FUN-MAZA-MASTI
raj sharma stories
राधा का राज--6गतान्क से आगे....................
मुकुल ने अपना लंड मेरे गुदा द्वार पर सटा दिया. "नहीं प्लीज़ वहाँ नहीं" मैने लगभग रोते हुए कहा. मेरी फट जाएगी. प्लीज़ वहाँ मत घुसाओ. मैं तुम दोनो को सारी रात मेरे बदन से खेलने दूँगी मगर मुझे इस तरह मत करो मैं मर जाउन्गि" मैं गिड गीडा रही थी मगर उनपर कोई असर नही हो रहा था. मुकुल अपने काम मे जुटा रहा. मैं हाथ पैर मार रही थी मगर अरुण ने अपने बलिष्ठ बाहों और पैरों से मुझे बिल्कुल बेबस कर दिया था. मुकुलने मेरे नितंबों को फैला कर एक जोरदार धक्का मारा.
"उूुउउइई माआ मर गाईए" मेरी चीख पूरे जंगल मे गूँज गयी. मगर दोनो हंस रहे थे. "सुउुउराअज… .ससुउउराअज मुझे ब्चाआओ….."
"थोड़ा स्बर करो सब ठीक हो जाएगा. सारा दर्द ख़त्म हो जाएगा." मुकुल ने मुझे समझाने की कोशिश की. मेरी आँखों से पानी बह निकला. मैं दर्द से रोने लगी. दोनो मुझे चुप कराने की कोशिश करने लगे. मुकुल ने अपने लंड को कुछ देर तक उसी तरह रखा.
कुछ देर बाद मैं जब शांत हुई तो मुकुल ने धीरे धीरे आधे लंड को अंदर कर दिया. मैने और राज ने शादी के बाद से ही खूब सेक्स का खेल खेला था मगर उसकी नियत कभी मेरे गुदा पर खराब नहीं हुई. मगर इन दोनो ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. मेरी दर्द के मारे जान निकली जा रही थी. दोनो के जिस्म के बीच सॅंडविच बनी हुई च्चटपटाने के अलावा कुछ भी नही कर पा रही थी.
आधा लंड अंदर कर के मुकुल मेरे उपर लेट गया. उसके शरीर के बोझ से बाकी बचा आधा लंड मेरे अशोल को चीरता हुआ जड़ तक धँस गया. ऐसा लग रहा था मानो किसीने लोहे की गर्म सलाख मेरे गुदा मे डाल दी हो. मैं दोनो के बीच सॅंडविच की तरह लेटी हुई थी. एक तगड़ा लंड आगे से और एक लंड पीछे से मेरे बदन मे ठुका हुआ था. ऐसा लग रहा था मानो दोनो लंड मेरे बदन के अंदर एक दूसरे को चूम रहे हों. कुछ देर यूँ ही मेरे उपर लेटे रहने के बाद मुकुल ने अपने बदन को हरकत दे दी. अरुण शांत लेटा हुआ था. जैसे ही मुकुल अपने लंड को बाहर खींचता मेरे नितंब उसके लंड के साथ ही खींचे चले जाते थे. इससे अरुण का लंड मेरी योनि से बाहर की ओर सरक जाता और फिर जब दोबारा मुकुल मेरे गुदा मे अपना लंड ठोकता तो अरुण का लंड अपने आप ही मेरी योनि मे अंदर तक घुस जाता . उस छोटी सी जगह मे तीन जिस्म ग्डमड हो रहे थे. हर धक्के के साथ मेरा सिर गाड़ी के बॉडी से भिड़ रहा था. गनीमत थी कि साइड मे कुशन लगे हुए थे वरना मेरे सिर मे गूमड़ निकल आता. मुकुल के मुँह से "हा…हा…हा" जैसी आवाज़ हर धक्के के साथ निकल रही थी. उसके हर धक्के के साथ ही मेरे फेफड़े की सारी हवा निकल जाती और फिर मैं साँस लेने के लिए उसके लंड के बाहर होने का इंतेज़ार करती.मैं दोनो के बीच पिस रही थी. मैं भी मज़े लेने लगी. बीस पचीस मिनट तक मुझे इस तरह चोदने के बाद एक साथ दोनो डिसचार्ज होगये. मेरे भी फिर से उनके साथ ही डिसचार्ज हो गया. इस ठंड मे भी हम पसीने से बुरी तरह भीग गये थे.मेरा पूरा बदन गीला गीला और चिपचिपा हो रहा था. दोनो छेदो से वीर्य टपक रहा था.
तीनों के "आआआअहह ऊऊऊहह" से पूरा जंगल गूँज रहा था.
अरुण तो चोद्ते वक़्त गंदी गंदी गालियाँ निकालता था. हम तीनो बुरी तरह हाँफ रहे थे. मैं काफ़ी देर तक सीट पर अपने पैरों को फैलाए पड़ी रही.
मुझे दोनो ने सहारा देकर उठाया. मेरे जांघों के जोड़ पर आगे पीछे दोनो तरफ ही जलन मची हुई थी. दोनो के बीच मैं उसी हालत मे बैठ गयी. दोनो के साथ सेक्स होने के बाद अब और शर्म की कोई गुंजाइश नही बची थी. दोनो मेरे नग्न बदन को चूम रहे थे और अश्लील भाषा मे बातें करते जा रहे थे. दोनो के लंड सिकुड कर छोटे छोटे हो चुके थे.
कुछ देर बाद मुकुल ने पीछे से एक बॉक्स से कुछ सॅंडविच निकाले जो शायद अपने लिए रखे थे. हम तीनों ने उसी हालत मे आपस मे मिल बाँट कर खाया. पानी के नाम पर तो बस रम की बॉटल ही आधी बची थी. मुझे मना करने पर भी उस बॉटल से दो घूँट लेने परे. दो घूँट पीते ही कुछ देर मे सिर घूमने लगा और बदन काफ़ी हल्का हो गया. मैने अपनी आँखें बंद कर ली. मैं इस दुनिया से बेख़बर थी. तभी दोनो साइड के दरवाजे खुलने और बंद होने की आवाज़ आई. मगर मैने अपनी आँखें खोल कर देखने की ज़रूरत भी महसूस नही की. मैं उसी हालत मे अपनी नग्नता से बेख़बर गाड़ी की सीट पर पसरी हुई थी.
कुछ देर बाद वापस गाड़ी का दरवाजा खुला और मेरी बाँह को पकड़ कर किसीने बाहर खींचा. मैने अपनी आँख खोल कर देखा की सड़क के पास घास फूस इकट्ठा करके एक अलाव जला रखा है.
पास ही उस फटी हुई चादर को फैला कर ज़मीन पर बिच्छा रखा था. उस चादर पर अरुण नग्न हालत मे बैठा हुआ शायद मेरा ही इंतेज़ार कर रहा था. मुकुल मुझे खींच कर अलाव के पास ले जा रहा था. मैं लड़खड़ाते हुए कदमो से उसके साथ खींचती जा रही थी. दो बार तो गिरने को हुई तो मुकुल ने मेरे बदन को सहारा दिया. उसके नग्न बदन की चुअन अपने नंगे बदन पर पा कर मुझे अब तक की पूरी घटना याद आ गयी. मैं उसके पंजों से अपना हाथ छुड़ाना चाहती थी मगर मुझे लगा मानो बदन मे कोई जान ही नही बची है.
मेरे अलाव के पास पहुँचते ही अरुण ने अपना हाथ बढ़ा कर मुझे अपनी गोद मे खींच लिया. मुकुल भी वही आकर बैठ गया. दोनो वापस मेरे नग्न बदन को मसल्ने कचॉटने लगे. मेरे एक एक अंग को तोड़ मरोड़ कर रख दिया. थकान और नशे से वापस मेरी आँखें बंद होने लगी. दोनो एक एक स्तन पर अपना हक़ जमाने की कोशिश कर रहे थे. दोनो की दो दो उंगलियाँ एक साथ मेरी योनि के अंदर बाहर हो रही थी. मैं उत्तेजना से तड़पने लगी. मैं दोनो के सिरों को जाकड़ कर अपनी चुचियों पर भींच रही थी.
अरुण घुटने के बल उठा और मेरे सिर को बालों से पकड़ कर अपने लंड पर दबा दिया. वीर्य से सने उसके लंड को मैने अपना मुँह खोल कर अंदर जाने का रास्ता दिया. मैं उनके लंड को चूसने लगी और मुकुल मेरी योनि और नितंबों पर अपनी जीभ फेरने लगा. मुझे दोनो ने हाथों और पैरों के बल पर किसी जानवर की तरह झुकाया और अरुण ने मेरे सामने से आकर अपना लंड वापस मेरे मुँह मे डाल दिया. तभी मुकुल ने वापस अपने लंड को मेरी योनि के अंदर डाल दिया. दोनो एक साथ मेरे आगे और पीछे से धक्का मारते और मैं बीच मे फाँसी दर्द से कराह उठती.
इस तरह जो संभोग चालू हुआ तो घंटों चलता रहा दोनो ने मुझे रात भर बुरी तरह झिझोर दिया. कभी आगे से कभी पीछे से कभी मुँह मे तो कभी मेरी दोनो चुचियों के बीच हर जगह जी भर कर मालिश की. मेरे पूरे बदन पर वीर्य का मानो लेप चढ़ा दिया. पूरा बदन वीर्य से चिपचिपा हो रहा था. ना तो उन्हों ने इसे पोंच्छा ना मुझे ही अपने बदन को सॉफ करने दिया. दोनो मुझे तब तक रोन्द्ते रहे जब तक ना संभोग करते करते वो निढाल हो कर वहीं पर गये. मैं तो मानो कोमा मे थी. मेरे बदन के साथ जो कुछ हो रहा था मुझे लग रहा था मानो कोई सपना हो. दोनो आख़िर निढाल हो कर वहीं लुढ़क गये.
