६१-६२ करते हो और वो भी कैंडल करके...आखिर घर का माल घर में ...
पूरी चिट्ठी में होली की पिचकारियाँ चल रही थीं. छेड छाड़ थी मान मनुहार थी और कहीं कहीं धमकी भी थी.
" माना तुम बहोत बचपन से मरवाते डलवाते हो और जिसे लेने में चार बच्चों की मां को पसीना आता है वो तुम हंस हंस के घोंट लेते हो...लेकिन अबकी होली में मैं ऐसा डालूंगी ना की तुम्हारी भी फट जायेगी, इसलिए चिट्ठी के साथ १० रुपये का नोट भी रख रही हूं, एक शीशी वैसलीन की खरीद लेना और अपने पिछवाडे जरूर लगाना... सुबह शाम दोनों टाइम वरना कहोगे की भाभी ने वार्निंग नहीं दी..." लेकिन मेरा मन मयूर आखिरी लाइनें पढ़ कर नाच उठा,
" अच्छा सुनो, एक काम करना. आओगे तो तुम बनारस के ही रास्ते...रुक कर भाभी के यहाँ चले जाना. गुड्डी का हाईस्कूल का बोर्ड का इम्तहान ख़तम हो गया है. वो होली में आने को कह रही थी, उसे भी अपने साथ ले आना. जब तुम लौटोगे तो तुम्हारे साथ लौट जायेगी."
चिठ्ठी के साथ में १० रुपये का नोट तो था ही एक पुडिया में सिंदूर भी था और साथ में ये हिदायत भी की मैं रात में मांग में लगा लूं और बाकी का सिंगार वो होली में घर पहंचने पे करेंगी.
आखिरी दो लाइनें मैंने १० बार पढ़ीं और सोच सोच के मेरा तम्बू तन गया. ...
गुड्डी ...देख के कोई कहता बच्ची है मैं भी यही समझता था लेकिन दो बातें...एक तो असल में वो देखने से ऐसी बच्ची भी नहीं लगती थी...सिवाय चेहरे को छोडके...एक दम भोला . लम्बी तो थी ही, ५-३ रही होगी असली चीज उसके जवानी के फूल, एकदम गदरा रहे थे. ३० सी .. और दूसरी .मेरे सामने पिछले साल का दृश्य नाच उठा. मेरा सेलेक्शन हो गया था और मेरा मन भी ...पूरे घर में मेरी पूछ भी बढ़ी हुयी थी. गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं और गुड्डी भी आई थी. सब लोग पिक्चर देखने गए...डिलाईट टाकिज ...अभी भी मुझे याद है.कोई पुरानी सी पिक्चर थी...रोमांटिक ..हाल करीब खाली सा था. घर के करीब सभी लोग थे. गुड्डी मेरे बगल में ही बैठी थी. हम लोग मूंग फली खारहे थे...सामने एक रोमांटिक गाना चल रहा था. उसने मेरा हाथ पकड़ के अपने सीने पे रख लिया. मैं कुछ समझा नहीं और वहीँ हाथ रहने दिया. थोड़ी देर रह के उसने दूसरे हाथ से मेरा हाथ हलके से दबा दिया. अब मैं इत्ता बुद्धू तो था नहीं...हाँ ये बात जरूर थी की अब तक न तो मेरी कोई गर्ल फ्रेंड थी ना मैंने किसी को छुआ वुआ था. मैंने दोनों और देखा सब लोग पिक्चर देखने में मशगूल थे यहाँ तक की गुड्डी भी सबसे ज्यादा ध्यान से देख रही थी. अब मैने हलके से उसके उभार दबा दिए. उसके ऊपर कोई असर नहीं पडा और वो सामने पिक्चर देखती रही और मुझसे बोली , हे ज़रा मूंगफली बगल में पास कर दो सब तुम ही खाए जा रहो और मैंने बगल में जो मेरी कजिन बैठी थी उसे दे दिया. थोड़ी देर में गुड्डी ने फिर मेरा हाथ दबा दिया अब इससे ज्यादा
सिगनल क्या मिलता. मैंने उसके छोटे छोटे बूब्स हलके से सहलाए फिर दबा दिए और अबकी कस के दबा दिया. वो कुछ नहीं बोली लेकिन थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ मेरे जींस के ऊपर रख दिया. लेकिन तभी इंटरवल हो गया.
