Sunday, January 18, 2015

FUN-MAZA-MASTI अनजाने रिश्ते--2

FUN-MAZA-MASTI

 अनजाने रिश्ते--2


 मेरी नौकरी एक बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी में थी , जाहिर था वर्किंग अवर्स इधर उधर होते थे. घर पर कोई नहीं था , बूढ़ी माँ भाई और उसके परिवार के साथ दिल्ली में रहतीं थी और मैं यहाँ नौकरी के वास्ते पुणे में रहता था.
सामने रहने वाले राजन बेंद्रे एक मल्टी नॅशनल बॅंक के आई टी डिपार्टमेंट में एवीपी था और खूब कमाता था इसी वजह से वह खुद को दूसरों से उँचा समझता , बिल्डिंग में रहने वाले ज़्यादातर लोग रिटाइर्ड बॅंक के एंप्लायीस थे और

सीधे साधे थे .
उनमें सबसे उँची हैसियत बेंद्रे की ही थी इसलिए लोगों से ऐंठा रहता. लोग बाग उसकी अमीरी से काफ़ी जलते और पीठ पीछे खूब गालियाँ देते.

उसकी बीवी शिखा बेंद्रे जितनी खूबसूरत दिखती थी उतनी ही खूबसूरत और उम्दा लड़की थी , हमेशा बिल्डिंग के लोगों की मदद में आगे रहती थी , बिल्डिंग में कई घरेलू फंक्षन्स में लोगों के यहाँ उसका आना जाना होता . हालाँकि

वह राजन जितनी पढ़ी लिखी तो न थी लेकिन संस्कृत में उसने एम ए किया था और अब वह पीएचडी करना चाहती थी , लेकिन राजन को उसका आगे पढ़ना या नौकरी करना सख़्त नापसंद था. अपना खाली वक्त काटने वह बिल्डिंग

के क्लब हाउस में वीकेंड को बड़ों को योगा सिखाती और छोटों संस्कृत श्लोक , लेकिन उसके पति राजन को यह भी पसंद नहीं था.

एक दिन शनिवार की शाम को ऑफीस से घर आते वक्त मैं पीने का सामान ले आया , दोस्तों के साथ पीने का प्रोग्राम था .
तो मैं जल्दी घर आ कर तैयारियाँ करने लगा . फ्रिज खोला तो पता चला बर्फ जमाना भूल गया था , अब बाज़ार जाने की हिम्मत नहीं बची थी मैने सोचा , पड़ोसियों से पूछा जाए मैने बेंद्रे के घर की बेल बजाई और कुछ देर बाद

दरवाज़ा खुला , सामने देखा शिखा खड़ी थी , शायद अभी अभी नहा कर आई थी .

"ओह अमन जी आप? अंदर आइए न " उसने स्वागत करते हुए कहा और मुस्कुराइ
" जी नहीं ठीक है , मैं तो बस थोड़ी बर्फ माँगना चाहता था , घर पर मेहमान आने वाले हैं" मैने कहा
"जी आप कुछ मिनट बैठिए , मैं अपनी पूजा ख़त्म कर आपको बर्फ देती हूँ , तब तक आप बैठ कर टीवी देखिए' उसने समझते हुए कहा.
अब मरता क्या न करता , कुछ देर यहीं बैठ कर बोर होना था , सोचा बैठे बैठे इसी को देख कर अपनी आँखों की प्यास मिटाई जाए. मैं अंदर आ कर सोफे में बैठ गया और वह पूजा घर की तरफ चली गयी जो सोफे से दिखता था .

मैने देखा सामने शू रॅक के उपर फेंग शुई के बंबू ट्री रखा हुआ था उसी के बगल में एक फोटो फ्रेम रखी थी जिसमे राजन और शिखा की शादी की तस्वीर थी.
"ओह , इन गहनों को पहने और शादी के जोड़े में शिखा कितनी खूबसूरत दिख रही है , जैसे कोई अप्सरा हो"
मैने सोचा और इधर उधर देखा दीवारों पर सर्टिफिकेट फ्रेम टँगे हुए थे . जो शिखा ने कई कॉंपिटेशन में जीते थे.