रात को कभी किसी की आँख खुलती तो मुझे कुछ देर तक झींझोरने लगता. पता ही नहीं चला कब भोर हो गयी. अचानक मेरी आँख खुली तो देखा चारों ओर लालिमा फैल रही है. मैं दोनो की गोद मे बिल्कुल नग्न लेटी हुई थी. मेरा नशा ख़त्म हो चुका था. मुझे अपनी हालत पर शर्म आने लगी. मुझे अपने आप से नफ़रत होने लगी. किस तरह मैने उन्हे अपनी मनमानी कर लेने दिया. जी मे आ रहा था कि वहीं से कोई पत्थर उठा कर दोनो के सिर फोड़ दूं. मगर उठने लगी तो लगा मानो मेरा निचला बदन सुन्न हो गया हो. दर्द की अधिकता के कारण मैं लड़खड़ा कर वापस वहीं पसर गयी. मेरे गिरने से दोनो चौंक कर उठ बैठे और मेरी हालत देख कर मुस्कुरा दिए. मेरे फूल से बदन की हालत बहुत ही बुरी हो रही थी. जगह जगह लाल नीले निशान परे हुए थे. मेरे स्तन दर्द से सूजे हुए थे. दोनो ने सहारा देकर मुझे उठाया. मुकुल मुझे अरुण की बाहों मे छोड़ कर मेरे कपड़े ले आया तब तक अरुण मेरे नग्न शरीर से लिपटा हुया मेरे होंठों को चूमता रहा. एक हाथ मेरे स्तनो को मसल रहे थे तो दूसरा हाथ मेरी जांघों के बीच मेरी योनि को मसल रहा था. दोनो ने मिल कर मुझे कपड़े पहनने मे मदद की मगर अरुण ने मुझे मेरी ब्रा और पॅंटी वापस नही की उन दो कपड़ों को उसने हमारे संभोग की यादगार के रूप मे अपने पास रख लिया.
मैने सूमो मे बैठ कर बॅक मिरर पर नज़र डाली तो अपनी हालत देख कर रो पड़ी. होंठ सूज रहे थे चेहरे पर वीर्य सूख कर सफेद पपड़ी बना रहा था. मुझे अपने आप से घिंन आरहि थी. सड़क के पास ही थोड़ा पानी जमा हुआ था. जिस से अपना चेहरा धो कर अपने आप को व्यवस्थित किया.
दोनो मुझे अपने बदन से उनके दिए निशानो को मिटाने की नाकाम कोशिश करते देख रहे थे. अरुण मेरे बदन से लिपट कर मेरे होंठो को चूम लिया. मैने उसे धकेल कर अपने से अलग किया. "मुझे अपने घर वापस छोड़ दो." मैने गुस्से से कहा. अरुण ने सामने की सीट पर बैठ कर जीप को स्टार्ट किया. जीप एक ही झटके मे स्टार्ट हो गयी.
"ये….ये तो एक बार मे ही स्टार्ट हो गयी…" मैने उनकी तरफ देखा तो दोनो को मुझ पर मुस्कुराते हुए पाया. मैं समझ गयी कि ये सब दोनो की मिली भगत थी. मुझे चोदने के लिए ही सूनसान जगह मे लेजा कर गाड़ी खराब कर दिया. सारा दोनो की मिली जुली प्लॅनिंग का हिस्सा था. मैं चुप चाप बैठी रही और दोनो को मन ही मन कोस्ती रही.
घंटे भर बाद हम घर पहुँचे. रास्ते मे भी दोनो मेरे स्तनो पर हाथ फेरते रहे. मगर मैने दोनो को गुस्से से अपने बदन सी अलग रखा. हम जब तक घर पहुँचे राज अपने काम पर निकल चुका था जो की मेरे लिए बहुत ही अच्छा रहा वरना उसको मेरी हालत देख कर सॉफ पता चल जाता कि रात भर मैने क्या क्या गुल खिलाएँ हैं. मेरे लिए उसकी गहरी आँखों को सफाई देना भारी पड़ जाता.
मैने दरवाजा खोला और अंदर गयी. दोनो मेरे पीछे पीच्चे अंदर आ गये. मैं उन्हे रोक नही पाई.
"मैं बाथरूम मे जा रही हूँ नहाने के लिए तुम वापस जाते समय दरवाजा भिड़ा देना."
"जानेमन इतनी जल्दी भी क्या है. अभी एक एक राउंड और खेलने का मन हो रहा है." अरुण ने बदतमीज़ी से अपने दाँत निकाले.
"नही….चले जाओ नही तो मैं राज शर्मा को बता दूँगी. राज शर्मा को पता चल गया तो वो तुम दोनो को जिंदा नही छोड़ेगा." मैने दोनो की ओर नफ़रत से देखा.
"अरे नही जानेमन तुम हम मर्दों से वाकिफ़ नही हो. अभी अगर जा कर मैने कह दिया कि तुम्हारी बीवी सारी रात हमारे साथ गुलचर्रे उड़ाने के लिए रात भर हमारे पास रुक गयी तो तुम्हारा हज़्बेंड हमे ही सही मानेगा. देती रहना तुम अपनी सफाई. हाहाहा…." अरुण मेरी बेबसी पर हंस रहा था मुझे लग रहा था कि अभी दोनो का गला दबा दूं. मैं चुप छाप खड़ी फटी फटी आँखों से उसे देखती ही रह गयी.
"जाओ जानेमन नहा लो….बदन से पसीने की बू आ रही है. नहा धोकर तैयार रहना और हां बदन पर कोई भी कपड़ा नही रहे. हम कुछ देर मे तुम्हारे पातिदेव से मिलकर आते हैं. जाने से पहले एक बार तुम्हारे बदन को और अपने पानी से भिगो कर जाएँगे."
मैं चुप चाप खड़ी रही.
"अगर तूने हमारी बातों को नही माना तो कल तक सारा हॉस्पिटल जान जाएगा कि डॉक्टर. राधा अपनी सहेली के पति और उसके दोस्त के साथ रात भर रंगरलियाँ मना कर आ रही है. तुम्हारी ये ब्रा और पॅंटी मेरी बातों को साबित करेंगे."
मैं ठगी सी देखती रह गयी. कुछ भी नही कह पायी. दोनो हंसते हुए कमरे से निकल गये.
मैं दरवाजा बंद कर के अपनी बेबसी पर रो पड़ी. कुछ देर तक बिस्तर पर पड़ी रही फिर उठकर मैं बाथरूम मे घुस कर शवर के नीचे अपने बदन को खूब रगड़ रगड़ कर नहाई. मानो उन दोनो के दिए हर निशान को मिटा देना चाहती हौं.
बाहर निकल कर मैने कपड़ों की ओर हाथ बढ़ाए. मगर दोनो की हिदायत याद करके रुक गयी. मैं कुछ देर तक असमंजस मे रही. मैं अकेले मे भी कभी घर मे नग्न नही रही थी. फिर आज….खैर माने एक राज शर्मा का सामने से पूरा खुल जाने वाला गाउन पहना और बिस्तर पर जाकर लुढ़क गयी. अभी नींद का एक झोंका आया ही था कि डोर बेल की आवाज़ से नींद खुल गयी. मैने उठ कर घड़ी की तरफ निगाह डाली. सुबह के दस बज रहे थे. दोनो को गये हुए एक घंटा हो चुका था इसका मतलब है कि दरवाजे पर दोनो ही होंगे. मैं दरवाजे पर जा कर अपने गाउन की डोर खींच कर खोल दी. गाउन को अपने बदन से हटाना ही चाहती थी कि अचानक ये विचार कौंध गया कि अगर दोनो के अलावा कोई और हुआ तो? अगर उनकी जगह राज शर्मा ही हुआ तो…..क्या सोचेगा मुझे इस रूप मे देख कर? …..मेरे बदन पर बने अनगिनत नाखूनो और दांतो के निशान देख कर?
"कौन है?" मैने पूछा.
"हम हैं जानेमन….तुम्हारे आशिक़" बाहर से आवाज़ आई. मेरे पूरे बदन मे एक नफ़रत की आग जलने लगी. मैने एक लंबी साँस ली और अपने गाउन को अपने बदन से अलग होकर ज़मीन पर गिर जाने दिया. और दरवाजे की संकाल नीच कर दी. दोनो दरवाजे को खोल कर अंदर आ गये. मुझे इस रूप मे देख कर दोनो तो बस पागल ही हो गये. मैं ना नुकुर करती रही मगर मेरी मिन्नतों को सुनने का किसी के पास टाइम नही था. दोनो अंदर आ कर दरवाजे को अंदर से बंद किया. अरुण ने एक झटके से मेरे नंगे बदन को अपनी गोद मे उठाकर बेडरूम मे ले गया. मुझे बेड पर लिटा कर दोनो अपने कपड़े खोलने लगे.
"जान आज हम तुझे तेरे उसी बिस्तर पर चोदेन्गे जिस पर तू आज तक अपने राज शर्मा से ही चुद्ती आई होगी." अरुण ने कहा," ज़रा हम भी तो देखें की राज शर्मा को कितना मज़ा आता होगा तेरे इस नाज़ुक बदन को मसल्ने मे."
दोनो पूरी तरह नग्न हो कर बिस्तर पर चढ़ गये. मुझे चीत लिटा कर मुकुल मेरी टाँगों के बीच आ गया और अपना लंड मेरी योनि मे एक झटके मे डाल कर मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा.
पूरी योनि रात भर की चुदाई से सूजी हुई थी उस पर से मुकुल का मोटा लंड किसी तरह का रहम देने के मूड मे नही था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरी योनि को किसी सांड पेपर से घिस रहा हो. अरुण उसे खींच कर मुझ पर से हटाना चाहा. पहले मेरी योनि की चढ़ाई वो ही करना चाहता था मगर मुकुल ने कहा इस बार तो पहले वो ही चोदेगा और उसने हटने से सॉफ सॉफ इनकार कर दिया.
अरुण जब मुझ पर से मुकुल को नही हटा पाया तो मेरे स्तनो पर टूट पड़ा. मुकुल मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदने मे लगा था. उसके हर धक्के के साथ पूरा बिस्तर हिल जाता था. एक तो पूरी रात चुदाई की थकान और उपर से दुख़्ता हुआ बदन इस बार तो मैं दर्द से दोहरी हुई जा रही थी. मुँह से लगातार दर्द भरी आवाज़ें और चीखें निकल रही थी.
"आआआआहह…….हा…..हा……ऊऊऊओह………म्
म्माआआअ………उईईईईईईईई……आआआआआः……. .न्न्नणन्नाआआहियिइ ईईईईईई…………..उउउफफफफफफ्फ़…….उूु उउफफफफफफफफ्फ़…….हा…ऊऊहह" जैसी आवाज़ों से करना गूँज रहा था.
