FUN-MAZA-MASTI
raj sharma stories
राधा का राज--7गतान्क से आगे....................
" अरे मैं तो तुझे कहना ही भूल गया था. राज शर्मा बात करना चाहता है तुझसे. कह रहा था कि राधा से मेरी बात करवा देना."
इससे पहले की मैं "न्न्न्नाआी….. नहियीईईईई… .अभिईीई. .नहियीईईईई… . प्लीईसए……..इससस्स…..हाालात मईए नहियीईईईईई… .." कहकर उसे मना करती अरुण ने नंबर डाइयल कर दिया था. और उसका रिसीवर मेरे कान पर लगा दिया. हार कर मैने हाथ बढ़ा कर रिसीवर अपने हाथों मे ले लिया.
"हेलो…" दूसरी ओर से राज शर्मा की आवाज़ आई तो मेरे आँखों से आँसू आ गये. मैं चुप रही. दोनो पूरी ताक़त से मुझे चोद रहे थे.
"हेलो.." राज शर्मा ने दोबारा कहा तो मैने भी जवाब दिया"हेलो….राज … ..हा…हा…मैं राधा. मैं घर पहुँच गयी हूँ."
"ठीक तो हो ना? रास्ते मे कोई परेशानी तो नही हुई?"
"नही कोई परेशानी..ओफफ्फ़… .कोई परेशानी नही हुई..आह… मैं ठीक हूँ…तुम हा हा परेशान मत होना."
"तुम्हारी बातों से तो लग रहा है कि तुम्हारी तबीयत ठीक नही है. तुम इतनी हाँफ क्यों रही हो?"
" अरे कुछ नही….सुबह गाड़ी को काफ़ी धक्का लगाना पड़ा इसलिए अभी तक हाँफ रही हूँ. थकान के कारण ही पूरा बदन दर्द कर रहा है. कोई बात नही अभी कोई पेन किल्लर ले लेती हूँ शाम तक ठीक हो जवँगी. ह्म्म्म आहह तुम परेशान मत होना." कहकर मैने जल्दी से फोन काट दिया. ज़्यादा बात करने से मेरी हालत का पता चल जाने का डर था.
दोनो कुछ देर बाद अपने अपने लंड से ढेर सारा वीर्य मेरे दोनो छेदो मे भर कर मेरे बदन पर से उठ गये. दोनो अपने कपड़े पहने और वापस चले गये. मैं किसी तरह लड़ खड़ाती हुई उठी और उसी हालत मे दरवाजे तक आ कर उसे बंद किया और दौड़ कर वापस बाथरूम मे घुस गयी. दोनो छेदो से उनका रस रिस्ता हुआ जांघों तक पहुँच गया था. मैने वापस पानी से अपने बदन को सॉफ किया और बिस्तर मे आकर पड़ गयी. कब मेरी आँख लगी पता ही नही चला. जब आँख खुली तब शाम हो चुकी थी. मैने पेन किल्लर ले कर अपने दुख़्ते बदन को कुछ नॉर्मल किया जिससे राज शर्मा को पता नही चले. और तैयार होकर राज शर्मा का इंतेज़ार करने लगी.
रचना की डेलिवरी हो गयी. उसने एक प्यारे से लड़के को जन्म दिया था. उस घटना केबाद अरुण कई बार किसी ना किसी बहाने से आया मगर मैं हमेशा या तो हॉस्पिटल मे लोगों के बीच छिपि रहती या राज शर्मा के साथ रहती. जिससे की अरुण को कोई मौका नही मिल पाए. एक दो बार साथ मे मुकुल भी आया मगर मैने दोनो की चलने नही दी. दोनो मुझे लोगों से छिप कर अश्लील इशारे करते थे मगर मैने उन्हे अनदेखा कर दिया. मैने एक दो बार दबी आवाज़ मे उन्हे राज शर्मा से शिकायत करने की और रचना को खबर करने की धमकी भी दी तो उनका आना कुछ कम हुआ. मुझे उस आदमी से इतनी नफ़रत हो गयी थी कि बयान नही कर सकती. मैने मन ही मन उसके इस गिरे हुए हरकत का बदला लेने की ठान ली थी.
डेलिएवेरी के तीन महीने बाद रचना वापस आ गयी. अरुण गया था उसे लेने. दोनो बहुत खुश थे. हम भी उस नये अजनबी के स्वागत मे बिज़ी हो गये. उन्हों ने अपने बेटे का नाम रखा था अनिल. बहुत क्यूट है उनका अनिल. बिल्कुल अपने बाप की शक्ल पाया है. वापस आने के बाद अरुण कुछ दिन तक रचना के पास ही रहा. हम दोनो के मकान पास पास ही थे. इसलिए हम अक्सर किसी एक के घर मे ही रहते. अरुण मौके की तलाश मे रहता था. मुझे दोबारा दबोचने के लिए वो तड़प रहा था.
कई बार मौके मिले मेरे बदन को सहलाने और मसल्ने के लिए. रचना अपने बच्चे मे बिज़ी रहती थी इसलिए अरुण को किसी ना किसी बहाने मौका मिल ही जाता था. मैं घर पर सिर्फ़ एक झीनी सी नाइटी मे ही रहती थी. कई बार उसकी हरकतों से बचने के लिए मैने अंदरूनी वस्त्र पहनने की कोशिश की मगर उसने मुझे धमका कर ऐसा करने से रोक दिया. वो तो चाहता था कि मैं सुबह घर पर बिल्कुल नंगी ही रहूं जिससे उसे कपड़ो को हटाने की मेहनत नही करनी पड़े. मगर मैने इसका जम कर विरोध किया. अंत मे मैं इस बात पर राज़ी हुई कि घर मे सिर्फ़ एक पतला गाउन पहन कर ही रहूंगी.
राज शर्मा के सामने वो अपनी हरकतों को कंट्रोल मे रखता मगर हमेशा कुछ ना कुछ हरकत करने के लिए मौका ढूंढता ही रहता था. अब उसी दिन की बात लो हम दो फॅमिली एक रेस्टोरेंट मे डिन्नर के लिए गये. मैं अरुण के सामने की चेर पर बैठी थी और रचना राज शर्मा के सामने. हम दोनो ही सारी पहने हुए थे. अचानक मैने अपनी टाँगों पर कुछ रेंगता हुआ महसूस किया. मैने नीचे नज़र डाली तो देखा की वो अरुण का पैर था. अरुण इस तरह बातें करने मे मशगूल था जैसे उसे कुछ भी नही पता हो कि टेबल के नीचे क्या चल रहा है. उसने अपने पैर के पंजों से मेरी सारी को पकड़ कर उसे कुछ उपर उठाया और उसका पैर मेरे नग्न पैरों के उपर फिरने लगा. वो धीरे धीरे अपने पैर को उठता हुआ मेरे घुटनो तक पहुँचा. मैं घबराहट के मारे पसीने पसीने हो रही थी. वो एक पब्लिक प्लेस था और हम पर किसी की भी नज़र पड़ सकती थी. मेरी सारी काफ़ी उपर उठ चुकी थी. अब वो अपने पैर को दोनो जांघों के बीच फिराने लगा. मेरी सारी अब घुटनो के उपर उठ चुकी थी. मैने चारों तरफ नज़र दौड़ाई. सब अपने अपने काम मे व्यस्त थे किसी की भी नज़र हम पर नही थी. दूसरों को तो छोड़ो राज शर्मा और रचना भी हमारी हरकतों से बेख़बर चुहल बाजी मे लगे हुए थे. अरुण भी बराबर उनका साथ दे रहा था. सिर्फ़ मैं ही घ्हबराहट के मारे कांप रही थी. उसके पैर का पंजा मेरी पॅंटी को च्छू रहा था. मेरे होंठ सूख रहे थे.
"क्या हुआ बन्नो तू आज इतनी चुप चुप क्यों है?" मैं रचना के सवाल पर एकदम से हड़बड़ा गयी. और मेरी चम्मच से खाना प्लेट मे गिर गया.
"नही नही…..कुछ नही मैं तो….असल मे आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नही लग रही है."
"क्यों…..राज शर्मा तुमने कुछ कर तो नही दिया?" रचना राज शर्मा की ओर देख कर मुस्कुरई, "चलो अच्छी खबर है. तुम लोगों की शादी को काफ़ी साल हो गये अब तो कुछ होना भी चाहिए." कह कर रचना राज की ओर एक आँख दबा कर मुस्कुरई.
