Wednesday, January 1, 2014

FUN-MAZA-MASTI पंडित & शीला पार्ट--16

FUN-MAZA-MASTI


 पंडित &  शीला पार्ट--16

 


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गतांक से आगे ......................
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 रितु के छोटे-२ स्तन जो करीब छोटे संतरों के अकार के होंगे उसके सामने थे, और नीचे उसकी पतली कमर और पीछे भरवां गांड ..उसने सोचा 'कसम से एक बार ये मेरे नीचे आ जाए इसको तो बिना टिकट के आसमान की सेर करवा दू ..'


पंडित ने अपने लंड को और तेजी से मसलना शुरू कर दिया ..


अचानक गिरधर के कमरे से माधवी की आवाजें और तेजी से आनी शुरू हो गयी ...


"अह्ह्ह्ह्ह्ह ......ऐसे ही .....चोद ....साले ....अह्ह्ह्ह ......भेन चोद .......डाल अपना लंबा लंड .....और अन्दर ....तक ...अह्ह्ह्ह ......अह्ह्ह्ह ...ओफ़्फ़्फ़्फ़्फ़ ..."


गिरधर ने उसे अपनी गोद में उठाकर अपना लंड उसकी फुद्दी में जोर - २ से पेलना शुरू कर दिया था ...


और लगभग एक साथ ही दोनों का रस माधवी की ओखली में निकला और दोनों वहीँ बेड के ऊपर लेटकर गहरी साँसे लेने लगे ..


और दूसरी तरफ बेचारी रितु सिर्फ अपने संतरों को मसलकर ही रह गयी ...उसे शायद अभी तक मुठ मारना भी नहीं आता था ..वो अपने हाथों को बस अपनी चूत पर रगड़कर ही रह गयी ..वहां और क्या करने से कैसे मजे मिलेंगे, उसे नहीं पता था ..और उसकी नादानी को देखकर पंडित उसकी कुंवारी चूत को देखते हुए जोरों से बडबडाने लगा ..


'अह्ह्ह्ह ...सा ली ...तुझे तो पूरा तराशना पडेगा ....अह्ह्ह्ह तेरी कमसिन जवानी को तो मैं अपने लंड के पानी से नहलाऊगा ...अह्ह्ह्ह्ह्ह ....ये ले ....नहा ले ..'


और ये कहते हुए उसके लंड ने अपने पानी का त्याग कर दिया रितु की खिड़की पर ...और गाड़े और सफ़ेद रस से खिड़की के नीचे की दीवारें रंग गयी ..


पंडित को पता था की अगले दिन रितु को क्या सिखाना है अब ..वो अपने कपडे समेट कर चुपके से जहाँ से आया था वहीँ से वापिस चला गया ..


अब तो उसे अगले दिन का इन्तजार था ...


 वो रात बड़ी ही मुश्किल से कटी थी पंडित की ..


सुबह उठकर हमेशा की तरह पंडित ने मंदिर के सारे कार्य निपटाए, भक्तों को प्रसाद दिया, पूजा अर्चना की और वापिस अपने कमरे में आ गया और थकान दूर करने के लिए चाय पीने की सोची पर चाय पत्ती नहीं थी, कल भी जब वो सामान लेने के लिए इरफ़ान की दूकान पर गया था तो उसे याद नहीं रहा था ..वैसे तो इरफ़ान ने उसे शाम को आने के लिए कहा था पर अभी चाय पत्ती लाना भी जरुरी था, इसलिए वो वहां चल दिया ..


दूकान पर पहुंचकर देखा तो पाया की दूकान तो बंद है ..सुबह के 9 बजने वाले थे, इतनी देर तक तो वो दूकान खुल ही जाती है ..वो कुछ देर तक वहां खड़ा हुआ सोचता रहा की ऊपर उसके घर जाए या नहीं ..पर फिर कुछ सोचकर वो ऊपर चल दिया ..


अन्दर जाने का दरवाजा खुला हुआ था, उसने दरवाजा खोल कर आवाज लगायी : "इरफ़ान भाई ...घर पर ही हो ..."


पर कोई आवाज नहीं आई, वो थोडा अन्दर गया तो बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आई, पंडित ने फिर से पुकारा ..


'इरफ़ान भाई ...ओ इरफ़ान भाई ...'


अन्दर से नूरी की नशीली सी आवाज आई 'कोन है ...'


उसकी आवाज सुनते ही पंडित के शरीर में करंट सा दौड़ गया, पंडित ने अपने आप को संभाला और बोला : "मैं हु ..मंदिर वाला पंडित .."


