Tuesday, January 21, 2014

raj sharma stories राधा का राज --1

FUN-MAZA-MASTI

 raj sharma stories

राधा का राज --1

मेरा नाम राधा है. मैं 30 साल की खूबसूरत महिला हूँ. 38 साइज़ की बड़ी - बड़ी चुचियाँ और पतली कमर किसी को भी पागल कर देने के लिए काफ़ी हैं. देखने मे बला की हूबसूरत हूँ. इसलिए हमेशा ही भंवरे आस पास मंधराते रहते थे. लेकिन मैने कभी किसी को लिफ्ट नही दी.

सुरू से ही मुझपे मरने वालों की कोई कमी नहीं रही थी. कॉलेज के दिनो मे भी मेरे पीछे काफ़ी लड़के पड़े रहते थे. मैं उन परिंदो पर अपना रस न्योछावर करने मे विस्वास नहीं करती जिनका काम ही फूलों का रस पी कर उड़ जाना होता है..

मैंन ने एम बी बी एस किया है. मेरी पोस्टिंग असम के एक छोटे से कस्बे के सरकारी. हॉस्पिटल मे हुई है. मैं पिछले साल बाहर से यहाँ के ओर्तोपेदिक वॉर्ड मे काम कर रही हूँ.

यहाँ हॉस्पिटल के कई डॉक्टर भी मुझपे मरते हैं. मगर मेरी चाय्स कुछ अलग किस्म की है. मैं मर्दों से दूरी बना कर रखती हूँ इसलिए कुछ लोग मुझे घमंडी और नकचाढ़ि कहते हैं लेकिन मैने कभी उनकी बातों का बुरा नही माना. सच बात तो ये है कि मैं एक बहुत ही शर्मीली लड़की हूँ और मेरी पसंद का आजतक कोई भी लड़का नहीं मिला. पाता नहीं क्यों मुझे कोई भी पसंद ही नहीं आता. मेरे घर वाले भी मुझसे परेशान थे. कई लड़को की तस्वीरें भी भेज चुके थे. मगर मैने ना कर दिया था.

उम्र हो चुकी थी इसलिए माता पिता की चिंता स्वाभाविक थी. मैने उन्हे कह दिया कि मेरी चिंता छोड़ दें और मुझसे छोटी वाली का ख़याल रखें. जिस दिन मुझे कोई लड़का पसंद आ जाएगा मैं उसको उनसे मिलवा दूँगी.

यहाँ हॉस्पिटल मे एक डॉक्टर है डॉक्टर. श्यामल थापा. बहुत दिलफेंक. उसका हॉस्पिटल की कई नर्स और लेडी डॉक्टर्स के साथ चक्कर चलता रहता है. वो काफ़ी दिनो से हाथ धोकर मेरे पीछे पड़ा हुआ है. लेकिन मैने उसे कभी घास नही डाला. एक बार उस ने अंधेरी जगह पर मुझे पकड़ कर ज़बरदस्ती करने की कोशिश की. वो मेरी चुचियों को कस कर मसल्ने लगा. मैने अपने घुटने से उसकी टाँगों के जोड़ पर ऐसा वार किया कि वो दर्द से बिलबिला उठा. मैं उसकी गिरफ़्त से निकल गयी. उसके बाद तो उसकी वो ठुकाई की की बेचारे ने मेरी तरफ देखना भी छोड़ दिया. जब भी मुझ से  क्रॉस करता चेहरा झुका कर ही
गुज़रता था.

लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था. इतनी मगरूर, इतनी शर्मीली, इतनी कोल्ड लड़की आख़िर किसी के प्रेम मे पड़ ही गयी. वो भी इस तरह की उसने उस पर अपना सब कुछ न्योचछवर कर दिया. वो आदमी  ना तो डॉक्टर की तरह खूबसूरत था ना डब्ल्यू डब्ल्यू एफ के पहलवानो सी बॉडी थी उसकी और ना ही कोई अमीर ज़्यादा था. बस एक मामूली सा मुझसे बहुत ही बिलो स्टेटस का आदमी था. जिससे मिलने के बाद कुछ दिनो तक मैने अपने पेरेंट्स के माथे पर शिकन देखी थी. मगर जब मैने उन्हे मनाया तो वो मेरी खुशी को ही सबसे ज़्यादा महत्व देकर हम दोनो की शादी करवा दी. अब मैं आपको हम दोनो के बीच किस तरह प्रेम का पौधा उगा उसकी कहानी सुनाती हूँ.

हुआ यूँ की एक दिन मैं राउंड पर निकली थी. शाम के 6 बज रहे थे मेरे साथ एक नर्स भी थी. एक-एक पेशेंट के पास जा कर हम चेक उप कर रहे थे. पहले हम कॅबिन्स मे रह रहे मरीजों का चेक अप करके जनरल वॉर्ड की तरफ बढ़े. मैं एक एक करके सबका केस हिस्टरी देखती हुई उनकी कंडीशन नोट करती जा रही थी.