"हाँ हां और क्या अब तो रचना भी मम्मी बन गयी. तुम लोगों को भी अब प्रिकॉशन हटा देना चाहिए." अरुण नेरचना की बात आगे बढ़ाता हुआ मेरी ओर देख कर कहा, "राज शर्मा अगर तुमसे कुछ नही हो रहा हो तो किसी और को भी मौका दो." और मुझे वासना भरी निगाहों से देखा.
"हाँ हां क्यों नही…" रचना ने अपने हज़्बेंड को छेड़ते हुए कहा," मेरी सहेली को देख कर तो तुम्हारी शुरू से ही लार टपकती है. तुम तो मौका हो ढूँढ रहे होगे डुबकी लगाने के लिए."
उसे क्या मालूम था उसका हज़्बेंड डुबकी कब्की ही लगा चुका. हम चारों हँसने लगे. अचानक रचना का रुमाल हाथ से फिसल कर नीचे गिर पड़ा. ये देखते ही अरुण ने झटके से अपना पैर मेरी पॅंटी के उपर से हटा कर नीचे किया मगर उसका पैर मेरी सारी मे उलझ गया. मैने भी झटके से अपने दोनो पैर सिकोड लिए. जिससे रचना को पता नही चले. मगर मेरी सारी मे लिपटा उसका पैर हमारी बीच चल रही चुहल बाजी की कहानी कह रहा था. मगर शायद रचना को हम दोनो के बीच इस तरह की किसी हरकत की उम्मीद भी नही थी. इसलिए उसने झुक कर अपना रुमाल उठाया मगर हम दोनो की उलझी हुई टाँगों पर नज़र नही पड़ी. मेरा पूरा बदन पसीने से भीग गया था.
इसी तरह हम कई बार पकड़े जाते जाते बच गये.
मेरी शिफ्ट्स की ड्यूटी रहती थी. इसलिए कभी कभी जब मैं सुबह के वक़्त घर पर होती और राज शर्मा नर्सरी के लिए निकाला होता तब अरुण कुछ माँगने के बहाने से या मुझे बुलाने के बहाने से मेरे घर आ जाता और मुझे दबोच लेता. मेरे इनकार का उस पर कोई असर ही नही होता था. वो सबको बताने की धमकी देकर मेरे छ्छूटने की कोशिशों की हवा निकाल देता. वो मुझे ब्लॅकमेन्ल करके मेरे बदन से खेलने लगता. मैं उसकी जाल मे इस तरह फँसी हुई थी कि ना चाहकर भी चुप रहना पड़ता.
कई बार उसने मुझे दबोच कर एक झटके मे मेरा गाउन शरीर से अलग कर देता. फिर मुझे पूरी तरह नंगी करके मेरे बदन को चूमता चाट्ता और अपने लंड को भी मुझसे चटवाता. वो अपने लंड को ठीक तरह से सॉफ करता था या नही क्या पता क्योंकि उसके लंड से बदबू आती थी. मुझे उसी लंड को चूसने के लिए ज़बरदस्ती करता था. अपनी बीवी पर तो उसकी ज़बरदस्ती चल नही पाती थी. रचना उसके लंड को कभी मुँह से नही लगती. लेकिन मुझे उसके हज़्बेंड के लंड को अपने मुँह मे लेकर चाटना पड़ता था.
वो कभी सोफे पर तो कभी दीवार के साथ लगा कर तो कभी किचन की पट्टी पर मेरे हाथ टिका कर मुझे छोड़ता. मेरे मना करने पर भी वो मेरी योनि को अपने वीर्य से भर देता था. मैं प्रेग्नेन्सी से बचने के लिए डेली कॉंट्रॅसेप्टिव लेने लगी थी. क्योंकि क्या पता कब उसका बीज असर दिखा दे. फिर भी एक डर तो बना ही रहता था.
कुछ दिन वहाँ रह कर अरुण को अपने काम पर लौटना पड़ा. रचना को ड्यूटी पर बच्चा ले जाने मे दिक्कत रही थी. इन्फेक्षन हो जाने का ख़तरा तो रहता ही था. घर पर बच्चे को अकेला भी नही छोड़ सकती थी. मैने उसे अपने घर को बंद कर मेरे और राज शर्मा के साथ ही रहने की सलाह दी.
"नही राधा..अरुण क्या सोचेगा. वो बहुत शक्की आदमी है."
"किसी को बताने की तुझे ज़रूरत ही कहाँ है. जब वो आए तो तू अपने घर चली जाना. अब देख तू यहाँ रहेगी तो तेरे आब्सेन्स मे तेरे बच्चे की मैं ही मा बन कर रहूंगी." मैने कहा.
"लेकिन बच्चे को भूख लगी तो क्या पिलाएगी? तेरे मम्मो मे तो अभी दूध ही नही है." कहकर उसने मेरी चुचियों को मसल दिया. मैं भी उसकी हरकतों पर हँसने लगी.
"एक बात बता…." रचना ने पूछा," तेरा पति कुछ सोचेगा तो नही? मैं अगर तेरे साथ रहने लगी तो उसे कोई ऑब्जेक्षन तो नही होगा?"
"ऑब्जेक्षन और उसे?......" मैने उन दोनो के बीच संबंधों को गरम बनाना की ठान ली थी, "तेरी निकटता से उसे कभी ऑब्जेक्षन हो सकता है क्या? वो तो तेरी निकटता के लिए च्चटपटाता रहता है. और वैसे भी दो दो बीवी पकड़ कोई मना करेगा भला."
" राधा अब मैं मारूँगी तुझे" वो मुझे पकड़ने के लिए मेरी ओर दौड़ी.
"अच्छा? ज़रा आईने मे नज़र मार तेरा लाल शर्म से भरा चेहरा तेरे जज्बातों की चुगली कर रहा है. सॉफ दिख रहा है कि आग तो दोनो तरफ ही लगी हुई है." मैं हँसती हुई सोफे के चारों ओर भागी मगर उसने मुझे पकड़ लिया और हम गुत्थम गुत्था हो कर सोफे पर गिर पड़े.
"तू भी तो कम नही है. अरुण के साथ तू भी बहुत आँख मटक्का करती रहती है. दिन भर किसी ना किसी बहाने से तेरे घर की ओर भागता था और आधे घंटे से पहले वापस नही आता था. तूने क्या अपनी सहेली को अंधी समझ रखा है."
"बुदमास…..शक्की……" हम दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए हंस रहे थे एक दूसरे को चिकोटी काट रहे थे. गुदगुदी दे रहे थे.
खैर रचना अपना सारा समान लेकर हमारे घर पर ही रहने लगी. सामने ही उसके घर का दरवाजा था. दिन मे एक आध बार अपने घर भी चली जाती थी. जिससे अरुण आए तो उसे ऐसा नही लगे कि मकान काफ़ी दिनो से बंद है. राज शर्मा तो बहुत खुश था रचना को अपने साथ पकड़. हम तीनो मिल कर एक फॅमिली की तरह ही रह रहे थे. आग और घी साथ साथ कब तक एक दूसरे को च्छुए बिना रह सकते हैं जब साथ ही उनकी आग को हवा देने के लिए मैं मौजूद थी. अक्सर हम दोनो की ड्यूटी अलग अलग शिफ्टों मे रहती थी. हम दोनो मे से एक घर पर रहता. सुबह के अलावा जब मेरी ड्यूटी शाम की या रात की होती तो राज शर्मा रचना के साथ ही रहता. जब पहली बार मेरी नाइट शिफ्ट हुई तो रचना अपने मकान मे सोने के लिए जाने लगी तो मैने ही उसे रोक दिया.
"यही सो जा ना. राज शर्मा तो अपने बेडरूम मे सोएगा. तुझे उसके साथ सोने के लिए थोड़ी कह रही हूँ. क्यों राज ? मेरी सहेली के साथ किसी तरह की छेड़ चाड तो नही करोगे ना?" मैने राज शर्मा की ओर देखा उसे भी अपनी ओर मिलाने के लिए.
"हां हां रचना तुम अपने बेटे के साथ उस बेडरूम मे सोजाना और अगर डर लगे तो अंदर से लॉक कर लेना. यहाँ रहोगी तो कभी रात मे किसी चीज़ की ज़रूरत परे तो आवाज़ तो लगा सकोगी."
हम दोनो ने अपनी दलीलों से रचना को निरुत्तर कर दिया. काफ़ी समझाइश के बाद रचना राज शर्मा के साथ मेरे आब्सेन्स मे हमारे मकान मे रात को रुकने को राज़ी हुई.
