FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--35
गतांक से आगे ...........
कल शाम को जिस तरह चंदा भाभी ने मेरे कपडे उतरवा के गुड्डी को दिए और इस दुष्ट ने उसे रीत तक पहुंचा दिए और फिर भाभी ने गुड्डी के हाथों ही मेरा पूरा वस्त्र हरण...मेरी बनयान चड्ढी सब कुछ ...वो सारंग नयनी ले गयी थी...लेकिन उससे भी बढ़ कर आज सुबह जिस तरह नहाते समय इस चालाक ने शेविंग क्रीम के बदले हेयर रिमूविंग क्रीम मेरे चेहरे पे अच्छी तरह लिथड के...मेरी मूंछ का भी...एकदम मुझे चिकनी चमेली बना दिया...इसका मतलब प्लान तो सुबह से ही था और रीत जिस तरह बैग में सामान ले आई थी...
अब मैं बैठा हुआ किशोरियों युवतियों के हाथों अपना जेंडर चेंज देख रहा था....और सच कहूँ तो मजे भी ले रहा था...एक अलग तरह का मजा...
गुड्डी ने चेहरे का और रीत के साथ मिल कर बाकी श्रृंगार का जिम्मा सम्हाल रक्खा था और कमर के नीचे का काम संध्या भाभी के कोमल कोमल हाथों के जिम्मे ...लेकिन उसके पहले साडी पहनाई गयी ...पर उसमें भी रीत ने ...साडी उसी ने ला के दी ..लेकिन बोला पहनो...
अब मैं कैसे पहनता ..और वो चालू हो गयी...
"अरे वाह रे वाह पहले साडी दो फिर इन्हें पहनाना सिखाओ...मायाकेवालियों ने कुछ सिख विखा के नहीं भेजा ससुराल... की सिर्फ अपनी ममेरी बहन से नैन मटक्का ही करते रहे..."
चंदा भाभी भी मौका क्यों चूकतीं..." अर्र्रे इनकी बिचारी मायकेवालियों को क्यों बदनाम करती हो बचपन से हो उन्हें सिर्फ खोलने की आदत है चाहे अपनी साडी हो या नाडा..तो इस बिचारे को कहाँ से सिखातीं..."
" अरे मोहल्ले वाले साडी बाँधने देते तब ना...साथ में जांघे फैलाना , टाँगे उठाना ...तो वो बिचारी बांधती भी कैसे..." संध्या भाभी भी अब हम सब के रंग में रंग गयी थीं और उन्होंने सबसे पहली साडी के एक छोर को साए में बांध के मुझे सिखाया...फिर तो कुछ मैंने कुछ उन्होंने साडी बंधवा ही दी.
अभी रीत और गुड्डी चूड़ियाँ पहना रही थीं ..हरी हरी..और लाल कंगन..और संध्या भाभी पैर में महावर लगा रही थीं...
रीत और गुड्डी एक दम चुडिहारिनों की तरह बैठी थीं ...गुड्डी ने कलाई पकड़ रखी थी और रीत चूड़ियाँ पहना रही थी.
और जैसे चुडिहारिने नयी नवेलियों की कुँवारी लड़कियों को छेड़ती हैं वो भी बस उसी तरह वो दोनों भी...
गुड्डी ने मेरी कलाई को गोल मोड़ दिया चूड़ी अन्दर करने के लिए ..और रीत ने छेड़ा..." हे हमारी तुम्हारी कब..."
" अरे पकड़ा पकड़ी होय जब..." गुड्डी ने जवाब दिया.
रीत ने जब चूड़ी घुसाई तो दर्द तो हुआ लेकिन रीत की बात सुन के वो काफूर हो गया....
" अरे उह आह...कब..." रीत ने पुछा..
" आधा जाय तब..." गुड्डी ने जवाब दिया...
" अरे मजा आये कब निक लागे कब...." रीत ने अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखे नचाकर पुछा...
