FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--33
गतांक से आगे ...........
तभी गुड्डी बोली..." जाने दो यार...साल्ला बहोत चीख रहा है..."
रीत बोली " अरे यार अभी खोलने में इत्ता नखड़ा कर रहा है तो डलवाने में कित्ता करेगा...लेकिन तू कहती है तो छोड़ देती हूँ ...आखिर तेरा माल है.."
गुड्डी ने हंस के जवाब दिया..." अरे नहीं यार मॉल तो तुम्हारा है.. लेकिन देख ना कित्ता हल्ला कर रहा है जैसे हम लोगों ने उसकी बहन की..."
" अरे पूरा क्यों नहीं बोलती की ...जैसे हम लोगों ने उसकी बहन चोद दी है...लेकिन उसे तो यही चोदेगा...आखिर घर का माल है उसका हक़ है ...फिर वो नहीं चोदेगा तो कहीं न कहीं तो चुदवायेगी ही वो...तो फिरे ये मेरा यार ही क्यों..नहीं...चल तू बोलती है तो छोड देते हैं ये भी क्या याद करेगा साल्ला की बनारस में ससुराल में किन दिलदार साल्लियों से पाला पड़ा था.."
और उन दोनों ने छोड दिया...मेरा टाप ( मेरा नहीं गूंजा का जो मैंने पहन रखा था , मेरे कपडे तो इन दोनों ने हड़प कर लिए थे...) मेरे गले तक अटका हुआ था.
नुकसान ये हुआ की टाप अब मेरे चेहरे पे फंसा हूया था और मैं कुछ देख नहीं पा रहा था...फायदा उन दोनों हिरणियों को हुआ मेरे ऊपर कम्प्लीट कब्ज़ा..
" चल आगे से तू पीछे से मैं ..." ये रीत की शहद सी आवाज थी जो मैं सोते हुए भी पहचान सकता था.
" रीत दी..अभी आगे का क्या फायदा ...हाँ शाम के बाद बात अलग है..." मुंह बनाते हुए गुड्डी बोली "
" अरे तू भी ना यहाँ सब उसी के लिए तड़प रहे हैं ...पकड़ तो सकती है ना..." रीत ने उसे हड़काते हुए उकसाया.
और उस दुष्ट ने वही...वो भी ऊपर से नहीं सीधे बार्मुडा के अन्दर हाथ डाल के ...
रीत भी कोई कम नहीं थी..उस के दोनों हाथ मेरे टिट्स पे थे और जैसे कोई किसी लड़की के चुचुक सहलाए दबाये बस उसी तरह...और साथ में उसके आलमोस्ट खुले मस्त उभार, जिनका दीदार भी मैं कर चूका था और जिसके बारे में मैं श्योर था की सिर्फ सोच कर ...जिसके ऊपर वियाग्रा की फुल डोज भी असर ना करे , उसका भी लिंग खड़ा हो जाए...मेरे पीठ के पीछे से... कभी हलके से दबा देते कभी रगड़ देते..और आगे से गुड्डी की १६ साल की चून्चिया...जो अभी भी पूरी तरह फ्राक से बाहर थीं
आप सोच सकते हैं फागुन का मौसम हो और दो मस्त रीत और गुड्डी की तरह की किशोरियां...आगे पीछे से
अपने रंग लगे, गदराये गोरे गोरे किशोर जोबन ..जो चुन्चिया उठान कहते हैं न बस उस तरह के रगड़ रही हों तो क्या हालत होगी...
बस वही हालत मेरी थी...बल्कि उससे भी बदतर...क्योंकि गुड्डी के कोमल, मस्त लेकिन जबर्दस्त पकड़ वाले हाथ मेरे लंड पे थे...कभी वो शैतान अपने अंगूठे से उसके बेस पे रगड़ देती तो कभी सुपाडे पे...और साथ में रंग लगाने के साथ साथ उसे हलके हलके मुठिया तो वो रही ही थी.
" हे पीठ पे तो तुझे रंग लगाना था ना..देख कित्ती सारीजगह बच गयी है..." रीत की आवाज मेरे कान के पास गूंजी.
' मेरी अच्छी दी..आप लगा दो न देखो मेरे हाथ अभी कित्ते जरूरी काम में बिजी हैं...प्लीज.." गुड्डी ने अदा से जवाब दिया..
