कामुक हसीनाएं पार्ट--1
हेलो दोस्तो, मेरी ये कहानी एक कहानी नहीं, एक वास्तविक घटना है, एक आत्म
कथा है, एक उपन्यास के रूप में पेश कर रही हूँ. इस कहानी में एक पात्र ने
मुझे ये सचाई बताई है जिसको मैने लिखने की कोशिश की है. उम्मीद है आप
पसंद करेंगे. मुझे अपने विचार ज़रूर लिखना.
मुझे अपनी ज़िंदगी की पहली याद है जब मैं पढ़ता भी था और काम भी करता था.
मेरा नाम गणेश है और मैं जनम से ही अनाथ हूँ. मेरी उमर तब 15 साल की थी
जब से मैं सरकारी स्कूल में पढ़ता था और रात को एक रेस्टोरेंट में सफाई
करता था. मेरी वाकफियत शहर के बदमाश लोगों से थी और मैं एक नंबर का हरामी
था. रेस्टोरेंट का मालिक रोशन नाम का एक बदमाश था और मुझे अक्सर उसके घर
काम करने जाना पड़ता था.
मेरा कद 6 फीट का हो चुका था और शरीर भी ताकतवर था. एक दिन मैं मालिक के
घर खाना देने गया तो ऐसा लगा कि घर में कोई नहीं है. मैं अभी पलटने ही
लगा था कि मालकिन के कमरे से आवाज़ सुनाई पढ़ी तो मैं चौंक पढ़ा,"
उफफफफफ्फ़ साले हरामी आराम से चोद….मैं कोई रंडी हूँ क्या? रोशन के सामने
तो मुझे भाबीजी कहता है और अब देखो कैसे चोद रहे हो अपनी भाबी को?
मादरचोद कितना बड़ा है तेरा लंड? तेरी बीवी खूब मज़े लेती होगी…मुझे तो
थका दिया तुमने राज, काश मेरे पति का भी लंड तेरे जैसा विशाल होता.
बहनचोड़ फाड़ कर रख डाली है अपनी भाबी की चूत…..अब जल्दी से चोद डाल
मुझे, गणेश खाना ले कर आता ही होगा….मैं क्या करूँ मूह से अधिक भूखी तो
मेरी चूत है….चोद मुझे राज….ज़ोर से पेल….मैं झड़ी" मेरी ना चाहते हुए भी
नज़र दरवाज़े के छेद से अंदर चली गयी. मालकिन का गोरा जिस्म पसीने से
नाहया हुआ था. उसका दूधिया बदन मालिक के दोस्त के सामने कुतिया की तरह
झुका हुआ था. कितनी प्यारी लग रही थी मालकिन! पीछे से मालिक का दोस्त
उस्स्को छोड़ रहा था और बगलों से हाथ डाल कर मालिकन की गोरी चुचि को
बे-रहमी से मसल रहा था.
मैं चुप चाप बाहर हॉल में बैठ कर वेट करने लगा और थोड़ी देर में मैने बेल
बजा दी. मालकिन एक गाउन पहन कर आई और मैने उस्स्को खाना पकड़ा दिया. मेरी
नज़रें झुक गयी लेकिन मालकिन का जिस्म गाउन से बाहर निकलने को आतुर हो
रहा था. खाना लेते हुए मालकिन का हाथ मुझ से स्पर्श कर गया और मुझे एक
करेंट सा लगा. मालकिन की आँखें मेरे बदल को टटोल रही थी. वो मुझे
वासनात्मक नज़रों से देख रही थी जैसे बिल्ली दूध के कटोरे को देखती है.
मेरे सीने पर हाथ रख कर वो बोली," गणेश, तुम तो जवान हो गये हो और सुंदर
भी. कभी क़िस्सी चीज़ की ज़रूरत हो तो मुझ से माग लेना. मैं जानती हूँ की
जवानी में मर्द को बहुत मुश्किल आती है." मैं जानता था कि वो मुझ से
चुदवाने के लिए तड़प रही है, लेकिन मैं अपनी नौकरी को रिस्क में नहीं डाल
सकता था.
वापिस आते हुए मेरे बदन में एक अजीब हुलचूल हो रही थी और मेरा लंड ना चाह
कर भी अकड़ रहा था. मालकिन का नंगा जिस्म बार बार मेरी नज़र के सामने आ
जाता. उस रात मैने मालकिन की याद में मूठ मारी.
स्कूल में एक लड़का और एक लड़की नये दाखिल हुए. सुनील और नामिता दोनो भाई
बेहन थे. वो हमारी एमएलए प्रभा देवी के बच्चे थे. प्रभा देवी को सब जानते
थे. वो प्रेम और ममता की तस्वीर मानी जाती थी. प्रभा देवी कोई 45 साल की
थी. हमेशा सफेद सारी में रहती किओं की उसस्का पति मर चुका था. सभी
उस्स्को मा कह कर बुलाते थे. सुनील, मेरी क्लास में था. वो बिल्कुल
लड़कीो जैसा दिखता था, गोरा चिटा, और कोमल. सभी लड़के उस्स्को प्यारा
लोंदा कहते और प्यार से या ज़ोर से उसस्की गांद को चिकोटी काटने की कोशिस
करते. सुनील की छाती भी औरतों जैसी सॉफ्ट थी. वो लड़का कम और लड़की अधिक
लगता था. उसस्की बहन नामिता मुझ से दो क्लास आगे थी. लंबी, सुंदर और
सेक्सी. उसस्की छाती का उठान देखते ही बनता. पॅंट में उसस्के चूतड़ बहुत
उभरे हुए दिखते. काले कटे हुए बाल और तेज़ आँखें देख कर मैं पहली नज़र
में नामिता से प्यार कर बैठा. उस रात से मैं नामिता को नंगी कल्पना करके
मूठ मारने लगा. कल्पना में मैं अपने आप को राज और नामिता को मालकिन के
रूप में देखने लगा.
कुच्छ दिन बाद रघु(स्कूल का एक बदमाश लड़का) ने सुनील को ग्राउंड में
दबोच लिया और उसस्की पॅंट उतारने लगा. बेचारा सुनील रोने लगा." चल साले
लोंडे, मैं तुझे चोद कर अपना पर्सनल लोंदा बना कर रखूँगा. बहनचोड़,
वेर्ना सारा स्कूल तुझे चोदने को तैयार बैठा है. अगर मेरे साथ दे गा तो
तेरी बेहन को भी प्रोटेक्षन दूँगा. साली माल तो बहुत बढ़िया है तेरी
बेहन. अगर मेरे बिस्तर में आ जाए तो तेरी चाँदी लगवा दूँगा, मेरे साले"
मैं सब कुच्छ देख कर वहाँ चला गया. सुनील की पॅंट उत्तर चुकी थी और
उसस्के गोरे चूतड़ एक काले अंडरवेर में झाँक रही थी. साली उसस्की गांद भी
बहुत सेक्सी दिख रही थी. लेकिन उसस्का रोना देख कर मैं अपने आप को रोक ना
सका और रघु से बोला," रघु, सुनील को छ्चोड़ दे, वेर्ना अच्छा ना होगा."
रघु भी भड़क उठा और बोला" बहनचोड़, ये लोंदा मेरा माल है और उसस्की बेहन
भी मेरा माल है. चल फुट यहाँ से वेर्ना तेरी भी गांद मार लूँगा."
मेरा गुस्सा भड़क उठा. रघु मदेर्चोद मेरी नामिता के बारे ग़लत बोल रहा
था. मैं दिल से नामिता को प्यार करता था. मैने रखू को गले से पकड़ कर खूब
मारा. मैने चाकू निकाल लिया जब उसस्के दोस्त वहाँ पहुँच गये. चाकू मैने
रघु की गांद पर मारा जहाँ से खून निकलने लगा. सभी लड़के भाग गये. सुनील
मुझे थॅंक्स कहने लगा. तभी नामिता वहाँ आई और अपने भाई से सारी बात
पुच्छने लगी. सुनील उस्स्को बताने लगा. तभी नामिता की नज़र मेरे चाकू पर
गयी और वो मुझे नफ़रत से देखती हुई बोली," चलो भैया, यहाँ तो लोग चाकू
लिए घूमते हैं." मेरा दिल टूट गया.