" अरे पूरा अन्दर जाय तब..." गुड्डी भी अब पीछे रहने वाली नहीं थी. और एक चूड़ी अन्दर चली गयी..उसके बाद तो उन दोनों ने मिल के..एकदम कुहनी तक चूड़ियाँ पहना दी.
और दोनों मिल के अपने इस द्वि अर्थी पहेली कम डायलाग पे हंस पड़ीं.
" सुहागरात का पता कैसे चलेगा...जानू..." गुड्डी ने मुझे चिढाते हुए पुछा.
" अरे जब रात भर चूड़ियाँ चुरूर मुरुर करें और आधी सुबह तक चटक जाय" , रीत मेरे गाल पे चुटकी काट के बोलीं.
" क्यों संध्या याद है ना तुम्हारी सुहागरात में ..महावर वाली बात..." चंदा भाभी ने मुस्करा के पुछा.
" आप भी ना भाभी ...वो तो सब की सुहागरात में होता है...आप भी कहाँ की बात ले बैठीं..वो भी इन बच्चियों के सामने.." रीत
और गुड्डी की और देख के वो बोलीं.
रीत ने उन्हें ऐसे देखा जैसे कोई गलत बात उन्होंने कह दी हो. लेकिन बोलीं दूबे भाभी...
" हे बच्चियां किन्हें कह रही हो..जब वो घूम घूम के चून्चियां दबवाने लगें तो ये बच्चियां नहीं रह जातीं. और ऊपर से मेरी ननदों की झांटे बाद में आती है लंड पाहले ढूँढने लगती हैं. और वैसे भी कल के पहले इन दोनों की भी चटक चटक के फट जायेगी. हम सब की कैटगरी में आ जायेंगी ." वो हडका के बोलीं.
रीत और गुड्डी ने सहमती में सर हिलाया.
"रीत ,उन्होंने मेरी नाउन को चढ़ा दिया था..फिर उसने ये रच रच के महावर लगाया ...खूब गाढा और गीला...आगले दिन सुबह जब हम दोनों कमरे से बाहर आये तो वो सब छिपकलियाँ मेरी ननदें पहले से तैयार बैठी थीं. ब्रेकफास्ट के समय पकड़ लिया उन्होंने तुम्हारे जीजू को...हे भैया आपके माथे पे ये लाल ला ये भाभी के पैर का रंग ..कैसे...कहीं रात भर भाभी ने आपसे पैर तो नहीं छूलावाया ...ये बहोत गलत बात है...तो कोई बोली अरे भैया को कोई चीज चाहिए होगी इसलिए भाभी ने...क्यों भैय्या ...लेकिन भाभी ने दिया की नहीं...खूब तंग किया ..." संध्या भाभी बता भी रही थीं और उस दिन की याद कर मुस्करा भी रही थीं.
गुड्डी भी ...वो बोली..." लेकिन मेरे समझ में नहीं आया कैसे जीजू के माथे पे आपके पैरों की महावर..." उसकी बात काट के संध्या भाभी मुस्कारते हुए उसके उरोजोने पे एक चिकोटी काट के बोलीं..
" अरी बन्नो सब समझ में आ जाएगा..जब रात भर टाँगे यार के कंधें पे रहेगी और रगड़ रगड़ के , ये चूंची पकड़ के चोदेगा ना तो सब पता चल जाएगा की महावर का रंग कैसे माथे पे लगता है.."
" आज जा रही ना तू कल सुबह ही हम सब फोन कर केपूछेंगे तुझसे...की रात भर टाँगे उठी रही की नहीं...समझ में आया की नहीं..." रीत ने पला बदला और संध्या की और हो गयी. सब हो हो करके हंसाने लगी लेकिन गुड्डी शरमा गयी और मैं भी..
संध्या भाभी ने महावर के रंग की कटोरी में जाने क्या और मिलाया और बोलीं..
