FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--29
गतांक से आगे ...........
फागुन के दिन चार
रंगों की बहार
बनारस का रस
फागुन का रंग
देवर भाभी का रिश्ता
मैं कौन होता था मना करने वाला. मैं भी कस के गदराये रसीले ३४ सी का मजा लूटने लगा.
नुक्सान सिर्फ एक हुआ मैं रीत की मदद को नहीं जा पाया.
लेकिन वो भी शायद फायदा ही हुआ.
रीत को दूबे भाभी और चंदा भाभी ने मिल के टाप लेस कर दिया था.
पूरी तरह नहीं लेकिन सिर्फ अब वो ब्रा में थी और अपनी प्यारी पजामी में.
उसकी लेसी ब्रा से मैंने जो उसके जोबन पे अपनी उँगलियों के निशान छोड़े थे साफ नजर आ रहे थे.
दूबे भाभी ने पहले उन निशानों की और देखा फिर मेरी और मुस्कराने लगी मानो कह रही हों , लाला तुम इतने सीधे नहीं जितने बनते हो.
रीत शरमा रही थी, लजा रही थी और होंठों में हलके हलके मुस्करा रही थी.
शायद उसके उभारों पे जो मेरी उंगलियों के निशान थे वो सबके सामने आगये , या मेरी आँखों ने पहली बार उसेक उरोजों का इस तरह रस पान किया..( भले ही उँगलियों ने उनका स्वाद चख लिया हो चोरीचोरी पहले ही) इसलिए ..मैं भी भी मंद मुस्करा रहा था.
मेरा भी एक हाथ चन्दा भाभी के उभार पे था और दूसरा साए के भीतर सीधे उनके नितम्ब पे...क्या मस्त कसे कसे चूतड थे...हाथ की एक उंगली अब सीधे दरार पे पहुँच गयी थी. बाहर से मेरा खूंटा तो पीछे से गडा ही हुआ था. मैं मौके का फायदा उठा के हलके हलके जोबन और नितम्ब दोनों का रस लूट रहा था.
दूबे भभी भी पीछे से रीत को पकडे उस के ब्रा से झांकते दोनों किशोर उभार (ब्रा उसकी भी लेसी थी...मेरी फेवरिट...पिंक लेसी ) पकड़ के मुझे ऐसे दिखा रही थीं मानों मुझे आफर कर रही हों ..और प्बिर ब्रा के ऊपर से उन्होंने रीत के निपल ऐसे अंगूठे - तर्जनी के बीच रोल करने शुरू कर दिए ...कोई मर्द भी क्या करता ...असर दो पल में सामने आगया.
रीत सिसकियाँ भर रही थी.
इंच भर के निपल एकदम खड़े हो गए थे. ब्रा के अन्दर से साफ दिख रहे थे.
रीत के आँखों में भी मानो फागुन उतर आया था ...गुलाबी नशा उन कजरारे नैनों में झलक रहा था.
मैं क्यों पीछे रहता...मैंने भी संध्या भाभी के साथ वही..कस कस के जोबन मर्दन...और निपल की पिंचिंग ..जो हाथ पीछे थे वो अब आगे गया था और पहले तो मैंने उनके गोरे गोरे खुले पेट पे खूब रंग लगाया और फिर थोडा नीचे सरक कर साए के ऊपर सी ही उनकी चुन्मुनिया को दबोच रहा था मसला रहा था...पीछे से मेरा खड़ा मस्ताया लंड उनकी गांड के बीच..
दुबे भाभी का एक हाथ अब रीत की ब्रा के अन्दर घुस गया था और वो कस के उसकी किशोर चुंचियां मसल रही थीं और मुझे दिखाते चिढाते गा रही थीं...
अरे मेरी ननदी का, अरे तुम्हारी रीत का...छोट छोट जोबन दाबे में मजा देय .....
अरे मेरी ननदी का, अरे तुम्हारी रीत का...छोट छोट जोबन दाबे में मजा देय
अरे ननदी छिनाल चोदे में मजा देय ..होली बनारस की रस लूटो राजा होली बनारस की ...[/color]
पीछे से रीत को वो ऐसे धक्के लगा रही थीं की मानो वो कोई मर्द हों और रीत की जम के हचक हचक के ....
