Tuesday, January 21, 2014

raj sharma stories राधा का राज--4

FUN-MAZA-MASTI

 raj sharma stories

राधा का राज --4
गतान्क से आगे....................
रचना को शादी के साल भर बाद ही मयके जाना पड़ गया क्योंकि वो प्रेग्नेंट थी. अब अरुण कम ही आता था. आकर भी उसी दिन ही वापस लौट जाता था. अचानक एक दिन दोपहर को पहुँच गया. उसके पास एक सूमो थी जो इस तरह के जंगल और उबड़खाबाड़ सड़को के लिए एक वरदान है.उसके साथ मे एक और उसका साथी था जिसका नाम उसने मुकुल बताया. उनका कोई आदमी पेड से गिर पड़ा था. बक्कबोन मे इंजुरी थी. उस जॉगल से हॉस्पिटल का रास्ता खराब था इसलिए उसे लेकर नहीं आपाये.

उन्हों ने मुझसे हेल्प माँगी. मेरे पास उनके साथ जाने के अलावा कोई चारा भी नही था. हालत काफ़ी नाज़ुक थी इसलिए वो मुझे साथ ले जाने के लिए ही आए थे. मैने झटपट हॉस्पिटल मे इनफॉर्म किया और राज को बता कर अपना समान ले कर निकल गयी. निकलते निकलते दो बज गये थे. 80 किमी का फासला कवर करते करते हमे ढाई घंटे लग गये. रास्ता काफ़ी खराब था. बरसात के दिनो मे वैसे ही असम जैसी जगह बरसात की अधिकता से रास्तों की हालत बुरी हो जाती है.

हम तीनो सूमो मे आगे की सीट पर बैठे थे. दोनो के बीच मे मैं फँसी हुई थी. रास्ता बहुत उबर खाबड़ था. हिचकोले लग रहे थे. हम एक दूसरे से भिड़ रहे थे. मैं बीच मे बैठी थी इसलिए कभी अरुण के उपर गिरती तो कभी मुकुल के ऊपर. मौका देख कर अरुण बीच बीच मे मेरे एक स्तन को कोहनी से दाब देता. कभी जांघों पर हाथ रख देता था. मुझे तब लगा कि मैने सामने बैठ कर ग़लती की थी. एक बार तो मेरी दोनो जांघों के बीच भींच अपना हाथ रख कर मसल दिया. मैने शर्म से उनके हाथ को वहाँ से हटाने के अलावा कोई हरकत नही की. मुकुल हम दोनो के बीच इस तरह के खेल को गोर से देख रहा था. मैने महसूस किया कि वो भी मुझ से सॅट गया है और दोनो ने मुझे सॅंडविच की तरह अपने बीच जाकड़ रखा है.

हम शाम तक वहाँ पहुँच गये. मरीज को चेक अप करने मे शाम के सिक्स ओ'क्लॉक हो गये. वहाँ मौजूद लकड़ी और खपच्चियों से उसके ट्रॅक्षन का इंतज़ाम किया था. कुछ सेडेटिव्स और पेन किलर्स देकर उनको बताया कि उसे बिल्कुल भी हिलने ना दें. जख्म गहरा नही है. बस लिगमेट मे कुछ टूटफूट थी जो कुछ दिन के रेस्ट से ठीक हो जाएगा.

यहाँ शाम कुछ जल्दी हो जाती है. नवेंबर का महीना था मौसम बहुत रोमॅंटिक था. मगर धीरे धीरे बदल घिरने लगे थे मैं जल्दी अपना काम निपटा कर रात तक घर लौट जाना चाहती थी. "इतनी जल्दी क्या है? आज रात यहीं रुक जाओ मेरे झोपडे मे." अरुण ने कहा,"घबराओ मत राज की याद नही आने दूँगा." मगर मेरे गुस्से मे भर कर देखने पर वो चुप हो गया.

"जीजू अपने गंदे विचारों को समहालो. रचना ने तुम्हे इस तरह बातें करते सुना तो सिर पर एक भी बाल नही छोड़ेगी. चलो मुझे घर छोड़ आओ."मैने कहा

"चल रे मुकुल, मेडम को घर छोड़ आएँ. मेडम इस जंगल मे रहने को तैयार नहीं हैं."

हम वापस सूमो मे वैसे ही बैठ गये जिस तरह पहले बैठे थे. मैं दोनो के बीच फँसी हुई थी. मैं पीछे बैठने लगी थी कि अरुण ने रोक दिया.

