FUN-MAZA-MASTI
फागुन के दिन चार--31
गतांक से आगे ...........
" क्या चीज़ है राज्जा ...साल्ला...इत्ता बडा तो मैने आज तक नही देखा...मस्त लम्ब मोटा भी कडा भी..."
दूबे भाभी बुदबुदा रही थीं. बिना बार्मुडा से हाथ निकाले मेरी ओर देख के मुस्कराते वो बोलीं..." साल्ले, हरामी के जने, ये गदहे ऐसा कहीं गदहे का जना या घोडे का ....तो नही है..."
गुड्डी ने चन्दा भाभी के पास से ही आवाज लगाई..." अरे इनका वो माल...इनकी जो ममेरी बहन जहां रहती है ना...उस गली के बाहर ...वो गदहों वाली गली के नाम से ही मशहूर है."
सन्ध्या भाभी ने भी टुकडा लगाया, अरे तो गदहा इसका मामा हुआ फिर तो...
" तो फिर इसके मामा का असर इसका मतलब साल्ले तू खानदानी पैदायशी बहन चोद है, फिर अबतक क्यों छोड रखा था उस साल्ली को..." दूबे भाभी अपने अन्दाज मे मुझे मुठियाते बोल रही थीं. मेरा सुपाडा जैसे चन्दा भाभी ने कल रात सिखाया था मैने खोल रखा था मोटा पहाडी आलू जैसा...दूबे भाभी के हाथ तो लन्ड के बेस पे थे लेकिन अन्गुठा...सुपाडे को रगड रहा था.
मेरा एक हाथ उनके ब्लाउज में था...
गोरे गुदाज,गद्रराये और भरे भरे....मेरी मुट्ठी में नहीं समा पा रहे थे. लेकिन उनका टच....एक्दम मस्त...इत्ते बडॆ होने के बाद भी एक्दम कडे कडे जरा भी ढिलाई नहीं....और दोनों चून्चीयों के बीच की गहराय़ी भी...जैसे दो पहाडियों के भिच एक खूबसूरत खाईं हो...ऐसे जोबन ना सिर्प देखने, छूने, दबाने और चूसने में मस्त होते हैं बल्की जो आज तक मैने सिर्फ ब्लू फिल्मॊं में देखा था और मेरा एक सपना था...चूंची चुदाई का....दो गदराई मांसल चूंचीय़ों के बीच अपना लंड डाल के रगडने का...वो बस दूबे भाभी के उरोजों के साथ पूरा हो सकता था. भाई की पीठ भी अत्यन्त चिकनी थी और बीच में गह्ररी...केले के पत्ते कि तरह..काम सूत्र में लिखा है कि ऐसे महिलायें अत्यन्त कामुक होती हैं , रात दिन सेक्स के बारे मेन हि सोचती हैं और दीर्घ लिंग के लिये कुछ भी कर सकती हैं. उन्हे सिर्फ अश्व जाति के पुरुष सन्तुष्ट कर सकते हैं....जैसा मैं था. मेरा हाथ पीठ से सरककर नीचे चला गया सीधे साये के अन्दर ...ओह ओह्ह ..क्या मस्त चूतड थे....खूब भरे भरे एक दम कडे और मांसल...उसे छूते ही मेरा जन्ग बहादुर ९० डिग्री का हो गया.
दूबे भाभी समझ गयी कि उनके नितम्बों ने मेरे उपर क्या असर किया. सिर्फ देख के मेरी ऐसी कि तैसी हो जाती थी उस ४०+ चूतड को और स्पर्श से तो हालत खराब होनी ही थी. समझ
दूबे भाभी ने एक दो बार कस के मेरे पूरे तन्नाये लन्ड को आगे पीछे किया और जैसे उसी से बातें कर रही हों , बोलीं,
" क्यों मुन्ना , बहोत मन कर रहा है पिछ्वाडे का...लगता है पिछवाडे के बडे रसिया हो कभी मजा लिया है गोल दरवाजे का कि नहीं...."
" नहीं भाभी...कभी नहीं लिया और पिछ्वाडे के साथ उपर की मन्जिल का भी.." ये कह के मैने कस के उनकी चूंची दबा दी.
" तुम रंग पंचमी में तो आओगे ना..." वो फुस्फुसा के बोलीं.
" हाँ ...अब तो आना ही पडॆगा," मैने जोश मेन कस के उनके निपल को पिन्च करते हुये कहा.
