Tuesday, January 21, 2014

raj sharma stories राधा का राज--5

FUN-MAZA-MASTI



raj sharma stories
राधा का राज--5गतान्क से आगे....................
मैने काँपते हाथों से बॉटल लिया. और मुँह से लगाकर एक घूँट लिया. ऐसा लगा मानो तेज़ाब मेरे मुँह और गले को जलाता हुआ पेट मे जा रहा है. मुझे फॉरन ज़ोर की उबकाई आ गई. मैने बड़ी मुश्किल से मुँह पर हाथ रख कर अपने आप को रोका. पुर मुँह का स्वाद कसैला हो गया था. काफ़ी देर तक मेरा चेहरा विकृत सा रहा कुछ देर बाद जब कुछ नॉर्मल हुई तो अरुण ने वापस बॉटल मेरी ओर किया.

"लो एक और घूँट लो." अरुण ने कहा.

"नहीं, कितनी गंदी चीज़ है तुम लोग पीते कैसे हो." मैने कहा.मगर कुछ देर बाद मैने हाथ बढ़ा कर बॉटल ले ली और एक और घूँट लिया. इस बार उतनी बुरी नहीं लगी.

"बस और नहीं." मैने बॉटल वापस कर दिया. बॉटल को वापस अरुण को लोटा ते वक़्त चादर मेरी एक चूची से हट गया था. मुझे इसका पता ही नही चल पाया. मेरा सर घूम रहा था. सीने मे अजीब सी हुलचल हो रही थी. बदन गरम होने लगा था. ऐसा लग रहा था कि बदन पर ओढ़े उस चादर को उतार फेंकू. अपने आप को बहुत हल्का फूलका महसूस कर रही थी. अपने ऊपर से कंट्रोल ख़तम होने लगा. शरीर काफ़ी गरम हो चला था. नीचे दोनो टाँगों के बीच हल्की सी सुरसुरी महसूस हो रही थी. दिमाग़ चेतावनी दे रहा था मगर शरीर पर से उसका कंट्रोल ख़त्म होता जा रहा था. बाहर हवा की साय साय महॉल को और ज़्यादा मादक बना रही थी.

अरुण ने अंदर की छोटी सी लाइट ओन कर दी थी. वो अपने हाथ मे बॉटल लेकर सामने का दरवाजा खोल कर बाहर निकला और पीछे की सीट पर आ गया.

"तुम्हे तो पसीना आ रहा है. गर्मी कुछ ज़्यादा है." कहते हुए उसने मेरे गले को अपने हाथों से च्छुआ. मैं सिमट ते हुए दूसरी ओर सरक गयी मगर वो मेरी ओर सरक कर वापस मेरे बदन से सॅट गये.

"देखो अरुण ये सब ठीक नहीं है. तुम सामने की सीट पर जाओ." मैने कहा.

" मैं तुम्हारे साथ कोई ज़ोर ज़बरदस्ती तो कर नही रहा हूँ. मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे काँपते हुए बदन को गर्मी देने की कोशिश कर रहा हूँ." उसने वापस अपनी उंगलियों से मेरे होंठ के उपर च्छुआ और आगे कहा," देखो रूम पीने से तुमहरा बदन राहत महसूस कर रहा है. नही तो सुबह तक तो तुम ठंड से अकड़ जाती. लो एक घूँट और ले लो इस बॉटल से. रात अच्छी गुजर जाएगी."

"नहीं मुझे नहीं चाहिए." मैने इसके हाथ को सामने से हटा दिया.

उसने बॉटल से एक घूँट भरा और बॉटल सामने बैठे मुकुल को थमा दी. फिर मेरी ओर घूम कर उन्हों ने अपने बाँह फैला कर मुझे आग्पाश मे लेना चाहा. मैं उनको धक्का देती रह गयी मगर उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे समा लिया. मेरे स्तन गर्मी से तन गये थे वो उसकी छाती मे दब गये. मैं उसको अपने हाथों से धक्का दे कर दूर करने की कोशिश करती रह गयी. लेकिन कुछ तो मेरे कोशिश मे इच्च्छा का अभाव और कुछ उसके बदन मे तीवरा जोश का संचार कि मैं उनको अपने बदन से एक इंच भी नही हिला पाई. उल्टे उनका सीना और सख्ती से मेरे स्तनो को पीसने लगा.

उसके गरम होंठ मेरे होंठों से चिपक गये. मैने अपने सिर को हिलाकर उसके होंठो से दूर होने की कोशिश की.

"म्‍म्म्मम…नहियीई… ..नहियीई… .आआरूओं नही……ये सब न..नाही…" मैने उसके चेहरे को दूर करने की कोशिश की मगर नाकाम होने पर मैने उसके बालो को अपनी मुट्ठी मे भर कर अपने से दूर धकेला. उसके सिर के कुछ बाल टूट कर मेरी मुट्ठी मे रह गये मगर उसका सिर नही हिला. उसने मेरे गले पर अपने तपते होंठ रख दिए. सामने मुकुल रम की बॉटल बार बार अपने होंठों से छुआता हुआ. पीछे की सीट पर
चल रही ज़ोर आज़मैंश को देखते हुए मुस्कुरा रहा था.

मैने उसे धकेलने की कोशिश की मगर वो मेरे बदन से और ज़ोर से चिपक गया. उसने मेरे बदन से लिपटे चादर के अंदर अपने हाथों को डालने की कोशिश की मगर उसके हाथ चादर का छोर ढूँढ नही पा
रहे थे. उसने झुंझला कर चादर के बाहर से ही मेरे स्तनो को पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया. किसी पदाए मर्द की नज़द्दीकियाँ, शराब का सुरूर, रात का अंधेरा और वातावरण की मदहोशी सब मिल कर मेरे
दिमाग़ को शिथिल करते जा रहे थे. धीरे धीरे मैं कमजोर पड़ती जा रही थी. उसने एक झटके मे मेरे बदन से चादर को अलग कर दिया.

