Tuesday, January 21, 2014

raj sharma stories राधा का राज --2

FUN-MAZA-MASTI

 raj sharma stories

राधा का राज --2
गातांक से आगे....................
"अभी कुछ नही. पहले खाना खा लो. तुम्हे लगी हो ना हो मुझे तो बहुत ज़ोर की भूख लग रही है." वो मेरी बातें सुन कर हंस दिया. मैने उसके बदन को सहारा देकर सिरहाने पर कुछ उठाया. इस कोशिश मे मैं उसके बदन से लिपट गयी. उसके बदन की खुश्बू मेरे दिल तक उतर गयी थी. मैं एक कौर उसको खिलाती तो दूसरा कौर खुद खाती.

खाना ख़तम करके मैने अपने हाथ धोए और फिर राज शर्मा का मुँह पोंच्छ कर उसको पानी पिलाने लगी. राज शर्मा पानी पीकर मेरे हाथ से ग्लास लेकर साइड के टेबल पर रख दिया. और मुझे खींच कर अपने बदन से सटा लिया. मैं भी तो इसी छन का इंतेज़ार कर रही थी. मैं भी उसके बदन से किसी लता की तरह लिपट गयी.

मेरे होंठों को चूमते हुए उसके हाथ मेरी चुचियों पर आगए. ऐसा लगा जैसे इन्हीं हाथों के चुअन के लिए मैं आज तक तड़प रही थी. मैने उसके हाथों पर अपने हाथ रख कर अपनी चुचियों को हल्के से दबा कर उसे अपनी सहमति जताई. वो मेरी चुचियों को दबाने लगा. मेरे हाथ चादर के अंदर घुस कर उसके सीने को सहलाने लगे. मैं उसकी बलिष्ठ छाती पर अपने हाथ फिरा रही थी. मैने अपना हाथ नीचे लाकर कुछ च्छुआ तो चौंक उठी. आज वो पयज़ामा पहन रखा था. मैं उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दी.

"ये इसलिए कि तुम्हारे अलावा किसी और की पहुँच मेरे बदन तक ना हो."

मेरे हाथ उसके पयज़ामे के नाडे से उलझे हुए थे. मैने नडा खोल कर हाथ को अंदर डाल दिया. उसका लंड मेरे हाथ की चुअन से फुंफ़कार उठा. मैं उसे बाहर निकाल कर सहलाने लगी. मैं अपने हाथों से उसके लंड को सहलाने लगी बीच बीच मे उसके नीचे की दोनो गेंदों को भी सहला देती. वो काफ़ी उत्तेजित था कुछ ही देर मे उसका बदन एंथने लगा और उसने मेरे हाथों को अपने वीर्य से भर दिया. मेरे हाथ फिर उसके वीर्य से सन गये. वो मेरी चुचियों से खेल रहा था. मैं हाथ बाहर निकाल कर उसके सामने ही अपनी जीभ से उसके वीर्य को चाटने लगी. हाथ मे लगे उसके सारे वीर्य को अपनी जीभ से चाट कर सॉफ कर दिया.

"कैसा लगा?" राज शर्मा ने पूचछा.

"टेस्टी है. बहुत अच्छा लगा. अब तुम सो जाओ. नर्स के लौटने का समय हो गया है. मैं चलती हूँ." मैने जल्दी से अपने कपड़े सही किए. आधा घंटा हो चुका था. नर्स किसी भी वक़्त लौट सकती थी. मैं जाने को मूडी तो उसने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे रोका.

"नही राज शर्मा मुझे जाना ही पड़ेगा. नही तो पूरे हॉस्पिटल मे सब मुझ पर हँसने लगेंगे" मैने उसकी पकड़ से अपनी बाँह छुड़ानी चाही.

"ठीक है लेकिन जाने से पहले एक ….." कह कर उसने अपने होंठ उपर की ओर कर दिए. मैने उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर उसे एक गहरा चुंबन दिया और उस कमरे से निकल गयी.

अगले दिन नर्स को खाने पर भेज कर मैने कुण्डी बंद कर ली. जैसे ही मैं राज शर्मा के पास आई उसने मेरे चेहरे को चूम चूम कर लाल कर दिया. मैं खाने का टिफिन एक ओर रख कर उसके सीने से लग गयी. उसके बदन से चादर को पूरी तरह हटा दिया और उसके पयज़ामे को खोल कर उसका लंड निकाल लिया. उसका लंड एक दम तना हुआ था. मैने झट से उसके लंड के टिप पर अपने होंठों से एक चुंबन जड़ दिया.

