Saturday, January 4, 2014

Raj-Sharma-stories लौड़ा साला गरम गच्क्का .



Raj-Sharma-stories


लौड़ा साला गरम गच्क्का .......................!

रात के तकरीबन 12 बज रहे थे !

एक मारुती आइकोन सुनसान हाइवे पर तेजी से भागी जा रही थी !

कार के भीतर दो प्राणी मौजूद थे !
एक नर , दूसरी मादा !
"मन , इस बार ना जाने क्यूँ मुझे बड़ी घबराहट हो रही हे .....!"मादा की आवाज़ !
"क्या , हम ये सब पहली बार करने जा रहे हे ...?हर बार की तरह इस बार भी ज्यादा मजे आयेंगे ......
ज्यादा मत सोचो !"नर की आवाज़ !
"हम लोग शहर से कितना दूर आ गए हे ...अब और कितना आगे हे ?'
"बस पहुँचने ही वाले हे ... !"
"उम्र कितनी होगी ....उनकी ...?"
"अधेड़ ...अकेला और तन्हा ...!"
"तुमने उसे क्या बताया हे ?..."
"वहीँ जो हर बार बताता हु .....बच्चा नहीं ठहरता .....में ठीक से कर नहीं पता हु ......डाक्टर को बताया कोई फायदा नहीं हुआ ....वगेरह वगेरह ...!"
"उसने क्या कहा ?..."
"यहीं की अपनी पत्नी को लेकर आओ ...तभी इलाज होगा ..!"
"पर इतनी रात में क्यूँ ?..."
"क्यूंकि दिन में कोई भी आता जाता रहता हे "
"तुम्हे केसे पता ?'
"क्यूंकि ऑफिस से लोटते हुए अक्सर कोई ना कोई दिख जाता हे ...!"
"क्या तुम्हे वो पहचानता हे ?...."
"अगर पहचानता तो में ये रिस्क कभी नहीं लेता !..."
"पता नहीं क्यूँ ....मेरा दिल तेजी से धड़क रहा हे ...!"
"इसी रोमांच के लिए ही तो हम ये सब करते हे ना !...."

एकाएक ,एक कच्चा रास्ता दायीं तरफ जाता दिखाई पड़ा -
"क्या ..यहीं हे ?....."मादा ने पूछा !
"हाँ .....!"
और कर उस कच्चे रास्ते पर हिचकोले खाती आगे बढ़ गई !
ये आंवले का एक सघन बाग़ था ! हर तरफ चांदनी मिश्रित अंधकार और सन्नाटा पांव पसारे खर्राटे ले रहा था !
लगभग पांच मिनिट बाद - "यहीं वाला घर हे ...!"नर की आवाज़ !
सामने दायीं तरफ आंवले के बाग़ में झोंपड़ी नुमा एक मकान बना हुआ था ! इकलोता लकड़ी का दरवाज़ा बाद था पर खिड़की से लालटेन की श्रीर्ण रौशनी बाहर तक लहरा रही थी ! प्रकाश की किरने कांप रही थी ! स्पष्ट था , हवा धीरे धीरे सरसरा रही थी !
कार को कच्चे रास्ते पर छोड़ कर वे दोनों प्राणी बाहर निकले !
नर के हाथ में टार्च थी , और मादा के कंधे पर लेडिज बेग झूल रहा था !

"क्या वो जाग रहा होगा ...?' मादा की हलकी सी आवाज़ !
"पता नहीं .....मध्य रात्रि हे ...शायद सो चूका होगा ....!"नर की आवाज़ !
दोनों झोंपड़ी तक पहुंचे !
"खों ssssss खों ssss "अन्दर से किसी प्राणी के खांसने की आवाज़ गूंजी !
"शायद जाग रहा हे ...!"नर की फुसफुसाती सी आवाज़ !
"ठक -ठक "नर ने हाथ बढ़ा कर सांकल खटखटाई !
प्रतिउत्तर में - एक गहरा मौन ! पहले से भी अधिक गहरा ! मानो भीतर मौजूद प्राणी ने सांस तक रोक ली हो !
"ठक -ठक "मानो नर ने फिर से अपनी क्रिया की पुनरावृति की हो !
दो क्षण के मौन के पश्चात - "कौन ...?"- किसी नर की भारी आवाज़ !
"में ..हूँ ..."नर की थोड़ी ऊँची आवाज़ !
भीतर मौजूद प्राणी ने शायद आवाज़ पहचान ली थी !
"इतनी रात को ...?"- भीतर से आवाज़ आई !
"दरअसल ...रास्ते में थोड़ी गाडी ख़राब हो गई थी ...!"
भीतर से सरसराहट की आवाज़ गूंजी !
कुछ ही क्षण के पश्चात दरवाज़ा हलकी चिडचिडाहट की आवाज़ के साथ खुल गया ! एक हस्ट पुष्ट पहलवान जेसा अधेड़ नर दरवाज़े पर प्रकट हुआ ! जिसके एक हाथ में लालटेन और दुसरे हाथ में लाठी थी !
लालटेन की रौशनी में उसने उन दोनों को बड़ी गौर से देखा ! मादा पर उसकी निगाहें कुछ ज्यादा देर भटकती रही !
कारण ?
उसकी वेशभूषा !
गहरे नीले रंग की उसकी गदराई टांगों से चिपकी हुई जींस ,उसके ऊपर काले लाल रंग का टॉप , जिसका गला कुछ ज्यादा ही खुला हुआ था , साथ ही दो पतली पतली डोरियों से , जो उसके सुकुमार कन्धों से लिपटी हुई थी , उससे अटका हुआ था ! पूरा पेट लगभग खुला हुआ था , गोरा , चिकना ,मखमली और समतल !
थी तो चांदनी रात पर आंवले के सघन पेड़ों से चांदनी छनकर धरातल पर पहुँच रही थी !
"भीतर आ जाइये ......."-अधेड़ नर ने दोनों से कहा !!
दोनों भीतर दाखिल हुए !
अन्दर एक बड़ी सी चारपाई पर . एक गद्दा बिछा हुआ था !जिस पर बिछी चादर काफी अस्तव्यस्त थी !
अधेड़ नर ने चादर को व्यवस्थित किया ! लालटेन को एक खूंटी पर टांग दिया !
"आप लोग बेठिये ...में जरा पानी लेकर आता हूँ ...!"
"आप परेशान ना हो ...!"कार वाले नर की आवाज़ आई !
पर वो अधेड़ नर नहीं माना और टार्च लेकर झोंपड़े से बाहर निकल गया !
"मन ....ये तो बहुत हट्टा कट्टा हे !"मादा की मिमियाती सी आवाज़ आई !
"तो क्या हुआ .... कौनसा ये हमें जानता हे ....मजे लेकर निकल चलेंगे ...-"नर की आवाज़ !
"ड ..डर लग रहा हे !"मादा की सहमी सी आवाज़ !
"कुछ नहीं होगा ...में हु ना !"नर की दिलासा भरी आवाज़ !
"अगर उसने जबरदस्ती डाल दिया तो ... ?"मादा की डर और आशंका से भरी हुई सहमी सी आवाज़ !
"उससे पहले ही में आजाऊंगा ...लेकिन उसे ललचाने और खुद को उत्तेजित करने का कोई भी अवसर मत छोड़ना ....
उसके बाद हम लोग घर चल कर जम कर सेक्स करेंगे !"
ठीक तभी कदमो की आहट पा कर दोनों खामोश हो गए !
एक बाल्टी में पानी लेकर वो अधेड़ नर प्रकट हुआ !