हम सब बाहर निकले. वो कोर्नेटो के लिए जिद्द करने लगी और मेरी कजिन ने भी उसका साथ दिया. मैंने लाख समझाया की बहोत भीड़ है स्टाल पे लेकिन वो दोनों ...कूद काद के मैं ले आया. लेकिन दो ही मिलीं. उन दोनों को पकडाते हुए मैंने कहा लो दो ही थीं मेरे लिए नहीं मिली...तब तक पिक्चर शुरू होगई थी और मेरी कजिन आगे चली गई थी, कोरेनेटो ले के...लेकिन गुड्डी रुक गई और अपनी बड़ी बड़ी आंखे नचा के बोली, तुम मेरी ले लेना ना. मैंने उसी टोन में जवाब दिया. लूँगा तो मना मत करना. उसने भी उसी अंदाज में जवाब दिया, मना कौन करता है हाँ तुम्ही घबडा जाते हो ...बुद्धू और वो हाल में घुस गयी. मैं सीट पे बैठ गया तो वो मेरी कजिन को सूना के बोली , कुछ लोग एक दम बुद्धू होते हैं है ना...और उसने भी उसकी हामी में हामी भरी और खीस से हंस दी...मैं बिचारा बीच में. कोरेनेटो की एक बाईट ले के उसने मुझे पास की और बोला...देखा मैं वादे की पक्की हूं, ले लो लेकिन थोड़ा सा लेना. मैंने कस के एक बाईट ली उसी जगह से जहां उसने होंठ लगाए थे और हलके से उसके कान में फुसफुसाया...मजा तो पूरा लेने में है. जवाब उसने दिया कस के मेरी जांघ पे एक कस के चिकोटी काट के...ठीक 'उस के ' बगल में और मुझसे कार्नेटो वापस लेके. बजाय बाईट लेने के उसने हलके से लिक किया और फिर अपने होंठों के बीच लगा के मुझे दिखा के पूरा गप्प कर लिया.
अगले दिन रात तो हद हो गई. गरमी के दिन थे. भैया भाभी ऊपर सोते और हम सब नीचे की मंजिल पे. एक दिन रात में बिजली चली गई. उमस के मारे हालत ख़राब थी. मैंने अपने चारपायी बरामदे में मेरी cनिकाल ली. थोड़ी देर में मेरी नींद खुली तो देखा तो बगल में एक और चारपाई ...मेरी चारपाई से सटी...और उसपे वो सर से पैर तक चद्दर ओढ़े...हलकी हलकी खर्राटे की आवाजें...मैंने दूसरी ओर नजर दौड़ाई तो एक दो और लोग थे लेकिन सब गहरी नींद में...मैंने हिम्मत की और चारपाई के एक दम किनारे सट के उसकी ओर करवट ले के लेट गया और सर से पैर तक चद्दर ओढ़े...थोड़ी देर बाद हिम्मत कर के मैं उसके चद्दर के अंदर हाथ डाला..पहले तो उसके हाथ पे हाथ रखा और फिर सीने पे ...वो टस से मस नहीं हुयी. मुझे लगा शायद गहरी नींद में है. लेकिन तभी उसके हाथ ने पकड़ के मेरा हाथ टाप के अंदर खींच लिया पहले ब्रा के ऊपर से फिर ब्रा के अंदर...पहली बार मैंने जवानी के उभार छुए थे. समझ में ना आये की क्या करूँ . तभी उसने टाप के ऊपर से अपने दूसरे हाथ से मेरा हाथ दबाया...फिर तो...कभी मैं सहलाता कभी हलके से दाबता कभी दबोच लेता. दो दिन बाद फिर पावर कट हुआ...अब मैं बल्कि पावर कट का इंतजार करता था...और उस दिन वो शलवार कुरते में थी .थोड़ी देर ऊपर का मजा लेने के बाद मैंने जब हाथ नीचे किया तो पता चला की शलवार का नाडा पहले से खुला था. पहली बार मैंने जब 'वहां' छुआ तो बता नहीं सकता कैसा लगा बस जो कहाए है ना गूंगे का गुड बस वही. सात दिन कैसे गुजर गए पता नहीं चला. दिन भर तो वो खिलंदड़ी की तरह कभी हम कैरम खेलते कभी लूडो ...भाभी भी साथ होतीं और`वो मुझे छेड़ने में पूरी तरह भाभी का साथ देती. यहाँ तक की जब भाभी मेरी कजिन का नाम लगा के खुल के मजाक करतीं या गालियां सुनाती तो भी . ताश मुझे ना के बराबर आता था लेकिन वो भाभी के साथ मिल के गर्मी की लम्बी दुपहरियों में ...और जब मैं कुछ गड़बड़ करता और भाभी बोलतीं क्यों देवर जी पढ़ाई के अलावा आपने लगता है कुछ नहीं सिखा लगता है मुझे ही ट्रेन करना पडेगा वरना मेरी देवरानी आके मुझे ही दोष देगी तो वो भी हंस के तुरपन लगाती...हाँ एक दम अनाडी हैं.. उस सारंग नयनी की आंखे कह देतीं की वो मेरे किस खेल में अनाडी होने की शिकायत कर रही है.जिस दिन वो जाने वाली थी, वो उपर छत पर, अलगनी पर से कपडे उतारने गई. पीछे पीछे मैं भी चुपके से ...हे हेल्प कर दूं मैं उतारने में मैंने बोला. ना हंस के वो बोली. फिर हंस के दारे पर से अपनी शलवार हटाती बोली, मैं खुद उतार दूंगी . अब मुझसे नहीं रहा गया.मैंने उसे कस के दबोच लिया और बोला...हे दे दो ना बस एक बार ...और कह के मैंने उसे किस कर लिया ये मेरा पहला किस था. लेकिन वो मछली की तरह फिसल के निकल गयी और थोड़ी दूर खड़ी होके हंसते हुए बोलने लगी..इंतजार बस थोडा सा इंतजार . एक दो महीने पहले फिर वो मिली थी एक शादी में धानी शलवार सुइट मन जवानी की आहट एक दम तेज हो गयी थी. मैंने उससे पूछा हे पिछ.ली बार तुमने कहा था ना इंतज़ार तो कब तक...बस थोडा सा और. मैं शायद उदास हो गया था . वो मेरे पास आई और मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए बोली पक्का...बहोत जल्द और अगली बार जो तुम चाहते हो वो सब मिलेगा प्रामिस . मेरे चेहरे पे तो वो ख़ुशी थी की...मैंने फिर कहा सब कुछ तो वो
हंस के बोली एक दम लेकिन तब तक बारात आगई और वो अपनी सहेलियों के साथ बाहर.