" अरे एक दो दिन पहले आ जाना....असली होली तो तभी होगी...पूरा खजाना लूटा दुंगी...उपर नीचे आगे पीछे..सब कुछ."
खूश होके मैने इत्ते जोर से जोबन मर्दन किया की उनके ब्लाउज कि दो चुट्पूटिय़ा बटन...चट चट खुल गयीं.
लेकिन दूबे भाभी को इसकि पर्वाह नहीं थी. वो मेरे खडे लन्ड के सुपाडे को अपने अंगुठे से कस के दबा रहीं थीं और बोल रही थीं..
" इस रसगुल्ले का तो मैं पूरा रस निचोड लुंगी. हां ....लेकिन अपनी उस ममेरी बहन को साथ लाना मत भूलना.."
" नहीं भाभी..." मैं भी किसी और दुनिया में खोया हुआ था. मेरि रंग लगी उंगली उनकी गांड की दरार में थी और हल्के हल्के आगे पीछे हो रहा था. उनकी गांड इस तरह उसे कस के दबोचे थी कि ..बस अब बिना डलवाये छोडेगी नहीं.
भाभी की भी रस सिद्ध उंगलीयां, रस से भरी मेरे पी होल पे तर्जनी के नाखून से...छेड रही थीं.
मैं मारे जोश के इतना गिन्गिनाया कि मैने कच्कचा के उनकी चून्ची और कस के दबा दी ..और एक चुट्पुटिया बटन और गया.
भाभी इन सबसे बे परवाह मेरे गोरे लिन्ग को अपने हाथ से कालिख मल के काला भुजन्ग बनाने में लगी थीं.
लेकिन तभी मैने दो बातें नोटिस कीं...
एक ..उनके ब्लाउज कि अब सिर्फ एक चुट्पुटिया बटन बची है जो बडी मुश्किल से उनके भारी उरोजो को सम्हाले है.
दूसरी ...रीत ने भी यही बात नोटिस की है और मुझे उनके ब्लाउज की ओर इशारा कर रही है...
मैं समझ गया की वो क्या चाह्ती है. खतरा तो बहोत था...लेकिन रीत के लिये मैं शेरनी की मांद में घुस सकता था....( आखिर मुझे उसकी मांद में जो घुसना था.)...मैने मुस्करा के हामी भरी.
मेरा एक हाथ अब पिछ्वाडे से निकल के उनके चिकने गोरे पेट पे...और वहां से रंग लगाते सीधे नीचे से ब्लाउज की आखिरी चुट्पुटिया बटन पे...
मैने भाभी के इअर लोब्स पे अपने होन्ठ हल्के से लगाये और बोला,
" भाभी क्या जादू है आपके हाथ में...अगर हाथ में ये हाल है तो..."
मेरी बात काट के वो कस कस के दबाते मसलते बोलीं," अरे साल्ले निचोड के रख दुन्गी..आगे से भी पीछे से भी...समझ जाओगे जिन्दगी का मजा क्या है...हा बस उसको साथ ले आना मत भूलना...वरना तडपा के रख दुन्गी...कुछ नहीं मिलेगा."
और इसी के साथ आखीरी बटन भी ब्लाउज का टूट गया...और पलक झपकते ब्लाउज मेरे हाथ में...
रूपा साफ्ट्लाइन क्वीन साइज में दो रंगे पंख वाले छटपटाते कबूतर...
" अर्रे साल्ले बहन चोद अपनी बहन के भंडुये, गांडू..." दूबे भाभी गालियां तो दे रही थीं लेकिन जिस तरह से मुस्करा रही थीं मैं समझ गया...उन्होने ज्यादा बुरा नहीं मान है और उनका रंग पंचंमी का आफर स्टैन्ड कर रहा है..सबजेक्ट टू टर्म्स ऐंड कंडीशन्स....
दूबे भाभी मेरे हाथ से ब्लाउज छीनने के लिये झपटीं...लेकिन चतुर चालाक रीत पहले ही टेरैस के दूसरे कोने पे खडी थी और बोल रही थी...थ्रो..थ्रो....
उसकी बात टालने का सवाल ही नहीं था...फिर दूबे भाभी भी करीब आ गयी थीं.
मैने जोर लगा के फेंका.
और रीत ने कैच कर लिया ( वो कोई हमारी क्रिकेट टीम की खिलाडी तो थी नहीं),
मैं अब दूर खडा होके पकडा पकडी देख रहा था.
