Wednesday, February 26, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--7

FUN-MAZA-MASTI

फागुन के दिन चार--7
गतांक से आगे ...........
मेरी प्यासी निगाहें ब्लाउज से झांकते उनके क्लीवेज से चिपकीं थीं. और वो भी जान बूझ के अपने उभारों को और उभार रही थीं.
उन्होंने एक हल्का सा धक्का दिया और मैं पलंग पे लेट गया. साथ में वो भी और उन्होंने हलकी रजाई भी ओढ़ ली. हम दोनों रजाई के अंदर थे.
" तुम्हे मैं जितना अनादी समझती थी...तुम उतने अनाडी नहीं हो..." मेरे कान में वो फुसफुसायीं.
"तो कितना हूँ." मैंने भी उन्हें पकड़ के कहा.
" उससे भी ज्यादा ..बहोत ज्यादा...अरे गुड्डी जब तुम्हारी चड्ढी पकड़ रही थी तो तुम्हे कुछ पकड़ धकड़ करनी चाहिए थी...उससे अपना हथियार पकड़वाना चाहिए था...उसकी झिझक भी खुलती शर्म भी खुलती और ...मजा मिलता सो अलग...तुम्हें तो पटी पटाई लड़की के साथ भी ना...एक बार लड़की के पटने से कुछ नहीं होता...उसकी शर्म दूर करो...झिझक दूर करो...खुल के जितना बेशर्म बनाओगे उसे, उतना खुल के मजा मजा देगी."
तो भाभी बना दो ना अनाडी से खिलाड़ी. "
" अरे लाला ये तो तुम्हारे हाथ में है...फागुन का मौक़ा है...खुल के रगडो...एक बार झिझक चली जायेगी थोड़ी बेशरम बना दो. बस...मजे ही मजे तेरे भी उसके भी...तलवार तो बहोत मस्त है तुम्हारी तलवार बाजी भी जानते हो की नहीं. कभी किसी के साथ किया विया है या नहीं? "
" नहीं, कभी नहीं..." मैंने धीरे से बोला.
" कोरे हो...तब तो तेरी नथ आज उतारनी ही पड़ेगी. " चन्दा भाभी ने मुस्कराते हुए कहा. उनकी एक उंगली मेरे सीने पे टहल रही थी और मेरे निपल के पास आके रुक गयी. वहीँ थोड़ा जोर देके उसके चारों ओर घुमाने लगी. मजे के मारे मेरी हालत खराब थी. कुछ रुक के मैं बोला...
" आपने मुझे तो टापलेस कर दिया और खुद..."
" तो कर दो ना...मना किसने किया है. " मुस्करा के वो बोलीं.
मेरी नौसिखिया उंगलियां कभी आगे कभी पीछे ब्लाउज के बटन ढूंढ रही थीं. लेकिन साथ साथ वो क्लीवेज के गहराईयों का भी रस ले रही थीं.
" क्यों लाला साड़ी रात तो तुम हुक ढूँढने में ही लगा दोगे..." भाभी ने छेड़ा. लेकिन मेरी उंगलियाँ भी उन्होंने ढूंढ ही लिया और चट..चट..चट..सारे हुक एक के बाद एक खुल गए.
" मान गए तुम्हारी बहनों ने कुछ तो सिखाया..." वो बोलीं.
कुछ झिझकते कुछ शर्माते कुछ घबराते ...पहली बार मेरी उँगलियों ने उनके उरोजों को छुआ.
जैसे दहकते तवे पे किसी ने पानी की बूँदें छिड़क दी हों...मेरी उँगलियों के पोर दहक गए.
" इत्ते अनाड़ी भी नहीं हो.." हंस के बोली और मचली की तरह सरक के मेरी पकड़ से निकल गयीं. अब उनकी पीठ मेरी ओर थी. मैंने पीछे से ही उनके मदमाते गदराये उभार कास के ब्रा के ऊपर पकड़ लिया. मैं सोच रहा था शायद फ्रंट ओपन ब्रा होगी...लेकिन...तबतक उन्होंने मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़ के कैसे हैं..
" बहोत मस्त भाभी..." मैं दबा रहा था वो दबवा रहीं थीं. लेकिन मैं समझ गया था की इसमें भी उनकी चाल है. ब्रा का हुक पीछे था और वहां मेरा हाथ पहुँच नहीं सकता था. वो उनकी गिरफ्त में था.
