Wednesday, October 24, 2012

हिंदी सेक्सी कहानियाँ आकर्षण- 6

 

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

आकर्षण- 6

लेखिका : वृंदा
मुझे अपने टांगों के बीच कुछ रिसता हुआ सा महसूस हो रहा था... मेरी अन्तर्वासना मुझे सारी हदें भूल जाने को कह रही थी.. मैं इसी उधेड़बुन में थी कि तभी वो आगे बढ़ा, उसने मुझे बिस्तर पर धकेल दिया और मेरे ऊपर चढ़कर.. मुझे ज़ोरदार चुम्बन करने लगा..
मैं उसके होंठों के रस में डूब जाना चाहती थी.. उसने मेरी टीशर्ट के अन्दर हाथ डाल दिए... और मेरे चूचे मसलने लगा .. मेरी आनन्द से भरी सीत्कारें कमरे के माहौल को और कामुक बनाने लगी... मेरा हाथ खुद ब खुद उसके बलिष्ठ शरीर से फिसलता हुआ उसके कूल्हों पर जा पहुँचा ... मैं उसकी गोलाइयाँ मसलने लगी...
"अच्छा जी...!!! यह बात ..? हिम्मत है तो इसे मसल कर दिखा.." कहते हुए उसने मेरा हाथ उसके पायजामे में छिपे कड़क लण्ड पर रख दिया..!!!"
हम दोनों ही यौवन की काम क्रीड़ाओं में सारे संसार को भूल चुके थे...
मैं धीरे धीरे उसका लण्ड सहलाने लगी... और अब वो जोर जोर से मेरी अमरुद जैसी चूचियों को अपने हथेलियों के भीतर कुचल रहा था... साथ ही साथ उसके होंठ मेरी सीत्कारों को बंद करने के लिए मेरे होंठो को बार बार चूमते, उसकी जुबान मेरी जुबान से टकराती और फिर दौर शुरू हो जाता एक लम्बे चुम्बन का....!!!
फिर उसने एक हाथ मेरे चूचों से हटा कर मेरी निक्कर में घुसा दिया.. उसके आशा के विपरीत मैंने भीतर कुछ नहीं पहना था.. मेरे चूत की बाल घने घुंघराले और काले हैं... वो.. उस घने जंगले में पानी का स्रोत ढूंढने लगा... मेरी चूत को अपनी हथेलियों में भरकर उसने दबा दिया..
मेरी तो आह ही निकल गई...
उसकी एक ऊँगली मेरी चूत में भ्रमण कर रही थी !
उसने उस स्थान के गीलेपन को छुआ और ऊँगली बाहर निकाल ली... उसे सूंघते हुए... उसने मेरी ऊँगली चाट ली...!!!
अब उसने मेरी टीशर्ट उतार फेंकी और अपने मुँह मेरी चूचियों में दे दिया... मेरे होंठों को हाथों से दबा दिया.. और फिर मुझे मेरी टांगों के बीच एक मचलता सा हाथ महसूस हुआ.. और...
आआह्ह्ह आआअह्ह ... वो मेरी चूत में दो ऊँगली डाल आगे पीछे करने लगा.. तब तक में भी उसके पयजामे से उसका लण्ड बाहर निकाल चुकी थी... वो मुझे अपनी उंगलियों से काफी देर तक तड़पाता रहा... कभी अन्दर डालकर घुमा देता.. कभी दाना दबाता... मेरी फ़ांकें खोल कर उसमें गिटार बजाता...
मैं बस अपनी आँखें बंद कर अपने जिस्म के मज़े ले रही थी...
कि तभी वो मेरे ऊपर से हट गया...!!!
" क्या हुआ.. हट क्यों गए..?... " एकाएक मैंने आँख खोल कर देखा...
