Monday, October 29, 2012

सेक्सी कहानियाँ हवस की गुलाम --1

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

हवस की गुलाम --1

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर
हाजिर हूँ . दोस्तो जब भगवान चूत देता है तो छप्पर फाड़ कर
देता है कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ
ट्रेन आई तो मैं जगह बनाता अंदर गया. बहुत रश था. लोग
ऊपर बर्त पर भी बैठे थे. किसी तरह अंदर घुसकर अपना बॅग
ऊपर रखना चाहा जिस पर एक जवान औरत दो सयानी लड़कियो के
साथ बैठी थी. मेरे बॅग रखने पर लड़की ने मना किया तो उस औरत
ने कहा, "रख लेने दो. रखिए भाई साब."


मैने उस औरत के व्यवहार से खुश हो बॅग रखा और खड़ा खड़ा
सफ़र करने लगा. वा तीनो मेरे सामने की ऊपर वाली बर्त पर थी.
ट्रेन चली तो कुछ राहत हुई. तभी वह औरत जो करीब 25-26 की
होगी मुझे देखने लगी तो मैं भी उसे देखने लगा. वह लोग अच्छे
घराने के लग रहे थे. जिस बर्त को पकड़े था उसी पर वह बैठी
थी. तभी मुझे अपने हाथ पर उसका हाथ महसूस हुआ तो मैने
हाथ अलग किया तो वहाँ भी उसका हाथ मेरे हाथ पर लगा. मैने
हाथ हटा लिया तो वा मुझे देखती आगे सरक्ति बोली, "भाई साब
आपको कहाँ जाना है?"

"जी भोपाल."
"अरे भोपाल तो हम भी जा रहे हैं. किसके वहाँ जाना है आपको?"
उसने झुक कर कहा तो उसका ऊपर का पूरा हिस्सा नज़र आया.
मैं उसको देखते अपनी नयी जॉब के बारे मे बताने लगा. मेरी बात
सुनते उसने अपने होंठो को दातो से दबाते अपने ब्लाउस को उभारा तो
मैं सनसना गया. वह मुझे देखते हुए बोली, "भाई साब नाम क्या
है आपका?"

"जी राज शर्मा."

"अच्छा मेरा नाम माया है."

अब वह सीधी बैठ मुझे देखती और अपने साथ की लड़कियों से ख़ुसर
पुसर करती अपनी सारी को अपने उभारो पर बार बार सही कर रही
थी. उसकी माँग मे सिंदूर था पर लड़किया कुँवारी थी और 18-19 की
थी. तभी उसने मेरे हाथ को दबा मुझसे कहा, "आइए भाई साब
ऊपर बैठ जाइए."

"ज्ज जी ठीक है आप बैठिए." मैं समझ गया वह मुझे लिफ्ट दे
रही है.

"कोई बात नही आप तो अपने ही शहर चल रहे हैं. फिर रात भर
का सफ़र है, खड़े खड़े नही होगा. ये दोनो मेरी ननद हैं. मेरे
पति बॉम्बे मैं हैं." यह कहती वह आगे झुकी तो मेरी नज़रे उसके
ब्लाउस से चिपक गयी.

दोनो जवानिया अधनंगी दिखी. उसकी नंगी चूचियों को देख मैं
बहकने लगा. अभी मैं कुँवारा था इसलिए कुछ सकुचाहत हो रही
थी उससे सटने मैं. तभी वह सामान उठा अपनी ननद को देती
बोली, "लो एक तरफ रखो."

इस पर उस लड़की ने मुझे ध्यान से देखा और बॅग एक ओर रख जगह
बनाई तो उस औरत ने अपनी बगल मे जगह बनाते कहा, "आइए भाई
साब."

"ज्ज्ज.ज्जई आप बैठिए."


"आइए भी." और हाथ को दबा करेंट दौड़ाया.