भाभी की चिट्ठी ने मुझे वो सब याद दिला दिया और अब उस ने खुद कहा है की वो होली में आना चाहती है और ...उसे तो मालूम ही था की मैं बनारस हो के ही जाउंगा...मैंने तुरंत सारी तैयारियां शुरू कर दीं.
ओह्ह कहानी तो मैंने शुरू कर दी लेकिन पात्रों से तो परिचय करवाया ही नहीं. तो चलिए शुरू करते हैं सबसे पहले मैं यानी आनंद. उम्र जब की बात बता रहा हूँ..२३वां लगा था. लम्बाई ५-११. कोई जिम टोंड बदन वदन नहीं लेकिन छरहरा कह सकते हैं. गोरा..चिढाने के लिए खास तौर से भाभी, चिकना नमकीन कह देती थीं पर आप जानते हैं भाभी तो भाभी हैं.हाँ ये बात सही थी की मैं जरा शर्मीला था. और शायद इसलिए मैं अब तक 'कुवांरा' था. मेरी इमेज एक सीधे साधे लडके की थी. चलिए बहूत हो गयी अपनी तारीफ़. हां अगर आप ' उस' चीज के बार मैं जानना चाते हैं हैं की ...तो वो इस तरह की कहानियों के नायक की तरह तो नहीं था लेकिन उन्नीस भी नहीं था. मेरी भाभी ...बहोत अच्छी थीं...शायद वो पहली महिला लड़की जो चाहे कह लीजिये जो मुझसे खुल के बात कट करती थीं. और इसका एक कारण भी था.. उम्र में मुझसे शायद दो साल ही बड़ी थीं. घर में उनकी उम्र के आस पास का मैं ही था. फिर फिल्मी गानों से लेके हर चीज़ तक यहाँ तक की मेरे लिए मस्तराम किराए पे लाने की फंडिंग भी वही करती थीं. और उनका भी हर काम बाजार से कुछ लाना हो, उन्हें मायके ले जाना और वहां से लाना बस चिढाती बहोत थीं और खास तौर पर मेरी कजिन का नाम लेके, मजाक करने में तो एक नम्बर की...मेरी कजिन पास के ही मोहल्ले में रहती थी और भाभी की एकलौती ननद थी. जैसा की भाभी ने अपनी चिठ्ठी में लिखा था की उसने अभी १०वें का इम्तहान दिया था. और गुड्डी जो बनारस में रहती थी, भाभी की भतीजी थी लेकिन भाभी को दीदी कहती थी..शायद इस लिए की भाभी के परिवार में सभी उन्हें दीदी कहते थे. हाँ और उंसे दोस्ती भी उसकी वैसे ही थी. कहानी में और भी लोग आयेंगे लेकिन उनकी मुलाक़ात हो जायेगी. तो शुरू करते हैं बात जहां छोड़ा था...यानी भाभी की चिट्ठी की बात जिसमें मुझे बनारस से गुड्डी को साथ लाना था.
तो मैंने जल्दी से जल्दी साड़ी तयारी कर डाली. पहले तो भाभी के लिए साडी और साथ में जैसा उन्होंने कहा था चड्ढी बनयान एक गुलाबी और दूसरी स्किन कलर की लेसी, और भी फिर मैंने सोचा की कुछ चीजें बनारस से भी ले सकते हैं. बनारस के लिए कोई सीधी गाडी नहीं थी इसलिए अगस्त क्रान्ति से मथुरा वहां से एक दूसरी ट्रेन से आगरा वहांसे बस और फिर ट्रेन से मुगलसराय और ऑटो से बनारस. वहां मैंने एक रेस्ट हाउस पहले से बुक करा रखा था. सामान वहां रख के मैं फिर से नहा धो के फ्रेश शेव करके तैयार हुआ. क्रीम आफ्टर शेव लोशन , परफ्यूम फ्रेश प्रेस की हुयी सफेद शर्ट...आखिर मैं सिर्फ भाभी के मायके ही नहीं बल्कि ...शाम हो गयी थी. मैंने सोचा की अब इस समय रात में तो हम जा नहीं सकते तो बस एक बार आज जाके मिल लेंगे और भाभी की भाभी के घर बस बता दूंगा की मैं आ गया हूँ गुड्डी से मिल लूंगा और कल एक दम सुबह जाके उस के साथ घर चला जाउंगा. बस से २-३ घंटे लगते थे.