"कहाँ पीछे बैठ रही हो. सामने आ जाओ. बातें करते हुए रास्ता गुजर जाएगा. और कोई हसीन साथी हो तो सफ़र का पता ही नही चलता है"

"लेकिन तुम अपनी हरकतों पर काबू रखोगे वरना मैं रचना से बोल दूँगी." मैने उसे चेताया.

"अरे उस हिट्लर को कुछ उल्टा सीधा मत बताना नहीं तो वो मेरी अच्छी ख़ासी रॅगिंग ले लेगी."

मैं उसकी बात सुन कर हँसने लगी. और सूमो मे चढ़ कर उनके बगल मे बैठ गयी. वो जान बूझ कर मेरी तरफ खिसक कर बैठा था जिससे मुझे बैठने के लिए जगह कम मिले और मजबूरन उनसे सॅट कर बैठना पड़े. उसने अपना हाथ उठा कर मेरे कंधे पर रख दिया. मैं उसकी चिकनी चुपड़ी बातों से फँस गयी. हमारी रिटर्न जर्नी शुरू हो गयी.

अचानक मूसलाधार बेरिश शुरू हो गयी. जंगल के अंधेरे रस्तो मे ऐसी बरसात मे गाड़ी चलाना भी एक मुश्किल काम था. चारों ओर सुनसान था सिर्फ़ हवा की साआ साअ और जानवरों की आवाज़ों के अलावा
कही कोई आवाज़ नही थी.

अचानक गाड़ी जंगल के बीच मे झटके खाकर रुक गयी. अरुण टॉर्च लेकर नीचे उतरा. उसने बुनट उठा कर कुछ देर गाड़ी चेक किया मगर कोई खराबी पकड़ मे नहीं आई. कुछ देर बाद वापस आ गया.वो पूरी तरह भीग चुका था. उसने अपने गीले शर्ट को उतार कर पीछे फेंक दिया और हतासा मे हाथ हिलाए.

"कुछ नहीं हो सकता." उसने कहा"चलो नीचे उतर कर धक्का लगाओ. हो सकता है कि गाड़ी चल जाए."

"मगर….बरसात… "मैं बाहर देख कर कुछ हिचकिचाई.

"नहीं तो जब तक बरसात ना रुके तब तक इंतेज़ार करो"उसने कहा"अब इस बरसात का भी क्या भरोसा. हो सकता है सारी रात बरसता रहे. इसीलिए ही तो तुम्हें रात को वहाँ रुकने को कहा था."

मैं नीचे उतर गयी. बरसात की परवाह ना कर मैं और मुकुल दोनो काफ़ी देर तक धक्के मारते रहे मगर गाड़ी नहीं चली. हम थक कर वापस आ गये. रात के आठ बज रहे थे. मैं पूरी तरह गीली हो गयी थी. मैं वापस आकर पीछे की सीट पर बैठ गयी. अरुण ने अंदर की लाइट ऑन की. फिर पीछे की सीट के नीचे से एक एमर्जेन्सी लाइट निकाल कर जलाया. गाड़ी के अंदर काफ़ी रोशनी हो गयी.

"अब?..."मैने रुआंसी नज़रों से अरुण की तरफ देखा.

अरुण बॅक मिरर से मेरे बदन का अवलोकन कर रहा था. चुचियों से सारी सरक गयी थी. सफेद ब्लाउस और ब्रा बरसात मे भीग कर पारदर्शी हो गये थे. ब्लाउस के उपर से मेरे निपल्स दो काले धब्बों के रूप मे नज़र आ रहे थे. उपर से सारी का आँचल हट जाने से निपल्स सॉफ सॉफ नज़र आरहे थे. मैने उसकी नज़रों का पीछा किया और अपनी अर्धनग्न छाती को घूरता पकड़ जल्दी से अपनी चुचियों को सारी से छिपा लिया. उसने भी लाइट बंद कर दी. अंदर का महॉल कुछ गर्म होने लगा था. अरुण बार बार अपनी सीट पर कसमसा रहा था. उसकी हालत देख कर पता चल रहा था कि इस वीरान जगह और इतने सेक्सी मौसम मे उसकी नीयत डोलने लगी थी.

"अब यहीं रुकना पड़ेगा रात भर. या अगर कोई और वाहन इस रास्ते से जाता हुआ मिल जाए वैसे उम्मीद कम है. क्योंकि इस रास्ते पर दिन मे ही कभी इक्का दुक्का गाड़ी गुजरती है."