उसके बिहेव से बदन मे सनसनी हुई. मैं समझ गया कि यह
सफ़र का मज़ा देगी. उसके ब्लाउस के उभारों को देखता शूस उतारने
लगा. उस जवान औरत ने मुझे बिठाने के लिए अपनी कमसिन ननद को
एक ओर खिसकाया तो वा दोनो मुझे गौर से देखने लगी. दोनो फ्रॉक
मे थी पर उनकी भाभी सारी मे थी. बड़ी ननद 19 की लग रही
थी. ऊपर चढ़ा तो कम जगह की वजह से मैं उस औरत से सॅट गया.
मैं अभी सिकुड कर बैठा था. ट्रेन तेज़ी से चल रही थी और हम
सब चुप थे.

कुछ देर बाद उसने पुच्छा, "आप नौकरी पर अकेले जा रहे हैं?"

"ज्जई नयी नयी जॉब है."

"बाल बच्चे बाद मे लाएँगे?"

"अभी मेरी शादी नही हुई है." उसके उभारो को देखते गुदगुदाते
मन से कहा.

"तो अब जल्दी शादी करेंगे." उसने मुझे देखते कहा.

"नही अभी एक दो साल नही करेंगे. अभी तो नौकरी मिली है." मेरा
लंड अपने आप कसता जा रहा था.

"यह ठीक रहेगा. पहले कमाई फिर लुगाई."


"ज्जजई."

"आराम से बैठिए वहाँ तो आपको सरकारी क्वॉर्टर मिलेगा."

"जी नही किराए का लेना पड़ेगा."

इसपर वह अपनी बगल मे बैठी बड़ी वाली से बोली, "मीना तुमको
बैठने मे दिक्कत हो रही है?"

"नही भाभी, अपने पास भी तो किराए का कमरा है. इनको अपने साथ
रख लो." और झुक कर जो मेरी ओर देखा तो फ्रॉक मे उभरे उसके
अनार देखकर तड़प गया.

मैं जल्दी से मौके का फयडा उठाते बोला, "आपके पास मकान है?"

"मकान तो है पर और मेरी आँखों मैं अपनी नशीली आँखें डाल
होंटो को दबाया तो मैं समझा कि उसे कैसे किरायेदार की ज़रूरत है.

"जी मुझे कमरा चाहिए, किराया जो कहेंगी दूँगा."
इसपर वा अपनी बाई रान मॉड्कर बोली, "कही इंतज़ाम ना हो तो
आईएगा."

"मुझे वहाँ कौन जानता है." मैने बेचैनी से कहा.

"असल मे भाई साब किराए की बात नही है. हमारे पास दो सयानी
सयानी ननद हैं. अंदर का कमरा है. रखना तो है पर सोच
समझकर रखना होगा. ऐसा आदमी जो परिवार के साथ घुल मिलकर
रहे."

"मुझसे आपको कोई शिकायत नही होगी."

इसपर उसने मुझे अजीब सी नज़रो से देखा और अपनी बड़ी ननद से
बोली, "ज़रा तिर्छि होकर बैठो, बीना को उधर खिस्काओ मैं तो फँस
गयी हूँ."

मुझे हम उमर जवान औरत मज़ेदार लग रही थी. पॅंट टाइट हो गयी
थी. उसके कहने पर छोटी वाली खिसकी तो वह अपनी पीठ बड़ी ननद
की चूचियों से सटकर बैठती मेरी ओर घूमकर बैठी और
बोली, "भाई साब आप ज़रा ठीक से उधर होकर बैठिए."

मैं उसके बताए तरीके से बैठा तो हम दोनो का चेहरा आपने सामने
हुआ. मैं पैर फैलाकर बैठा था और वह अपनी बड़ी ननद की गोद
मे लेटी सी मेरी ओर मुँह किए बैठी थी. इस तरह से बड़ी वाली का
चेहरा मेरी ओर और चूचियाँ भाभी की पीठ मे धँसी थी. दोनो
लड़किया बार बार मेरी ओर देख रही थी. मैं भी दोनो को देख मस्त
हो रहा था. मुझे वह औरत चुलबुली और दोनो ननद चालू लगी.