जनरल वॉर्ड एक बड़ा हाल था जिसमे बीस बेड्स थे. कोने की तरफ हल्का अंधेरा था चेक करते करते मैं जब कोने की तरफ बढ़ी तो अचानक किसी काम से नर्स वापस लौट गई. मैं अकेली ही थी आखरी पेशेंट था इसलिए मैने भी कोई ज़्यादा तवज्जो नही दी. और ये तो डेली का रुटीन था इसलिए ऐसे हालत की तो मैं आदि हो चुकी थी.

कोने के बेड पर एक 30 – 32 साल का हृष्ट पुष्ट आदमी लेटा हुआ था. उसके पैर मे डिसलोकेशन था. मैं उसके पास पहुँच कर मुआयना करने लगी. चार्ट देखते हुए मैने उसकी तरफ देखा. वो 30-32 साल का तंदुरुस्त नौजवान था. उसके चेहरे मे एक जबरदस्त आकर्षण सा था. मेरी आँखें कुछ पलों के लिए उसकी आँखों से चिपक कर रह गयी. ऐसा लगा मानो मैं उसकी आँखों के सम्मोहन मे बँध गयी हूँ.

वो बिस्तर पर पीठ के बल लेटा हुआ था. एक पतली चादर को सीने तक ओढ़ रखा था. उसकी रिपोर्ट देखते देखते मेरी नज़र उसके कमर पर पड़ी. उसकी कमर के पास चादर टेंट की तरह उठा हुआ था जिससे सॉफ दिख रहा था कि उसका लंड उत्तेजित अवस्था मे है. उसके हाथों
की धीमी हरकत बता रही थी कि उसके हाथ अपने लंड पर चल रहे हैं. मैं कुछ पल तक एक तक उसके लंड के आकार को देखती रही. टेंट के सबसे उपर वाला हिस्सा जहाँ उसके लंड का टोपा टिका हुआ था उस जगह पर एक गीला धब्बा उसके लंड से निकले प्रेकुं को दिखा रहा था. वो एक तक मेरी ओर देखता हुआ अपने लंड पर ज़ोर ज़ोर से हाथ चलाने लगा. मैं एक दम घबरा गई मेरा गला सूखने लगा मैं जाने को मूडी तो उसने धीरे से कहा,

"डॉक्टर मेरे दाएँ पैर को थोड़ा घुमा दें जिससे मैं एक ओर करवट ले सकूँ."

मैने उसके टाँगों की तरफ देखा. उसके चेहरे की तरफ देखने की हिम्मत नही जुटा पायी. ऐसा लग रहा था मानो उसने मुझे चोरी करते हुए पकड़ लिया हो. मैने चारों ओर देखा लेकिन किसी को कोई खबर नही थी. आधे से ज़्यादा तो उंघ रहे थे और कुछ अपने रिश्ते दारों से मद्धिम आवाज़ मे बातें कर रहे थे. कोई नर्स या किसी तरह का हेल्प करने वाला नही दिखने पर मैने उसकी टाँगों को चादर के उपर से पकड़ना चाहा लेकिन ट्रॅक्षन लगा होने के कारण पकड़ सही नही बैठ पा रही थी.

" चादर के अंदर से पाकड़ो." वो इस तरह से मुझे सलाह दे रहा था मानो डॉक्टर मैं नही वो हो. मैने काँपते हाथों से उसके चादर को एक तरफ से थोडा उठाया और दूसरे हाथ को अंदर डाल दिया. चादर के भीतर वो नग्न था. मैने उसकी कमर को एक हाथ से थामने की कोशिश की मगर सफल नही हो सकी. फिर मैने अपने दोनो हाथों से उसके दाई
टांग को जोड़ों से पकड़ा. इस कॉसिश मे दो बार उसकी टाँगों के बीच मौजूद लंड के नीचे लटकते दोनो गेंदों को च्छू लिया था. मेरे पूरा बदन पसीने से भीग चुका था. मैने उसकी टाँगों को उसकी सहूलियत के हिसाब से थोड़ा घुमाया तो उसने हल्की से एक ओर करवट ली. इस बीच एक बार उसकी कमर के उपर से चादर खिसक गयी और उसका तना हुआ लंड मेरे सामने आ गया. मैने देखा एक दम काला लंड था वो. इतना मोटा और लंबा की मेरे बदन मे एक झूर झूरी सी दौड़ गयी.

"थॅंक यू डॉक्टर" उसने मेरी हालत का मज़ा लेते हुए मुस्कुरा कर कहा. मैं तो झट वहाँ से घूम कर लगभग भागती हुई कमरे से निकल गयी.

