Sunday, February 23, 2014

FUN-MAZA-MASTI मेरी पड़ोसन सुलक्षणा

FUN-MAZA-MASTI

 मेरी पड़ोसन सुलक्षणा


मेरा नाम asif है। उमर 35 साल। मैं दिल्ली में एक मीडिया कंपनी में जॉब करता हूं। मैं इलाहाबाद से यहां आया हूं। रहता नोएडा में हूं एक कोठी में सबसे ऊपर की फ्लोर पर अकेला। इसी फ्लोर पर मेरे अलावा 38 साल के सुभाष रॉय रहते हैं जो एक प्राइवेट कंपनी में सीनियर एक्जीक्यूटिव है। उनके परिवार में पत्नी 25 वषीर्या सुलक्षणा और बेटा है। सुलक्षणा प्राइवेट स्कूल में टीचर है और सुबह छह बजे ही स्कूल चली जाती है। बेटे सुमित का स्कूल आठ बजे से शुरू होता है। सुभाष की ड्यूटी दो बजे से बजे शुरू होती है। दिन में वह घर का सारा काम करते हैं और बेटे को स्कूल छोड़ते हैं। मेरी कहानी की नाइका सुलक्षणा एक बजे वापस घर आ जाती है। मैं भी ढाई बजे काम से लौट आता हूं। कई दिनों से मेरा मन सुल यानी सुलक्षणा के पीछे भटक रहा है। भटके भी क्यों नहीं। वह एक सुंदर बदन की मलिका है। लंबाई साढे पांच फुट और साइज 34-28-32 का। रंग गेहुंआ है। देखने में कहीं से नहीं लगती कि एक बच्चे की मां है।

जब मैं उनके बगल के रूम में रहने के लिए आया तो सुभाष के पापा मम्मी आए हुए थे। मैं होली पर घर जा रहा था सो मैंने भी सहूलियत के लिए उन्हें अपने कमरे की चाभी दे दी, क्योंकि उनके पास केवल एक बड़ा सा कमरा और किचेन ही था। बाथरूम दोनों का कॉमन है। जब मैं इलाहाबाद से वापस आया तो देखा कि सुलक्षणा मेरे रूम में लेटी है। मेरे तो रोम-रोम खिल गए, मन हुआ कि सीधे जाकर इस जन्नत की हूर को दबोच लूं। पर मैंने एसा नहीं किया और दरवाजा जो थोड़ा सा खुला था खटखटा दिया। वह उठी और अपने कमरे में चली गई। इसके बाद तो मुझे दिन रात सुल के सपने आने लगे। मेरे कमरे में एक ही बेड है। इसलिए वही दिन में मेरे कमरे में छोटे बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थी, क्योंकि काफी खाली जगह रहती है।

इतना नजदीक रहते हुए भी वह मुझसे बहुत कम बोलती नही थी, जबकि मैं उसके बच्चे को अक्सर अपने पास बुलाकर चॉकलेट खिलाया करता था। मैं मन मसोस कर रह जाता कि कैसे इसके साथ बात बनेगी। उसके बच्चे की जरा सी लुल्ली देखकर मैंने अंदाजा लगाया कि सुभाष का लिंग भी छोटा होगा। क्योंकि सुमित के उम्र के बच्चों की लुल्ली उससे काफी बड़ी है। कई बार सुल के नाम पर मुठ मारे, तीन महीने गुजर गए पर कोई मौका हाथ नहीं आ रहा था। इस बीच उसके सास-ससुर वापस बिहार जा चुके थे। अब तो उनका काम अपने कमरे में ही चल जाता था। मैं अब लगभग निराश हो चुका था कि इसके साथ मेरी बात बनने वाली नहीं है। पर ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं।