वही हरकत अब मैं सन्धा भाभी के साथ कर रहा था ..ड्राई हम्पिंग....लेकिन रीत की और देख के मैंने जवाब दिया..
मेरी तो है ही ...रीत इसमें कोई शक
और रीत भी कम नहीं थी...बात टालने के लिए उसने अटैक डाइवर्ट किया. मेरी और इशारा करके वो बोली,
" अरे भाभी...इनका जो माल है जिसको ये ले आने वाले हैं अपने साथ उसकी साईज पूछिए ना..."
मैं कुछ बोलता उसके पहले गुड्डी ही बोल पड़ी. लगता है उसने पाला बदल लिया था और भाभियों की और चली गयी थी.
" अरे मैं बताती हूँ रीत से थोडा सा ..बस्स थोड़ा सा छोटा है....".
चंदा भाभी क्यों चुप रहती. उन्होंने गुड्डी के उभार दबा दिए और बोली...
" अरे रीत को क्यों बीच में लाती है ...ननद तो तेरी वो लगेगी ..और उस की नथ उतरवाने और यहाँ लाने का काम भी तोतेरे जिम्मे है ...तुझसे बड़ा है या छोटा.."
" बस मेरे बराबर ..समझिये..." वो चंदा भाभी के हाथों से अपने को छोडाने की असफल कोशिश करती हुयी बोली.
दूबे भाभी के दोनों हाथ अब कस के रीत की ब्रा में थे...लाल गुलाबी रंग...वो कस के दबाते मसलते बोलीं...मेरी और देख के
" अरे साइज की चिंता मत करो लाला हफ्ते दस दिन रहेगी ना यहाँ...दबा दबा के हम सब...इत्ती बड़ी कर देंगें की ..फिर उस के इत्ते यार हो जायंगे यहाँ दबाने मसलने वाले वो गिनना भूल जायेगी.."
मैं समझ गया था की अब चंदा भाभी भी मैदान में आगई हैं तो ...और उधर रीत की हालत भी खराब हो रही थी...कब उसकी ब्रा अलग हो जायेगी ये पता नहीं था...चन्दा भी उसकी पीठ पे रंग लगा रही थीं...बस खाली हुक खोलने की देरी थी या कहीं दुबे भाभी भी फाड़ ही न दें ...
रीत ने मेरी आँखों में देखा और मैंने भी उसकी आँखों में ...
बस एक ही रास्ता था...
स्ट्रेटजिक टाइम आउट
संध्या भाभी ने भी हम लोगों का इशारा समझ लिया..
संधि प्रस्ताव मैंने ही रखा..
कुछ खा पी लें....१०-१५ मिनट का ब्रेक...मैंने दूबे भाभी से रिक्वेस्ट की ...
" ठीक है लेकिन बस ५-७ मिनट .." दूबे भाभी मान गयी.
रीत सीधे टेबल के पास जहां गुझिया गुलाब जामुन , दही बड़े, ठंडाई और कोल्ड ड्रिंक्स ( सारे स्पायिकड...वोदका, रम और जिन मिले हुए...) ..पहुंची और पीछे पीछे मैं.
उसकी एक लट गोरे गाल पे आ गयी थी.
कहीं लाल कहीं गुलाबी रंग और थोड़ी लज्जा की ललाई उसके गाल को और लाल कर रहे थे.
होंठ फड़क रहे थे कुछ कहने के लिए और बिना कहे बहोत कुछ कह रहे थे. सपनों से लदी पलकें, उसके चेहरे की रंगत उसकी चाल ढाल..किसी किशोरी को अचानक जवानी का अहस्सास हो जाए, बस यूँ लग रहा था.
मैंने उसके कंधे पे हाथ रख दिया. हाफ कप ब्रा से उसके अधखुले उरोज झाँक रहे थे, जिसपे मेरे और दूबे भाभी के लगाये रंग साफ झलक रहे थे. गहरा क्लीवेज, ब्रा से निकालने को बेताब किशोर उरोज...
" हे शरमा तो नहीं रही हो..." कुछ चिढाते कुछ सीरियसली मैंने पुछा.
" शरमाऊं और तुमसे..." वो खिलखिला के हंस दी...कहीं हजार चांदी कई घंटियाँ एक साथ बज उठीं.