मैने दोनो ओर हवा देना चालू रखा.
"मैं जा रही हूँ ड्यूटी. रात को चुपके से दोनो बेडरूम मे मत घुस जाना. वैसे भी उसका हज़्बेंड तो पास रहता नही है. कभी उसे किसी मर्द की ज़रूरत पड़े तो मेरा शेर तो है ही."
"राधा तू पागल हो गयी है." राज शर्मा ने कहा.
"इसमे पागल होने वाली क्या बात है. तुम उसे पसंद करते हो कि नही?" मैने उसे तब तक नही चोदा जब तक उसने हामी नही भरी.
"और मैं बताती हूँ वो भी तुम्हे उतना ही पसंद करती है. तुम्हारी निकटता को तरसती रहती है. मुझ से खोद खोद कर तुम्हारे बारे मे पूछ्ती रहती है. राज शर्मा जी को क्या पसंद है…राज शर्मा जी
मेरे बारे मे क्या कहते हैं. भाई तुम्हारी आधी घरवाली तो है ही."
वो हँसने लगा. लेकिन धीरे धीरे दोनो के मन मे एक दूसरे के प्रति आग जलती जा रही थी. और मैं इस आग को खूब हवा दे रही थी. रचना अभी बच्चे को दूध पिलाती थी इसलिए ब्लाउस के नीचे ब्रा नही पहनती थी. कभी अनदेखी मे एक दो बटन्स खुले भी रह जाते थे. राज शर्मा उसके झीने ब्लाउस मे कसी चुचियों को नज़र बचा कर निहारता रहता था. मैं उसे ऐसा करते हुए पकड़ लेती तो वो खिसियानी सी हँसी हस देता.
क्रमशः........................
...
--7
gataank se aage....................
" are main to tujhe kahna hi bhool gaya tha. Raj sharma baat karma chahta hai tujhse. Kah raha tha ki Raadha se meri baat karwa dena."
Isse pahle ki main "nnnnaaahi….. nahiiiiiiii… .abhiiiii. .nahiiiiiiii… . pleeeeeese……..issss…..haaaalat meee nahiiiiiiiii… .." kahkar use mana karti Arun ne number dial kar diya tha. Aur uska receiver mere kaan par laga diya. Har kar maine hath badha kar receiver apne hathon me le liya.
"Hello…" Doosri or se Raj sharma ki awaj aye to mere ankhon se ansoo a gaye. Main chup rahi. Dono poori takat se mujhe chod rahe the.
"hello.." Raj sharma ne dobara kaha to maine bhi jawab diya"hello….Raj sharma… ..huh…huh…main Raadha. Main ghar pahunch gayee hun."
"theek to ho na? raste me koi pareshaani to nahi hui?"
"nahii koi pareshani..offf… .koi pareshani nahi hui..aah… main theek hoon…tum huh huh pareshaan mat hona."
"tumhari baton se to lag raha hai ki tumhari tabiyat theek nahi hai. Tum itni hanf kyon rahi ho?"
" are kuch nahi….subah gadi ko kafi dhakka lagan pada isliye abhi tak hanf rahi hoon. Thakaan ke karan hi poora badan dard kar raha hai. Koi baat nahi abhi koi pain killer le leti hoon shaam tak theek ho jaungi. Hmmm aahh tum pareshaan mat hona." Kahkar maine jaldi se phone kat diya. Jyada baat karne se meri halat ka pata chal jane ka dar tha.
Dono kuch der baad apne apne lund se dher sara veerya mere dono chhedo me bhar kar mere badan par se uth gaye. Dono apne kapde pahne aur wapas chale gaye. Main kisi tarah lad khadati hui uthi aur usi halat me darwaje tak a kar use band kiya aur daud kar wapas bathroom me ghus gayee. dono chhedon se unka ras rista hua janghon tak pahunch gaya tha. Maine wapas pani se apne badan ko saaf kiya aur bistar me akar par gayee. Kab meri ankh lagi pata hi nahi chala. Jab aankh khuli tab shaam ho chuki thi. Maine pain killer le kar apne dukhte badan ko kuch normal kiya jisse Raj sharma ko pata nahi chale. Aur taiyaar hokar Raj sharma ka intezaar karne lagi.
Rachna ki delivery ho gayee. usne ek pyaare se ladke ko janm diya tha. Us ghatne kebaad Arun kai baar kisi na kisi bahane se aya magar main humesha ya to hospital me logon ke beech chhipi rahti ya Raj sharma ke saath rahti. Jisse ki Arun ko koi mauka nahi mil paye. Ek do baar saath me Mukul bhi aya magar maine dono ki chalne nahi di. Dono mujhe logon se chip kar ashleel ishare karte the magar maine unhe andekha kar diya. Maine ek do baar dabi awaj me unhe Raj sharma se shikayat karne ki aur Rachna ko khabar karne ki dhamki bhi di to unka ana kuch kum hua. Mujhe us admi se itni nafrat ho gayee thi ki bayan nahi kar sakti. Maine man hi man uske is gire huye harkat ka badla lene ki thaan li thi.
Delievery ke teen maheene baad Rachna wapas a gayee. Arun gaya tha use lene. Dono bahut khush the. Hum bhi us naye ajnabee ke swagat me busy ho gaye. Unhon ne apne bete ka naam rakha tha Anil. Bauht cute hai unka Anil. Bilkul apne baap ki shakl paya hai. Wapas an eke baad Arun kuch din tak Rachna ke paas hi raha. Hum dono ke makan paas paas hi the. Isliye hum aksar kisi ek ke ghar me hi rahte. Arun mauke ki talash me rahta tha. Mujhe dobara dabochne ke liye wo tadap raha tha.
Kai baar mauke mile mere badan ko sahlane aur masalne ke liye. Rachna apne bachche me busy rahti thi isliye Arun ko kisi na kisi bahane mauka mil hi jata tha. Main ghar par sir ek jheeni si nighty me hi rahti thi. Kai baar uski harkaton se bachne ke liye maine anDoctorooni vastr pahanne ki koshish ki magar usne mujhe dhamka kar aisa karne se rok diya. Wo to chahta tha ki main subah ghar par bilkul nangi hi rahoon jisse use kadon ko hatane ki mehnat nahi karni pare. Magar maine iska jam kar virodh kiya. Ant me main is baat par raji hui ki ghar me sirf ek patla gown pahan kar hi rahoongi.
Raj sharma ke samne wo apni harkaton ko control me rakhta magar hamesha kuch na kuch harkat karne ke liye mauka dhoondhta hi rahta tha. Ab usi din ki baat lo hum do family ek restaurant me dinner ke liye gaye. Main Arun ke samne ki chair par baithi thi aur Rachna Raj sharma ke samne. Hum dono hi sari pahne huye the. Achanak maine apni tangon par kuch rengta hua mahsoos kiya. Maine neeche najar dali to dekha ki wo Arun ka pair tha. Arun is tarah baten karne me mashgool tha jaise use kuch bhi nahi pata ho ki table ke neeche kya chal raha hai. Usne apne pair ke panjon se meri sari ko pakad kar use kuch upar uthaya aur uska pair mere nagn pairon ke upar firne laga. Wo dheere dheere apne pair ko uthata hua mere ghutno tak pahuncha. Main ghabrahat ke mare paseene paseene ho rahi thi. Wo ek public place tha aur hum par kisi ki bhi najar par sakti thi. Meri sari kafi upar uth chuki thi. Ab wo apne pair ko dono janghon ke beech firane laga. Meri sari ab ghutno ke upar uth chuki thi. Maine charon taraf najar daudai. Sab apne apne kam me vyast the kisi ki bhi najar hum par nahi thi. Doosron ko to chodo Raj sharma aur Rachna bhi humari harkaton se bekhabar chuhal baji me lage huye the. Arun bhi barabar unka sath de raha tha. Sirf main hi ghbarahat ke mare kanp rahi thi. Uske pair ka panja meri panty ko chhu raha tha. Mere honth sookh rahe the.
"kya hua banno tu aaj itni chup chup kyon hai?" main Rachna ke sawal par ekdum se hadbada gayee. aur meri chammach se khana plate me gir gaya.
"nahi nahi…..kuch nahi main to….asal me aaj meri tabiyat kuch theek nahi lag rahi hai."
"kyon…..Raj sharma tumne kuch kar to nahi diya?" Rachna Raj sharma ki or dekh kar muskurai, "chalo achhi kahabar hai. Tum logon ki shadi ko kafi saal ho gaye ab to kuch hona bhi chahiye." Kah kar Rachna Raj ki or ek ankh daba kar muskurai.