रीत ...वो हिरणी उसे पकडना आसान नहीं था...लम्बी लम्बी टांगे...चपल फुर्तीली...( लोग उसे झूठ में ही कैट नहीं कहते थे...)
लेकिन वो पकडी गयी.
दूसरी ओर से चन्दा भाभी आ गयीं.
हां ब्लाउज उसने जरूर उसके पहले दुछत्ती पे फेन्क दिया जहां थोडी देर पहले मैने ...दूबे भाभी कि साडी फेंकी थी.
अब चन्दा भाभी और दूबे भाभी के बीच वो कातर हिरणी...लेकिन मेरी ओर देख के वो सारन्ग नयनी मुस्करायी...पहली बार होली में दूबे भाभी की साडी ब्लाउज जो उतर गयी थी.
ननद भाभी की होली चालू हो गयी थी. ऐसी होली जिसके आगे लेस्बियन रेस्लिन्ग मात थी.
मैं दूर बैठा रस ले रहा था.
रीत..चंदा भाभी और दूबे भाभी के बीच सैंडविच बनी हुयी थी.पीछे से दूबे भाभी ने दबोच रखा था और आगे से चंदा भाभी नंबर लगा के बैठी थीं. और तीनो ब्रा और..बल्कि रीत ब्रा और अपनी ट्रेड मार्क पजामी में और दूबे और चंदा भाभी ब्रा और साए में ...दूबे भाभी के हाथ में अभी भी कालिख का स्टाक बचा हुआ था जिसे उन्होंने सबसे पहले रीत की गोरी नमकीन पीठ पे मला और फिर आगे हाथ डाल के उसके गोरे उभार पे ब्रा में हाथ डाल के ..पीठ पे रंग लगा रहा हाथ सरक के अचानक उसकी पाजामी में...क्या कोई मर्द नितम्बो को दबाएगा ..जिस तरह दूबे भाभी रीत के मस्त गुदाज रसीले नितम्बों को दबोच रही थीं...पूरी ताकत से.. दबा वो रही थीं मजा मुझे आ रहा था. और पीछे से ब्रा की स्ट्रिप भी रीत की...चन्दा भाभी के लाल गुलाबी रंगों से लाल हो गयी थी...शाम को कभी कभी जैसे बदला दीखते हैं ना उस की पीठ वैसे ही दिख रही जो थोड़ी सी जगह रंगों से बच गयी थी गोरी..सफेद रुई से बादलों की तरह ...दूबे के हाथ जहां जहां पहुंचे थे वो श्याम रतनारे बादल की तरह और ब्रा की स्ट्रिप और उस के आस पास चंदा भाभी की उंगलियाँ जहाँ छु गयी थीं ...वहां लाल गुलाबी जैसे कुछ सफेद बादल भी जहां सूरज की किरणे पड़ती हैं लाल छटा दिखाते हैं ..रंग लगने से वो और रंगीन हो गयी थी...तभी वो हुआ जो मैं तबसे चाहता था जबसे मैंने उसे सबसे पहले देखा था...धींगा मुस्ती में दूबे भाभी और चंदा भाभी ने मिल के उस की ब्रा नीचे खींच दो और रीत के दोनों उभार एक पल के लिए मुझे दिख गए....बस मैं बेहोश नहीं हुआ यही गनीमत थी.
जैसे कोई पूरी दुनिया की खूबसूरती, जवानी का नशा, जीवन का सारा रस अगर एक जगह लाकर रख दे ना कुछ ऐसा....जैसे गूंगे का गुड कहते हैं ना की वो खा तो ले ना लेकिन स्वाद ना बता सके बस वही हालत मेरी हो रही थी...लेकिन मैं उस हालत से पला भर में उबार गया क्यों की अगले ही पल ...दूबे भाभी के हाथों में दोनों कैद हो गए. और वो इस तरह से मसल रही थीं की ...और दोनों गालों का रस चन्दा भाभी ले रही थीं. मुझे लगा की बिचारी मेरी मृग नयनी कहाँ दो के साथ कित्ती परेशान होगी बिचारी लेकिन .अचानक वो पीछे मुड़ी जैसे कोई टेलीपैथी हो...और मुझे देख ना सिर्फ मुस्कराई बल्कि हलके आँख भी मार दी....मैं समझ गया की ये भी उतना ही रस ले रही है. चंदा भाभी ने तभी एक बाल्टी रंग ले के पीछे से उसके पजामी पे और दूबे भाभी भी क्यों पीछे रहतीं उन्होंने तो पीछे से पाजामी फैला के उसके अन्दर ..