मेरे बेचैन बेशर्म उंगलिया..ब्रा से झांकती गोरी गुदाज गोलाइयों को सहम शाम के छुने लगीं.
वो सीरियस हो के बोली...
" तुम ना...कपडे के बिना...कुछ लोगों की निगाहें ऐसी गन्दी घिनौनी होतीं है....चाहे मैं लाख कपडे पहने रहूँ वो चाकू की तरह उन्हें छील देती हैं और ऐसा खराब लगता है की बस...जवान लड़की और कुछ पहचाने ना पहचाने मर्द की निगाह जरुर पहचान लेती है. और तुम ना जिस दिन ..हम ...मैं कोई भी कपडे ना पहनी रहूंगी ना ..तुम्हारी निगाह...इत्ती शर्म उसमें है इत्ती चाहत है...वो खुद मुझे ..मुझे मालूम है...सहलाती हुयी, मस्ती के ख़ुशी के अहस्सास से ढक देगी."
मैंने उसकी उंगलिया पकड़ लीं और उसने उन्हें हलके से दबा दिया और मेरे रंग लगे पुते चेहरे को छूती हुयी मेरे कानों में गुनगुना दी...
" डाल डाल टेसू खिले, आया है मधुमास.
मैं हूँ बैठी राह में पीया मिलन की आस."
कुछ मौसम का असर कुछ रीत की प्रीत और कुछ उसकी बातें...मैंने उसे पास में खींच लिया और मेरे दो तड़पते प्यासे हाथ सीधे अब उसके उरोजों पे...
और मैंने उसके कानों में बोला...
" फागुन आया झूम के ऋतू बसंत के साथ
तन मन हर्षित होंगे, मोदक दोनों हाथ..."
मेरे हाथों ने उसके उभारों को दबा के बाकी की बात भी कह डाली. न वो हिली ना उसने मना किया बस बड़ी बड़ी आँखे बंद हो गयी,उसके होंठ फिर काँपे और वो गा उठी,
"आने का सन्देश जब लेकर चला बसंत,
गाल गुलाबी हो गए, हो गयी पलकें बंद."
" अंग अंग में उठ रही मीठी मीठी आस
टूटेगा अब आज तो तन मन का उपवास"
अब इससे आगे क्या कहना क्या सुनना बाकी रहा गया था.
तब तक संध्या भाभी आगई और हम लोगों को देख के बोलने लगी,
" अरे तोता मैना की जोड़ी, कुछ सुध बुध है...ब्रेक किया था प्लान करने के लिए और....कैसे दुबे भाभी को.."
" बताता हु पहले ये ड्रिंक उनको दे आइये और आप भी उनके साथ ..."
एक ग्लास में मैंने रमोला स्पेशल ( जिसमें रम ज्यादा कोला कम था) और वोदका मिली लिम्का के दो ग्लास और भांग वाली गुझिया उन्हें दी और बोला कोई भी प्लान तभी सफल होगा अगर आप ये..."
" एकदम..." वो बोलीं और प्लेट लेके चल दी.
मैं और रीत देख रहे थे. शायद मैं रीत देते तो उन्हें शक भी होता लेकिन संध्या भाभी बाद में आई थीं इसलिए वो नहीं सोच सकती थी की वो भी हमारी चांडाल चौकड़ी में ज्वाइन हो गयीं होंगी.
रीत मुझसे बोली..." यार देखो जब तुम संध्या भाभी के साथ थे मैंने साथ दिया की नहीं...वो इत्ता बुलाती रही लेकिन मैं नहीं आई..."
" वो तो है.." मैंने मुस्करा के कहा.
" तो तुम भी कुछ करो यार ...मेरा हम लोगों का साथ दो ना वैसे भी तुम अब तो चंडाल चौकड़ी ज्वाइन ही कर चुके हो. " वो इसरार करते हुए बोली.
" करना है क्या बोल ना ..जान देना है...पहाड़ तोड़ना है..." मैं बोला.
" जान दें तुम्हारे दुशमन ऐसा कुछ नहीं ...अरे यार हर साल होली में दूबे भाभी हम लोगों की सारी ननदों की खूब ऐसी की तैसी करती है तो अबकी तुम साथ हो...तो..."
मैं समझ गया की मुझे ये शेरनी के सामने भेज के रहेगी.