मेरे मन मैं भी लालच पैदा हो गया. वह इस तरह से बैठी चुप
रही तो मैने कहा, "आप लोगो को परेशानी हो रही है."

"नही नही आराम से बैठी हूँ. सोच रही हूँ कि आपको कमरा दे ही
दूं. मेरी ननद का भी मन है."

"जी बहुत अच्छा रहेगा, जो किराया कहेंगी दूँगा."

इस पर उसने मुझे घायल करने वाले अंदाज़ से देखा फिर सारी के पल्लू
को ब्लाउस के दोनो उभारो पर ठीक किया और पल्लू के अंदर हाथ ले
जाकर मेरी ओर देखती अपने ब्लाउस के बटन को खोलने लगी. दिख
नही रहा था पर अहसास हो रहा था कि वह ब्लाउस के बटन खोल
रही है. मेरी जवानी मे आग लग गयी और लंड पॅंट मे मचलने
लगा. मैं उसकी बटन खोल रही उंगलियों को देख रहा था. वह ब्रा
नही पहने थी. बटन खोलने के बाद उसने सारी का आँचल ज़रा
नीचे सरकया तो ऊपर की तरफ से उसकी बड़ी-बड़ी बेल सी चूचियाँ
दिखी तो लंड मे पानी आ गया. उसने ब्लाउस के बटन खोल धीरे-
धीरे दोनो चूचियों को नंगा कर दिया फिर दोनो हाथो को मेरे
हाथो पर रखा तो मैने खुश हो उसकी उंगली दबाई. उसने बुरा ना
माना और मेरे हाथ को पकड़ अपने आँचल के नीचे लाई और अपनी
चूचियों पर रख दिया. मुझे लगा कि उसकी चूचियों मे दुनिया
भर का मज़ा भरा है. हाथ रखते ही मैने उसकी चूचियों को
हल्के से दबाया तो वा धीमी आवाज़ मे बोली, "कोई बात नही मज़ा
लीजिए."


मैने कभी सोचा भी नही था कि मुझे इस तरह का मज़ा भी मिलेगा.
मैं उसके उभारो को दबा-दबा कर मज़ा लेने लगा और अपने आप को
जन्नत मे पहुँचा कर चलती ट्रेन के इस गोलडेन चान्स का फायेदा
उठाने लगा. जवान चूचियाँ थी. वह आराम से बैठी अपनी जवान
बड़ी चूचियों को मुझसे दब्वा रही थी. उसकी ननद एकटक मेरी
हरकत को खामोशी से देख रही थी. मैं उसकी पपीते सी गदराई
चूचियों को हाथ मे लेने के साथ ही जवानी के जोश से भर
गया था. मेरा लंड लोहे का रोड हो गया था. जब मैं दबाने लगा तो
वह ठीक से बैठकर मज़ा लेने लगी. मैने देखा कि उसकी बड़ी वाली
ननद आँचल के ऊपर नज़र जमाए ध्यान से भाभी की चूचियों
को देख रही थी. उसकी उमर तो कुछ ख़ास नही थी पर चूचियाँ
काफ़ी बड़ी-बड़ी थी और एक हाथ मे समा नही रही थी. चलती
ट्रेन मे जन्नत थी.

तभी वह मस्त आँखो से मुझे देखती मुस्कराती बोली, "ज़रा घुंडी
को भी भाई साहब."

इस पर मैं लंड को झटका दे जवानी के इस गोलडेन चान्स को पा उसके
दोनो लंबे निपल को मसल्ने लगा. निपल खड़े और लंबे थे मैं
उसकी मस्तानी आँखो मे डूब सा गया था. मैं चुप चाप मज़ा ले
रहा था कि उसकी बड़ी वाली ननद अपनी चूचियों को उसकी पीठ मे
दबाती अपने होंठो को कस्ति बोली, "ओह्ह भाभी ."