"मुकुल ले इसे सम्हाल." अरुण ने चादर आगे की सीट पर उच्छाल दिया जिसे मुकुल ने समहाल लिया. मेरे बदन पर अब सिर्फ़ एक पॅंटी की अलावा कुछ भी नहीं था. मैं अपने हाथो से अपने नग्न बदन को च्चिपाने की कोशिश कर रही थी. मगर बूब्स के साइज़ बड़े होने की वजह से उन्हे सम्हालने मे असमर्थ थी. अरुण ने मेरे नग्न बदन को अपने सीने पर खींच लिया. दोनो के नग्न बदन आपस मे कस कर लिपट गये. मुझे लगा मानो मेरे सीने की सारी हवा निकल गयी हो. मैं कस मसा रही थी. लेकिन अपने खड़े निपल्स को और अपने कड़े बूब्स को उसके चौड़े सीने पर रगड़ने के अलावा कुछ भी नही कर पा रही थी. उसे तो मेरे इस तरह च्चटपटाने मे और भी मज़ा आ रहा था.

मैने अरुण को धकेलते हुए कहा"प्लीज़… . छोड़ो मुझे वरना मैं शोर मचाउन्गि"

मगर मैं उसकी पकड़ से छ्छूट नही पा रही थी," अरुउउऊँ क्या कर रहे हूओ. प्लीईस….प्लीईएसस… ..रचना को पता चल गया तो गजब हो जाएगा…..छोड़… .छोड़ो मुझे…" मैने उँची आवाज़ मे कहना शुरू किया.

"मचाओ शोर. जितना चाहे चीखो यहाँ मीलों तक सिर्फ़ पेड, पत्थर और जानवरों के सिवा तुम्हारी चीख सुनने वाला कोई नहीं है."मुकुल पीछे घूम कर हमारी रासलीला देखने लगा. अरुण के हाथ मेरे बदन पर फिर रहे थे. उसके नग्न बदन से मेरा बदन चिपका हुआ था. मैने काफ़ी बचने की कोशिश की अपनी सहेली की दुहाई भी दी मगर अरुण तो मानो पूरा राक्षश बन चुका था.उस पर मेरा गिड़गिडना, रोना और च्चटपटाना कोई असर नही डाल रहा था.

मेरा विरोध भी धीरे धीरे मंद पड़ता जा रहा था. उसने मेरे उरोज थाम लिए और निपल्स अपने मुँह मे ले कर चूसने लगा. उसने एक हाथ से अपने बदन से आखरी वस्त्र भी उतार दिया और मेरे हाथ को पकड़ कर अपने तपते लंड पर रख दिया. मैने हटाने की कोशिश की मगर उसके हाथ मजबूती से मेरे हाथ को लंड पर थाम रखे थे. मुझे राज शर्मा के अलावा किसी और के लंड को अपने हाथों मे लेकर सहलाना अजीब लग रहा था मगर मेरे शरीर मे अब उसका विरोध करने की ना तो ताक़त और ना ही इच्च्छा बची थी. शराब अपना असर दिखाने लगी. मेरा बदन भी गरम होने लगा. कुछ देर बाद मैने अपने को ढीला छोड़ दिया. मैं समझ गयी कि आज इस वीराने मे दोनो मुझ से संभोग किए बिना मुझे छोड़ेंगे नही. मैं जितना विरोध करती संभोग उतना ही दर्दीला होता और पता नही इस वीरने मे दोनो अपनी हवस मिटाने के बाद अपने पाप च्चिपाने के लिए मुझ पर हमला भी कर सकते थे. मैने अपना विरोध पूरी तरह समाप्त कर दिया.

उसके हाथ मेरे स्तनो को मसल्ने लगे. उसके होंठ मेरे होंठों से चिपके हुए थे और जीभ मेरे मुँह के अंदर घूम रही थी.मुकुल से अब नहीं रहा गया और वो दूसरी साइड का दरवाजा खोल कर मेरे दूसरी तरफ आ गया. उसने पहले सीट के लीवर को खोल कर बॅक रेस्ट को गिरा कर दिया. पीछे की सीट खुल कर एक आरामदेह बिस्तर का रूप ले ली थी. गड़ी के अंदर जगह कम थी मगर इस काम के लिए काफ़ी था.दोनो एक साथ मेरे बदन पर टूट परे. मैं उनके बीच फँसी हुई थी. दोनो ने मेरे एक एक उरोज थाम लिए. उनके साथ दोनो बुरी तरह पेश आरहे थे. मसल मसल कर मेरे दोनो स्तनो को लाल कर दिए थे. कभी चूस रहे थे कभी काट रहे थे तो कभी चाट रहे थे. मेरे दोनो स्तन उनकी हरकतों से दुखने लगे थे.

मेरे दोनो हाथों मे एक एक लंड था. दोनो लुंडों को मैं अपनी मुट्ठी मे भर कर सहला रही थी. मेरी पॅंटी पहले से ही गीली थी वरना मेरे काम रस से गीली हो जाती. मेरी योनि से बुरी तरह काम रस चू रहा था. मेरी योनि मर्द के लंड के लिए तड़प रही थी. मैं उनकी हरकतों से खूब गरम हो चुकी थी.