मेरा बदन पसीने से लथपथ हो रहा था. मैं हॉस्पिटल के कॉंपाउंड मे ही बने क्वॉर्टर्स मे रहती थी. मैने नर्स से तबीयत खदाब होने का बहाना किया और सीधी घर जाकर ठंडे पानी से नहाई. मेरा दिल इतनी तेज धड़क रहा था कि उसकी आवाज़ कानो तक गूँज रही थी. मैने फ्रिड्ज से एक चिल्ड पानी की बॉटल निकाल कर एक घूँट मे सारा खाली कर दिया. ठंडा पानी धीरे धीरे मेरे बदन को ठंडा करने लगा. कुछ देर बाद जब मैं कुछ नॉर्मल हुई तो वापस अपनी ड्यूटी पर लौट गयी. लेकिन वापस उस कमरे मे ना जाना परे इसका पूरा ख़याल रखा.

ड्यूटी ऑफ होने के बाद उस दिन जब मैं बिस्तर पर लेटी तो उस घटना के बारे मे सोचने लगी. पूरी घटना किसी फिल्म की तरह मेरी आँखों के सामने चलने लगी. पता नही क्यों मान मे एक गुदगुदी सी होने लगी थी. बार बार मन वही पर खींच कर ले जाता.

किसी तरह मैने अपने जज्बातों पर अंकुश लगाया. लेकिन जैसे जैसे रात बढ़ती गयी मेरा अपने उपर से कंट्रोल हटता गया. आख़िर मैं तड़प कर वापस हॉस्पिटल की ओर बढ़ चली. उस समय रात के 12.30 हो रहे थे चहल पहल काफ़ी कम हो गया था मैं स्टाफ की नज़रों से बचती हुई ओर्तोपेदिक वॉर्ड मे घुसी. अपने आप को लगभग छिपाते हुए मैं जनरल वॉर्ड मे पहुँची. ज़्यादातर पेशेंट सो गये थे. चारों ओर शांति छा रही थी. कभी कभी किसी के कराहने की आवाज़ ही सिर्फ़ महॉल को बदल दे रही थी. मैं वहाँ किसलिए आए? क्या करना चाहती थी कुछ नही पता था. कोई अगर मुझसे वहाँ की मौजूदगी के बारे मे पूछ बैठता तो जवाब देना मुश्किल हो जाता.

मैं इधर उधर देखती हुई आखरी बेड पर पहुँची. मैने उसकी तरफ देखा वो जगा हुआ था. अपनी घबराहट पर काबू पाने के लिए मैने बिस्तर के साइड मे रखा हिस्टरी कार्ड देखने लगी. नाम लिखा था राज शर्मा.

मैने घबराते हुए उसकी तरफ देखा. वो अभी भी उसी कंडीशन मे था. यानी की उसका लंड खड़ा था और वो उस पर अपना हाथ चला रहा था. लकिन उसकी चादर पर एक सूखा हुआ धब्बा बता रहा था की एक बार उसका स्खलन हो चुका था. मैं धीरे धीरे सरक्ति हुई उसके पास पहुँची और उसके बदन का टेंपरेचर देखने के बहाने उसके माथे पर अपना हाथ रखा. कुछ देर तक यूँ ही हाथ को रखे रहने के बाद मैं धीरे धीरे अपने नाज़ुक हाथों से उसके चेहरे को सहलाने लगी.

अचानक चादर के नीचे से उसका एक हाथ निकला और मेरी कलाई को सख्ती से पकड़ लिया. मैने हाथ छुड़ाने की कोशिश की मगर उसका हाथ तो लोहे की तरह मेरी कलाई को जकड़ा हुआ था. हम दोनो के मुँह से एक शब्द भी नही निकल रहा था. इस बात का ख़याल दोनो ही रख रहे थे कि हमारी हरकतों का पता बगल वाले बेड पर सो रहे आदमी को भी नही पता चले. किसी को भी खबर नहीं थी कि कमरे के एक कोने मे क्या ज़ोर मशक्कत हो रही थी.