" मैं इसके पीछे घुसाता हूँ तू उसके बाद इसकी योनि मे अपना लंड ठोकना. दोनो साथ साथ ठोकेंगे इसे." अरुण ने कहा तो मुकुल ने अपना लंड मेरी योनि से निकाल लिया. अरुण ने मुझे घुमा कर पेट के बल लिटा दिया और मेरे नितंबों के नीचे अपने हाथ देकर मेरे बदन को कुछ उपर खींचा. मेरे बदन मे अब उनका किसी भी तरह का विरोध करने की ना तो कोई ताक़त बची थी ना ही कोई इच्च्छा. मैने अपना बदन ढीला छोड़ रखा था दोनो जैसे चाह रहे थे मेरे बदन को उस तरह से भोग रहे थे. अरुण अपने लंड को मेरे गुदा पर सेट करके मेरे उपर लेट गया. उसे इसमे मुकुल मदद कर रहा था. मुकुल ने अपने हाथों से मेरी टाँगे फैला कर मेरे दोनो नितंबों को अलग करके अरुण के लंड के लिए रास्ता बनाया. उसके लेटने से अरुण का लंड मेरे गुदा द्वार को खोलता हुआ अंदर चला गया. आज ही इसकी सील मुकुल ने तोड़ दी थी इसलिए इस बार ज़्यादा दर्द नही हुआ. मुझे उसी अवस्था मे अरुण कुछ देर तक चोद्ता रहा. उसके हाथ नीचे जाकर मेरे स्तनो को वापस निचोड़ने लगे.
कुछ देर बाद उसी अवस्था मे अपने लंड को अंदर डाले डाले अरुण घूम गया. अब मेरा चेहरा छत की तरफ हो गया था. नीचे से अरुण का लंड मेरे गुदा मे धंसा हुआ था.
" अरुण कुछ बचा भी है इन दूध की बोतलों मे? आज इनको भरने की तैयारी करते हैं. देखते हैं दोनो मे से कौन बनता है इसके बच्चे का बाप. जब इन बोतलों मे दूध आएगा तो ये खुशी खुशी हमारे लंड को नहलाएगी अपने दूध से." मुकुल हंस रहा था. उसने मेरी योनि की फांकों को अपनी उंगलियों से अलग किया और अपने लंड को अंदर डाल दिया. वापस मैं दोनो के बीच सॅंडविच बनी हुई थी. दोनो ओर से एक एक लंड मेरे बदन को पीस रहे थे. दोनो एक साथ अपने लंड ठोकने लगे.
तभी अरुण ने हाथ बढ़ा कर टेलिफोन उठाया.
क्रमशाश....................... ....
gataank se aage....................
Mukul ne apna lund mere guda dwar per sata diya. "nahin pleeease wahan nahin" maine lagbhag rote hue kaha. Meri fat jayegi. Please wahan mat ghosao. main tum dono ko saari raat mere badan se khelne doongi magar mujhe is tarah mat karo main mar jaungi" main gid gida rahi thi magar unpar koi asar nahi ho raha tha. Mukul apne kaam me juta raha. Main haath pair maar rahi thi magar Arun ne apne balishth bahon aur pairon se mujhe bilkul bebas kar diya tha. Mukulne mere nitambon ko faila kar ek jordaar dhakka mara.
"uuuuuiiiii maaaa mar gayeee" meri cheekh poore jangal me goonj gayee. Magar dono hans rahe the. "suuuuuraaaj… .ssuuuuraaaj mujhe bchaaaao….."
"thoda sbar karo sab thik ho jayega. Saara dard khatm ho jayega." Mukul ne mujhe samjhane ki koshish ki. Meri aankhon se pani bah nikla. Maindard se rone lagi. Dono mujhe chup karane ki koshish karne lage. Mukul ne apne lund ko kuch der tak usi tarah rakha.
Kuch der baad main jab shant hui to mukul ne dheere dheere adhe lund ko ander kar diya. Maine aur Raaj ne shaadi ke baad se hi khoob sex ka khel khela tha magar uski niyat kabhi mere guda par khadab nahin hui. Magar in dono ne to mujhe kahin ka nahin choda. Meri dard ke mare jaan nikali ja rahi thi. Dono ke jism ke beech sandwich bane huye chhatpatane ke alawa kuch bhi nahi kar pa rahi thi.
Adhaa lund ander kar ke Mukul mere upar let gaya. Uske shareer ke bojh se baki bacha adha lund mere asshole ko cheerta hua jad tak dhans gaya. Aisa lag raha tha mano kisine lohe ki garm salakh mere guda me daal di ho. Main dono ke beech sandwich ki tarah leti hui thi. Ek tagda lund age se aur ek lund peechhe se mere badan me thuka hua tha. Aisa lag raha tha mano Dono lund mere badan ke andar ek doosre ko choom rahe hon. Kuch der yun hi mere upar lete rahne ke baad Mukul ne apne badan ko harkat de di. Arun shant leta hua tha. Jaise hi Mukul apne lund ko bahar kheenchta mere nitamb uske lund ke saath hi khinche chale jate the. Isse Arun ka lund meri yoni se bahar ki or sarak jata aur fir jab dobara Mukul mere guda me apna lund thokta to Arun ka lund apne aap hi meri yoni me andar tak ghus jata . us choti si jagah me teen jism gudmud ho rahe the. Har dhakke ke saath mera sir gadi ke body se bhid raha tha. Ganimat thi ki side me cushion lage huye the warna mere sir me goomad nikal ata. Mukul ke munh se "huh…huh…huh" jaisi awaj har dhakke ke saath nikal rahi thi. Uske har dhakke ke saath hi mere fefde ki sari hawa nikal jati aur fir main saans lene ke liye uske lund ke bahar hone ka intezaar karti.Main dono ke beech pis rahi thi. Main bhi maje lene lagi. Bees pachees minut tak mujhe is tarah chodane ke baad ek saath dono discharge hogaye. Mere bhi fir se unke saath hi discharge ho gaya. Is thand me bhi hum paseene se buri tarah bheeg gaye the.Mera poora badan geela geela aur chipchipa ho raha tha. Dono chhedon se veerya tapak raha tha.
Teenon ke "aaaaaaahhhhh oooooohhhh" se poora jungle goonj raha tha.
Arun to chodte waqt gandi gandi galiyan nikalta tha. Hum teeno buri tarah hanf rahe the. Main kafi der tak seat par apne pairon ko failaye padi rahi.
Mujhe dono ne sahara dekar uthaya. Mere janghon ke jod par age peechhe dono taraf hi jalan machi hui thi. Dono ke beech main usi halat me baith gayee. dono ke saath sex hone ke baad ab aur sharm ki koi gunjaish nahi bachi thi. Dono mere nagn badan ko choom rahe the aur ashleel bhasha me baten karte ja rahe the. Dono ke lund sikud kar chote chote ho chuke the.
Kuch der baad Mukul ne peechhe se ek box se kuch sandwich nikaale jo shayad apne liye rakhe the. Hum teenon ne usi halat me apas me mil baant kar khaya. Pani ke naam par to bus Rum ki bottle hi adhi bachi thi. Mujhe man kar bhi us bottle se do ghoont lene pare. Do ghoont peete hi kuch der me sir ghoomne laga aur badan kafi halka ho gaya. Maine apni ankhen band kar li. Main is duniya se bekhabar thi. Tabhi dono side ke darwaje khulne aur band hone ki awaj aye. Magar maine apni ankhen khol kar dekhne ki jaroorat bhi mahsoos nahi ki. Main usi halat me apni nagnta se bekhabar gadi ki seat par pasri hui thi.
Kuch der baad wapas gadi ka darwaja khula aur meri banh ko pakad kar kisine bahar kheencha. Maine apni ankh khol kar dekha ki sadak ke paas ghaas foos ikattha karke ek alaw jala rakha hai.
Paas hi us fati hui chadar ko faila kar jameen par bichha rakha tha. Us chadar par Arun nagn halat me baitha hua shayad mera hi intezaar klar raha tha. Mukul mujhe kheench kar Alaw ke paas le ja raha tha. Main ladkhadate huye kadmo se uske saath khinchti ja rahi thi. Do baar to girne ko hui to Mukul ne mere badan ko sahara diya. Uske nagn badan ki chuan apne nange badan par pa kar mujhe ab tak ki poori ghatna yaad a gayee. main uske panjon se apna haath chhudana chahti thi magar mujhe laga mano badan me koi jaan hi nahi bachi hai.
Mere alaw ke paas pahunchte hi Arun ne apna hath badha kar mujhe apni god me kheench liya. Mukul bhi wahi akar baith gaya. Dono wapas mere nagn badan ko masalne kachotne lage. Mere ek ek ang ko tod marod kar rakh diya. Thakan aur nashe se wapas meri ankhen band hone lagi. Dono eke k stan par apna haq jamane ki koshish kar rahe the. Dono ki do do ungliyan ek saath meri yoni ke andar bahar ho rahi thi. Main uttejna se tadapne lagi. Main dono ke siron ko jakad kar apni chuchiyon par bheench rahi thi.
Arun ghtne ke bal utha aur mere sir ko balon se pakad kar apne lund par daba diya. Veerya se sane uske lund ko maine apna munh khol kar andar jane ka rasta diya. Main unke lund ko choosne lagi aur Mukul meri yoni aur nitambon par apni jeebh ferne laga. Mujhe don one hathon aur pairon ke bal par kisi janwar ki tarah jhukaya aur Arun mere samne se akar apna lund wapas mere munh me daal diya. Tabhi Mukul ne wapas apne lund ko meri yoni ke andar daal diya. Dono ek saath mere age aur peechhe se dhakka marte aur main beech me fansi dard se karah uthti.
Is tarah jo sambhog chalu hua to ghanton chalta raha dono ne mujhe raat bhar buri tarah jhijhor diya. Kabhi age se kabhi peechhe se kabhi munh me to kabhi meri dono chuchiyon ke beech har jagah jee bhar kar malish kee. Mere poore badan par veerya ka mano lep chadha diya. Poora badan veerya se chipchipa ho raha tha. Na to unhon ne ise poncha na mujhe hi apne badan ko saaf karne diya. Dono mujhe tab tak rondte rahe jab tak na Sambhog karte karte wo nidhaal ho kar wahin par gaye. Main to mano coma me thi. Mere badan ke saath jo kuch ho raha tha mujhe lag raha tha mano koi sapna ho. Dono akhir nidhal ho kar wahin ludhak gaye.