दोनो अपने एक-एक हाथ से मेरी योनि को पॅंटी के उपर से सहला रहे थे. कभी कभी दोनो के हाथ मेरे नितंबों को मसल्ने लगते. मैं अपनी जांघों को एक दूसरे पर सख्ती से जाकड़ कर उनके काम मे बाधा डालने की कोशिश कर रही थी. मगर दोनो के आगे मेरी एक नही चल रही थी. उल्टे मैं इस तरह से और उत्तेजित हो गयी और एक झटके से मैने अपनी योनि को सीट पर से उठा कर उनके हाथों को और अंदर जाने का मूक आग्रह किया. इसी के साथ मेरे बदन से मेरा सारा विरोध तरल रूप ले कर बह निकला. मेरा स्खलन हो गया था. मैं अपने इस हरकत को उनकी नज़रों से नही छिपा पाई और शर्म से पानी पानी हो गयी थी.

"देख…..देख मुकुल कैसे ना..ना…कर रही थी. अब देख कैसे हमारे लंड लेने के लिए तड़प रही है." मुकुल उसकी बात पर ज़ोर से हंस पड़ा मैं शर्म से सिकुड गयी.दोनो ने मेरी पॅंटी को मेरे बदन से नोच कर अलग कर दिया. उसी के साथ दो जोड़ी उंगलियाँ मेरी योनि मे प्रवेश कर गयी.

"आआहहूऊओह……क्य्ाआअ…..काार रहीए हूऊओ" मेरे मुँह से वासना भारी सिसकारियाँ निकल रही थी.अरुण ने मुझे किसी गुड़िया की तारह उठा कर अपनी गोद मे बिठा लिया. उसने मेरे दोनो पैरों को फैला कर अपने कमर के दोनो ओर रखा. फिर उसने मुझे खींच कर अपने नग्न बदन से चिपका लिया. मेरे बड़े-बड़े उरोज उसके सीने मे पिसे जा रहे थे. वो मेरे होंठों को चूम रहा था. उस वक़्त मुकुल के होंठ मेरी पीठ पर फिसल रहे थे. अपनी जीभ निकाल कर मेरी गर्दन से लेकर मेरे नितंबों तक ऐसे फिरा रहा था मानो बदन पर कोई हल्के से पंख फेर रहा हो. पूरे बदन मे झूर झूरी सी दौड़ रही थी.मैं दोनो की हरकतों से पागल हुई जा रही थी. अरुण का लंड मेरी योनि को उपर से सहला रहा था. मैं खुद उसकी गोद मे आगे पीछे होकर उसके लंड को अपनी योनि से रगड़ रही थी. अब मेरी रही सही झिझक भी ख़त्म हो गयी थी. मैं अपने हाथ से अरुण के लंड के टोपे कोआपनी योनि के द्वार पर सटा कर अंदर डालने की कोशिश करने लगी. लेकिन आंगल कुछ ऐसा था कि वो अंदर नही जा पा रहा था. अरुण और मुकुल मेरी हरकतों पर हंस रहे थे. मुझे ऐसी हालत मे मुझे कोई देखता तो एक वेश्या ही समझता. मेरी डिग्निटी, मेरा रेप्युटेशन,मेरी सिक्षा सब इस आदिम भूख के सामने छोटी पड़ गयी थी. मेरी आँखो मे मेरा प्यार, मेरा हम दम, मेरे पति के चेहरे पर इन दोनो के चेहरे नज़र आ रहे थे. शराब ने मुझे अपने वश मे ले लिया था. सब कुछ घूमता हुआ लग रहा था. मेरा सिर इतनी बुरी तरह घूम रहा था कि मैं इनकी पकड़ मे आराम महसूस कर रही थी. दिमाग़ कह रहा था कि जो हो रहा है वो अच्छा नहीं है मगर मैं किसिको मना करने की स्तिथि मे नहीं थी. मेरा बदन चाह रहा था की दोनो मुझे खूब मसले खूब रब करें खूब रगड़ें. पता नही दोनो ने उस ड्रिंक मे भी कुछ मिला दिया था या नही लेकिन मेरी कामोत्तेजना नॉर्मल से दस गुना बढ़ गयी थी. मैं सेक्स की भूख से तड़प रही थी.

अरुण ने मेरे होंठों को चूस चूस कर सूजा दिया था. फिर उन्हें छोड़ कर मेरे निपल्स पर टूट पड़ा. अपने दोनो हाथों से मेरे एक-एक उरोज को निचोड़ रहा था और निपल्स को मुँह मे डाल कर चूस रहा था. ऐसा लग रहा था मानो बरसों के भूखे के सामने कोई दूध की बॉटल आ गयी हो. दाँतों के निशान पूरे उरोज पर नज़र आ रहे थे. मैं ने अपने हाथों से अरुण का सिर पकड़ रखा था और उसे अपने उरोज पर दबाने लगी.

मुकुल उस वक़्त मेरी गर्दन पर और मेरी नितंबों पर अपने दाँत गढ़ा रहा था. मैं मस्त हुई जा रही थी. फिर मुकुल ने मेरे सिर को पकड़ा और अपने लंड पर झुकने लगा. मैं उसका इरादा समझ कर कुछ देर तक मुँह को इधर उधर घुमाती रही. मगर उसके आगे मेरी एक नही चल पा रही थी. वो मेरे खूबसूरत होंठों पर अपना काला लंड फेरने लगा. मुझे उसके लंड से पेशाब की बदबू आ रही थी जिससे मेरा जी मचलने लगा. लंड के आगे के टोपे की मोटाई देख कर मैं काँप गयी. लंड से चिपचिपा प्रदार्थ निकल कर मेरे होंठों पर लग रहा था. लेकिन मैने अपना मुँह नही खोला. मुकुल ने काफ़ी कोशिश की मेरे मुँह को खोलने की मगर मैने उसकी एक ना चलने दी.

