raj sharma stories
बलात्कार--3
गतान्क से आगे..................
रूपाली को लग रहा था मानो नर्म मक्खन के बीच गर्म गर्म चाकू अंदर बाहर हो रहा हो………नीचे लेटे मोतिया को जन्नत का सुकून मिल रहा था. वो रूपाली की फेली हुई, कसी चूत का कड़ा दबाव महसूस कर रहा था…….और फिर, चमत्कार हो गया. एक साथ मोतिया ऊपर की ओर धक्का लगाता……मुंगेरी नीचे की ओर और दोनो के धक्कों का समय बिल्कुल एक साथ होने की वज़ह से, हर धक्के पे रूपाली दोनो के बीच भींच जाती और उसकी घुटि हुई आवाज़ आती,”हुन्न्ञनह………………….हुन्न् ञणनह……………हुनह”. मोतिया नीचे से खुशी से झूमते हुए चीखा,”मज़ाआआआअ…..आाआईयईई….गावा
ााआआआ रीईईईईई….ले….ले….ले, ले और ले….”
मुंगेरी कस कस के रूपाली की सुंदर गान्ड मार रहा था और इन दोनो काले चामारों के बीच रूपाली का गोरा, दूधिया बदन पिसता हुआ देख के कालू और सत्तू अपने लंड रगड़ रहे थे.
रोने धोने से कोई फ़ायडा नहीं था…..इसलिए रूपाली कोशिश करके बदन में पैदा होती हुई सनसनाहट का आनंद लेने लगी. उसे इस तरह कभी किसी ने नहीं चोदा था और मुंगेरी का लंड वाकई उसकी गान्ड में बहुत ही सख्ती से अंदर बाहर हो रहा था…….मुंगेरी के लंड की वज़ह से उसकी चूत पूरी तरह मोतिया के लंड को जाकड़ चुकी थी और ले-बद्धह तरीके से चुदाई-थुकायी जारी थी……
मोतिया का लंड कम आसानी से ऊपर नीचे हो रहा था मगर मुंगेरी के लंड ने गान्ड के अंदर आग सुलगा रखी थी…….. पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ…….फुकच्छ… फुकच्छ…फुच…फुकच के बीच रूपाली की…….”हुन्न्ञणनह……..हाअएं…….हु न्न्ञनह….हुन्न्ह…..” दोनो चमारों के लंड में आग लगा रही थी……….12-15 मिनिट की ये चुदाई रूपाली को 12-15 युग समान लगी…..अचानक, मुंगेरी चीखा…..”आआआआआआाअगघह………हुमको….. माआआफ…..करो………ठकुर्ााआआईन्न् नननननननननननननणणन्…..आाागघ….आा गघह……आअघह”….और उसने अपना सालों का जमा वीर्य रूपाली की गान्ड के अंदर छोड़ दिया……….”हाअए….हाअए……….मर गया रे रंडीईईईईईईईईईईईईईई”, बोलके मोतिया ने भी रूपाली की चूत के अंदर वीर्य-पात कर दिया.
चूत तो ठीक थी मगर गान्ड में रूपाली को लग रहा था मुंगेरी ने आधा लीटर वीर्य छोड़ा था. इस बेबसी की हालत में भी उसके दिल ने कहा,”हे भगवान, ये चमार चूत के अंदर झाड़ा होता तो आज तो मैं मा बन ही गयी थी……..”, ना चाहते हुए भी अपने ख़याल पे मुस्कुरा उठी. हालाँकि वो सिर्फ़ एक पल के लिए मुस्कुराइ थी मगर, मोतिया ने देख लिया और हंसते हुए बोला,”आए हाए रानी….अब तो बहुत खुस हो……पंचायत नहीं जाओगी सायद..हाहहाहा.”
रूपाली ने उठना चाहा मगर मोतिया और मुंगेरी, दोनो ने उसको जाकड़ लिया और बहुत ज़ोर से दोनो के बीच में दबा लिया. कोई 10-15 मिनिट वो ऐसे ही पड़े रहे!
कोई 15 मिनिट बाद, मुंगेरी ने अपना लंड रूपाली की सुंदर गान्ड से और मोतिया ने उसकी खूबसूरत चूत से, बाहर खींचा और रूपाली लड़खड़ाती हुई उठी. सत्तू ने पानी की बोतल उसकी ओर बढ़ाई और ना चाहते हुए भी रूपाली ने पानी पिया. गाओं में ये सोचना भी पाप था कि कोई चमार किसी ठकुराइन को पानी के लिए पूछ भी सकता है. मगर यहाँ वो बस एक मज़बूर औरत थी.
धीरे से रूपाली उठी और घने गन्नो की तरफ बढ़ी. वो सब जानते थे वो भागने की हालत में नहीं है, इसलिए सिर्फ़ उस तरफ ध्यान से देखते रहे. रूपाली लंबे गन्नो की आड़ में बैठ गयी और पेशाब करने लगी. हिस्स्स्स्सस्स……..की आवाज़ आते ही मानो कालू को करेंट लग गया. झटके से उठा और दौड़ के रूपाली की ओर दौड़ा. झट से उसने अपना दायां हाथ बैठी हुई रूपाली की गान्ड के नीचे घुसाया और रूपाली के पेशाब की गरम गरम धार अपने हाथों पे महसूस करने लगा.
हिस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स् सस्स…………………….हिस्स्स्स्स्सस्स… …हिस्स्सस्स……….हिस्स्स….” की आवाज़ के साथ पेशाब का गिरना बंद हुआ और रूपाली की चूत के होंठों को दबा दबा के कालू ने आखरी बूँद तक निचोड़ के चूत को पूरा सूखा दिया. उसके बाद कालू ने मज़बूत हाथों से रूपाली को किसी बच्चे की तरह गोद में उठा लिया और वापस, सबके बीच में ले आया.
चाँदनी रात में सब नंगे बैठे थे, और हल्की ठंडक हवा में होने के बावजूद, सबको हल्का पसीना आ रहा था. इतनी मेहनत जो की थी सबने. रूपाली ने अपनी सारी को अपने कंधों पे इस कदर रख लिया कि उसका नन्गपन कुछ छुप जाए. उसकी देखा-देखी साँवली-सलोनी कमला ने भी अपना घाघरा कंधो पे रख लिया अपनी छाती को ढकने के लिए. चाँदनी रात में कमला का नंगा बदन, पैरों में सिर्फ़ दो चाँदी की पाजेबें और सांवला सलोना रंग बहुत आकर्षक लग रहा था. रूपाली, का ननगपन, उसकी गुलाबी सारी से छन के बाहर निकल रहा था और उसके गोरे चेहरे पे फैला हल्का काजल, उसके खूबसूरत घने काले बाल, गोरा रंग और खूबसूरत चेहरा उसे किसी अप्सरा से कम नहीं लगने दे रहे थे.
कालू, मोतिया, सत्तू और मुंगेरी ने प्लास्टिक के गिलास निकाले और उनमें देसी शराब भर दी. फिर मुर्गी के माँस वाली बड़ी थैली को उन्होने बीच में खोल लिया और रोटी के बड़े बड़े टुकड़े तोड़कर, उसमें मुर्गी-तरी लपेटकर खाने-पीने लगे. मोतिया ने एक बड़ा रोटी का टुकड़ा तोड़ा, उसमें मुर्गी का एक छ्होटा टुकड़ा लपेटा, तरी में थोड़ा डुबोया और कमला के मुँह में ठूंस दिया. बेचारी को शायद बहुत भूक लग आई थी और वो खाने लगी. मोतिया ने कमला से पूछा,”सराब पिएगी मौधी?” कमला ने ना में सिर हिलाया और पानी की बोतल की तरफ इशारा किया. मोतिया ने उसे पानी दे दिया.
कालू ने एक रोटी में थोड़ा मुर्गी का माँस रखा और एक पानी का गिलास भरकर, रूपाली के आगे रखता हुआ बोला,”लो ठकुराइन, खाना खाई लीजो.” इतनी इज़्ज़त से उसने ये बोला था कि एक पल को तो रूपाली को लगा मानो अब तक जो कुछ हुआ था वो सिर्फ़ एक भयानक सपना था. बचपन से रूढ़िवादी, कट्टर संस्कारों में पाली बढ़ी थी रूपाली और उसके लिए नीच जाती के लोगों के हाथ से कुछ भी खाना धर्म भ्रष्ट करने वाली बात थी. उसने मुँह फेर लिया. फिर अचानक वो कालू से बोली,”देखो, अब हम तुम्हारे हाथ जोड़ती हैं, बहुत हो गया. अब हमें हवेली पहुँचवा दो.”
शायद मोतिया या सत्तू तो मान भी जाते, मगर, कालू जिसने सिर्फ़ रूपाली की चूत का रस-पान किया था, इतनी आसानी से इस ख़ज़ाने को छोड़ने को तैय्यार नहीं था. बड़े अदब से बोला,”मालकिन, बस एक बार हमका भी आपकी चूत का स्वरग माफिक आनंद दाई दव…..फिर हम आपको इज़्ज़त से हवेली पहुँचाई देब.” बेयबसी में रूपाली मन मसोस कर रह गयी.