" मैं लेकिन उस से भी गाढ़ा लगा रही हूँ और चटक भी...पंद्रह दिन तक तो नहीं छूटेगा,.लाख पैर पटक लेना..." महावर के साथ उन्होंने पैरों के नाखोन भी रंगे और जैसे गावं में औरतों की विदाई होने के समय महावत के साथ पैरों पे डिजाइन बनाते हैं ..वैसे डिजाइन भी बना दी..( वो तो मैंने बाद में देखा...एक पैर पे डिजाइन में उन्होंने लिखा था बहन और दूसरे पे चोद..)
फिर वो और चंदा भाभी पैरो में पायल और बिछुए पहनाने लगी वो भी खूब घुंघरू वाले..चौड़ी सी चांदी की पायल.
" अब ये मत पूछना की दुल्हन को ये क्यों पहनाते हैं..." चंदा भाभी गुड्डी से हंस के बोलीं और कहने लगीं, " इसलिए बिन्नो की ..जब रात भर दुल्हन की चुदाई हो तो रुन झुन रुन झुन ...ये पायल बजे और बाहर खड़ी सारी ननद भौजाइयों को ये बात मालूम चल जाय की अब नयी दुल्हन चुद रही है...
बिछुवे बहूत ही ज्यादा घुंघरू वाले थे ...दूबे भाभी बैठ के गाइड कर रही थीं...वो मुझे चिढाते हुए गाने लगीं...
" अरे छोटे घुंघरू वाला छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना , छोटे घुंघरू वाला,,,,
वो बिछुवा पहने ..आनंद की बहना...गुड्डो छिनारी, ऐल्वल वाली ( मेरी ममेरी बहन के मोहल्ले का नाम)
अरे अरवट बाजे करवट बाजे, लड़िका के दूध पियावत बाजे,
अरे यारन से चूंची मिजवावत बाजे , द्बवावत बाजे...
अरे छोटे घुंघरू वाला छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना , छोटे घुंघरू वाला,,,,
अरे अरवट बाजे करवट बाजे, अपने भइय्या से रोज चुदावत बाजे ...
अरे छोटे घुंघरू वाला छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना , छोटे घुंघरू वाला,,,,"
गुड्डी और रीत हाथ के श्रृंगार में लगी थीं...नेल पालिश ...
" क्यों ये बात सच है ले चुके हो उसकी "गुड्डी बोली...
रीत ने आँख तरेरी और दूबे भाभी की और इशारा किया जिन्होंने हुक्म दिया था की होली में सब 'खुल कर' बोले
" अरे माना इनकी बात सीधी है अभी तक नहीं चुदी है ..तो अब चोद देंगे ऐसा क्या...बिछुवे तो बजंगे ही उसके..." रीत ने बात पूरी की.
और उसके बाद गहनों का और चेहरे के श्रृंगार का नंबर था. संध्या भाभी ने मुझे एक करधनी पहनाई वो भी घुंघरू वाली और मुसकरा के रीत और गुड्डी की और देख के बोला..." हे ये मत बताना की तुम्हे इसका भी मतलब नहीं मालूम है की ये कब बजती है..."
रीत की मुस्कराहट से साफ झलक रहा था की वो चतुर सुजान है लेकिन गुड्डी वैसी की वैसी तो संध्या भाभी ने फिर बोला
"अरे बुद्धू ..कोई जरुरी थोड़े ही की यही तुम्हारे ऊपर चढ़ के चोदे ..अरे ऐसा बुद्धू हो तो कई बार लड़की को ही कमान अपने हाथ में लेनी होती है. और जब लड़की ऊपर होती है. उछल उछल कर ऊपर नीचे कर चोदती है...तो करधन के ही घुंघरू बोलते हैं "
रीत मुस्कराती हुयी मेरे चेहरे का मेकप करने में बिजी थी, लाल लिपस्टिक..गालों पे रूज, आँख में काजल, मस्कारा आइब्रो..और साथ में कानो में झुमके, नाक में नथ..कान नाक में छेद तो था नहीं इसलिए कही से इन लोगों ने स्क्रू वाले झुमके और नथ का इंतजाम किया था..नथ भी बड़ी सी उसकी मोती होंठों पे...
नथ गुड्डी पहना रही थी. मैं थोडा ना नुकुर कर रहा था...तो चंदा भाभी ने हडकाया...