" बिजी की बच्ची तेरी सारी ननदों की गांड मारू..." रीत बोली और पेंट लगे उसके हाथ मेरी पीठ पे बिजी हो गए.
" अरे दी..उसकी तो मारेंगे ही ..." खिलखिला के गुड्डी बोली और कस के मेरे लंड को दबा दिया और कहा..." जब मैं आउंगी तो इन्होने तो दूबे भाभी से वादा किया है है की उसे, अपनी बहना को ले के आयेंगे न रंग पंचमी में और कोई दिक्कत होगी तो इन्ही से मरवा लेंगे...क्यों मारोगे न...आखिर रीत का कहना तो तुम टालते नहीं..."
मैं क्या बोलता. एक से पार पाना मुश्किल था लेकिन यहाँ तो दोनों...बनारस के रस में रसी पगी, रसीली ..लेकिन तभी मेरा बल्ब जला..
" मैं एक तुम दो दो...लेकिन चलो...साल्लियों से क्या बहस करना हाँ मेंरी भी एक शर्त है...तुम दोनों लगाओ तो सही ..लेकिन हाथ का इस्तेमाल नहीं करोगी..." मैं हंस के बोला...
" तुम बहोत नखड़ा दिखाते हो...वो आएगी ना तेरी बहना...देखना एक साथ तीन तीन चढ़ेंगे उस पे...और दो वेट करेंगे तो भी वो बुरा नहीं मानेगी...और तुम दो दो पे ही.." गुड्डी ने मुंह बनाया. लेकिन रीत चतुर चालाक थी...बड़े भोलेपन से बोली...
" अरे चल मान जाते हैं यार घर आये मेहमान से ..वरना अपने मायके जा के रोयेंगे....चल...वैसे भी हमारे हाथों को बहोत से और भी काम है..."
गुड्डी भी समझ गयी.
समझा मैं भी लेकिन थोड़ी देर से...गुड्डी के उभार पे मैंने लाल गुलाबी रंग और डूबे भाभी ने जम के कालिख रगड़ी थी...और रीत के जोबन का रस तो हम सबने ( मैंने भले ही कमीज के अन्दर हाथ डाल के ), मैंने, दूबे और चंदा भाभी ने सब ने रंग लगाया था...बस उन दोनों हसीनाओं ने उन उभारों को ही हाथ बनाया ..और आगे से गुड्डी और पीछे से रीत ने कस कस के रंग लगाना, अपनी चून्चियों से शुरू कर दिया, मेरे सीने और पीठ पे...
गुड्डी की नरम हथेलियाँ तो मेरे लंड को वैसे ही तंग कर रही थीं अब रीत भी मैदान में आगई . उसका एक हाथ गुड्डी के साथ आगे और दूसरा मेरे
नितम्बों की दरार पे पीछे..
अब मेरा चर्म दंड दोनों के हाथ में बीच मैं जैसे दो ग्वालिने मिल के मथानी मथें..बस बिलकुल उसी तरह...एक ही काफी थी वहां दोनों...मेरी तो जान निकल रही थी...
और साथ में अब रीत की दो उंगली मेरी गांड की दरार में...ऊपर नीचे..रगड़ रगड़ कर.. गुड्डी का एक हाथ भी वहां पहुँच गया था वो कस कस के मेरे नितम्बो को दबा रही थी...
" अरी साल्लियों वहां नहीं...अगर मैं वहां डालूँगा ना तो बहोत चिल्लाओगी तुम..." मैं बोला...मजा जब एक सीमा के बियांड हो जाता है तो मुस्किल हो जाती है मेरी वही हालत हो रही थी..
" तब की तब देखी जायेगी अभी तो हमारा मौका है...डलवाओ चुपचाप..." गुड्डी बोली.
" हाँ जैसे ये नहीं डालने वाले..और हमारे रोकने से मान जायेंगे..." रीत बोली. उस की उंगली पिछवाड़े घुसने की कोशिश कर रही थी.
बचा मैं...दूबे भाभी की आवाज से..." सालियों , छिनार तुम दोनों को भेजा क्या बोल के था और किस काम में लग गयी..."
और अब की मेरे कुछ बोलने के पहले ही गुड्डी और रीत के हाथ मेरे टाप पे और टाप बाहर ...जो उन दोनों ने फेंका तो सीधे संध्या भाभी के ऊपर...उन का दूबे और चंदा भाभी के साथ थ्रीसम ख़तम ही हुआ था...
