यार बना प्रीतम - भाग (1)
प्रीतम से परिचय
प्रीतम से मेरा परिचय पहली बार तब हुआ जब मैं शहर में कॉलेज में पढ'ने के लिए आया. हॉस्टिल में जगह ना होने से मैं एक घर ढूँढ रहा था. तब मैं सोलह वर्ष का किशोर था और फर्स्ट एअर में गया था. शहर में कोई भी पहचान का नहीं था, इस'लिए एक होटेल में रुका था.
रोज शाम को कॉलेज ख़तम होते ही मैं घर ढूँढ'ने निकलता. मेरी इच्च्छा शहर के किसी अच्छे भाग में घर लेने की थी. मुझे यह आभास हो गया था कि इस'के लिए काफ़ी किराया देना पडेग और किराया बाँट'ने के लिए किसी साथी की ज़रूरत पडेगी. इसी खोज में था कि कौन मेरे साथ घर शेयर कर'के रहेगा.
एक दिन एक मित्र ने मेरी मुलाकात प्रीतम से करा दी. देखते ही मुझे वह भा गया. वा फाइनल एअर में था; उम्र में मुझसे पाँच छह वर्ष बड़ा होगा. उसका शरीर बड़ा गठा हुआ और सजीला था. हल्की मून्छे थी और नज़र बड़ी पैनी थी. रंग गेहुआ था और चेहरे पर जवानी का एक जोश था. ना जा'ने क्यों उस'के उस मस्ता'ने मर्दा'ने रूप को देख'कर मेरे मन में एक अजीब सी टीस उठ'ने लगी.
मुझे अपनी ओर घूरते देख वह मुस्कराया. उस'ने मुझे बताया कि वह भी एक घर ढूँढ रहा है क्योंकि हॉस्टिल से ऊब गया है. उस'की नज़र मुझे बड़े इंटरेस्ट से देख रही थी. उस'की पैनी नज़र और उसका पुष्ट शरीर देख कर मुझे भी एक अजीब सी मीठी सुर'सरी होने लगी थी.
हम ने तय कर लिया कि साथ साथ रहेंगे और आज से ही साथ साथ घर ढूंढ़ेंगे. शाम को उस'ने मुझे हॉस्टिल के अप'ने कमरे पर आने को कहा. वहाँ से दोनों एक साथ घर ढूँढ'ने जाएँगे ऐसा हमारा विचार था. सारा दिन मैं उस'के विचार में खोया रहा. सच तो यह है कि आज कल मेरी जवानी पूरे जोश में थी और मेरा लंड इस बुरी तरह से खड़ा होता था की रोज रात और दोपहर में भी कॉलेज के बाथ रूम में जा'कर दो तीन बार हस्तमैथुन किए बिना मन नहीं मान'ता था. लड़कियाँ या औरतें मुझे अच्छी तो लग'ती थी पर आज कल गठे हुए शरीर के चिक'ने जवान मर्द भी मुझे आकर्षित कर'ने लगे थे. और यह आकर्षण बहुत तीव्र था. ख़ास कर तब से जब से मैने गे सेक्स की कुच्छ सचित्र किताबें देख ली थी. सच तो यह है कि मुझे अहसास होने लगा था कि मैं बाइसेक्सुअल हूँ.
पिच्छाले साल भर से मूठ मारते हुए मैं अक्सर यही कल'पना कर'ता था कि कोई जवान मेरी गान्ड मार रहा है या मैं किसी का लंड चूस रहा हूँ. या फिर मा की उम्र की किसी अधेड भरे पूरे बदन की महिला की गान्ड मार रहा हूँ. मुझे अब ऐसा लग'ने लगा था कि औरत हो या मर्द, जो भी हो पर जल्दी किसी के साथ मेरी कामलीला शुरू हो. मुझे यहाँ नये शहर में संभोग के लिए कोई नारी मिलना तो मुश्किल लग रहा था, मेरे जैसे शर्मीले लड़'के के लिए तो यह करीब करीब असंभव था. इस'लिए आज प्रीतम को देख'कर मैं काफ़ी बेचैन था. अगर हम साथ रहे तो यह गठीला नौजवान मेरे करीब होगा, ज़रूर कुच्छ चक्कर चल जाएगा, इस'की मुझे पूरी आशा थी! पर मुझे यह पक्का पता नहीं था कि वह मेरे बारे में क्या सोच'ता है. खुद पहल कर'ने का साहस मुझ'में नहीं था.