दो साफ़ सुथरे गिलासों में पानी निकाल कर उन दोनों के सामने उसने पेश किया !
पानी की कुछ चुस्कियां दोनों ने ली फिर - "ये मेरी पत्नी हे ...तनु .."- नर ने अपने बगल में बेठी अपनी पत्नी का परिचय दिया
जिसका नाम तनु हो सकता था ...शायद !
"आप लोगों को थोडा पहले आना था ....अमूमन में इस वक़्त किसी को नही देखता पर .....पर चूँकि आपकी कार ख़राब हो गई थी इसलिए ..."
इतना बोल कर अधेड़ ने झोले से कोई पटरी निकाली - "जन्मकुंडली तो आप लाये ही होंगे !"
"जी ...."- तनु ने जल्दी से लेडिज पर्स से एक कागज निकाल कर अधेड़ की तरफ बढाया !
फिर वो अधेड़ नर अपने कार्य में सलंग्न हो गया !
तभी - "बहुत भूख लगी हे ....बाहर कार में नाश्ता रखा हे ...में कर के आता हु ...."इतना बोल कर वो नर
झोंपड़े से बाहर निकल गया ! कमरे में बस अब दो ही प्राणी थे !

एक अधेड़ हट्टा कट्टा मर्द और एक सुकुमार बदन की तनु नाम की मादा !
लालटेन की पीली रौशनी अभी भी धीरे धीरे कांप रही थी !
हवा के कुछ नन्हे झोंके खिड़की के रास्ते दीवार के पास आ कर उस लालटेन की रौशनी से छेड़छाड़ कर रहे थे !
कमरे में एक अजीब सा मौन था !
एक ऐसा मौन जिसके इर्दगिर्द काफी था !
और वो तनाव मादा के चेहरे पर स्पष्ट था !
घबराहट , व्याकुलता .डर . हिचकिचाहट, संकोच कुछ तूफानी होने का डर ...जिसमे रोमांच भरा था !
उसकी दिल की धडकने धाड धाड़ कर धड़क रही थी !
मानो हर धड़कन ये पूछ रही थी की "अब आगे क्या होगा ?"
"में आपको क्या बुलाऊ ...?"तनु ने बड़ी हिम्मत करके झोंपड़े में छाई मौनता को भंग कीया !
नर ने पत्री से अपनी नजरें हटाये बिना कहा ;-"पंडित ओमकार शास्त्री मेरा नाम हे ...आप पंडित जी कह सकती हे ....!"
तनु ने फिर संकोच में पूछा - "में आपको ओ ...ओम जी कह सकती हु ?...."
जो भी आपकी इच्छा ...किसी पुरुष के नाम चयन का अधिकार ....हमेशा एक स्त्री के पास सरंक्षित रहता हे !"
इतना बोल कर उसने एक नजर तनु पर डाली पर फिर पत्रांग पर !
"और कितना समय लगेगा ..?"
"देखिये ...अभी तो शुभारम्भ हे ...!"
तनु बात तो कर रही थी पर बात का सूत्र उसके पकड़ में नहीं आ रहा था !
हर बार उसे नए प्रश्नों का सहारा लेना पड़ रहा था बातचीत को आगे बढ़ाने के लिए !
तकरीबन दो मिनिट कमरे में मौन ही सरसराता रहा !
फिर - "कुंडली के मुताबिक तो संतान योग हे ...पर मध्य में राहू बेठा हे ....जिसकी वजह से विलम्ब हो रहा हे .....
अब राहू का क्या हल निकलेगा ...ये आपकी हाथ की रेखाएं देखने पर पता चलेगा ..."
इतना बोल कर वो अधेड़ नर उठा और मादा की बगल में चारपाई पर आकर बेठ गया !
तनु का दिल धाड़ धाड़ कर धडकने लगा !
उसे जिस पल का इन्तजार था, वो धीरे धीरे पास आ रहा था, शरीर में रोमांच की लहरे दौड़ रही थी !
तनु की दोनों हथेलिया मेहंदी के लाल सुर्ख रंग से सजी हुई थी !
हथेली की गोराई पर लाल रंग बहुत ही फब रहा था !
जेसे ही पंडित जी ने तनु की हथेली पकड़ी - "तुम्हारा शरीर तो बहुत गरम हे ...शायद ठंडी हवा से ज्वर चढ़ गया होगा ...!"
तनु खुद को बोलने से नहीं रोक पाई और उसकी नशीली आवाज़ गूंजी - "मुझे काफी ठण्ड लग रही हे ...आप ये दरवाज़ा बंद कर दीजिये !"
"यहीं उचित रहेगा ....आप शहर वालो को इतनी ठंडी हवा की आदत नहीं होगी !"
वह दरवाज़ा बंद करके वापिस चारपाई पर आ बेठा !
"अपनी दोनों हथेलिया कर मेरे सामने फेलाइए ..!"
तनु ने वेसा ही किया !
दोनों हथेलियों के मिलने से एक दिल का आकर उभरा जो मेहंदी से रचा गया था !
:सुन्दर आकृति हे ...!"अधेड़ नर ने दोनों हथेलियों को थामते हुए कहा !
"ये मेने खुद बनाया हे ...!- तनु हलके से सकुचा गई !
"अति सुन्दर ...भाग्य की रेखा तो काफी प्रबल हे .....संतान का योग तो शीघ्र दिख रहा हे ......पर एक बात हे .....!"शास्त्री की आवाज़ विचारपूर्ण थी !
"क्या ...?"
"पहले आप को कुछ प्रश्नों के उत्तर देने पड़ेंगे .....!" वो बिना सकुचाये बोला !
"जी पूछिए ...." तनु का दिल अब जोर जोर से धडकने लगा था !
"माहवारी का काल चक्र क्या हे ?"....अधेड़ ने तनु की तरफ बहुत गहरी नज़रों से देखते हुए पूछा !
"बताना जरुरी हे ...?" तनु को पता नहीं क्यूँ नहीं चाहते हुए भी संकोच लग रहा था !