इस बार उसने मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर झुका दिया. मैं ने शरारत से होंठ भींच लिए. वो लंड को मेरे होंठों पर रगड़ने लगा. होंठ उसके वीर्य से गीले होगये. कुछ देर बाद मैने अपने होंठ खोल कर उसका लंड अपने मुँह मे ले लिया. पहले धीरे धीरे और बाद मे ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. वो मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर भींचने लगा. काफ़ी देर तक मुख मैंतुन करने के वो मेरे सिर को पकड़ कर अपने लंड पर सख्ती से दबा दिया. उसका लंड मेरे मुँह से होता हुआ मेरे गले के अंदर प्रवेश कर गया. उसका लंड फूलने लगा था. मैं साँस लेने के लिए च्चटपटा रही थी. तभी ऐसा लगा जैसे उसके लंड से गरम गरम लावा निकल कर मेरे गले से होता हुआ मेरे पेट मे प्रवेश कर रहा है. मैने सिर को थोडा बाहर की ओर खींचा. पूरा मुह्न उसके वीर्य से भर गया था. होंठों के कोनो से वीर्य बाहर चू रहा था. पूरा वीर्य निकल जाने के बाद ही उसने मेरे सिर को छोड़ा. मैने प्यार से उसकी ओर देखते हुए सारा वीर्य अंदर गटक लिया. उसने मेरे होंठों के कोरों से टपकते वीर्य को अपनी चादर से पोंच्छ दिया.

अचानक मेरी नज़र अपने रिस्ट . पर पड़ी. काफ़ी टाइम हो चुका था. मैने दौड़ कर बाथरूम मे जाकर अपना मुँह धोया. वहीं पर आईने के सामने अपने बाल & और कपड़े सही कर के लौटी.

" ऐसा लगता है तुम किसी दिन मुझे मार ही दोगे." कहकर मैं उस से लिपट कर उसके होंठों को चूम ली.

"बहुत दर्द कर रहा है गले मे. तुम कितने गंदे हो. इस तरह कभी मुँह मे डालते हैं?" मैं उसके सीने से सटी हुई बोली. वो हंसता हुआ मेरे गले को और गालो को सहलाने लगा. इतना सुकून मुझे आज तक कभी नही आया था.

फिर हम दोनो एक दूसरे को खाना खिलाए. थोड़ी देर मे नर्स आ गई थी. उसके दरवाजे को खटखटाते ही मैं कमरे से बाहर निकल गयी.

इसी तरह रोज जब भी मौका मिलता मैं लोगों की नज़रों से बचा कर अपने महबूब से मिलती रही. हम एक दूसरे को चूमते, सहलाते और प्यार करते थे. वो मेरे बूब्स को खूब मसलता था, मेरी निपल्स को खींचता और मसलता था. मैं रोज मुख मैंतुन से उसका निकाल देती थी. उसका वीर्य मुझे बहुत अच्छा लगता था. वो मुझे खींच कर अपने उपर लिटा लेता और मेरे पेटिकोट के अंदर हाथ डालकर मेरी पॅंटी को खिसका कर मेरी योनि को सहलाने लगता. बीच बीच मे मेरी योनि मे भी उंगली डाल कर उस से ज़्यादा हम वहाँ कुछ कर भी नहीं पाते थे. पकड़े जाने और बदनामी का डर जो था.

धीरे उसकी टाँग ठीक हो गयी. उसे मैं अपने कंधे का सहारा देकर कमरे मे ही चलाती. वो किसी नर्स की मदद लेने से मना कर देता था. तभी अचानक मेरी तबीयत एकदम से खराब हो गयी. विराल फीवर हुआ था. काफ़ी तेज बुखार चढ़ता था. दो तीन दिन तो मैं बिस्तर से ही नही हिल पाई थी. जब कुछ ठीक हुई तो मैं हल्के बुखार मे भी हॉस्पिटल पहुँची.

मैं सीधे राज शर्मा के कॅबिन मे पहुँचा. मुझे पता था कि वो मुझ पर नाराज़ होने वाला है. इतने दिनो से मिल जो नही पाई थी उससे. किसी के हाथ खबर भी नही भिजवा पाई क्योंकि इसके लिए उसे सब कुछ बताना पड़ता जो कि मैं नही चाहती थी.

लेकिन जब मैं वहाँ पहुँची तो कमरा खाली पाया. पूच्छने पर पता लगा कि उसको डिसचार्ज कर दिया गया है. मैने कमरे मे उसके हिस्टरी शीट मे सब जगह उसका पता जानने की कॉसिश की मगर कुछ पता नहीं लगा. मेरी हालत पागलो जैसी हो गयी थी जिससे मन लगाया वोई मेरी बेवकूफी के कारण मुझसे दूर हो गया था. मुझे अपने आप पर गुस्सा आ रहा था की इतने दिनो साथ रहे मगर कभी उसका पता नही पूछा. मैने उसे हर जगह ढूँढा. मगर वो तो ऐसे गायब हुआ जैसे सुबह की रोशनी मे ढूँढ गायब हो जाती है.

