FUN-MAZA-MASTI
raj sharma stories
राधा का राज--8गतान्क से आगे....................
एक दिन वो सुबह अख़बार पढ़ रहा था तभी रचना हम तीनो के लिए चाइ बना लाई. चाइ के कप्स टेबल पर रखते वक़्त उसकी सारी का आँचल कंधे पर से फिसल गया. राज शर्मा अख़बार पढ़ने का बहाना करता हुआ उसके उपर से रचना की चुचियों को निहार रहा था. रचना के ब्लाउस के उपर के दो बटन्स और नीचे का एक बटन खुला हुआ था. उसका ब्लाउस सिर्फ़ एक बटन पर टिका हुआ था. उसने आँचल को निहारता देख चाइ के कप्स को टेबल पर रख कर अपने आँचल को समहाल लिया. लेकिन एक मिनिट का वो अंतराल काफ़ी था राज शर्मा की आँखों मे सेक्स की भूख जगाने के लिए.
" रचना तू ऐसे ही बैठ जा अपनी चुचियों पर से आँचल हटा कर. तेरे जीजा के मन की मुदाद पूरी हो जाएगी." मैने रचना की तरफ देखते हुए अपनी एक आँख दबाई. रचना शर्म से लाल हो गयी. उसने अपने आँचल को और अच्छी तरह बदन पर लप्पेट लिया.
" मेरा राज शर्मा तेरी उन दोनो रस भरी चुचियों को देखने के लिए पागल हुआ जा रहा है. क्या करूँ मेरी चुचियाँ तो अभी सूखी ही हैं ना." मैने दोनो की और खिंचाई की.
" चुप…चुप…..तू आज कल बहुत बदमाश होती जा रही है. कभी भी कुछ भी कह देती है." रचना ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा.
हम तीनो हंसते बातें करते हुए चाइ पीने लगे. इसी तरह मैं दोनो को पास लाने के लिए जतन करती जा रही थी. एक दिन जब हम दोनो ही थे घर मे तब मैने जान बूझ कर सेक्स संबंधी बातें शुरू की. वो कहने लगी अरुण बहुत गरम आदमी है और जब भी आता है दिन रात उसके पास सिर्फ़ यही काम रहता है. मैने भी राज शर्मा के बारे मे बताया. वो राज शर्मा के बारे मे खोद खोद कर पूच्छने लगी.
" राज शर्मा ठेठ पहाड़ी आदमी है उसमे ताक़त तो इतनी है कि अच्छे अच्छो को पानी पीला दे. उसका लंड इतना मोटा और गधे की तरह लंबा है. जब अंदर जाता है तो लगता है मानो गले से बाहर अजाएगा."
"हा….तू झूठ बोल रही है. इतना बड़ा होता है भला किसी का." रचना राज शर्मा के बारे मे खूब इंटेरेस्ट ले रही थी.
" अरे जो झेलता है ना वो ही जानता है. आज इतने सालों बाद भी मेरे एक एक हाड़ को तोड़ कर रख देता है. इतनी देर तक लगातार चोद्ता है कि मेरी तो जान ही निकल जाती है."
" अच्छा तुझे तो खूब मज़ा आता होगा? लेकिन अब भी मैं नही मानती कि उसका लंड इस साइज़ का हो सकता है. अरुण का इससे काफ़ी छ्होटा है" रचना ने अपनी सूखे होंठों पर अपनी जीभ फेरी.
" तूने देखा नही पयज़ामे मे जब खड़ा होता है उसका तो कैसे तंबू का आकार ले लेता है."
रचना ने कुछ कहा नही सिर्फ़ अपने सिर को हिलाया.
"हां हां तुझे पता कैसे नही चलेगा. आजकल तो तुझे देखते ही उसका लंड बाहर आने को च्चटपटाने लगता है." मैं उसको छेड़ने लगी.
" तू भी तो अरुण के लंड को तडपा देती है." रचना ने मुझे भी लपेटने की कोशिश की.
"देखेगी?... बोल देखेगी राज शर्मा के लंड को?" मैने उससे पूछा. तो वो चुप रह कर अपनी सहमति जताई.
"ठीक है मैं कोई जुगाड़ लगाती हूँ."
उस दिन जैसे ही राज शर्मा पेशाब करने के लिए रात को बाथरूम मे घुसा मैने रचना को बाथरूम मे जाकर टवल लेकर आने को कहा. रचना को पता नही था कि अंदर राज शर्मा है. और जैसी मुझे उम्मीद थी. राज शर्मा ने दरवाजा अंदर से लॉक नही किया था. रचना बिना कुछ सोचे समझे बाथरूम के दरवाजे को खोल कर अंदर चली गयी. मैं पहले ही वहाँ से हट गयी थी. राज शर्मा कॉमोड के सामने खड़ा हुआ पेशाब कर रहा था. रचना को सामने देख कर हड़बड़ी मे वो अपने लंड को अंदर करना ही भूल गया. रचना की आँखें उसके लंड पर ही लगी हुई थी. उसका लंड रचना को देख कर खड़ा होने लगा. कुछ देर तक इसी तरह खड़े रहने के बाद रचना "उईईईई माआ" करती हुई बाथरूम से बाहर भाग आई. उसका पूरा बदन पसीने पसीने हो रहा था. मैने कुरेद कुरेद कर जब उससे पूछा तो उसने माना की वाक़ई उसे राज शर्मा का
लंड पसंद आ गया. अब मुझे उम्मीद हो गयी कि मैं अपने मकसद मे ज़रूर कामयाब हो कर रहूंगी.
रात को खाना ख़ान एके बाद मैं बर्तनो को सॉफ करके किचन सॉफ कर रही थी. रचना मेरे काम मे हाथ बटा रही थी. उसने मेरे ज़ोर देने पर रात को सारी की जगह सामने से खुलने वाला गाउन पहन रखा था. नीचे मैने उसे पेटिकोट या ब्रा पहनने नही दिया. इससे वो अपने कदम धीरे धीरे उठा कर चल रही थी क्योंकि पैरों को हिलाते ही नग्न पैर बाहर निकल पड़ते. मैं आज अपने काम से संतुष्ट थी. रचना चाह कर भी अपनी सुंदर टाँगे राज शर्मा से छिपा नही पा रही थी. इस पर मैने दोनो को कुछ निकटता देने के लिए कहा,
"रचना तू रहने दे. ये दूध गरम कर रखा है. इसे राज शर्मा को पिला कर जा बच्चे को सम्हाल नही तो अभी उठ कर रोने लगेगा. उसके दूध का टाइम भी हो गया है. ये मर्द हमेशा दूध के शौकीन होते हैं चाहे बच्चा हो या बूढ़ा."
रचना कुछ ना बोल कर राज शर्मा के लिए दूध का ग्लास लेकर हमारे बेडरूम मे चली गयी. मैं बिना आवाज़ के बेडरूम के पास पहुँची दोनो के बीच होने वाली बातों को सुनने के लिए. राज शर्मा धीरे से कह रहा था, "रचना आज तुम गाउन मे बहुत खूबसूरत लग रही हो. आओ बैठो यहाँ कुछ देर."
" नही मुझे जाने दो. बच्चे के दूध पीने का टाइम हो गया है." रचना ने धीरे से कहा.
" कितना किस्मेत वाला है." राज शर्मा ने धीरे से उसके साथ मस्ती करते हुए कहा.
" धात आप बहुत गंदे हो." फिर कुछ देर तक चुप्पी रही सिर्फ़ बीच बीच मे चूड़ियों की या कपड़ों के सरकने की आवाज़ आ रही थी.
" एम्म छोड़ो मुझे प्लीज़. राधा आती ही होगी. मुझे इस तरह तुम्हारी बाहों मे देख कर क्या सोचेगी. तुम मर्द तो कुछ ना कुछ बहाना बना कर बच जाओगे. मैं ही बदनाम हो जाउन्गि." रचना के गिड़गिदाने की आवाज़ आई.
"इतनी जल्दी भी क्या है. राधा काम पूरा करके आएगी कुछ देर तो लगेगा."
" प्लीज़…प्लीज़ मेरा हाथ छोड़ो देखो राज मैं फिर कभी आ जाउन्गि. अभी नही." कहते हुए उसके कमरे से भाग कर निकलने की आवाज़ आई. मैं झट से किचन मे चली गयी. रचना आकर मेरी बगल मे खड़ी हुई. उसकी साँसे ज़ोर ज़ोर से चल रही थी.
"क्या हुआ क्यों भाग रही थी?" मैने पूछा तो उसको मेरे अस्तित्व की याद आई.
"नही नही बस कुछ नही….बच्चा उठ गया है उसे दूध पिलाना है मैं चलती हूँ." कह कर वो बिना मेरे जवाब का इंतेज़ार किए वहाँ से निकल गयी.