कुछ देर बाद अरुण ने मुझे गोद से उठा कर कोहनी और घुटनों के बल पर चौपाया बनाकर पीछे से मेरी योनि को च्छेदने लगा. योनि की फाँकें अलग कर अपनी उंगलियाँ अंदर बाहर करने लगा. उसने मेरी योनि से अपनी उंगलियाँ निकाल कर एक उंगली को खुद चाता और दूसरी उंगली मुकुल को चाटने दिया.

" ले देख चाट कर अगर इससे अमृत का स्वाद ना आए तो कहना." अरुण ने कहा.

"एम्म्म बॉस मज़ा आ गया… बड़ी नसीली चीज़ है. आज तक इतना मज़ा कभी नही आया."

मुकुल मेरे सिर को वापस अपने लंड पर दबा रहा था. मुझे मुँह नहीं खोलता देख कर मेरे निपल्स को बुरी तरह मसल्ने लगा. मेरे निपल्स इतनी बुरी तरह मसल रहा था और खींच रहा था मानो उसे आज मेरे बदन से ही उखाड़ फेंकने का मन हो. मैं जैसे ही चीखने के लिए मुँह खोली उसका मोटा लंड जीभ को रास्ते से हटाता हुआ गले तक जाकर फँस गया.

मेरा दम घुटने लगा था. मैने सिर को बाहर खींचने के लिए ज़ोर लगाया तो उसने अपने हाथ को कुछ ढीला कर दिया. लंड आधा ही बाहर निकला होगा उसने दोबारा मेरे सिर को दाब दिया. और इस तरह वो मेरे मुँह को किसी योनि की तरह चोदने लगा.

उधर अरुण मेरी योनि मे अपनी जीभ अंदर बाहर कर रहा था. मैं कामोत्तेजना से चीखना चाहती थी मगर गले मे मुकुल का लंड फँसा होने के कारण मेरे मुँह से सिर्फ़ "उूउउन्न्ञणनह उम्म्म फफफफफफफम्‍म्म" जैसी आवाज़ें निकल रही थी. मैं उसी अवस्था मे वापस झार गयी.

काफ़ी देर तक चूसने चाटने के बाद अरुण उठा. उसके मुँह, नाक पर मेरा कामरस लगा हुआ था. उसने अपने लंड को मेरी योनि के द्वार पर सटा दिया. फिर बहुत धीरे धीरे उसे अंदर धकेलने लगा. खंबे के जैसे अपने मोटे ताजे लंड को पूरी तरह मेरी योनि मे समा दिया. योनि पहले से ही गीली हो रही थी इसलिए कोई ज़्यादा दिक्कत नहीं हुई. लेकिन उसका लंड काफ़ी मोटा होने से मुझे हल्की से तकलीफ़ हो रही थी. वो अपने लंड को वापस पूरा बाहर निकाला और फिर एक जोरदार धक्के से पूरा समा दिया. फिर तो उसके धक्के लगातार हो चले.

मुकुल मेरा मुख मैंतुन कर रहा था. दोनो के लंड दोनो तरफ से मेरे बदन मे अंदर बाहर हो रहे थे और मैं जीप मे झूला झूल रही थी. मेरे दोनो उरोज़ पके हुए अनार की तरह झूल रही थे. दोनो ने मसल कर काट कर दोनो स्तनो का रंग भी अनारो की तरह लाल कर दिया था.

कुछ देर बाद मुझे लगने लगा कि अब मुकुल डिसचार्ज होने वाला है. ये देख कर मैने लंड को अपने मुँह से निकाल ने का सोचा. मगर मुकुल ने शायद मेरे मन की बात पढ़ ली. उसने मेरे सिर को प्युरे ताक़त से अपने लंड पर दबा दिया. मूसल जैसा लंड गले के अंदर तक घुस गया. उसका लंड अब झटके मारने लगा. फिर ढेर सारा गरम गरम वीर्य उसके लंड से निकल कर मेरे गले से होता हुआ मेरे पेट मे समाने लगा. मेरी आँखें दर्द से उबली पड़ी थी. दम घुट रहा था. काफ़ी सारा वीर्य पिलाने के बाद लंड को मेरे मुँह से निकाला. उसका लंड अब भी झटके खा रहा था. और बूँद बूँद वीर्य अब भी टपक रहा था. मेरे होंठों से उसके लंड तक वीर्य एक रेशम की डोर की तरह चिपका हुआ था. मैं ज़ोर ज़ोर से साँसें ले रही थी. उसके वीर्य के कुछ थक्के मेरी नाक पर और मेरे बालों पर भी गिरे.

अरुण पीछे से ज़ोर ज़ोर से धक्के दे रहा था. और मैं हर धक्के के साथ मुकुल के ढीले पड़े लंड से भिड़ रही थी. इससे मुकुल का ढीला लंड फिर कुछ हरकत मे आने लगा. मैं सिर को उत्तेजना से झटकने लगी "ऊउीई माआ ऊऊहह हूंंम्प्प" जैसी उत्तेजित आवाज़ें निकालने लगी. मेरी योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया. मगर उसके रफ़्तार मे कोई कमी नहीं आई थी. मेरी बाहें मेरे बदन को और थामे ना रख सकी. और मेरा सिर मुकुल की गोद मे धँस गया. उसके काम रस से लिसडे ढीले पड़े लंड से मेरा गाल रगड़ खा रहा था. काफ़ी देर तक धक्के मारने के बाद उसके लंड ने अपनी धार से मेरी योनि को लबालब भर दिया. जब तक पूरा वीर्य मेरी योनि मे निकल नही गया तब तक अपने लंड को अंदर ही डाले रखा. धीरे धीरे उसका लंड सिकुड कर मेरी योनि से बाहर निकल आया.