Raat ko kabhi kisi ki aankh khulti to mujhe kuch der tak jhinjhorne lagta. Pata hi nahin chala kab bhor ho gayi. Achanak meri aankh khuli to dekha charon or lalima fail rahi hai. Main dono ki god me bilkul nagn leti hui thi. Mera nasha khatm ho chuka tha. Mujhe apni halat par sharm ane lagi. Mujhe apne aap se nafrat hone lagi. Kis tarah maine unhe apni manmaani kar lene diya. Jee me a raha tha ki wahin se koi patthar utha kar dono ke sir fod doon. Magar uthne lagi to laga mano mera nichla badan sunn ho gaya ho. Dard ki adhikta ke karan main ladkhada kar wapas wahin pasar gayee. Mere girne se dono chaunk kar uth baithe aur meri halat dekh kar muskura diye. Mere phool se badan ki halat bahut hi buri ho rahi thi. Jagah jagah laal neele nishaan pare huye the. Mere stan dard se suje huye the. Dono ne sahara dekar mujhe uthaya. Mukul mujhe Arun ki bahon me chod kar mere kapde le aya tab tak Arun mere nagn shareer se lipta huya mere honthon ko choomta raha. Ek hath mere stano ko masal rahe the to doosra hath meri janghon ke beech meri yoni ko masal raha tha. Dono ne mil kar mujhe kapde pahanne me madad ki magar Arun ne mujhe meri bra aur panty wapas nahi ki un do kapdon ko usne hamare sambhog ki yaadgaar ke roop me apne paas rakh liya.
Maine Sumo me baith kar back mirror par najar daali to apni haalat dekh kar ro padi. Honth sooj rahe the chehre par veerya sookh kar safed papdi bana raha tha. Mujhe apne aap se ghinn aarahi thi. Sadak ke paas hi thoda paani jama hua tha. Jis se apna chehra dho kar apne aap ko vyavasthit kiya.
Dono mujhe apne badan se unke diye nishano ko mitane ki nakam koshish karte dekh rahe the. Arun mere badan se lipat kar mere hontho ko chum liya. Maine use dhakel kar apne se alag kiya. "mujhe apne ghar wapas chod do." Maine gusse se kaha. Arun ne samne ki seat par baith kar jeep ko start kiya. Jeep ek hi jhatke me start ho gayi.
"ye….ye to ek baar me hi start ho gayee…" maine unki taraf dekha to dono ko mujh par muskurate huye paya. Main samajh gayi ki ye sab dono ki mili bhagat thi. Mujhe chodane ke liye hi soonsaan jagah me lejakar gadi khadab kar diya. Saara dono ki mili juli planning ka hissa tha. Main chup chaap baithee rahi aur dono ko man hi man kosti rahi.
Ghante bhar baad hum ghar pahunche. Raste me bhi dono mere urozon par haath ferte rahe. Magar maine dono ko gusse se apne badan sea alag rakha. Hum jab tak ghar pahunche Raaj apne kaam par nikal chuka tha jo ki mere liye bahut hi achcha raha warna usko meri halat dekh kar saaf pata chal jaata ki raat bhar maine kya kya gul khilayen hain. Mere liye uski gahree ankhon ko safai dena bhari par jata.
Maine darwaja khola aur andar gayee. Dono mere peechhe peechhe andar a gaye. Main unhe rok nahi payee.
"main bathroom me ja rahi hoon nahane ke liye tum wapas jate samay darwaja bhida dena."
"janeman itni jaldi bhi kya hai. Abhi ek ek round aur khelne ka man ho raha hai." Arun ne badtameeji se apne daant nikale.
"nahi….chale jao nahi to main Raj sharma ko bata doongi. Raj sharma ko pata chal gaya to wo tum dono ko jinda nahi chodega." Maine dono ki or nafrat se dekha.
"are nahi janeman tum hum mardon se wakif nahi ho. Abhi agar ja kar maine kah diya ki tumhari biwi saari raat humare saath gulcharre udane ke liye raat bhar humare paas ruk gayee to tumhara husband hume hi sahi manega. Deti rahna tum apni safai. Hahaha…." Arun meri bebasi par hans raha tha mujhe lag raha tha ki abhi dono ka gala daba doon. Main chup chhap khadi fati fati ankhon se use dekhti hi rah gayee.
"jao janeman nahalo….badan se paseene ki boo a rahi hai. Naha dhokar taiyaar rahna aur haan badan par koi bhi kapda nahi rahe. Hum kuch der me tumhare patidev se milkar ate hain. Jane se pahle ek baar tumhare badan ko aur apne paani se bhigo kar jayenge."
Main chup chaap khadi rahi.
"agar tune hamari baton ko nahi mana to kal tak sara hospital jaan jayega ki Doctor. Raadha apni saheli ke pati aur uske dost ke saath raat bhar rangraliyan mana kar aa rahi hai. Tumhari ye bra aur panty meri baton ko sabit karenge."
Main thagi si dekhti rah gayee. Kuch bhi nahi kah payee. Dono hanste huye kamre se nikal gaye.
Main darwaja band kar ke apni bebasi par ro padi. Kuch der tak bistar par padi rahi fir uthkar main bathroom me ghus kar shower ke neeche apne badan ko khoob ragad ragad kar nahai. Mano un dono ke diye har nishaan ko mita dena chahti houn.
Bahar nikal kar maine kapdon ki or hath badhaye. Magar dono ki hidayat yaad karke ruk gayee. Main kuch der tak asmanjas me rahi. Main akele me bhi kabhi ghar me nagn nahi rahi thi. Fir aaj….khair mane ek Raj sharma ka samne se poora khul jane wala gown phana aur bistar par jakar ludhak gayee. Abhi neeng ka ek jhonka aya hi tha ki door bell ki awaj se neend khul gayee. Maine uth kar ghadi ki taraf nigaah dali. Subah ke dus baj rahe the. Dono ko gaye huye ek ghanta ho chuka tha iska matlab hai ki darwaje par dono hi honge. Main darwaje par ja kar apne gown ki dor kheench kar khol di. Gown ko apne badan se hatana hi chahti thi ki achanak ye vichaar kaundh gaya ki agar dono ke alawa koi aur hua to? Agar unki Jagah Raj sharma hi hua to…..kya sochega mujhe is roop me dekh kar? …..mere badan par bane anginat nakhoono aur daanto ke nishaan dekh kar?
"kaun hai?" maine poochha.
"hum hain janeman….tumhare ashiq" bahar se awaj ayee. Mere poore badan me ek nafrat ki aag jalne lagi. Maine ek lambi saans li aur apne gown ko apne badan se alag hokar jameen par gir jane diya. Aur darwaje ki sankal neech kar di. Dono darwaje ko khol kar andar a gaye. Mujhe is roop me dekh kar dono to bus pagal hi ho gaye. Main na nukur karti rahi magar meri minnaton ko suune ka kisi ke paas time nahi tha. Dono andar a kar darwaje ko andar se band kiya. Arun ne ek jhatke se mere nange badan ko apni god me uthakar beDoctoroom me le gaya. Mujhe bed par lita kar dono apne kapde kholne lage.
"jaan aaj hum tujhe tere usi bistar par chodenge jis par tu aaj tak apne Raj sharma se hi chudti ayee hogi." Arun ne kaha," jara hum bhi to dekhen ki Raj sharma ko kitna maja ata hoga tere is najuk badan ko masalne me."
Dono poori tarah nagn ho kar bistar par chadh gaye. Mujhe chit lita kar Mukul meri tangon ke beech a gaya aur apna lund meri yoni me ek jhatke me daal kar mujhe jor jor se chodane laga.
Poori yoni raat bhar ki chudai se sooji hui thi us par se Mukul ka mota lund kisi tarah ka raham dene ke mood me nahi tha. Aisa lag raha tha jaise koi meri yoni ko kisi sand paper se ghis raha ho. Arun use kheench kar mujh par se hatana chaha. pahle meri yoni ki chadhai wo hi karna chahta tha magar Mukul ne kaha is baar to pahle wo hi chodega aur usne hatne se saaf saaf inkaar kar diya.
Arun jab mujh par se Mukul ko nahi hata paya to mere stano par toot pada. Mukul mujhe jor jor se chodane me laga tha. Uske har dhakke ke saath poora bistar hil jata tha. Ek to poori raat chudai ki thakan aur upar se dukhta hua badan is baar to main dard se dohri hui ja rahi thi. Munh se lagataar dard bhari awajen aur cheekhen nikal rahi thi.
"aaaaaaaahhhh…….huh…..huh…… ooooooohhhhh………mmmaaaaaaa……… uiiiiiiiiii……aaaaaaaaaah…….. nnnnnnaaaaaahiiii iiiiiii…………..uuufffffff……. uuuuufffffffff…….huh…oooohh" jaisi awajon se karma goonj raha tha.
" main iske peechhe ghusata hoon tu uske baad iski yoni me apna lund thokna. Dono saath saath thokenge ise." Arun ne kaha to Mukul ne apna lund meri yoni se nikaal liya. Arun ne mujhe ghuma kar pet ke bal lita diya aur mere nitambon ke neeche apne hath dekar mere badan ko kuch upar khincha. Mere badan me ab unka kisi bhi tarah ka virodh karne kin a to koi taqat bachi thi na hi koi ichchha. Maine apna badan dheela chod rakha tha dono jaise chah rahe the mere badan ko us tarah se bhog rahe the. Arun apne lund ko mere guda par set karke mere upar let gaya. Use isme Mukul madad kar raha tha. Mukul ne apne hathon se meri tangent faila kar mere dono nitambon ko alag karke Arun ke lund ke liye rasta banaya. Uske letne se Arun ka lund mere guda dwaar ko kholta hua andar chala gaya. Aaj hi iski seal Mukul ne tod di thi isliye is baar jyada dard nahi hua. Mujhe usi awastha me Arun kuch der tak chodta raha. Uske hath neeche jakar mere stano ko wapas nichodane lage.
Kuch der baad usi awastha me apne lund ko andar dale dale Arun ghoom gaya. Ab mera chehra chat ki taraf ho gaya tha. Neeche se Arun ka lund mere guda me dhansa hua tha.
" Arun kuch bacha bhi hai in doodh ki botlon me? Aaj inko bharne ki taiyaari karte hain. Dekhte hain dono me se kaun banta hai iske bachche ka baap. Jab in botlon me doodh ayega to ye khushi khushi humare lund ko nahlayegi apne doodh se." Mukul hans raha tha. Usne meri yoni ki fankon ko apni ungliyon se alag kiya aur apne lund ko andar daal diya. Wapas main dono ke beech sandwich bani hui thi. Dono or se eke k lund mere badan ko pees rahe the. Dono ek saath apne lund thokne lage.