अगली शाम हम तीनो खाना खाने के बाद एक ही सोफे पर बैठ कर फिल्म देख रहे थे. आज मेरे कहने के बावजूद रचना ने सारी पहन रखी थी. हां अंदर ब्रा ज़रूरी नही था. कमरे की लाइट ऑफ थी सिर्फ़ टीवी की रोशनी कमरे मे कुछ उजाला कर रही थी. मैं राज शर्मा की एक ओर बैठी थी और रचना दूसरी ओर. फिल्म काफ़ी रोमॅंटिक थी उसमे लव सीन्स काफ़ी थे जिसे देखते देखते मैं गर्म होने लगी. मैं सरक कर राज शर्मा से सॅट गयी. राज शर्मा ने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया. मैं अपना हाथ राज शर्मा की जाँघ पर रख कर उसे पायजामे के उपर से सहलाने लगी. बगल मे रचना बैठी थी उसकी मैने कोई परवाह नही की. धीरे धीरे मेरा हाथ उसके लंड को पायजामे के उपर से सहलाने लगा. उसका लंड खड़ा हो गया था. मैं उसके लंड को अपनी मुट्ठी मे भर कर सहला रही थी. राज शर्मा ने अपना चेहरा मेरी ओर करके मेरे होंठों को चूमा. अचानक मेरी नज़र रचना पर पड़ी तो मैने पाया कि वो भी राज शर्मा से सटी हुई है और राज शर्मा का दूसरा हाथ रचना के कंधे पर है. वो अपनी उंगलियों से रचना का गाल गला सहला रहा था. रचना का सिर राज शर्मा के कंधे पर टिका हुआ था. उत्तेजना से उसकी आँखें बंद थी. कुछ देर बाद राज शर्मा की उंगलियाँ नीचे सरक्ति हुई उसके ब्लाउस के अंदर घुस गयी. उसके हाथ अब रचना की चूचियों को सहला रहे थे. रचना अपने निचले होंठ को दाँतों मे दबा कर सिसकारियाँ निकलने से रोक रही थी. मगर अचानक ना चाहते हुए भी मुँह से सिसकारी निकल ही गयी. सिसकारी के साथ ही उसकी आँखें खुली और मुझसे आँखें मिलते ही वो हड़बड़ा कर राज शर्मा से अलग हो गयी.
"मैं मैं चलती हूँ मुझे नींद आ रही है." उसने झट अपने कपड़ों को ठीक करते हुए कहा और भागती हुई अपने कमरे मे चली गयी.
अगली शाम को हम तीनो बैठे ताश खेल रहे थे. बच्चा बेडरूम मे सो रहा था. अचानक उसकी रोने की आवाज़ आई.
" मैं अभी आती हूँ. बच्चा उठ गया है उसके दूध पीने का टाइम हो रहा है." कह कर रचना अपने हाथ के पत्ते टेबल पर रख कर उठने को हुई तो मैने उसको रोक दिया.
"तू बैठी रह राज शर्मा ले आएगा बच्चे को. इतना मज़ा आ रहा है और तू भागना चाहती है." मैने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया.
"लेकिन……."
"अरे बैठ ना तेरा चान्स है अपना पत्ता डाल राज प्लीज़ बच्चे को ले आओ ना बेडरूम से."
राज शर्मा उठ कर बेड रूम मे चला गया और बच्चा लाकर रचना की गोद मे दे दिया. बच्चे को देते वक़्त उसने अपनी हथेली के पिच्छले हिस्से से रचना के स्तनो को सहला दिया. उसकी इस हरकत से रचना के गाल लाल हो गये. मैने ऐसी आक्टिंग की मानो मुझे कुछ पता ही नही चला हो.
रचना बच्चे को आँचल मे छिपा कर दूध पिलाने लगी. मैने देखा राज शर्मा रचना के सामने बैठा कनखियों से रचना को निहार रहा था. हम वापस खेलने लगे. राज शर्मा ने ग़लत कार्ड फेंका. मैं तो इसी मौके का इंतेज़ार कर रही थी.
"राज शर्मा या तो ठीक से खेलो या रचना की सारी के अंदर घुस जाओ." मैने गुस्से से कहा.
"नही नही….वो…वू" राज मेरे हमले से हड़बड़ा गया.
"रचना राज को एक बार दिखा ही दे अपने योवन. इसका दिमाग़ तो अपनी जगह पर वापस आए. एक काम कर तू अपने कंधे से सारी हटा दे और देखने दे इसे जी भर के. देख देख कैसे लार टपक रही है इसकी…." मैं हँसने लगी. दोनो भी एक दूसरे से नज़रे मिलकर मुस्कुरा दिए. रचना ने अपनी सारी के आँचल को हटाने की कोई हरकत नही की तो मैं उठी और उसके पास जाकर अपने हाथों से उसकी सारी का आँचल उसके कंधे से हटा दिया. उसक एक स्तन बच्चे के मुँह मे था और दूसरा ब्लाउस मे. राज शर्मा की आँखे इस दृश्य को देख कर फटी रह गयी. रचना के ब्लाउस के नीचे के दो बटन्स लगे हुए थे. ब्लाउस के बारीक कपड़े के पीछे से दूसरे स्तन का आभास सॉफ दिख रहा था. रचना ने अपना सिर शर्म से नीचे झुका लिया. उसके गाल गुलाबी होने लगे.
"क्यों अब तो दिल को सुकून मिल गया. मेरी सहेली के बूब्स को देख कर अब मन मचल रहा होगा उन्हे छ्छूने के लिए. लेकिन खबरदार अगर अपनी जगह से भी हिले तो." मैने कहा. वो कुछ उचक कर रचना के निपल को देखने की कोशिश कर रहा था.
"अच्छा सॉफ नही दिख पा रहा होगा जनाब को." मैने कहा और अपने हाथ बढ़ा कर उसके ब्लाउस के बाकी बचे बटन्स खोल दिए. आख़िरी बटन खोलते समय रचना ने अपनी हथेली को मेरी हथेली के उपर रख कर एक हल्का सा अनुरोध किया, " नही राधा.."
लेकिन मैने आख़िरी बटन को भी खोल दिया. मैं राज शर्मा की तरफ देख कर मुस्कुरई और धीरे से अपने हाथों से ब्लाउस के पल्ले को रचना के दूसरे स्तन के उपर से हटा दिया. उसका स्तन एक तो दूध से भरा होने की वजह से और दूसरा किसी पदाए मर्द की नज़रों की तपिश पा कर एक दम कड़ा हो रहा था. निपल्स खड़े होकर आधे इंच लंबे हो गये थे. रचना अपने जबड़ों को आपस मे भींच कर अपने मन मे चल रहे उथलपुथल को बाहर आने से रोक रही थी. मैने ब्लाउस को कंधे से नीचे उतार दिया और रचना की हल्की मदद से उसे उसके बदन से अलग कर दिया. अब रचना टॉप लेस होकर राज शर्मा के सामने बैठी हुई थी. उसका एक स्तन बच्चे के मुँह मे था और दूसरा किसी के होंठों की चुअन के लिए तड़प रहा था. राज शर्मा ने अपना एक हाथ बढ़ा कर उसके उस उरोज को छुआ तो रचना अपने मे सिमट गयी. राज शर्मा अपनी एक उंगली रचना के निपल के उपर फिरा रहा था. रचना के मुँह से "आअहह……म्म्म्मम…." जैसी सिसकारियाँ निकल रही थी. मैने राज शर्मा के हाथ के उपर एक हल्की सी चपत मार कर उसके स्तन के उपर से हटा दिया.
" मैने कहा ना छूना मना है. तुम देखना चाहते थे रचना के बदन को मैने दिखा दिया. इसके आगे कोई हरकत मत करना." लेकिन आग तो भड़क चुकी थी अब तो इसे सिर्फ़ दोनो का सहवास ही शांत कर सकता था. जब एक स्तन का दूध ख़त्म हो गया तो उस निपल को मुँह से निकाल दिया. रचना ने उसे घुमा कर अब अपने दूसरे स्तन के निपल को बच्चे के मुँह मे डाल दिया. बच्चा वापस उसे चूसने मे जुट गया. पहले वाले निपल्स के उपर एक बूँद दूध लटक रहा था. जो बच्चे के मुँह मे जाने से बच गया था. मैने अपनी उंगली मे उस दूध के बूँद को लेकर राज शर्मा की तरफ बढ़ाया राज शर्मा किसी बरसों के भूखे की तरह लपक कर मेरी उंगली को अपने मुँह मे भर कर उसे चूसने लगा.
राज शर्मा आगे बढ़ कर रचना के स्तनो को दोबारा च्छुना चाहता था. इस बार मैने मना नही किया. रचना ने ही उसके हाथ को अपने मकसद मे कामयाब होने नही दिया.
रचना का बच्चा कुछ ही देर मे पेट भरने पर दूसरे निपल को छोड़ कर वापस सो गया. अभी उस स्तन मे दूध बचा हुआ था. रचना ने ब्लाउस पहनने के लिए मेरी ओर हाथ बढ़ाया. मगर मैं तो इतनी जल्दी उसे छोड़ना नही चाहती थी. मैने उसके निपल को अपनी दो उंगलियों मे भर कर हल्के से दबाया तो दूध की एक तेज धार उससे निकल कर सामने बैठे राज शर्मा के पैरों के पास गिरी.