मैं चुपचाप बैठी रही. रात अंधेरे मे दो गैर मर्दों का साथ…… दिल को डूबने के लिए काफ़ी था.

कुछ देर बाद बरसात बंद हो गयी मगर ठंडी हवा चलने लगी. बाहर कभी कभी जानवरों की आवाज़ सुनाई दे रही थी. बरसात रुकने के बाद अरुण और मुकुल जीप की हेडलाइट्स ओन करके गाड़ी से निकल गये. उन्हों ने अपने अपने वस्त्र उतार लिए और निचोड़ कर सूखने रख दिए. दोनो सिर्फ़ अंडरवेर मे थे. हेड लाइट्स की रोशनी मे दोनो की मोटे मोटे लंड गीले अंडरवेर के अंदर से ही सॉफ नज़र आ रहे थे. अरुण का लंड तो खड़ा हो गया था. उसका मुँह आसमान की ओर थॉ ऑर उसका अंडरवेर फाड़ कर बाहर निकलने के लिए च्चटपटा रहा था. मुझे उन दोनो के विशाल अस्त्र देख कर झुरजुरी सी लगने लगी.

मैं ठंड से काँप रही थी. शरम की वजह से गीले कपड़े भी उतार नहीं पा रही थी.अरुण मेरे पास आया "देखो राधा घुप अंधेरा है. तुम अपने गीले वस्त्र उतार दो." अरुण ने कहा."वरना ठंड लग जाएगी. हम बाहर बैठे रहेंगे तुम्हे घबराने की कोई ज़रूरत नही है."

मैं कुछ देर तो असमंजस मे चुप रही फिर दिल को सख़्त करके मैने उसकी बात को मानना ही उचित समझा.

"कुछ है पहन ने को?" मैने पूछा, "कुछ तो पहनने को दो..". मैं उससे कहते हुए शरम से दोहरी हो गयी.

"नहीं!" अरुण ने कहा "हमारे पहने कपड़े भी तो भीग चुके हैं. पहले से थोड़े ही मालूम था कि इस तरह हमे रात जंगल मे गुजारनी पड़ेगी. और उपर से कपड़े भी गीले हो जाएँगे. वैसे यहाँ काफ़ी रीच्छ और भालू मिलते हैं. रीच्छ बहुत सेक्सी जानवर होते हैं. सनडर सेक्सी महिलाओं को देख कर उनपर टूट पड़ते हैं और जम कर उनके साथ संभोग करते है."

"मेरी तो यहाँ जान जा रही है और तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है. यहाँ खड़े खड़े मुझे सताना छोड़ कर कुछ इंतज़ाम तो करो."मैने पूछा, "कुछ तो देखो नही तो मैं ठंड से मर जाउन्गि" मेरे दाँत बज रहे थे.

"पिक्निक पे गये थे क्या. जो कपड़े बिस्तर सब लेकर चलते." अरुण मज़ाक कर रहा था और बार बार गाड़ी के अंदर जल रही हल्की रोशनी मे मेरे मादक बदन को निहार रहा था. गीले वस्त्रों मे अपने कामुक बदन की नुमाइश करने से बचने की मैं भरसक कोशिश कर रही थी. लेकिन एक अंग च्चिपाती तो दूसरा अंग बेपर्दा हो जाता.

"सर, एक पुरानी फटी हुई चदडार है पीछे. अगर उस से काम चल जाए.." मुकुल ने कहा."दिखा डॉक्टरणी को." अरुण ने कहा. मुकुल ने पीछे से एक फटी पुरानी चादर निकाली और मुझे दी. चादर से धूल की महक आ र्है थी लेकिन मुझे इस वक़्त तो वो डूबते को तिनके का सहारा लग रहा था.

"चलो तुम अपने कपड़े उतार कर इसे ओढ़ लो. हम बाहर जाते हैं." कह कर अरुण और मुकुल गाड़ी से बाहर निकल गये. गाड़ी का दरवाज़ा बंद करते ही लाइट बंद हो गयी. दो मर्दों के सामने वस्त्र उतरने के ख़याल से ही शर्म अराही थी. मगर करने को कुछ नहीं था ठंड के मारे दाँत बज रहे तेओर बदन के सारे रोएँ ठंड के मारे एक दम काँटों की तरह तन गये थे.