कहतें है ना की शादी नहीं हुयी तो क्या बारात तो गए हैं....तो मैं अनाडी तो था...लेकिन इतनी किताबें पढ़ी थीं...फिल्में देखी थीं. मस्त राम के स्कूल का मैं मास्टर था.
मैंने होंठों से ही उनकी ब्रा का हुक खोल दिया...

मैंने होंठों से ही उनकी ब्रा का हुक खोल दिया...
और आगे मेरे दोनों हाथों ने कस के ब्रा के अन्दर हाथ डाल के उनके मस्त गदराये उभार दबोच लिए.
" लल्ला, तुम इत्ते अनाडी भी नहीं हो." मुस्करा के वो बोलीं.
मेरी तो बोलने की हालत भी नहीं थी.
मेरे होंठ उनके केले के पत्ते ऐसे चिकनी पीठ पे टहल रहे थे. और दोनों हाथ मस्त जोबन का रस लूट रहे थे.
क्या उभार थे. एक दम कड़े कड़े, मेरी एक उंगली निपल के बेस पे पहुंची तभी मछली की तरह फिसल के वो मेरी बाँहों से निकल गयी.
और अगले ही पल वो ३६ डी डी उभार मेरे सीने से रगड़ खा रहे थे. चन्दा भाभी का एक हाथ मेरे सर को पकडे बालों में उंगली कर रहा था और दूसरा कस के मेरे नितम्बो को कस के पकडे था. मेरे कानों से रसीले होंठों को सटा के वो बोलीं, " मेरा बस चले तो तुम्हे कच्चा खा जाऊं."
" तो खा जाइए ना..." मैं भी सीने को उनके रसीले उभारों पे कस के रगड़ते बोला, " तो खा जाओ ना. "
मेरे होंठों पे एक हल्का सा चुम्बन लेती हुयी वो बोलीं... " चलो एक किस ले के दिखाओ."
मैंने हलके से एक किस ले ली.

" धत क्या लौंडिया की तरह किस कर रहे हो." वो बोलीं फिर कहा, वैसे शर्मीली लडकी को पहली बार पटा रहे तो ऐसे ठीक है वरना थोड़ी हिम्मत से कस के ..." और अगली बार और कस के उन्होंने मेरे होंठो पे होंठ रगड़े. जवाब में मैंने भी उन्हे उसी तरह किस किया. . भाभी ने मेरे लिप्स के बीच अपनी जुबान घुसा दी. मैं हलके से चूसने लगा.
थोड़ी देर में होंठों को छुडा के उन्होंने हल्के मेरे गाल को काट लिया और बोली.." क्यों देवर जी अब तो हो गयी ना मैं भी आप की तरह टापलेस...लेकिन किसी नए माल को करना हो तो इत्ती आसानी से चिड़िया जोबन पे हाथ नहीं रखने देगी. "
" तो क्या करना चाहिए..." मैंने पूछा.
" थोड़ी देर उसका टॉप उठाने या ब्लाउज खोलने की कोशिश करो, और पूरी तरह से तुम्हे रोकने में लगी हो तो... उसी समय अचानक अपने बाएं हाथ से उसका नाडा खोलना शुरु कर दो. सब कुछ छोड़ के वो दोनों हाथों से तुम्हारा बायाँ हाथ पकड़ने की कोशश करेगी. बस तुरंत बिजली की तेजी से उसका टॉप या ब्लाउज खोल दो. जबतक वो सम्हले तुम्हारा हाथ उसके उभारों पे. और एक बार लडके का हाथ चूंची पे पड़ गया तो किस की औकात है जो मना कर दे ...और ना यकीं हो तो इसी होली में वो जो तेरी बहन कम छिनार माल है उसके साथ ट्राई कर लो. " भाभी ने कहा.
" अरे उसके साथ तो बाद में ट्राई करूंगा...लेकिन..." ये बोलते हुए मैंने उनके पेटी कोट का नाडा खींच लिया. वो क्यों पीछे रहतीं. मेरी साडी कम लुंगी भी उनके साए के साथ पलंग के नीचे थी.
" लेकिन तुम ट्राई करोगे उसे ...ये तो मान गए." हंसते हुए वो बोलीं. रजाई भी इस खीच तान में हम लोगों के ऊपर से हट चुकी थी. मेरे दोनों हाथ पकड़ के उन्होंने मेरे सर के नीचे रख दिया और मेरे ऊपर आ के बोलीं,
" अब तुम ऐसे ही रहना, चुपचाप. कुछ करने की उठाने की हाथ लगाने की कोशिश मत करना."