अगले दिन सुनील मुझ से हंस कर बात करने लगा और मुझे अपने घर भी बुलाया.
मैं शाम को उसस्के घर गया तो प्रभा देवी ने मुझे शाबाशी दी की मैं
बहादुरी से उसस्के बेटे की रक्षा करता हूँ. प्रभा देवी ने मुझे अपने सीने
से लगा लिया और उसस्का गुदाज़ सीना मेरी कठोरे छाती से चिपक गया. आख़िर
औरत का नरम सीना मर्द के दिल में आग लगा ही देता है. बेशक प्रभा देवी का
रूप एक मा की याद दिलाता है फिर भी उसस्की नरम चुचि अपने सीने में महसूस
कर के मेरे दिल में आग लग गयी." गणेश बेटा, तुम रहते कहाँ हो?" मैने जवाब
दिया," माजी, मैं एक रेस्टोरेंट में काम करता हूँ और वहीं रहता हूँ."
"खैर अब तुझे काम करने की ज़रूरत नहीं है. तुम हमारे घर में रह सकते हो.
मेरे ऑफीस वाले हिस्से में एक कमरा खाली है जहाँ तुम रह सकते हो और पूरी
आज़ादी भी मिल सकती है, ठीक है, बेटा? तुझे सॅलरी भी मिलेगी."
अंधे को क्या चाहिए? दो आँखें? फ्री में कमरा, रोटी, और घर जैसा माहौल.
उस दिन से मैं उनके घर में रहने लगा. रहने क्या लगा, मेरी तो लॉटरी निकल
पड़ी. स्कूल में सुनील की तरफ कोई आँख ना उठाता और नामिता भी मुझे अब
नफ़रत नहीं करती थी. लेकिन अभी प्यार भी नहीं करती थी. खैर सब कुच्छ एक
दम नहीं हो जाता. देखा जाए गा.
घर में सभी मुझे बहुत प्यार करने लगे और प्रभा देवी को अपने बच्चो की
सेफ्टी का कोई डर ना था. सब से पहले मुझे खाना पकाने वालों से मिलवाया
गया. रसोई में दो लोग काम करते थे. गंगू, एक बुजुर्ग आदमी और नाज़, एक 25
साल की औरत जो कि घर में ही रहती थी. नाज़ का कमरा मेरे कमरे से साथ ही
था. बस बीच में एक बाथरूम था जो हम दोनो का सांझा था. नाज़ का रंग सांवला
था, नैन नक्श तीखे, जिस्म भरा हुआ, आँखें चमकीली. उसस्की चुचि का साइज़
ज़रूर 36 ड्ड रहा होगा और चूतड़ काफ़ी गद्दे दार. उस्स्को देख कर मुझे
अपनी मालकिन की याद आ गयी. नाज़ जब चलती तो कूल्हे मटकाती और मेरा लंड
खड़ा कर देती. नाज़ देख सकती थी कि उसस्का जवान जिस्म मुझ पर क्या असर कर
रहा है. जब भी मौका मिलता तो वो मेरे सामने झुक कर मुझे अपनी मस्त चुचि
की झलक दिखा ही देती. एक दिन मैने हौसला कर के उसस्की चुचि को टच कर लिया
जब वो मुझे ग्लास पकड़ा रही थी, वो मुझे बोली," बच्चू, अभी छ्होटे हो,
ऐसी हरकत तब करना जब मर्द बन जाओ. बेटे, मुझे बच्चो में कोई दिलचस्पी
नहीं है. मर्दों का काम बच्चा नहीं कर सकता." उसस्की बात सुन कर मैं जल
भुन गया.
उस रात मैं नाज़ को अपनी पहली औरत बनाने की स्कीम बनाने लगा. अब मैं जवान
था, लंड बैचैन था. मुझे भी चोदने के लिए औरत चाहिए थी. नाज़ बुरी नहीं थी
बस मुझ से उमर में बड़ी थी. दूसरा कारण नाज़ को फसाने का ये था कि नामिता
के दिल में ईर्षा पैदा हो जाए गी और वो मेरी तरफ आकर्षित हो जाए गी. यानी
एक चूत से दूसरी का शिकार.
रात को मैं बिस्तर में लेटा हुआ था जब नाज़ की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी.
वो गा रही थी. नहाते हुए गाना आम बात है. लेकिन मेरी कल्पना अब नाज़ का
नहाता हुआ नंगा जिस्म देखने लगी. मैने अपने कान दीवार से लगा दिए. दीवार
में मुझे अचानक एक छेद दिखाई पड़ा. मैने छेद में झाँका. छेद छ्होटा सा था
लेकिन नाज़ की नंगी जवानी की झलक दिखाई पड़ ही गयी. उसस्का भीगा बदन पानी
से चमक रहा था और वो मल मल कर नहा रही थी. मेरा लंड तन गया और मैने मूठ
मारनी शुरू कर दी. काश नाज़ मेरे सामने आ कर चुदवा लेती. तभी उससने अपनी
चूत को रगड़ना शुरू कर दिया. उसस्की मखमल जैसी चूत फाड़ फाडा रही थी.
उसस्की उगली चूत में घुस गयी और वो भी उंगली से अपनी चूत चोदने लगी. नाज़
बाथरूम में अपनी उंगली से चूत चोद रही थी और मैं कमरे में मूठ मार रहा
था." ओह….अहह….." मेरे मूह से निकल गयी एक हल्की सी चीख जब मेरे लंड ने
रस छ्चोड़ दिया. नाज़ ने शायद मेरी चीख सुन ली. इसी लिए वो घबरा उठी और
उससने अपने हाथ को रोक दिया और टवल लपेट कर बाहर चली गयी.
मैं घबरा गया और डर रहा था कि नाज़ को पता चल गया है की मैं उस्स्को
नहाते हुए देख रहा था और वो मेरी शिकायत प्रभा देवी को लगाएगी. मेरी घर
से च्छुटी हो जाएगी. खैर दूसरे दिन नाज़ मुझ से आँख नहीं मिला रही थी और
ना ही मुझ से बात कर रही थी. एक अजीब बात ये थी कि नाज़ और नामिता च्छूप
च्छूप कर धीमी आवाज़ में आपस में बातें कर रही थी. उस दिन सारा दिन मुझे
स्कूल में उदासी लगी रही, लेकिन रह रह कर नाज़ का नंगा जिस्म मेरी नज़रों
के सामने आ जाता.
स्कूल से वापिस आते हुए नामिता मुझे अजीब नज़रों से देख रही थी. दोपहर को
खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में लेटा हुया था जब क़िस्सी ने दरवाज़ा
खाट खाटाया. बाहर नाज़ खड़ी थी. वो लाल रंग की सलवार कमीज़ पहने हुए थी
और बहुत सीरीयस लग रही थी." गणेश, मेरे कमरे में आयो, ज़रूरी बात करनी
है." मेरी गांद फटी जा रही थी. उसस्के कमरे में नामिता पहले से ही बैठी
थी. "तो जनाब, नाज़ को छुप कर नहाते हुए देख रहे थे? मैं अगर मा को बता
दूँ तो अभी च्छुटी हो जाए तेरी." नामिता ने मुझे धमकाया."नही….मैने कुच्छ
नहीं ……मेरा कोई कसूर नही….सच मुझे कुच्छ नहीं पता…." मैं कुच्छ बोल ना
पा रहा था.