मेरा फायदा हुआ की अब उसके सारे कटाव उभार एक साथ और रीत का ये फायदा हुआ की उसने एक झटके में अपनी ब्रा ठीक कर ली.
क्या कटाव थे. दोनों भाभियों ने जो रंग की बाल्टियां छोड़ी थीं अन्दर और बाहर रीत की पजामी पूरी तरह उसकी खूबसूरत जाँघों से चिपक गयी..और बिलकुल 'सब दिखता है' वाली बात हो रही थी. पीछे का नजारा तो छोडिये, एक पल के लिए वो आगे मुड़ी तो भरतपुर भी दिख गया...आलमोस्ट ..सुधी पाठक सोच ही सकते हैं की मेरे जंग बहादुर की क्या हालत हुयी होगी.
लेकिन उसके आगे जो हुआ वो और खतरनाक था...
दूबे भाभी और चन्दा भाभी ने मिल कर रीत के पजामी का नाडा खोल दिया. लेकिन बहोत मुश्किल से...एक तो उसने कस के बाँध रखा था और फिर दोनों हाथों से कस के ...हार के चन्दा भाभी को उसे गुदगुदी लगानी पड़ी. वो खिलखिला के हंसी और नाडा दूबे भाभी के हाथ. मुझे लगा की अब रीत गुस्सा हो जायेगी लेकिन उसकी वो मुस्कान उसी तरह... जब पजामी नीचे सरकी तो उस चतुर चपला ने ना जाने किस तरह पैरों को किया की वो उसके घुटने पे ही फँस गयी लेकिन मुझे एक जबर्दस्त फायदा हुआ ...मस्त नितम्बों के नज़ारे का.
जो भीगे पजामी से झलक मिल रही थी वो तो कुछ भी नहीं थी इसके आगे....क्या नजारा था.
रीत की लेसी थांग दो इंच चौड़ी भी नहीं रही होगी और पीछे से तो बस एक मोटी रस्सी इतना..दोनों नितम्बों के बीच फंसा हुआ..प्लंप,प्रेटी, परफेक्ट...
मस्त कसे कड़े...पजामी के ऊपर से उसे देख के मन मचल जाता था तो अब तो वो कवच भी नहीं रहा.
और उसके ऊपर लगे रंग..दूबे भाभी की उँगलियों से लगा उनकी ट्रेड मार्क कालिख, चंदा भाभी के लाल गुलाबी चटखदार और मेरे हाथ के लगे सतरंगी रंग...मेरे उँगलियों से लगे पेंट के रंग तो दरार के अन्दर तक...और फिर दूबे भाभी ने वो काम किया की जिसके बाद तो वो मेरी जान मांग लेती तो मैं सोने की थाली में रख के हाजिर कर देता...
उन्होंने रीत की थांग को पीछे से हटा दिया और साथ साथ दोनों नितम्बों को फैला के पिछवाड़े की वो गली दिखा दी जिसके लिए सारा बनारस दीवाना था...
दोनों हाथ तो आगे चंदा भाभी ने पकड़ रखे थे...
मेरी और देख के दूबे भाभी ने आँखों आँखों में पुछा पसंद आया.
सीने पे हाथ रख के मैंने इशारा किया ...जान चली गयी.
फिर दूबे भाभी ने वो काम शुरू कर दिया...जिसके लिए उनकी सारी ननदें नजदीक की दूर की, रिश्ते की पड़ोस की ...डरती थीं.
क्या कोई मर्द चोदेगा...रीत की कमर पकड़ के वो धक्के उन्होंने लगाए उस तरह से रगडा...
रीत ने वो किया जिसके लिए मैं उसका दीवाना था...मस्ती और हिम्मत, हाजिरजवाबी और मजे लेने और देने की ताकत..
" अरे भाभी मेरी तो पजामी आप ने सरका दी...लेकिन आप का पेटीकोट..क्या मजा आएगा..." वो बोली.
" ठीक तो कह रही है लड़की..." चंदा भाभी ने बोला और दूर बैठे मैंने भी सहमती में सर हिलाया.
" अरे चूत मरानो, छिनार, तेरी तरह मैं पाजामी, जींस,पैंट नहीं पहनती जिसे उतारने में १० झंझट हो...साडी पेटीकोट पहनो...आम की बाग़ हो, अरहर और गन्ने का खेत हो बस लेटो टांग उठाओ ...तैयार ..." दूबे भाभी बोलीं और एक झटके में पेटीकोट उठा के कमर पे खोंस लिया.