वो मेरे सामने खड़ा था उसका लंड हवा में तना हुआ... और मैं अधनंगी उसके सामने लेटी हुई थी... मेरे चमकते जिस्म की चमक उसकी आँखों में देख सकती थी... मेरी निक्कर आधी नीचे उतर चुकी थी.. मेरे इस सवाल पर उसने मुझे टांगों से अपनी और खींचा और मेरी निक्कर उतार फेंकी... अपनी लंड हाथ में लिए वो वो मेरी चूत को और तड़पाने लगा.... उसने फिर से मेरी चूत में ऊँगली कर दी.. और अबकी बार तीन उंगलियाँ घुसा दी.. फिर निकाल कर मेरे मुँह में दे दी...
मैंने मना किया...
"देख तुझे इस सब में मज़ा आया न.. तो यकीन रख, इसमें भी आएगा...ले चूस इसे.."
मैंने उसकी उँगलियाँ मुँह में डाली.. खट्टी खट्टी थीं...
अब वो मेरे ऊपर उल्टा होकर लेट गया... उसकी टांगें मेरे मुँह की तरफ थी.. अब वो फिर मेरी चूत में उँगलियाँ करने लगा... और मुझे अपना लण्ड चूसने पर मजबूर करने लगा...
"विश्वास रख .. शुरू शुरू में मानता हूँ, अच्छा नहीं लगेगा.. पर तू चूसना मत.. बस होंठों से लगाना.. जैसे मुझे प्यार करती हो .. इस छोटे वेदांत को भी प्यार करना....!!!"
मैं वासना में डूबी उसकी हर बात मानती चली गई....अब तो ना वो बर्दाश्त कर पा रहा था न मैं... मैं जल्द से जल्द कुछ कर गुज़ारना चाहती थी... अपना सब कुछ उसे सौंप कर हमेशा के लिए उसकी हो जाना चाहती थी..
काफी देर मेरी मेरी चूत में ऊँगली करने के बाद उसने मेरी चूत पर जीभ लगा दी... और मेरी गांड में ऊँगली करने लगा... मैं चुदने के लिए तड़पने लगी।
अब मेरी ऐसी हालत हो गई कि वेदांत के अलावा अगर और कोई भी आ जाता तो तो उसके कपडे फाड़कर मैं उसके लण्ड पर बैठकर उसे चोद देती... मैं अपने बस में नहीं थी... मैं किसी भी तरह लण्ड लेने के लिए तैयार थी... मेरी चूत रस छोड़ छोड़ कर एक तालाब बन चुकी थी... काम-रस चूत से बहता हुआ हर जगह जा पहुँचा था.. गाण्ड पर.. बिस्तर पर... जांघों पर... मैं बुरी तरह प्यासी थी... मेरी अन्तर्वासना पूर्ण जागृत हो चुकी थी... और मर्दाने जिस्म की चाहत... जो सिर्फ एक लण्ड से बुझ सकती थी....
मैं जंगली बिल्ली की तरह अब उसे नोचने लगी थी... उसने मेरी चूत को छोड़ा और खड़े होकर मेरी चूत में लण्ड फ़ंसाने लगा... लंड घुस तो गया था पर.. अन्दर नहीं जा पा रहा था.. आखिर लण्ड और उंगलियों में कुछ तो फर्क होगा, तभी तो सब औरतें लण्ड की दीवानी होती हैं... वरना उँगलियाँ तो औरतों के पास भी हैं...!!!
मैंने उसे कहा- तुम लेट जाओ.. अब मैं तुम्हे मज़ा दूंगी..
"मेरी जान चाहे मैं लेटूँ या तुम.. चुदोगी तो तुम ही... चाहे खरबूजा चाकू पर गिरे.. या चाकू खरबूजे पर कटता तो खरबूजा ही है ना...उसी तरह फटती तो चूत ही है ना..."
मैंने उसे गाली दी.. साले हरामी ! तुझमें चोदने का दम होता तो अब तक उंगली ना कर रहा होता.. मेरी चूत इतनी गीली है कि किसी बुड्ढे का लण्ड भी फुफकारने लगे..."
"अच्छा मेरी जान ?"
कह कर वो पलंग पर लेट गया...
मैं उछल कर उसके ऊपर टागें खोल कर बैठने लगी। 5-6 मिनट की कोशिश के बाद उसका लण्ड धीरे से मेरी चूत में घुस गया... मेरी आँखें काम-सुख से बंद होने लगी.. और अचानक से उसने मुझे नीचे से झटका दिया... और और उसने धक्के लगाने शुरू कर दिए...