" अरे पहन लो पहन लो वरना उतारी क्या जायेगी. "
मुस्कराती हुयी रीत ने गुड्डी को आँख मार के बोला, " पहना दे तू लेकिन उतारूंगी मैं ही..."
तभी रीत का ध्यान मेरे ब्लाउज पे गया जिसके अन्दर संध्या भाभी की ब्रा थी...वो हलके से बोली " माल तो मस्त है लेकिन थोडा सा कसर है..." और वो भाग के अन्दर गयी.
जब वो बाहर आई तो उसके हाथ में रंग के भरे दो गुब्बारे थे..उसने झट से मेरी ब्रा खोल के उसके अन्दर डाल दिया और बोली...
" हूँ अब मस्त माल लग रहा है एकदम ३४ सी बल्कि डी.."
मुझे खड़ा कर दिया गया था...दूबे भाभी जो अब तक दूर से गाइड कर रही थीं...पास में आयीं और बोलीं..,
" सही है लेकिन बस एक कसर है औअर उन्होंने अपने माथे से अट्ठन्नी की साइज की टिकुली मेरे माथे पे लगा दी और बोला, अब हुआ शृंगार पूरा…. नहीं लेकिन एक कसर है.”
सब मुझे घेर के खड़े थे..चंदा भाभी,संध्या भाभी और रीत और गुड्डी तो एकदम सैट के अगल बगल....किसी को कुछ समझ में नहीं आया.
" अरी साल्लियों .. इत्ती मस्त दुल्हन लेकिन उसकी मांग तो सूनी है..सिन्दूर कौन भरेगा...."
रीत ने गुड्डी की ओर इशारा किया तो गुड्डी ने रीत की ओर…" अरे सोचो मत इसकी बहन पे तो तीन तीन एक साथ चढ़ेंगे तुम तो दो ही हो कर दो एक साथ ..." चंदा भाभी ने उकसाया...
" अरे तुम लोग बनारस की हो..लखनऊ की नहीं की जो पहले आप पहले आप कर रही हो..." दूबे भाभी ने हडकाया. संध्या ने सिंदूर की डिबिया बढाई और दोनों ने एक साथ...कुछ मेरी नाक पे भी गिर गया..
नाक पे सिन्दूर गिरने का मतलब जानते हो तुम्हारी सास बहोत खुश रहेंगी..." संध्या भाभी ने चिढाया...
लेकिन अब मेरी बोलने की बारी थी बहोत देर से मैं चुप था..
" अरे सिन्दूर दान हो गया तो अब सुहागरात भी तो होनी चाहिए..." मैं बोला.
" बड़ी छिनार दुल्हन है जबरदस्त खुजली इसकी चूत में मची है...." चंदा भाभी बोली लेकिन रीत बढ़ के आगे आई और हंस के मेरा मुंह उठा के बोली...
" अरे जरुर मनाई जायेगी...और वो भी अभी ..." गुड्डी इस काम में पीछे हट गयी थी ये कह के उसके वो दिन चल रहे हैं
रे जरुर मनाई जायेगी...और वो भी अभी ..." गुड्डी इस काम में पीछे हट गयी थी ये कह के उसके वो दिन चल रहे हैं
" लेकिन कैसे आवश्यक सामग्री है तुम्हारे पास " मैंने भी हंस के सवाल दागा.
" एकदम .." और जो बैग वो सुबह अपने साथ लायी थी उसमे से एक मोटा लम्बा डिल्डो निकाला , गुलाबी एकदम मेरी साइज के बराबर रहा होगा..स्ट्रैप आन ...जिसे लडकियां पहन के एक दूसरे के साथ या लड़कों के साथ ...
मेरे तो चेहरे का रंग उतर गया.
तब तक दूबे भाभी का कमान जारी हुआ निहुराओ साल्ली को ...और चंदा और संध्या भाभी ने मिल के मुझे झुका दिया और साडी साया सब मेरे कमर पे ...
क्रमशः.....................
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गतांक से आगे ...........