मेरे तो वैसे ही होश उड़े थे. उनके दोनों उरोज मेरे होंठो से बस कुछ ही दूरी पे थे. मैंने उठने की कोशिश की तो उन्होंने मुझे धक्का देके नीचे कर दिया. हाथ लगाने की तो मनाही ही थी. सर उठाके मेनन अपने होंठो से उन रसभरी गोलाइयों को छुना चाहता था...लेकिन जैसे ही मैं सर उठाता वो उसे थोडा और ऊपर उठा लेतीं, बस मुश्किल से एक इंच दूर. और जैसे ही मैं सर नीचे ले आता वो पास आ जातीं. जैसे कोई पेड़ खुद अपनी शाखें झुका के ...एक बार वो हटा ही रही थीं की मैंने जीभ निकाल के उनके निपल्स को चूम लिया. कम से कम एक इंच के कड़े कड़े निपल..
" ये है पहला पाठ..तुम्हारे पास तुम्हारे तलवार के अलावा ...तुम्हारी उंगलियाँ हैं, जीभ है, बहोत कुछ है जिससे तुम लड़की को पिघला सकते हो. बस अन्दर घुसाने के पहले ही उसे ही उसे पागल बना दो...वो खुद ही कहे डाल दो. डाल दो ." भाभी बोलीं
और इसके साथ ही थोडा और नीचे फिसल के...अब उनके उरोज मेरे सीने पे रगड़ रहे थे, कस कस के दबा रहे थे. बालिश्त भर की मेरी कुतुबमीनार उनके पेट से लड़ रही थी. वो जोबन जो ब्लाउज के अन्दर से आग लगा रहे थे...मेरी देह पे ...जांघ पे...और जो मैं सोच नहीं सकता था...मेरे तानातानाये हथियार को उन्होंने अपनी चून्चियों के बीच दबा दिया और आगे पीछे करने लगी. मुझे लगा की मैं अब गया तब गया तब तक भाभी की आवाज ने मेरा ध्यान तोड़ा...
" हे खबरदार जो झडे...ना मैं मिलूंगी ना वो..." मैं बिचारा क्या करता. भाभी ने एक हाथ से मेरे चरम दंड को पकड़ने की कोशिश की...लेकिन वो मुस्टंडा...बहोत मोटा था..उन्होंने पकड़ के उसे खींचा तो मेरा लाल गुलाबी मोटा सुपाडा...खूब मोटा ...बाहर निकल आया. मस्त ...गुस्स्सैल..मेरा मन का रहा था भाभी इसे बस अपने अंदर ले लें. लेकिन वो तो...उन्होंने अपना कडा निपल पहले तो सुपाडे पे रगडा और फिर मेरे सीधे पी होल पे...मुझे लगा जोर का झटका जोर से लगा. उनका निपल थोड़ी देर उसे छेड़ता रहा फिर उनकी जीभ के टिप ने वो जगह ले ली. मैं कमर उछाल रहा था...जोर जोर से पलंग पे चूतड पटक रहा था और भाभी ने फिर एक झटके में पूरा सुपाडा गप्प कर लिया. पहली बार मुलायम रसीले होंठों का वहां छुवन...लग रहा था बस जान गई...
" भाभी मुझे भी तो अपने वहां ..."
" लो देवर जी तुम भी क्या कहोगे..." और थोड़ी देर में हम लोग ६९ की पोज में थे.
लेकिन मैं नौसिखिया. पहली बार मुझे लगा किताब और असल में जमीं आसमान का अन्तर है...

लेकिन मैं नौसिखिया. पहली बार मुझे लगा किताब और असल में जमीं आसमान का अन्तर है...
मेरे समझ में ही नहीं आ रहा था की कहाँ होंठ लगाऊं,कहाँ जीभ. पहली बार योनी देवी से मुलाक़ात का मौका था. कितना सोचता था की...
लेकिन चन्दा भाभी भी कुछ बिना बताये...खुद अपनी जांघे सरका के सीधे मेरे मुंह पे सेंटर कर के और कुछ समझा के .....क्या स्वाद था...एक बार जुबान को स्वाद लगा तो,... पहले तो मैंने छोटे छोटे किस लिए...और फिर हलके से जीभ से झुरमुट के बीच रसीले होंठों पे...चन्दा भाभी भी सिसकियाँ भरने लगी. लेकिन दूसरी ओर मेरी हालत भी कम खराब नहीं थी.