अब आयगा मजा ...तुम ने हम सब की ब्रा में हाथ डाल के बहोत रगडा मसला था...और अब तुम पूरे टाप लेस हो गए हो ...वो मेरे टाप को पकड़ती हुयीं बोली...
और उसके बाद तो सब की सब मेरे ऊपर ...जो हुआ वो न कहा जा सकता है न कहने लायक है...
उड़त गुलाल लाल भये बादर...
मल दे गुलाल मोहे आई होली आई रे..
चुनरी पे रंग सोहे आयो होली आई रे..
चलो सहेली,चलो सहेली -
ये पकड़ो
ये (पकड़ो इसे न छोडो
अर्रा अर्रा अर्रा बैया न तोड़ो ,
ओये ठहर जा भाभी , अरे अरे शराबी
क्या हो रजा गली में आजा
होली होली गाँव की गोरी ओ नखरेवाली
दूंगी मैं गली अरे साली , होली रे होली ...
वो पांच मैं अकेले...मैं समझ गया अन आर्म्ड कम्बैट मैं तो मैं जीत नहीं सकूँगा दूबे भाभी की पकड़ मैं देख चूका था...अब रीत और गुड्डी के हाथ बार्मुडा से बाहर थे लेकिन दूबे भाभी और चंदा भाभी ने आगे और संध्या भाभी ने पीछे का मोर्चा सम्हाला...
" हे संध्या जरा पकड़ के देख बोल तेरे वाले से बड़ा है की छोटा ..." चंदा भाभी ने बोला. वो नाप जोख क्या पिछली रात तीन तीन बार अन्दर ले चुकीं थी.
" अरे भाभी ये अभी बच्चा है वो मर्द हैं..." संध्या भाभी टालते हुए बोली.
" चल पकड़ वरना तुझे लिटा के अन्दर घुसेडवा के पूछूंगी...." ये दूबे भाभी थी....अब संध्या भाभी के पास कोई चारा नहीं था. दूबे भाभी ने हाथ बाहर निकाला और संध्या भाभी ने डाला.
थोड़ी देर तक वो इधर उधर करती रही.." बोल ना..." चंदा भाभी ने पुछा.
" जिसको मिलेगा ना वो बड़ी किस्मत वाली होगी.." संध्या भाभी बुदबुदा रही थीं.
मैंने रीत की ओर देखा, वो मुस्करा रही थी और उसका चेहरा चमक रहा था. उसने मेरी आँखे चार होते ही थम्स अप का साइन दिया.
" बोल ना कैसा लगा..." अब चंदा भाभी उनके पीछे पड़ गयी थीं.
संध्या भाभी ने पहले तो झिझकते झिझकते पकड़ा था लेकिन अब अच्छी तरह से और उनका अंगूठा भी सीधे सुपाडे पे...
मेरा लंड दूबे भाभी के एक्स्प्पर्ट हाथों में मुठीयाने से एकदम पागल हो गया था...खूब मोटा...
और अब बिचारी संध्या भाभी लाख कोशिश कर रही थीं लेकिन उनकी मुट्ठी में नहीं समां रहा था.
"बोल लेना है ..." चंदा भाभी चिढा रही थीं गुड्डी और रीत से कह के सोर्स लगवा दूँ..".
ना बाबा न...संध्या भाभी ने हाथ बाहर निकाल लिया...आदमी का है या गधे घोड़े का ..
" अरे तेरे आदमी का है या बच्चे का...अभी तो इसे बच्चा कह रही थी...हाँ एक बार ले लेगी ना तो तेरे मर्द में हो सकता है मजा ना आये..." दूबे भाभी अब मेरी ओर से बोल रही थीं.
लेकिन मैं समझ गया था की यही मौका है...अभी किसी का हाथ अन्दर नहीं था...गुड्डी किसी काम से अन्दर गयी थी और रीत भी कहीं...मैंने देख रखा था की टेरेस के किनारे की ओर चंदा भाभी ने कई बाल्टियों में रंग और एक दो पीतल की बड़ी लम्बी पिचकारियाँ भी रखी थीं...लेकिन हम लोग तो हाथ पे उतर आये थे ...और वहां तीन ओर से दीवार थी इसलिए जो भी हमला होगा सामने से होगा....