ऐसा लग रहा था मैं बर्फ की सिल्लिओ से घिरी हुई बैठी हूँ. मैने झिझकते हुए सबसे पहले अपनी सारी को बदन से उतार दी. मगर उस से भी कोई राहत नहीं मिली तो मैंन ईक बार चारों ओर देखा. अंधेरा घना था कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. मैने अपने बाकी वस्त्र भी उतार देने का मन बनाया.


मैने एक एक कर के ब्लाउस के सारे बटन खोल दिए. ब्लाउस को बदन से अलग करने से पहले मैने वापस चारों ओर नज़र दौड़ाई. कुछ भी नहीं दिख रहा था फिर मैने ब्लाउस को बदन से उतार दिया. उसके बाद मैने अपने पेटिकोट को भी उतार दिया. मैं अब सिर्फ़ ब्रा और पॅंटी मे थी. मैने उस अवस्था मे ही चादर को अपने बदन पर लपेट लिया. लेकिन कुछ ही देर मे गीली ब्रा और पॅंटी मेरे बदन को ठंडा करने लगे तो मैने उन्हे भी उतार देने का इरादा किया. मैने अपने हाथ पीछे ले जाकर अपने ब्रा को भी बदन से अलग कर दिया. और उस चादर से वापस बदन पर लपेट लिया. पॅंटी को बदन पर ही रहने दिया. गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर मैने उन्हे निचोड़ कर सुखाने का सोचा मगर दरवाज़ा खोलते ही बत्ती जल गयी. मेरे बदन पर केवल एक जगह जगह से फटी हुई चादर के अलावा एक तीन अंगुल की छोटी सी पॅंटी थी. उन फटे हिस्सों से आधा बदन सॉफ नज़र अरहा था. मेरा राइट स्तन पर से चादर हटा हुआ था. मैने देखा अरुण भोचक्का सा एकटक मेरी नग्न छाती को घूर रहा है. मैने झट चादर को ठीक किया.

चादर कई जगह से फटी हुई थी इसलिए एक अंग धकति तो दोसरा बाहर निकल आता. इस कोशिश मे कई बार मैं टॉपलेस भी हो गयी. दोनो मेरे निवस्त्र योवन को निहार रहे थे. आख़िर मैने हारकर दरवाजा वापस बंद कर लिया. गाड़ी के अंदर की बत्ती बंद हो गयी तो कुछ राहत आई.

"अरुण प्लीज़ मेरे कपड़ों को सूखने देदो." मैने खिड़की खोल कर अपने गीले कपड़े बाहर निकाले और कहा. अरुण ने मेरे हाथों से कपड़े ले लिए और उन्हे निचोड़ कर एक पत्थर के उपर सूखने को डालने लगा. वो कपड़ों से धीरे धीरे इस तरह खेल रहा था मानो वो कपड़ों को नही मेरे बदन को ही मसल रहा हो. सारी, पेटिकोट और ब्लाउस फैला देने के बाद हाथ मे अब सिर्फ़ मेरी ब्रा बची थी. उसे हाथ मे लेकर एक बार गाड़ी की तरफ देखा. चारों ओर अंधेरा देख कर उसने सोचा की उसकी हरकतें मुझे नही दिख रही होंगी लेकिन हल्की हल्की रोशनी उसके हरकतों को समझने के लिए काफ़ी थी. मैने देखा की उसने ब्रा को अपनी नाक पर लगा कर कुछ देर तक लंबी लंबी साँसें लेकर मेरे बदन की खुश्बू को अपने दिल मे समा लेने की कोशिश की. फिर उसने मेरे ब्रा के दोनो कप्स को अपने होंठों से लगा कर पहले तो चूमा फिर अपनी जीभ निकाल कर उन पर फिराई. शर्म से मेरा चेहरा लाल हो गया होगा क्यों कि मुझे इतनी बेशर्मी कभी नही झेलनी पड़ी थी. फिर उसने उस ब्रा को भी सूखने डाल दिया.

मेरे बदन पर अब केवल गीली पॅंटी थी जिसको की मैं अलग नहीं करना चाहती थी. ठंड अब भी लग रही थी मगर क्या किया जा सकता था.

कुछ देर बाद दोनो भी ठंड से बचने के लिए गाड़ी मे आ गये. जैसा की मैने पहले ही कहा कि दोनो के बदन पर भी बस एक एक पॅंटी थी. उनके निवस्त्र बदन को मैने भी गहरी नज़रों से देखने लगी.

