अंगूर का दाना-4
प्रेम गुरु की कलम से"आईईइइ ... सीईईई ?'
"क्या हुआ ?"
"उईईईइ अम्माआ ...... ये मिर्ची तो बहुत त... ती..... तीखी है ...!"
"ओह ... तुम भी निरी पागल हो भला कोई ऐसे पूरी मिर्ची खाता है ?"
"ओह... मुझे क्या पता था यह इतनी कड़वी होगी मैंने तो आपको देखकर खा ली थी? आईइइ... सीईई ..."
"चलो अब वाश-बेसिन पर ... जल्दी से ठन्डे पानी से कुल्ली कर लो !"
मैंने उसे बाजू से पकड़ कर उठाया और इस तरह अपने आप से चिपकाए हुए वाशबेसिन की ओर ले गया कि उसका कमसिन बदन मेरे साथ चिपक ही गया। मैं अपना बायाँ हाथ उसकी बगल में करते हुए उसके उरोजों तक ले आया। वो तो यही समझती रही होगी कि मैं उसके मुँह की जलन से बहुत परेशान और व्यथित हो गया हूँ। उसे भला मेरी मनसा का क्या भान हुआ होगा। गोल गोल कठोर चूचों के स्पर्श से मेरी अंगुलियाँ तो धन्य ही हो गई।
वाशबेसिन पर मैंने उसे अपनी चुल्लू से पानी पिलाया और दो तीन बार उसने कुल्ला किया। उसकी जलन कुछ कम हो गई। मैंने उसके होंठों को रुमाल से पोंछ दिया। वो तो हैरान हुई मेरा यह दुलार और अपनत्व देखती ही रह गई।
मैंने अगला तीर छोड़ दिया,"अंगूर अब भी जलन हो रही हो तो एक रामबाण इलाज़ और है मेरे पास !"
"वो... क्या ... सीईईईईईईई ?" उसकी जलन कम तो हो गई थी पर फिर भी वो होले होले सी... सी.... करती जा रही थी।
"कहो तो इन होंठों और जीभ को अपने मुँह में लेकर चूस देता हूँ, जलन ख़त्म हो जायेगी !" मैंने हंसते हुए कहा।
मैं जानता था वो मना कर देगी और शरमा कर भाग जायगी। पर मेरी हैरानी की सीमा ही नहीं रही जब उसने अपनी आँखें बंद करके अपने होंठ मेरी ओर बढ़ा दिए।
सच पूछो तो मेरे लिए भी यह अप्रत्याशित सा ही था। मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। मैंने देखा उसकी साँसें भी बहुत तेज़ हो गई हैं। उसके छोटे छोटे गोल गोल उरोज गर्म होती तेज़ साँसों के साथ ऊपर-नीचे हो रहे थे। मैंने उसके नर्म नाज़ुक होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
आह ... उसके रुई के नर्म फोहे जैसे संतरे की फांकों और गुलाब की पत्तियों जैसे नाज़ुक अधरों की छुअन मात्र से ही मेरा तो तन मन सब अन्दर तक तरंगित ही हो गया। अचानक उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और मेरे होंठों को चूसने लगी। मैंने भी दोनों हाथों से उसका सिर थाम लिया और एक दूसरे से चिपके पता नहीं कितनी देर हम एक दूसरे को चूमते सहलाते रहे। मेरा पप्पू तो जैसे भूखे शेर की तरह दहाड़ें ही मारने लगा था।
मैंने धीरे से पहले तो उसकी पीठ पर फिर उसके नितम्बों पर हाथ फिराया फिर उसकी मुनिया को टटोलना चाहा। अब उसे ध्यान आया कि मैं क्या करने जा रहा हूँ। उसने झट से मेरा हाथ पकड़ लिया और कुनमुनाती सी आवाज में बोली,"उईई अम्मा ...... ओह.... नहीं !... रुको !"
वो कोशिश कर रही थी कि मेरा हाथ उसके अनमोल खजाने तक ना पहुँचे। उसने अपने आप को बचाने के लिए घूम कर थोड़ा सा आगे की ओर झुका लिया जिसके कारण उसके नितम्ब मेरे लंड से आ टकराए। वह मेरा हाथ अपनी बुर से हटाने का प्रयास करने लगी।
"क्यों क्या हुआ ?"
