Thursday, February 27, 2014

FUN-MAZA-MASTI फागुन के दिन चार--46

FUN-MAZA-MASTI

 फागुन के दिन चार--46
गतांक से आगे ...........
उयीई वो चीखी...कुछ दर्द से कुछ अदा से...फिर गुड्डी को देख के बोली...देख दीदी जीजू ने काट लिया...कटखने...

गुड्डी उसे देखती मुस्कराती रही और बोली...तुम सबसे छोटी साली हो..तुम जानो ये जाने...बिचारे तुम्हारे आने का वेट कर रहे थे तो कुछ तो...

मैं उन दोनों की चाल समझ गया.

" हे रंग वंग नहीं ..बहुत मुश्किल से तो मैं नहाया हूँ और फिर अभी जाना भी है देर हो रही है...और तुम तो सब जगह रंगवा के आ गयी हो मेरे लिए कोई जगह बची भी है क्या.." मैं बोला.

सीढ़ी का दरवाजा बंद था..और गुड्डी वहां मुस्तैद चौकीदार की तरह खडी थी. खिस्स से हँसते हुए वो बोली..." क्यों क्या तुमने सब जगह लगवा लिया है ...कोई जगह अपने जीजू के लिए बचा कर नहीं रखी."
और हम दोनों की एक साथ चमकी. और हम दोनों एक साथ बोले.

" ठीक है जीजू..मैं सिर्फ आपके कपड़ों के अन्दर लगाउंगी...जहाँ कोई नहीं देख पायेगा...हाँ गुड्डी दीदी की बात और है..." गूंजा शैतानी से बोली.
" मैं वही लगाऊंगा...जहाँ रंग नहीं लगा है..हाँ पहले ढूँढना पड़ेगा..." मैं बोला और मेरे बाएं हाथ ने पीछे से उसकी दोनों कलाइयाँ कस के पकड़ लीं. मेरा दायाँ हाथ उसके सफेद स्कूल युनिफोर्म के टाप के अन्दर घुस गया...और उसे स्कर्ट से बाहर कर दिया. गोरे गोरे पेट भी रंग के कुछ छींटे थे ...तो इसका मतलब...कपड़ों के अन्दर भी होली हुयी.
मेरी हथेली थोड़ी और ऊपर बढ़ी...और उसके टीन ब्रा में घुस के चूजे को गपुच लिया.

" जीजू हाथ छोडिये ना..." गूंजा बोली.
" और क्या हाथ क्यों पकडे हो हाथ पकड़ने की नहीं होती..." गुड्डी भी गूंजा के साथ हो गयी थी..साथ में उसने मुझे कस के आँख मार दी. मैं समझ गया और मैंने हाथ छोड़ दिया. कबूतर के बच्चों को पकड़ने के लिए मुझा दूसरा हाथ भी तो खाली करना था ना..और वो हाथ भी टीन ब्रा के अन्दर घुस गया.

" देखूं यहाँ रंग लगा है की नहीं और मैंने उसकी ब्रा ऊपर पुश कर दी...टाप तो पहले ही खुल गया था .दोनों कबूतर के बच्चे उछल के बाहर आ गए. गोरे गोरे छोटे छोटे...लेकिन इतने छोटे भी नहीं. बाला जोबन का मजा ही और है...नवांकुरित उरोज...उसकी एक अलग आभा अलग रूप होता है...और आज जवानी की दहलीज पे कदम रखते वो ...मेरी मुट्ठी में थे. हलके हलके मैंने हथेली को पहले प्रेस किया और फिर थोडा सहलाया...उसका असर गुंजा पे तुरत दिखना शुरू हो गया....बालेपन से योवन की और आज मैं उसे ऊँगली पकड़ के ले जारहा था. रुई के फाहे ऐसे मुलायम जैसे लग रहा था मेरी मुट्टी में दो बादल आ गए हों.

मैंने इधर उधर देखा....गुड्डी मेरी परेशानी समझ गयी थी की मैं रंग ढूंढ रहा हूँ...वो वहीँ से बोली..." अरे साल्ली से होली खेलने के लिए रंग की जरुरत कब से पड़ने लगी..."
अब इससे ज्यादा कोई क्या इशारा देता...
मेरे होंठ बस उग रहे टिट्स पर पहुँच गए...एक पल के लिए मैं ठिठका लेकिन अब मेरे होंठ मेरे कंट्रोल में थोड़े ही थे. चूमना,. चाटना, चूसना
गूंजा ने थोडा सा तो नखड़ा किया लेकिन वो कौन सी चूंची हो गी जो होंठों के सामने पिघल ना जाए..
वो भी सिसकियाँ भरने लगी...उसका चेहरा जवानी की मस्ती से चूर हो गया था..आँखे बार बार बंद हो रही थीं. एक उभार मेरे हाथों में था और दूसरा मेरे होंठों के बीच...गुड्डी से थोड़ी ही छोटी रही होंगी गूंजा की चून्चियां. मैं कस क्यों कस के मसल रहा था चूस भी रहा था....आखिर मेरी सबसे छोटी साल्ली जो थी. लेकिन गुड्डी ने अब गूंजा को उकसाया..," अरे तेरे जीजू अकेले अकेले होली खेलेंगे ....तू क्यों देख रही है..वो क्या सोचेंगे ..बनारस की साल्लियाँ...."

