Friday, January 2, 2015

FUN-MAZA-MASTI बीवी का मायका-12

FUN-MAZA-MASTI

 बीवी का मायका-12


 जब नींद खुली तो ललित मुझे पीछे से चिपका हुआ था. गहरी नींद में था पर उसका एक पैर मेरे बदन पर था. लंड भी खड़ा था, और मेरी पीठ अर उसका दबाव महसूस हो रहा था. मेरा लंड भी टनटनाया हुआ था जैसा सुबह अधिकतर होता है. लीना के साथ जब होता हूं तो ऐसे में उसे चोद कर ही उठता हूं पर इस वक्त आठ बज गये थे, ऑफ़िस भी जाना था.

मैं तैयार हुआ और फिर जाते वक्त चाय बनाकर ललित को जगाया. लगता है कल के सेक्स से काफ़ी रिलैक्स होकर गहरी नींद आयी थी उसे. बेचारा उठ ही नहीं रहा था. आखिर जब उसके लंड को पकड़कर जोर से हिलाया तब उठा.

चाय पीते पीते मैंने अपना दिन का प्लान उसको बताया "ललित, अब फ़िर से ललिता बन जा. जल्दी. मैं नही हूं फ़िर भी घर में ललिता बनकर ही रहना, ठीक है ना? अपनी शर्त याद है ना?"

उसने सिर हिलाया, मैंने आगे कहा "आज मैं हाफ़ डे की ट्राइ करता हूं. तुम तैयार रहना, घूमने चलेंगे. क्या पहनोगे?"

ललित थोड़ा घबराकर बोला "बाहर जाना है घूमने, वो भी दिन में? फ़िर मैं शर्ट पैंट ही पहनता हूं जीजाजी"

"नथिंग डूइंग, अपनी शर्त लगी है तो लगी है. साड़ी में तू बहुत अच्छा लगता है, आज साड़ी पहन"

"पर मुझे साड़ी पहनना नहीं आता जीजाजी. उस दिन तो मीनल भाभी ने पहना दी थी"

"चलो, ठीक है, फिर तू लीना की कोई जीन्स और टॉप ही पहन ले. हां, हाइ हील सैंडल भी पहनना पड़ेगी"

"मुझे चलने में तकलीफ़ होगी जीजाजी, अब घूमना है तो ... " ललित सकुचाकर बोला.

"तकलीफ़ होगी तो सहन करो उसे. शर्त शर्त है. दिन में प्रैक्टिस कर लेना. और वैसे भी अधिकतर कार से ही जायेंगे, इतना नहीं चलना पड़ेगा"

दोपहर को मैं जब वापस आया तो ललित एकदम मीठी कटारी बना था. किसी मॉडर्न कॉलेज गोइंग दुबली पतली लड़की जैसा मोहक लग रहा था. और उसने लीना की सफ़ेद हाई हील पहनी हुई थी. जब चलता तो थोड़ा संभल संभल कर, पर उस सधी चाल में भी वह सेक्सी लगता था जैसे वो रैंप पर मॉडल्स चलती हैं. मैंने मन ही मन कहा कि ललिता रानी, तुम्हारा रूप इसी लायक है कि अभी तुम्हें बेडरूम में ले जाऊं और कस के - हचक हचक के - पटक पटक के चोद मारूं पर तुमको वायदा किया है तो अभी तो बंबई घुमाऊंगा, वापस आकर आगे की देखूंगा.

मैंने उसे काफ़ी जगहों पर ले गया. गेटवे, नरिमन पॉइन्ट, मरीन ड्राइव. आखिर में अंधेरा होने पर हम मलाबार हिल गये. उसे ज्यादा चलना नहीं पड़ा था, हां जब चलता तो बीच में थोड़ा बैलेंस जाता था. लीना की वो हाई हील पहनना आसान नहीं है. फ़िर भी बेचारे ने मेरे कहने पर पहनीं ये देखकर मुझे उसपर बड़ा प्यार सा आ रहा था. मैं बीच बीच में उसका हाथ पकड़ लेता जब ऐसा लगता कि चलने में तकलीफ़ हो रही है. एक दो बार तो मैंने कमर में हाथ डालकर सहारा दिया. आजू बाजू के लोगों को कोई परवाह नहीं थी, बंबई के लिये ये आम बात थी. हां कुछ मनचले बड़ी आशिकी नजर से ललित की ओर देख लेते थे, फ़िर मुझे देखते जैसे मन ही मन कह रहे हों कि बड़ा लकी है यार जो ऐसी गर्ल फ़्रेंड मिली है.