बस से २-३ घंटे लगते थे. रास्ते, में मैंने मिठाई भी ले ली. मुझे मालूम था की गुड्डी को गुलाब जामुन बहोत पसंद हैं.
लेकिन वहां पहुंच कर तो मेरी फूँक सरक गयी. वहां सारा सामान पैक हो रहा था. भाभी की भाभी या गुड्डी की मां ( उन्हें मैं भाभी ही कहूंगा) ने बताया की रात साढ़े आठ बजे की ट्रेन से सभी लोग कानपुर जा रहे हैं. अचानक प्रोग्राम बन गया . अब मैं उन्हें कैसे बताऊँ की भाभी ने चिठ्ठी में क्या लिखा था और मैं क्या प्लान बना के आया था. मैंने मन ही अपने को गालियाँ दी और प्लानिंग कर बच्चू. गुड्डी भी तभी कहीं बाहर से आई. फ्राक में वो कैसी लग रही थी क्या बताऊँ. मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल गया. लेकिन मेरे चेहरे पे तो बारा बजे थे. बिना मेरे पूछे वो कहने लगी की अचानक ये प्रोग्राम बन गया की सब लोग होली में कानपुर जायेंगे इसलिए सब जल्दी जल्दी तयारी करनी पड़ गयी लेकिन अब सब पैकिंग हो गयी है.मेरा चेहरा और लटक गया था. हम लोग बगल के कमरे में थे. भाभी और बाकी लोग किचेन के साथ वाले कमरे में थे. गुड्डी एक बैग में अपने कपडे पैक कर चुकी थी. वो बिना मेरी और देखे हलके हलके बोलने लगी, जानते हो कुछ लोग बुध्धू होते हैं और हमेशा बुध्धू ही रहते हैं है ना. वो उठ के मेरे सामने आ गयी और मेरे गाल पे एक हलकी सी चिकौटी काट के बोलने लगी," अरे बुध्धू ...सब लोग जा रहे हैं कानपुर मैं नहीं. मैं तुम्हारे साथ ही जाउंगी. पूरे सात दिन के लिए, होली में तुम्हारे साथ ही रहूंगी...और तुम्हारी रगड़ाई करुँगी. " मेरे चेहरे पे तो १२०० वाट की रोशनी जगमग हो गयी. " सच्ची'" मैं ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था. " सच्ची ' और उस सारंग नयनी ने इधर उधर देखा और झट से मुझे बाहों में भर के एक किस्सी मेरे गालों पे ले लिया और हाथ पकड़ के उधर ले गयी जहां बाकी लोग थे. मेरे कान में वो बोली, " मम्मी को पटाने में जो मेहनत लगी है उसकी पूरी फीस लूंगी तुमसे. एकदम मैंने भी हलके से कहा. किचेन में भाभी होली के लिए सामान बना रहीं थीं. मैं उनसे कहने लगा की मैं अभी चला जाउंगा रेस्ट हाउस में रुका हूँ. कल सुबह आके गुड्डी को ले जाउंगा. वो बोलीं अरे ये कैसे हो सकता hai. अभी तो आप रुको खाना वाना खा के जाओ. मैं लेकिन तकल्लुफ करने लगा की नहीं भाभी आप लोगों से मुलाक़ात तो हो ही गयी. आप लोग भी बीजी हैं. थोड़ी देर में ट्रेन भी है. तब तक वहां एक महिला आयीं क्या चीज थीं. गुड्डी ने बताय की वो चन्दा भाभी हैं. बहभी यानी गुड्डी की मम्मी की ही उम्र की होंगी...लेकिन दीर्घ नितंबा, सीना भी ३८ डी से तो किसी हालत में कम नहीं होगा लेकिन एक दम कसा कडा...मैं तो देखता ही रह गया. मस्त माल और ऊपर से भी ब्लाउज भी उन्होंने एक दम लो कट पहन रखा था.
क्रमशः.....................
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फागुन के दिन चार--1
फागुन के दिन चार
मेरे देवर कम नंदोई,
सदा सुहागन रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो,
तुमने बोला था की इस बार होली पे जरुर आओगे और हफ्ते भर रहोगे तो क्या हुआ. देवर भाभी की होली तो पूरे फागुन भर चलती है और इस बार तो मैंने अपने लिए एक देवरानी का भी इंतजाम कर लिया है वही तुम्हारा पुराना माल...न सतरह से ज्यादा न सोला से कम ...क्या उभार हो रहे हैं उसके ...मैंने बोला था उससे की अरे हाई स्कुल कर लिया इंटर में जा रही तो अब तो इंटर कोर्स करवाना ही होगा तो फिस्स से हंस के बोली...अरे भाभी आप ही कोई इंतजाम नहीं करवाती अपने तो सैयां , देवर, ननदोइयों के साथ दिन रात और ...तो उसकी बात काट के मैं बोली अच्छा चल आरहा है होली पे एक .और कौन तेरा पुराना यार , लम्बी मोटी पिचकारी है उसकी और सिर्फ सफेद रंग डालेगा एकदम गाढा बहोत दिन तक असर रहता है. तो वो हँस के बोली अरे भाभी आजकल उसका भी इलाज आगया है चाहे पहले खा लो चाहे अगले दिन ...वो बाद के असर का खतरा नहीं रहता. और हां तुम मेरे लिए होली की साडी के साथ चड्ढी बनयान तो लेही आओगे उसके लिए भी ले आना और अपने हाथ से पहना देना. मेरी साइज़ तो तुम्हे याद ही होगी मेरी तुम्हारी तो एक ही है...३४ सी और मालुम तो तुम्हे उसकी भी होगी...लेकिन चल मैं बता देती हूँ ...३० बी. हां होली के बाद जरूर ३२ हो जायेगी."