बस मैं उधर मुड लिया...
मैं सिर्फ बारमुड़े में था वो भी इत्ता छोटा की कमर से एक बित्ते ही नीचे होगा ..लेकिन चंदा, दूबे और संध्या भाभी भी खाली ब्रा और सायें में ..वो भी रंग में भीगने से ट्रांसपरेंट हो चुके थे. रीत भी लेसी जालीदार ब्रा और पजामी में और वो भी देह से चिपकी...
चंदा भाभी मेरी ओर बढीं ...तो मैंने उन्हें बढ़ने दिया. लेकिन जब वो एकदम पास आगई तो मैंने बाल्टी का रंग उठा के पूरी ताकत से ..सीधे उनकी रंगों में डूबी ब्रा के ऊपर ..इत्ती तेज लगी की लगा ब्रा फट ही गयी...फ्रंट ओपन ब्रा रंग के धक्के से खुल गयी थी ...और जब तक वो उसको ठीक करतीं बाकी बची बाल्टी का रंग मैंने उनके साए पे सीधे उनके बुर पे सेंटर कर के....
" निशाना बहोत सही है तम्हारा..." संध्या भाभी हंस रही थीं.
"अरे आप पास आइये ना अपनी पर्सनल पिचकारी से सफेद रंग डालूँगा...९ महीने तक असर रहेगा... " मैंने दावत दी.
" अरे इसपे डाल...ये तुम्हारी बड़ी चाहने वाली है..." उन्होंने रीत को आगे कर दिया.
मेरे तो हाथ पैर फूल गए...उन रंग से डूबी वैसे भी लेसी जालीदार हाफ कट ब्रा में उसके उभार छुप कम रहे थे दिख ज्यादा रहे थे. वो झुकी तो उसके निपल तक और उठी तो उसके नयन बाण ....
' मैं नहीं डरती हूँ ..ना इनसे ना इनकी पिचकारी से...पिचका के रख दूंगी...अपनी बाल्टी में..." हंस के जोबन उभार के वो नटखट बोली.
वो जैसे ही पास आई मैंने पिचकारी में रंग भर लिया था...और वो जैसे ही पास आई
लाल गुलाबी...छर्रर्रर...छ र्र्रर्र्रर्रर्रर ....पिचकारी की धार सीधे उसकी जालीदार ब्रा के ऊपर और अन्दर उसने हाथ से रोकने की कोशिश की तो पाजामी के सेंटर पे....
'क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी ....क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी ..
देखो कुंवरजी दूँगी में गारी , दूँगी में गारी , भिगोई मेरी सारी
भाग सकूं में कैसे , भाग नहीं जात ...भीगी मेरी सारी...."
क्रमशः.....................
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तभी गुड्डी बोली..." जाने दो यार...साल्ला बहोत चीख रहा है..."
रीत बोली " अरे यार अभी खोलने में इत्ता नखड़ा कर रहा है तो डलवाने में कित्ता करेगा...लेकिन तू कहती है तो छोड़ देती हूँ ...आखिर तेरा माल है.."
गुड्डी ने हंस के जवाब दिया..." अरे नहीं यार मॉल तो तुम्हारा है.. लेकिन देख ना कित्ता हल्ला कर रहा है जैसे हम लोगों ने उसकी बहन की..."
" अरे पूरा क्यों नहीं बोलती की ...जैसे हम लोगों ने उसकी बहन चोद दी है...लेकिन उसे तो यही चोदेगा...आखिर घर का माल है उसका हक़ है ...फिर वो नहीं चोदेगा तो कहीं न कहीं तो चुदवायेगी ही वो...तो फिरे ये मेरा यार ही क्यों..नहीं...चल तू बोलती है तो छोड देते हैं ये भी क्या याद करेगा साल्ला की बनारस में ससुराल में किन दिलदार साल्लियों से पाला पड़ा था.."
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" चल आगे से तू पीछे से मैं ..." ये रीत की शहद सी आवाज थी जो मैं सोते हुए भी पहचान सकता था.
" रीत दी..अभी आगे का क्या फायदा ...हाँ शाम के बाद बात अलग है..." मुंह बनाते हुए गुड्डी बोली "
" अरे तू भी ना यहाँ सब उसी के लिए तड़प रहे हैं ...पकड़ तो सकती है ना..." रीत ने उसे हड़काते हुए उकसाया.