फ़िर हम गार्डन के एक कोने में कुछ देर बैठे. मैंने अचानक उसे पास खींच कर किस कर लिया. आस पास एक दो जोड़े और थे, वे भी बस यही सब कर रहे थे. ललित कुछ बोल नहीं, बस बदन सिकोड कर चुपचाप बैठा रहा.

मैंने पूछा "अच्छा नहीं लगा डार्लिंग मेरा किस करना? अब सच में तू बहुत सुंदर लग रही है ललिता डार्लिंग"

"बहुत अच्छा लगा जीजाजी, और आप के साथ ऐसे लड़की बनकर हाई हील पहनकर ... लचक लचक लचक कर चलने में ... भी मजा आया. जीजाजी ... मैं गे हूं क्या?"

बेचारा जरा कन्फ़्यूज़्ड लग रहा था. मैंने दिलासा दिया "अरे इस तरह से क्यों सोचता है? अगर हो भी तो कोई गुनाह थोड़े है. पर मेरी ठीक से सुन, परेशान न हो, तू गे नहीं है, पूरा गे होता तो ऐसे अपनी मां, दीदी को मस्ती में चोदता? हां बाइसेक्सुअल जरूर है. तेरे साथ दो दिन बिता कर मुझे भी लगा है कि शायद मैं भी हूं थोड़ा बहुत, शायद सभी मर्द और औरत थोड़े बहुत बाइसेक्सुअल होते हैं, तू जरा ज्यादा है, और ऊपर से तुझे क्रॉसड्रेसिंग करना भी अच्छा लगता है, बस इतनी सी बात है.

मेरी बात से उसे थोड़ा दिलासा मिला क्योंकि जब हम वापस आये तो उसका चेहरा काफ़ी प्रसन्न था, टेन्शन खतम हो गया था.

हम खाना खाकर ही घर वापस लौटे. ललित ने बड़े सलीके से होटल में बिहेव किया. बैठना, उठना, खाना - कहीं ऐसा नहीं लगा कि वह लड़की के भेस में लड़का है. वापस आते समय मैंने सोसायटी के गेट पर कार रोकी और ललित को कहा कि जाकर कुछ फल वगैरह ले आये. उसे लड़की बनके कॉन्फ़िडेन्ट्ली अकेले घूमने का मौका मैं देना चाहता था.

वापस आने के दस मिनिट बाद बेल बजी. ललित अंदर आया. खुश नजर आ रहा था. कोई परेशानी नहीं हुई थी. बस एक घटना हुई थी जिसे वह समझ नहीं पाया था. "जीजाजी, मैं वापस आ रहा था तो मेन रोड के उस ओर एक औरत खड़ी होकर मेरी ओर देख रही थी. मुझे देखकर हंसी और कुछ इशारा किया, मैं समझा नहीं, इसलिये बस मुस्करा दिया और खिसक लिया."

मैं सोचने लगा कि कौन होगी. "यार अपनी सोसायटी की तो नहीं होगी. नहीं तो रोड के उस पार से इशारे करने का मतलब ही नहीं है. दिखने में कैसी थी? याने अच्छी अपने नेबर्स जैसी थी या नौकरानी वगैरह थी?"

"यहां रहने वाली तो नहीं लग रही थी. उसे देखकर मुझे थोड़ा राधाबाई की याद आयी, वैसे वो औरत राधाबाई से कम उमर की थी"

मेरे दिमाग में अचानक बिजली कौंधी "साड़ी पहने थी?"

"हां जीजाजी, हाथ में खूब सारी चूड़ियां थीं, शायद बड़ी बिन्दी भी लगायी थी. थोड़ी भरे भरे खाते पीते बदन की थी. चेहरा ठीक से नहीं दिखा. कौन थी?"