"ओह्हो... अभी मुझे छोड़िये। मुझे बहुत काम करना है !"
"क्या काम करना है ?"
"अभी बर्तन समेटने हैं, आपके लिए दूध गर्म करना है .... और ... !"
"ओह... छोड़ो दूध-वूध मुझे नहीं पीना !"
"ओहो ... पर मुझे आपने दोहरी कर रखा है छोड़ो तो सही !"
"अंगूर ... मेरी प्यारी अंगूर प्लीज ... बस एक बार मुझे अपनी मुनिया देख लेने दो ना ?" मैंने गिड़गिड़ाने वाले अंदाज़ में कहा।
"नहीं मुझे शर्म आती है !"
"पर तुमने तो कहा था मैं जो मांगूंगा तुम मना नहीं करगी ?"
"नहीं ... पहले आप मुझे छोड़ो !"
मैंने उसे छोड़ दिया, वो अपनी कलाई दूसरे हाथ से सहलाती हुई बोली,"कोई इतनी जोर से कलाई मरोड़ता है क्या ?"
"कोई बात नहीं ! मैं उसे भी चूम कर ठीक कर देता हूँ !" कहते हुए मैं दुबारा उसे बाहों में भर लेने को आगे बढ़ा।
"ओह... नहीं नहीं.... ऐसे नहीं ? आपसे तो सबर ही नहीं होता...."
"तो फिर ?"
"ओह... थोड़ी देर रुको तो सही ... आप अपने कमरे में चलो मैं वहीं आती हूँ !"
मेरी प्यारी पाठिकाओ और पाठको ! अब तो मुझे जैसे इस जहाँ की सबसे अनमोल दौलत ही मिलने जा रही थी। जिस कमसिन कलि के लिए मैं पिछले 10-12 दिनों से मरा ही जा रहा था बस अब तो दो कदम दूर ही रह गई है मेरी बाहों से।
हे ... लिंग महादेव तेरा लाख लाख शुक्र है पर यार अब कोई गड़बड़ मत होने देना।
अंगूर नज़रें झुकाए बिना मेरी ओर देखे जूठे बर्तन उठाने लगी और मैंने ड्राइंग रूम में रखे टेलीफोन का रिसीवर उतार कर नीचे रख दिया और अपने मोबाइल का स्विच भी ऑफ कर दिया। मैं किसी प्रकार का कोई व्यवधान आज की रात नहीं चाहता था।
मैं धड़कते दिल से अंगूर का इंतज़ार कर रहा था। मेरे लिए तो एक एक पल जैसे एक एक पहर की तरह था। कोई 20 मिनट के बाद अंगूर धीरे धीरे कदम बढ़ाती कमरे में आ गई। उसके अन्दर आते ही मैंने कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और उसे फिर से बाहों में भर कर इतनी जोर से भींचा कि उसकी तो हलकी सी चीख ही निकल गई। मैंने झट से उसके होंठों को अपने मुँह में भर लिया और उन्हें चूसने लगा। वो भी मेरे होंठ चूसने लगी। फिर मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी। वो मेरी जीभ को कुल्फी की तरह चूसने लगी। अब हालत यह थी कि कभी मैं वो मेरी जीभ चूसने लगती कभी मैं उसकी मछली की तरह फुदकती मचलती जीभ को मुँह में पूरा भर कर चूसने लगता। "ओह... मेरी प्यारी अंगूर ! मैं तुम्हारे लिए बहुत तड़पा हूँ !"
"अच्छा.... जी वो क्यों ?"
"अंगूर, तुमने अपनी मुनिया दिखाने का वादा किया था !"
"ओह ... अरे... वो ... नहीं... मुझे शर्म आती है !"
"देखो तुम मेरी प्यारी साली हो ना ?" मैंने घाघरे के ऊपर से ही उसकी मुनिया को टटोला।
"नहीं... नहीं ऐसे नहीं ! पहले आप यह लाईट बंद कर दो !"