उसने मेरे हाथ को चादर के भीतर खींच लिया. मेरे हाथ को सख्ती से थामे हुए अपने टाँगों के जोड़ तक ले गया. मेरा हाथ उसके तने हुए लंड से टकराया. पूरे शरीर मे एक सिहरन सी दौड़ गई. उसने ज़बरदस्ती मेरे हाथ को अपने लंड पर रख दिया. मैने अपना हाथ बाहर खींचने की पूरी कोशिश की लेकिन उसकी ताक़त के आगे मेरे बदन का पूरा ज़ोर भी कुछ नही कर पाया. मेरा हाथ सुन्न होने लगा. वो मेरे हाथ को छोड़ने के मूड मे नही था. आख़िर मैने हिचकते हुए उसके लंड को अपनी मुट्ठी मे ले लिया. अब वो मेरे हाथ को उसी तरह पकड़े हुए अपने लंड पर उपर नीचे चलाने लगा. मुझे लग रहा था
मानो मैने अपनी मुट्ठी मे कोई गरम लोहा पकड़ रखा हो. उसका लंड काफ़ी मोटा था. लंबाई मे कम से कम 10" होगा. मैं उसके लंड पर हाथ चलाने लगी. कुछ देर बाद उसके हाथ की पकड़ मेरे हाथ पर ढीली पड़ने लगी. जब उसने देखा की मैं खुद अब उसके लंड को मुट्ठी मे भर कर उसे सहला रही हूँ तो उसने धीरे धीरे मेरे हाथ को छोड़ दिया. मैं उसी तरह उसके लंड को मुट्ठी मे सख्ती से पकड़ कर उपर नीचे हाथ चला रही थी. कुछ देर बाद उसका शरीर तन गया और मेरे हाथों पर ढेर सारा चिपचिपा वीर्य उधेल दिया. मैने झटके से उसका लंड छोड़ दिया. मैने चादर से अपना हाथ बाहर निकाला. पूरा हाथ गाढ़े सफेद रंग के वीर्य से सना हुआ था. उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी चादर से पोंच्छ दिया. मैं हाथ छुड़ा कर वहाँ से वापस भाग आई. मैं दौड़ते हुए अपने घर पहुँच कर ही सांस ली. मेरे जांघों के बीच पॅंटी गीली हो चुकी थी.

जब वापस कुछ नॉर्मल हुई तो मैने अपने हाथ को नाक के पास ले जा कर सूँघा. उसके वीर्य की सुगंध अभी तक हाथों मे बसी हुई थी. मैने मुँह खोल कर एक उंगली अपनी जीभ से छुआया. उसके वीर्य का टेस्ट अच्छा लगा. मैने पहली बार किसी मर्द के वीर्य का टेस्ट पाया था. एक अजीब सा टेस्ट था. जो मुझे भा गया. फिर तो सारी उंगलियाँ ही चाट गयी. चाटते हुए सोच रही थी कि कितना अच्छा होता अगर उसने मेरी उंगलियाँ अपनी चादर से नही पोंच्छा होता. मैने अपने हाथ को अपने होंठों पर रख कर हॉस्पिटल की ओर एक फ्लाइयिंग किस उछाल दिया.

रात भर मैं करवटें बदलती रही. जब भी झपकी आई उसका चेहरा सामने आ जाता था. सपनो मे वो मेरे बदन को मसलता रहा. रात भर बिना कुछ किए ही मैं कई बार गीली होगयि. पता नहीं उसमे ऐसा क्या था जो मेरा मन बेकाबू हो गया. जिसे जीतने के लिए अच्छे अच्छे लोग अपना सब कुछ दाँव पर लगाने को तैयार थे वो खुद आज पागल हुई जा रही थी.

जैसे तैसे सुबह हुई. मेरी आँखें नींद से भारी हो रही थी. पूरा बदन टूट रहा था. ऐसा लग रहा था मानो पिच्छली रात मेरी सुहागरात रही हो. मैं तैयार हो कर हॉस्पिटल गयी. राउंड पर निकली तो मैं राज शर्मा के बेड तक नहीं जा पाई. मैने स्टाफ को बुला कर उसके बारे मे पूछा तो पता लगा कि वो ग़रीब इंसान है. शायद उसके घर मे कोई नहीं है क्यों की उससे मिलने कभी कोई नहीं आता. किसी आक्सिडेंट मे उसकी टाँगों के जोड़ पर चोट आई थी. वो अभी ट्रॅक्षन पर था और बिस्तर से उठ भी नही सकता था.

मैं चुपचाप उठी और काउंटर पर पहुँच कर उसके लिए डेलूक्ष वॉर्ड बुक किया. वॉर्ड का खर्चा अपनी जेब से भर दिया था. वापस आकर मैने नर्स को स्लिप देते हुए राज शर्मा को डेलक्स वॉर्ड मे शिफ्ट करने का ऑर्डर दिया. नर्स तो एक बार चकित सी मुझको देखती रही. मैने काम मे व्यस्त ता दिखा कर उसकी नज़रों से अपने को बचाया.

सब के सामने उसके पास जाने मे मुझे हिचक हो रही थी. मैं आज तबीयत खराब होने का बहाना कर के घर चली गयी. शाम को हॉस्पिटल जा कर पता लगा कि राज शर्मा को डेलक्स वॉर्ड मे शिफ्ट कर दिया गया है. मैं लोगों की नज़र बचा कर शाम आठ बजे के आस पास उसके वॉर्ड मे पहुँची. वहाँ मौजूद नर्स को मैने बाहर भेज दिया.

" तुम खाना खा कर आओ तब तक मैं यहीं हूँ."

वो खुशी खुशी चली गयी. मुझे देख कर राज शर्मा मुस्कुरा दिया. मैं भी मुस्कुराते हुए उसके पास पहुँची.

"कैसे हो" मैने पूछा.