"पियोगे?.... .." मैने राज शर्मा की ओर देखते हुए पूचछा, " अभी कुछ बाकी है. ख़तम करोगे इसे."
अँधा क्या चाहे दो आँखे जैसी ही बात थी. राज शर्मा ने अपने सिर को ज़ोर से हिलाया जिससे मुझे समझने मे किसी तरह की ग़लती ना हो जाए. रचना ने एक बार नज़रें उठा कर राज शर्मा को देखा और मुस्कुरा कर अपनी सहमति भी जता दी. राज शर्मा झपट कर उठा और रचना के स्तन को थामने के लिए आगे बढ़ा.
"नही ऐसे नही. इस काम को पूरा मज़ा लेकर करो कहीं ये भागी तो जा नही रही है. चलो बेडरूम मे" मैने कहा. राज शर्मा तो खड़ा हो ही चुका था. मैने रचना के हाथ से बच्चा लेकर राज शर्मा को थमाया और रचना को खींच कर खड़ा किया. अभी भी कुछ झिझक बची थी उसमे. उसे खड़ी करके मैने उसकी सारी को भी बदन से हटा दिया. अब वो सिर्फ़ एक पेटिकोट पहने हुए थी.
क्रमशः........................
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--8
gataank se aage....................
Ek din wo subah akhbaar parh raha tha tabhi Rachna hum teeno ke liye chai bana layee. Chai ke cups table par rakhte waqt uski sari ka anchal kandhe par se fisal gaya. Raj sharma akhbar parhne ka bahana karta hua uske upar se Rachna ki chuchiyon ko nihaar raha tha. Rachna ke blouse ke upar ke do buttons aur neeche ka ek button khula hua tha. Uska blouse sirf ek button par tika hua tha. Usne anchal ko sarahta dekh chai ke cups ko table par rakh kar apne anchal ko samhaal liya. Lekin ek minute ka wo antraal kafi tha Raj sharma ki ankhon me sex ki bhookh jagane ke liye.
" Rachna tu aise hi baith ja apni chuchiyon par se anchal hata kar. Tere Jija ke man ki mudaad poori ho jayegi." Maine Rachna ki taraf dekhte huye apni ek aankh dabai. Rachna sharm se laal ho gayee. usne apne anchal ko aur achchi tarah badan par lappet liya.
" Mera Raj sharma teri un dono Ras bhari chuchiyon ko dekhne ke liye pagal hua jar aha hai. Kya karoon meri chuchiyaan to abhi sookhi hi hain na." maine dono ki aur khinchai ki.
" Chup…Chup…..tu aaj kal bahut badmaash hoti ja rahi hai. Kabhi bhi kuch bhi kah deti hai." Rachna ne banawati gussa dikhate huye kaha.
Hum teeno hanste baten karte huye chai peene lage. Isi tarah main dono ko paas lane ke liye jatan karti ja rahi thi. Ek din jub hum dono hi the ghar me tab maine jaan boojh kar sex sambandhi baten shuru ki. Wo kahne lagi Arun bahut garam admi hai aur jab bhi ata hai din raat uske paas sirf yahi kaam rahta hai. Maine bhi Raj sharma ke bare me bataya. Wo Raj sharma ke bare me khod khod kar poochhne lagi.
" Raj sharma theth pahadi admi hai usme takat to itna hai ki achche achchhon ko pani pila de. Uska lund itna mota aur gadhe ki tarah lamba hai. Jab andar jata hai to lagta hai mano gale se bahar ajayega."
"huh….tu jhooth bol rahi hai. Itna bada hota hai bhala kisi ka." Rachna Raj sharma ke bare me khhob interest le rahi thi.
" are jo jhelta hai na wo hi janta hai. Aaj itne salon baad bhi mere eke k had ko tod kar rakh deta hai. Itni der tak lagataar chodta hai ki meri to jaan hi nikal jati hai."
" achcha tujhe to khoob maja ata hoga? Lekin ab bhi main nahi manti ki uska lund is size ki ho sakti hai. Arun ka isse kafi chhota hai" Rachna ne apni sookhe honthon par apni jeebh feri.
" tune dekha nahi Payjame me jab khada hota hai uska to kaise tamboo ka akar le leta hai."
Rachna ne kuch kaha nahi sirf apne sir ko hilaya.
"haan haan tujhe pata kaise nahi chalega. Aajkal to tujhe dekhte hi uska lund bahar ane ko chhatpatane lagta hai." Main usko chhedne lagi.
" Tub hi to Arun ke lund ko tadpa deti hai." Rachna ne mujhe bhi lapetne ki koshish ki.
"Dekhegi?... bol dekhegi Raj sharma ke lund ko?" Maine usse pooch. To wo chup rah kar apni sahmati jatai.
"Theek hai main koi jugaad lagati hoon."
Us din jaise hi Raj sharma peshaab karne ke liye raat ko bathroom me ghusa maine Rachna ko bathroom me jakar towel lekar ane ko kaha. Rachna ko pata nahi tha ki andar Raj sharma hai. Aur jaisi mujhe ummid thi. Raj sharma ne darwaja andar se lock nahi kiya tha. Rachna bina kuch soche samjhe bathroom ke darwaje ko khol kar andar chali gayee. Main pahle hi wahan se hat gayee thi. Raj sharma comod ke samne khada hua peshaab kar raha tha. Rachna ko samne dekh kar hadbadi me wo apne lund ko andar karna hi bhool gaya. Rachna ki ankhen uske lund par hi lagi hui thi. Uska lund Rachna ko dekh kar khada hone laga. Kuch der tak isi tarah khade rahne ke baad rachna "uiiiiii maaaa" karti hui bathroom se bahar bhaag ayee. Uska poora badan paseene paseene ho raha tha. Maine kured kured kar jab usse poochha to usne mana ki waqai use Raj sharma ka
lund pasand a gaya. Ab mujhe ummid ho gayee ki main apne maksad me jaroor kamyaab ho kar rahoongi.
Raat ko khana khan eke baad main bartano ko saaf karke kitchen saaf kar rahi thi. Rachna mere kaam me hath bata rahi thi. Usne mere jor dene par raat ko sari ki jagah samne se khulne wala gown pahan rakha tha. Neeche maine use petticoat ya bra pahanne nahi diya. Isse wo apne kadam dheere dheere utha kar chal rahi thi kyonki pairon ko hilate hi nagn pair bahar nikal parte. Main aaj apne kaam se santusht thi. Rachna chaah kar bhi apni sundar tangent Raj sharma se chhipa nahi pa rahi thi. Is par maine dono ko kuch nikatta dene ke liye kaha,
"Rachna tu rahne de. Ye doodh garam kar rakha hai. Ise Raj sharma ko pila kar ja bachche ko samhal nahi to abhi uth kar rone lagega. Uske doodh ka time bhi ho gaya hai. Ye mard hamesha doodh ke shaukeen hote hain chahe bachcha ho ya boodha."
Rachna kuch na bol kar Raj sharma ke liye doodh ka glass lekar humare beDoctoroom me chali gayee. main bina awaj ke beDoctoroom ke paas pahunchi dono ke beech hone wali baton ko sunne ke liye. Raj sharma dheere se kah raha tha, "Rachna aaj tum gown me bahut khoobsoorat lag rahi ho. Ao baitho yahan kuch der."
" nahi mujhe jane do. Bachche ke doodh peene ka time ho gaya hai." Rachna ne dheere se kaha.
" kitna kismet wala hai." Raj sharma ne dheere se uske saath musti karte huye kaha.
" Dhat aap bahut gande ho." Fir kuch der tak chuppi rahi sirf beech beech me chudiyon ki ya kapdon ke sarakne ki awaj a rahi thi.
" mmm chodo mujhe pleeeeese. Raadha ati hi hogi. Mujhe is tarah tumhari bahon me dekh kar kya sochegi. Tum mard to kuch na kuch bahana bana kar bach jaoge. Main hi badnam ho jaungi." Rachna ke gidgidane ki awaj aye.
"Itni jaldi bhi kya hai. Raadha kaam poora karke ayegi kuch der to lagega."
" please…please mera hath choodo dekho Raj sharma main fir kabhi a jaungi. Abhi nahi." Kahte huye uske kamre se bhag kar nikalne ki awaj aye. Main jhat se kitchen me chali gayee. Rachna akar meri bagal me khadi hui. Uski saanse jor jor se chal rahi thi.
"kya hua kyon bhaag rahi thi?" maine poochha to usko mere astitva ki yaad aye.