उसने मेरे दर्द की तनिक भी परवाह नहीं की...
बल्कि वो मेरा दर्द भरा चेहरा देख और कामोत्तेजित हो उठ रहा था..
वह मेरे चूचों का मर्दन करने लगा... चूत का दाना बीच बीच में सहलाने लगता !
अब वो अचानक से पलटा और मेरे ऊपर आकर मेरी चूत पर अपने लण्ड का हक़ साबित करने लगा.. जितना उसमें दम था.. सारा एक जुट कर मेरी चूत मारने लगा..
मैं आनंदित हुई आंखें बंद कर मज़ा लेने लगी.. बीच बीच में मैं उसके होंठ अपने चूचों और अपने गालों पर महसूस करती...
बीच बीच में वो मुझे प्रेम भरे चुम्बन देता... धीरे धीरे उसके धक्के तेज़ होने लगे ... चूत में मुझे खिंचाव महसूस होने लगा... खुद ब खुद मैं उसके धक्कों से ताल से ताल मिला कर... उसका ज्यादा से ज्यादा लण्ड अपने भीतर लेने की कोशिश करने लगी... मेरी कोमल काया, उसके पसीने से भरे बलिष्ठ शरीर के नीचे दबी हुई कसमसा रही थी.. आनन्द अब अपनी चरम सीमा तक पहुँच रहा था..
एक झटके से जाने क्या हुआ मुझे अपनी दोनों जांघों के बीच कुछ गर्म-गर्म रिसता हुआ सा महसूस हुआ...
... मेरे मुँह से आनन्द भरी आहें निकलने लगी... बंद आँखें जब खुली तो वो मेरे ऊपर था और लम्बी लम्बी सांसें ले रहा था...
उसकी गर्म-गर्म सांसें मेरे पसीने से गीले बदन को ठंडक पहुँचा रहीं थी...
मैंने उसे उसकी गर्दन पर एक चुम्बन किया... और कुछ देर हम उसी तरह लेटे रहे...
कुछ देर बाद .. सामान्य अवस्था में आने पर वेदांत मुझ पर से हट कर मेरे साथ में लेट गया...
हम दोनों ने एक दूसरे को देखा और जोर जोर से हंसने लगे... यह सोचकर कि यह क्या हो गया.. एक चुम्बन ने क्या कर दिया... या फिर शायद यह यौवन ही था जिसने यह सब करा दिया...
मैं उसकी ओर थोड़ी टेढ़ी होकर लेट गई.. और उससे अपने प्यार का इजहार किया...
" वेदांत, एक बात कहूँ...?"
"फिर से करने का इरादा है क्या...?"
"नहीं वो... मतलब हाँ.. मेरा मतलब .. नहीं..." अचानक ही मुझे शब्दावली में शब्द कम होते महसूस हुए।
"क्या नहीं.. हाँ.."
मैंने आंखें बंद कर ली और कह डाला,"आई लव यू !"
और उसने बहुत ही सहजता से जवाब दिया,"मैं भी !"
और इस बार मैंने पहला कदम उठाया.. और उसे एक चुम्बन दिया.. मैं बहुत खुश थी.. कम से कम मैंने अपना सब उसे सौंपा, जिससे मैं प्रेम करती हूँ और जो मुझ से प्रेम करता है.. अब आगे कुछ भी हो.. मुझे किसी बात का डर नहीं था... मुझे किसी बात की परवाह नहीं थी.. उसे ही अपनी मंजिल मान चुकी थी मैं...
यह भाग समाप्त..
क्या वो सच मच प्रेम था.. या केवल एक रात की आग ... क्या उसने मेरा फायदा उठा कर मेरे मासूम प्रेम को ठगा था.. या यह सब कुछ सोच-समझ कर की गई मेरे खिलाफ एक साजिश थी..
जानने के लिए पढ़ते रहिये आकर्षण.. केवल अंतिम भाग शेष ..!!!
arpitas.1987@gmail.com
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