नूरी : " अरे वाह ...पंडित जी ..रुकिए जरा ...मैं अभी आई ..."


पंडित वहीँ सोफे पर बैठ गया ..और फिर से तेज आवाज में बोला : "इरफ़ान भाई कहाँ चले गए ..आज दूकान भी नहीं खुली ..."


अन्दर से नूरी ने जवाब दिया : "वो आज सुबह -२ हिना खाला का फ़ोन आया था, उनका छोटा बेटा हॉस्पिटल में है ..उन्हें कुछ पैसों की जरुरत थी ..वही देने गए हैं ..२ घंटे में आयेंगे वो .."


इतना कहते-२ वो बाहर निकल आई ...पंडित उसे देखते हुए जैसे सपनों की दुनिया में खो सा गया ...

वो बिलकुल बदल गयी थी ...जिस्म पूरा भर सा गया था ..गोरा चिट्टा रंग ..चमकता हुआ चेहरा, गुलाबी आँखें , पतले और लाल सुर्ख होंठ , और नीचे का माल देखकर तो पंडित की जीभ कुत्ते की तरह से बाहर निकल आई,

उसके दोनों मुम्मे जो पहले 34 के साईज के थे, अब 38 के हो चुके थे , कमर का कटाव उसके कसे हुए सूट में से साफ़ नजर आ रहा था , और उसकी मोटी टांगों का गोश्त तंग पायजामी को फाड़कर बाहर आने को अमादा था ..उसके बाल भीगे हुए थे, जिनमे से पानी की बूंदे अभी तक टपक रही थी ..


पंडित : "मैं तो दूकान से कुछ सामान लेने के लिए आया था ..पर दूकान बंद थी, इसलिए मैंने सोचा की ऊपर आकर देखू की सब ठीक तो है न, वरना इरफ़ान भाई की दूकान कभी बंद तो नहीं होती ..ऊपर आकर देखा तो दरवाजा भी खुला हुआ था ..इसलिए सीधा अन्दर आ गया .."


वो नूरी के जिस्म को घूरने में लगा हुआ था और बोलता भी जा रहा था .


नूरी बोली : "वो अब्बा जान जब गए तो बाहर का दरवाजा बंद करना भूल गयी मैं ...वैसे भी कोई आता ही कहाँ है हमारे घर ..कल रात को अब्बा ने बताया था की आप आयेंगे शाम को ..कुछ बात करने के लिए .."


पंडित : "हाँ ...वो ...दरअसल ..." पंडित को सूझ ही नहीं रहा था की क्या बोले और क्या नहीं ..


नूरी : "मुझे पता है की अब्बा ने आपको सब कुछ बता दिया है मेरे बारे में ..और शायद आपसे बोला भी है की मुझे कुछ समझाए ..इसलिए आपने शाम को आने को कहा था न .."


पंडित ने हाँ में सर हिलाया ..और नूरी की तरफ देखता रहा , वो सब बोलते - २ उसकी आँखों से पानी निकलने लगा था ..वो रोने लगी ..पंडित को सूझ ही नहीं रहा था की वो करे तो करे क्या ..


नूरी रोते -२ उनके पास आई और अपने घुटने पंडित के सामने टिका कर उनके पैरों पर अपने हाथ रखकर बैठ गयी ..और बोली : "पंडित जी ...अब्बा तो समझते ही नहीं है ..जिस तकलीफ से मैं गुजर रही हु वो सिर्फ मैं ही जानती हु ..मैं तो अपनी परेशानी उन्हें बता भी नहीं सकती .."


पंडित के सामने बैठने की वजह से नूरी के दोनों उरोज किसी पकवान से सजी प्लेट की तरह पंडित के सामने थे ..उनके बीच की लकीर (क्लीवेज) लगभग २ इंच तक बाहर दिखाई दे रही थी ..और सूट के अन्दर दोनों मुम्मों को जैसे जबरदस्ती ठूंसा गया था ..वहां का गोरापन भी कुछ ज्यादा ही था ..और पानी की बूंदे वहां भी फिसल कर नीचे की घाटी में छलांग लगा रही थी ..उसकी बातों से ज्यादा पंडित का उसके भीगे हुए हुस्न पर ध्यान था ..


पंडित : "तुम ..अगर चाहो तो मुझे अपनी परेशानी बता सकती हो .."