मैं जिंदगी मे पहली बार किसी पराए लड़के से बिच्छुड़ने पर रोई थी. मेरी सहेली रचना जो मेरे साथ क्वॉर्टर शेर करती थी, उसने भी काफ़ी खोदने की कोशिश की मगर मैने किसी को भी कुछ नहीं बताया. मैने जिंदगी मे पहली बार किसी से प्यार किया था. वो जैसा भी था मुझे अच्छा लगता था.

वो ग़रीब था लेकिन उसमे कुछ बात थी जो उसे सबसे अलग करती थी. कुछ हो ना हो मैं तो उस से प्यार करने लगी थी. किसी ने सच ही कहा है दिल किसी रूल को नही मानता. उसके अपने अलग ही उसूल होते हैं. घरवाले परेशान कर रहे थे शादी के लिए. मेरे पेरेंट्स आज़ाद ख़यालों के थे इसलिए उन्हों ने कह दिया था कि मैं जिसे चाहे पसंद करके शादी कर लूँ. कभी कभी मैं सोचती कि क्या वो भी मुझे चाहता होगा? या मैं ही उससे एक तरफ़ा प्यार करने लगी थी. शायद उसे तो मेरे बदन से खेलने मे अच्छा लगता था इसलिए उसने मुझे उसे किया. नही तो इतने दिनो मे एक बार तो कभी भूल से ही सही अपने प्यार का इज़हार करता. मैं तो उसके मुँह से प्यार के बोल सुनने को तरसती थी.

अगर वो मुझे पसंद करता था तो फिर वो कभी दोबारा मुझसे मिला क्यों नहीं. धीरे धीरे सिक्स मंत्स गुजर गये उस मुलाकात को. मैने अपने दिल को मना लिया था. मैं मानने लगी थी कि शायद मेरी किस्मेत मे कोई है ही नही. मैने घर वालों को भी सॉफ सॉफ कह दिया था कि मुझे बार बार परेशान नही करे. मुझे किसी से शादी नही करना है. वापस वही हॉस्पिटल और वो कमरा बस इसी मे बँध गयी थी. हां जब कभी मैं उस कॅबिन के सामने से गुजरती तो लोगों की नज़रों से बच कर एक बार अंदर ज़रूर झाँक लेती. क्यों?....नही मालूम. शायद दिल को अभी भी आशा थी कि राज शर्मा फिर मुझे उस कॅबिन मे मिल जाएगा.

फिर अचानक ही वो मिला. मैं तो उम्मीद हार् चुकी थी. लेकिन वो मिला…..वो जब मिला तो मुझे दिए तले अंधेरा वाली बात याद आई. एक दिन मैं हॉस्पिटल के लिए निकली तो अचानक मुझे एक जाना –पहचाना चेहरा हॉस्पिटल के सामने के बगीचे मे काम करता हुआ नज़र आया. मेरे सामने उसकी पीठ थी. वो पोधो पर झुका हुआ उनकी कटिंग कर रहा था. पीछे से वो मुझे काफ़ी जाना पहचाना लग रहा था.

" सुनो माली." उसके घूमते ही मैं धक से रह गयी, "त…तुऊऊँ?" सामने राज शर्मा खड़ा था. मेरा प्यार, मेरा राज. मैं एकटक उसे देख रही थी. मुँह से कोई बोल नही निकले. मेरे बदन और मेरे दिमाग़ ने कुछ छनो के लिए काम करना बंद कर दिया.

"राआआआ……..मेडम" राज शर्मा ने मुझे जैस सोते से जगाया." मैं यहाँ माली का काम करता हूँ. आप अपने आप को सम्हलिए नहीं तो कोई भी आदमी इसका ग़लत मतलब निकाल सकता है. आप यहा डॉक्टर हैं और मैं एक
मामूली सा माली…"

मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ. "तुम मुझे आज शाम च्छे बजे मेरे घर पर मिलना. बहुत ज़रूरी काम है… आओगे ना?" मैने उससे कहा मगर उसके मुँह से कोई बात निकलती ना देख कर मैने धीरे से कहा,"तुम्हे मेरी कसम." कहकर मैं अपने आप को समहाल्ती हुई तेज़ी से हॉस्पिटल मे चली गयी.

मुझे मालूम था कि अगर मैने मूड कर देख लिया तो मैं अपने जज्बातों पर काबू नही रख सकूँगी. हॉस्पिटल मे मन नहीं लगा तो तबीयत खदाब होने का बहाना बना कर मैं भाग निकली. आज किसी काम मे मन नही लग रहा था. शाम को राज शर्मा आने वाला था मुझसे मिलने. उसकी तैयारी भी करनी थी. वापसी मे मुझे राज शर्मा कहीं नहीं दिखा. मैने उस गार्डेन के दो तीन चक्कर काटे मगर कहीं भी नही था वो.