"nahi nahi bus kuch nahi….bachchaa uth gaya hai use doodh pilana hai main chalti hoon." Kah kar wo bina mere jawab ka intezar kiye wahan se nikal gayee.
agli sham hum teeno khana khane ke baad ek hi sofe par baith kar film dekh rahe the. Aaj mere kahne ke bawjood Rachna ne sari pahan rakhi thi. Haan andar bra jaroor nahi tha. Kamre ki light off thi sirf TV ki roshni kamre me kuch ujala kar rahi thi. Main Raj sharma ki ek or baithi thi aur Rachna doosri or. Film kafi romantic thi usme love sceans kafi the jise dekhte dekhte main garm hone lagi. Main Sarak kar Raj sharma se sat gayee. Raj sharma ne apna ek hath mere kandhe par rakh diya. Main apna hath Raj sharma ki jangh par rakh kar use paijame ke upar se sahlane lagi. Bagal me Rachna baithi thi uski maine koi parwah nahi ki. Dheere dheere mera hath uske lund ko paijame ke upar se sahlane laga. Uska lund khada ho gaya tha. Main uske lund ko apni mutthi me bhar kar sahla rahi thi. Raj sharma ne apna chehra meri or karke mere honthon ko chooma. Achanak meri najar Rachna par padi to maine paya ki wo bhi Raj sharma se sati hui hai aur Raj sharma ka doosra hath Rachna ke kandhe par hai. Wo apni ungliyon se Rachna ka gaal gala sahla raha tha. Rachna ka sir Raj sharma ke kandhe par tika hua tha. Uttejna se uski ankhen band thi. Kuch der baad Raj sharma ki ungliyan neeche sarakti hui uske blouse ke andar ghus gayee. uske hath ab Rachna ke urojon ko sahla rahe the. Rachna apne nichle honth ko danton me daba kar siskariyan nikalne se rok rahi thi. Magar achanak na chahte huye bhi munh se siskari nikal hi gayee. siskari ke sath hi uski ankhen khuli aur mujhse ankhen milte hi wo hadbada kar Raj sharma se alag ho gayee.
"main main chalti hoon mujhe neend a rahi hai." Usne jhat apne kapdon ko theek karte huye kaha aur bhagti hui apne kamre me chali gayee.
agli sham ko hum teeno baithe tash khel rahe the. Bachcha beDoctoroom me so raha tha. Achanak uske rone ki awaj aye.
" main abhi ati hoon. Bachcha uth gaya hai uske doodh peene ka time ho raha hai." Kah kar rachna apne haath ke patte table par rakh kar uthne ko hui to maine usko rok diya.
"tu baithi rah Raj sharma le ayega bachche ko. Itna maja a raha hai aur tu bhagna chahti hai." Maine uska hath pakad kar rok liya.
"lekin……."
"are baith na tera chance hai apna patta daal Raj sharma please bachche ko le ao na beDoctoroom se."
Raj sharma uth kar bed room me chala gaya aur bachcha lakar Racna ki god me de diya. Bachche ko dete waqt usne apni hatheli ke pichhle hisse se Rachna ke stano ko sahla diya. Uski is harkat se Rachna ke gaal laal ho gaye. Maine aisi acting ki mano mujhe kuch pata hi nahi chala ho.
Rachna bachche ko anchal me chhipa kar doodh pilane lagi. Maine dekha Raj sharma Rachna ke samne baitha kankhiyon se Racna ko nihar raha tha. Hum wapas khelne lage. Raj sharma ne galat card fenka. Main to isi mauke ka intezaar kar rahi thi.
"Raj sharma ya to theek se khelo ya Rachna ki sari ke andar ghus jao." Maine gusse se kaha.
"nahi nahi….wo…woo" Raj sharma mere hamle se hadbada gaya.
"Rachna Raj sharma ko ek baar dikha hi de apne yovan. Iska dimaag to apni jagah par wapas aye. Ek kaam kart u apne kandhe se sari hata de aur dekhne de ise jee bhar ke. Dekh dekh kaise laar tapak rahi hai iski…." Main hansne lagi. Dono bhi ek doosre se najre milakar muskura diye. Rachna ne apne sari ke anchal ko hatane ki koi harkat nahi ki to main uthi aur uske paas jakar apne hathon se uski sari ka anchal uske kandhe se hata diya. Usak ek satan bachche ke munh me tha aur doosra blouse me. Raj sharma ki ankhe is Doctorashya ko dekh kar fati rah gayee. rachna ke blouse ke neeche ke do buttons lage huye the. Blouse ke bareek kapde ke peechhe se doosre stan ka abhas saaf dikh raha tha. Rachna ne apna sir sharm se neeche jhuka liya. Uske gaal gulabi hone lage.
"kyon ab to dil ko sukoon milgaya. Meri saheli ke boobs ko dekh kar ab man machal raha hoga unhe chhoone ke liye. Lekin khabardaar agar apni jagah se bhi hile to." Maine kaha. Wo kuch uchak kar Rachna ke nipple ko dekhne ki koshish kar raha tha.
"achcha saaf nahi dikh pa raha hoga janab ko." Maine kaha aur apne haath badha kar uske blouse ke baki bache buttons khol diye. Akhiri button kholte samay Rachna ne apni hatheli ko meri hatheli ke upar rakh kar ek halka sa anurodh kiya, " nahi Radha.."
lekin maine akhiri button ko bhi khol diya. Main Raj sharma ki taraf dekh kar muskurai aur dheere se apne hathon se blouse ke palle ko Rachna ke doosre stank e upar se hata diya. Uska stan ek to doodh se bhara hone ki wajah se aur doosra kisi padaye mard ki najron kit apish pa kar ak dum kada ho raha tha. Nipples khade hokar adhe inch lambe ho gaye the. Rachna apne jabdon ko apas me bheench kar apne man me chal rahe uthalputhal ko bahar ane se rok rahi thi. Maine blouse ko kandhe se neeche utar diya aur Rachna ki halki madad se use uske badan se alag kar diya. Ab Rachna top less hokar Raj sharma ke samne baithi hui thi. Uska ek stan bachche ke munh me tha aur doosra kisi ke honthon ki chuan ke liye tadap raha tha. Raj sharma ne apna ek hath badha kar uske us uroj ko chhua to Rachna apne me simat gayee. Raj sharma apni ek ungli Rachna ke nipple ke upar fira raha tha. Rchna ke munh se "aaahhhhhh……mmmmm…." Jaisi siskariyan nikal rahi thi. Maine Raj sharma ke hath ke upar ek halki si chapat mar kar uske stank e upar se hata diya.
" maine kaha na chhoona mana hai. Tum dekhna chahte the Rachna ke badan ko maine dikha diya. Iske age koi harkat mat karma." Lekinaag to bhadak chuki thi ab to ise sirf dono ka sahwas hi shant kar sakta tha. Jab ek stan ka doodh khatm ho gaya to us nipple ko munh se nikal diya. Rachna ne use ghuma kar ab apne doosre stan ke nipple ko bachche ke munh me daal diya. Bachcha wapas use choosne me jut gaya. Pahle wale nipples ke upar ek boond doodh latak raha tha. Jo bachche ke munh me jane se bach gaya tha. Maine apni ungli me us doodh ke boond ko lekar Raj sharma ki taraf badhaya Raj sharma kisi barson ke bhookhe ki tarah lapak kar meri ungli ko apne munh me bhar kar use choosne laga.
Raj sharma age badh kar Rachna ke stano ko dobara chhuna chahta tha. Is baar maine mana nahi kya. Rachna ne hi uske hath ko apne maksad me kamyaab hone nahi diya.
Rachna ka bachcha kuch hi der me pet bharne par doosre nipple ko chod kar wapas so gaya. Abhi us stan me doodh bacha hua tha. Rachna ne blouse pahanne ke liye meri or hath badhaya. Magar main to itni jaldi use chodna nahi chahti thi. Maine uske nipple ko apni do ungliyon me bhar kar halke se dabaya to doodh ki ek tej dhaar usse nikal kar samne baithe Raj sharma ke pairon ke paas giri.
"piyoge?.... .." maine Raj sharma ki or dekhte huye poochha, " abhi kuch baki hai. Khatam karoge ise."
Andha kya chahe do ankhe jaisi hi baat thi. Raj sharma ne apne sir ko jor se hilaya jisse mujhe samajhne me kisi tarah ki galti na ho jaye. Rachna ne ek baar najren utha kar Raj sharma ko dekha aur muskura kar apni sahmati bhi jata di. Raj sharma jhapat kar utha aur Rachna ke stan ko thamne ke liye age badha.
"nahi aise nahi. Is kaam ko poora maja lekar karo kahin ye bhagi to ja nahi rahi hai. Chalo beDoctoroom me" maine kaha. Raj sharma to khada ho hi chuka tha. Maine Rachna ke hath se bachcha lekar Raj sharma ko thamaya aur Rachna ko kheench kar khada kiya. Abhi bhi kuch jhijhak bachi thi usme. Use khadi karke maine uski sari ko bhi badan se hata diya. Ab wo sirf ek petticoat pahne huye thi.
KRAMASHASH.................... .......