"ज़रा रूको बस 2 मिनट."

तभी मैं उसके निपल को उंगली के बीच दबा भैंस के थन की
तरह दूहने लगा तो वह चूतड़ उठाती सी-सी करती बोली, "हाए भाई
साहब बहुत अच्छा ऐसे ही करो. हाए तुम तो कुंवारे नही लगते,
चूचियों को दबाना आता है."

मुझे वासना का मज़ा लाल कर गया और मैं घुंडीयों को दबा-दबा
खींचने लगा. उसकी ननद प्यार से भाभी को मज़ा लेते देखती अपने
गोरे-गोरे गाल लाल कर रही थी. उसके जैसे लंबे निपल पहली बार
पकड़ा था. तभी वह अपनी दोनो टॅंगो को सिकोर मेरे हाथ को अपनी
चूचियों से हटाती बोली, "हाए अब बस भाई साहब."

मैं उसकी बात सुन घबरा सा गया और बोला, "हाए थोड़ा और."

इस पर उसका चेहरा खिल गया और मेरे उभरे लंड को पॅंट पर से
दबाती बोली, "ठीक है आपके इस यार को भी मज़ा दूँगी. आओ मीना
थोड़ा तुम भी दब्वा लो भाई साहब से. अभी भाई साहब का घोड़ा हिन-
हिना रहा है." और इतना कह वह अपनी 19 साल की जवान हो गयी
कश्मीरी सेब सी चूचियों वाली ननद मीना को आगे अपनी जगह पर
कर खुद उसके पिछे जाने लगी. मीना अभी लड़की थी पर उसकी
चूचियाँ भी उमर से ज़्यादा बड़ी थी. वह खुद भाभी के आगे आई
और अपने बड़े-बड़े संतरे सी चूचियों को फ्रॉक मे उभार मुझे
तड़पाती सामने बैठी और बेचैनी के साथ बिना शरम और हिचक
के बोली, "हाए भाभी मेरी चुस्वा दो."
अब मुझे यकीन हो गया था कि ननद और भाभी सभी चालू हैं और
मेरी जवानी को देख कर ललचा गयी हैं. मैं काफ़ी लंबा चौड़ा और
उमर 26 साल थी. मैं जवान औरत के साथ सयानी हो रही लड़कियो
को पा अपने लक पर खुश था. मेरा लंड तेज़ी से झटके ले रहा
था. उसने अपनी जवान ननद को क़ायदे से बिठाया फिर उसकी चूचियों
पर हाथ रख बोली, "घर चलकर आराम से पिलाना. क्यों भाई साहब
मकान चाहिए?"

"ज..जी जो किराया कहेंगी दूँगा."

"किराया नही देना होगा बस मुझे और मेरी दोनो प्यारी-प्यारी नंदो
को जवान कीजिए. हम लोग केवल मर्द किरायेदार रखते हैं. लीजिए
थोड़ा मीना की भी दबा लीजिए." और अपने हाथ से मेरे हाथ को
पकड़ अपनी ननद की चूचियों पर रखा.
क्रमशः.......................

Hawas ki gulaam --1

Dosto main yaani aapka dost raj sharma ek our nai kahaani lekar
Hajir hun . dosto jab bhagwaan chut deta hai to chappar faad kar
deta hai kuch aisa hi mere sath hua
Train aayi to main jagah banata andar gaya. Bahut rush tha. Log
oopar birth par bhi baithe the. Kisi tarah andar ghuskar apna bag
oopar rakhna chaha jis par ek jawan aurat do sayani ladkiyo ke
saath baithi thi. Mere bag rakhne par ladki ne mana kiya to us aurat
ne kaha, "Rakh lene do. Rakhiye bhai saab."