मैं बाज़ार जा कर कुछ समान खरीद लाई. समान मे कुछ रजनीगंधा के स्टिक्स, एक झीना रेशमी गाउन था. रात का डिन्नर और तीन बॉटल बियर था. एक लड़की के लिए बियर खरीदना कितना मुश्किल काम है आज मुझे पता लगा था.

बड़ी मुश्किल से किसी को पैसे देकर मैने तीन बॉटल बियर माँगाया. आज मैं उसकी पूरी तरह से स्वागत करना चाहती थी. शाम चार बाजे से ही मैं अपने महब्बूब के लिए तैयार होकर बैठ गयी. हाल्का मेकप करके पर्फ्यूम लगाया. फिर ट्रॅन्स्परेंट ब्रा और पॅंटी के उपर नया रेशमी गाउन पहन लिया. गुलाबी झीने गाउन को पहनना और नही पहनना बराबर था. बाहर से मेरे गुलाबी बदन एक एक रोया दिख रहा था. मैने बिस्तर पर साफ़ेद रेशमी चदडार बिच्छा दिया. रूम स्प्रे को चारों ओर स्प्रे कार दिया था जिससे एक रहश्यमय वातावरण तैयार हो. कुछ रजनीगंधा के स्टिक्स एक फ्लवर वर्स मे बेड के सिरहाने पर राख दिया.

6 बजे तक तो मैं बेताब हो उठी. बार बार घड़ी को देखती हुई चहल कदमी कर रही थी. 6.10 पर डोर बेल बजा. मैं दौड़ कर दरवाजे पर गई. पीप होल से देखकर ही दरवाजा खोलना चाहती थी. क्योंकि कोई और हुआ तो मुझे इस रूप मे देखकर पता नहीं क्या सोचे. उसे देख कर मैं दो सेकेंड्स रुक कर अपनी तेज साँसों को कंट्रोल किया और दरवाजा खोलका उसे अंदर खींच लिया. दरवाज़ा बंद करके मैं उससे बुरी तरह से लिपट गयी. किस कर करके पूरा मुँह भर दिया.

" कहाँ चले गये थे? मेरी एक बार भी याद नहीं आई?" मैने उससे शिकायत की.

" मैं यहीं था मगर मैं जान बूझ कर ही आपसे मिलना नही चाहता था. कहाँ आप और कहाँ मैं. चाँद और सियार की जोड़ी अच्छी नहीं लगती" मैने उसके मुँह पर हाथ रख दिया.

" खबरदार जो मुझ से दूर जाने का भी सोचा. आगर जाना ही था तो आए क्यूँ? मेरी जिंदगी मे हुलचल पैदा करके भागने की सोच रहे थे. वो सब जो हमारे बीच उस कॅबिन मे हुआ वो सब खेल था. टाइम पास?" मैने कहा.

"अरे नही आप मुझे ग़लत समझ रही हैं….."

" और मुझे ये आप आप करना छोड़ो. तुम्हारे मुँह से तुम और तू अच्छा लगेगा."

" लेकिन मेरी बात तो सुनिए...... सुनो ..."

" बैठ जाओ" कहकर मैने उसे धक्का देकर सोफे पर बिठा दिया. मैने मन ही मन डिसाइड कर लिया था कि इतना सब होने के बाद आब मैं राज शर्मा से कोई शरम नहीं करूँगी और निर्लज्ज होकर अपनी बात मनवा लूँगी. हम इतने आगे बढ़ चुके थे कि शर्म की दीवार खींचना अब व्यर्थ था.

मैं उठी और फ्रिड्ज से बियर की बॉटल निकाल कर उसका कॉर्क खोला. एक काँच के ग्लास मे उधेल कर उसके पास आई. ग्लास मे उफनता हुआ झाग मेरे जज्बातों को दर्शा रहा था. मैं उस से सॅट कर बैठ गयी और ग्लास को उसके होंठों के पास ले गयी. जैसे ही उसने ग्लास से अपने होंठ लगाने के लिए अपने होंठ बढ़ाए मैने झट से ग्लास को पीछे करके अपने होंठ आगे कर दिए. राज शर्मा मुस्कुराता हुआ अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिया.

मैने उसके होंठों से ग्लास लगा दिया. उसने मेरी ओर देखते हुए मेरी हाथों से एक घूँट पिया. उस एक घूँट मे ही पूरा ग्लास खाली कर दिया.