मैं समझ गया भाभी चिट्ठी मैं किसका जीकर कर रही थीं ...मेरी कजिन ... हाईस्कूल का इम्तहान दिया था उसने. जबसे भाभी की शादी हुयी थी तभी से उसका नाम लेके छेडती थीं आखिर उनकी इकलौती ननद जो थी . शादी में सारी गालियां उसी का बाकायदा नाम ले के और भाभी तो बाद में भी प्योर नान वेज गालियां पहले तो वो थोड़ा चिढ़ती लेकिन बाद में वो भी ...कम चुलबुली नहीं थी . कई बार तो उसके सामने ही भाभी मुझसे बोलतीं, हे हो गयी है ना लेने लायक ...कब तक तडपाओगे बिचारी को कर दो एक दिन..आखिर तुम भी ६१-६२ करते हो और वो भी कैंडल करके...आखिर घर का माल घर में ...
पूरी चिट्ठी में होली की पिचकारियाँ चल रही थीं. छेड छाड़ थी मान मनुहार थी और कहीं कहीं धमकी भी थी.
" माना तुम बहोत बचपन से मरवाते डलवाते हो और जिसे लेने में चार बच्चों की मां को पसीना आता है वो तुम हंस हंस के घोंट लेते हो...लेकिन अबकी होली में मैं ऐसा डालूंगी ना की तुम्हारी भी फट जायेगी, इसलिए चिट्ठी के साथ १० रुपये का नोट भी रख रही हूं, एक शीशी वैसलीन की खरीद लेना और अपने पिछवाडे जरूर लगाना... सुबह शाम दोनों टाइम वरना कहोगे की भाभी ने वार्निंग नहीं दी..." लेकिन मेरा मन मयूर आखिरी लाइनें पढ़ कर नाच उठा,
" अच्छा सुनो, एक काम करना. आओगे तो तुम बनारस के ही रास्ते...रुक कर भाभी के यहाँ चले जाना. गुड्डी का हाईस्कूल का बोर्ड का इम्तहान ख़तम हो गया है. वो होली में आने को कह रही थी, उसे भी अपने साथ ले आना. जब तुम लौटोगे तो तुम्हारे साथ लौट जायेगी."
चिठ्ठी के साथ में १० रुपये का नोट तो था ही एक पुडिया में सिंदूर भी था और साथ में ये हिदायत भी की मैं रात में मांग में लगा लूं और बाकी का सिंगार वो होली में घर पहंचने पे करेंगी.
आखिरी दो लाइनें मैंने १० बार पढ़ीं और सोच सोच के मेरा तम्बू तन गया. ...
गुड्डी ...देख के कोई कहता बच्ची है मैं भी यही समझता था लेकिन दो बातें...एक तो असल में वो देखने से ऐसी बच्ची भी नहीं लगती थी...सिवाय चेहरे को छोडके...एक दम भोला . लम्बी तो थी ही, ५-३ रही होगी असली चीज उसके जवानी के फूल, एकदम गदरा रहे थे. ३० सी .. और दूसरी .मेरे सामने पिछले साल का दृश्य नाच उठा. मेरा सेलेक्शन हो गया था और मेरा मन भी ...पूरे घर में मेरी पूछ भी बढ़ी हुयी थी. गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं और गुड्डी भी आई थी. सब लोग पिक्चर देखने गए...डिलाईट टाकिज ...अभी भी मुझे याद है.कोई पुरानी सी पिक्चर थी...रोमांटिक ..हाल करीब खाली सा था. घर के करीब सभी लोग थे. गुड्डी मेरे बगल में ही बैठी थी. हम लोग मूंग फली खारहे थे...सामने एक रोमांटिक गाना चल रहा था. उसने मेरा हाथ पकड़ के अपने सीने पे रख लिया. मैं कुछ समझा नहीं और वहीँ हाथ रहने दिया. थोड़ी देर रह के उसने दूसरे हाथ से मेरा हाथ हलके से दबा दिया. अब मैं इत्ता बुद्धू तो था नहीं...हाँ ये बात जरूर थी की अब तक न तो मेरी कोई गर्ल फ्रेंड थी ना मैंने किसी को छुआ वुआ था. मैंने दोनों और देखा सब लोग पिक्चर देखने में मशगूल थे यहाँ तक की गुड्डी भी सबसे ज्यादा ध्यान से देख रही थी. अब मैने हलके से उसके उभार दबा दिए. उसके ऊपर कोई असर नहीं पडा और वो सामने पिक्चर देखती रही और मुझसे बोली , हे ज़रा मूंगफली बगल में पास कर दो सब तुम ही खाए जा रहो और मैंने बगल में जो मेरी कजिन बैठी थी उसे दे दिया. थोड़ी देर में गुड्डी ने फिर मेरा हाथ दबा दिया अब इससे ज्यादा
सिगनल क्या मिलता. मैंने उसके छोटे छोटे बूब्स हलके से सहलाए फिर दबा दिए और अबकी कस के दबा दिया. वो कुछ नहीं बोली लेकिन थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ मेरे जींस के ऊपर रख दिया. लेकिन तभी इंटरवल हो गया.