Tabhi Arun ne hath badha kar telephone uthaya.
KRAMASHASH.................... .......
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raj sharma stories
राधा का राज--6गतान्क से आगे....................
मुकुल ने अपना लंड मेरे गुदा द्वार पर सटा दिया. "नहीं प्लीज़ वहाँ नहीं" मैने लगभग रोते हुए कहा. मेरी फट जाएगी. प्लीज़ वहाँ मत घुसाओ. मैं तुम दोनो को सारी रात मेरे बदन से खेलने दूँगी मगर मुझे इस तरह मत करो मैं मर जाउन्गि" मैं गिड गीडा रही थी मगर उनपर कोई असर नही हो रहा था. मुकुल अपने काम मे जुटा रहा. मैं हाथ पैर मार रही थी मगर अरुण ने अपने बलिष्ठ बाहों और पैरों से मुझे बिल्कुल बेबस कर दिया था. मुकुलने मेरे नितंबों को फैला कर एक जोरदार धक्का मारा.
"उूुउउइई माआ मर गाईए" मेरी चीख पूरे जंगल मे गूँज गयी. मगर दोनो हंस रहे थे. "सुउुउराअज… .ससुउउराअज मुझे ब्चाआओ….."
"थोड़ा स्बर करो सब ठीक हो जाएगा. सारा दर्द ख़त्म हो जाएगा." मुकुल ने मुझे समझाने की कोशिश की. मेरी आँखों से पानी बह निकला. मैं दर्द से रोने लगी. दोनो मुझे चुप कराने की कोशिश करने लगे. मुकुल ने अपने लंड को कुछ देर तक उसी तरह रखा.
कुछ देर बाद मैं जब शांत हुई तो मुकुल ने धीरे धीरे आधे लंड को अंदर कर दिया. मैने और राज ने शादी के बाद से ही खूब सेक्स का खेल खेला था मगर उसकी नियत कभी मेरे गुदा पर खराब नहीं हुई. मगर इन दोनो ने तो मुझे कहीं का नहीं छोड़ा. मेरी दर्द के मारे जान निकली जा रही थी. दोनो के जिस्म के बीच सॅंडविच बनी हुई च्चटपटाने के अलावा कुछ भी नही कर पा रही थी.
आधा लंड अंदर कर के मुकुल मेरे उपर लेट गया. उसके शरीर के बोझ से बाकी बचा आधा लंड मेरे अशोल को चीरता हुआ जड़ तक धँस गया. ऐसा लग रहा था मानो किसीने लोहे की गर्म सलाख मेरे गुदा मे डाल दी हो. मैं दोनो के बीच सॅंडविच की तरह लेटी हुई थी. एक तगड़ा लंड आगे से और एक लंड पीछे से मेरे बदन मे ठुका हुआ था. ऐसा लग रहा था मानो दोनो लंड मेरे बदन के अंदर एक दूसरे को चूम रहे हों. कुछ देर यूँ ही मेरे उपर लेटे रहने के बाद मुकुल ने अपने बदन को हरकत दे दी. अरुण शांत लेटा हुआ था. जैसे ही मुकुल अपने लंड को बाहर खींचता मेरे नितंब उसके लंड के साथ ही खींचे चले जाते थे. इससे अरुण का लंड मेरी योनि से बाहर की ओर सरक जाता और फिर जब दोबारा मुकुल मेरे गुदा मे अपना लंड ठोकता तो अरुण का लंड अपने आप ही मेरी योनि मे अंदर तक घुस जाता . उस छोटी सी जगह मे तीन जिस्म ग्डमड हो रहे थे. हर धक्के के साथ मेरा सिर गाड़ी के बॉडी से भिड़ रहा था. गनीमत थी कि साइड मे कुशन लगे हुए थे वरना मेरे सिर मे गूमड़ निकल आता. मुकुल के मुँह से "हा…हा…हा" जैसी आवाज़ हर धक्के के साथ निकल रही थी. उसके हर धक्के के साथ ही मेरे फेफड़े की सारी हवा निकल जाती और फिर मैं साँस लेने के लिए उसके लंड के बाहर होने का इंतेज़ार करती.मैं दोनो के बीच पिस रही थी. मैं भी मज़े लेने लगी. बीस पचीस मिनट तक मुझे इस तरह चोदने के बाद एक साथ दोनो डिसचार्ज होगये. मेरे भी फिर से उनके साथ ही डिसचार्ज हो गया. इस ठंड मे भी हम पसीने से बुरी तरह भीग गये थे.मेरा पूरा बदन गीला गीला और चिपचिपा हो रहा था. दोनो छेदो से वीर्य टपक रहा था.
तीनों के "आआआअहह ऊऊऊहह" से पूरा जंगल गूँज रहा था.
अरुण तो चोद्ते वक़्त गंदी गंदी गालियाँ निकालता था. हम तीनो बुरी तरह हाँफ रहे थे. मैं काफ़ी देर तक सीट पर अपने पैरों को फैलाए पड़ी रही.
मुझे दोनो ने सहारा देकर उठाया. मेरे जांघों के जोड़ पर आगे पीछे दोनो तरफ ही जलन मची हुई थी. दोनो के बीच मैं उसी हालत मे बैठ गयी. दोनो के साथ सेक्स होने के बाद अब और शर्म की कोई गुंजाइश नही बची थी. दोनो मेरे नग्न बदन को चूम रहे थे और अश्लील भाषा मे बातें करते जा रहे थे. दोनो के लंड सिकुड कर छोटे छोटे हो चुके थे.
कुछ देर बाद मुकुल ने पीछे से एक बॉक्स से कुछ सॅंडविच निकाले जो शायद अपने लिए रखे थे. हम तीनों ने उसी हालत मे आपस मे मिल बाँट कर खाया. पानी के नाम पर तो बस रम की बॉटल ही आधी बची थी. मुझे मना करने पर भी उस बॉटल से दो घूँट लेने परे. दो घूँट पीते ही कुछ देर मे सिर घूमने लगा और बदन काफ़ी हल्का हो गया. मैने अपनी आँखें बंद कर ली. मैं इस दुनिया से बेख़बर थी. तभी दोनो साइड के दरवाजे खुलने और बंद होने की आवाज़ आई. मगर मैने अपनी आँखें खोल कर देखने की ज़रूरत भी महसूस नही की. मैं उसी हालत मे अपनी नग्नता से बेख़बर गाड़ी की सीट पर पसरी हुई थी.
कुछ देर बाद वापस गाड़ी का दरवाजा खुला और मेरी बाँह को पकड़ कर किसीने बाहर खींचा. मैने अपनी आँख खोल कर देखा की सड़क के पास घास फूस इकट्ठा करके एक अलाव जला रखा है.
पास ही उस फटी हुई चादर को फैला कर ज़मीन पर बिच्छा रखा था. उस चादर पर अरुण नग्न हालत मे बैठा हुआ शायद मेरा ही इंतेज़ार कर रहा था. मुकुल मुझे खींच कर अलाव के पास ले जा रहा था. मैं लड़खड़ाते हुए कदमो से उसके साथ खींचती जा रही थी. दो बार तो गिरने को हुई तो मुकुल ने मेरे बदन को सहारा दिया. उसके नग्न बदन की चुअन अपने नंगे बदन पर पा कर मुझे अब तक की पूरी घटना याद आ गयी. मैं उसके पंजों से अपना हाथ छुड़ाना चाहती थी मगर मुझे लगा मानो बदन मे कोई जान ही नही बची है.
मेरे अलाव के पास पहुँचते ही अरुण ने अपना हाथ बढ़ा कर मुझे अपनी गोद मे खींच लिया. मुकुल भी वही आकर बैठ गया. दोनो वापस मेरे नग्न बदन को मसल्ने कचॉटने लगे. मेरे एक एक अंग को तोड़ मरोड़ कर रख दिया. थकान और नशे से वापस मेरी आँखें बंद होने लगी. दोनो एक एक स्तन पर अपना हक़ जमाने की कोशिश कर रहे थे. दोनो की दो दो उंगलियाँ एक साथ मेरी योनि के अंदर बाहर हो रही थी. मैं उत्तेजना से तड़पने लगी. मैं दोनो के सिरों को जाकड़ कर अपनी चुचियों पर भींच रही थी.
अरुण घुटने के बल उठा और मेरे सिर को बालों से पकड़ कर अपने लंड पर दबा दिया. वीर्य से सने उसके लंड को मैने अपना मुँह खोल कर अंदर जाने का रास्ता दिया. मैं उनके लंड को चूसने लगी और मुकुल मेरी योनि और नितंबों पर अपनी जीभ फेरने लगा. मुझे दोनो ने हाथों और पैरों के बल पर किसी जानवर की तरह झुकाया और अरुण ने मेरे सामने से आकर अपना लंड वापस मेरे मुँह मे डाल दिया. तभी मुकुल ने वापस अपने लंड को मेरी योनि के अंदर डाल दिया. दोनो एक साथ मेरे आगे और पीछे से धक्का मारते और मैं बीच मे फाँसी दर्द से कराह उठती.
इस तरह जो संभोग चालू हुआ तो घंटों चलता रहा दोनो ने मुझे रात भर बुरी तरह झिझोर दिया. कभी आगे से कभी पीछे से कभी मुँह मे तो कभी मेरी दोनो चुचियों के बीच हर जगह जी भर कर मालिश की. मेरे पूरे बदन पर वीर्य का मानो लेप चढ़ा दिया. पूरा बदन वीर्य से चिपचिपा हो रहा था. ना तो उन्हों ने इसे पोंच्छा ना मुझे ही अपने बदन को सॉफ करने दिया. दोनो मुझे तब तक रोन्द्ते रहे जब तक ना संभोग करते करते वो निढाल हो कर वहीं पर गये. मैं तो मानो कोमा मे थी. मेरे बदन के साथ जो कुछ हो रहा था मुझे लग रहा था मानो कोई सपना हो. दोनो आख़िर निढाल हो कर वहीं लुढ़क गये.
