raj sharma stories
बलात्कार--2
गतान्क से आगे..................
उधर मोतिया ने कमला की चूत के परखच्चे उड़ा दिए थे. खून और उसका रस, चूत से रिस रहे थे और धीरे धीरे उसके साँवले छूतदों के बीच छिपे काले से छेद पे मिल रहे थे. मोतिया ने अपनी जीभ उसके मुँह के अंदर घुसा रखी थी और लंड उसकी चूत को दना दान, गपा गॅप चोद रहा था……कमला को चुदाई का कोई अनुभव नहीं था….मगर फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ के आवाज़ों के बीच उसने अचानक महसूस किया उसका पेशाब निकलने वाला है…….मोतिया ने उसके बाए मम्मे को चूसना शुरू कर दिया मगर चुदाई जारी थी….. ठप-ठप-ठप-ठप-ठप…….फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ……………..अचानक कमला के मुँह से निकला …आआआआआआआहह…..और उसे लगा उसने पेशाब कर दी है……मगर दरअसल वो छ्छूट चुकी थी…..ये, उस बेचारी का पहला सेक्स अनुभव था………मोतिया के धक्के वीभत्स हो चुके थे……..तेज़, तेज़, और तेज़….अचानक वो चिल्लाया,”अयाया रंडीईईईईईई………..”, और कमला ने महसूस किया मानो मोतिया का लॉडा उसके अंदर लगातार थूक रहा था……गरम-गरम-चिप चिपा वीर्य……मोतिया का वीर्य………..कमला के अंदर……..च्चटपटा कर कमला ने निकलने की कोशिश की, मगर उस हरांज़ाड़े को कोई परवाह नहीं थी. बेरहमी से उसने कमला के चूतड़ पकड़ कर अपनी ओर भींच लिए और हर बूँद उसके अंदर ही रहने दी. पूरी तरह से खल्लास होने के बावजूद, कमीना दस मिनिट तक कमला के पूरे नंगे बदन पे बेरहमी से चिपका रहा………………
सत्तू और कालू रूपाली की साड़ी और पेटिकोट हटा चुके थे. अब वो भी कमला की तरह मादार-जात नंगी थी. उसीकि साड़ी और पेटिकोट को नीचे बिछा कर दोनो ने उसको नीचे लिटा दिया था. सारी पे लेटने के बावजूद, रूपाली को अपनी पीठ पे खेतों के कंकर-पत्थर चुभते हुए महसूस हुए.
कालू ने उसकी गोरी जांघें देखी तो पागल हो उठा. उसने रूपाली के गोरे पैरो और जाँघो को चूमना-चूसना शुरू कर दिया. सत्तू रूपाली के गालों को हाथो से चिकोटी काट रहा था और कभी कभी उसके मम्मों को भोंपु की तरह बजा देता था. रूपाली की गोरी चूत पे, छ्होटी छ्होटी काली झांते थी और उनको देखते ही कालू का दिमाग़ खराब हो गया. उसने चूत का एक हिस्सा मुँह में दबाया और ऐसे चूसने लगा मानो किसी बच्चे के मुँह में रसीली टॉफी आ आई हो. फिर अपनी जीभ रूपाली की चूत में उसने पूरी घुसा दी और रूपाली की सिसकारियाँ निकलने लगी. उंगली पे थूक लगा के रूपाली की गांद के सुनहरे, भूरे छेद से खेल रहा था कालू और जीब पूरी तरह से गुलाबी चूत को चोद रही थी. रूपाली पूरी तरह गन-गॅना उठी.
रूपाली ने नज़र घुमा के देखा……कमला लेटी हुई थी और बेबसी की हालत में उसको देख रही थी…..उसके ठीक पीछे मोतिया लेटा हुआ था और बेशर्मी से मुस्कुराते हुए उसको एकटक देख रहा था……जैसे ही रूपाली की आँख उसकी आँख से मिली, वो बेशर्मी से मुस्कुराते हुए बोला,”क्यूँ ठकुराइन? पंचायत में बोलोगि कैसे कालू चूत चूस रहा आपकी? हाहहाहा.” रूपाली ने नफ़रत से दूसरी तरफ नज़रें घुमा ली.
अचानक रूपाली को गंदी सी बदबू आई. आँख खोली तो देखा ठीक नाक के नीचे एक बहुत ही बदबूदार लंड, उसके खूबसूरत मुँह में घुसने की कोशिश कर रहा है…….बिलबिलते हुए रूपाली बोली,”भगवान के लिए, ये मत करो सत्तू काका…..आप नीचे कर लो…..” सत्तू चिल्लाया,”मुँह खोल रंडी………”…..जल्दी ही पेशाब, पसीने से मिली जुली सदान्ध वाला काला लंड रूपाली के खूबसूरत गोरे मुँह में था…….उल्टी आने को हुई, मगर रूपाली के गले में घुट कर रह गयी…….बदबू से ध्यान हटाने की कोशिश करने के लिए रूपाली ने नीचे की सनसनाहट की ओर ध्यान केंद्रित किया……..
रूपाली को चूत की सनसनाहट अच्छी लग रही थी. कालू की जीभ मोटी थी और वो बड़े करीने से उसकी गुलाबी- गोरी चूत को चूस रहा था……जानवरों जैसी जीभ होने की वज़ह से उस जीभ की खुरदुराहट, जितनी बार रूपाली के दाने को छ्छू जाती, उसकी सिसकारी सी छ्छूट जाती. मुँह में बदबूदार, पसीने से चिपचिपा काला लंड था और उबकाई, नफ़रत और बेबसी के मारे रूपाली की खूबसूरत आँखों से आँसू छल्छला उठे.
आहत हिरनी की तरह, किसी तरह रूपाली ने नज़रें घुमाई तो देखा नंगी कमला उसकी ओर एकटक देख रही है. पूरी नंगी कमला की बगल में काला मोतिया नंगा लेटा हुआ था और भूखे भेड़िए की तरह रूपाली की चुदाई देख रहा था. शायद रूपाली की मज़बूरी उसके अंदर के शैतान को और जगा रही थी….इसलिए, वो रह रहकर, कमला की कसी हुई छतियो को बीच बीच में ज़ोरों से मसल देता था……हर बार उसकी कल्पना में रूपाली के गोरे स्तन आते थे जो दर-असल इस वक़्त, दो मज़बूर कबूतरों की तरह सत्तू के लटके हुए, काले टट्टों के नीचे तड़प रहे थे.
सत्तू अपना बदबूदार लंड रूपाली के मुँह में अंदर बाहर कर रहा था. चमार लॉडा आज़ादी से मनमानी कर रहा था और ठकुराइन का खानदानी मुँह, इस दबंग लंड की मनमानी सहने को मज़बूर था…..मुँह से भी गप्प-गप्प-गप्प-गप्प की आवाज़ें आ रही थी. रूपाली इस लंड से निकला कुछ भी गले के अंदर नहीं उतरने देना चाहती थी और इसलिए ढेरों थूक उगल रही थी. ढेर सारा थूक होने की वज़ह से सत्तू का बदबूदार लॉडा ऐसी चिकनाई महसूस कर रहा था जैसी उसने ना कभी अपनी पत्नी की चूत में महसूस की थी और ना कभी शहर की सस्ती रंडियों में. कभी कभी सत्तू अपने दोस्तों के साथ शहर की सस्ती रंडिया भी चोद लिया करता था, जैसा कि गाओं के लोग अक्सर करते हैं जब वो बड़े शहरों में अनाज बेचने या खाद-बीज खरीदने जाते हैं.
सत्तू वहशियों की तरह रूपाली का मुँह चोद रहा था. कालू ने रूपाली की जांघों के बीच में मुँह फँसा रखा था और चूत से रिस्ति हुई हर बूँद को ऐसे पी रहा था मानो देवता समुद्रा मंथन से निकले अमृत को पी गये थे. फ़र्क सिर्फ़ ये था, कि कालू कोई देवता नहीं, एक राक्षश था……और रूपाली की विडंबना यह थी कि इस दुष्ट राक्षश का गला काटने के लिए कोई देवता धरती पे नहीं आ रहा था.
अचानक सत्तू ने थूक से अपने दोनो चूचक (निपल्स) खूब गीले किए और रूपाली के दोनो हाथ उठाकर,उसके अंगूठों और पहली उंगली के बीच अपने निपल पकड़ा दिए. मज़बूरी में रूपाली उसका बदबूदार, मोटा लंड चूस्ते चूस्ते उसके चूचको को धीरे धीरे मसल्ने लगी. सत्तू मानो स्वर्ग में था. अपने चूचकों से उसको सनसनाहट महसूस हो रही थी…..काला लंड मोटा होते होते, अपनी पराकाष्ठा पे था और रूपाली को गले के अंदर तक चोद रहा था…….कालू की खुरदरी जीभ रूपाली की चूत के अंदर साँप की तरह बिलबिला रही थे……अचानक रूपाली को नीचे एक तेज़ सनसनाहट महसूस हुई और उसने कई झटको में कालू की जीभ में ढेर सारा शहद छ्चोड़ दिया.
रूपाली छ्छूट चुकी थी. लेकिन सत्तू ने उसके बाल पकड़ रखे थे और उसके मुँह को झटके दे देके वो उसका मुँह लगातार चोद रहा था…..रूपाली की उंगलियाँ लगातार उसके चूचकों से खेलने को मज़बूर थी……..रूपाली ने उसके चूचकों को ज़रा ज़ोर से मसल क्या दिया, एक ज़ोरदार झटका ले के सत्तू ने बहुत ही मोटा, गाढ़ा और बहुत सारा सफेद वीर्य, रूपाली के ठाकुर गले में उतार दिया.
फूकक्च…….फूकक्चह…..फुक्ककचह…… के आवाज़ और कमीने ने रूपाली का सिर इतनी ज़ोर से अपनी जांघों के बीच में भींच लिया की वो बेचारी साँस तक लेने को ऐसी मज़बूर हुई कि मुँह से साँस खींचनी पड़ी और चमार की एक एक बूँद रूपाली के शानदार ठाकुर गले से होती हुई पेट (स्टमक) के अंदर चली गयी.
पूरे 2 मिनिट ज़बरन उसे भींचे रखा सत्तू ने और जब रूपाली का सिर आज़ाद किया, तो वो ज़ोरो से खाँसने लगी. लंबे खुले बाल, गुलाबी रंग का मज़बूर, खूबसूरत चेहरा और आँखो से झार झार गिरते मोतियों जैसे आँसू………….कमीने सत्तू ने जैसे ही उसका चेहरा देखा, ज़ोरो से हँसने लगा और बोला,”पंचायत में ज़रूर बताई…..कि नास्पीटा सत्तू हमरे मुख में लवदा दिए रहा हमरे….हाहहहहहहहाहा.” कालू जो अब तक रूपाली की चूत चाट रहा था, धीरे से सरक के उठ बैठा और रूपाली का बायां मम्मा सहलाते हुए वो भी हँसने लगा!
यह सब देखते देखते मोतिया फिर से गरम हो चक्का था. वो लगातार साँवली कमला की कसी हुई चूत, जिसका किला वो थोड़ी ही देर पहले ध्वस्त कर चक्का था, सहला रहा था. कभी छूट में उंगली घुसा घुसा के मज़े लेता था और कभी उसकी चूत के दाने को मरोड़ने लगता. कमला कसमसाते हुए सिसकारियाँ ले रही थी. अचानक मोतिया एक झटके से उठा और कालू से बोला,”ठकुराइन की चूत काफ़ी चूस चुके तुम मादर्चोद….अभी तुम कमला रानी का मज़ा भी लई लो….मौकू ठकुराइन का जायजा लेन दो भाई.” कालू बड़े अनमने मंन से उठा. सच बात यह थी कि उसने सिर्फ़ एक बार एक सस्ती नेपाली रंडी को चोदा था जो गोरी थी. उस जैसे बदसूरत, कलूटे चमार को गोरी ठकुराइन के दर्शन मात्र दुर्लभ थे और यहाँ वो उनकी चूत 1 घंटे से चाट रहा था. राक्षश जैसा कालू मजबूरी में उठा, कमला की बगल में लेटा और उसकी छूट में बेरहमी से 1 उंगली पूरी घुसाते हुए उसके होंठो को ज़ोर से चूसने लगा.