"तुम्हें देख लिया बस तबीयत अच्छी हो गयी." राज शर्मा मुस्कुरा रहा था. मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया. दो बार के मिलन के बाद अब मैं भी उससे थोड़ा अभ्यस्त हो गयी थी. मैं उसका टेंपरेचर देखने के बहाने से उसके बालों मे अपनी उंगलियाँ फिराने लगी.

"मुझ पर इतना खर्चा क्यों किया डॉक्टर.." राज शर्मा ने पूछा.

" राधा. राधा नाम है मेरा. मुझे ये नाम अच्छा लगता है. तुम कम से कम मुझे इसी नाम से पुकरोगे." मैं उसके बिस्तर पर उसके पास बैठ गयी.

उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा मैं जान बूझ कर उसके सीने से लग गयी. उसने मेरे होंठों को अपने होंठों से छुलिया.

"धन्यवाद र….राधा" उसने धीरे से कहा.

मेरा पूरा बदन थर थारा रहा था. मैने भी अपने होंठ उसके होंठ से सटा दिए और उसके होंठों को अपने होंठों मे दबा कर चूसने लगी.

तभी दरवाजे पर किसी ने नॉक किया. मजबूरन मुझे उससे अलग होना पड़ा. मैने जल्दी जल्दी अपने कपड़े ठीक किए.

"मैं कल आऔन्गि" मैने उसके कानो मे धीरे से कहा और दरवाजा खोल दिया. एक नर्स खाना लेकर आई थी.

मजबूरन मुझे वहाँ से जाना पड़ा. लेकिन जाने से पहले मैने उससे कह दिया कि कल से शाम को मैं उसके लिए घर से खाना लेकर आया करूँगी.

अगले दिन शाम को बड़े जतन से मैने हम दोनो का खाना तैयार किया और शाम को उसके उसके कॅबिन मे पहुँची. नर्स मुझे देख कर मुस्कुरा दी. शायद उसे भी दाल मे कुछ क़ाला नज़र आने लगा था. वो हम दोनो को अकेला छोड़ कर वहाँ से चली गयी. मैं उसके बेड पर आ कर बैठी और टिफिन खोल कर हम दोनो का एक ही थाली मे खाना लगाया. वो मुझे अपनी बाहों मे भर कर चूमना चाहता था लेकिन मैने उसके इरादों को सफल नही होने दिया.
क्रमशः........................
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Mera naam Raadha hai. Main 30 saal ki khubsurat mahila hoon. 38 size ki Badi - badi chuchiyaan aur patli kamar kisi ko bhi pagal kar dene ke liye kafi hain. Dekhne me bala ki hoobsoorat hoon. Isliye hamesha hi bhanwre aas paas manDoctoraate rahte the. Lekin maine kabhi kisi ko lift nahi di.

Suru se hi mujhpe marne waalon ki koi kami nahin rahi thi. College ke dino me bhi mere peeche kafi ladke pare rahte the. Mainn un padindon par apna ras nyochaawar karne me viswas nahin karti jinka kaam hi foolon ka ras pee kar ud jana hota hai..

Mainn ne M B B S kiya hai. Meri posting Assam ke ek chote se kasbe ke Govt. Hospital me hui hai. Main pichle saal bahar se yahan ke orthopedic ward me kaam kar rahi hoon.

Yahan hospital ke kai doctor bhi mujhpe marte hain. Magar meri choice kuch alag kism ki hai. Main mardon se doori bana kar rakhti hoon isliye kuch log mujhe ghamandi aur nakchadhi kahte hain lekin maine kabhi unki baaton ka bura nahi mana. Sach baat to ye hai ki main ek bahut hi sharmili ladki hoon aur meri pasand ka aajtak koi bhi ladka nahin mila. Pata nahin kyon mujhe koi bhi pasand hi nahin aata. Mere ghar wale bhi mujhse pareshaan the. Kai ladko ki tasweeren bhi bhej chuke the. Magar maine na kar diya tha.

Umr ho chuki thi isliye mata pita ki chinta swaabhawik thi. Maine unhe kah diya ki meri chinta chod den aur mujhse choti wali ka khayal rakhen. Jis din mujhe koi ladka pasand aa jayega main usko unse milwa doongi.

Yahan hospital me ek doctor hai Doctor. Shyamal Thapa. Bahut dilfenk. Uska hospital ki kai nurse aur lady doctors ke saath chakkar chalta rahta hai. Wo kafi dino se hath dhokar mere peechhe pada hua hai. Lekin maine use kabhi ghaas nahi dala. Ek bar us ne andheri jagah par mujhe pakad kar jabardasti karne ki koshish ki. Wo meri chuchiyon ko kas kar masalne laga. Maine apne ghutne se uski tangon ke jod par aisa waar kiya ki wo dard se bilbila utha. Main uski giraft se nikal gayi. Uske baad to uski wo thukai ki ki bechaare ne meri taraf dekhna bhi chod diya. Jab bhi mujh se mujhe cross karta chehra jhuka kar hi
gujarta tha.