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raj sharma stories
राधा का राज--8गतान्क से आगे....................
एक दिन वो सुबह अख़बार पढ़ रहा था तभी रचना हम तीनो के लिए चाइ बना लाई. चाइ के कप्स टेबल पर रखते वक़्त उसकी सारी का आँचल कंधे पर से फिसल गया. राज शर्मा अख़बार पढ़ने का बहाना करता हुआ उसके उपर से रचना की चुचियों को निहार रहा था. रचना के ब्लाउस के उपर के दो बटन्स और नीचे का एक बटन खुला हुआ था. उसका ब्लाउस सिर्फ़ एक बटन पर टिका हुआ था. उसने आँचल को निहारता देख चाइ के कप्स को टेबल पर रख कर अपने आँचल को समहाल लिया. लेकिन एक मिनिट का वो अंतराल काफ़ी था राज शर्मा की आँखों मे सेक्स की भूख जगाने के लिए.
" रचना तू ऐसे ही बैठ जा अपनी चुचियों पर से आँचल हटा कर. तेरे जीजा के मन की मुदाद पूरी हो जाएगी." मैने रचना की तरफ देखते हुए अपनी एक आँख दबाई. रचना शर्म से लाल हो गयी. उसने अपने आँचल को और अच्छी तरह बदन पर लप्पेट लिया.
" मेरा राज शर्मा तेरी उन दोनो रस भरी चुचियों को देखने के लिए पागल हुआ जा रहा है. क्या करूँ मेरी चुचियाँ तो अभी सूखी ही हैं ना." मैने दोनो की और खिंचाई की.
" चुप…चुप…..तू आज कल बहुत बदमाश होती जा रही है. कभी भी कुछ भी कह देती है." रचना ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा.
हम तीनो हंसते बातें करते हुए चाइ पीने लगे. इसी तरह मैं दोनो को पास लाने के लिए जतन करती जा रही थी. एक दिन जब हम दोनो ही थे घर मे तब मैने जान बूझ कर सेक्स संबंधी बातें शुरू की. वो कहने लगी अरुण बहुत गरम आदमी है और जब भी आता है दिन रात उसके पास सिर्फ़ यही काम रहता है. मैने भी राज शर्मा के बारे मे बताया. वो राज शर्मा के बारे मे खोद खोद कर पूच्छने लगी.
" राज शर्मा ठेठ पहाड़ी आदमी है उसमे ताक़त तो इतनी है कि अच्छे अच्छो को पानी पीला दे. उसका लंड इतना मोटा और गधे की तरह लंबा है. जब अंदर जाता है तो लगता है मानो गले से बाहर अजाएगा."
"हा….तू झूठ बोल रही है. इतना बड़ा होता है भला किसी का." रचना राज शर्मा के बारे मे खूब इंटेरेस्ट ले रही थी.
" अरे जो झेलता है ना वो ही जानता है. आज इतने सालों बाद भी मेरे एक एक हाड़ को तोड़ कर रख देता है. इतनी देर तक लगातार चोद्ता है कि मेरी तो जान ही निकल जाती है."
" अच्छा तुझे तो खूब मज़ा आता होगा? लेकिन अब भी मैं नही मानती कि उसका लंड इस साइज़ का हो सकता है. अरुण का इससे काफ़ी छ्होटा है" रचना ने अपनी सूखे होंठों पर अपनी जीभ फेरी.
" तूने देखा नही पयज़ामे मे जब खड़ा होता है उसका तो कैसे तंबू का आकार ले लेता है."
रचना ने कुछ कहा नही सिर्फ़ अपने सिर को हिलाया.
"हां हां तुझे पता कैसे नही चलेगा. आजकल तो तुझे देखते ही उसका लंड बाहर आने को च्चटपटाने लगता है." मैं उसको छेड़ने लगी.
" तू भी तो अरुण के लंड को तडपा देती है." रचना ने मुझे भी लपेटने की कोशिश की.
"देखेगी?... बोल देखेगी राज शर्मा के लंड को?" मैने उससे पूछा. तो वो चुप रह कर अपनी सहमति जताई.
"ठीक है मैं कोई जुगाड़ लगाती हूँ."
उस दिन जैसे ही राज शर्मा पेशाब करने के लिए रात को बाथरूम मे घुसा मैने रचना को बाथरूम मे जाकर टवल लेकर आने को कहा. रचना को पता नही था कि अंदर राज शर्मा है. और जैसी मुझे उम्मीद थी. राज शर्मा ने दरवाजा अंदर से लॉक नही किया था. रचना बिना कुछ सोचे समझे बाथरूम के दरवाजे को खोल कर अंदर चली गयी. मैं पहले ही वहाँ से हट गयी थी. राज शर्मा कॉमोड के सामने खड़ा हुआ पेशाब कर रहा था. रचना को सामने देख कर हड़बड़ी मे वो अपने लंड को अंदर करना ही भूल गया. रचना की आँखें उसके लंड पर ही लगी हुई थी. उसका लंड रचना को देख कर खड़ा होने लगा. कुछ देर तक इसी तरह खड़े रहने के बाद रचना "उईईईई माआ" करती हुई बाथरूम से बाहर भाग आई. उसका पूरा बदन पसीने पसीने हो रहा था. मैने कुरेद कुरेद कर जब उससे पूछा तो उसने माना की वाक़ई उसे राज शर्मा का
लंड पसंद आ गया. अब मुझे उम्मीद हो गयी कि मैं अपने मकसद मे ज़रूर कामयाब हो कर रहूंगी.
रात को खाना ख़ान एके बाद मैं बर्तनो को सॉफ करके किचन सॉफ कर रही थी. रचना मेरे काम मे हाथ बटा रही थी. उसने मेरे ज़ोर देने पर रात को सारी की जगह सामने से खुलने वाला गाउन पहन रखा था. नीचे मैने उसे पेटिकोट या ब्रा पहनने नही दिया. इससे वो अपने कदम धीरे धीरे उठा कर चल रही थी क्योंकि पैरों को हिलाते ही नग्न पैर बाहर निकल पड़ते. मैं आज अपने काम से संतुष्ट थी. रचना चाह कर भी अपनी सुंदर टाँगे राज शर्मा से छिपा नही पा रही थी. इस पर मैने दोनो को कुछ निकटता देने के लिए कहा,
"रचना तू रहने दे. ये दूध गरम कर रखा है. इसे राज शर्मा को पिला कर जा बच्चे को सम्हाल नही तो अभी उठ कर रोने लगेगा. उसके दूध का टाइम भी हो गया है. ये मर्द हमेशा दूध के शौकीन होते हैं चाहे बच्चा हो या बूढ़ा."
रचना कुछ ना बोल कर राज शर्मा के लिए दूध का ग्लास लेकर हमारे बेडरूम मे चली गयी. मैं बिना आवाज़ के बेडरूम के पास पहुँची दोनो के बीच होने वाली बातों को सुनने के लिए. राज शर्मा धीरे से कह रहा था, "रचना आज तुम गाउन मे बहुत खूबसूरत लग रही हो. आओ बैठो यहाँ कुछ देर."
" नही मुझे जाने दो. बच्चे के दूध पीने का टाइम हो गया है." रचना ने धीरे से कहा.
" कितना किस्मेत वाला है." राज शर्मा ने धीरे से उसके साथ मस्ती करते हुए कहा.
" धात आप बहुत गंदे हो." फिर कुछ देर तक चुप्पी रही सिर्फ़ बीच बीच मे चूड़ियों की या कपड़ों के सरकने की आवाज़ आ रही थी.
" एम्म छोड़ो मुझे प्लीज़. राधा आती ही होगी. मुझे इस तरह तुम्हारी बाहों मे देख कर क्या सोचेगी. तुम मर्द तो कुछ ना कुछ बहाना बना कर बच जाओगे. मैं ही बदनाम हो जाउन्गि." रचना के गिड़गिदाने की आवाज़ आई.
"इतनी जल्दी भी क्या है. राधा काम पूरा करके आएगी कुछ देर तो लगेगा."
" प्लीज़…प्लीज़ मेरा हाथ छोड़ो देखो राज मैं फिर कभी आ जाउन्गि. अभी नही." कहते हुए उसके कमरे से भाग कर निकलने की आवाज़ आई. मैं झट से किचन मे चली गयी. रचना आकर मेरी बगल मे खड़ी हुई. उसकी साँसे ज़ोर ज़ोर से चल रही थी.
"क्या हुआ क्यों भाग रही थी?" मैने पूछा तो उसको मेरे अस्तित्व की याद आई.
"नही नही बस कुछ नही….बच्चा उठ गया है उसे दूध पिलाना है मैं चलती हूँ." कह कर वो बिना मेरे जवाब का इंतेज़ार किए वहाँ से निकल गयी.