"अच्छा तो शिखा इतनी ट्रडीशनल होते हुए भी टॅलेंटेड है" मैने मन ही मन सोचा
"शुभम करोती..." मुझे शिल्पा के श्लोक सुनाई दिये.
मेरा मन मे उसके लिये रेस्पेक्ट और भी बढ़ गयी , की इतनी अमीर होते हुए भी वह अपनी जड़ों को नहीं भूली. वहीं उसका बदतमीज़ पति जो किसी से सीधे मुंह बात भी नहीं करता. मैं यही सोच कर हैरान था की इतने में शिखा

आरती का थाल पकड़े मेरी ओर आई

"लीजिये अमन जी आरती लीजिये" और मुस्कुराई
मैने चुपचाप "आरती ली और अपने मुंह पर हाथ फेरे.
" माफ करियेगा लेकिन पूजा के कारण मैने आपको चायपानी तक नहीं पूछा" उसने माफी मांगते कहा
"जी वह सब रहने दीजिये , मुझे बस इस कंटेनर में बर्फ दे दीजिये , चाय पीने मैं फिर कभी आऔंगा" मैने कहा
"जी अभी लीजिये" वा कंटेनर ले कर अंदर गयी और बर्फ से भर कर उसे मुझे थमाया.
"कुछ मदद लगे तो बताईयेगा" वह हंस कर बोली
"जी जरूर" मैने उसको थॅंक्स कहा और अपने फ्लॅट चले आया.

अंदर पँहुचा तो पता चला दोस्*त लोगों को ऑफीस में काम आया.है इसलिये वो देर से आयेंगे , मैने सोचा शाम के वक़्त घर बैठ कर बोर होने से अच्छा है थोड़ा बाहर घूम लिया जाए



मैं फ्लॅट के बाहर निकला तो शिखा मेरी ओर पीठ कर ताला लगा रही थी.
उसने पंजाबी सूट पेहना हुआ था और उसकी लम्बी चोटी उसकी कमर के नीचे लटक रही थी , मैं उसकी खूबसूरती को देख ही

रहा था कि वह पीछे मुड़ी
"ओह अमन जी अच्छा हुआ जो आप बाहर आ गये , देखिये ना ये ताला जाम हो गया , प्लीज़ ताला लगने में मेरी मदद कीजिये"

वह बोली
"लाइये" मैं उसकी ओर बढ़ा "ताला चाभी मुझे दीजिये , मैं लगता हूँ टाला" कह कर मैने उसकी ओर हाथ बढ़ाया.
लेकिन उसने अपना हाथ खींच लिया "न.. नहीं आप मुझे यह टाला लगाना सिखाईये , राजन बाज़ार से नया ताला कल ही लाये हैं

अगर उन्हें पता चला कि मुझे यह ताला लगाना नहीं आता तो बहुत नाराज़ होंगे" उसने घबराए हुए कहा

"अरे छोडिये शिखा ज़ी , ताला लगने में कौन सी बड़ी बात है ? मैं आपको सिखाता हूँ आप ताला लगाइये"
"जी अच्छा"
वह मुड़ी और ताला लगने लगी , मैं उसके एकदम करीब जा कर पीछे खड़ा हो गया , उधर मेरा लंड भी उसकी फूली गांड़ को

देख कर बड़ा होने लगा हालांकि वह ताला लगने की अभी भी कोशिश कर रही थी.
मैने उसके करीब जा कर उसके बदन से उठति भीनी भीनी खुश्बू को महसूस किया ही था की उसने ताला लगा कर जोर से

झटका दिया और वह पीछे हटी.

उसके एकदम से पीछे हटने की वजह से उसके सिर से मेरी नाक टकरा गयी , और मैने उसके खुशबूदार काले घने बालों को

सूंघा , उसकी बम भी मेरे कड़क लॅंड से टकरा गयी,


"ओह अमन जी सॉरी आपको लगी तो नहीं?" उसने चिंतित हो कर पूछा
मैं अपनी नाक को सहला रहा था
"अपना हाथ हटाओ मुझे देखने दो" उसने मेरा हाथ हटते कहा
"अरे आपकी नाक से तो खून आ रहा है" उसने परेशान होते हुए कहा
"अरे ये मामूली चोट है मैं मुँह धो कर आता हूँ" मैने कहा
"नही.. नही आपको मेरी वजह से चोट लगी है, आइए में आपको डॉक्टर जोशी के पास ले चलती हूँ"
"अरे शिखा जी ये मामूली चोट है आप परेशन मत होइए"
"नही अमंजी आप इस चोट को इग्नोर ना करे , आपको मेरे साथ चलने में ऑक्वर्ड हो रहा है तो मैं डॉक्टर साहब को बुला लाती हूँ , वह पहले फ्लोर पर ही रहते हैं" उसने समझाते हुए कहा
"जैसा आप ठीक समझे" मैने हार कर कहा , मुझसे उसकी बात काटी नही गयी
"जी अच्छा , आप अंदर जा कर आराम कीजिए मैं डॉक्टर को ले आती हूँ" कहकर वह तेज़ी से सीढ़ियाँ उतरने लगी.
इधर मैं घर आ कर मुँह धोया और सोफे पे बैठ गया लेकिन खून अभी भी बह ही रहा था, दरवाज़ा मैने जान बूझ कर खुला ही रखा.
10 मिनिट बाद वह हाँफती हुई उपर आई और बेल बजाई .
"अरे शिखा जी आइए बैठिए"
"डॉक्टर साहब किसी एमर्जेन्सी केस में हॉस्पिटल गये हैं"
"जी कोई बात नही , आप मेरे वजह से तकलीफ़ ना लें , मैने जख्म धो लिया है"
"लेकिन अभी भी आपकी नाक से खून बहना बंद नही हुआ"
"वो रुक जाएगा , आप आराम से बैठिए तो सही?" मैने कहा
"एक मिनिट" कह कर वा उल्टे पाँव अपने फ्लॅट की ओर भागी
"अब ये कहाँ चली गयी? बेफ़लतू में मेरे कारण टेन्षन लेती है" मैने परेशान होते हुए सोचा. नाक तो कम्बख़्त अभी भी दुख रही थी और खून था की साला रुकने का नाम ही नही ले रहा था.