चाँदनी रात थी और शायद पूरण-मासी से 1 दिन पहले का चाँद था. रूपाली का गोरा नंगा बदन मानो दूध में नहाया हुआ दिख रहा था और मोतिया और सत्तू उसको ऐसे खरोन्चे मार रहे थे मानो शैतान चीतों के हाथ एक मज़बूर हिरनी लग गयी हो और वो मारने से पहले, उसको नोच-खसोट रहे हों.
मोतिया ने अपना मोटा लंड उसके होंठों के बीच में लगाया और मज़बूर, नाकाम कोशिश को अनदेखा करते हुए, रूपाली के सुंदर मुँह में अपना लंड घुसा दिया और अंदर बाहर करने लगा. सत्तू ने रूपाली का हाथ पकड़ा और उसमें अपना लॉडा थमा दिया. मज़बूरी में रूपाली सत्तू का बदबूदार लंड, जिसको वो कुछ ही देर पहले चूस चुकी थी, हिलाने सहलाने लगी. मोतिया ने घापघाप उसके मुँह को थोड़ी देर चोदा और रूपाली की आँखें फटने को आ रही थी. अचानक, मोतिया ने अपना लंड रूपाली के मुँह से खींच के निकाल लिया, तीर की तरह नीचे सरका और घकचह से अपना मोटा लंड रूपाली की चूत में घुसा दिया. “आआआआआअहह……..”, रूपाली की घुटि सी चीख निकली और मोतिया उसको जानवर की तरह चोद्ने लगा. चमार मोतिया चोद रहा था……शानदार ठकुराइन, मज़बूरी और लाचारी में चुद रही थी….और सत्तू चामर बेचारी से अपना बदबूदार लंड मसलवा रहा था, सहलवा रहा था…..
कालू इतना सब देख कर अपना आपा खो बैठा. उसने अपना मूसल जैसा लंड एक बार सहलाया , उसपर बहुत सारा थूक लगाया और कमला की कसी हुई, उभरी भूरे रंग की चूत में घुप्प्प्प्प्प्प्प्प्प, से घुसा दिया. कमला कुच्छ ही देर पहले मोतिया को अपनी जवानी का अनमोल मोती सौंप चुकी थी. पहली बार चुदी थी इसलिए अब इतना दर्द नहीं होना चाहिए था. मगर कालू का लंड मूसल था. जैसे किसी गधे का हो. “हाअए मोरी मैययययययययययययययाआआआआआआआअ, मरर गयी माआआआआआआआआआं……..ठकुराइन, हामका बचाई लेब….”……..उसकी कातर आवाज़ रात के सन्नाटे में भटक के रह गयी………..चाँदनी रात में उसने देखा बेचारी ठकुराइन खुद मोतिया से चुद रही थी. मोतिया चमार ने शायद कुछ गंदी पिक्चरे देखी थी……इसलिए वो सिर्फ़ गाओं जैसी चुदाई नहीं कर रहा था…..उसने रूपाली की गोरी टाँगें अपने कंधों में फँसा ली थी और इस कारण ऐसे चुदाई कर रहा था मानो कोई किसान किसी खेत में हल जोत रहा हो……..
कालू ने बेरहमी से कमला के उभरे हुए, मोटे होंठ को चूसना शुरू किया और मूसल लंड से दनादन चुदाई जारी थी. कुछ देर पहले मोतिया ने उसकी चूत से खून निकाला था मगर शायद उसकी किस्मेत में चूत को और ज़्यादा, पूरी तरह से खुलवाना लिखा था…….खून फिर से रिसने लगा. कालू बेख़बर, चोदे जा रहा था…..फुकच्छ-फुकच्छ—फुकच्छ-फु
कच्छ, फुकच्छ-फुकच्छ—फुकच्छ-फुकच्छ, फुकच्छ-फुकच्छ—फुकच्छ-फुकच्छ.
“उूुुुउउन्न्ञननणणन्…आआअन्न् नणणन्—आआअन्न्णणन्…उूउउन्न् ञणणन्….”, कमला की रुलाई और फुकच्छ-फुकच्छ—फुकच्छ-फुकच्छ, फुकच्छ-फुकच्छ—फुकच्छ-फुकच्छ, फुकच्छ-फुकच्छ—फुकच्छ-फुकच्छ…. कालू की चुदाई………20-25 मिनिट का कभी ना ख़तम होने वाला समय और फिर कालू ने अपना गाढ़ा, चिपचिपा वीर्य, कमला की पूरी तरह खुल चुकी, 20 साल की कुँवारी चूत के अंदर उगल दिया. ऐसा जानवर था कि कमला के निचले होंठ को बुरी तरह काट खाया उसने और पूरी तरह, अपने बदन का एक एक इंच कमला के कसे हुए बदन से चिपका के उसके ऊपर ऐसे लेट गया मानो दोनो का एक ही शरीर हो. मानो दोनो कभी अलग नहीं होंगे. कालू ने आँखें बंद कर ली और कल्पना में, कमला की जगह ठकुराइन रूपाली को बदल लिया. उत्तेजना के मारे कालू के शरीर में एक सिहरन दौड़ गयी और उसने ज़ोर से रूपाली (कमला), के चूतड़ पे एक च्युंती काटी और बाएँ गाल पे काट खाया……”हाआआआए’…कमला की सिसकारी निकली, पर कालू ने उसके होंठों पे अपने भद्दे, काले होंठ दबा दिए और उन्हें चूसने लगा.
मोतिया, जो पहले ही कमला के अंदर एक बार झाड़ चुक्का था, अब रूपाली को चोदे जा रहा था और झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ, पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ………की आवाज़ हज़ारों झींगुरों की आवाज़ के बीच आ रही थी और हालाँकि यह और कुछ नहीं, एक लड़की और एक युवती का बलात्कार था, फिर भी, चुदाई का संगीत मानो फ़िज़ाओं में च्छा चुका था.
अचानक झाड़ियों में खाद खाद खाद खाद के साथ किसी के आने की आवाज़ महसूस हुई…..और किसी अंजान शख़्श के आने के डर से मोतिया रूपाली के ऊपर एकदम सुन्न्ं लेट गया. कालू ने भी कमला का मुँह भींच दिया. लेकिन रूपाली ने मौके की नज़ाकत को समझते हुए गुहार लगाई,”भाय्या…इधर,……..हमें बचाओ….बचाओ…बचाओ……बचाओ हमें भाय्या..............बccछ्ह्ह् ह्हाआऊऊऊ…..”
…”चुप्प….चुप्प साली…..” मोतिया और सत्तू फुसफुसाए और उन्होने रूपाली का मुँह दबा दिया….अब सिर्फ़ “उग्गघह…गों-गों…उग्घह….”जैसी घुटि आवाज़ें आ रही थी.
धीरे धीरे कदमों की आवाज़ पास आती गयी और अचानक ‘वो’ सामने आ गया
वो 45-50 साल का मुंगेरी था……जिसे इन तीन छमारों ने गाओं भेजा था, रोटी, मुर्गी और शराब लाने. चाँदनी रात में मुंगेरी ने रूपाली का दूध जैसा नंगा बदन देखा……..कालू के काले चीकत-कीचड़ जैसे बदन से चिपका कमला का पूरा नंगा, कसा हुआ सांवला-सलोना बदन देखा और उसका मुँह खुला का खुला रह गया. उसको देख कर मोतिया, कालू और सत्तू हँसने लगे और सत्तू बोला,”हुट्त्त साला…..ये तुम हो चूतिया, हाहहहाहा.” रूपाली ने मुंगेरी की ओर एक नज़र देखा और उसके मुँह से बेबसी की एक लंबी, ठंडी अया निकल गयी. उसने अपनी आँखें बंद कर ली.
पूरी शाम मुंगेरी तीन चमार दोस्तों को समझा रहा था की ठकुराइन से पंगा ना लो और जाने दो उनको. पर अब वो रूपाली के गोरे, सुंदर बदन को चाँदनी रात में यूँ निहार रहा था जैसे कोई गिद्ध, मरे हुए जानवर की लाश को निहारता है.उसके हाथ से खाने का थैला छ्छूट गया. बोतलें ज़मीन पर रख के, मुंगेरी अपने बायें हाथ से, धोती के ऊपर से ही, अपना लंड मसल्ने लगा.
मोतिया ने रूपाली की टाँगों को फिर दोनो कंधों पे रखा और पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ के संगीत मे आवाज़ एक बार फिर खेतों में गूंजने लगी. सत्तू सरक कर रूपाली के मुँह की तरफ गया, उसने रूपाली के लंबे बालों वाले सिर को अपने हाथों में लिया और एक बार फिर, अपना बदबूदार लंड उसके मुँह में घुसा के उसको चोद्ने लगा.
मुंगेरी पे मानो कोई जादू हो गया हो. वो कभी अपने चमार दोस्तों के साथ रंडियाँ तक चोद्ने नहीं जाता था. सिर्फ़ शराब और कबाब की यारी थी उसकी. पर रूपाली की गोरी टाँगें काले मोतिया के कंधों पे और रूपाली की गोरी चूत में धंसा हुआ मोतिया का काला लंड, उसके दिमाग़ पे छ्छा चुके थे. मानो किसी ने सम्मोहन सा कर दिया तहा उसपे. फटी हुई आँखो से रूपाली के सुंदर चुतड़ों को उछलता हुआ देख रहा था मुंगेरी. जाने कब उसकी धोती हट गयी और धारी वाले कच्छा का भी नाडा खोल के वो पूरा नंगा हो चुका था. कालू, जो कमला के साथ ये सब देख रहा था, ज़ोर से हंसा,”आए मादर्चोद मुंगेरी. इत्ता बड़ा लवदा रे……??? इस्तेमाल काहे नहीं करत है रे कभी कभी…हाहहाहा?”……..
मुंगेरी उसकी हँसी को अनसुना करता हुआ चुद्ति हुई रूपाली के चुतड़ों के पास गया और अपनी नाक उसके गोरे, खूबसूरत चुतड़ों के जितना पास ले जा सकता था, ले गया. मुंगेरी के नथुनो में रूपाली की गांद से आने वाली मदमस्त खुश्बू समा गयी. उसे मोतिया के लंड की बदबू भी आई और उसका दिल किया मोतिया को धक्का दे दे……मगर सामाजिक तक़ाज़ा था…..अपना ध्यान मोतिया के लंड से हटा कर, रूपाली के सुनहरे, भूरे छेद पे केंद्रित किया और अपनी जीभ उसपे लगाने की कोशिश करने लगा.
इस कोशिश में कभी उसकी नाक और माता मोतिया के टटटे छ्छू जाते तो कभी जीभ रूपाली की गांद चाटने लगती. मोतिया और रूपाली हर बार एक सिहरन महसूस कर रहे थे और मोतिया ढका धक रूपाली की गोरी चूत चोद रहा था, जांघों को नाख़ून से नोच रहा था और बीच बीच में उसकी मस्त चूचियाँ चूसने लगता.
सत्तू लॉडा चुसवाने में मस्त था और रूपाली का मुँह चोदे जा रहा था.
मुंगेरी ने बहुत सारा थूक रूपाली की गांद के छेद पे लगाया और धीरे धीरे पहले एक उंगली और फिर दो उंगलियाँ उसकी गांद के अंदर करने लगा. मोतिया ने सॉफ महसूस किया कि रूपाली की चूत की दीवारों से मुंगेरी की उंगलियाँ उसका लंड दबा रही हैं और उसका चुदाई का उत्साह दुगुना हो गया…….रूपाली को बहुत तकलीफ़ हो रही थी मगर उसकी ठाकुर गांद की अकड़, चमार मुंगेरी की उंगलियों के आगे दम तोड़ रही थी. धीरे धीरे गांद ढीली होती चली गयी.
मुंगेरी ने मोतिया से रुकने को कहा. “का है???...”, मोतिया गुर्राया. “रुक ना, बहुत मज़ा आबे करी…” मुंगेरी बोला और उसने मोतिया को पीठ के बल लेटने को कहा. बेमंन से मोतिया नीचे लेटा, तो मुंगेरी ने बॉल पकड़ कर रूपाली को उठाया और मोतिया के ऊपर बैठा दिया. मोतिया के खड़े लंड ने आसानी से अपना रास्ता ढूँढ लिया और वो रूपाली की रसीली चूत में घपप से घुस गया. मोतिया ने रूपाली की कमर पे दोनो हाथ रखे और कमर को अपने मज़बूत हाथों से ऊपर नीचे करने लगा. दूध सी गोरी रूपाली, रसीले होंठ, आँख में आँसू और उसके कमर तक लंबे लहराते बाल………मानो कोई खूबसूरत अप्सरा इन खेतों में आ गयी थी….इन कमीने चमारों से अपनी ऐसी-तैसी कराने..