Lekin honi ko to kuch aur hi manjoor tha. Itni magroor, itni sharmili, itni cold ladaki aakhir kisi ke prem me par hi gayi. Wo bhi is tarah ki usne us par apna sab kuch nyochhawar kar diya. WO admi  na to Doctor ki tarah khoobsoorat tha na W W F ke pahalwano si body thi uski aur na hi koi ameer jyaada tha. Bus ek mamuli sa mujhse bahut hi below status ka admi tha. Jisse milne ke baad kuch dino tak maine apne perents ke mathe par shikan dekhi thi. Magar jab maine unhe manaya to wo meri khushi ko hi sabse jyada mahatv dekar hum dono ki shaadi karwa di. Ab main apko hum dono ke beech kis tarah prem ka paudha uga uski kahani sunati hoon.

Hua yoon ki ek din main round par nikli thi. Shaam ke 6 baj rahe the mere saath ek nurse bhi thi. Ek-ek patient ke paas ja kar hum check up kar rahe the. Pahle hum cabins me rah rahe mareejon ka check up karke General ward ki taraf badhe. Main ek ek karke sabka case history dekhti hui unki condition note karti ja rahi thi.

General ward ek bada haal tha Jisme bees beds the. Kone ki taraf halka andhera tha check karte karte main jab kone ki taraf badhi to achanak kisi kaam se nurse wapas laut gai. Main akeli hi thi akhri patient tha isliye maine bhi koi jyada tawajjo nahi di. Aur ye to daily ka routine tha isliye aise halat ki to main aadi ho chuki thi.

Kone ke bed par ek 30 – 32 saal ka hrisht pusht admi leta hua tha. Uske pair me dislocation tha. Main uske paas pahunch kar muaayna karne lagi. Chart dekhte hue maine uski taraf dekha. Wo 30-32 saal ka tandurust naujawan tha. Uske chehre me ek jabardast akarshan sa tha. Meri ankhen kuch palon ke liye uski ankhon se chipak kar rah gayee. Aisa laga mano main uski ankhon ke sammohan me bandh gayee hoon.

Wo bistar par peeth ke bal leta hua tha. Ek patli chadar ko seene tak odh rakha tha. Uski report dekhte dekhte meri najar uske kamar par padi. Uski kamar ke paas chadar tent ki tarah utha hua tha jisse saaf dikh raha tha ki uska lund uttejit awastha me hai. Uske hathon
ki dheemi harkat bata rahi thi ki uske haath apne lund par chal rahe hain. Main kuch pal tak ek tak uske lund ke Akaar ko dekhti rahi. Tent ke sabse upar wala hissa jahan uske lund ka topa tika hua tha us jagah par ek geela dhabba uske lund se nikale precum ko dikha raha tha. Wo ek tak meri or dekhta hua apne lund par jor jor se haath chalane laga. Main ek dum ghabra gai mera gala sukhne laga main jane ko mudi to usne dheere se kaha,

"doctor mere dayen pair ko thoda ghuma den jisse main ek or karwat le sakoon."

Maine uske tangon ki taraf dekha. Uske chehre ki taraf dekhne ki himmat nahi juta payee. Aisa lag raha tha mano usne mujhe chori karte huye pakad liya ho. Maine charon or dekha lekin kisi ko koi khabar nahi thi. Adhe se jyada to ungh rahe the aur kuch apne rishte daron se maddhim awaj me baten kar rahe the. Koi nurse ya kisi tarah ka help karne wala nahi dikhne par maine uski tangon ko chadar ke upar se pakadna chaha lekin traction laga hone ke karan pakad sahi nahi baith pa rahi thi.

" Chadar ke andar se pakdo." Wo is tarah se mujhe salah de raha tha mano Doctor main nahi wo ho. Maine kanpte hathon se uske chadar ko ek taraf se thoda uthaya aur doosre hath ko andar daal diya. Chadar ke bheetar wo nagn tha. Maine uski kamar ko ek hath se thamne ki koshish ki magar safal nahi ho saki. Fir maine apne dono hathon se uske dayee
tang ko jodon se pakda. Is kosish me do baar uski tangon ke beech maujood lund ke neeche latakte dono gendon ko chhu liya tha. Mere poora badan paseene se bheeg chuka tha. Maine uski tangon ko uski sahuliyat ke hisaab se thoda ghumaya to usne halki se ek or karwat li. Is beech ek baar uski kamar ke upar se chadar khisak gayee aur uska tana hua lund mere samne a gaya. Maine dekha ek dum kala lund tha wo. itna mota aur lamba ki mere badan me ek jhur jhuri si daud gayee.

"thank you doctor" usne meri halat ka maja lete huye muskura kar kaha. Main to jhat wahan se ghoom kar lagbhag bhaagti hui kamare se nikal gayi.