मैं अपने माथे पर हाथ मारने वाला था पर किसी तरह खुद को रोका, बेचारे ललित को टेंशन हो जाता. इसलिये मैंने उसे कहा "क्या पता! तू मत चिन्ता कर. कोई कल आयेगा तो मैं देख लूंगा. तू जाकर फ़्रेश हो, मैं भी नहा लेता हूं"

जाते जाते ललित ने मुड़ कर बड़ी नजाकत से बिलकुल लड़की के अंदाज में पूछा "जीजू डार्लिंग, आप भी आ जाओ ना नहाने मेरे साथ! मुझे पता है कि आप लीना दीदी के साथ हमेशा बाथ लेते हैं "

मैंने उसे पीछे से पकड़कर कहा "चुदवाना पड़ेगा नहाते वक्त. आऊं?"

ललित मेरी ओर देखने लगा. मैंने जरा छेड़ा "लीना दीदी ने ये नहीं बताया कि नहाते वक्त उसको खड़े खड़े शॉवर के नीचे जब तक चोद नहीं लेता तब तक हमारा नहाना खतम नहीं होता"

थोड़ा संभल कर ललित बोला "पर जीजू ... "

"डर मत मेरी जान, इसीलिये तेरे साथ नहाना बाद में होगा ... अभी तू जा और नहा ले, मुझे कुछ काम है"

ललित के जाने के बाद मैंने लीना को फोन लगाया. आने के बाद उससे बात ही नहीं हुई थी. उसने भी फोन नहीं किया था. वैसे कोई अचरज की बात नहीं थी, तीनों गरम गरम नारियों में - मां, बेटी और बहू - अकेले में जम के इश्क चल रहा होगा - ये तय था.


 लीना को फोन लगाया. पहले पांच मिनिट डांट फटकार और ताने सुने कि कैसे मैं उसको भूल गया, इतना भी वक्त नहीं है जनाब को कि पांच मिनिट फोन कर लेते. फ़िर दस मिनिट उसने बड़े इन्टरेस्ट से ललित के कारनामे सुने कि कैसे वह अब तक लड़की जैसा ही रह रहा है, घर में भी ब्रा पैंटी पहनता है, कैसे मेरे साथ पूरा दिन लड़की के भेस में हाई हील पहनकर घूमा इत्यादि इत्यादि.

"असल बात तो बताओ. बस जीजा साले की तरह रह रहे हो कि कुछ साली और जीजा जैसा भी हुआ है? तुमने उसे परेशान तो नहीं किया अकेले में? "

"अरे ललित एकदम खुश है. कल मेरे साथ सोया भी था हमारे बेड में"

"सिर्फ़ सोया? " लीना ने पूछा.

"अब मिलने पर बताऊंगा रानी, जरा सस्पेंस तो रहने दो, अगर जीजा साली का चक्कर चल सकता है तो जीजा साले का क्यों नहीं? वैसे तुम्हारे छोटे भाई को बिलकुल फूल - या कली जैसा संभाल कर रख रहा हूं."

"हां वैसे ही रहो. जबरदस्ती मत करना मेरे नाजुक भैया के साथ. तुम्हारा कोई ठिकाना नहीं, तुम्हारा एक बार खड़ा हो जाये तो तुमको जरा होश नहीं रहता ... फ़िर उस बेचारे को अकेले में ... उसपर सांड जैसे चढ़ मत जाना"

"अरे डार्लिंग - सारी दुनिया एक तरफ़ और जोरू का भाई एक तरफ़ - और वो तो साले से ज्यादा मेरी प्यारी नाजुक साली है. अब जरा मेरी सुनो, जरा सीरियस बात है. आज शांताबाई ने लगता है ललित को देख लिया दूर से. वैसे वो तुम्हारी ड्रेस में था और दूर से उसने उसे लीना समझ लिया होगा - यही बात मेरे को जरा खटक रही है. अब देखना, वो कल पक्का आकर बेल बजायेगी यह समझ कर कि तुम वापस आ गयी हो"

लीना हंसने लगी "अरे वा... मुझे नहीं लगा था कि ललित इतने अच्छे तरीके से मेरी ड्रेसेज़ पहनने लगेगा, जो शांताबाई भी दूर से धोखा खा जाये. पर इसमें परेशानी की क्या बात है? आती है तो आने दो. तुम्हारा उपवास भी खतम हो जायेगा" अब ये उपवास से ऐसा न समझें कि वह पेट वाले उपवास की बात कर रही थी. वैसे शांताबाई खाना भी बहुत अच्छा बनाती है.