"निवारण करने में आपका उत्तर सहायक सिद्ध होगा ...!" शास्त्री की बातों में गंभीरता थी !
"10 तारिख से 15 तारिख तक .." लजाते हुए तनु ने कह ही दिया !
"यानि 5 दिन ...चक्र तो ठीक हे ....चक्र के कितने दिन पश्चात .... आपका मन सम्भोग के लिए व्याकुल होने लगता हे ....?"
"एक हफ्ते बाद ...!"
"यानि जो समय इस वक़्त चल रहा हे ...ठीक वाही "
"जी ..." तनु की लाज और भी बढ़ गई !
आखिर क्या बात थी उस शास्त्री की जो वो उससे इतना शर्मा रही थी वर्ना वो बहुत मोर्डेन थी !
"वीर्य पतन के कितनी देर बाद आप बिस्तर से उठती हे ..?"
शास्त्री तनु की गुदाज हथेलियों को धीरे धीरे सहला रहा था !
"मतलब ...?" ये प्रश्न तनु की समझ में आ गया था पर .....
"सम्भोग के पश्चात जब आपके पति का वीर्य आपकी योनि में भर जाता हे ...तो उस क्षण के कितनी देर बाद आप बिस्तर से उठ कर मूत्र त्याग के लिए जाती हे ....?" शास्त्री ने धीरे से अपनी धोती को थोडा ऊपर उठा लिया !
लाल रंग की लंगोट पर तनु की नजरें ना चाहते हुए भी ठिठकी !
शास्त्री की नजरों ने तनु की आँखों का केंद्र भांप लिया था !
"इस प्रश्न का क्या मतलब हुआ ..?" तनु के गलों पर लालिमा छ गई थी !

"शिशु का निर्माण से होता हे ..जिसे वंश -अंश भी कहते हे .."
शास्त्री जी की बात पूरी ही नहीं हुई की तनु बोल पड़ी- "मुझे इतनी शुद्ध हिंदी समझ में नहीं आती"...
तनु जान बूझकर शास्त्री जी अश्लील भाषा का प्रयोग करने के लिए उकसा रही थी !
पुरुष कोई भी हो किसी स्त्री के कामुक संकेतों को अनदेखा नहीं कर सकता !
एक पल के लिए शास्त्री जी ने तनु की कजरारी आँखों में झाँका और फिर थोडा
तनु के पास आ कर बोले - "आपके पति आपकी बूर को ठीक से चोदते हे या नहीं ....?"
"इस्सस ....प्लीज ऐसा मत बोलिए ..."
तनु ने अपनी पलकें बंद करली उसका एक एक पोर झनझना कर रह गया ! उसकी इस अदा पर शास्त्री की आँखों में वासना के साये लहराने लगे ! तभी तनु को अपनी हथेली के मध्य किसी गर्म वास्तु का अहसास हुआ !
उसने पलकों को खोल कर देखा और बस - "उई मम्मी ...ये क्या हे ?..."
उसकी हथेलियों के मध्य शास्त्री का नो इंच का काला और विकराल मोटा मुसल जेसा लंड था जिसे उसने अपनी  लंगोट के बाहर निकाल कर तनु के हाथ में थमा दिया था !
"स्त्री की योनि को छेदने वाला ओजार .....और देहात में इसे कहते हे लोंडिया की बूर को फाड़ कर उसकी चूत का भोसड़ा बनाकर ....उस भोसड़ी में बीज उगलने वाली मशीन ...यानि लौड़ा ....!"
शास्त्री कितना कामी पुरुष था ये उसकी भाषा से स्पष्ट था !
इस तरह की भाषा शेली कभी तनु ने नहीं सुनी थी इसलिए उत्तेजने और डर की वजह से उसके दिल की धडकने काफी तेज हो गई थी !
"बच्चा पैदा करना चाहती हे ?...'
शास्त्री की भाषा अब सत्कार वाली नहीं दुत्कार वाली थी !
जिसे सुनकर तनु की योनि धुकधुकाने लगी थी मानो बच्चा पैदा करने के नाम पर उसकी भी फट रही हो !
पर उत्तेजना की वजह से उसने वो शास्त्री का काला मोटा लंड कस कर भींच लिया था !
लजाते हुए उसने अपने सर को हाँ में हिलाया !
"चल नंगी हो भेन की लौड़ी ...!"
शास्त्री चारपाई से उतरा अपनी बनियान और धोती उतारी और लंगोट को खोल कर झोंपड़े के एक कोने में फेंक दिया और पूरा नंगा हो गया ! उसे उसके पति का कोई डर नहीं था वो समझ गया की ये बड़े लोगों के चोंचले हे जो ये अनजान लोगों से चुदवाने जाते हे ! और वो आज इसे खुल कर जंगली तरीके से चोदना चाहता था !