Maine us aurat ke vyavhaar se khush ho bag rakha aur khada khada
safar karne laga. Wah teeno mere saamne ki oopar wali birth par thi.
Train chali to kuch rahat huyi. Tabhi wah aurat jo kareeb 25-26 ki
hogi mujhe dekhne lagi to main bhi use dekhne laga. Wah log achche
ghara ki lag rahi thi. Jis birth ko pakde tha usi par wah log baithi
thi. Tabhi mujhe apne haath par uska haath mahsoos hua to maine
haath alag kiya to wahan bhi uska haath mere haath par laga. Maine
haath hata liya to wah mujhe dekhti aage sarakti boli, "Bhai saab
aapko kahan jana hai?"

"Ji Bhopal."
"Are Bhopal to ham bhi ja rahe hain. Kiske wahan jana hai aapko?"
usne jhuk kar kaha to uska oopar ka poora hissa nazar aaya.
Main usko dekhte apni nayi job ke bade main batane laga. Meri baat
sunte usne apne hontho ko daato se dabate apne blouse ko ubhara to
main sansana gaya. Wah mujhe dekhte hue boli, "Bhai saab naam kya
hai aapka?"

"Ji Raj sharma."

"Achcha mera naam Maya hai."

Ab wah sidhi baith mujhe dekhti apne saath ki ladkiyon se khusar
pusar karti apni saaree ko apne ubhaaro par baar baar sahi kar rahi
thi. Uski maang main sidur tha par ladkiya kunwari thi aur 18-19 ki
thi. Tahi usne mere haath ko daba mujhse kaha, "Aaiye bhai saab
oopar baith jaaiye."

"jj ji theek hai aap baithiye." Main samajh gaya wah mujhe lift de
rahi hai.

"Koi baat nahi aap to apne hi shahar chal rahe hain. Fir raat bhar
ka safar hai, khade khade nahi hoga. Ye dono meri nanad hain. Mere
pati Bombay main hain." Yah kahti wah aage jhuki to meri nazre uske
blouse se chipak gayi.

Dono jawaaniyaan adhnangi dikhi. Uski nangi choochiyon ko dekh main
bahakne laga. Abhi main kunwara tha isliye kuch sakuchahat ho rahi
thi usse satne main. Tabhi wah saaman utha apni nanad ko deti
boli, "Lo ek taraf rakho."

Is par us ladki ne mujhe dhyan se dekha aur bag ek or rakh jagah
banayi to us aurat ne apni bagal main jagah banate kaha, "Aiye bhai
saab."

"Jjj.jji aap baithiye."


"Aaiye bhi." Aur haath ko daba current daudaya.

Uske behave se badan main sansani huyi. Main samajh gaya ki yah
safar ka maza degi. Uske blouse ke ubhaaron ko dekhta shoes utaarne
laga. Us jawan aurat ne mujhe bithane ke liye apni kamsin nanad ko
ek or khiskaya to wah dono mujhe gaur se dekhne lagi. Dono frock
main thi par unki bhabhi saaree main thi. Badi nanad 19 ki lag rahi
thi. Oopar chadha to kam jagah ki wajah se main us aurat se sat gaya.
Main abhi sikud kar baitha tha. Train tezi se chal rahi thi aur ham
sab chup the.

Kuch der baad usne puchha, "Aap naukri par akele ja rahe hain?"

"jji nayi nayi job hai."

"Baal bachche baad main layenge?"

"Abhi meri shadi nahi huyi hai." Uske ubhaaro ko dekhte gudgudate
man se kaha.

"To ab jaldi shadi karenge." Usne mujhe dekhte kaha.

"Nahi abhi ek do saal nahi karenge. Abhi to naukari mili hai." Mera
lund apne aap kasta ja raha tha.

"Yah theek rahega. Pahle kamai fir lugai."


"jjji."

"aaram se baithiye wahan to aapko sarkari quarter milega."

"Ji nahi kiraye ka lena padega."

Ispar wah apni bagal main baithi badi wali se boli, "Mina tumko
baithne main dikkat ho rahi hai?"