डबल धमाका ...एक किशोरी के बाद अब एक प्रोढ़ा, एक मस्त खेली खायी भाभी का पिछवाड़ा...वो भी ४०+ वाली साइज़ का.
पीछे से दूबे भाभी आगे से चंदा भाभी...मैंने दूर बैठ के थ्री सम का मजा देख रहा था..
क्रमशः.....................
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" तो फिर इसके मामा का असर इसका मतलब साल्ले तू खानदानी पैदायशी बहन चोद है, फिर अबतक क्यों छोड रखा था उस साल्ली को..." दूबे भाभी अपने अन्दाज मे मुझे मुठियाते बोल रही थीं. मेरा सुपाडा जैसे चन्दा भाभी ने कल रात सिखाया था मैने खोल रखा था मोटा पहाडी आलू जैसा...दूबे भाभी के हाथ तो लन्ड के बेस पे थे लेकिन अन्गुठा...सुपाडे को रगड रहा था.
मेरा एक हाथ उनके ब्लाउज में था...
गोरे गुदाज,गद्रराये और भरे भरे....मेरी मुट्ठी में नहीं समा पा रहे थे. लेकिन उनका टच....एक्दम मस्त...इत्ते बडॆ होने के बाद भी एक्दम कडे कडे जरा भी ढिलाई नहीं....और दोनों चून्चीयों के बीच की गहराय़ी भी...जैसे दो पहाडियों के भिच एक खूबसूरत खाईं हो...ऐसे जोबन ना सिर्प देखने, छूने, दबाने और चूसने में मस्त होते हैं बल्की जो आज तक मैने सिर्फ ब्लू फिल्मॊं में देखा था और मेरा एक सपना था...चूंची चुदाई का....दो गदराई मांसल चूंचीय़ों के बीच अपना लंड डाल के रगडने का...वो बस दूबे भाभी के उरोजों के साथ पूरा हो सकता था. भाई की पीठ भी अत्यन्त चिकनी थी और बीच में गह्ररी...केले के पत्ते कि तरह..काम सूत्र में लिखा है कि ऐसे महिलायें अत्यन्त कामुक होती हैं , रात दिन सेक्स के बारे मेन हि सोचती हैं और दीर्घ लिंग के लिये कुछ भी कर सकती हैं. उन्हे सिर्फ अश्व जाति के पुरुष सन्तुष्ट कर सकते हैं....जैसा मैं था. मेरा हाथ पीठ से सरककर नीचे चला गया सीधे साये के अन्दर ...ओह ओह्ह ..क्या मस्त चूतड थे....खूब भरे भरे एक दम कडे और मांसल...उसे छूते ही मेरा जन्ग बहादुर ९० डिग्री का हो गया.
दूबे भाभी समझ गयी कि उनके नितम्बों ने मेरे उपर क्या असर किया. सिर्फ देख के मेरी ऐसी कि तैसी हो जाती थी उस ४०+ चूतड को और स्पर्श से तो हालत खराब होनी ही थी. समझ
दूबे भाभी ने एक दो बार कस के मेरे पूरे तन्नाये लन्ड को आगे पीछे किया और जैसे उसी से बातें कर रही हों , बोलीं,
" क्यों मुन्ना , बहोत मन कर रहा है पिछ्वाडे का...लगता है पिछवाडे के बडे रसिया हो कभी मजा लिया है गोल दरवाजे का कि नहीं...."
" नहीं भाभी...कभी नहीं लिया और पिछ्वाडे के साथ उपर की मन्जिल का भी.." ये कह के मैने कस के उनकी चूंची दबा दी.
" तुम रंग पंचमी में तो आओगे ना..." वो फुस्फुसा के बोलीं.
" हाँ ...अब तो आना ही पडॆगा," मैने जोश मेन कस के उनके निपल को पिन्च करते हुये कहा.
" अरे एक दो दिन पहले आ जाना....असली होली तो तभी होगी...पूरा खजाना लूटा दुंगी...उपर नीचे आगे पीछे..सब कुछ."
खूश होके मैने इत्ते जोर से जोबन मर्दन किया की उनके ब्लाउज कि दो चुट्पूटिय़ा बटन...चट चट खुल गयीं.
लेकिन दूबे भाभी को इसकि पर्वाह नहीं थी. वो मेरे खडे लन्ड के सुपाडे को अपने अंगुठे से कस के दबा रहीं थीं और बोल रही थीं..