"हां तो अब बताओ कि दोनो मे से कौन ज़्यादा नशीला है. मैं या ये……" कहकर मैने उत्तेजक तरीके से अपने बालों को पीछे करके कमर पर हाथ रख कर अपनी टाँगों को कुछ फैला कर खड़ी हो गयी. उसने
हाथ बढ़ा कर मेरी बाँह पकड़ कर मुझे अपने गोद मे खींच लिया. हम दोनो के होंठ मिले और मैने अपनी जीभ उसके मुँह मे डाल दी. मैं उसके पूरे मुँह के अंदर अपनी जीभ फिराने लगी. काफ़ी देर बाद जब
हम अलग हुए तो ग्लास को उसके हाथों मे पकड़ा कर मैं खड़ी होगयि.

" तुम्हे मेरे ये बहुत अच्छे लगते थे ना? " मैने अपने ब्रेस्ट्स की तरफ इशारा करते हुए उसके होंठों के बिल्कुल पास आकर पूछा. उसने स्वीकृति मे अपने सिर को हिलाया.

" खोल कर नहीं देखना चाहोगे?" इससे पहले कि वो कुछ कहे मैने खड़े होकर एक झटके मे गाउन की डोर को खींच कर उसे खोल दिया. गाउन सामने की तरफ से पूरा खुल चुका था. मेरा गुलाबी बदन सिर्फ़ दो छोटे कपड़ों से ढका हुआ था.

मैने अपने गाउन को शरीर से अलग कर दिया. वो एकटक मेरे लगभग नग्न बदन को निहार रहा था.. मैं उसकी ओर झुकते हुए अपने ब्रा के एक स्ट्रॅप को खींच कर छोड़ा. स्ट्रॅप वापस अपनी जगह पर आ गया मगर सामनेवाले के दिल मे एक टीस सा छोड़ गया. उसकी ज़ुबान तो लगता था सिथिल सी हो गयी थी. मुझसे शायद इतने बोल्ड हरकत की उसकी उम्मीद नही थी उसे. वो बस एक तक मेरे बदन के एक एक इंच को निहार रहा था. आज पहली बार मुझमे भी कामुक लहरे उफन रही थी. आज तक सर्द सी जिंदगी बिताने के बाद आज पूरा बदन गर्मी से झुलस रहा था.
क्रमषश्.......................
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Gataank se aage....................
"abhi kuch nahi. Pahle khana kha lo. Tumhe lagi ho na ho mujhe to bahut jor ki bhookh lag rahi hai." Wo meri baten sun kar hans diya. Maine uske badan ko shara dekar sirhane par kuch uthaya. Is koshish me main uske badan se lipat gayee. uske badan ki khushboo mere dil tak utar gayee thi. Main ek kaur usko khilati to doosra kaur khud khati.

Khana khatam karke maine apne hath dhoye aur fir Raj sharma mka munh ponchh kar usko pani pilane lagi. Raj sharma pani peekar mere hath se glass lekar side ke table par rakh diya. Aur mujhe kheench kar apne badan se sata liya. Main bhi to isi chhan ka intezaar kar rahi thi. Main bhi uske badan se kisi lata ki tarah lipat gayee.

Mere honthon ko choomte huye uske haath meri chuchiyon par aagae. Aisa laga jaise inhin haathon ke chuan ke liye main aaj tak tadap rahi thi. Maine uske haathon par apne haath rakh kar apni chuchiyon ko halke se daba kar use apni sahmati jatayee. Wo meri chuchiyon ko dabane laga. Mere haath chadar ke undar ghus kar uske seene ko sahlane lage. Main uske balishth chuchiyon par apne haath fira rahi thi. Maine apna hath neeche lakar kuch chhua to chaunk uthi. Aaj wo payjama pahan rakha tha. Main uski taraf dekh kar muskura di.

"ye isliye ki tumhare alawa kisi aur ki pahunch mere badan tak na ho."

Mere hath uske payjame ke nade se uljhe hue the. Maine Nada khol kar haath ko andar dal diya. Uska lund mere haath ki chuan se funfkaar utha. Main use bahar nikal kar sehlane lagi. Main apne haathon se uske lund ko sehlane lagi beech beech me uske neeche ki dono gendon ko bhi sehla deti. Wo kafi uttejit tha kuch hi der me uska badan enthne laga aur usne mara hathon ko apne veerya se bhar diya. Mere haath fir uske veerya se san gaye. Wo meri chuchiyon se khel raha tha. Main haath bahar nikal kar uske samne hi apni jeebh se uske veerya ko chatne lagi. Haath me lage uske saare veerya ko apni jeebh se chat
kar saaf kar diya.

"kaisa laga?" Raj sharma ne poochha.

"Tasty hai. Bahut achcha laga. Ab tum so jaao. Nurse ke lautne ka samay ho gaya hai. Main chalti hoon." Maine jaldi se apne kapde sahi kiye. Adha ghanta ho chuka tha. Nurse kisi bhi waqt laut sakti thi. Main jane ko mudi to usne meri bahn pakad kar mujhe roka.

"nahi Raj sharma mujhe jana hi parega. Nahi to poore hospital me sab mujh par hansne lagenge" maine uski pakad se apni baanh chudaani chahi.