 नूरी कुछ देर तक अपनी नजरें झुका कर बैठी रही ..जैसे सोच रही हो की पंडित को बोले या नहीं .. ..फिर धीरे से बोली : "वो दरअसल ...जब से मेरा निकाह हुआ है, मेरा शोहर और घर के दुसरे लोग चाहते हैं की मैं जल्द से जल्द माँ बन जाऊ , और इसके लिए हमने पहले दिन से ही कोशिश करनी भी शुरू कर दी थी .."


पंडित ने सोचा 'साली साफ़ -२ क्यों नहीं बोलती की बिना कंडोम के चुदाई करनी शुरू कर दी थी तेरे शोहर ने पहली रात को ही ..'


वो आगे बोली : "पर २ महीने के बाद भी कोई रिसल्ट नहीं निकला तो घर वालों ने और मेरे शोहर ने भी मुझे भला बुरा कहना शुरू कर दिया ..घर में लडाई झगडे भी होने लगे , और जब ज्यादा हो जाती तो मैं घर भी आ जाती, पर थोड़े समय के बाद सब कुछ भूलकर लौट भी जाती थी ...पर इस बार तो मैंने सोच लिया है ..मैं वापिस जाने वाली नहीं हु .."


पंडित : "क्यों ..ऐसा क्या हुआ है .."


नूरी : "उन्होंने मेरे सारे टेस्ट करवा लिए, मुझमे कोई कमी नहीं है ..और जब मैंने अपने शोहर को टेस्ट करवाने के लिए कहा तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया ..और बोले की उन्हें ये सब करने की कोई जरुरत नहीं है ..कमी मेरे अन्दर ही है ..और वो दूसरी शादी करके दिखा भी देंगे की वो बच्चा पैदा करने की काबलियत रखते हैं ..पर मुझे मालुम है की दूसरी शादी करने के बाद भी कुछ नहीं होने वाला ..कमी उनके अन्दर ही है ..ये बात मानने को वो तैयार ही नहीं है .."


पंडित : "देखो नूरी ..तुम्हारी बात सही है ..पर हमारा समाज मर्द प्रधान है ..और उसे ही प्राथमिकता देता है ..इन सब बातों के लिए हमेशा से ही औरत को दोषी माना जाता है ..तुम अपनी जगह सही हो ..तुमने सही किया, अगर उसे तुम्हारी कदर होगी तो अपने आप ही आएगा तुम्हे लेने .."


नूरी पंडित की बातें सुनकर मुस्कुरा दी ..उसने सोचा , चलो कोई तो है जिसे उसके निर्णय की कदर है ..


पंडित : "पर तुमने अपने अब्बा के बारे में भी सोचा है कभी ...वो कितने चिंतित रहते हैं ..तुम उन्हें ये सब कुछ बता क्यों नहीं देती .."


नूरी : "नहीं ...नहीं ..मैं उनसे ये सब कभी नहीं बोल सकती ..उन्हें काफी तकलीफ होगी ..उन्हें बी पी की प्रॉब्लम है, ये सब सुनकर और अपनी बेटी का घर उजड़ता हुआ देखकर वो और भी टेंशन ले लेंगे ..नहीं ...मैं उन्हें ये सब नहीं बता सकती .."


पंडित : "फिर एक ही उपाय है इसका ...तुम वापिस अपने घर जाओ ..ताकि तुम्हारे अब्बा की परेशानी कम हो जाए .."


नूरी : "पर वहां जाकर मेरी परेशानी शुरू हो जायेगी, उसका क्या ..उन्हें तो बस मेरी कोख में बच्चा चाहिए, ताकि अपने समाज में वो गर्व से कह सके की उनका लड़का नामर्द नहीं है ..."


उसने अपने दांत पीस कर ये बात बोली ..


फिर कुछ सोचकर वो बोली : "पर एक तरीका है ...जिससे मैं वहां वापिस भी जा सकती हु और उन्हें सबक भी सिखा सकती हु .."


पंडित : "क्या ...??"


नूरी : "मैं किसी और के साथ सम्बन्ध बना लू ..और अपनी कोख से उन्हें अलाद नसीब करवाऊ ...और ये सब जानते हुए की मेरी औलाद मेरे नामर्द पति की निशानी नहीं है, मुझे उन्हें सबक सिखाने का मौका भी मिल जाएगा ..."


