Wednesday, February 26, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--24

FUN-MAZA-MASTI

 फागुन के दिन चार--24
गतांक से आगे ...........
वो भी जानती थी और मैं भी की बिना ऊपर का हुक खोले..मेरा हाथ ऊपर से अन्दर नहीं जा सकता. और जब तक वो हाथ हटाएगी नहीं...
मैं हाथ नीचे नाड़े की और ले गया पर वो एक कातिल अदा से मुस्करा के बोली...
" हे हे...एक ट्रिक दो बार नहीं चलती.." वो देख चुकी थी की मैने कैसे गुड्डी के साथ...
लेकिन मेरे तरकश में सिर्फ एक ही तीर थोड़े ही था..मेरे दोनों हाथ उसकी जांघो तक पहुंचे फिर एक झटके में उसका कुरता ऊपर उठा दिया. कुरता ऊपर से तो टाईट था लेकिन नीचे से घेर वाला..और जब तक वो सम्हले सम्हले मेरा हाथ अन्दर...
तुरतं वो ब्रा के ऊपर...लेसी ब्रा में उसके उड़ने को बेताब गोरे गोरे कबूतर..और मेरे हाथ में लगा लाल गुलाबी रंग ब्रा के ऊपर से ही उसे रंगने लगा ...
" अब ताला लगाने से क्या फायदा जब चोर ने सेंध लगा ली हो..." चंदा भाभी ने रीत को छेडा और ये कहते हुए अन्दर किचेन में चली गयीं की वो दस पन्दरह मिनट में आती हैं.
बिचारी रीत...उसने मुझे देखा और अपने हाथ हटा लिए..
एक बार पहले ही मैं उन कबूतरों को आजाद करा चूका था और मुझे मालूम था की ये फ्रंट ओपन ब्रा है..इसलिए अगले पल चटाक चटाक ...हूक खुल गया और वो जवानी के रसीले खिलोने बाहर ...
" थैंक्स रीत.." मैं बोला और गले ही पल उसके गदराये रसीले जोबन, मेरी मुट्ठी में...
क्या मस्त उभार थे..एकदम परफेक्ट ..खूब कड़े भी...मुलायम भी..जस्ट रायप...पहले तो बस मैं छूता रहा ..सहलाता रहा...तभी मुझे होश आया की यार ये टाइम ऐसे ही...मैंने गुड्डी को आवाज दी ...
" हे यार ...जरा सीधी के पास...चंदा भाभी तो बोल के गयी हैं दस पन्दरह मिनट के लिए तो बस सीढ़ी ही...अगर कोई आता दिखाई दे न तो आवाज लगा देना..."
" अच्छा जी...मुझसे चौकी दारी करवाई जा रही है..
रीत ने भी उसकी ओर रिक्वेस्ट के तौर पे देखा..और गुड्डी सीढ़ी के पास जा के खड़ी हो गयी.
रंग लगाते लगाते मैं रीत को टेबल के पास ले के आ गया था. सहारे के लिए झुक के उसने टेबल पकड़ ली थी और झुक गयी थी.
अब उसके मस्त चूतड ठीक मेरे तन्नाये लिंग से ठोकर खा रहे थे.
मैंने खुल के मम्मे मसलने शुरू कर दिए..क्या चीज है ये भी यार ...मैं सोच रहा था...कभी दबाता कभी मसलता कभी रगड़ता और कभी निपल पकड़ के कस के खिंच देता..
वो सिसकियाँ भर रही थी, अपने मस्त चूतड रगड़ रही थी..

सिर्फ तन से ही नहीं मन से भी वो बेस्ट थी...
रीत इज बेस्ट
मैंने कान में उसके फुसफुसाया
जवाब में वो सिर्फ सिसक दी
खुला टैरेस...लेकिन मैं जैसे पागल हो रहा था..थोडा सा बरमूडा सरका के ..मैंने अपना हथियार सीधे उसके छेद पे...
" ओह्ह नहीं फिर कभी अभी नहीं....वो सिसकियाँ भर रही थी..लेकिन साथ ही उसने अपनी टाँगे चौड़ी कर ली..
" रीत..रीत,,,बस थोडा सा...खाली टच...ओह मैंने खुला सुपाडा उसके पुत्तियों पे रगड़ रहा था...
वो पिघल रही थी...मैंने कस के उस सुनयना की पतली बलखाती कमर पकड़ ली...

तभी खट खट की सीढ़ी पे आवाज हुयी और गुड्डी बोली

' अरे दूबे भाभी जल्दी...'