"theek hai lekin jane se pahle ek ….." kah kar usne apne honth upar ki or kar diye. Maine uske honthon par apne honth rakh kar use ek gahra chumban diya aur us kamre se nikal gayee.

Agle din nurse ko khane par bhej kar maine kundi band kar lee. Jaise hi main Raj sharma ke paas aayi usne mere chehre ko choom choom kar laal kar diya. Main khane ka tiffin ek or rakh kar uske seene se lag gayee. uske badan se chadar ko poori tarah hata diya aur uske payjame ko khol kar uska lund nikal liya. Uska lund ek dum tana hua tha. Maine jhat se uske lund ke tip par apne honthon se ek chumban jad diya.

Is baar usne mere sir ko pakad kar apne lund par jhuka diya. Main ne shararat se honth bheench liye. Wo lund ko mere honthon par ragarne laga. Honth uske veerya se geele hogaye. Kuch der baad maine apne honth khol kar uska lund apne munh me le liya. Pahle dheere dheere aur baad me jor jor se choosne lagi. Wo mere sir ko pakad kar apne lund par bheenchne laga. Kafi der tak mukh mainthun karne ke wo mere sir ko pakad kar apne lund par sakhti se daba diya. Uska lund mere munh se hota hua mere gale ke andar pravesh kar gaya. Uska lund phoolne laga tha. Main saans lene ke liye chhatpata rahi thi. Tabhi aisa laga jaise uske lund se garam garam lava nikal kar mere gale se hota hua mere pet me pravesh kar raha hai. Maine sir ko thoda bahar ki or khincha. Poora muhn uske veerya se bhar gaya tha. Honthon ke kono se veerya bahar choo raha tha. Poora veerya nikal jane ke baad hi usne mere sir ko choda. Maine pyaar se uski or dekhte hue saara veerya andar gatak liya. Usne mere honthon ke koron se tapakte veerya ko apni chadar se ponchh diya.

Achanak meri najar apne wrist watch par padi. Kafi time ho chuka tha. Maine doud kar bathroom me jaakar apna munh dhoya. Wahin par aaine ke samne apne baal & aur kapde sahi kar ke lauti.

" Aisa lagta hai tum kisi din mujhe maar hi doge." kahakar main us se lipat kar uske honthon ko choom li.

"bahut dard kar raha hai gale me. Tum kitne gande ho. Is tarah kabhi munh me dalte hain?" main uske seene se sati hui boli. Wo hansta hua mere gale ko aur gallon ko sahlane laga. Itna sukoon mujhe aaj tak kabhi nahi aya tha.

Fir hum dono ek doosre ko khana khilaye. Thodi der me nurse a gai thi. Uske darwaje ko khatkhatate hi main kamre se bahar nikal gayee.

Isi tarah roj jab bhi mauka milta main logon ki nazaron se bach kar apne mahboob se milti rahi. Hum ek doosre ko choomte, Sahlate aur pyaar karte the. Wo mere boobs ko khoob masalta tha, meri nipples ko kheenchta aur masalta tha. Main roj mukh mainthun se uska nikal deti thi. Uska veerya mujhe bahut achcha lagta tha. Wo mujhe kheench kar apne upar lita leta aur mere petticoat ke andar hath daalkar meri panty ko khiska kar meri yoni ko sahlane lagta. Beech beech memeri yoni me bhi ungli daal kar Us se jyada hum wahan kuch kar bhi nahin paate the. Pakde jaane aur badnaami ka dar jo tha.

Dheere uski taang theek ho gayee. Use main apne kandhe ka sahara dekar kamre me hi chalati. Wo kisi nurse ki madad linen se mana kar deta tha. Tabhi achanak meri tabiyat ekdum se khadab ho gayee. Viral fever hua tha. Kafi tej bukhar chadhta tha. Do teen din to main bistar se hi nahi hil payee thi. Jab kuch theek hui to main halke bukhar me bhi hospital pahunchi.

Main seedhe Raj sharma ke cabin me pahuncha. Mujhe pata tha ki wo mujh par naraj hone wala hai. Itne dino se mil jo nahi payee thi usse. Kisi ke hath khabar bhi nahi bhijwa payee kyonki iske liye use sab kuch batana parta jo ki main nahi chahti thi.

Lekin jab main wahan pahunchi to kamra khali paya. Poochhne par pata laga ki usko discharge kar diya gaya hai. Maine kamre me uske history sheet me sab jagah uska pata janne ki kosish ki magar kuch pata nahin laga. Meri haalat bawriyon jaisi ho gayi thi jisse man lagaya Woi meri bewakoofi ke karan mujhse door ho gaya tha. Mujhe apne aap par gussa a raha tha ki itne dino saath rahe magar kabhi uska pata nahi poochha. Maine use har jagah dhoondha. Magar wo to aise gayab hua jaise Subah ki roshni me dhundh gayab ho jati hai.