" इस रसगुल्ले का तो मैं पूरा रस निचोड लुंगी. हां ....लेकिन अपनी उस ममेरी बहन को साथ लाना मत भूलना.."
" नहीं भाभी..." मैं भी किसी और दुनिया में खोया हुआ था. मेरि रंग लगी उंगली उनकी गांड की दरार में थी और हल्के हल्के आगे पीछे हो रहा था. उनकी गांड इस तरह उसे कस के दबोचे थी कि ..बस अब बिना डलवाये छोडेगी नहीं.
भाभी की भी रस सिद्ध उंगलीयां, रस से भरी मेरे पी होल पे तर्जनी के नाखून से...छेड रही थीं.
मैं मारे जोश के इतना गिन्गिनाया कि मैने कच्कचा के उनकी चून्ची और कस के दबा दी ..और एक चुट्पुटिया बटन और गया.
भाभी इन सबसे बे परवाह मेरे गोरे लिन्ग को अपने हाथ से कालिख मल के काला भुजन्ग बनाने में लगी थीं.
लेकिन तभी मैने दो बातें नोटिस कीं...
एक ..उनके ब्लाउज कि अब सिर्फ एक चुट्पुटिया बटन बची है जो बडी मुश्किल से उनके भारी उरोजो को सम्हाले है.
दूसरी ...रीत ने भी यही बात नोटिस की है और मुझे उनके ब्लाउज की ओर इशारा कर रही है...
मैं समझ गया की वो क्या चाह्ती है. खतरा तो बहोत था...लेकिन रीत के लिये मैं शेरनी की मांद में घुस सकता था....( आखिर मुझे उसकी मांद में जो घुसना था.)...मैने मुस्करा के हामी भरी.
मेरा एक हाथ अब पिछ्वाडे से निकल के उनके चिकने गोरे पेट पे...और वहां से रंग लगाते सीधे नीचे से ब्लाउज की आखिरी चुट्पुटिया बटन पे...
मैने भाभी के इअर लोब्स पे अपने होन्ठ हल्के से लगाये और बोला,
" भाभी क्या जादू है आपके हाथ में...अगर हाथ में ये हाल है तो..."
मेरी बात काट के वो कस कस के दबाते मसलते बोलीं," अरे साल्ले निचोड के रख दुन्गी..आगे से भी पीछे से भी...समझ जाओगे जिन्दगी का मजा क्या है...हा बस उसको साथ ले आना मत भूलना...वरना तडपा के रख दुन्गी...कुछ नहीं मिलेगा."
और इसी के साथ आखीरी बटन भी ब्लाउज का टूट गया...और पलक झपकते ब्लाउज मेरे हाथ में...
रूपा साफ्ट्लाइन क्वीन साइज में दो रंगे पंख वाले छटपटाते कबूतर...
" अर्रे साल्ले बहन चोद अपनी बहन के भंडुये, गांडू..." दूबे भाभी गालियां तो दे रही थीं लेकिन जिस तरह से मुस्करा रही थीं मैं समझ गया...उन्होने ज्यादा बुरा नहीं मान है और उनका रंग पंचंमी का आफर स्टैन्ड कर रहा है..सबजेक्ट टू टर्म्स ऐंड कंडीशन्स....
दूबे भाभी मेरे हाथ से ब्लाउज छीनने के लिये झपटीं...लेकिन चतुर चालाक रीत पहले ही टेरैस के दूसरे कोने पे खडी थी और बोल रही थी...थ्रो..थ्रो....
उसकी बात टालने का सवाल ही नहीं था...फिर दूबे भाभी भी करीब आ गयी थीं.
मैने जोर लगा के फेंका.
और रीत ने कैच कर लिया ( वो कोई हमारी क्रिकेट टीम की खिलाडी तो थी नहीं),
मैं अब दूर खडा होके पकडा पकडी देख रहा था.
रीत ...वो हिरणी उसे पकडना आसान नहीं था...लम्बी लम्बी टांगे...चपल फुर्तीली...( लोग उसे झूठ में ही कैट नहीं कहते थे...)
लेकिन वो पकडी गयी.
दूसरी ओर से चन्दा भाभी आ गयीं.
हां ब्लाउज उसने जरूर उसके पहले दुछत्ती पे फेन्क दिया जहां थोडी देर पहले मैने ...दूबे भाभी कि साडी फेंकी थी.