इतने में शिखा एक बड़ा सा प्याज़ ले कर अंदर आई
"ये क्या लाई हो?" मैने पूछा
"यह कटा हुआ प्याज़ है , इसकी तेज़ गंध सूंघने से नाक से खून निकलना बंद हो जाता है"
उसने समझते हुए बोला
"और जो खून निकलना बंद ना हुआ तो"
"अरे तुम सूंघ के तो देखो" कहकर उसने कटी हुई प्याज़ मेरे नथुनो की ओर बढ़ाई
मैने एक लंबी साँस ले कर उसकी गंध खींची.. "आहह"
"अब थोड़ी देर नाक को इस टिश्यू पेपर से दबाए रखो और हर पाँच मिनिट में ऐसे ही दोबारा सांस लो"
उसने फरमान सुनाया. देखते ही देखते नाक से खून बहना बंद हो गया
"अरे वा अपने तो कमाल कर दिया शिखा जी" मैने उसकी तारीफ करते हुए कहा
"आपके देसी इलाज ने तो मेरा जख्म ठीक कर दिया"
"ये आयुर्वेद है अमन जी हर मर्ज की दावा है इसमे" उसने बताया
"अछा?"
"हन"
"आपको कैसे मालूम?"
"मैने आयुर्वेद पढ़ा है"
"तो आप वैद्य भी हैं?"
"थोड़ी बहुत नुस्खे जानती हूँ"
"जो भी हो , आपके नुस्खे से मेरी नाक का खून बहना बंद हो गया , बहुत बहुत शुक्रिया आपका" मैने धन्यवाद देते हुए उसको बोला
"अरे अमन जी आप तो शर्मिंदा कर रहे हैं , आप बैठिए आराम कीजिए आपके लिए मैं हल्दी वाला गर्म दूध ले आती हूँ"
उसने जवाब दिया और अपने फ्लॅट की तरफ चली गयी.
"कितनी प्यारी और केरिंग औरत है यह" मैने सोचा "मुझे ऐसी बीवी मिल जाए तो पलकों पर बिता कर रखूँगा"


"आउच" मैने ज़ोरो से चीखा
शिखा ने मेरी चादर खींच ली थी
"बीप.. बीप.. बीप"
"ओह साला अलार्म बज गया" मैने उठते हुए कहा
"ढपाक"
की आवाज़ के साथ शिखा मेरे उपर औंधे मुँह कूदी और मुझे वापस बिस्तर पर पीठ के बल गिरा दिया

अब वो मेरे उपर सवार थी और मैं पूरा नंगा पीठ के बल उसके नीचे लेटा हुआ था

"हटो शिखा अभी इस सब का वक़्त नही है" मैने उसको हटाने की कोशिश की
"आआह नही" मैं दोबारा दर्द से कराहा
उसने मेरे कान ज़ोरों से अपने दाँतों तले दबाए और काट खाए
"उफ्फ"
"सुनो" वह फुस फुसाई
"नही देखो अलार्म क्लॉक बज रही है...5:30 बजे ड्राइवर आएगा , बॅंगलुर की फ्लाइट पकड़नी है" मैने मना करते हुए कहा

"हा हा हा" वह हंसते हुए बोली वा मेरी जांघों पर बैठ गयी
मेरा लंड एकदम तन कर उसकी नाभि पर टिक गया , मेरे लंड को उसके गर्म मुलायम गद्देदार
पेट का अहसास हुआ
"अभी मैं तुम्हे शिखा एरलाइन्स की फ्लाइट पर ले चलती हूँ" वह हंसते हुए बोली
और फिर घुटनों के बाल बैठ कर तोड़ा उठ कर उसने अपनी अंडरगार्मेंट निकाल कर बगल में फेंक दी , दाएँ हाथ से उसने नाइट लॅंप बुझा दिया और बाएँ हाथ से मेरे लंड को पकड़ कर अपनी पुच्चि में बेदर्दी से खींच कर घुसाया.