अगली शाम हम तीनो खाना खाने के बाद एक ही सोफे पर बैठ कर फिल्म देख रहे थे. आज मेरे कहने के बावजूद रचना ने सारी पहन रखी थी. हां अंदर ब्रा ज़रूरी नही था. कमरे की लाइट ऑफ थी सिर्फ़ टीवी की रोशनी कमरे मे कुछ उजाला कर रही थी. मैं राज शर्मा की एक ओर बैठी थी और रचना दूसरी ओर. फिल्म काफ़ी रोमॅंटिक थी उसमे लव सीन्स काफ़ी थे जिसे देखते देखते मैं गर्म होने लगी. मैं सरक कर राज शर्मा से सॅट गयी. राज शर्मा ने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया. मैं अपना हाथ राज शर्मा की जाँघ पर रख कर उसे पायजामे के उपर से सहलाने लगी. बगल मे रचना बैठी थी उसकी मैने कोई परवाह नही की. धीरे धीरे मेरा हाथ उसके लंड को पायजामे के उपर से सहलाने लगा. उसका लंड खड़ा हो गया था. मैं उसके लंड को अपनी मुट्ठी मे भर कर सहला रही थी. राज शर्मा ने अपना चेहरा मेरी ओर करके मेरे होंठों को चूमा. अचानक मेरी नज़र रचना पर पड़ी तो मैने पाया कि वो भी राज शर्मा से सटी हुई है और राज शर्मा का दूसरा हाथ रचना के कंधे पर है. वो अपनी उंगलियों से रचना का गाल गला सहला रहा था. रचना का सिर राज शर्मा के कंधे पर टिका हुआ था. उत्तेजना से उसकी आँखें बंद थी. कुछ देर बाद राज शर्मा की उंगलियाँ नीचे सरक्ति हुई उसके ब्लाउस के अंदर घुस गयी. उसके हाथ अब रचना की चूचियों को सहला रहे थे. रचना अपने निचले होंठ को दाँतों मे दबा कर सिसकारियाँ निकलने से रोक रही थी. मगर अचानक ना चाहते हुए भी मुँह से सिसकारी निकल ही गयी. सिसकारी के साथ ही उसकी आँखें खुली और मुझसे आँखें मिलते ही वो हड़बड़ा कर राज शर्मा से अलग हो गयी.
"मैं मैं चलती हूँ मुझे नींद आ रही है." उसने झट अपने कपड़ों को ठीक करते हुए कहा और भागती हुई अपने कमरे मे चली गयी.
अगली शाम को हम तीनो बैठे ताश खेल रहे थे. बच्चा बेडरूम मे सो रहा था. अचानक उसकी रोने की आवाज़ आई.
" मैं अभी आती हूँ. बच्चा उठ गया है उसके दूध पीने का टाइम हो रहा है." कह कर रचना अपने हाथ के पत्ते टेबल पर रख कर उठने को हुई तो मैने उसको रोक दिया.
"तू बैठी रह राज शर्मा ले आएगा बच्चे को. इतना मज़ा आ रहा है और तू भागना चाहती है." मैने उसका हाथ पकड़ कर रोक लिया.
"लेकिन……."
"अरे बैठ ना तेरा चान्स है अपना पत्ता डाल राज प्लीज़ बच्चे को ले आओ ना बेडरूम से."
राज शर्मा उठ कर बेड रूम मे चला गया और बच्चा लाकर रचना की गोद मे दे दिया. बच्चे को देते वक़्त उसने अपनी हथेली के पिच्छले हिस्से से रचना के स्तनो को सहला दिया. उसकी इस हरकत से रचना के गाल लाल हो गये. मैने ऐसी आक्टिंग की मानो मुझे कुछ पता ही नही चला हो.
रचना बच्चे को आँचल मे छिपा कर दूध पिलाने लगी. मैने देखा राज शर्मा रचना के सामने बैठा कनखियों से रचना को निहार रहा था. हम वापस खेलने लगे. राज शर्मा ने ग़लत कार्ड फेंका. मैं तो इसी मौके का इंतेज़ार कर रही थी.
"राज शर्मा या तो ठीक से खेलो या रचना की सारी के अंदर घुस जाओ." मैने गुस्से से कहा.
"नही नही….वो…वू" राज मेरे हमले से हड़बड़ा गया.
"रचना राज को एक बार दिखा ही दे अपने योवन. इसका दिमाग़ तो अपनी जगह पर वापस आए. एक काम कर तू अपने कंधे से सारी हटा दे और देखने दे इसे जी भर के. देख देख कैसे लार टपक रही है इसकी…." मैं हँसने लगी. दोनो भी एक दूसरे से नज़रे मिलकर मुस्कुरा दिए. रचना ने अपनी सारी के आँचल को हटाने की कोई हरकत नही की तो मैं उठी और उसके पास जाकर अपने हाथों से उसकी सारी का आँचल उसके कंधे से हटा दिया. उसक एक स्तन बच्चे के मुँह मे था और दूसरा ब्लाउस मे. राज शर्मा की आँखे इस दृश्य को देख कर फटी रह गयी. रचना के ब्लाउस के नीचे के दो बटन्स लगे हुए थे. ब्लाउस के बारीक कपड़े के पीछे से दूसरे स्तन का आभास सॉफ दिख रहा था. रचना ने अपना सिर शर्म से नीचे झुका लिया. उसके गाल गुलाबी होने लगे.
"क्यों अब तो दिल को सुकून मिल गया. मेरी सहेली के बूब्स को देख कर अब मन मचल रहा होगा उन्हे छ्छूने के लिए. लेकिन खबरदार अगर अपनी जगह से भी हिले तो." मैने कहा. वो कुछ उचक कर रचना के निपल को देखने की कोशिश कर रहा था.
"अच्छा सॉफ नही दिख पा रहा होगा जनाब को." मैने कहा और अपने हाथ बढ़ा कर उसके ब्लाउस के बाकी बचे बटन्स खोल दिए. आख़िरी बटन खोलते समय रचना ने अपनी हथेली को मेरी हथेली के उपर रख कर एक हल्का सा अनुरोध किया, " नही राधा.."
लेकिन मैने आख़िरी बटन को भी खोल दिया. मैं राज शर्मा की तरफ देख कर मुस्कुरई और धीरे से अपने हाथों से ब्लाउस के पल्ले को रचना के दूसरे स्तन के उपर से हटा दिया. उसका स्तन एक तो दूध से भरा होने की वजह से और दूसरा किसी पदाए मर्द की नज़रों की तपिश पा कर एक दम कड़ा हो रहा था. निपल्स खड़े होकर आधे इंच लंबे हो गये थे. रचना अपने जबड़ों को आपस मे भींच कर अपने मन मे चल रहे उथलपुथल को बाहर आने से रोक रही थी. मैने ब्लाउस को कंधे से नीचे उतार दिया और रचना की हल्की मदद से उसे उसके बदन से अलग कर दिया. अब रचना टॉप लेस होकर राज शर्मा के सामने बैठी हुई थी. उसका एक स्तन बच्चे के मुँह मे था और दूसरा किसी के होंठों की चुअन के लिए तड़प रहा था. राज शर्मा ने अपना एक हाथ बढ़ा कर उसके उस उरोज को छुआ तो रचना अपने मे सिमट गयी. राज शर्मा अपनी एक उंगली रचना के निपल के उपर फिरा रहा था. रचना के मुँह से "आअहह……म्म्म्मम…." जैसी सिसकारियाँ निकल रही थी. मैने राज शर्मा के हाथ के उपर एक हल्की सी चपत मार कर उसके स्तन के उपर से हटा दिया.
" मैने कहा ना छूना मना है. तुम देखना चाहते थे रचना के बदन को मैने दिखा दिया. इसके आगे कोई हरकत मत करना." लेकिन आग तो भड़क चुकी थी अब तो इसे सिर्फ़ दोनो का सहवास ही शांत कर सकता था. जब एक स्तन का दूध ख़त्म हो गया तो उस निपल को मुँह से निकाल दिया. रचना ने उसे घुमा कर अब अपने दूसरे स्तन के निपल को बच्चे के मुँह मे डाल दिया. बच्चा वापस उसे चूसने मे जुट गया. पहले वाले निपल्स के उपर एक बूँद दूध लटक रहा था. जो बच्चे के मुँह मे जाने से बच गया था. मैने अपनी उंगली मे उस दूध के बूँद को लेकर राज शर्मा की तरफ बढ़ाया राज शर्मा किसी बरसों के भूखे की तरह लपक कर मेरी उंगली को अपने मुँह मे भर कर उसे चूसने लगा.
राज शर्मा आगे बढ़ कर रचना के स्तनो को दोबारा च्छुना चाहता था. इस बार मैने मना नही किया. रचना ने ही उसके हाथ को अपने मकसद मे कामयाब होने नही दिया.
रचना का बच्चा कुछ ही देर मे पेट भरने पर दूसरे निपल को छोड़ कर वापस सो गया. अभी उस स्तन मे दूध बचा हुआ था. रचना ने ब्लाउस पहनने के लिए मेरी ओर हाथ बढ़ाया. मगर मैं तो इतनी जल्दी उसे छोड़ना नही चाहती थी. मैने उसके निपल को अपनी दो उंगलियों मे भर कर हल्के से दबाया तो दूध की एक तेज धार उससे निकल कर सामने बैठे राज शर्मा के पैरों के पास गिरी.