सभ्य तरीके से तो पति से चुदती थी पर संतुष्ट नहीं होती थी ! लगता हे इसे ऐसा ही मजा चाहिए की कोई उसे रोंद डाले !
शास्त्री की दुत्कार से डर कर तनु की चूत पनियाने लगी थी !
वो भी सकुचाते हुए अपनी जींस और टॉप उतार कर गुलाबी ब्रा और गुलाबी कच्छी में अर्ध नंगी हो गई !
दोनों अधो वस्त्र छोटे थे इसलिए अपने हाथों और टांगों को चिपका कर अपनी नग्नता ढकने का असफल प्रयास कर रही थी !
   
उसकी ये मुद्रा देख कर शास्त्री के भीतर का व्यभिचारी जंगली पुरुष जाग उठा और उसके मुह से ये फूटा - "सुवरण को खोजत फिरे ,कवी व्यभिचारी ,चोर .....!"
किसी भूखे भेडीए की तरह जो कई दिनों से भूखा हो और उसे कोई मुलायम मांस का के खरगोश का बच्चा मिल जाये और वो झपट पड़े !
अब तनु का नाजुक बदन उस हट्टे कट्टे विलासी व्यभिचारी मर्द की बाँहों में था और तनु उसमे किसी मोरनी की तरह मचल रही थी ! डर और उत्तेजना के मिले झूले उन्माद से !
और शास्त्री तो जेसे उस नाजुक शहरी कलि को पा कर जेसे पागल ही हो गया था - "पुरे पंद्रह साल हो गए मेरी बीवी को गुजरे ....और आज तू मिली हे इतने सालों के बाद ..... में इस हवस के हथोड़े से तेरी चुत की धज्जियाँ उड़ा दूंगा ....तेरी पूरी इज्जत ख़राब करके भेजूंगा ....... हरामजादी ...रंडी ...मेरे वीर्य में सो पुरुषों की सिद्धि हे .....जो बच्चा पैदा होगा वो हरामी का होगा ..... बोल चाहिए तुझे हरामी का पिल्ला .....बोल भेन की लौड़ी बोल ....!"

फिर तो शास्त्री ने तनु के लिपस्टिक से सजे मुलायम होंटो को अपने खुरदरे होंटों और दांतों से कुचलना शुरू कर दिया ! मानो किसी भिखारी को छप्पन भोग की थाली मिल गई हो ! सोचिये - वो क्या खायेगा क्या गिराएगा !
और शास्त्री तो सोच रहा था आज जो मजे लेना हे लेलो क्या पता फिर कब ऐसा मौका आये आज उसके भाग्य पंद्रह साल बाद जागे हे ! कुछ देर होंट चुसे ,गाल चूमे फिर दोनों को कच कचा कर काट खाए !
भयानक चूमा चाटी के बाद जब शास्त्री ने उसे गोद में उठा कर चारपाई पर पटका तब तक श्रृंगार से सजा उसका चेहरा , होटों की फेली लिपस्टिक ....जगह शास्त्री के दांतों के निशान और उसके मुह के थूक से बुरी तरह सन चूका था !
पुरुष का किसी पागल कुत्ते की तरह ऐसा आक्रमण तनु के लिए एक नया रोमांच था !
स्त्री को भोगने के लिए ऐसा जानवर पन आज तक नहीं देखा था !
तनु डर के मारे सहम गई !
वो कुछ कुछ पछताने भी लगी थी रोमांच को पाने के लिए उसकी हालत ख़राब हो रही थी पर बिलकुल नया हो रहा था जो आज तक उसके जीवन में नहीं हुआ था ! उसे इन्तजार था अपने पति "मन "का जो किसी भी वक़्त यहाँ आकर उसे शास्त्री के हाथों से तितर -बितर होने से बचा लेगा !
पर उसका पति मन था कहाँ ...?
वो झोंपड़े की खिड़की के पास खड़ा होकर भीतर का भयानक नज़ारा देख कर .......खुद उत्तेजित हो कर हस्तमैथुन कर रहा था .....!
मन का चेहरा वासना से लाल भभूका हो रहा था और उसका और उसका हाथ अपने पतले और छोटे पर पूरी तरह से उत्थित लिंग पर तेजी से चल रहा था ! वो चाहता तो ये सब रोक सकता था पर वो खुद अपनी काम वासना से ग्रसित था !
उसे इन्तजार था अपने स्खलन का !
इधर कमरे के भीतर - "बोल रंडी ..तू मेरी रखेल हे ..." शास्त्री अपने काले लोड़े के सुपाडे पर थूक चुपड़ता बोला !
"हाँ ...में आपकी रखेल हूँ ..." तनु उत्तेजना से कांपने लगी थी !
"चोद - चोद के तुझे हिरोइन से छिनाल रांड बना दूंगा ...चल भेन की लौड़ी मुह खोल ...!"
तनु के बालों को शास्त्री ने मुटठी में पकड़ के खींचा की दर्द से तनु का मुह खुल गया !
शास्त्री गरजा "साली अपनी जीभ को पूरा बाहर निकाल "
डर के मारे तनु ने अपनी जीभ बाहर निकाल कर अपना मुह खोल दिया ! और उसी वक़्त -"गप्प ...." शास्त्री ने अपना लोडा उसके खुले मुह में आधा ठूंस दिया !
"बहुत दिनों से इसमें से पेशाब की बदबू आ रही हे ...चाट कर साफ़ कर साली रांड ...... छिनाल कहीं की .....बच्चा चाहिए तुझे ....में दूंगा तुझे बच्चा ...साली के पांव भारी कर दूंगा ... तेरे पेट को ढोल बना दूंगा ...पर पहले साली छिनाल इसे चूस ...कुत्ती ...पूरा चूस ..!"
और तनु डर के मारे चपड चपड कर चाटने लगी ! उसे डर था की कहीं ये उसके मुह और हलक में ही इस मूसल को धकेल कर कहीं फाड़ ही नहीं डाले ! इस डर से कभी पति के लंड को मुह नहीं लगाने वाली इस अजनबी के लंड को चाट रही थी !
खिड़की पर देख रहे मन के चेहरे पर उसे लंड चूसते देख कर हेरत बरस रही थी ! उसकी कामनाये अब तनु के लिए कटु हो रही थी और वो इस खेल को और देखना चाहता था !