गूंजा ने नीचे देखा..पैंट तना तो था ही जिप भी खुली थी बस उसने आव ना देखा ताव और अन्दर हाथ डाल दिया...उसके हाथ डालने की देरी थी स्प्रिंग के चाकू ऐसा मेरा लंड फुंफकारते हुए खुद बाहर आ गया. गुंजा गुड्डी और रीत से किसी मामले में कम नहीं थी. वो तो मैं सुबह ब्रेकफास्ट की टेबल पे देख ही चूका था.. अभी भी सोच सोच के मुंह में मिर्चे छरछराने लगती थीं. स्कर्ट ले किस कोने से उसने रंग निकला हाथ पर मला मैं देख नहीं पाया. गनीमत थी की मैं तबतक मेज पर पड़े सुबह के बचे रंगों की पुडिया देख चूका था और मेरे हाथ भी रंग लगे तैयार हो चुके थे. बिना किसी झिझक, स्जर्म या देर लगाए गूंजा ने सीधे मेरा लंड पकड़ा और मैंने एक बार फिर से गूंजा की चुन्चिया उठान वाली चूंची.
न वो पीछे हटने वाली थी न मैं...होली अब एक बार फिर जम के शुर्रू हो चुकी थी. मेरे एक हाथ ने नीचे का रुख किया और सीधे स्कर्ट उठा के उसके गोल गोल कटाव वाले नितम्बो पे रंग लगाने लगा और दूसरा कुछ देर बाद आगे जांघो के बीच. .बस मुझे तो जिस कारून के खजाने की तलाश थी वो मिल गया...पहले सीधे हथेली के बीच उसे हलके हलके दबाया और फिर चारों ओर उंगलियाँ सहलायीं...झांटे बस अभी निकलना शुरू हुयीं थी..उसने साफ कर ली थी लेकिन एक दो सुनहले बाल इधर उधर मुश्किल से दिख रहे थे.

कुछ देर प्यार दिखाने के बाद मेरा एक अंगूठा सीधे क्लिट और मंझली और तर्जनी के बीच उसकी कच्ची कली के पपोटों को रगड़ने मसलने लगी. वो उचक रही थी, सिसक रही थी मचल रही थी. लेकिन इस बीच मेरे लन्ड को पकड़ने, रगड़ने और रंगने में गूंजा ने कोई कसर नहीं छोड़ी. वो दबा ही रही थी...बीच बीच में मुठिया भी रही थी. तभी कुछ आहट हुयी...जो पहले ने मुझे रीत ने बता रखी थी. और सीढियों पर हलके क़दमों की आहट. लंड मेरा एक मिनट में पैंट में गया और उतनी ही देर में गूंजा बाथरूम में. सिर्फ चंदा भाभी थीं. बाकी लोग अपने अपने घर रह गए थे. रीत ने जरूर भाभी को बोला था की जब मैं जाऊं तो उसे बता दिया जाय ...
" क्यों गुंजा नहीं आई अभी..." चंदा भाभी ने पुछा...
" आ गयी थी लेकिन नहाने गयी है.." गुड्डी ने बताया.
" अरे इनको तो देख के लग नहीं रहा है..." हंसते हुए चंदा भाभी बोलीं. मेरे चेहरे और कपडे पर रंग के कुछ ताजे दाग नहीं थे इसलिए. उन्हें कौन बताये की सारे रंग तो उसने मेरे लंड पे इस्तेमाल कर दिए..."
गुड्डी भी ऐसे अनजान बन रही थी जैसे उसे कुछ मालूम ही ना हो.
" आजकल की लड़कियां ..चंदा भाभी बोल रही थीं...मेरा जमाना होता तो जीजा आये होते फागुन के मौसम में...तो स्कूल ही नहीं जातीं. "
उन्हें कौन बताए की आजकल की लड़कियां उन लोगों से भी दो हाथ आगे हैं.