"पियोगे?.... .." मैने राज शर्मा की ओर देखते हुए पूचछा, " अभी कुछ बाकी है. ख़तम करोगे इसे."
अँधा क्या चाहे दो आँखे जैसी ही बात थी. राज शर्मा ने अपने सिर को ज़ोर से हिलाया जिससे मुझे समझने मे किसी तरह की ग़लती ना हो जाए. रचना ने एक बार नज़रें उठा कर राज शर्मा को देखा और मुस्कुरा कर अपनी सहमति भी जता दी. राज शर्मा झपट कर उठा और रचना के स्तन को थामने के लिए आगे बढ़ा.
"नही ऐसे नही. इस काम को पूरा मज़ा लेकर करो कहीं ये भागी तो जा नही रही है. चलो बेडरूम मे" मैने कहा. राज शर्मा तो खड़ा हो ही चुका था. मैने रचना के हाथ से बच्चा लेकर राज शर्मा को थमाया और रचना को खींच कर खड़ा किया. अभी भी कुछ झिझक बची थी उसमे. उसे खड़ी करके मैने उसकी सारी को भी बदन से हटा दिया. अब वो सिर्फ़ एक पेटिकोट पहने हुए थी.
क्रमशः........................
--8
gataank se aage....................
Ek din wo subah akhbaar parh raha tha tabhi Rachna hum teeno ke liye chai bana layee. Chai ke cups table par rakhte waqt uski sari ka anchal kandhe par se fisal gaya. Raj sharma akhbar parhne ka bahana karta hua uske upar se Rachna ki chuchiyon ko nihaar raha tha. Rachna ke blouse ke upar ke do buttons aur neeche ka ek button khula hua tha. Uska blouse sirf ek button par tika hua tha. Usne anchal ko sarahta dekh chai ke cups ko table par rakh kar apne anchal ko samhaal liya. Lekin ek minute ka wo antraal kafi tha Raj sharma ki ankhon me sex ki bhookh jagane ke liye.
" Rachna tu aise hi baith ja apni chuchiyon par se anchal hata kar. Tere Jija ke man ki mudaad poori ho jayegi." Maine Rachna ki taraf dekhte huye apni ek aankh dabai. Rachna sharm se laal ho gayee. usne apne anchal ko aur achchi tarah badan par lappet liya.
" Mera Raj sharma teri un dono Ras bhari chuchiyon ko dekhne ke liye pagal hua jar aha hai. Kya karoon meri chuchiyaan to abhi sookhi hi hain na." maine dono ki aur khinchai ki.
" Chup…Chup…..tu aaj kal bahut badmaash hoti ja rahi hai. Kabhi bhi kuch bhi kah deti hai." Rachna ne banawati gussa dikhate huye kaha.
Hum teeno hanste baten karte huye chai peene lage. Isi tarah main dono ko paas lane ke liye jatan karti ja rahi thi. Ek din jub hum dono hi the ghar me tab maine jaan boojh kar sex sambandhi baten shuru ki. Wo kahne lagi Arun bahut garam admi hai aur jab bhi ata hai din raat uske paas sirf yahi kaam rahta hai. Maine bhi Raj sharma ke bare me bataya. Wo Raj sharma ke bare me khod khod kar poochhne lagi.
" Raj sharma theth pahadi admi hai usme takat to itna hai ki achche achchhon ko pani pila de. Uska lund itna mota aur gadhe ki tarah lamba hai. Jab andar jata hai to lagta hai mano gale se bahar ajayega."
"huh….tu jhooth bol rahi hai. Itna bada hota hai bhala kisi ka." Rachna Raj sharma ke bare me khhob interest le rahi thi.
" are jo jhelta hai na wo hi janta hai. Aaj itne salon baad bhi mere eke k had ko tod kar rakh deta hai. Itni der tak lagataar chodta hai ki meri to jaan hi nikal jati hai."
" achcha tujhe to khoob maja ata hoga? Lekin ab bhi main nahi manti ki uska lund is size ki ho sakti hai. Arun ka isse kafi chhota hai" Rachna ne apni sookhe honthon par apni jeebh feri.
" tune dekha nahi Payjame me jab khada hota hai uska to kaise tamboo ka akar le leta hai."
Rachna ne kuch kaha nahi sirf apne sir ko hilaya.
"haan haan tujhe pata kaise nahi chalega. Aajkal to tujhe dekhte hi uska lund bahar ane ko chhatpatane lagta hai." Main usko chhedne lagi.
" Tub hi to Arun ke lund ko tadpa deti hai." Rachna ne mujhe bhi lapetne ki koshish ki.
"Dekhegi?... bol dekhegi Raj sharma ke lund ko?" Maine usse pooch. To wo chup rah kar apni sahmati jatai.
"Theek hai main koi jugaad lagati hoon."
Us din jaise hi Raj sharma peshaab karne ke liye raat ko bathroom me ghusa maine Rachna ko bathroom me jakar towel lekar ane ko kaha. Rachna ko pata nahi tha ki andar Raj sharma hai. Aur jaisi mujhe ummid thi. Raj sharma ne darwaja andar se lock nahi kiya tha. Rachna bina kuch soche samjhe bathroom ke darwaje ko khol kar andar chali gayee. Main pahle hi wahan se hat gayee thi. Raj sharma comod ke samne khada hua peshaab kar raha tha. Rachna ko samne dekh kar hadbadi me wo apne lund ko andar karna hi bhool gaya. Rachna ki ankhen uske lund par hi lagi hui thi. Uska lund Rachna ko dekh kar khada hone laga. Kuch der tak isi tarah khade rahne ke baad rachna "uiiiiii maaaa" karti hui bathroom se bahar bhaag ayee. Uska poora badan paseene paseene ho raha tha. Maine kured kured kar jab usse poochha to usne mana ki waqai use Raj sharma ka
lund pasand a gaya. Ab mujhe ummid ho gayee ki main apne maksad me jaroor kamyaab ho kar rahoongi.
Raat ko khana khan eke baad main bartano ko saaf karke kitchen saaf kar rahi thi. Rachna mere kaam me hath bata rahi thi. Usne mere jor dene par raat ko sari ki jagah samne se khulne wala gown pahan rakha tha. Neeche maine use petticoat ya bra pahanne nahi diya. Isse wo apne kadam dheere dheere utha kar chal rahi thi kyonki pairon ko hilate hi nagn pair bahar nikal parte. Main aaj apne kaam se santusht thi. Rachna chaah kar bhi apni sundar tangent Raj sharma se chhipa nahi pa rahi thi. Is par maine dono ko kuch nikatta dene ke liye kaha,
"Rachna tu rahne de. Ye doodh garam kar rakha hai. Ise Raj sharma ko pila kar ja bachche ko samhal nahi to abhi uth kar rone lagega. Uske doodh ka time bhi ho gaya hai. Ye mard hamesha doodh ke shaukeen hote hain chahe bachcha ho ya boodha."
Rachna kuch na bol kar Raj sharma ke liye doodh ka glass lekar humare beDoctoroom me chali gayee. main bina awaj ke beDoctoroom ke paas pahunchi dono ke beech hone wali baton ko sunne ke liye. Raj sharma dheere se kah raha tha, "Rachna aaj tum gown me bahut khoobsoorat lag rahi ho. Ao baitho yahan kuch der."
" nahi mujhe jane do. Bachche ke doodh peene ka time ho gaya hai." Rachna ne dheere se kaha.
" kitna kismet wala hai." Raj sharma ne dheere se uske saath musti karte huye kaha.
" Dhat aap bahut gande ho." Fir kuch der tak chuppi rahi sirf beech beech me chudiyon ki ya kapdon ke sarakne ki awaj a rahi thi.
" mmm chodo mujhe pleeeeese. Raadha ati hi hogi. Mujhe is tarah tumhari bahon me dekh kar kya sochegi. Tum mard to kuch na kuch bahana bana kar bach jaoge. Main hi badnam ho jaungi." Rachna ke gidgidane ki awaj aye.
"Itni jaldi bhi kya hai. Raadha kaam poora karke ayegi kuch der to lagega."
" please…please mera hath choodo dekho Raj sharma main fir kabhi a jaungi. Abhi nahi." Kahte huye uske kamre se bhag kar nikalne ki awaj aye. Main jhat se kitchen me chali gayee. Rachna akar meri bagal me khadi hui. Uski saanse jor jor se chal rahi thi.
"kya hua kyon bhaag rahi thi?" maine poochha to usko mere astitva ki yaad aye.