वो कभी कस के चूसतीं कभी, बस हलके हलके सारा बाहर निकाल के जुबान से सुपाडे को सहलातीं...और उनका हाथ भी खाली नहीं बैठा था...वो मेरे बाल्स को छू रहीं थीं, छेड़ रही थीं, और साथ में उनकी लम्बी उंगलियाँ शरारत से मेरे पीछे वाले छेद पे कभी सहला देतीं तो कभी दबा के बस लगता अन्दर ठेल देंगी...और जब मेरा ध्यान उधर जाता तो एक झटके में ही ३/४ अन्दर गप्प कर लेतीं, और फिर तो एक साथ, उनके होंठ कस कस के चूसते, जीभ चाटती चूमती और थोड़ी देर में जब मुझे लगता की बस मैं कगार पे पहुंच गया हूँ ...भाभी अब ना रूके...तो वो रुक जातीं..और 'उसको' पूरी तरह से बाहर निकाल के मुझे चिढ़ाती,
"गन्ना तो तुम्हारा बहोत मीठा है किससे किससे चुसवाया. "
जवाब मैं मैं कस कस के उनकी 'सहेली' को चूसने लगता और वो भी सिसकियाँ भरने लगतीं. तीन चार बार मुझे किनारे पे ले जा के वो रुक गयीं. हर बार मुझे लगता बस अब हो जाने दें लेकिन...
अचानक भाभी मुझे छोड़ के उठा गयीं और मेरे पैरों के बीच में जा के बैठ गयीं. मुझे पुश करके बेड के बोर्ड के सहारे बैठा दिया और 'उसे' अपनी मुट्ठी में कस के पकड़ लिया. मस्ती के मारे मैंने आँखें बंद कर लीं. आगे पीछे हिलाते हुए उन्होंने पूछा,
" क्यों ६१-६२ करते हो..."

मैं चुप रहा.
उन्होंने एक झटके में सुपाडे को खोल दिया और फिर से पूछा...बोलो ना.
" नहीं...हाँ...कभी..कभी.."
" किसका नाम ले के ...कल जिसको ले जाओगे उस को...देखो तुम्हे देवर बनाया है मुझसे कुछ मत छिपाओ फायदे में रहोगे. " भाभी बोली.
' नहीं ...हाँ...."
आगे पीछे जोर से करते हुए उन्होंने फिर से पुछा ...
" नहीं ..कभी नहीं.." फिर मेरे मुंह से सच निकल ही गया..." हाँ ..एक दो बार..."
" साल्ले..तेरी बहन की फुद्दी मारूं...तेरे अन्दर बहनचोद बनने के पूरे लक्षण हैं." फिर कुछ रुक के मुझे देखते हुए उन्होंने कहा...
" अब आगे से ६१-६२ मत करना....अरे मैं सिखा दूंगी तुम्हे सब ट्रिक...तेरे लिए लौंडियों की क्या कमी है ..एक तो है ही जिसको तुंने पटा लिया है...फिर वो तेरा घर का माल..इत्ता मस्त हथियार तो सिर्फ...आगे पीछे...मुह में जहाँ चाहे वहां...बोलो झाड दूँ..."
" हाँ ...भाभी हां,..." मस्ती से मेरी हालत ख़राब थी.
उन्होंने झुक के मेरे गुलाबी मस्त सुपाडे पे एक कस के चुम्मी ली और फिर एक झटके में उसे गप्प कर लिया. उनके दोनों हाथ भी साथ साथ...एक मेरे जांघ पे फिसलता तो दूसरा मेरे सीने को सहलाता हुआ कभी मेरे निपल को फ्लिक कर देता तो कभी वहां कस के चिकोटी काट लेता. उनकी जुबान गोल गोल मेरे सुपाडे के चारो ओर घूम रही थी, फिसल रही थी. मैं मस्ती के मारे अपनी कमर उछाल रहा था. भाभी ने फिर एक मोटा तकिया ले के मेरे चूतड के नीचे अन्दर तक सरका के रख दिया. अपने लम्बे नाखूनों से एक दो बार मेरे निपल फ्लिक करने और कस कस के पिंच कर के उन्होंने उसे छोड़ दिया और मेरे पिछवाड़े की ओर....कभी उनका मोटा अंगूठा...वहां दबाता तो कभी वो एक साथ दो उंगलिया एक साथ मेरे नितम्बों के बीच छेद पे इस तरह दबाती की पूरा घुसेड के ही मानेंगी. अब तक दो तिहाई हिस्सा उन्होंने गड़प कर लिया था और कस कस के चूस रही थीं. मैं मस्ती के मारे ना जाने क्या क्या बोल रहा था ...मुझे लग रहा था अब गया तब गया...ये भी लग रहा था की कहीं भाभी के मुहं के अन्दर ही ना...तब तक उन्होंने पूरा बाहर निकाल लिया और मेरी आँखों में आँखे डाल के पूछा..