एक बार मैं टॉयलेट-कम बाथरूम में पेशाब कर रहा था, मैंने उसका दरवाजा पूरा बंद नहीं किया था। अचानक सुल ने आकर दरवाजा पूरा खोल दिया। मेरा 8 इंच का मलंग देखकर वह वहीं ठिठक गई। जब मैं बाहर निकला तो वह अंदर घुस गई। वह काफी देर तक नहीं निकली तो मुझे लगा कि शायद सुल का मन भटकने लगा है। इसके बाद मैं ऑफिस से आकर किसी न किसी बहाने उसके कमरे के सामने पहुंच जाता और सुमित को अपने साथ खेलने के लिए बुला लेता था। सुमित को बुलाने के लिए वह मेरे रूम के दरवाजे पर आती थी। वहां वह काफी देर खड़ी रहने के बाद ही बेटे को आवाज लगाती थी। उसकी आंखों को देखकर मुझे समझ में आने लगा कि इसका भी मन अब मेरी तरह बेचैन है। अब जल्दी ही वह मौका भी आ गया, जिसकी मुझे अरसे से तलाश थी। सुभाष को कंपनी के काम से एक हफ्ते के लिए बेंगलूर जाना था। उसके जाते ही मैंने देखा कि सुल कुछ बदली-बदली नजर आ रही है। मैं अगले ही दिन काम से वापस आया तो बरामदे में खड़ी सुल से मेरी नजरें मिल गईं और पहली बार मैंने उसके होठों पर मुस्कान खिली देखी। मैने भी मौके की नजाकत पहचानी और बच्चे को चाकलेट देने के बहाने उसके करीब पहुंच गया। इसके बाद मैंने एक दो मिनट हल्की फुल्की बात की और सुमित को लेकर अपने कमरे में आ गया। थोड़ी देर में सुल यानी मेरे दिल की रानी बेटे को बुलाने आ गई। लेकिन कमाल वह मेरे रहते हुए पहली बार मेरे कमरे के अंदर आ गई। मुझे भी हरी झंडी मिल चुकी थी। मैं शाम को सुमित के साथ खेलते-खेलते सुल के किचन तक पहुंच गया। उस समय वह कुछ बनाने की तैयारी कर रही थी। मैंने पूछ ही लिया कि क्या बना रही हैं आज तो मीठी आवाज में जवाब दिया पकौड़े। मई में रिमझिम बारिश से मौसम सुहावना हो रहा था। कुछ ही देर बाद सुल पकौड़े और चाय लेकर मेरे कमरे में आ गई। जब मैंने ट्रे थामने के बहाने उसका हाथ पकड़ा तो शरमा गई। 15 मिनट तक वह कमरे मे रही और इस दौरान उसने हंसहंस कर बातें की। मैं थोड़ी देर के लिए सामान लेने के लिए बाहर चला गया। वापस लौटा तो पौने आठ बज चुके थे। सुल ने आकर कहा कि मैंने आपके लिए खाना बना लिया है। साथ खाएंगे। पांच महीनों में यह पहला मौका था, जब मैं उनके यहां भोजन पर आमंत्रित था। साढ़े आठ बजे तक सुमित कार्टून देखते देखते सो गया। मैं फ्रेश होकर इस इंतजार में था कि कब सुल बुलाए और मैं खाने के लिए पहुंच जाऊं। कुछ ही मिनट में वह आ गई और खाने के लिए कहा। मैं उसके पीछे ही उसके कमरे में पहुंच गया। वह किचेन खाना निकालने जा रही थी कि मैंने उसके हाथ पकड़ लिए। सुल ने कोई प्रतिरोध नहीं किया। मैंने कहा, कुछ देर बाद खाना खाएंगे, अभी बात करते हैं वह भी खुश हो गई। बातों-बातों में मैंने उससे सीधे पूछ लिया कि क्या सुभाष तुम्हें खुश कर पाता है तो उसने बनते हुए कहा कि यह कैसा सवाल है। मैंने उसके हाथ पकड़ कर सोफे में अपने और करीब खींच लिया। जब उसने कोई विरोध नहीं किया तो मेरा हौसला बढ़ गया। मैंने उसके गाल का चुंबन ले लिया। अब तो सुल पिघलने लगी। उसने खुद ही बता दिया कि सुभाष की लुल्ली बिल्कुल छोटी है और वह तड़प कर रह जाती है। मैंने उसे अपनी बाहों में खींच लिया और होठों को चूम लिया। मैंने