"ओह, फिर अँधेरे में मैं कैसे देखूंगा ?"
"ओह्हो... आप भी... अच्छा तो फिर आप अपनी आँखें बंद कर लो !"
"तुम भी पागल तो नही हुई ? अगर मैंने अपनी आँखें बंद कर ली तो फिर मुझे क्या दिखेगा ?"
"ओह्हो ... अजीब मुसीबत है ...?" कहते हुए उसने अपने हाथों से अपना चेहरा ही ढक लिया।
यह तो उसकी मौन स्वीकृति ही थी मेरे लिए। मैंने होले से उसे बिस्तर पर लेटा सा दिया। पर उसने तो शर्म के मारे अपने हाथों को चेहरे से हटाया ही नहीं। उसकी साँसें अब तेज़ होने लगी थी और चेहरे का रंग लाल गुलाब की तरह हो चला था। मैंने हौले से उसका घाघरा ऊपर कर दिया। मेरे अंदाज़े के मुताबिक़ उसने कच्छी (पेंटी) तो पहनी ही नहीं थी।
उफ्फ्फ्फ़ ......
उस जन्नत के नज़ारे को तो मैं जिन्दगी भर नहीं भूल पाऊंगा। मखमली गोरी जाँघों के बीच हलके रेशमी घुंघराले काले काले झांटों से ढकी उसकी चूत की फांकें एक दम गुलाबी थी। मेरे अंदाज़े के मुताबिक़ चीरा केवल 3 इंच का था। दोनों फांकें आपस में जुड़ी हुई ऐसे लग रही थी जैसे किसी तीखी कटार की धार ही हो। बीच की रेखा तो मुश्किल से 3 सूत चौड़ी ही होगी एक दम कत्थई रंग की।
मैं तो फटी आँखों से उसे देखता ही रह गया। हालांकि अंगूर मिक्की से उम्र में थोड़ी बड़ी थी पर उन दोनों की मुनिया में रति भर का भी फर्क नहीं था। मैं अपने आप को कैसे रोक पता मैंने अपने जलते होंठ उन रसभरी फांकों पर लगा दिए। मेरी गर्म साँसें जैसे ही उसे अपनी मुनिया पर महसूस हुई उसकी रोमांच के मारे एक किलकारी ही निकल गई और उसके पैर आपस में जोर से भींच गए। उसका तो सारा शरीर ही जैसे कांपने लगा था। मेरी भी कमोबेश यही हालत थी। मेरे नथुनों में हलकी पेशाब, नारियल पानी और गुलाब के इत्र जैसी सोंधी-सोंधी खुशबू समा गई। मुझे पता है वो जरूर बॉडी स्प्रे लगा कर आई होगी। उसने जरूर मधु को कभी ऐसा करते देखा होगा। मैंने उसकी मुनिया पर एक चुम्बन ले लिया। चुम्बन लेते समय मैं यह सोच रहा था कि अगर अंगूर इन बालों को साफ़ कर ले तो इस छोटी सी मुनिया को चूसने का मज़ा ही आ जाए।
मैं अभी उसे मुँह में भर लेने की सोच ही रहा था कि उसके रोमांच में डूबी आवाज मेरे कानों में पड़ी,"ऊईइ ..... अम्माआआ ..." वो झट से उठ खड़ी हुई और उसने अपने घाघरे को नीचे कर लिया।
मैंने उसे अपनी बाहों में भरते हुए कहा,"अंगूर तुम बहुत खूबसूरत हो !"
पहले तो उसने मेरी ओर हैरानी से देखा फिर ना जाने उसे क्या सूझा, उसने मुझे अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और मुझ से लिपट ही गई। मैं पलंग पर अपने पैर मोड़ कर बैठा था। वो अपने दोनों पैर चौड़े करके मेरी गोद में बैठ गई। जैसे कई बार मिक्की बैठ जाया करती थी। मेरा खड़ा लंड उसके गोल गोल नर्म नाज़ुक कसे नितम्बों के बीच फस कर पिसने लगा। मैंने एक बार फिर से उसके होंठों को चूमना चालू कर दिया तो उसकी मीठी सित्कारें निकालने लगी।
"अंगूर ...?"