मोतिया ने पहले कभी इस मुद्रा में चुदाई नहीं की थी. उसे बहुत ही ज़्यादा मज़ा आ रहा था. रूपाली की मस्त चूचियाँ उसकी आँखों की आगे हर झटके के साथ उछल रही थी, उसके काले हाथ रूपाली के मस्त चुतड़ों पे थप्पड़ लगा रहे थे और लंड मस्ती से गॅप-गप्प-गप्प-गप्प-गप्प-गप्प चुदाई कर रहा था. मोतिया ने महसूस किया अचानक चुदाई रुक गयी है क्यूंकी वो रूपाली को कमर से ऊपर नीचे नहीं कर पा रहा है……..जल्दी ही उसे कारण समझ आ गया……उसने देखा, रूपाली को कमर से मुंगेरी ने पकड़ रखा है और वो चुतड़ों को थोड़ा उठा के, रूपाली की गंद में अपना मोटा लॉडा घुसाने की कोशिश कर रहा है. अपने आप ही, मोतिया ने अपने धक्के बिल्कुल बंद कर दिए और मुंगेरी के लंड की सफलता का इंतेज़ार करने लगा.
मुंगेरी ने ढेर सारा थूक रूपाली की गांद के छेद पे मला, अपने लंड पे मसला और एक बार फिर कोशिश की. घुपप्प….धीरे से लंड ने गुदा द्वार में प्रवेश किया और रूपाली की चीख निकली….”आआअहह.” सत्तू अब तक बगल में बैठा शराब पी रहा था आउज़ उसने रूपाली के गालों पे चिकोटी काटी,”मालकिन, पंचायत को बहुत मज़ा आबे करी, जब आप ई चुदाई का बारे मा बताबे करी….आआहहहाहा.”
धीरे, धीरे, धीरे, धीरे, मुंगेरी का मज़बूत लंड रूपाली की गांद में पूरा घुस गया और 30-40 सेकेंड तक मोतिया, रूपाली और मुंगेरी…तीनो की मानो साँसें रुक गयी. फिर धीरे से मुंगेरी ने 5-7 मिलीमेटेर बाहर को खींचा और लंड फिर अंदर घुसा दिया. फिर उसने ये लगातार करना शुरू कर दिया.
क्रमशः...........
Balaatkaar--2
gataank se aage..................
Udhar Motiya ne Kamla ki choot ke parkhacche uda diye thhe. Khoon aur uska ras, choot se ris rahe thhe aur dheere dheere uske saanwle chootadon ke beech chhipe kaale se chhed pe mil rahe thhe. Motiya ne apni jeebh uske munh ke andar ghusa rakhi thhi aur lund uski choot ko dana dan, gapa gap chod raha thha……Kamla ko chudaayi ka koi anubhav naheen thha….magar fucchh-fucchh fucchh-fucchh fucchh-fucchh fucchh-fucchh ke aawazon ke beech usne achanak mehsoos kiya uska peshaab nikalne waala hai…….Motiya ne uske baaye mamme ko choosna shuru kar diya magar chudaayi jaari thhi….. thap-thap-thap-thap-thap……. fucchh-fucchh fucchh-fucchh fucchh-fucchh fucchh-fucchh fucchh-fucchh……………..achanak Kamla ke munh se nikla …Aaaaaaaaaaaaaahhhhhhhhhhh….. aur use laga usne peshaab kar di hai……magar darasal who chhoot chuki thhi…..ye, us bechaari ka pehla sex anubhav thha………Motiya ke dhakke veebhats ho chuke thhe……..tez, tez, aur tez….achanak wo chillaya,”Aaaah randeeeeeeeeeeeeee………..”, aur Kamla ne mehsoos kiya maano Motiya ka lauda uske andar lagatar thook raha thha……garam-garam-chip chipa veerya……Motiya ka Veerya………..Kamla ke andar……..chhatpata kar Kamla ne nikalne ki koshish ki, magar us haraamzaade ko koi parwaah naheen thee. Berahmi se usne Kamla ke chootad pakad kar apni ore bheench liye aur har boond uske andar hi rehne di. Poori tarah se khallas hone ke baavjood, kameena dus minute tak Kamla ke poore nange badan pe berahami se chipka raha………………
Sattu aur Kaalu Roopali ki saari aur petticoat hata chuke thhe. Ab wo bhi Kamla ki tarah maadar-jaat nangi thhi. Usiki saari aur petticoat ko neeche biccha kar dono ne usko neeche lita diya thha. Saari pe letne ke baavjood, Roopali ko apni peeth pe kheton ke kankar-patthar chubhte hue mehsoos hue.
Kaloo ne uski gori jaanghein dekhi toh paagal ho utha. Usne Roopali ke gore pairo aur jaangho ko choomna-choosna shuru kar diya. Sattu Roopali ke gaalon ko haatho se chikoti kaat raha thha aur kabhi kabhi uske mammon ko bhonpu ki tarah baja deta thha. Roopali ki gori choot pe, chhoti chhoti kaali jhante thhi aur unko dekhte hi Kaaloo ka dimaag kharaab ho gaya. Usne choot ka ek hissa munh mein dabaaya aur aise choosne laga maano kisi bacche ke munh mein raseeli toffee aa ayi ho. Phir apni jeebh Roopali ki choot mein usne poori ghusa di aur Roopali ki siskaariyaan nikalne lagi. Ungli pe thook laga ke Roopali ki gaand ke sunehre, bhoore chhed se khel raha thha Kaalu aur jeeb poori tarah se gulaabi choot ko chod rahi thhi. Roopali poori tarah gan-gana uthi.
Roopali ne nazar ghuma ke dekha……Kamla leyti hui thhi aur beybasi ki haalat mein usko dekh rahi thhi…..uske theek peeche Motiya leyta hua thha aur besharmi se muskuraate hue usko ektak dekh raha thha……jaise hi Roopali ki aankh uski aankh se mili, wo besharmi se muskuraate hue bola,”Kyun thakurain? Panchayat mein bologi kaise Kaalu choot choosa raha aapki? Hahahaha.” Roopali ne nafrat se doosri taraf nazrein ghuma li.
Achanak Roopali ko gandi si badboo aayi. Aankh kholi toh dekha theek naak ke neeche ek bahut hi badboodaar lund, uske khoobsoorat munh mein ghusne ki koshish kar raha hai…….bilbilate hue Roopali boli,”Bhagwaan ke liye, ye mat karo Sattu Kaka…..Aap neeche kar lo…..” Sattu chillaya,”Munh khol randee………”…..Jaldi hi peshaab, paseene se mili juli sadaandh waala kaala lund Roopali ke khoobsoorat gore munh mein thha…….Ulti aane ko hui, magar Roopali ke gale mein ghut kar reh gayi…….Badboo se dhyaan hataane ki koshish karne ke liye Roopali ne neeche ki sansanahat ki ore dhyaan kendrit kiya……..
Roopali ko choot ki sansanaahat aacchhi lag rahi thhi. Kaalu ki jeebh moti thhi aur wo bade kareene se uski gulaabi- gori choot ko choos raha thha……jaanwaron jaisi jeebh hone ki wazah se us jeebh ki khurdurahat, jitni baar Roopali ke daane ko chhoo jaati, uski siskaari si chhoot jaati. Munh mein badboodar, paseene se chipchipa kaala lund thha aur ubkayi, nafrat aur beybasi ke mare Roopali ki khoobsoorat aankhon se aansoo chhalchhala uthe.
Aahat hirni ki tarah, kisi tarah Roopali ne nazrein ghumaayi to dekha nangi Kamla uski ore ektak dekh rahi hai. Poori nangi Kamla ki bagal mein kaala Motiya nanga leyta hua thha aur bhookhe bhediye ki tarah Roopali ki chudaayi dekh raha thha. Shaayad Roopali ki mazboori uske andar ke shaitaan ko aur jaga rahi thhi….isliye, who reh rehkar, Kamla ki kasi hui chhatiyon ko beech beech mein zoron se masal deta thha……har baar uski kalpana mein Roopali ke gore stan aate thhe jo dar-asal is waqt, do mazboor kabootaron ki tarah Sattu ke latke hue, kale tatton ke neeche tadap rahe thhe.
Sattu apna badboodaar lund Roopali ke munh mein andar baahar kar raha thha. Chamaar lauda aazaadi se manmaani kar raha thha aur thakurain ka khaandaani munh, is dabang laude ki manmaani sehne ko mazboor thha…..munh se bhi gapp-gapp-gapp-gapp ki aawaazein aa rahi thhi. Roopali is lund se nikla kucch bhi gale ke andar naheen utarne dena chaahti thhi aur isliye dheron thook ugal rahi thhi. Dher saara thook hone ki wazah se Sattu ka badboodaar lauda aisi chiknaayi mahsoos kar raha thha jaisi usni naa kabhi apni patni Putti ki choot mein mehsoos ki thhi aur naa kabhi Shahar ki sasti randiyon mein. Kabhi kabhi Sattu apne doston ke saath Shahar ki sasti randiyaa bhi chod liya karta thha, jaisa ki gaon ke log aksar karte hain jab wo bade shahron mein anaaj bechne ya khaad-beej khareedne jaate hain.
Sattu vahshiyon ki tarah Roopali ka munh chod raha thha. Kaalu ne Roopali ki jaanghon ke beech mein munh fansa rakha thha aur choot se risti hui har boond ko aise pee raha thha maano devta samudra manthan se nikle amrit ko pee gaye thhe. Fark sirf ye thha, ki Kaalu koi devta naheen, ek raakshash thha……aur Roopali ki vidambana yeh thhi ki is dusht raakshash ka gala kaatne ke liye koi Devta dharti pe naheen aa raha thha.
Achanak Sattu ne thook se apne dono choochak (nipples) khoob geele kiye aur Roopali ke dono haath uthakar,uske angoothon aur pehli ungli ke beech apne nipple pakda diye. Mazboori mein Roopali uska badboodaar, mota lund chooste chooste uske choochako ko dheere dheere masalne lagi. Sattu maano swarg mein thha. Apne choochakon se usko sansanaahat mehsoos ho rahi thhi…..kaala lund mota hote hote, apni paraakaashtha pe thha aur Roopali ko gale ke andar tak chod raha thha…….Kaalu ki khurdari jeebh Roopali ki choot ke andar saanp ki tarah bilbila rahee thhe……achanak Roopali ko neeche ek tez sansanaahat mehsoos hui aur usne kai jhatko mein Kaalu ki jeebh mein dher saara shahad chhod diya.
Roopali chhoot chuki thhi. Lekin Sattu ne uske baal pakad rakhe thhe aur uske munh ko jhatke de deke who uska munh lagataar chod raha thha…..Roopali ki ungliyaan lagaatar uske choochakon se khelne ko mazboor thhi……..Roopali ne uske choochakon ko zara zor se masal kya diya, ek zordaar jhatka le ke Sattu ne bahut hi mota, gaadha aur bahut saara safed veerya, Roopali ke Thakur gale mein utaar diya.
Fuccchhh…….Fuccchhhhh….. Fucccchhhhh……ke aawaaz aur kameene ne Roopali ka sir itni zor se apni jaanghon ke beech mein bheench liya ki woh bechari saans tak lene ko aisi mazboor hui ki munh se saans kheenchni padi aur chamaar ki ek ek boond Roopali ke shaandaar Thakur gale se hoti hui Payte (stomach) ke andar chali gayi.
Poore 2 minute zabran use bheenche rakha Sattu ne aur jab Roopali ka sir aazaad kiya, toh woh zoro se khaansne lagi. Lambe khule baal, gulaabi rang ka mazboor, khoobsoorat chehra aur aankho se jhar jhar girte motiyon jaise aansoo………….Kameene sattu ne jaise hi uska chehra dekha, zoro se hansne laga aur bola,”Panchaayat mein zaroor bataai…..ki naaspeeta Sattu humre mukh mein lavda diye raha humre….hahahahahahahahaha.” Kaalu jo ab tak Roopali ki choot chaat raha thha, dheere se sarak ke uth baitha aur Roopali ka baayaan mamma sehlaate hue woh bhi hansne laga!