"Nahi bhabhi, apne paas bhi to kiraye ka karma hai. Inko apne sath
rakh lo." Aur jhuk kar jo meri or dekha to frock main ubhre uske
anaar dekhkar tadap gaya.

Main jaldi se mauke ka fayda uthate bola, "Aapke paas makan hai?"

"Makaan to hai par aur meri aankhon main apni nashili aankhen daal
honto ko dabay to main samjha ki use kaise kirayedaar ki zarurat hai.

"Ji mujhe karma chahiye, kiraya jo kahengi dunga."
Ispar wah apni bayi raan modkar boli, "Kahi intezaam na ho to
aaiyega."

"Mujhe wahan kaun jaanta hai." Maine bechaini se kaha.

"Asal main bhai saab kiraye ki baat nahi hai. Hamare paas do sayani
sayani nanad hain. Andar ka karma hai. Rakhna to hai par soch
samajhkar rakhna hoga. Aisa aadmi jo pariwaar ke saath ghul milkar
rahe."

"Mujhse aapko koi shikayat nahi hogi."

Ispar usne mujhe ajib si nazro se dekha aur apni badi nanad se
boli, "Zara tirchhi hokar baitho, Bina ko udhar khiskaao main to fans
gayi hun."

Mujhe ham umar jawan aurat mazedaar lag rahi thi. Pant tight ho gayi
thi. Uske kahne par choti wali khiski to wah apni peeth badi nanad
ki choochiyon se satakar baithti meri or ghoomkar baithi aur
boli, "Bhai saab aap zara theek se udhar hokar baithiye."

Main uske bataye tarike se baitha to ham dono ka chehra aapne saamne
hua. Main pair failakar baitha tha aur wah apni badi nanad ki god
main leti si meri or munh kiye baithi thi. Is tarah se badi wali ka
chehra meri or aur choochiyan bhabhi ki peeth main dhansi thi. Dono
ladkiyaa baar baar meri or dekh rahi thi. Main bhi dono ko dekh mast
ho raha tha. Mujhe wah aurat chulbuli aur dono nande chalu lagi.

Mere man main bhi lalach paida ho gaya. Wah is tarah se baith chup
rahi to maine kaha, "aap logo ko pareshani ho rahi hai."

"Nahi nahi aaram se baithi hun. Soch rahi hun ki aapko karma de hi
dun. Meri nanad ka bhi man hai."

"Ji bahut achcha rahega, jo kiraya kahengi dunga."

is par usne mujhe ghayal karne wale andaz se dekha fir sari ke pallu
ko blouse ke dono ubhaaro par theek kiya aur pallu ke andar haath le
jaakar meri or dekhti apne blouse ke button ko kholne lagi. Dikh
nahi raha tha par ahasaas ho raha tha ki wah blouse ke button khol
rahi hai. Meri jawani main aag lag gayi aur lund pant main machalne
laga. Main uski button khol rahi ungliyon ko dekh raha tha. Wah bra
nahi pahne thi. Button kholne ke baad usne sari ka aanchal zara
niche sarkaya to oopar ki taraf se uski badi-badi bel see choochiyan
dikhi to lund main pani aa gaya. Usne blouse ke button khol dheere-
dheere dono choochiyon ko nanga kar diya fir dono haatho ko mere
haatho par rakha to maine khush ho uski ungli dabayi. Usne bura na
maana aur mere haath ko pakad apne aanchal ke niche layi aur apni
choochiyon par rakh diya. Mujhe laga ki uski choochiyon main duniya
bhar ka maza bhara hai. Haath rakhte hi maine uski choochiyon ko
halke se dabaya to wah dhimi awaz main boli, "koi baat nahi maza
lijiye."