हम सब बाहर निकले. वो कोर्नेटो के लिए जिद्द करने लगी और मेरी कजिन ने भी उसका साथ दिया. मैंने लाख समझाया की बहोत भीड़ है स्टाल पे लेकिन वो दोनों ...कूद काद के मैं ले आया. लेकिन दो ही मिलीं. उन दोनों को पकडाते हुए मैंने कहा लो दो ही थीं मेरे लिए नहीं मिली...तब तक पिक्चर शुरू होगई थी और मेरी कजिन आगे चली गई थी, कोरेनेटो ले के...लेकिन गुड्डी रुक गई और अपनी बड़ी बड़ी आंखे नचा के बोली, तुम मेरी ले लेना ना. मैंने उसी टोन में जवाब दिया. लूँगा तो मना मत करना. उसने भी उसी अंदाज में जवाब दिया, मना कौन करता है हाँ तुम्ही घबडा जाते हो ...बुद्धू और वो हाल में घुस गयी. मैं सीट पे बैठ गया तो वो मेरी कजिन को सूना के बोली , कुछ लोग एक दम बुद्धू होते हैं है ना...और उसने भी उसकी हामी में हामी भरी और खीस से हंस दी...मैं बिचारा बीच में. कोरेनेटो की एक बाईट ले के उसने मुझे पास की और बोला...देखा मैं वादे की पक्की हूं, ले लो लेकिन थोड़ा सा लेना. मैंने कस के एक बाईट ली उसी जगह से जहां उसने होंठ लगाए थे और हलके से उसके कान में फुसफुसाया...मजा तो पूरा लेने में है. जवाब उसने दिया कस के मेरी जांघ पे एक कस के चिकोटी काट के...ठीक 'उस के ' बगल में और मुझसे कार्नेटो वापस लेके. बजाय बाईट लेने के उसने हलके से लिक किया और फिर अपने होंठों के बीच लगा के मुझे दिखा के पूरा गप्प कर लिया.
अगले दिन रात तो हद हो गई. गरमी के दिन थे. भैया भाभी ऊपर सोते और हम सब नीचे की मंजिल पे. एक दिन रात में बिजली चली गई. उमस के मारे हालत ख़राब थी. मैंने अपने चारपायी बरामदे में मेरी cनिकाल ली. थोड़ी देर में मेरी नींद खुली तो देखा तो बगल में एक और चारपाई ...मेरी चारपाई से सटी...और उसपे वो सर से पैर तक चद्दर ओढ़े...हलकी हलकी खर्राटे की आवाजें...मैंने दूसरी ओर नजर दौड़ाई तो एक दो और लोग थे लेकिन सब गहरी नींद में...मैंने हिम्मत की और चारपाई के एक दम किनारे सट के उसकी ओर करवट ले के लेट गया और सर से पैर तक चद्दर ओढ़े...थोड़ी देर बाद हिम्मत कर के मैं उसके चद्दर के अंदर हाथ डाला..पहले तो उसके हाथ पे हाथ रखा और फिर सीने पे ...वो टस से मस नहीं हुयी. मुझे लगा शायद गहरी नींद में है. लेकिन तभी उसके हाथ ने पकड़ के मेरा हाथ टाप के अंदर खींच लिया पहले ब्रा के ऊपर से फिर ब्रा के अंदर...पहली बार मैंने जवानी के उभार छुए थे. समझ में ना आये की क्या करूँ . तभी उसने टाप के ऊपर से अपने दूसरे हाथ से मेरा हाथ दबाया...फिर तो...कभी मैं सहलाता कभी हलके से दाबता कभी दबोच लेता. दो दिन बाद फिर पावर कट हुआ...अब मैं बल्कि पावर कट का इंतजार करता था...और उस दिन वो शलवार कुरते में थी .थोड़ी देर ऊपर का मजा लेने के बाद मैंने जब हाथ नीचे किया तो पता चला की शलवार का नाडा पहले से खुला था. पहली बार मैंने जब 'वहां' छुआ तो बता नहीं सकता कैसा लगा बस जो कहाए है ना गूंगे का गुड बस वही. सात दिन कैसे गुजर गए पता नहीं चला. दिन भर तो वो खिलंदड़ी की तरह कभी हम कैरम खेलते कभी लूडो ...भाभी भी साथ होतीं और`वो मुझे छेड़ने में पूरी तरह भाभी का साथ देती. यहाँ तक की जब भाभी मेरी कजिन का नाम लगा के खुल के मजाक करतीं या गालियां सुनाती तो भी . ताश मुझे ना के बराबर आता था लेकिन वो भाभी के साथ मिल के गर्मी की लम्बी दुपहरियों में ...और जब मैं कुछ गड़बड़ करता और भाभी बोलतीं क्यों देवर जी पढ़ाई के अलावा आपने लगता है कुछ नहीं सिखा लगता है मुझे ही ट्रेन करना पडेगा वरना मेरी देवरानी आके मुझे ही दोष देगी तो वो भी हंस के तुरपन लगाती...