रात को कभी किसी की आँख खुलती तो मुझे कुछ देर तक झींझोरने लगता. पता ही नहीं चला कब भोर हो गयी. अचानक मेरी आँख खुली तो देखा चारों ओर लालिमा फैल रही है. मैं दोनो की गोद मे बिल्कुल नग्न लेटी हुई थी. मेरा नशा ख़त्म हो चुका था. मुझे अपनी हालत पर शर्म आने लगी. मुझे अपने आप से नफ़रत होने लगी. किस तरह मैने उन्हे अपनी मनमानी कर लेने दिया. जी मे आ रहा था कि वहीं से कोई पत्थर उठा कर दोनो के सिर फोड़ दूं. मगर उठने लगी तो लगा मानो मेरा निचला बदन सुन्न हो गया हो. दर्द की अधिकता के कारण मैं लड़खड़ा कर वापस वहीं पसर गयी. मेरे गिरने से दोनो चौंक कर उठ बैठे और मेरी हालत देख कर मुस्कुरा दिए. मेरे फूल से बदन की हालत बहुत ही बुरी हो रही थी. जगह जगह लाल नीले निशान परे हुए थे. मेरे स्तन दर्द से सूजे हुए थे. दोनो ने सहारा देकर मुझे उठाया. मुकुल मुझे अरुण की बाहों मे छोड़ कर मेरे कपड़े ले आया तब तक अरुण मेरे नग्न शरीर से लिपटा हुया मेरे होंठों को चूमता रहा. एक हाथ मेरे स्तनो को मसल रहे थे तो दूसरा हाथ मेरी जांघों के बीच मेरी योनि को मसल रहा था. दोनो ने मिल कर मुझे कपड़े पहनने मे मदद की मगर अरुण ने मुझे मेरी ब्रा और पॅंटी वापस नही की उन दो कपड़ों को उसने हमारे संभोग की यादगार के रूप मे अपने पास रख लिया.
मैने सूमो मे बैठ कर बॅक मिरर पर नज़र डाली तो अपनी हालत देख कर रो पड़ी. होंठ सूज रहे थे चेहरे पर वीर्य सूख कर सफेद पपड़ी बना रहा था. मुझे अपने आप से घिंन आरहि थी. सड़क के पास ही थोड़ा पानी जमा हुआ था. जिस से अपना चेहरा धो कर अपने आप को व्यवस्थित किया.
दोनो मुझे अपने बदन से उनके दिए निशानो को मिटाने की नाकाम कोशिश करते देख रहे थे. अरुण मेरे बदन से लिपट कर मेरे होंठो को चूम लिया. मैने उसे धकेल कर अपने से अलग किया. "मुझे अपने घर वापस छोड़ दो." मैने गुस्से से कहा. अरुण ने सामने की सीट पर बैठ कर जीप को स्टार्ट किया. जीप एक ही झटके मे स्टार्ट हो गयी.
"ये….ये तो एक बार मे ही स्टार्ट हो गयी…" मैने उनकी तरफ देखा तो दोनो को मुझ पर मुस्कुराते हुए पाया. मैं समझ गयी कि ये सब दोनो की मिली भगत थी. मुझे चोदने के लिए ही सूनसान जगह मे लेजा कर गाड़ी खराब कर दिया. सारा दोनो की मिली जुली प्लॅनिंग का हिस्सा था. मैं चुप चाप बैठी रही और दोनो को मन ही मन कोस्ती रही.
घंटे भर बाद हम घर पहुँचे. रास्ते मे भी दोनो मेरे स्तनो पर हाथ फेरते रहे. मगर मैने दोनो को गुस्से से अपने बदन सी अलग रखा. हम जब तक घर पहुँचे राज अपने काम पर निकल चुका था जो की मेरे लिए बहुत ही अच्छा रहा वरना उसको मेरी हालत देख कर सॉफ पता चल जाता कि रात भर मैने क्या क्या गुल खिलाएँ हैं. मेरे लिए उसकी गहरी आँखों को सफाई देना भारी पड़ जाता.
मैने दरवाजा खोला और अंदर गयी. दोनो मेरे पीछे पीच्चे अंदर आ गये. मैं उन्हे रोक नही पाई.
"मैं बाथरूम मे जा रही हूँ नहाने के लिए तुम वापस जाते समय दरवाजा भिड़ा देना."
"जानेमन इतनी जल्दी भी क्या है. अभी एक एक राउंड और खेलने का मन हो रहा है." अरुण ने बदतमीज़ी से अपने दाँत निकाले.
"नही….चले जाओ नही तो मैं राज शर्मा को बता दूँगी. राज शर्मा को पता चल गया तो वो तुम दोनो को जिंदा नही छोड़ेगा." मैने दोनो की ओर नफ़रत से देखा.
"अरे नही जानेमन तुम हम मर्दों से वाकिफ़ नही हो. अभी अगर जा कर मैने कह दिया कि तुम्हारी बीवी सारी रात हमारे साथ गुलचर्रे उड़ाने के लिए रात भर हमारे पास रुक गयी तो तुम्हारा हज़्बेंड हमे ही सही मानेगा. देती रहना तुम अपनी सफाई. हाहाहा…." अरुण मेरी बेबसी पर हंस रहा था मुझे लग रहा था कि अभी दोनो का गला दबा दूं. मैं चुप छाप खड़ी फटी फटी आँखों से उसे देखती ही रह गयी.
"जाओ जानेमन नहा लो….बदन से पसीने की बू आ रही है. नहा धोकर तैयार रहना और हां बदन पर कोई भी कपड़ा नही रहे. हम कुछ देर मे तुम्हारे पातिदेव से मिलकर आते हैं. जाने से पहले एक बार तुम्हारे बदन को और अपने पानी से भिगो कर जाएँगे."
मैं चुप चाप खड़ी रही.
"अगर तूने हमारी बातों को नही माना तो कल तक सारा हॉस्पिटल जान जाएगा कि डॉक्टर. राधा अपनी सहेली के पति और उसके दोस्त के साथ रात भर रंगरलियाँ मना कर आ रही है. तुम्हारी ये ब्रा और पॅंटी मेरी बातों को साबित करेंगे."
मैं ठगी सी देखती रह गयी. कुछ भी नही कह पायी. दोनो हंसते हुए कमरे से निकल गये.
मैं दरवाजा बंद कर के अपनी बेबसी पर रो पड़ी. कुछ देर तक बिस्तर पर पड़ी रही फिर उठकर मैं बाथरूम मे घुस कर शवर के नीचे अपने बदन को खूब रगड़ रगड़ कर नहाई. मानो उन दोनो के दिए हर निशान को मिटा देना चाहती हौं.
बाहर निकल कर मैने कपड़ों की ओर हाथ बढ़ाए. मगर दोनो की हिदायत याद करके रुक गयी. मैं कुछ देर तक असमंजस मे रही. मैं अकेले मे भी कभी घर मे नग्न नही रही थी. फिर आज….खैर माने एक राज शर्मा का सामने से पूरा खुल जाने वाला गाउन पहना और बिस्तर पर जाकर लुढ़क गयी. अभी नींद का एक झोंका आया ही था कि डोर बेल की आवाज़ से नींद खुल गयी. मैने उठ कर घड़ी की तरफ निगाह डाली. सुबह के दस बज रहे थे. दोनो को गये हुए एक घंटा हो चुका था इसका मतलब है कि दरवाजे पर दोनो ही होंगे. मैं दरवाजे पर जा कर अपने गाउन की डोर खींच कर खोल दी. गाउन को अपने बदन से हटाना ही चाहती थी कि अचानक ये विचार कौंध गया कि अगर दोनो के अलावा कोई और हुआ तो? अगर उनकी जगह राज शर्मा ही हुआ तो…..क्या सोचेगा मुझे इस रूप मे देख कर? …..मेरे बदन पर बने अनगिनत नाखूनो और दांतो के निशान देख कर?
"कौन है?" मैने पूछा.
"हम हैं जानेमन….तुम्हारे आशिक़" बाहर से आवाज़ आई. मेरे पूरे बदन मे एक नफ़रत की आग जलने लगी. मैने एक लंबी साँस ली और अपने गाउन को अपने बदन से अलग होकर ज़मीन पर गिर जाने दिया. और दरवाजे की संकाल नीच कर दी. दोनो दरवाजे को खोल कर अंदर आ गये. मुझे इस रूप मे देख कर दोनो तो बस पागल ही हो गये. मैं ना नुकुर करती रही मगर मेरी मिन्नतों को सुनने का किसी के पास टाइम नही था. दोनो अंदर आ कर दरवाजे को अंदर से बंद किया. अरुण ने एक झटके से मेरे नंगे बदन को अपनी गोद मे उठाकर बेडरूम मे ले गया. मुझे बेड पर लिटा कर दोनो अपने कपड़े खोलने लगे.
"जान आज हम तुझे तेरे उसी बिस्तर पर चोदेन्गे जिस पर तू आज तक अपने राज शर्मा से ही चुद्ती आई होगी." अरुण ने कहा," ज़रा हम भी तो देखें की राज शर्मा को कितना मज़ा आता होगा तेरे इस नाज़ुक बदन को मसल्ने मे."
दोनो पूरी तरह नग्न हो कर बिस्तर पर चढ़ गये. मुझे चीत लिटा कर मुकुल मेरी टाँगों के बीच आ गया और अपना लंड मेरी योनि मे एक झटके मे डाल कर मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा.
पूरी योनि रात भर की चुदाई से सूजी हुई थी उस पर से मुकुल का मोटा लंड किसी तरह का रहम देने के मूड मे नही था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई मेरी योनि को किसी सांड पेपर से घिस रहा हो. अरुण उसे खींच कर मुझ पर से हटाना चाहा. पहले मेरी योनि की चढ़ाई वो ही करना चाहता था मगर मुकुल ने कहा इस बार तो पहले वो ही चोदेगा और उसने हटने से सॉफ सॉफ इनकार कर दिया.
अरुण जब मुझ पर से मुकुल को नही हटा पाया तो मेरे स्तनो पर टूट पड़ा. मुकुल मुझे ज़ोर ज़ोर से चोदने मे लगा था. उसके हर धक्के के साथ पूरा बिस्तर हिल जाता था. एक तो पूरी रात चुदाई की थकान और उपर से दुख़्ता हुआ बदन इस बार तो मैं दर्द से दोहरी हुई जा रही थी. मुँह से लगातार दर्द भरी आवाज़ें और चीखें निकल रही थी.