नामिता ने मुझे गुस्से से देखा," नाज़ ने तेरी आवाज़ सुनी थी. तुम क्या
कर रहे थे? नाज़ तो अपनी चूत में उंगली कर रही थी, बेह्न्चोद तुम क्या कर
रहे थे? इस तरह एक चुदासी लड़की को देखना अच्छा है? मैं और नाज़ कब से एक
लंड की तलाश में थी और तू अपना लंड दिखाने की बजाए इसकी चूत देख रहे थे
कामीने. तेरी सज़ा ये है कि या तो तू घर से जाएगा और या हमारे सामने अपने
लंड का पारदर्शन करेगा. बोल क्या इरादा है?" कहते हुए नामिता हंस पड़ी और
नाज़ भी मुस्कुराने लगी. मैं समझ गया कि दोनो लड़कियाँ मुझ से चुदवाना
चाहती हैं. मेरी लॉटरी निकल पड़ी थी.
मैं अपनी पॅंट खोलने लगा. तुम जैसी मस्त लड़कियो से प्यार करने के लिए
मैं जनम से तड़प रहा हूँ और तुम मुझ से चुदवाना चाहती हो. तो देखो
नामिता, कैसा लगा गणेश का लोड्ा? नाज़ तुम भी देखो रानी, आपकी सेवा में
हाज़िर है मेरा कुँवारा लंड. सच में तुम मेरे लिए सुंदरता की देवी हो!"
नामिता हंस पड़ी," बहन्चोद, पहली बात ध्यान से सुन. सब के सामने तुम
हुमको दीदी कह कर पुकारो गे और हम तुझे भैया. इस तरह क़िस्सी को शक नहीं
होगा और हमारा खेल सेफ्ली चलता रहे गा. चुदाई के खेल को रिश्तों के पर्दे
में ढक लिया जाएगा और हम तीनो मज़े करते रहेंगे, ठीक है?"
नाज़ अपने कपड़े उतारने लगी और नामिता भी नंगी होने लगी. मुझ जैसे लड़के
की किस्मत खुल रही थी. मेरी नज़र नामिता के नंगे शरीर से हट नहीं रही थी.
जब उससने अपनी ब्लॅक कलर की पॅंटी उतारी तो मेरा दिल धक धक करने लगा.
उसस्की चुचि एक दम कड़ी हो चुकी थी. नामिता की चूत पर छ्होटी छ्होटी झांट
थी. शायद कुच्छ दिन पहले शेव की थी उससने अपनी चूत. उसस्की आँख में लाल
डोरे तेर रहे थे. मैने काँपते हाथ से उसस्की चुचि को स्पर्श किया तो
उसस्की आह निकल गयी. मैं भी पूरा नंगा हो चुका था, नाज़ मेरी पीठ से
चिपकने लगी. नाज़ की भरपूर चुचि मेरी पीठ में गढ़ रही थी और उसस्के होंठ
मेरी गर्दन को चूमने लगे. मैने नामिता को अपने आलिंगन में ले लिया एर
उसस्की चूत पर हाथ फेरने लगा. उसस्की चूत एक आग की तरह दहक रही थी. मैने
अपने तपते होंठ उसस्की होंठों पर रख कर किस करने लगा. कमरे में वासना की
आँधी उमड़ चुकी थी. नाज़ की बिन बालों वाली चूत मेरी चूतड़ से टकरा रही
थी और उससने झुक कर मेरे लंड को पकड़ लिया और आगे पीच्छे करने लगी.
"दिल तो चाहता है कि मैं पहले चुदाई करवाउ पर डर लगता है. नाज़, तुम तो
तज़ुर्बेकार हो, तुम ही पहली बार इस लंड का मज़ा ले लो और मुझे चुदाई की
तड़प में जलने दो कुच्छ देर और. फिर तुम मुझे इस मूसल लंड से निपटने में
मदद करना. गणेश भैया, तुम पहले अपनी बड़ी दीदी की चूत को ठंडा कर दो और
बाद में मुझ को मज़े से चोदना. किओं नाज़ तैयार हो अपने भैया के लंड से
अपनी चूत चुदवाने के लिए?" नाज़ बिना बोले मेरे लंड पर अपना मूह झुकाती
चली गयी और उससने मेरे लंड को मुख में भर लिया. अपने एक हाथ से उससने
मेरे अंडकोष उप्पेर उठा लिए और मेरे लंड को चूसने लगी. मुझे लगा जैसे
मेरा लंड झाड़ जाए गा जल्दी ही. लेकिन मैने अपना ध्यान अपने सामने खड़ी
वासना से भरी सेक्सी लड़कियो से दूर हटाया क्योंकि मैं अभी झड़ना नहीं
चाहता था.
नाज़ मेरा लंड चूस रही थी और फिर मैने नामिता की चूत को सहलाना शुरू कर
दिया. मैने एक उंगली उसस्की चूत में डाल दी और आगे पीच्छे करने लगा. वो
गरम हो कर अपनी चूत मेरी उंगली की तरफ बढ़ाने लगी, जैसे वो सारी उंगली ले
लेना चाहती हो," गणेश बेह्न्चोद, साले और डाल मेरी चूत में. अपनी बेहन को
उंगली से चोद बेह्न्चोद, ज़ोर से पेल. मेरी चूत में आग लगी हुई है." मैं
भी बहुत गरमा चुका था," दीदी, अभी तो चोदा भी नहीं है तुमको, तुमने तो
मुझे पहले से ही बेहन्चोद कहना शुरू कर दिया. अगर मुझे बेह्न्चोद बनाने
की इतनी जल्दी है तो पहले तुझे चोद लेता हूँ. जब छ्होटी बेहन से बिना
चुदाई किए नहीं रहा जाता तो पहले उसस्की चूत ठंडी कर देता हूँ. नाज़ दीदी
तो पहले काफ़ी लंड का स्वाद ले चुकी होगी. पहले तुझे ही किओं ना चोद लूँ,
नामिता दीदी?"
नामिता इतनी गरम हो चुकी थी कि उससने नाज़ को मेरे लंड से अलग किया और
खुद चूसने लगी. नाज़ मुझ से लिपटने लगी और मैने अपने होंठ उसस्की चुचि पर
रख दिए और उसस्का दूध चूसने लगा," ओह भैया किओं तडपा रहे हो अपनी बेहन
को, पी लो मेरा दूध. मेरे निपल चूस लो भैया, मेरी चूत से रस की बरसात हो
रही है. अपनी बहनो को चोद डालो भैया, हम को चोदो मेरे भाई. एस्सा करो,
तुम पहले नामिता की सील तोड़ लो. मैं तो पहले ही चुद चुकी हूँ, तुम
नामिता को औरत बना डालो, भैया" मैने नामिता को अपने लंड से अलग किया और
उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया. कामुकता से भरी नामिता मुझे गौर से देख रही
थी और उसस्की नज़र मेरे लंड से नहीं हट रही थी. नाज़ ने नामिता को होंठों
पर किस किया और फिर उस्स्को पीठ के बल लिटा कर नामिता की चूत चाटने लगी.
मैं नाज़ के चूतड़ सहलाने लगा," अहह…..ओह….नाआआज़….चोद दे मेरी
चूत…….भैया अब नहीं रहा जाता…….गणेश….पेल दो अब तो…..मेरी चूत जल रही
है…..और मत जलायो मुझे…..हाआँ नाज़….अब जीभ से नहीं चैन मिलता, मेरे अंदर
लंड डलवायो मेरी बहना…"
नाज़ मुस्कुराते हुए उठी और बोली," गणेश भाई, तेरी बेहन अब भत्ती की तरह
दहक रही है. अपना लंड एक हथोदे की तरह मारो इसकी जलती हुई चूत में. निकाल
दो इस छिनाल की गर्मी. इसकी चूत को अपने लंड से भर दो. मैं इस्को चुदते
देखना चाहती हूँ." मैने नामिता की टाँगों को फैला दिया और उसकी चूत के
होंठ अपने आप खुल गये. चूत के उप्पेर उसका छ्होला फुदक रहा था. मैने उसकी
चूत को थपकी मारी तो वो कराह उठी," जल्दी करो भैया, प्लीज़….और मत तडपयो,
चोद डालो अब तो मेरे भाई"
मैने लंड का सूपड़ा चूत के मूह पर टीकाया. एस्सा लगा कि सूपड़ा क़िस्सी
आग के शोले पर रख दिया हो. धक्का मारा तो लंड आसानी से चूत में घुस गया.