"han haan aur kya ab to Rachna bhi mummy bun gayee. Tum logon ko bhi ab precaution hata dena chahiye." Arun Rachna ki baat age badhata hua meri or dekh kar kaha, "Raj sharma agar tumse kuch nahi ho raha ho to kisi aur ko bhi mauka do." Aur mujhe vasna bhari nigaahon se dekha.
"han haan kyon nahi…" Rachna ne apne husband ko chhedte huye kaha," meri saheli ko dekh kar to tumhari shuru se hi laar tapakti hai. Tum to mauka ho dhoondh rahe hoge dubki lagan eke liye."
Use kya maloom tha uska husband dubki kabke hi laga chuka. Hum chaaron hansne lage. Achanak Rachna ka rumal hath se fisal kar neeche gir pada. Ye dekhte hi Arun ne jhatke se apna pair meri panty ke upar se hata kar neeche kiya magar uska pair meri sari me ulajh gaya. Maine bhi jhatke se apne dono pair sikod liye. Jisse Rachna ko pata nahi chale. Magar meri sari me lipta uska pair humare beech chal rahi chuhal baji ki kahani kah raha tha. Magar shayad Rachna ko hum dono ke beech is tarah ki kisi harkat ki ummed bhi nahi thi. Isliye usne jhuk kar apna rumal uthaya magar humdono ki uljhi hui tangon par najar nahi padi. Mera poora badan paseene se bheeg gaya tha.
Isi tarah hum kai baar pakde jate jate bach gaye.
Meri shifts ki duty rahti thi. Isliye kabhi kabhi jab main subah ke waqt ghar par hoti aur Raj sharma Nursary ke liye nikala hota tab Arun kuch mangne ke bahane se ya mujhe bulane ke bahane se mere ghar a jata aur mujhe daboch leta. Mere inkaar ka us par koi asar hi nahi hota tha. Wo sabko batane ki dhamki dekar mere chhootne ki koshishon ki hawa nikal deta. Wo mujhe blackmainl karke mere badan se khelne lagta. Main uski jaal me is tarah fansi hui thi ki na chahkar bhi chup rahna parta.
Kai baar usne mujhe daboch kar ek jhatke me mera gown shareer se alag kar deta. Fir mujhe poori tarah nangi karke mere badan ko choomta chatta aur apne bada ko bhi mujhse chatwata. Wo apne lund ko theek tarah se saaf karta tha ya nahi kya pata kyonki uske lund se badbu ati thi. Mujhe usi lund ko choosne ke liye jabardasti karta tha. Apni biwi par to uski jabardasti chal nahi pati thi. Rachna uske lund ko kabhi munh se nahi lagati. Lekin mujhe uske husband ke lund ko apne munh me lekar chatna parta tha.
Wo kabhi sofe par to kabhi deewaar ke saath laga kar to kabhi kitchen ki patti par mere hath tika kar mujhe chodta. Mere mana karne par bhi wo meri yoni ko apne veerya se bhar deta tha. Main pregnancy se bachne ke liye daily contraceptive lene lagi thi. Kyonki kya pata kab uska beej asar dikha de. Fir bhi ek dar to bana hi rahta tha.
Kuch din wahan rah kar Arun ko apne kaam par lautna pada. Rachna ko duty par bachcha le jane me dikkat rahi thi. Infection ho jane ka khatra to rahta hi tha. Ghar par bachche ko akela bhi nahi chod sakti thi. Maine use apne ghar ko band kar mere aur Raj sharma ke saath hi rahne ki salah di.
"nahi Raadha..Arun kya sochega. Wo bahut shakki admi hai."
"kisi ko batane ki tujhe jaroorat hi kahan hai. Jab wo aye to tu apne ghar chali jana. Ab dekh tu yahan rahegi to tere absence me tere bachche ki main hi maa ban kar rahoongi." Maine kaha.
"lekin bachche ko bhookh lagi to kya pilayegi? Tere mummo me to abhi doodh hi nahi hai." Kahkar usne meri chuchiyon ko masal diye. Main bhi uski harkaton par hansne lagi.
"ek baat bata…." Rachna ne poochha," tera pati kuch sochega to nahi? Main agar tere saath rahne lagi to use koi objection to nahi hoga?"
"objection aur use?......" maine un dono ke beech sambandhon ko garam banana ki thaan lit hi, "teri nikatta se use kabhi objection ho sakta hai kya? Wo to teri nikatta ke liye chhatpatata rahta hai. Aur waise bhi do do biwi pakad koi mana karega bhala."
" radha ab main maroongi tujhe" wo mujhe pakadne ke liye meri or daudi.
"achcha? Jara aine me najar maar tera laal sharm se bhara chehra tere jajbaton ki chugli kar raha hai. Saaf dikh raha hai ki aag to dono taraf hi lagi hui hai." Main hansti hui sofe ke charon or bhagi magar usne mujhe pakad liya aur hum guttham guttha ho kar sofe par gir pare.
"tub hi to kam nahi hai. Arun ke saath tub hi bahut ankh matakka karti rahti hai. Din bhar kisi na kisi bahane se tere ghar ki or bhagta tha aur adhe ghante se pahle wapas nahi ata tha. Tune kya apni saheli ko andhi samajh rakha hai."
"budmaas…..shakki……" hum dono ek doosre se lipte huye hans rahe the ek doosre ko chikoti kat rahe the. Gudgudi de rahe the.
Khair Rachna apna sara saman lekar humare ghar par hi rahne lagi. Samne hi uske ghar ka darwaja tha. Din me ek adh baar apne ghar bhi chali jati thi. Jisse Arun aye to use aisa nahi lage ki makan kafi dino se band ho. Raj sharma to bahut khush tha Rachna ko apne saath pakad. Hum teeno mil kar ek family ki tarah hi rah rahe the. Aag aur ghee saath saath kab take k doosre ko chhuye bina rah sakte hain jab saath hi unki aag ko hawa den eke liye main maujood thi. Aksar hum dono ki duty alag alag shifton me rahti thi. Hum dono me se ek ghar par rahta. Subah ke alawa jab meri duty shaam ki ya raat ki hoti to Raj sharma Rachna ke saath hi rahta. Jab pahli baar meri night shift hui to Rachna apne makan me sone ke liye jane lagi to maine hi use rok diya.
"yahi so ja na. Raj sharma to apne beDoctoroom me soyega. Tujhe uske saath son eke liye thodi kah rahi hoon. Kyon Raj sharma? Meri saheli ke saath kisi tarah ki chhed chhad to nahi karoge na?" maine Raj sharma ki or dekha use bhi apni or milane ke liye.
"haan haan Rachna tum apne bete ke saath us beDoctoroom me sojana aur agar dar lage to andar se lock kar lena. Yahan rahogi to kabhi raat me kisi cheej ki jaroorat pare to awaj to laga sakogi."
Hum dono ne apni daleelon se Rachna ko niruttar kar diya. Kafi samjhaish ke baad Rachna Raj sharma ke saath mere absence me humare makan me raat ko rukne ko raji hui.
Maine dono or hawa dena chaloo rakha.
"main ja rahi hoon duty. Raat ko chupke se dono beDoctoroom me mat ghus jana. Waise bhi uska husband to paas rahta nahi hai. Kabhi use kisi mard ki jaroorat pare to mera sher to hai hi."
"raadha tu pagal ho gayee hai." Raj sharma ne kaha.
"isme pagal hone wali kya baat hai. Tum use pasand karte ho ki nahi?" maine use tab tak nahi choda jab tak usne hami nahi bhari.
"aur main batati hoon wo bhi tumhe utna hi pasand karti hai. Tumhari nikatta ko tarasti rahti hai. Mujh se khod khod kar tumhare bare me poochhti rahti hai. Raj sharma ji ko kya pasand hai…Raj sharma ji
mere bare me kya kahte hain. Bhai tumhari adhi gharwali to hai hi."
Wo hansne laga. Lekin dheere dheere dono ke man me ek doosre ke prati aag jalti ja rahi thi. Aur main is aag ko khoob hawa de rahi thi. Rachna abhi bachche ko doodh pilati thi isliye blouse ke neeche bra nahi pahanti thi. Kabhi andekhi me ek do buttons khule bhi rah jate the. Raj sharma uske jheene blouse me kasi chuchiyon ko najar bacha kar niharta rahta tha. Main use aisa karte huye pakad leti to woe k khisiyani si hansi hasn deta.