" क्यों आया मजा..."
" हाँ भाभी लेकिन ..." मैं आगे बोलता की भाभी ने वो किया की मेरी चीख निकल गई.
उन्होने अपने कड़े खड़े निपल को मेरे सुपाडे के छेद पे रगड़ दिया. वो उसे मेरे पी होल के अंदर डाल रही थीं और उनकी मुस्कारती आँखे मेरे मजे से पागल चहरे को देख रही थीं. थोड़ी देर इसी तरह छेड़ कर उन्होंने साइड से मेरे खड़े चर्म दंड को चाटना शुरू कर दिया. चारो और से उनकी जीभ लप लप चाट रही थी...ये एक नए ढंग का मजा था. उन्होंने एक हाथ से मेरे बाल्स को पकड़ रखा था. उनकी जुबान जहां से मेरा शिश्नबाल से मिलता है वही से शुरू हो कर से मिलता है वही से शुरू हो कर सीधे सुपाडे तक...और फिर वहाँ से नीचे..वापस...और दो चार बार ऐसे कर के जब उनकी जीभ नीचे गयी तो बजाय ऊपर आने के ...एक बार में उसने मेरी बाल गडप कर ली. मेरी तो जान निकल गयी. कुछ देर तक चूसने चुभलाने के बाद के बाद भाभी के होंठ वापस मेरे सुपाडे पे आये और आँख नचा के वो मुझे देखते हुए बोलीं,
" जरुर चुसवाना उससे...दोनों से " और जब तक मैं कुछ बोलता समझता ...उन्होंने अबकी पूरा ही गड़प कर लिया.
और अब वो पूरे जोर से चूस रही थीं. मेरा सुपाडा उनके गले के अंत तक जा के टकरा रहा था...लेकिन जैस उन्हें कोई फरक ना पड़ रहा हो. उनके रसीले भरे भरे होंठ जब रगड़ते हुए ऊपर नीचे होते..और वो कस के चूसतीं..मेरी कमर साथ साथ ऊपर नीचे हो रही थी. वो करती रहीं करती रहीं...मुझे लगा की अब मैं ...निकल ही जाउंगा....लेकिन मुझे लगा की कहीं भाभी के मुंह में ही...मैं जोर से बोला...
" भाभी प्लीज छोड़ दीजिये...बाहर निकाल लीजिये...मेरा होने ही वाला... ओह्ह ..."
उन्होंने अपनी दोनों बाहों से कस के मेरी जांघो को पकड़ के नीचे दबा दिया और मेरी ओर देख के आँखों ही आँखों में मुस्करायीं जैसे कह रही हों....होने वाला हो तो हो जाय..और फिर दूनी तेजी se कस कस के चूसने लगीं.
मुझे लगा की मेरी आँखों के आगे तारे नाच रहे हों...मेरी देह का सब कुछ निकल रहा हो..ओह्ह ओघ्ह आह...भाभीइ इ इ ....मेरी आवाज जोर से निकल रही थी. लेकिन वो और जोर से चूस रही थीं..और जैसे कोई जोर का फव्वारा छूटे...मेरी कमर अपने आप बार बार ऊपर नीचे हो रही थी...और भाभी बिना रुके...मेरा पूरा लिंग उनके मुंह में था...उनके होंठ मेरे बाल से चिपके थे...
मुझे पता नहीं चला मैं कित्ती देर तक झडा...लेकिन जैसे ही मैं रुका ...भाभी ने पहले हलके से फिर कस के मेरी बाल दबाया और दूसरे हाथ se मेरी गांड के छेद में उगली दबाई...
ओह्ह्ह ...ओह्ह.....मैं दुबारा झड रहा था. आज तक ऐसा नहीं हुआ था.
क्रमशः.....................








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