उस शाम इतनी बारिश हुई कि मैं बिलकुल भीग गया. मैं जब प्रीतम के कमरे में पहुँचा तो सिर्फ़ जांघिया और बनियान पह'ने हुए वह कमरे में रब्बर की हवाई चप्पल पहन'कर घूम रहा था. मुझे देख उस'के चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गयी. मुझे कमरे में लेते हुए बोला
आ गया सुकुमार, मुझे लगा था कि बारिश है तो तू शायद नहीं आएगा. इसीलिए मैं तैयार भी नहीं हुआ. तू बैठ, मैं कपड़े पहन'ता हूँ और फिर चलते हैं. मेरे भीगे कपड़े देख कर वह बोला.
यार, तू सब कपड़े उतार के मुझे दे दे, यह तौलिया लपेट कर बैठ जा, तब तक मैं प्रेस से ये सूखा देता हूँ. नहीं तो सर्दी लग जाएगी तुझे, वैसे भी तू नाज़ुक तबीयत का लग रहा है. मैने सब कपड़े उतारे और तौलिया लपेट'कर कुर्सी में बैठ गया. मेरे कपड़े उतार'ने पर मुझे देख कर वह मज़ाक में बोला.
सुकुमार, तू तो बड़ा चिकना निकला यार, लड़कियों के कपड़े पहन ले और बॉल बढ़ा ले तो एक खूबसूरत लड़'की लगेगा. वह प्रेस ऑन कर'के कपड़े सूखा'ने लगा और मुझसे बातें कर'ने लगा. बार बार उस'की नज़र मेरे अधनन्गे जिस्म पर से घूम रही थी. मैं भी तक लगा कर उस'के कसे हुए शरीर को देख रहा था. मन में एक अजीब आकर्षण का भाव था. हम दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर था और लग'ता है कि यही अंतर ह'में एक दूसरे की ओर आकर्षित कर रहा था.
मेरे छरहरे चीक'ने गोरे दुबले पतले पचपन किलो और साढ़े पाँच फुट के शरीर के मुकाबले में उसका गठा हुआ पुष्ट शरीर करीब पचहत्तर किलो वजन का होगा. मुझसे वह करीब चार पाँच इंच ऊँचा भी था. भरी हुई पुष्ट छा'ती का आकार और चूचुकों का उभार बनियान में से दिख रहा था. छा'ती मेरी ही तरह एकदम चिकनी थी, कोई बाल नहीं थे.
मैं सोच'ने लगा कि आख़िर क्यों उस'के चूचुक इत'ने उभरे हुए दिख रहे हैं. फिर मुझे ध्यान आया कि औरतों की तरह ही कयी मर्दों के भी चूचुक उत्तेजित होने पर खड़े हो जाते हैं. मैने समझ लिया कि शायद मुझे देख'कर उसका यह हाल हुआ हो. मेरा भी हाल बुरा था और मेरा लंड उस'के अर्धनग्न शरीर को पास से देख'कर खड़ा होना शुरू हो गया था.
मेरा ध्यान अब उस'की मासल जांघों और बड़े बड़े चूतदों पर गया. उसका जांघिया इतना फिट बैठ था की चूतदों के बीच की लाइन सॉफ दिख रही थी. जब भी वह घूम'ता तो मेरी नज़र उस'के जांघीए में छुपे हुए लंड पर पड़'ती. कपडे के नीचे से सिकुडे और शायद आधे खड़े आकार में ही उसका उभार इतना बड़ा था की जब मैने यह अंदाज़ा लगाना शुरू लिया कि खड होकर यह कैसा दिखेगा तो मैं और उत्तेजित हो उठा.
मेरी नज़र बार बार उस'की चप्पलो पर भी जा रही थी. मेरा शुरू से ही चप्पालों की ओर बहुत आकर्षण रहा है. ख़ास कर'के रब्बर की हवाई चप्पलें मुझे दीवाना कर देती हैं. मेरे पास भी मेरी पुरानी चप्पलो के छह जोड़े हैं. उन्हें हमेशा धो कर सॉफ रख'ता हूँ क्योंकि रोज के हस्तमैथुन में चप्पलो का मेरे लिए बड महत्व है. मूठ मारते समय मैं पहले उनसे खेल'ता हूँ, चूम'ता हूँ, चाट'ता हूँ और फिर मुँह में लेकर चबाते हुए झड जाता हूँ. यही कल'पना कर'ता हूँ कि वो चप्पलें किसी मतवाली नारी या जवान मर्द की हैं. कभी यह कल'पना कर'ता हूँ कि कोई जवान मुझे रेप कर रहा है और मुझे चीख'ने से रोक'ने के लिए मेरे मुँह में अपनी चप्पल ठूंस दी है.