"हम्म्म ... ?"
"कैसा लग रहा है ?"
"क्या ?" उसने अपनी आँखें नचाई तो मैंने उसके होंठों को इतने जोर से चूसा कि उसकी तो हल्की सी चीख ही निकल गई। पहले तो उसने मेरे सीने पर अपने दोनों हाथों से हलके से मुक्के लगाए और फिर उसने मेरे सीने पर अपना सिर रख दिया। अब मैं कभी उसकी पीठ पर हाथ फिराता और कभी उसके नितम्बों पर।
"अंगूर तुम्हारी मुनिया तो बहुत खूबसूरत है !"
"धत्त ... !" वह मदहोश करने वाली नज़रों से मुझे घूरती रही।
"अंगूर तुम्हें इस पर बालों का यह झुरमुट अच्छा लगता है क्या ?"
"नहीं .... अच्छा तो नहीं लगता... पर...?"
"तो इनको साफ़ क्यों नहीं करती ?"
"मुझे क्या पता कैसे साफ़ किये जाते हैं ?"
"ओह ... क्या तुमने कभी गुलाबो या अनार को करते नहीं देखा...? मेरा मतलब है... वो कैसे काटती हैं ?"
"अम्मा तो कैंची से या कभी कभी रेज़र से साफ़ करती है।"
"तो तुम भी कर लिया करो !"
"मुझे डर लगता है !"
"डर कैसा ?"
"कहीं कट गया तो ?"
"तो क्या हुआ मैं उसे भी चूस कर ठीक कर दूंगा !" मैं हंसने लगा।
पहले तो वो समझी नहीं फिर उसने मुझे धकेलते हुए कहा,"धत्त ... हटो परे...!"
"अंगूर प्लीज आओ मैं तुम्हें इनको साफ़ करना सिखा देता हूँ। फिर तुम देखना इसकी ख़ूबसूरती में तो चार चाँद ही लग जायेंगे ?"
"नहीं मुझे शर्म आती है ! मैं बाद में काट लूंगी।"
"ओहो ... अब यह शर्माना छोड़ो ... आओ मेरे साथ !"
मैं उसे अपनी गोद में उठा लिया और हम बाथरूम में आ गए। बाथरूम उस कमरे से ही जुड़ा है और उसका एक दरवाजा अन्दर से भी खुलता है।
मेरे प्यारे पाठको और पाठिकाओ ! आप जरूर सोच रहे होंगे यार प्रेम गुरु तुम भी अजीब अहमक इंसान हो ? लौंडिया चुदने को तैयार बैठी है और तुम्हें झांटों को साफ़ करने की पड़ी है। अमा यार ! अब ठोक भी दो साली को ! क्यों बेचारी की मुनिया और अपने खड़े लंड को तड़फा रहे हो ?
आप अपनी जगह सही हैं। मैं जानता हूँ यह कथानक पढ़ते समय पता नहीं आपका लंड कितनी बार खड़ा हुआ होगा या इस दौरान आपके मन में मुट्ठ मार लेने का ख़याल आया होगा और मेरी प्यारी पाठिकाएं तो जरूर अपनी मुनिया में अंगुली कर कर के परेशान ही हो गई होंगी। पर इतनी देरी करने का एक बहुत बड़ा कारण था। आप मेरा यकीन करें और हौंसला रखें बस थोड़ा सा इंतज़ार और कर लीजिये। मैं और आप सभी साथ साथ ही उस स्वर्ग गुफा में प्रवेश करने का सुख, सौभाग्य, आनंद और लुफ्त उठायेगे और जन्नत के दूसरे दरवाजे का भी उदघाटन करेंगे।
दरअसल मैं उसके कमसिन बदन का लुत्फ़ आज ठन्डे पानी के फव्वारे के नीचे उठाना चाहता था। वैसे भी भरतपुर में गर्मी बहुत ज्यादा ही पड़ती है। आप तो जानते ही हैं मैं और मधुर सन्डे को साथ साथ नहाते हैं और बाथटब में बैठे घंटों एक दूसरे के कामांगों से खेलते हुए चुहलबाज़ी करते रहते हैं। कभी कभी तो मधुर इतनी उत्तेजित चुलबुली हो जाया करती है कि गांड भी मरवा लेती है। पर इन दिनों में मधुर के साथ नहाना और गांड मारना तो दूर की बात है वो तो मुझे चुदाई के लिए भी तरसा ही देती है। आज इस कमसिन बला के साथ नहा कर मैं फिर से अपनी उन सुनहरी यादों को ताज़ा कर लेना चाहता था।
बाथरूम में आकर मैंने धीरे से अंगूर को गोद से उतार दिया। वो तो मेरे साथ ऐसे चिपकी थी जैसे कोई लता किसी पेड़ से चिपकी हो। वो तो मुझे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी।
मैंने कहा,"अंगूर तुम अपने कपड़े उतार दो ना प्लीज ?"