शायद नामिता की चूत का रस इतना बह रहा था कि उसस्की चूत कुँवारी होने के
बावजूद आसानी से लंड निगल गयी. और या फिर उसने पहले ही बैंगन या खीरा
इस्तेमाल कर की चूत को खोल लिया था. कट की ग्रिफ्त लंड पर कितना मज़ा
देती है मैं नहीं जानता था. लेकिन अब मुझे महसूस हुआ की चुदाई का मज़ा
क्या होता है. मेरे चूतड़ अपने आप आगे पीच्छे हो कर चुदाई करने लगे. असल
में मैं जितनी तेज़ी से धक्के मारता, मुझे उतना ही मज़ा आता. उधर नामिता
भी अपनी गांद उछाल्ने लगी मेरे धक्कों का जवाब चूतड़ उच्छल कर देने लगी.
मैने नाज़ को कहा कि वो नामिता की चुचि को चूसना शुरू कर दे. नाज़ बिना
बोले नामिता की चुचि पर झुक कर उसस्के निपल्स चूसने लगी. मेरे हाथों ने
नामिता को चूतड़ के नीचे से जाकड़ लिया और ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा,"
अर्र्र्रररगज्गघह……मैं मर गइईई….ज़ोर से भाई….चोद बेह्न्चोद….चोद
मुझे…..मैं गइईई…..गणेश…….ज़ोर सी" च्चपक च्चपक की आवाज़ से कमरा गूँज
रहा था जब मेरा लंड नामिता की चूत के अंदर बाहर होता." बहुत मज़ेदार हो
तुम बहना….मैने एस्सा मज़ा कभी नहीं लिया…अगर पता होता इतना मज़ा आता है
तो बेहन तो क्या मा को भी चोद देता को….ओह्ह्ह मेरी प्यारी बहना, बहुत
मज़ेदार हो तुम…तुम ने मुझे धान्या कर दिया दीदी"
तभी नामिता की चूत मेरे लंड पर और ज़ोर से कस गयी और उसस्का बदन एंथने
लगा. उसस्की साँस मुश्किल से चलने लगी. उसस्की जंघें मेरी कमर पर कस गयी.
इधर मेरा लंड भी छूटने को था. मेरा लंड राजधानी एक्सप्रेस के पिस्टन की
तरण चुदाई करने लगा," ओह…दीदी….बस…..तेरा भाई झाड़ रहा है…..मेरा लंड
झाड़ रहा है……क्या मैं पिचकारी चूत में डाल दूं या बाहर निकाल लूँ…भगवान
कसम नहीं रहा जाता दीदी" नामिता की चूत पानी छ्चोड़ चुकी थी और वो अपने
आप को संभाल कर बोली," बाहर निकाल लो लंड, को भैया, मुझे गर्भवती नहीं
होना है, बाहर निकालो जल्दी से."
मैने अपना लंड बाहर खींचा तो नाज़ ने झट से झपट लिया और अपने मूह से लगा
कर चूसने लगी और मेरा अंडकोष से खेलने लगी. मेरे हाथ नामिता दीदी की भीगी
चूत को सहलाने लगे. अचानक मेरा लंड पिचकारी छ्चोड़ने लगा. मेरा लंड रस
नाज़ के गालों पर, चुचि पर और कंधों पर जा गिरा. कुच्छ तो उससने पी लिया
लेकिन रस की धारा इतनी तेज़ थी कि नाज़ के नंगे जिस्म पर फिर भी गिर
पड़ा. नाज़ एक रंडी की तरह मेरा रस चाटने लगी.
मेरा लंड अब सिकुड चुका था. अब मुझे चुदाई में कोई दिलचस्पी ना रही थी.
मैं नामिता की बगल में लेट गया. नाज़ की बारी अभी बाकी थी. लेकिन मेरे
में अब दम नहीं रहा. मेरे पैरों के पास नाज़ मुझे चूमने लगी. उसस्के होंठ
मेरे पैरों के अंगूठे को लंड की तरह चूसने लगे. फिर उससने मेरे पैरों को
किस किया, फिर टख़नो को. धीरे से उसस्की ज़ुबान उप्पेर उठने लगी. उसकी
ज़ुबान मुझ में फिर से वासना भरने लगी और मेरा लंड फिर से सिर उठाने लगा.
मैने नामिता की चुचि को मसलना शुरू कर दिया. वो हंस कर बोली," अपनी बेहन
को चोद कर अभी दिल नहीं भरा, भैया? फिर से लंड खड़ा हो रहा है. मेरी चूत
की चटनी बना दी है तुमने." कहते हुए नामिता ने मेरे लंड को पकड़ लिया और
मुठियाने लगी. नीचे से नाज़ की जीभ और हाथ मुझे उतेज़ित कर रहे थे. मुझे
होश तब आया जब नाज़ ने मेरे अंडकोष को मूह में भर लिया,"गणेश भैया, अब
तुझे दूसरी बेहन को चोद कर शांत करना है, मेरे भाई. उस्स्को भी तो उसस्का
हिस्सा मिलना चाहिए." नामिता मेरे कान में बोली.
नाज़ ने मुझे पेट के बल लेट जाने को कहा तो मैं लेट गया. मुझे नहीं पता
था कि उसस्का इरादा क्या है. मुझे अपने दोनो चुतताड पर दोनो लड़कियो के
होंठ महसूस हुए. वो साली गश्ती लड़कियाँ मेरे चूतड़ चाटने लगी. क़िस्सी
का हाथ मेरे चूतड़ को फैला रहा था. तभी एक उंगली मेरी गांद में घुसाने की
कोशिश करने लगी. मैने गांद को टाइट कर लिया. तभी मेरी गांद पर एक ज़ोरदार
थप्पड़ लगा. मेरे होश ठिकाने आ गये दर्द के मारे." साले कुतिया की औलाद,
अपनी बहन को चोद रहा था तो मज़े ले रहा था, अब अपनी गांद में उंगली गयी
तो भड़क रहा है. नामिता ने तेरा 9 इंच का लंड ले लिया तब तो मज़े लेते
थे, अब एक उंगली से गांद फटने लगी? अपनी गांद को ढीला छ्चोड़ो अगर हमारे
साथ मज़े लेने हैं तो," नाज़ ने एक और ज़ोरदार थप्पड़ मेरी गांद पर मारते
हुए कहा. अजीब बात थी कि दूसरे थप्पड़ से मुझे दर्द तो हुआ लेकिन मज़ा भी
आया. मैं मूड कर बोला," क्या बात है? अपने भाई की गांद मारने का इरादा है
क्या? तुम्हारी खातिर तो मैं कुच्छ भी कर लूँगा, मेरी बहनो. लो चोद लो
अपने भाई को अगर यही इरादा है"
मैने अपनी गांद ढीली छ्चोड़ डी. तभी मुझे अपनी गांद में एक ज़ुबान घुसती
महसूस हुई और मुझे बहुत मज़ा आया. नामिता या नाज़ मेरी गांद को ज़ुबान से
चोद रही थी और दूसरी मेरे चूतड़ चाट रही थी. मेरा लंड काबू में नहीं था.
अगर और कुच्छ देर यही खेल चलता रहा तो मैं झाड़ जाता. लेकिन तभी मुझे
सीधा कर दिया गया. नाज़ ने अब अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. मुझे किस
कर के बोली," हरामी, अपनी गांद का स्वाद चख ले मेरे होंठों से. नामिता,
हमारे भाई की गांद बड़ी मसालेदार है. अगर टेस्ट करना है तो कर लो. फिर
इस्सको भी तो अपनी गांद का टेस्ट करवाना है हमने!"
मेरा लंड आसमान की तरह उठा हुआ था. नाज़ मेरे उप्पेर चढ़ती हुई मेरे लंड
पर अपनी चूत रगड़ने लगी. उसस्की चूत भी रस टपका रही थी," किओं भैया, चढ़ु
क्या तेरे लंड पर? करूँ सवारी अपने भैया के लंड की? तू भी क्या याद रखेगा
की क़िस्सी लड़की ने चोदा था तुझे. गणेश भाई, नीचे लेट कर बहन चोदने का
मज़ा लो मेरे भैया,' कहते ही उससने मेरे लंड पर अपनी चूत को गिरा दिया.