और उस दुष्ट ने वही...वो भी ऊपर से नहीं सीधे बार्मुडा के अन्दर हाथ डाल के ...
रीत भी कोई कम नहीं थी..उस के दोनों हाथ मेरे टिट्स पे थे और जैसे कोई किसी लड़की के चुचुक सहलाए दबाये बस उसी तरह...और साथ में उसके आलमोस्ट खुले मस्त उभार, जिनका दीदार भी मैं कर चूका था और जिसके बारे में मैं श्योर था की सिर्फ सोच कर ...जिसके ऊपर वियाग्रा की फुल डोज भी असर ना करे , उसका भी लिंग खड़ा हो जाए...मेरे पीठ के पीछे से... कभी हलके से दबा देते कभी रगड़ देते..और आगे से गुड्डी की १६ साल की चून्चिया...जो अभी भी पूरी तरह फ्राक से बाहर थीं
आप सोच सकते हैं फागुन का मौसम हो और दो मस्त रीत और गुड्डी की तरह की किशोरियां...आगे पीछे से
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" हे पीठ पे तो तुझे रंग लगाना था ना..देख कित्ती सारीजगह बच गयी है..." रीत की आवाज मेरे कान के पास गूंजी.
' मेरी अच्छी दी..आप लगा दो न देखो मेरे हाथ अभी कित्ते जरूरी काम में बिजी हैं...प्लीज.." गुड्डी ने अदा से जवाब दिया..
" बिजी की बच्ची तेरी सारी ननदों की गांड मारू..." रीत बोली और पेंट लगे उसके हाथ मेरी पीठ पे बिजी हो गए.
" अरे दी..उसकी तो मारेंगे ही ..." खिलखिला के गुड्डी बोली और कस के मेरे लंड को दबा दिया और कहा..." जब मैं आउंगी तो इन्होने तो दूबे भाभी से वादा किया है है की उसे, अपनी बहना को ले के आयेंगे न रंग पंचमी में और कोई दिक्कत होगी तो इन्ही से मरवा लेंगे...क्यों मारोगे न...आखिर रीत का कहना तो तुम टालते नहीं..."
मैं क्या बोलता. एक से पार पाना मुश्किल था लेकिन यहाँ तो दोनों...बनारस के रस में रसी पगी, रसीली ..लेकिन तभी मेरा बल्ब जला..
" मैं एक तुम दो दो...लेकिन चलो...साल्लियों से क्या बहस करना हाँ मेंरी भी एक शर्त है...तुम दोनों लगाओ तो सही ..लेकिन हाथ का इस्तेमाल नहीं करोगी..." मैं हंस के बोला...
" तुम बहोत नखड़ा दिखाते हो...वो आएगी ना तेरी बहना...देखना एक साथ तीन तीन चढ़ेंगे उस पे...और दो वेट करेंगे तो भी वो बुरा नहीं मानेगी...और तुम दो दो पे ही.." गुड्डी ने मुंह बनाया. लेकिन रीत चतुर चालाक थी...बड़े भोलेपन से बोली...
" अरे चल मान जाते हैं यार घर आये मेहमान से ..वरना अपने मायके जा के रोयेंगे....चल...वैसे भी हमारे हाथों को बहोत से और भी काम है..."
गुड्डी भी समझ गयी.
समझा मैं भी लेकिन थोड़ी देर से...गुड्डी के उभार पे मैंने लाल गुलाबी रंग और डूबे भाभी ने जम के कालिख रगड़ी थी...और रीत के जोबन का रस तो हम सबने ( मैंने भले ही कमीज के अन्दर हाथ डाल के ), मैंने, दूबे और चंदा भाभी ने सब ने रंग लगाया था...बस उन दोनों हसीनाओं ने उन उभारों को ही हाथ बनाया ..और आगे से गुड्डी और पीछे से रीत ने कस कस के रंग लगाना, अपनी चून्चियों से शुरू कर दिया, मेरे सीने और पीठ पे...
गुड्डी की नरम हथेलियाँ तो मेरे लंड को वैसे ही तंग कर रही थीं अब रीत भी मैदान में आगई . उसका एक हाथ गुड्डी के साथ आगे और दूसरा मेरे
नितम्बों की दरार पे पीछे..