हाँ एक दम अनाडी हैं.. उस सारंग नयनी की आंखे कह देतीं की वो मेरे किस खेल में अनाडी होने की शिकायत कर रही है.जिस दिन वो जाने वाली थी, वो उपर छत पर, अलगनी पर से कपडे उतारने गई. पीछे पीछे मैं भी चुपके से ...हे हेल्प कर दूं मैं उतारने में मैंने बोला. ना हंस के वो बोली. फिर हंस के दारे पर से अपनी शलवार हटाती बोली, मैं खुद उतार दूंगी . अब मुझसे नहीं रहा गया.मैंने उसे कस के दबोच लिया और बोला...हे दे दो ना बस एक बार ...और कह के मैंने उसे किस कर लिया ये मेरा पहला किस था. लेकिन वो मछली की तरह फिसल के निकल गयी और थोड़ी दूर खड़ी होके हंसते हुए बोलने लगी..इंतजार बस थोडा सा इंतजार . एक दो महीने पहले फिर वो मिली थी एक शादी में धानी शलवार सुइट मन जवानी की आहट एक दम तेज हो गयी थी. मैंने उससे पूछा हे पिछ.ली बार तुमने कहा था ना इंतज़ार तो कब तक...बस थोडा सा और. मैं शायद उदास हो गया था . वो मेरे पास आई और मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए बोली पक्का...बहोत जल्द और अगली बार जो तुम चाहते हो वो सब मिलेगा प्रामिस . मेरे चेहरे पे तो वो ख़ुशी थी की...मैंने फिर कहा सब कुछ तो वो
हंस के बोली एक दम लेकिन तब तक बारात आगई और वो अपनी सहेलियों के साथ बाहर.
भाभी की चिट्ठी ने मुझे वो सब याद दिला दिया और अब उस ने खुद कहा है की वो होली में आना चाहती है और ...उसे तो मालूम ही था की मैं बनारस हो के ही जाउंगा...मैंने तुरंत सारी तैयारियां शुरू कर दीं.
ओह्ह कहानी तो मैंने शुरू कर दी लेकिन पात्रों से तो परिचय करवाया ही नहीं. तो चलिए शुरू करते हैं सबसे पहले मैं यानी आनंद. उम्र जब की बात बता रहा हूँ..२३वां लगा था. लम्बाई ५-११. कोई जिम टोंड बदन वदन नहीं लेकिन छरहरा कह सकते हैं. गोरा..चिढाने के लिए खास तौर से भाभी, चिकना नमकीन कह देती थीं पर आप जानते हैं भाभी तो भाभी हैं.हाँ ये बात सही थी की मैं जरा शर्मीला था. और शायद इसलिए मैं अब तक 'कुवांरा' था. मेरी इमेज एक सीधे साधे लडके की थी. चलिए बहूत हो गयी अपनी तारीफ़. हां अगर आप ' उस' चीज के बार मैं जानना चाते हैं हैं की ...तो वो इस तरह की कहानियों के नायक की तरह तो नहीं था लेकिन उन्नीस भी नहीं था. मेरी भाभी ...बहोत अच्छी थीं...शायद वो पहली महिला लड़की जो चाहे कह लीजिये जो मुझसे खुल के बात कट करती थीं. और इसका एक कारण भी था.. उम्र में मुझसे शायद दो साल ही बड़ी थीं. घर में उनकी उम्र के आस पास का मैं ही था. फिर फिल्मी गानों से लेके हर चीज़ तक यहाँ तक की मेरे लिए मस्तराम किराए पे लाने की फंडिंग भी वही करती थीं. और उनका भी हर काम बाजार से कुछ लाना हो, उन्हें मायके ले जाना और वहां से लाना बस चिढाती बहोत थीं और खास तौर पर मेरी कजिन का नाम लेके, मजाक करने में तो एक नम्बर की...मेरी कजिन पास के ही मोहल्ले में रहती थी और भाभी की एकलौती ननद थी. जैसा की भाभी ने अपनी चिठ्ठी में लिखा था की उसने अभी १०वें का इम्तहान दिया था. और गुड्डी जो बनारस में रहती थी, भाभी की भतीजी थी लेकिन भाभी को दीदी कहती थी..शायद इस लिए की भाभी के परिवार में सभी उन्हें दीदी कहते थे. हाँ और उंसे दोस्ती भी उसकी वैसे ही थी. कहानी में और भी लोग आयेंगे लेकिन उनकी मुलाक़ात हो जायेगी. तो शुरू करते हैं बात जहां छोड़ा था...यानी भाभी की चिट्ठी की बात जिसमें मुझे बनारस से गुड्डी को साथ लाना था.
