Sunday, January 19, 2014

FUN-MAZA-MASTI मौसी के साथ रंगीन सफ़र -2

FUN-MAZA-MASTI
 मौसी के साथ रंगीन सफ़र -2

 थोड़ी देर बाद मुझे एहसास हुआ की मौसी का दाहिना हाथ मेरी बायीं जांघ पर है और धीरे धीरे मौसी जांघ के अन्दर की तरफ हाथ फिरा रही थी, जैसे जैसे मेरा हाथ मौसी के स्तन पर नीचे की ओरे बढ़ रहा था, मौसी का हाथ मेरे लौड़े की ओरे बढ़ चला था मैंने धीरे से मौसी की दाहिनी चूचि के निप्पल को अंगूठे और ऊँगली के बीच में जकड लिया और रगड़ना शुरू किया, तभी मौसी ने अपना हाथ सीधे मेरे लौड़े पर रखा और मेरी जीन्स के ऊपर से लंड को रगड़ना शुरू किया, मौसी की गरम साँसे और तेज हो चली और मेरे लौड़े की तो ख़ुशी का ठिकाना ना था, शायद इतनी जोर से लंड जिन्दगी में कभी खड़ा नहीं हुआ होगा, जो उस समय था. मैंने मौके की नजकात को देखते हुए मौसी के कान के पास अपने होंठ ले जा कर दीरे से मौसी के कान पर एक चुम्मी दी और अपनी जीभ मौसी के कान में घुसा कर हलके से चाट दिया, इस पर मौसी की सिसकारी निकल गयी, मौसी ने आँख खोली और मेरी आँखों में वासना भरी निगाह से देखा, और कहा..."आह ... मनु अपना लौड़ा दिखा मुझे".....


बचपन में कई बार क्लास में जब टीचर पढा रही होती थी तो मै और मेरे दोस्त यह शर्त लगाते थे की , कौन अपना लौड़ा क्लास में बाहर निकल कर पूरे पीरियड बैठ सकता है, मै कई बार यह शर्त जीत चूका था, इसलिए पब्लिक में लौड़ा निकल कर बैठने का पुराना तजुर्बा था. मैंने धेरे से अपनी जीन्स की ज़िप खोली और अन्दर उफनते हुआ लौड़े को आज़ाद कर दिया. वाकई आज मेरे लंड में जो तनाव था वोह देखते ही बनता था, 8 इंच का मजबूत लंड बिलकुल सीधा खड़ा था और लंड का टोपा सुझा हुआ गीलेपन में चमक रहा था, मौसी ने लौड़े को दाहिने हाथ से पकड़ा और खाल को पूरा पीछे खींच दिया. मौसी के होंठ थोड़े से खुले हुए थे और मौसी अपने होठों पर जीभ फिर रही थी, मैंने अपने दिहिने हाथ को आगे बढ़ाते हुए धीरे से और बड़ी सफाई से मौसी की सलवार का नाडा खोल दिया. मैंने सोचा की हिसाब बराबर का होना चाहिए,अगर मौसी के हाथ में मेरा लंड है, तो मुझे भी मौसी की चूत अपने हाथ में चाहिए, मेरा हाथ मौसी की सलवार में घुसा तो मौसी ने अपनी जांघ खोल दी, यह जान कर मुझे और भी ख़ुशी हुई की मौसी ने चड्डी नहीं पहनी थी , मौसी के झांटे कटी हुई थी, चूत पूरी तरह चिकनी तो नहीं थी, सिर्फ हलके हलके बाल थे, मानो के 5-7 दिन पहले शेव किया गया हो. मैंने सीधी एक ऊँगली मौसी की चूत में दाल दी ,मौसी के चूत बेहद गीली थी , और उसमे से गरम गरम रस का प्रवाह हो रहा था . चूत के उपर के दाने (clitoris) पर जैसे हे मैंने अपनी ऊँगली घुमाई, तो मौसी के पूरे बदन में कपकपी की एक लहर से दौड़ गए, उधर मौसी ने मेरे लौड़े की खाल को पूरा पीछे खींचा हुआ था औए अपने अंगूठे को लौड़े के टोपे पैर गोल गोल घुमा रही थी.
 
 मौसी ने मेरी गर्दन पर अपना हाथ रखा और एक झटके के साथ मेरा चेहरा अपनी चूत की तरफ खींच लिया, मौसी की गीली चूत के खुशबू ने मुझे मदहोश कर दिया, मैंने अपनी जीभ मौसी की चूत में घुसा दी और उस नमकीन चूत का स्वाद चख लिया, मौसी ने अपने होठों को दबा रखा था लेकिन फिर भी मौसी की हलकी हलकी सिस्कारियां निकल रही थी मेरी गांड फटी हुई थी की दिन दहाड़े चलती बस में कोई कभी भी हमें देख लेगा लेकिन मौसी मेरे सर को दबाये जा रही थी, मैंने अपनी जीभ को मौसी की चूत की खूब सैर करायी, तीन बार मौसी की चूत ने पानी छोड़ा लेकिन मौसी मेरे सर को चूत में धकेले जा रही थी, मैंने अब अपनी जीभ को चूत के ऊपर दाने (clitoris) पर फेरना शुरू किया, मानो की मौसी के तन में करंट दौड़ गया और दो दफा मौसी का पूरा बदन जल बिन मछली की तरह कांप कर छटपटा गया.