Maine kabhi socha bhi nahi tha ki mujhe is tarah ka maza bhi milega.
Main uske ubhaaro ko daba-daba kar maza lene laga aur apne aap ko
jannat main pahuncha kar chalti train ke is golden chance ka fayeda
uthane laga. Jawan choochiyan thi. Wah aaram se baithi apni jawan
badi choochiyon ko mujhse dabwa rahi thi. Uski nanad ektak meri
harkat ko khamoshi se dekh rahi thi. Main uski papite si gadaraai
choochiyon ko haath main lene ke saath hi jawani ke josh se bhar
gaya tha. Mera lund lohe ka rod ho gaya tha. Jab main dabane laga to
wah theek se baithkar maza lene lagi. Maine dekha ki uski badi wali
nanad aanchal ke oopar nazar jamaaye dhyaan se Bhabhi ki choochiyon
ko dekh rahi thi. Uski umar to kuch khaas nahi thi par choochiyan
kafi badi-badi thi aur ek haath main sama nahi rahi thi. Chalti
train main jannat thi.

Tabhi wah mast aankho se mujhe dekhti muskaraati boli, "zara ghundi
ko bhi bhai sahab."

Is par main lund ko jhatka de jawani ke is golden chance ko paa uske
dono lambe nipple ko masalne laga. Nipple khade aur lambe the main
uski mastani aankho main doob sa gaya tha. Main chup chaap maza le
raha tha ki uski badi wali nanad apni choochiyon ko uski peeth main
dabati apne hontho ko kasti boli, "ohh Bhabhi ."

"zara ruko bas 2 minat."

Tabhi main uske nipple ko ungli ke beech daba bhains ke than ki
tarah duhne laga to wah chutd uthati si-si karti boli, "haye bhai
sahab bahut achcha aise hi karo. Haye tum to kunware nahi lagte,
choochiyon ko dabana aata hai."

Mujhe wasna ka maza laal kar gaya aur main ghundiyon ko daba-daba
khinchne laga. Uski nanad pyaar se Bhabhi ko maza lete dekhti apne
gore-gore gaal laal kar rahi thi. Uske jaise lambe nipple pahli baar
pakada tha. Tabhi wah apni dono tango ko sikor mere haath ko apni
choochiyon se hatati boli, "haye ab bas bhai sahab."

Main uski baat sun ghabra sa gaya aur bola, "haye thoda aur."

Is par uska chehra khil gaya aur mere ubhare lund ko pant par se
dabati boli, "theek hai aapke is yaar ko bhi maza doongi. Aao Mina
thoda tum bhi dabwa lo bhai sahab se. abhi bhai sahab ka ghoda hin-
hina raha hai." Aur itna kah wah apni 19 saal ki jawan ho gayi
kashmiri seb si choochiyon wali nanad Mina ko aage apni jagah par
kar khud uske pichhe jaane lagi. Mina abhi ladaki thi par uski
choochiyan bhi umar se zyaada badi thi. Wah khud Bhabhi ke aage aayi
aur apne bade-bade santare si choochiyon ko frock main ubhaar mujhe
tadpaati saamne baithi aur bechaini ke saath bina sharam aur hichak
ke boli, "haye Bhabhi meri chuswa do."
Ab mujhe yakin ho gaya tha ki nanad aur Bhabhi sabhi chalu hain aur
meri jawani ko dekh karlalcha gayi hain. Main kafi lamba chouda aur
umar 26 saal thi. Main jawan aurat ke saath sayani ho rahi ladakiyo
ko paa apne luck par khush tha. Mera lund tezi se jhatke le raha
tha. Usne apni jawan nanad ko kayde se bithaya fir uski choochiyon
par haath rakh boli, "ghar chalkar aaram se pilana. Kyon bhai sahab
makaan chahiye?"

"j..ji jo kiraya kahengi doonga."

"kiraya nahi dena hoga bas mujhe aur meri dono pyaari-pyaari nanado
ko jawan kijiye. Ham log kewal mard kirayedaar rakhte hain. Lijiye
thoda Mina ki bhi daba lijiye." Aur apne haath se mere haath ko
pakad apni nanad ki choochiyon par rakha.
kramashah.......................

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