KRAMASHASH.................... .......
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raj sharma stories
राधा का राज--7गतान्क से आगे....................
" अरे मैं तो तुझे कहना ही भूल गया था. राज शर्मा बात करना चाहता है तुझसे. कह रहा था कि राधा से मेरी बात करवा देना."
इससे पहले की मैं "न्न्न्नाआी….. नहियीईईईई… .अभिईीई. .नहियीईईईई… . प्लीईसए……..इससस्स…..हाालात मईए नहियीईईईईई… .." कहकर उसे मना करती अरुण ने नंबर डाइयल कर दिया था. और उसका रिसीवर मेरे कान पर लगा दिया. हार कर मैने हाथ बढ़ा कर रिसीवर अपने हाथों मे ले लिया.
"हेलो…" दूसरी ओर से राज शर्मा की आवाज़ आई तो मेरे आँखों से आँसू आ गये. मैं चुप रही. दोनो पूरी ताक़त से मुझे चोद रहे थे.
"हेलो.." राज शर्मा ने दोबारा कहा तो मैने भी जवाब दिया"हेलो….राज … ..हा…हा…मैं राधा. मैं घर पहुँच गयी हूँ."
"ठीक तो हो ना? रास्ते मे कोई परेशानी तो नही हुई?"
"नही कोई परेशानी..ओफफ्फ़… .कोई परेशानी नही हुई..आह… मैं ठीक हूँ…तुम हा हा परेशान मत होना."
"तुम्हारी बातों से तो लग रहा है कि तुम्हारी तबीयत ठीक नही है. तुम इतनी हाँफ क्यों रही हो?"
" अरे कुछ नही….सुबह गाड़ी को काफ़ी धक्का लगाना पड़ा इसलिए अभी तक हाँफ रही हूँ. थकान के कारण ही पूरा बदन दर्द कर रहा है. कोई बात नही अभी कोई पेन किल्लर ले लेती हूँ शाम तक ठीक हो जवँगी. ह्म्म्म आहह तुम परेशान मत होना." कहकर मैने जल्दी से फोन काट दिया. ज़्यादा बात करने से मेरी हालत का पता चल जाने का डर था.
दोनो कुछ देर बाद अपने अपने लंड से ढेर सारा वीर्य मेरे दोनो छेदो मे भर कर मेरे बदन पर से उठ गये. दोनो अपने कपड़े पहने और वापस चले गये. मैं किसी तरह लड़ खड़ाती हुई उठी और उसी हालत मे दरवाजे तक आ कर उसे बंद किया और दौड़ कर वापस बाथरूम मे घुस गयी. दोनो छेदो से उनका रस रिस्ता हुआ जांघों तक पहुँच गया था. मैने वापस पानी से अपने बदन को सॉफ किया और बिस्तर मे आकर पड़ गयी. कब मेरी आँख लगी पता ही नही चला. जब आँख खुली तब शाम हो चुकी थी. मैने पेन किल्लर ले कर अपने दुख़्ते बदन को कुछ नॉर्मल किया जिससे राज शर्मा को पता नही चले. और तैयार होकर राज शर्मा का इंतेज़ार करने लगी.
रचना की डेलिवरी हो गयी. उसने एक प्यारे से लड़के को जन्म दिया था. उस घटना केबाद अरुण कई बार किसी ना किसी बहाने से आया मगर मैं हमेशा या तो हॉस्पिटल मे लोगों के बीच छिपि रहती या राज शर्मा के साथ रहती. जिससे की अरुण को कोई मौका नही मिल पाए. एक दो बार साथ मे मुकुल भी आया मगर मैने दोनो की चलने नही दी. दोनो मुझे लोगों से छिप कर अश्लील इशारे करते थे मगर मैने उन्हे अनदेखा कर दिया. मैने एक दो बार दबी आवाज़ मे उन्हे राज शर्मा से शिकायत करने की और रचना को खबर करने की धमकी भी दी तो उनका आना कुछ कम हुआ. मुझे उस आदमी से इतनी नफ़रत हो गयी थी कि बयान नही कर सकती. मैने मन ही मन उसके इस गिरे हुए हरकत का बदला लेने की ठान ली थी.
डेलिएवेरी के तीन महीने बाद रचना वापस आ गयी. अरुण गया था उसे लेने. दोनो बहुत खुश थे. हम भी उस नये अजनबी के स्वागत मे बिज़ी हो गये. उन्हों ने अपने बेटे का नाम रखा था अनिल. बहुत क्यूट है उनका अनिल. बिल्कुल अपने बाप की शक्ल पाया है. वापस आने के बाद अरुण कुछ दिन तक रचना के पास ही रहा. हम दोनो के मकान पास पास ही थे. इसलिए हम अक्सर किसी एक के घर मे ही रहते. अरुण मौके की तलाश मे रहता था. मुझे दोबारा दबोचने के लिए वो तड़प रहा था.
कई बार मौके मिले मेरे बदन को सहलाने और मसल्ने के लिए. रचना अपने बच्चे मे बिज़ी रहती थी इसलिए अरुण को किसी ना किसी बहाने मौका मिल ही जाता था. मैं घर पर सिर्फ़ एक झीनी सी नाइटी मे ही रहती थी. कई बार उसकी हरकतों से बचने के लिए मैने अंदरूनी वस्त्र पहनने की कोशिश की मगर उसने मुझे धमका कर ऐसा करने से रोक दिया. वो तो चाहता था कि मैं सुबह घर पर बिल्कुल नंगी ही रहूं जिससे उसे कपड़ो को हटाने की मेहनत नही करनी पड़े. मगर मैने इसका जम कर विरोध किया. अंत मे मैं इस बात पर राज़ी हुई कि घर मे सिर्फ़ एक पतला गाउन पहन कर ही रहूंगी.
राज शर्मा के सामने वो अपनी हरकतों को कंट्रोल मे रखता मगर हमेशा कुछ ना कुछ हरकत करने के लिए मौका ढूंढता ही रहता था. अब उसी दिन की बात लो हम दो फॅमिली एक रेस्टोरेंट मे डिन्नर के लिए गये. मैं अरुण के सामने की चेर पर बैठी थी और रचना राज शर्मा के सामने. हम दोनो ही सारी पहने हुए थे. अचानक मैने अपनी टाँगों पर कुछ रेंगता हुआ महसूस किया. मैने नीचे नज़र डाली तो देखा की वो अरुण का पैर था. अरुण इस तरह बातें करने मे मशगूल था जैसे उसे कुछ भी नही पता हो कि टेबल के नीचे क्या चल रहा है. उसने अपने पैर के पंजों से मेरी सारी को पकड़ कर उसे कुछ उपर उठाया और उसका पैर मेरे नग्न पैरों के उपर फिरने लगा. वो धीरे धीरे अपने पैर को उठता हुआ मेरे घुटनो तक पहुँचा. मैं घबराहट के मारे पसीने पसीने हो रही थी. वो एक पब्लिक प्लेस था और हम पर किसी की भी नज़र पड़ सकती थी. मेरी सारी काफ़ी उपर उठ चुकी थी. अब वो अपने पैर को दोनो जांघों के बीच फिराने लगा. मेरी सारी अब घुटनो के उपर उठ चुकी थी. मैने चारों तरफ नज़र दौड़ाई. सब अपने अपने काम मे व्यस्त थे किसी की भी नज़र हम पर नही थी. दूसरों को तो छोड़ो राज शर्मा और रचना भी हमारी हरकतों से बेख़बर चुहल बाजी मे लगे हुए थे. अरुण भी बराबर उनका साथ दे रहा था. सिर्फ़ मैं ही घ्हबराहट के मारे कांप रही थी. उसके पैर का पंजा मेरी पॅंटी को च्छू रहा था. मेरे होंठ सूख रहे थे.
"क्या हुआ बन्नो तू आज इतनी चुप चुप क्यों है?" मैं रचना के सवाल पर एकदम से हड़बड़ा गयी. और मेरी चम्मच से खाना प्लेट मे गिर गया.
"नही नही…..कुछ नही मैं तो….असल मे आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नही लग रही है."
"क्यों…..राज शर्मा तुमने कुछ कर तो नही दिया?" रचना राज शर्मा की ओर देख कर मुस्कुरई, "चलो अच्छी खबर है. तुम लोगों की शादी को काफ़ी साल हो गये अब तो कुछ होना भी चाहिए." कह कर रचना राज की ओर एक आँख दबा कर मुस्कुरई.