गुप की आवाज़ से मेरा लंड नाज़ की अनुभवी चूत में घुसता चला गया. मैने
नाज़ के चूतड़ कस कर पकड़ लिए और नीचे से धक्के मारने लगा. नाज़ की मोटी
चुचि मेरे होंठों के सामने झूल रही थी और मुझ से ना रहा गया तो मैने
उसस्की चुचि को मूह में ले कर चूसना शुरू कर दिया. नामिता नीचे जा कर
मेरे अंडकोष चूमने लगी. मेरी जंघें नामिता के चेहरे पर कस गयी.
वाह गणेश बेटा, एस्सा सुख तुझे नसीब हुआ है, मैं अपने आप से बोला. नाज़
मुझे उप्पेर से चोद रही थी. माखन जैसी चूत मेरे लंड की मालिश करते हुए
चोद रही थी." नाआआआज़ मेरी बहना, क्या चीज़ हो तुम…..क्या मज़ेदार चूत है
तेरी….साली गश्ती की तरह चुदति हो….ज़ोर से चोद अपने भाई को….ओह नामिता
चूसो मेरे अंडकोष…..हााअ……..एयाया…..चोदो" नाज़ ने स्पीड तेज़ कर दी.
मेरी मूह बोली बेहन चुदाई की कला में अनुभवी थी…नाज़ साली धक्के धीरे कर
देती जब मैं झड़ने के करीब होता. मैं उसस्के निपलेस चूस्ता रहा. हम दोनो
हाँफ रहे थे. मेरी नामिता बेहन ने अब मेरी गांद में ज़ुबान घुसा डाली और
मेरी गांद चोदने लगी.
" हाई भाई….चोद मुझे….चोद अपनी नाज़ को…अपनी बहना को….मेरी चूत पानी
छ्चोड़ रही है….तू मेरे अंदर पिचकारी मार लेना…..मैं गोली खाती
हूँ….पेलते रहो मुझे भाई….चोद डालो डाल दो रस मेरी प्यासी चूत
में….चोद……चोद….चोदो…चोद चोद मदेर्चोद मैं झडियीई" नीचे से नामिता ने
अपनी उंगली मेरी गांद में डाल कर चुदाई शुरू कर दी तो में भी झड़ने लगा.
मेरा रस नाज़ की चूत में गिरने लगा. वो उप्पेर से थाप पर थाप मार रही थी.
मुझे पता ही नहीं चला कि कब तक मेरा लंड झाड़ता रहा. शाम की 5 बजे तक हम
तीनो नाज़ के बिस्तर में नंगे हो सोते रहे
टू बी कंटिन्यूड................
Kamuk Upnayas I
Hello dosto, meri ye kahani ek kahani nahin, ek vasvik ghatna hai, ek
atam katha hai, ek upnayas ke roop mein pesh kar rahi hoon. Iss kahani
mein ek patar ne mujhe ye sachayi batayi hai jissko maine likhne ki
koshish ki hai. Umeed hai aap pasand karenge. Mujhe apne vichar zarur
likhna.
Mujhe apni zindagi ki pehli yaad hai jab main padhta bhi tha aur kaam
bhi karta tha. Mera naam Ganesh hai aur main janam se hi anath hoon.
Meri umar tab 15 saal ki thee jab se main sarkari school mein padhta
tha aur raat ko ek restaurat mein safai karta tha. Meri vakfiat shahar
ke badmash logon se thee aur main ek number ka harami tha. Restaurant
ka malik Roshan naam ka ek badmash tha aur mujhe aksar usske ghar kaam
karne jana padta tha.
Mera kad 6 feet ka ho chuka tha aur sharir bhi takatwar tha. Ek din
main malik ke ghar khana dene gaya to essa laga ki ghar mein koi nahin
hai. Main abhi palatne hi laga tha ki malkin ke kamre se awaz sunayi
padhi to main chaunk padha," Uffffff sale harami araam se chod….Main
koi randi hoon kia? Roshan ke samne to mujhe bhabiji kehta hai aur ab
dekho kaise chod rahe ho apni bhabi ko? Maderchod kitna bada hai tera
lund? Teri biwi khub maze leti hogi…mujhe to thaka diya tumne Shibhu
Raj, kash mere pati ka bhi lund tere jaisa vishal hota. Behncchod phad
kar rakh dali hai apni bhabi ki choot…..Ab jaldi se chod dal mujhe,
Ganesh khana le kar aata hi hoga….main kia karun muh se adhik bhookhi
to meri choot hai….chod mujhe Shibhu….zor se pel….main jhadeee" Meri
na chahte huye bhi nazar darwaze ke chhed se andar chali gayi. Malkin
ka gora jism pasine se nahaya hua tha. Usska dudhiya badan malik ke
dost ke samne kuttia ki tarah jhuka hua tha. Kitni pyari lag rahi thee
malkin! Peechhe se malik ka dost ussko chod raha tha aur bagalon se
haath dal kar malikn ki gori chuchi ko be-rehmi se masal raha tha.
Main chup chap bahar hall mein baith kar wait karne laga aur thodi der
mein maine bell baja dee. Malkin ek gown pehn kar aayi aur maine ussko
khana pakda diya. Meri nazaren jhuk gayi lekin malkin ka jism gown se
bahar nikalne ko atur ho raha tha. Khana lete huye malkin ka haath
mujh se sparsh kar gaya aur mujhe ek current sa laga. Malkin ki
aankhen mere badal ko tatol rahi thee. Vo mujhe vasnatamak nazaron se
dekh rahi thee jaise billi doodh ke katore ko dekhti hai. Mere seene
par haath rakh kar vo boli," Ganesh, tum to jawan ho gaye ho aur
sundar bhi. Kabhi kissi cheez ki zarurat ho to mujh se maag lena. Main
janti hoon ki jawani mein mard ko bahut mushkil aati hai." Main janta
tha ki vo mujh se chudwane ke liye tadap rahi hai, lekin main apni
naukri ko risk mein nahin dal sakta tha.
Vapis aate huye mere badan mein ek ajib hulchul ho rahi thee aur mera
lund na chah kar bhi akad raha tha. Malkin ka nanga jism bar bar meri
nazar ke samne aa jata. Uss raat maine malkin ki yaad mein muth mari.
School mein ek ladka aur ek ladki naye dakhil huye. Sunil aur Namita
dono bhai behan thay. Vo hamari MLA Prabha Devi ke bache thay. Prabha
Devi ko sab jante thay. Vo prem aur mamta ki tasveer maani jati thee.
Prabha Devi koi 45 saal ki thee. Hamesha safed sari mein reti kion ki
usska pati mar chuka tha. Sabhi ussko maa keh kar bulate thay. Sunil,
meri class mein tha. Vo bilkul ladkion jaisa dikhta tha, gora chitta,
aur komal. Sabhi ladke ussko pyara londa kehte aur pyar se ya zor se
usski gaand ko chikoti katne ki koshis karte. Sunil ki chhati bhi
auraton jaisi soft thee. Vo ladka kam aur laki adhik lagta tha. Usski
behn Namita mujh se do class aage thee. Lambi, sundar aur sexy. Usski
chhati ka uthan dekhte hi banta. Pant mein usske chutad bahut ubhre
huye dikhte. Kale kate huye bal aur tez aankhen dekh kar main pehli
nazar mein Namita se pyar kar baitha. Uss raat se main Namita ko nangi
kalpna karke muth marne laga. Kalpna mein main apne aap ko Shibhu aur
Namita ko malkin ke roop mein dekhne laga.