" तो ...रीत ने फिर बात शुरू की...यार ऐसा कुछ करो ना की ...हर साल वो हम सब लोगों को टाप लेस कर देती हैं... पूरा ...और कई बार तो सब कुछ और उसके बाद...आज तुम साथ दो ना तो हम लोग भी दूबे भाभी की साडी ब्लाउज ...बहोत मजा आयेगा...."
मजा तो मुझे भी आरहा था क्योंकि दूबे भाभी ने रमोला का पूरा ग्लास डकार लिया था. और साथ में भाग मिली गुझिया.
" ओके लेकिन पहले कुछ मीठा हो जाय..." मैंने मुस्करा के कहा.
"एकदम .." और उसने प्लेट से गुलाब जामुन अपनी रसीली लम्बी उँगलियों में ले के कहा.
" उनहूँ ना ना ..ऐसे नहीं ..." उसके गुलाबी रसीले होंठो की ओर एक ललचाई शरारती बच्चे की तरह देखते मैंने कहा.
" तुम भी ना ..."मुस्करा के वो बोली. और उसने मुझे दिखाते ललचाते एक मोटा गुलाब जामुन आधा मुंह में गप्प कर लिया जैस किसी मोटे लिंग का सुपाडा हो...और फिर होंठ में उसे दबाए मेरी ओर बढ़ाया.
गुलाब जामुन के साथ मैंने उसके होंठ भी चुरा लिए.
वो गुनगुनाने लगी...
" तितली जैसी मैं उडु, चढ़ा फाग का रंग
गत आगत विस्मृत हुयी, चढ़ी नेह की भंग.
रंग अबीर गुलाल से धरती हुयी सतरंग
भीगी चुनरी रंग में अंगिया हो गयी तंग."
मैंने प्लेट में रखा गुलाल उसके चेहरे पे रंग दिया और बोला,
गली -गली रंगत भरी,कली कली सुकुमार
छली- छली-सी रह गयी, भली भली सी नार.
वो मुस्करा दी और मेरी सारी देह नेह के रंग से रंग गयी.
तब तक संध्या भाभी विजयी मुद्रा में लौटी और हम लोगों को हडकाते हुए हलकी आवाज में बोली..
" अरे तुम लोग आपस में ही होली खेलते रहोगे या जिस की प्लानिग करने थी वो भी कुछ..."
क्रमशः.....................
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फागुन के दिन चार--29
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मैं कौन होता था मना करने वाला. मैं भी कस के गदराये रसीले ३४ सी का मजा लूटने लगा.
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उसकी लेसी ब्रा से मैंने जो उसके जोबन पे अपनी उँगलियों के निशान छोड़े थे साफ नजर आ रहे थे.
दूबे भाभी ने पहले उन निशानों की और देखा फिर मेरी और मुस्कराने लगी मानो कह रही हों , लाला तुम इतने सीधे नहीं जितने बनते हो.
रीत शरमा रही थी, लजा रही थी और होंठों में हलके हलके मुस्करा रही थी.
शायद उसके उभारों पे जो मेरी उंगलियों के निशान थे वो सबके सामने आगये , या मेरी आँखों ने पहली बार उसेक उरोजों का इस तरह रस पान किया..( भले ही उँगलियों ने उनका स्वाद चख लिया हो चोरीचोरी पहले ही) इसलिए ..मैं भी भी मंद मुस्करा रहा था.
मेरा भी एक हाथ चन्दा भाभी के उभार पे था और दूसरा साए के भीतर सीधे उनके नितम्ब पे...क्या मस्त कसे कसे चूतड थे...हाथ की एक उंगली अब सीधे दरार पे पहुँच गयी थी. बाहर से मेरा खूंटा तो पीछे से गडा ही हुआ था. मैं मौके का फायदा उठा के हलके हलके जोबन और नितम्ब दोनों का रस लूट रहा था.
दूबे भभी भी पीछे से रीत को पकडे उस के ब्रा से झांकते दोनों किशोर उभार (ब्रा उसकी भी लेसी थी...मेरी फेवरिट...पिंक लेसी ) पकड़ के मुझे ऐसे दिखा रही थीं मानों मुझे आफर कर रही हों ..और प्बिर ब्रा के ऊपर से उन्होंने रीत के निपल ऐसे अंगूठे - तर्जनी के बीच रोल करने शुरू कर दिए ...कोई मर्द भी क्या करता ...असर दो पल में सामने आगया.