"हाँ हां और क्या अब तो रचना भी मम्मी बन गयी. तुम लोगों को भी अब प्रिकॉशन हटा देना चाहिए." अरुण नेरचना की बात आगे बढ़ाता हुआ मेरी ओर देख कर कहा, "राज शर्मा अगर तुमसे कुछ नही हो रहा हो तो किसी और को भी मौका दो." और मुझे वासना भरी निगाहों से देखा.
"हाँ हां क्यों नही…" रचना ने अपने हज़्बेंड को छेड़ते हुए कहा," मेरी सहेली को देख कर तो तुम्हारी शुरू से ही लार टपकती है. तुम तो मौका हो ढूँढ रहे होगे डुबकी लगाने के लिए."
उसे क्या मालूम था उसका हज़्बेंड डुबकी कब्की ही लगा चुका. हम चारों हँसने लगे. अचानक रचना का रुमाल हाथ से फिसल कर नीचे गिर पड़ा. ये देखते ही अरुण ने झटके से अपना पैर मेरी पॅंटी के उपर से हटा कर नीचे किया मगर उसका पैर मेरी सारी मे उलझ गया. मैने भी झटके से अपने दोनो पैर सिकोड लिए. जिससे रचना को पता नही चले. मगर मेरी सारी मे लिपटा उसका पैर हमारी बीच चल रही चुहल बाजी की कहानी कह रहा था. मगर शायद रचना को हम दोनो के बीच इस तरह की किसी हरकत की उम्मीद भी नही थी. इसलिए उसने झुक कर अपना रुमाल उठाया मगर हम दोनो की उलझी हुई टाँगों पर नज़र नही पड़ी. मेरा पूरा बदन पसीने से भीग गया था.
इसी तरह हम कई बार पकड़े जाते जाते बच गये.
मेरी शिफ्ट्स की ड्यूटी रहती थी. इसलिए कभी कभी जब मैं सुबह के वक़्त घर पर होती और राज शर्मा नर्सरी के लिए निकाला होता तब अरुण कुछ माँगने के बहाने से या मुझे बुलाने के बहाने से मेरे घर आ जाता और मुझे दबोच लेता. मेरे इनकार का उस पर कोई असर ही नही होता था. वो सबको बताने की धमकी देकर मेरे छ्छूटने की कोशिशों की हवा निकाल देता. वो मुझे ब्लॅकमेन्ल करके मेरे बदन से खेलने लगता. मैं उसकी जाल मे इस तरह फँसी हुई थी कि ना चाहकर भी चुप रहना पड़ता.
कई बार उसने मुझे दबोच कर एक झटके मे मेरा गाउन शरीर से अलग कर देता. फिर मुझे पूरी तरह नंगी करके मेरे बदन को चूमता चाट्ता और अपने लंड को भी मुझसे चटवाता. वो अपने लंड को ठीक तरह से सॉफ करता था या नही क्या पता क्योंकि उसके लंड से बदबू आती थी. मुझे उसी लंड को चूसने के लिए ज़बरदस्ती करता था. अपनी बीवी पर तो उसकी ज़बरदस्ती चल नही पाती थी. रचना उसके लंड को कभी मुँह से नही लगती. लेकिन मुझे उसके हज़्बेंड के लंड को अपने मुँह मे लेकर चाटना पड़ता था.
वो कभी सोफे पर तो कभी दीवार के साथ लगा कर तो कभी किचन की पट्टी पर मेरे हाथ टिका कर मुझे छोड़ता. मेरे मना करने पर भी वो मेरी योनि को अपने वीर्य से भर देता था. मैं प्रेग्नेन्सी से बचने के लिए डेली कॉंट्रॅसेप्टिव लेने लगी थी. क्योंकि क्या पता कब उसका बीज असर दिखा दे. फिर भी एक डर तो बना ही रहता था.
कुछ दिन वहाँ रह कर अरुण को अपने काम पर लौटना पड़ा. रचना को ड्यूटी पर बच्चा ले जाने मे दिक्कत रही थी. इन्फेक्षन हो जाने का ख़तरा तो रहता ही था. घर पर बच्चे को अकेला भी नही छोड़ सकती थी. मैने उसे अपने घर को बंद कर मेरे और राज शर्मा के साथ ही रहने की सलाह दी.
"नही राधा..अरुण क्या सोचेगा. वो बहुत शक्की आदमी है."
"किसी को बताने की तुझे ज़रूरत ही कहाँ है. जब वो आए तो तू अपने घर चली जाना. अब देख तू यहाँ रहेगी तो तेरे आब्सेन्स मे तेरे बच्चे की मैं ही मा बन कर रहूंगी." मैने कहा.
"लेकिन बच्चे को भूख लगी तो क्या पिलाएगी? तेरे मम्मो मे तो अभी दूध ही नही है." कहकर उसने मेरी चुचियों को मसल दिया. मैं भी उसकी हरकतों पर हँसने लगी.
"एक बात बता…." रचना ने पूछा," तेरा पति कुछ सोचेगा तो नही? मैं अगर तेरे साथ रहने लगी तो उसे कोई ऑब्जेक्षन तो नही होगा?"
"ऑब्जेक्षन और उसे?......" मैने उन दोनो के बीच संबंधों को गरम बनाना की ठान ली थी, "तेरी निकटता से उसे कभी ऑब्जेक्षन हो सकता है क्या? वो तो तेरी निकटता के लिए च्चटपटाता रहता है. और वैसे भी दो दो बीवी पकड़ कोई मना करेगा भला."
" राधा अब मैं मारूँगी तुझे" वो मुझे पकड़ने के लिए मेरी ओर दौड़ी.
"अच्छा? ज़रा आईने मे नज़र मार तेरा लाल शर्म से भरा चेहरा तेरे जज्बातों की चुगली कर रहा है. सॉफ दिख रहा है कि आग तो दोनो तरफ ही लगी हुई है." मैं हँसती हुई सोफे के चारों ओर भागी मगर उसने मुझे पकड़ लिया और हम गुत्थम गुत्था हो कर सोफे पर गिर पड़े.
"तू भी तो कम नही है. अरुण के साथ तू भी बहुत आँख मटक्का करती रहती है. दिन भर किसी ना किसी बहाने से तेरे घर की ओर भागता था और आधे घंटे से पहले वापस नही आता था. तूने क्या अपनी सहेली को अंधी समझ रखा है."
"बुदमास…..शक्की……" हम दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए हंस रहे थे एक दूसरे को चिकोटी काट रहे थे. गुदगुदी दे रहे थे.
खैर रचना अपना सारा समान लेकर हमारे घर पर ही रहने लगी. सामने ही उसके घर का दरवाजा था. दिन मे एक आध बार अपने घर भी चली जाती थी. जिससे अरुण आए तो उसे ऐसा नही लगे कि मकान काफ़ी दिनो से बंद है. राज शर्मा तो बहुत खुश था रचना को अपने साथ पकड़. हम तीनो मिल कर एक फॅमिली की तरह ही रह रहे थे. आग और घी साथ साथ कब तक एक दूसरे को च्छुए बिना रह सकते हैं जब साथ ही उनकी आग को हवा देने के लिए मैं मौजूद थी. अक्सर हम दोनो की ड्यूटी अलग अलग शिफ्टों मे रहती थी. हम दोनो मे से एक घर पर रहता. सुबह के अलावा जब मेरी ड्यूटी शाम की या रात की होती तो राज शर्मा रचना के साथ ही रहता. जब पहली बार मेरी नाइट शिफ्ट हुई तो रचना अपने मकान मे सोने के लिए जाने लगी तो मैने ही उसे रोक दिया.
"यही सो जा ना. राज शर्मा तो अपने बेडरूम मे सोएगा. तुझे उसके साथ सोने के लिए थोड़ी कह रही हूँ. क्यों राज ? मेरी सहेली के साथ किसी तरह की छेड़ चाड तो नही करोगे ना?" मैने राज शर्मा की ओर देखा उसे भी अपनी ओर मिलाने के लिए.
"हां हां रचना तुम अपने बेटे के साथ उस बेडरूम मे सोजाना और अगर डर लगे तो अंदर से लॉक कर लेना. यहाँ रहोगी तो कभी रात मे किसी चीज़ की ज़रूरत परे तो आवाज़ तो लगा सकोगी."
हम दोनो ने अपनी दलीलों से रचना को निरुत्तर कर दिया. काफ़ी समझाइश के बाद रचना राज शर्मा के साथ मेरे आब्सेन्स मे हमारे मकान मे रात को रुकने को राज़ी हुई.