"साली शादी शुदा हो कर भी लोंडिया के जेसे जींस पहनती हे ....चुतड मटका के चलती हे ....गांड के छेद में ये खूंटा गाड कर गांड का होद बना दूंगा मादरचोद के ....साली लंड की चट्टी .... हलक तक अन्दर ले इसे पूरा झड तक मुह में जाना चाहिए ..वर्ना रंडी तेरा मुह फाड़ दूंगा ....साली कुत्ते की मूत मादरचोद .....तेरी माँ का भोस्ड़ा में ये बम्बू फंसा दूंगा ...!"
और वो उसके बालों को पकड़ कर उसके मुह को अपने लौड़े की तरफ दबाये जा रहा था साथ ही उसके कुल्हे भी तेजी से आगे पीछे हो रहे थे ! लार बहकर उसके मुह को चिकना कर रही थी और उस चिकने मुलायम मुह को शास्त्री बूर समझ कर खूब तेजी से चोद रहा था !
ऐसी बुरी तरह से की गई उसके मुह की चुदाई को महसूस कर तनु की आत्मा तक कांप गई थी ! लेकिन अपनी सुन्दरता से पंडित जी जेसे किसी सभ्य पुरुष को बौराते देख कर खुद भी मस्ता गई थी !
आखिर वो थी भी इतनी सुन्दर और कामुक की जब तक कोई उसे जानवर बन कर नहीं चोदे वो भी तृप्त नहीं होती थी !
इसी लिए इन पति पत्नी का येही काम था किसी पुरुष को चुटिया बना कर उत्तेजित करे जिसे देख कर दोनों मियां बीबी उत्तेजित हो जाते फिर अचानक आ कर मन उस पुरुष को ऐसे ही रख देता और घर जाकर तनु की जानवरों की तरह चुदाई करता !
पर आज वो लेट हो रहा था शास्त्री जितना आगे कोई नहीं बढ़ा था आज तक ! आज क्या पता वो क्या करना चाहता था उसके मन को भी शास्त्री के लौड़े की मोटाई लम्बाई मंत्र मुग्ध कर रही थी !

तनु को अपनी सुन्दरता पर कुछ अभिमान हो रहा था ! थोड़ी देर पहले जो पुरुष सभ्य इंसान था उसके योवन के ताप से जल कर वहशी हो चूका था ! यही तो वो चीज हे जो ओरत को कामुक बनाती हे !
तनु को आज पता चला की उसके योवन में किसी नर के व्यक्तित्व को किस सीमा तक बदलने की क्षमता हे ! ये सोच कर उसके चुचक कड़े हो गए मांसल चूचियां पूरी तरह से तन गई और चूत में बह रहे पानी का गाढ़ा पन और बढ़ गया ! कामुकता की ज्वाला उसकी योनि के भीतर दहकने लगी ! वह इस बौराये हुए पुरुष के मोटे काले विशाल लंड का आक्रमण अपनी चिपकी योनि के छोटे से छेद
पर झेलने के लिए उत्तेजित थी !

मुह चुदाई के बाद अब बारी थी उसके कबूतरों पर व्यभिचार की !
शास्त्री इतनी जल्दी झड़ने वालों में नहीं था सुबह शाम घोट कर दो बड़े बड़े भांग के लड्डू निगलता था भांग का सीधा असर स्तम्भन शक्ति पर पड़ता हे ! और फिर पुरे पंद्रह साल बाद उसे ये स्त्री देह मिली थी जिसे वो पुरे मन से भोगना चाहता था ! तनु को भी उसकी बातों से पता चल गया था की पंद्रह साल बाद इसका ब्रम्चर्य खंडित उसका सुन्दर और सुडोल शरीर कर रहा था इस बात पर वो मन ही मन आनादित भी हो रही थी !
शास्त्री अब पूरा बौरा गया था !
हवस की आंच पर भून कर ना खाया जाय तो क्या सुख !
उसकी बड़ी बड़ी कठोर चुचियों को नोचते हुए सा बोला :-"ये तो रंडीयों वाली चूचियां हे साली .....कितने हरामियों को दूध पिलाई हे ...अपने इन थनों से .....कुतिया ....?"
"चट्ट ...." इसी के साथ शास्त्री ने हवस के प्रवाह में उसके स्तनों पर एक झापड़ दे मारा !

तनु ने अपने पति के अलावा अभी किसी से नहीं चुदाई और न ही स्तन पान करवाया पर मार के डर से और रंडी कहलाने के रोमांच झूठ मुठ की हाँ भर रही थी !
"सी sssssss ...बहुतों को पिलाया ...कभी गिना नहीं ..."