प्रीतम की सफेद रब्बर की चप्पलें भी एकदम सॉफ सुथरी और धुली हुई थी. पहन पहन कर घिस कर बिलकुल मुलायम और चिकनी हो गयी थी. जब प्रीतम चल'ता तो वे चप्पलें सपाक सपाक की आवाज़ कर'के उस'के पैरों से टकरातीं. उन्हें देख'कर मेरा लंड और खड हो गया. मैं सोच'ने लगा कि काश ये खूबसूरत चप्पलें मुझे मिल जाएँ!
अब तक कपड़े सूख गये थे और प्रीतम ने मुझे पहन'ने के लिए वे वापस दिए. मुझे उस'ने आप'ने शरीर और चप्पालों की ओर घूरते देख लिया था पर कुच्छ बोला नहीं, सिर्फ़ मुस्करा दिया. मैं कुर्सी पर से उठ'ने को घबरा रहा था कि उसे तौलिया में से मेरा तन कर खड लंड ना दिख जाए. उस'ने शायद मेरी शरम भाँप ली क्योंकि वह खुद भी मूड कर मेरी ओर पीठ कर'के खड हो गया और कपड़े पहन'ने लगा.
हम लोग बाहर निकले. अब हम ऐसे गप्पें मार रहे थे जैसे पूरा'ने दोस्त हों. उस'ने बताया कि पिछले हफ्ते उस'ने एक घर देखा था जो उसे बहुत पसंद आया था पर एक आदमी के लिए बड़ा था. वह मुझे फिर वहीं ले गया. फ्लैट बड़ा अच्च्छा था. एक बेड रूम, बड बैठ'ने का कमरा, एक किचन और बड़ा बाथ रूम. घर में सब कुच्छ था, फर्नीचर, बर्तन, गैस, ह'में सिर्फ़ अप'ने कपड़े लेकर आने की ज़रूरत थी. किराया कुच्छ ज़्यादा था पर प्रीतम ने मेरी पीठ पर प्यार से एक चपत मार कर कहा कि घर मैं पसंद कर लूँ, फिर ज़्यादा हिस्सा वह दे देगा. कल से ही आने का पक्का कर के हम चल पड़े.
हम दोनों खुश थे. मुझे लग'ता है कि हम दोनों को अब तक मन में यह मालूम हो गया था कि एक साथ रह'ने पर कल से हम एक दूसरे के साथ क्या क्या करेंगे. प्रीतम मेरा हाथ पकड़'कर बोला.
चल यार एक पिक्चर देखते हैं. मैने हामी भर दी क्योंकि प्रीतम से अलग होने का मेरा मन नहीं हो रहा था. प्रीतम ने पिक्चर ऐसी चुनी कि जब हम अंदर जा'कर बैठे तो सिनेमा हॉल एकदम खाली था. मैने जब उससे कहा कि पिक्चर बेकार होगी तो वह हंस'ने लगा.
बड़ा भोला है तू यार, यहाँ कौन पिक्चर देख'ने आया है? ज़रा तेरे साथ अकेले में बैठ'ने को तो मिलेगा. उस'की आवाज़ में छुपी शैतानी और मादक'ता से मेरा दिल धडक'ने लगा और मैं बड़ी बेसब्री से अंधेरा होने का इंतजार कर'ने लगा.
पिक्चर शुरू हुई और सारी बत्तियाँ बुझा दी गयीं. हम दोनों पीछे ड्रेस सर्कल में बैठे थे. दूर दूर तक और कोई नहीं था, कोने में एक दो प्रेमी युगल अलग बैठे थे. सिर्फ़ हमीं दोनों लड़'के थे. मेरे मन में ख्याल आया कि असल में उन युगलों में और हम'में कोई फरक नहीं है. हम भी शायद वही करेंगे जो वे कर'ने आए हैं. मेरा तो बहुत मूड था पर अभी भी मैं पहल कर'ने में डर रहा था. मैने आख़िर यह प्रीतम पर छोड दिया और देख'ने लगा कि उस'के मन में क्या है. मेरा अंदाज़ा सही निकला. अंधेरा होते ही प्रीतम ने बड़े प्रेम से अपना एक हाथ उठ'कर मेरे कंधों पर बड़े याराना अंदाज में रख दिया. फुसफुसा कर हल्की आवाज़ में मेरे कान में वह बोला.