कमला सरक कर रूपाली के पास आ गयी थी. उसने रूपाली का हाथ थम लिया और आँसू बरसाते हुए बोली,”मालकिन…हमका माफ़ कर दव….हमरी खातिर….”. रूपाली ने एक पल के लिए उसको सूनी सूनी आँखों से देखा…..और सीने से लगा लिया. शराब पीते पीते मुंगेरी ने जैसे ही यह नज़ारा देखा, कमज़ोर दिल का होने की वज़ह से वो डर गया और धीरे से सत्तू से बोला,”सत्तू, चल अब बहुत हुआ. रोटी खा के, ठकुराइन और ई मौधी का घर पहुँचाई देत हैं…”. सत्तू ने मोतिया को देखा और उसने कंधे उचका के मानो कहा, जैसा तुम लोग ठीक समझो. पर कालू गुस्से से मुंगेरी से बोला,”वाह रे मुंगेरी. खुद साला ठकुराइन की गान्ड मार लिए हो, और हमका सिरफ़ कमला मौधी की चूत बजाई के सन्तोस कर लैब? आराम से बैठो अभी…….”
जान छ्छूटने की जो एक हल्की सी उम्मीद की किरण बची थी, वो भी ख़त्म हो गयी और रूपाली की आँखों से आँसू बह निकले.
कमला ने रूपाली को कहा,”दीदी, कुछ खाई लो..” मगर गम्सम बैठी रूपाली ने मानो कुछ सुना ही नहीं. कमला ने थोड़ा रोटी-मुर्गी उसके मुँह के पास किया तो रूपाली को चमारों के ढाबे के खाने में वोई दुर्गंध आती महसूस हुई जो उसने सत्तू के बदबूदार लंड से आती हुई महसूस की थी. नफ़रत से उसने नज़रें फेर ली.
चारों चमारों ने तसल्ली से दारू ख़तम की, ठंडी पड़ चुकी रोटी-मुर्गी को पूरा सॉफ कर गये और उसके बाद, मुश्क़ुयल से 3-4 कदम दूर, बारी बारी पेशाब करने लगे. झींगुरों की आवाज़ें, चाँदनी रात और एक के बाद एक चार काले, गंदे, भद्दे इंसानो के मूतने की आवाज़ें…….बदबू के मारे रूपाली को उबकाई आने लगी.
रात के कोई 9-10 बज चुके थे…..आसमान में कुछ काले बादल उमड़ आए थे और बीच बीच में हल्की बूँदा बाँदी भी हो रही थी. खेत की मिट्टी से सोंधी सोंधी सुगंध आने लगी और रूपाली को कुछ राहत महसूस हुई. कालू ने उसे कंधो से पकड़ा और बड़ी इज़्ज़त से बोला,”लेट जाओ मालकिन.” रूपाली का दिल किया दुष्ट कलूटे की आँखें नोच ले मगर, चुपचाप लेट गयी. उसकी पीठ और जाँघो पे खेत का कीचड़ लिपट गया. कालू ने उसकी जांघों को अलग किया और अपना काला चेहरा, उसकी गोरी जांघों के बीच धँसा दिया.
जैसे ही कालू की खुरदूरी जीभ ने रूपाली की चूत को च्छुआ, उसके बदन में एक झुरजुरी दौड़ गयी. कालू को रूपाली की चूत से रूपाली की खुश्बू, उसके पेशाब की मेगक और मोतिया के वीर्य की बदबू का मिला जुला एहसास हुआ. कुल मिला कर उसपे तुरंत असर हुआ और उसका मूसल लंड, एकदम तन्ना के तय्यार हो गया और रूपाली के सौन्दर्य को सलामी देने लगा.
कालू का लंड बहुत ही बड़ा था और ये रूपाली को तब एहसास हुआ जब उसने इस मूसल को अपनी चूत में घुसता हुआ महसूस किया.
“नाआअ……उम्म्म्ममम….आआाअघह….म् म्म्मममममम”. रूपाली को लगा कालू का मूसल उसकी नाभि तक घुसा हुआ है……रूपाली दहशत के मारे सिहर उठी जब उसने कालू को बड़ी इज़्ज़त से कहते हुए सुना,”बस बस ठकुराइन, थोड़ा सा और है बस…” रूपाली ने खुद को बिल्कुल ढीला छोड़ दिया और ना चाहते हुए भी, उसकी टांगे बरबस अपने आप उठ गयी और दर्द ना हो, इसलिए उसने कालू की कमर को टाँगों के बीच जाकड़ लिया. अब कालू पूरा अंदर था और हौले हौले अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा रहा था. सत्तू और मुंगेरी एकदम पास आकर, रूपाली के गोरे गोरे चुतड़ों को कालू के काले चूतड़ के नीचे पिसता हुआ देख रहे थे और उनकी आँखें ऐसे फैली हुई थी मानो उत्साहित बच्चे किसी जादूगर का खेल देख रहे हों.
मुंगेरी से रहा नहीं गया और उसने रूपाली के गोरे चूतड़ पे अपना एक हाथ रख दिया. फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ-….,”आआआआआ…..म् म्म्मममममम…….मेरी माआआआअ…..म्म्म्मममम…आआआआअ.” फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ-…..मज़बूरी की हालत में भी रूपाली को आनंद आने लगा था…..और कालू, जो साथ साथ उसकी बाईं चूची को चूस रहा था, मानो स्वर्ग में था. उसके बदसूरत चेहरे पे गाज़ाब का उल्लास था.
बूँदा-बाँदी की रिमझिम थम चुकी थी. कालू ने एक पल के लिए अपना लंड बाहर निकाला, और रूपाली की कमर को पकड़ कर उसने घुमा दिया. जल्दी ही रूपाली घोड़ी बन चुकी थी और कालू का गधे सरीखा लंड पीछे से उसकी चूत में प्रवेश कर चुका था. चाँदनी रात में गोरी पीठ और गोरे चूतड़, जिनपे गीला गीला कीचड़ लगा हुआ था. उफफफ्फ़…..कालू मानो खुशी से पागल हो उठा. उसने रूपाली के लंबे बालों को अपने दोनो हाथों में पकड़ा और बदसूरत गधा खूबसूरत घोड़ी को मस्ती से चोद्ने लगा.
मुंगेरी सरक कर रूपाली के नीचे आया और बारी बारी से उसके दोनो मम्मे और होंठों को चूसने लगा.
सत्तू का तो मानो शौक ही अपना बदबूदार, चिपचिपा लंड चुसवाना था. उसने साँवली, कसी हुई कमला को कीचड़ में लिटाया और लंड मुँह में घुसा कर अंदर बाहर करने लगा. नफ़रत के मारे कमला के दिल से सत्तू काका के लिए बाद-दुआएँ निकल रही थी पर बदबबॉदार लंड चूसने को मज़बूर थी बेचारी.
मोतिया, दो बार चुदाई के कारण, शराब के नशे की खुमारी में कीचड़ पे लेट गया और आँखें बंद करके कमला के कसे हुए चूतदों पे हाथ फिराने लगा.
कालू रूपाली को घोड़ी बनाकर चोदे जा रहा था और रूपाली की चमकती हुई, गोरी पीठ, उसके लंड को बहुत मोटा कर चुकी थी. क्यूंकी मुंगेरी ने कुछ देर पहले रूपाली की गान्ड मारी थी, उसका सुनेहरा, भूरा छेद भी चूत पे पड़ते हर धक्के पे मुँह खोल देता था. कालू की नज़र छेद पे पड़ी और उसने थूक लगा अंगूठा, गान्ड के अंदर घुसा दिया. “हााए..माआअ….” रूपाली ने कहा और नीचे से मुंगेरी ने फ़ौरन उसके रसीले होंठों को अपने होंठो के बीच फँसा लिया और ऐसे चूसने लगा मानो रसीले दाशहरी आम की फाँक किसी ग़रीब के हाथ लग गयी हो.
कालू चोद रहा था और पीछे से चोद्ने की वज़ह से आवाज़ कुछ अलग तरह की आ रही थी….पक-पक-पक-पक…फुच्च-फुकछ…पक- पक.. पक-पक-पक-पक…फुच्च-फुकछ…पक-पक.. पक-पक-पक-पक…फुच्च-फुकछ…पक-पक…. .और साथ साथ अंगूठे से गान्ड के सुनहरे छेद को खोलता जा रहा था
फिर कमीने ने अपने मूसल-चंद लंड को बाहर निकाला और धीरे धीरे रूपाली की गान्ड में घुसाने लगा. “उययययीीईई..माआअँ….म्म्म्ममम… …आआआआआहह”, रूपाली का आरतनाद ऐसा था मानो कोई जानवर भयंकर पीड़ा में कराह रहा हो……….कालू लंड घुसाता चला गया और पूरा अंदर आकर, कुछ पल के लिए थम गया. नीचे मुंगेरी सरक कर रूपाली की चूत चूसने लगा था. कुछ राहत मिली ही थी कि कालू ने लंड अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. दर्द के मारे अचानक ही रूपाली का पेशाब निकल गया और मुंगेरी के चेहरे पर गर्म गर्म बरसात हो गयी. बौखला कर मुंगेरी बाहर निकल आया और मुँह पोछने लगा.
मुंगेरी की शाक़ल देख कर कालू हंस पड़ा और हंसते हंसते उसने गान्ड मारने की रफ़्तार तेज़ कर दी. कोई 15-20 मिनिट रूपाली की गान्ड का फालूदा बनता रहा और हाथ बढ़कर कालू उसकी चूत से खेलता रहा और अचानक,”आआआआहह…ऊहह……मालकिन……मैं आय्ाआआअ……आआआहह…………..आआअहह….. आआहह…”….कालू ने अपना सफेद, गाढ़ा वीर्य रूपाली की गान्ड के अंदर छोड़ दिया. 8-10 भयानक झटके लेकर कालू ने धीरे से अपना मूसल लंड बाहर निकाला और उसका वीर्य, रूपाली की गान्ड से चाशनी की तरह निकला और उसकी छ्होटे छ्होटे, काले झांतों वाली चूत पे फैलने लगा.