रीत सिसकियाँ भर रही थी.
इंच भर के निपल एकदम खड़े हो गए थे. ब्रा के अन्दर से साफ दिख रहे थे.
रीत के आँखों में भी मानो फागुन उतर आया था ...गुलाबी नशा उन कजरारे नैनों में झलक रहा था.
मैं क्यों पीछे रहता...मैंने भी संध्या भाभी के साथ वही..कस कस के जोबन मर्दन...और निपल की पिंचिंग ..जो हाथ पीछे थे वो अब आगे गया था और पहले तो मैंने उनके गोरे गोरे खुले पेट पे खूब रंग लगाया और फिर थोडा नीचे सरक कर साए के ऊपर सी ही उनकी चुन्मुनिया को दबोच रहा था मसला रहा था...पीछे से मेरा खड़ा मस्ताया लंड उनकी गांड के बीच..
दुबे भाभी का एक हाथ अब रीत की ब्रा के अन्दर घुस गया था और वो कस के उसकी किशोर चुंचियां मसल रही थीं और मुझे दिखाते चिढाते गा रही थीं...
अरे मेरी ननदी का, अरे तुम्हारी रीत का...छोट छोट जोबन दाबे में मजा देय .....
अरे मेरी ननदी का, अरे तुम्हारी रीत का...छोट छोट जोबन दाबे में मजा देय
अरे ननदी छिनाल चोदे में मजा देय ..होली बनारस की रस लूटो राजा होली बनारस की ...[/color]
पीछे से रीत को वो ऐसे धक्के लगा रही थीं की मानो वो कोई मर्द हों और रीत की जम के हचक हचक के ....
वही हरकत अब मैं सन्धा भाभी के साथ कर रहा था ..ड्राई हम्पिंग....लेकिन रीत की और देख के मैंने जवाब दिया..
मेरी तो है ही ...रीत इसमें कोई शक
और रीत भी कम नहीं थी...बात टालने के लिए उसने अटैक डाइवर्ट किया. मेरी और इशारा करके वो बोली,
" अरे भाभी...इनका जो माल है जिसको ये ले आने वाले हैं अपने साथ उसकी साईज पूछिए ना..."
मैं कुछ बोलता उसके पहले गुड्डी ही बोल पड़ी. लगता है उसने पाला बदल लिया था और भाभियों की और चली गयी थी.
" अरे मैं बताती हूँ रीत से थोडा सा ..बस्स थोड़ा सा छोटा है....".
चंदा भाभी क्यों चुप रहती. उन्होंने गुड्डी के उभार दबा दिए और बोली...
" अरे रीत को क्यों बीच में लाती है ...ननद तो तेरी वो लगेगी ..और उस की नथ उतरवाने और यहाँ लाने का काम भी तोतेरे जिम्मे है ...तुझसे बड़ा है या छोटा.."
" बस मेरे बराबर ..समझिये..." वो चंदा भाभी के हाथों से अपने को छोडाने की असफल कोशिश करती हुयी बोली.
दूबे भाभी के दोनों हाथ अब कस के रीत की ब्रा में थे...लाल गुलाबी रंग...वो कस के दबाते मसलते बोलीं...मेरी और देख के
" अरे साइज की चिंता मत करो लाला हफ्ते दस दिन रहेगी ना यहाँ...दबा दबा के हम सब...इत्ती बड़ी कर देंगें की ..फिर उस के इत्ते यार हो जायंगे यहाँ दबाने मसलने वाले वो गिनना भूल जायेगी.."
मैं समझ गया था की अब चंदा भाभी भी मैदान में आगई हैं तो ...और उधर रीत की हालत भी खराब हो रही थी...कब उसकी ब्रा अलग हो जायेगी ये पता नहीं था...चन्दा भी उसकी पीठ पे रंग लगा रही थीं...बस खाली हुक खोलने की देरी थी या कहीं दुबे भाभी भी फाड़ ही न दें ...
रीत ने मेरी आँखों में देखा और मैंने भी उसकी आँखों में ...
बस एक ही रास्ता था...