यार सुकुमार, कुच्छ भी कह, तू बड़ा चिकना छ्हॉकरा है दोस्त, बहुत कम लड़कियाँ भी इतनी प्यारी होती हैं. मैने भी अपना हाथ धीरे से उस'की जाँघ पर रखते हुए कहा.
यार प्रीतम, तू भी तो बड मस्त तगड़ा और मजबूत जवान है. लड़कियाँ तो तुझ पर खूब मर'ती होंगीं? उसका हाथ अब नीचे खिसक'कर मेरे चेहरे को सहला रहा था. मेरे कान और गाल को बड़े प्यार से अपनी उंगलियों से धीरे धीरे गुदगुदी कर'ता हुआ वह अपना सिर बिलकुल मेरे सिर के पास ला कर बोला
मुझे फराक नहीं पड़ता, वैसे भी छ्हॉकरियों में मेरी ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है. मुझे तो बस तेरे जैसा एकाध चिकना दोस्त मिल जाए तो मुझे और कुच्छ नहीं चाहिए. और उस'ने झुक कर बड़े प्यार से मेरा गाल चूम लिया.
मुझे बहुत अच्च्छा लगा, बिलकुल ऐसे जैसे किसी लड़'की को लग'ता होगा अगर उसका प्रेमी उसे छूता होगा. मेरा लंड अब तक पूरी तरह खड़ा हो चुका था. मैने अपना हाथ अब साहस कर'के बढ़ाया और उस'की पैंट पर रख दिया. हाथ में मानो एक बड तंबू आ गया. ऐसा लग'ता था कि पैंट के अंदर उसका लंड नहीं, कोई बड़ा मूसल हो. उस'के आकार से ही मैं चकरा गया. इतना बड़ा लंड! अब तक हम दोनों के सब्र का बाँध टूट चुका था. प्रीतम ने अपना हाथ मेरी छा'ती पर रखा और मेरे चूचुक शर्त के उपर से ही दबाते हुए मुझे बोला.चल बहुत नाटक हो गया, अब ना तड़पा यार, एक चुम्मा दे जल्दी से. मैने अपना मुँह आगे कर दिया और प्रीतम ने अपना दूसरा हाथ मेरे गले में डाल कर मुझे पास खींच'कर अप'ने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. हमारा यह पहला चुंबन बड़ा मादक था. उस'के होंठ थोड़े खुरदरे थे और उस'की छोटी मूँछहों से मेरे ऊपरी होंठ पर बड़ी प्यारी गुदगुदी हो रही थी. उस'की जीभ हल्के हल्के मेरे होंठ चाट रही थी. उस'के मुँह से हल्की हल्की आफ्टर शेव की खुशबू आ रही थी. मेरा मन हो रहा था कि उस'के मुँह में जीभ डाल दूँ या उस'की जीभ चूस लूँ, किसी भी तरह उस'के मुखरस का स्वाद लूँ, पर अब भी थोड़ा शरमा रहा था.
हम एक दूसरे को बेतहाशा चूमते हुए अप'ने अप'ने हाथों से एक दूसरे के लंड टटोल रहे थे. हमारी चूमा चॅटी अब ह'में इतनी उत्तेजित कर उठी थी कि मुझे लगा कि वहीं उसका लंड चूस लूँ. पर जब हमारे आस पास अचानक होती हलचल से ये समा टूट तो हम'ने चुंबन तोड़ कर इधर उधर देखा. पता चला कि काफ़ी दर्शक हॉल में आना शुरू हो गये थे. वे सब हमारे आस पास बैठ'ने लगे थे. धीरे धीरे काफ़ी भीड़ हो गयी. ह'में मजबूरन अपना प्रेमालाप बंद करना पड़ा. अप'ने उछलते लंड पर मैने किसी तरह काबू किया. प्रीतम भी खिसक'कर बैठ गया और वासना थोड़ी दब'ने पर बोला.
चल यार, चलते हैं, यहाँ बैठ'कर अब कोई फ़ायदा नहीं. साली भीड़ ने आ'कर अपनी 'के एल डी' कर डी मैने पूचछा कि 'के एल डी' का मतलब क्या है तो हंस कर बोला.