मैं और रीत तुरंत कपडे ठीक करने में एक्सपर्ट हो गए थे.
मैंने उसकी थांग ठीक की और उसने तुरंत अपनी पाजामी का नाडा बाँध लिया..मैंने उसका कुरता खींच के नीचे कर दिया..
गुड्डी भी..उसने मेरा बार्मुडा ऊपर सरकाया और हम तीनों अच्छे बच्चों की तरह टेबल पे किसी काम में बिजी हो गए.
चंदा भाभी भी बाहर आ गयी थीं और हम लोगों को देख के मुस्करा रही थीं...उन्हें अच्छी तरह अंदाज था ..

तब तक सीढ़ी पर से दूबे भाभी आयीं मैं उन्हें देखता ही रह गया...
जबरदस्त फिगर ...दीर्घ नितंबा...गोरा रंग ..तगड़ा बदन...भारी देह लेकिन मोटी नहीं..मैं देखता ही रह गया.
लाल साडी, एकदम कसी , नाभि के नीचे बाँधी, सारे कर्व साफ साफ दीखते स्लीवलेस लो कट आलमोस्ट बैक लेस लाल ब्लाउज , गले से गोलाइयाँ साफ साफ झांकती, कम से कम ३८ डी डी की फिगर रही होगी. नितम्ब तो ४० + विज्ञापन वाली जो फोटुयें छपती हैं ..एकदम वैसे ही ....
पूरी देह से रस टपकता ..लेकिन सबसे बड़ी बात थी...एक दम अथारटी फिगर ...डामिनेटिंग एकदम सेक्सी ....
उन्होने सबसे पाले रीत और गुड्डी को देखा और फिर मुझे...नीचे से ऊपर तक...उनकी निगाह एक पल को मेरे बारमुड़े में तने लिंग पे पड़ी और उन्होंने एक पल के लिए चंदा भाभी को मुस्करा के देखा..लेकिन जब मेरे चेहरे पे उनकी नजर गयी ...एकदम से जैसे रंग बदल गया हो...
मेरे रंग लगे पुते चेहरे को वो ध्यान से देख रही थीं ...फिर उन्होंने गुड्डी और रीत को देखा...दोनों बिचारियों की सिट्टी पिट्टी गम ...
" ये रंग ..किसने लगाया..." ठंडी आवाज में वो बोलीं
..किसी ने जवाब नहीं दिया फिर चंदा भाभी बोलीं.."नहीं होली तो आपके आने के बाद ही शुरू होने वाली थी लेकिन...बच्चे हैं खेल खेल में ...ज़रा सा."
" वो मैंने पुछा क्या... सिर्फ पूछ रही हूँ...रंग किसने लगाया...."
" वो जी...इसने..." गुड्डी ने सीधे रीत की और इशारा कर दिया.
बिचारी रीत घबडा गयी...वो कुछ बोलती उसके पहले मैं बीच में आ गया..
" नहीं भाभी...बात ऐसी है की...इन दोनों की गलती नहीं है...वो तो मैंने ही...पहले तो मैंने ही उन दोनों को...रंग लगाया...ये दोनों तो बहोत भाग रही थीं...फिर जब मैंने लगा दिया तो उन दोनों ने मिल के...मेरा ही हाथ पकड़ के मेरे हाथ का रंग मेरे मुंह पे..."
दूबे भाभी ने रीत और गुड्डी को देखा..चेहरे तो दोनों के साफ थे लेकिन दोनों के ही उभारों पे मेरी उँगलियों की रंग में डूबी छाप...एक जोबन पे काही स्लेटी और दूसरे पे ...सफेद वार्निश...और वही रंग मेरे गाल पे.
वो मुस्करायीं और थोडा माहौल ठंडा हुआ.
" अरे गलती तुम्हारी नहीं एईसी साल्लिया हो...ऐसे मस्त जोबन हो तो किस का मन नहीं मचलेगा..." वो बोलीं और पास आके एक उंगली उन्होंने मेरे गले के पास और हाथ पे लगाई जहां गुड्डी ने तेल लगाया था.
" बहोत याराना हो गया तुम तीनों का एक ही दिन में.." वो बोलीं..और फिर कहा..चलो रंग छुडाओ...साफ करो एक दम..."