हम तीनो गहरी गहरी साँसें ले रहे थे. खेल तो अभी शुरू ही हुआ था. दोनो ने कुछ देर सुसताने के बाद अपनी जगह बदल ली. अरुण ने अपना लंड मेरे मुख मे डाल दिया तो मुकुल मेरी योनि पे चोट करने लगा. दोनो ने करीब दो घंटे तक मेरी इसी तरह से जगह बदल कर चुदाई की. मैं तो दोनो का स्टॅमिना देख कर हैरान थी. दोनो ने कई बार मेरे मुँह मे , मेरी योनि मे और मेरे बदन पर वीर्य की बरसात की. मैं उनके सीने से चिपके साँसे ले रही थी.

"अब तो छोड़ दो. अब तो तुम दोनो ने अपने मन की मुदाद पूरी कर ली. मुझे अब आराम करने दो. मैं बुरी तरह थक गयी हूँ." मैने कहा.

मगर दोनो मे से कोई भी मेरी मिन्नतें सुनने के मूड मे नहीं लगा. घंटे भर मेरे बदन से खेलने के बाद और अपने लंड को आराम देने के बाद दोनो के लंड मे फिर दम आने लगा. अरुण सीट पर अब लेट गया और मुझे उपर आने का इशारा किया. मैं कुछ कहती उस से पहले मुकुल ने मुझे उठाकर उसके लंड पर बैठा दिया. मैं अपने योनि द्वार को अरुण के खड़े लंड पर टिकाई. अरुण ने अपने लंड को दरवाजे पर लगाया. मैं धीरे धीरे उसके लंड पर बैठ गयी. पूरा लंड अंदर लेने के बाद मैं उसके लंड पर उठने बैठने लगी. तभी दोनो के बीच आँखों ही आँखों मे कोई इशारा हुआ. अरुण ने मुझे खींच कर अपने नग्न बदन से चिपका लिया. अरुण मेरे नितंबों को फैला कर मेरे पिच्छले द्वार पर उंगली से सहलाने लगा. फिर उंगली को कुछ अंदर तक घुसा दिया. मैं चिहुनक उठी. मैं उसका इरादा समझ कर सिर को इनकार मे हिलाने लगी तो अरुण ने मेरे होंठ अपने होंठों मे दबा लिए. मुकुल ने अपनी उंगली निकाल कर मेरे योनि से बहते हुए रस को अपने लंड और मेरी योनि पर लगा दिया. मैं इन दोनो बलिष्ठ आदमियों के बीच बिल्कुल असहाय महसूस कर रही थी. दोनो मेरे बदन को जैसी मर्ज़ी वैसे मसल रहे थे.
क्रमशाश.......................
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 --5
gataank se aage....................
Maine kanpte hathon se bottle liya. Aur munh se lagakar ek ghoont liya. Aisa laga maano tejaab mere munh aur gale ko jalata hua pet me ja raha hai. Mujhe foran Jor ki ubkai agaee. Maine badi mushkil se munh par hath rakh kar apne aap ko roka. Poore munh ka swaad kasaila ho gaya tha. Kafi der tak mera chehra vikrit sa raha kuch der baad jab kuch normal hui to arun ne wapas bottle meri or kiya.

"lo ek aur ghoont lo." Arun ne kaha.

"Nahin, kitni gandi cheej hai tum log peete kaise ho." Maine kaha.Magar kuch der baad maine hath badha kar bottle le li aur ek aur ghoont liya. Is baar utni buri nahin lagi.

"bus aur nahin." Maine bottle wapas kar diya. Bottle ko wapas Arun ko lotate waqt chadar meri ek chhatee se hat gaya tha. Mujhe iska pata hi nahi chal paya. Mera sar ghoom raha tha. Seene me ajeeb si hulchal ho rahi thi. Badan garam hone laga tha. Aisa lag raha tha ki badan par odhe us chadar ko utar fenkoon. Apne aap ko bahut halka fulka mahsoos kar rahi thi. Apne oopar se control khatam hone laga. Shareer kafi garam ho chala tha. Neeche dono tangon ke beech halki si sursuri mahsoos ho rahi thi. Dimag chetawni de raha tha magar shareer par se uska control khatm hota jar aha tha. Bahar hawa ki saay saay mahol ko aur jyaada madak bana rahi thi.

Arun ne andar ki choti si light on kar di thi. Wo apne hath me bottle lekar samne ka darwaja khol kar bahar nikla aur peechhe ki seat par agaya.

"tumhe to paseena a raha hai. Garmi kuch jyada hai." Kahte huye usne mere gale ko apne hathon se chhua. Main simat te huye doosri or sarak gayee magar wo meri or sarak kar wapas mere badan se sat gaye.

"Dekho Arun ye sab theek nahin hai. Tum samne ki seat par jao." Maine kaha.

" Main tumhare saath koi jor jabardasti to kar nahi raha hoon. Main to sirf tumhare kanpte huye badan ko garmi dene ki koshish kar raha hoon." Usne wapas apni ungliyon se mere honth ke upar chhua aur age kaha," dekho rum peene se tumahara badan rahat mahsoos kar raha hai. Nahi to subah tak to tum thand se akad jati. Lo ek ghoont aur le lo is bottle se. Raat achchi gujar jayegi."

"Nahin mujhe nahin chahiye." Maine iske hath ko samne se hata diya.

Usne bottle se ek ghoont bhara aur bottle samne baithe Mukul ko thama di. Fir meri or ghoom kar unhon ne apne banh faila kar mujhe aagpsh me lena chaha. main unko dhakka deti rah gayee magar unhon ne mujhe apni bahon me sama liya. Mere stan garmi se tan gaye the wo uski chhati me dab gaye. Main usko apne hathon se dhaaka de kar door karne ki koshish karti rah gayee. lekin kuch to mere koshish me ichchha ka abhaw aur kuch uske badan me teevra josh ka sanchaar ki main unko apne badan se ek inch bhi nahi hila payee. Ulte unka seena aur sakhti se mere stano ko peesne laga.