सत्तू वो पहला चमार था जिसने कमला को चोद्ने की नाकाम कोशिश की थी, जब अचानक ही रूपाली ने पहुँच कर उसके रंग में भंग डाल दिया था. पर अब उसका रास्ता सॉफ था. मोतिया कमला की चूत के दरवाज़े खोल चुका था और कालू उसके रहे सहे पेंच भी ढीले कर चुका था.
आराम से काला सत्तू नंगी कमला के कसे हुए बदन के ऊपर लेट गया और अपना खूब चूसा हुआ, लंड उसने आराम से कमला की चूत में दाखिल कर दिया. कालू से चुद्ने के बाद दर्द का सवाल ही नहीं था. कमला को हल्का सा ही दबाव महसूस हुआ और उसने कमला की चूत की चुदाई शुरू कर दी. नीच जात की कसी हुई लड़की थी और प्राकृतिक तरीके से समझ चुकी थी कि जब बलात्कार होना ही है, तो मार खाने की जगह, मौज लेने में भलाई है…..चूतड़ उठा उठा के सत्तू काका का लंड अंदर लेने लगी और सत्तू पागलों की तरह कमला को चोद्ने लगा. कालू और मोतिया से चूत फटने के बावजूद गाज़ाब का कसाव था और जितनी बार सत्तू अंदर आता, उसे लगता मानो कोई चीज़ उसके सुपादे को पकड़ रही हो. और जितनी बार वो बाहर को निकलता, ऐसा लगता मानो कोई चीज़ सुपादे को बाहर निकालने ना दे रही हो. सत्तू के मन में खुशी की उमंगे दौड़ रही थी…….साँवली जांघें काली जांघों के नीचे दबी हुई थी10-12 मिनिट तक सत्तू ने चुदाई की और फिर कमला का सिर अपने हाथ से उठा कर अपने निपल लड़की के मुँह में दे दिए. इशारा समझ के कमला उसके निपल चूसने लगी…….ऐसा करते ही सत्तू का शरीर सनसनाहट से भर गया और वो,”ओह….आआआः……अयाया….हमरी बेटी……हुमरी प्यारी बेटी कमला रानी…..ओह हमरी रंडी बेटी….आअहह…ओह्ह्ह….”…….पक-पक- पक-फुच्च-फुकच्छ-फुकच्छ- पक-पक-पक-फुच्च-फुकच्छ-फुकच्छ- पक-पक-पक-फुच्च-फुकच्छ-फुकच्छ- पक-पक-पक-फुच्च-फुकच्छ-फुकच्छ…. .आआआआआआआआआआआआआआआआआअहह……….और कलूटे सत्तू ने साँवली-सलोनी कमला की चूत के अंदर अपना वीर्य छोड़ दिया.
चार काले, एक सांवला और एक गोरा शरीर, तक कर निढाल हो चुके थे……..झींगुरों की आवाज़ें माहौल को संगीत-मेय बना रही थी……..
एक खूबसूरत, राजसी युवती और एक कसी हुई कुँवारी लड़की की लूटी हुई इज़्ज़तों का साक्षी चाँद, बेहद उदास लग रहा था और मानो शर्म के मारे, बादल के एक टुकड़े के पीछे च्छूपने की नाकाम कोशिश कर रहा हो…………दूर किसी सियार की हूऊऊऊओ---हूऊऊ की आवाज़, रूपाली को ऐसा एहसास दे रही थी मानो वो मौत के करीब हो….और गिद्ध-सियार उसकी ओर बढ़ते चले आ रहे हों……..धीरे-धीरे उसने आँखें बंद कर ली
क्रमशः...........
Balaatkaar--3
gataank se aage..................
Roopali ko lag raha tha maano narm makkhan ke beech garm garm chaaku andar baahar ho raha ho………Neeche lete Motiya ko jannat ka sukoon mil raha tha. Wo Roopali ki fayli hui, kasi choot ka kada dabaav mehsoos kar raha tha…….aur phir, chamatkar ho gaya. Ek saath Motiya oopar ki ore dhakka lagata……Mungeri neeche ki ore aur dono ke dhakkon ka samay bilkul ek saath hone ki wazah se, har dhakke pe Roopali dono ke beech bhinch jaati aur uski ghuti hui aawaaz aati,”Hunnnnhhhhh…………………. Hunnnnnhhhhhhhhhh…………… Hunhhhhhhhhhhhhh”. Motiya neeche se khushi se jhoomte hue cheekha,”Mazaaaaaaaaa….. aaaaaayiiiii….gavaaaaaaaaaaaa reeeeeeeeeeee….le….le….le, le aur le….”
Mungeri kas kas ke Roopali ki sundar gaanD maar raha tha aur in dono kaale chaamaron ke beech Roopali ka gora, doodhiyaa badan pista hua dekh ke Kaalu aur Sattu apne laude ragad rahe the.
Rone dhone se koi faayda naheen tha…..isliye Roopali koshish karke badan mein paida hoti hui sansanaahat ka aanand lene lagi. Use is tarah kabhi kisi ne naheen chodaa tha aur Mungeri ka lund waquai uski gaanD mein bahut hi sakhti se andar baahar ho raha tha…….Mungeri ke lund ki wazah se uski choot poori tarah Motiya ke laude ko jakad chuki thi aur lay-baddhh tareeke se chudaayi-thukaayi jaari thi……
Motiya ka lund kam aasani se oopar neeche ho raha tha magar Mungeri ke lund ne gaanD ke andar aag sulga ragi thi…….. Pucch-puchh-pucch-pucch……. Fucchh…fucchh…fuchhh…fucchhh ke beech Roopali ki…….”Hunnnnnhhhhh……..haaayen… ….hunnnnhhhh….hunnhhhhhhh…..” dono chamaron ke laude mein aag laga rahi thi……….12-15 minute ki ye chudaayi Roopali ko 12-15 yug samaan lagi…..achanak, Mungeri cheekha…..” Aaaaaaaaaaaaaaagghhhhhhhhhhhhh ………humko…..maaaaaf…..karo……… thakuraaaaaaaainnnnnnnnnnnnnnn nnn…..aaaaaagghh….aaaagghhhh…… aaaghhhh”….aur usne apna saalon ka jamaa veerya Roopali ki gaanD ke andar chod diyaa……….”Haaaye….Haaaye………. mar gaya re randeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeeee eeee”, bolke Motiya ne bhi Roopali ki choot ke andar veerya-paat kar diya.
Choot to theek thi magar gaanD mein Roopali ko lag raha tha Mungeri ne aadha litre veerya choda tha. Is beybasi ki haalat mein bhi uske dil ne kaha,”Hey bhagwaan, ye chamaar choot ke andar jhada hota toh aaj toh main Maa ban hi gayi thi……..”, naa chaahte hue bhi apne khayaal pe muskura uthi. Haalanki wo sirf ek pal ke liye muskuraayi thi magar, Motiya ne dekh liya aur hanste hue bola,”Aaye haaye raani….ab toh bahut khus ho……Panchayat naheen jaogi saayad..hahahaha.”
Roopali ne uthna chaaha magar Motiya aur Mungeri, dono ne usko jakad liya aur bahut zor se dono ke beech mein daba liya. Koi 10-15 minute wo aise hi pade rahe!
Koi 15 minute baad, Mungeri ne apna lund Roopali ki sundar gaanD se aur Motiya ne uski khoobsoorat choot se, baahar kheencha aur Roopali ladkhadaati hui uthi. Sattu ne paani ki botal uski ore badhaayi aur naa chaahte hue bhi Roopali ne paani piya. Gaon mein ye sochna bhi paap tha ki koi chamaar kisi thakurain ko paani ke liye pooch bhi sakta hai. Magar yahaan wo bas ek mazboor aurat thi.
Dheere se Roopali uthi aur ghane ganno ki taraf badhi. Wo sab jaante the wo bhaagne ki haalat mein naheen hai, isliye sirf us taraf dhyaan se dekhte rahe. Roopali lambey ganno ki aad mein baith gayi aur peshaab karne lagi. Hisssssss……..ki aawaaz aate hi maano Kaalu ko current lag gaya. Jhatke se utha aur daud ke Roopali ki or dauda. Jhat se usne apna daayan haath baithi hui Roopali ki gaanD ke neeche ghusaaya aur Roopali ke peshaab ki garam garam dhaar apne haathon pe mehsoos karne laga.
Hisssssssssssssssss……………………. hissssssss……hisssss……….hisss…. ” ki aawaaz ke saath peshaab ka girna band hua aur Roopali ki choot ke honthon ko daba daba ke Kaalu ne aakhri boond tak nichod ke choot ko poora sukha diya. Uske baad Kaalu ne mazboot haathon se Roopali ko kisi bachche ki tarah gode mein utha liya aur waapas, sabke beech mein le aaya.
Chaandni raat mein sab nange baithe the, aur halki thandak hawa mein hone ke baavjood, sabko halka paseena aa raha tha. Itni mehnat jo ki thi sabne. Roopali ne apni saree ko apne kandhon pe is kadar rakh liya ki uska nangapan kuch chhup jaaye. Uski dekha-dekhi saanwli-saloni Kamla ne bhi apna ghaaghra kandho pe rakh liya apni chhati ko dhakne ke liye. Chaandni raat mein Kamla ka nanga badan, pairon mein sirf do chaandi ki paajebein aur saanwla salona rang bahut aakarshak lag raha tha. Roopali, ka nangapan, uski gulaabi saari se chhan ke baahar nikal raha tha aur uske gore chehre pe faila halka kaajal, uske khoobsoorat ghane kaale baal, gora rang aur khoobsoorat chehra use kisi apsara se kam naheen lagne de rahe the.