Kuchh din baad Raghu(school ka ek badmash ladka) ne Sunil ko ground
mein daboch liya aur usski pant uttarne laga. Bechara Sunil rone
laga." Chal sale londe, main tujhe chod kar apna personal londa bana
kar rakhunga. Behnchod, verna sara school tujhe chodne ko taiyar
baitha hai. Agar mere saath de ga to teri behan ko bhi protection
doonga. Sali maal to bahut badhiya hai teri behan. Agar mere bistar
mein aa jaye to teri chandi lagwa doonga, mere sale" Main sab kuchh
dekh kar vahan chala gaya. Sunil ki pant uttar chuki thee aur usske
gore chutad ek kale underwear mein jhank rahi thee. Sali usski gaand
bhi bahut sexy dikh rahi thee. Lekin usska rona dekh kar main apne aap
ko rok na saka aur Raghu se bola," Raghu, Sunil ko chhod de, verna
achha na hoga." Raghu bhi bhadak utha aur bola" Behnchod, ye londa
mera maal hai aur usski behan bhi mera maal hai. Chal phut yahan se
verna teri bhi gaand mar loonga."
Mera gussa bhadak utha. Raghu maderchod meri Namita ke bare galat bol
raha tha. Main dil se Namita ko pyar karta tha. Maine Rakhu ko gale se
pakad kar khub mara. Maine chaaku nikal liya jab usske dost vahan
pahunch gaye. Chaaku maine Raghu ki gaand par mara jahan se khoon
nikalne laga. Sabhi ladke bhaag gaye. Sunil mujhe thanks kehne laga.
Tabhi Namita vahan aayi aur apne bhai se sari baat puchhne lagi. Sunil
ussko batane laga. Tabhi Namita ki nazar mere chaaku par gayi aur vo
mujhe nafart se dekhti hui boli," Chalo bhaiya, yahan to log chaaku
liye ghumte hain." Mera dil toot gaya.
Agle din Sunil mujh se hans kar baat karne laga aur mujhe apne ghar
bhi bulaya. Main sham ko usske ghar gaya to Prabha Devi ne mujhe
shabash dee ki main bahduri se usske bete ki raksha karta hoon. Prabha
Devi ne mujhe apne seene se laga liya aur usska gudaz seena meri
kathore chhati se chipak gaya. Akhir aurat ka naram seena mard ke dil
mein aag laga hi deta hai. Beshak Prabha Devi ka roop ek maa ki yaad
dilata hai fir bhi usski naram chuchi apne seene mein mehsoos kar ke
mere dil mein agg lag gayi." Ganesh beta, tum rehte kahan ho?" Maine
jawab diya," Maaji, main ek restaurant mein kam karta hoon aur vahin
retha hoon." "Khair ab tujhe kam karne ki zarurat nahin hai. Tum
hamare ghar mein reh sakte ho. Mere office wale hissey mein ek kamra
khali hai jahan tum reh sakte ho aur puri azadi bhi mil sakti hai,
theek hai, Beta? Tujhe salary bhi milegi."
Andhe ko kia chahiye? Do ankhen? Free mein kamra, roti, aur ghar jaisa
mahaul. Uss din se main unke ghar mein rehne laga. Rehne kia laga,
meri to lottery nikal padi. School mein Sunil ki taraf koi aankh na
uthata aur Namita bhi mujhe ab nafrat nahin karti thee. Lekin abhi
pyar bhi nahin karti thee. Khair sab kuchh ek dum nahin ho jata. Dekha
jaye ga.
Ghar mein sabhi mujhe bahut pyar karne lage aur Prabha Devi ko apne
bachon ki safety ka koi dar na tha. Sab se pehle mujhe khana pakane
walon se milwaya gaya. Rasoi mein do log kaam karte thay. Gangu, ek
bazurag admi aur Naaz, ek 25 saal ki aurat jo ki ghar mein hi rehti
thee. Naaz ka kamra mere kamre se saath hi tha. Bs beech mein ek
bathroom tha jo hum dono ka sanjha tha. Naaz ka rang sanwla tha, nain
naksh teekhey, jism bhara hua, aankhen chamakili. Usski chuchi ka size
zarur 36 DD raha hoga aur chutad kafi gadde dar. Ussko dekh kar mujhe
apni malkin ki yaad aa gayi. Naaz jab chalti to kulhe matakati aur
mera lund khad kar deti. Naaz dekh sakti thi ki usska jawan jism mujh
par kia asar kar raha hai. Jab bhi mauka milta to vo mere samne jhuk
kar mujhe apni mast chuchi ki jhalak dikha hi deti. Ek din maine
hausla kar ke usski chuchi ko touch kar liye jab vo mujhe glass pakda
rahi thee, vo mujhe boli," Bachu, abhi chhote ho, essi harkat tab
karna jab mard ban jayo. Bete, mujhe bachon mein koi dilchaspi nahin
hai. Mardon ka kaam bacha nahin kar sakta." Usski baat sun kar main
jal bhun gaya.
Uss raat main Naaz ko apni pehli aurat banae ki scheme banane laga. Ab
main jawan tha, lund baichain tha. Mujhe bhi chodne ke liye aurat
chahiye thee. Naaz buri nahin thee bas mujh se umar mein badi thee.
Dusra karan Naaz ko fasane ka ye tha ki Namita ke dil mein irsha paida
ho jaye gi aur vo meri taraf akarshit ho jaye gi. Yaani ek choot se
dusri ka shikar.
Raat ko main bistar mein leta hua tha jab Naaz ki awaz mere kano mein
padi. Vo ga rahi thee. Nahate huye gana aam baat hai. Lekin meri
kalpna ab Naaz ka nahata hua nanga jism dekhne lagi. Maine apne kaan
diwar se laga diye. Diwar mein mujeh achanka ek chhed dikhayi pada.
Maine chhed mein jhanka. Chhed chhota sa tha lekin Naaz ki nangi
jawani ki jhalak dikhayi pad hi gayi. Usska bheega bada pani se chamak
raha tha aur vo mal mal kar naha rahi thee. Mera lund tan gaya aur
maine muth marni shuru kar dee. Kash Naaz mere samne aa kar chudwa
leti. Tabhi ussne apni chut ko ragadna shuru kar diya. Usski makhmal
jaisi choot fad fada rahi thee. Usski ugli choot mein ghus gayi aur vo
bhi ungli se apni choot chodne lagi. Naaz bathroom mein apni ungli se
choot chod rahi thee aur main kamre mein muth mar raha tha."
Ohhhhhhh….Ahhhhhh….." mere muh se nikal gayi ek halki see cheekh jab
mere lund ne ras chhod diya. Naaz ne shayad meri cheekh sun lee. Issi
liye vo ghabra uthi aur ussne apne haath ko rok diya aur towel lapet
kar bahar chali gayi.
Main ghabra gaya aur dar raha tha ki Naaz ko pata chal gaya hai ki
main ussko nahate huye dekh raha tha aur vo meri shikayat Prabha Devi
ko lagayegi. Meri ghar se chhuti ho jayegi. Khair dusre din Naaz mujh
se ankh nahin mila rahi thee aur na hi mujh se baat kar rahi thee. Ek
ajib baat ye thee ki Naaz aur Namita chhup chhup kar dheemi awaz mein
apas mein baaten kar rahi thee. Uss din sara din mujhe school mein
udaasi lagi rahi, lekin reh reh kar Naaz ka nanga jism meri nazaron ke
samne aa jata.
School se vapis aate huye Namita mujhe ajib nazaron se dekh rahi thee.
Dopahar ko khana khane ke baad main apne kamre mein leta huya tha jab
kissi ne darwaza khat khataya. Bahar Naaz khadi thee. Vo laal rang ki
salwar kameez pehne huye thee aur bahut serious lag rahi thee."
Ganesh, mere kamre mein aayo, zaruri baat karni hai." Meri gaand phati
ja rahi thee. Usske kamre mein Namita pehle se hi baithi thee. "To
janab, Naaz ko chhup kar nahate huye dekh rahe thay? Main agar Maa ko
bata doon to abhi chhuti ho jaye teri." Namita ne mujhe
dhamkaya."Nahi….maine kuchh nahin ……mera koi kasoor nahi….sach mujhe
kuchh nahin pata…." main kuchh bol na pa raha tha.