अच्छा मैं जरा कुछ सामान दे रही हूँ ले जाने ले लिए ....तुम्हारे साथ..." वो बोलीं.
" नहीं भाभी नहीं...बेकार कहाँ..." मैंने मना किया...
" तुम ना ...तुम्हे तो लड़की होना चाहिए था...हर बात पर ना करते हो...." वो बोलीं और अपने कमरे में चल दीं.
" अच्छा आप देवर भाभी सलट लीजिये मैं जा के अपना सामान लाती हूँ और गुड्डी चल दी.
मैं भी भाभी के पीछे पीछे उनके कमरे में...चंदा भाभी ने अपनी ननद या मेरी भाभी के लिए गुलाब जामुन , गुझिया ( कहने की जरुरत नहीं सब भांग वाली थीं) इत्यादि दी. और फिर एक आलमारी खोल के बोलीं ..अरे तेरा सामान भी तो दे दूँ.तुझे मायके में बहूत जरुरत पड़ेगी. उन्होंने फिर वो स्पेशल सांडे का तेल जिसका इस्तेमाल उन्होंने इम्रे ऊपर कल रात को किया था...
.वो शिलाजीत और ना जाने क्या क्या पड़ा लड्डू जिसका असर उनके हिसाब से वियाग्रा से भी दूना होता है वो सब दिया और समझाया भी. फिर उन्होंने अपना लाकर खोल के एक छोटी सी परफ्यूम की शीशी दी और कहा की की उसकी एक बूँद भी लड़की को लगा दो तो वो पागल हो जायेगी, बिना चुदवाये छोड़ेगी नहीं.
तब तक गुड्डी अपना सामान लेके आ गयी थी.
उन्होंने उसके कान में सब कुछ समझाया और कहने लगी की हम लोग खाना खा के जायं..
" नहीं भाभी...इतना गुझिया, दही बड़ा मिठाई सब कुछ तो खाया है...
मैंने मना किया . गुड्डी ने भी ना ना में सर हिलाया.
" अरे आगरा का पेठा, बनारस की रबड़ी
बलिया का सत्तू, आजमगढ़ की खिचड़ी ....


दा भाभी ने हंस के गाया और बोली...
“रबड़ी छोड़ के जा रही हो कल से खिचड़ी खाना..सटासट सटासट ..."

" अरे भाभी कल से क्यों आज रात से ही...इतना इंतज़ार क्यों कराएंगी बिचारी को...." मैं हंस के बोला.
"क्यों, गयी तुम्हारी सहेली..ठीक हो गया पेट खिचड़ी खाने को..." चंदा भाभी ने गुड्डी को चिढाया.
गुड्डी शरमा गयी और झिझकते हुए बोली...धत्त ...हाँ..
तब तक गुंजा नहा के निकल आई थी और बोली की वो जा के रीत को बुला के आ रही है.
अब सिर्फ मैं, गुड्डी और चंदा भाभी छत पे थे.
"भाभी जरा इस को कुछ समझा दीजिये की कैसे ..क्या ..." मैंने गुड्डी की ओर देखते हुए चंदा भाभी से बोला.
वो लेकिन अब की नहीं शरमाई और चंदा भाभी ने भी उसी का साथ दिया...
" इसे क्या समझाना है...तुम्ही पीछे हट जाते हो शर्मा के...बोलोगे जाने दो कल ..और जो करना है वो तुम्हे करना है...इस बिचारी को क्या करना है." चंदा भाभी गुड्डी के पास जा के खडी हो गयीं और उसके कंधे पे हाथ रख के बोलीं
" और क्या..." हिम्मत पा के गुड्डी भी बोली...
" तो राजी...हो आज हो जाय..." मैंने छेड़ा.

गुड्डी अब फिर बीर बहूटी हो गयी और हलके से बोला..." धत्त मैंने ऐसा तो नहीं कहा..." और थोड़ी हिम्मत बटोर के..चंदा भाभी की ओर देख के बोली...
" कपडे लौटा दिए है ना इस लिए बोल रहे है...बनारस की लड़कियां इतनी सीधी भोली भाली होती हैं...तभी लेकिन तुम्हारा मोबाइल, पर्स कार्ड अभी भी मेरे पास है...रिक्शे का पैसा भी नहीं दूंगी..समझे..."

मैं कुछ बोलता उसके पहले रीत आगई और साथ में गूंजा भी. गूंजा बिली, " दूबे भाभी ने बोला है की जीजू को बोलना ५ मिनट रुकेंगे वो भी आ रही हैं...'
लेकिन मेरे आँख कान रीत से चिपके थे.