पंडित उसकी बातें सुनकर भोचक्का रह गया ...वैसे पंडित के मन में सबसे पहले यही बात आई थी की उसे बोले की तू बाहर से चुद ले और उन्हें बच्चा दे दे ..उन्हें क्या पता चलेगा ...पर यही बात नूरी ने इतनी आसानी से कह डाली, इसका उन्हें विशवास ही नहीं हो रहा था ..और अब पंडित को अपना नंबर लगता हुआ दिखाई दे रहा था ..


पंडित : "देखो… जो भी तुमने सोचा है ..वो गलत तो है ..पर तुम अपनी जगह सही हो ..अपनी ग्रहस्त जिन्दगी बचाने के लिए तुम्हारा इस तरह से सोचना बिलकुल सही है ..मुझे तुम्हारा ये सुझाव पसंद है ..पर क्या ...तुमने ...सोचा है की ...किसके साथ ..मेरा मतलब है .."


नूरी की आँखों में भी गुलाबी डोरे तेरने लगे ..वो धीरे से फुसफुसाई : "वो मैं सोच रही थी ...की ..अपने ...अब्बा को ही ...मतलब ..उनके साथ ...ही कर लू ..."

नूरी की बातें सुनते ही पंडित के सपनों का महल एक ही पल में चूर चूर हो गया ...


नूरी : "आप ही बताइए पंडित जी ..उनसे बेहतर और कौन होगा ...इस काम के लिए ..घर की बात घर पर ही रह जायेगी ...और वैसे भी, अम्मी के इंतकाल के बाद अब्बा की हालत देखि है मैंने ...रात -२ भर जागते रहते हैं ..तड़पते रहते हैं अपने बिस्तर पर ...और ...और ...अपने हाथों से ..खुद ही ..वो भी करते हैं ..."


पंडित उसकी बात सुनकर चोंक गया : "क्या ...क्या करते हैं .."


नूरी : "अपने पेनिस को रगड़ते हैं ...मूठ मारते हैं ...मैंने देखा है ..उन्हें .."


पंडित समझ गया की नूरी का मन शुरू से ही अपने अब्बा यानी इरफ़ान के ऊपर आया हुआ है ..इसलिए वो चुप कर उसकी हर बात पर नजर रखती है ..


नूरी : "पंडित जी ..आपको मैंने ये सब इसलिए बताया की आप मेरी मदद करो ..आप को मैं अपना सच्चा हितेषी मानती हु ..और आप अब्बा को भी अच्छी तरह से जानते हैं ..आप ही कोई रास्ता निकाले जिससे मैं वो सब कर सकू जो मैंने सोच रखा है .."


पंडित समझ तो गया था की वो अपनी बात पर अडीग है .अपने बाप से चुदवा कर और प्रेग्नेंट होकर ही मानेगी ..पर पंडित ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली थी ..वो अपने हाथ आये हुए इतने अच्छे अवसर को नहीं जाने दे सकता था ..उसके मन में प्लान बनने शुरू हो गए ...



 पंडित को काफी देर तक चुप रहते और कुछ सोचता हुआ देखकर नूरी बोली : "पंडित जी ..क्या सोचने लगे ..बताइए न, कैसे होगा ये सब ..जो मैंने सोचा है .."


पंडित : "देखो नूरी ..तुम मेरी बात का गलत मतलब नहीं निकालना ..पर जो भी तुम सोच रही हो, वो इतना आसान भी नहीं है ..मैं इरफ़ान भाई को अच्छी तरह से जानता हु ..दरअसल ..हमारी दोस्ती है ही इतनी गहरी की वो अपने दिल की हर बात मुझसे शेयर कर लेते है ..और उन्हें जो प्रोब्लम है वो मुझे भी पता है .."


नूरी (आश्चर्य से ..) : "उन्हें ..उन्हें क्या प्रोब्लम है ..."


पंडित : "वो दरअसल ..इरफ़ान भाई के लिंग में कुछ प्रोब्लम है ..बढती उम्र के साथ वो उनका साथ नहीं दे रहा है ..और मैंने उन्हें कुछ ख़ास किस्म की ओषधि लगाकर अपने लिंग की मालिश करने को कहा है ताकि वो पहले जैसा ताकतवर हो जाए ..और जब तक वो नहीं होगा उनके लिंग से निकले वीर्य में भी कोई शुक्राणु अपना कमाल नहीं दिखा पायेंगे ...और तुम्हारीसारी प्लानिंग धरी की धरी रह जायेगी ."


पंडित ने जल्दबाजी में अपने मन की बनायी हुई झूटी कहानी सुना दी नूरी को ..


पंडित की बाते सुनकर नूरी का मुंह खुला का खुला रह गया ...