Namita ne mujhe gussey se dekha," Naaz ne teri awaz suni thee. Tum kia
kar rahe thay? Naaz to apni choot mein ungli kar rahi thee, behnchod
tum kia kar rahe thay? Iss tarah ek chudasi ladki ko dekhna achha hai?
Main aur Naaz kab se ek lund ki talash mein thee aur tu apna lund
dikhane ki bajaye isski choot dekh rahe thay kaminey. Teri saza ye hai
ki ya to tu ghar se jayega aur ya hamare samne apne lund ka pardarshan
karega. Bol kia irada hai?" Kehte huye Namita hans padi aur Naaz bhi
muskurane lagi. Main samajh gaya ki dono ladkian mujh se chudwana
chahti hain. Meri lottery nikal padi thee.
Main apni pant kholne laga. Tum jaisi mast ladkion se pyar karne ke
liye main janam se tadap raha hoon aur tum mujh se chudwana chahti ho.
To dekho Namita, kaisa laga Ganesh ka loda? Naaz tum bhi dekho Rani,
aapki sewa mein hazir hai mera kunwara lund. Sach mein tum mere liye
sundarta ki devi ho!" Namita hans padi," Behnchod, pehli baat dhyan se
sun. Sab ke samne tum humko didi keh kar pukaro ge aur hum tujhe
bhaiya. Iss tarah kissi ko shak nahin hoga aur hamara khel safely
chalta rahe ga. Chudayi ke khel ko rishton ke parde mein dhak liya
jayega aur hum teeno maze karte rahenge, theek hai?"
Naaz apne kapde uttarne lagi aur Namita bhi nangi hone lagi. Mujh
jaise ladki ki kismat khul rahi thee. Meri nazar Namita ke nange
sharir se hat nahin rahi thee. Jab ussne apni black color ki panty
uttari to mera dil dhak dhak karne laga. Usski chuchi ek dum kadi ho
chuki thee. Namita ki chut par chhoti chhoti jhant thee. Shayad kuchh
din pehle shave ki thee ussne apni chut. Usski aankh mein laal dore
tair rahe thay. Maine kampte haath se usski chuchi ko sparsh kia to
usski aah nikal gayi. Main bhi pura nanga ho chuka tha, Naaz meri
peeth se chipakne lagi. Naaz ki bharpur chuchi meri peeth mein gad
rahi thee aur usske honth meri gardan ko chumne lage. Maine Namita ko
apne alingan mein le liya air usski chut par haath ferne laga. Usski
choot ek aag ki tarah dehak rahi thee. Maine apne tapte honth usski
honthon par rakh kar kiss karne laga. Kamre mein vasna ki aandhi umad
chuki thee. Naaz ki bin balon wali chut meri chutad se takra rahi thee
aur ussne jhuk kar mere lund ko pakad liya aur aage peechhey karne
lagi.
"Dil to chahta hai ki main pehle chudayi karwaun par dar lagata hai.
Naaz, tum to tazurbekar ho, tum hi pehli baar iss lund ka maza le lo
aur mujeh chudayi ki tadap mein jalne do kuchh der aur. Fir tum mujhe
iss musal lund se nipatane mein madad karna. Ganesh bhaiya, tum pehle
apni badi didi ki choot ko thanda kar do aur baad mein mujh ko maze se
chodna. Kion Naaz taiyar ho apne bhaiya ke lund se apni choot chudwane
ke liye?" Naaz bina bole mere lund par apna muhn jhukati chali gayi
aur ussne mere lund ko mukh mein bhar liya. Apne ek haath se ussne
mere andkosh upper utha liye aur mere lund ko chusne lagi. Mujhe laga
jaise mera lund jhad jaye ga jaldi hi. Lekin maine apna dhyan apne
sdamne khadi vasna se bhari sexy ladkion se dur hataya kionki main
abhi jhadna nahin chahta tha.
Naaz mera lund chus rahi thee aur fir maine Namita ki choot ko sehlana
shuru kar diya. Maine ek ungli usski chut mein dal dee aur aage
peechhey karne laga. Vo garam ho kar apni chut meri ungli ki taraf
badhane lagi, jaise vo saro ungli le lena chahti ho," Ganesh behnchod,
sale aur dal meri chut mein. Apni behan ko ungli se chod behnchod, zor
se pel. Meri chut mein aag lagi hui hai." Main bhi bahut garma chuka
tha," Didi, abhi to choda bhi nahin hai tumko, tumne to mujhe pehle se
hi behanchod kehna shuru kar diya. Agar mujhe behnchod banane ki itni
jaldi hai to pehler tujhe chod leta hoon. Jab chhoti behan se bina
chudayi kiye nahin raha jata to pehle usski choot thandi kar deta
hoon. Naaz didi to pehle kafi lund ka sawad le chuki hogi. Pehle tujhe
hi kion na chod loon, Namita didi?"
Namita itni garam ho chuki thee ki ussne Naaz ko mere lund se alag kia
aur khud chusne lagi. Naaz mujh se lipatne lagi aur maine apne honth
usski chuchi par rakh diye aur usska doodh chusne laga," Ohhhhh bhaiya
kion tadpa rahe ho apni behan ko, pee lo mera doodh. Mere nipple chus
lo bhaiya, meri chut se ras ki barsat ho rahi hai. Apni behno ko chod
dalo bhaiya, hum ko chodo mere bhai. Essa karo, tum pehle Namita ki
seal tod lo. Main to pehle hi chud chuki hoon, tum Namita ko aurat
bana dalo, bhaiya" Maine Namita ko apne lund se alag kia aur utha kar
bistar par lita diya. Kamukta se bhari Namita mujhe gaur se dekh rahi
thee aur usski nazar mere lund se nahin hat rahi thee. Naaz ne Namita
ko homthon par kiss kia aur fir ussko peeth ke bal lita kar Namita ki
chut chatne lagi. Main Naaz ke chutad sehlane laga,"
Ahhhhhhh…..Ohhhhh….Naaaaaaz….chhod de meri chut…….Bhaiya ab nahin raha
jata…….Ganesh….pel do ab to…..meri chut jal rahi hai…..aur mat jalayo
mujhe…..haaan Naaz….ab jeebh se nahin chain milta, mere andar lund
dalwayo meri behna…"
Naaz muskurate huye uthi aur boli," Ganesh bhai, teri behan ab bhatthi
ki tarah dehak rahi hai. Apna lund ek hathode ki tarah maro isski
jalti hui choot mein. Nikal do iss chhinal ki garmi. Isski chut ko
apne lund se bhar do. Main issko chudate dekhna chahti hoon." Maine
Namita ki tangon ko faila diya aur usski chut ke honth apne aap khul
gaye. Chut ke upper usska chhola fudak raha tha. Maine usski chut ko
thapki mari to vo karah uthi," Jaldi karo bhaiya, please….aur mar
tadpayo, chod dalo ab to mere bhai"
Maine lund ka supada chut ke muhane par tikaya. Essa laga ki supada
kissi aag ke shaloy par rakh diya ho. Dhakka mara to lund asani se
chut mein ghuss gaya. Shaya Namita ki chut ka ras itna beh raha tha ki
usski chut kunwari hone ke bavjood asani se lund nigal gayi. Aur ya
fir ussne pehle hi baingan ya kheera istemal kar ki chut ko khol liya
tha. Cut ki grift lund par kitna maza deti hai main nahin janta tha.
Lekin ab mujhe mehsoos hua ki chudayi ka maza kia hota hai. Mere
chutad apne aap aage peechhey ho kar chudayi karne lage. Asal mein
main jitni tezi se dhakke marta, mujhe utna hi maza aata. Udhar Namita
bhi apni gaand uchhalne lagi amere dhakkon ka jawab chutad uchhal kar
dene lagi.
Maine Naaz ko kaha ki vo Namita ki chuchi ko chusna shuru kar de. Naaz
bina bole Namita ki chuchi par jhuk kar usske nipples chusne lagi.