कहा मेरे दिल की रानी अब आपको पूरी संतुष्टि मिलेगी। अब तक उसकी चूंचियों को मैं मसलने लगा था। वह भी धीरे-धीरे खुलने लगी और मेरे लंड के करीब हाथ ले जाने लगी। एकाएक मैंने अपना लंड निकर से निकालकर पकड़ा दिया। वह तन चुके मलंग को अपने हाथ से और मस्त करने लगी। मैंने अब उसका कुर्ता उतार दिया। अब वह केवल ब्रा में थी. मैंने उसकी एक चूची बाहर निकाली और मुंह लगा दिया। मैंने उसके ब्रा को भी उतार फेंका। क्या जिस्म था। बस मैंने उसे बेतहाश चूमना शुरू कर दिया। वह भी पूरे मूड में आ चुकी थी। वह मेरे लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी। मैंने उसके सलवार और पैंटी को एक साथ नीचे खींच दिया। अब वह सर्वांग सुंदरी मेरे सामने नंगे बदन थी। मैंने अपना एक हाथ उसके जांघों के बीच की दरार तक पहुंचा दिया। उस मुलायम जन्नत को छुते ही सुल और उत्तेजित हो गई। उसने लंड को और तेजी से चूसना शुरू कर दिया। मैंने उसकी भगनासा पर उंगली रगड़ते हुए बुर में डाल ही दिया। मैंने कहा सुल इसके लिए आपने मुझे बहुत तरसाया। वह बोली, मैं तो कब से चाहती थी कि आप पहल करें। तो मैंने कहा, आप ठीक से बोलतीं तक नहीं थी, कोई एसे में पहले कैसे करेगा। वह बोली, मैं उस दिन से आपके दिनरात सपने देखने लगी जिस दिन आपका मस्त मलंग बाथरूम में देख लिया था। अब मैंने सुल की योनि के अधरों पर जीभ फेरनी शुरूकर दी, जबकि वह फिर से लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी। यानी हम 69 की पोजीशन में थे। मैं जीभ गहराई तक ले जाकर उसका योनिरस पीने में मगन हो गया, क्योंकि वह तुरंत ही कड़क होकर झड़ गई थी। अब मैंने उसे उठाकर बाहों में कस लिया और फ्रेंच किस करते हुए बेड पर लिटा दिया। सुल ने कहा अब इंतजार न करवाओ। मैंने भी कहा मलंग तो तुम्हारे हाथ में है। उसने अपनी बुर के दरवाजे पर लगाया और बोली धक्का दो। मैंने एक ही बार में आधा लंड उसके अंदर पेल दिया। वह सिसकारी भर उठी। मैंने उसके बाद दूसरे ही धक्के में आठ इंच उसके अंदर कर दिया। लोहे की राड की तरह कड़क लंड उसकी बुर को पेलने में जुट गया। जैसे-जैसे मैं स्पीड बढ़ाता गया, सुल की सिसकारियां बढ़ती गईं वह एक बार फिर झड़ गई। उसने मुझे कसकर जकड़ लिया और बेतहाशा चूमने लगी. मैं भी उसकी बुर में झटके के साथ लंड बाहर भीतर करने लगा। आधे घंटे की इस रेलमपेल में अब हम दोनों आनंद के सातवें आसमान पर थे। मैंने कहा कि अब मेरा माल निकलने वाला है तो वह बोली कि बस अंदर डाल दो। उसका इतना कहना ही था कि मैंने पिस्टन की स्पीड और बढ़ा दी। एक मिनट में हम दोनों साथ ही झड़ गए। मैंने अपने झरने से उसकी योनि को भर दिया। हम कुछ देर तक उसी पोजीशन में लेटे रहे यानी मैं उसके पेट पर था और होंठ से होंठ जुड़े हुए थे। अब दस बज चुके थे, हम दोनों ने बाथरूम जाकर अपनी सफाई की। इसके बाद सुल मेरे लिए खाना परोस लाई। मैंने कहा अब हम दोनों एक हो चुके हैं एकी ही थाली में खाएंगे। वह फिर उसी थाली में अपने लिए भी खाना निकाल लाई। मैंने उसे अपने हाथों से खिलाया, सुल ने मुझे अपने हाथों से। खाना खाने के बाद हमने टीवी चालू कर दिया और साथ में बातें करते रहे।