अब मेरा चर्म दंड दोनों के हाथ में बीच मैं जैसे दो ग्वालिने मिल के मथानी मथें..बस बिलकुल उसी तरह...एक ही काफी थी वहां दोनों...मेरी तो जान निकल रही थी...
और साथ में अब रीत की दो उंगली मेरी गांड की दरार में...ऊपर नीचे..रगड़ रगड़ कर.. गुड्डी का एक हाथ भी वहां पहुँच गया था वो कस कस के मेरे नितम्बो को दबा रही थी...
" अरी साल्लियों वहां नहीं...अगर मैं वहां डालूँगा ना तो बहोत चिल्लाओगी तुम..." मैं बोला...मजा जब एक सीमा के बियांड हो जाता है तो मुस्किल हो जाती है मेरी वही हालत हो रही थी..
" तब की तब देखी जायेगी अभी तो हमारा मौका है...डलवाओ चुपचाप..." गुड्डी बोली.
" हाँ जैसे ये नहीं डालने वाले..और हमारे रोकने से मान जायेंगे..." रीत बोली. उस की उंगली पिछवाड़े घुसने की कोशिश कर रही थी.
बचा मैं...दूबे भाभी की आवाज से..." सालियों , छिनार तुम दोनों को भेजा क्या बोल के था और किस काम में लग गयी..."
और अब की मेरे कुछ बोलने के पहले ही गुड्डी और रीत के हाथ मेरे टाप पे और टाप बाहर ...जो उन दोनों ने फेंका तो सीधे संध्या भाभी के ऊपर...उन का दूबे और चंदा भाभी के साथ थ्रीसम ख़तम ही हुआ था...
अब आयगा मजा ...तुम ने हम सब की ब्रा में हाथ डाल के बहोत रगडा मसला था...और अब तुम पूरे टाप लेस हो गए हो ...वो मेरे टाप को पकड़ती हुयीं बोली...
और उसके बाद तो सब की सब मेरे ऊपर ...जो हुआ वो न कहा जा सकता है न कहने लायक है...
उड़त गुलाल लाल भये बादर...
मल दे गुलाल मोहे आई होली आई रे..
चुनरी पे रंग सोहे आयो होली आई रे..
चलो सहेली,चलो सहेली -
ये पकड़ो
ये (पकड़ो इसे न छोडो
अर्रा अर्रा अर्रा बैया न तोड़ो ,
ओये ठहर जा भाभी , अरे अरे शराबी
क्या हो रजा गली में आजा
होली होली गाँव की गोरी ओ नखरेवाली
दूंगी मैं गली अरे साली , होली रे होली ...
वो पांच मैं अकेले...मैं समझ गया अन आर्म्ड कम्बैट मैं तो मैं जीत नहीं सकूँगा दूबे भाभी की पकड़ मैं देख चूका था...अब रीत और गुड्डी के हाथ बार्मुडा से बाहर थे लेकिन दूबे भाभी और चंदा भाभी ने आगे और संध्या भाभी ने पीछे का मोर्चा सम्हाला...
" हे संध्या जरा पकड़ के देख बोल तेरे वाले से बड़ा है की छोटा ..." चंदा भाभी ने बोला. वो नाप जोख क्या पिछली रात तीन तीन बार अन्दर ले चुकीं थी.
" अरे भाभी ये अभी बच्चा है वो मर्द हैं..." संध्या भाभी टालते हुए बोली.
" चल पकड़ वरना तुझे लिटा के अन्दर घुसेडवा के पूछूंगी...." ये दूबे भाभी थी....अब संध्या भाभी के पास कोई चारा नहीं था. दूबे भाभी ने हाथ बाहर निकाला और संध्या भाभी ने डाला.
थोड़ी देर तक वो इधर उधर करती रही.." बोल ना..." चंदा भाभी ने पुछा.
" जिसको मिलेगा ना वो बड़ी किस्मत वाली होगी.." संध्या भाभी बुदबुदा रही थीं.
मैंने रीत की ओर देखा, वो मुस्करा रही थी और उसका चेहरा चमक रहा था. उसने मेरी आँखे चार होते ही थम्स अप का साइन दिया.
" बोल ना कैसा लगा..." अब चंदा भाभी उनके पीछे पड़ गयी थीं.