Yeh sab dekhte dekhte Motiya phir se garam ho chukka thha. Woh lagaatar saanwli Kamla ki kasi hui choot, jiska quila woh thodi hi der pehle dhwast kar chukka thha, sehla raha thha. Kabhi choot mein ungli ghusa ghusa ke maze leta thha aur kabhi uski choot ke daane ko marodne lagta. Kamla kasmasaate hue siskaariyaan le rahi thhi. Achanak Motiya ek jhatke se utha aur Kaalu se bola,”Thakurain ki choot kaafi choos chuke tum maadarchod….abhi tum Kamla Raani ka majaa bhi lai lo….Mouku Thakurain ka jaayja layne do bhaai.” Kaalu bade anmane mann se uthha. Sach baat yeh thhi ki usne sirf ek baar ek sasti Nepali Randi ko choda thha jo gori thhi. Us jaise badsoorat, kaloote chamaar ko gori thakurain ke darshan maatra durlabh thhe aur yahaan woh unki choot 1 ghante se chaat raha thha. Raakshash jaisa Kaalu majboori mein utha, Kamla ki bagal mein leyta aur uski choot mein beyrahmi se 1 ungli poori ghusaate hue uske hoonthon ko zor se choosne laga.
Chaandni raat thhi aur shaayad pooran-maasi se 1 din pehle ka chaand thha. Roopali ka gora nanga badan maano doodh mein nahaaya hua dikh raha thha aur Motiya aur Sattu usko aise kharonche maar rahe thhe maano shaitaan cheeton ke haath ek mazboor hirni lag gayi ho aur woh maarne se pehle, usko noch-khasot rahe hon.
Motiya ne apna mota lund uske honthon ke beech mein lagaaya aur mazboor, naakam koshish ko andekha karte hue, Roopali ke sundar munh mein apna lund ghusa diya aur andar baahar karne laga. Sattu ne Roopali ka hath pakda aur usmein apna lauda thama diya. Mazboori mein Roopali Sattu ka badboodar lund, jisko woh kucch hi der pehle choos chuki thhi, hilaane sehlaane lagi. Motiya ne ghapaghap uske munh ko thodi der choda aur Roopali ki aankhein phatne ko aa rahi thhi. Achanak, Motiya ne apna lund Roopali ke munh se kheench ke nikaal liya, teer ki tarah neeche sarka aur ghacchhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh se apna mota lund Roopali ki choot mein gusa diya. “Aaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhh……..” , Roopali ki ghuti si cheekh nikli aur Motiya usko jaanwar ki tarah chodne laga. Chamaar Motiya chod raha thha……shaandaar Thakurain, mazboori aur laachaari mein chud rahi thhi….aur Sattu chamar bechaari se apna badboodaar lund masalwa raha thha, sehalwa raha thha…..
Kaalu itna sab dekh kar apna aapa kho baitha. Usne apna moosal jaisa lund ek baar sehlaaya , uspar bahut saara thook lagaya aur Kamla ki kasi hui, ubhri bhoore rang ki choot mein ghhhhhhupppppppppp, se ghusa diya. Kamla kuchh hi der pehle Motia ko apni jawaani ka anmol moti saunp chuki thhi. Pehli baar chudi thhi isliye ab itna dard naheen hona chaahiye thha. Magar Kaalu ka lund moosal thha. Jaise kisi gadhe ka ho. “Haaaye mori maiyyyyyyyyyyyyyyaaaaaaaaaaaaa aaaa, marr gayi maaaaaaaaaaaaaaaaaaaan…….. thakuraain, humkaa bachai leb….”……..uski kaatar aawaaz raat ke saanate mein bhatak ke reh gayi………..chaandni raat mein usne dekha bechari thakurain khud Motiya se chud rahi thhi. Motia chamaar ne shaayad kucch gandi picturein dekhi thhi……isliye who sirf gaon jaisi chudaayi naheen kar raha thha…..usne Roopali ki gori tangein apne kandhon mein fansa lee thhi aur is kaaran aise chudaayi kar raha thha maano koi kisaan kisi khet mein hal jot raha ho……..
Kaalu ne berahami se Kamla ke ubhre hue, mote honth ko choosna shuru kiya aur moosal lund se danadan chudaayi jaari thhi. Kuch der pehle Motiya ne uski choot se khoon nikaala thha magar shaayad uski kismet mein choot ko aur jyaada, poori tarah se khulwaana likha thha…….khoon phir se risne laga. Kaalu bekhabar, chode jaa raha thha…..fucchh-fucchh—fucchh- fucchh, fucchh-fucchh—fucchh-fucchh, fucchh-fucchh—fucchh-fucchh.
“Uuuuuuunnnnnnnn…aaaaannnnnn— aaaaannnnn…uuuunnnnnn….”, Kamla ki rulaayi aur fucchh-fucchh—fucchh-fucchh, fucchh-fucchh—fucchh-fucchh, fucchh-fucchh—fucchh-fucchh…. Kaalu ki chuddayi………20-25 minute ka kabhi na khatam hone waala samay aur phir Kaalu ne apna gaadha, chipchipa veerya, Kamla ki poori tarah khul chuki, 20 saal ki kunwaari choot ke andar ugal diya. Aisa jaanwar thha ki Kamla ke nichle honth ko buri tarah kaat khaaya usne aur poori tarah, apne badan ka ek ek inch Kamla ke kase hue badan se chipka ke uske oopar aise layte gaya maano dono ka ek hi shareer ho. Maano dono kabhi alag naheen honge. Kaalu ne aankhein band kar li aur kalpana mein, Kamla ki jagah Thakurain Roopali ko badal liya. Uttejana ke mare Kaalu ke shareer mein ek sihran daud gayi aur usne zor se Roopali (Kamla), ke chootad pe ek chyunti kaati aur baayen gaal pe kaat khaaya……”Haaaaaaaaye’…Kamla ki siskaari nikli, par Kaalu ne uske honthon pe apne bhadde, kale honth daba diye aur unhein choosne laga.
Motiya, jo pehle hi Kamla ke andar ek baar jhad chukka thha, ab Roopali ko chode jaa raha thha aur jhadne ka naam naheen le raha thha. Pucch-puchh-pucch-pucch, Pucch-puchh-pucch-pucch Pucch-puchh-pucch-pucch Pucch-puchh-pucch-pucch Pucch-puchh-pucch-pucch………ki aawaaz hazaaron jheenguron ki aawaaz ke beech aa rahi thhi aur haalanki yeh aur kucch naheen, ek ladki aur ek yuvti ka balaatkaar thha, phir bhi, chudaayi ka sangeet maano fizaon mein chha chukka thha.
Achanak jhaadiyon mein khad khad khad khad ke saath kisi ke aane ki aawaz mehsoos hui…..aur kisi anjaan shakhsh ke aane ke darr se Motiya Roopali ke oopar ekdum sunnn layte gaya. Kaalu ne bhi Kamla ka munh bheench diya. Lekin Roopali ne mauke ki nazakat ko samajhte hue guhaar lagaayi,”Bhaiyya…idhar,…….. hamein bachao….bachao…bachao……bachao hamein bhaiyya.............. baccchhhhhhaaaaoooooo…..”
…”CHUPP….CHUPP SAALI…..” Motiya aur Sattu fusfusaaye aur unhone Roopali ka munh daba diya….ab sirf “Uggghhh…gon-gon…ugghhhhh….” jaisi ghuti aawaazein aa rahi thhi.
Dheere dheere kadmon ki aawaz paas aati gayi aur achanak ‘woh’ saamne aa gaya
Achanak jhaadiyon mein khad khad khad khad ke saath kisi ke aane ki aawaz mehsoos hui…..aur kisi anjaan shakhsh ke aane ke darr se Motiya Roopali ke oopar ekdum sunnn layte gaya. Kaalu ne bhi Kamla ka munh bheench diya. Lekin Roopali ne mauke ki nazakat ko samajhte hue guhaar lagaayi,”Bhaiyya…idhar,…….. hamein bachao….b achao…bachao……bachao hamein…..” …”CHUPP….CHUPP SAALI…..” Motiya aur Sattu fusfusaaye aur unhone Roopali ka munh daba diya….ab sirf “Uggghhh…gon-gon…ugghhhhh….” jaisi ghuti aawaazein aa rahi thhi.
Dheere dheere kadmon ki aawaz paas aati gayi aur achanak ‘woh’ saamne aa gaya…….
Woh 45-50 saal ka Mungeri thha……jise in teen chamaaron ne gaon bheja thha, Roti, Murgi aur sharaab laane. Chaandni raat mein Mungeri ne Roopali ka doodh jaisa nanga badan dekha……..Kaalu ke kale cheekat-keechad jaise badan se chipka Kamla ka poora nanga, kasa hua saanwala-salona badan dekha aur uska munh khula ka khula reh gaya. Usko dekh kar Motiya, Kaalu aur Sattu hansne lage aur Sattu bola,”Huttt saala…..ye tum ho chootiya, hahahahaha.” Roopali ne Mungeri ki ore ek nazar dekha aur uske munh se beybasi ki ek lambi, thandi aaah nikal gayi. Usne apni aankhein band kar li.
Poori shaam Mungeri teen chamaar doston ko samjha raha thha ki thakurain se panga naa lo aur jaane do unko. Par ab woh Roopali ke gore, sundar badan ko chaandni raat mein yun nihaar raha thha jaise koi giddh, marey hue jaanwar ki laash ko nihaarta hai.Uske haath se khaane ka thaila chhoot gaya. Botalein zameen par rakh ke, Mungeri apne baayein haath se, dhoti ke oopar se hi, apna lund masalne laga.
Motiya ne Roopali ki taangon ko phir dono kandhon pe rakha aur Pucch-puchh-pucch-pucch Pucch-puchh-pucch-pucch Pucch-puchh-pucch-pucch ke sangeet may aawaz ek baar phir kheton mein goonjne lagi. Sattu sarak kar Roopali ke munh ki taraf gaya, usne Roopali ke lambey baalon waale sir ko apne haathon mein liya aur ek baar phir, apna badboodaar lund uske munh mein ghusa ke usko chodne laga.
Mungeri pe maano koi jaadoo ho gaya ho. Woh kabhi apne chamaar doston ke saath randiyaan tak chodne naheen jaata thha. Sirf sharaab aur kabaab ki yaari thhi uski. Par Roopali ki gori taangein kaale Motiya ke kandhon pe aur Roopali ki gori choot mein dhansa hua Motia ka kaala lund, uske dimaag pe chhaa chuke thhe. Maano kisi ne sammohan sa kar diya thha uspe. Phati hui aankho se Roopali ke sundar chootadon ko ucchalta hua dekh raha thha Mungeri. Jaane kab uski dhoti hutt gayi aur dhaari waala kaccha bhi naada khol ke woh poora nanga ho chukka thha. Kaalu, jo Kamla ke saath ye sab dekh raha thha, zor se hansa,”Aye maadarchod Mungeri. Itta bada lavda re……??? Istemaal kaahe naheen karat hai re kabhi kabhi…hahahaha?”……..
Mungeri uski hansee ko ansuna karta hua chudti hui Roopali ke chootadon ke paas gaya aur apni naak uske gore, khoobsoorat chootadon ke jitna paas le jaa sakta thha, le gaya. Mungeri ke nathunon mein Roopali ki gaand se aane waali madmast khushboo samaa gayi. Use Motiya ke laude ki badboo bhi aayi aur uska dil kiya Motiya ko dhakka de de……magar saamajik takaaja thha…..apna dhyaan Motiya ke lund se hata kar, Roopali ke sunehre, bhoore chhed pe kendrit kiya aur apni jeebh uspe lagaane ki koshish karne laga.
Is koshish mein kabhi uski naak aur maatha Motiya ke tatte chhoo jaate toh kabhi jeebh Roopali ki gaand chaatne lagti. Motiya aur Roopali har baar ek sihran mehsoos kar rahe thhe aur Motiya Dhaka dhak Roopali ki gori choot chod raha thha, jaanghon ko naakhoon se noch raha thha aur beech beech mein uski mast choochiyaan choosne lagta.
Sattu lauda chuswaane mein mast thha aur Roopali ka munh chode jaa raha thha.