"आआआआहह…….हा…..हा……ऊऊऊओह………म्
" मैं इसके पीछे घुसाता हूँ तू उसके बाद इसकी योनि मे अपना लंड ठोकना. दोनो साथ साथ ठोकेंगे इसे." अरुण ने कहा तो मुकुल ने अपना लंड मेरी योनि से निकाल लिया. अरुण ने मुझे घुमा कर पेट के बल लिटा दिया और मेरे नितंबों के नीचे अपने हाथ देकर मेरे बदन को कुछ उपर खींचा. मेरे बदन मे अब उनका किसी भी तरह का विरोध करने की ना तो कोई ताक़त बची थी ना ही कोई इच्च्छा. मैने अपना बदन ढीला छोड़ रखा था दोनो जैसे चाह रहे थे मेरे बदन को उस तरह से भोग रहे थे. अरुण अपने लंड को मेरे गुदा पर सेट करके मेरे उपर लेट गया. उसे इसमे मुकुल मदद कर रहा था. मुकुल ने अपने हाथों से मेरी टाँगे फैला कर मेरे दोनो नितंबों को अलग करके अरुण के लंड के लिए रास्ता बनाया. उसके लेटने से अरुण का लंड मेरे गुदा द्वार को खोलता हुआ अंदर चला गया. आज ही इसकी सील मुकुल ने तोड़ दी थी इसलिए इस बार ज़्यादा दर्द नही हुआ. मुझे उसी अवस्था मे अरुण कुछ देर तक चोद्ता रहा. उसके हाथ नीचे जाकर मेरे स्तनो को वापस निचोड़ने लगे.
कुछ देर बाद उसी अवस्था मे अपने लंड को अंदर डाले डाले अरुण घूम गया. अब मेरा चेहरा छत की तरफ हो गया था. नीचे से अरुण का लंड मेरे गुदा मे धंसा हुआ था.
" अरुण कुछ बचा भी है इन दूध की बोतलों मे? आज इनको भरने की तैयारी करते हैं. देखते हैं दोनो मे से कौन बनता है इसके बच्चे का बाप. जब इन बोतलों मे दूध आएगा तो ये खुशी खुशी हमारे लंड को नहलाएगी अपने दूध से." मुकुल हंस रहा था. उसने मेरी योनि की फांकों को अपनी उंगलियों से अलग किया और अपने लंड को अंदर डाल दिया. वापस मैं दोनो के बीच सॅंडविच बनी हुई थी. दोनो ओर से एक एक लंड मेरे बदन को पीस रहे थे. दोनो एक साथ अपने लंड ठोकने लगे.
तभी अरुण ने हाथ बढ़ा कर टेलिफोन उठाया.
क्रमशाश.......................
gataank se aage....................
Mukul ne apna lund mere guda dwar per sata diya. "nahin pleeease wahan nahin" maine lagbhag rote hue kaha. Meri fat jayegi. Please wahan mat ghosao. main tum dono ko saari raat mere badan se khelne doongi magar mujhe is tarah mat karo main mar jaungi" main gid gida rahi thi magar unpar koi asar nahi ho raha tha. Mukul apne kaam me juta raha. Main haath pair maar rahi thi magar Arun ne apne balishth bahon aur pairon se mujhe bilkul bebas kar diya tha. Mukulne mere nitambon ko faila kar ek jordaar dhakka mara.
"uuuuuiiiii maaaa mar gayeee" meri cheekh poore jangal me goonj gayee. Magar dono hans rahe the. "suuuuuraaaj… .ssuuuuraaaj mujhe bchaaaao….."
"thoda sbar karo sab thik ho jayega. Saara dard khatm ho jayega." Mukul ne mujhe samjhane ki koshish ki. Meri aankhon se pani bah nikla. Maindard se rone lagi. Dono mujhe chup karane ki koshish karne lage. Mukul ne apne lund ko kuch der tak usi tarah rakha.
Kuch der baad main jab shant hui to mukul ne dheere dheere adhe lund ko ander kar diya. Maine aur Raaj ne shaadi ke baad se hi khoob sex ka khel khela tha magar uski niyat kabhi mere guda par khadab nahin hui. Magar in dono ne to mujhe kahin ka nahin choda. Meri dard ke mare jaan nikali ja rahi thi. Dono ke jism ke beech sandwich bane huye chhatpatane ke alawa kuch bhi nahi kar pa rahi thi.
Adhaa lund ander kar ke Mukul mere upar let gaya. Uske shareer ke bojh se baki bacha adha lund mere asshole ko cheerta hua jad tak dhans gaya. Aisa lag raha tha mano kisine lohe ki garm salakh mere guda me daal di ho. Main dono ke beech sandwich ki tarah leti hui thi. Ek tagda lund age se aur ek lund peechhe se mere badan me thuka hua tha. Aisa lag raha tha mano Dono lund mere badan ke andar ek doosre ko choom rahe hon. Kuch der yun hi mere upar lete rahne ke baad Mukul ne apne badan ko harkat de di. Arun shant leta hua tha. Jaise hi Mukul apne lund ko bahar kheenchta mere nitamb uske lund ke saath hi khinche chale jate the. Isse Arun ka lund meri yoni se bahar ki or sarak jata aur fir jab dobara Mukul mere guda me apna lund thokta to Arun ka lund apne aap hi meri yoni me andar tak ghus jata . us choti si jagah me teen jism gudmud ho rahe the. Har dhakke ke saath mera sir gadi ke body se bhid raha tha. Ganimat thi ki side me cushion lage huye the warna mere sir me goomad nikal ata. Mukul ke munh se "huh…huh…huh" jaisi awaj har dhakke ke saath nikal rahi thi. Uske har dhakke ke saath hi mere fefde ki sari hawa nikal jati aur fir main saans lene ke liye uske lund ke bahar hone ka intezaar karti.Main dono ke beech pis rahi thi. Main bhi maje lene lagi. Bees pachees minut tak mujhe is tarah chodane ke baad ek saath dono discharge hogaye. Mere bhi fir se unke saath hi discharge ho gaya. Is thand me bhi hum paseene se buri tarah bheeg gaye the.Mera poora badan geela geela aur chipchipa ho raha tha. Dono chhedon se veerya tapak raha tha.
Teenon ke "aaaaaaahhhhh oooooohhhh" se poora jungle goonj raha tha.
Arun to chodte waqt gandi gandi galiyan nikalta tha. Hum teeno buri tarah hanf rahe the. Main kafi der tak seat par apne pairon ko failaye padi rahi.
Mujhe dono ne sahara dekar uthaya. Mere janghon ke jod par age peechhe dono taraf hi jalan machi hui thi. Dono ke beech main usi halat me baith gayee. dono ke saath sex hone ke baad ab aur sharm ki koi gunjaish nahi bachi thi. Dono mere nagn badan ko choom rahe the aur ashleel bhasha me baten karte ja rahe the. Dono ke lund sikud kar chote chote ho chuke the.
Kuch der baad Mukul ne peechhe se ek box se kuch sandwich nikaale jo shayad apne liye rakhe the. Hum teenon ne usi halat me apas me mil baant kar khaya. Pani ke naam par to bus Rum ki bottle hi adhi bachi thi. Mujhe man kar bhi us bottle se do ghoont lene pare. Do ghoont peete hi kuch der me sir ghoomne laga aur badan kafi halka ho gaya. Maine apni ankhen band kar li. Main is duniya se bekhabar thi. Tabhi dono side ke darwaje khulne aur band hone ki awaj aye. Magar maine apni ankhen khol kar dekhne ki jaroorat bhi mahsoos nahi ki. Main usi halat me apni nagnta se bekhabar gadi ki seat par pasri hui thi.
Kuch der baad wapas gadi ka darwaja khula aur meri banh ko pakad kar kisine bahar kheencha. Maine apni ankh khol kar dekha ki sadak ke paas ghaas foos ikattha karke ek alaw jala rakha hai.
Paas hi us fati hui chadar ko faila kar jameen par bichha rakha tha. Us chadar par Arun nagn halat me baitha hua shayad mera hi intezaar klar raha tha. Mukul mujhe kheench kar Alaw ke paas le ja raha tha. Main ladkhadate huye kadmo se uske saath khinchti ja rahi thi. Do baar to girne ko hui to Mukul ne mere badan ko sahara diya. Uske nagn badan ki chuan apne nange badan par pa kar mujhe ab tak ki poori ghatna yaad a gayee. main uske panjon se apna haath chhudana chahti thi magar mujhe laga mano badan me koi jaan hi nahi bachi hai.
Mere alaw ke paas pahunchte hi Arun ne apna hath badha kar mujhe apni god me kheench liya. Mukul bhi wahi akar baith gaya. Dono wapas mere nagn badan ko masalne kachotne lage. Mere ek ek ang ko tod marod kar rakh diya. Thakan aur nashe se wapas meri ankhen band hone lagi. Dono eke k stan par apna haq jamane ki koshish kar rahe the. Dono ki do do ungliyan ek saath meri yoni ke andar bahar ho rahi thi. Main uttejna se tadapne lagi. Main dono ke siron ko jakad kar apni chuchiyon par bheench rahi thi.
Arun ghtne ke bal utha aur mere sir ko balon se pakad kar apne lund par daba diya. Veerya se sane uske lund ko maine apna munh khol kar andar jane ka rasta diya. Main unke lund ko choosne lagi aur Mukul meri yoni aur nitambon par apni jeebh ferne laga. Mujhe don one hathon aur pairon ke bal par kisi janwar ki tarah jhukaya aur Arun mere samne se akar apna lund wapas mere munh me daal diya. Tabhi Mukul ne wapas apne lund ko meri yoni ke andar daal diya. Dono ek saath mere age aur peechhe se dhakka marte aur main beech me fansi dard se karah uthti.
Is tarah jo sambhog chalu hua to ghanton chalta raha dono ne mujhe raat bhar buri tarah jhijhor diya. Kabhi age se kabhi peechhe se kabhi munh me to kabhi meri dono chuchiyon ke beech har jagah jee bhar kar malish kee. Mere poore badan par veerya ka mano lep chadha diya. Poora badan veerya se chipchipa ho raha tha. Na to unhon ne ise poncha na mujhe hi apne badan ko saaf karne diya. Dono mujhe tab tak rondte rahe jab tak na Sambhog karte karte wo nidhaal ho kar wahin par gaye. Main to mano coma me thi. Mere badan ke saath jo kuch ho raha tha mujhe lag raha tha mano koi sapna ho. Dono akhir nidhal ho kar wahin ludhak gaye.