Uske garam honth mere honthon se chipak gaye. Maine apne sir ko hilakar uske hontho se door hone ki koshish ki.

"mmmmm…nahiiiii… ..nahiiiii… .Aaarooon nahi……ye sab n..naahi…" maine uske chehre ko door karne ki koshish ki magar nakam hone par maine uske baalo ko apni mutthi me bhar kar apne se door dhakela. Uske sir ke kuch bal toot kar meri mutthi me rah gaye magar uska sir nahi hila. Usne mere gale par apne tapte honth rakh diye. Samne Mukul Rum ki bottle bar bar apne honthon se chhuata hua. Peechhe ki seat par
chal rahi jor ajmainsh ko dekhte huye muskura raha tha.

Maine use dhakelne ki koshish ki magar wo mere badan se aur jor se chipak gaya. Usne mere badan se lipte chadar ke andar apne hathon ko dalne ki koshish ki magar uske hath chadar ka chod dhoondh nahi pa
rahe the. Usne jhunjhla kar chadar ke bahar se hi mere stano ko pakad kar masalna shuru kar diya. Kisi padaye mard ki najddikiyan, sharab ka suroo, raat ka andhera aur vatawaran ki madhoshi sab mil kar mere
dimaag ko shithil karte ja rahe the. Dheere dheere main kamjor parti jaa rahi thi. Usne ek jhatke me mere badan se chadar ko alag kar diya.

"Mukul le ise samhal." Arun ne chadar age ki seat par uchhal diya jise Mukul ne samhal liya. Mere badan par ab sirf ek panty ki alawa kuch bhi nahin tha. Main apne haatho se apne nagn badan ko chhipane ki koshishkar rahi thi. Magar boobs ke size bade hone ki wajah se unhe samhalne me asmarth thi. Arun ne mere nagn badan ko apne seene par kheench liya. Dono ke nagn badan apas me kas kar lipat gaye. Mujhe laga mano mere seene ki sari hawa nikal gayee ho. Main kas masa rahi thi. Lekin apne khade nipples ko aur apne kade boobs ko uske chaude seene par ragadne ke alawa kuch bhi nahi kar pa rahi thi. Use to mere is tarah chhatpatane me aur bhi maja a raha tha.

Maine Arun ko dhakelte hue kaha"pleeeeeeese… . chodo mujhe warna main shor machaungi"

Magar main uski pakad se chhoot nahi pa rahi thi," aruuuun kya kar rahe hooo. Pleeees….pleeeeess… ..Rachna ko pata chal gaya to gajab ho jayega…..chod… .chodo mujhe…" maine unchi awaj me kahna shuru kiya.

"machao shor. Jitna chahe cheekho yahan meelon tak sirf pedh, patthar aur janwaron ke siwa tumhari cheekh sunne wala koi nahin hai."Mukul peechhe ghoom kar hamari raasleela dekhne laga. Arun ke hath mere badan par fir rahe the. Uske nagn badan se mera badan chipka hua tha. Maine kafi bachne ki koshish ki apni saheli ki duhai bhi di magar Arun to mano poora rakshash ban chuka tha.Us par mera gidgidana, rona aur chhatpatana koi asar nahi daal raha tha.

Mera virodh bhi dheere dheere mand parta ja raha tha. Usne mere uroj tham liye aur nipples apne munh me le kar choosne laga. Usne ek haath se apne badan se aakhri vastra bhi utar diya aur mere hath ko pakad kar apne tapte lund par rakh diya. Maine hatane ki koshish ki magar uske haath majbooti se mere hath ko lund par tham rakhe the. Mujhe Raj sharma ke alawa kisi aur ke lund ko apne hathon me lekar sahlana ajeeb lag raha tha magar mere shareer me ab uska virodh karne kin a to takat aur na hi ichchha bachi thi. Sharab apna asar dikhane lagi. Mera badan bhi garam hone laga. Kuch der baad maine apne ko dheela chod diya. Main samajh gayee ki aaj is veerane me dono mujh se sambhog kiye bina mujhe chodenge nahi. Main jitna virodh karti sambhog utna hi dardeela hota aur pata nahi is veerane me dono apni hawas mitane ke baad apne paap chhipane ke liye mujh par hamla bhi kar sakte the. Maine apna virodh poori tarah samapt kar diya.

Uske haath mere urojon ko masalne lage. Uske honth mere honthon se chipke huye the aur jeebh mere munh ke andar ghum rahi thi.Mukul se ab nahin raha gaya aur wo doosari side ka darwaja khol kar mere doosri taraf a gaya. Usne pahle seat ke lever ko khol kar back rest ko gira kar diya. Peechhe ki seat khul kar ek aramdeh bistar ka roop le li thi. Gdi ke andar jagah kam thi magar is kaam ke liye kafi tha.Dono ek sath mere badan par toot pare. Main unke beech fansi hui thi. Dono ne mere ek ek uroj tham liye. Unke saath don buri tarah pesh aarahe the. Masal masal kar mere dono stano ko laal kar diye the. Kabhi choos rahe the kabhi kat rahe the to kabhi chaat rahe the. Mere dono stan unki harkaton se dukhne lage the.

Mere dono hathon me ek ek lund tha. Dono lundon ko main apni mutthi me bhar kar sahala rahi thi. Meri panty pahle se hi geelee thi warna mere karmas se geeli ho jati. Meri yoni se buri tarah kaam ras choo raha tha. Meri yoni mard ke lund ke liye tadap rahi thi. Main unki harkaton se khoob garam ho chuki thi.