"यार, मुकुल ठंड से तो रात भर मे बर्फ की तरह जम जाएँगे. कॅबिनेट मे रम की एक बॉटल रखी है उसको निकाल." अरुण ने कहा.मुकुल ने कॅबिनेट से एक बॉटल निकाली. लाइट जला कर मुकुल डॅश बोर्ड के अंदर कुछ ढूँढने लगा.

"सर, ग्लास नहीं है." उसने कहा.

"कोई बात नही." अरुण ने रोशनी मे बॉटल को उँचा किया आधी बॉटल भरी हुई थी. उसने अपने पैरों के पास से एक पानी की बॉटल निकाल कर रम की बॉटल को पूरा भर लिया. अरुण ने बॉटल लेकर मुँह से लगाया और दो घूँट लेकर मुकुल की तरफ बढ़ाया.

"एम्म अब मज़ा आया.."

मुकुल ने भी एक घूँट लिया. और वापस बॉटल अरुण को देदी.

" राधा तू भी दो घूँट लेले सारी सर्दी निकल जाएगी." अरुण ने कहा.

" अरूण पागल तो नही हो गये. तुमको मालूम है मैं दारू नहीं पीती" मैने मना कर दिया. मगर कुछ ही देर में मुझे अपने फ़ैसले पर गुस्सा आने लगा. लेकिन उस वक़्त दो आदमख़ोरों के बीच मे मैं इस तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. कहीं ऐसा ना हो कि मेरा

अपने उपर से कंट्रोल हट जाए. मगर ठंडक ने मेरी मति मार दी. मैं दोनो को पीते हुए देख रही थी. और ठंड से सिकुड़ी हुई बैठी काँप रही थी.

उन्होंने फिर मुझ से पूछा. इस बार मेरे ना मे दम नहीं था. अरुण ने बॉटल मुझे पकड़ा दी.

"अरे ले यार कोई पाप नहीं लगेगा. एक डॉक्टर के मुँह से इस तरह की दकियानूसी बातें सही नहीं लगती." अरुण ने कहा.

क्रमशः........................
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gataank se aage....................
Rachna ko shaadi ke saal bhar baad hi mainke jaana pad gaya kyonki wo pregnant thi. Ab Arun kam hi aata tha. Akar bhi usi din hi wapas laut jata tha. Achanak ek din dopahar ko pahunch gaya. Uske paas ek Sumo thi jo is tarah ke jungle aur ubadkhabad ke liye ek wadan hai.Uske saath me ek aur uska saathi tha jiska naam usne mukul bataya. Unka koi aadmi pedh se gir pada tha. Backbone me injury thi. Us jaungle se hospital ka rasta khadab tha isliye use lekar nahin aapaaye.

Unhon ne mujhse help mangi. Mere paas unke saath jane ke alawa koi chara bhi nahi tha. Halat kafi najuk thi isliye wo mujhe saath le jane ke liye hi aye the. Maine jhatpat hospital me inform kiya aur Raaj ko bata kar apna saman le kar nikal gayi. Nikalte nikalte do baj gaye the. 80 kms ka fasla cover karte karte hume dhai ghante lag gaye. Rasta kafi khadab tha. Barsaat ke dino me waise hi Assam jaisi jagah barsat ki adhikta se raaston ki halat buri ho jati hai.

Hum teeno sumo me age ki seat par baithe the. Dono ke beech me main fansi hui thi. Rasta bahut ubar khabar tha. Hichkole lag rahe the. Hum ek doosre se bhid rahe the. Main beech me baithee thi islye kabhi Arun ke upar girti to kabhi Mukul ke oopar. Mauka dekh kar Arun beech beech me mere ek stan ko kohni se daab deta. Kabhi janghon par haath rakh deta tha. Mujhe tab laga ki maine samne baith kar galti ki thi. Ek baar to meri dono janghon ke beech bheench apna hath rakh kar masal diya. Maine sharm se unke hath ko wahan se hatane ke alawa koi harkat nahi ki. Mukul hum dono ke beech is tarah ke khel ko gor se dekh raha tha. Maine mahsoos kiya ki wo bhi mujh se sta gaya hai aur don one mujhe sandwich ki tarah apne beech jakad rakha hai.

Hum shaam tak wahan pahunch gaye. Mareej ko check up karne me shaam ke six o'clock ho gaye. Wahan maujood lakdi aur khapachchiyon se uske traction ka intezaam kiya tha. Kuch sedatives aur pain killers dekar unko bataya ki use bikul bji hilne na den. Jakhm gahra nahi hai. Bas ligamet me kuch tootfoot thi jo kuch din ke rest se theek ho jayega.