मैं जब टेरेस पे लगे वाश बेसिन की ओर बढ़ा तो फिर वो बोलीं..तुम नहीं ...ये दोनों किस मर्ज की दवा हैं...जबतक ससुराल में हो हाथ का इस्तेमाल क्यों करोगे ...इन के रहते.."
और हम तीनो वाश बेसिन पे पहुंचे..मैंने पानी और साबुन हाथ में लिया तो गुड्डी बोली,...
" ऐसे नहीं साफ होगा तुम्हे तो कुछ भी नहीं आता सिवाय एक काम के.."
" वो भी बिचारे कर नहीं पाते ...कोई ना कोई आ टपकता है ..." रीत मुंह बना के बोली.
" मैं क्या करूँ मैंने तो मना नहीं किया..और मैं तो चौकीदारी कर ही रही थी...तेरी इनकी किस्मत ..." मुंह बना के गुड्डी बोली..और चली गयी.
" करूँगा रीत और तीन बार करूंगा कम से कम ...आखिर तुम्ही ने तो कहा था की हमारा रिश्ता ही तिहरा है...मुझे मेरी और तेरी किसमत के बारे में पूरी तरह से मालूम है..." हंस के मैंने हलके से कहा..
रीत का चेहरा खिल गया..बोली...एकदम..और मेरी गिनती थोड़ी कमजोर है...तुम तीन बार करोगे और मैं सिर्फ एक बार गिनुंगी...फिर दुबारा से ..." तब तक गुड्डी आगई उस के हाथ में कुछ थिनर सा लिक्विड था...दोनों ने पानी हथेलियों पे लगाया और साफ करने लगी.
" यार हमारी चालाकी पकड़ी गयी ..." रीत बोली
" हाँ दूबे भाभी के आगे..." गुडी बोली.
तब मुझे समझ में आया प्लानिग ...गुड्डी की थी और सपोर्ट रीत और चन्दा भाभी का ..मेरे चेहरे पे जो फ़ौंडेशन और हे चंदा..चकोरी...ज़रा यार से गप बंद करो...और इसके बाद साबुन से....इक एकूँद रंग की नहीं दिखनी चहिये वरना इसकी तो दुरगति बाद में होगी पहले तुम दोनों की.." दूबे भाभी गरजीं.
उन दोनों के हाथ जोर जोर से चलने लगे. मैंने चिढाया...
" हे रीत, मैंने तेरी ब्रा के अन्दर कबूतरों के पंख लाल कर दिए थे...उन्हें भी सफेद कर दूँ फिर से..."
" चुप..." जोर से डांट पड़ी मुझे रीत की.
तीन चार बार चेहरा साफ किया..मुझे चंदा भाभी की याद आई की एक बार इसी तरह कोई इन लोगों का देवर 'बहोत तैयारी' से तेल वेळ लगा के जिससे रंग का असर ना पड़े...आया था...किशोर था ११-१२ में पढ़ने वाला ..
दूबे भाभी ने पहले तो उसके सारे कपडे उतरवाए..पूरा नंगा किया...और फिर वहीँ छत पे सबके सामने खुद होज से ...फिर कपडे धोने वाला साबुन लगा के..फिर निहुराया..
" चल ...जैसे पी टी करता है...टांग फैला....और और...पैरों की उँगलियाँ छु ...हाँ चूतड उंचा कर और ..और साल्ले वरना ऐसे ही मुर्गा बनवाउंगी ..." वो बोलीं.
उसने कर दिये फिर सीधे गांड में होज डाल के ..
" क्यों बहन के भंडुवे..गांड में भी तेल लगा के आया था क्या गांड मरवाने का मन था क्या..."
ये रगड़ाई हुई उसकी की १० दिन तक रंग नहीं छुटा.
चेहरा साफ होने के बाद जब मैं दूबे भाभी की और मुडा तो उनका चेहरा ...ख़ुशी से दमक उठा...
"उन्हह अब दुल्हन का रंग निखारा है ." ..मुस्करा के वो बोलीं...और मेरे गाल को सहलाते हुए उन्होंने चन्दा भाभी से शिकायत के अंदाज में कहा..
" क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है ...क्यों अकेले..अकेले.."
चन्दा भाभी ने शर्मातेझिझकते बोला...अरे नहीं ..आप को तो इंतज़ार ही हम कर रहे थे...ये तो कल ही भागने के फिराक में था बड़ी मुश्किल से गुड्डी ने इसे रोका..."
दूबे भाभी ने गुड्डी और रीत को देखा और मुस्करा के बोली.." चीज ही ललचाने लायक है...तुम दोनों मचल गयी तो..."
मैं सच में दुल्हन की तरह शर्मा रहा था. बात बदलने के लिए मैंने कहा...