Main jindagi me pahli baar kisi padaye ladke se bichhudne par royi thi. Meri saheli Rachna jo mere saath quarter share karti thi, usne bhi kafi khodne ki koshish ki magar maine kisi ko bhi kuch nahin bataya. Maine jindagi me pahli baar kisi se pyar kiya tha. Wo jaisa bhi tha mujhe achcha lagta tha.

Wo garib tha lekin usme kuch baat thi jo use sabse alag karti thi. Kuch ho na ho main to us se pyaar karne lagi thi. Kisi ne sach hi kaha hai dil kisi rule ko nahi manta. Uske apnea lag hi usool hote hain. Gharwaale pareshaan kar rahe the shaadi ke liye. Mere perents azaad khayalon ke the isliye unhon ne kah diya tha ki main jise chahe pasand karke shaadi kar loon. Kabhi kabhi main shochti ki kya wo bhi mujhe chahta hoga? Yaa main hi usse ek tarfa pyaar karne lagi thi. Shayad use to mere badan se khelne me achcha lagta tha isliye usne mujhe use kiya. Nahi to itne dino me ek baar to kabhi bhool se hi sahi apne pyaar ka ijhaar karta. Main to uske munh se pyaar ke bol sunne ko tarasti thi.

Agar wo mujhe pasand karta tha to fir wo kabhi dobara mujhse mila kyon nahin. Dhire dhire six months gujar gaye us mulakat ko. Maine apne dil ko mana liya tha. Main manne lagi thi ki shayad meri kismet me koi hai hi nahi. Maine ghar walon ko bhi saaf saaf kah diya tha ki mujhe baar baar pareshaan nahi kare. Mujhe kisi se shaadi nahi karma hai. Wapas wahi hospital aur wo karma bus isi me bandh gayee thi. Haan jab kabhi main us cabin ke samne se gujarti to logon ki najron se bach kar ek baar andar jaroor jhaank leti. Kyon?....nahi maloom. Shayad dil ko abhi bhi asha thi ki Raj sharma fir mujhe us cabin me mil jayega.

Fir achanak hi wo mila. Main to ummid har chuki thi. Lekin wo mila…..wo jab mila to mujhe diye tale andhera waali baat yaad ayi. Ek din main hospital ke liye nikli to achanak mujhe ek jaana –pahchana chehra hospital ke samne ke bageeche me kaam karta hua najar ayaa. Mere samne uski peeth thi. Wo podhon par jhuka hua unki cutting kar raha tha. Peechhe se wo mujhe kafi jana pahchana lag raha tha.

" Suno maali." Uske ghoomte hi main dhak se rah gayee, "t…tuuum?" samne Raj sharma khada tha. Mera pyaar, mera Raaj. Main ektak use dekh rahi thi. Munh se koi bol nahi nikale. Mere badan aur mere dimag ne kuch chhano ke liye kaam karma band kar diya.

"Raaaaaaaa……..madam" Raj sharma ne mujhe jais sote se jagaya." Main yahaan maali ka kam karta hoon. Aap apne aap ko samhaliye nahinto koi bhi aadmi iska galat matlab nikal sakta hai. Aaap yaha doctor hain aur main ek
mamooli sa mali…"

Mujhe apni galti kaa ahsaas hua. "Tum mujhe aaj shaam chhe baje mere ghar par milna. Bahut jaroori kaam hai… Aoge na?" maine usse kaha magar uske munh se koi baat nikalti na dekh kar maine dheere se kaha,"Tumhe meri kasam." kahkar main apne aap ko samhaalti hui teji se hospital me chali gayi.

Mujhe maaloom tha ki agar maine mud kar dekh liya to main apne jajbaaton par kaboo nahi rakh sakoongi. Hospital me man nahin laga to tabiyat khadab hone ka bahana bana kar main bhag nikli. Aaj kisi kaam me man nahi lag raha tha. Shaam ko Raj sharma aane waala tha mujhse milne. Uski taiyaari bhi karni thi. Wapsi me mujhe Raj sharma kahin nahin dikha. Main us garden ke do teen chakkar kate magar kahin bhi nahi tha wo.

Main Bazar jaa kar kuch saman khareed layi. Saman me kuch Rajnigandha ke sticks, ek jheena Reshmi gown tha. Raat ka dinner aur teen bottle beer tha. Ek ladaki ke liye beer khareedna kitna mushkil kaam hai aaj mujhe pata laga tha.