Yahan sham kuch jaldi ho jati hai. November ka maheena tha mausam bahut romantic tha. Magar dheere dheere badal ghirne lage the main jaldi apna kaam nipta kar raat tak ghar laut jana chahti thi. "itni jaldi kya hai? Aaj raat yahin ruk jao mere jhopde me." Arun ne kaha,"ghabrao mat Raaj ki yaad nahi ane doonga." magar mere gusse me bhar kar dekhne par wo chup ho gaya.

"Jiju apne gande vicharon ko samhalo. Rachna ne tumhe is tarah baaten karte suna to sir par ek bhi baal nahi chodegi. chalo mujhe ghar chod aao."maine kaha

"chal re Mukul, madam ko ghar chod ayen. Madam is jungle me rahne ko taiyaar nahin hain."

Hum wapas sumo me waise hi baith gaye jis tarah pahle bathe the. Main dono ke beech fansi hui thi. Main peechhe baithne lagi thi ki Arun ne rok diya.

"kahan peechhe baith rahi ho. Samne a chalo. Baten karte huye rasta gujar jayega. Aur koi haseen saathi ho to safar ka pata hi nahi chalta hai"

"lekin tum apni harkaton par kaboo rakhoge warna main Rachna se bol doongi." Mine use chetaya.

"Are us Hitler ko kuch ulta seedha mat batana nahin to wo meri achchi khasi ragging le legi."

Main uski baat sun kar hansne lagi. Aur Sumo me chadh kar unke bagal me baith gayee. wo jaan boojh kar meri taraf khisak kar baitha tha jisse mujhe baithne ke liye jagah kam mile aur majbooran unse sat kar baithna pare. Usne apna hath utha kar mere kandhe par rakh diya. main uski chikni chupdi baton se phans gayee. Humari return jeorney shuru ho gayi.

Achanak moosladhaar bearish shuru ho gayi. Jungle ke andhere rashton me aisi barsaat me gadi chalana bhi ek mushkil kaam tha. Charon or sunsaan tha sirf hawa ki saaaay saaay aur janwaron ki awajon ke alawa
kahi koi awaj nahi thi.

Achcnak gadi jungle ke beech me jhatke khakar ruk gayee. Arun torch lekar neeche utra. Usne bonut utha kar kuch der gadi check kiya magar koi khadabi pakad me nahin ayee. Kuch der baad wapas a gaya.wo poori trah bheeg chuka tha. Usne apne geele shirt ko utar kar peechhe fenk diya aur hatasa me hath nhilaye.

"kuch nahin ho sakta." Usne kaha"chalo neeche utar kar dhakka lagao. Ho sakta hai ki gadi chal jaye."

"magar….barsaat… "main bahar dekh kar kuch hichkichai.

"nahin to jab tak barsaat na ruke tab tak intezar karo"usne kaha"ab is barsaat ka bhi kya bharosa. Ho sakta hai saari raat barasta rahe. Isiliye hi to tumhhen raat ko wahan rukne ko kaha tha."

Main neeche utar gayee. Barsaat ki parwah na kar main aur Mukul dono kafi der tak dhakke marte rahe magar gadi nahin chali. Hum thak kar wapas a gaye. Raat ke aath baj rahe the. Main poori tarah geeli ho gayee thi. Main wapas akar peechhe ki seat par baith gayi. Arun ne andar ki light on ki. Fir peeche ki seat ke neeche se ek emergency light nikal kar jalaya. Gadi ke andar kafi roshni ho gayee.

"ab?..."Maine ruansee nazaron se Arun ki taraf dekha.

Arun back mirror se mere badan ka avlokan kar raha tha. Chuchiyon se sari sarak gayi thi. Safed blouse aur bra barsaat me bheeg kar pardarshi ho gaye the. Blouse ke upar se mere nipples do kale dhabbon ke roop me najar a rahe the. Upar se sari ka anchal hat jane se Nipples saaf saaf najar aarahe the. Maine uski najron ka peechha kiya aur apni ardhnagn chhati ko ghoorta pakad jaldi se apni chuchiyon ko sari se chhipa liya. Usne bhi light band kar dee. Andar ka mahol kuch grm hone laga tha. Arun bar bar apni seat par kasmasa raha tha. Uski halat dekh kar pata chal raha tha ki is veeran jagah aur itne sexy mausam me uski neeyat dolne lagi thi.