तो मैंने जल्दी से जल्दी साड़ी तयारी कर डाली. पहले तो भाभी के लिए साडी और साथ में जैसा उन्होंने कहा था चड्ढी बनयान एक गुलाबी और दूसरी स्किन कलर की लेसी, और भी फिर मैंने सोचा की कुछ चीजें बनारस से भी ले सकते हैं. बनारस के लिए कोई सीधी गाडी नहीं थी इसलिए अगस्त क्रान्ति से मथुरा वहां से एक दूसरी ट्रेन से आगरा वहांसे बस और फिर ट्रेन से मुगलसराय और ऑटो से बनारस. वहां मैंने एक रेस्ट हाउस पहले से बुक करा रखा था. सामान वहां रख के मैं फिर से नहा धो के फ्रेश शेव करके तैयार हुआ. क्रीम आफ्टर शेव लोशन , परफ्यूम फ्रेश प्रेस की हुयी सफेद शर्ट...आखिर मैं सिर्फ भाभी के मायके ही नहीं बल्कि ...शाम हो गयी थी. मैंने सोचा की अब इस समय रात में तो हम जा नहीं सकते तो बस एक बार आज जाके मिल लेंगे और भाभी की भाभी के घर बस बता दूंगा की मैं आ गया हूँ गुड्डी से मिल लूंगा और कल एक दम सुबह जाके उस के साथ घर चला जाउंगा. बस से २-३ घंटे लगते थे.
बस से २-३ घंटे लगते थे. रास्ते, में मैंने मिठाई भी ले ली. मुझे मालूम था की गुड्डी को गुलाब जामुन बहोत पसंद हैं.
लेकिन वहां पहुंच कर तो मेरी फूँक सरक गयी. वहां सारा सामान पैक हो रहा था. भाभी की भाभी या गुड्डी की मां ( उन्हें मैं भाभी ही कहूंगा) ने बताया की रात साढ़े आठ बजे की ट्रेन से सभी लोग कानपुर जा रहे हैं. अचानक प्रोग्राम बन गया . अब मैं उन्हें कैसे बताऊँ की भाभी ने चिठ्ठी में क्या लिखा था और मैं क्या प्लान बना के आया था. मैंने मन ही अपने को गालियाँ दी और प्लानिंग कर बच्चू. गुड्डी भी तभी कहीं बाहर से आई. फ्राक में वो कैसी लग रही थी क्या बताऊँ. मुझे देखते ही उसका चेहरा खिल गया. लेकिन मेरे चेहरे पे तो बारा बजे थे. बिना मेरे पूछे वो कहने लगी की अचानक ये प्रोग्राम बन गया की सब लोग होली में कानपुर जायेंगे इसलिए सब जल्दी जल्दी तयारी करनी पड़ गयी लेकिन अब सब पैकिंग हो गयी है.मेरा चेहरा और लटक गया था. हम लोग बगल के कमरे में थे. भाभी और बाकी लोग किचेन के साथ वाले कमरे में थे. गुड्डी एक बैग में अपने कपडे पैक कर चुकी थी. वो बिना मेरी और देखे हलके हलके बोलने लगी, जानते हो कुछ लोग बुध्धू होते हैं और हमेशा बुध्धू ही रहते हैं है ना. वो उठ के मेरे सामने आ गयी और मेरे गाल पे एक हलकी सी चिकौटी काट के बोलने लगी," अरे बुध्धू ...सब लोग जा रहे हैं कानपुर मैं नहीं. मैं तुम्हारे साथ ही जाउंगी. पूरे सात दिन के लिए, होली में तुम्हारे साथ ही रहूंगी...और तुम्हारी रगड़ाई करुँगी. " मेरे चेहरे पे तो १२०० वाट की रोशनी जगमग हो गयी. " सच्ची'" मैं ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था. " सच्ची ' और उस सारंग नयनी ने इधर उधर देखा और झट से मुझे बाहों में भर के एक किस्सी मेरे गालों पे ले लिया और हाथ पकड़ के उधर ले गयी जहां बाकी लोग थे. मेरे कान में वो बोली, " मम्मी को पटाने में जो मेहनत लगी है उसकी पूरी फीस लूंगी तुमसे. एकदम मैंने भी हलके से कहा. किचेन में भाभी होली के लिए सामान बना रहीं थीं. मैं उनसे कहने लगा की मैं अभी चला जाउंगा रेस्ट हाउस में रुका हूँ. कल सुबह आके गुड्डी को ले जाउंगा. वो बोलीं अरे ये कैसे हो सकता hai. अभी तो आप रुको खाना वाना खा के जाओ. मैं लेकिन तकल्लुफ करने लगा की नहीं भाभी आप लोगों से मुलाक़ात तो हो ही गयी. आप लोग भी बीजी हैं. थोड़ी देर में ट्रेन भी है. तब तक वहां एक महिला आयीं क्या चीज थीं. गुड्डी ने बताय की वो चन्दा भाभी हैं. बहभी यानी गुड्डी की मम्मी की ही उम्र की होंगी...लेकिन दीर्घ नितंबा, सीना भी ३८ डी से तो किसी हालत में कम नहीं होगा लेकिन एक दम कसा कडा...मैं तो देखता ही रह गया. मस्त माल और ऊपर से भी ब्लाउज भी उन्होंने एक दम लो कट पहन रखा था.
क्रमशः.....................
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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