Kaalu, Motiya, Sattu aur Mungeri ne plastic ke gilaas nikaale aur unmein desi sharaab bhar di. Phir murgi ke maans waali badi thaili ko unhone beech mein khol liya aur roti ke bade bade tukde todkar, usmein murgi-tari lapetkar khaane-peene lage. Motiya ne ek bada roti ka tukda toda, usmein murgi ka ek chhota tukda lapeta, tari mein thoda duboya aur Kamla ke munh mein thoons diya. Bechari ko shaayad bahut bhook lag aayi thi aur wo khaane lagi. Motiya ne Kamla se poochha,”Saraab piyegi moudhi?” Kamla ne naa mein sir hilaaya aur paani ki botal ki taraf ishaara kiya. Motiya ne use paani de diya.
Kaalu ne ek roti mein thoda murgi ka maans rakha aur ek paani ka gilaas bharkar, Roopali ke age rakhta hua bola,”Lo thakurain, khaana khaayi leejo.” Itni izzat se usne ye bola tha ki ek pal ko toh Roopali ko laga maano ab tak jo kuch hua tha wo sirf ek bhayanak sapna tha. Bachpan se roodhiwaadi, kattar sanskaaron mein pali badhi thi Roopali aur uske liye neech jaati ke logon ke haath se kuch bhi khaana dharm bhrasht karne waali baat thi. Usne munh fer liya. Fir achanak wo Kaalu se boli,”Dekho, ab hum tumhare haath jodti hain, bahut ho gaya. Ab hamein haweli pahunchwa do.”
Shaayad Motiya ya Sattu toh maan bhi jaate, magar, Kaalu jisne sirf Roopali ki choot ka ras-paan kiya tha, itni aasani se is khazaane ko chodne ko taiyyar naheen tha. Bade adab se bola,”Maalkin, bas ek baar humka bhi aapki choot ka swarag maafik aanand dayi dao…..phir hum aapko izzat se haweli pahunchai deb.” Beybasi mein Roopali man masos kar rah gayi.
Kamla sarak kar Roopali ke paas aa gayi thi. Usne Roopali ka haath tham liya aur aasnoo barsaate hue boli,”Maalkin…humka maaf kar dao….humri khaatir….”. Roopali ne ek pal ke liye usko sooni sooni aankhon se dekha…..aur seene se laga liya. Sharaab peete peete Mungeri ne jaise hi yeh nazaara dekha, kamzor dil ka hone ki wazah se wow darr gaya aur dheere se Sattu se bola,”Sattu, chal ab bahut hua. Roti khaa ke, thakurain aur i moudhi ka ghar pahunchayi det hain…”. Sattu ne Motiya ko dekha aur usne kandhe uchka ke maano kaha, jaisa tum log theek samjho. Par Kaalu gusse se Mungeri se bola,”Waah re Mungeri. Khud saala thakurain ki gaanD maar liye ho, aur humka siraf Kamla moudhi ki choot bajai ke santos kar laib? Aaram se baitho abhi…….”
Jaan chhootne ki jo ek halki si ummeed ki kiran bachi thi, wo bhi khatm ho gayi aur Roopali ki aankhon se aansoo beh nikle.
Kamla ne Roopali ko kaha,”Didi, kuch khaayi lo..” Magar gumsum baithi Roopali ne maano kuch suna hi naheen. Kamla ne thoda roti-murgi uske munh ke paas kiya toh Roopali ko chamaron ke dhaabe ke khaane mein woi durgandh aati mehsoos hui jo usne Sattu ke badboodaar lund se aati hui mehsoos ki thi. Nafrat se usne nazrein fer li.
Chaaron chamaaron ne tasalli se daaru khatam ki, thandi pad chuki roti-murgi ko poora saaf kar gaye aur uske baad, mushquil se 3-4 kadam door, baari baari peshaab karne lage. Jheenguron ki aawaazein, chaandni raat aur ek ke baad ek chaar kaale, gande, bhadde insaano ke mootne ki aawaazein…….badboo ke mare Roopali ko ubkaayi aane lagi.
Raat ke koi 9-10 baj chuke the…..aasmaan mein kuch kaale baadal umad aaye the aur beech beech mein halki boonda baandi bhi ho rahi thi. Khet ki mitti se sondhi sondhi sugandh aane lagi aur Roopali ko kuch raahat mehsoos hui. Kaalu ne use kandho se pakda aur badi izzat se bola,”Layte jao maalkin.” Roopali ka dil kiya dusht kaloote ki aankhein noch le magar, chupchaap layte gayi. Uski peeth aur jaangho pe khet ka keechad lipat gaya. Kaalu ne uski jaanghon ko alag kiya aur apna kaala chehra, uski gori jaanghon ke beech dhansaa diya.
Jaise hi Kaalu ki khurduri jeebh ne Roopali ki choot ko chhua, uske badan mein ek jhurjhuri daud gayi. Kaalu ko Roopali ki choot se Roopali ki khushboo, uske peshaab ki megak aur Motiya ke veerya ki badboo ka mila jula ehsaas hua. Kul mila kar uspe turan asar hua aur uska moosal lund, ekdam tanna ke tayyar ho gaya aur Roopali ke saundarya ko salaami dene laga.
Kaalu ka lund bahut hi bada tha aur ye Roopali ko tab ehsaas hua jab usne is moosal ko apni choot mein ghusta hua mehsoos kiya.
“Naaaaa……ummmmmm…. aaaaaaaghhhhhh….mmmmmmmmm”. Roopali ko laga Kaalu ka moosal uski naabhi tak ghusa hua hai……Roopali dahshat ke mare sihar uthi jab usne Kalu ko badi izzat se kehte hue suna,”Bas bas thakurain, thoda sa aur hai bas…” Roopali ne khud ko bilkul dheela chod diya aur naa chaahte hue bhi, uski taange barbas apne aap uth gayi aur dard naa ho, isliye usne Kaalu ki kamar ko taangon ke beech jakad liya. Ab Kaalu poora andar tha aur haule haule apne dhakkon ki raftaar badha raha tha. Sattu aur Mungeri ekdam paas aakar, Roopali ke gore gore chutdon ko Kaalu ke kaale chootad ke neeche pista hua dekh rahe the aur unki aankhein aise faili hui thi maano utsaahit bachche kisi jaadugar ka khel dekh rahe hon.
Mungeri se raha naheen gaya aur usne Roopali ke gore chootad pe apna ek haath rakh diya. Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch-….,” aaaaaaaaaa…..mmmmmmmmm…….meri maaaaaaaaa…..mmmmmmm… aaaaaaaaa.” Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch-…..mazboori ki haalat mein bhi Roopali ko aanand aane laga tha…..aur Kaalu, jo saath saath uski baayin choochi ko choos raha tha, maano swarg mein tha. Uske badsoorat chehre pe ghazab ka ullaas tha.
Boonda-baandi ki rimjhim tham chuki thi. Kaalu ne ek pal ke liye apna lund baahar nikaala, aur Roopali ki kamar ko pakad kar usne ghuma diya. Jaldi hi Roopali ghodi ban chuki thi aur Kaalu ka gadhe sareekha lund peeche se uski choot mein pravesh kar chuka tha. chaandni raat mein gori peeth aur gore chootad, jinpe geela geela keechad laga hua tha. Uffff…..Kalu mano khushi se paagal ho utha. Usne Roopali ke lambe baalon ko apne dono haathon mein pakda aur badsoorat gadha khoobsoorat ghodi ko masti se chodne laga.
Mungeri sarak kar Roopali ke neeche aaya aur baari baari se uske dono mammey aur honthon ko choosne laga.
Sattu ka toh maano shauk hi apna badboodaar, chipchipa lund chuswaana tha. Usne saanwli, kasi hui Kamla ko keechad mein litaaya aur lund munh mein ghusa kar andar baahar karne laga. Nafrat ke mare Kamla ke dil se Sattu kaka ke liye bad-duaen nikal rahi thi par badbbodaar lund choosne ko mazboor thi bechaari.
Motiya, do baar chudaayi ke kaaran, shaarb ke nashe ki khumaari mein keechad pe layte gaya aur aankhein band karke Kamla ke kase hue chootadon pe haath firaane laga.
Kaalu Roopali ko ghodi banakar chode jaa raha tha aur Roopali ki chamakti hui, gori peeth, uske lund ko bahut mota kar chuki thi. Kyunki Mungeri ne kuch der pehle Roopali ki gaanD maari thi, uska sunehra, bhoora ched bhi choot pe padte har dhakke pe munh khol deta tha. Kaalu ki nazar ched pe padi aur usne thook laga angootha, gaanD ke andar ghusa diya. “Haaaaye..maaaaa….” Roopali ne kaha aur neeche se Mungeri ne fauran uske raseele honthon ko apne hontho ke beech fansa liya aur aise choosne laga maano raseele dashehri aam ki faank kisi gareeb ke haath lag gayi ho.