"aab yahin rukna parega raat bhar. Ya agar koi aur vahan is raste se jata hua mil jaye waise ummid kam hai. Kyonki is raste par din me hi kabhi ikka dukka gadi gujarti hai."

Main chupchaap baithi rahi. Raat andhere me do gair mardon ka sath…… dil ko dubane ke liye kafi tha.

Kuch der baad barsaat band ho gayi magar thandi hawa chalne lagi. Bahar kabhi kabhi janwaron ki awaj sunai de rahi thi. Barsaat rukne ke baad Arun aur Mukul jeep ki headlights on karke gadi se nikal gaye. Unhon ne apne apne wastra utar liye aur nichod kar sookhne rakh diye. Dono sirf underwear me the. Head lights ki roshni me dono ki mote mote lund geele underwear ke andar se hi saaf najar a rahe the. Arun ka lund to khada ho gaya tha. Uska munh asman ki or thaw o uska underwear faad kar bahar nikal an eke liye chhatpata raha tha. Mujhe un dono ki vishaal astr dekh kar jhurjhuri si lagne lagi.

Main thand se kaanp rahi thi. Sharam ki wajah se geele kapde bhi utar nahin paa rahi thi.Arun mere pass aya "dekho Raadha ghup andhera hai. Tum apne geele vastra utar do." Arun ne kaha."warna thand lag jayegi. Hum bahar baithe rahenge tumhe ghabrane ki koi jaroorat nahi hai."

Main kuch der to asmanjas me chup rahi fir dil ko sakht karke maine uski baat ko manna hi uchit samjha.

"kuch hai pahan ne ko?" maine poochha, "Kuch to pahanne ko do..". main usse kahte huye sharam se dohri ho gayi.

"Nahin!" Arun ne kaha "humare pahne kapde bhi to bhig chuke hain. Pahle se thode hi maloom tha ki is tarah hume raat jungle me gujaarni paregi. Aur upar se kapde bhi geele ho jayenge. Waise yahan kafi Reechh aur bhaloo milte hain. reechh bahut sexy janwar hote hain. Sunder sexy mahilaon ko dekh kar unpar toot parte hain aur jam kar unke saath sambhog karte hai."

"meri to yahan jaan ja rahi hai aur tumhe majak soojh raha hai. Yahan khade khade mujhe satana chod kar kuch intezaam to karo."maine poochha, "kuch to dekho nahi to main thand se mar jaungi" mere daant baj rahe the.

"picnic pe gaye the kya. Jo kapd bistar sab lekar chalet." Arun majak kar raha tha aur baar baar gadi ke andar jal rahi halki roshni me mere madak badan ko nihar raha tha. Geele wastron me apne kamuk badan ki numainsh karne se bachne ki main bharsak koshish kar rahi thi. Lekin ek ang chhipati to doosra ang beparda ho jata.

"Sir, ek purani phati hui chaddar hai peechhe. Agar us se kaam chal jaye.." Mukul ne kaha."dikha Doctrni ko." Arun ne kaha. Mukul ne peechhe se ek phati purani chadar nikaali aur mujhe dee. Chadar se dhool ki mahak a rhai thi lekin mujhe is waqt to wo doobte ko tinke ka sahara lag raha tha.

"chalo tum apne kapde utar kar ise odh lo. Hum bahar jate hain." Kah kar Arun aur Mukul gadi se bahar nikal gaye. Gadi ka darwaza band karte hi light bund ho gayi. Do mardon ke samne vastra utarne ke khayal se hi sharm arahee thi. Magar karne ko kuch nahin tha thand ke mare dant baj rahe theaur badan ke sare royen thand ke mare ek dum kanton ki tarah tan gaye the.

Aisa lag raha tha main barf ki sillion se ghiri hui baithee hoon. Maine jhijhakte hue sabse pahle apni saari ko badan se utar dee. Magar us se bhi koi rahat nahin mili to mainn eek baar charon or dekha. Andhera Ghana tha kuch bhi dikhai nahin de raha tha. Maine apne baki wastr bhi utar dene ka man banaya.