अब चन्दा भाभी और दूबे भाभी के बीच वो कातर हिरणी...लेकिन मेरी ओर देख के वो सारन्ग नयनी मुस्करायी...पहली बार होली में दूबे भाभी की साडी ब्लाउज जो उतर गयी थी.
ननद भाभी की होली चालू हो गयी थी. ऐसी होली जिसके आगे लेस्बियन रेस्लिन्ग मात थी.
मैं दूर बैठा रस ले रहा था.
रीत..चंदा भाभी और दूबे भाभी के बीच सैंडविच बनी हुयी थी.पीछे से दूबे भाभी ने दबोच रखा था और आगे से चंदा भाभी नंबर लगा के बैठी थीं. और तीनो ब्रा और..बल्कि रीत ब्रा और अपनी ट्रेड मार्क पजामी में और दूबे और चंदा भाभी ब्रा और साए में ...दूबे भाभी के हाथ में अभी भी कालिख का स्टाक बचा हुआ था जिसे उन्होंने सबसे पहले रीत की गोरी नमकीन पीठ पे मला और फिर आगे हाथ डाल के उसके गोरे उभार पे ब्रा में हाथ डाल के ..पीठ पे रंग लगा रहा हाथ सरक के अचानक उसकी पाजामी में...क्या कोई मर्द नितम्बो को दबाएगा ..जिस तरह दूबे भाभी रीत के मस्त गुदाज रसीले नितम्बों को दबोच रही थीं...पूरी ताकत से.. दबा वो रही थीं मजा मुझे आ रहा था. और पीछे से ब्रा की स्ट्रिप भी रीत की...चन्दा भाभी के लाल गुलाबी रंगों से लाल हो गयी थी...शाम को कभी कभी जैसे बदला दीखते हैं ना उस की पीठ वैसे ही दिख रही जो थोड़ी सी जगह रंगों से बच गयी थी गोरी..सफेद रुई से बादलों की तरह ...दूबे के हाथ जहां जहां पहुंचे थे वो श्याम रतनारे बादल की तरह और ब्रा की स्ट्रिप और उस के आस पास चंदा भाभी की उंगलियाँ जहाँ छु गयी थीं ...वहां लाल गुलाबी जैसे कुछ सफेद बादल भी जहां सूरज की किरणे पड़ती हैं लाल छटा दिखाते हैं ..रंग लगने से वो और रंगीन हो गयी थी...तभी वो हुआ जो मैं तबसे चाहता था जबसे मैंने उसे सबसे पहले देखा था...धींगा मुस्ती में दूबे भाभी और चंदा भाभी ने मिल के उस की ब्रा नीचे खींच दो और रीत के दोनों उभार एक पल के लिए मुझे दिख गए....बस मैं बेहोश नहीं हुआ यही गनीमत थी.
जैसे कोई पूरी दुनिया की खूबसूरती, जवानी का नशा, जीवन का सारा रस अगर एक जगह लाकर रख दे ना कुछ ऐसा....जैसे गूंगे का गुड कहते हैं ना की वो खा तो ले ना लेकिन स्वाद ना बता सके बस वही हालत मेरी हो रही थी...लेकिन मैं उस हालत से पला भर में उबार गया क्यों की अगले ही पल ...दूबे भाभी के हाथों में दोनों कैद हो गए. और वो इस तरह से मसल रही थीं की ...और दोनों गालों का रस चन्दा भाभी ले रही थीं. मुझे लगा की बिचारी मेरी मृग नयनी कहाँ दो के साथ कित्ती परेशान होगी बिचारी लेकिन .अचानक वो पीछे मुड़ी जैसे कोई टेलीपैथी हो...और मुझे देख ना सिर्फ मुस्कराई बल्कि हलके आँख भी मार दी....मैं समझ गया की ये भी उतना ही रस ले रही है. चंदा भाभी ने तभी एक बाल्टी रंग ले के पीछे से उसके पजामी पे और दूबे भाभी भी क्यों पीछे रहतीं उन्होंने तो पीछे से पाजामी फैला के उसके अन्दर ..
मेरा फायदा हुआ की अब उसके सारे कटाव उभार एक साथ और रीत का ये फायदा हुआ की उसने एक झटके में अपनी ब्रा ठीक कर ली.