Kalu chod raha tha aur peeche se chodne ki wazah se aawaaz kuch alag tarah ki aa rahi thi….Puck-puck-puck-puck… fuchh-fucch…puck-puck.. Puck-puck-puck-puck…fuchh- fucch…puck-puck.. Puck-puck-puck-puck…fuchh- fucch…puck-puck…..aur saath saath angoothe se gaanD ke sunehre ched ko kholta jaa raha tha
Fir kameene ne apne moosal-chand laude ko baahar nikaala aur dheere dheere Roopali ki gaanD mein ghusaane laga. “Uyyyyiiiiii..maaaaan….mmmmmm… …aaaaaaaaaahhhhhhhhhhhhhhh”, Roopali ka aartnaad aisa tha maano koi jaanwar bhayankar peeda mein karaah raha ho……….Kaalu lund ghusaata chala gaya aur poora andar aakar, kuch pal ke liye tham gaya. Neeche Mungeri sarak kar Roopali ki choot choosne laga tha. Kuch raahat mili hi thi ki Kaalu ne lund andar baahar karma shuru kar diya. Dard ke mare achanak hi Roopali ka peshaab nikal gaya aur Mungeri ke chehre par garm garm barsaat ho gayi. Baukhla kar Mungeri baahar nikal aaya aur munh pocchne laga.
Mungeri ki shaql dekh kar Kaalu hans pada aur hanste hanste usne gaanD maarne ki raftaar tez kar di. Koi 15-20 minute Roopali ki gaanD ka falooda banta raha aur haath badhakar Kaalu uski choot se khelta raha aur achanak,”Aaaaaaaahhhhhh… oohhhhhhh……Maalkin……main aayaaaaaaa……aaaaaahhhhhhh…………. .aaaaahhhhh…..aaaahhhhhhh…”…. Kalu ne apna safed, gaadha veerya Roopali ki gaanD ke andar chod diya. 8-10 bhayanak jhatke lekar Kaalu ne dheere se apna moosal lund baahar nikaala aur uska veerya, Roopali ki gaanD se chaashni ki tarah nikla aur uski chhote chhote, kaale jhaanton waali choot pe failne laga.
Sattu wo pehla chamaar tha jisne Kamla ko chodne ki naakaam koshish ki thi, jab achanak hi Roopali ne pahunch kar uske rang mein bhang daal diyaa tha. Par ab uska raasta saaf tha. Motiya Kamla ki choot ke darwaaze khol chuka tha aur Kaalu uske rahe sahe peinch bhi dheele kar chuka tha.
Aaram se kaala Sattu nangi Kamla ke kase hue badan ke oopar layte gaya aur apna khoob chusa hua, lund usne aaram se Kamla ki choot mein daakhil kar diya. Kaalu se chudne ke baad dard ka sawaal hi naheen tha. Kamla ko halka sa hi dabaav mehsoos hua aur usne Kamla ki choot ki chudayi shuru kar di. Neech jaat ki kasi hui ladki thi aur prakritik tareeke se samajh chuki thi ki jab balaatkaar hona hi hai, toh maar khaane ki jagah, mauj lene mein bhalaayi hai…..chootad utha utha ke Sattu kaka ka lund andar lene lagi aur Sattu paaglon ki tarah Kamla ko chodne laga. Kaalu aur Motiya se choot fatne ke baavjood ghazab ka kasaav tha aur jitni baar Sattu andar aata, use lagta maano koi cheez uske supaade ko pakad rahi ho. Aur jitni baar wo baahar ko nikalta, aisa lagta mano koi cheez supaade ko baahar nikalne naa de rahi ho. Sattu ke mann mein khushi ki umange daud rahi thi…….saanwli jaanghein kaali jaanghon ke neeche dabi hui thi10-12 minute tak Sattu ne chudaayi ki aur fir Kamla ka sir apne haath se utha kar apne nipple ladki ke munh mein de diye. Ishaara samajh ke Kamla uske nipple choosne lagi…….aisa karte hi Sattu ka shareer sansanahat se bhar gaya aur wo,”Ohhhhh….aaaaah……aaaah…. humri beti……humri pyaari beti kamla raani…..Oh humri randee beti….aaahh…ohhh….”…….Puck- puck-puck-fuchh-fucchh-fucchh- Puck-puck-puck-fuchh-fucchh- fucchh- Puck-puck-puck-fuchh-fucchh- fucchh- Puck-puck-puck-fuchh-fucchh- fucchh….. aaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaa aaaaahhhhhhhhhhhhhhhhhhhh………. aur kaloote Sattu ne saanwli-saloni Kamla ki choot ke andar apna veerya chod diya.
Chaar kaale, ek saanwla aur ek gora shareer, thak kar nidhaal ho chuke the……..jheenguron ki aawaazein mahaul ko sangeet-may bana rahi thi……..
ek khoobsoorat, rajasi yuvati aur ek kasi hui kunwaari ladki ki luti hui izzaton ka saakshi Chaand, behad udaas lag raha tha aur maano sharm ke maare, baadal k ek tukre ke peechhe chhupne ki naakam koshish kar raha ho…………Door kisi siyaar ki Hooooooooo---Hoooooo ki aawaaz, Roopali ko aisa ehsaas de rahi thi maano wo maut ke kareeb ho….aur giddh-siyaar uski ore badhte chale aa rahe hon……..dheere-dheere usne aankhein band kar li
kramashah...........
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बलात्कार--3
गतान्क से आगे..................
रूपाली को लग रहा था मानो नर्म मक्खन के बीच गर्म गर्म चाकू अंदर बाहर हो रहा हो………नीचे लेटे मोतिया को जन्नत का सुकून मिल रहा था. वो रूपाली की फेली हुई, कसी चूत का कड़ा दबाव महसूस कर रहा था…….और फिर, चमत्कार हो गया. एक साथ मोतिया ऊपर की ओर धक्का लगाता……मुंगेरी नीचे की ओर और दोनो के धक्कों का समय बिल्कुल एक साथ होने की वज़ह से, हर धक्के पे रूपाली दोनो के बीच भींच जाती और उसकी घुटि हुई आवाज़ आती,”हुन्न्ञनह………………….हुन्न्
मुंगेरी कस कस के रूपाली की सुंदर गान्ड मार रहा था और इन दोनो काले चामारों के बीच रूपाली का गोरा, दूधिया बदन पिसता हुआ देख के कालू और सत्तू अपने लंड रगड़ रहे थे.
रोने धोने से कोई फ़ायडा नहीं था…..इसलिए रूपाली कोशिश करके बदन में पैदा होती हुई सनसनाहट का आनंद लेने लगी. उसे इस तरह कभी किसी ने नहीं चोदा था और मुंगेरी का लंड वाकई उसकी गान्ड में बहुत ही सख्ती से अंदर बाहर हो रहा था…….मुंगेरी के लंड की वज़ह से उसकी चूत पूरी तरह मोतिया के लंड को जाकड़ चुकी थी और ले-बद्धह तरीके से चुदाई-थुकायी जारी थी……
मोतिया का लंड कम आसानी से ऊपर नीचे हो रहा था मगर मुंगेरी के लंड ने गान्ड के अंदर आग सुलगा रखी थी…….. पुकछ-पुच्छ-पुकछ-पुकछ…….फुकच्छ…
चूत तो ठीक थी मगर गान्ड में रूपाली को लग रहा था मुंगेरी ने आधा लीटर वीर्य छोड़ा था. इस बेबसी की हालत में भी उसके दिल ने कहा,”हे भगवान, ये चमार चूत के अंदर झाड़ा होता तो आज तो मैं मा बन ही गयी थी……..”, ना चाहते हुए भी अपने ख़याल पे मुस्कुरा उठी. हालाँकि वो सिर्फ़ एक पल के लिए मुस्कुराइ थी मगर, मोतिया ने देख लिया और हंसते हुए बोला,”आए हाए रानी….अब तो बहुत खुस हो……पंचायत नहीं जाओगी सायद..हाहहाहा.”
रूपाली ने उठना चाहा मगर मोतिया और मुंगेरी, दोनो ने उसको जाकड़ लिया और बहुत ज़ोर से दोनो के बीच में दबा लिया. कोई 10-15 मिनिट वो ऐसे ही पड़े रहे!
कोई 15 मिनिट बाद, मुंगेरी ने अपना लंड रूपाली की सुंदर गान्ड से और मोतिया ने उसकी खूबसूरत चूत से, बाहर खींचा और रूपाली लड़खड़ाती हुई उठी. सत्तू ने पानी की बोतल उसकी ओर बढ़ाई और ना चाहते हुए भी रूपाली ने पानी पिया. गाओं में ये सोचना भी पाप था कि कोई चमार किसी ठकुराइन को पानी के लिए पूछ भी सकता है. मगर यहाँ वो बस एक मज़बूर औरत थी.
धीरे से रूपाली उठी और घने गन्नो की तरफ बढ़ी. वो सब जानते थे वो भागने की हालत में नहीं है, इसलिए सिर्फ़ उस तरफ ध्यान से देखते रहे. रूपाली लंबे गन्नो की आड़ में बैठ गयी और पेशाब करने लगी. हिस्स्स्स्सस्स……..की आवाज़ आते ही मानो कालू को करेंट लग गया. झटके से उठा और दौड़ के रूपाली की ओर दौड़ा. झट से उसने अपना दायां हाथ बैठी हुई रूपाली की गान्ड के नीचे घुसाया और रूपाली के पेशाब की गरम गरम धार अपने हाथों पे महसूस करने लगा.
हिस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्
चाँदनी रात में सब नंगे बैठे थे, और हल्की ठंडक हवा में होने के बावजूद, सबको हल्का पसीना आ रहा था. इतनी मेहनत जो की थी सबने. रूपाली ने अपनी सारी को अपने कंधों पे इस कदर रख लिया कि उसका नन्गपन कुछ छुप जाए. उसकी देखा-देखी साँवली-सलोनी कमला ने भी अपना घाघरा कंधो पे रख लिया अपनी छाती को ढकने के लिए. चाँदनी रात में कमला का नंगा बदन, पैरों में सिर्फ़ दो चाँदी की पाजेबें और सांवला सलोना रंग बहुत आकर्षक लग रहा था. रूपाली, का ननगपन, उसकी गुलाबी सारी से छन के बाहर निकल रहा था और उसके गोरे चेहरे पे फैला हल्का काजल, उसके खूबसूरत घने काले बाल, गोरा रंग और खूबसूरत चेहरा उसे किसी अप्सरा से कम नहीं लगने दे रहे थे.