कल शाम को जिस तरह चंदा भाभी ने मेरे कपडे उतरवा के गुड्डी को दिए और इस दुष्ट ने उसे रीत तक पहुंचा दिए और फिर भाभी ने गुड्डी के हाथों ही मेरा पूरा वस्त्र हरण...मेरी बनयान चड्ढी सब कुछ ...वो सारंग नयनी ले गयी थी...लेकिन उससे भी बढ़ कर आज सुबह जिस तरह नहाते समय इस चालाक ने शेविंग क्रीम के बदले हेयर रिमूविंग क्रीम मेरे चेहरे पे अच्छी तरह लिथड के...मेरी मूंछ का भी...एकदम मुझे चिकनी चमेली बना दिया...इसका मतलब प्लान तो सुबह से ही था और रीत जिस तरह बैग में सामान ले आई थी...
अब मैं बैठा हुआ किशोरियों युवतियों के हाथों अपना जेंडर चेंज देख रहा था....और सच कहूँ तो मजे भी ले रहा था...एक अलग तरह का मजा...
गुड्डी ने चेहरे का और रीत के साथ मिल कर बाकी श्रृंगार का जिम्मा सम्हाल रक्खा था और कमर के नीचे का काम संध्या भाभी के कोमल कोमल हाथों के जिम्मे ...लेकिन उसके पहले साडी पहनाई गयी ...पर उसमें भी रीत ने ...साडी उसी ने ला के दी ..लेकिन बोला पहनो...
अब मैं कैसे पहनता ..और वो चालू हो गयी...
"अरे वाह रे वाह पहले साडी दो फिर इन्हें पहनाना सिखाओ...मायाकेवालियों ने कुछ सिख विखा के नहीं भेजा ससुराल... की सिर्फ अपनी ममेरी बहन से नैन मटक्का ही करते रहे..."
चंदा भाभी भी मौका क्यों चूकतीं..." अर्र्रे इनकी बिचारी मायकेवालियों को क्यों बदनाम करती हो बचपन से हो उन्हें सिर्फ खोलने की आदत है चाहे अपनी साडी हो या नाडा..तो इस बिचारे को कहाँ से सिखातीं..."
" अरे मोहल्ले वाले साडी बाँधने देते तब ना...साथ में जांघे फैलाना , टाँगे उठाना ...तो वो बिचारी बांधती भी कैसे..." संध्या भाभी भी अब हम सब के रंग में रंग गयी थीं और उन्होंने सबसे पहली साडी के एक छोर को साए में बांध के मुझे सिखाया...फिर तो कुछ मैंने कुछ उन्होंने साडी बंधवा ही दी.
अभी रीत और गुड्डी चूड़ियाँ पहना रही थीं ..हरी हरी..और लाल कंगन..और संध्या भाभी पैर में महावर लगा रही थीं...
रीत और गुड्डी एक दम चुडिहारिनों की तरह बैठी थीं ...गुड्डी ने कलाई पकड़ रखी थी और रीत चूड़ियाँ पहना रही थी.
और जैसे चुडिहारिने नयी नवेलियों की कुँवारी लड़कियों को छेड़ती हैं वो भी बस उसी तरह वो दोनों भी...
गुड्डी ने मेरी कलाई को गोल मोड़ दिया चूड़ी अन्दर करने के लिए ..और रीत ने छेड़ा..." हे हमारी तुम्हारी कब..."
" अरे पकड़ा पकड़ी होय जब..." गुड्डी ने जवाब दिया.
रीत ने जब चूड़ी घुसाई तो दर्द तो हुआ लेकिन रीत की बात सुन के वो काफूर हो गया....
" अरे उह आह...कब..." रीत ने पुछा..
" आधा जाय तब..." गुड्डी ने जवाब दिया...
" अरे मजा आये कब निक लागे कब...." रीत ने अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखे नचाकर पुछा...
" अरे पूरा अन्दर जाय तब..." गुड्डी भी अब पीछे रहने वाली नहीं थी. और एक चूड़ी अन्दर चली गयी..उसके बाद तो उन दोनों ने मिल के..एकदम कुहनी तक चूड़ियाँ पहना दी.