"उफ्फ क्या कर रही हो" मैं दर्द से चीखा

"तुम्हे प्यार कर रही हूँ" उसने झुक कर अपनी नाक मेरी नाक से टकरा कर कहा और बाए गाल को अपने जीभ से सहलाया
"अभी 4:30 ही हुए हैं फ्लाइट सवा आठ की है , चलो ना एक शॉट मारते हैं" उसने मनाते हुए कहा
"आइी ईई"
"क्या हुआ मेरे राजा?"
"उफ़फ्फ़" मैं दोबारा हल्के से चीखा
मेरा सबूत लंड उसकी पुच्चि में जा घुसा था और अब उसकी पुच्चि में धंसते हुए मेरे लंड का गुलाब खिल उठा था.
"अया" मेरे गर्म गुलाब को अपने अंदर पा कर उसने चैन की साँस ली.
मैने देखा मेरी जांघों को बीच अपनी टाँग फैलाए मेरे लंड को अपनी योनि में दबाए वह घुटनो के बल खड़ी हुई थी , उसके दोनो हथेलियन मेरी हथेलियों पर टिकी थी

उसने अपनी गर्दन पीछे की ओर झुकाई और उसकी पुकचि मेरे लंड के इर्द गिर्द तेज़ी से दबाव बनाते हुए आ धँसी
अब की बार मैने उसकी हथेलियों पर दो उंगलियों के बीच अपनी उंगलियाँ फसाईं और अपनी टाँगें उसकी कमर पर लपेट ली और उसे उपर की ओर धक्का दिया.

"अयाया...उफ़फ्फ़" वह दर्द से बिलबिला उठी और उतनी ही तेज़ी से मुझ पर आ गिरी.
हमारी गर्म सांसो की आवाज़ से आज समा हाँफ रहा था
सर्द अंधेरी रात में हम दोनो के जिस्म से पसीना पसीना हो गये थे
वा धीरे धीरे उपर नीचे होने लगी , उसके उपर नीचे होते हुई जिस्म की छुअन से मेरा गुलाब भी अंदर बाहर होने लगा
हौले हौले उसने अपनी स्पीड बधाई और उसकी साँसे तेज तेज चलने लगी.
मैं उसकी तेज चलती साँसों की आवाज़ सुन कर हंस पड़ा ऐसे लग रहा था जैसे कोई स्टीम एंजिन पफ पफ करते हुए जा रहा हो.

"क्या हुआ ऐसे पागलों के जैसे हंस क्यो रहे हो?" वह गुस्सा हो कर बोली और उसने मेरे लंड पर अपनी चूत की दीवारों से दबाव बढ़ाया , मुझे गुदगुदी हो रही थी
"हा हा हा" मैने उस गुड गुडी से खुद को बचाने के लिए खुद को सिकोड़ना चाहा
"आइ नही .....तुम्हारी चिकनी डंडी मेरी गिरफ़्त से निकल रही है .... हँसो मत" वह अपने दाँत भींच कर बोली
उसने अपने हथेलियों की पकड़ मेरी हथेलियों पर और मज़बूत की , किसी भी कीमत पर वो मेरे लंड को अपनी छूट से निकालने नही देना चाहती थी

"स्लॉप" की आवाज़ से मेरा लंड उसकी पुच्चि से निकल गया
मैने देखा उस नीली रोशनी में मेरी जांघों के बीच मेरा लंड मीनार की तरह टन कर खड़ा था और हमारी मुहब्बत के रंग में सराबोर हो कर चौदहवी के चाँद की तरह चमक रहा था.

"सब गड़बड़ कर दिया तुमने" शिखा शिकायती लहज़े में बोली "कुछ देर अपनी हँसी कंट्रोल नही कर सकते थे?"
"तुम जानते हो की अब 4-5 दीनो तक मुझे तुम्हारा प्यार नही मिलेगा" उसकी आँखों में आँसू भर आए
"तुम हमेशा अपनी मनमानी करते हो" उसने रुआंसी हो कर कहा "कभी मेरा ख़याल नही करते"
 










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