यार, इसका मतलब है - खड़े लंड पर धोखा. हम बाहर निकल आए. एक दूसरे की ओर देख'कर प्यार से हँसे और हाथ में हाथ लिए चल'ने लगे. प्रीतम ने कहा
अच्च्छा हुआ यार, असल में ह'में अपना पहला रोमास आराम से अप'ने घर में मज़े ले लेकर करना चाहिए, ऐसा च्छूप कर जल्दी में नहीं. चल, कल रात को मज़ा करेंगे. मैने चलते चलते धीरे से पूचछा
प्रीतम, मेरे राजा, यार तेरा लंड लग'ता है बहुत बड़ा है, कितना लंबा है? वह हंस'ने लगा.
क्रमशः................
YAAR BANA PRITAM - BHAAG (1)
Pritam se parichay
Pritam se mera parichay pahalee baar tab hua jab main shahar men college men paDha'ne ke liye aayaa. Hostel men jagah na hone se main ek ghar Dhoondh raha thaa. Tab main solah warSh ka kishor tha aur first year men gaya thaa. Shahar men koee bhee pahachaan ka naheen thaa, is'liye ek hotel men ruka thaa.
Roj shaam ko college khatam hote hee main ghar Dhoondh'ne nikalataa. Meree ichchha shahar ke kisee achchhe bhaag men ghar lene kee thee. Mujhe yah aabhaas ho gaya tha ki is'ke liye kaafee kiraaya dena paDega aur kiraaya baant'ne ke liye kisee saathee kee jaroorat paDegee. isee khoj men tha ki kaun mere saath ghar sheyar kar'ke rahegaa.
Ek din ek mitr ne meree mulaakaat Pritam se kara dee. Dekhate hee mujhe wah bha gayaa. Wah final year men thaa; umr men mujhase paanch chhah warSh baDa hogaa. Usaka shareer baDa gaTha hua aur sajeela thaa. Halkee moonchhe thee aur najar baDee painee thee. Rang gehuaan tha aur chehare par jawaanee ka ek josh thaa. Na ja'ne kyon us'ke us masta'ne marda'ne roop ko dekh'kar mere man men ek ajeeb see Tees uTh'ne lagee.
Mujhe apanee or ghoorate dekh wah muskaraayaa. Us'ne mujhe bataaya ki wah bhee ek ghar Dhoondh raha hai kyonki hostel se oob gaya hai. Us'kee najar mujhe baDe intaresT se dekh rahee thee. Us'kee painee najar aur usaka puShT shareer dekh kar mujhe bhee ek ajeeb see meeThee sur'saree hone lagee thee.
Ham ne tay kar liya ki saath saath rahenge aur aaj se hee saath saath ghar Dhoondhenge. Shaam ko us'ne mujhe hostel ke ap'ne kamare par aane ko kahaa. Wahaan se donon ek saath ghar Dhoondh'ne jaayenge aisa hamaara vichaar thaa. Saara din main us'ke vichaar men khoya rahaa. Sach to yah hai ki aaj kal meree jawaanee poore josh men thee aur mera is buree tarah se khaDa hota tha ki roj raat aur dopahar men bhee college ke bath room men ja'kar do teen baar hastamaithun kiye bina man naheen maan'ta thaa. LaDakiyaan ya auraten mujhe achchhee to lag'tee thee par aaj kal gaThe hue shareer ke chik'ne jawaan mard bhee mujhe aakarShit kar'ne lage the. Aur yah aakarShaN bahut teevr thaa. Khaas kar tab se jab se maine gay sex kee kuchh sachitr kitaaben dekh lee thee. Sach to yah hai ki mujhe ahasaas hone laga tha ki main baaiseksual hoon.
Pichhale saal bhar se mooTh maarate hue main aksar yahee kal'pana kar'ta tha ki koee jawaan meree gaanD maar raha hai ya main kisee ka lunD choos raha hoon. Ya fir maa kee umr kee kisee adheD bhare poore badan kee mahila kee gaanD maar raha hoon. Mujhe ab aisa lag'ne laga tha ki aurat ho ya mard, jo bhee ho par jaldee kisee ke saath meree kaamaleela shuroo ho. Mujhe yahaan naye shahar men sambhog ke liye koee naaree milan to mushkil lag raha thaa, mere jaise sharmeele laD'ke ke liye to yah kareeb kareeb asambhav thaa. is'liye aaj Pritam ko dekh'kar main kaafee bechain thaa. Agar ham saath rahe to yah gaTheela naujawaan mere kareeb hogaa, jaroor kuchh chakkar chal jaayegaa, is'kee mujhe pooree aasha thee! Par mujhe yah pakka pata naheen tha ki wah mere baare men kya soch'ta hai. Khud pahal kar'ne ka saahas mujh'men naheen thaa.