Mera badan paseene se lathpath ho raha tha. Main hospital ke compound me hi bane quarters me rahati thi. Maine nurse se tabiyat khadab hone ka bahana kiya aur seedhi ghar jaakar thande paani se nahayi. Mera dil itni tej dhadak raha tha ki uski awaj kano tak goonj rahi thi. Maine fridge se ek child pai ki bottle nikal kar ek ghoont me sara khali kar diya. Thanda pani dheere dheere mere badan ko thanda karne laga. Kuch der baad jab main kuch normal hui to wapas apni duty par laut gayee. lekin wapas us kamre me na jana pare iska poora khayal rakha.

Duty off hone ke baad us din jab main bistar par leti to us ghatna ke bare me sochne lagi. Poori ghatna kisi film ki tarah meri ankhon ke samne chalne lagi. Pata nahi kyon man me ek gudgudi si hone lagi thi. Bar bar man Woin par khinch kar lejata.

Kisitarah maine apne jajbaton par ankush lagaya. Lekin jaise jaise raat badhti gayi mera apne upar se control hatta gaya. Aakhir main tadap kar wapas hospital ki or badh chali. Us samay raat ke 12.30 ho rahe the chahal pahal kafi kum ho gaya tha main staff ki nazron se bachti hui orthopedic ward me ghusi. Apne aap ko lagbhag chhipaate huye main general ward me pahunchi. Jyadatar patient so gaye the. Charon or shaanti chaa rahi thi. Kabhi kabhi kisi ke karahne ki awaj hi sirf mahol ko badal de rahi thi. Main wahan kisliye aye? Kya karma chahti thi kuch nahi pata tha. Koi agar mujhse wahan ki maujoodgi ke bare me pooch bathta to jawab dena mushkil ho jata.

Main idhar udhar dekhti hui akhri bed par pahunchi. Maine uski taraf dekha wo jaga hua tha. Apni ghabrahat par kaboo pane ke liye maine bistar ke side me rakha history card dekhne lagi. Naam likha tha Raj sharma.

Maine ghabrate huye uski taraf dekha. Wo abhi bhi usi condition me tha. Yani ki uska lund khada tha aur wo us par apna haath chala raha tha. Lakin uski chadar par ek sookha hua dhabba bata raha tha ki ek baar uska skhalan ho chuka tha. Main dheere dheere sarakti hui uske paas pahunchi aur uske badan ka temperature dekhne ke bahane uske mathe par apna hath rakha. Kuch der tak yun hi hath ko rakhe rahne ke baad main dheere dheere apne najuk hathon se uske chehre ko sahlane lagi.

Achanak chadar ke neeche se uska ek haath nikla aur meri kalai ko sakhti se pakad liya. Maine haath chudane ki koshish ki magar uska haath to lohe ki tarah meri kalai ko jakada hua tha. Hum dono ke munh se ek shabd bhi nahi nikal raha tha. Is baat ka khayal dono hi rakh rahe the ki hamari harkaton ka pata bagal wale bed par so rahe admi ko bhi nahi pata chale. Kisi ko bhi khabar nahin thi ki kamre ke ek kone me kya jor mashakkat ho rahi thi.

Usne mere haath ko chadar ke bheetar khinch liya. Mere hath ko sakhti se thame huye apne tangon ke jod tak le gaya. Mera haath uske tane hue lund se takraya. Pure shareer me ek sihran si doud gai. Usne jabardasti mere haath ko apne lund par rakh diya. Maine apna hath bahar kheenchne ki poori koshish ki lekin uski takat ke age mere badan ka poora jor bhi kuch nahi kar paya. Mera hath sunn hone laga. Wo mere hath ko chodane ke mood me nahi tha. Akhir maine hichakte hue uske land ko apni mutthi me le liya. Ab wo mere haath ko usi tarah pakde huye apne lund par upar neeche chalaane laga. Mujhe lag raha tha
mano maine apni mutthi me koi garam loha pakad rakha ho. Uska lund kafi mota tha. Lambaai me kam se kam 10" hoga. Main uske lund par haath chalaane lagi. Kuch der baad uske hath ki pakad mere hath par dheeli padane lagi. Jab usne dekha ki main khud ab uske lund ko mutthi me bhar kar use sahla rahi hoon to usne dheere dheere mere haath ko chod diya. Main usi tarah uske lund ko mutthi me sakhti se pakad kar upar neeche haath chala rahi thi. Kuch der baad uska shareer tan gaya aur mere haathon par dher sara chipchipa veerya udhel diya. Maine jhatke se uska lund chod diya. Maine chadar se apna haath baahar nikala. Pura haath gaadhe safed rang ke veerya se sana hua tha. Usne mera haath pakad kar apni chadar se ponchh diya. Main haath chhuda kar wahan se wapas bhaag aayi. Main daudte huye apne ghar pahunch kar hee sans lee. Mere janghon ke beech panty geeli ho chuki thi.