कालू, मोतिया, सत्तू और मुंगेरी ने प्लास्टिक के गिलास निकाले और उनमें देसी शराब भर दी. फिर मुर्गी के माँस वाली बड़ी थैली को उन्होने बीच में खोल लिया और रोटी के बड़े बड़े टुकड़े तोड़कर, उसमें मुर्गी-तरी लपेटकर खाने-पीने लगे. मोतिया ने एक बड़ा रोटी का टुकड़ा तोड़ा, उसमें मुर्गी का एक छ्होटा टुकड़ा लपेटा, तरी में थोड़ा डुबोया और कमला के मुँह में ठूंस दिया. बेचारी को शायद बहुत भूक लग आई थी और वो खाने लगी. मोतिया ने कमला से पूछा,”सराब पिएगी मौधी?” कमला ने ना में सिर हिलाया और पानी की बोतल की तरफ इशारा किया. मोतिया ने उसे पानी दे दिया.
कालू ने एक रोटी में थोड़ा मुर्गी का माँस रखा और एक पानी का गिलास भरकर, रूपाली के आगे रखता हुआ बोला,”लो ठकुराइन, खाना खाई लीजो.” इतनी इज़्ज़त से उसने ये बोला था कि एक पल को तो रूपाली को लगा मानो अब तक जो कुछ हुआ था वो सिर्फ़ एक भयानक सपना था. बचपन से रूढ़िवादी, कट्टर संस्कारों में पाली बढ़ी थी रूपाली और उसके लिए नीच जाती के लोगों के हाथ से कुछ भी खाना धर्म भ्रष्ट करने वाली बात थी. उसने मुँह फेर लिया. फिर अचानक वो कालू से बोली,”देखो, अब हम तुम्हारे हाथ जोड़ती हैं, बहुत हो गया. अब हमें हवेली पहुँचवा दो.”
शायद मोतिया या सत्तू तो मान भी जाते, मगर, कालू जिसने सिर्फ़ रूपाली की चूत का रस-पान किया था, इतनी आसानी से इस ख़ज़ाने को छोड़ने को तैय्यार नहीं था. बड़े अदब से बोला,”मालकिन, बस एक बार हमका भी आपकी चूत का स्वरग माफिक आनंद दाई दव…..फिर हम आपको इज़्ज़त से हवेली पहुँचाई देब.” बेयबसी में रूपाली मन मसोस कर रह गयी.
कमला सरक कर रूपाली के पास आ गयी थी. उसने रूपाली का हाथ थम लिया और आँसू बरसाते हुए बोली,”मालकिन…हमका माफ़ कर दव….हमरी खातिर….”. रूपाली ने एक पल के लिए उसको सूनी सूनी आँखों से देखा…..और सीने से लगा लिया. शराब पीते पीते मुंगेरी ने जैसे ही यह नज़ारा देखा, कमज़ोर दिल का होने की वज़ह से वो डर गया और धीरे से सत्तू से बोला,”सत्तू, चल अब बहुत हुआ. रोटी खा के, ठकुराइन और ई मौधी का घर पहुँचाई देत हैं…”. सत्तू ने मोतिया को देखा और उसने कंधे उचका के मानो कहा, जैसा तुम लोग ठीक समझो. पर कालू गुस्से से मुंगेरी से बोला,”वाह रे मुंगेरी. खुद साला ठकुराइन की गान्ड मार लिए हो, और हमका सिरफ़ कमला मौधी की चूत बजाई के सन्तोस कर लैब? आराम से बैठो अभी…….”
जान छ्छूटने की जो एक हल्की सी उम्मीद की किरण बची थी, वो भी ख़त्म हो गयी और रूपाली की आँखों से आँसू बह निकले.
कमला ने रूपाली को कहा,”दीदी, कुछ खाई लो..” मगर गम्सम बैठी रूपाली ने मानो कुछ सुना ही नहीं. कमला ने थोड़ा रोटी-मुर्गी उसके मुँह के पास किया तो रूपाली को चमारों के ढाबे के खाने में वोई दुर्गंध आती महसूस हुई जो उसने सत्तू के बदबूदार लंड से आती हुई महसूस की थी. नफ़रत से उसने नज़रें फेर ली.
चारों चमारों ने तसल्ली से दारू ख़तम की, ठंडी पड़ चुकी रोटी-मुर्गी को पूरा सॉफ कर गये और उसके बाद, मुश्क़ुयल से 3-4 कदम दूर, बारी बारी पेशाब करने लगे. झींगुरों की आवाज़ें, चाँदनी रात और एक के बाद एक चार काले, गंदे, भद्दे इंसानो के मूतने की आवाज़ें…….बदबू के मारे रूपाली को उबकाई आने लगी.
रात के कोई 9-10 बज चुके थे…..आसमान में कुछ काले बादल उमड़ आए थे और बीच बीच में हल्की बूँदा बाँदी भी हो रही थी. खेत की मिट्टी से सोंधी सोंधी सुगंध आने लगी और रूपाली को कुछ राहत महसूस हुई. कालू ने उसे कंधो से पकड़ा और बड़ी इज़्ज़त से बोला,”लेट जाओ मालकिन.” रूपाली का दिल किया दुष्ट कलूटे की आँखें नोच ले मगर, चुपचाप लेट गयी. उसकी पीठ और जाँघो पे खेत का कीचड़ लिपट गया. कालू ने उसकी जांघों को अलग किया और अपना काला चेहरा, उसकी गोरी जांघों के बीच धँसा दिया.
जैसे ही कालू की खुरदूरी जीभ ने रूपाली की चूत को च्छुआ, उसके बदन में एक झुरजुरी दौड़ गयी. कालू को रूपाली की चूत से रूपाली की खुश्बू, उसके पेशाब की मेगक और मोतिया के वीर्य की बदबू का मिला जुला एहसास हुआ. कुल मिला कर उसपे तुरंत असर हुआ और उसका मूसल लंड, एकदम तन्ना के तय्यार हो गया और रूपाली के सौन्दर्य को सलामी देने लगा.
कालू का लंड बहुत ही बड़ा था और ये रूपाली को तब एहसास हुआ जब उसने इस मूसल को अपनी चूत में घुसता हुआ महसूस किया.
“नाआअ……उम्म्म्ममम….आआाअघह….म्
मुंगेरी से रहा नहीं गया और उसने रूपाली के गोरे चूतड़ पे अपना एक हाथ रख दिया. फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ- फुच्च—फुकछ—फुकछ-….,”आआआआआ…..म्
बूँदा-बाँदी की रिमझिम थम चुकी थी. कालू ने एक पल के लिए अपना लंड बाहर निकाला, और रूपाली की कमर को पकड़ कर उसने घुमा दिया. जल्दी ही रूपाली घोड़ी बन चुकी थी और कालू का गधे सरीखा लंड पीछे से उसकी चूत में प्रवेश कर चुका था. चाँदनी रात में गोरी पीठ और गोरे चूतड़, जिनपे गीला गीला कीचड़ लगा हुआ था. उफफफ्फ़…..कालू मानो खुशी से पागल हो उठा. उसने रूपाली के लंबे बालों को अपने दोनो हाथों में पकड़ा और बदसूरत गधा खूबसूरत घोड़ी को मस्ती से चोद्ने लगा.
मुंगेरी सरक कर रूपाली के नीचे आया और बारी बारी से उसके दोनो मम्मे और होंठों को चूसने लगा.
सत्तू का तो मानो शौक ही अपना बदबूदार, चिपचिपा लंड चुसवाना था. उसने साँवली, कसी हुई कमला को कीचड़ में लिटाया और लंड मुँह में घुसा कर अंदर बाहर करने लगा. नफ़रत के मारे कमला के दिल से सत्तू काका के लिए बाद-दुआएँ निकल रही थी पर बदबबॉदार लंड चूसने को मज़बूर थी बेचारी.
मोतिया, दो बार चुदाई के कारण, शराब के नशे की खुमारी में कीचड़ पे लेट गया और आँखें बंद करके कमला के कसे हुए चूतदों पे हाथ फिराने लगा.
कालू रूपाली को घोड़ी बनाकर चोदे जा रहा था और रूपाली की चमकती हुई, गोरी पीठ, उसके लंड को बहुत मोटा कर चुकी थी. क्यूंकी मुंगेरी ने कुछ देर पहले रूपाली की गान्ड मारी थी, उसका सुनेहरा, भूरा छेद भी चूत पे पड़ते हर धक्के पे मुँह खोल देता था. कालू की नज़र छेद पे पड़ी और उसने थूक लगा अंगूठा, गान्ड के अंदर घुसा दिया. “हााए..माआअ….” रूपाली ने कहा और नीचे से मुंगेरी ने फ़ौरन उसके रसीले होंठों को अपने होंठो के बीच फँसा लिया और ऐसे चूसने लगा मानो रसीले दाशहरी आम की फाँक किसी ग़रीब के हाथ लग गयी हो.