Dono apne ek-ek hath se meri yoni ko panty ke upar se shala rahe the. Kabhi kabhi Dono ke hath mere nitambon ko masalne lagte. Main apni janghon ko ek doosre par sakhti se jakad kar unke kaam me badha dalne ki koshish kar rahi thi. Magar dono ke age meri ek nahi chal rahi thi. Ulte main is tarah se aur uttejit ho gayee aur ek jhatke se maine apni yoni ko seat par se utha kar unke hathon ko aur andar jane ka mook agrah kiya. Isi ke saath mere badan se mera sara virodh taral roop le kar bah nikla. Mera skhalan ho gaya tha. Main apne is harkat ko unki najron se nahi chhipa payee aur sharm se pani pani ho gayi thi.

"dekh…..dekh Mukul kaise na..na…kar rahi thi. Ab dekh kaise hamare lund lene ke liye tadap rahi hai." Mukul uski baat par jor se hans pada main sharm se sikud gayi.Don one meri panty ko mere badan se noch kar alag kar diya. Usi ke saath do jodi ungliyan meri yoni me pravesh kar gayee.

"aaaahhhhhooooohhhh……kyaaaaa…..kaaaar raheee hooooo" mere munh se vasna bhari siskariyan nikal rahi thi.Arun ne mujhe kisi gudiya ki tarh utha kar apni god me bitha liya. Usne mere dono pairon ko faila kar apne kamar ke dono or rakha. Fir usne mujhe kheench kar apne nagn badan se chipka liya. Mere bade-bade uroj uske seene me pise jaa rahe the. Wo mere honthon ko chum raha tha. Us waqt Mukul ke honth meri peeth par fisal rahe the. Apni jeebh nikal kar meri gardan se lekar mere nitambon tak aise fira raha tha mano badan par koi halke se pankh fer raha ho. Poore badan me jhur jhuri si doud rahi thi.main dono ki harkaton se paagal hui jaa rahi thi. Arun ka lund meri yoni ko upar se sahla raha tha. Main khud uski god me age peechhe hokar uske lund ko apni yoni se ragad rahi thi. Ab meri rahi sahi jhijhak bhi khatm ho gayi thi. main apnhat se Arun ke lund ke tope koapni yoni ke dwaar par sata kar andae daalne ki koshish karne lagi. Lekin angle kuch aisa tha ki wo andar nahi ja pa raha tha. Arun aur Mukul meri harkaton par hans rahe the. Mujhe aisi halat me mujhe koi dekhta to ek vyeshya hi samajhta. Meri dignity, mera reputation,meri siksha sab is aadim bhookh ke samne choti par gayi thi. Meri aankon me mera pyaar, mera humdum, mere pati ke chehre par in dono ke chehre nazar anrahe the. Sharab ne mujhe apne vash me le liya tha. Sab kuch ghumta hua lag raha tha. Mera sir itni buri tarah ghoom raha tha ki main inki pakad me aram mahsoos kar rahi thi. Dimaag kah raha tha ki jo ho raha hai wo achcha nahin hai magar main kisiko mana karne ki stithi me nahin thi. Mera badan chah raha tha ki dono mujhe khoob masle khoob oyaar Karen khoob ragden. Pata nahi dono ne us Doctorinks me bhi kuch mila diya tha ya nahi lekin meri kamottejna normal se dus guna badh gayee thi. Main sex ki bhookh se tadap rahi thi.

Arun mere honthon ko choos choos kar suja diya tha. Fir unhen chod kar mere nipples par toot pada. Apne dono haathon se mere ek-ek uroj ko nichod raha tha aur nipples ko munh me daal kar choos raha tha. Aisa lag raha tha mano barson ke bhookhe ke samne koi doodh ki bottle a gayi ho. Daanton ke nishan poore uroj par nazar arahe the. Main ne apne hathon se Arun ka sir pakad rakha tha aur use apne uroj par dabane lagi.

Mukul us waqt meri gardan par aur meri nitambon par apne dant gada raha tha. Main mast hui jaa rahi thi. Phir Mukul ne mere sir ko pakada aur apne lund par jhukane laga. Main uska irada samajh kar kuch der tak munh ko idhar udhar ghumati rahi. Magar uske aage meri ek nahi chal pa rahi thi. Wo mere khubsoorat honthon par apna kala lund pherne laga. Mujhe uske lund se peshaab ki badbo a rahi thi jisse mera jee machalne laga. Lund ke age ke tope ki motai dekh kar main kaanp gayi. Lund se chipchipa pradarth nikal kar mere honthon par lag raha tha. Lekin maine apna munh nahi khola. Mukul ne kafi koshish ki mere munh ko kholne ki magar maine uski ek na chalne di.

Kuch der baad Arun ne mujhe god se utha kar kohni aur ghutnon ke bal par chaupaya banakar peechhe se meri yoni ko chhedne laga. Yoni ki phanken alag kar apni ungliyan andar bahar karne laga. Usne meri yoni se apni ungliyan nikal kar ek ungli ko khud chata aur doosri ungli Mukul ko chatne diya.

" le dekh chaat kar agar isse amrit ka swad na aye to kahna." Arun ne kaha.

"mmmm boss maja a gaya… badi naseeli cheej hai. Aaj tak itna maja kabhi nahi aya."

Mukul mere sir ko wapas apne lund par daba raha tha. Mujhe munh nahin kholta dekh kar mere nipples ko buri tarah masalne laga. Mere nipples itni buri tarah masal raha tha aur kheench raha tha mano use aaj mere badan se hi ukhaad fenkne ka man ho. Main jaise hi cheekhne ke liye munh kholi uska mota lund jeebh ko raaste se hatata hua gale tak jakar fans gaya.