Us shaam itanee baarish huee ki main bilakul bheeg gayaa. Main jab Pritam ke kamare men pahuncha to sirf jaanghiya aur baniyaan pah'ne hue wah kamare men rubber kee hawaayee chappal pahan'kar ghoom raha thaa. Mujhe dekh us'ke chehare par ek khushee kee lahar dauD gayee. Mujhe kamare men lete hue bola
Aa gaya Sukumar, mujhe laga tha ki baarish hai to too shaayad naheen aayegaa. iseeliye main taiyaar bhee naheen huaa. Too baiTh, main kapaDe pahan'ta hoon aur fir chalate hain. Mere bheege kapaDe dekh kar wah bolaa.
Yaar, too sab kapaDe utaar ke mujhe de de, yah tauliya lapeT kar baiTh jaa, tab tak main press se ye sukha deta hoon. Naheen to sardee lag jaayegee tujhe, waise bhee too naajuk tabiyat ka lag raha hai. Maine sab kapaDe utaare aur tauliya lapeT'kar kursee men baiTh gayaa. Yah upanyaas aap yahoo groups; deshiromance men padh rahe hain. Mere kapaDe utaar'ne par mujhe dekh kar wah majaak men bolaa.
Sukumar, too to baDa chikana nikala yaar, laDakiyon ke kapaDe pahan le aur baal baDhaa le to ek khoobasoorat laD'kee lagegaa. Wah press on kar'ke kapaDe sukha'ne laga aur mujhase baaten kar'ne lagaa. Baar baar us'kee najar mere adhanange jism par se ghoom rahee thee. Main bhee Tak laga kar us'ke kase hue shareer ko dekh raha thaa. Man men ek ajeeb aakarShaN ka bhaav thaa. Ham donon men jameen aasamaan ka antar tha aur lag'ta hai ki yahee antar h'men ek doosare kee or aakarShit kar raha thaa. http://groups.yahoo.com/group/deshiromance
Mere chharahare chik'ne gore dubale patale pachapan kilo aur saaDhe paanch fuT ke shareer ke mukaabale men usaka gaTha hua puShT shareer kareeb pachahattar kilo vajan ka hogaa. Mujhase wah kareeb chaar paanch inch ooncha bhee thaa. Bharee huee puShT chha'tee ka aakaar aur chuchukon ka ubhaar baniyaan men se dikh raha thaa. Chha'tee meree hee tarah ekadam chikanee thee, koee baal naheen the.
Main soch'ne laga ki aakhir kyon us'ke chuchuk it'ne ubhare hue dikh rahe hain. Fir mujhe dhyaan aaya ki auraton kee tarah hee kayee mardon ke bhee chuchuk uttejit hone par khaDe ho jaate hain. Maine samajh liya ki shaayad mujhe dekh'kar usaka yah haal hua ho. Mera bhee haal bura tha aur mera lunD us'ke ardhanagn shareer ko paas se dekh'kar khaDa hona shuroo ho gaya thaa.
Mera dhyaan ab us'kee maasal jaanghon aur baDe baDe chootaDon par gayaa. Usaka jaanghiya itana fiT baiTha tha ki chootaDon ke beech kee laain saaf dikh rahee thee. Jab bhee wah ghoom'ta to meree najar us'ke jaanghiye men chhupe hue lunD par paD'tee. KapaDe ke neeche se sikuDe aur shaayad aadhe khaDe aakaar men hee usaka ubhaar itana baDa tha ki jab maine yah andaaja lagaana shuroo liya ki khaDa hokar yah kaisa dikhega to main aur uttejit ho uThaa.
Meree najar baar baar us'kee chappalon par bhee ja rahee thee. Mera shuroo se hee chappalon kee or bahut aakarShaN raha hai. Khaas kar'ke rubber kee hawaayee chappalen mujhe deewaana kar detee hain. Mere paas bhee meree puraanee chappalon ke chhah joDe hain. Unhen hamesha dho kar saaf rakh'ta hoon kyonki roj ke hastamaithun men chappalon ka mere liye baDa mahatw hai. MooTh maarate samay main pahale unase khel'ta hoon, choom'ta hoon, chaaT'ta hoon aur fir munh men lekar chabaate hue jhaD jaata hoon. Yahee kal'pana kar'ta hoon ki we chappalen kisee matawaalee naaree ya jawaan mard kee hain. Kabhee yah kal'pana kar'ta hoon ki koee jawaan mujhe rep kar raha hai aur mujhe cheekh'ne se rok'ne ke liye mere munh men apanee chappal Thoons dee hai.