संध्या भाभी ने पहले तो झिझकते झिझकते पकड़ा था लेकिन अब अच्छी तरह से और उनका अंगूठा भी सीधे सुपाडे पे...
मेरा लंड दूबे भाभी के एक्स्प्पर्ट हाथों में मुठीयाने से एकदम पागल हो गया था...खूब मोटा...
और अब बिचारी संध्या भाभी लाख कोशिश कर रही थीं लेकिन उनकी मुट्ठी में नहीं समां रहा था.
"बोल लेना है ..." चंदा भाभी चिढा रही थीं गुड्डी और रीत से कह के सोर्स लगवा दूँ..".
ना बाबा न...संध्या भाभी ने हाथ बाहर निकाल लिया...आदमी का है या गधे घोड़े का ..
" अरे तेरे आदमी का है या बच्चे का...अभी तो इसे बच्चा कह रही थी...हाँ एक बार ले लेगी ना तो तेरे मर्द में हो सकता है मजा ना आये..." दूबे भाभी अब मेरी ओर से बोल रही थीं.
लेकिन मैं समझ गया था की यही मौका है...अभी किसी का हाथ अन्दर नहीं था...गुड्डी किसी काम से अन्दर गयी थी और रीत भी कहीं...मैंने देख रखा था की टेरेस के किनारे की ओर चंदा भाभी ने कई बाल्टियों में रंग और एक दो पीतल की बड़ी लम्बी पिचकारियाँ भी रखी थीं...लेकिन हम लोग तो हाथ पे उतर आये थे ...और वहां तीन ओर से दीवार थी इसलिए जो भी हमला होगा सामने से होगा....
बस मैं उधर मुड लिया...
मैं सिर्फ बारमुड़े में था वो भी इत्ता छोटा की कमर से एक बित्ते ही नीचे होगा ..लेकिन चंदा, दूबे और संध्या भाभी भी खाली ब्रा और सायें में ..वो भी रंग में भीगने से ट्रांसपरेंट हो चुके थे. रीत भी लेसी जालीदार ब्रा और पजामी में और वो भी देह से चिपकी...
चंदा भाभी मेरी ओर बढीं ...तो मैंने उन्हें बढ़ने दिया. लेकिन जब वो एकदम पास आगई तो मैंने बाल्टी का रंग उठा के पूरी ताकत से ..सीधे उनकी रंगों में डूबी ब्रा के ऊपर ..इत्ती तेज लगी की लगा ब्रा फट ही गयी...फ्रंट ओपन ब्रा रंग के धक्के से खुल गयी थी ...और जब तक वो उसको ठीक करतीं बाकी बची बाल्टी का रंग मैंने उनके साए पे सीधे उनके बुर पे सेंटर कर के....
" निशाना बहोत सही है तम्हारा..." संध्या भाभी हंस रही थीं.
"अरे आप पास आइये ना अपनी पर्सनल पिचकारी से सफेद रंग डालूँगा...९ महीने तक असर रहेगा... " मैंने दावत दी.
" अरे इसपे डाल...ये तुम्हारी बड़ी चाहने वाली है..." उन्होंने रीत को आगे कर दिया.
मेरे तो हाथ पैर फूल गए...उन रंग से डूबी वैसे भी लेसी जालीदार हाफ कट ब्रा में उसके उभार छुप कम रहे थे दिख ज्यादा रहे थे. वो झुकी तो उसके निपल तक और उठी तो उसके नयन बाण ....
' मैं नहीं डरती हूँ ..ना इनसे ना इनकी पिचकारी से...पिचका के रख दूंगी...अपनी बाल्टी में..." हंस के जोबन उभार के वो नटखट बोली.
वो जैसे ही पास आई मैंने पिचकारी में रंग भर लिया था...और वो जैसे ही पास आई
लाल गुलाबी...छर्रर्रर...छ र्र्रर्र्रर्रर्रर ....पिचकारी की धार सीधे उसकी जालीदार ब्रा के ऊपर और अन्दर उसने हाथ से रोकने की कोशिश की तो पाजामी के सेंटर पे....
'क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी ....क्यों मो पे रंग की मारी पिचकारी ..
देखो कुंवरजी दूँगी में गारी , दूँगी में गारी , भिगोई मेरी सारी
भाग सकूं में कैसे , भाग नहीं जात ...भीगी मेरी सारी...."
क्रमशः.....................
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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