और दोनों मिल के अपने इस द्वि अर्थी पहेली कम डायलाग पे हंस पड़ीं.
" सुहागरात का पता कैसे चलेगा...जानू..." गुड्डी ने मुझे चिढाते हुए पुछा.
" अरे जब रात भर चूड़ियाँ चुरूर मुरुर करें और आधी सुबह तक चटक जाय" , रीत मेरे गाल पे चुटकी काट के बोलीं.
" क्यों संध्या याद है ना तुम्हारी सुहागरात में ..महावर वाली बात..." चंदा भाभी ने मुस्करा के पुछा.
" आप भी ना भाभी ...वो तो सब की सुहागरात में होता है...आप भी कहाँ की बात ले बैठीं..वो भी इन बच्चियों के सामने.." रीत
और गुड्डी की और देख के वो बोलीं.
रीत ने उन्हें ऐसे देखा जैसे कोई गलत बात उन्होंने कह दी हो. लेकिन बोलीं दूबे भाभी...
" हे बच्चियां किन्हें कह रही हो..जब वो घूम घूम के चून्चियां दबवाने लगें तो ये बच्चियां नहीं रह जातीं. और ऊपर से मेरी ननदों की झांटे बाद में आती है लंड पाहले ढूँढने लगती हैं. और वैसे भी कल के पहले इन दोनों की भी चटक चटक के फट जायेगी. हम सब की कैटगरी में आ जायेंगी ." वो हडका के बोलीं.
रीत और गुड्डी ने सहमती में सर हिलाया.
"रीत ,उन्होंने मेरी नाउन को चढ़ा दिया था..फिर उसने ये रच रच के महावर लगाया ...खूब गाढा और गीला...आगले दिन सुबह जब हम दोनों कमरे से बाहर आये तो वो सब छिपकलियाँ मेरी ननदें पहले से तैयार बैठी थीं. ब्रेकफास्ट के समय पकड़ लिया उन्होंने तुम्हारे जीजू को...हे भैया आपके माथे पे ये लाल ला ये भाभी के पैर का रंग ..कैसे...कहीं रात भर भाभी ने आपसे पैर तो नहीं छूलावाया ...ये बहोत गलत बात है...तो कोई बोली अरे भैया को कोई चीज चाहिए होगी इसलिए भाभी ने...क्यों भैय्या ...लेकिन भाभी ने दिया की नहीं...खूब तंग किया ..." संध्या भाभी बता भी रही थीं और उस दिन की याद कर मुस्करा भी रही थीं.
गुड्डी भी ...वो बोली..." लेकिन मेरे समझ में नहीं आया कैसे जीजू के माथे पे आपके पैरों की महावर..." उसकी बात काट के संध्या भाभी मुस्कारते हुए उसके उरोजोने पे एक चिकोटी काट के बोलीं..
" अरी बन्नो सब समझ में आ जाएगा..जब रात भर टाँगे यार के कंधें पे रहेगी और रगड़ रगड़ के , ये चूंची पकड़ के चोदेगा ना तो सब पता चल जाएगा की महावर का रंग कैसे माथे पे लगता है.."
" आज जा रही ना तू कल सुबह ही हम सब फोन कर केपूछेंगे तुझसे...की रात भर टाँगे उठी रही की नहीं...समझ में आया की नहीं..." रीत ने पला बदला और संध्या की और हो गयी. सब हो हो करके हंसाने लगी लेकिन गुड्डी शरमा गयी और मैं भी..
संध्या भाभी ने महावर के रंग की कटोरी में जाने क्या और मिलाया और बोलीं..
" मैं लेकिन उस से भी गाढ़ा लगा रही हूँ और चटक भी...पंद्रह दिन तक तो नहीं छूटेगा,.लाख पैर पटक लेना..." महावर के साथ उन्होंने पैरों के नाखोन भी रंगे और जैसे गावं में औरतों की विदाई होने के समय महावत के साथ पैरों पे डिजाइन बनाते हैं ..वैसे डिजाइन भी बना दी..( वो तो मैंने बाद में देखा...एक पैर पे डिजाइन में उन्होंने लिखा था बहन और दूसरे पे चोद..)