Mungeri ne bahut saara thook Roopali ki gaand ke chhed pe lagaaya aur dheere dheere pehle ek ungli aur phir do ungliyaan uski gaand ke andar karne laga. Motiya ne saaf mehsoos kiya ki Roopali ki choot ki deewaron se Mungeri ki ungliyaan uska lund daba rahi hain aur uska chudayi ka utsaah duguna ho gaya…….Roopali ko bahut takleef ho rahee thhi magar uski thaakur gaand ki akad, chamaar Mungeri ki ungliyon ke age dum tod rahi thhi. Dheere dheere gaand dheeli hoti chali gayi.
Mungeri ne Motiya se rukne ko kaha. “Kaa hai???...”, Motia gurraya. “Ruk naa, bahut majaa aaibe kari…” Mungeri bola aur usne Motiya ko peeth ke bal laytene ko kaha. Bemann se Motiya neeche leyta, toh Mungeri ne baal pakad kar Roopali ko uthhaya aur Motiya ke oopar baitha diya. Motiya ke khade lund ne aasani se apna raasta dhoondh liya aur woh Ropali ki raseeli choot mein ghapp se ghus gaya. Motiya ne Roopali ki kamar pe dono haath rakhe aur kamar ko apne mazboot haathon se oopar neeche karne laga. Doodh si gori Roopali, raseele honth, aankh mein aansoo aur uske kamar tak lambe lehraate baal………maano koi khoobsoorat apsara in kheton mein aa gayi thhi….in kameene chamaaron se apni aisi-taisi karaane..
Motiya ne pehle kabhi is mudra mein chudaayi naheen ki thhi. Use bahut hi jyaada maza aa raha thha. Roopali ki mast chhatiyaan uski aankhon kea age har jhatke ke saath ucchal rahi thhi, uske kaale haath Roopali ke mast chootadon pe thappad laga rahe thhe aur lund masti se gap-gapp-gapp-gapp-gapp-gapp chudaayi kar raha thha. Motiya ne mehsoos kiya achanak chudayi ruk gayi hai kyunki who Roopali ko kamar se oopar neeche naheen kar paa raha hai……..jaldi hi use kaaran samajh aa gaya……usne dekha, Roopali ko kamar se Mungeri ne pakad rakha hai aur woh chootadon ko thoda utha ke, Roopali ki gand mein apna mota lauda ghusane ki koshish kar raha hai. Apne aap hi, Motiya ne apne dhakke bilkul band kar diye aur Mungeri ke lund ki safalta ka intezaar karne laga.
Mungeri ne dher saara thook Roopali ki gaand ke chhed pe mala, apne laude pe masla aur ek baar phir koshish ki. Ghuppp….dheere se lund ne guda dwaar mein pravesh kiya aur Roopali ki cheekh nikli….”Aaaaahhhhhhhhhhhh.” Sattu ab tak bagal mein baitha sharaab pee raha thha aus usne Roopali ke gaalon pe chikoti kaati,”Maalkin, Panchaayat ko bahut majaa aaibe kari, jab aap I chudaayi kaa baare maa bataaibe kari….aaahahahaha.”
Dheere, Dheere, Dheere, Dheere, Mungeri ka mazboot lauda Roopali ki gaand mein poora ghus gaya aur 30-40 second tak Motiya, Roopali aur Mungeri…teeno ki maano saansein ruk gayi. Phir dheere se Mungeri ne 5-7 milimeter baahar ko kheencha aur lund phir andar ghusa diya. Phir usne ye lagatar karna shuru kar diya.
kramashah...........
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बलात्कार--2
गतान्क से आगे..................
उधर मोतिया ने कमला की चूत के परखच्चे उड़ा दिए थे. खून और उसका रस, चूत से रिस रहे थे और धीरे धीरे उसके साँवले छूतदों के बीच छिपे काले से छेद पे मिल रहे थे. मोतिया ने अपनी जीभ उसके मुँह के अंदर घुसा रखी थी और लंड उसकी चूत को दना दान, गपा गॅप चोद रहा था……कमला को चुदाई का कोई अनुभव नहीं था….मगर फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ के आवाज़ों के बीच उसने अचानक महसूस किया उसका पेशाब निकलने वाला है…….मोतिया ने उसके बाए मम्मे को चूसना शुरू कर दिया मगर चुदाई जारी थी….. ठप-ठप-ठप-ठप-ठप…….फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ फुकच्छ-फुकच्छ……………..अचानक कमला के मुँह से निकला …आआआआआआआहह…..और उसे लगा उसने पेशाब कर दी है……मगर दरअसल वो छ्छूट चुकी थी…..ये, उस बेचारी का पहला सेक्स अनुभव था………मोतिया के धक्के वीभत्स हो चुके थे……..तेज़, तेज़, और तेज़….अचानक वो चिल्लाया,”अयाया रंडीईईईईईई………..”, और कमला ने महसूस किया मानो मोतिया का लॉडा उसके अंदर लगातार थूक रहा था……गरम-गरम-चिप चिपा वीर्य……मोतिया का वीर्य………..कमला के अंदर……..च्चटपटा कर कमला ने निकलने की कोशिश की, मगर उस हरांज़ाड़े को कोई परवाह नहीं थी. बेरहमी से उसने कमला के चूतड़ पकड़ कर अपनी ओर भींच लिए और हर बूँद उसके अंदर ही रहने दी. पूरी तरह से खल्लास होने के बावजूद, कमीना दस मिनिट तक कमला के पूरे नंगे बदन पे बेरहमी से चिपका रहा………………
सत्तू और कालू रूपाली की साड़ी और पेटिकोट हटा चुके थे. अब वो भी कमला की तरह मादार-जात नंगी थी. उसीकि साड़ी और पेटिकोट को नीचे बिछा कर दोनो ने उसको नीचे लिटा दिया था. सारी पे लेटने के बावजूद, रूपाली को अपनी पीठ पे खेतों के कंकर-पत्थर चुभते हुए महसूस हुए.
कालू ने उसकी गोरी जांघें देखी तो पागल हो उठा. उसने रूपाली के गोरे पैरो और जाँघो को चूमना-चूसना शुरू कर दिया. सत्तू रूपाली के गालों को हाथो से चिकोटी काट रहा था और कभी कभी उसके मम्मों को भोंपु की तरह बजा देता था. रूपाली की गोरी चूत पे, छ्होटी छ्होटी काली झांते थी और उनको देखते ही कालू का दिमाग़ खराब हो गया. उसने चूत का एक हिस्सा मुँह में दबाया और ऐसे चूसने लगा मानो किसी बच्चे के मुँह में रसीली टॉफी आ आई हो. फिर अपनी जीभ रूपाली की चूत में उसने पूरी घुसा दी और रूपाली की सिसकारियाँ निकलने लगी. उंगली पे थूक लगा के रूपाली की गांद के सुनहरे, भूरे छेद से खेल रहा था कालू और जीब पूरी तरह से गुलाबी चूत को चोद रही थी. रूपाली पूरी तरह गन-गॅना उठी.
रूपाली ने नज़र घुमा के देखा……कमला लेटी हुई थी और बेबसी की हालत में उसको देख रही थी…..उसके ठीक पीछे मोतिया लेटा हुआ था और बेशर्मी से मुस्कुराते हुए उसको एकटक देख रहा था……जैसे ही रूपाली की आँख उसकी आँख से मिली, वो बेशर्मी से मुस्कुराते हुए बोला,”क्यूँ ठकुराइन? पंचायत में बोलोगि कैसे कालू चूत चूस रहा आपकी? हाहहाहा.” रूपाली ने नफ़रत से दूसरी तरफ नज़रें घुमा ली.
अचानक रूपाली को गंदी सी बदबू आई. आँख खोली तो देखा ठीक नाक के नीचे एक बहुत ही बदबूदार लंड, उसके खूबसूरत मुँह में घुसने की कोशिश कर रहा है…….बिलबिलते हुए रूपाली बोली,”भगवान के लिए, ये मत करो सत्तू काका…..आप नीचे कर लो…..” सत्तू चिल्लाया,”मुँह खोल रंडी………”…..जल्दी ही पेशाब, पसीने से मिली जुली सदान्ध वाला काला लंड रूपाली के खूबसूरत गोरे मुँह में था…….उल्टी आने को हुई, मगर रूपाली के गले में घुट कर रह गयी…….बदबू से ध्यान हटाने की कोशिश करने के लिए रूपाली ने नीचे की सनसनाहट की ओर ध्यान केंद्रित किया……..
रूपाली को चूत की सनसनाहट अच्छी लग रही थी. कालू की जीभ मोटी थी और वो बड़े करीने से उसकी गुलाबी- गोरी चूत को चूस रहा था……जानवरों जैसी जीभ होने की वज़ह से उस जीभ की खुरदुराहट, जितनी बार रूपाली के दाने को छ्छू जाती, उसकी सिसकारी सी छ्छूट जाती. मुँह में बदबूदार, पसीने से चिपचिपा काला लंड था और उबकाई, नफ़रत और बेबसी के मारे रूपाली की खूबसूरत आँखों से आँसू छल्छला उठे.
आहत हिरनी की तरह, किसी तरह रूपाली ने नज़रें घुमाई तो देखा नंगी कमला उसकी ओर एकटक देख रही है. पूरी नंगी कमला की बगल में काला मोतिया नंगा लेटा हुआ था और भूखे भेड़िए की तरह रूपाली की चुदाई देख रहा था. शायद रूपाली की मज़बूरी उसके अंदर के शैतान को और जगा रही थी….इसलिए, वो रह रहकर, कमला की कसी हुई छतियो को बीच बीच में ज़ोरों से मसल देता था……हर बार उसकी कल्पना में रूपाली के गोरे स्तन आते थे जो दर-असल इस वक़्त, दो मज़बूर कबूतरों की तरह सत्तू के लटके हुए, काले टट्टों के नीचे तड़प रहे थे.
सत्तू अपना बदबूदार लंड रूपाली के मुँह में अंदर बाहर कर रहा था. चमार लॉडा आज़ादी से मनमानी कर रहा था और ठकुराइन का खानदानी मुँह, इस दबंग लंड की मनमानी सहने को मज़बूर था…..मुँह से भी गप्प-गप्प-गप्प-गप्प की आवाज़ें आ रही थी. रूपाली इस लंड से निकला कुछ भी गले के अंदर नहीं उतरने देना चाहती थी और इसलिए ढेरों थूक उगल रही थी. ढेर सारा थूक होने की वज़ह से सत्तू का बदबूदार लॉडा ऐसी चिकनाई महसूस कर रहा था जैसी उसने ना कभी अपनी पत्नी की चूत में महसूस की थी और ना कभी शहर की सस्ती रंडियों में. कभी कभी सत्तू अपने दोस्तों के साथ शहर की सस्ती रंडिया भी चोद लिया करता था, जैसा कि गाओं के लोग अक्सर करते हैं जब वो बड़े शहरों में अनाज बेचने या खाद-बीज खरीदने जाते हैं.
सत्तू वहशियों की तरह रूपाली का मुँह चोद रहा था. कालू ने रूपाली की जांघों के बीच में मुँह फँसा रखा था और चूत से रिस्ति हुई हर बूँद को ऐसे पी रहा था मानो देवता समुद्रा मंथन से निकले अमृत को पी गये थे. फ़र्क सिर्फ़ ये था, कि कालू कोई देवता नहीं, एक राक्षश था……और रूपाली की विडंबना यह थी कि इस दुष्ट राक्षश का गला काटने के लिए कोई देवता धरती पे नहीं आ रहा था.
अचानक सत्तू ने थूक से अपने दोनो चूचक (निपल्स) खूब गीले किए और रूपाली के दोनो हाथ उठाकर,उसके अंगूठों और पहली उंगली के बीच अपने निपल पकड़ा दिए. मज़बूरी में रूपाली उसका बदबूदार, मोटा लंड चूस्ते चूस्ते उसके चूचको को धीरे धीरे मसल्ने लगी. सत्तू मानो स्वर्ग में था. अपने चूचकों से उसको सनसनाहट महसूस हो रही थी…..काला लंड मोटा होते होते, अपनी पराकाष्ठा पे था और रूपाली को गले के अंदर तक चोद रहा था…….कालू की खुरदरी जीभ रूपाली की चूत के अंदर साँप की तरह बिलबिला रही थे……अचानक रूपाली को नीचे एक तेज़ सनसनाहट महसूस हुई और उसने कई झटको में कालू की जीभ में ढेर सारा शहद छ्चोड़ दिया.