Raat ko kabhi kisi ki aankh khulti to mujhe kuch der tak jhinjhorne lagta. Pata hi nahin chala kab bhor ho gayi. Achanak meri aankh khuli to dekha charon or lalima fail rahi hai. Main dono ki god me bilkul nagn leti hui thi. Mera nasha khatm ho chuka tha. Mujhe apni halat par sharm ane lagi. Mujhe apne aap se nafrat hone lagi. Kis tarah maine unhe apni manmaani kar lene diya. Jee me a raha tha ki wahin se koi patthar utha kar dono ke sir fod doon. Magar uthne lagi to laga mano mera nichla badan sunn ho gaya ho. Dard ki adhikta ke karan main ladkhada kar wapas wahin pasar gayee. Mere girne se dono chaunk kar uth baithe aur meri halat dekh kar muskura diye. Mere phool se badan ki halat bahut hi buri ho rahi thi. Jagah jagah laal neele nishaan pare huye the. Mere stan dard se suje huye the. Dono ne sahara dekar mujhe uthaya. Mukul mujhe Arun ki bahon me chod kar mere kapde le aya tab tak Arun mere nagn shareer se lipta huya mere honthon ko choomta raha. Ek hath mere stano ko masal rahe the to doosra hath meri janghon ke beech meri yoni ko masal raha tha. Dono ne mil kar mujhe kapde pahanne me madad ki magar Arun ne mujhe meri bra aur panty wapas nahi ki un do kapdon ko usne hamare sambhog ki yaadgaar ke roop me apne paas rakh liya.
Maine Sumo me baith kar back mirror par najar daali to apni haalat dekh kar ro padi. Honth sooj rahe the chehre par veerya sookh kar safed papdi bana raha tha. Mujhe apne aap se ghinn aarahi thi. Sadak ke paas hi thoda paani jama hua tha. Jis se apna chehra dho kar apne aap ko vyavasthit kiya.
Dono mujhe apne badan se unke diye nishano ko mitane ki nakam koshish karte dekh rahe the. Arun mere badan se lipat kar mere hontho ko chum liya. Maine use dhakel kar apne se alag kiya. "mujhe apne ghar wapas chod do." Maine gusse se kaha. Arun ne samne ki seat par baith kar jeep ko start kiya. Jeep ek hi jhatke me start ho gayi.
"ye….ye to ek baar me hi start ho gayee…" maine unki taraf dekha to dono ko mujh par muskurate huye paya. Main samajh gayi ki ye sab dono ki mili bhagat thi. Mujhe chodane ke liye hi soonsaan jagah me lejakar gadi khadab kar diya. Saara dono ki mili juli planning ka hissa tha. Main chup chaap baithee rahi aur dono ko man hi man kosti rahi.
Ghante bhar baad hum ghar pahunche. Raste me bhi dono mere urozon par haath ferte rahe. Magar maine dono ko gusse se apne badan sea alag rakha. Hum jab tak ghar pahunche Raaj apne kaam par nikal chuka tha jo ki mere liye bahut hi achcha raha warna usko meri halat dekh kar saaf pata chal jaata ki raat bhar maine kya kya gul khilayen hain. Mere liye uski gahree ankhon ko safai dena bhari par jata.
Maine darwaja khola aur andar gayee. Dono mere peechhe peechhe andar a gaye. Main unhe rok nahi payee.
"main bathroom me ja rahi hoon nahane ke liye tum wapas jate samay darwaja bhida dena."
"janeman itni jaldi bhi kya hai. Abhi ek ek round aur khelne ka man ho raha hai." Arun ne badtameeji se apne daant nikale.
"nahi….chale jao nahi to main Raj sharma ko bata doongi. Raj sharma ko pata chal gaya to wo tum dono ko jinda nahi chodega." Maine dono ki or nafrat se dekha.
"are nahi janeman tum hum mardon se wakif nahi ho. Abhi agar ja kar maine kah diya ki tumhari biwi saari raat humare saath gulcharre udane ke liye raat bhar humare paas ruk gayee to tumhara husband hume hi sahi manega. Deti rahna tum apni safai. Hahaha…." Arun meri bebasi par hans raha tha mujhe lag raha tha ki abhi dono ka gala daba doon. Main chup chhap khadi fati fati ankhon se use dekhti hi rah gayee.
"jao janeman nahalo….badan se paseene ki boo a rahi hai. Naha dhokar taiyaar rahna aur haan badan par koi bhi kapda nahi rahe. Hum kuch der me tumhare patidev se milkar ate hain. Jane se pahle ek baar tumhare badan ko aur apne paani se bhigo kar jayenge."
Main chup chaap khadi rahi.
"agar tune hamari baton ko nahi mana to kal tak sara hospital jaan jayega ki Doctor. Raadha apni saheli ke pati aur uske dost ke saath raat bhar rangraliyan mana kar aa rahi hai. Tumhari ye bra aur panty meri baton ko sabit karenge."
Main thagi si dekhti rah gayee. Kuch bhi nahi kah payee. Dono hanste huye kamre se nikal gaye.
Main darwaja band kar ke apni bebasi par ro padi. Kuch der tak bistar par padi rahi fir uthkar main bathroom me ghus kar shower ke neeche apne badan ko khoob ragad ragad kar nahai. Mano un dono ke diye har nishaan ko mita dena chahti houn.
Bahar nikal kar maine kapdon ki or hath badhaye. Magar dono ki hidayat yaad karke ruk gayee. Main kuch der tak asmanjas me rahi. Main akele me bhi kabhi ghar me nagn nahi rahi thi. Fir aaj….khair mane ek Raj sharma ka samne se poora khul jane wala gown phana aur bistar par jakar ludhak gayee. Abhi neeng ka ek jhonka aya hi tha ki door bell ki awaj se neend khul gayee. Maine uth kar ghadi ki taraf nigaah dali. Subah ke dus baj rahe the. Dono ko gaye huye ek ghanta ho chuka tha iska matlab hai ki darwaje par dono hi honge. Main darwaje par ja kar apne gown ki dor kheench kar khol di. Gown ko apne badan se hatana hi chahti thi ki achanak ye vichaar kaundh gaya ki agar dono ke alawa koi aur hua to? Agar unki Jagah Raj sharma hi hua to…..kya sochega mujhe is roop me dekh kar? …..mere badan par bane anginat nakhoono aur daanto ke nishaan dekh kar?
"kaun hai?" maine poochha.
"hum hain janeman….tumhare ashiq" bahar se awaj ayee. Mere poore badan me ek nafrat ki aag jalne lagi. Maine ek lambi saans li aur apne gown ko apne badan se alag hokar jameen par gir jane diya. Aur darwaje ki sankal neech kar di. Dono darwaje ko khol kar andar a gaye. Mujhe is roop me dekh kar dono to bus pagal hi ho gaye. Main na nukur karti rahi magar meri minnaton ko suune ka kisi ke paas time nahi tha. Dono andar a kar darwaje ko andar se band kiya. Arun ne ek jhatke se mere nange badan ko apni god me uthakar beDoctoroom me le gaya. Mujhe bed par lita kar dono apne kapde kholne lage.
"jaan aaj hum tujhe tere usi bistar par chodenge jis par tu aaj tak apne Raj sharma se hi chudti ayee hogi." Arun ne kaha," jara hum bhi to dekhen ki Raj sharma ko kitna maja ata hoga tere is najuk badan ko masalne me."
Dono poori tarah nagn ho kar bistar par chadh gaye. Mujhe chit lita kar Mukul meri tangon ke beech a gaya aur apna lund meri yoni me ek jhatke me daal kar mujhe jor jor se chodane laga.
Poori yoni raat bhar ki chudai se sooji hui thi us par se Mukul ka mota lund kisi tarah ka raham dene ke mood me nahi tha. Aisa lag raha tha jaise koi meri yoni ko kisi sand paper se ghis raha ho. Arun use kheench kar mujh par se hatana chaha. pahle meri yoni ki chadhai wo hi karna chahta tha magar Mukul ne kaha is baar to pahle wo hi chodega aur usne hatne se saaf saaf inkaar kar diya.
Arun jab mujh par se Mukul ko nahi hata paya to mere stano par toot pada. Mukul mujhe jor jor se chodane me laga tha. Uske har dhakke ke saath poora bistar hil jata tha. Ek to poori raat chudai ki thakan aur upar se dukhta hua badan is baar to main dard se dohri hui ja rahi thi. Munh se lagataar dard bhari awajen aur cheekhen nikal rahi thi.
"aaaaaaaahhhh…….huh…..huh……
" main iske peechhe ghusata hoon tu uske baad iski yoni me apna lund thokna. Dono saath saath thokenge ise." Arun ne kaha to Mukul ne apna lund meri yoni se nikaal liya. Arun ne mujhe ghuma kar pet ke bal lita diya aur mere nitambon ke neeche apne hath dekar mere badan ko kuch upar khincha. Mere badan me ab unka kisi bhi tarah ka virodh karne kin a to koi taqat bachi thi na hi koi ichchha. Maine apna badan dheela chod rakha tha dono jaise chah rahe the mere badan ko us tarah se bhog rahe the. Arun apne lund ko mere guda par set karke mere upar let gaya. Use isme Mukul madad kar raha tha. Mukul ne apne hathon se meri tangent faila kar mere dono nitambon ko alag karke Arun ke lund ke liye rasta banaya. Uske letne se Arun ka lund mere guda dwaar ko kholta hua andar chala gaya. Aaj hi iski seal Mukul ne tod di thi isliye is baar jyada dard nahi hua. Mujhe usi awastha me Arun kuch der tak chodta raha. Uske hath neeche jakar mere stano ko wapas nichodane lage.
Kuch der baad usi awastha me apne lund ko andar dale dale Arun ghoom gaya. Ab mera chehra chat ki taraf ho gaya tha. Neeche se Arun ka lund mere guda me dhansa hua tha.
" Arun kuch bacha bhi hai in doodh ki botlon me? Aaj inko bharne ki taiyaari karte hain. Dekhte hain dono me se kaun banta hai iske bachche ka baap. Jab in botlon me doodh ayega to ye khushi khushi humare lund ko nahlayegi apne doodh se." Mukul hans raha tha. Usne meri yoni ki fankon ko apni ungliyon se alag kiya aur apne lund ko andar daal diya. Wapas main dono ke beech sandwich bani hui thi. Dono or se eke k lund mere badan ko pees rahe the. Dono ek saath apne lund thokne lage.
Tabhi Arun ne hath badha kar telephone uthaya.
KRAMASHASH....................
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