Mera dum ghutne laga tha. Maine sir ko bahar kheenchne ke liye jor lagaya to usne apne haath ko kuch dheela kar diya. Lund adha hi bahar nikla hoga usne dobara mere sir ko daab diya. Aur is tarah wo mere munh ko kisi yoni ki tarah chodane laga.

Udhar Arun meri yoni me apni jeebh andar bahar kar raha tha. Main kamottejna se cheekhna chahti thi magar gale me Mukul ka lund fansa hone ke karan mere munh se sirf "uuuunnnnnhhhh ummm fffffffmmm" jaisi awajen nikal rahi thi. Main usi awastha me wapas jhar gayee.

Kafi der tak chusne chatne ke baad Arun utha. Uske munh, naak par mera kaamras laga hua tha. Usne apne lund ko meri yoni ke dwar par sata diya. Fir bahut dheere dheere use andar dhakelne laga. Khambe ke jaise apne mote taaje lund ko poori tarah meri yoni me sama diya. Yoni pahle se hi geeli ho rahi thi isliye koi jyada dikkat nahin hui. Lekin uska lund kafi mota hone se mujhe halki se takleef ho rahi thi. Wo apne lund ko wapas poora bahar nikala aur fir ek jordaar dhakke se poora sama diya. Fir to uske dhake lagataar ho chale.

Mukul mera mukh mainthun kar raha tha. Dono ke lund dono taraf se mere badan me andar bahar ho rahe the aur main jeep me jhula jhul rahi thi. Mere dono uroz pake huye anaar ki tarah jhul rahi the. Dono ne masal kar kat kar dono urozon ka rang bhi anaron ki tarah laal kar diya tha.

Kuch der baad mujhe lagne laga ki ab Mukul discharge hone wala hai. Ye dekh kar maine lund ko apne munh se nikaal ne ka socha. Magar Mukul ne shayad mere man ki baat parh lee. Usne mere sir ko pure taqat se apne lund par daba diya. Moosal jaisa lund gale ke andar tak ghus gaya. Uska lund aab jhatke marne laga. Fir dher sara garam garam veerya uske lund se nikal kar mere gale se hota hua mere pet me samane laga. Meri aankhen dard se ubli padi thi. Dum ghut raha tha. Kaafi sara veerya pilane ke baad lund ko mere munh se nikala. Uska lund ab bhi jhatke kha raha tha. Aur boond boond veerya ab bhi tapak raha tha. Mere honthon se uske lund tak veerya ek resham ki dor ki tarah chipka hua tha. Main jor jor se saansen le rahi thi. Uske veerya ke kuch thakke meri naak par aur mere balon pr bhi gire.

Arun peechhe se jor jor se dhakke de raha tha. Aur main har dhakke ke sath Mukul ke dheele pare lund se bhid rahi thi. Isse Mukul ka dheela lund fir kuch harkat me Ane laga. Main sir ko uttejna se jhatakne lagi "oouiiiii maaa oooohhh hummmpp" jaisi uttejit awajen nikalne lagi. Mery yoni ne dher sara ras chod diya. Magar uske raftaar me koi kami nahin ayee thi. Meri bahen mere badan ko aur thame na rakh sakee. Aur mera sir Mukul ki god me dhans gaya. Uske kaam ras se lisde dheele pare lund se mera gaal ragad kha raha tha. Kafi der tak dhakke marne ke baad uske lund ne apni dhaar se mer yoni ko labalab bhar diya. Jab tak poora veerya meri yoni me nikal nahi gaya tab tak apne lund ko andar hi dale rakha. Dheere dheere uska lund sikud kar meri yoni se bahar nikal aya.

Hum teeno gehari gehari saansen le rahe the. Khel to abhi shuru hi hua tha. Dono ne kuch der sustaane ke baad apni jagah badal lee. Arun ne apna lund mere mukh me daal diya to Mukul meri yoni pe chot karne laga. Dono ne kareeb do ghante tak meri isi tarah se jagah badal kar chudai ki. Main to dono ka stamina dekh kar hairaan thi. Dono ne kai baar mere munh me , meri yoni me aur mere badan par veerya ki barsat ki. Main unke seene se chipke saanse le rahi thi.

"aab to chod do. Aab to tum dono ne apne man ki mudaad poori kar lee. Mujhe ab araam karne do. Main buri tarah thak gayee hoon." Maine kaha.

Magar dono me se koi bhi meri minnaten sunne ke mood me nahin laga. Ghante bhar mere badan se khelne ke baad aur apne lund ko aram dene ke baad dono ke lund me fir dum ane laga. Arun seat par aab let gaya aur mujhe upar aane ka ishara kiya. Main kuch kahati us se pahle Mukul ne mujhe uthakar uske lund par baitha diya. Main apne yoni dwar ko Arun ke khade lund par tikai. Arun ne apne lund ko darwaje par lagaya. Main dheere dheere uske lund par baith gayee. Poora lund andar lene ke baad main uske lund par uthne baithne lagi. Tabhi dono ke beech ankhon hi ankhon me koi ishara hua. Arun ne mujhe kheench kar apne nagn badan se chipka liya. Arun mere nitambon ko faila kar mere pichhle dwar par ungli se sahlane laga. Phir ungli ko kuch andar tak ghusa diya. Main chihunk uthi. Main uska irada samajh kar sir ko inkaar me hilane lagi to Arun ne mere honth apne honthon me daba liye. Mukul ne apni ungli nikaal kar mere yoni se bahte hue ras ko apne lund aur meri yoni par laga diya. Main in dono balishth aadmiyon ke beech bilkul asahay mahsoos kar rahi thi. Dono mere badan ko jaisi marji waise masal rahe the.
KRAMASHASH...........................










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