Pritam kee safed rubber kee chappalen bhee ekadam saaf sutharee aur dhulee huee thee. Pahan pahan kar ghis kar bilakul mulaayam aur chikanee ho gayee thee. Jab Pritam chal'ta to we chappalen sapaak sapaak kee aawaaj kar'ke us'ke pairon se Takaraateen. Unhen dekh'kar mera lunD aur khaDa ho gayaa. Main soch'ne laga ki kaash ye khoobasoorat chappalen mujhe mil jaayen!
Ab tak kapaDe sookh gaye the aur Pritam ne mujhe pahan'ne ke liye we waapas diye. Mujhe us'ne ap'ne shareer aur chappalon kee or ghoorate dekh liya tha par kuchh bola naheen, sirf muskara diyaa. Main kursee par se uTh'ne ko ghabara raha tha ki use tauliya men se mera tan kar khaDa lunD na dikh jaaye. Us'ne shaayad meree sharam bhaamp lee kyonki wah khud bhee muD kar meree or peeTh kar'ke khaDa ho gaya aur kapaDe pahan'ne lagaa.
Ham log baahar nikale. Ab ham aise gappen maar rahe the jaise pura'ne dost hon. Us'ne bataaya ki pichhale hafte us'ne ek ghar dekha tha jo use bahut pasand aaya tha par ek aadamee ke liye baDa thaa. Wah mujhe fir waheen le gayaa. FlaiT baDa achchha thaa. Ek bed room, baDa baiTh'ne ka kamaraa, ek kitchen aur baDa bath room. Ghar men sab kuchh thaa, farnichar, bartan, gais, h'men sirf ap'ne kapaDe lekar aane kee jaroorat thee. Kiraaya kuchh jyaada tha par Pritam ne meree peeTh par pyaar se ek chapat maar kar kaha ki ghar main pasand kar loon, fir jyaada hissa wah de degaa. Kal se hee aane ka pakka kar ke ham chal paDe.
Ham donon khush the. Mujhe lag'ta hai ki ham donon ko ab tak man men yah maaloom ho gaya tha ki ek saath rah'ne par kal se ham ek doosare ke saath kya kya karenge. Pritam mera haath pakaD'kar bolaa.
Chal yaar ek picture dekhate hain. Maine haamee bhar dee kyonki Pritam se alag hone ka mera man naheen ho raha thaa. Pritam ne picture aisa chuna ki jab ham andar ja'kar baiThe to sinema hall ekadam khaalee thaa. Maine jab usase kaha ki picture bekaar hogee to wah hans'ne lagaa.
BaDa bhola hai too yaar, yahaan kaun picture dekh'ne aaya hai? Jara tere saath akele men baiTh'ne ko to milegaa. Us'kee aawaaj men chhupee shaitaanayee aur maadak'ta se mera dil dhaDak'ne laga aur main baDee besabree se andhera hone ka intajaar kar'ne lagaa.
Picture shuroo huee aur saaree battiyaan bujha dee gayeen. Ham donon peechhe Dres sarkal men baiThe the. Door door tak aur koee naheen thaa, kone men ek do premee yugal alag baiThe the. Sirf hameen donon laD'ke the. Mere man men khyaal aaya ki asal men un yugalon men aur ham'men koee farak naheen hai. Ham bhee shaayad wahee karenge jo we kar'ne aaye hain. Mera to bahut mooD tha par abhee bhee main pahal kar'ne men Dar raha thaa. Maine aakhir yah Pritam par chhoD diya aur dekh'ne laga ki us'ke man men kya hai. Mera andaaja sahee nikalaa. Andhera hote hee Pritam ne baDe prem se apana ek haath uTha'kar mere kandhon par baDe yaaraana andaaj men rakh diyaa. Fusafusa kar halkee aawaaj men mere kaan men wah bolaa.
Yaar Sukumar, kuchh bhee kah, too baDa chikana chhokara hai dost, bahut kam laDakiyaan bhee itanee pyaaree hotee hain. Maine bhee apana haath dheere se us'kee jaangh par rakhate hue kahaa.