सुल ने बताया कि सुभाष के छोटे भाई ने उसकी छोटी बहन राशि से विवाह किया है। उनके अभी कोई बच्चा नहीं है। वह दोनों पटना में रहते हैं, जबकि सासससुर गांव में। बातों-बातों में कब आंख लग गई पता ही नहीं चला। एक बजे रात को नींद खुली तो देखा कि सुल मेरे अंडरवियर के ऊपर हाथ चला रही थी। मेरा मलंग एक बार फिर मस्त होने लगा। लाइट जल रही थी, सुल ने केवल झीनी नाइटी पहन रखी थी। मैं उसे झटके से उतारने लगा तो वह फट गई। मैं उसके मम्मे चूसने लगा। बीचबीच में मैं चूंचियों को जोर जोर से मसल रहा था। अब हम दोनों एक दूसरे के मुंह से मुह मिलाकर रसपान करने लगे। सुल उत्तेजित हो गई और मेरा मलंग हाथ में लेकर अपने से ही बुर में ठेलने लगी। मैंने उसे घोड़ी बनाया और पीछे से उसके चूतड़ दबाते हुए पेलने लगा। सुल सिसियाने लगी। मैंने रफ्तार और तेज कर दी कुछ ही मिनट में वह एंठने लगी और झड़ गई। इसके बाद मैंने अपना लंड बाहर निकाला। वह फिर पीठ के बल लेट गई। मैंने उसके पैर ऊपर उठाए और लंड को उसकी फुद्दी में पेल दिया। मेरा लंड भीतर बाहर तेजी से आ जा रहा था, वह भी गांड उठाउठाकर पूरा सहयोग दे रही थी। कुछ ही देर में वह फिर झड़ गई। अब उसकी पानी भरी चूत से फचाक-फचाक की आवाज आने लगी। मुझे और ज्यादा मजा आने लगा तो मैं और जोर से उसे चोदने लगा। कुछ ही देर में छह सात झटकों के साथ मेरे मलंग ने बुर में पानी छोड़ दिया। चरम पर पहुंच चुकी सुल ने मुझे कमर से जकड़ रखा था। मैंने लिंग बाहर नहीं निकाला और उसी हालत में हम दोनों सो गए। सुबह छह बजे नींद खुली तो मैंने सुल का चुंबन लिया और अपने कमरे में आ गया।

यह रविवार का दिन था। मेरी और सुल की छुट्टी थी, सुभाष बाहर थे। हम दोनों ने पूरे दिन और रात में कई बार मजा किया। सुभाष ने बेंगलूर से सीधे पटना का टिकट लिया था। वह एक हफ्ते के बाद अपनी साली यानी छोटे भाई की पत्नी को भी लेकर लौटे। गर्मियों के इस मौसम में ऊपर वाला कितना मेहरबान था कि हर दूसरे दिन पानी बरस रहा था। माहौल में गर्मी का नामोनिशान नहीं था। ऊपर से सुल की मुस्कान और प्रेमरस भीगीं नजरें दिल को खासा सुकून देती थीं।

सुल और उसकी बहन के साथ कैसे महीने भर दिन में मजे किए। इसकी कहानी बाद में। आपको कैसी लगी यह सच्ची कहानी। जरूर लिखिएगा।








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