शास्त्री के कठोर हाथों ने जब उसकी चूचियां मसलना नोचना शुरू किया तो उसे पता चला की प्यार से मसली गई चूचियां और हवस में नोची गई चुचियों में कितना बड़ा अंतर होता हे ! प्यार से जब चूची मसली जाती हे तो सिर्फ सनसनाहट होती हे , पर जब हवस में चूची दबोची जाती हे तो दुखती हे .कल्लाती , टीस उठती हे और चुचियों में दर्द कई दिनों तक बना रहता हे ! किसी पके फोड़े की तरह चुचिया दुखती और टपकती हे कई दिनों तक ! और जितने दिन तक चूचियां टपकती हे स्त्री अपनी योनि को अपनी अंगुली से कुचल कर शांत करती हे !
ओरत को जितना कस कर चोदा जाता हे उसका प्रति -प्रभाव उतनी देर तक बना रहता हे ! इस तरह से चुद जाने पर वो कई दिन बाद ही चुदने के लिए तेयार हो पाती हे ! पर इतनी दुत्कार भरी चुदाई से स्त्री कुंठित हो जाती हे ! आत्मग्लानि की भावना उसमे भर जाती हे ! बाद में ये सोच सोच कर उसे अफ़सोस होता हे की उसे कितनी बुरी तरह से भोगा गया हे ..! वो प्रण कर लेती हे की दुबारा उससे नहीं चुदेगी पर प्रति - प्रभाव से से बहुत दिनों तक उससे बाख नहीं पाती ! चाहे महीने गुजर जाये पर फिर वो वेसे ही कामी पुरुष की हवस का शिकार बन कर किसी कुतिया की तरह दुबारा चुदना चाहेगी !

पुरुष एक बार चोदने के बाद सिर्फ कुछ पलों के लिए सम्भोग से विमुख हो जाता हे ! पर स्त्री एक बार प्रेम रहित रति - क्रीडा से गुजर कर कई दिनों के लिए वासना से विमुख हो जाती हे ...बशर्ते की वो कोई वेश्या ना हो !
"कभी किसी कमीने ने तुम्हे मूत्र स्नान कराया हे या नहीं ...?"शास्त्री स्तन की गुंडी को अंगुली के बीच ले कर कच्ची मूंगफली का छिलका उतारने की तरह मसल रहा था !
तनु दर्द से ऐसे छटपटा रही थी मानो किसी मछली को शीतल जल से निकाल कर किसी गरम धरातल पर छोड़ दिया हो !
"ऐसा मत कीजिये .....आआइ ...में मर जाउंगी .....मम्मी ......अरे दर्द हो रहा हे .....उखड जायेंगे .....मन ...कहाँ हो ...ऊऊऊऊऊ ....प्लीज धीरे दबाइए ...सीssss ... छोड़ दीजिये !"
"ऐसे केसे छोड़ दू .....शेर पंजा मरने के बाद मांस को भंभोड़ता हे ...छोड़ता नहीं हे .....चल ...खाट पर लेट साली ...हिरोइन की तरह सज के आई थी ना ....मूत्र से नहला कर तुझे .....++++.... बना दूंगा .....
रांड की माँ की भोसड़ी .....मादरचोद तू किसी रंडी माँ की ओलाद हे .....और तेरे बेटी होगी वो भी महा रंडी होगी ....!
और फिर तनु को चारपाई पर धक्का देकर शास्त्री उस पर विभत्स अत्याचार पर उतर आया !

सूं .....सर्रर्रर्र sssssssss ,शास्त्री तनु की कंचन सी चमकती काया को अपने मूत्र से तर करने लगा !
शास्त्री अपने हाथ में मुत्ते लौड़े को पकड़ कर घुमा घुमा कर तनु के पुरे बदन को भिगोने लगा खसक कर उसने उसके मुह पर तेज धार छोड़ी थी जो तनु ने मुह बंद करते करते उसके नमकीन पानी का स्वाद मह्सुस कर लिया था ! था तो विभत्स , पर तनु उस चांडाल शास्त्री की इस हरकत से थरथराने लगी थी ! इतने वहशी पुरुष की कल्पना तो वो सपने में ही नहीं कर सकती थी !
पर पुरुष दो चीजों के लिए ही जीता हे -
पहला -स्त्री ,
दूसरा - अभिमान
और पुरुष तभी अभिमानी होता हे जब अपने पोरष से वो किसी सुन्दर, कोमल स्त्री के सोंदर्य मान को अपनी हवस से कुचल दे !
खिड़की से अन्दर झांक रहा मन एक बार स्खलित हो चूका था ,पर वो अभी भी अपनी जगह पर जडवत खड़ा था !

क्यूंकि मन झोंपड़े में चल रहे कामुक खेल से बहुत ही रोमंचित हो गया था ! शादी के इतने सालों बाद उसकी पत्नी का पहली बार उसके सामने किसी दुसरे से चुदते हुए देखना एक अलग ही आनद था !
और इसी आनंद को पाने के लिए वो अपनी बीवी को दूसरों के सामने चारा बना कर फेंकता था ! हालाँकि इस चारे को आज तक इसने किसी को खाने नहीं दिया था पर शास्त्री की हर बात उसे निराली लग रही थी उसका विशाल लौडा , उसका हिंसक व्यवहार जिससे उसकी बीवी का मान मर्दन हो रहा था जिस से उसके मन को बड़ी शांति मिल रही थी !
और वो चाहता था की आज इस विशाल लंड से उसकी बीवी की चूत के परखच्चे उड़ते वो यहाँ खड़ा खड़ा देखें ! उसकी बीवी को कोई नोचता तो उसे प्रतिउत्तर में मिलती परम उत्तेजना जो किसी तरीके से मिलना नामुमकिन थी !