Baari mushkil se kisi ko paise dekar maine teen bottle beer mangaya. Aaj main uski poori tarah se swagat karna chahti thi. Sham chaar baaje se hi main apne mahbbob ke liye taiyaar hokar baith gayi. Haalka makeup karke perfume lagaya. Fir transparent bra aur panty ke upar naya reshmi gown pahan liya. Gulabi jheene gown ko pahanna aur nahi pahanna barabar tha. Bahar se mere gulabi badan ek ek royan dikh raha tha. Maine bistar par saafed reshmi chaddar bichha diya. Room spray ko chaaron or spray kaar diya tha jisse ek rahashyamay vatavaran taiyaar ho. Kuch rajnigandha ke sticks ek flower verse me bed ke sirhane par raakh diya.

6 baje tak to main betaab ho uthi. Bar bar ghadi ko dekhti hui chahal kadmi kar rahi thi. 6.10 par door bell baja. Main doud kar darwaaje par gaayi. Peep hole se dekhkar hi darwaja kholna chahti thi. Kyonki koi aur hua to mujhe is roop me dekhkar pata nahin kya soche. Use dekh kar main do seconds ruk kar apni tej saanson ko control kiya aur darwaja kholka use andar khinch liya. Darwaaza band karke main usse buri tarah se lipat gayi. Kiss kar karke poora munh bhar diya.

" Kahan chale gaye the? Meri ek baar bhi yaad nahin ayi?" maine usse shikayat ki.

" Main yaheen tha magar main jaan boojh kar hi aapse milna nahi chahta tha. Kahan aap aur kahan main. Chaand aur siyaar ki jodi achchi nahin lagti" maine uske munh par haath rakh diya.

" kahbardaar jo mujh se door jane ka bhi socha. Aagar jaana hi tha to aye kyun? Meri jindagi me hulchal paaida karke bhagne ki soch rahe the. Wo sab jo humare beech us cabin me hua wo sab khel tha. Timepass?" Maine kaha.

"are nahi aap muje galat samajh rahi hain….."

" Aur mujhe ye aap aap karna chodo. Tumhaaare munh se tum aur tu achcha lagegaa."

" liken meri baat to suniye...... suno ..."

" baith jaao" kahkar maine use dhakka dekar sofe par bitha diya. Maine man hi man decide kar liya tha ki itna sab hone ke baad aab main Raj sharma se koi sharam nahin karoongi aur nirlajj hokar apni baat manwa loongi. Hum itne age badh chuke the ki sharm ki deewar kheenchna ab vyarth tha.

Main uthi aur fridge se beer ki bottle nikaal kar uska cork khola. Ek kaanch ke glass me udhel kar uske paas aayi. Glass me ufanta hua jhaag mere jajbaaton ko darsha raha tha. Main us se sat kar baaith gayee aur glass ko uske honthon ke paas le gayee. Jaise hi usne glaas se apne honth lagan eke liye apne honth badhaaye maine jhat se glass ko peechhe karke apne honth age kar diye. Raj sharma muskurata hua apne honth mere honthon par rakh diya.

Maine uske honthon se glass laga diya. Usne meri or dekhte hue meri haathon se ek ghoont piya. Us ek ghoont me hi poora glass khali kar diya.

"haan to ab batao ki dono me se kaun jyada nasheela hai. Main ya ye……" kahkar maine uttejak tareeke se apne balon ko peechhe karke kamar par haath rakh kar apni tangon ko kuch faila kar khadi ho gayee. usne
hath badha kar meri banh pakad kae mujhe apne god me kheench liya. Hum dono ke honth mile aur maine apni jeebh uske munh me daal di. Main uske poore munh ke andar apni jeebh firane lagi. Kafi der baad jub
hum alag huye to glass ko uske haathon me pakda kar main khaadi hogayi.

" Tumhe mere ye bahut achche lagte the na? " maine apne breasts ki taraf ishara karte huye uske honthon ke bilkul paas aakar poochha. Usne sweekriti me apne sir ko hilaya.

" khol kar nahin dekhna chahoge?" isse pahle ki wo kuch kahe maine khade hokar ek jhatke me gown kid or ko kheench kar use khol diya. Gown samne ki taraf se poora khul chuka tha. Mera gulaabi badan sirf do chote kapdon se Dhaka hua tha.

Maine apne gown ko shareer se alag kar diya. Wo ektak mere lagbhag nagn badan ko nihaar raha tha.. Main uski or jhukte huye apne bra ke ek strap ko kheench kar choda. Strap wapas apni jagah par a gaya magar samnewale ke dil me ek tees sa chod gaya. Uski jubaan to lagata tha sithil si ho gayee thi. Mujhse shayad itne bold harkat ki uski ummeed nahi thi use. Wo bus ek tak mere badan ke ek ek inch ko nihaar raha tha. Aaj pahli baar mujhme bhi kamuk lahre ufan rahi thi. Aaj tak sard si jindagi bitani ke baad aaj poora badan garmi se jhulas raha tha.
KRAMASHASH...........................

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