जो हाथ मेरे सर को चूत में धकेल रहा था, वोह ही हाथ अब मेरे सर को वापस खींच रहा था, लेकिन मैंने फिर भी अपनी जीभ की हरकत को ज़ारी रखा, मौसी धीरे से बोली बस...मनु बस,....लेकिन मैं नहीं माना, साली मौसी रांड ने मेरा दम घोंट दिया था, अब मेरी बारी थी उसे तडपाने की , मैंने एक बार फिर अपनी जीभ का कमाल दिखाते हुए मौसी के तन बदन तो मचला दिया और मौसी के चूत का पानी निकाल दिया. इस बार मौसी से बरदाश्त नहीं हुआ और उसके मुह से आह ...आह नकल गयी. मुझे लगा शायद बस में किसी ने सुन लिया होगा, मैंने झटके से अपना मुह ऊपर किया, इतिफाक से किसे ने धान हनी दिया था, मौसी तो आख बंद करके बेहोश सी पड़ी हुई थी, और मेरे पूरा चेहरा पसीने और मौसी के चूत के रस से गीला हो चूका था. मैंने फटाफट अपना चेहरा मौसी के दुपट्टे से साफ़ किया और बैठ गया.

मौसी अब भी बेहोश सी पड़ी थी, मैंने मौसी से कहा, "अब आप मेरे लौड़े को मुह में लो..." मौसी ने आधी सी आँख खोली और लौड़े को हाथ में लेकर म\मेरा मुठ मारना शुरू कर दिया, मौसी के मुठ मरने की कला बड़ी मस्त थी, लौड़े को उँगलियों में जकड कर मौसी ने अपना अंगूठा लौड़े के सुपाडे पर फिरना शुरू किया, जो भी गीलापन लंड से निकल रहा हा, मौसी उस को अपने अंगूठे से पूरे सुपाडे पर रगड़ रही थी साथ ही साथ अपनी उँगलियों से लौड़े की खाल को ऊपर निचे धीरे धीरे हिला रही थी.

मैंने फिर कहा, "मौसी लौड़े को चूसो, मौसी ने इनकार में हलकी सी गर्दन हिला दी लेकिन हाथ की हरकत तेज़ कर दी, मेरे बर्दाश्श की हद पार हो गई, और लौड़े के अन्दर का मसाला एक जोर दार पिचकारी बन कर बाहर निकला. लगातार मौसी के हाथ की हरकत ज़ारी रही, और लौड़े में से वीर्य की 2-3 पिचकारी निकली, अब मुझे भी मौसी का हाथ हटाना पड़ा, मेरी टी शर्ट पर मुट्ठ गिर गया था, और वोह पूरी तरह गीली हो गई थी, मौसी का हाथ और मेरे लौड़ा भी पूरी तरह वीर्य में सन गए थे, लेकिन जो आनंद और राहत का मज़ा उस आया समय उसका कोई जवाब नहीं था
मैंने अपने बैग से पानी की बोतल और छोटा towel निकला, गीले टोवल जो भी साफ़ सफाई की जा सकती थी वोह हमने की, और फिर मदहोश हो कर मौसी और मैं एक दुसरे का हाथ पकड़ कर सो गए, जब आँख खुली तो बस दिल्ली पहुच चुकी थी. नींद पूरी होने के बाद एक बार फिर मेरी ठरक जाग उठी थी, मौसी की चूत में लौड़ा तो डालना बाकी रह गया था. मौसी ने भी लाज शर्म किनारे फेंक दी और वोह भी चुदने के लिए मचल रही थी, मौसी ने कहा, "मनु मुझे कल सुबह ट्रेन पकडनी है हमारे पास पूरी दोपहर और रात पड़ी है, कोई ऐसी जगह ले चल जहाँ हम मस्ती कर सकें.." मैं अपने होस्टल तो जा सकता नहीं था, इस लिए मैंने सोचा, क्यों ना कोई होटल का कमरा लिया जाये, जहाँ मजे से भरपूर चुदाई की जा सके, "मौसी रेलवे स्टेशन के पास कोई होटल किराये पर ले लेते हैं वहां से सुबह आप ट्रेन पकड़ लेना". मौसी ने जवाब दिया " जो करना है कर, लेकिन टाइम मत बर्बाद कर. हमने टैक्सी की और पहाड़ गंज पहुँच गए...
 
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