आज उसे इतनी उत्तेजना मिली की अपने लंड को उसने अपने हाथों से खड़े खड़े शहीद कर लिया था अब घर जाने का कोई फायदा नहीं था इसलिए वो अपनी कामुकता शास्त्री की उसकी बीवी पर की गई क्रीडाओं को देख कर शांत कर रहा था !
अब तक तनु की ब्रा और चड्डी फाड़ कर शास्त्री नोच चूका था और उसके पुरे गदराये शरीर को जगह जगह से नोच और काट चूका था ! तनु की सिसकिया रुकने का नाम नहीं ले रही थी उसे दर्द और आनंद दोनों मिल रहे थे !
"आआआ…. ह्ह्ह्ह्ह .....अरे ...दर्द हो रहा हे ....धीरे .....उह्ह्ह्ह्ह मम्मी .......अरे ....पापा ....आज मर जाउंगी ...

च ..चाचा ...मत करो ...मुझे जाने दो ....अब बस ....ई sssssss "तनु की चीख निकल गई जब उसकी इस बकवास पर शास्त्री ने गुस्से से उसके झांघ पर चिकोटी काट ली !
दर्द से बिलबिला कर तनु ने दोनों टांगों को दूर दूर कर लिया !
तनु के गदराये शरीर को किसी कुत्ते की तरह नोचने खसोटने के बाद शास्त्री हवस उगलती आँखों से मोक्ष -स्थल पर पहुंचा यानि तनु की योनि के पास !

छोटी सी , प्यारी सी ...चिपकी हुई ... बीच में एक चीरा जिसके बीच छुपा था स्वर्गद्वार !
तनु की योनि अभी तक अपने पति के पांच इंच के लंड से ही चुदी थी आज शास्त्री का नो इंच का लंड मानो दस इंच का होने की कोशिश कर रहा था उससे चुदना था ! वो सोच रही थी इस मूसल को उसकी छोटी सी चूत में केसे समा पायेगी ! पर उसकी चूत इस हथियार को देख कर ख़ुशी से और डर से खूब पानी छोड़ रही थी !
गदराई हुई टांगों को चीर कर पूरी तरह से अलग कर शास्त्री उनके बीच कुकरासन की मुद्रा में आ बेठा और तनु की छोटी सी योनि को फाड़ कर खा जाने वाली निगाहों से घूरने लगा !
"आक्क ..थू ..sssss ."
शास्त्री ने पसेरी भर लार तनु की योनि पर थूक दिया ! थूक से उसकी योनि पूरी सन गई !
तनु घर्णा और उत्तेजना से सनसना उठी !
उसकी योनि का छिद्र बार बार खुलता और बंद हो रहा था !
ये सोच कर की अब फटी की तब फटी डर के मारे उसका मूत निकलने को हो रहा था !
पर फटना तो था ही ...जो आज उसकी किस्मत में इश्वर ने लिख दिया था !
वो भी आधी रात में ,शास्त्री के झोंपड़े में और उसी के मूत्र से नहा कर गन्दी सी चारपाई पर गंदे से बिस्तर में पर उसे इस स्थिति का रोमांच भी हो रहा था ! उसका बदन शास्त्री द्वारा दिए गए जख्मों से टीस रहा था पर उससे उसकी चूत की खुजली बढ़ रही थी !
तनु की मोटी मोटी झांघों को मोड़ कर शास्त्री उस पर लद गया !
अपने काले कलूटे लंड के लाल सुर्ख पहाड़ी आलू जेसे मोटे विशाल सुपाडे को उसके योनि छिद्र पर टिका कर ...
"हुच्च ssssss", शास्त्री ने पूरी ताकत से हुमक दिया !
"आई ssssssss ....मम्मी ssssss ....." तनु पूरी ताकत से चीख उठी !
उसकी चीख उस आंवले के सूनसान बाग में गूंज उठी !
मन को उसकी चीख से ना जाने क्यों ख़ुशी हुई जेसे उसकी आत्मा तनु का मान मर्दन होने से तृप्त हुई हो और और उसका हाथ अपने लटके हुए लंड को सहलाने लगा !

आधा लंड उसकी बूर में घोंप चूका शास्त्री बिना रहम किये फिर से थोडा बाहर खींच कर वापिस पूरा मूसल उसकी चूत में उतार दिया था !
तनु का मानो सांस रुक गया था और लिंग मूंड को वह अपनी पंसलियों में महसूस कर रही थी ! मुह खुल गया था आंसू बह रहे थे दर्द से पूरा बदन थरथरा रहा था !
पर इस सबसे बेखबर शास्त्री उसके दोनों स्तनों को पकडे उसे हुमच हुमच कर पेल रहा था ! अपना पूरा लंड बाहर निकाल कर दुसरे ही जठ्के में झड तक गुसा रहा था !
और फिर वो उसकी चुचियों को नोचते हुए और धक्के मरते हुए योनि छेदन मंत्र बडबड़ाने लगा -
"लौड़ा साला गरम गच्क्का ......मार सटा -सट सटम सटा "
बूरिया साली ...चेदबा खाली ...मार हचाह्च हच्चम हच्चा .."
"आई मम्मी सीsssssss .....मर जाउंगी ....अरे ....हाय फट गई हे रे मेरी चूत .....च ..चाचा छोड़ दो ..."
पर शास्त्री तो अपनी धुन में चांपे जा रहा था -
"घुंडी किसमिस ...चूची कडियल ....दाब चपाचप चप्पम चप्पा .."
शास्त्री ने उसकी चूची को मुट्ठी में कस कर अपने अजगर को उसके छोटे से चूहे के बिल में और कस कर चांप दिया !

"उईईईई ....मेरी चूची .....मम्मी मर गई में ...सी sssssssss "
उस सुने बाग़ में तनु की चीखे सुनने वाला कोई नहीं था जो था वो अपनी लोली को सहला कर उसकी चुदाई देखने के मजे ले रहा था !
और तनु की दर्द भरी चीखें शास्त्री को और उत्तेजित कर रही थी वो वेसे ही धक्के मारते मारते अपना मंत्र बोल रहा था -
"चुतर चिक्कन चूत बा ठस्सा .....छेद घचाघच घचमघच्चा .."
"चभक के चापे तो निकले बच्चा ...."
आई मम्मी .....मेरे निकल रहा हे री .....अरे में झड जाउंगी ......आआआअ ....ह्ह्ह्ह्ह ....में झड गई ...सी sssssss बस .....अब मत करो .....जलन हो रही हे ...."