"मुझे ये उपवास मेरे प्यारे साले ... सॉरी साली के साथ ही छोड़ना है. अब तो कहीं जरा घुला मिला है मुझसे, इश्क विश्क भी करने लगा है, अब जब असली बात के करीब आ गये हैं तो ये शांताबाई आ टपकी. बेवजह का लफ़ड़ा शुरू हो गया"

"कोई लफ़ड़ा नहीं होगा. तुम शांताबाई को सब बता दो, तुमको मालूम है कि वो मेरे पर तुम्हारे ऊपर भी कितनी जान छिड़कती है, मदद ही करेगी तुम्हारी, जैसी उस दिन की थी" लीना का स्वर थोड़ा शैतानी भरा था.

"मुझे उनकी मदद नहीं चाहिये, जो करना है मैं खुद कर लूंगा. और ऐसी क्या मदद की थी शांताबाई ने?" मैंने पूछा.

"भूल गये? उस दिन दोपहर को ... तुम्हारा जम के मूड था पर मैं तैयार नहीं थी क्योंकि वेसेलीन खतम हो गयी थी ... नयी बोतल लाना भूल गये थे तुम"

मुझे याद आया. याद आने के साथ ही लंड में गुदगुदी होने लगी, तुरंत खड़ा होने लगा. मैंने दाद दी "याद आया रानी साहिबा, बस, यही ठीक रहेगा, शांताबाई जिंदाबाद."

"और देखो, मुझे एक दो दिन और देरी हो सकती है आने में. अब मां नहीं आने देगी जल्दी. इसलिये ललित को भी बता देना कि वो भी वापस आने की जल्दी ना करे. वैसे भी उसके कॉलेज की छुट्टी एक हफ़्ते के लिये बढ़ गयी है. चलो, शांताबाई आ गयी ये सुन कर मुझे दिलासा मिला. कल वो रहेगी तो तुम पर कंट्रोल रहेगा. नहीं तो तुम ललित की हालत कर देते"

"इतना क्यों बदनाम कर रही हो डार्लिंग? ललित को एकदम लाड़ प्यार से संभाल रहा हूं मैं. कल सोते वक्त तो ’आइ लव यू जीजाजी’ भी बोला.

"अरे वाह. याने तुमपर अच्छा खासा मरने लगा है ललित. चलो अच्छा है, साले और जीजा के मधुर संबंध हों तो और क्या चाहिये. अब कितने मधुर ये तो उन दोनों पर ही छोड़ देना चाहिये है ना" कहकर लीना हंसने लगी. फ़िर बोली "और अब शांताबाई आ ही रही है तो दोनों काम रोज करने दो अब उसको"

"दोनों काम याने?"

"अब भोले मत बनो. घर का काम और वो ... दूसरा वाला काम. समझे?"

"समझ गया मेरी मां. वैसे काम करने में शांताबाई होशियार है. देखें ललित को उनका काम कितना अच्छा लगता है. वैसे तुम बताओ, हमारी सासू मां कैसी हैं? और भाभी जी? उन्होंने जो मुंह मीठा कराया था निकलते वक्त, उसका स्वाद अब भी मुंह में है"

"मां बहुत खुश है, एकदम मस्ती में है, हां जरा परेशान है बेचारी" लीना बोली

"क्यों डार्लिंग?"