रूपाली छ्छूट चुकी थी. लेकिन सत्तू ने उसके बाल पकड़ रखे थे और उसके मुँह को झटके दे देके वो उसका मुँह लगातार चोद रहा था…..रूपाली की उंगलियाँ लगातार उसके चूचकों से खेलने को मज़बूर थी……..रूपाली ने उसके चूचकों को ज़रा ज़ोर से मसल क्या दिया, एक ज़ोरदार झटका ले के सत्तू ने बहुत ही मोटा, गाढ़ा और बहुत सारा सफेद वीर्य, रूपाली के ठाकुर गले में उतार दिया.
फूकक्च…….फूकक्चह…..फुक्ककचह……
पूरे 2 मिनिट ज़बरन उसे भींचे रखा सत्तू ने और जब रूपाली का सिर आज़ाद किया, तो वो ज़ोरो से खाँसने लगी. लंबे खुले बाल, गुलाबी रंग का मज़बूर, खूबसूरत चेहरा और आँखो से झार झार गिरते मोतियों जैसे आँसू………….कमीने सत्तू ने जैसे ही उसका चेहरा देखा, ज़ोरो से हँसने लगा और बोला,”पंचायत में ज़रूर बताई…..कि नास्पीटा सत्तू हमरे मुख में लवदा दिए रहा हमरे….हाहहहहहहहाहा.” कालू जो अब तक रूपाली की चूत चाट रहा था, धीरे से सरक के उठ बैठा और रूपाली का बायां मम्मा सहलाते हुए वो भी हँसने लगा!
यह सब देखते देखते मोतिया फिर से गरम हो चक्का था. वो लगातार साँवली कमला की कसी हुई चूत, जिसका किला वो थोड़ी ही देर पहले ध्वस्त कर चक्का था, सहला रहा था. कभी छूट में उंगली घुसा घुसा के मज़े लेता था और कभी उसकी चूत के दाने को मरोड़ने लगता. कमला कसमसाते हुए सिसकारियाँ ले रही थी. अचानक मोतिया एक झटके से उठा और कालू से बोला,”ठकुराइन की चूत काफ़ी चूस चुके तुम मादर्चोद….अभी तुम कमला रानी का मज़ा भी लई लो….मौकू ठकुराइन का जायजा लेन दो भाई.” कालू बड़े अनमने मंन से उठा. सच बात यह थी कि उसने सिर्फ़ एक बार एक सस्ती नेपाली रंडी को चोदा था जो गोरी थी. उस जैसे बदसूरत, कलूटे चमार को गोरी ठकुराइन के दर्शन मात्र दुर्लभ थे और यहाँ वो उनकी चूत 1 घंटे से चाट रहा था. राक्षश जैसा कालू मजबूरी में उठा, कमला की बगल में लेटा और उसकी छूट में बेरहमी से 1 उंगली पूरी घुसाते हुए उसके होंठो को ज़ोर से चूसने लगा.
चाँदनी रात थी और शायद पूरण-मासी से 1 दिन पहले का चाँद था. रूपाली का गोरा नंगा बदन मानो दूध में नहाया हुआ दिख रहा था और मोतिया और सत्तू उसको ऐसे खरोन्चे मार रहे थे मानो शैतान चीतों के हाथ एक मज़बूर हिरनी लग गयी हो और वो मारने से पहले, उसको नोच-खसोट रहे हों.
मोतिया ने अपना मोटा लंड उसके होंठों के बीच में लगाया और मज़बूर, नाकाम कोशिश को अनदेखा करते हुए, रूपाली के सुंदर मुँह में अपना लंड घुसा दिया और अंदर बाहर करने लगा. सत्तू ने रूपाली का हाथ पकड़ा और उसमें अपना लॉडा थमा दिया. मज़बूरी में रूपाली सत्तू का बदबूदार लंड, जिसको वो कुछ ही देर पहले चूस चुकी थी, हिलाने सहलाने लगी. मोतिया ने घापघाप उसके मुँह को थोड़ी देर चोदा और रूपाली की आँखें फटने को आ रही थी. अचानक, मोतिया ने अपना लंड रूपाली के मुँह से खींच के निकाल लिया, तीर की तरह नीचे सरका और घकचह से अपना मोटा लंड रूपाली की चूत में घुसा दिया. “आआआआआअहह……..”, रूपाली की घुटि सी चीख निकली और मोतिया उसको जानवर की तरह चोद्ने लगा. चमार मोतिया चोद रहा था……शानदार ठकुराइन, मज़बूरी और लाचारी में चुद रही थी….और सत्तू चामर बेचारी से अपना बदबूदार लंड मसलवा रहा था, सहलवा रहा था…..
कालू इतना सब देख कर अपना आपा खो बैठा. उसने अपना मूसल जैसा लंड एक बार सहलाया , उसपर बहुत सारा थूक लगाया और कमला की कसी हुई, उभरी भूरे रंग की चूत में घुप्प्प्प्प्प्प्प्प्प, से घुसा दिया. कमला कुच्छ ही देर पहले मोतिया को अपनी जवानी का अनमोल मोती सौंप चुकी थी. पहली बार चुदी थी इसलिए अब इतना दर्द नहीं होना चाहिए था. मगर कालू का लंड मूसल था. जैसे किसी गधे का हो. “हाअए मोरी मैययययययययययययययाआआआआआआआअ, मरर गयी माआआआआआआआआआं……..ठकुराइन, हामका बचाई लेब….”……..उसकी कातर आवाज़ रात के सन्नाटे में भटक के रह गयी………..चाँदनी रात में उसने देखा बेचारी ठकुराइन खुद मोतिया से चुद रही थी. मोतिया चमार ने शायद कुछ गंदी पिक्चरे देखी थी……इसलिए वो सिर्फ़ गाओं जैसी चुदाई नहीं कर रहा था…..उसने रूपाली की गोरी टाँगें अपने कंधों में फँसा ली थी और इस कारण ऐसे चुदाई कर रहा था मानो कोई किसान किसी खेत में हल जोत रहा हो……..
कालू ने बेरहमी से कमला के उभरे हुए, मोटे होंठ को चूसना शुरू किया और मूसल लंड से दनादन चुदाई जारी थी. कुछ देर पहले मोतिया ने उसकी चूत से खून निकाला था मगर शायद उसकी किस्मेत में चूत को और ज़्यादा, पूरी तरह से खुलवाना लिखा था…….खून फिर से रिसने लगा. कालू बेख़बर, चोदे जा रहा था…..फुकच्छ-फुकच्छ—फुकच्छ-फु
“उूुुुउउन्न्ञननणणन्…आआअन्न्
मोतिया, जो पहले ही कमला के अंदर एक बार झाड़ चुक्का था, अब रूपाली को चोदे जा रहा था और झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ, पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ………की आवाज़ हज़ारों झींगुरों की आवाज़ के बीच आ रही थी और हालाँकि यह और कुछ नहीं, एक लड़की और एक युवती का बलात्कार था, फिर भी, चुदाई का संगीत मानो फ़िज़ाओं में च्छा चुका था.
अचानक झाड़ियों में खाद खाद खाद खाद के साथ किसी के आने की आवाज़ महसूस हुई…..और किसी अंजान शख़्श के आने के डर से मोतिया रूपाली के ऊपर एकदम सुन्न्ं लेट गया. कालू ने भी कमला का मुँह भींच दिया. लेकिन रूपाली ने मौके की नज़ाकत को समझते हुए गुहार लगाई,”भाय्या…इधर,……..हमें बचाओ….बचाओ…बचाओ……बचाओ हमें भाय्या..............बccछ्ह्ह्
…”चुप्प….चुप्प साली…..” मोतिया और सत्तू फुसफुसाए और उन्होने रूपाली का मुँह दबा दिया….अब सिर्फ़ “उग्गघह…गों-गों…उग्घह….”जैसी घुटि आवाज़ें आ रही थी.
धीरे धीरे कदमों की आवाज़ पास आती गयी और अचानक ‘वो’ सामने आ गया
वो 45-50 साल का मुंगेरी था……जिसे इन तीन छमारों ने गाओं भेजा था, रोटी, मुर्गी और शराब लाने. चाँदनी रात में मुंगेरी ने रूपाली का दूध जैसा नंगा बदन देखा……..कालू के काले चीकत-कीचड़ जैसे बदन से चिपका कमला का पूरा नंगा, कसा हुआ सांवला-सलोना बदन देखा और उसका मुँह खुला का खुला रह गया. उसको देख कर मोतिया, कालू और सत्तू हँसने लगे और सत्तू बोला,”हुट्त्त साला…..ये तुम हो चूतिया, हाहहहाहा.” रूपाली ने मुंगेरी की ओर एक नज़र देखा और उसके मुँह से बेबसी की एक लंबी, ठंडी अया निकल गयी. उसने अपनी आँखें बंद कर ली.
पूरी शाम मुंगेरी तीन चमार दोस्तों को समझा रहा था की ठकुराइन से पंगा ना लो और जाने दो उनको. पर अब वो रूपाली के गोरे, सुंदर बदन को चाँदनी रात में यूँ निहार रहा था जैसे कोई गिद्ध, मरे हुए जानवर की लाश को निहारता है.उसके हाथ से खाने का थैला छ्छूट गया. बोतलें ज़मीन पर रख के, मुंगेरी अपने बायें हाथ से, धोती के ऊपर से ही, अपना लंड मसल्ने लगा.
मोतिया ने रूपाली की टाँगों को फिर दोनो कंधों पे रखा और पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ के संगीत मे आवाज़ एक बार फिर खेतों में गूंजने लगी. सत्तू सरक कर रूपाली के मुँह की तरफ गया, उसने रूपाली के लंबे बालों वाले सिर को अपने हाथों में लिया और एक बार फिर, अपना बदबूदार लंड उसके मुँह में घुसा के उसको चोद्ने लगा.
मुंगेरी पे मानो कोई जादू हो गया हो. वो कभी अपने चमार दोस्तों के साथ रंडियाँ तक चोद्ने नहीं जाता था. सिर्फ़ शराब और कबाब की यारी थी उसकी. पर रूपाली की गोरी टाँगें काले मोतिया के कंधों पे और रूपाली की गोरी चूत में धंसा हुआ मोतिया का काला लंड, उसके दिमाग़ पे छ्छा चुके थे. मानो किसी ने सम्मोहन सा कर दिया तहा उसपे. फटी हुई आँखो से रूपाली के सुंदर चुतड़ों को उछलता हुआ देख रहा था मुंगेरी. जाने कब उसकी धोती हट गयी और धारी वाले कच्छा का भी नाडा खोल के वो पूरा नंगा हो चुका था. कालू, जो कमला के साथ ये सब देख रहा था, ज़ोर से हंसा,”आए मादर्चोद मुंगेरी. इत्ता बड़ा लवदा रे……??? इस्तेमाल काहे नहीं करत है रे कभी कभी…हाहहाहा?”……..
मुंगेरी उसकी हँसी को अनसुना करता हुआ चुद्ति हुई रूपाली के चुतड़ों के पास गया और अपनी नाक उसके गोरे, खूबसूरत चुतड़ों के जितना पास ले जा सकता था, ले गया. मुंगेरी के नथुनो में रूपाली की गांद से आने वाली मदमस्त खुश्बू समा गयी. उसे मोतिया के लंड की बदबू भी आई और उसका दिल किया मोतिया को धक्का दे दे……मगर सामाजिक तक़ाज़ा था…..अपना ध्यान मोतिया के लंड से हटा कर, रूपाली के सुनहरे, भूरे छेद पे केंद्रित किया और अपनी जीभ उसपे लगाने की कोशिश करने लगा.
इस कोशिश में कभी उसकी नाक और माता मोतिया के टटटे छ्छू जाते तो कभी जीभ रूपाली की गांद चाटने लगती. मोतिया और रूपाली हर बार एक सिहरन महसूस कर रहे थे और मोतिया ढका धक रूपाली की गोरी चूत चोद रहा था, जांघों को नाख़ून से नोच रहा था और बीच बीच में उसकी मस्त चूचियाँ चूसने लगता.
सत्तू लॉडा चुसवाने में मस्त था और रूपाली का मुँह चोदे जा रहा था.
मुंगेरी ने बहुत सारा थूक रूपाली की गांद के छेद पे लगाया और धीरे धीरे पहले एक उंगली और फिर दो उंगलियाँ उसकी गांद के अंदर करने लगा. मोतिया ने सॉफ महसूस किया कि रूपाली की चूत की दीवारों से मुंगेरी की उंगलियाँ उसका लंड दबा रही हैं और उसका चुदाई का उत्साह दुगुना हो गया…….रूपाली को बहुत तकलीफ़ हो रही थी मगर उसकी ठाकुर गांद की अकड़, चमार मुंगेरी की उंगलियों के आगे दम तोड़ रही थी. धीरे धीरे गांद ढीली होती चली गयी.