कालू चोद रहा था और पीछे से चोद्ने की वज़ह से आवाज़ कुछ अलग तरह की आ रही थी….पक-पक-पक-पक…फुच्च-फुकछ…पक-
फिर कमीने ने अपने मूसल-चंद लंड को बाहर निकाला और धीरे धीरे रूपाली की गान्ड में घुसाने लगा. “उययययीीईई..माआअँ….म्म्म्ममम…
मुंगेरी की शाक़ल देख कर कालू हंस पड़ा और हंसते हंसते उसने गान्ड मारने की रफ़्तार तेज़ कर दी. कोई 15-20 मिनिट रूपाली की गान्ड का फालूदा बनता रहा और हाथ बढ़कर कालू उसकी चूत से खेलता रहा और अचानक,”आआआआहह…ऊहह……मालकिन……मैं आय्ाआआअ……आआआहह…………..आआअहह…..
सत्तू वो पहला चमार था जिसने कमला को चोद्ने की नाकाम कोशिश की थी, जब अचानक ही रूपाली ने पहुँच कर उसके रंग में भंग डाल दिया था. पर अब उसका रास्ता सॉफ था. मोतिया कमला की चूत के दरवाज़े खोल चुका था और कालू उसके रहे सहे पेंच भी ढीले कर चुका था.
आराम से काला सत्तू नंगी कमला के कसे हुए बदन के ऊपर लेट गया और अपना खूब चूसा हुआ, लंड उसने आराम से कमला की चूत में दाखिल कर दिया. कालू से चुद्ने के बाद दर्द का सवाल ही नहीं था. कमला को हल्का सा ही दबाव महसूस हुआ और उसने कमला की चूत की चुदाई शुरू कर दी. नीच जात की कसी हुई लड़की थी और प्राकृतिक तरीके से समझ चुकी थी कि जब बलात्कार होना ही है, तो मार खाने की जगह, मौज लेने में भलाई है…..चूतड़ उठा उठा के सत्तू काका का लंड अंदर लेने लगी और सत्तू पागलों की तरह कमला को चोद्ने लगा. कालू और मोतिया से चूत फटने के बावजूद गाज़ाब का कसाव था और जितनी बार सत्तू अंदर आता, उसे लगता मानो कोई चीज़ उसके सुपादे को पकड़ रही हो. और जितनी बार वो बाहर को निकलता, ऐसा लगता मानो कोई चीज़ सुपादे को बाहर निकालने ना दे रही हो. सत्तू के मन में खुशी की उमंगे दौड़ रही थी…….साँवली जांघें काली जांघों के नीचे दबी हुई थी10-12 मिनिट तक सत्तू ने चुदाई की और फिर कमला का सिर अपने हाथ से उठा कर अपने निपल लड़की के मुँह में दे दिए. इशारा समझ के कमला उसके निपल चूसने लगी…….ऐसा करते ही सत्तू का शरीर सनसनाहट से भर गया और वो,”ओह….आआआः……अयाया….हमरी बेटी……हुमरी प्यारी बेटी कमला रानी…..ओह हमरी रंडी बेटी….आअहह…ओह्ह्ह….”…….पक-पक-
चार काले, एक सांवला और एक गोरा शरीर, तक कर निढाल हो चुके थे……..झींगुरों की आवाज़ें माहौल को संगीत-मेय बना रही थी……..
एक खूबसूरत, राजसी युवती और एक कसी हुई कुँवारी लड़की की लूटी हुई इज़्ज़तों का साक्षी चाँद, बेहद उदास लग रहा था और मानो शर्म के मारे, बादल के एक टुकड़े के पीछे च्छूपने की नाकाम कोशिश कर रहा हो…………दूर किसी सियार की हूऊऊऊओ---हूऊऊ की आवाज़, रूपाली को ऐसा एहसास दे रही थी मानो वो मौत के करीब हो….और गिद्ध-सियार उसकी ओर बढ़ते चले आ रहे हों……..धीरे-धीरे उसने आँखें बंद कर ली
क्रमशः...........
Balaatkaar--3
gataank se aage..................
Roopali ko lag raha tha maano narm makkhan ke beech garm garm chaaku andar baahar ho raha ho………Neeche lete Motiya ko jannat ka sukoon mil raha tha. Wo Roopali ki fayli hui, kasi choot ka kada dabaav mehsoos kar raha tha…….aur phir, chamatkar ho gaya. Ek saath Motiya oopar ki ore dhakka lagata……Mungeri neeche ki ore aur dono ke dhakkon ka samay bilkul ek saath hone ki wazah se, har dhakke pe Roopali dono ke beech bhinch jaati aur uski ghuti hui aawaaz aati,”Hunnnnhhhhh………………….
Mungeri kas kas ke Roopali ki sundar gaanD maar raha tha aur in dono kaale chaamaron ke beech Roopali ka gora, doodhiyaa badan pista hua dekh ke Kaalu aur Sattu apne laude ragad rahe the.
Rone dhone se koi faayda naheen tha…..isliye Roopali koshish karke badan mein paida hoti hui sansanaahat ka aanand lene lagi. Use is tarah kabhi kisi ne naheen chodaa tha aur Mungeri ka lund waquai uski gaanD mein bahut hi sakhti se andar baahar ho raha tha…….Mungeri ke lund ki wazah se uski choot poori tarah Motiya ke laude ko jakad chuki thi aur lay-baddhh tareeke se chudaayi-thukaayi jaari thi……
Motiya ka lund kam aasani se oopar neeche ho raha tha magar Mungeri ke lund ne gaanD ke andar aag sulga ragi thi…….. Pucch-puchh-pucch-pucch…….
Choot to theek thi magar gaanD mein Roopali ko lag raha tha Mungeri ne aadha litre veerya choda tha. Is beybasi ki haalat mein bhi uske dil ne kaha,”Hey bhagwaan, ye chamaar choot ke andar jhada hota toh aaj toh main Maa ban hi gayi thi……..”, naa chaahte hue bhi apne khayaal pe muskura uthi. Haalanki wo sirf ek pal ke liye muskuraayi thi magar, Motiya ne dekh liya aur hanste hue bola,”Aaye haaye raani….ab toh bahut khus ho……Panchayat naheen jaogi saayad..hahahaha.”
Roopali ne uthna chaaha magar Motiya aur Mungeri, dono ne usko jakad liya aur bahut zor se dono ke beech mein daba liya. Koi 10-15 minute wo aise hi pade rahe!
Koi 15 minute baad, Mungeri ne apna lund Roopali ki sundar gaanD se aur Motiya ne uski khoobsoorat choot se, baahar kheencha aur Roopali ladkhadaati hui uthi. Sattu ne paani ki botal uski ore badhaayi aur naa chaahte hue bhi Roopali ne paani piya. Gaon mein ye sochna bhi paap tha ki koi chamaar kisi thakurain ko paani ke liye pooch bhi sakta hai. Magar yahaan wo bas ek mazboor aurat thi.
Dheere se Roopali uthi aur ghane ganno ki taraf badhi. Wo sab jaante the wo bhaagne ki haalat mein naheen hai, isliye sirf us taraf dhyaan se dekhte rahe. Roopali lambey ganno ki aad mein baith gayi aur peshaab karne lagi. Hisssssss……..ki aawaaz aate hi maano Kaalu ko current lag gaya. Jhatke se utha aur daud ke Roopali ki or dauda. Jhat se usne apna daayan haath baithi hui Roopali ki gaanD ke neeche ghusaaya aur Roopali ke peshaab ki garam garam dhaar apne haathon pe mehsoos karne laga.
Hisssssssssssssssss…………………….
Chaandni raat mein sab nange baithe the, aur halki thandak hawa mein hone ke baavjood, sabko halka paseena aa raha tha. Itni mehnat jo ki thi sabne. Roopali ne apni saree ko apne kandhon pe is kadar rakh liya ki uska nangapan kuch chhup jaaye. Uski dekha-dekhi saanwli-saloni Kamla ne bhi apna ghaaghra kandho pe rakh liya apni chhati ko dhakne ke liye. Chaandni raat mein Kamla ka nanga badan, pairon mein sirf do chaandi ki paajebein aur saanwla salona rang bahut aakarshak lag raha tha. Roopali, ka nangapan, uski gulaabi saari se chhan ke baahar nikal raha tha aur uske gore chehre pe faila halka kaajal, uske khoobsoorat ghane kaale baal, gora rang aur khoobsoorat chehra use kisi apsara se kam naheen lagne de rahe the.
Kaalu, Motiya, Sattu aur Mungeri ne plastic ke gilaas nikaale aur unmein desi sharaab bhar di. Phir murgi ke maans waali badi thaili ko unhone beech mein khol liya aur roti ke bade bade tukde todkar, usmein murgi-tari lapetkar khaane-peene lage. Motiya ne ek bada roti ka tukda toda, usmein murgi ka ek chhota tukda lapeta, tari mein thoda duboya aur Kamla ke munh mein thoons diya. Bechari ko shaayad bahut bhook lag aayi thi aur wo khaane lagi. Motiya ne Kamla se poochha,”Saraab piyegi moudhi?” Kamla ne naa mein sir hilaaya aur paani ki botal ki taraf ishaara kiya. Motiya ne use paani de diya.
Kaalu ne ek roti mein thoda murgi ka maans rakha aur ek paani ka gilaas bharkar, Roopali ke age rakhta hua bola,”Lo thakurain, khaana khaayi leejo.” Itni izzat se usne ye bola tha ki ek pal ko toh Roopali ko laga maano ab tak jo kuch hua tha wo sirf ek bhayanak sapna tha. Bachpan se roodhiwaadi, kattar sanskaaron mein pali badhi thi Roopali aur uske liye neech jaati ke logon ke haath se kuch bhi khaana dharm bhrasht karne waali baat thi. Usne munh fer liya. Fir achanak wo Kaalu se boli,”Dekho, ab hum tumhare haath jodti hain, bahut ho gaya. Ab hamein haweli pahunchwa do.”