Yaar Pritam, too bhee to baDa mast tagaDa aur majaboot jawaan hai. LaDakiyaan to tujh par khoob mar'tee hongeen? Usaka haath ab neeche khisak'kar mere chehare ko sahala raha thaa. Mere kaan aur gaal ko baDe pyaar se apanee ungaliyon se dheere dheere gudagudee kar'ta hua wah apana sir bilakul mere sir ke paas la kar bola
Mujhe farak naheen paDataa, waise bhee chhokariyon men meree jyaada dilachaspee naheen hai. Mujhe to bas tere jaisa ekaadh chikana dost mil jaaye to mujhe aur kuchh naheen chaahiye. Aur us'ne jhuk kar baDe pyaar se mera gaal choom liyaa.
Mujhe bahut achchha lagaa, bilakul aise jaise kisee laD'kee ko lag'ta hoga agar usaka premee use choone. Mera lunD ab tak pooree tarah khaDa ho chuka thaa. Maine apana haath ab saahas kar'ke baDhaaaya aur us'kee paint par rakh diyaa. Haath men maano ek baDa tamboo aa gayaa. Aisa lag'ta tha ki paint ke andar usaka lunD naheen, koee baDa moosal ho. Us'ke aakaar se hee main chakara gayaa. itana baDa land! Ab tak ham donon ke sabr ka baandh TooT chuka thaa. Pritam ne apana haath meree chha'tee par rakha aur mere chuchuk sharT ke upar se hee dabaate hue mujhe bolaa.Chal bahut naaTak ho gayaa, ab na taDapa yaar, ek chumma de jaldee se. Maine apana munh aage kar diya aur Pritam ne apana doosara haath mere gale men Daal kar mujhe paas kheench'kar ap'ne honth mere honthon par rakh diye. Hamaara yah pahala chumban baDa maadak thaa. Us'ke honth thoDe khuradare the aur us'kee chhoTee moonchhon se mere ooparee honth par baDee pyaaree gudagudee ho rahee thee. Us'kee jeebh halke halke mere honth chaaT rahee thee. Us'ke munh se halkee halkee aafTar shev kee khushaboo aa rahee thee. Mera man ho raha tha ki us'ke munh men jeebh Daal doon ya us'kee jeebh choos loon, kisee bhee tarah us'ke mukharas ka swaad loon, par ab bhee thoDa sharama raha thaa.
Ham ek doosare ko betahaasha choonate hue ap'ne ap'ne haathon se ek doosare ke lunD TaTol rahe the. Hamaaree choonaachaaTee ab h'men itanee uttejit kar uThee thee ki mujhe laga ki waheen usaka lunD choos loon. Par jab hamaare aas paas achaanak hotee halachal se ye samaa TooTa to ham'ne chumban toD kar idhar udhar dekhaa. Pata chala ki kaafee darshak hall men aana shuroo ho gaye the. We sab hamaare aas paas baiTh'ne lage the. Dheere dheere kaafee bheeD ho gayee. H'men majabooran apana premaalaap band karana paDaa. Ap'ne uchhalate lunD par maine kisee tarah kaaboo kiyaa. Pritam bhee khisak'kar baiTh gaya aur vaasana thoDee dab'ne par bolaa.
Chal yaar, chalate hain, yahaan baiTh'kar ab koee faayada naheen. Saalee bheeD ne a'kar apanee 'ke el Dee' kar dee Maine poochha ki 'ke el Dee' ka matalab kya hai to hans kar bolaa.
Yaar, isaka matalab hai - khaDe lunD par dhokhaa. Ham baahar nikal aaye. Ek doosare kee or dekh'kar pyaar se hanse aur haath men haath liye chal'ne lage. Pritam ne kaha
Achchha hua yaar, asal men h'men apana pahala romaas aaraam se ap'ne ghar men maje le lekar karana chaahiye, aisa chhup kar jaldee men naheen. Chal, kal raat ko maja karenge. Maine chalate chalate dheere se poochha
Pritam, mere raajaa, yaar tera lunD lag'ta hai bahut baDa hai, kitana lamba hai? Wah hans'ne lagaa.
kramashah................
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ , मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ .. मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,, बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ आपका दोस्त राज शर्मा (¨`·.·´¨) Always `·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving & (¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling ! `·.¸.·´ -- raj
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