मुंगेरी ने मोतिया से रुकने को कहा. “का है???...”, मोतिया गुर्राया. “रुक ना, बहुत मज़ा आबे करी…” मुंगेरी बोला और उसने मोतिया को पीठ के बल लेटने को कहा. बेमंन से मोतिया नीचे लेटा, तो मुंगेरी ने बॉल पकड़ कर रूपाली को उठाया और मोतिया के ऊपर बैठा दिया. मोतिया के खड़े लंड ने आसानी से अपना रास्ता ढूँढ लिया और वो रूपाली की रसीली चूत में घपप से घुस गया. मोतिया ने रूपाली की कमर पे दोनो हाथ रखे और कमर को अपने मज़बूत हाथों से ऊपर नीचे करने लगा. दूध सी गोरी रूपाली, रसीले होंठ, आँख में आँसू और उसके कमर तक लंबे लहराते बाल………मानो कोई खूबसूरत अप्सरा इन खेतों में आ गयी थी….इन कमीने चमारों से अपनी ऐसी-तैसी कराने..
मोतिया ने पहले कभी इस मुद्रा में चुदाई नहीं की थी. उसे बहुत ही ज़्यादा मज़ा आ रहा था. रूपाली की मस्त चूचियाँ उसकी आँखों की आगे हर झटके के साथ उछल रही थी, उसके काले हाथ रूपाली के मस्त चुतड़ों पे थप्पड़ लगा रहे थे और लंड मस्ती से गॅप-गप्प-गप्प-गप्प-गप्प-गप्प चुदाई कर रहा था. मोतिया ने महसूस किया अचानक चुदाई रुक गयी है क्यूंकी वो रूपाली को कमर से ऊपर नीचे नहीं कर पा रहा है……..जल्दी ही उसे कारण समझ आ गया……उसने देखा, रूपाली को कमर से मुंगेरी ने पकड़ रखा है और वो चुतड़ों को थोड़ा उठा के, रूपाली की गंद में अपना मोटा लॉडा घुसाने की कोशिश कर रहा है. अपने आप ही, मोतिया ने अपने धक्के बिल्कुल बंद कर दिए और मुंगेरी के लंड की सफलता का इंतेज़ार करने लगा.
मुंगेरी ने ढेर सारा थूक रूपाली की गांद के छेद पे मला, अपने लंड पे मसला और एक बार फिर कोशिश की. घुपप्प….धीरे से लंड ने गुदा द्वार में प्रवेश किया और रूपाली की चीख निकली….”आआअहह.” सत्तू अब तक बगल में बैठा शराब पी रहा था आउज़ उसने रूपाली के गालों पे चिकोटी काटी,”मालकिन, पंचायत को बहुत मज़ा आबे करी, जब आप ई चुदाई का बारे मा बताबे करी….आआहहहाहा.”
धीरे, धीरे, धीरे, धीरे, मुंगेरी का मज़बूत लंड रूपाली की गांद में पूरा घुस गया और 30-40 सेकेंड तक मोतिया, रूपाली और मुंगेरी…तीनो की मानो साँसें रुक गयी. फिर धीरे से मुंगेरी ने 5-7 मिलीमेटेर बाहर को खींचा और लंड फिर अंदर घुसा दिया. फिर उसने ये लगातार करना शुरू कर दिया.
क्रमशः...........
Balaatkaar--2
gataank se aage..................
Udhar Motiya ne Kamla ki choot ke parkhacche uda diye thhe. Khoon aur uska ras, choot se ris rahe thhe aur dheere dheere uske saanwle chootadon ke beech chhipe kaale se chhed pe mil rahe thhe. Motiya ne apni jeebh uske munh ke andar ghusa rakhi thhi aur lund uski choot ko dana dan, gapa gap chod raha thha……Kamla ko chudaayi ka koi anubhav naheen thha….magar fucchh-fucchh fucchh-fucchh fucchh-fucchh fucchh-fucchh ke aawazon ke beech usne achanak mehsoos kiya uska peshaab nikalne waala hai…….Motiya ne uske baaye mamme ko choosna shuru kar diya magar chudaayi jaari thhi….. thap-thap-thap-thap-thap…….
Sattu aur Kaalu Roopali ki saari aur petticoat hata chuke thhe. Ab wo bhi Kamla ki tarah maadar-jaat nangi thhi. Usiki saari aur petticoat ko neeche biccha kar dono ne usko neeche lita diya thha. Saari pe letne ke baavjood, Roopali ko apni peeth pe kheton ke kankar-patthar chubhte hue mehsoos hue.
Kaloo ne uski gori jaanghein dekhi toh paagal ho utha. Usne Roopali ke gore pairo aur jaangho ko choomna-choosna shuru kar diya. Sattu Roopali ke gaalon ko haatho se chikoti kaat raha thha aur kabhi kabhi uske mammon ko bhonpu ki tarah baja deta thha. Roopali ki gori choot pe, chhoti chhoti kaali jhante thhi aur unko dekhte hi Kaaloo ka dimaag kharaab ho gaya. Usne choot ka ek hissa munh mein dabaaya aur aise choosne laga maano kisi bacche ke munh mein raseeli toffee aa ayi ho. Phir apni jeebh Roopali ki choot mein usne poori ghusa di aur Roopali ki siskaariyaan nikalne lagi. Ungli pe thook laga ke Roopali ki gaand ke sunehre, bhoore chhed se khel raha thha Kaalu aur jeeb poori tarah se gulaabi choot ko chod rahi thhi. Roopali poori tarah gan-gana uthi.
Roopali ne nazar ghuma ke dekha……Kamla leyti hui thhi aur beybasi ki haalat mein usko dekh rahi thhi…..uske theek peeche Motiya leyta hua thha aur besharmi se muskuraate hue usko ektak dekh raha thha……jaise hi Roopali ki aankh uski aankh se mili, wo besharmi se muskuraate hue bola,”Kyun thakurain? Panchayat mein bologi kaise Kaalu choot choosa raha aapki? Hahahaha.” Roopali ne nafrat se doosri taraf nazrein ghuma li.
Achanak Roopali ko gandi si badboo aayi. Aankh kholi toh dekha theek naak ke neeche ek bahut hi badboodaar lund, uske khoobsoorat munh mein ghusne ki koshish kar raha hai…….bilbilate hue Roopali boli,”Bhagwaan ke liye, ye mat karo Sattu Kaka…..Aap neeche kar lo…..” Sattu chillaya,”Munh khol randee………”…..Jaldi hi peshaab, paseene se mili juli sadaandh waala kaala lund Roopali ke khoobsoorat gore munh mein thha…….Ulti aane ko hui, magar Roopali ke gale mein ghut kar reh gayi…….Badboo se dhyaan hataane ki koshish karne ke liye Roopali ne neeche ki sansanahat ki ore dhyaan kendrit kiya……..
Roopali ko choot ki sansanaahat aacchhi lag rahi thhi. Kaalu ki jeebh moti thhi aur wo bade kareene se uski gulaabi- gori choot ko choos raha thha……jaanwaron jaisi jeebh hone ki wazah se us jeebh ki khurdurahat, jitni baar Roopali ke daane ko chhoo jaati, uski siskaari si chhoot jaati. Munh mein badboodar, paseene se chipchipa kaala lund thha aur ubkayi, nafrat aur beybasi ke mare Roopali ki khoobsoorat aankhon se aansoo chhalchhala uthe.
Aahat hirni ki tarah, kisi tarah Roopali ne nazrein ghumaayi to dekha nangi Kamla uski ore ektak dekh rahi hai. Poori nangi Kamla ki bagal mein kaala Motiya nanga leyta hua thha aur bhookhe bhediye ki tarah Roopali ki chudaayi dekh raha thha. Shaayad Roopali ki mazboori uske andar ke shaitaan ko aur jaga rahi thhi….isliye, who reh rehkar, Kamla ki kasi hui chhatiyon ko beech beech mein zoron se masal deta thha……har baar uski kalpana mein Roopali ke gore stan aate thhe jo dar-asal is waqt, do mazboor kabootaron ki tarah Sattu ke latke hue, kale tatton ke neeche tadap rahe thhe.
Sattu apna badboodaar lund Roopali ke munh mein andar baahar kar raha thha. Chamaar lauda aazaadi se manmaani kar raha thha aur thakurain ka khaandaani munh, is dabang laude ki manmaani sehne ko mazboor thha…..munh se bhi gapp-gapp-gapp-gapp ki aawaazein aa rahi thhi. Roopali is lund se nikla kucch bhi gale ke andar naheen utarne dena chaahti thhi aur isliye dheron thook ugal rahi thhi. Dher saara thook hone ki wazah se Sattu ka badboodaar lauda aisi chiknaayi mahsoos kar raha thha jaisi usni naa kabhi apni patni Putti ki choot mein mehsoos ki thhi aur naa kabhi Shahar ki sasti randiyon mein. Kabhi kabhi Sattu apne doston ke saath Shahar ki sasti randiyaa bhi chod liya karta thha, jaisa ki gaon ke log aksar karte hain jab wo bade shahron mein anaaj bechne ya khaad-beej khareedne jaate hain.
Sattu vahshiyon ki tarah Roopali ka munh chod raha thha. Kaalu ne Roopali ki jaanghon ke beech mein munh fansa rakha thha aur choot se risti hui har boond ko aise pee raha thha maano devta samudra manthan se nikle amrit ko pee gaye thhe. Fark sirf ye thha, ki Kaalu koi devta naheen, ek raakshash thha……aur Roopali ki vidambana yeh thhi ki is dusht raakshash ka gala kaatne ke liye koi Devta dharti pe naheen aa raha thha.
Achanak Sattu ne thook se apne dono choochak (nipples) khoob geele kiye aur Roopali ke dono haath uthakar,uske angoothon aur pehli ungli ke beech apne nipple pakda diye. Mazboori mein Roopali uska badboodaar, mota lund chooste chooste uske choochako ko dheere dheere masalne lagi. Sattu maano swarg mein thha. Apne choochakon se usko sansanaahat mehsoos ho rahi thhi…..kaala lund mota hote hote, apni paraakaashtha pe thha aur Roopali ko gale ke andar tak chod raha thha…….Kaalu ki khurdari jeebh Roopali ki choot ke andar saanp ki tarah bilbila rahee thhe……achanak Roopali ko neeche ek tez sansanaahat mehsoos hui aur usne kai jhatko mein Kaalu ki jeebh mein dher saara shahad chhod diya.
Roopali chhoot chuki thhi. Lekin Sattu ne uske baal pakad rakhe thhe aur uske munh ko jhatke de deke who uska munh lagataar chod raha thha…..Roopali ki ungliyaan lagaatar uske choochakon se khelne ko mazboor thhi……..Roopali ne uske choochakon ko zara zor se masal kya diya, ek zordaar jhatka le ke Sattu ne bahut hi mota, gaadha aur bahut saara safed veerya, Roopali ke Thakur gale mein utaar diya.
Fuccchhh…….Fuccchhhhh…..
Poore 2 minute zabran use bheenche rakha Sattu ne aur jab Roopali ka sir aazaad kiya, toh woh zoro se khaansne lagi. Lambe khule baal, gulaabi rang ka mazboor, khoobsoorat chehra aur aankho se jhar jhar girte motiyon jaise aansoo………….Kameene sattu ne jaise hi uska chehra dekha, zoro se hansne laga aur bola,”Panchaayat mein zaroor bataai…..ki naaspeeta Sattu humre mukh mein lavda diye raha humre….hahahahahahahahaha.” Kaalu jo ab tak Roopali ki choot chaat raha thha, dheere se sarak ke uth baitha aur Roopali ka baayaan mamma sehlaate hue woh bhi hansne laga!