फिर वो और चंदा भाभी पैरो में पायल और बिछुए पहनाने लगी वो भी खूब घुंघरू वाले..चौड़ी सी चांदी की पायल.
" अब ये मत पूछना की दुल्हन को ये क्यों पहनाते हैं..." चंदा भाभी गुड्डी से हंस के बोलीं और कहने लगीं, " इसलिए बिन्नो की ..जब रात भर दुल्हन की चुदाई हो तो रुन झुन रुन झुन ...ये पायल बजे और बाहर खड़ी सारी ननद भौजाइयों को ये बात मालूम चल जाय की अब नयी दुल्हन चुद रही है...
बिछुवे बहूत ही ज्यादा घुंघरू वाले थे ...दूबे भाभी बैठ के गाइड कर रही थीं...वो मुझे चिढाते हुए गाने लगीं...
" अरे छोटे घुंघरू वाला छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना , छोटे घुंघरू वाला,,,,
वो बिछुवा पहने ..आनंद की बहना...गुड्डो छिनारी, ऐल्वल वाली ( मेरी ममेरी बहन के मोहल्ले का नाम)
अरे अरवट बाजे करवट बाजे, लड़िका के दूध पियावत बाजे,
अरे यारन से चूंची मिजवावत बाजे , द्बवावत बाजे...
अरे छोटे घुंघरू वाला छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना , छोटे घुंघरू वाला,,,,
अरे अरवट बाजे करवट बाजे, अपने भइय्या से रोज चुदावत बाजे ...
अरे छोटे घुंघरू वाला छोटे घुंघरू वाला बिछुआ गजबे बना , छोटे घुंघरू वाला,,,,"
गुड्डी और रीत हाथ के श्रृंगार में लगी थीं...नेल पालिश ...
" क्यों ये बात सच है ले चुके हो उसकी "गुड्डी बोली...
रीत ने आँख तरेरी और दूबे भाभी की और इशारा किया जिन्होंने हुक्म दिया था की होली में सब 'खुल कर' बोले
" अरे माना इनकी बात सीधी है अभी तक नहीं चुदी है ..तो अब चोद देंगे ऐसा क्या...बिछुवे तो बजंगे ही उसके..." रीत ने बात पूरी की.
और उसके बाद गहनों का और चेहरे के श्रृंगार का नंबर था. संध्या भाभी ने मुझे एक करधनी पहनाई वो भी घुंघरू वाली और मुसकरा के रीत और गुड्डी की और देख के बोला..." हे ये मत बताना की तुम्हे इसका भी मतलब नहीं मालूम है की ये कब बजती है..."
रीत की मुस्कराहट से साफ झलक रहा था की वो चतुर सुजान है लेकिन गुड्डी वैसी की वैसी तो संध्या भाभी ने फिर बोला
"अरे बुद्धू ..कोई जरुरी थोड़े ही की यही तुम्हारे ऊपर चढ़ के चोदे ..अरे ऐसा बुद्धू हो तो कई बार लड़की को ही कमान अपने हाथ में लेनी होती है. और जब लड़की ऊपर होती है. उछल उछल कर ऊपर नीचे कर चोदती है...तो करधन के ही घुंघरू बोलते हैं "
रीत मुस्कराती हुयी मेरे चेहरे का मेकप करने में बिजी थी, लाल लिपस्टिक..गालों पे रूज, आँख में काजल, मस्कारा आइब्रो..और साथ में कानो में झुमके, नाक में नथ..कान नाक में छेद तो था नहीं इसलिए कही से इन लोगों ने स्क्रू वाले झुमके और नथ का इंतजाम किया था..नथ भी बड़ी सी उसकी मोती होंठों पे...
नथ गुड्डी पहना रही थी. मैं थोडा ना नुकुर कर रहा था...तो चंदा भाभी ने हडकाया...