"वो ... क्यों भला ...?"
"अरे बाबा मुनिया की सफाई नहीं करवानी क्या ?"
"ओह ... !" उसने अपने हाथों से अपना मुँह फिर से छुपा लिया।
मैंने आगे बढ़ कर उसके घाघरे का नाड़ा खोल दिया और फिर उसकी कुर्ती भी उतार दी।
आह...
ट्यूब लाईट की दूधिया रोशनी में उसका सफ्फाक बदन तो कंचन की तरह चमक रहा था। उसने एक हाथ अपनी मुनिया पर रख लिया और दूसरे हाथ से अपने छोटे छोटे उरोजों को छुपाने की नाकाम सी कोशिश करने लगी। मैं तो उसके इस भोलेपन पर मर ही मिटा। उसके गोल गोल गुलाबी रंग के उरोज तो आगे से इतने नुकीले थे जैसे अभी कोई तीर छोड़ देंगे। मुझे एक बात की बड़ी हैरानी थी कि उसकी मुनिया और कांख (बगल) को छोड़ कर उसके शरीर पर कहीं भी बाल नहीं थे। आमतौर पर इस उम्र में लड़कियों के हाथ पैरों पर भी बाल उग आते हैं और वो उन्हें वैक्सिंग से साफ़ करना चालू कर देती हैं। पर कुछ लड़कियों के चूत और कांख को छोड़ कर शरीर के दूसरे हिस्सों पर बाल या रोयें बहुत ही कम होते हैं या फिर होते ही नहीं। अब आप इतने भोले भी नहीं हैं कि आपको यह भी बताने कि जरूरत पड़े कि वो तो हुश्न की मल्लिका ही थी उसके शरीर पर बाल कहाँ से होते। मैं तो फटी आँखों से सांचे में ढले इस हुस्न के मंजर को बस निहारता ही रह गया।
"वो... वो ... ?"
"क्या हुआ ?"
"मुझे सु सु आ रहा है ?"
"तो कर लो ! इसमें क्या हुआ ?"
"नहीं आप बाहर जाओ ... मुझे आपके सामने करने में शर्म आती है !"
"ओह्हो ... अब इसमें शर्म की क्या बात है ? प्लीज मेरे सामने ही कर लो ना ?"
वो मुझे घूरती हुई कमोड पर बैठने लगी तो मैंने उसे रोका,"अर्ररर ... कमोड पर नहीं नीचे फर्श पर बैठ कर ही करो ना प्लीज !"