Jab wapas kuch normal hui to maine apne haath ko naak ke paas le ja kar sungha. Uske veerya ki sugandh abhi tak haathon me basi hui thi. Maine munh khol kar ek ungli apni jeebh se chuaaya. Uske veerya ka taste achcha laga. Maine pahli baar kisi mard ke veery ka taste paya tha. Ek ajeeb sa taste tha. Jo mujhe bha gaya. Fir to sari ungliyan hi chaat gayi. Chatte huye soch rahi thi ki kitna achcha hota agar usne meri ungliyan apni chadar se nahi ponchha hota. Maine apne hath ko apne honthon par rakh kar hospital ki or ek flying kiss uchaal diya.

Raat bhar main karwaten badalti rahi. Jab bhi jhapki ayi uska chehra saamne aa jata tha. Sapno me wo mere badan ko masalta raha. Raat bhar bina kuch kiye hi main kai baar geeli hogayi. Pata nahin usme aisa kya tha jo mera man bekaabu ho gaya. Jise jeetne ke liye achche achche log apna sab kuch daanv par lagane ko taiyaar the wo khud aaj paagal hui ja rahi thi.

Jaise taise subah hui. Meri aankhen neend se bhari ho rahi thi. Poora badan toot raha tha. Aisa lag raha tha mano pichhli raat meri suhagraat vrahi ho. Main taiyaar ho kar hospital gayi. Round par nikali to main Raj sharma ke bed tak nahin jaa payi. Maine staff ko bula kar uske bare me poochha to pata laga ki wo gareeb insaan hai. Shayad uske ghar me koi nahin hai kyon ki usse milne kabhi koi nahin ata. Kisi accident me uski tangon ke jod par chot ayee thi. Wo abhi traction par tha aur bistar se uth bhi nahi sakta tha.

Main chupchap uthi aur counter par pahunch kar uske liye Delux ward book kiya. Ward ka kharcha apni jeb se bhar diya tha. Wapas akar maine nurse ko slip dete huye Raj sharma ko deluxe ward me shift karne ka order diya. Nurse to ek baar chakit si mujhko dekhti rahi. Maine kaam me vyast ta dikha kar uski najron se apne ko bachaya.

Saab ke samne uske paas jaane me mujhe hichak ho rahi thi. Main aaj tabiyat khadab hone ka bahana kar ke ghar chali gayi. Sham ko hospital jaa kar pata laga ki Raj sharma ko deluxe ward me shift kar diya gaya hai. Main logon ki najar bacha kar shaam ath baje ke aas paas uske ward me pahunchi. Wahan maujood nurse ko maine bahar bhej diya.

" Tum khana kha kar aao tab tak main yaheen hoon."

Wo khushi khushi chali gayi. Mujhe dekh kar Raj sharma muskura diya. Main bhi muskurate huye uske paas pahunchi.

"kaise ho" maine poochha.

"tumhen dekh liya bus tabiyat achchi ho gayi." Raj sharma muskura raha tha. Mera chehra sharm se lal ho gaya. Do baar ke Milan ke baa dab main bhi usse thoda abhyast ho gayee thi. Main uska temperature dekhne ke bahane se uski balon me apni ungliyan firane lagi.

"mujh par itna kharcha kyon kiya doctor.." Raj sharma ne poochha.

" Raadha. Raadha naam hai mera. Mujhe ye naam achcha lagta hai. Tum kames kam mujhe isi naam se pukaroge." Main uske bistar par uske paas baith gayee.

Usne mera haath pakad kar apni or khincha main jaan boojh kar uske seene se lag gayi. Usne mere honthon ko apne honthon se chhuliya.

"Dhanyavaad N….Raadha" usne dheere se kaha.

Mera poora badan thar thara raha tha. Maine bhi apne honth uske honth se sata diye aur uske honthon ko apne honthon me daba kar choosne lagi.

Tabhi darwaje par kisi ne knock kiya. Majbooran mujhe usse alag hona pada. Maine jaldi jaldi apne kapde theek kiye.

"main kal aungi" maine uske kano me dheere se kaha aur darwaja khol diya. Ek nurse khana lekar aye thi.

Majbooran mujhe wahan se jana pada. Lekin jane se pahle maine usse kah diya ki kal se Shaam ko main uske liye ghar se khana lekar aya karungi.

Agle din shaam ko bade jatan se maine hum dono ka khana taiyaar kiya aur shaam ko uske Uske cabin me pahunchi. Nurse mujhe dekh kar muskura di. Shayad use bhi daal me kuch kala najar ane laga tha. Wo hum dono ko akela chod kar wahan se chali gayee. Main uske bed par a kar baithi aur tiffin khol kar hum dono ka ek hi thali me khana lagaya. Wo mujhe apni bahon me bhar kar choomna chahta tha lekin maine uske iradon ko safal nahi hone diya.
KRAMASHSH...........................



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