"हम दोनों मिलकर जो उसके पीछे लगे हैं कल से. असल में बाजी जरा पलट गयी है. मां ने मीनल भाभी के साथ प्लान बनाया था कि जब लीना आयेगी और हमारे साथ अकेली रहेगी तो उसके साथ ऐसा करेंगे, वैसे करेंगे. पर मीनल भाभी गद्दारी कर बैठी. भाभी को सीधा करना मेरे को आता है. उसके बाद हम दोनों मिलकर मां पर टूट पड़े हैं. मीनल भाभी को भी मौका मिला है अपनी सास के साथ जो मन चाहे करने का. अकेले में तो शायद करने की हिम्मत नहीं होती. कल से मां बेचारी को बेडरूम में ही कैद रखा है, निकलने ही नहीं दिया. उसको बचाने को अब राधाबाई भी नहीं है, गांव गयी है."

"अरे अरे ... ऐसा मत करो ... कैसी दुष्ट हो ... वो भी मां के साथ ..."

"हां हां रहने दो अपनी सिम्पैथी, तुम होते तो ऐसा ही करते ... सच अनिल ... मां का इतना मीठा रस निकाला है हम दोनों ने मिलके ... और अपना रस निकलवाने में उसे भी मजा आता है ... वैसे मां तुमको भी याद करती है ... दिल जीत लिया है तुमने उसका"

दो तीन मिनिट और नोक झोंक करके मैंने फोन रख दिया. लीना से बात करके हमेशा अच्छा लगता है मुझे.

इसके बाद मैंने थोड़ी वर्जिश की, उठक बैठक लगाईं. वैसे मैं सोसायटीके जिम में जाता हूं रोज पर अभी जरा अज्ञातवास चल रहा था इसलिये अवॉइड कर रहा था. व्यायाम करने के बाद मैं नहाया. बदन पोछकर वैसे ही बाहर आ गया, बिना कपड़े पहने. पहले सोचा देखूं ललित तैयार हुआ या नहीं, फ़िर सोचा इस तरह से उसके पीछे लगना ठीक नहीं है. ईमेल देखने बैठ गया और काम में जुट गया.

जब दो बाहें मेरे गले में पीछे से पड़ीं तब मैंने लैपटॉप से ऊपर देखा. क्षण भर लगा लीना ही है, वो हमेशा बड़े प्यार से ऐसे ही पीछे से मेरी गर्दन में बाहें डालती है. पर ललित था, या ये कहना ज्यादा ठीक होगा कि ललिता थी. अब वहां जो लड़की खड़ी थी उसमें से जैसे ललित का नामोनिशान गुम हो गया था. बदन से भीनी भीनी खुशबू आ रही थी, काली ब्रा और पैंटी में बला की हसीन लग रही थी. मैंने उसे गोद में खींच लिया. देखा तो पैरों में लीना की सिल्वर कलर वाली चार इंची हाई हील थी. याने मुझपर डोरे डालने की पूरी तैयारी करके आई थी ललिता -- या ललित? मैंने उसका धीरे से चुंबन लिया. आज उसने हल्की गुलाबी लिपस्टिक भी लगाई थी, स्ट्राबेरी के टेस्ट वाली. मैं उस स्ट्राबेरी को खाने में जुट गया. उस मीठी स्ट्राबेरी को - उन गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठों का स्वाद लेते लेते इस बार मेरे हाथ ललित के पूरे बदन पर घूम रहे थे. आज मैं उसके बदन को ठीक से जान लेना चाहता था. कभी उसकी पीठ सहलाता, उसकी ब्रा के स्ट्रैप को खींचता और ट्रेस करता, कभी उसकी कमर हाथ से टटोलता, कभी उसकी छरहरी जांघों की पुष्टता को महसूस करता और कभी उसके नितंबों को पकड़कर दबाता. और अब आखिर में एक हाथ मैंने उसकी पैंटी में डालकर उन मुलायम नितंबों को दबा कर, मसलकर, रगड़कर उनकी नरमी और चिकनाई को पूरा महसूस किया.