उसने अजीब नज़रों से मुझे देखा और फिर झट से नीचे बैठ गई। उसने अपनी जांघें थोड़ी सी फैलाई और फिर उसकी मुनिया के दोनों पट थोड़े से खुले। पहले 2-3 बूँदें निकली और उसकी गांड के छेद से रगड़ खाती नीचे गिर गई। फिर उसकी फांकें थरथराने लगी और फिर तो पेशाब की कल-कल करती धारा ऐसे निकली कि उसके आगे सहस्त्रधारा भी फीकी थी। उसकी धार कोई एक डेढ़ फुट ऊंची तो जरूर गई होगी। सु सु की धार इतनी तेज़ थी कि वो लगभग 3 फुट दूर तक चली गई। उसकी बुर से निकलती फ़ीच... च्चच..... सीईई इ ....... का सिसकारा तो ठीक वैसा ही था जैसा लिंग महादेव मंदिर से लौटते हुए मिक्की का था। हे भगवान् ! क्या मिक्की ही अंगूर के रूप में कहीं दुबारा तो नहीं आ गई ? मैं तो इस मनमोहक नज़ारे को फटी आँखों से देखता ही रह गया। मुझे अपनी बुर की ओर देखते हुए पाकर उसने अपना सु सु रोकने की नाकाम कोशिश की पर वो तो एक बार थोड़ा सा मंद होकर फिर जोर से बहने लगा। आह एक बार वो धार नीचे हुई फिर जोर से ऊपर उठी। ऐसे लगा जैसे उसने मुझे सलामी दी हो।
शादी के शुरू शुरू के दिनों में मैं और मधुर कई बार बाथरूम में इस तरह की चुहल किया करते थे। मधु अपनी जांघें चौड़ी करके नीचे फर्श पर लेट जाया करती थी और फिर मैं उसकी मुनिया की दोनों फांकों को चौड़ा कर दिया करता था। फिर उसकी मुनिया से सु सु की धार इतनी तेज़ निकलती कि 3 फुट ऊपर तक चली जाती थी। आह ... कितनी मधुर सीटी जैसी आवाज निकलती थी उसकी मुनिया से। मैं अपने इन ख़यालों में अभी खोया ही था कि अब उसकी धार थोड़ी मंद पड़ने लगी और फिर एक बार बंद होकर फिर एक पतली सी धार निकली। उसकी लाल रंग की फांके थरथरा रही थी जैसे। कभी संकोचन करती कभी थोड़ी सी खुल जाती।
अंगूर अब खड़ी हो गई। मैंने आगे बढ़ कर उसकी मुनिया को चूमना चाहा तो पीछे हटते हुए बोली,"ओह ... छी .... छी .... ये क्या करने लगे आप ?"
"अंगूर एक बार इसे चूम लेने दो ना प्लीज .... देखो कितनी प्यारी लग रही है !"
"छी .... छी .... इसे भी कोई चूमता है ?"
मैंने अपने मन में कहा 'मेरी जान थोड़ी देर रुक जाओ फिर तो तुम खुद कहोगी कि 'और जोर से चूमो मेरे साजन' पर मैंने उससे कहा,"चलो कोई बात नहीं तुम अपना एक पैर कमोड पर रख लो। मैं तुम्हारे इस घास की सफाई कर देता हूँ !"
उसने थोड़ा सकुचाते हुए बिना ना-नुकर के इस बार मेरे कहे मुताबिक़ एक पैर कमोड पर रख दिया।
आह ... उसकी छोटी सी बुर और 3 इंच का रक्तिम चीरा तो अब साफ़ नज़र आने लगा था। हालांकि उसकी फांकें अभी भी आपस में जुड़ी हुई थी पर उनका नज़ारा देख कर तो मेरे पप्पू ने जैसे उधम ही मचा दिया था।
मैंने अपने शेविंग किट से नया डिस्पोजेबल रेज़र निकला और फिर हौले-हौले उसकी बुर पर फिराना चालू कर दिया। उसे शायद कुछ गुदगुदी सी होने लगी थी तो वो थोड़ा पीछे होने लगी तो मैंने उसे समझाया कि अगर हिलोगी तो यह कट जायेगी फिर मुझे दोष मत देना। उसने मेरा सिर पकड़ लिया। उसकी बुर पर उगे बाल बहुत ही नर्म थे। लगता था उसने कमरे में आने से पहले पानी और साबुन से अपनी मुनिया को अच्छी तरह धोया था। 2-3 मिनट में ही मुनिया तो टिच्च ही हो गई।
आह ... उसकी मोटी मोटी फांकें तो बिलकुल संतरे की फांकों जैसी एक दम गुलाबी लग रही थी। फिर मैंने उसके बगलों के बाल भी साफ़ कर दिए। बगलों के बाल थोड़े से तो थे। जब बाल साफ़ हो गए तो मैंने शेविंग-लोशन उसकी मुनिया पर लगा कर हैण्ड शावर उठाया और उसकी मुनिया को पानी की हल्की फुहार से धो दिया। फिर पास रखे तौलिये से उसकी मुनिया को साफ़ कर दिया। इस दौरान मैं अपनी एक अंगुली को उसकी मुनिया के चीरे पर फिराने से बाज नहीं आया। जैसे ही मेरी अंगुली उसकी मुनिया से लगी वो थोड़ी सी कुनमुनाई।
"ऊईईइ.... अम्माआ ....!"