Maine ek ek kar ke blouse ke saare button khol diye. Blouse ko badan se alag karne se pahle maine wapas chaaron or nazar doudai. Kuch bhi nahin dikh raha tha Phir maine blouse ko badan se utar diya. Uske baad maine apne petticoat ko bhi utar diya. Main aab sirf bra aur panty me thi. Maine us awastha me hi chadar ko apne badan par lapet liya. Lekin kucch hi der me geeli bra aur panty mere badan ko thanda karne lage to maine unhe bhi utaar dene ka irada kiya. Maine apne hath peechhe le jakar apne Bra ko bhi badan se alag kar diya. Aur us chadar se wapas badan par lapet liya. Panty ko badan par hi rahne diya. Gadi ka darwaza khol kar maine unhe nichod kar sukhane ka socha magar darwaza kholte hi batti jal gayi. Mere badan par kewal ek jagah jagah se phati hui chadar ke alawa ek teen angul ki choti si panty thi. Un fate hisson se adha badan saaf najar araha tha. Mera right stan par se chadar hata hua tha. Maine dekha Arun bhochakka sa ektak meri nagn chhati ko ghoor raha hai. Maine jhat chadar ko thik kiya.

Chadar kai jagah se fati hui thi isliye ek ang dhakti to dosra bahar nikal ata. Is koshish me kai baar main topless bhi ho gayee. Dono mere nivastra yovan ko nihar rahe the. Akhir maine harkar darwaja wapas band kar liya. Gadi ke andar ki batti band ho gayi to kuch rahat ayee.

"Arun please mere kapdon ko sukhne dedo." Maine khidki khol kar apne geele kapde bahar nikale aur kaha. Arun ne mere hathon se kapde le liye aur unhe nichod kar ek patthar ke upar sookhne ko dalne laga. Wo kapdon se dheere dheere is tarah khel raha tha mano wo kapdon ko nahi mere badan ko hi masal raha ho. Sari, petticoat aur blouse faila den eke baad hath me ab sirf meri bra bachi thi. Use hath me lekar ek baar gadi ki taraf dekha. Charon or andhera dekh kar usne socha ki uski harkaten mujhe nahi dikh rahi hongi lekin halki halki roshni uske harkton ko samjhane ke liye kafi thi. Maine dekha ki usne bra ko apni naak par laga kar kuch der tak lambi lambi sansen lekar mere badan ki khushboo ko apne dil me sama lene ki koshish ki. Fir usne mere bra ke dono cups ko apne honthon se laga kar pahle to chooma fir apni jeebh nikal kar un par firayee. Sharm se mera chehra laal ho gaya hoga kyon ki mujhe itni besharmi kabhi nahi jhelni padi thi. Fir usne us bra ko bhi sookhne daal di.

Mere badan par ab kewal geeli panti thi jsko ki main alag nahin karna chahti thi. Thand ab bhi lag rahi thi magar kya kiya ja sakta tha.

Kuch der baad dono bhi thand se bachne ke liye gadi me a gaye. Jaisa ki maine pahle hi kaha ki dono ke badan par bhi bas ek ek panty thi. Unke nivastra badan ko maine bhi gahree nazaron se dekhne lagi.

"Yaar, Mukul thand se to raat bhar me barf ki tarah jam jayenge. Cabinate me rum ki ek bottle rakhi hai usko nikaal." Arun ne kaha.Mukul ne cabinate se ek bottle nikaali. Light jala kar Mukul dash board ke andar kuch dhoondhne laga.

"sir, glass nahin hai." Usne kaha.

"koi baat nahi." Arun ne roshni me bottle ko unch kiya adhi bottle bhari hui thi. Usne apne pairon ke paas se ek pani ki bottle nikal kar Rum ki bottle ko poora bhar liyaa. Arun ne bottle lekar munh se lagaya aur do ghoont lekar Mukul ki taraf badhaya.

"mmm ab maja aya.."

Mukul ne bhi ek ghoont liya. Aur wapas bottle Aru ko dedi.

" Neelu tu bhi do ghoont lele sari sardi nikal jayegi." Arun ne kaha.

" Arooon pagal to nahi ho gaye. Tumko maloom hai main daru nahin piti" maine mana kar diya. Magar kuch hi der mein mujhe apne faisle par gussa ane laga. Lekin us waqt do adamkhoron ke beech me main is tarah ka koi risk nahin lena chahati thi. Kahin aisa na ho ki mera

apne upar se control hat jaye. Magar thandak ne meri mati maar dee. Main dono ko peete huye dekh rahi thi. Aur thand se sikudi hui baithi kaanp rahi thi.

Unhonne fir mujh se poochha. Is baar mere na me dum nahin tha. Arun ne bottle mujhe pakda di.

"Are le yaar koi paap nahin lagega. Ek doctor ke munh se is tarah ki dakiyanoosi baten sahi nahin lagti." Arun ne kaha.

KRAMASHASH...........................













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