उस रात भी मैंने ललिता को नहीं चोदा. याने नहीं चोदना चाहता था ऐसी बात नहीं है, उन खूबसूरत नितंबों के बीच अपना सोंटा गाड़ने को मैं मरा जा रहा था पर जैसे मैं और ललित में टेलीपैथी से ऐसे जुड़ गये थे कि एक दूसरे के मन की बातें बिनकहे समझ रहे थे. ललित ने मेरी तीव्र वासना को पहचान लिया था. मुझे भी यह समझ में आ रहा था कि इस समय ललित पूरा लड़की के माइन्डसेट में आ चुका था और मेरे आगे पूरा समर्पण करना चाहता था, मुझसे हर तरह का सेक्स करना चाहता था पर अब भी मेरी तना हुआ मूसल अपनी गांड में लेने से डर रहा था.

इसलिये वह रात थी बड़ी मादक पर उसमें चुदाई नहीं हुई. आधे घंटे की बेहिसाब चूमाचाटी के बाद जब मैं और रुकने की हालत में नहीं था, तब ललित ने मुझे कुरसी में बिठा कर मेरे सामने नीचे बैठ कर मुझे वह ब्लो जॉब दिया जैसा शायद लीना ने भी कम ही दिया होगा. बहुत देर तक मेरे लंड को कर तरह से चूस कर आखिर जब मुझे झड़ाया तो मुझे ऐसा लगा कि मेरी वासना की शांति के साथ साथ मेरी जान भी निकल गयी हो. इस बार पूरा वीर्य उसने आंखें बंद करके चाव से निगला और बाद में भी निचोड़ता रहा.

इस सुख के बदले में मैंने जब उसे वही सुख देने को पास खींचा तो वह अलग हो गया, जबकि उसका लंड इतना कस के खड़ा था कि पैंटी के अंदर सीधा उसके पेट से सट गया था. मैंने उसके कान में प्यार से कहा "घबराओ मत ललिता डार्लिंग, तुम्हें आज मैं नहीं चोदूंगा. असल में तुम्हारे इस मुलायम बदन में अपना लंड घुसेड़ने को मैं मरा जा रहा हूं, कोई भी कीमत दे सकता हूं फ़िर भी आज नहीं चोदूंगा क्योंकि मुझे इस बात का एहसास है कि तुम अभी तैयार नहीं हो. पर मेरी जान, अब अपने आप को तैयार कर लो, किसी भी हालत में कल तो तुमको मुझसे चुदाना ही होगा. पर आज तुमको मैं इस मस्ताई हालत में सूखा सूखा छोड़ दूं तो पाप लगेगा, अब तू बैठ और मैं तेरे को प्यार करता हूं"

ललित नजर झुका कर बोला "जीजाजी ... आज रहने दीजिये, मुझे ऐसा ही चलेगा. मस्ती कल के लिये संभाल कर रखता - रखती हूं, ये ऐसी हालत रहेगी तो कल आपसे चुदाने में आसानी होगी"

मैं समझ गया. बेचारा अपने लंड की मस्ती ऐसे ही बचा कर रखना चाहता था, याने इस मस्ती में मेरे लंड को अपनी गांड में लेने में उसको आसानी होगी ऐसा उसको लग रहा था. बात सच थी, मैंने उसे चूमा और कहा "ठीक है ललिता रानी, जो तुम कहो वैसा ही होगा. अब फ़िर ऐसा करो, कि आज वहां लीना के कमरे में सो जाओ, मैं अपने बेडरूम में सोता हूं. और देखो, सो जाना, इसको ..." उसके लंड को पैंटी के ऊपर से दबाकर मैं बोला "हाथ भी मत लगाना"

"ठीक है जीजाजी" ललित बोला.

"नींद आयेगी?"

ललित जरा शर्मिंदगी में मुस्करा दिया, उसका लंड जिस हालत में था उसमें सोना असंभव था. मैंने कहा "चल, स्लीपिंग पिल देता हूं, सिर्फ़ आज के लिये, कल से इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी, नींद नहीं आयेगी तो रात भर चुदाई किया करेंगे"

रात को मुझे भी स्लीपिंग पिल लेना पड़ी क्योंकि के ने दो बार मुझे चूसने के बावजूद मेरा फिर खड़ा हो गया था. अब कल का इंतजार था, और कल की उस मादक घड़ी के पहले शांताबाई आकर क्या गुल खिलायेगी, आयेगी भी या नहीं, इसका भी मुझे अंदाजा नहीं था.










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