"nahi nahi bus kuch nahi….bachchaa uth gaya hai use doodh pilana hai main chalti hoon." Kah kar wo bina mere jawab ka intezar kiye wahan se nikal gayee.
agli sham hum teeno khana khane ke baad ek hi sofe par baith kar film dekh rahe the. Aaj mere kahne ke bawjood Rachna ne sari pahan rakhi thi. Haan andar bra jaroor nahi tha. Kamre ki light off thi sirf TV ki roshni kamre me kuch ujala kar rahi thi. Main Raj sharma ki ek or baithi thi aur Rachna doosri or. Film kafi romantic thi usme love sceans kafi the jise dekhte dekhte main garm hone lagi. Main Sarak kar Raj sharma se sat gayee. Raj sharma ne apna ek hath mere kandhe par rakh diya. Main apna hath Raj sharma ki jangh par rakh kar use paijame ke upar se sahlane lagi. Bagal me Rachna baithi thi uski maine koi parwah nahi ki. Dheere dheere mera hath uske lund ko paijame ke upar se sahlane laga. Uska lund khada ho gaya tha. Main uske lund ko apni mutthi me bhar kar sahla rahi thi. Raj sharma ne apna chehra meri or karke mere honthon ko chooma. Achanak meri najar Rachna par padi to maine paya ki wo bhi Raj sharma se sati hui hai aur Raj sharma ka doosra hath Rachna ke kandhe par hai. Wo apni ungliyon se Rachna ka gaal gala sahla raha tha. Rachna ka sir Raj sharma ke kandhe par tika hua tha. Uttejna se uski ankhen band thi. Kuch der baad Raj sharma ki ungliyan neeche sarakti hui uske blouse ke andar ghus gayee. uske hath ab Rachna ke urojon ko sahla rahe the. Rachna apne nichle honth ko danton me daba kar siskariyan nikalne se rok rahi thi. Magar achanak na chahte huye bhi munh se siskari nikal hi gayee. siskari ke sath hi uski ankhen khuli aur mujhse ankhen milte hi wo hadbada kar Raj sharma se alag ho gayee.
"main main chalti hoon mujhe neend a rahi hai." Usne jhat apne kapdon ko theek karte huye kaha aur bhagti hui apne kamre me chali gayee.
agli sham ko hum teeno baithe tash khel rahe the. Bachcha beDoctoroom me so raha tha. Achanak uske rone ki awaj aye.
" main abhi ati hoon. Bachcha uth gaya hai uske doodh peene ka time ho raha hai." Kah kar rachna apne haath ke patte table par rakh kar uthne ko hui to maine usko rok diya.
"tu baithi rah Raj sharma le ayega bachche ko. Itna maja a raha hai aur tu bhagna chahti hai." Maine uska hath pakad kar rok liya.
"lekin……."
"are baith na tera chance hai apna patta daal Raj sharma please bachche ko le ao na beDoctoroom se."
Raj sharma uth kar bed room me chala gaya aur bachcha lakar Racna ki god me de diya. Bachche ko dete waqt usne apni hatheli ke pichhle hisse se Rachna ke stano ko sahla diya. Uski is harkat se Rachna ke gaal laal ho gaye. Maine aisi acting ki mano mujhe kuch pata hi nahi chala ho.
Rachna bachche ko anchal me chhipa kar doodh pilane lagi. Maine dekha Raj sharma Rachna ke samne baitha kankhiyon se Racna ko nihar raha tha. Hum wapas khelne lage. Raj sharma ne galat card fenka. Main to isi mauke ka intezaar kar rahi thi.
"Raj sharma ya to theek se khelo ya Rachna ki sari ke andar ghus jao." Maine gusse se kaha.
"nahi nahi….wo…woo" Raj sharma mere hamle se hadbada gaya.
"Rachna Raj sharma ko ek baar dikha hi de apne yovan. Iska dimaag to apni jagah par wapas aye. Ek kaam kart u apne kandhe se sari hata de aur dekhne de ise jee bhar ke. Dekh dekh kaise laar tapak rahi hai iski…." Main hansne lagi. Dono bhi ek doosre se najre milakar muskura diye. Rachna ne apne sari ke anchal ko hatane ki koi harkat nahi ki to main uthi aur uske paas jakar apne hathon se uski sari ka anchal uske kandhe se hata diya. Usak ek satan bachche ke munh me tha aur doosra blouse me. Raj sharma ki ankhe is Doctorashya ko dekh kar fati rah gayee. rachna ke blouse ke neeche ke do buttons lage huye the. Blouse ke bareek kapde ke peechhe se doosre stan ka abhas saaf dikh raha tha. Rachna ne apna sir sharm se neeche jhuka liya. Uske gaal gulabi hone lage.
"kyon ab to dil ko sukoon milgaya. Meri saheli ke boobs ko dekh kar ab man machal raha hoga unhe chhoone ke liye. Lekin khabardaar agar apni jagah se bhi hile to." Maine kaha. Wo kuch uchak kar Rachna ke nipple ko dekhne ki koshish kar raha tha.
"achcha saaf nahi dikh pa raha hoga janab ko." Maine kaha aur apne haath badha kar uske blouse ke baki bache buttons khol diye. Akhiri button kholte samay Rachna ne apni hatheli ko meri hatheli ke upar rakh kar ek halka sa anurodh kiya, " nahi Radha.."
lekin maine akhiri button ko bhi khol diya. Main Raj sharma ki taraf dekh kar muskurai aur dheere se apne hathon se blouse ke palle ko Rachna ke doosre stank e upar se hata diya. Uska stan ek to doodh se bhara hone ki wajah se aur doosra kisi padaye mard ki najron kit apish pa kar ak dum kada ho raha tha. Nipples khade hokar adhe inch lambe ho gaye the. Rachna apne jabdon ko apas me bheench kar apne man me chal rahe uthalputhal ko bahar ane se rok rahi thi. Maine blouse ko kandhe se neeche utar diya aur Rachna ki halki madad se use uske badan se alag kar diya. Ab Rachna top less hokar Raj sharma ke samne baithi hui thi. Uska ek stan bachche ke munh me tha aur doosra kisi ke honthon ki chuan ke liye tadap raha tha. Raj sharma ne apna ek hath badha kar uske us uroj ko chhua to Rachna apne me simat gayee. Raj sharma apni ek ungli Rachna ke nipple ke upar fira raha tha. Rchna ke munh se "aaahhhhhh……mmmmm…." Jaisi siskariyan nikal rahi thi. Maine Raj sharma ke hath ke upar ek halki si chapat mar kar uske stank e upar se hata diya.
" maine kaha na chhoona mana hai. Tum dekhna chahte the Rachna ke badan ko maine dikha diya. Iske age koi harkat mat karma." Lekinaag to bhadak chuki thi ab to ise sirf dono ka sahwas hi shant kar sakta tha. Jab ek stan ka doodh khatm ho gaya to us nipple ko munh se nikal diya. Rachna ne use ghuma kar ab apne doosre stan ke nipple ko bachche ke munh me daal diya. Bachcha wapas use choosne me jut gaya. Pahle wale nipples ke upar ek boond doodh latak raha tha. Jo bachche ke munh me jane se bach gaya tha. Maine apni ungli me us doodh ke boond ko lekar Raj sharma ki taraf badhaya Raj sharma kisi barson ke bhookhe ki tarah lapak kar meri ungli ko apne munh me bhar kar use choosne laga.
Raj sharma age badh kar Rachna ke stano ko dobara chhuna chahta tha. Is baar maine mana nahi kya. Rachna ne hi uske hath ko apne maksad me kamyaab hone nahi diya.
Rachna ka bachcha kuch hi der me pet bharne par doosre nipple ko chod kar wapas so gaya. Abhi us stan me doodh bacha hua tha. Rachna ne blouse pahanne ke liye meri or hath badhaya. Magar main to itni jaldi use chodna nahi chahti thi. Maine uske nipple ko apni do ungliyon me bhar kar halke se dabaya to doodh ki ek tej dhaar usse nikal kar samne baithe Raj sharma ke pairon ke paas giri.
"piyoge?.... .." maine Raj sharma ki or dekhte huye poochha, " abhi kuch baki hai. Khatam karoge ise."
Andha kya chahe do ankhe jaisi hi baat thi. Raj sharma ne apne sir ko jor se hilaya jisse mujhe samajhne me kisi tarah ki galti na ho jaye. Rachna ne ek baar najren utha kar Raj sharma ko dekha aur muskura kar apni sahmati bhi jata di. Raj sharma jhapat kar utha aur Rachna ke stan ko thamne ke liye age badha.
"nahi aise nahi. Is kaam ko poora maja lekar karo kahin ye bhagi to ja nahi rahi hai. Chalo beDoctoroom me" maine kaha. Raj sharma to khada ho hi chuka tha. Maine Rachna ke hath se bachcha lekar Raj sharma ko thamaya aur Rachna ko kheench kar khada kiya. Abhi bhi kuch jhijhak bachi thi usme. Use khadi karke maine uski sari ko bhi badan se hata diya. Ab wo sirf ek petticoat pahne huye thi.
KRAMASHASH....................
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