तनु चूत -चोदु मंत्र को सुनकर और उसके मूसल जेसे लंड से चूत का रेशा रेशा खोल देने वाली चुदाई से खुद झड़ने से ज्यादा देर रोक नहीं पाई और शास्त्री की कमर में अपने पेरों की केंची मार कर उससे कस के लिपट गई ! योनि से छूटते गरम गरम पानी की बूंदे और योनि का संकुंचन जो की उसके लिंग को पकड़ और छोड़ रहा था उसे महसूस कर शास्त्री भी ज्यादा देर नहीं टिका रह सका !
और ...
"चभक चभक के चोद चोदाउल .....मार भोसड़ी छोड़ दे छर्रा ..."
और फिर शास्त्री किसी हांफते हुए कुत्ते की तरह एक चूची को मुह में भर कर उसकी घुंडी को दांतों से चिभलाते हुए तनु की योनि में अपना पंद्रह साल का इकठ्ठा किया हुआ वीर्य मूतने लगा !
लिंग को अपनी योनि में फूलता पिचकता महसूस कर तनु और कस कर शास्त्री की चौड़ी नंगी छाती से चिपक गई मानो उसका एक एक बूँद वीर्य अपनी योनि में भर लेना चाहती हो !

सिर्फ दो मिनिट ही शास्त्री से बेल की तरह चिपके रहने के बाद ही तनु की मानसिकता बदलने लगी ! उसने शास्त्री को धक्का देकर अपने से अलग किया और जल्दी जल्दी अपने कपडे पहनने लगी !
शास्त्री चारपाई पर लेटा अभी भी किसी भेंसे की तरह हांफ रहा था ! उसका मोटा लौड़ा अब किसी मरे हुए मोटे चूहे की तरह उसके विशाल आंदों पर पड़ा था और अभी भी हल्का हल्का पानी छोड़ रहा था !
तनु ने वितरसना से शास्त्री को उसके मूत्र और उसके वीर्य से भरे बिस्तर को देखा और झोंपड़े का दरवाज़ा खोल कर तनु बाहर निकल गई !
शास्त्री किसी कुत्ते की तरह हांफता बिस्तर पर पड़ा रहा ! उसमे जेसे शक्ति ही नहीं रही थी ! वो बेजान सा तनु को जाते हुए देखता रहा ! अब उसे भी फिलहाल उसकी जरुरत नहीं थी उसके टट्टे पूरी तरह से खाली हो गए थे !
इधर कार के भीतर - "तुम क्यूँ नहीं ?..." तनु ने जलती हुई निगाहों से मन को देखा !
पता नहीं ...गाड़ी का दरवाज़ा केसे लोक हो गया था ...खुला ही नहीं .....आई एम् .सोरी ...आई लव यु तनु ..."
"शटअप और ....यहाँ से चलो ..आज के बाद मुझसे दुबारा ये सब करने के लिए मत कहना ..."
तनु का गुस्सा देख कर मन की कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं हुई !
उसने चुपचाप गाड़ी आगे बढ़ा दी ..!

लगभग चार दिन के बाद ....
रात के तकरीबन वही बज रहे थे ....
वहीँ झोंपड़ी ....
वहीँ लालटेन की पीली रौशनी ....
सिहरती और कांपती हुई ....
वहीँ कार निश्ब्द्ता में ठहरी हुई ...
पर इस बार मौन इतना मौन भी नहीं था ...
खिड़की की झिर्रियों से कुछ धव्नि बाहर तेर रही थी ....
"लौड़ा साला गरम गच्क्का ....गांड मार फाड़ बिल भोक्का "
"आआह्ह्ह्ह्ह ...उह्ह्ह सी स्स्स्स ...बस ..इतना ही डालो .....'
पर इस बार ये मादा की आवाज़ नहीं थी ...!......

और ये कार और ये आवाज़े हर दुसरे तीसरे दिन आ जाती थी !

लगभग एक महीने के बाद ....
रात के तकरीबन वही बज रहे थे ....
वहीँ झोंपड़ी ....
वहीँ लालटेन की पीली रौशनी ....
सिहरती और कांपती हुई ....
वहीँ कार निश्ब्द्ता में ठहरी हुई ...
पर इस बार मौन इतना मौन भी नहीं था ...
खिड़की की झिर्रियों से कुछ धव्नि बाहर तेर रही थी ...
"लौड़ा साला गरम गच्क्का ......मार सटा -सट सटम सटा "
बूरिया साली ...चेदबा खाली ...मार हचाह्च हच्चम हच्चा ..
"आअह्ह्ह ...मजा आ रहा हे ...और हुमच कर पेलो ......मन देखो केसे सटासट लौड़ा मेरी बूर में जा रहा हे ......तुम भी चिंता मत करो .....चाचा तुम्हे भी मजा देंगे ...."
चाँद की रौशनी ने झोंपड़े के अन्दर देखा ...
मादा ऊँची टाँगे किये हुए नंगी शास्त्री से चुद रही थी ......और मन शास्त्री के मोटे मूसल को ललचाते हुए देख रहा था वो भी बिलकुल नंगा था .....
और अपनी गांड पर ट्यूब से जेली को दो अँगुलियों पर भर भर कर उन्हें अन्दर बाहर कर शास्त्री के लौड़े के लिए सुगम आवागमन का रास्ता बना रहा था !
थोड़ी देर बाद अन्दर का गीत बदल गया था -
"लौड़ा साला गरम गच्क्का ....गांड मार फाड़ बिल भोक्का "
"आआह्ह्ह्ह्ह ...उह्ह्ह सी स्स्स्स ...बस ..इतना ही डालो .....'
और मादा मजे से अपने मन की गांड में शास्त्री के लौड़े को घुसता हुआ देख रही थी !











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