मैने दोनो ओर हवा देना चालू रखा.
"मैं जा रही हूँ ड्यूटी. रात को चुपके से दोनो बेडरूम मे मत घुस जाना. वैसे भी उसका हज़्बेंड तो पास रहता नही है. कभी उसे किसी मर्द की ज़रूरत पड़े तो मेरा शेर तो है ही."
"राधा तू पागल हो गयी है." राज शर्मा ने कहा.
"इसमे पागल होने वाली क्या बात है. तुम उसे पसंद करते हो कि नही?" मैने उसे तब तक नही चोदा जब तक उसने हामी नही भरी.
"और मैं बताती हूँ वो भी तुम्हे उतना ही पसंद करती है. तुम्हारी निकटता को तरसती रहती है. मुझ से खोद खोद कर तुम्हारे बारे मे पूछ्ती रहती है. राज शर्मा जी को क्या पसंद है…राज शर्मा जी
मेरे बारे मे क्या कहते हैं. भाई तुम्हारी आधी घरवाली तो है ही."
वो हँसने लगा. लेकिन धीरे धीरे दोनो के मन मे एक दूसरे के प्रति आग जलती जा रही थी. और मैं इस आग को खूब हवा दे रही थी. रचना अभी बच्चे को दूध पिलाती थी इसलिए ब्लाउस के नीचे ब्रा नही पहनती थी. कभी अनदेखी मे एक दो बटन्स खुले भी रह जाते थे. राज शर्मा उसके झीने ब्लाउस मे कसी चुचियों को नज़र बचा कर निहारता रहता था. मैं उसे ऐसा करते हुए पकड़ लेती तो वो खिसियानी सी हँसी हस देता.
क्रमशः........................
--7
gataank se aage....................
" are main to tujhe kahna hi bhool gaya tha. Raj sharma baat karma chahta hai tujhse. Kah raha tha ki Raadha se meri baat karwa dena."
Isse pahle ki main "nnnnaaahi….. nahiiiiiiii… .abhiiiii. .nahiiiiiiii… . pleeeeeese……..issss…..haaaalat meee nahiiiiiiiii… .." kahkar use mana karti Arun ne number dial kar diya tha. Aur uska receiver mere kaan par laga diya. Har kar maine hath badha kar receiver apne hathon me le liya.
"Hello…" Doosri or se Raj sharma ki awaj aye to mere ankhon se ansoo a gaye. Main chup rahi. Dono poori takat se mujhe chod rahe the.
"hello.." Raj sharma ne dobara kaha to maine bhi jawab diya"hello….Raj sharma… ..huh…huh…main Raadha. Main ghar pahunch gayee hun."
"theek to ho na? raste me koi pareshaani to nahi hui?"
"nahii koi pareshani..offf… .koi pareshani nahi hui..aah… main theek hoon…tum huh huh pareshaan mat hona."
"tumhari baton se to lag raha hai ki tumhari tabiyat theek nahi hai. Tum itni hanf kyon rahi ho?"
" are kuch nahi….subah gadi ko kafi dhakka lagan pada isliye abhi tak hanf rahi hoon. Thakaan ke karan hi poora badan dard kar raha hai. Koi baat nahi abhi koi pain killer le leti hoon shaam tak theek ho jaungi. Hmmm aahh tum pareshaan mat hona." Kahkar maine jaldi se phone kat diya. Jyada baat karne se meri halat ka pata chal jane ka dar tha.
Dono kuch der baad apne apne lund se dher sara veerya mere dono chhedo me bhar kar mere badan par se uth gaye. Dono apne kapde pahne aur wapas chale gaye. Main kisi tarah lad khadati hui uthi aur usi halat me darwaje tak a kar use band kiya aur daud kar wapas bathroom me ghus gayee. dono chhedon se unka ras rista hua janghon tak pahunch gaya tha. Maine wapas pani se apne badan ko saaf kiya aur bistar me akar par gayee. Kab meri ankh lagi pata hi nahi chala. Jab aankh khuli tab shaam ho chuki thi. Maine pain killer le kar apne dukhte badan ko kuch normal kiya jisse Raj sharma ko pata nahi chale. Aur taiyaar hokar Raj sharma ka intezaar karne lagi.
Rachna ki delivery ho gayee. usne ek pyaare se ladke ko janm diya tha. Us ghatne kebaad Arun kai baar kisi na kisi bahane se aya magar main humesha ya to hospital me logon ke beech chhipi rahti ya Raj sharma ke saath rahti. Jisse ki Arun ko koi mauka nahi mil paye. Ek do baar saath me Mukul bhi aya magar maine dono ki chalne nahi di. Dono mujhe logon se chip kar ashleel ishare karte the magar maine unhe andekha kar diya. Maine ek do baar dabi awaj me unhe Raj sharma se shikayat karne ki aur Rachna ko khabar karne ki dhamki bhi di to unka ana kuch kum hua. Mujhe us admi se itni nafrat ho gayee thi ki bayan nahi kar sakti. Maine man hi man uske is gire huye harkat ka badla lene ki thaan li thi.
Delievery ke teen maheene baad Rachna wapas a gayee. Arun gaya tha use lene. Dono bahut khush the. Hum bhi us naye ajnabee ke swagat me busy ho gaye. Unhon ne apne bete ka naam rakha tha Anil. Bauht cute hai unka Anil. Bilkul apne baap ki shakl paya hai. Wapas an eke baad Arun kuch din tak Rachna ke paas hi raha. Hum dono ke makan paas paas hi the. Isliye hum aksar kisi ek ke ghar me hi rahte. Arun mauke ki talash me rahta tha. Mujhe dobara dabochne ke liye wo tadap raha tha.
Kai baar mauke mile mere badan ko sahlane aur masalne ke liye. Rachna apne bachche me busy rahti thi isliye Arun ko kisi na kisi bahane mauka mil hi jata tha. Main ghar par sir ek jheeni si nighty me hi rahti thi. Kai baar uski harkaton se bachne ke liye maine anDoctorooni vastr pahanne ki koshish ki magar usne mujhe dhamka kar aisa karne se rok diya. Wo to chahta tha ki main subah ghar par bilkul nangi hi rahoon jisse use kadon ko hatane ki mehnat nahi karni pare. Magar maine iska jam kar virodh kiya. Ant me main is baat par raji hui ki ghar me sirf ek patla gown pahan kar hi rahoongi.
Raj sharma ke samne wo apni harkaton ko control me rakhta magar hamesha kuch na kuch harkat karne ke liye mauka dhoondhta hi rahta tha. Ab usi din ki baat lo hum do family ek restaurant me dinner ke liye gaye. Main Arun ke samne ki chair par baithi thi aur Rachna Raj sharma ke samne. Hum dono hi sari pahne huye the. Achanak maine apni tangon par kuch rengta hua mahsoos kiya. Maine neeche najar dali to dekha ki wo Arun ka pair tha. Arun is tarah baten karne me mashgool tha jaise use kuch bhi nahi pata ho ki table ke neeche kya chal raha hai. Usne apne pair ke panjon se meri sari ko pakad kar use kuch upar uthaya aur uska pair mere nagn pairon ke upar firne laga. Wo dheere dheere apne pair ko uthata hua mere ghutno tak pahuncha. Main ghabrahat ke mare paseene paseene ho rahi thi. Wo ek public place tha aur hum par kisi ki bhi najar par sakti thi. Meri sari kafi upar uth chuki thi. Ab wo apne pair ko dono janghon ke beech firane laga. Meri sari ab ghutno ke upar uth chuki thi. Maine charon taraf najar daudai. Sab apne apne kam me vyast the kisi ki bhi najar hum par nahi thi. Doosron ko to chodo Raj sharma aur Rachna bhi humari harkaton se bekhabar chuhal baji me lage huye the. Arun bhi barabar unka sath de raha tha. Sirf main hi ghbarahat ke mare kanp rahi thi. Uske pair ka panja meri panty ko chhu raha tha. Mere honth sookh rahe the.
"kya hua banno tu aaj itni chup chup kyon hai?" main Rachna ke sawal par ekdum se hadbada gayee. aur meri chammach se khana plate me gir gaya.
"nahi nahi…..kuch nahi main to….asal me aaj meri tabiyat kuch theek nahi lag rahi hai."
"kyon…..Raj sharma tumne kuch kar to nahi diya?" Rachna Raj sharma ki or dekh kar muskurai, "chalo achhi kahabar hai. Tum logon ki shadi ko kafi saal ho gaye ab to kuch hona bhi chahiye." Kah kar Rachna Raj ki or ek ankh daba kar muskurai.