"क्या हुआ ?"
"ओह ... अब मेरे कपड़े दे दो ....!" उसने अपने दोनों हाथ फिर से अपनी मुनिया पर रख लिए।
"क्यों ?"
"ओह ... आपने तो मुझे बेशर्म ही बना दिया !"
"वो कैसे ?"
"और क्या ? आपने तो सारे कपड़े पहन रखे हैं और मुझे बिलकुल नंगा ....?" वह तो बोलते बोलते फिर शरमा ही गई ......
"अरे मेरी भोली बन्नो ... इसमें क्या है, लो मैं भी उतार देता हूँ।"
मैंने अपना कुरता और पजामा उतार फेंका। अब मेरे बदन पर भी एक मात्र चड्डी ही रह गई थी। मैंने अपनी चड्डी जानबूझ कर नहीं उतारी थी। मुझे डर था कहीं मेरा खूंटे सा खड़ा लंड देख कर वो घबरा ही ना जाए और बात बनते बनते बिगड़ जाए। मैं इस हाथ आई मछली को इस तरह फिसल जाने नहीं देना चाहता था। मेरा पप्पू तो किसी खार खाए नाग की तरह अन्दर फुक्कारें ही मार रहा था। मुझे तो लग रहा था अगर मैंने चड्डी नहीं उतारी तो यह उसे फाड़ कर बाहर आ जाएगा।
"उईइ ... यह तो चुनमुनाने लगी है ?" उसने अपनी जांघें कस कर भींच ली। शायद कहीं से थोड़ा सा कट गया था जो शेविंग-लोशन लगने से चुनमुनाने लगा था।
"कोई बात नहीं इसका इलाज़ भी है मेरे पास !"
उसने मेरी ओर हैरानी से देखा। मैं नीचे पंजों के बल बैठा गया और एक हाथ से उसके नितम्बों को पकड़ कर उसे अपनी और खींच लिया और फिर मैंने झट से उसकी मुनिया को अपने मुँह में भर लिया।
वो तो,"उईइ इ ... ओह ......... नहीं .... उईईईई इ .... क्या कर रहे हो ... आह ..........." करती ही रह गई।
मैंने जैसे ही एक चुस्की लगाई उसकी सीत्कार भरी किलकारी निकल गई। उसकी बुर तो अन्दर से गीली थी। नमकीन और खट्टा सा स्वाद मेरी जीभ से लग गया। उसकी कुंवारी बुर से आती मादक महक से मैं तो मस्त ही हो गया। उसने अपने दोनों हाथों से मेरा सिर पकड़ लिया। अब मैंने अपनी जीभ को थोड़ा सा नुकीला बनाया और उसकी फांकों के बीच में लगा कर ऊपर नीचे करने लगा। मेरे ऐसा करने से उसे रोमांच और गुदगुदी दोनों होने लगे। मैंने अपने एक हाथ की एक अंगुली उसकी मुनिया के छेद में होले से डाल दी।
आह उसकी बुर के कसाव और गर्मी से मेरी अंगुली ने उसकी बुर के कुंवारेपन को महसूस कर ही लिया।
"ईईइ ..... बाबू ... उईईइ ... अम्मा ........ ओह ... रुको ... मुझे ... सु सु .... आ ... रहा है .... ऊईइ ... ओह ... छोड़ो मुझे.... ओईईइ ... अमाआआ .... अह्ह्ह .... य़ाआअ ..... !!"
पढ़ते रहिए ..... कई भागों में समाप्य
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