स्ट्रेटजिक टाइम आउट
संध्या भाभी ने भी हम लोगों का इशारा समझ लिया..
संधि प्रस्ताव मैंने ही रखा..
कुछ खा पी लें....१०-१५ मिनट का ब्रेक...मैंने दूबे भाभी से रिक्वेस्ट की ...
" ठीक है लेकिन बस ५-७ मिनट .." दूबे भाभी मान गयी.
रीत सीधे टेबल के पास जहां गुझिया गुलाब जामुन , दही बड़े, ठंडाई और कोल्ड ड्रिंक्स ( सारे स्पायिकड...वोदका, रम और जिन मिले हुए...) ..पहुंची और पीछे पीछे मैं.
उसकी एक लट गोरे गाल पे आ गयी थी.
कहीं लाल कहीं गुलाबी रंग और थोड़ी लज्जा की ललाई उसके गाल को और लाल कर रहे थे.
होंठ फड़क रहे थे कुछ कहने के लिए और बिना कहे बहोत कुछ कह रहे थे. सपनों से लदी पलकें, उसके चेहरे की रंगत उसकी चाल ढाल..किसी किशोरी को अचानक जवानी का अहस्सास हो जाए, बस यूँ लग रहा था.
मैंने उसके कंधे पे हाथ रख दिया. हाफ कप ब्रा से उसके अधखुले उरोज झाँक रहे थे, जिसपे मेरे और दूबे भाभी के लगाये रंग साफ झलक रहे थे. गहरा क्लीवेज, ब्रा से निकालने को बेताब किशोर उरोज...
" हे शरमा तो नहीं रही हो..." कुछ चिढाते कुछ सीरियसली मैंने पुछा.
" शरमाऊं और तुमसे..." वो खिलखिला के हंस दी...कहीं हजार चांदी कई घंटियाँ एक साथ बज उठीं.
मेरे बेचैन बेशर्म उंगलिया..ब्रा से झांकती गोरी गुदाज गोलाइयों को सहम शाम के छुने लगीं.
वो सीरियस हो के बोली...
" तुम ना...कपडे के बिना...कुछ लोगों की निगाहें ऐसी गन्दी घिनौनी होतीं है....चाहे मैं लाख कपडे पहने रहूँ वो चाकू की तरह उन्हें छील देती हैं और ऐसा खराब लगता है की बस...जवान लड़की और कुछ पहचाने ना पहचाने मर्द की निगाह जरुर पहचान लेती है. और तुम ना जिस दिन ..हम ...मैं कोई भी कपडे ना पहनी रहूंगी ना ..तुम्हारी निगाह...इत्ती शर्म उसमें है इत्ती चाहत है...वो खुद मुझे ..मुझे मालूम है...सहलाती हुयी, मस्ती के ख़ुशी के अहस्सास से ढक देगी."
मैंने उसकी उंगलिया पकड़ लीं और उसने उन्हें हलके से दबा दिया और मेरे रंग लगे पुते चेहरे को छूती हुयी मेरे कानों में गुनगुना दी...
" डाल डाल टेसू खिले, आया है मधुमास.
मैं हूँ बैठी राह में पीया मिलन की आस."
कुछ मौसम का असर कुछ रीत की प्रीत और कुछ उसकी बातें...मैंने उसे पास में खींच लिया और मेरे दो तड़पते प्यासे हाथ सीधे अब उसके उरोजों पे...
और मैंने उसके कानों में बोला...
" फागुन आया झूम के ऋतू बसंत के साथ
तन मन हर्षित होंगे, मोदक दोनों हाथ..."
मेरे हाथों ने उसके उभारों को दबा के बाकी की बात भी कह डाली. न वो हिली ना उसने मना किया बस बड़ी बड़ी आँखे बंद हो गयी,उसके होंठ फिर काँपे और वो गा उठी,
"आने का सन्देश जब लेकर चला बसंत,
गाल गुलाबी हो गए, हो गयी पलकें बंद."
" अंग अंग में उठ रही मीठी मीठी आस
टूटेगा अब आज तो तन मन का उपवास"
अब इससे आगे क्या कहना क्या सुनना बाकी रहा गया था.