Mere haathon ne Namita ko chutad ke neechey se jakad liya aur zor zor
se chodne laga," Arrrrrrgggghhhhh……main mar gayeeeeee….jor se
bhai….chod behnchod….chod mujhe…..main gayeeeeee…..Ganesh…….jor see"
Chhapak chhapak ki awaz se kamra goonj raha tha jab mera lund Namita
ki chut ke andar bahar hota." Bahut mazedar ho tum behna….maine essa
maza kabhi nahin liya…agar pata hota itna maza aata hai to behan to
kia maa ko bhi chod deta apni ko….ohhh meri pyari behna, bahut mazedar
ho tum…tum ne mujhe dhanya kar diya didi"
Tabhi Namita ki chut mere lund par aur zor se kas gayi aur usska badan
enthne laga. Usski saand mushkil se chalne lagi. Usski janghen meri
kamr par kas gayi. Idhar mera lund bhi chhutne ko tha. Mera lund
Rajdhani Express ke piston ki taran chudayi karne laga,"
Ohhhhhhh…didi….bas…..tera bhai jhad raha hao…..mera lund jhad raha
hai……kia main pichkari chut mein dal doon ya bahar nikal loon…bhagwan
kasam nahin raha jata didi" Namita ki chut pani chhod chuki thee aur
vo apne aap ko sambhal kar boli," Bahar nikal lo lund, ko bhaiya,
mujhe garbhwati nahin hona hai, bahar nikalo jaldi se."
Maine apna lund bahar kheencha to Naaz ne jhat se jhapat liya aur apne
muh se laga kar chusne lagi aur mera andkosh se khelne lagi. Mere
haath Namita didi ki bheegi chut ko sehlane lage. Achanak mera lund
pichkari chhodne laga. Mera lund ras Naaz ke galon par, chuchi par aur
kandhon par ja gira. Kuchh to ussne pee liya lekin ras ki dhara itni
tez thee ki Naaz ke nange jism par fir bhi gir pada. Naaz ek randi ki
tara mera ras chatne lagi.
Mera lund ab sikud chuka tha. Ab mujhe chudayi mein koi dilchaspi na
rahi thee. Main Namita ki bagal mein let gaya. Naaz ki bari abhi baki
thee. Lekin mere mein ab dum nahin raha. Mere pairon ke pass Naaz
mujhe chumne lagi. Usske honth mere pairon ke anguthey ko lund ki
tarah chusne lage. Fir ussne mere pairon ko kiss kia, fir takhno ko.
Dheere se usski zuban upper uthne lagi. Uski zuban mujh mein fir se
vasna bharne lagi aur mera lund fir se sir uthane laga. Maine Namita
ki chuchi ko masalna shuru kar diya. Vo hans kar boli," Apni behan ko
chod kar abhi dil nahin bhara, bhaiya? Fir se lund khada ho raha hai.
Meri chut ki chatani bana dee hai tumne." Kehte huye Namita ne mere
lund ko pakad liya aur muthiane lagi. Neechey se Naaz ki jeebh aur
haath mujhe utejit kar rahe thay. Mujhe hosh tab aaya jab Naaz ne mere
andkosh ko muhn mein bhar liya,"Ganesh bhaiya, ab tujhe dusri behan ko
chod kar shaant karna hai, mere bhai. Ussko bhi to usska hissa milna
chahiye." Namita mere kaan mein boli.
Naaz ne mujhe pet ke bal let jane ko kaha to main let gaya. Mujhe
nahin pata tha ki usska irada kia hai. Mujhe apne dono chuttad par
dono ladkion ke honth mehsoos huye. Vo sali gashti ladkian mere chutad
chatne lagi. Kissi ka haath mere chutad ko faila raha tha. Tabhi ek
ungli meri gaand mein gusne ki koshish karne lagi. Maine gaand ko
tight kar liya. Tabhi meri gaand par ek zordar thapad laga. Mere hosh
thikane aa gaye dard ke maare." Sale kuttia ki aulad, apni behn ko
chod raha tha to maze le raha tha, ab apni gaand mein ungli gayi to
bhadak raha hai. Namita ne tera 9 inch ka lund le liya to maze lete
thay, ab ek ungli se gaand phatne lagi? Apni gaand ko dheela chhodo
agar hamare saath maze lene hain to," Naaz ne ek aur zordar thapad
meri gaand par marte huye kaha. Ajib baat thee ki dusre thapad se
mujhe dard to hua lekin maza bhi aaya. Main mud kar bola," Kia baat
hai? Apne bhai ki gaand marne ka irada hai kia? Tumhari khatir to main
kuchh bhi kar loonga, meri behno. Lo chod lo apne bhai ko agar yahi
irada hai"
Maine apni gaand dheeli chhod dee. Tabhi mujhe apni gaand mein ek
zuban ghusti mehsoos hui aur mujhe bahut maza aaya. Namita ya Naaz
meri gaand ko zuban se chod rahi thee aur dusri mere chutad chat rahi
thee. Mera lund kabu mein nahin tha. Agar aur kuchh der yahi khel
chalta raha to main jhad jata. Lekin tabhi mujhe seedha kar diya gaya.
Naaz ne ab apne honth mere honthon par rakh diye. Mujhe kiss kar ke
boli," Harami, apni gaand ka swad chakh le mere honthon se. Namita,
hamare bhai ki gaand badi masaledar hai. agar taste karna hai to kar
lo. Fir issko bhi to apni gaand ka taste karwana hai humne!"
Mera lund asmaan ki tarah utha hua tha. Naaz mere upper chadhati hui
mere lund par apni chut ragadne lagi. Usski chut bhi ras tapka rahi
thee," Kion bhaiya, chadhun kia tere lund par? Karun sawari apne
bhaiya ke lund ki? Tu bhi kia yaad rakhega ki kissi ladki ne choda tha
tujhe. Ganesh bhai, neechey let kar behn chodne ka maza lo mere
bhaiya,' kehte hi ussne mere lund par apni chut ko gira diya. Gup ki
awaz se mera lund Naaz ki anubhavi chut mein ghusta chala gaya. Maine
Naaz ke chutad kas kar pakad liye aur neechey se dhakke marne laga.
Naaz ki moti chuchi mere honthon ke samne jhul rahi thee aur mujh se
na raha gaya to maine usski chuchi ko muh mein le kar chusna shuru kar
diya. Namita neechey ja kar mere andkosh chumne lagi. Meri janghen
Namita ke chehre par kas gayi.
Vah Ganesh beta, essa sukh tujhe nasib hua hai, main apne aap se bola.
Naaz mujhe upper se chod rahi thee. Makhan jaisi chut mere lund ki
malish karte huye chod rahi thee." Naaaaaaaz meri behna, kia cheez ho
tum…..kia mazedar chut hai teri….sali gashti ki tarah chudati ho….zor
se chod apne bhai ko….ohhhhh Namita chuso mere
andkosh…..haaaaa……..aaaaa…..chodo" Naaz ne speed tez kar dee. Meri muh
boli behan chudayi ki kala mein anubhavi thee…Naaz sali dhakke dheere
kar deti jab main jhadne ke karib hota. Main usske niples chusta raha.
Hum dono haanf rahe thay. Meri Namita behan ne ab meri gaand mein
zuban ghusa dali aur meri gaand chodne lagi.
" Hai bhai….chod mujhe….chod apni Naaz ko…apni behna ko….meri chut
pani chhod rahi hai….tu mere andar pichkari mar lena…..main goli khati
hoon….pelte raho mujhe bhai….chod dalo dal do ras meri pyasi chut
mein….chod……chod….chodo…chod chod maderchod main jhadeee" Neechey se
Namita ne apni ungli meri gaand mein dal kar chudayi shuru kar dee to
mein bhi jhadne laga. Mera ras Naaz ki chut mein girne laga. Vo upper
se thaap par thaap mar rahi thee. Mujhe pata hi nahin chala ki kab tak
mera lund jhadta raha. Sham ki 5 baje tak hum teeno Naaz ke bistar
mein nange ho sote rahe
To be continued
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