क्या कटाव थे. दोनों भाभियों ने जो रंग की बाल्टियां छोड़ी थीं अन्दर और बाहर रीत की पजामी पूरी तरह उसकी खूबसूरत जाँघों से चिपक गयी..और बिलकुल 'सब दिखता है' वाली बात हो रही थी. पीछे का नजारा तो छोडिये, एक पल के लिए वो आगे मुड़ी तो भरतपुर भी दिख गया...आलमोस्ट ..सुधी पाठक सोच ही सकते हैं की मेरे जंग बहादुर की क्या हालत हुयी होगी.
लेकिन उसके आगे जो हुआ वो और खतरनाक था...
दूबे भाभी और चन्दा भाभी ने मिल कर रीत के पजामी का नाडा खोल दिया. लेकिन बहोत मुश्किल से...एक तो उसने कस के बाँध रखा था और फिर दोनों हाथों से कस के ...हार के चन्दा भाभी को उसे गुदगुदी लगानी पड़ी. वो खिलखिला के हंसी और नाडा दूबे भाभी के हाथ. मुझे लगा की अब रीत गुस्सा हो जायेगी लेकिन उसकी वो मुस्कान उसी तरह... जब पजामी नीचे सरकी तो उस चतुर चपला ने ना जाने किस तरह पैरों को किया की वो उसके घुटने पे ही फँस गयी लेकिन मुझे एक जबर्दस्त फायदा हुआ ...मस्त नितम्बों के नज़ारे का.
जो भीगे पजामी से झलक मिल रही थी वो तो कुछ भी नहीं थी इसके आगे....क्या नजारा था.
रीत की लेसी थांग दो इंच चौड़ी भी नहीं रही होगी और पीछे से तो बस एक मोटी रस्सी इतना..दोनों नितम्बों के बीच फंसा हुआ..प्लंप,प्रेटी, परफेक्ट...
मस्त कसे कड़े...पजामी के ऊपर से उसे देख के मन मचल जाता था तो अब तो वो कवच भी नहीं रहा.
और उसके ऊपर लगे रंग..दूबे भाभी की उँगलियों से लगा उनकी ट्रेड मार्क कालिख, चंदा भाभी के लाल गुलाबी चटखदार और मेरे हाथ के लगे सतरंगी रंग...मेरे उँगलियों से लगे पेंट के रंग तो दरार के अन्दर तक...और फिर दूबे भाभी ने वो काम किया की जिसके बाद तो वो मेरी जान मांग लेती तो मैं सोने की थाली में रख के हाजिर कर देता...
उन्होंने रीत की थांग को पीछे से हटा दिया और साथ साथ दोनों नितम्बों को फैला के पिछवाड़े की वो गली दिखा दी जिसके लिए सारा बनारस दीवाना था...
दोनों हाथ तो आगे चंदा भाभी ने पकड़ रखे थे...
मेरी और देख के दूबे भाभी ने आँखों आँखों में पुछा पसंद आया.
सीने पे हाथ रख के मैंने इशारा किया ...जान चली गयी.
फिर दूबे भाभी ने वो काम शुरू कर दिया...जिसके लिए उनकी सारी ननदें नजदीक की दूर की, रिश्ते की पड़ोस की ...डरती थीं.
क्या कोई मर्द चोदेगा...रीत की कमर पकड़ के वो धक्के उन्होंने लगाए उस तरह से रगडा...
रीत ने वो किया जिसके लिए मैं उसका दीवाना था...मस्ती और हिम्मत, हाजिरजवाबी और मजे लेने और देने की ताकत..
" अरे भाभी मेरी तो पजामी आप ने सरका दी...लेकिन आप का पेटीकोट..क्या मजा आएगा..." वो बोली.
" ठीक तो कह रही है लड़की..." चंदा भाभी ने बोला और दूर बैठे मैंने भी सहमती में सर हिलाया.
" अरे चूत मरानो, छिनार, तेरी तरह मैं पाजामी, जींस,पैंट नहीं पहनती जिसे उतारने में १० झंझट हो...साडी पेटीकोट पहनो...आम की बाग़ हो, अरहर और गन्ने का खेत हो बस लेटो टांग उठाओ ...तैयार ..." दूबे भाभी बोलीं और एक झटके में पेटीकोट उठा के कमर पे खोंस लिया.
डबल धमाका ...एक किशोरी के बाद अब एक प्रोढ़ा, एक मस्त खेली खायी भाभी का पिछवाड़ा...वो भी ४०+ वाली साइज़ का.
पीछे से दूबे भाभी आगे से चंदा भाभी...मैंने दूर बैठ के थ्री सम का मजा देख रहा था..
क्रमशः.....................
हजारों कहानियाँ हैं फन मज़ा मस्ती पर !
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