" भाभी ये गुलाब जामुन तो खाइए..."
" एक क्या मैं दो खाऊँगी...तुम खिलाओगे तो.." मैंने अपने हाथ से उन्हें दिया. रीत भी झट से मेरे साथ आगई..
" ये दिल्ली से लायें है...वो चांदनी चौक वाली मशहूर दूकान से..." वो बोली.
" सच अरे तब तो एक और..."
डबल डोज वाले नत्था के दो गुलाब जामुनों का असर तो होना ही था थोड़े देर में.
उनकी निगाह बियर के ग्लासों पे पड़ी...ये क्या है.
रीत अब मेरी परफेक्ट असिस्टेंट बनती जा रही थी..." अरे भाभी ये इम्पोर्टेड ...ड्रिंक है स्पेशल ...ये लाये हैं.."
मेरे कहने पे वो शायद ना मानतीं लेकिन रीत तो उनकी अपनी ननद थी.
" हाँ एकदम...लीजिये ना मेरे हाथ से ..." मैं बोला उन्होंने लेते समय मेरी उँगलियों को रगड़ दिया.
बियर पीते पीते उनकी निगाह गुड्डी की ओर पड़ी...
" तू पिछले साल बच आगयी थी ना होली में आज सूद समेत...सारे कपडे उतार के..." दूबे भाभी पे गुलाब जामुन का असर चढ़ रहा था.
चंदा भाभी ने कुछ उनके कान में फुसफुसाया..दूबे भाभी की भौंहे चढ़ गयीं..लेकिन फिर बियर की एक घूँट लगा के बोलीं..
" गलत मौके पे आती है तेरी ये सहेली..." फिर कुछ सोच के कहा..." चल कोई बात नहीं...आज छुट्टी है तो होली के दिन तक तो ....होली के तो अभी ५ दिन है..उस दिन कोई नाटक मत करना "
" लेकिन मैं तो आज...इन के साथ...ममी ने बोला था...अभी थोड़े देर में ही ...होली वहीँ .." गुड्डी घबडाते हुए बोल रही थी.
अब तो दूबे भाभी का पारा...जैसे किसी के हाथ से शिकार निकल जाय..मुझसे बोलीं...
" तू तो आओगे ना इसको छोड़ने..तो फिर रंग पंचमी में...रुकोगे ना..."
" असल में मेरी ट्रेनिग ..दो दिन लगता है कोई सीधी गाडी भी नहीं हैं यहाँ से...दिल्ली होके...बस इसको ड्राप कर के..."
दूबे भाभी का जैसे चेहरा उतर गया हो सारा भांग और बियर का नशा गायब हो गया. दूबे भाभी का जैसे चेहरा उतर गया हो सारा भांग और बियर का नशा . फिर उनकी भौंहे चढ़ गयीं. उन्होंने कुछ चंदा भाभी से कहा...मैं और रीत थोड़ी दूर खड़े थे. चन्दा भाभी ने अलग हट के कुछ गुड्डी को बुला के कहा. उस बिचारी का चेहरा भी बुझ गया. वो बार में ना ना के इशारे से सर हिलाती रही. जैसे कोई उर्जेंट कांफ्रेंस चल रही फिर वो मेरे पास आई और मेरे कान में बोली...
" हे दूबे भाभी बहोत नाराज है ..क्या तुम किसी तरह ...एक दिन और नहीं रुक सकते...वो रंग पंचमी के दिन....कोई रास्ता निकालो. ...प्लीज..."

तुम्हे तो मेरी मजबूरी मालूम है...ना...उसी दिन मेरी ट्रेनिंग शुरू होने वाली है ..और फिर ट्रेन से कम से कम दो दिन लगता है...दो दिन से कम का नुक्सान ...कैसे बताओ..." मैंने उसे समझाने की कोशिश की." लेकिन मैं भी क्या करूँ....तुम्ही बताओ..." वो हाथ मसल रही थी. मैं क्या बोलता. उसकी आँखे नाम हो रही थीं...वो फिर बोली..." यार तुम जानते नहीं हो...मेरा आज का तुम्हारे साथ चलने का प्रोग्राम भी खटाई में पड़ सकता है. वो ना क्या गायें किससे क्या...यार इत्ती मुश्किल से तुम्हारे साथ कुछ दिन रहने का...कुछ करो प्लीज..तुम यहाँ से दिल्ली बाई एयर चले जाना कुछ टाइम बच जाएगा.."
मैंने फिर उसे समझाया..." अरे यार टिकट एयर का...मल्लों है..चलो मान लो...लेकिन तुम्हारे मम्मी पापा भी तो आ जायेंगे ...फिर क्या फायदा होगा यहाँ रुकने का..."
क्रमशः.....................





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