नूरी : "पर ...पर पंडित जी ...आप ये सब ..कैसे ..क्यों कर रहे है .."


पंडित : "दरअसल मैंने ओषधि विज्ञान को पड़ा हुआ है और इस बात का तुम्हारे अब्बा को भली भाँती पता है ..इसलिए उन्होंने मुझे अपनी व्यथा बताई थी ..और वही ओषधि का लेप वो अपने लिंग पर रोज करते हैं जिसे तुमने समझा की वो अपने अन्दर की उत्तेजना शांत कर रहे है ...उन्हें पहली जैसी अवस्था में आने के लिए कम से कम 6 महीने का समय लगेगा .."


नूरी : "या अल्लाह ...इतने समय में तो क्या से क्या हो जाएगा ...अब मैं क्या करू ..अच्छा हुआ मैंने अपने मन की मानकर अब्बा को अपने बस में करने की पहले नहीं सोची ...वर्ना सब कुछ करने के बाद भी कुछ ना हो पाता तो मैं उनसे पूरी उम्र नजरें न मिला पाती ...अब क्या होगा मेरा ..."


पंडित अपनी कुटलता पर मन ही मन मुस्कुरा रहा था ..


पंडित : "पर तुम परेशान मत हो .कोई न कोई हल निकल ही आएगा ..तुम्हारे अब्बा के अलावा कोई और भी तो होगा तुम्हारे जहन में जो तुम्हारी ऐसी मदद कर पाए .."


नूरी लगभग टूटी हुई सी आवाज में बोली : "नहीं पंडित जी ...और कोई नहीं है ..मैंने ऐसा कभी सोचा नहीं था ..पर मेरे साथ जो खेल जिन्दगी मेरे साथ खेल रही है , उसकी वजह से मैंने ये कदम उठाने की सोची ..और कोन है जो मेरी मदद करे .."


पंडित का मन कह रहा था की चिल्ला कर बोले 'भेन की लोड़ी , तेरे सामने एक जवान और हस्त पुष्ट इंसान खड़ा है ...मुझे बोल न ..'


तभी जैसे पंडित के मन की बात समझकर नूरी कुछ सोचते-२ पंडित को देखकर दबी आवाज में बोली : "पंडित जी ..अब आप ही है जो मेरी मदद कर सकते हैं ..."


पंडित (अनजान बनते हुए ) : "मैं ...कैसे ..."


नूरी (अपनी नजरें नीची करते हुए ) : "आप मुझे गलत मत समझिएगा ..पर मैं किसी और को कहने से अच्छा आपसे अपनी मदद करने की उम्मीद रखती हु ...अगर आपको कोई प्रॉब्लम न हो तो ...क्या आप… मुझे ...मुझे ..."



वो आगे ना बोल पायी ..


पंडित : "ये क्या कह रही हो तुम नूरी ...मैं कैसे तुम्हारे साथ वो सब ...."


नूरी एकदम से तेष में आते हुए : "क्यों ..क्या कमी है मुझमे ..मैं सुन्दर नहीं हु ..आपको पसंद नहीं हु क्या ..मुझे सब पता है पंडित जी ..आप मुझे किस नजर से देखते हैं ..लड़की को कोनसा इंसान कैसी नजर से देख रहा है और उसके बारे में क्या सोच रहा है उसे सब पता रहता है , फिर चाहे वो लड़की का भाई या बाप हो या फिर रिश्तेदार या कोई और मिलने वाला ..मैंने देखा है आपकी नजरों में भी, वही लालसा , वही प्यास , वही ललक जो मुझे पाना तो चाहती है पर सीधा कहने से डरती है ..है न पंडित जी ..बोलिए ..."


पंडित ने अपना सर झुक लिया, नूरी उनकी समझ से कही ज्यादा चतुर निकली ..


उनका झुक हुआ चेहरा देखकर नूरी बोली : "पंडित जी ..देखिये ..मेरा मकसद आपको ठेस पहुंचाने का नहीं था ...मैं तो सिर्फ .आपसे मदद मांग रही थी ...बोलिए ...आप मेरी मदद करेंगे ना .."


कहते -२ नूरी के हाथ पंडित की जांघो पर चलने लगे ..उसकी साँसे तेज होने लगी ...उसके उभार ऊपर नीचे होने लगे ..और आँखे और भी गुलाबीपन पर उतर आई ..और ये सब पंडित जी से सिर्फ एक फुट की दुरी पर हो रहा था ..



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