" अरे पहन लो पहन लो वरना उतारी क्या जायेगी. "
मुस्कराती हुयी रीत ने गुड्डी को आँख मार के बोला, " पहना दे तू लेकिन उतारूंगी मैं ही..."
तभी रीत का ध्यान मेरे ब्लाउज पे गया जिसके अन्दर संध्या भाभी की ब्रा थी...वो हलके से बोली " माल तो मस्त है लेकिन थोडा सा कसर है..." और वो भाग के अन्दर गयी.
जब वो बाहर आई तो उसके हाथ में रंग के भरे दो गुब्बारे थे..उसने झट से मेरी ब्रा खोल के उसके अन्दर डाल दिया और बोली...
" हूँ अब मस्त माल लग रहा है एकदम ३४ सी बल्कि डी.."
मुझे खड़ा कर दिया गया था...दूबे भाभी जो अब तक दूर से गाइड कर रही थीं...पास में आयीं और बोलीं..,
" सही है लेकिन बस एक कसर है औअर उन्होंने अपने माथे से अट्ठन्नी की साइज की टिकुली मेरे माथे पे लगा दी और बोला, अब हुआ शृंगार पूरा…. नहीं लेकिन एक कसर है.”
सब मुझे घेर के खड़े थे..चंदा भाभी,संध्या भाभी और रीत और गुड्डी तो एकदम सैट के अगल बगल....किसी को कुछ समझ में नहीं आया.
" अरी साल्लियों .. इत्ती मस्त दुल्हन लेकिन उसकी मांग तो सूनी है..सिन्दूर कौन भरेगा...."
रीत ने गुड्डी की ओर इशारा किया तो गुड्डी ने रीत की ओर…" अरे सोचो मत इसकी बहन पे तो तीन तीन एक साथ चढ़ेंगे तुम तो दो ही हो कर दो एक साथ ..." चंदा भाभी ने उकसाया...
" अरे तुम लोग बनारस की हो..लखनऊ की नहीं की जो पहले आप पहले आप कर रही हो..." दूबे भाभी ने हडकाया. संध्या ने सिंदूर की डिबिया बढाई और दोनों ने एक साथ...कुछ मेरी नाक पे भी गिर गया..
नाक पे सिन्दूर गिरने का मतलब जानते हो तुम्हारी सास बहोत खुश रहेंगी..." संध्या भाभी ने चिढाया...
लेकिन अब मेरी बोलने की बारी थी बहोत देर से मैं चुप था..
" अरे सिन्दूर दान हो गया तो अब सुहागरात भी तो होनी चाहिए..." मैं बोला.
" बड़ी छिनार दुल्हन है जबरदस्त खुजली इसकी चूत में मची है...." चंदा भाभी बोली लेकिन रीत बढ़ के आगे आई और हंस के मेरा मुंह उठा के बोली...
" अरे जरुर मनाई जायेगी...और वो भी अभी ..." गुड्डी इस काम में पीछे हट गयी थी ये कह के उसके वो दिन चल रहे हैं
रे जरुर मनाई जायेगी...और वो भी अभी ..." गुड्डी इस काम में पीछे हट गयी थी ये कह के उसके वो दिन चल रहे हैं
" लेकिन कैसे आवश्यक सामग्री है तुम्हारे पास " मैंने भी हंस के सवाल दागा.
" एकदम .." और जो बैग वो सुबह अपने साथ लायी थी उसमे से एक मोटा लम्बा डिल्डो निकाला , गुलाबी एकदम मेरी साइज के बराबर रहा होगा..स्ट्रैप आन ...जिसे लडकियां पहन के एक दूसरे के साथ या लड़कों के साथ ...
मेरे तो चेहरे का रंग उतर गया.
तब तक दूबे भाभी का कमान जारी हुआ निहुराओ साल्ली को ...और चंदा और संध्या भाभी ने मिल के मुझे झुका दिया और साडी साया सब मेरे कमर पे ...
क्रमशः.....................
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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