Shaayad Motiya ya Sattu toh maan bhi jaate, magar, Kaalu jisne sirf Roopali ki choot ka ras-paan kiya tha, itni aasani se is khazaane ko chodne ko taiyyar naheen tha. Bade adab se bola,”Maalkin, bas ek baar humka bhi aapki choot ka swarag maafik aanand dayi dao…..phir hum aapko izzat se haweli pahunchai deb.” Beybasi mein Roopali man masos kar rah gayi.
Kamla sarak kar Roopali ke paas aa gayi thi. Usne Roopali ka haath tham liya aur aasnoo barsaate hue boli,”Maalkin…humka maaf kar dao….humri khaatir….”. Roopali ne ek pal ke liye usko sooni sooni aankhon se dekha…..aur seene se laga liya. Sharaab peete peete Mungeri ne jaise hi yeh nazaara dekha, kamzor dil ka hone ki wazah se wow darr gaya aur dheere se Sattu se bola,”Sattu, chal ab bahut hua. Roti khaa ke, thakurain aur i moudhi ka ghar pahunchayi det hain…”. Sattu ne Motiya ko dekha aur usne kandhe uchka ke maano kaha, jaisa tum log theek samjho. Par Kaalu gusse se Mungeri se bola,”Waah re Mungeri. Khud saala thakurain ki gaanD maar liye ho, aur humka siraf Kamla moudhi ki choot bajai ke santos kar laib? Aaram se baitho abhi…….”
Jaan chhootne ki jo ek halki si ummeed ki kiran bachi thi, wo bhi khatm ho gayi aur Roopali ki aankhon se aansoo beh nikle.
Kamla ne Roopali ko kaha,”Didi, kuch khaayi lo..” Magar gumsum baithi Roopali ne maano kuch suna hi naheen. Kamla ne thoda roti-murgi uske munh ke paas kiya toh Roopali ko chamaron ke dhaabe ke khaane mein woi durgandh aati mehsoos hui jo usne Sattu ke badboodaar lund se aati hui mehsoos ki thi. Nafrat se usne nazrein fer li.
Chaaron chamaaron ne tasalli se daaru khatam ki, thandi pad chuki roti-murgi ko poora saaf kar gaye aur uske baad, mushquil se 3-4 kadam door, baari baari peshaab karne lage. Jheenguron ki aawaazein, chaandni raat aur ek ke baad ek chaar kaale, gande, bhadde insaano ke mootne ki aawaazein…….badboo ke mare Roopali ko ubkaayi aane lagi.
Raat ke koi 9-10 baj chuke the…..aasmaan mein kuch kaale baadal umad aaye the aur beech beech mein halki boonda baandi bhi ho rahi thi. Khet ki mitti se sondhi sondhi sugandh aane lagi aur Roopali ko kuch raahat mehsoos hui. Kaalu ne use kandho se pakda aur badi izzat se bola,”Layte jao maalkin.” Roopali ka dil kiya dusht kaloote ki aankhein noch le magar, chupchaap layte gayi. Uski peeth aur jaangho pe khet ka keechad lipat gaya. Kaalu ne uski jaanghon ko alag kiya aur apna kaala chehra, uski gori jaanghon ke beech dhansaa diya.
Jaise hi Kaalu ki khurduri jeebh ne Roopali ki choot ko chhua, uske badan mein ek jhurjhuri daud gayi. Kaalu ko Roopali ki choot se Roopali ki khushboo, uske peshaab ki megak aur Motiya ke veerya ki badboo ka mila jula ehsaas hua. Kul mila kar uspe turan asar hua aur uska moosal lund, ekdam tanna ke tayyar ho gaya aur Roopali ke saundarya ko salaami dene laga.
Kaalu ka lund bahut hi bada tha aur ye Roopali ko tab ehsaas hua jab usne is moosal ko apni choot mein ghusta hua mehsoos kiya.
“Naaaaa……ummmmmm….
Mungeri se raha naheen gaya aur usne Roopali ke gore chootad pe apna ek haath rakh diya. Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch- Fuchh—fucch—fucch-….,”
Boonda-baandi ki rimjhim tham chuki thi. Kaalu ne ek pal ke liye apna lund baahar nikaala, aur Roopali ki kamar ko pakad kar usne ghuma diya. Jaldi hi Roopali ghodi ban chuki thi aur Kaalu ka gadhe sareekha lund peeche se uski choot mein pravesh kar chuka tha. chaandni raat mein gori peeth aur gore chootad, jinpe geela geela keechad laga hua tha. Uffff…..Kalu mano khushi se paagal ho utha. Usne Roopali ke lambe baalon ko apne dono haathon mein pakda aur badsoorat gadha khoobsoorat ghodi ko masti se chodne laga.
Mungeri sarak kar Roopali ke neeche aaya aur baari baari se uske dono mammey aur honthon ko choosne laga.
Sattu ka toh maano shauk hi apna badboodaar, chipchipa lund chuswaana tha. Usne saanwli, kasi hui Kamla ko keechad mein litaaya aur lund munh mein ghusa kar andar baahar karne laga. Nafrat ke mare Kamla ke dil se Sattu kaka ke liye bad-duaen nikal rahi thi par badbbodaar lund choosne ko mazboor thi bechaari.
Motiya, do baar chudaayi ke kaaran, shaarb ke nashe ki khumaari mein keechad pe layte gaya aur aankhein band karke Kamla ke kase hue chootadon pe haath firaane laga.
Kaalu Roopali ko ghodi banakar chode jaa raha tha aur Roopali ki chamakti hui, gori peeth, uske lund ko bahut mota kar chuki thi. Kyunki Mungeri ne kuch der pehle Roopali ki gaanD maari thi, uska sunehra, bhoora ched bhi choot pe padte har dhakke pe munh khol deta tha. Kaalu ki nazar ched pe padi aur usne thook laga angootha, gaanD ke andar ghusa diya. “Haaaaye..maaaaa….” Roopali ne kaha aur neeche se Mungeri ne fauran uske raseele honthon ko apne hontho ke beech fansa liya aur aise choosne laga maano raseele dashehri aam ki faank kisi gareeb ke haath lag gayi ho.
Kalu chod raha tha aur peeche se chodne ki wazah se aawaaz kuch alag tarah ki aa rahi thi….Puck-puck-puck-puck…
Fir kameene ne apne moosal-chand laude ko baahar nikaala aur dheere dheere Roopali ki gaanD mein ghusaane laga. “Uyyyyiiiiii..maaaaan….mmmmmm…
Mungeri ki shaql dekh kar Kaalu hans pada aur hanste hanste usne gaanD maarne ki raftaar tez kar di. Koi 15-20 minute Roopali ki gaanD ka falooda banta raha aur haath badhakar Kaalu uski choot se khelta raha aur achanak,”Aaaaaaaahhhhhh…
Sattu wo pehla chamaar tha jisne Kamla ko chodne ki naakaam koshish ki thi, jab achanak hi Roopali ne pahunch kar uske rang mein bhang daal diyaa tha. Par ab uska raasta saaf tha. Motiya Kamla ki choot ke darwaaze khol chuka tha aur Kaalu uske rahe sahe peinch bhi dheele kar chuka tha.
Aaram se kaala Sattu nangi Kamla ke kase hue badan ke oopar layte gaya aur apna khoob chusa hua, lund usne aaram se Kamla ki choot mein daakhil kar diya. Kaalu se chudne ke baad dard ka sawaal hi naheen tha. Kamla ko halka sa hi dabaav mehsoos hua aur usne Kamla ki choot ki chudayi shuru kar di. Neech jaat ki kasi hui ladki thi aur prakritik tareeke se samajh chuki thi ki jab balaatkaar hona hi hai, toh maar khaane ki jagah, mauj lene mein bhalaayi hai…..chootad utha utha ke Sattu kaka ka lund andar lene lagi aur Sattu paaglon ki tarah Kamla ko chodne laga. Kaalu aur Motiya se choot fatne ke baavjood ghazab ka kasaav tha aur jitni baar Sattu andar aata, use lagta maano koi cheez uske supaade ko pakad rahi ho. Aur jitni baar wo baahar ko nikalta, aisa lagta mano koi cheez supaade ko baahar nikalne naa de rahi ho. Sattu ke mann mein khushi ki umange daud rahi thi…….saanwli jaanghein kaali jaanghon ke neeche dabi hui thi10-12 minute tak Sattu ne chudaayi ki aur fir Kamla ka sir apne haath se utha kar apne nipple ladki ke munh mein de diye. Ishaara samajh ke Kamla uske nipple choosne lagi…….aisa karte hi Sattu ka shareer sansanahat se bhar gaya aur wo,”Ohhhhh….aaaaah……aaaah….
Chaar kaale, ek saanwla aur ek gora shareer, thak kar nidhaal ho chuke the……..jheenguron ki aawaazein mahaul ko sangeet-may bana rahi thi……..
ek khoobsoorat, rajasi yuvati aur ek kasi hui kunwaari ladki ki luti hui izzaton ka saakshi Chaand, behad udaas lag raha tha aur maano sharm ke maare, baadal k ek tukre ke peechhe chhupne ki naakam koshish kar raha ho…………Door kisi siyaar ki Hooooooooo---Hoooooo ki aawaaz, Roopali ko aisa ehsaas de rahi thi maano wo maut ke kareeb ho….aur giddh-siyaar uski ore badhte chale aa rahe hon……..dheere-dheere usne aankhein band kar li
kramashah...........
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