तब तक संध्या भाभी आगई और हम लोगों को देख के बोलने लगी,
" अरे तोता मैना की जोड़ी, कुछ सुध बुध है...ब्रेक किया था प्लान करने के लिए और....कैसे दुबे भाभी को.."
" बताता हु पहले ये ड्रिंक उनको दे आइये और आप भी उनके साथ ..."
एक ग्लास में मैंने रमोला स्पेशल ( जिसमें रम ज्यादा कोला कम था) और वोदका मिली लिम्का के दो ग्लास और भांग वाली गुझिया उन्हें दी और बोला कोई भी प्लान तभी सफल होगा अगर आप ये..."
" एकदम..." वो बोलीं और प्लेट लेके चल दी.
मैं और रीत देख रहे थे. शायद मैं रीत देते तो उन्हें शक भी होता लेकिन संध्या भाभी बाद में आई थीं इसलिए वो नहीं सोच सकती थी की वो भी हमारी चांडाल चौकड़ी में ज्वाइन हो गयीं होंगी.
रीत मुझसे बोली..." यार देखो जब तुम संध्या भाभी के साथ थे मैंने साथ दिया की नहीं...वो इत्ता बुलाती रही लेकिन मैं नहीं आई..."
" वो तो है.." मैंने मुस्करा के कहा.
" तो तुम भी कुछ करो यार ...मेरा हम लोगों का साथ दो ना वैसे भी तुम अब तो चंडाल चौकड़ी ज्वाइन ही कर चुके हो. " वो इसरार करते हुए बोली.
" करना है क्या बोल ना ..जान देना है...पहाड़ तोड़ना है..." मैं बोला.
" जान दें तुम्हारे दुशमन ऐसा कुछ नहीं ...अरे यार हर साल होली में दूबे भाभी हम लोगों की सारी ननदों की खूब ऐसी की तैसी करती है तो अबकी तुम साथ हो...तो..."
मैं समझ गया की मुझे ये शेरनी के सामने भेज के रहेगी.
" तो ...रीत ने फिर बात शुरू की...यार ऐसा कुछ करो ना की ...हर साल वो हम सब लोगों को टाप लेस कर देती हैं... पूरा ...और कई बार तो सब कुछ और उसके बाद...आज तुम साथ दो ना तो हम लोग भी दूबे भाभी की साडी ब्लाउज ...बहोत मजा आयेगा...."
मजा तो मुझे भी आरहा था क्योंकि दूबे भाभी ने रमोला का पूरा ग्लास डकार लिया था. और साथ में भाग मिली गुझिया.
" ओके लेकिन पहले कुछ मीठा हो जाय..." मैंने मुस्करा के कहा.
"एकदम .." और उसने प्लेट से गुलाब जामुन अपनी रसीली लम्बी उँगलियों में ले के कहा.
" उनहूँ ना ना ..ऐसे नहीं ..." उसके गुलाबी रसीले होंठो की ओर एक ललचाई शरारती बच्चे की तरह देखते मैंने कहा.
" तुम भी ना ..."मुस्करा के वो बोली. और उसने मुझे दिखाते ललचाते एक मोटा गुलाब जामुन आधा मुंह में गप्प कर लिया जैस किसी मोटे लिंग का सुपाडा हो...और फिर होंठ में उसे दबाए मेरी ओर बढ़ाया.
गुलाब जामुन के साथ मैंने उसके होंठ भी चुरा लिए.
वो गुनगुनाने लगी...
" तितली जैसी मैं उडु, चढ़ा फाग का रंग
गत आगत विस्मृत हुयी, चढ़ी नेह की भंग.
रंग अबीर गुलाल से धरती हुयी सतरंग
भीगी चुनरी रंग में अंगिया हो गयी तंग."
मैंने प्लेट में रखा गुलाल उसके चेहरे पे रंग दिया और बोला,
गली -गली रंगत भरी,कली कली सुकुमार
छली- छली-सी रह गयी, भली भली सी नार.
वो मुस्करा दी और मेरी सारी देह नेह के रंग से रंग गयी.
तब तक संध्या भाभी विजयी मुद्रा में लौटी और हम लोगों को हडकाते हुए हलकी आवाज में बोली..
" अरे तुम लोग आपस में ही होली खेलते रहोगे या जिस की प्लानिग करने थी वो भी कुछ..."
क्रमशः.....................
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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