Yeh sab dekhte dekhte Motiya phir se garam ho chukka thha. Woh lagaatar saanwli Kamla ki kasi hui choot, jiska quila woh thodi hi der pehle dhwast kar chukka thha, sehla raha thha. Kabhi choot mein ungli ghusa ghusa ke maze leta thha aur kabhi uski choot ke daane ko marodne lagta. Kamla kasmasaate hue siskaariyaan le rahi thhi. Achanak Motiya ek jhatke se utha aur Kaalu se bola,”Thakurain ki choot kaafi choos chuke tum maadarchod….abhi tum Kamla Raani ka majaa bhi lai lo….Mouku Thakurain ka jaayja layne do bhaai.” Kaalu bade anmane mann se uthha. Sach baat yeh thhi ki usne sirf ek baar ek sasti Nepali Randi ko choda thha jo gori thhi. Us jaise badsoorat, kaloote chamaar ko gori thakurain ke darshan maatra durlabh thhe aur yahaan woh unki choot 1 ghante se chaat raha thha. Raakshash jaisa Kaalu majboori mein utha, Kamla ki bagal mein leyta aur uski choot mein beyrahmi se 1 ungli poori ghusaate hue uske hoonthon ko zor se choosne laga.
Chaandni raat thhi aur shaayad pooran-maasi se 1 din pehle ka chaand thha. Roopali ka gora nanga badan maano doodh mein nahaaya hua dikh raha thha aur Motiya aur Sattu usko aise kharonche maar rahe thhe maano shaitaan cheeton ke haath ek mazboor hirni lag gayi ho aur woh maarne se pehle, usko noch-khasot rahe hon.
Motiya ne apna mota lund uske honthon ke beech mein lagaaya aur mazboor, naakam koshish ko andekha karte hue, Roopali ke sundar munh mein apna lund ghusa diya aur andar baahar karne laga. Sattu ne Roopali ka hath pakda aur usmein apna lauda thama diya. Mazboori mein Roopali Sattu ka badboodar lund, jisko woh kucch hi der pehle choos chuki thhi, hilaane sehlaane lagi. Motiya ne ghapaghap uske munh ko thodi der choda aur Roopali ki aankhein phatne ko aa rahi thhi. Achanak, Motiya ne apna lund Roopali ke munh se kheench ke nikaal liya, teer ki tarah neeche sarka aur ghacchhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh se apna mota lund Roopali ki choot mein gusa diya. “Aaaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhh……..”
Kaalu itna sab dekh kar apna aapa kho baitha. Usne apna moosal jaisa lund ek baar sehlaaya , uspar bahut saara thook lagaya aur Kamla ki kasi hui, ubhri bhoore rang ki choot mein ghhhhhhupppppppppp, se ghusa diya. Kamla kuchh hi der pehle Motia ko apni jawaani ka anmol moti saunp chuki thhi. Pehli baar chudi thhi isliye ab itna dard naheen hona chaahiye thha. Magar Kaalu ka lund moosal thha. Jaise kisi gadhe ka ho. “Haaaye mori maiyyyyyyyyyyyyyyaaaaaaaaaaaaa
Kaalu ne berahami se Kamla ke ubhre hue, mote honth ko choosna shuru kiya aur moosal lund se danadan chudaayi jaari thhi. Kuch der pehle Motiya ne uski choot se khoon nikaala thha magar shaayad uski kismet mein choot ko aur jyaada, poori tarah se khulwaana likha thha…….khoon phir se risne laga. Kaalu bekhabar, chode jaa raha thha…..fucchh-fucchh—fucchh-
“Uuuuuuunnnnnnnn…aaaaannnnnn—
Motiya, jo pehle hi Kamla ke andar ek baar jhad chukka thha, ab Roopali ko chode jaa raha thha aur jhadne ka naam naheen le raha thha. Pucch-puchh-pucch-pucch, Pucch-puchh-pucch-pucch Pucch-puchh-pucch-pucch Pucch-puchh-pucch-pucch Pucch-puchh-pucch-pucch………ki aawaaz hazaaron jheenguron ki aawaaz ke beech aa rahi thhi aur haalanki yeh aur kucch naheen, ek ladki aur ek yuvti ka balaatkaar thha, phir bhi, chudaayi ka sangeet maano fizaon mein chha chukka thha.
Achanak jhaadiyon mein khad khad khad khad ke saath kisi ke aane ki aawaz mehsoos hui…..aur kisi anjaan shakhsh ke aane ke darr se Motiya Roopali ke oopar ekdum sunnn layte gaya. Kaalu ne bhi Kamla ka munh bheench diya. Lekin Roopali ne mauke ki nazakat ko samajhte hue guhaar lagaayi,”Bhaiyya…idhar,……..
…”CHUPP….CHUPP SAALI…..” Motiya aur Sattu fusfusaaye aur unhone Roopali ka munh daba diya….ab sirf “Uggghhh…gon-gon…ugghhhhh….”
Dheere dheere kadmon ki aawaz paas aati gayi aur achanak ‘woh’ saamne aa gaya
Achanak jhaadiyon mein khad khad khad khad ke saath kisi ke aane ki aawaz mehsoos hui…..aur kisi anjaan shakhsh ke aane ke darr se Motiya Roopali ke oopar ekdum sunnn layte gaya. Kaalu ne bhi Kamla ka munh bheench diya. Lekin Roopali ne mauke ki nazakat ko samajhte hue guhaar lagaayi,”Bhaiyya…idhar,……..
Dheere dheere kadmon ki aawaz paas aati gayi aur achanak ‘woh’ saamne aa gaya…….
Woh 45-50 saal ka Mungeri thha……jise in teen chamaaron ne gaon bheja thha, Roti, Murgi aur sharaab laane. Chaandni raat mein Mungeri ne Roopali ka doodh jaisa nanga badan dekha……..Kaalu ke kale cheekat-keechad jaise badan se chipka Kamla ka poora nanga, kasa hua saanwala-salona badan dekha aur uska munh khula ka khula reh gaya. Usko dekh kar Motiya, Kaalu aur Sattu hansne lage aur Sattu bola,”Huttt saala…..ye tum ho chootiya, hahahahaha.” Roopali ne Mungeri ki ore ek nazar dekha aur uske munh se beybasi ki ek lambi, thandi aaah nikal gayi. Usne apni aankhein band kar li.
Poori shaam Mungeri teen chamaar doston ko samjha raha thha ki thakurain se panga naa lo aur jaane do unko. Par ab woh Roopali ke gore, sundar badan ko chaandni raat mein yun nihaar raha thha jaise koi giddh, marey hue jaanwar ki laash ko nihaarta hai.Uske haath se khaane ka thaila chhoot gaya. Botalein zameen par rakh ke, Mungeri apne baayein haath se, dhoti ke oopar se hi, apna lund masalne laga.
Motiya ne Roopali ki taangon ko phir dono kandhon pe rakha aur Pucch-puchh-pucch-pucch Pucch-puchh-pucch-pucch Pucch-puchh-pucch-pucch ke sangeet may aawaz ek baar phir kheton mein goonjne lagi. Sattu sarak kar Roopali ke munh ki taraf gaya, usne Roopali ke lambey baalon waale sir ko apne haathon mein liya aur ek baar phir, apna badboodaar lund uske munh mein ghusa ke usko chodne laga.
Mungeri pe maano koi jaadoo ho gaya ho. Woh kabhi apne chamaar doston ke saath randiyaan tak chodne naheen jaata thha. Sirf sharaab aur kabaab ki yaari thhi uski. Par Roopali ki gori taangein kaale Motiya ke kandhon pe aur Roopali ki gori choot mein dhansa hua Motia ka kaala lund, uske dimaag pe chhaa chuke thhe. Maano kisi ne sammohan sa kar diya thha uspe. Phati hui aankho se Roopali ke sundar chootadon ko ucchalta hua dekh raha thha Mungeri. Jaane kab uski dhoti hutt gayi aur dhaari waala kaccha bhi naada khol ke woh poora nanga ho chukka thha. Kaalu, jo Kamla ke saath ye sab dekh raha thha, zor se hansa,”Aye maadarchod Mungeri. Itta bada lavda re……??? Istemaal kaahe naheen karat hai re kabhi kabhi…hahahaha?”……..
Mungeri uski hansee ko ansuna karta hua chudti hui Roopali ke chootadon ke paas gaya aur apni naak uske gore, khoobsoorat chootadon ke jitna paas le jaa sakta thha, le gaya. Mungeri ke nathunon mein Roopali ki gaand se aane waali madmast khushboo samaa gayi. Use Motiya ke laude ki badboo bhi aayi aur uska dil kiya Motiya ko dhakka de de……magar saamajik takaaja thha…..apna dhyaan Motiya ke lund se hata kar, Roopali ke sunehre, bhoore chhed pe kendrit kiya aur apni jeebh uspe lagaane ki koshish karne laga.
Is koshish mein kabhi uski naak aur maatha Motiya ke tatte chhoo jaate toh kabhi jeebh Roopali ki gaand chaatne lagti. Motiya aur Roopali har baar ek sihran mehsoos kar rahe thhe aur Motiya Dhaka dhak Roopali ki gori choot chod raha thha, jaanghon ko naakhoon se noch raha thha aur beech beech mein uski mast choochiyaan choosne lagta.
Sattu lauda chuswaane mein mast thha aur Roopali ka munh chode jaa raha thha.
Mungeri ne bahut saara thook Roopali ki gaand ke chhed pe lagaaya aur dheere dheere pehle ek ungli aur phir do ungliyaan uski gaand ke andar karne laga. Motiya ne saaf mehsoos kiya ki Roopali ki choot ki deewaron se Mungeri ki ungliyaan uska lund daba rahi hain aur uska chudayi ka utsaah duguna ho gaya…….Roopali ko bahut takleef ho rahee thhi magar uski thaakur gaand ki akad, chamaar Mungeri ki ungliyon ke age dum tod rahi thhi. Dheere dheere gaand dheeli hoti chali gayi.
Mungeri ne Motiya se rukne ko kaha. “Kaa hai???...”, Motia gurraya. “Ruk naa, bahut majaa aaibe kari…” Mungeri bola aur usne Motiya ko peeth ke bal laytene ko kaha. Bemann se Motiya neeche leyta, toh Mungeri ne baal pakad kar Roopali ko uthhaya aur Motiya ke oopar baitha diya. Motiya ke khade lund ne aasani se apna raasta dhoondh liya aur woh Ropali ki raseeli choot mein ghapp se ghus gaya. Motiya ne Roopali ki kamar pe dono haath rakhe aur kamar ko apne mazboot haathon se oopar neeche karne laga. Doodh si gori Roopali, raseele honth, aankh mein aansoo aur uske kamar tak lambe lehraate baal………maano koi khoobsoorat apsara in kheton mein aa gayi thhi….in kameene chamaaron se apni aisi-taisi karaane..
Motiya ne pehle kabhi is mudra mein chudaayi naheen ki thhi. Use bahut hi jyaada maza aa raha thha. Roopali ki mast chhatiyaan uski aankhon kea age har jhatke ke saath ucchal rahi thhi, uske kaale haath Roopali ke mast chootadon pe thappad laga rahe thhe aur lund masti se gap-gapp-gapp-gapp-gapp-gapp chudaayi kar raha thha. Motiya ne mehsoos kiya achanak chudayi ruk gayi hai kyunki who Roopali ko kamar se oopar neeche naheen kar paa raha hai……..jaldi hi use kaaran samajh aa gaya……usne dekha, Roopali ko kamar se Mungeri ne pakad rakha hai aur woh chootadon ko thoda utha ke, Roopali ki gand mein apna mota lauda ghusane ki koshish kar raha hai. Apne aap hi, Motiya ne apne dhakke bilkul band kar diye aur Mungeri ke lund ki safalta ka intezaar karne laga.
Mungeri ne dher saara thook Roopali ki gaand ke chhed pe mala, apne laude pe masla aur ek baar phir koshish ki. Ghuppp….dheere se lund ne guda dwaar mein pravesh kiya aur Roopali ki cheekh nikli….”Aaaaahhhhhhhhhhhh.” Sattu ab tak bagal mein baitha sharaab pee raha thha aus usne Roopali ke gaalon pe chikoti kaati,”Maalkin, Panchaayat ko bahut majaa aaibe kari, jab aap I chudaayi kaa baare maa bataaibe kari….aaahahahaha.”
Dheere, Dheere, Dheere, Dheere, Mungeri ka mazboot lauda Roopali ki gaand mein poora ghus gaya aur 30-40 second tak Motiya, Roopali aur Mungeri…teeno ki maano saansein ruk gayi. Phir dheere se Mungeri ne 5-7 milimeter baahar ko kheencha aur lund phir andar ghusa diya. Phir usne ye lagatar karna shuru kar diya.
kramashah...........
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