"han haan aur kya ab to Rachna bhi mummy bun gayee. Tum logon ko bhi ab precaution hata dena chahiye." Arun Rachna ki baat age badhata hua meri or dekh kar kaha, "Raj sharma agar tumse kuch nahi ho raha ho to kisi aur ko bhi mauka do." Aur mujhe vasna bhari nigaahon se dekha.
"han haan kyon nahi…" Rachna ne apne husband ko chhedte huye kaha," meri saheli ko dekh kar to tumhari shuru se hi laar tapakti hai. Tum to mauka ho dhoondh rahe hoge dubki lagan eke liye."
Use kya maloom tha uska husband dubki kabke hi laga chuka. Hum chaaron hansne lage. Achanak Rachna ka rumal hath se fisal kar neeche gir pada. Ye dekhte hi Arun ne jhatke se apna pair meri panty ke upar se hata kar neeche kiya magar uska pair meri sari me ulajh gaya. Maine bhi jhatke se apne dono pair sikod liye. Jisse Rachna ko pata nahi chale. Magar meri sari me lipta uska pair humare beech chal rahi chuhal baji ki kahani kah raha tha. Magar shayad Rachna ko hum dono ke beech is tarah ki kisi harkat ki ummed bhi nahi thi. Isliye usne jhuk kar apna rumal uthaya magar humdono ki uljhi hui tangon par najar nahi padi. Mera poora badan paseene se bheeg gaya tha.
Isi tarah hum kai baar pakde jate jate bach gaye.
Meri shifts ki duty rahti thi. Isliye kabhi kabhi jab main subah ke waqt ghar par hoti aur Raj sharma Nursary ke liye nikala hota tab Arun kuch mangne ke bahane se ya mujhe bulane ke bahane se mere ghar a jata aur mujhe daboch leta. Mere inkaar ka us par koi asar hi nahi hota tha. Wo sabko batane ki dhamki dekar mere chhootne ki koshishon ki hawa nikal deta. Wo mujhe blackmainl karke mere badan se khelne lagta. Main uski jaal me is tarah fansi hui thi ki na chahkar bhi chup rahna parta.
Kai baar usne mujhe daboch kar ek jhatke me mera gown shareer se alag kar deta. Fir mujhe poori tarah nangi karke mere badan ko choomta chatta aur apne bada ko bhi mujhse chatwata. Wo apne lund ko theek tarah se saaf karta tha ya nahi kya pata kyonki uske lund se badbu ati thi. Mujhe usi lund ko choosne ke liye jabardasti karta tha. Apni biwi par to uski jabardasti chal nahi pati thi. Rachna uske lund ko kabhi munh se nahi lagati. Lekin mujhe uske husband ke lund ko apne munh me lekar chatna parta tha.
Wo kabhi sofe par to kabhi deewaar ke saath laga kar to kabhi kitchen ki patti par mere hath tika kar mujhe chodta. Mere mana karne par bhi wo meri yoni ko apne veerya se bhar deta tha. Main pregnancy se bachne ke liye daily contraceptive lene lagi thi. Kyonki kya pata kab uska beej asar dikha de. Fir bhi ek dar to bana hi rahta tha.
Kuch din wahan rah kar Arun ko apne kaam par lautna pada. Rachna ko duty par bachcha le jane me dikkat rahi thi. Infection ho jane ka khatra to rahta hi tha. Ghar par bachche ko akela bhi nahi chod sakti thi. Maine use apne ghar ko band kar mere aur Raj sharma ke saath hi rahne ki salah di.
"nahi Raadha..Arun kya sochega. Wo bahut shakki admi hai."
"kisi ko batane ki tujhe jaroorat hi kahan hai. Jab wo aye to tu apne ghar chali jana. Ab dekh tu yahan rahegi to tere absence me tere bachche ki main hi maa ban kar rahoongi." Maine kaha.
"lekin bachche ko bhookh lagi to kya pilayegi? Tere mummo me to abhi doodh hi nahi hai." Kahkar usne meri chuchiyon ko masal diye. Main bhi uski harkaton par hansne lagi.
"ek baat bata…." Rachna ne poochha," tera pati kuch sochega to nahi? Main agar tere saath rahne lagi to use koi objection to nahi hoga?"
"objection aur use?......" maine un dono ke beech sambandhon ko garam banana ki thaan lit hi, "teri nikatta se use kabhi objection ho sakta hai kya? Wo to teri nikatta ke liye chhatpatata rahta hai. Aur waise bhi do do biwi pakad koi mana karega bhala."
" radha ab main maroongi tujhe" wo mujhe pakadne ke liye meri or daudi.
"achcha? Jara aine me najar maar tera laal sharm se bhara chehra tere jajbaton ki chugli kar raha hai. Saaf dikh raha hai ki aag to dono taraf hi lagi hui hai." Main hansti hui sofe ke charon or bhagi magar usne mujhe pakad liya aur hum guttham guttha ho kar sofe par gir pare.
"tub hi to kam nahi hai. Arun ke saath tub hi bahut ankh matakka karti rahti hai. Din bhar kisi na kisi bahane se tere ghar ki or bhagta tha aur adhe ghante se pahle wapas nahi ata tha. Tune kya apni saheli ko andhi samajh rakha hai."
"budmaas…..shakki……" hum dono ek doosre se lipte huye hans rahe the ek doosre ko chikoti kat rahe the. Gudgudi de rahe the.
Khair Rachna apna sara saman lekar humare ghar par hi rahne lagi. Samne hi uske ghar ka darwaja tha. Din me ek adh baar apne ghar bhi chali jati thi. Jisse Arun aye to use aisa nahi lage ki makan kafi dino se band ho. Raj sharma to bahut khush tha Rachna ko apne saath pakad. Hum teeno mil kar ek family ki tarah hi rah rahe the. Aag aur ghee saath saath kab take k doosre ko chhuye bina rah sakte hain jab saath hi unki aag ko hawa den eke liye main maujood thi. Aksar hum dono ki duty alag alag shifton me rahti thi. Hum dono me se ek ghar par rahta. Subah ke alawa jab meri duty shaam ki ya raat ki hoti to Raj sharma Rachna ke saath hi rahta. Jab pahli baar meri night shift hui to Rachna apne makan me sone ke liye jane lagi to maine hi use rok diya.
"yahi so ja na. Raj sharma to apne beDoctoroom me soyega. Tujhe uske saath son eke liye thodi kah rahi hoon. Kyon Raj sharma? Meri saheli ke saath kisi tarah ki chhed chhad to nahi karoge na?" maine Raj sharma ki or dekha use bhi apni or milane ke liye.
"haan haan Rachna tum apne bete ke saath us beDoctoroom me sojana aur agar dar lage to andar se lock kar lena. Yahan rahogi to kabhi raat me kisi cheej ki jaroorat pare to awaj to laga sakogi."
Hum dono ne apni daleelon se Rachna ko niruttar kar diya. Kafi samjhaish ke baad Rachna Raj sharma ke saath mere absence me humare makan me raat ko rukne ko raji hui.
Maine dono or hawa dena chaloo rakha.
"main ja rahi hoon duty. Raat ko chupke se dono beDoctoroom me mat ghus jana. Waise bhi uska husband to paas rahta nahi hai. Kabhi use kisi mard ki jaroorat pare to mera sher to hai hi."
"raadha tu pagal ho gayee hai." Raj sharma ne kaha.
"isme pagal hone wali kya baat hai. Tum use pasand karte ho ki nahi?" maine use tab tak nahi choda jab tak usne hami nahi bhari.
"aur main batati hoon wo bhi tumhe utna hi pasand karti hai. Tumhari nikatta ko tarasti rahti hai. Mujh se khod khod kar tumhare bare me poochhti rahti hai. Raj sharma ji ko kya pasand hai…Raj sharma ji
mere bare me kya kahte hain. Bhai tumhari adhi gharwali to hai hi."
Wo hansne laga. Lekin dheere dheere dono ke man me ek doosre ke prati aag jalti ja rahi thi. Aur main is aag ko khoob hawa de rahi thi. Rachna abhi bachche ko doodh pilati thi isliye blouse ke neeche bra nahi pahanti thi. Kabhi andekhi me ek do buttons khule bhi rah jate the. Raj sharma uske jheene blouse me kasi chuchiyon ko najar bacha kar niharta rahta tha. Main use aisa karte huye pakad leti to woe k khisiyani si hansi hasn deta.
KRAMASHASH....................
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