पक्की कैटरीना कैफ...हरे रंग का इम्ब्रायडर किया हुआ धानी कुरता और एक बहोत टाईट पजामी...

मेरी ओर देख के मुस्कराई और गुड्डी के कान में कुछ बोला,
गुड्डी गुलाल हो गयी. लेकिन न में सर हिलाया.

( बाद में बहोत हाथ पैर जोड़ने पे गुड्डी ने बताया रीत ने उससे पुछा था...वैसलीन रखा है की नहीं...) रीत मेरे पास आई और मेरी ओर देख के चंदा भाभी से पुछा हे कुछ गड़बड़ लग रहा है ना...कुछ मिसिंग है...और बिना उंनके जवाब का इंतजार किये मुझे हड़काया...
" शर्त के अन्दर कुछ नहीं पहना...ऐसे बाहर जाओगे झलकाते हुए वो भी मेरी छोटी बहन के साथ नाक कटवाओगे हम लोगों की...तुम्हारे उस खिचड़ी वाले शहर में तुम्हारी बहने बिना अन्दर कुछ पहने झलकाती घूमती होंगी यहाँ ये नहीं होता..."
सब लोग अपनी मुस्कान दबाए हुए थे सिवाय मेरे. घबडा के मैं बोला...
" लेकिन लेकिन मेरे पास वो तो कल गुड्डी ने...आप ही ने तो ..."
" क्या गुड्डी गुड्डी रट रहे हो...मैंने कुछ पहनाया नहीं था तुम्हे...कहाँ है वो तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी उसे उतारने की..."
अब मैं समझा उस की शरारत.
गुड्डी ने गूंजा को पास पड़ी रंग में लथपथ ब्रा की ओर इशारा किया..जिसे रीत ने होली के श्रृंगार के समय पहनाया था लेकिन मैंने बाद में उतार दिया था.

गूंजा ने छोटी साली का हक़ अदा किया. झट से उसने मेरी शर्ट उतार के फिर से ब्रा पहनाई और फिर से शर्ट..और रीत की ओर देखती बोली..." लेकिन दी अभी भी कुछ कमी लग रही है "
रीत ने उसकी पीठ पे कस के धौल जमाते हुए कहा "तो तू सबसे छोटी साल्ली किस ख़ुशी में बनी है खाली मलाई खाने के लिए जा...पूरा कर..." और जब तक मैं समझूँ गुंजा अन्दर से दो रंग भरे गुब्बारे ले आई और फिर से ब्रा के अन्दर...

मैं लाख चीखता चिल्लाता रहा ..लेकिन कौन सुनता बल्कि अब चंदा भाभी भी उन्ही के साथ ..." अरे लाला फागुन का टाइम है लोग सोचेंगे कोई जोगीड़ा का लौंडा है.."
दूबे भाभी भी आ गयीं. सबको नमस्कार करके जब मैं चलने के लिए हुआ तो दूबे भाभी ने याद दिलाया...
" हे अपने उस माल को साथ लाना मत भूलना...और रंग पंचमी से दो दिन पहले..." और रीत से बोली अरे पाहून जा रहे हैं जाने से पहले पानी पिला के भेजना चाहिए सगुन होता है है आज कल की लड़कियां ..."
रीत ने गूंजा के कान में कुछ कहा और मुझसे गले मिलते हुए बोली...मिलते हैं ब्रेक के बाद...
हाँ चार पांच दिन की बात है फिर तो मैं वापस ..मैं भी बोला..

" नहीं नहीं मेरी आँख फड़क रही है...मुझे तो लगता है शाम तक फिर मुलाक़ात और ..." वो मेरे कान में मुझे चिपकाए हए बोली...
गुड्डी सामन ले के बाहर निकल चुकी थी. जैसे ही मैं निकला गूंजा ने पानी का ग्लास रीत को पकड़ा दिया.
..
" लीजिये साली के हाथ का पानी पी के जाइए ..."


और जैसे मैं ने हाथ बढाया उस दुष्ट ने पूरा ग्लास मेरे ऊपर ...गाढ़ा लाल गुलाबी रंग...
अरे ठीक है होली का प्रसाद है...चलिए...चंदा भाभी बोलीं.


मैं गुड्डी के साथ बाहर निकल आया लेकिन मुझे लग रहा था मेरा कुछ वहीँ छूट गया है...रीत की बात भी याद आ रही थी...आँख फड़कने वाली...
मैं गुड्डी के साथ बाहर निकल आया लेकिन मुझे लग रहा था मेरा कुछ वहीँ छूट गया है...रीत की बात भी याद आ रही थी...आँख फड़कने वाली...
क्रमशः.....................











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